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मेरी माँ अंजलि -2

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खाने के बाद वो अपने पीता से बाते करने लगता है। वो अपनी कंपनी और नौकरी के बारे में बता रहा था। और उसकी बातें सुन कर उसके बाप को उस पर फखर होता जा रहा था। उसका बेटा अब बड़ा आदमी बन चुका था। जितना वो एक साल में भी नहीं कमा सकता था, विशाल उससे ज्यादा एक महीने में कमा सकता था।

कफी देर बाद विशाल जब अपने कमरे में गया तोह उसने अपना बैग खोले और अपना सामान सेट करने लगा उसने अभी तक्क अपना बैग भी नहीं खोला था। आधे घंटे बाद जब वो फ्री हुआ तोह उसकी माँ उसके लिए दूध लेकर आ गायी। विशाल मुसकरा पडा पुराणी यादें ताज़ा हो गायी। विशाल बेड पर बैठा बैठा दूध पि रहा था जबके अंजलि रूम में घूम रही थी और फिर वो बेड पर उसके पास बैठ गयी। वो उसे बड़े धयान से देख रही थी।

ऐसे क्या देख रही हो माँ? विशाल मुस्कराते हुए पूछता है।

"देख रही हुन मेरा बेटा कितना जवान कितना बड़ा हो गया है".अंजलि का चेहरा खिला हुआ था। वो विशाल के गाल पर हाथ फेर रही थी।

"मगर फिर भी तुमने एक ही नज़र में पहचान लिया"। मा का स्पर्श कितना प्यारा कितना गर्माहट भरा था।

"हुन तोह क्या में अपने बच्चे को नहीं पहचानती"।
मगर माँ में तुम्हे नहीं पहचान सका मेरा मतलब मैंने तुम्हे पहचान तोह लिया था मगर एक पल के लिए मुझे यकीन ही नहीं हुआ तुम कितनी बदल गयी हो "। विशाल अपनी माँ के बदन पर निगाह दौडता बोल।

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"मतलब।मुझमेंकेसा क्या फरक आ गया है"।अंजलि मुसकरा उठि थी। वो जन्ति थी के उसमे क्या फरक आ चुक्का था क्योंके उसे यह बोलने वाला विशाल अकेला सख़्श नहीं था बल्कि वो कई लोगों के मुंह से यह सुन चुकी थी।

"मतलबतुम कितनी पतली हो गयी हो माँ यकीन नहीं होता सच मै और तुम कितनी सुन्दर दिख रही हो"। विशाल अपनी माँ के चेहरे को हैरत से देखता केहता है।

"मतलब पहले में बदसूरत थी". अंजलि हँसते हुए केहती है।
नहीं माँ तुम जानती ही मेरा वो मतलब नहीं था मगर अब इतना वजन कम् करने के बाद तो तुम एकदम जवान लग रही हो जैसे के तुम सिर्फ तीस की हो सच मैं" अंजलि हंस पड़ती है।


"बस घर पर कुछ करने के लिए नहीं था इसीलिए थोड़ा बहुत एक्सरसाइज करनी सुरु कर दि

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एक बार सुरुआत करने के बाद तोह बास मुझे इतना अच्चा लाग्ने लगा
के में ज्यादा से ज्यादा वजन कम् करने की कोशिश करने लगी
मगर वो सभ छोड़ो मुझे यह बतायो के तुम्हारी दोस्ती किसी लड़की से भी हुयी
क्या मैने तोह जैसा अमेरिका के बारे में सुना था मुझे डर लगता था कहीं कोई गोरी मेम तुम्हे हमसे छीन ही न ले".

"अरे माँ वहां मुझे कोई भी गोरी ऐसी नहीं मिली जो तुम जैसी सुन्दर हो
अगर तुम जैसी मिल जाती तोह में सचमुच शायद वापस नहीं आता". विशाल हँसते हुए मज़ाक़ करता है।

"बेशरम"अंजलि बेटे के बाजु पर चापट मारती है।

दोनो माँ बेटा इसी तेरह बाते करते रेह्ते है। कब्ब रात के गयारह बाज्ज जाते हैं उन्हें पता ही नहीं चलता।
अखिरकार अंजलि अपने बेटे का माथा चूम कर उसे गुड नाईट केहती है

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और वहां से रुख्सत होती है।

विशाल को लगा था के सायद दोपहर को सोने के बाद उसे इतनी जल्दी नींद नहीं आएगी।
मगर खाने और सफर की अधूरी थकन ने उसे कुछ ही पलों में गहरी नींद में पहुंचा दिया।

विशाल जाग चुका था मगर अब भी कच्ची नींद में था जब अंजलि उसके कमरे में आयी।
वो बेड पर विशाल के सिरहाने बैठकर उसके चेहरे पर हाथ फेरने लगी और
उसे प्यार से बुलाने लागी। विशाल ने ऑंखे खोली मगर फिर तरुंत बंद करदि।
वो सोना नहीं चाहता था मगर माँ का प्यार भरा स्पर्श उसे इतना सुखद लग रहा था के
वो यूँ ही उसे महसूस करते रहना चाहता था।
उस समय विशाल अपनी माँ की तरफ करवट लेकर लेता हुआ था
और उसने अपनी टाँगे मोडी हुयी थी।

आंजलि लगातार बेटे के गालों को सेहलती अपना हाथ फेरती रहती है।
विशाल ऑंखे बंद किये लेटा रहता है।
दस् मिनट बाद अंजलि झुक कर विशाल के गाल को चूमती है

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और उसे धीरे से उठने को केहती है। विशाल ऑंखे खोल देता है।
वो करवट बदल कर सिधा होता है और एक ही झटके में अपने ऊपर से चादर हटा देता है।


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कुछ ही पल मे अंजलि की ऑंखे फैल जाती है।
उसका मुंह खुल जाता है।
उसकी सांस रुक जाती है।
विशाल का ध्यान अपनी माँ के चेहरे की और था।

जब्ब वो अपनी माँ के चेहरे के भाव एक सेकंड में यूँ बदलते देखता है
तो हैरान हो जाता है।
वो वहीँ रुक जाता है और उसे समज नहीं आता के क्या हो गया है
। वो अपनी माँ की नज़र का पीछा करता
अपने बदन पर देखता है।
उसके होश उड़ जाते है।
वो पूरा नंगा था।
और उसकी खुली टैंगो के बिच उसका लम्बा मोटा लुंड
हर सुबह की तरह पूरी तराह आकड़ा हुआ सिधा खडा था।

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विशाल अपनी माँ को देखता है जो उसके लंड को देख रही थी। अचानक विशाल को होश आता है और वो झटके से चादर खींच खुद को ढकता है और दूसरी तरफ को करवट ले लेता है।
"गुड मॉर्निंग मा आय ऍम सो सॉरी माँ मुझे उफ्फ याद ही नहीं रहा में वहां ऐसे ही सोता था उउफ्फ्फ माफ़ करदो माँ".विशाल शर्मिंदगी से अंजलि की तरफ पीठ किये खुद को कोस रहा था के वो कैसे भूल गया के वो घर पर है न के अमेरिका के अपने फ्लैट में

आंजली स्तब्ध सी खड़ी थी।

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जब्ब विशाल माफ़ी मांगता है तोह वो भी होश में आती है।
वो एक पल को समझने की कोशिश करती है के क्या हुआ है मगर अगले ही पल वो हंस पड़ती है।
वो इतना खुल कर ऊँचा हँसति है के विशाल की शर्मिंदगी और भी बढ़ जाती है।

विशाल को शायद इतना नहीं मालूम था के उसने अपनी माँ की तरफ से करवट तोह ले ली थी
और अपने जिसम का आग्र भाग चादर से ढँक लिया था
मगर उसकी पीठ पर चादर उसके नीचले कुल्हे को नहीं ढँक सकी थी।
अंजलि उसे देखति है तो और भी ज़ोरों से हंस पड़ती है।

"ऊऊफफफ माँ हँसो मत जाओ यहाँसे से प्लीज जाओ भी". विशाल अपनी माँ की मिन्नत करता है। अं
जलि की खिलखिलाती हँसी उसकी शर्मिंदगी को और बढा रही थी।

ताभी अंजलि को नजाने क्या सूझता है, के वो शरारत के मूड में आकर बेड पर हाथ रखकर झुकति है
और ज़ोर से विशाल के नग्न कुल्हे पर चपट मारती है

विशाल अपने नंगे कुल्हे पर अपनी माँ के हाथ का स्पर्श पाकर चीख़ पढता है। वो तरुंत हाथ पीछे करके चादर को अपने कुल्हों के निचे दबाता है। अंजली हँसते हँसते लोट पॉट हो जाती है। वो अपने पेट् पर हाथ रखकर दबाती है। उसे इतना ज़ोर से हंसाने के कारन पेट् में दरद होने लगा था।

अंजलि आखिरकार हँसते हुए दरवाजे की और बढ़ती है। रेह रेहकर वो ज़ोरों से हंस पड़ती थी। वो अपने पीछे दरवाजा बंद कर देती है और किचन की और जाती है। अभी भी हँसी से उसका बुरा हो रहा था। वो बेटे के लिए नाश्ता बनाना चालू करती है।

हँसि और एक अजीब सी ख़ुशी में, एक रोमाँच में अंजलि यह महसूस नहीं कर पा रही थी के उसके निप्पल अकड गए थे, उसकी चुत कुछ नम्म हो गयी थी।

Contd.....

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