ये क्या मेरी संस्कारी माँ जो खुद अपनी कच्छी घर पर उतर के आई थी, जो सोच के ही आई थी की असलम ने पहल की तो मना नहीं करेगी.
वो मेरी माँ वापस दरवाजे तक जा पहुंची थी.
माँ ने दरवाजा खोल, गर्दन बाहर निकाल सडक के दोनों और झाँक के देखा, कोई देख तो नहीं रहा.
कोई नहीं था सडक सुनसान थी,
भद्देदाककककक..... से माँ ने दरवाजा वापस लगा दिया और अंदर से कुण्डी लगा दी.
माँ असलम की तरफ मुड़ कर दरवाजे से जा चिपकी, उसकी सांसे फूल गई थी, ना जाने कितनी मेहनत की हो इस एक काम मे..
माँ के लाल होंठो पर मुश्कान थी, वो असलम को ही देख रही थी, सामने असलम का लंड वापस से सलामी देने लगा था,
माँ गले से पसीने की बून्द रिसती स्तन की घाटियों मे समा जा रही थी, आँखों मे लाल डोरे तैर रहे थे.
ये मुक साहमति थी असलम के लिए.
माँ बिना कुछ बोले असलम के पास जाने लगी, माँ की आंखे ऐसी थी जैसे कोई नशा किया हो, नशा ही तो था हवस का नशा, कुछ ही पलो मै माँ बील्कुल असलम के सामने खड़ी थी.
दोनों एक दूसरे की आँखों मे ही देख रहे थे.
दोनों के जिस्म में हवस की आग लगी हुई थी, असलम एकदम नंगा था, असलम ने अचानक से माँ को पकड़ अपनी तरफ खिंच लिया, माँ को ऐसा लगा जैसे उसका दिल सीना फाड़ के बाहर आ जायेगा, माँ के सुडोल कदम स्तन असलम की नंगी पसीने से भरी छाती पर जा चिपके.
मेरी संस्कारी माँ को महंगी साड़ी ब्लाउज असलम के गंदे पसीने से सनते चले गए.
असलम ने माँ को अपनी बाहो मे भर लिया, टाइट एकदम टाइट, उफ्फ्फ..... आअह्ह्ह्ह कहा वो काला गंदा सांड और कहा मेरी सुन्दर गोरी घरेलु संस्कारी माँ, दोनों का कोई मेल ही नहीं था आपस में...
माँ की चुचिया असलम की छाती से चिपकी हुई थी, मेरी माँ को बहुत अजीब लग रहा था, पहली बार कोई गैर मर्द माँ को स्पर्श कर रहा था, माँ का चेहरा शर्म से लाल होचुका था, माँ की चुत ने काम रस की उल्टी कर दी थी.
असलम ने देर ना करते हुए अपने दोनों हाथो से माँ की गांड के दोनों पाँटों को भींच लिया और कस कस के दबाने लगा, बड़ी गांड को नोचने लगा, मम्मी सिसकारी भर रही थी... नीचे 9 इंच का खड़ा लोहे जैसा लंड माँ मी चूत पर साड़ी के ऊपर से रगड़ खा रहा था, उउफ्फ्फ... .... अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह... अह्ह्ह्हह मेरी माँ सिस्कारिया ले रही थी,
"असलम....अह्ह्ह्ह.... आउच... मुझे बहुत दर्द हो रहा है बेटा अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह प्लीज मत करो.... अह्ह्ह्ह....
असलम :- दर्द मे ही तो मजा है आंटी, ऐसी मोटी गांड को मसलना ही चाहिए,
"बेटा असलम...आहह... पर ये गलत है, बहुत दर्द हो रहा है, तुम मुझसे बहुत छोटे हो अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.... माँ अभी भी अपने बचे खुचे संस्कारो की दुहाई दे रही थी.
असलम :- तो क्या हुआ मेरी जान छोटा हुआ तो क्या हुआ मेरा लंड तो बड़ा है ना, ऐसी बड़ी गांड के लिए बड़े लंड की ही जरुरत पडती है आंटी.
"अह्ह्ह्ह.... आउच... बेटा मत करो ना प्लीज किसी को पता चल गया तो मैं मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी बेटा अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह... किसी को पता चल गया ना मर जाउंगी सच में...
असलम:- ऐसा क्यों बोल रही हो आंटी, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा हम पता नहीं चलने देंगे ना.. जब तुम्हारे घर पर कोई नहीं होगा हम तभी मिलेंगे.
माँ :- ना बाबा ना आज आखिरी बार है, हम फिर कभी नहीं मिलेंगे, मुझे बहुत डर लग रहा है, तुम्हरी उम्र का एक बेटा है, मेरे पति बहुत अच्छे ह, मै उन्हें धोखा नहीं दे सकती बेटा असलम.
माँ दुहाई भी दे रही थी, लेकिन अपनी गांड भी मसलवा रही थी, चाहती तो अलग हो जाती लेकिन ऐसा नहीं किया मेरी माँ ने.
माँ :- आह्हः... ऊफ्फ... आउच..तेज मत दबाओ ना दर्द होता है.
असलम:- बड़ी गांड को ऐसे ही दबाया जाता है आंटी, अंकल नहीं दबाते क्या आपकी गांड?
माँ :- चुप करो, कैसी बात करते हो, मुझे शर्म आती है.
असलम मम्मी की सोने की बलियो को मुँह मे भर के चुभलाने लगा, कान को चटने लगा, कान और गर्दन के निचले हिस्से को चूमने लगा, असलम अनुभवी लड़का था, उसे तरीके पता थे कैसे एक औरत को गरम किया जाता है,
असलम के ऐसा करने से माँ का जिस्म काँपने लगा.
माँ ने असलम को कस के पकड लिया, माँ मे हाथ असलम की नंगी पीठ पर घूमने लगे, माँ इस कद्र उत्तेजित हो गई कि उनके हाथ खुदबा खुद असलम के लंड को ढूंढ़ सहलाने लगे,
अब एक कसाई का लौड़ा मेरी मम्मी के हाथ मे था,
प्लीज बेटा ऐसा मत करो अह्ह्ह्हह्ह उफफ्फ्फ्फ़ मर जाउंगी अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह.... मेरी माँ उत्तेजना के मरे तड़प रही थी, जैसे बिन पानी की मछली हो.
असलम :- मेरी जान ये बताओ केसा है मेरा लंड... कभी पकड़ा है ऐसा लंड तुमने.?
"अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह प्लीज ऐसे मत बोलो ना असलम बेटा अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह ओह्ह्ह ओह्ह्ह... माँ की आवाज़ मे एक नशा था, माँ की आवाज़ नशीली हो गई थी,
असलम की ये बाते माँ को और भी ज्यादा उत्तेजित कर रही थी.
असलम :- बताओ ना आंटी, कभी देखा है ऐसा लंड?
माँ :- क्या बताऊ? मुझे शर्म आती है, मेरी माँ मुस्कुरा दी
असलम:- अच्छा बोलने मे शर्म आती है, देखने और पकड़ने मे नहीं आती?
माँ :- . चुप बदमाश.
असलम:- बताओ ना आंटी?
असलम ने गांड के ऊपर से साड़ी के अंदर अपनी एक उंगकी घुसेड़ दी.
"आउच्ह्ह.... आउच... क्या कर रहे हो तुम?" माँ ने आंखे बड़ी कर असलम को देखा
असलम:- तो फिर बताओ केसा है मेरा लंड?
माँ:- .अच्छा बाबा बताती हूँ...अहह्ह्ह्.... ऊफ्फ... आह्ह अच्छा है तुम्हारा ये काफी बड़ा है और मोटा भी है, . मेरे तो हाथो मे भी नहीं आ रहा कितना मोटा है असलम बेटा तुम्हारा.
असलम:- तुम्हें पसंद आया मेरा लंड?
.माँ :- अरे बाबा बोला तो सही, बार बार नहीं बता सकती.
असलम:- बताओ ना क्यू शर्मा रही हो? यहाँ हम दोनों के अलावा कौन है, चुदाई का मजा तभी है जब कपड़ो के साथ साथ शर्म भी उतर जाये.
माँ :- बहुत बढ़ा है, उभरी हुई नसे भयानक लग रही है, माँ के हाथ असलम के लंड पर लगातर चल रहे थे.
माँ के गोरे हाथो मे सजी लाल चुडिया खनक रही थी.
"तुम तो अपनी बीवी कल मार डालोगे अपने इस से" माँ ने असलम के लंड को कस के दबा दिया.
असलम:-... आअह्ह्ह.... आंटी...आह्ह... बीवी का तो पता नही, तुम्हे चोदुँगा तो तुम ही बता देना.
माँ :- छी....कतई नहीं मै वो सब नहीं करूंगी.
असलम:- अच्छा फिर यहाँ क्या करने आये हो, अच्छे से हिलाओ ना मेरे लोडे को.
माँ :- .. केसे हिलाते हैं मुझे नहीं आता, मैं जाऊ अब घर अह्ह्हहह.... आउच... असलम ने कस के माँ की गांड को भींच लिया.
असलम:-क्यू कभी अंकल का हिलाया नहीं क्या जो इतना भोली बन रही हो?
मम्मी:- नहीं हम ये सब नहीं करते...
असलम...क्यू फ़िर केसे चोदते है अंकल तुम्हें?
माँ :- चुप पागल कैसी बात करते हो तुम?
असलम:- अब चुदाई को चुदाई ही कहते है ना, बताओ ना आंटी अंकल कैसे चोदते है?
असलम के हाथ लगातार माँ की गांड को मसल रहे थे, बिना कच्छी की गांड आपस मे रगड़ खा खा कर लाल हो गई थी., गांड की दरार मे पसीना बहने लगा था.
माँ :- नहीं वो खुद से करते है, मै सिर्फ लेट जाती हूँ, खुद से पकड़ मे अंदर डाल देते है, माँ आज पहली बार घर के राज, अपने बैडरूम के राज किसी गैर मर्द को सुना रही थी.
माँ बुरी तरह शर्मा गई थी, माँ ने अपना चेहरा असलम के सीने मे धसा दिया.
असलम :- हाहाहाहा.. बेचारा बूढ़ा, अब भी चोदते है क्या तुम्हे?
माँ :- बूढ़े तो तुम्हे भी होना है बेटा एक दिन, औरत कैसी भी हो अपने पति की बेइज़ती नहीं सहन कर सकती.
असलम:- बताओ ना कितनी देर करते है, कितना बड़ा लंड है अंकल का?
माँ :- चुप करो तुम मैं कुछ नहीं बता रही और प्लीज ऐसे सवाल मत पूछो मुझसे अब...
आअह्ह्ह..... नहीं असलम बेटा आउच...
असलम मे साड़ी के अंदर हाथ डाल गांड की दरार मे उंगली चला दी, असलम की उंगली पसीने से लिसलिसा गई.
"बताओ ना आंटी?"
माँ :- अच्छा ठीक है आउच... आह हहह...क्या कर रहे हो, महीने मे 1,2 बार ही कर पाते है, वो भी सिर्फ 2 मिनिट मे खत्म हो जाता है,.
माँ की आवाज़ मे निराशा और आँखों मे प्यास थी.
जवान थे तो 5,10 मिनट तक कर लेटे थे लेकिन अब सांस चढ़ जाती है उनकी, और उनका तुम्हारे जैसा भी नहीं है " माँ ने हताशा से कहा.
असलम:- मतलब अभी जवान कच्ची कली ही हो, तुम्हारा मन नहीं करता क्या चुदवाने का?
माँ :- छी असलम बेटा... आअह्ह्ह..... Iiissss.... कैसे बात करते हो, मेरी उम्र है क्या ये सब करने की, असलम की उंगलियां गांड की दरार मे धसती जा रही थी.
असलम :- कितनी बड़ी लुल्ली है अंकल की?
असलम की बात सुन माँ मुस्कुरा दी, hehehehe...कुछ भी बोलते हो तुम..
असलम:- बताओ ना आंटी,
मम्मी...अरे बाबा छोटा है बहुत तुमसे बहुत छोटा है
असलम...कितना छोटा?
माँ :- कैसे बताऊ शर्म आती है?
असलम:- मेरे से गांड मसलवा रही हो और कहती हो शर्म आ रही है,
माँ :- जितना ये तुम्हारा आगे का हिस्सा है ना जिस पर चमड़ी नहीं है, उतना ही होगा शायद,
माँ ने अपनी उंगली से सुपडे के थोड़ा नीचे तक की लम्बाई को नापते हुए कहा, माँ मे जहन मे पापा और असलम के लंड की तुलना ने जन्म ले लिया,
असलम:- हाहाहाहा मतलब तुम अभी तक चुदी ही नहीं हो, बताओ एक बेटा हो गया और चुत अभी टक सील पैक है, असलम की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा,
असलम ने माँ के कानो को चाट लिया.
एक सिरहान से माँ के जिस्म मे दौड़ गई.
असलम से अब रहा नहीं जा रहा था, माँ की हालात भी ऐसी ही थी.
माँ और असलम के होंठ आपस मे जुड़ते चले गए.
छी.... कैसे मेरी माँ ने एक गैर मर्द, गंदे से कसाई के होंठो को अपने होंठो से लगा लिया, गुटके जर्दे की बदबू से भरा मुँह मेरी माँ के नाजुक घरेलु होंठो को चूस रहा था.
माँ ने अपने होंठो को खोला नहीं था, शायद असलम के मुँह से आती बदबू ऐसा करने से रोक रही थी.
लेकिन असलम की जीभ लगातार माँ के होंठो को कुरेद रही थू, माँ के होंठ असलम के थूक से सन गए, एक मदहोश कर देनी वाली गंध माँ के नाक से होती जिस्म मे फैलने लगी.
ना चाहते हुए भी मेरी संस्कारी माँ ने अपना खूबसूरत मुँह खोल दिया, असलम की गंदी गुटखे से सनी लाल जीभ माँ के मुँह मे घुस गई.
गगगग... गुगु.... उउउफ्फ्फ.... आअह्ह्ह.... माँ के हलक से सिस्कारी फुर पड़ी, एक अलग ही तजुर्बा था ये.
माँ उत्तेजना से भर उठी, माँ के हाथ कस कस के असलम के लंड को हिलाने लगे.
असलम और मेरी मां की जीभ एक दूसरे से मिल गई दोनो एक दूसरे के थूक को चाट रहे थे चूस रहे थे, माँ ने शायद ही कभी ऐसा kiss किया था,
मेरी माँ बिल्कुल बिकाबू हो असलम के मुँह मे जीभ घुसा रही थी, उसके मुँह के कोने कोने को अपनी जीभ से कुरेद रही थी, माँ पूरी तरह से असलम पर जवाबी हमला कर रही थी.
दोनों एक दूसरे मे खोये हुए रहे, माँ ने अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया था,
5मिनट तक दोनों एक दूसरे के मुँह को चाट रहे थे चूस रहे थे, लार और थूक माँ के होंठो के किनारे से चु रही थी.
असलम ने अपना मुहं हटा मम्मी की आँखे मे देखा, वहाँ सिर्फ हवस थी,
असलम:- मेरी जान मजा आ गया, क्या kiss करती हो तुम, जैसे जन्मो की प्यासी हो.
माँ सिर्फ मुस्कुरा कर रह गई, सांसे तेज़ चल रही थी..
असलम:- चलो अब निचे बैठ जाओ.
मम्मी... क्यू?
असलम:- जैसे मेरी जीभ को चूसा है वैसे ही मेरे लंड को भी चुसो.
मम्मी:- क्या... य्येयाक्क्क... छी...बिल्कुल नहीं ऐसा भी कहीं होता है क्या?
असलम:- क्यू क्या हुआ? अंकल का चूसा नहीं क्या कभी?चूसो तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा.
माँ :- छी-छी नहीं, कभी नहीं, मै ऐसी औरत नहीं हूं, कितना गंदा है तुम्हारा, माँ ने असलम के लंड को पकड़ ऊपर उठाते हुए दिखाया, असलम के लंड पर काली काली मेल लगी हुई थी, सुपडे के आस पास सफ़ेद पापड़ी सी जमीं हुई थी.
वाकई बहुत गन्दा लंड था असलम का.
असलम:- तुम्हे पछतावा है ना को पुलिस वालो ने मुझे मारा था, तो समझ लो लंड चूस के ही माफ़ी मिलेगी तुम्हे,.
मेरे लंड पर भी साले पुलिस वालो ने लात मारी थी, जिस पर तुम्हे ही मरहम लगाना पड़ेगा अब.
माँ :- क्या... सच तुम्हे यहाँ भी मारा,
माँ के हाथ बड़े ही प्यार से असलम के लंड को दुलार कर रहे थे, बताओ कितनी नाजुक जगह है, इसे भी नहीं छोड़ा un लोगो ने.
असलम:- हां बहुत दर्द होता है डॉक्टर ने मालिश करने को बोला था पर मैंने नहीं की
माँ :- क्यों नहीं की, करना चाहिए था ना? माँ को वाकई पछतावा हो रहा था अब, माँ असलम के लंड को बड़े गोर से देख रही थी, कभी ऊपर उठा कर तो कभी साइड कर के, जैसे देखना चाहती हो ज्यादा तो नहीं लगी.
असलम:- तुम कर दो ना अपने गर्म मुँह से, बहुत आराम मिलेगा.
माँ :- लल्ल.... लेकिन.... ये ये गन्दा होता है, माँ घुटनो के बल बैठ गई थी माँ के मुँह के सामने काला लंड फंफाना रहा था.
असलम:- अचानक थोड़ा सा ले के देखो, अचानक ना लगे तो मुँह से निकाल देना.
माँ :- लललल... लेकिन मैंने कभी मुँह मे नही लिया, माँ के हाथ पुरे लंड पर ऊपर नीचे चल रहे थे..
असलम... क्यू अंकल का कभी मुंह में नहीं लिया क्या?
माँ :- छी.... ये भी कोई मुँह मे लेने वाली चीज है
असलम :- एक बार ले के तो देखो, यही तो असली sex है आंटी, जो अपने आज तक नहीं किया वो कर के देखो.
असलम की बाते माँ के जहन मे जादू पड़ा कर रही थी, घुटने के बल बैठी मेरी संस्कारी माँ असलम के लंड को हिलाये जा रही थी, लाल सूपड़ा गन्दा मेल जमा हुआ लंड माँ के मुँह के सामने ही था..
"एक बार मुँह मे रख लेने मे क्या बुराई है?"
"नहीं नहीं... छी ये गन्दा है"
"फिर यहाँ क्यों आई है तू?"
पुराने ज़माने की औरत है क्या तू? आज तक तो कुछ ना कर सकी यही मौका है चूस ले, मुह मे डाल के तो देख, जीवन मे सब कुछ पहली बार ही होता है."
माँ खुद से लड़ रही थी, अपनी अंतरात्मा से बात कर रही थी.
आखिर मेरी संस्कारी माँ ने फैसला कर लिया था अब यहाँ आ ही गई है तो कुछ सीख के ही जाएगी,
पहले तो माँ और अच्छे से असलम के लंड की लम्बाई चौड़ाई नापी,और हाथ से ऊपर नीचे करने लगी,
असलम का लंड काफी गंदा था, काफी समय से उसने अपना लंड साफ नहीं किया था, जगह जगह काला काला मेल लगा हुआ था, अजीब सी पसीने और पेशाब की महक आ रही थी असलम के लंड से, जो की बहुत कामुक थी, इसी महक ज़े मेरीमाँ उत्तेजित हो जा रही थी, माँ बार बार असलम के लंड को ऊपर से नीचे टक कुरेद दे रही थी.
फ़िर माँ ने असलम को गर्दन ऊपर कर देखा, वो माँ को ही देख रहा था, माँ की गर्दन ना मे हिल गई, माँ अभी भी हिम्मत नहींकर पा रही थी, पहले से ही एक उबकाई आने लगी थी.
लेकिन असलम ने आँखों से चूसने का इशारा किया, असलम के हाथ माँ के बालो मे घुस गए और आगे को धकेलने लगे,
आखिर माँ का सब्र का बांध टूट ही गया, माँ की गीली थूक से सनी जीभ खूबसूरत होंठो से बाहर निकाल आई, और असलम के लंड की तरफ बढ़ गई,
एक दम गुलाबी लंबी लम्बी जीभ असलम के सुपाड़े को टच करने वाली थी, असलम ने आने वाले आनन्द मे अपनी आंखे बंद कर ली थी.
माँ ने अपनी गुलाबी जिभ बाहर निकाली और असलम के टोपे को अपनी जीभ से छुवा दिया.
लंड का सुपाड़ा माँ की गरम गीली जीभ से छूते ही उसके मुँह से अह्ह्ह्ह.. Ufff.... सिस्कारी निकल गयी, मेरी संस्कारी माँ की जीभ असलम के सुपाड़े को टच कर चुकी थी.
सुपाड़े पर लगी पेशाब की बूंदो का स्वाद मम्मी के मुँह मे घुलता चला गया, एक अलग ही नशा था इसमें हालांकि माँ का मुँह कैसेले स्वाद से भर गया, एक उबकाई सी आ गई. एक मादक मर्दाना गंध माँ के जिस्म मे घुलने लगी,
माँ चाह कर भी खुद को रोक ना सकी, ये खुसबू ऐसी ही होती है,.माँ की गीली जिभ असलम के सुपडे के चारो तरफ घूम गई.
असलम उत्तेजना से अपने पंजो पर खड़ा हो गया, उसका हाथ माँ के सर पे कसता गया.
असलम:- आह्ह्ह्ह... आंटी.. इसस्स.... उफ्फ्फ... ऐसे ही घुमाओ अपनी जिभ को मेरे लंड पर अह्ह्ह्ह... इसस्स.... मजा आ रहा है, कितना अचानक कर रही हो, फिर बोलती हो चूसना नहीं आता अह्ह्ह्ह....
अब असलम को कौन बताये की हवस, कामवासना मे तड़पती औरत को कुछ सिखाने की जरुरत नहीं पड़ती, वो जो करें जैसा करे वही सम्भोग सुख है.
असलम :- आह्ह......आंटी ऐसे ही चाटो मेरे लंड को, आज साफ कर दो, कुरेद कुरेद के मेरे लंड को सबक सीखा दो साला जब भी तुम्हरी गांड देखता है बिदकने लगता है.
असलम उत्तेजना मे बड़बड़ा रहा था,
मेरी माँ असलम की बातो से और भी उत्तेजित होने लगी, माँ ने पूरी जीभ निकाल लंड के छेद पर रख दी, जीभ को तिकोना कर उस छोटे से छेद मे घुसाने की नाकाम कोशिश करने लगी, या फिर शायद माँ को पेशाब का स्वाद इतना पसंद आया था की वो कुरेद मुरैड के असलम का पेशाब निकाल देना चाहती थी.
कितनी जल्दी सीख गई थी मेरी संस्कारी मां.
माँ अपनी जीभ से असलम के लंड को लगातार कुरेद रही थी,
"अह्ह्ह्ह... अह्ह्ह्ह..... उउउफ.... क्या बात है मेरी जान तुम तो बहुत अच्छा कर रही हो, मुझे यकीन नहीं होता की t8मने कभी लंड नहीं चूसा हो.
असलम जन्नत की वादियो मे शेर कर रहा था, एक शादीशुदा औरत, अच्छे घर की घरेलु, संस्कारी औरत उसका लंड अपने घुटनो पर बैठ के चूस रही थी.
माँ :- मैंने एक बार टीवी मे देखा था, माँ ने असलम को देखते हुए कहा..
असलम :- क्या देखा था?
माँ :- एक रात को नींद नहीं आ रही थी तो मैंने टीवी चला दी, थोड़ी देर मे गंदी फ़िल्म आने लगी उसमे ऐसा ही कुछ हो रहा था.
बस मैंने कभी try नहीं किया था, क्यूंकि ये तो अंग्रेज़ों के काम है, ऐसा यहाँ थोड़ी ना होता है.
असलम :- हम अंग्रेज़ों से कम है क्या, यही से सीख के गए है वो लोग,
माँ ने असलम की बात को कोई जवाब ना देते हुए अपनी जीभ को असलम के लंड के निचले हिस्से से ऊपर की ओर चला दी.
आआहहहहह..... आंटी कामिनी.... क्या चूसती हो तुम. उउफ्फ्फ....
असलम मेरी माँ की घरेलु गरम जीभ का छुवन बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था.
असलम खुद हैरान था, जो औरत अभी ना नुकुर कर रही थी, वो ऐसे लंड चाट रही थी जैसे बरसो ज़े उसका यही काम है.
असलम ने भले ही कितनी लड़कियों, औरतों को चोदा हो लेकिन एक औरत को समझ पाना उसके बस का भी नहीं था.
पहले अच्छे से धीरे धीरे असलम के टोपे को माँ ने चाटा, जिभ घुमा घुमा करअंडर पर लगे पेशाब और प्रीकम की बुंदे माँ ने अपनी जिभ से साफ कर दी.
आअहह अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह मेरी जान क्या मजा आ रहा है अह्ह्ह्ह आअह्ह चाट ऐसे ही चाट अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह..
असलम नंगा झोपडी मै खड़ा था और मेरी संस्कारी माँ सज धज कर असलम का लंड अपने मुँह में ले चाट रही थी. आख़िरकार असलम ने मेरी माँ के मुँह में अपना लंड दे ही दिया था..
माँ ऊपर से लेकर नीचे तक असलम का लंड अपनी जीभ से साफ कर रही थी ऐसा बिल्कुल भी नहीं लग रहा था जैसे माँ पहली बार किसी का लंड चूस रही हो.
असलम जन्नत के मजे ले रहा था एक बड़े घर की औरत उसका गंदा लंड चूस रही थी.
चूस चूस मेरी जान अह्ह्ह्ह चूस अह्ह्ह आअह्ह चूस पूरा ले ना मुह्ह्ह उउउफड़.... इसस्स.... अह्ह्ह....
माँ :- नहीं अब नहीं मेरा मुँह दर्द कर रह है, पूरा नहीं ले पाऊँगी.
असलम:- लो ना आंटी इतना अच्छा चाट रही हो आप, बस मुँह खोल के अंदर ही तो लेना है...
माँ :- .नहीं असलम. बेटा मुझे अच्छा नहीं लग रहा कुछ। तुम्हरा इतना बड़ा है मेरे मुँह मे कैसे आएगा, मै नहीं कर पाऊँगी.
असलम...जल्दी लो वर्ना म खुद मुह मे डाल दूंगा, इस बार असलम जरा गुस्से से बोला.
मा सहम सी गई.
माँ :- नहीं बाबा मै लेती हूँ तुम मत डालना,
असलम... तो फिर चूसो...
माँ :- तुम हाथ हटाओ मै कोशिश करती हूँ,
मेरी माँ खुद असलम के लंड को चूसना चाहती थी फिर भी नाटक कर रही थी, शयाफ यही स्त्री चरित्र होता है,
औरत नखरे करती ही है.
उसके बाद माँ ने असलम के लंड को अपने हाथ में पकड़ा और फिर एकदम से अपने मुँह मे घुसा लिया.
असलम खुद हैरान था की किस तमाश की औरत है ये अभी मना मर रही थी और पल भर मे आधा मुँह मे घुसेड़ लिया.
मेरी संस्कारी माँ असलम के आधे लंड को ही मुँह मे अंदर बाहर करने लगी, माँ के मुँह का थूक असलम के लंड को भिगोने लगा.
आजतक असलम को इतना सुख कभी नहीं मिला था जिस तरह मेरी मां असलम का लोडा मुंह मे भर के तेज तेज चूस रही थी.
गरम गरम थूक माँ के होंठो के साइड से गिर रहा था, असलम का लंड पच... पच... पच.... की आवाज़ से थूक से भर गया था.
असलम के लंड पर लगा काला मेल माँ मे थूक के साथ घुलता जा रहा था, और असलम के टट्टो के रास्ते बहता हुआ जमीन चाट रहा था.
थोड़ी ही देर मे मेरी माँ के होंठ असलम के लंड की जड़ टक जा पहुँचे थे, मेरी माँ इस कद्र चूस रही थी की एक बार मे पुरे लंड को बाहर निकलती तो दूसरे ही पल माँ के होंठ असलम के पेट से जा चिपकते.
मुझे यकीन नहीं हो रहा था माँ ये सब पहली बार कर रही है.
मै रोशनदान पर बैठा माँ और असलम के पहले मिलन की कहानी को सुनता उस पल को इमेजिन कर रहा था, मेरे लिए कितने शर्म की बात है मेरी मम्मी एक कसाई का लंड चूस रही थी,असलम कसाई ने मात्र 15 दिन में मेरी माँ को पटाया था और उसके मुँह में लंड दे दिया था....
मेरी संस्कारी माँ ऐसे कैसे कर सकती है.
कर क्या सकती है वो तो मेरे सामने ही असलम के साथ पापा के बिस्तर पर लेती है,एक बार चुदवा चुकी है.
दूसरी की तैयारी चल रही है.
मै आगे की कहानी सुनने को बेताब था, लेकिन अंदर कमरे मे असलम और माँ वापस से गर्म हो चुके थे अपनी पहली मुलाक़ात याद कर के.
मेरे पास ये देखने के अलावा कोई ऑप्शन नहीं था.
आगे क्या हुआ.....
मिलते है नेक्स्ट एपिसोड पर.
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