मेरी संस्कारी माँ -12
मै सीढ़ियों पर बने रोशनदान से किसी चूतिये की तरह अपनी माँ मे कमरे मे झाँक रहा था,
जहाँ मेरी संस्कारी माँ मेरे पापा के बिस्तर पर किसी गैर मर्द जे साथ बिल्कुल नंगी लेती हुई थी, दोनों एक दूसरे के कामुक अंगों को सहला रहे थे, kiss कर रहे थे.मै हैरान था की मेरी माँ इतना कैसे खुल सकती है, असलम ने ऐसा क्या जादू कर दिया.
आंटी तुम्हे याद है तुमने पहली बार मेरा लंड चूसने मे कितने नाटक किये थे, असलम ने माँ के स्तन को भींचते हुए कहा.
"आउच... असलम बेटा धीरे...." माँ शर्मा कर रह गई.
कैसे भूल सकती हो वो दिन, जब मै पहली बार तुम्हारी झोपडी मे आई थी.
बाहर बैठा मुझे भी यही सुनना था आखिर आगे क्या हुआ, मेरी मुराद पूरी हुई असलम और माँ फिर से उस दिन की यादो मे जा रहे थे.
मेरी संस्कारी माँ लप... लप... लापक.... कर असलम के लंड को अपने गाले तक घुसा ले रही थी, असलम का लंड और माँ का मुँह थूक से सन गया था, असलम के लंड का मेल रिसता हुआ नीचे गिर रहा था.
कुछ ही पलो मे माँ ने असलम के लंड को चूस चूस कर साफ कर दिया.
वववकककम..... कोई संस्कारी घरेलु औरत ऐसा कैसे कर सकती है.
लेकिन मेरी माँ तो मानो किसी और दुनिया मे थी, अभी जहाँ थोड़ी देर पहले ना नुकुर कर रही थी वही अब ऐसे लंड चूस रही थी जैसे रोज़ का काम हो.
कोई रंडी हो महंगी रंडी.
मै हैरान था की माँ को लंड चूसना इतना पसंद आया, असलम के लंड से कैसेली मर्दाना गंध बाहर निकल रही थी जो की माँ को और भी उकसा रही थी, मेरी माँ का मुँह पूरा खुल गया था, लाल होंठ असलम के लंड पर बिल्कुल टाइट चिपके हुए थे.
अह्ह्ह्ह.... मेरी जान अब बस उउउफ्फ्फ... अब्ह्ह.... हटा ले मुह्ह्ह...अह्ह्ह्ह... अह्ह्ह्ह...असलम के मुँह से चीख सी निकल गई, माँ ने इस कद्र उसका लंड चूसा था की उसकी आत्मा ही निकलने वाली थी,
असलम ने माँ जे सर को पकड़ दूर कर दिया... ह्म्म्मफ़्फ़्फ़.... हमफ़्फ़्फ़.... हमदफ़्फ़्फ़.... थोड़ी भी देर होती तो असलम का लंड शहीद हो जाता.
लंड मुँह से निकलते ही जैसे माँ को होश आया, उसने असलम को सवाल भरी निःगाहो से देखा जैसे पूछ रही हो क्यों अलग किया?
असलम:- आह्ह.... उफ्फ्फ.... मेरी जान क्या चूसा, मार ही डालती तुम तो मुझे, कितना मज़ा आया.
माँ :- चुप करो तुम कुछ भी बोलते हो, माँ अपनी तारीफ सुन शर्मा गई थी
असलम:- बताओ ना आंटी मजा आया तुम्हें.?
माँ :- कैसी बात करते ही तुम, चलो अब मैं चलती हूं ठीक है....
असलम:- इसे छोड़ कर जाओगी मेरी जान अभी तो बहुत कुछ बचा है, असलम ने माँ के सामने अपने लंड को 2,3 कस के झटके मारे माँ का थूक असलम के लंड से टपकता हुआ एक लकीर बना रहा था.
माँ :- बहुत कुछ मतलब इतना काफी है बेटा.
असलम :- इतना कैसे काफ़ी है अभी तो नंगा भी नहीं कीया तुम्हें..
माँ :- हो.. ये क्या बात हुई? मै क्यों होउ नंगी? वैसे भी बहुत समय हो गया है बबलू कॉलेज से आने को ही होगा.
असलम:- कहा टाइम हुआ है, अभी 2 घंटे है उसे आने मे.
माँ :- अच्छा कहीं बबलू घर आ गई और मै घर पे ना मिली तो क्या होगा पता है तुम्हे? माँ ने एक बार फिर से असलम के लंड को पकड़ लिया था, माँ असलम के लंड के प्रति अपना आकृष्ण खत्म ही नहीं कर पा रही थी.
असलम:- क्या होगा उसे भी तो पता चले उसकी माँ क्या कर रही है. उउउफ्फ्फ.... मेरी माँ के गर्म कोमल हाथ असलम के लंड पर रेंगने लगे थे, असलम की जांघो पर माँ के नाख़ून खरोच पैदा कर रहे थे.
माँ :- अच्छा उसको क्यों पता चले कुछ भी बोलते हो तुम... देखो असलम बेटा ये बात सिर्फ मेरे और तुम्हारे बीच ही रहनी चाहिए, वरना मै मर जाउंगी, मेरे परिवार की इज़्ज़त मिट्टी मे मिल जाएगी,
माँ ने अंगूठे से असलम के पेशाब के छेद को कुरेद दिया, ना जाने माँ को उसमे क्या मजा आ रहा था.
असलम:- अरे तुम टेंशन मत लो आपकी इज़्ज़त मेरी इज़्ज़त, चलो साड़ी उतरो, या लंड से ही खेलती रहोगी.
मम्मी:- नहीं बेटा साड़ी नहीं कोई आ गया तो, माँ शर्मा गई असलम के बोलने से क्यूंकि वो कब से उसके लंड से खेले जा रही थी.
असलम:- कोई नहीं आएगा दुकान बंद है, तुम सोचती बहुत हो, चलो उतरो साड़ी.
माँ :- अच्छा सुनो ना साड़ी रहने दो ना जो तुम्हे करना है ऐसे ही कर लो, माँ ने आखिर सहमति दे ही दी, तन और मन दोनों से तैयार थी मेरी माँ गैर मर्द ज़े चुदने के लिए.
असलम :- बिना साड़ी उतारे कैसे होगा? मै कैसे करूँगा?
माँ :- हो जायेगा सब
असलम:- कैसे होगा?
माँ :- अरे बुद्दू मैं साड़ी उठा देती हूं ना फिर तुम कर लो.
असलम:- अरे वाह चलो सिर्फ आज छोड़ रहा हूँ,आज नंगी मत हो लेकिन अगली बार पूरी नंगी कर के चोदुँगा.
माँ :- ये पहली और आखिरी बार है, मै नहीं आउंगी अब, माँ ने इतराते हुए कहा.
असलम :- एक बार लंड तो घुसने दो फिर अगली बार का भी देखेंगे,
असलम ने माँ को पीछे बिस्तर पर लेटा दिया. मेरी संस्कारी घरेलु माँ गंदे आदमी, मांस का काम करने वाले लड़के के टूटे फूटे मेले कुचले बिस्तर पर बैठी हुई थी,
फ़िर दोनो की आँखो ही आँखो में इशारा हुआ और मम्मी को पता चल गया कि अब क्या करना है और असलम क्या चाहता है.
माँ :- मुझे शर्म आ रही है, माँ का कलेजा कांप रहा था वो हिम्मत कर के यहाँ तक आ तो गई थी लेकिन अब वो पल आ गया था जहाँ से वो पीछे कदम नहीं खिंच सकती थी.
असलम:- अब कैसे शर्म आंटी पहले भी तो नंगा देख चूका हो तुम्हें..
माँ :- मुझे कब देखा नंगा? माँ ने चौंकने का नाटक करते हुए कहा जैसे उसे कुछ पता ही ना हो.
असलम:- जब तुम वहा जगले मे मुत रही थी...
माँ :- हे भगवान...सच मे?
असलम:- हां मेरी जान मस्त गांड है तुम्हारी, और ज्यादा भोली मत बनो तुम्हे भी पता है मै तुम्हारे पीछे था.
माँ :- .छी तुम बहुत गंदे हो, माँ मुस्कुरा दी, अच्छा असलम बेटा लाइट बंद कर दो ना.
असलम:- क्यों लाइट जले होने मे क्या दिक्कत है.
माँ :- समझा करो मुझे शर्म आ रही है,. मै तो उनके साथ भी लाइट बंद कर के ही करती हूँ.
उफ्फ्फ.... क्या संस्कारी औरत थी मेरी माँ, मेरे पापा के साथ भी लाइट बंद मर के ही sex करती थी.
असलम:- यही तो समस्या है आंटी, जब एक दूसरे को देखा ही नहीं तो चुदाई का कैसा मजा.
माँ :- .फिर भी मैं एक औरत हूं और पहली बार किसी गैर मर्द के साथ करने जा रही हूं..
असलम:- मै कहा गैर हूँ, मै तो अपना ही हूँ, अपने बेटा जैसा ही समझो मुझे.
माँ :- छी.... क्या बोल रहे हो, क्यों समझ लू बेटा, कोई बेटा अपनी माँ के साथ ऐसा करता है क्या? वैसे भी मुझे बहुत अजीब लग रहा है क्यूंकि तुम वाकई बबलू के उम्र के ही ही, मेरे बेटे जैसे ही हो.
माँ के जिस्म मे बेटे के नाम से ना जाने क्यों झुंझुनी सी आ गई, उत्तेजना के मारे माँ ने जांघो को आपस मे भींच लिया.
इसससस..... अजीब लग रहा है असलम बेटा.
असलम:- अभी लंड चूसने से पहले भी तो अजीब ही लग रहा था ना, हीं,
असलम की बातो मे दम था, माँ की चुत मे चीटिया रेंगने लगी थी.
असलम:- जल्दी उठाओ ना साड़ी वैसे आज कोनसीकच्छी पहनी है,?
माँ :- .चुप्प करो तुम, मै नहीं बता रही, माँ शर्मा गई, असलम की बातो मे एक अलग ही कशिश थी जो की माँ को गुदगुदाती थी.
असलम : बताओ ना जल्दी टाइम नहीं है.
माँ :- आज पहनी ही नहीं है, माँ ने शर्म हया से अपने मुँह को हाथो से ढक लिया, वो आने से पहले पैंटी उतर के ही आई थी.
असलम:- मतलब आज चुदने ही आई हो, फिर भी इतने नाटक hehehehe....
माँ :- जी नहीं ऐसा कुछ नहीं है वो तो जल्दब्ज़ी मे आई तो पहनना भूल गई, माँ ने साफ झूठ बोल दिया था, ऐसी ही होती है संस्कारी औरते, तैयार रहती है लेकिन आगे से कुछ नहीं करती.
अब राज खुल ही गया था तो छुपाने का क्या फायदा, माँ बेचैन हो रही थी, जिस्म सुलग रहा था, सामने असलम का खड़ा लंड उसे ही घूर रहा रहा, माँ जाँघे आपस मे रगड़ रही थी.
माँ चुपचाप बिस्तर पर लेट गई, असलम भी सब्र ना कर सका, माँ के ऊपर एकदुम से टुट पडा और और एक दूसरे की बांहों मे समा गए,
असलम माँ के कान और गलो को चटने लगा, असलम ने माँ के
ब्लाउज के हुक खोल दिए, मेरी माँ मे सुडोल स्तन खुली हवा मे सांस मे रहे थे, असलम ने सर उठा कर रखा बार उन्हें देखा,
एकदम कड़क तने हुए थे, निप्पल किसी कील की तरह बाहर को आ गए थे, असलम पागलो की तरह माँ के सुडोल स्तनो पर टूट पड़ा.
निप्पल मुँह मेे के चूसने लगा, दूसरे को मसल मसल के दबाने लगा,
मेरी माँ सिस्कारिया मरने लगी अह्ह्ह्ह... उफ्फ्फ... माँ हवस मे डूब असलम के सर को अपने स्तनो पर दबा रही थी, उसे उकसा रही थी,
असलम किसी भूखे कुत्ते की तरह माँ के स्तनो को चाट रहा था, माँ दोनों हाथ ऊपर किये अपने दूध असलम को पीला रही थी, एक गंदे गालीच इंसान को चूसवा रही थी.
असलम मेरी मां की साफ सुथरी पसीने से भीगी कांख चाटने लगा.
आआहहहह..... इसससस..... माँ ने साथ ऐसा किसी ने पह्की बार किया था, उसे अहसास ही नहीं था की कांख चाटने मे भी मजा आता है, असलम का हाथ माँ के पुरे जिस्म पर घूम रहा था,
दोनों एक दूसरे मे खो चुके थे,
देखते ही देखते मम्मी ने अपनी साड़ी सारी घुटनो तक चढ़ा ली.असलम तो माँ की गोरी मोटी जांघो को देख पागल सा हो गया, किसी कुत्ते की तरह जीभ निकल लापलापने लगा, maa की नंगी टांगो पर हाथ घुमाते हुए मां की साड़ी को कमर तक चढ़ा दिया.
अब मेरी माँ असलम के सामने नीचे से नंगी पड़ी थी...
फिर क्या था मेरी संस्कारी माँ ने बेशर्मी का परिचय देते हुए अपनी टांगे असलम के सामने खोल दी, उसकी झांट वाली
चुत अब असलम के सामने खुली पड़ी थी... .
कुछ देर तक असलम मेरी माँ की चूत को देखता ही रह गया क्या मस्त चूत थी, कचोरी की तरह फूली हुई, इस उमर मे भी एक दम टाइट, चुत के नाम लार एक लकीर, गुलाबी गोरी चूत मे दिखता एक छोटा सा छेद, मोटी जाँघे, एक दम गोरी, पावो मे पायल, महावर माँ की सुंदरता बढ़ा रहे थे.
मेरी मां ने अब बिना किसी शर्म के असलम के सामने अपनी टांगे हवा मै फेला ली थी.
माँ की चूत देखते ही असलम पागल सा हो गया, मानो उसने जन्नत देख ली हो क्या चूत थी, कसी हुई जैसे कोई नयी लड़की ब्याह कर के आई हो, किसी ने छुवा भी ना हो इस चुत को.
उसके बाद असलम ने वो किया जिसकी उम्मीदवार माँ को भी नहीं थी, असलम ज़मीन पर उतरा और माँ की दोनों टांगो को पकड़ बिस्तर के किनारे लार ले आया और खुद उकडू बैठ गया.
माँ अभी कुछ समझती की असलम ने अपनी गंदी गुटके से लाल जीभ को माँ की चुत पर रख दिया.
माँ तो मानो बेहोश ही होने को थी, कर्रेंट का एक तेज़ झटका सा लगा माँ की गांड हवा मे उठ कर बिस्तर पर आ लगी.
ऐसा अनुभव ऐसा कोई भी चीज मेरी माँ ने कभी महसूस नहीं की थी, पापा ने कभी मेरी माँ की चुत ठीक से देखी ही नहीं थी उसे चाटने की बात तो बहुत दूर है.
जिसे मेरी माँ बिलकुल मदहोश हो गई, आंखे चढ़ गई थी
उउउफ.... इसस्स....अह्ह्ह्हह्ह बेटा अह्ह्ह्ह... हे भगवान...ह्ह्ह्ह... ऊफ्फ... असलम बेटा...माँ के जिस्म ने एक दो झटके लिए, माँ जाँघे आपस मे भींचने लगी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ असलम ने मजबूती से माँ की दोनों टांगो को फैला रखा था.
अब असलम ने मम्मी की चुत चाटनी शुरू कर दी थी.. असलम को चुत चाटना बहुत ही अच्छा लगता है, असलम रंडियों की भी चुत बहुत चाटता था, पूरी सिद्दत से मन लगा कर असलम चुत चाटा मरता था, और यही बात औरतो को उसकी ओर ज्यादा आकर्षित करती थी.
झोपडी मे मेरी मां की चुत चटाई हो रही थी उधर मे कॉलेज मे था और क्लास अटेंडेंट कर था, उधर मेरे पापा अपनी सरकारी नौकरी बजा रहे थे, इस बात से बेख़बर कि उनकी बीवी और मेरी माँ एक जवान लंड से एक गंदी झोपडी मे अपनी चुत चटवा रही है...
अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह ओह्ह्ह माय गॉड बेटा अह्ह्ह्ह क्या कर रहे हो तुम अह्ह्ह्ह असलम अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह ओएमजी अह्ह्ह्ह
मर जाउंगी मै, अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह नहीं बेटा अह्ह्ह्ह प्लीज रहम करो, छोड़ दो...अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह हे भगवान... माँ के मुह से तेज तेज सियाकारिया निकल रही थी और माँ के हाथ असलम के बालों को सहला रहे थे
5 मिनिट की चुत चुसाई से माँ की चूत ने नमकीन सफ़ेद पानी छोड़ दिया था, पूरी चुत गीली होचुकी थी, लेकिन असलम रुकने का नाम नहीं ले रहा था, पच... पच.... लप... लप... की आवाज़ झोपडी मे गूंज रही थी,
चुत से पानी रिस रिस कर गंदी चादर कोब और भी गन्दा कर रहा था,
चुत रस मे असलम का गन्दा थूक मिला हुआ था.
चूत का सारा पानी असलम झट से चाट गया... बेटा प्लीज़ अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह.....
असलम जीभ से माँ की चुत की पूरी लकीर को चाट चाट के साफ कर रहा था, गांड के छेद से चुत तक एक भी बून्द असलम ने व्यर्थ नहीं जाने दी थी.. सारा रस असलम ने गटक लिया.
माँ को ऐसा सुख अपनी जिंदगी में आज तक नहीं मिला था,मेरी संस्कारी माँ की चूत को आज पहली बार किसी ने चाटा था,
माँ का जिस्म कांप रहा था, माँ को ऑर्गस्म आ गया था वो भी इतना जबरजस्त की शायद ही कभी ऐसा हुआ हो, माँ को तो याद नहीं की वो ऐसे कब झड़ी थी आज से पहले.
माँ की आंखे बंद होती चली गई, साँसो के साथ माँ के नंगे स्तन उठ उठ कर गिर रहे थे.
असलम जमीन पर बैठा मेरी संस्कारी नंगी माँ को तड़पता देख रहा था..
Contd....
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