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मेरी संस्कारी माँ, अपडेट -8
"बता ना पे मादरचोद कैसे चोदा तूने आंटी को " फारुख बेसब्र हुआ जा रहा रहा.
बेसब्र मै भी था आखिर मुझे भी यही जानना था. मै सांस रोक कहानी सुनने को बेचैन था.
"ये सब पहले दिन से ही शुरू हो गया रहा, कामिनी आंटी और उसका बेटा बबलू और उसका बाप जब पहली बार सामान से भरा ट्रक ले कर यहाँ आये थे.
मै चौंक गया, ये कैसे मुमकिन है पहले दिन तो ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था, असलम झूठ तो नहीं बोल रहा? लेकिन वो झूठ क्यों बोलेगा,
या फिर मै ही कुछ देखने से चूक गया.
दिवार की दूसरी तरफ असलम ने कहना शुरू किया.
याद है उस दिन हम दोनों साथ ही खड़े थे, अंकल ने आवाज़ दी थी ट्रक से सामान उतरवाने के लिए, मै चला गया था.
मेरी नजर पहली जब बबलू की मम्मी पर पड़ी थी मै तो वही फ़िदा हो गया था, साली की क्या कसी हुई गांड थी, चलती थी तो दोनों गांड आपस मे रगड़ खाती थी,
ऐसी गोरी चिकनी औरत तो मैंने कभी देखी ही नहीं थी.
दिवार की दूसरी तरफ मुझे भी वो पहला दिन याद आने लगा.
लेकिन बहुत कोशिश करने के बावजूद मुझे कुछ अजीब याद नहीं आ रहा था, पक्का मेरी नजरों से बच के कुछ तो हुआ था.
दूसरी तरफ असलम और फारुख ने अगला पेग बना लिया था.
"फिर आगे क्या हुआ असलम भाई आंटी को तो हमने भी देखा था "
"उस दिन सारा सामान खाली हो गया था, बस पलंग बचा था जिसे हम सब ने निकाल के बाहर रख दिया था, लेकिन मेरी नजर पलंग के नीचे पड़ी गुलाबी पैंटी पर गई, मै हैरान था.
मैंने जल्दी से पलंग अंदर रखवाया और भाग कर ट्रक मे घुस गया और तुरंत वो कच्छी उठा ली.
कच्छी की बनावट उसके कपडे से साफ मालूम पड़ रह था ये पक्का इसी आंटी की ही है, क्यूंकि ऐसी डिजाइन की तो अपने गांव मे मिलती नहीं है.
मैंने झट से पैंटी उठा के उसे सूंघ लिया... सससन्ननणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... उफ्फफ्फ्फ़.... फारुख क्या बताऊ क्या खुसबू थी उस कच्छी मे, लगता था जैसे अभी अभी चुत ज़े उतार के फ़ेंकी हो.
असलम की बातो से मेरा सर चकरा गया, क्यूंकि जो वो बोल रहा था सच था, क्यूंकि जब मै वापस ट्रक के पास गया था तो असलम कुछ चीज अपनी पाजामे की जेब मे रख तो रहा था.
दिवार मी दूसरी तरफ.
"फिर क्या किया तूने?" फारुख को भी मजा आने लगा था.
"करना क्या था मैंने तुरंत जीभ निकाल आंटी की चुत की कल्पना करते हुए कच्छी को जीभ से चाट लिया, वाह क्या स्वाद था यार... साली ये दारू भी फ़ैल है उस नशे के सामने.
मेरी तो आंखे बंद होने लगी, लेकिन जैसे ही आंखे खुली सामने छत पर कामिनी आंटी थी, वो मुझे ही देख रही थी.
मेरा एक हाथ अपने लंड को सहला रहा था, दूसरे से कच्छी पकडे सूंघ रहा था.
पता नहीं साली वो कब छत पर आ गई थी.
हालांकि मैंने भी उसे देख लिया था, लेकिन अनदेखा कर दिया.
दूसरी तरफ इस खुलासे से मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई, अब मुझे सारा माजरा समझ आने लगा था.
मेरी माँ ने पहले ही दिन से असलम को ऐसी गंदी हरकत करते देख लिया था.
असलम मे माँ को नजरअंदाज करते हुए अपने पाजामे को ढीला कर अपने गंदे लंड पर माँ की कच्छी को लपेट लिया
छत ओर खड़ी मेरी माँ ये हरकत देखते हुए बोखला उठी, उसकी सांस ऊपर चढ़ने लगी, उसने आज से पहले ऐसा नजारा कभी नहीं देखा था.
सामने एक गैर मर्द अपने काले मोटे लम्बे लंड पर मेरी माँ की कच्छी को घिस रहा था.
"छी.... ये कौन है कोई इतना बत्तमीज़ केसे हो सकता है " मेरी माँ के चेहरे पे पसीने आ गए थे.
9 इंच का काला 3 इंच मोटा आगे से टोपा कटा हुआ एक दम ताना हुआ लंड मेरी संस्कारी माँ की आँखो के सामने था..
मां शर्म से लाल हो गई, उसको उसकी आंखे खुद झुकती चली गई, एक नजर मां ने आसा पास देखा कि कोई उसे और असलम को ऐसा करते देख तो नहीं रहा.......
मेरी संस्कारी मां वहां से चले जाना चाहिए था, गलती से नजर पड़ गई तो इग्नोर कर देती नीचे आ जाती.
लेकिन ऐसा नहीं हुआ... मेरी माँ के पैर वही जम गए थे, ना जाने क्यों मेरी माँ उस दृश्य को देखे जा रही थी.
माँ को भी खुद नहीं पता था कि वो यहाँ क्यू खड़ी है, उसे पीछे हट जाना चाहिए था.... माँ वापस से अपनी नजरें ट्रक पर जमा दी.
मेरी माँ के जिस्म में कुछ तो होने लगा था, उसकी सालो से दबी हुई कामवासना एक बार फिर से जाग उठी थी, माँ के रोंगटे खड़े होने लगे थे...
एक जवान लोंडा माँ के समाने अपना 9 इंच का ताना हुआ लंड लिए एकदम सामने खड़ा था...
माँ ने शायद ही कभी ऐसा लंड देखा होगा, माँ क्या मैंने बहुत आज से पहले असलम जैसा लंड नहीं देखा था.
क्यूकी मां तो 4 इंच के लंड से ही 25 सालो चुद रही थी, 4 इंच का मुरझाया हुआ लंड और एक तरफ 9 इंच का लोहे ही रोड जेसा 21तोफे की सलामी देता हुआ मजबूत लंड.
ऐसे मजबूत लंड अच्छी अच्छी औरतों की नियत बिगाड़ देते है...
ना जाने क्यों मेरी संस्कारी माँ मेरे पापा और उस कसाई असलम के लंड की तुलना करने लगी थी.
मेरी संस्कारी माँ बहक रही थी.
मेरी संस्कारी मां चोरी-चोरी नजरों से उसका लंड निहार रही थी... मां का गला सुख चुका था उसका दिल की धड़कने तेज होने लगी थी.
माँ का मन कह रहा था तू ये क्या कर रही है क्यू देख रही है एक गैर मर्द को देख ऐसा क्यों कर रही है तू.... ये गलत है.
लेकिन माँ के अंदर की औरत उसे ये दृश्य देखने को मजबूर कर रही थी, मेरी माँ की चुत मे ऐसे मुसलदार लंड देख कर खुजली सी होने लगी थी.
दिल तेज तेज धड़कने लगा था, चेहरे ले लाली आ है थी, स्तन उभर कर आगे को तन गए थे.
आखिर माँ के मन मे उसके अंदर की प्यासी, कामवासना से भरी औरत की जीत हुई और माँ वहाँ से हिल ना सकी.
तभी असलम ने लंड पर लिपटी मां की पिंक कलर की नेट वाली कच्छी को अलग किया और उसको अपनी नाक की पास
लेकर सूंघने लगा सससन्नणीयफ़्फ़्फ़.......
माँ ये सब देख पागल सी हो गई, माँ शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी, कोई गैर मर्द कैसे उसकी उतरी हुई कच्छी को सूंघ सकता है.
असलम जनता था मेरी माँ उसे ऐसा करते देख रही है, जा नहीं रही है वहाँ से ईसी बात से असलम की हिम्मत बढ़ गई.... असलम को पता चल गया कि अब ये मुर्गी जल्दी ही कट सकती है...
वो एक हाथ से अपना लंड हिला रहा था और दूसरे हाथ से माँ की पैंटी को नांक मे लगा माँ की चूत की खुसबू ले रहा था, गाया कर उत्तेजित होरहा था.....
ये सब देख शायद माँ की चुत से काम रस की बून्द भी टपक गई थी.
चुत मे पानी भरा पड़ा था लेकिन गला सुख गया था.
असलम ने माँ के सामने ही उसकी कच्छी को अपने लंड पर रख घिस रहा था.
तभी मै घर के बाहर आ गया था और असलम को ये बात पता चली तो असलम माँ की कच्छी को जेब मै रख ट्रक से उतर वहाँ से निकल गया था.
सारी घटना अब मेरी नजरों के सामने साफ थी.
असलम ने अपनी हरकतों और लंड से पहले ही दिन माँ के जिस्म मे खलबली मचा दी थी.
असलम के बताये अनुसार मैंने दृश्य को हूबहू कल्पना करई थी.
मै हैरान था माँ ने इस घटना का जिक्र घर मे किसी से नहीं किया, पापा तक को कुछ नहीं बताया.
मैंने गुस्से मे दारू की बोत्तल उठा नीट दो तीन घुट पी लिए.
एयर दूसरी तरफ से असलम फारुख की बात सुनने लगा.
मतलब मेरी माँ शुरू से जानती थी की उसकी गुलाबी कच्छी कौन ले कर गया है.
मैंने अब खुद से गौर किया तो समझ आने लगा, उस घटना के बाद से माँ के शरीर में अलग सी उत्तेजना ने अपनी जगह बना ली थी.
पुरे दिन माँ के सामने वही दृश्य चलता रहा, लंड हिलाता असलम, उसकी पैंटी को किसी कुत्ते की तरह सूंघता जवान लड़का,
असलम माँ की कच्छी को लंड लार रगड़ता हुआ माँ को देखे जा रहा था,
मतलब साफ़ था मेरी संस्कारी माँ के ऊपर अब वासना चढ़ चुकी थी, माँ ने कभी ऐसा महसूस नहीं किया था, जैसा आज महसूस हुआ, दिनभर माँ मी चुत रिसती रही.
"फिर असलम भाई आपने उस कच्छी का क्या किया?" फारुख ने दूसरा पेग बना दिया.
उस कच्छी का क्या हुआ ये मै जानता था, रात मे माँ की कच्छी मे लंड लपेट के मुठ मरी और मेरी माँ की गुलाबी कच्छी को अपने वीर्य से भर दिया था, और कच्छी को हमारी छत पर फेंक भाग गया था.
ठीक उसी समय मेरी माँ और पापा खाना खा कर छत पर टहल रहे थे.
मेरी माँ ने असलम को छत पर कच्छी फेंकते हुए साफ देखा था.
उस समय पापा फोन पर छत की दूसरी तरफ बिजी थे, माँ की नजर अपनी गुलाबी कच्छी पर पड़ी तो झट से माँ ने बाहर झाँक कर देखा, असलम अपनी झोपडी की तरफ भागा जा रहा था.
माँ ने पास जा कर देखा ये उसकी ही कच्छी थी, जिसे वो सामने वाला लड़का उठा कर के गया था.
कुछ देर सोचने के बाद मां उसको उठाने के लिए झुकी, और जैसे ही हाथ में उसे गंदी पैंटी को उठाया वैसे ही तुरंत छोड़ दिया.
क्यूकी कच्छी पूरी तरह गरम गरम ताजे वीर्य से लबालब सनी हुई थी,
माँ के हाथो मे वो चिपचिपा गंदा सफ़ेद मलाई जैसा गाड़ा वीर्य चिपक गया था, माँ को ये समझते हुए देर ना लगी की ये चिपचिपा सा क्या है .
माँ की उंगली एक गैर मर्द के 22 साल के असलम के वीर्य से सन चुकी थी, माँ का चेहरा गुस्से से तमतमा गया था फिर भी ना जाने क्यों खुद बा खुद मां का वीर्य से सना हुआ हाथ, गैर मर्द के वीर्य से सना हुआ हाथ उनकी नाक के पास गया और मेरी संस्कारी माँ ने एक जोरदार सांस खींच ली.. सससनणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....... उस गंदे वीर्य को सुंघा और तुरंत ही एकदम से अपनी उंगली दूर करली, एक कैसेले स्वाद से म का जिस्म भर गया,
ये खुसबू ही ऐसी होती है ना चाहते हुए भी सूंघने की इच्छा करती है.
माँ ने भी यही किया, कुछ ही सेकंड में माँ ने फिर से उन्हि उंगकियो के दोबारा से सुंघा, इस बार माँ के जिस्म मे झुरझुरी सी हो गई, रोंगटे खड़े हो गए, उत्तेजित कर देने वाली गंध तहज उस वीर्य मे.
उधर मेरे पापा इन सब से बेखबर अपने फ़ोन मे बिजी थे, उन्हें अंदाजा भी नहीं था की उनकी संस्कारी पत्नी, किसी गैर जवान मर्द का वीर्य सूंघ रही है.
माँ वापस से उस पैंटी को उठाने लगी की...." चलो नीचे चलते है " पापा को आवाज़ ने मम्मी को झकझोर के रख दिया, मां एकदुम से होश मे आ गई और तुरंत ही पापा के साथ नीचे आ गई.
ये वही वक़्त था जब मै असलम को झोपडी मे मेरी माँ की कच्छी मे मुठ मारते देख घर पर आया था और भाग कर छत पर गया जहाँ मैंने माँ की कच्छी को पड़े हुए देखा था.
उधर मेरी माँ बिस्तर पर बदल रही थी, माँ की आँखों में नींद नहीं था, माँ को पता नहीं क्या होगया था, मम्मी ने वो हाथ भी नहीं धोया था जिस लार असलम का वीर्य लगा हुआ था, हालांकि माँ के हाथो मे लगा वीर्य अब हलका हलका सुख चुका था.
कुछ देर बाद माँ ने पापा की और देखा पापा गहरी नींद में सो चुके थे, माँ चुपचाप बिस्तर से उठी और थोड़ी देर कुछ सोचने लगी,
माँ के योवन मे आग लग गई थी, एक उत्तेजना सी महसूस हो रही थी, जांघो के बीच चीटिया सी चलने लगी थी.
मेरी माँ कुछ देर बाद सोचने के बाद बिस्तर से उठी और कमरे से दबे पाव बाहर को आ गई
मेरी संस्कारी माँ दबे पाव छत की और जाने लगी, माँ उस जगह जा कर रुकी जहाँ उसकी कच्छी गिरी थी, माँ ने कुछ देर उस पैंटी को दूर से निहारा, और फिर अपने हाथ बढ़ाकर पैंटी को उठा लिया...
अभी भी मेरी माँ की कच्छी जगह जगह से गीली पड़ी थी, असलम का वीर्य अभी सूखा नहीं था..
मम्मी ने पैंटी को हाथ मे लेकर हर जगह अपनी कच्छी पर अपनी अंगुली घुमाई चारो तरफ से पेंटी को देखा और फिर माँ ने उस गंदी कच्छी को जिस से असलम के लंड की खुसबू आ रही थी, उसे अपनी नाक के पास ले गई और सससन्नणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... सससन्नणीयफ़्फ़्फ़..... किसी पागल की तरह अपनी कच्छी को सूंघने लगी, माँ की आंखो मे नशा उतर आया था, आंखे लाल हो गई थी,
उत्तेजना की अधिकता से मेरी माँ ने अपनी आंखे बंद कर ली....
अच्छे से सूंघने के बाद माँ ने अपनी मैक्सी ऊपर की और उस वीर्य से सनी गंदी पैंटी को अपनी गांड पर चढ़ा लिय, असलम का सारा गिला वीर्य माँ की गांड और चूत के ऊपर चिपक गया
मेरी संस्कारी माँ ने आज पहली बार किसी गैर मर्द का वीर्य अपनी पवित्र चुत से लगा कर उसे अशुद्ध कर दिया था.
वीर्य की चिपचिपहाट मां को बहुत ज्यादा उतेजित कर रही थी...उस गंदी कच्छी को पहन कर मम्मी नीचे चली गई और पापा के बगल मे लेती बेचैन होने लगी, मेरी माँ की चुत मे असहनीय खुजली हो रही थी, जिसे कम करने के लिए माँ अपनी जांघो को आपस मे भींच कर रगड़ ले रही थी. कभी अपनी हथेली को जांघो के बीच रख देती, कभी आपने स्तनों को सहला लेती.
पहले ही दिन मेरी माँ वासना से तड़प रही थी.
अगलई सुबह जब मै छत पर गया तो मैंने देखा कि वहां माँ की गुलाबी कच्छी नहीं थी, लेकिन अब असलम की बातो से समझ आ गया था की वो कच्छी माँ ने पहन रखी थी.
हालांकि जब मम्मी सुबह नहाने गई, खुद को आईने मे देख हक़ीक़त की दुनिया मे लौट आई.. मेरी माँ सिर्फ गुलाबी कच्ची मे नंगी खड़ी थी, अपने जिस्म मे फुटती चिंगारी देख खुद शर्मा रही थी.
माँ ने फववारा चला दिया, उनका बदन पानी से शांत होने लगा, साथ ही गंदे विचार भी धुलने लगे, उन्हें अफ़सोस हो रहा था अपनी हरकत पर कैसे वो ये सब कर गई, कैसे उसने खुद से कण्ट्रोल खो दिया,
वो शादीशुदा घेरुल एक बच्चे की माँ है, माँ निश्चय कर चुकी थी वो खुद को रोकेगी, ये पाप है, ऐसा करना गलत है.
नहा धो कर माँ अपने घर के कामो माल लग गई, झाड़ू लगाती माँ घर के बाहर तक आ गई,
मेरी माँ आंगन मे झुकी हुई झाड़ू लगा रही थी, माँ के झुकने से उनकी मोटी तरबूज जैसी गांड बाहर को निकल अपनी शोभा बिखेर रही थी.
उसी वक़्त असलम अपनी झोपड़ी से बाहर आ गया और मेरी माँ को झाड़ू लगाते घूरने लगा, जैसे खा जायेगा.
असलम कभी माँ के ब्लाउज से बाहर आते मोटे सुडोल स्तनो को देल्हता तो कभी गद्दाराई गांड को.
असलम का लंड लुंगी मे तन के खड़ा हो गया था, जिसे वो बेरहमी से मसल रहा था.
तभी मेरी माँ की नजर सामने असलम कसाई पर गई असलम के हाथ हिल रहे थे जिसका पीछा करती माँ असलम के उभार तक जा पहुंची.
असलम लुंगी के ऊपर से अपना 9 इंच का तना हुआ लंड बड़ी बेशर्मी से मसल रहा था, उसे खुजा रहा था.
मम्मी ने जैसे ही देखा की वो उसे ही देख रहा है, गंदी हरकत कर रहा है, मां तुरंत सीधी हो गई, और पलट कर घर के अंदर जाने लगी, माँ अपने निश्चय पर अडिग थी.
पप... परन्तु ये क्या... माँ कुछ कदम चली ही थी ना जाने क्यों रुक गई, मां ने एक बार पीछे मुड़कर देखा, असलम माँ को ही देख रहा था, दोनों की नजरें आपस मे मिली, माँ ने शर्म हया से नजरें झुका ली, वही असलम के चेहरे पर एक गन्दी मुस्कान थी.
मम्मी को देख उसने अपने उभार से हाथ हटा लिया, माँ ने इस बार असलम के लंड का विशाल उभार देखा, जिसकी वजह से लुंगी आगे से उठ गई थी.
ये नजारा देखना रहा की मम्मी के तन बदन मे फिर से आग लग गई, बदन गरम होने लगा, योनि मे अजीब सी खुजली होने लगी,
माँ का सारा निश्चय सारा प्रण धरा रह गया, असलम का बड़ा नंगा मोटा लंड माँ की नजरों के सामने नाचने लगा रहा.
माँ का जिस्म उसे एक बार फिर धोका दे रहा था.
कुछ देर मम्मी एसे ही खड़ी रही., तिरछी निगाहेँ असलम पर ही रही, की तभी मम्मी ने वो हरकत की जिसका अंदाजा मै नहीं लगा सकता था, झु
मेरी माँ वापस से आंगन मे झुक कर झाड़ू लगाने लगी, लेकिन इस बार इस कद्र झुकी थी की उसके मोटे स्तन ज्यादा से ज्यादा ब्लाउज के बाहर निकल आये,
मम्मी की गांड और भी ज्यादा बाहर निकल के आपस मे रगड़ खा रही थी, माँ की नंगी भरी हुई गोरी कमर साफ दिख रही थी असलम समझ चुका था की मुर्गी अब उसके काबू मे आनेह ही वाली है.
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि 2 दिन में ही असलम ने मेरीम माँ को इतना उत्तेजित कर दिया था की माँ खुद से अपने कामुक अंगों की प्रदर्शनी लगा के बैठी थी.
असलम भी वो नजारा देख अपने लंड को मसल रहा था,
मां को पता था असलम उसकी गांड को देख कर उत्साहित हो रहा है. मेरी माँ असलम को और ज्यादा उक्साना चाहती थी, इसलिए और ज्यादा झुक रही थी और ज्यादा मटक रही थी
असलम से रहा नहीं गया, आगे से लुंगी हटा कर वो अपने नंगे लंड को मसलने लगा, गजब का हिम्मती लड़का था असलम,
मेरी माँ ने भी जबरजस्त बेशरमी का परिचय देते हुए अपने ब्लाउज से पल्लू हटा लिया, प्लस जमीन चाटने लगा, माँ के खूबसूरत सुडोल भरी स्तन लगभग ब्लाउज से बाहर थे, ब्लाउज के कोने से निप्पल के घेरे की झलक साफ दिख रही थी,
मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि मेरी संस्कारी शादीशुदा माँ जिसकी उमर 42 साल है, जिसका एक जवान लड़का है, एक सरकारी नौकरी वाला पति है,
वो माँ आज जानबूझ कर झाड़ू लगाने के बहाने एक 2कोडी के कसाई, गवार, बदसूरत, काले लड़के को अपने स्तन और चौड़ी गांड दिखा रही है.
थोड़ी देर पहले मेरी माँ ग्लानि से भरी हुई थी, अपनी हरकतो पर पछता रही थी, लेकिन सारी कस्मे तौड़ कर फिर से कामवासना की डगर पर चल पड़ी थी चढ़ गई थी,
ये खेल ज्यादा देर तक नहीं चल पाया, रास्ते पर चहल पहल होने लगी थी, मेरी माँ तुरंत भागती हुई बाथरूम मे घुस गई,
अंदर घुसते ही माँ ने हैंगर पर टंगी अपनी गुलाबी कच्छी को उठा अपनी नाम के पास ले जा कर सूंघ लिया, हालांकि उस पर लगा असलम का वीर्य सुख चूका था,
ना जाने किस उत्तेजना मे माँ ने अपनी गीली जीभ बाहर निकल सुख चुके असलम के वीर्य को चाट लिया, ईईस्स्स...... उउउफ्फ्फ..... माँ के मुँह से एक कामुक सिस्कारी फुट पड़ी, चुत से पानी की बुँदे टपक कर जांघो को भिगोने लगी.
माँ ने वो कच्छी सारी उठा के वापस पहन ली, उस पुरे दिन, पूरी रात माँ असलम के वीर्य को अपनी चुत के पानी से सिंचती रही,
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अगले दिन मम्मी ने मुझे मंदिर जाने के लिए उठाया और मेरे साथ चले लेकिन मैंने मना कर दिया था,
आज मम्मी रोज से ज्यादा सजी धजी थी और बहुत ज्यादा मेकअप किया हुआ था, माँ जब घर से निकली तो सर पर पल्लू था, जब मेरी माँ मटक मटक कर असलम कसाई की दुकान के
पास से गुजरी तो दोनों की नजरें एक दूसरे से मिल गई थी.
मेरी माँ आगे को जाने लगी, पीछे असलम माँ की गांड को थिरकता देखे जा रहा था और मैं भी उसके पीछे लग गया,
उसके बाद माँ पूजा करके मंदिर से वापस आ गई और घर जाने लगी, माँ को पता था असलम पीछे पीछे आ रहा है, इसके बावजूद माँ अपनी गांड की लचक दिखाती, पेशाब करने सडक से नीचे झाड़ियों की तरफ चल दी थी,
मुझे उस समय विश्वास नहीं था ऐसा भी हो सकता है, लेकिन अब सारी तस्वीर मेरे सामने साफ थी,
झाड़ियों के पास जाकर मेरी माँ ने अपनी साड़ी को कमर तक उठा लिया और अपनी कच्छी को घुटनो तक सरका दिया, मेरी माँ जानबूझ कर असलम को अपनी सुडोल गांड के दर्शन करा रही थी, उसे रिझा रही थी, उत्तेजित कर रही थी.
और माँ बिल्कुल सफल भी हुई थी, असलम माँ की गोरी मादक गांड देख बेकाबू अपना लंड मसल रहा था.
वो सब घटना वापस से मेरे जहन मे दौड़ गई, मैंने उस समय नोटिस नहीं किया था लेकिन अब जोर देने पर ध्यान आया माँ ने के घुटनो पर वही गुलाबी कच्छी फसी हुई थी, जिस पर असलम का वीर्य लगा हुआ था, मतलब माँ ने उस दिन से उस कच्छी को धोया नहीं था, ऐसे ही पहल रखा था.
अब तक तो ना जाने कितनी बार माँ की चुत का पानी और असलम का वीर्य आपस मे मिल चुके थे.
असलम भी उस गुलाबी कच्छी को देख कर चौंक गया, जैसे उसकी लाटरी लग गई हो.
ये असलम के लिए साफ सिग्नल था की मेरी माँ भी उसके लंड की दीवानी है, उसके लंड से चुदना चाहती है,
वरना कभी कोई संस्कारी घरेलु औरत ऐसी गंदी कच्छी पहनती ही क्यों?
खंडर मे
"तो असलम भाई वही पकड़ लेना था ना उस रंडी आंटी को हिच..." फारुख असलम की कहानी से प्रभावित था, उसका लंड भी खड़ा था.
दिवार के दूसरी तरफ मै अपनी कल्पनाओ मे खोया था, दारू के घुट पी रहा था, मैंने अपने जांघो के बीच टटोल के देखा ना जाने क्यों मेरे लंड मे तनाव आ गया था,
जबकि वो लोग मेरी माँ की बात कर रहे थे,
"सब्र रख यार बताता हूँ," असलम ने शराब का एक घुट और पी लिया और आगे कहने लगा.
मै भी बेताब था सुनने को...
माँ ने असलम को खुला न्योता दे दिया था, आस पास कोई नहीं था, शायद माँ वही चुद जाना चाहती थी, लेकिन असलम को जल्दी नहीं करनी थी,.
उसका मानना था जल्दी का काम शैतान का काम होता है,
मेरी माँ को वो आराम से प्यार से जी भर के चोदना चाहता था, वो लोहे को और गर्म कर देना का ख्वाहिशमंद था.
सामने माँ अपनी पूरी गांड खोले, मूतने को बैठी थी, असलम का मन तो मेरी मां की नंगी गांड मे लंड घुसेड़ देने का था, लेकिन वो खुद से कोई पहल नहीं करना चाहता था, क्यूकी उसे पता था मेरी माँ बहुत सालो से प्यासी है और असलम के लंड को देख करहवस मे पागल हो गई है, जब असलम के लंड को देख खुद से नंगी हो सकती है तो एक दिन खुद से मेरे लंड पर आ के बैठेगी भी.
मेरी माँ गांड खोले शायद कुछ सोच रही थी, शायद वो असलम का ही इंतज़ार कर रही थी लेकिन ऐसा ना होते हुए पा कर माँ ने अपनी गांड को थोड़ा सा और पीछे को कर दिया, असलम और मुझे माँ की गांड मे उभरी हुई खाई मे गांड का छेद दिखने लगा, जिसे माँ ने एक बार कस मे ढीला छोड़ दिया,
वापस फिर यही किया, दो तीन बार माँ की गांड का छेद खुल के बंद हुआ,
असलम तो ये कातिलाना दृश्य देख पागल ही ही गया और तुरंत अपने लंड को निकाल हिलाने लगा,
गांड की दरार पूरी तरह से खुल गई थी, गांड के बारीक़ छेद के नीचे एक लम्बी सी लकीर थी बिल्कुल बंद, उफ्फ्फ्फ़.... मेरी माँ की चुत किसी कुंवारी लड़की की तरह दिख रही थी.
माँ जानती थी असलम ये नजारा जरूर देख रहा होगा, तभी माँ की चुत की दरार हलकी सी खुली और बल्बला कर तेज़ पानी की धार फुट पड़ी, जैसे कोई झरना किसी पहाड़ी को चिरता हुआ बहने लगा हो.
ससससउउउउउउउस्स्स.... सुररररर..... साईंईई.... सससईई.... की एज़ आवाज़ के सारः माँ की चुत से पेशाब छूट पड़ा
असलम के लिए ये दृश्य सहना मुश्किल था, यदि वो खुद को रोक लेता तो शर्तिया पागल हो जाता,.
असलम धीमे कदमो से लंड हिलता माँ के पीछे पहुंच गया,
मेरी माँ मूतने मे मशगूल थी, या फिर जानबूझ का असलम को इग्नोर कर रही थी,
असलम से रहा नहीं गया.... पच... पच... फाचक... करती वीर्य की मोटी धार उसके लंड से फुर पड़ी और सीधा माँ की नंगी गांड पर जा लगी,
वीर्य की गर्माहट से माँ के मुँह से एक धीमी सिस्कारी फुट पड़ी... आह्हबहब्ब... जिसे सिर्फ असलम ही सुन पाया.
मेरी माँ को जैसे कोई फर्क ही ना पड़ा हो उसने एक बार भी पीछे नहीं देखा, वैसी ही बैठी मूतती रही.
असलम का वीर्य माँ की गांड की दरार मे बहता हुआ नीचे आने लगा, गांड के छेद को छेड़ता चुत की लकीर पे रिसने लगा.
अब तक माँ के पेशाब की एज़ धार बून्द का रूप ले चुकी थी, टप... टप... टप... करती तीन बून्द और जमीन पर गिरी.
माँ जल्दी से उठ घर की ओर चल दी, असलम भी साथ ही निकाल गया,.
मै पीछे बैठा अभी जो हुआ उसके सदमे मे मरा जा रह था.
मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कोई औरत कामवासना मे इस तरह गिर सकती है,
असलम के बड़े मोटे लंड ने मेरी माँ को दीवाना कर दिया था,
हालांकि मैंने सुना था औरत की उम्र बढ़ने के साथ सारः उसकी चुदने की इच्छा भी बढ़ती जाती है, अब ये इच्छा मेरे पापा तो पूरी नहीं कर सकते थे.
खेर मेरी माँ गांड दिखाने के बाद मटक मटक कर असलम के सामने से घर चली गई, मेरी माँ असलम को आज ग्रीन सिग्नल देकर गई थी,
मेरी माँ की हरकतों ने असलम की हिम्मत को बहुत ज्यादा बढ़ा दिया था.
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घर मे आते ही माँ सीधा बाथरूम मे घुस गई, गई और शीशे मे खुद को निहारने लगी, सुन्दर कामुक चेहरा, लाल होंठ आंखे कामवासना से लाल थी.
मेरी माँ थोड़ी तिरछा मुड़ी, माँ के कंधे बालो और ब्लाउज पर सफ़ेद गाड़ा असला का वीर्य चिपका हुआ था.
ना जाने क्यों माँ के चेहरे मे मुस्कान आ गई, जैसे खुद पर गर्व कर रही हो, गर्व तो होगा ही मा इस उम्र मे भी एक जवान लड़के ले लंड का पानी निकाल दे रही थी.
मेरी माँ की आँखों मे बिल्कुल भी पछतावा, ग्लानि नहीं दिख रही थी
मेरी माँ तो किसी नवयुती की तरह मुस्कुरा रही थी, खुद के जिस्म को देख आहे भर रही थी, ब्लाउज से बाहर झाकते स्तन उसके जवान होने का सबूत थे.
इसी कामोंवेश मे माँ ने अपनी साड़ी को खोल दिया
माँ का होरा जिस्म ब्लाउज पेटीकोट मे चमक रहा था.
मेरी माँ इस से भी संतुष्ट नहीं थी, आज उसे अपने जिस्म को पूरी तरह से देख लेना था.
जल्द ही माँ के हाथो ने ब्लाउज पेटीकोट को भी खोल दिया,.
मेरी माँ के सामने वो दृश्य नाचने लगा जब असलम माँ की नंगी गांड को देख लंड हिला रहा था.
मम्मी ने जब पेटीकोट उतारा तो देखा कि उसका आधा से ज्यादा पेटीकोट गिला होचुका है, गांड की दरार और आस पास चिपचिपा वीर्य फैला हुआ था.
माँ ने अपनी गांड को हलके से थपकी देते हुए अपनी ब्रा को खोल दिया, भड़ाककक्क..... करते हुए दो सुडोल तने हुए स्तन बाहर हवा मे सांस लेने लगे.
शायद मेरे पापा ने कभी माँ के स्तनों का अच्छा इस्तेमाल नहीं किया था, वो अभी भी घमड़ मे तने हुए थे, नाम मात्र का भी झुकाव नहीं था मेरी माँ के स्तनों मे.
दोनों स्तन की दरार मे लटकाता महंगा सोने का मंगलसूत्र माँ की खूबसूरती मे चार चाँद लगा रह था.
मंगलसूत्र की चैन गले से होती स्तन की घाटियों मे कहीं गायब हो गई थी, सिर्फ स्तन के नीचे उसका पेंडल लटकता दिखता था.
नीचे बिल्कुल फिट भरा हुआ सपाट पेट अपनी खूबसूरती खुद बयां कर रहा था.
माँ से अपने ही जिस्म का आकर्षन बर्दाश्त नहीं हो रहा था, माँ ने अपनी गुलाबी कच्छी भी तुरंत ही निकाल फ़ेंकी, गुलाबी कच्छी पर ताज़ा वीर्य लगा हुआ था.
माँ ने अपने जिस्म को थोड़ा तिरछा घुमा दिया और अपनी कोरी गांड को शीशे मे निहारने लगी, गांड पर एक भी दाग़ नहीं था, बस चिपचिपा सा पानी चमक रहा था जो की असलम का गन्दा वीर्य था,.
माँ ने ना जाने क्यों अपनी एक ऊँगली गांड पर लगे वीर्य पर घुमा उसे अपनी ऊँगली पर समेट मियां, और वो उंगली माँ ने अपने होंठो मे जा ठुसी .
आआहहहह..... उफ्फ्फ.......उत्तेजन के अधिकता से माँ की आंखे बंद होती चली गई, एक अजीब सा स्वाद माँ के मुँह से पुरे जिस्म मे फैलने लगा, जैसे कोई जहर हो, जहर ही तो था कामुकता का जहर,
माँ जीभ निकाल निकाल के असलम के वीर्य को अपनी ऊँगली से चाट रही थी, एक चासनी जैसी लार माँ के होंठ ओर ऊँगली के बीच बन गई थी.
मेरी संस्कारी माँ को क्या हो गया था, ऐसी तो नहीं थी मेरी माँ.
माँ ने आंखे खोली तो, आंखे लाल थी, जिस्म जल रहा था, बेहद गर्म हो गया रहा जैसे बुखार चढ़ा हो,
ये गर्मी जान लेने पे उतारू हो चुकी थी.
माँ की नजर अपनी जांघो के बीच गई, जहाँ पतली सी लकीर मे सफ़ेद सा वीर्य लगा हुआ था.
माँ का हाथ अपनी जांघो के बीच जा लगा, आअह्ह्हह्ह्ह्ह...... चुत इतनी गर्म थी की माँ का हाथ लगते ही वो बेचैनी से तड़प उठी, इस तड़प मे एक राहत थी, जो उसके गर्म जिस्म को ठंडक दे रही थी.
मेरी संस्कारी माँ ने आज तक ऐसा कुछ नहीं किया था, ना जाने किस सम्मोहन का शिकार हो गई थी मेरी माँ.
मेरी माँ को दो उंगलियां खुद की चुत को मसलने लगी, जैसे की वो असलम के वीर्य को अपनई चुत रस से मिला रही हो.
माँ के हलक से सिस्कारी फूटने लगी, आह्ह्ह अह्ह्ह्ह अह्ह्ह्ह माँ की आँखे बंद हो गई, माँ के जिस्म पर हवस चढ़ चुकी थी, आँखो के सामने बस असलम का गधे जैसे लम्बा काला लंड हिलाता हुआ नजर आ रहा था.
अह्ह्ह्ह... अह्ह्ह्ह....अह्ह्ह्ह.... उफ्फ्फ... पता कब माँ की दो उंगलियां उसकी चूत के अंदर चली गई, चुत इतनी गीली थी की की मुहने पे रखते ही सरकारी हुई अंदर समा गई
माँ की ऊँगली पर लगा असलम का वीर्य माँ की चुत के अंदर जा कर घुलने लगा, गैर मर्द के वीर्य के उस अहसास से माँ का जिस्म कंपने लगा,
माँ का बदन जोश से भर गया, पच पच फाचक..... फच.... करती माँ अपनी उंगलियों से अपनी चुत को रोंदने लगी, चूडियो की खांखनाहट मधुर सांगित उत्तपन कर रही थी, ये वासना का संगीत था जो की माँ की चुत के पानी और कालाइयो मे पहनी चूडियो के मेल से पैदा हो रहा था.
मेरी संस्कारी माँ आखिर कब तक झेलती इस गर्मी को, उस हवस को फच.... फच... फाचक.... करती माँ की चुत ने ढेर सारा सफ़ेद पानी उगल दिया, माँ बाथरूम के फर्श पर धारासाई हो गई, माँ की सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी, आँखों मे सुकून था,.
जिस्म की गर्मी चुत के रास्ते निकाल गई थी.
हमफ.... हमफ़्फ़्फ़.... हमफ़्फ़्फ़.....
माँ जब बाथरूम से निकली तो एक अलग ही चमक थी, माँ बिल्कुल शांत थी, चेहरा पहले से कहीं ज्यादा दमक रहा था.
शायद मेरी माँ फिर से जवान हो रही थी.
आज असलम की सुनाई कहानी से मैंने जो भी कल्पना की उस से मेरे रोंगटे खड़े हो गए...
मै सांस रोके दिवार के इस तरफ बैठा रहा, ना जाने क्यों मुझे मजा आ रहा था अपनी माँ की बेशर्मी सुन कर, अपनी संस्कारी माँ को हवस के सागर मे गिरता देख मेरा लंड खड़ा हो रहा था.
मुझे अभी और भी जानना था, आखिर माँ असलम के बिस्तर तक पहुंची कैसे.....
तो क्या हुआ था दोस्तों?
बबलू की संस्कारी माँ कामिनी अपनी प्यास बुझाने के लिए खुद असलम के पास गई थी? सभी जवाब मिलेंगे.
बने रहिये....
Contd......
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