मेरी माँ अंजलि -13
अगली सुबह जब विशाल ऑंखे मलता हुआ उठता है तोह समय देखकर हैरान हो जाता है. सुबह के नौ बज चुके थे. वो इतनी देर तक कैसे सोता रहा, विशाल को हैरत हो रही थी. शायद पिछले दिनों की थकन के कारन ऐसा हो गया होगा. मगर आज उसकी माँ भी उसे जगाने नहीं आई थी.विशाल बिस्तर से निकल सीधा निचे किचन की और जाता है
जहा से उसे खाना पकाने की खुशबु आ रही थी.
उसने कुछ भी नहीं पहना था मगर किचन में घुसते ही उसे ज़िन्दगी का सबसे बड़ा झटका लगा.
सामने उसकी माँ भी पूरी नंगी थी.

विशाल को अपनी माँ की गोरी पीठ उसकी गांड,
उसके मतवाले नितम्ब नज़र आ रहे थे
विशाल का लंड पलक झपकते ही पत्थर की तरह सख्त हो चुका था
. वो सीधा माँ की तरफ बढ़ता है.
अंजलि कदमो की आहट सुन कर पीछे मुढ़कर देखति है और मुसकरा पड़ती है.
विशाल अपनी माँ के नितम्बो में लुंड घुसाता उससे चिपक जाता है
और अपने हाथ आगे लेजाकर उसके दोनों मम्मे पकड़ लेता है.
"गुड मॉर्निंग बेटा.........कहो रात को नींद कैसी आई.......
यह तुमने तोह मुंह तक नहीं धोया" अंजलि अपने मम्मो को मसलते बेटे के हाथों को सहलाती है.

मा.....मैने सोचा भी नहीं था.....तुम मेरी खवाहिश पूरी कर दोगी" विशाल गांड में लंड दबाता ज़ोर ज़ोर से अपनी माँ के मम्मे मसलता है.
"उऊंणह्हह्ह्.....अब अपने लाडले बेटे की खवाहिश कैसे नहीं पूरी करति...........
उउउउउफफ........धीरे कर....मार डालेगा क्या.........." अंजलि सिसक उठि थी. "जा पहले हाथ मुंह धोकर आ, नाश्ता तैयार है"
मगर विशाल अपनी माँ की कोई बात नहीं सुनता.
वो हाथ आगे बढाकर गैस बंद कर देता है और
फिर अपनी माँ की कमर पर हाथ रख उसे पीछे की और खींचता है.
अंजलि इशारा समझ अपनी टाँगे पीछे की और कर अपनी गांड हवा में उठाकर काउंटर थामे घोड़ी बन जाती है.
विशाल अपना लंड पीछे से झाँकती माँ की चुत पर फिट कर देता है.

आखिर वो पल आ चुका था. ओ.अपना लंड अपनी माँ की चुत में घुसाने जा रहा था.
वो अपनी माँ चोदने जा रहा था. कामोन्माद और कमोत्तेजना से उसका पूरा जिस्म कांप रहा था.
"उऊंणग्ग्गहह घूसा दे......घुसा दे मेरे लाल......घुसा दे अपना लंड अपनी माँ की चुत में......."
माँ के मुंह से वो लफ़ज़ सुन विशाल की कमोत्तेजना और भी बढ़ जाती है
. वो अपना लंड चुत पर रगढ आगे की और
सरकाता है के तभी उसके पूरे जिस्म में झुरझुरी सी दौड जाती है
. उसके लंड से एक तेज़ और ज़ोरदार पिचकारी निकल उसकी माँ की चुत को भिगो देती है.
"मा......." विशाल के मुंह से लम्बी सिसकि निकलती है और
वो अपनी ऑंखे खोल देता है. कमरे में जहाँ अँधेरा था.
विशाल को कुछ पल लगते हैं समझने में के वो अपने ही कमरे में लेता हुआ था
के वो सपना देख रहा था. तभी उसे अपनी जांघो पर गिला चिपचिपा सा महसूस होता है.
वो हाथ लगाकर देखता है.
उसके लंड से अभी भी वीर्य की धाराएँ फूट रही थी
जिससे उसका पूरा हाथ गिला-चिपचिपा हो जाता है
"उऊंणह्हह्ह्.....अब अपने लाडले बेटे की खवाहिश कैसे नहीं पूरी करति...........
उउउउउफफ........धीरे कर....मार डालेगा क्या.........." अंजलि सिसक उठि थी. "जा पहले हाथ मुंह धोकर आ, नाश्ता तैयार है"
मगर विशाल अपनी माँ की कोई बात नहीं सुनता.
वो हाथ आगे बढाकर गैस बंद कर देता है और
फिर अपनी माँ की कमर पर हाथ रख उसे पीछे की और खींचता है.
अंजलि इशारा समझ अपनी टाँगे पीछे की और कर अपनी गांड हवा में उठाकर काउंटर थामे घोड़ी बन जाती है.

विशाल अपना लंड पीछे से झाँकती माँ की चुत पर फिट कर देता है.

आखिर वो पल आ चुका था. ओ.अपना लंड अपनी माँ की चुत में घुसाने जा रहा था.
वो अपनी माँ चोदने जा रहा था. कामोन्माद और कमोत्तेजना से उसका पूरा जिस्म कांप रहा था.
"उऊंणग्ग्गहह घूसा दे......घुसा दे मेरे लाल......घुसा दे अपना लंड अपनी माँ की चुत में......."
माँ के मुंह से वो लफ़ज़ सुन विशाल की कमोत्तेजना और भी बढ़ जाती है
. वो अपना लंड चुत पर रगढ आगे की और
सरकाता है के तभी उसके पूरे जिस्म में झुरझुरी सी दौड जाती है
. उसके लंड से एक तेज़ और ज़ोरदार पिचकारी निकल उसकी माँ की चुत को भिगो देती है.

"मा......." विशाल के मुंह से लम्बी सिसकि निकलती है और
वो अपनी ऑंखे खोल देता है. कमरे में जहाँ अँधेरा था.
विशाल को कुछ पल लगते हैं समझने में के वो अपने ही कमरे में लेता हुआ था
के वो सपना देख रहा था. तभी उसे अपनी जांघो पर गिला चिपचिपा सा महसूस होता है.
वो हाथ लगाकर देखता है.
उसके लंड से अभी भी वीर्य की धाराएँ फूट रही थी
जिससे उसका पूरा हाथ गिला-चिपचिपा हो जाता है
विशाल अपने अंडरवियर से अपने गीले हाथ को और अपनी जांघो को पोंछता है
और अंडरवियर निचे फर्श पर फेंक देता है. वो एक ठण्डी आह भरता है.
माँ चोदने की उसकी इच्छा इतनी तीव्र हो चुकी थी के वो
अब उसके सपने में भी आने लगी थी.
खिड़की से हलकी सी झाँकती रौशनी से उसे एहसास होता है के सुबह होने ही वाली है.
वो घडी पर समय देखता है हैरान रेह जाता है. छे कब के बज चुके थे.
सुबह का सपना........... विशाल अपनी ऑंखे फिर से मूंद लेता है.
कल रात के मुकाबले अब वो थकन नहीं महसूस कर रहा था.
रात को माँ के साथ हुए कार्यक्रम के बाद वो इतना उत्तेजित हो चुका था के उसे लग रहा था
के शायद वो रात को सो नहीं पायेगा. मगर कुछ देर बाद पिछले दिनों की थकन और नींद के आभाव के चलते जलद ही उसे नींद ने घेर लिया था.
अभी उसके उठने का मन नहीं हो रहा था.
मगर अब उसे नींद भी नहीं आने वाली थी.
निचे से आती अवाज़ों से उसे मालूम चल चुका था के उसके माता पिता जाग चुके है.
जब उसकी माँ उसके पास लेटी थी......
जब उसने अपने माँ के गाउन की गाँठ खोल उसके दूधिया जिस्म को पहली बार मात्र एक ब्रा और कच्छी में देखा था...
और अंडरवियर निचे फर्श पर फेंक देता है. वो एक ठण्डी आह भरता है.
माँ चोदने की उसकी इच्छा इतनी तीव्र हो चुकी थी के वो
अब उसके सपने में भी आने लगी थी.
खिड़की से हलकी सी झाँकती रौशनी से उसे एहसास होता है के सुबह होने ही वाली है.
वो घडी पर समय देखता है हैरान रेह जाता है. छे कब के बज चुके थे.
सुबह का सपना........... विशाल अपनी ऑंखे फिर से मूंद लेता है.
कल रात के मुकाबले अब वो थकन नहीं महसूस कर रहा था.
रात को माँ के साथ हुए कार्यक्रम के बाद वो इतना उत्तेजित हो चुका था के उसे लग रहा था
के शायद वो रात को सो नहीं पायेगा. मगर कुछ देर बाद पिछले दिनों की थकन और नींद के आभाव के चलते जलद ही उसे नींद ने घेर लिया था.
अभी उसके उठने का मन नहीं हो रहा था.
मगर अब उसे नींद भी नहीं आने वाली थी.
निचे से आती अवाज़ों से उसे मालूम चल चुका था के उसके माता पिता जाग चुके है.
जब उसकी माँ उसके पास लेटी थी......
जब उसने अपने माँ के गाउन की गाँठ खोल उसके दूधिया जिस्म को पहली बार मात्र एक ब्रा और कच्छी में देखा था...
सिर्फ देखा ही नहीं था...उसने उसके मम्मो को उसके तने हुए निप्पलों को छुआ भी था......
उसे याद हो आता है जब उसने पहली बार अपनी माँ की चुत को देखा था........
गीली कच्छी से झाँकते चुत के वो मोठे होंठ.
.रस से भीगे हुये....... और विशाल के स्पर्श करते ही वो किस तरह मचल उठि थी.....
विशल तकिये के निचे रखी माँ की ब्रा और कच्छी को निकाल लेता है और कच्छी को सूँघने लगता है......

.मा की चुत की खुसबू उसमे अभी भी वेसे ही आ रही थे
जैसे कल्ल रात को आ रही थी.
ओर फिर......फिर उसने खुद अपना गाउन उतार फेंका था......
कीस तरह उसके सामने नंगी खड़ी थी.......और फिर.....फिर.....
.वो उसके गले में बाहे डाले ऐसे झुल रही थी....
उसके लंड पर अपनी चुत रगढ रही थी.........
वो चुदवाने को बेताब थी.........
विशाल का हाथ अपने लौडे पर फिर से कस जाता है
जो अब लोहे की तरह खड़ा हो चुका था.
क्या बात थी उसकी माँ में की उसके एक ख्याल मात्र से उसका लंड इतना भीषन रूप धार लेता था.
विशाल अपने लंड से हाथ हटा लेता है,
उसे मालूम था के अगर ज्यादा देर उसने अपने लंड को पकडे रखा तोह
उसकी माँ की यादें उसे हस्त्मथुन के लिए मज़बूर कर देगी.
उसे याद हो आता है जब उसने पहली बार अपनी माँ की चुत को देखा था........
गीली कच्छी से झाँकते चुत के वो मोठे होंठ.
.रस से भीगे हुये....... और विशाल के स्पर्श करते ही वो किस तरह मचल उठि थी.....
विशल तकिये के निचे रखी माँ की ब्रा और कच्छी को निकाल लेता है और कच्छी को सूँघने लगता है......
.मा की चुत की खुसबू उसमे अभी भी वेसे ही आ रही थे
जैसे कल्ल रात को आ रही थी.
ओर फिर......फिर उसने खुद अपना गाउन उतार फेंका था......
कीस तरह उसके सामने नंगी खड़ी थी.......और फिर.....फिर.....
.वो उसके गले में बाहे डाले ऐसे झुल रही थी....
उसके लंड पर अपनी चुत रगढ रही थी.........
वो चुदवाने को बेताब थी.........
विशाल का हाथ अपने लौडे पर फिर से कस जाता है
जो अब लोहे की तरह खड़ा हो चुका था.
क्या बात थी उसकी माँ में की उसके एक ख्याल मात्र से उसका लंड इतना भीषन रूप धार लेता था.
विशाल अपने लंड से हाथ हटा लेता है,
उसे मालूम था के अगर ज्यादा देर उसने अपने लंड को पकडे रखा तोह
उसकी माँ की यादें उसे हस्त्मथुन के लिए मज़बूर कर देगी.
विशाल का हाथ अपने लौडे पर फिर से कस जाता है जो अब लोहे की तरह खड़ा हो चुका था.

क्या बात थी उसकी माँ में की उसके एक ख्याल मात्र से उसका लंड इतना भीषन रूप धार लेता था.
विशाल अपने लंड से हाथ हटा लेता है, उसे मालूम था के अगर ज्यादा देर उसने अपने लंड को पकडे रखा तोह
उसकी माँ की यादें उसे हस्त्मथुन के लिए मज़बूर कर देगी.
विशाल आने आने वाले दिन के सुखद सपने सँजोता बेड में लेता रहता है. थोड़ी देर बाद उसके पिता काम पर चले जाने वाले थे......
उसके बाद वो और उसकी माँ.....उसकी माँ और ओ......अकेले........सारा दिन.......
.आज उन दोनों के बिच कोई रूकावट नहीं थी......आज तोह उसकी माँ चुदने वाली थी.........
आज तोह वो हर हाल में अपनी प्यारी माँ को चोद देणे वाला त......
उसे यकीन था जितना वो अपनी माँ को चोदने के लिए बेताब था, वो भी उससे चुदने के लिए उतनी ही बेताब थी.
जितना वो अपनी माँ को चोदने के लिए तडफ रहा था वो भी चुदने के लिए उतनी ही तडफ रही थी.
उस दिन की सम्भावनाओं ने विशाल को बुरी तेरह से उत्तेजित कर दिया था. उसका लंड इतना कड़क हो चुका था
के दर्द करने लगा था. अखिरकार विशाल बेड से उठ खड़ा होता है और नहाने के लिए बाथरूम में चला जाता है.
अब सुबह हो चुकी थी और कुछ समय में उसके पिता भी चले जाने वाले थे.
पाणी की ठण्डी फुहारे विशाल के तप रहे जिस्म को कुछ राहत देती है.
उसके लंड की कुछ अकड़ाहट कम् हुयी थी. तौलिये से बदन पोंछते वो बाथरूम से बाहर निकालता है

मगर जैसे ही उसकी नज़र अपने बैडरूम में पड़ती है तोह उसके हाथों से तौलिया छूट जाता है.
सामने उसकी माँ....उसकी प्यारी माँ......उसकी अतिसुन्दर, कमनीय माँ नंगी खड़ी थी,
बिलकुल नंग, हाथों में विशाल का वीर्य से भीगा अंडरवियर पकडे हुये.
विशाल अवाक सा माँ को देखता रहता है जब के अंजलि होंठो पर चंचल हँसी लिए बिना शरमाये उसके सामने खड़ी थी.
विशाल के लिए तोह जैसे समय रुक गया था. उसकी माँ उसे अपना वो रूप दिखा रही थी
जिसे देखने का अधिकार सिर्फ उसके पति का था. शायद किसी और
का भी अधिकार मान लिया जाता मगर उसके बेटे का-- कतई नहि.
"तो कैसी लगती हु मैं!" अंजलि बेटे के सामने अपने जिस्म की नुमाईश करती
उसी चंचल स्वर में धीरे से पूछती है. मगर बेचारा विशाल क्या जवाब देता.
वो तोह कभी माँ के मम्मो को कभी उसकी उसकी पतली सी कमर को कभी उसकी चुत को
तोह कभी उसकी जांघो को देखे जा रहा था.
उसकी नज़र यूँ ऊपर निचे हो रही थी जैसे वो फैसला न कर पा रहा
हो के वो माँ के मम्मो को देखे, उसकी चुत को देखे, चुत और
मम्मो के बिच उसके सपाट पेट् को देखे या फिर उसकी जांघो को.
वो तोह जैसे माँ के दूध से गोर जिस्म को अपनी आँखों में समां लेना चाहता था.
जैसे उस कमनीय नारी का पूरा रूप अपनी आँखों के जरिये पि जाना चाहता हो.

क्या बात थी उसकी माँ में की उसके एक ख्याल मात्र से उसका लंड इतना भीषन रूप धार लेता था.
विशाल अपने लंड से हाथ हटा लेता है, उसे मालूम था के अगर ज्यादा देर उसने अपने लंड को पकडे रखा तोह
उसकी माँ की यादें उसे हस्त्मथुन के लिए मज़बूर कर देगी.
विशाल आने आने वाले दिन के सुखद सपने सँजोता बेड में लेता रहता है. थोड़ी देर बाद उसके पिता काम पर चले जाने वाले थे......
उसके बाद वो और उसकी माँ.....उसकी माँ और ओ......अकेले........सारा दिन.......
.आज उन दोनों के बिच कोई रूकावट नहीं थी......आज तोह उसकी माँ चुदने वाली थी.........
आज तोह वो हर हाल में अपनी प्यारी माँ को चोद देणे वाला त......
उसे यकीन था जितना वो अपनी माँ को चोदने के लिए बेताब था, वो भी उससे चुदने के लिए उतनी ही बेताब थी.
जितना वो अपनी माँ को चोदने के लिए तडफ रहा था वो भी चुदने के लिए उतनी ही तडफ रही थी.
उस दिन की सम्भावनाओं ने विशाल को बुरी तेरह से उत्तेजित कर दिया था. उसका लंड इतना कड़क हो चुका था
के दर्द करने लगा था. अखिरकार विशाल बेड से उठ खड़ा होता है और नहाने के लिए बाथरूम में चला जाता है.
अब सुबह हो चुकी थी और कुछ समय में उसके पिता भी चले जाने वाले थे.
पाणी की ठण्डी फुहारे विशाल के तप रहे जिस्म को कुछ राहत देती है.
उसके लंड की कुछ अकड़ाहट कम् हुयी थी. तौलिये से बदन पोंछते वो बाथरूम से बाहर निकालता है

मगर जैसे ही उसकी नज़र अपने बैडरूम में पड़ती है तोह उसके हाथों से तौलिया छूट जाता है.
सामने उसकी माँ....उसकी प्यारी माँ......उसकी अतिसुन्दर, कमनीय माँ नंगी खड़ी थी,
बिलकुल नंग, हाथों में विशाल का वीर्य से भीगा अंडरवियर पकडे हुये.

विशाल अवाक सा माँ को देखता रहता है जब के अंजलि होंठो पर चंचल हँसी लिए बिना शरमाये उसके सामने खड़ी थी.
विशाल के लिए तोह जैसे समय रुक गया था. उसकी माँ उसे अपना वो रूप दिखा रही थी
जिसे देखने का अधिकार सिर्फ उसके पति का था. शायद किसी और
का भी अधिकार मान लिया जाता मगर उसके बेटे का-- कतई नहि.
"तो कैसी लगती हु मैं!" अंजलि बेटे के सामने अपने जिस्म की नुमाईश करती
उसी चंचल स्वर में धीरे से पूछती है. मगर बेचारा विशाल क्या जवाब देता.
वो तोह कभी माँ के मम्मो को कभी उसकी उसकी पतली सी कमर को कभी उसकी चुत को
तोह कभी उसकी जांघो को देखे जा रहा था.
उसकी नज़र यूँ ऊपर निचे हो रही थी जैसे वो फैसला न कर पा रहा
हो के वो माँ के मम्मो को देखे, उसकी चुत को देखे, चुत और
मम्मो के बिच उसके सपाट पेट् को देखे या फिर उसकी जांघो को.
वो तोह जैसे माँ के दूध से गोर जिस्म को अपनी आँखों में समां लेना चाहता था.
जैसे उस कमनीय नारी का पूरा रूप अपनी आँखों के जरिये पि जाना चाहता हो.
"तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया" इस बार विशाल चेहरा उठकर माँ को देखता है.
उस चंचल माँ के होंठो की हँसी और भी चंचल हो जाती है."
तुम्हारा चेहरा देख कर मुझे कुछ कुछ अंदाज़ा हो गया है के में तुम्हे कैसी लगी हुं.......
वैसे तुम भी कुछ कम् नहीं लग रहे हो"
विशाल माँ की बात को समझ कर पहले उसके जिस्म को देखता है

और फिर अपने जिस्म की और फिर खुद पर आश्चर्चकित होते हुए तेज़ी से झुक कर फर्श पर गिरा तौलिया उठाता है
और उससे अपने लंड को धक् लेता है
जो पथ्थर के समान रूप धारण कर आसमान की और मुंह उठाये था.
विशाल के तौलीये से अपना लंड ढंकते ही अंजलि जोरो से खिलखिला कर हंस पड़ती है.
"है भगवान.........विशाल तुम भी न........" हँसि के बिच रुक रुक कर उसके मुंह से शब्द फुट रहे थे.
विशाल शर्मिंदा सा हो जाता है. उसे खुद समझ नहीं आ रहा था के उसने ऐसा क्यों किया.
जिसकी वो इतने दिनों से कल्पना कर रहा था,
जिस पल का उसे इतनी बेसब्री से इंतज़ार था वो पल आ चुका था
तोह फिर वो माँ के सामने यूँ शर्मा क्यों रहा था.
आज तोह वो जब खुद पहल कर रही थी तोह वो क्यों घबरा उठा था.
उधऱ तेज़ हँसी के कारन अंजलि ऑंखे कुछ नम हो जाती है.
माँ की हँसी से विशाल जैसे और भी जादा शर्मिंदा हो जाता है.
अंजलि मुस्कराती बेटे के पास आती है और
उसके बिलकुल सामने उससे सटकर उसका गाल चूमती है.
"मैंने कहा चलो आज में भी तुम्हारा न्यूड डे मनाकर देखति हुन के कैसा लगता है.
ऐसा क्या ख़ास मज़ा है इसमें के तुम चार साल बाद भी इसकी खातिर अपनी माँ से मिलने के लिए देरी कर रहे थे."
अंजलि और भी विशाल से सट जाती है.

find duplicate lines
उसके कड़े गुलाबी निप्पल जैसे विशाल की चाती को भेद रहे थे
तोह विशाल का लंड अंजलि के पेट् में घूसा जा रहा था.
वो फिर से बेटे का गाल चूमती है और फिर धीर से उसके कान में फुसफुसाती है;
"सच में कुछ तोह बात है इसमे.....यून नंगे होने में........
पहले तोह बड़ा अजीब सा लगा मुझे.....मगर अब बहुत मज़ा आ रहा है......
बहुत रोमाँच सा महसूस हो रहा है यूँ अपने बेटे के सामने नंगी होने में....
वो भी तब जब घर में कोई नहीं है......"
अंजलि बड़े ही प्यार से बेटे के गाल सहलाती एक पल के लिए चुप्प कर जाती है.
"तुम्हारे पिताजी जा चुके है......जब हम घर में अकेले है......
मैने नाश्ता बना लिया है....जलदी से निचे आ जाओ.....
.बहुत काम पड़ा है करने के लिये.....जानते हो न आज तुमने मेरा काम करना है
हा मेरा मतलब काम में मेरा हाथ बँटाना है"
अंजलि एक बार कस कर विशाल से चिपक जाती है

और
फिर विशाल का अंडरवियर हाथ में थामे हँसते हुए कमरे से बाहर चलि जाती है
उस चंचल माँ के होंठो की हँसी और भी चंचल हो जाती है."
तुम्हारा चेहरा देख कर मुझे कुछ कुछ अंदाज़ा हो गया है के में तुम्हे कैसी लगी हुं.......
वैसे तुम भी कुछ कम् नहीं लग रहे हो"
विशाल माँ की बात को समझ कर पहले उसके जिस्म को देखता है

और फिर अपने जिस्म की और फिर खुद पर आश्चर्चकित होते हुए तेज़ी से झुक कर फर्श पर गिरा तौलिया उठाता है
और उससे अपने लंड को धक् लेता है
जो पथ्थर के समान रूप धारण कर आसमान की और मुंह उठाये था.
विशाल के तौलीये से अपना लंड ढंकते ही अंजलि जोरो से खिलखिला कर हंस पड़ती है.
"है भगवान.........विशाल तुम भी न........" हँसि के बिच रुक रुक कर उसके मुंह से शब्द फुट रहे थे.
विशाल शर्मिंदा सा हो जाता है. उसे खुद समझ नहीं आ रहा था के उसने ऐसा क्यों किया.
जिसकी वो इतने दिनों से कल्पना कर रहा था,
जिस पल का उसे इतनी बेसब्री से इंतज़ार था वो पल आ चुका था
तोह फिर वो माँ के सामने यूँ शर्मा क्यों रहा था.
आज तोह वो जब खुद पहल कर रही थी तोह वो क्यों घबरा उठा था.
उधऱ तेज़ हँसी के कारन अंजलि ऑंखे कुछ नम हो जाती है.
माँ की हँसी से विशाल जैसे और भी जादा शर्मिंदा हो जाता है.
अंजलि मुस्कराती बेटे के पास आती है और
उसके बिलकुल सामने उससे सटकर उसका गाल चूमती है.
"मैंने कहा चलो आज में भी तुम्हारा न्यूड डे मनाकर देखति हुन के कैसा लगता है.
ऐसा क्या ख़ास मज़ा है इसमें के तुम चार साल बाद भी इसकी खातिर अपनी माँ से मिलने के लिए देरी कर रहे थे."
अंजलि और भी विशाल से सट जाती है.

find duplicate lines
उसके कड़े गुलाबी निप्पल जैसे विशाल की चाती को भेद रहे थे
तोह विशाल का लंड अंजलि के पेट् में घूसा जा रहा था.
वो फिर से बेटे का गाल चूमती है और फिर धीर से उसके कान में फुसफुसाती है;
"सच में कुछ तोह बात है इसमे.....यून नंगे होने में........
पहले तोह बड़ा अजीब सा लगा मुझे.....मगर अब बहुत मज़ा आ रहा है......
बहुत रोमाँच सा महसूस हो रहा है यूँ अपने बेटे के सामने नंगी होने में....
वो भी तब जब घर में कोई नहीं है......"
अंजलि बड़े ही प्यार से बेटे के गाल सहलाती एक पल के लिए चुप्प कर जाती है.
"तुम्हारे पिताजी जा चुके है......जब हम घर में अकेले है......
मैने नाश्ता बना लिया है....जलदी से निचे आ जाओ.....
.बहुत काम पड़ा है करने के लिये.....जानते हो न आज तुमने मेरा काम करना है
हा मेरा मतलब काम में मेरा हाथ बँटाना है"
अंजलि एक बार कस कर विशाल से चिपक जाती है

और
फिर विशाल का अंडरवियर हाथ में थामे हँसते हुए कमरे से बाहर चलि जाती है
विशाल बेड पर बैठा सोच मैं पढ़ जाता है। सच था के जिस दिन से वो वापिस आया था उसके और उसकी माँ के बीच बहुत जयादा बदलाव आ गया था। इतने साल बाद मिलने से दोनों माँ बेटे के बीच ममतामयी प्यार और भी बढ़ गया था। मगर माँ बेटे के प्यार के साथ साथ दोनों मैं एक और रिश्ता कायम हो गया था। उस रिश्ते मैं इतना आकर्शण इतना रोमांच था के दोनों बरबस एक दूसरे की तरफ खिंचते जा रहे थे। दोनों के जिसम में ऐसी बैचैनी जनम ले चुकी थी जो उन्हें एक दूसरे के करीब और करीब लाती जा रही थी। दोनों माँ बेटा उस प्यास से त्रस्त थे जिसे मिटाने के लिए वो उस लक्ष्मण रेखा को पार करने पर तुल गए थे जिसे पार करने की सोचना भी अपने आप मैं किसी बड़े गुनाह से कम नहीं था। एक दूसरे के इतना करीब आने के बावजूद, एक दूसरे में समां जाने की उस तीव्र इच्छा के बावजूद, उस लक्ष्मण रेखा को पार करने के बावजूद दोनों माँ वेटा असहज महसूस नहीं कर रहे थे। उनके अंदर घृणा,गलानी जैसी किसी भवना ने जनम नहीं लिया था। क्योंके उस आकर्षण ने जिसने एक तगड़े युवक और एक अत्यंत सुन्दर नारी को इतना करीब ला दिया था उसी आकर्षण ने माँ बेटे के रिश्ते को और भी मजबूत कर दिया था उनके प्यार को और भी प्रगाढ़ कर दिया था।
विशाल जिसने अभी अभी अपनी माँ के हुसन और जवानी से लबरेज जिस्म के दीदार किये थे अपने पूरे जिसम में रोमांच और अवेश के सैलाब को महसूस कर रहा था। अंजली के नग्न जिस्म ने उस प्यास को और भी तीव्र कर दिया था जिसने कई रातों से उसे सोने नहीं दिया था। उसने कभी उम्मीद नहीं की थी के उसकी माँ सच में उसके साथ नग्नता दिवस मानाने के लिए तयार हो जायेगी। वो तो उसे जानबूझ कर उकसाता था के वो पता कर सके उसकी माँ किस हद तक जा सकती है और अब जब उसकी माँ ने दिखा दिया था के उसके लिए कोई हद है ही नहीं तोह विशाल को अपने भाग्य पर यकीन नहीं हो रहा था। सोचते सोचते अचानक विशाल मुस्करा पढता है। वो उठकर खड़ा होता है और अपनी कमर से तौलिया उठाकर फेंक देता है। आसमान की और सर उठाये वो अपने भयंकर लंड को देखता है
जिसका सुपाड़ा सुरख़ लाल होकर चमक रहा था। आज का दिन विशाल की जिंदगी का सबसे यादगार दिन साबित होने वाला था इसमें विशाल को रत्ती भर भी शक नहीं था। विशाल मुस्कराता कमरे से निकल सीढिया उतरने लगता है और फिर रसोई की और बढ़ता है यहां उसका भाग्य उसका इंतज़ार कर रहा था।
विशाल जिसने अभी अभी अपनी माँ के हुसन और जवानी से लबरेज जिस्म के दीदार किये थे अपने पूरे जिसम में रोमांच और अवेश के सैलाब को महसूस कर रहा था। अंजली के नग्न जिस्म ने उस प्यास को और भी तीव्र कर दिया था जिसने कई रातों से उसे सोने नहीं दिया था। उसने कभी उम्मीद नहीं की थी के उसकी माँ सच में उसके साथ नग्नता दिवस मानाने के लिए तयार हो जायेगी। वो तो उसे जानबूझ कर उकसाता था के वो पता कर सके उसकी माँ किस हद तक जा सकती है और अब जब उसकी माँ ने दिखा दिया था के उसके लिए कोई हद है ही नहीं तोह विशाल को अपने भाग्य पर यकीन नहीं हो रहा था। सोचते सोचते अचानक विशाल मुस्करा पढता है। वो उठकर खड़ा होता है और अपनी कमर से तौलिया उठाकर फेंक देता है। आसमान की और सर उठाये वो अपने भयंकर लंड को देखता है
जिसका सुपाड़ा सुरख़ लाल होकर चमक रहा था। आज का दिन विशाल की जिंदगी का सबसे यादगार दिन साबित होने वाला था इसमें विशाल को रत्ती भर भी शक नहीं था। विशाल मुस्कराता कमरे से निकल सीढिया उतरने लगता है और फिर रसोई की और बढ़ता है यहां उसका भाग्य उसका इंतज़ार कर रहा था।
अंजली विशाल के कदमो की आहट सुनती है तो उसके होंठो पर फिर से मुस्कुराहट फैल जाती है.
उसका चेहरा और सुर्ख़ हो उठता है,
वो अपने जिस्म की नस नस में छायी उस उत्तेजना से सिहरन सी महसूस करती है
उत्तेजना का ऐसा आवेश उसने शायद जिन्दगी में पहली बार महसूस किया था.
उत्तेजना का वो आवेश और भी तीव्र हो जाता है
जब माँ महसूस करती है के उसका बेटा उसे किचन के दरवाजे में खड़ा घूर रहा है.
विशाल रसोई की चौखट पर हाथ रखे अपने सामने उस औरत को घूर रहा था
जिसे उसने जिन्दगी में हज़ारों बार देखा था.
अपने जिन्दगी के हर दिन देखा था.
कभी एक आम घरेलु गृहणी की तरह तोह कभी एक पतिव्रता पत्नी की तरह
अपनी सेवा करते हुए तो कभी ममता का सुख बरसाते हुए एक स्नेहल, प्यारी माँ की तरह.
जिन्दगी के विविध क़िरदारों को निभाती वो औरत हमेशा एक परदे में होती थी.
वो पर्दा सिर्फ कपडे का नहीं होता था
बल्कि उसमे लाज, शरम, समाज और धरम की मान मर्यादा का पर्दा भी सामील था,
मगर आज वो औरत बेपरदा थी. शायद एक गृहणी का, एक पत्नी का बेपर्दा होना इतनी बड़ी बात नहीं होती
मगर एक माँ का नंगी होना बहुत बड़ी बात थी. और
बेटा अपनी नंगी माँ की ख़ूबसूरती में खो सा गया था. म

हज खूबसूरत कह देना शायद अंजलि के जानलेवा हुस्न का अपमान होता.
उसका तोह अंग अंग तराशा हुआ था.
विशाल की ऑंखे माँ के जिस्म के हर उतार चढाव, हर कटाव पर फ़िसलती जा रही थी.
उसकी सांसो की रफ़्तार उसकी दिल की धड़कनों की तरह तेज़ होती जा रही थी.
उसे खुद पर अस्चर्य हो रहा था
के उसका ध्यान अपनी माँ की ख़ूबसूरती पर पहले क्यों नहीं गया.
"अब अंदर भी आओगे या वही खड़े खड़े मुझे घूरते ही रहोगे"
अंजलि डाइनिंग टेबल पर प्लेट रखती हुयी कहती है और
फिर कप्स में चाय ड़ालने लगती है.
विशाल के चेहरे से, उसकी फ़ैली आँखों से,
उसके झटके मारते कठोर लंड से साफ़ साफ़ पता चलता था
की वो अपनी माँ की कामुक जवानी का दीवाना हो गया था.
"मैं तोह देख रहा था मेरी माँ कितनी सुन्दर है" विशाल अंजलि की तरफ बढ़ते हुए कहता है.
उसका चेहरा और सुर्ख़ हो उठता है,
वो अपने जिस्म की नस नस में छायी उस उत्तेजना से सिहरन सी महसूस करती है
उत्तेजना का ऐसा आवेश उसने शायद जिन्दगी में पहली बार महसूस किया था.
उत्तेजना का वो आवेश और भी तीव्र हो जाता है
जब माँ महसूस करती है के उसका बेटा उसे किचन के दरवाजे में खड़ा घूर रहा है.
विशाल रसोई की चौखट पर हाथ रखे अपने सामने उस औरत को घूर रहा था
जिसे उसने जिन्दगी में हज़ारों बार देखा था.
अपने जिन्दगी के हर दिन देखा था.
कभी एक आम घरेलु गृहणी की तरह तोह कभी एक पतिव्रता पत्नी की तरह
अपनी सेवा करते हुए तो कभी ममता का सुख बरसाते हुए एक स्नेहल, प्यारी माँ की तरह.
जिन्दगी के विविध क़िरदारों को निभाती वो औरत हमेशा एक परदे में होती थी.
वो पर्दा सिर्फ कपडे का नहीं होता था
बल्कि उसमे लाज, शरम, समाज और धरम की मान मर्यादा का पर्दा भी सामील था,
मगर आज वो औरत बेपरदा थी. शायद एक गृहणी का, एक पत्नी का बेपर्दा होना इतनी बड़ी बात नहीं होती
मगर एक माँ का नंगी होना बहुत बड़ी बात थी. और
बेटा अपनी नंगी माँ की ख़ूबसूरती में खो सा गया था. म
हज खूबसूरत कह देना शायद अंजलि के जानलेवा हुस्न का अपमान होता.
उसका तोह अंग अंग तराशा हुआ था.
विशाल की ऑंखे माँ के जिस्म के हर उतार चढाव, हर कटाव पर फ़िसलती जा रही थी.
उसकी सांसो की रफ़्तार उसकी दिल की धड़कनों की तरह तेज़ होती जा रही थी.
उसे खुद पर अस्चर्य हो रहा था
के उसका ध्यान अपनी माँ की ख़ूबसूरती पर पहले क्यों नहीं गया.
"अब अंदर भी आओगे या वही खड़े खड़े मुझे घूरते ही रहोगे"
अंजलि डाइनिंग टेबल पर प्लेट रखती हुयी कहती है और
फिर कप्स में चाय ड़ालने लगती है.
विशाल के चेहरे से, उसकी फ़ैली आँखों से,
उसके झटके मारते कठोर लंड से साफ़ साफ़ पता चलता था
की वो अपनी माँ की कामुक जवानी का दीवाना हो गया था.
"मैं तोह देख रहा था मेरी माँ कितनी सुन्दर है" विशाल अंजलि की तरफ बढ़ते हुए कहता है.
"ज्यादा बाते न बना...मुझे अच्छी तरह से मालूम है में कैसी दीखती हु...."
अंजलि टेबल पर चाय रखकर सीधी होती है
तोह विशाल उसके पीछे खडा होकर उससे चिपक जाता है.
विशाल अपनी माँ की कमर पर बाहें लपेटता उससे सट जाता है.

त्वचा से त्वचा का स्पर्श होते ही माँ बेटे के जिस्म में झुरझुरी सी दौड जाती है.
"उम्म्म क्या करते हो...छोड़ो ना......" विशाल के लंड को अपने नितम्बो में घुसते महसूस कर अंजलि के मुंह से सिसकारी निकल जाती है.
"मा तुम सच में बहुत सुन्दर हो.....मुझे हैरानी हो रही है
आज तक मेंरा ध्यान क्यों नहीं गया की मेरी माँ इतनी खूबसूरत है"
विशाल अंजलि के पेट पर हाथ बांध अपने तपते होंठ उसके कंधे से सटा देता है.
उधऱ उसका बेचैन लंड अंजली के दोनों नितम्बो के बिच झटके खा रहा था.
विशाल अपनी कमर को थोड़ा सा दबाता है
तो लंड का सुपडा छेद पर हल्का सा दवाब देता है.

अंजलि फिर से सिसक उठती है.
"उनननहहः.......तुम आजकल के छोकरे भी ना, बहुत चालक बनते हो......
सोचते होगे थोड़ी सी झूठी तारीफ करके माँ को पटा लोगे.......
मगर यहाँ तुम्हारी दाल नहीं गलने वालि"
अंजलि अपने पेट पर कसी हुयी विशाल की बाँहों को सहलाती उलाहना देती है
और अपना सर पीछे की तरफ मोड़ती है.
विशाल तुरंत अपने होंठ अपनी माँ के गालो पर जमा देता है
और ज़ोरदार चुम्बन लेता है.
"उम्म्माँणह्ह्हह्ह्......अब बस भी करो" अंजलि बिखरती सांसो के बिच कहती है.
विशाल, अंजलि के कन्धो को पकड़ उसे अपनी तरफ घुमाता है.

अंजलि के घूमते ही विशाल उसकी पतली कमर को थाम उसकी आँखों में देखता है.
"मैंने झूठ नहीं कहा था माँ...तुम लाखों में एक हो.....तुम्हे इस रूप में देखकर तो
कोई जोगी भी भोगी बन जाए" विशाल नज़र निची करके अंजलि के भारी मम्मो को देखता कहता है
जो उसकी तेज़ सांसो के साथ ऊपर निचे हो रहे थे.
अंजलि के गाल और और भी सुर्ख़ हो जाते है.
दोनों के जिस्मो में नाम मात्र का फरक था.
अंजलि के निप्पल्स लगभग उसके बेटे की छाती को छू रहे थे.
अंजलि टेबल पर चाय रखकर सीधी होती है
तोह विशाल उसके पीछे खडा होकर उससे चिपक जाता है.
विशाल अपनी माँ की कमर पर बाहें लपेटता उससे सट जाता है.

त्वचा से त्वचा का स्पर्श होते ही माँ बेटे के जिस्म में झुरझुरी सी दौड जाती है.
"उम्म्म क्या करते हो...छोड़ो ना......" विशाल के लंड को अपने नितम्बो में घुसते महसूस कर अंजलि के मुंह से सिसकारी निकल जाती है.
"मा तुम सच में बहुत सुन्दर हो.....मुझे हैरानी हो रही है
आज तक मेंरा ध्यान क्यों नहीं गया की मेरी माँ इतनी खूबसूरत है"
विशाल अंजलि के पेट पर हाथ बांध अपने तपते होंठ उसके कंधे से सटा देता है.
उधऱ उसका बेचैन लंड अंजली के दोनों नितम्बो के बिच झटके खा रहा था.
विशाल अपनी कमर को थोड़ा सा दबाता है
तो लंड का सुपडा छेद पर हल्का सा दवाब देता है.

अंजलि फिर से सिसक उठती है.
"उनननहहः.......तुम आजकल के छोकरे भी ना, बहुत चालक बनते हो......
सोचते होगे थोड़ी सी झूठी तारीफ करके माँ को पटा लोगे.......
मगर यहाँ तुम्हारी दाल नहीं गलने वालि"
अंजलि अपने पेट पर कसी हुयी विशाल की बाँहों को सहलाती उलाहना देती है
और अपना सर पीछे की तरफ मोड़ती है.
विशाल तुरंत अपने होंठ अपनी माँ के गालो पर जमा देता है
और ज़ोरदार चुम्बन लेता है.
"उम्म्माँणह्ह्हह्ह्......अब बस भी करो" अंजलि बिखरती सांसो के बिच कहती है.
विशाल, अंजलि के कन्धो को पकड़ उसे अपनी तरफ घुमाता है.

अंजलि के घूमते ही विशाल उसकी पतली कमर को थाम उसकी आँखों में देखता है.
"मैंने झूठ नहीं कहा था माँ...तुम लाखों में एक हो.....तुम्हे इस रूप में देखकर तो
कोई जोगी भी भोगी बन जाए" विशाल नज़र निची करके अंजलि के भारी मम्मो को देखता कहता है
जो उसकी तेज़ सांसो के साथ ऊपर निचे हो रहे थे.
अंजलि के गाल और और भी सुर्ख़ हो जाते है.
दोनों के जिस्मो में नाम मात्र का फरक था.
अंजलि के निप्पल्स लगभग उसके बेटे की छाती को छू रहे थे.
चलो अब नाश्ता करते है....कितनी...." अंजलि से वो कामोउत्तेजना बर्दाशत नहीं हो रही थी.
उसने बेटे को टालना चाहा तोह विशाल ने उसकी बात को बिच में ही काट दिया.
विशाल ने आगे बढ़कर अपने और अपनी माँ के बिच की रही सही दूरी भी ख़तम कर दि.
अंजलि की पीठ पर बाहें कस कर उसने उसे ज़ोर से अपने बदन से भिंच लिया
. अंजलि का पूरा वजूद कांप उठा. उसके मम्मो के निप्पल बेटे की छाती को रगडने लगे
और उधर विशाल का लोहे की तरह कठोर लंड सीधा अपनी माँ की चुत से जा टकराया.

"उऊंह्....बेटा......हाईइ......विशालल......" अंजलि ने ऐतराज जताना चाहा तो
विशाल ने अपने होंठ उसके होंठो पर चिपका दीये.
विशाल किसी प्यासे भँवरे की तरह अपनी माँ के होंठो के फूलो को चुस रहा था.
अंजलि कांप रही थी. चुत पूरी गिली हो गयी थी.
उस मोठे तगड़े लंड की रगढ ने उसकी कमोत्तेजना को कई गुणा बढा दिया था.
विशाल अपने लंड का दवाब माँ की चुत पर लगातार बढता जा रहा था.
वो बुरी तरह से अंजलि के होंठो को अपने होंठो में भर कर निचोड़ रहा था.
उसका खुद पर क़ाबू लगभग ख़तम हो चुका था
और अंजलि ने इस बात को महसूस कर लिया के अगर
वो कुछ देर और बेटे से होंठ चुस्वाति वहीँ उसकी बाँहों में खड़ी रही तो
कुछ पलों बाद उसके बेटे का लंड उसकी चुत में घुस जाना तैय था.
या तोह वो अभी चुदवाना नहीं चाहती थी या फिर पहली बार वो किचन में यूँ खड़े खड़े बेटे से चुदवाने के लिए तैयार नहीं थी.
वजह कुछ भी हो उसने ज़ोर लगा कर विशाल के चेहरे को अपने चेहरे से हटाया
और लम्बी सांस ली. विशाल ने फिर से अपना मुंह आगे बढाकर
अंजलि के होंठो को दबोचने की कोशिश की मगर अंजलि उसकी गिरफ्त से निकल गयी.
"चलो नाश्ता करो........चाय ठण्डी हो रही है" अंजलि ने विशाल की नाराज़गी को दरकिनार करते हुए कहा. वो डाइनिंग टेबल की कुरसी खींच बैठ गयी और विशाल को भी अपनी पास वाली कुरसी पर बैठने का इशारा किया.
"मुझे चाय नहीं पीनि......." विशाल माँ को बनावटी ग़ुस्से से देखता हुआ कहता है.
"हूँह्......तो क्या पीना है मेरे लाल को.....बताना....अभी बना देती हु......" अंजलि बेटे के चेहरे को प्यार से सहलाती इस अंदाज़ में कहती है जैसे वो कोई छोटा सा बच्चा हो.
"मुझे दूध पीना है......" विशाल भी कम नहीं था. वो अंजलि के गोल मटोल, मोठे मोठे मम्मो को घूरता होंठो पर जीभ फेरता है....."मम्मी मुझे दूध पीना है...पिलाओ ना मम्मी..." अंजलि की हँसी छूट जाती है.
उसने बेटे को टालना चाहा तोह विशाल ने उसकी बात को बिच में ही काट दिया.
विशाल ने आगे बढ़कर अपने और अपनी माँ के बिच की रही सही दूरी भी ख़तम कर दि.
अंजलि की पीठ पर बाहें कस कर उसने उसे ज़ोर से अपने बदन से भिंच लिया
. अंजलि का पूरा वजूद कांप उठा. उसके मम्मो के निप्पल बेटे की छाती को रगडने लगे
और उधर विशाल का लोहे की तरह कठोर लंड सीधा अपनी माँ की चुत से जा टकराया.

"उऊंह्....बेटा......हाईइ......विशालल......" अंजलि ने ऐतराज जताना चाहा तो
विशाल ने अपने होंठ उसके होंठो पर चिपका दीये.
विशाल किसी प्यासे भँवरे की तरह अपनी माँ के होंठो के फूलो को चुस रहा था.
अंजलि कांप रही थी. चुत पूरी गिली हो गयी थी.
उस मोठे तगड़े लंड की रगढ ने उसकी कमोत्तेजना को कई गुणा बढा दिया था.
विशाल अपने लंड का दवाब माँ की चुत पर लगातार बढता जा रहा था.
वो बुरी तरह से अंजलि के होंठो को अपने होंठो में भर कर निचोड़ रहा था.
उसका खुद पर क़ाबू लगभग ख़तम हो चुका था
और अंजलि ने इस बात को महसूस कर लिया के अगर
वो कुछ देर और बेटे से होंठ चुस्वाति वहीँ उसकी बाँहों में खड़ी रही तो
कुछ पलों बाद उसके बेटे का लंड उसकी चुत में घुस जाना तैय था.
या तोह वो अभी चुदवाना नहीं चाहती थी या फिर पहली बार वो किचन में यूँ खड़े खड़े बेटे से चुदवाने के लिए तैयार नहीं थी.
वजह कुछ भी हो उसने ज़ोर लगा कर विशाल के चेहरे को अपने चेहरे से हटाया
और लम्बी सांस ली. विशाल ने फिर से अपना मुंह आगे बढाकर
अंजलि के होंठो को दबोचने की कोशिश की मगर अंजलि उसकी गिरफ्त से निकल गयी.
"चलो नाश्ता करो........चाय ठण्डी हो रही है" अंजलि ने विशाल की नाराज़गी को दरकिनार करते हुए कहा. वो डाइनिंग टेबल की कुरसी खींच बैठ गयी और विशाल को भी अपनी पास वाली कुरसी पर बैठने का इशारा किया.
"मुझे चाय नहीं पीनि......." विशाल माँ को बनावटी ग़ुस्से से देखता हुआ कहता है.
"हूँह्......तो क्या पीना है मेरे लाल को.....बताना....अभी बना देती हु......" अंजलि बेटे के चेहरे को प्यार से सहलाती इस अंदाज़ में कहती है जैसे वो कोई छोटा सा बच्चा हो.
"मुझे दूध पीना है......" विशाल भी कम नहीं था. वो अंजलि के गोल मटोल, मोठे मोठे मम्मो को घूरता होंठो पर जीभ फेरता है....."मम्मी मुझे दूध पीना है...पिलाओ ना मम्मी..." अंजलि की हँसी छूट जाती है.
ख़ाना खाओ और अभी चाय पीकर काम चलओ.....दूध की बाद में सोचते है" अंजलि बेटे की तरफ थाली और चाय का कप बढाती कहती है.
"देखिये....अभी अभी प्रॉमिस करके मुकर गयी......माँ तुम कितनी बुरी हो" विशाल ने बच्चे की तरह ज़िद करते हुए कहा.
"दूध पीना है तो पहले घर के काम में हाथ बटाओ......" अंजलि चाय की चुस्किया लेती कहती है.
"बाद में तुम मुकर जाओगी.........मुझे मालूम है.......पिछले तीन दिनों से तुम कह रही थी के फंक्शन निपट जाने दो फिर तुम मुझे नहीं रोकोगी......कल रात को भी तुमने प्रॉमिस किया था याद है ना....सूबह को अपने पापा को काम पर जाने देना, फिर जैसा तुम्हारा दिल चाहे मुझे प्यार करना....अब देखो......झूठि" विशाल मुंह बनाता है.
"उम्म्माँणहः......अभी इतने समय से मुझसे चिपके क्या कर रहे थे......" अंजलि आँखों को नचाती बेटे से पूछती है.
"वो कोई प्यार था......तुमने तोह कुछ करने ही नहीं दिया"

"बाते न बनाओ....नाश्ता ख़तम करो...... काम शुरू करना है.......जीतनी जल्दी काम ख़तम होगा उतनी जल्दी तुम्हे मौका मिलेंगा.......फिर दूध पीना या जो तुम्हारे दिल में आये वो करना....."
"मैं जो चाहे करुँगा.....तुम नहीं रोकोगी..." विशाल जानता था उसे आज उसे उसकी माँ रोक्ने वाली नहीं है मगर माँ के साथ वो मासूम सा खेल खेलने में भी एक अलग ही मज़ा था.
"जो तुम चाहौ....जैसे तुम चाहौ...जीतनी बार तुम चाहौ" अंजलि विशाल को आंख मारती कहती है.
विशाल बचे हुए खाने के दो तीन निवाले बना जल्दी जल्दी ख़तम करता है और ठण्डी चाय को एक ही घूँट में ख़तम कर उठ कर खडा हो जाता है. वो अंजलि के पीछे जाकर उसके कंधे थाम कुरसी से उठाता है.
"चलो माँ...बहुत काम पढ़ा है.......पहले घर का काम ख़तम कर लू फिर तुम्हारा काम करता हु...बताओ कहाँ से शुरु करना है" विशाल हँसता हुआ कहता है. अंजलि भी हंस पड़ती है.
"बहुत जल्दी है मेरा काम करने की.......चलो पहले किचन से ही शुरुआत करते है" कहते हुए अंजलि टेबल पर रखी प्लेट और कप्स को उठाने के लिए झुकति है तोह उसके गोल गोल उभरे हुए नितम्ब और भी उभर उठते है. विशाल एक नितम्ब को सहलाता है तो दूसरे पर हलके से चपट लगता है.
"बदमाश......" अंजलि हँसते हुए सीधी होती है और सिंक की और बढ़ती है.
"देखिये....अभी अभी प्रॉमिस करके मुकर गयी......माँ तुम कितनी बुरी हो" विशाल ने बच्चे की तरह ज़िद करते हुए कहा.
"दूध पीना है तो पहले घर के काम में हाथ बटाओ......" अंजलि चाय की चुस्किया लेती कहती है.
"बाद में तुम मुकर जाओगी.........मुझे मालूम है.......पिछले तीन दिनों से तुम कह रही थी के फंक्शन निपट जाने दो फिर तुम मुझे नहीं रोकोगी......कल रात को भी तुमने प्रॉमिस किया था याद है ना....सूबह को अपने पापा को काम पर जाने देना, फिर जैसा तुम्हारा दिल चाहे मुझे प्यार करना....अब देखो......झूठि" विशाल मुंह बनाता है.
"उम्म्माँणहः......अभी इतने समय से मुझसे चिपके क्या कर रहे थे......" अंजलि आँखों को नचाती बेटे से पूछती है.
"वो कोई प्यार था......तुमने तोह कुछ करने ही नहीं दिया"

"बाते न बनाओ....नाश्ता ख़तम करो...... काम शुरू करना है.......जीतनी जल्दी काम ख़तम होगा उतनी जल्दी तुम्हे मौका मिलेंगा.......फिर दूध पीना या जो तुम्हारे दिल में आये वो करना....."
"मैं जो चाहे करुँगा.....तुम नहीं रोकोगी..." विशाल जानता था उसे आज उसे उसकी माँ रोक्ने वाली नहीं है मगर माँ के साथ वो मासूम सा खेल खेलने में भी एक अलग ही मज़ा था.
"जो तुम चाहौ....जैसे तुम चाहौ...जीतनी बार तुम चाहौ" अंजलि विशाल को आंख मारती कहती है.
विशाल बचे हुए खाने के दो तीन निवाले बना जल्दी जल्दी ख़तम करता है और ठण्डी चाय को एक ही घूँट में ख़तम कर उठ कर खडा हो जाता है. वो अंजलि के पीछे जाकर उसके कंधे थाम कुरसी से उठाता है.
"चलो माँ...बहुत काम पढ़ा है.......पहले घर का काम ख़तम कर लू फिर तुम्हारा काम करता हु...बताओ कहाँ से शुरु करना है" विशाल हँसता हुआ कहता है. अंजलि भी हंस पड़ती है.
"बहुत जल्दी है मेरा काम करने की.......चलो पहले किचन से ही शुरुआत करते है" कहते हुए अंजलि टेबल पर रखी प्लेट और कप्स को उठाने के लिए झुकति है तोह उसके गोल गोल उभरे हुए नितम्ब और भी उभर उठते है. विशाल एक नितम्ब को सहलाता है तो दूसरे पर हलके से चपट लगता है.
"बदमाश......" अंजलि हँसते हुए सीधी होती है और सिंक की और बढ़ती है.
“बदमाश”......" अंजलि हँसते हुए सीधी होती है और सिंक की और बढ़ती है.
अंजलि झूठे बर्तन उठा उठा कर सिंक में भरने लगती है. मेहमानो के यूज़ के लिए उन्होनो स्टोर से काफी सारे बर्तन निकाले थे जिनका किचन के एक कोने में अम्बार सा लगा था. सभी बर्तन एक साथ सिंक में समां नहीं सकते थे इसलिए अंजलि ने तीन भाग बनाकर बर्तन धोने का निश्चय किया. सिंक में से कप्स, गिलास और प्लेट्स को विशाल गीला करके अंजलि को पकडाने लगा और वो डिशवाशर लिक्विड लगा लगा कर वापस सिंक में रखने लगी. माँ बेटे के बिच अजब तालमेल था. बिना कुछ भी बोले दोनों माँ बेटा एक दूसरे के मन की बात समज जाते थे. दोनों बेहद्द उत्साहित और जोश में थे. माँ बेटे के बिच इस अनोखे समन्वय के कारन काम बेहद्द तेज़ी से होने लगा. और काम की रफ़्तार के साथ साथ विशाल की शरारतें भी रफ़्तार पकडने लगी.
अंजलि और विशाल दोनों सिंक के सामने खड़े थे और दोनों के जिस्म साइड से जुड़े हुए थे. विशाल जब भी मौका मिलता अपने जिस्म को ज़ोर से अंजलि के जिस्म के साथ दबा देता. कभी वो अपने पैरो से माँ के पैरों को दबाता तोह कभी पंजे की उँगलियों से बेहद उत्तेजक तरीके से अंजलि की गोरी मुलायम टांग को सहलाता. उसके पैरो की उँगलियाँ अपनी माँ के घुटने से लेकर एड़ी तक फिसलती. मख्खन सी मुलायम त्वचा पर विशाल का खुरदरा पैर अंजलि के जिसम में अलग ही सनसनी भर देता. जब अंजलि का ध्यान थोड़ा हट जाता तो वो शरारती बेटा अपनी कुहनी से अंजलि के गोल मटोल भारी मम्मे को टोहता. एक बार ऐसे ही जब अंजलि धुले हुए बर्तन उठाकर एक तरफ रख रही थी तो विशाल ने कुहनी से माँ के मम्मे को अंदर उसके निप्पल के ऊपर दबाया.

"मा देखो ना यह गिलास साफ़ नहीं हो रहा. इसकी तली में कुछ काला सा लगा हुआ है...." विशाल अंजलि के मम्मे को ज़ोर से दबाता गिलास के अंदर झाँकता यूँ दिखावा करता है जैसे उसे खबर ही नहीं थी के वो अपनी माँ के मम्मे को दबा रहा है.
"अन्दर तक घूसा कर रगड़ो बेटा. ऐसे नहीं साफ़ होगा यह......" अंजलि भी कहाँ कम थी वो अपने हाथ से विशाल के पेट को सहलाती है. अंजलि के हाथ और विशाल के लंड में नाममात्र का फरक था. माँ के हाथ का स्पर्श पाकर विशाल अपनी कमर को कुछ ऊँचा उठाता है मगर अंजलि पूरा ध्यान रखती है की विशाल का लंड उसके हाथ को टच न करे. "पूरा अंदर ड़ालना पडेगा.....जड़ तक पहुंचा कर आच्छे से रगडना पड़ेगा तभी काम बनेगा" अंजलि विशाल के कानो में सिसकारती हुयी बोलती है. अंजलि की हरकत के कारन विशाल का लंड कुछ और सख्त हो गया था.
एक घंटे से भी पहले सभी बर्तन धोये जा चुके थे. अंजलि किचन में जरूरी बर्तनो को रखकर बाकि सभी स्टोर में रखवा देती है. काउंटर और फर्श को साफ़ करके अंजलि सिंक पर हाथ धोती है तोह विशाल भी उसके पास आ जाता है.
अंजलि झूठे बर्तन उठा उठा कर सिंक में भरने लगती है. मेहमानो के यूज़ के लिए उन्होनो स्टोर से काफी सारे बर्तन निकाले थे जिनका किचन के एक कोने में अम्बार सा लगा था. सभी बर्तन एक साथ सिंक में समां नहीं सकते थे इसलिए अंजलि ने तीन भाग बनाकर बर्तन धोने का निश्चय किया. सिंक में से कप्स, गिलास और प्लेट्स को विशाल गीला करके अंजलि को पकडाने लगा और वो डिशवाशर लिक्विड लगा लगा कर वापस सिंक में रखने लगी. माँ बेटे के बिच अजब तालमेल था. बिना कुछ भी बोले दोनों माँ बेटा एक दूसरे के मन की बात समज जाते थे. दोनों बेहद्द उत्साहित और जोश में थे. माँ बेटे के बिच इस अनोखे समन्वय के कारन काम बेहद्द तेज़ी से होने लगा. और काम की रफ़्तार के साथ साथ विशाल की शरारतें भी रफ़्तार पकडने लगी.
अंजलि और विशाल दोनों सिंक के सामने खड़े थे और दोनों के जिस्म साइड से जुड़े हुए थे. विशाल जब भी मौका मिलता अपने जिस्म को ज़ोर से अंजलि के जिस्म के साथ दबा देता. कभी वो अपने पैरो से माँ के पैरों को दबाता तोह कभी पंजे की उँगलियों से बेहद उत्तेजक तरीके से अंजलि की गोरी मुलायम टांग को सहलाता. उसके पैरो की उँगलियाँ अपनी माँ के घुटने से लेकर एड़ी तक फिसलती. मख्खन सी मुलायम त्वचा पर विशाल का खुरदरा पैर अंजलि के जिसम में अलग ही सनसनी भर देता. जब अंजलि का ध्यान थोड़ा हट जाता तो वो शरारती बेटा अपनी कुहनी से अंजलि के गोल मटोल भारी मम्मे को टोहता. एक बार ऐसे ही जब अंजलि धुले हुए बर्तन उठाकर एक तरफ रख रही थी तो विशाल ने कुहनी से माँ के मम्मे को अंदर उसके निप्पल के ऊपर दबाया.

"मा देखो ना यह गिलास साफ़ नहीं हो रहा. इसकी तली में कुछ काला सा लगा हुआ है...." विशाल अंजलि के मम्मे को ज़ोर से दबाता गिलास के अंदर झाँकता यूँ दिखावा करता है जैसे उसे खबर ही नहीं थी के वो अपनी माँ के मम्मे को दबा रहा है.
"अन्दर तक घूसा कर रगड़ो बेटा. ऐसे नहीं साफ़ होगा यह......" अंजलि भी कहाँ कम थी वो अपने हाथ से विशाल के पेट को सहलाती है. अंजलि के हाथ और विशाल के लंड में नाममात्र का फरक था. माँ के हाथ का स्पर्श पाकर विशाल अपनी कमर को कुछ ऊँचा उठाता है मगर अंजलि पूरा ध्यान रखती है की विशाल का लंड उसके हाथ को टच न करे. "पूरा अंदर ड़ालना पडेगा.....जड़ तक पहुंचा कर आच्छे से रगडना पड़ेगा तभी काम बनेगा" अंजलि विशाल के कानो में सिसकारती हुयी बोलती है. अंजलि की हरकत के कारन विशाल का लंड कुछ और सख्त हो गया था.
एक घंटे से भी पहले सभी बर्तन धोये जा चुके थे. अंजलि किचन में जरूरी बर्तनो को रखकर बाकि सभी स्टोर में रखवा देती है. काउंटर और फर्श को साफ़ करके अंजलि सिंक पर हाथ धोती है तोह विशाल भी उसके पास आ जाता है.
1 Comments
Mast stories likhta hai tu
ReplyDeleteBut ise or thoda luma kar sakta hai tu America vala parts bhi likho bhai thoda or deep likho sex k baad bhi sex ki kahani banao