मेरी माँ अंजलि -10
विशाल के पिता ने सलाह दी के पहले आराम किया जाये क्योंके सभी बहुत थके हुए थे और सभी की ऑंखे नींद से बोझिल थी, उसके बाद आगे की सोची जाएगी. सभ सहमत थे. विशाल ऊपर अपने कमरे में आ गया और आते ही बेड पर ढेर हो गया. वो बुरी तरह से थका हुआ था. बदन दर्द कर रहा था. मगर अब वो बेहद्द खुश था. वो अपने अंदर एक अजीब सी शान्ति महसूस कर रहा था. उसकी बेचैनी अब दूर हो चुकी थी. उसे उम्मीद थी के शायद उसकी माँ उसे मिलने के लिए आएगी. लेकिन अगर वो नहीं भी आती तो वो रात का इंतज़ार कर सकता था. रात को तोह वो जरूर आने वाली थी. जिस बात का उसे डर था के कोई रिश्तेदार कोई दोस्त कहीं उनके घर रुक न जाये वो डर अब दूर हो चुका था. वो दरवाजे की तरफ देखता है और कल्पना करता है जैसे अभी वो दरवाजा खुलेगा और उसकी माँ अंदर आएगी, मुस्कराती हुयी और वो उसे बाँहों में भर लेग, दिल खोलकर उसे प्यार करेंगा. अब उनके बिच आने वाला कोई नहीं था. उस एहसास की कल्पना में विशाल अपनी ऑंखे बंद कर लेता है
करवट लेकर विशाल अपनी ऑंखे खोलता है.
उसकी आँखों में नींद भरी हुयी थी सर भारी था.
वो कुछ लम्हे ऑंखे बंद रखने के बाद फिर से ऑंखे खोलता है
तोह उसकी निगाह सामने दिवार पर टंगे वाल क्लॉक पर जाती है तो उसे एहसास होता है वो पिछले तीन घंटे से सो रहा था.
मगर अभी भी नींद उस पर भरी थी. वो फिर से ऑंखे बंद ही करने वाला था के तभी उसे अपने पिता की आवाज़ सुनायी देती है.
आवाज़ से लग रहा था के वो बाहर ऑंगन में किसी से बात कर रहे थे
.विशाल कुछ पलों के लिए लेटा रहा मगर अंत-ताह वो उठ खड़ा हुआ और खिड़की के पास गया.
निचे ऑंगन में उसकी माँ और उसके पिता सफायी में व्यस्त थे.
विशाल को थोड़ी शर्मिंदगी सी महसूस होती है. वो बाथरूम में जाकर अपना मुंह धोता है
और फिर निचे चला जाता है. उसके पिता उसे देखकर कहते हैं के उसे आराम करना चाहिए था
मगर विशाल अपने बाप की बात अनसुनी कर देता है
. सफाई में हाथ बटाते हुए विशाल का पूरा धयान अपनी माँ की और ही था.
उसकी आँखों में नींद भरी हुयी थी सर भारी था.
वो कुछ लम्हे ऑंखे बंद रखने के बाद फिर से ऑंखे खोलता है
तोह उसकी निगाह सामने दिवार पर टंगे वाल क्लॉक पर जाती है तो उसे एहसास होता है वो पिछले तीन घंटे से सो रहा था.
मगर अभी भी नींद उस पर भरी थी. वो फिर से ऑंखे बंद ही करने वाला था के तभी उसे अपने पिता की आवाज़ सुनायी देती है.
आवाज़ से लग रहा था के वो बाहर ऑंगन में किसी से बात कर रहे थे
.विशाल कुछ पलों के लिए लेटा रहा मगर अंत-ताह वो उठ खड़ा हुआ और खिड़की के पास गया.
निचे ऑंगन में उसकी माँ और उसके पिता सफायी में व्यस्त थे.
विशाल को थोड़ी शर्मिंदगी सी महसूस होती है. वो बाथरूम में जाकर अपना मुंह धोता है
और फिर निचे चला जाता है. उसके पिता उसे देखकर कहते हैं के उसे आराम करना चाहिए था
मगर विशाल अपने बाप की बात अनसुनी कर देता है
. सफाई में हाथ बटाते हुए विशाल का पूरा धयान अपनी माँ की और ही था.
जो खुद बार बार उसकी और देख रही थी.

अंजलि की मुस्कराहट बेटे को ढाढस बढ़ा रही थी जैसे वो उसे कह रही हो के
अब उनके बिच आने वाला कोई नहीं था के अब वो अपने बेटे को खूब प्यार करेगि.
विशाल का धयान अपनी माँ के चेहर, उसके उभरे सीने पर जाता और
जब भी वो झुकति तो विशाल की ऑंखे अपनी माँ के गोल उभरे नितम्बो पर चिपक जाती.

एक बार जब अंजलि का पति उसके सामने था
और उसका धयान अपनी बीवी पर नहीं था
तो अंजलि झुक गयी, मगर इस बार उसके झुकने का अंदाज़ कुछ बदला सा था.
अंजलि पूरी तरह झुक गयी थी और उसके हाथ अपने पांव से कुछ ही फसले पर थे,
उसके नितम्ब हवा में कुछ ज्यादा ही ऊँचे और उभरे हुए थे.
विशाल को वो पोजीशन बहुत पसंद थी. अंजलि ने अपनी पति की और देखकर फिर पीछे अपने बेटे पर निगाह डाली
जो मुंह बाएं उसके नितम्बो को घूर रहा था.
अंजलि के चेहरे पर शरारती सी मुस्कान फैल जाती है.
वो वहां घोड़ी बनी जैसे अपने बेटे को आमन्त्रित कर रही थी

और विशाल का दिल कर रहा था के वो उसी समय जाकर अपनी माँ को पीछे से पकड़ ले और.......... उसके बाद वो शरारती माँ जानबूझकर अपने बेटे के सामने कभी अपना सिना उभारती तोह कभी अपने नितम्ब. अपनी माँ की हरकते देख विशाल का बुरा हाल हो रहा था. उसकी पेण्ट उसके जिपर के स्थान पर फुलती जा रही थी और उसे अपने पिता की नज़रों से बचने के लिए वो बार बार अपने लंड को एडजस्ट कर रहा था.
सात बजे तक ऑंगन की सफायी का काम निपट चुका था. आँगन अब पहले की तरह साफ़ था. अब अंदर की सफायी बाकि बचि थी. अन्दर सारा सामान अस्त व्यस्त था. सारा फर्नीचर इधर उधर हो गया था. विशाल का पिता चाहता था के वो आज ही सारा काम निपटा दे मगर अंजलि ने अपने पति को मना कर दिया. उसने कहा के अगले दिन वो और विशाल मिल कर अंदर की सफायी कर लेगी. उनके पास ढेरों वक्त होगा. विशाल का पिता बेटे को और तकलीफ नहीं देना चाहता था मगर विशाल ने अपने पिता को अस्वासन दिया की वो अपनी माँ के साथ मिलकर अगले दिन घर को अंदर से पूरी तरह साफ़ कर डेगा. विशाल का पिता मान जाता है. इसके बाद खाने की तयारी होती है. अंजलि दोपहर के बचे खाने को गरम करने लगती है और दोनों बाप बेटा अपने कमरों में नहाने चले जाते है.

अंजलि की मुस्कराहट बेटे को ढाढस बढ़ा रही थी जैसे वो उसे कह रही हो के
अब उनके बिच आने वाला कोई नहीं था के अब वो अपने बेटे को खूब प्यार करेगि.
विशाल का धयान अपनी माँ के चेहर, उसके उभरे सीने पर जाता और
जब भी वो झुकति तो विशाल की ऑंखे अपनी माँ के गोल उभरे नितम्बो पर चिपक जाती.

एक बार जब अंजलि का पति उसके सामने था
और उसका धयान अपनी बीवी पर नहीं था
तो अंजलि झुक गयी, मगर इस बार उसके झुकने का अंदाज़ कुछ बदला सा था.
अंजलि पूरी तरह झुक गयी थी और उसके हाथ अपने पांव से कुछ ही फसले पर थे,
उसके नितम्ब हवा में कुछ ज्यादा ही ऊँचे और उभरे हुए थे.
विशाल को वो पोजीशन बहुत पसंद थी. अंजलि ने अपनी पति की और देखकर फिर पीछे अपने बेटे पर निगाह डाली
जो मुंह बाएं उसके नितम्बो को घूर रहा था.
अंजलि के चेहरे पर शरारती सी मुस्कान फैल जाती है.
वो वहां घोड़ी बनी जैसे अपने बेटे को आमन्त्रित कर रही थी

और विशाल का दिल कर रहा था के वो उसी समय जाकर अपनी माँ को पीछे से पकड़ ले और.......... उसके बाद वो शरारती माँ जानबूझकर अपने बेटे के सामने कभी अपना सिना उभारती तोह कभी अपने नितम्ब. अपनी माँ की हरकते देख विशाल का बुरा हाल हो रहा था. उसकी पेण्ट उसके जिपर के स्थान पर फुलती जा रही थी और उसे अपने पिता की नज़रों से बचने के लिए वो बार बार अपने लंड को एडजस्ट कर रहा था.
सात बजे तक ऑंगन की सफायी का काम निपट चुका था. आँगन अब पहले की तरह साफ़ था. अब अंदर की सफायी बाकि बचि थी. अन्दर सारा सामान अस्त व्यस्त था. सारा फर्नीचर इधर उधर हो गया था. विशाल का पिता चाहता था के वो आज ही सारा काम निपटा दे मगर अंजलि ने अपने पति को मना कर दिया. उसने कहा के अगले दिन वो और विशाल मिल कर अंदर की सफायी कर लेगी. उनके पास ढेरों वक्त होगा. विशाल का पिता बेटे को और तकलीफ नहीं देना चाहता था मगर विशाल ने अपने पिता को अस्वासन दिया की वो अपनी माँ के साथ मिलकर अगले दिन घर को अंदर से पूरी तरह साफ़ कर डेगा. विशाल का पिता मान जाता है. इसके बाद खाने की तयारी होती है. अंजलि दोपहर के बचे खाने को गरम करने लगती है और दोनों बाप बेटा अपने कमरों में नहाने चले जाते है.
नहाते हुए विशाल जब बदन पर साबून लगाते हुए अपने लंड को साबून लगता है
तोह वो अपने लंड को सहलाने लगता है.

उसे कुछ देर पहले ऑंगन में सफायी के दोरान अपनी माँ की हरकतें याद आती है तो कुछ ही पलों में उसका लौडा पत्थर की तरह सखत होकर झटके मारने लगा. अपनी माँ के मम्मे और उभरे हुए कुल्हे याद आते ही उसका लंड बेकाबू होकर उसके हाथों से छूटने लगा. उसे याद आता है किस तरह उसकी माँ घोड़ी बनी उसे उकसा रही थी. "बहुत शौक है न उसे घोड़ी बनने का" में बनाऊंगा उसे घोडी”. विशाल का दिल तों नहीं कर रहा था मगर उसने बड़ी मुश्किल से अपने मन को समझाते हुए अपने लंड से हाथ हटा लिये. 'बस थोड़ा सा इंतज़ार और, बस थोड़ा सा इंतज़ार और वो अपने मन को समझाता है.
नहाने के बाद तीनो कुछ देर टेबल पर बातें करते है. विशाल का पिता अब कुछ शांत पड़ चुका था. वो बेटे का आभार प्रगट करता है के उसके बिना इतने कम समय में इतना इन्तेज़ाम करना लगभग नामुमकिन था. वो जनता था के विशाल को इतनी जल्दी पूजा अच्छी नहीं लगी थी मगर अब वो अपने बेटे को अस्वाशन देता है के वो उसके आराम में कोई बाधा नहीं डालेगा और अपनी छुट्टीयों का वो दिल खोल कर आनंद ले सकता है. विशाल भी अपने पिता को आस्वश्त करता है के उनकी ख़ुशी में ही उसकी ख़ुशी है. इसके बाद विशाल अपने कमरे में लौट आता है जबके उसका बाप टीवी देखने लगता है और उसकी माँ बर्तन साफ़ करने लगती है.
कमरे में आकर विशाल अपने कपडे उतार सिर्फ अंडरवियर में बेड पर लेट जाता है.

छत को घुरते हुए वो अचानक हंस पढता है. अखिरकार वो पल आ ही गया था जिसके लिए वो इतना तडफ रहा था. अब किसी भी पल वो आ सकती थी. और फिर ओर....फिर ओर.......आज वो दिल खोलकर उसे प्यार करेंगा.......और अब वो उसे रोक भी नहीं सकती.....उसने वादा किया था....और वो खुद भी......वो खुद भी तो चाहती होगी......उसका भी दिल जरूर मचल रहा होगा..........कीस तरह ऑंगन में वो मुझे छेड रही थी.....एक बार आ जाये फिर बताता हू उसे....." विशाल मुस्कराता खुद से बातें कर रहा था. मगर इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती चलि गयी. इंतज़ार करते करते एक घंटे से ऊपर हो गया था. विशाल का दिल डुबने लगा के शायद वो आएगी ही नही. जब उसकी उम्मीद टुटने लगी तभी दरवाजे का हैंडल धीरे से घुमा और फिर
दरवाजा खुला.
हाथ में दूध का गिलास थामे अंजलि १००० वाट के बल्ब की तरह मुस्कान बिखेरती अंदर दाखिल होती है.
तोह वो अपने लंड को सहलाने लगता है.

उसे कुछ देर पहले ऑंगन में सफायी के दोरान अपनी माँ की हरकतें याद आती है तो कुछ ही पलों में उसका लौडा पत्थर की तरह सखत होकर झटके मारने लगा. अपनी माँ के मम्मे और उभरे हुए कुल्हे याद आते ही उसका लंड बेकाबू होकर उसके हाथों से छूटने लगा. उसे याद आता है किस तरह उसकी माँ घोड़ी बनी उसे उकसा रही थी. "बहुत शौक है न उसे घोड़ी बनने का" में बनाऊंगा उसे घोडी”. विशाल का दिल तों नहीं कर रहा था मगर उसने बड़ी मुश्किल से अपने मन को समझाते हुए अपने लंड से हाथ हटा लिये. 'बस थोड़ा सा इंतज़ार और, बस थोड़ा सा इंतज़ार और वो अपने मन को समझाता है.
नहाने के बाद तीनो कुछ देर टेबल पर बातें करते है. विशाल का पिता अब कुछ शांत पड़ चुका था. वो बेटे का आभार प्रगट करता है के उसके बिना इतने कम समय में इतना इन्तेज़ाम करना लगभग नामुमकिन था. वो जनता था के विशाल को इतनी जल्दी पूजा अच्छी नहीं लगी थी मगर अब वो अपने बेटे को अस्वाशन देता है के वो उसके आराम में कोई बाधा नहीं डालेगा और अपनी छुट्टीयों का वो दिल खोल कर आनंद ले सकता है. विशाल भी अपने पिता को आस्वश्त करता है के उनकी ख़ुशी में ही उसकी ख़ुशी है. इसके बाद विशाल अपने कमरे में लौट आता है जबके उसका बाप टीवी देखने लगता है और उसकी माँ बर्तन साफ़ करने लगती है.
कमरे में आकर विशाल अपने कपडे उतार सिर्फ अंडरवियर में बेड पर लेट जाता है.

छत को घुरते हुए वो अचानक हंस पढता है. अखिरकार वो पल आ ही गया था जिसके लिए वो इतना तडफ रहा था. अब किसी भी पल वो आ सकती थी. और फिर ओर....फिर ओर.......आज वो दिल खोलकर उसे प्यार करेंगा.......और अब वो उसे रोक भी नहीं सकती.....उसने वादा किया था....और वो खुद भी......वो खुद भी तो चाहती होगी......उसका भी दिल जरूर मचल रहा होगा..........कीस तरह ऑंगन में वो मुझे छेड रही थी.....एक बार आ जाये फिर बताता हू उसे....." विशाल मुस्कराता खुद से बातें कर रहा था. मगर इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी होती चलि गयी. इंतज़ार करते करते एक घंटे से ऊपर हो गया था. विशाल का दिल डुबने लगा के शायद वो आएगी ही नही. जब उसकी उम्मीद टुटने लगी तभी दरवाजे का हैंडल धीरे से घुमा और फिर
दरवाजा खुला.
हाथ में दूध का गिलास थामे अंजलि १००० वाट के बल्ब की तरह मुस्कान बिखेरती अंदर दाखिल होती है.
विशाल को जितनी ख़ुशी हुयी थी वहीँ उसे थोड़ी मायूसी भी हुयी थी. अंजलि ने एक लम्बा ढीला सा नाईट गाउन पहना था जिसने उसे सर से लेकर करीबन करिबन पांव तक्क ढंका हुआ था. मगर विशाल के लिए तोह इतना ही बहुत था के वो आ तोह गयी थी वार्ना उसके आने की तोह उम्मीद ही ख़तम होने लगी थी. उसका सुन्दर गोरा मुखड़ा दमक रहा था. होंठो पर बहुत ही प्यारी सी मुस्कान फ़ैली हुयी थी और ऑंखे जैसे ख़ुशी के मारे चमक रही थी. उसने कमरे के अंदर आते ही दरवाजा बंद किया और धीरे धीरे बहुत ही अदा से चलति हुयी बेड के पास आती है. उसके होठो की मुस्कराहट गहरी हो चुकी थी, आँखों की चमक भी बढ़ गयी थी. उसकी नज़रें बेटे के चेहरे पर ज़मी हुयी थी. विशाल अब भी केवल अंडरवेअर में था. उसने खुद को ढकने का कोई प्रयास नहीं किया था. उसने धीरे से दूध का गिलास बेड की पुशत पर रखा

और बेड के किनारे अपने नितम्ब रखकर ऊपर को हुयी तोह विशाल थोड़ा सा खिसक कर अपनी माँ के लिए जगह बनाता है. अंजलि बेड की पुश्त से टेक लगाकर बेटे की और करवट लेती है. अंजलि मुस्कराती विशाल की आँखों में देखति अपनी भवें नचाती है जैसे उसे पूछ रही हो...' हाल कैसा है जनाब का'
"बड़ी जल्दी आ गयी .......अभी दो तीन घंटे बाद आना था........या फिर रहने देती.......इतनी तकलीफ उठाने की क्या जरूरत थी........" विशाल ताना देकर अपनी नाराज़गी जाहिर करता है.
"ओह....नाराज़ है मेरा सोना.........बहुत इंतज़ार कराया क्या मैंने!!!!!!" अंजलि शरारती सी हँसी हँसति बेटे को छेड़ती है.
"इंतज़ार......मुझे तोह उम्मीद भी नहीं थी आप इतनी जल्दी आ जाएंगी.........अपने कितना बड़ा उपकार किया है मुझपर" विशाल झल्ला उठता है.
"उफ्फ्फ्फ़ तौबा मेरे मालिक....गुससा कुछ ज्याद ही लगता है.........क्या सच में इतना इंतज़ार कर्वेज मैने" अंजलि का स्वर अब भी शरारती था. वो जैसे बेटे की नाराज़गी से आनंद उठा रही थी.
"और नहीं तोह क्या........डो घंटे होने को आये.........कब्ब से राह देख रहा हुन तुम्हारी.....मगर तुम्हे क्या फरक पढता है.....मैने तोह सोचा था तुम दोपहर को ही आओगी मगर आप....आप......" विशाल किसी छोटे बच्चे की तरह मासूम सा दुखी सा चेहरा बना लेता है.
"मैं.....में क्या बुद्धु........ईतना गुस्सा दिखा रहे हो जैसे इंतज़ार में जान निकल रही हो और दोपहर को पन्द्रह मिनट भी इंतज़ार नहीं कर सके......" अंजलि बेटे के कँधे पर प्यार भरी चपट लगाती है.
"क्या मतलब......तुम आई थी? देखो अब झूठ मत बोलो माँ!" अपनी माँ की बात सुन विशाल चौंक गया था.
"मैं क्यों झूठ बोलूँगी भला........पन्द्रह मिनट भी नहीं हुए थे जब में तुमसे मिलने आई थी. सोचा था इतने दिनों से बेटे को गले नहीं लगाया उसे प्यार नहीं किया मगर यहाँ तुम घोड़े बेचकर सो रहे थे और डींगे ऐसे हांक रहे हो जैसे पूरी दोपहर जाग कर काटी हो" अंजलि की बात सुन विशाल शर्मिंदा सा हो जाता है.
"तुमने मुझे जगाया क्यों नहि......."

और बेड के किनारे अपने नितम्ब रखकर ऊपर को हुयी तोह विशाल थोड़ा सा खिसक कर अपनी माँ के लिए जगह बनाता है. अंजलि बेड की पुश्त से टेक लगाकर बेटे की और करवट लेती है. अंजलि मुस्कराती विशाल की आँखों में देखति अपनी भवें नचाती है जैसे उसे पूछ रही हो...' हाल कैसा है जनाब का'
"बड़ी जल्दी आ गयी .......अभी दो तीन घंटे बाद आना था........या फिर रहने देती.......इतनी तकलीफ उठाने की क्या जरूरत थी........" विशाल ताना देकर अपनी नाराज़गी जाहिर करता है.
"ओह....नाराज़ है मेरा सोना.........बहुत इंतज़ार कराया क्या मैंने!!!!!!" अंजलि शरारती सी हँसी हँसति बेटे को छेड़ती है.
"इंतज़ार......मुझे तोह उम्मीद भी नहीं थी आप इतनी जल्दी आ जाएंगी.........अपने कितना बड़ा उपकार किया है मुझपर" विशाल झल्ला उठता है.
"उफ्फ्फ्फ़ तौबा मेरे मालिक....गुससा कुछ ज्याद ही लगता है.........क्या सच में इतना इंतज़ार कर्वेज मैने" अंजलि का स्वर अब भी शरारती था. वो जैसे बेटे की नाराज़गी से आनंद उठा रही थी.
"और नहीं तोह क्या........डो घंटे होने को आये.........कब्ब से राह देख रहा हुन तुम्हारी.....मगर तुम्हे क्या फरक पढता है.....मैने तोह सोचा था तुम दोपहर को ही आओगी मगर आप....आप......" विशाल किसी छोटे बच्चे की तरह मासूम सा दुखी सा चेहरा बना लेता है.
"मैं.....में क्या बुद्धु........ईतना गुस्सा दिखा रहे हो जैसे इंतज़ार में जान निकल रही हो और दोपहर को पन्द्रह मिनट भी इंतज़ार नहीं कर सके......" अंजलि बेटे के कँधे पर प्यार भरी चपट लगाती है.
"क्या मतलब......तुम आई थी? देखो अब झूठ मत बोलो माँ!" अपनी माँ की बात सुन विशाल चौंक गया था.
"मैं क्यों झूठ बोलूँगी भला........पन्द्रह मिनट भी नहीं हुए थे जब में तुमसे मिलने आई थी. सोचा था इतने दिनों से बेटे को गले नहीं लगाया उसे प्यार नहीं किया मगर यहाँ तुम घोड़े बेचकर सो रहे थे और डींगे ऐसे हांक रहे हो जैसे पूरी दोपहर जाग कर काटी हो" अंजलि की बात सुन विशाल शर्मिंदा सा हो जाता है.
"तुमने मुझे जगाया क्यों नहि......."
दिल तोह किया था एक बार तुम्हे जगा दुं....मेरा कितना दिल कर रहा था अपने बेटे को प्यार करने का.....उसे अपने अलिंगन में लेने का" अंजलि बहुत ही प्यार से ममता से बेटे का गाल सहलती है "...मगर फिर तुम पिछले दो दिनों से कितनी भागदौड कर रहे थे और पिछली रात तो तुम्हे सोने को भी नहीं मिला था इस्लिये में चुपचाप यहाँ से निकल गयी"
"वह माँ तुम्हे मुझे जगाना चाहिए था........मेरा कितना दिल कर रहा था......."
"ख़ैर छोड़ो..... अब तोह आ गयी हुन न......."
"आ तोह गयी मगर कितना लेट आई हो में कब से तुमहारी राह देख रहा था......." विशाल बहुत ही प्यार और कोमलता से अपनी माँ के गाल सहलता है.

"मैं तोह कभी की आ जाती मगर तुम्हारे पिता की बातें ही ख़तम होने को नहीं आ रही थी........कुछ ज्यादा ही एक्ससायटेड थे..........और फिर में नहाने चलि गईं.....और फिर तुम्हारे लिए दूध बनाया ....इसीलिये इतनी देरी हो गायी" विशाल अपनी माँ के बालों में धीरे से हाथ फेरता है तोह उसे हल्का सा गिलेपन का एहसास होता है.
"ओह तोह पिताजी आज बहुत एक्ससिटेड थे.......सिर्फ बातें ही कर रहे थे या कुछ और भी हो रहा था..........." इस बार विशाल अपनी माँ को छेडता कहता है.
"धतत......बदमश कहीं का..." अंजलि शर्मा जाती है और विशाल के कंधे पर चपट लगाती है.
"ओह हो......ओहो हो........देखो तोह कैसे शर्मा रही हो........जरूर दाल में कुछ कला है.........अब तोह मुझे पूरा यकीन है के बातें नहीं हो रही थी....वहाँ कुछ और भी हो रहा था......है न मेरी प्यारी माँ........देखो झुठ मत बोलना" विशाल की बात सुन अंजलि और बुरी तरह शर्मा जाती है. विशाल हंस पढता है.
“काया विशाल तुम भी न………..छोड़ो इस बात को…….तुम बताओ अभी खुश हो न……………..तुम तोह शुकर मना रहे होगे आखिरकार पूजा ख़तम तोह हुयी”
"वह माँ तुम्हे मुझे जगाना चाहिए था........मेरा कितना दिल कर रहा था......."
"ख़ैर छोड़ो..... अब तोह आ गयी हुन न......."
"आ तोह गयी मगर कितना लेट आई हो में कब से तुमहारी राह देख रहा था......." विशाल बहुत ही प्यार और कोमलता से अपनी माँ के गाल सहलता है.

"मैं तोह कभी की आ जाती मगर तुम्हारे पिता की बातें ही ख़तम होने को नहीं आ रही थी........कुछ ज्यादा ही एक्ससायटेड थे..........और फिर में नहाने चलि गईं.....और फिर तुम्हारे लिए दूध बनाया ....इसीलिये इतनी देरी हो गायी" विशाल अपनी माँ के बालों में धीरे से हाथ फेरता है तोह उसे हल्का सा गिलेपन का एहसास होता है.
"ओह तोह पिताजी आज बहुत एक्ससिटेड थे.......सिर्फ बातें ही कर रहे थे या कुछ और भी हो रहा था..........." इस बार विशाल अपनी माँ को छेडता कहता है.
"धतत......बदमश कहीं का..." अंजलि शर्मा जाती है और विशाल के कंधे पर चपट लगाती है.
"ओह हो......ओहो हो........देखो तोह कैसे शर्मा रही हो........जरूर दाल में कुछ कला है.........अब तोह मुझे पूरा यकीन है के बातें नहीं हो रही थी....वहाँ कुछ और भी हो रहा था......है न मेरी प्यारी माँ........देखो झुठ मत बोलना" विशाल की बात सुन अंजलि और बुरी तरह शर्मा जाती है. विशाल हंस पढता है.
“काया विशाल तुम भी न………..छोड़ो इस बात को…….तुम बताओ अभी खुश हो न……………..तुम तोह शुकर मना रहे होगे आखिरकार पूजा ख़तम तोह हुयी”
Contd.....
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