अपडेट -17
काया और बाबू एक खंडर मे पनाह पा गए थे, पल भर मे ही मौसम ने करवट बदल ली थी, और मिजाज ऐसे बदले की चारो तरफ सिर्फ पानी की बौछारे, बिजली रह रह के कड़क उठती थी. आसमान काला हो चूका था
"मै कहा रहा था मैडम पहले है " बाबू ने खुद को पोछते हुए कहां.
"मुझे क्या पता था ऐसा मौसम हो जायेगा " काया अपने दुप्पते को निकाल निचोड़ रही थी.
साय साय करती हवा दोनों के भीगे जिस्म को और भी ठंडा कर रही थी.
"बारिश भी अभी.... " बाबू के शब्द उसके गाले मे ही अटक गए, धुंधलाती रौशनी मे काया के कपडे उसे धोखा दे रहे थे, कुर्ता लेगी भीग कर पूरी तरह से जिस्म पर चिपक गए थे, काया दुप्पटा हाथ मे लिए पानी निचोड़ रही थी.
असल मायनो मे आज बाबू ने काया की खूबसूरती को देखा था, गिले स्तन गले से झाँक रहे थे, बाकि बचे स्तन पर कुर्ता ऐसे चिपका था की उसके होने का मतलब ही नहीं था, दुप्पटा निचोड़ के झड़ती काया का जिस्म हिल रहा था, स्तन उछल कर वापस से कुर्ते मे समा जा रहे थे.
बाबू के लिए जैसे समय रुक गया था, सब कुछ स्लो मोशन मे चल रहा था.
"अब क्या होगा बाबू " काया ने दुप्पते को झाड़ते हुए कहां, दुप्पते से निकलती पानी की बुँदे बाबू के जिस्म को चिरती भागी जा रही थी.
बाबू की तरफ से कोई जवाब नहीं, ना ही काया का ध्यान उस ओर था.
"बाबू..... बाबू...." काया ने दुप्पटा पास मे दिवार पर टांग दिया, सामने बाबू सांस रोके खड़ा था.
"क्या ह्या बाबू.... काडडडडडम.... कादंम्म्म... एक जोरदार बिजली की गर्जना गूंज उठी.
"वो.... वो.... मै कुछ. नहीं कुछ.. नहीं " बादल गरजने से बाबू हक़ीक़त मे लौट आया था.
उसकी सांस लौट आई... बिजली की चमक ने काया के भीगे लगभग नंगे जिस्म को चमका दिया, काया ने भी अपनी हालत को पलभर के उजाले मे देखा देखना क्या था तुरंत झेम्प गई हाथो को आपस मे सिकोड लिया, गर्दन नीचे झुक गई.
काया की इस हरकत से उसके स्तन और भी दब के आपस मे चिपक एक कामुक रास्ता बना दिया जो की कुर्ते के गाले से बाहर निकल आया था.
"इस्स्स..... कितना सुनसान रास्ता है ये " काया ने माहौल को बातचीत की तरफ मौड़ना चाहा.
"स.. सोरी मैडम वो इस रास्ते से नहीं आना चाहिए था " बाबू ने खेद जताया
"अरे बुद्धू मै तो सिर्फ बोल रही हूँ की रास्ता सुनसान है, बाकि तो शहर मे ऐसे नज़ारे कहां देखने को मिलते है "
"सच मे आपको अच्छा लग रगा है " बाबू की बंन्छे खील उठी.
"हाँ बाबू मै जिंदगी मे पहली बार ऐसा कुछ देख रही हूँ, ऐसी बेमौसम बारिश, सुनसान रास्ते, ना गाड़ी की पो पो ना उनका धुवा " काया को ये पल बहुत भा रहा था, अपनी और आकर्षित कर रहा था.
बाबू एकटक काया को देखे जा रहा था, लाल होंठो से झाँकते सफ़ेद मोती जैसे दाँत, खिलखिलाती काया वाकई किसी मर्द के लिए नशे का काम करती है.
"ओह गॉड.... अचानक काया बाहर को भागी, ना जाने क्या हुआ.
काया तुरंत भाग कर एक्टिवा के पास पहुंची देखा कपड़ो का थैला वही टंगा पूरा भीग गया था
काया ने झट से बेग को उठा वापस अंदर दौड़ लगा दी,
सामने बाबू तो दम तोड़ने पर आमादा था, सामने भीगे कपड़ो मे भगती काया के जिस्म अपनी जवानी दिखा रहा था अपनी औकात दिखा रहा था.
दो गोरे सुडोल स्तन उछलते हुए उसके नजदीक आ रहे थे, सब कुछ स्लो मोशन हो गया मालूम पड़ता था.
काया के तीखे निप्पल अपने शबाब पर थे.
"सब भीग गया बाबू... हम्मफ़्फ़्फ़.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़...."
बाबू बस देखे जा रहा था, अभी क्या हुआ पता नहीं बस जो नजारा देखा वो जिंदगी मे पहला था.
"बाबू.. हमफ़्फ़्फ़.... बाबू...." काया ने बेग वही पटक दिया, माथे पर शिकन आ गौ थी.
बाबू ने नीचे झुक बेग उठा लिया, उसके हाथ कुछ टटोलने लगे,
चेहरे पे एक मुस्कान आ गई, उसके हाथ बाहर को आये तो उसमे कुछ था " मैडम जी कच्छी भी गीली हो गई "
बाबू बड़ी मासूमियत से बोला.
"बुद्धू यहाँ सब गिला हो गया और तुझे पैंटी ही दिखी "
"ये ही तो कीमती है ना " बाबू ने पैंटी काया कर सामने लहरा दी.
बाबू के इस तरह से पैंटी को लहराने से उसे बाबू के साथ पहली मुलाक़ात याद आ गई, साथ ही चेहरे पे मुश्कान.
"पता नहीं तुम्हे ही क्या कीमती लगता है इसमें ?"
"मेरे लिए तो है जब से आपकी कच्छी सुंघी थी तभी से इसकी कीमत मालूम पड़ गई "
कच्छी सूंघने की बात से ही काया को अजीब सा लगने लगा, जब से वो यहाँ आई है तभी से जाने अनजाने ऐसा कुछ ना कुछ होता ही जा रहा है..
"तो क्या कीमत है इस पैंटी की?" काया भी मैदान मे आ चुकी थी.
"अभी तो आपने जितने की खरीदी उतनी ही है, लेकिन एक बार पहन लेंगी तो बेशकीमती हो जाएगी " बाबू साहसी था, वैसे भी काया से उसका दोस्ताना सम्बन्ध था
"अच्छा जी मेरे पहनने के बाद ही क्यों "
"क्युकी तब इस कच्छी मे से आपकी चुत की खुसबू आएगी ना "
"इस्स्स..... " बाबू के शब्दों ने एक बार फिर काया के मन को डोलाना शुरू कर दिया था.
ये देसी शब्द ना जाने क्यों उसके अंग अंग पर कामुक प्रहार किया करते थे.
इस बात का सबूत उसके मुँह से निकली हलकी सी आह थी.
"कककक.... क्या... क्या बोला?" काया ने आंखे बड़ी कर कहां
"स... सोरी मैडम लेकिन जो सच है वो है आपकी चुत की खुसबू ही ऐसी है की रहा नहीं जाता"
काया को वो पल याद आ गया जब बाबू ने उसकी पैंटी को अपने लंड के आगे रख रगड़ दिया था.
"कक्क.... क्या करते हो फिर?" काया के सवाल मे जिज्ञासा कम हवस ज्यादा थी.
"इस कच्छी मे तो कोई खुसबू ही नहीं है सससन्नणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़......" बाबू ने काया की नयी पैंटी को नाक से लगा कर कहां.
"फिर....?"
"फिर क्या अपनी कच्छी दो तो बताऊ " बाबू ने सीधा उसकी पैंटी की मांग कर दी.
"कक्क... क्या... मै... मै... कैसे दे सकती हूँ?"
"वैसे ही जैसे रोज़ बालकनी से देती हो "
"वो... वो... तो हवा से उड़ के गिरती है" काया के शब्द लड़खड़ा रहे थे जैसे उसकी चोरी पकड़ी जाने वाली थी.
"रोज़ गिर जाती है कमाल है " बाबू cid बना तर्क दे रहा था.
काया किसी मुजरिम की तरह बचाव कर रही थी, लेकिन लगता नहीं था सफल होगी.
"वो... वो.... अब मै कता करू गिर जाती है तो " काया के मन मे चोर था, वो जानबूझ के ही पैंटी गिरा दिया करती थी.
काया की चोरी पकड़ी गई, इधर उधर देखने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं था.
"दे दीजिये ना पहनी तो है ना?"
"कक्क... क्या पहनी है?"
"कच्छी... मैडम कच्छी पहनी तो है ना "
"अअअ.... हाँ... हाँ... पहनी है " काया सिर्फ फुसफुसाई काया का जिस्म अब उसके आपे के बाहर था.
"तो दे दो... आप खुद देख ले क्या करता हु"
बाबू के ऑफर मे मजा तो था, वैसे भी काया देखना चाहती थी की मर्दो को ऐसा क्या मजा आता है.
काया ने कुछ ना बोला, बस बाबू की आँखों मे झाकती रही.
थोड़ी ही देर मे उसके दोनों हाथ कुर्ते के दोनों कट मे जा लगे, और लेगी के किनारो मे अंगूठे फस गए.
और नीचे को चल पड़े, सामने कुर्ती लटक रही थी, लेगी नीचे होने लगी.
जैसे जैसे लेगी नीचे जाती, बाबू और काया के दिल धाड धाड़ कर उठते..
लेगी जांघो तक जा पहुंची थी, ठंडी हवा उस हसीन मोती मादक जांघो पर जा लिपटी, जैसे हवाएं भी उस हुस्न की प्यासी हो.
काया हलकी से नीचे को झुकी, लेगी और भी नीचे को जा पहुँचूँगा, साथ ही काया के स्तन भी कुर्ते से बाहर निकलने पर आतुर हो गए.
बाबू तो बस सांस रोके इस कुदरत के करिश्मे को देखे जा रहा था,
काया के जिस्म से जैसी ही पैंटी अलग हुई वैसे ही काया को लगा जैसे बहुत सारे तार उसकी पैंटी से चिपके हुए है, चुत से निकली लार उसकी पैंटी को रोक रही थी,
लेगी और पैंटी एक सतब धड़ाम से पैरो मे एकट्टा हो गए काया ने तुरंत एक पैर उठा लेगी को पेरो से अलग कर दिया,
पल भर मे काया के हाथ मे उसकी पैंटी थी, सांसे फूल रही थी, लेकिन चेहरे पे एक मुस्कान थी.
जैसे कोई जंग जीत ली हो, जंग ही तो थी हवस की जंग.
बाबू को उम्मीद नहीं था ऐसा होगा और इतनी जल्दी..
बाबू युद्ध मैदान मे सामने वाले योद्धा का शौर्य देख हैरान था.
"क्या हुआ अब नहीं लोगे " काया ने मुस्कुराते हुए अपनी ऊँगली पर पैंटी को टांग बाबू की ओर बढ़ा दिया.
बाबू ने अपने काँपते हाथ झट से आगे बढ़ा दिए,
संनंणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... आआहहहह.... संन्नीफ्फफ्फ्फ़.....
पैंटी झट से बाबू की नाक पर जा लगी.
"ईईस्स्स्स........ काया के हलक ने एक सिस्कारी छोड़ दी.
यर दृश्य उत्तेजना से भरा था, एक शहरी लड़की की पैंटी उसके सामने ही याज़ा जवान लड़का सूंघ रहा था.
ऊपर से काया कमर के नीचे नंगी थी बिल्कुल नंगी, बाहर से गीली हवाएं उसकी जांघो के बीच बनी लकीर से खिलवाड़ करने लगी.
और सामने बाबू उसकी पैंटी से.
"आअह्ह्ह..... मैडम जी क्या खुसबू है आपकी कच्छी की, क्या खुसबू है आपकी चुत की वाह.... उफ्फ्फ... शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... संणीफ्फ्फ्फफ्फ्फ़...."
तारीफ बहुत गंदी थी, लेकिन थी तो काया की ही तारीफ काया के रोंगटे खड़े हो गए..
वो सिर्फ बाबू की हरकत देखे जा रही थी, सांसे भारी हो चली थी.
गगगगर्रर्रर्रजज्ज..... भाअडडडड...... बाहर बारिश तूफान मे तब्दील हो चली थी.
और अंदर वासना का तूफान आने को था.
"आपको पता है ऐसी कच्छी के साथ क्या करते है?" बाबू ने काया की आँखों मे झाकते हुए कहां
"नन.. नहीं... कक... क्या करते है?" काया मरी जा रही थी जवाब के लिए.
"इसे चाटते है " बाबू की जीभ बाहर को निकल आई.
सुडप... लप.. लप... कर दो चार जीभ काया की पैंटी पर चल पड़ी.
"उउउफ्फ्फ.... बाबू.... इसस्स..... काया ने अपनी जा जांघो को कस कर चिपका लिया जैसे की बाबू की जबान उसकी चुत पर चली हो.
"ऐसी कच्छी को खाते है " बाबू ने पैंटी के उस हिस्से को मुँह मे ठूस लिया जो हिस्सा चुत के नीचे होता है.
"आअह्ह्हब..... सुडप.... सुडप..... पैंटी पहले से ही गीली थी कुछ बारिस के पानी से तो कुछ, काया के चुत के पसीने से.
सारा रस बाबू के मुँह मे समता जा रहा था, जिसे जीभ से लप लपा के चटकारे लेता चाटा जा रहा था.
हर चटकारे की चोट काया को अपनी चुत पर महसूस हो रही थी.
इस्स्स..... बाबू.... उसके हाथ जैसे बाबू को रोकने के लिए उठे हो, लेकिन रास्ते मे ही थाम गए क्युकी, बाबू के हाथो ने हरकत कर दी थी.
बाबू के हाथ रेंगते हुए अपनी जांघो के बीच जा कर हिलने लगे.
काया ने तुरंत पीछा किया, बाबू के हाथ अपने उभार को सहला रहे थे.
वो पहले भी बाबू के लंड को देख चुकी थी, गोरा चिकना मोटा लंड.
एक ललक सी जग उठी, यही तो काया की कमजोरी बनती जा रही थी,
मर्दो का लंड, उस उभार को देख लेने की इच्छा, उसे महसूस करने की कामना.
"फिर पता है मैडम मैंने क्या किया था?"
"गड़ब.... कक्क.... क्या किया था?" काया ने मरी आवाज़ मे पूछा जैसे शब्द ही ना निकल रहे ही उसके गले से.
अब बाहर से आती ठंडी हवा राहत नहीं दे रही थी, काया के माथे पर पसीना था, जिस्म गरम था.
"इसे लंड पर रगड़ते है "
"कककक.... क्या " हालांकि माया ये शब्द सुन चुकी थी लेकिन फिर भी ना जाने क्या थ्रील था इस शब्द मे, एक उत्तेजना थी वो फिर से सुनना चाहती थी.
जवाब मे बाबू की उंगलियों ने पैंट की जीप को खोल दिया.. और दूसरे हाथ ने पल भर मे लंड को बाहर कर दिया.
भकककक..... से काया का चेहरा सफ़ेद पड़ गया, वो फिर से बाबू के लंड को देख रही थू लेकिन इस बार बिल्कुल पास से..
"ऐसी खुसबू वाली कच्छी को लंड पर रगड़ते है" बाबू ने काया की पैंटी को अपने लंड पर लपेट लिया
और धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा.
"आअह्ह्ह.... इस्स्स.... बाबू... बाबू " काया के होंठ सिर्फ बुदबूदा रहे थे.
काया अपनी पैंटी की दुर्गति देख रही थी,
बाबू लंड को पीछे खिंचता तो गुलाबी हिस्सा पैंटी के बाहर आ जाता, फिर आगे करता तो पैंटी मे छुप जाता.
बाबू जोर जोर से अपनी हरकत दोहराने लगा.
"आअह्ह्ह.... मैडम जी आपकी कच्छी मे जादू है "
पच.. पच.... चिक... चिक... की आवाज़ गुजने लगी थी, पैंटी का गिलापन बाबू के लंड को गिला कर रहा था.
काया की तो सांसे रुक गई थी जैसे, मुँह खुला ही हुआ था
बाबू काया के नजदीक आ खड़ा हुआ.
रह रह के बाहर से आती रौशनी दोनों को उस दृश्य का आनन्द दे रही थी.
काया के हाथ अपनी नाभि के नीचे सरक जाते, लेकिन ना जाने क्यों फिर से ऊपर चल पड़ते, जाँघे आपस मे बुरी तरह से भींची हुई थी..
"मैडम.... जी छू के देखेंगी " जैसे बाबू ने काया के मन मी बात पढ़ ली हो.
"मेरे लंड को छू कर देखेंगी "?
"ममम..... नहीं... नहीं..." काया की गर्दन ना मे हिल गई.
"यहाँ कौन है देखने वाला... सससन्नीफ्फफ्फ्फ़...... बाबू ने काया की पैंटी को वापस अपनी नाक से लगा लिया.
काया की चुत कुलबुलाने लगी थी, एक पतली सी चासनी चुत रूपी नदी से निकल जांघो पर तैरने लगी थी.
"कौन देख रहा है यहाँ " बाबू के शब्द उसका हौसला बढ़ा रहे थे.
काया के हाथ आगे को उठे, ललललल... लेकिन.... नहीं... नहीं... हाथ वापस पीछे को जाने लगे.
लेकिन पीछे जा ना सके.....
इस्स्स्स........ बाबू ने गजब का साहस दिखाते हुए काया के हाथ को पकड़ अपने लंड पर रख दिया.
"आआआहहहह...... बाबू..... नहीं... उउउफ्फ्फ..." काया जैसे चित्कार उठी एक गरम गरम सा अहसास पुरे जिस्म पर छा गया, आंखे लाल हो गई, जिस्म के रोंगटे खड़े हो गए..
काया की आंखे बंद हो वापस खुल गई, इसी पल की प्रतीक्षा मे थी जैसे, एक अद्भुत अहसास था, इस अहसास की कोई परिभाषा नहीं होती.
काया की आँखों मे लाल डोरे तैर रहे थे.
"आअह्ह्हम..... मैडम जी." काया के कोमल हाथो ने बाबू के मुँह से आह निकाल दी.
"कैसा लग रहा है मैडम जी "
काया कुछ नहीं बोली, अब भला कोई बता सकता है कैसा लग रहा है, जवाब मे काया के हाथ बाबू के लंड पर पीछे को जा वापस आगे को आ गए.
बाबू भी पहली बार किसी स्त्री के हाथो का स्पर्श पा रहा था, और काया भी.
दो अनाड़ी खिलाडी कामखेल खेल रहे थे, इस खेल को कोई सिखाता नहीं है.
काया के हाथ मजबूती से बाबू के लंड पर चलने लगे,.
काया का जिस्म बाबूबके बदन के बिल्कुल करीब था, इतना की दोनों एक दूसरे के जिस्म की गर्मी को महसूस कर पा रहे थे.
"मममम... मैडम... जी... आअह्ह्ह.... सससन्ननीफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....."
बाबू लगातार काया की पैंटी को चाटे जा रहा था, चूसे जा रहा था जैसे खा जायेगा..
बाबू की हरकत काया को उत्तेजित कर रही थी, और ये उत्तेजना काया बाबू के लंड को रोंद कर जवाब दे रही थी.
बाबू का लंड पुरे शबाब पर था,
काया की नजरें अपने हाथो पर थी, बाबू के लंड पर थी.
बाबू की चमड़ी कभी उसमे गुलाबी हिस्से को ढक लेती तो कभी उधेड़ देती क्या खेल था.
अजी खेल छोड़िये ये जादू था, जो काया के जिस्म पर छा गया था,
"आअह्ह्ह..... मैडम.... जी... आअह्ह्ह...."बाबू के हाथ काया के कंधे पर जा लगे, नीचे की तरफ दबाव देने लगे.
काया ने सर उठा बाबू की तरफ देखा, बाबू की आँखों मे याचना थी.
जिसे शायद काया समझ गई थी, उसकी गर्दन ना मे हिलने लगी.
ये कामकला आती कहां से है, कैसे दो लोग इसे समझ जाते है.
लेकिन बाबू उत्तेजना के शिखर पर बैठा था, उसके हाथ का दबाव काया के घुटने मोड़ने लगा, काया के हाथ बाबू के लंड पर और नजरें बाबू के चेहरे पे जमीं हुई थी.
बाबू की आँखों मे जैसे आदेश था, काया का जिस्म उसकी रखा नहीं सुन रहा था, उसके घुटने मुड़ते चले गए,काया की बड़ी गांड पीछे को झुकती चली गई,.
पल भर ने काया की आँखों के सामने बाबू का मोटा सुन्दर लंड था, जिस पर काया के हाथ जस जे तस जमे हुए थे.
काया की गोरी मोती जाँघे कुर्ते से बाहर निकल आई थी, हाइ हील पर काया उकडू बैठे बाबू के लंड को घूरे जा रही थी.
ये जो भी था सब अपने आप हो रहा था, इसमें किसी की कोई जबरजस्ती नहीं थी
"आपको पता है मैडम मैंने सुना है लंड को औरते मुँह मे ले के चूसती है " बाबू के मुँह से शब्द फूटे.
काया का सर हां ने हिल के रह गया, बोला कुछ नहीं आखिर शादीशुदा थी ऐसा प्रयास वो रोहित के साथ कर चुकी थी.
लेकिन वो नाकामयाब कोशिश थी.
काया का दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, उसे आज सफलता प्राप्त करनी ही थी.
काया का चेहरा बाबू के लंड के नजदीक जाने लगा, आगे बढ़ने लगा....
सससन्ननीफ्फफ्फ्फ़........ हु... फ़फ़फ़.... इतना की काया ने एक जोरदार सांस खिंच लीएक कैसेली गंध काया के जिस्म मे समा गई, बाबू के लंड पर उसके पसीने की खुसबू थी ये.
"आआहहहह...... बाबू..."
बाबू ने अपनी कमर को आगे बढ़ा दिया, बाबू की नाक अभी भी काया की पैंटी से चिपकी हुई थी
बाबू का कुंवारा लंड काया के होंठो से जा लगा, ठीक उसकी नाक के नीचे....
सससन्नीफ्फ...... काया ने एक सांस और खिंच ली.
उसके जिस्म मे काम का, हवस का तूफान हिलोरे मारने लगा,
नाभि के नीचे एक कर्रेंट सा दौड़ गया.
ना जाने किस आवेश मे काया ने जीभ निकाल बाबू के गुलाबी हिस्से पर रख दी.
"आआहहहह... मैडम जी " बाबू के हाथ काया के सर के पिछले हिस्से पर कसते चले गए.
लप.... लप... लपाक.... कर काया की खूबसूरत जबान बाबू के गुलाबी हिस्से पर चल पड़ी, बाबू की गांड पल भर को पीछे आ कर वापस को आगे आ गई.
बाबू के लिए भी ये पहला किस्सा था, लेकिन क्या जोरदार था.
ना जाने किस नक्षत्र मे पैदा हुआ था बाबू जो उसे ऐसा सौभग्य प्राप्त हुआ.
"उउउफ्फ्फ्फ़... मैडम जीईई...." बाबू चित्कार उठा किसी भेड़िया की तरह आसमान मे मुँह किये.
गुलप..... गप.... काया ने अपने लाल मादक होंठ खोल दिए, बाबू का गुलाबी हिस्सा उसके लाल होंठो की दरार को पार किये अंदर दाखिल हो चला.
"गुलुप.... गच.... से काया के होंठो ने बाबू के लंड के अगले हिस्से को अपने कब्जे मे ले लिए.
एक कसैला सा स्वाद काया के मुँह से होता उसके जिस्म मे घुल गया, काया एक घरेलु महिला थी, रोहित के साथ नाकाम थी लेकिन आज बाबू के साथ सफलता की पहली सीढ़ी चढ़ चुकी थी.
"उउउफ्फ्फ.... मैडम जी...."
बाबू का जलता लंड काया के मुँह मे झटके मार रहा था, हिलोरे खा रहा था जैसे बाहर हवा से पेड़ हिलोरे खा रहे थे.
काया यही ना रुकी उसके होंठ आगे को फिसलने लगे, फिसलते गए, जहाँ तक बाबू का लंड उसके मुँह के आखिरी छोर से ना टकरा गया.
बाबू को तो ऐसा महसूस हो रहा था जैसे आज उसका लंड पिघल जायेगा, वो बचेगा नहीं आज मर जायेगा.
"आअह्ह्ह म... मैडम जी " बाबू के हाथ से काया की पैंटी छूट कर जमीन चाट रही थी, बाबू के दोनों हाथ काया के बालो मे धसते जा रहे थे, कमर आगे को चली जा रही थी
लेकिन काया आज किसी के बस मे आने के मूड मे नहीं थी, तुरंत ही उसका सर पीछे को सरकने लगा, बाबू का गिला थूक से सना लंड लाल होंठो से बाहर आने लगा,
सफ़ेद थूक की लार बाबू के लंड पर देखी जा सकती थी, काया के लाल होंठ लंड के गुलाबी हिस्से तक जा कर रुक गए, मुँह के अंदर काया की जीभ बाबू के लंड को कुरेदने लगी.
"उउउफ्फ्फ.... आअह्ह्ह.... मैडम "
बाबू का तड़पना था की पच से काया के होंठ वापस आगे सरक गए.
अब ये सिलसिला शुरू हो गया, काया के होंठ बाबू के लंड ओर सरक रहे थे आगे पीछे, पीछे आगे,
ये सब काया ने कब कैसे सीखा इसका जवाब शायद कोई ना दे पाए, ये अभी सीखा इसी पल सीखा.
इस मौसम ने सिखाया, इस कुदरत ने सिखाया,
कामकला है ही ऐसी चीज.
पच.... पच.... कीच... कीच.... पाचक.... की आवाज़ बाहर के तूफान के साथ तालमेल बैठने लगी.
काया का जिस्म चल रहा था, आंखे कभी ऊपर को उठ बाबू के तमतमाए चेहरे को देखती तो कभी नीचे झुकी अपने होंठो से निकलते बाबू के लंड को.
उफ्फ्फ.... क्या सुकून था.
काया के हाथ अपनी जांघो पर चल रहे थे, उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी की अभी भी अपनी जांघो के बीच जा कर मौके का मुआयना कर आये.
उसे डर था, वो अपनी चुत को छूना नहीं चाहती थी, उसके हाथ जांघो की जड़ को छू कर वापस लौट आते.
बाबू का गरम कड़क लंड काया के मुँह मे जगह बना चूका था, उसका मुँह बाबू के लंड की जड़ तक जा कर वापस लौट जा रहा था..
पच... पच.... करती थूक की लार काया के मुँह से नीचे गिरती जा रही थी.
आअह्ह्ह.... मैडम जी...
गप... गप.... गुलप... गुलप.... पच... ओच... पाचक... काया के होंठ चले जा रहे थे.
काया के हाथ बाबू के कुल्हो पर जमे आगे को धकेल रहे थे.
काया कब इस खेल की अनुभवी हो गई उसे खुद को नहीं पता.
काया की चुत फड़कने लगी थी, बार बार खुल के बंद हो जा रही थी, जैसे ही खुलती एक चासनी जैसे लकीर नीचे टपक जाती, उसके रोकने मे लिए काया के हाथ उस और दौड़ पड़ते, लेकिन पूरी ताकत से वो अपनी चुत की दीवारों को आपस मे कस लेती...
"आअह्ह्ह..... गुलुओं.... गुलप.... गच... गच.... ओच... पच... पच..... काया का सर तेज़ी से चल रहा था, और हाथ जांघो पर रेंगे रहे थे.
अभी 2पल ही बीते थे की.
आआहहहह...... बाबू.... उउउफ्फ्फ.... नहींम्म्म्म.... मा..... काया धड़ाम से फर्श पर जा गिरी, उसके हाथो ने जांघो को भींच लिया, दोनों जाँघे दोनों दिशाओ मे फ़ैल गई, दोनों जांघो के बीच कुर्ती का पर्दा था.
काया का जिस्म झटके खाने लगा.
"आअह्ह्ह.... बाबू... पच... पचाक... फाचक.... एक तेज़ धार काया की जांघो के बीच से निकल कुर्ती पर जा लगी,.
फिर एक धार और पिच... पिच..... पिचाक....
आअह्ह्ह...... ऐसी ही दो तीन धार ने चुत से बाहर निकल आत्महत्या कर ली, काया का जिस्म वही फर्श पर चित लेट गया.
सामने बाबू ये दृश्य देख खुद को रोक ना सका, आखिर कब तक रोकता, फर्श पर पड़ी काया की कच्छी को उठा अपने लंड पर लपेट लिया,
कच्छी का लपेटना था की... पच.... फाचक.... पफाच... फच.... करती बाबू की प्राण ऊर्जा रुपी वीर्य काया की पैंटी को भीगो गया.
"आअह्ह्ह..... उफ्फ्फ्फ़..... बाबू के घुटने जवाब दे गए, ऐसा ससखलान इस उम्र मे घातक था, वही हुआ, धड़ाम.... से उसकअ बदन काया के साथ ही वही गिर पड़ा.
हमफ़्फ़्फ़.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.....
साय.... साय..... सिर्फ दोनों की सांसे उस खंडर मे गूंज रही थी.
दोनों के चेहरे एक दूसरे की तरफ थे, आँखों मे एक संतुष्टी थी, चेहरे पे मुस्कान थी.
बाहर तूफान थमने लगा था, हवाएं अपनी हद मे लौट रही थी.....
लगभग 10 मिनिट बाद ही....
घररररर...... खर.... खरररर...... करती एक सफ़ेद कार उस रास्ते से गुजर रही थी.
"बाबू... बाबू.... अब हमें चालान चाहिए.....
कार उस रास्ते से गुजर गई थी, काया ने अपनी लेगी पहन ली थी.
तो क्या वो कार रोहित की ही थी?
रोहित और शबाना के बीच आगे क्या हुआ?
क्या काया के जीवन का ये बदलाव उसकी जिंदगी मे एक नया मौड़ ले आएगा?
बने रहिये कथा जारी है....
0 Comments