पिछले भाग मे अपने पड़ा, मै भारी तनाव मे खंडर पर जा कर दारू पी रहा था, मुझे अपनी माँ की गिरी हरकतों ने परेशान कर रखा था.
मा मे कई सवाल थे, जिनका जवाब मेरे पास नहीं था, लेकिन किस्मत से उसी समय खंडर पे असलम अपने दोस्त फारुख के साथ आ पंहुचा.
वो दोनों खंडर की दिवार के दूसरी तरफ जा बैठे और मै पहले ही इस तरफ मौजूद था,
असलम ने मेरी माँ के बारे मे जो जो बताया वो मेरे लिए किसी अचम्भे से कम नहीं था, असलम जैसे जैसे बताता गया मेरी कल्पनाओ मे वो दृश्य सजीव होते चले गए.
मै हैरान था कैसे मेरी संस्कारी माँ इस कद्र हवस मे डूब सकती है, वो खुद से एल गंदे, काले गैर लड़के को अपना जिस्म दिखा के आकर्षित कर रही थी.
ना जाने क्यों असलम की बातो से मेरा लंड खड़ा होने लगा था, मैंने कभी माँ को इस तरह नहीं देखा था,
लेकिन मेरी संस्कारी माँ थी तो एक औरत ही ना जिसे कभी शारीरिक सुख नहीं मिल पाया.
हाँ मेरी माँ बहक गई थी.
अभी भी मेरे मन मे बहुत से सवाल थे आखिर माँ और असलम ने पहली बार सम्भोग कब किया था?
क्या छूट गया था मेरी नजरों से.
पिछला भाग यहाँ पढ़े. मेरी संस्कारी माँ -8
अब आगे...
मै दिवार के पीछे बैठा असलम की बाते सुन रहा था जो की वो फारुख को सुना रहा रहा, इस बीच मेरे जिस्म मे भी गर्मी का संचार हो गया था, दारू की बोत्तल लगभग खाली हो चुकी थी मुझे यकीन नहीं हो रहा था क्यूंकि मुझे नशा नाममात्र का भी नहीं था और बोत्तल खाली हो गई थी.
मैंने आगे सुनने के लिए अपने कान दिवार पर लगा दिए...
की तभी.... ट्रिंग.... ट्रिंग..... ट्रिंग....
असलम के मोबाइल की घंटी बज उठी.
"Hello.... हाँ हैल्लो मेरी जान " असलम ने फ़ोन उठा कर कहा.
मै सोच मे पड़ गया किसका फ़ोन हो सकता है.
दूसरी तरफ से किसी ने कुछ कहा, जिसे सुन कर असलम ख़ुशी से उछल पड़ा.
"अच्छा... अरे वाह... क्या बात है आंटी आज रात भी अंकल नहीं आएंगे वाह मजा आ गया, आज तो पूरी रात पेलुँगा "
सामने से कुछ आवाज़ आई और फ़ोन कट हो गया.
दूसरी तरफ मे सोच मे पड़ गया क्या इस कमीने ने कोई और औरत को भी पटा रखा है.
"क्या बात है असलम भाई किसे पेलने जा रहे हो आज रात?" फारुख ने पूछा.
"अरे उसी सामने वाली कामिनी आंटी का फ़ोन था, बोल रही थी रात को मेरे घर ही आ जाना, बबलू रात मे सो जायेगा तब, अंकल नहीं है घर पर "
इतना सुनना था की मेरे पैरो तले जमीन खिसक गई, दिल धाड धाड़ कर बजने लगा,
मेरी माँ ने खुद फोन कर के असलम को न्योता दिया था, वो भी मेरे ही घर पर.
मेरी संस्कारी माँ अब खुल कर आ चुकी थी, उसे बिल्कुल भी डर नहीं था ना मेरा ना पापा का.
हे भगवान मेरी माँ को ये क्या हो गया है, वो आज रात पापा के बिस्तर पर किसी गैर मर्द से चुदना चाहती थी.
उफ्फ्फ्फ़.... मेरा जिस्म पसीने से नहा गया, क्या करू कुछ समझ नहीं आ रहा था.
"पर भाई आंटी का लड़का क्या नाम है उसका हाँ बबलू, कहीं उसने देख लिया तो " फारुख ने चिंता जाहिर की.
"साला चोदू है, उसमे कहा हिम्मत है, होती तो खुद ना चोद लेता अपनी माँ को ऐसे माल को बाहर चुदना पड़ रहा है बाप बेटे ले लंड मे जान ही नहीं है... हाहाहाहाहा... हाहाहाहा....
दोनों लोग खुल कर हसने लगे.
साले मुझपर हस रहे थे, मेरे बाप पर हस रहे थे,
मै वही सर पकड़ा बैठा रह गया, दोनों उठ के चल दिए.
आखिर सही ही तो कहा रहे थे मै कर ही क्या सकता था, किया ही क्या था मैंने शिवाय अपनी माँ कल चुदता देखने के.
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हताश निराश मै जब तक घर पंहुचा 6 बज गए थे.
मै जैसे ही अंदर दाखिल हुआ, मैंने महसूस किया आज घर कुछ ज्यादा ही सजा हुआ है, खुसबू आ रही है.
"मा... माँ... कहा हो " मैंने माँ को आवाज़ दी माँ कहीं दिख नहीं रही थी.
"कहा था दिन भर से कुछ खायेगा " माँ किचन से बाहर आई.
मै माँ को सिर्फ देखता ही रह गया, मेरी संस्कारी माँ आज खूब सज धज के तैयार थी, लाल साड़ी, मे लिपटी माँ की सुडोल काया, स्लिवेलेस लाल ब्लाउज से दीखते माँ के सुडोल उभार, साफ दिख रहे रहे,
एक चौथाई हिस्सा तो वाकई ब्लाउज के बाहर ही था जिसे माँ ने ढकने की कोई कौशिश नहीं की थी.
लाल लिपस्टिक से साजे होंठ, लाल बिंदी माँ वाकई कामदेवी लग रही थी आज.
मैंने कभी अपनी माँ को इस नजर से नहीं देखा था, लेकिन आज ना जाने क्यों मेरी माँ रतिदेवी लग रही थी.
कुछ दिनों मे मेरी संस्कारी माँ जवान हो गई थी.
इतना तो शायद माँ खुद की सुहागरात पर भी नहीं सजी होंगी.
"क्या हुआ क्या देख रहा है खाना खायेगा?" माँ की मधुर आवाज़ से मैन हक़ीक़त मे आ गया.
"कककक... कुछ नहीं माँ, कॉलेज गया था वही दोस्तों के साथ खा लिया, थक गया हूँ थोड़ा आराम कर लेता हूँ" मै तुरंत ही अपने कमरे मे चला आया, आंखे चढ़ गई थी मेरी, दिमाग़ घूम रहा था, शायद दारू का असर अब हो रहा था.
अभी रात नहीं हुई थी, मैंने सोचा थोड़ा आराम कर लू रात मे माँ की रासलीला भी देखनी थी मुझे.
वैसे भी माँ कमरे मे झाकना कोई मुश्किल काम नहीं था, सीढ़ी चढ़ते ही एक रोशनदान था, जो की माँ के कमरे मे ही खुलता था, हवा और उजाले के लिए.
वो खुला ही रहता था, लकड़ी फूल के आउट हो गई थी, बस ग्रिल से सटा रहता था.
बिस्तर पर लेटे लेटे मै अब तक की घटनाओं को सोचने लगा, ना जाने कब नींद के आगोश मे समा गया.
"चोदो असलम चोदो और जोर से, आअह्ह्हम... उउफ्फ्फ..... आअह्ह्ह.... क्या लंड है असलम तेरा चोद और चोद मेरी माँ को, चुत फाड़ दे इसकी.
"उफ्फ्फ... बबलू बेटा ये क्या बोल रहा है तू, असलम मुझे चोद रहा है और तू अपना लंड हिला रहा है, कैसा बेटा है तू छी....
मेरी माँ मेरे सामने बिस्तर पर मुँह घुसाए चिल्ला रही थी, पीछे से असलम माँ की चुत मे अपना भयानक लंड घुसाए धक्के मारे जा रहा था.
"वाह... माँ क्या गांड है तेरी, कितनी चुददककाड़ है तू, मार असलम और तेज़ धक्के मार, भोसड़ा बना दे मेरी संस्कारी माँ की चुत का.
"आअह्ह्हम... नहीं बबलू बेटा मुझे बचा ले इस हैवान से "
"नहीं...... ननणणन..... नहीं... हमफत.... हंफ... हंफ...."
मै बिस्तर से उठ बैठा चारो तरफ अंधेरा था, मेरी सांसे फूली हुई थी,लंड खड़ा हुआ था.
उफ्फ्फ.... सपना था, इतना भयानक मै खुद अपनी माँ को असलम से चुदवा रहा था, मुझे मेरी माँ को चुदते देख मजा आ रहा था.
मैंने अँधेरे मे अपना मोबाइल ढूंढ के टाइम देखा 11 बज गए थे.
"ओह तेरी.... मतलब मै इतनी देर से सो रहा था, असलम अब तक आ गया होगा, या नहीं आया होगा "
मेरे जहन काँपने लगा.
मै तुरंत उठ के कमरे से बाहर आया, चारो तरफ सन्नाटा था, अंधेरा था.
मैंने माँ के कमरे की ओर देखा दरवाजे के नीचे से रौशनी आ रही थी, मतलब माँ जग रही है.
कहीं असलम तो नहीं आया ना? मेरी नींद क्यों नहीं खुली? मै सो क्यों गया?
मै खुद को कोषने लगा, मेरे हाथ से सुनहरा अवसर निकल गया लगता था,
कहीं असलम आ कर चला तो नहीं गया.
मैंने सीढिया चढ़ना शुरू किया, मुझे कन्फर्म करना ही था.
रोशनदान के पास जा कर बैठ गया, अंदर से रौशनी आ रही थी..
मैंने धीरे से खिड़की के पल्ले को उठा ग्रिल पर अटका दिया.
जैसे ही अंदर झांका दिमाग़ सन्न रह गया....
मेरी माँ मादरजात बिल्कुल नंगी असलम से लिपटी पड़ी थी,
मेरी संस्कारी माँ मेरे पिता के बिस्तर पर किसी गैर मर्द के साथ लेटी थी.
मेरी माँ असलम के काले लंड को पकड़ी हिला रही थी, और असलम माँ के स्तनों को मसल रहा था,
माँ के पेट पर नाभि के नीचे चिपचिपा सा कुछ गिरा हुआ था, जिसे माँ अपने हाथो से पोछ पोछ कर असलम के लंड पर घिस रही थी, जैसे कोई क्रीम हो.
मतलब माँ और असलम चुदाई कर चुके थे.
"सॉरी ना बेटा असलम उस दिन के लिए " माँ कुछ फुसफुसा रही थी.
"कोई सॉरी नहीं साली उस दिन तूने मुझे सबके सामने चाँटा मारा था आज मै तेरी गांड मरूंगा" असलम ने माँ की गांड पर एक चाँटा मार दिया.
मै तुरंत समझ गया माँ किस दिन के लिए माफ़ी मांग रही है, ये उस दिन की बात थी जब माँ सब्जी लेने गई थी, और असलम की बदतमीज़ी से परेशान हो कर माँ ने असलम को थप्पड़ जड़ दिया था.
आखिर ये बात मै भी जानना चाहता था, जिस संस्कारी माँ ने एक मामूली बदतमीज़ी के कारण असलम को जेल भिजवा दिया था आज वही संस्कारी माँ उसके लंड को हाथ मे पकडे हिला रही है.
मै अंदर माँ की बातो को सुनने लगा....
मेरी माँ ने दुनिया की नजर मे अपनी इज्जत बचाने के लिए उस दिन असलम की इज्जत को उछाल दिया था
उस समय माँ को यही सही लगा, सारी आग मम्मी की लगाई हुई थी और बेचारा असलम फंस गया था
असलम को पुलिस पकड़ कर ले गई, फिर 2 दिन बाद असलम वापस अपने कसाईखाने मे आया.
2 दिन तक मेरी माँ बहुत दुखी थी, चेहरे पे हर वक़्त उदासी थी, खाना भी ठीक से नहीं खाया था.
असलम 2 दिन बाद अपनी दुकान और मोहल्ले में आ गया ये बात माँ भी पता चल गयी थी असलम आ चूका है, लेकिन असलम जब से आया था थोड़ा चुप चुप सा रहने लगा था
मेरी छुट्टिया उसके आने के 2 दिन पहले ही खत्म हो गई थी,
मै कॉलेज जाने लगा था उस दिन भी मै कॉलेज के लिए निकल गया और पापा भी ऑफिस चके गए थे.
उस दिन माँ ने घर का काम ख़तम किया और एक मस्त sexy ब्लैक कलर की साड़ी पहन ली थी.
मेरी माँ का मन मचल रहा था कि मम्मी से बड़ी गलती हो चुकी थी, जिसे उसे ही सुधारना था, उसने अपने बेटे के उम्र के लड़के को जेल की हवा खिलवा दी थी,मे
शायद उसी के पश्चियाताप के लिए मेरी माँ आज बहुत ज्यादा सजी धजी थी,
मम्मी बार बार घर के बाहर आरही थी ये देखने के लिए कि असलम बाहर है या नहीं लेकिन असलम मम्मी को
दिखाई नहीं देरहा था,
तभी माँ को असलम की दुकान पर एक बोर्ड लगा हुआ दिखाई दिया, जिस पर एक फोन नंबर लिखा था और उसका नाम लिखा था.
मेरी माँ ने झटबसे अपना मोबाइल निकाल नंबर दर्ज कर लिया, कालिंग बटन दबाने वाली ही थी की एक पल को रुक गई,
कुछ देर मम्मी ने सोचा कि कॉल करू या नहीं, माँ का दिल धड़क रहा था, क्या ये सही होगा, अब गलती तो मेरी ही है, मुझे माफ़ी मांगनी चाहिए.
माँ ने कॉल कर ही दिया
रिंगगग......रिंग......रिमग...........
पहली बार मैं असलम ने फोन नहीं उठाया, माँ का दिल धड़क रहा था, माँ ने मोबाइल एक तरफ रख दिया और बाहर देखने लगी, लेकिन तुरंत ही मोबाइल उठा वापस कॉल लगा दिया.
पहली ही रिंग मे इस बार फ़ोन उठा लिया गया.
असलम:- हैल्लो कौन?
माँ असलम की आवाज सुन कर चुप रही उसका दिल जोर जोर से धड़क रहा था...
असलम.:- हैल्लो! बोलो भई, कौन बोल रहा है?
कुछ देर चुप रहने के बाद "मैं बोल रही हूं"
असलम:- मैन कौन?
"मै... ममम... मै सामने वाली आंटी, माँ की जबान लड़खड़ा गई, हलक सुख गया था.
"त. तत्तत.... तुम सामने वाले असलम ही बोल रहे ही ना?
असलम :- ओह्ह सामने वाली आंटी, अब मुझे फोन क्यों कर रही हो? मन नहीं भरा क्या मुझे पिटवा कर, अब क्या तिहाड़ जेल भेजना है मुझे?
माँ :- अरे नहीं बेटा मुझे माफ करदो उस दिन के लिए मै बहुत शर्मिंदा हूँ, मुझे नहीं पटा था इतना सब कुछ हो जायेगा.
असलम :- रहने दो, क्यों नाटक कर रही हो, उस दिन सब् के सामने मुझे बेइज़्ज़त कर पुलिस के हवाले कर दिया था आपने.
माँ :- ..सच मे बेटा वो मेरी मज़बुरी थी, मेरा यकीन करो पुलिस मैंने नहीं बुलाई थी, मै कैसे समझाऊ तुम्हे.
असलम:- मुझे समझने की कोई जरुरत नहीं है, मै सब जानता हूँ तुम जैसी बड़े घर की शहरी औरतों को.
माँ :-बेटा सच मे मेरी मज़बुरी थी अगर मै ऐसा ना करती तो मेरी इज्जत खराब हो जाती
असलम:- ऐसी क्या मज़बुरी थी जो मुझे चांटा मार दिया मेरी मोहले मे इज्जत ख़राब कर दी, मजे तो तुम भी ले रही थी, अच्छा तो तुम्हें भी लग रहा था ना सब कुछ जो भी मै कर रहा था, तुमने मेरा लंड भी पकड़ा था बार बार, अपनी गांड मे मेरे लंड को घिस रही थी, फिर ऐसा क्या हो गया था?
माँ :-. बेटा प्लीज ऐसी बात मत करो मै माँ जैसी हूँ तुम्हारी और बेटा प्लीज मेरी मज़बूरी समझो?
असलम:- वही तो पूछ रहा हूँ क्या मज़बूरी थी .
माँ :- . असलम बेटा वो मेरे घर के बाजु वाली मिसेज वर्मा जी ह ना हमारी पड़ोस, जब तुम मेरे पीछे थे और वो कर रहे थे, तब उनके ससुर जी छत पर ही खड़े थे और वो इधर ही देख रहे थे, अब तुम ही बताओ असलम क्या करती मै.
असलम:- ओह्ह्ह्ह तो ये बात थी खुद की इज्जत बचाने के लिए मुझे बली का बकरा बना दिया तुमने, एक बुड्ढे की वजह से पिटवा दिया मुझे.
माँ :- .. अरे बेटा ऐसा नहीं है मै एक औरत हू, ऊपर से शादीशुदा औरता और औरत का गहना उसकी इज्जत होती है, उसके परिवार की इज्जत होती है,
वो अंकल किसी को बता देते तुम्हारी और मेरी हरकतो के बारे मे तो क्या इज्जत रह जाति मेरी और मेरे परिवार की, मेरा एक जवान लड़का है, मेरे पति सरकार नौकरी वाले है, उच्च अधिकारी है,
तुम्हारा इस से भी ज्यादा नुकसान हो सकता था, इसमें हम दोनों की ही भलाई थी असलम.
असलम:- मुझे कुछ नहीं पता तुम तो बस रहने दो, मुझसे एक बार बोल देती तो मे हट जाता लेकिन तुमने तो मुझे चांटा मार दिया और तुम्हारे लड़के बबलू ने मेरी कोल्लर पकड ली थी, गुस्सा तो बहुत आया था मुझे बस तुम्हारी वजह से चुप रहा..
वरना उस बबलू की माँ चोद देता.
माँ :- तुम गाली बहुत देते हो.
मम्मी असलम की माँ चोदने वाली बात पर मस्कुराई क्यूकी मेरी माँ तो वही थी इसका मतलब असलम माँ को चोदने की बात कर रहा था.
माँ :- plz असलम बेटा मुझे तुम्हारे लिए बहुत बुरा लग रहा था, तकलीफ हो रही थी इसलिए फोन किया तुमसे मांफी मांगने के लिए सॉरी बेटा असलम.
असलम:- क्या फर्क पड़ता है आंटी अब पुलिस वालो ने जो मुझे मारा है लॉकअप मे, शरीर तोड़ के रख दिया चलो शरीर की चोट तो ठीक हो जाएगी, लेकिन तुमने मुझे पब्लिक मे सबके सामने चाँटा मारा उसको केसे भूल जाऊ?
माँ :- . सो...सॉरी बेटा ज्यादा तो नहीं मारा ना? दर्द हो रहा है तो डॉक्टर को दिखा लो, बस मुझे माफ़ कर दो मुझे दिल से पछतावा है असलम बेटा,
असलम:- शरीर का घाव तो भर जाएगा आंटी लेकिन जो घाव तुमने दिल पर दिया है, उसका इलाज कौन करेगा?
मम्मी:- सॉरी असलम माफ़ कर दो मुझे और कोई भी, कैसी भी जरुरत हो मुझे बोलो?
असलम:- हाँ जरुरत तो है आंटी?
माँ :- बताओ क्या चाहिए तुम्हे? किस चीज की जरुरत है?
असलम:- तुम्हारी
माँ :- मेरी.... मममम... मतलब मै समझी नहीं?
असलम:- भोली मत बनो आंटी
माँ :- सच मे मै समझी नहीं, मेरी कैसी जरुरत?
असलम:- जो उस दिन सब्जी के ठेले लार अधूरा रह गया था वही पूरा करना है.
मम्मी:- इस्स्स..... हाय ये तुम कैसी बात कर रहे हो.?
असलम:- चलो फिर मैं रखता हूं कोई फायदा नहीं बात करने का.
मम्मी:- अरे तुम नाराज़ क्यों होते हो, बोलो ना क्या बोल रहे थे?
असलम:- घर मे कोन है अभी तुम्हारे?
माँ :- . क्यू ऐसा क्यों पूछ रहे हो? वैसे अकेली ही हूँ, बबलू कॉलेज गया है और वो ऑफिस.
असलम:- ठीक है अगर तुम मेरे लिए कुछ करना चाहते हो तो जल्दी से मेरी झोपडी मे आ जाओ.
माँ :- कक्क......क्या ये क्या कह रहे हो मै कैसे आ सकती हूँ?
असलम:- मै कुछ नहीं जानता बस आ जाओ, यदि इतना ही पछतावा है तो.
माँ :- दिन का समय है असलम बेटा किसी ने देख लिया तो?
असलम:- मुझे कुछ नहीं सुनना, आ रही तो ठीक वरना मै समझूंगा बस दिखावा कर रही हो आप हमदर्दी का.
माँ :- . समझा करो असलम समस्या हो जाएगी, शादीशुदा औरत हूँ.
हालांकि माँ के मन मे फुझाड़िया चल रही थी, नाभि के नीचे तनाव महसूस हो रहा रहा, फिर भी एक दिल कहा रहा था इज़्ज़त का हवाला दे रहा था.
असलम:- कुछ नहीं होगा, दोपहर का समय है कोई घर से बाहर नहीं निकलता, जल्दी से चली आओ.
माँ :- लललल.... लेकिन..
असलम:- कोई लेकिन वेकीन नहीं, 15 मिनिट मे आ जाना, टक से असलम ने फ़ोन काट दिया.
माँ के दिमाग़ मे साय सांय कर हवा चल रही थी, क्या करे क्या नहीं समझ नहीं आ रहा था.
कामवासना मे तड़पता जिस्म कहा रहा था चली जाये, लेकिन एक संस्कारी औरत सोचने पर मजबूर थी, किसी ने देख लिया तो इज़्ज़त का फालूदा बन जायेगा.
समय ज्यादा नहीं था,
माँ के तड़पाते जिस्म के बीच बस दरवाजे की चौखट ही थी, इसे लाँघ गई तो जिस्मानी सुख था, वो अहसास था जिसे उसने कभी महसूस नहीं किया.
असलम मा मोटा काला लंड माँ की आँखों के सामने नाच रहा था, असलम के वीर्य से सनी कच्छी उसे दिखाई पड़ रही रही,
उफ्फ्फ..... क्या स्वाद था, मदहोश कर देने वाली गंध थी.
चौखट के इस पार पापा कि इज़्ज़त है, माँ के संस्कार है, घरेलु औरत होने का रुतबा है.
क्या मेरी संस्कारी माँ घर की इज्जत मान मर्यादा लाँघ कर असलम की झोपडी मे चली जाएगी?
मेरी संस्कारी माँ कुछ तो निर्णय ले चुकी थी, शायद उसने ठान लिया रहा उसे क्या करना है.
उसके कदम दहलीज की ओर बढ़ गए.
Contd.....
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