काया का दिमाग़ और जिस्म दुविधा मे फसा हुआ था, जब से उसने कय्यूम के इनविटेशन की बात सुनी थी तभी से जिस्म मे रह रह कर झुरझुरी उठ रही थी, ऊपर से कल बाबू के साथ की हुई हरकत उसे जाने के लिए उत्साहित कर रही थी.
हालांकि काया को कोई ग्लानि या पछतावा सा नहीं था, क्युकी रोहित बिल्कुल ही नाकाम साबित हो रहा था.
काया के जिस्म की आग उसे सोचने समझने का अवसर ही कहां दे रही थी.
दिमाग़ तो कहा रहा था जो हो गया सो हो गया, लेकिन दूसरी और कय्यूम के मजबूत विशालकाय लंड की एक झलक आ के निकल जाती, जांघो के बीच का हिस्सा कुलबुलाने लगता.
घर.... रररऱ.... खरररर...... करती कार उबड़ खाबाड़ रास्ते पर चली जा रही थी, गांव कबका पार हो गया था,
काया बाहर चांदनी रौशनी मे नहाये खेतो को निहारे जा रही थी.
कितना हसीन होता है गांव का दृश्य, कितना साफ स्वच्छ... मनमोहक.
"लो जी साब आ गया कय्यूम भाई का महल " फारुख की आवाज़ से काया का ध्यान टुटा.
रोहित पहले भी इस घर मे आ चूका था, लेकिन काया ने जैसे ही सामने का नजारा देखा उसका मन हिकारात से भर उठा.
बड़े से लोहे के गेट के पीछे एक फुटपाथ चला जा रहा था जो की एक मकान पर ख़त्म होता था.
फुटपाथ के दोनों तरफ बकरी, मुर्गे थे, खीचड़ था.
अजीब सी स्मेल से सरोबर था इलाका.
"छी.... रोहित ये कैसी जगह है?" काया ने नाक भौ सिकोड ली.
"इग्नोर करो अब धंधा ही यहीं है तो क्या करे " रोहित आगे चल पड़ा, पीछे पीछे काया.
"बड़े बाबू आइये आइये स्वागत है आपका" अचानक ही एक भारी आवाज़ गूंज उठी सामने ही उस आवाज़ का मालिक कय्यूम हाथ फैलाये खड़ा था.
काया ने सर उठा देखा हलकी पिली रौशनी मे भयानक काला राक्षसनुमा इंसान कय्यूम खड़ा था, लुंगी और बनियान पहने.
कय्यूम ने रोहित को गले से लगा लिया, लेकिन नजर पीछे काया पर ही टिकी हुई थी.
जैसे ही काया पर नजर पड़ी कय्यूम ने जोर से रोहित को भींच लिया, लगता था जैसे शेर के चुंगल मे मेमना हो.
सामने नजारा देख काया के चेहरे पे smile आ गई.
"आइये... मैडम. जी.... ममम... मेरा मतलब काया जी " आज कय्यूम ने हक़ से रोहित के सामने ही काया को उसके नाम से पुकारा था.
काया चुपचाप कय्यूम और रोहित के बाजु से निकल गई,
एक भीनी सी कामुक महक कय्यूम के नाथूनो मे पड़ी, कय्यूम का तो दिल बाग़ बाग़ हो गया.
आगे काया कसी हुई साड़ी मे चली जा रही थी, चल क्या रही थी गांड मटका रही थी.
पीछे पीठ पर सिर्फ एक लाल डोरी का सहारा था, बाकि नंगी गोरी पीठ.
पीठ के नीचे गांड से बस थोड़ा ही ऊपर काया ने साड़ी कसी हुई थी.
"उउउफ्फ्फ...." कय्यूम के मुँह से निकल गया.
"कक्क.. कक... क्या हुआ?" काया ने पलट कर देखा.
"कक्क...कुछ नहीं... आइये बड़े बाबू बैठिये " कय्यूम ने ध्यान वहाँ से हटा लिया.
काया ने देखा अंदर से घर काफ़ी शानदार था, महंगे फर्नीचर थे.
"गुड इवनिंग सर " सामने से दो शख्स खड़े हो गए.
"अरे आरती, सुमित तुम?" रोहित ने आश्चर्य से कय्यूम की तरफ देखा
"बड़े बाबू पुरे स्टाफ को ही दावत पे बुलाया है, आइये "
सामने ही सोफा लगा था, उसके पीछे डाइनिंग टेबल साइड मे किचन जहाँ से नॉनवेज बनने की मस्त खुसबू आ रही थी.
काया ने आरती को आज पहली बार देखा था, हालांकि वो उसी बिल्डिंग के निचले माले लार रहती थी लेकिन कभी मिलना नहीं हुआ, इत्तेफ़ाकान आज दोनों आमने सामने थे.
" नमस्ते काया जी " आरती ने काया का अभिवादन किया
"नमस्ते आरती जी " काया ने भी उत्तर दिया दोनों साथ ही बैठ गई.
काया को राहत महसूस हुई, दिनभर से जी आशंका उसके जहन मे खलबली मचा रही थी वो बेकार थी, कय्यूम का कोई गलत इरादा नहीं था.
अब जा कर काया का दिल दिमाग़ हल्का हुआ,.
वो खुद की सोच पर मुस्कुरा दी, क्या करती कय्यूम के साथ पिछला वाक्य कुछ अच्छा नहीं रहा था.
काया और आरती मे बातचीत शुरू हो गई थी,
वही सुमित, रोहित कय्यूम कुछ बात कर रहे थे.
काया ने नोटिस किया जैसा बाबू ने बताया था वैसे तो नहीं थी आरती, हाँ थोड़ी सावली थी, लेकिन चुस्त दुरुस्त जिस्म की मालकिन थी.
साड़ी पहनी बैठी आरती का जिस्म भरा हुआ था, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता था की पल्लू बार बार फिसल के नीचे आता तो आरती पकड़ वापस ऊपर करती.
दो मोटे सुडोल स्तन अपनी झलक दिखा ही जाते.
ना जाने क्यों काया ये सब देख रही थी.
आरती आज कोई उम्र के 40 के पड़ाव पर थी, सादे सिंपल कपड़ो मे रहने वाली आरती को देख आज सभी अचंभित थे.
कहीं ना कहीं काया भी जलन महसूस करने लगी थी.
अक्सर औरतों मे ऐसा हो जाता है, कय्यूम, रोहित सुमित आरती को बार बार देख ले रहे थे.
"वाह कय्यूम भाई पकवान बना भी दिए " अचानक रोहित की आवाज़ ने सभी का ध्यान उस ओर खिंच लिया
"नहीं बड़े बाबू बन रहा है, अकेला इंसान क्या क्या करे "
"आप अकेले रहते है बीवी बच्चे नहीं है?" काया ने हैरानी से पूछा.
काया कय्यूम के साइड ही बैठी थी, उसके बाजु मे आरती फिर दूसरे सोफे पर कय्यूम के सामने रोहित और सुमित बीच मे टेबल रखा था.
"बीवी तो मायके ही रहती है, अब बीवी नहीं तो बच्चे कहां से आएंगे" कय्यूम ने ऊपर से नीचे तक काया का अच्छे से मुयाना किया.
काया को जान के धक्का लगा जिस इंसान की इतनी धाक है, धौंस है, इलाके का दादा है वो अकेला रहता है, सरल दिल थी काया.
"पानी लाता हूँ " कय्यूम उठने लगा.
"आप रहने दीजिये मै लाती हूँ " काया एक मुश्कान के साथ उठ खड़ी हुई
अब घर मे औरत नहीं थी तो उसका फ़र्ज बनता था ये.
ऐसी ही थी काया साफ दिल, जिस से मिल ले उसे ख़ुश कर देती.
सामने ही फ्रिज था, सामने ही किचन.
"वाह बड़े बाबू आप बहुत खुसनसीब है काया जी जैसी औरत मिली आपको "
काया किचन से 4 गिलास गिलास और फ्रिज से पानी की बोत्तल ले आई.
"ये लीजिये" पानी सर्व हो गया काया वापस कय्यूम के पास ही जम गई.
"गट... सुक्रिया काया जी, आप चिकेन तो खा लेती है ना?" कय्यूम ने गिलास सामने टेबल पर रखते हुए कहां.
"हाँ कॉलेज मे खा लिया करती थी दोस्तों के साथ, शादी के बाद अब मौका मिला है " काया ने दिल की बात कहा दी.
"फिर क्या है... आप उंगलियां चाटती रह जाएगी " कय्यूम ने इशारा अपनी ऊँगली की तरफ किया.
काया झेम्प गई लेकिन साथ ही होंठो पर मुस्कुराहट थी.
"और आप आरती जी? "
"अअअ.... हाँ... क्यों नहीं मै तो शौकीन हूँ "
"आपकी तबियत देख के ही लगता है " सुमित ने आरती की टांग खिंचते हुए कहां
"क्या लगता है बताना तो " आरती ने तुरंत आखरी बड़ी कर सुमित को दुत्कार दिया.
"कककक... कुछ... नहीं " सुमित किसी मैंने की तरह सिमट कर रह गया.
माहौल खुशनुमा हो गया था, सभी सुमित को देख ठहाके लगा बैठे.
आरती को ज्यादा मज़ाक पसंद नहीं आता था, खासकर उसके शरीर को ले कर.
"फारुख.... ओह... फारुख.... " कय्यूम ने फारुख को आवाज़ लगा दी.
"जी... जी... दादा?"
"मेहमान आ गए है आइटम लाओ भाई " कय्यूम रोहित को देख मुस्कुरा दिया.
काया और आरती कय्यूम की बात का मतलब समझ ना सकी
फारुख तुरंत ही एक महँगी विदेशी बोत्तल के साथ उपस्थित हुआ.
"अच्छा.... तो ये भी प्रोग्राम था," काया ने रोहित की ओर आंखे बड़ी करते हुए कहां.
"काया जी बस एक दो पेग ही लेंगे " जवाब कय्यूम ने दिया
काया जानती थी रोहित ज्यादा पिने का आदि नहीं है, उसके दिल मे एक अंजानी सी खलबली मच गई,
लेकिन इत्मीनान भी था की वो अकेली नहीं है यहाँ.
"लेकिन मै नहीं पीती ये सब?" काया ने सीधा जवाब दिया
"कोल्ड्रिंक्स भी है ना, आप बस साथ दे देना" कय्यूम ने ही जवाब दिया.
शादी के बाद काया रोहित और उसके दोस्तों के साथ बैठी थी एक दो बार, लेकिन वो उसका घर था.
हालांकि कय्यूम से कोई डर नहीं था., ना जने वो खुद भी इस रोमांच को महसूस कर रही थी,
"लेकिन मेरे को चालेगा एक दो पेग " आरती बीच मे बोल पड़ी.
"आरती जी आप पीती है " रोहित हैरान था काया भी..
"पिछले 10 साल से अकेली हूँ, कभी कभी पी लेती हूँ, लेकिन बस थोड़ी सी,
आज पार्टी का माहौल है तो चल जाता है " आरती ने दिल की बात कहा दी.
आज सभी ने आरती के जीवन का वो पहलु महसूस किया जो सिर्फ अकेली औरत के हिस्से है.
कौन समझ सकता है की अकेली औरत कैसे जिंदगी जीती होंगी.
ना पति, ना बच्चे.... सिर्फ वो अकेली और उसकी बोरिंग जिंदगी.
आज आरती को मौका मिला था उड़ान भरने का मना नहीं कर सकी.
कितने अकेले होते है लोग, कैसा होता होगा ये अकेलेपन का जीवन.
आज काया के सामने दो लोग थे जो अकेलेपन को भोग रहे थे, नीरस खाली जिंदगी.
"अच्छा ही है ये तो.." काया ने आरती के कंधे पर हाथ रख सहानुभूति दी
कय्यूम तुरंत फ्रिज से कोल्ड्रिंक्स ले आया.
गिलास सज गए, काजू की प्लेट लग गई.
चार पेग दारू और एक कोल्डड्रिंक का तैयार हो चूका था.
"चियर्स.... टन से सभी के गिलास टकरा गए
"सही बताऊ कय्यूम भाई मुझे उम्मीद नहीं थी इस गांव मे ऐसी दारू भी मिल सकती है " रोहित ने पहला घुट लगाते हुए कहां.
"क्यों नहीं बड़े बाबू आपके लिए कुछ भी " कय्यूम ने भी एक घुट लगा लिया.
बातो का सिलसिला शुरू हो चूका था.
"आप अकेले कैसे रह लेते है " काया अभी तक वही थी वो कय्यूम को इमेजिन नहीं कर पा रही थी, इतना बड़ा आदमी अकेला क्यों है?
"मतलब...? "
"मतलब बिना बीवी के?" काया के मन मे कोतुहाल था.
कय्यूम थोड़ा नजदीक सरक आया था " आदत हो गई काया जी अब तो "
कय्यूम ने अपना हाथ काया की जाँघ पर रख हटा लिया, जैसे उसकी कोई यार हो.
काया चोंकि लेकिन रोहित की तरफ देखा उसका ध्यान उधर नहीं था.
काया ने वापस पीठ सोफे से टिका ली.
मात्र उस एक स्पर्श से काया के जिस्म मे गर्मी का संचार हो गया था.
पेग ख़त्म हो चुके थे, दूसरा पेग तैयार हो गया.
"काया जी अब सब्जी चला देंगी एक बार कहीं जल ना जाये " कय्यूम ने आग्रह किया
"अअअ... हाँ हाँ... बिल्कुल " काया उठ के चल दी.
सब्जी का ढक्कन उठाया सससन्ननीफ्फ..... वाकई बहुत शानदार खुसबू थी.
बाहर "नहीं नहीं कय्यूम. जी मेरा अभी यही चलेगा आप लोग अपना कंटिन्यू कीजिये " आरती कय्यूम को पेग बनाने से रोक रही थी.
इस कोशिश मे आरती का पल्लू फिर से सरका गया, इस बार ऐसा सरका की जमीन ही चाट गया.
एकाएक सन्नाटा सा छा गया, सभी की नजरें उस गोलाई पर जा पड़ी जो लगभग ब्लाउज से बाहर दी.
तीनो के गले सुख गए थे, आरती बाहर से हमेशा ढकी रहती थी लेकिन अंदर की थोड़ी सी खूबसूरती नर सभी मर्दो को विचलित कर दिया.
माहौल मे गर्मी सी आ गई थी.
"आप तो वाकई बहुत अच्छा बनाते है" काया वापस आ कर बैठ गई.
काया की आवाज़ से सभी का ध्यान भंग हुआ, आरती का पल्लू भी ठिकाने आ गया था.
ना जाने क्यों आरती ने उस तेज़ी से पल्लू नहीं उठाया जैसा उसे करना चाहिए था, शायद शराब की पहली घूंट ने उसे रिलैक्स कर दिया था
"घर के मसाले इस्तेमाल करता हूँ काया जी, अच्छे से कूट के डालता हूँ, बनाने और खाने मे मजा आ जाता है "
"पक्का आप चाटती रह जाएगी " कय्यूम ने वापस से अपने हाथ काया की जाँघ पर रख दिए.
लेकिन इस बार हटाए नहीं.
काया की सांस टंग गई, उसने एक नजर रोहित की तरफ देखा वो पिने मे मसगुल था.
काया की नजर कय्यूम से जा मिली, ना जाने नजरों मे क्या था कय्यूम के हाथ काया की जांघो से रगड़ खाते हुए अलग हो गए.
"आप लोग ताश खेलते है क्या?" कय्यूम ने पेग पीते हुए पूछा.
"पार्टी का माहौल है , ताश तो बनती है क्यों सर " सुमित ने कय्यूम का समर्थन किया.
"मुझे तो नहीं आता " काया ने वापस से असमर्थता जाता दी.
"कोई नी आप मेरे साथ खेलना " कय्यूम ने जवाब दिया
"अअअ... आप के साथ?" काया हकला गई
"एक दो गेम मे आप सीख जाएगी " कय्यूम ने बड़ी आसानी से काया को अपनी साइड कर लिया.
"लेकिन शर्त रखते है जो जीतेगा उसे ही पेग मिलेगा बाकि को नहीं " कय्यूम ने अजीब सी शर्त रख दी थी.
"क्या कय्यूम भाई ये भी कोई शर्त हुई, मुझे तो अच्छे से आता भी नहीं खेलना " रोहित ने मन मामोस कर कहां.
"बिना शर्त की भी कोई ताश होती है बड़े बाबू?"
सभी लोग हस पडे, वाकई बिना शर्त के ताश का कोई मजा नहीं.
कय्यूम पत्ते ले आया.
"तीन पत्ती खेलते है, आसान गेम है " कय्यूम ने पत्ते बाट दिए
सबसे पहले आरती ने अपने पत्ते उठाते हुए एक घूंट चूसक लिया "क्या यार " और वापस पत्ते वही फेंक दिए.
"रोहित ने उठाये उसे समझ नहीं आया, उसने पत्ते रख लिए.
"सुमित ने भी देखे और खुशी से बांन्छे खील उठी," कय्यूम भाई ये पेग तो मेरा ही है "
सुमित ने अतिउत्साह मे पत्ते टेबल पर दे मारे," 555, पंजा, पंजा, पंजा " बड़ी बात थी.
बारी कय्यूम की थी " 241" सड़े हुए पत्ते, कय्यूम ने पत्ते काया को दिखाते हुए पटक दिए.
बारी रोहित की थी, उसे समझ तो नहीं आया लेकिन पत्ते सामने रख दिए गुलाम, गुलाम, गुलाम
"वाह वाह... बड़े बाबू क्या किस्मत पाई है " कय्यूम चीख उठा.
"ममम... मतलन रोहित जीत गए " काया खुशी से चहक उठी जैसे कोई बढ़ा इनाम जीत लिया हो, जीत तो है
जीत ही होती है.
अगला पेग बना सिर्फ एक रोहित के लिए,
रोहित के चेहरे पे किसी युद्ध मे जीते योद्धा की तरह मुश्कान थी.. गट.... गटक... गाटाक... रोहित ने खुशी के मारे एक बार मे पूरा गिलास खाली कर दिया.
वो समझ ही ना सका की उसकी जीत मे हार छुपी है.
अब सभी को इस खेल का मजा आने लगा था.
अगली बाजी फिर लग गई, पत्ते कय्यूम ने बाट दिए.
इस बार फिर से रोहित जीत गया, लेकिन इस बार काया के चेहरे पे निराशा थी, क्युकी उसका गेम पार्टनर गेम हार रहा था.
रोहित के लिए एक पेग और बन गया,
बाट यहाँ अब शराब की थी ही नहीं, बाट थी हार जीत की,.
काया कय्यूम मे साथ थी, कय्यूम काया को लेटर दिखता और पटक देता.
"बड़े बाबू ऐसी कैसी किस्मत पाई है आपने "
"अअअ.... अपना ऐसा ही है " तीसरा पेग भी रोहित ने डकार लिया लेकिन इस बार उसकी जबान लड़खड़ा गई.
अगली बाजी फिर से लग गई,.
कय्यूम ने पत्ते काया की तरफ घुमाये, काया ने हैरानी से कय्यूम को देखा, जैसे पूछ रही हो क्या करना है?
सभी इस खेल मे डूब गए थे.
"काया जी आरती जी देख रही है, थोड़ा साइड आ जाइये " कय्यूम ने आरती को देखते हुए कहां.
काया भी मशगूल थी, ना सोचा ना समझा सीधा कय्यूम जे सोफे के हत्थे पर जा बैठी.
बैठी क्या उसकी जाँघे कय्यूम के बाजुओं से जा लगी, एक हल्का सा कर्रेंट दोनों के शरीर मे दौड़ गया, लेकिन इस वक़्त परवाह किसे थी.
खेल आगे बढ़ा......
"ययययई....... य्येई... कय्यूम जीत गया था जिसका जश्न काया ने मनाया " वो सभी को ठेंगा दिखाती सोफे के हत्थे के और पीछे जा चिपकी.
"क्या कय्यूम भाई मै कब जीतूंगा, ये कैसी शर्त रख दी आपने " सुमित मायुस सा हो गया उसे एक पेग भी नसीब नहीं हुआ था.
"भई गेम तो ऐसा ही होता है, कय्यूम ने एक छोटा सा पेग बना गटक लिया "
काया ख़ुश थी अपनी जीत से, कय्यूम की जीत उसकी जीत.
अगली बाजी फिर से लगी जिसे फिर से कय्यूम ने जीत लिया.
"क्या कय्यूम यार तुम तो खिलाडी निकले " रोहित ने दारू कय्यूम के गिलास मे उडेल दी.
"लो काया जी " कय्यूम ने गिलास काया की तरफ बढ़ा दिया.
"ममम.... मै नहीं पीती "
"आप खेल मे मेरी हिस्सेदार है, तो इनाम भी तो बराबर बटेगा ना " कय्यूम की दलील मे दम था.
काया इस माहौल मे ढल गई थी, उसे मजा आ रहा था.
लेकिन एक नजर उसने रोहित की ओर देखा, हैसे इज़ाज़त मांग रही हो.
वैसे भी जब आरती पी सकती है तो वो क्यों नहीं.
रोहित ने गर्दन हिला हामी भर दी, फिर क्या था कय्यूम ने ग्लास काया के हाथो मे थमा दिया.
काया के हाथ कांप रहे थे, ये वो पहली बार कर रही थी,
सससनणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... ग्लास पास ला कर उसने एक स्मेल ली, खुसबू अच्छी थी मीठी मीठी.
गट... गटक... गाटाक.... कर काया ने एक बार मे पूरा पेग हलक मे उतार लिया.. एक जलता सा लावा उसे गले से होता हुआ नाभि के कहीं आस पास जा कर गुम हो गया.
"उउउउफ्फ्फ...... हहहम्ममफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... कैसे पीते है आप लोग ये " काया ने ग्लास वही टेबल पर दे मारा.
हाहाहाहाहा.... वहाँ मौजूद सभी लोग काया पे हस पडे, काया का बोलने का तरीका ही ऐसा था.
जैसे किसी बच्चे ने मिन्नतें की हो..
अगली बाज़ी फिर लगी, लेकिन इस बार कय्यूम पत्ते काया को नहीं दिखा रहा था जबकि काया खुद पीछे झुक कर पत्ते देख रही थी, जिस वजह से उसका जिस्म कय्यूम के कंधे पर जा टिका, उसके सुडोल स्तन कय्यूम के कंधे को सहलाने लगे.
उसके जिस्म मे एक गर्मी का संचार हो रहा था.
ये पारी आरती ने जीती, उसके लिए एक ओग तैयार हो गया.
ये खेल चलता रहा, आगे के सभी 10 गेम रोहित और सुमित जीते.
काया और आरती मौज मे थी, हल्का हलका सा शुरूर सुकून दे रहा रहा.
काया का जिस्म कय्यूम से सटा जा रहा था, रोहित सुमित झूम रहे थे.
ऐसा मालूम पड़ता था जन्मो के बिछड़े दोस्त आज मिले है.
पार्टी अपने पुरे शबाब पर थी.
क्या रंग लाएगी ये पार्टी?
देखते है... बने रहिये
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