मेरी माँ अंजलि -11
“माँ विषय मत बदलो. मैंने जो पूछा है उसका जवाब दो.” विशाल मुस्कराता हुआ कहता है.
“मुझे याद नहीं तुम क्या पूछ रहे थे.” अंजलि एक तरफ को चेहरा घुमकर बोलती है.
“कोई बात नहीं में याद दिला देता हुन……..मैने पूछा था के तुम और डैड क्या कर रहे थे और देखो झूठ मत बोलना” विशाल फिर से अपनी माँ का चेहरा अपनी तरफ करता कहता है.
“उन्ह्ह…..विशाल कोई भला अपनी माँ से ऐसे सवाल भी करता है”
“बताना तोह तुम्हे पड़ेगा ही…..ऐसे में तुम्हारा पीछा नहीं छोडने वाला” माँ बेटे दोनों एक दूसरे की आँखों में देखते है.

दोनों के बदन में झुरझुरी सी दौड रही थी. अंजलि के निप्पल खड़े होगये थे
. चुत ने पाणी छोड़ना शुरू कर दिया था. वहीँ विशाल के अंडरवियर में कुछ हिल रहा था
और उसका अंडरवियर सामने से फूलता जा रहा था.
“मैं कैसे बताऊ……………. तुम्हारे पिता मेरी…….मेरी चू……चु…….में नहीं बता सकती ……
.मुझे शर्म आती है” अचानक अंजलि अपने हाथों से अपना चेहरा धक् लेती है और अपना सर बेटे के कंधे पर रख देती है.
“मैं तुम्हारी कुछ मदद करूँ……” विशाल माँ के कान में धीरे से कहता है.
“कैसी मदद?” अंजलि धीरे से पूछती है. उसने अभी भी अपने चेहरे से हाथ नहीं हटाये थे.
“मैं बस तुमसे सवाल पूछता जायूँगा और तुम जवाब देते जाना….ऐसे में समज जाऊंगा……..
और तुम्हे बताना नहीं पढ़ेगा” विशाल अपनी माँ के गाल पर रखे उसके हाथ का चुम्बन लेता है.
अंजलि धीरे से हाथ हटा देती है मगर सर वहीँ बेटे के कंधे पर टिकाये रखती है.
“कैसे सवाल?” अंजलि फिर धीरे से कहती है.
“वो तुम्हे अभी पता चल जाएगा. पहले कहो तोह सही तुम्हे मंजूर है?” इस बार विशाल के होंठ अपनी माँ के गाल को सहलाते है.

अंजलि अपना बदन ढीला छोड़ देती है.
“हूँ” वो लगभग न सुनायी देणे वाली आवाज़ में कहती है.
“ठीक है……तो सबसे पहले यह बतायो के जब तुम और पिताजी “बातें कर रहे थे” तब तुमने और पिताजी ने क्या पहना था”
काफी देर तक्क विशाल इंतज़ार करता रहता है मगर अंजलि कोई जवाब नहीं देती.
“ओह तुम तोह कुछ जवाब ही नहीं दे रही…..अच्छा कम से कम एहि बतादो के तुम दोनों ने कुछ पहना भी था या नहीं”
“उन्हहहह” इस बार अंजलि के गैल से हलकी सी आवाज़ निकलती है.
“ये उन्ह है या हूँ……..जब इसका में क्या मतलब निकलू” विशाल की लपलपाती जीव्हा अपनी माँ का गाल सहलाती है.
“नहीं”
“नहीं……ओह तोह मतलब तुम दोनों ने कोई कपडा नहीं पहना था माँ…सही कहा न मैंने माँ”
“हाँ”
“यह तोह इसका मतलब….”विशाल अंजलि के कान की लौ को अपनी जीव्हा से छेडता उसके कान में फुसफुसाता है.

“इसका मतलब पिताजी नंगे थे और तुम भी उनके साथ नंगी थी…..
बंद कमरे में तुम दोनों नंगे….और सिर्फ बातें कर रहे थे….है न?”
. चुत ने पाणी छोड़ना शुरू कर दिया था. वहीँ विशाल के अंडरवियर में कुछ हिल रहा था
और उसका अंडरवियर सामने से फूलता जा रहा था.
“मैं कैसे बताऊ……………. तुम्हारे पिता मेरी…….मेरी चू……चु…….में नहीं बता सकती ……
.मुझे शर्म आती है” अचानक अंजलि अपने हाथों से अपना चेहरा धक् लेती है और अपना सर बेटे के कंधे पर रख देती है.
“मैं तुम्हारी कुछ मदद करूँ……” विशाल माँ के कान में धीरे से कहता है.
“कैसी मदद?” अंजलि धीरे से पूछती है. उसने अभी भी अपने चेहरे से हाथ नहीं हटाये थे.
“मैं बस तुमसे सवाल पूछता जायूँगा और तुम जवाब देते जाना….ऐसे में समज जाऊंगा……..
और तुम्हे बताना नहीं पढ़ेगा” विशाल अपनी माँ के गाल पर रखे उसके हाथ का चुम्बन लेता है.
अंजलि धीरे से हाथ हटा देती है मगर सर वहीँ बेटे के कंधे पर टिकाये रखती है.
“कैसे सवाल?” अंजलि फिर धीरे से कहती है.
“वो तुम्हे अभी पता चल जाएगा. पहले कहो तोह सही तुम्हे मंजूर है?” इस बार विशाल के होंठ अपनी माँ के गाल को सहलाते है.

अंजलि अपना बदन ढीला छोड़ देती है.
“हूँ” वो लगभग न सुनायी देणे वाली आवाज़ में कहती है.
“ठीक है……तो सबसे पहले यह बतायो के जब तुम और पिताजी “बातें कर रहे थे” तब तुमने और पिताजी ने क्या पहना था”
काफी देर तक्क विशाल इंतज़ार करता रहता है मगर अंजलि कोई जवाब नहीं देती.
“ओह तुम तोह कुछ जवाब ही नहीं दे रही…..अच्छा कम से कम एहि बतादो के तुम दोनों ने कुछ पहना भी था या नहीं”
“उन्हहहह” इस बार अंजलि के गैल से हलकी सी आवाज़ निकलती है.
“ये उन्ह है या हूँ……..जब इसका में क्या मतलब निकलू” विशाल की लपलपाती जीव्हा अपनी माँ का गाल सहलाती है.
“नहीं”
“नहीं……ओह तोह मतलब तुम दोनों ने कोई कपडा नहीं पहना था माँ…सही कहा न मैंने माँ”
“हाँ”
“यह तोह इसका मतलब….”विशाल अंजलि के कान की लौ को अपनी जीव्हा से छेडता उसके कान में फुसफुसाता है.

“इसका मतलब पिताजी नंगे थे और तुम भी उनके साथ नंगी थी…..
बंद कमरे में तुम दोनों नंगे….और सिर्फ बातें कर रहे थे….है न?”
अंजलि विशाल के सीनें पर घूँसा मारती है और करवट बदल कर उसकी और पीठ कर लेती है.
"मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनि. जानबूझकर मुझसे ऐसे सवाल कर रहे हो" अंजलि बड़े ही नखरीले अंदाज़ में कहती है जैसे वो बेटे से रूठ गयी हो.
यह अंदाज़े बयाँ, यह अदा बहुत कम् औरतों के बस की बात होती है जिसमे वो चंद लफ़्ज़ों के इस्तेमाल से अपनी शराफ़त भी दिखाती है, रूठती भी हैं मगर उनके वही अलफ़ाज़ मर्द को कई गुणा तक्क उक्साते भी है. विशाल हँसता हुआ धीरे से खिसक कर अपनी माँ के पीछे लग जाता है. उनके बदन लगभग आपस में जुड़े हुए थे. अंजलि अधलेटी सी बेड की पुशत से टेक लगाए थी और विशाल धीरे से खिसक कर बिलकुल अपनी माँ से सट जाता है

अंजलि की दायि तांग निचे बेड पर सीधी पसरि हुयी थी और बायीं तांग को उसने घुटने से मोढ़कर सामने की और पसरा हुआ था. इस कारन उसका बायां नितम्ब थोड़ा सा आगे की और निकला हुआ था. विशाल अब सर से लेकर कमर तक्क अपनी माँ को पीछे से चिपक गया था. फिर वो धीरे से अपनी बायीं तांग आगे निकालता है और और अपनी माँ की तांग के ऊपर चढा देता है. अंजलि का बदन काँप सा उठता है. माँ के नितम्बो की गर्माहट पाकर बेटे का लंड ज़ोरदार झटका खाता है और पहले से और भी ज्यादा कठोर हो जाता है. लंड की ठोकर दोनों कुल्हो की घाटी में चुत के एकदम करीब पड़ती है और माँ सिसक उठती है. बेटे का हाथ धीरे धीरे कोमलता से माँ की कमर पर घूमता है.
"तुम दोनों साथ साथ लेते हुए थे?" विशाल धीरे से अगला सवाल पूछता है.
"तुम दोनों साथ साथ एक दूसरे से चिपक कर लेटे हुए थे?" इस बार विशाल अपनी माँ के कान में फुसफुसाते हुए अपना सवाल दोहराता है.
"उनह....नहि" अंजलि के मुख से धीरे से आवाज़ निकलती है.
"नहि........" विशाल माँ का जवाब सुन कर कुछ देर के लिए चुप कर जाता है जैसे अगले सवाल के बारे मैं सोच रहा हो.
"तुम दोनों ऊपर निचे थे"
".......हूं..." कुछ लम्हो की ख़ामोशी के बाद अंजलि जवाब देती है. हर जवाब के साथ उसकी आवाज़ धीमि होती जा रही थी.
"तुम निचे थी और पिताजी तुम्हारे ऊपर चढ़े हुए थे?" विशाल का हाथ धीरे धीरे कमर से निचे अंजलि के पेट् की तरफ खिसकने लगता है.
"नहि" मा फुसफुसाती है. उसकी साँसे गहराने लगी थी. दोनों नितम्बो की खायी के बिच बेटे का लंड अपना दवाब हर पल बढाता जा रहा था और हर पल के साथ वो उसकी चुत के नज़्दीक पहुँचता जा रहा था.
"मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनि. जानबूझकर मुझसे ऐसे सवाल कर रहे हो" अंजलि बड़े ही नखरीले अंदाज़ में कहती है जैसे वो बेटे से रूठ गयी हो.
यह अंदाज़े बयाँ, यह अदा बहुत कम् औरतों के बस की बात होती है जिसमे वो चंद लफ़्ज़ों के इस्तेमाल से अपनी शराफ़त भी दिखाती है, रूठती भी हैं मगर उनके वही अलफ़ाज़ मर्द को कई गुणा तक्क उक्साते भी है. विशाल हँसता हुआ धीरे से खिसक कर अपनी माँ के पीछे लग जाता है. उनके बदन लगभग आपस में जुड़े हुए थे. अंजलि अधलेटी सी बेड की पुशत से टेक लगाए थी और विशाल धीरे से खिसक कर बिलकुल अपनी माँ से सट जाता है

अंजलि की दायि तांग निचे बेड पर सीधी पसरि हुयी थी और बायीं तांग को उसने घुटने से मोढ़कर सामने की और पसरा हुआ था. इस कारन उसका बायां नितम्ब थोड़ा सा आगे की और निकला हुआ था. विशाल अब सर से लेकर कमर तक्क अपनी माँ को पीछे से चिपक गया था. फिर वो धीरे से अपनी बायीं तांग आगे निकालता है और और अपनी माँ की तांग के ऊपर चढा देता है. अंजलि का बदन काँप सा उठता है. माँ के नितम्बो की गर्माहट पाकर बेटे का लंड ज़ोरदार झटका खाता है और पहले से और भी ज्यादा कठोर हो जाता है. लंड की ठोकर दोनों कुल्हो की घाटी में चुत के एकदम करीब पड़ती है और माँ सिसक उठती है. बेटे का हाथ धीरे धीरे कोमलता से माँ की कमर पर घूमता है.
"तुम दोनों साथ साथ लेते हुए थे?" विशाल धीरे से अगला सवाल पूछता है.
"तुम दोनों साथ साथ एक दूसरे से चिपक कर लेटे हुए थे?" इस बार विशाल अपनी माँ के कान में फुसफुसाते हुए अपना सवाल दोहराता है.
"उनह....नहि" अंजलि के मुख से धीरे से आवाज़ निकलती है.
"नहि........" विशाल माँ का जवाब सुन कर कुछ देर के लिए चुप कर जाता है जैसे अगले सवाल के बारे मैं सोच रहा हो.
"तुम दोनों ऊपर निचे थे"
".......हूं..." कुछ लम्हो की ख़ामोशी के बाद अंजलि जवाब देती है. हर जवाब के साथ उसकी आवाज़ धीमि होती जा रही थी.
"तुम निचे थी और पिताजी तुम्हारे ऊपर चढ़े हुए थे?" विशाल का हाथ धीरे धीरे कमर से निचे अंजलि के पेट् की तरफ खिसकने लगता है.
"नहि" मा फुसफुसाती है. उसकी साँसे गहराने लगी थी. दोनों नितम्बो की खायी के बिच बेटे का लंड अपना दवाब हर पल बढाता जा रहा था और हर पल के साथ वो उसकी चुत के नज़्दीक पहुँचता जा रहा था.
पिताजी निचे थे और तुम उनके ऊपर चढ़ी हुयी थी?"

".....हूं..." इस बार अंजलि ने सिसकते हुए जल्दी से जवाब दे दिया था.
"तुम्हारी टाँगे खुली हुयी थी?" विशाल का हाथ माँ के पेट् पर घूम रहा था. वो अपने पांव से अंजलि के गाउन को ऊपर की और खिसकने लगता है.
"हण" अब अंजलि बिना एक पल की देरी किये जवाब दे रही थी. बेटे का लंड चुत के होंठो के नीचले हिस्से को छू रहा था. उसकी बायीं तांग घुटने तक् नंगी हो चुकी थी.
"तुम्हारे हाथ पिताजी की छाती पर थे" विशाल अपने पंजे से अंजलि की तांग को बड़ी ही कोमलता से प्यार से सहलाता है.
"हण" अंजलि बिना एक भी पल गंवाये जवाब देती है. कमरे में उसकी गहरी साँसे गुंज रही थी. चुत के अंदर सैलाब आया हुआ था. उसके निप्पल अकड कर बुरी तेरह से कठोर हो चुके थे.
"पिताजी के हाथ तुम्हारे सीने पर थे?" विशाल अपने कुल्हे आगे को दबाता है और अंजलि धीरे से अपनी तांग ऊपर उठाती है. लंड का टोपा चुत के होंठो के एकदम बिच में दस्तक देता है.

"उनहहहहहहहहः" अंजलि के मुंह से इस बार आवाज़ नहीं सिसकि निकलि थी.
"पिताजी के हाथ तुम्हारे सीने को मसल रहे थे?" विशाल का हाथ पेट् पर घुमता हुआ अंजलि की नाभि से लेकर मम्मे के निचे तक् पहुँचने लगा था.
"उनह" अंजलि धीरे धीरे अपनी कमर हिलती है जिससे लंड अब चुत के होंठो को रगडने लगता है.
"तुम अपनी कमर ऊपर निचे कर रही थी?" विशल अपना लंड चुत पर दबाता है तोह चुत के होंठ थोड़े से खुल जाते है.
" हूहूहू.......ऊफ्फफ" कामोत्तेजित माँ खुद को रोकने में असफ़ल रेहती है और बुरी तरह सिसकने लगती है.
"पिताजी भी निचे से कमर उछाल रहे थे?" विशाल अपने पांव से अंजलि की तांग को दबाता है और उसका हाथ माँ के पेट् पर बलपूर्वक चिपक जाता है. फिर वो कठोरता से अपने कुल्हे आगे को दबाता है. लंड का तोपा चुत के होंठो को फैला कर हल्का सा अंदर की और घुश जाता है.
"वुफ...........यः.....यः" अंजलि भी ज़ोर से अपनी चुत बेटे के लंड पर दबाती है और अपनी उपरी तांग को निचे की और दबाती है. लंड का टोपा अंजलि के गाउन और कच्ची के अवरोध के बावजूद उसकी चुत को फैला देता है. अगर उस समय अंजलि के गाउन और कच्ची का अवरोध बिच में न होता तोह यकीनन माँ बेटे के दवाब के कारन लंड का तोपा चुत के अंदर घुस चुका होता.
"अब में समज गया तुम दोनों क्या कर रहे थे!" विशाल का हाथ गाउन की पत्तियों की गाँठ से उलझने लगता है.
"क्या.....क्या कर रहे थे हम?" अंजलि का हाथ विशाल की कलाई को सहलाने लगता है जब वो गाउन की गाँठ खोल रहा होता है.
" एहि के पिताजी ने तुम्हे अपने घोड़े पर चढ़ाया हुआ था और तुम उनके घोड़े पर फुदक फुदक कर सवारी कर रही थी........है न?"

विशाल के हाथ सही सिरा लगते ही वो पट्टी को खिंचता है और गाउन की गाँठ खुल जाती है.

".....हूं..." इस बार अंजलि ने सिसकते हुए जल्दी से जवाब दे दिया था.
"तुम्हारी टाँगे खुली हुयी थी?" विशाल का हाथ माँ के पेट् पर घूम रहा था. वो अपने पांव से अंजलि के गाउन को ऊपर की और खिसकने लगता है.
"हण" अब अंजलि बिना एक पल की देरी किये जवाब दे रही थी. बेटे का लंड चुत के होंठो के नीचले हिस्से को छू रहा था. उसकी बायीं तांग घुटने तक् नंगी हो चुकी थी.
"तुम्हारे हाथ पिताजी की छाती पर थे" विशाल अपने पंजे से अंजलि की तांग को बड़ी ही कोमलता से प्यार से सहलाता है.
"हण" अंजलि बिना एक भी पल गंवाये जवाब देती है. कमरे में उसकी गहरी साँसे गुंज रही थी. चुत के अंदर सैलाब आया हुआ था. उसके निप्पल अकड कर बुरी तेरह से कठोर हो चुके थे.
"पिताजी के हाथ तुम्हारे सीने पर थे?" विशाल अपने कुल्हे आगे को दबाता है और अंजलि धीरे से अपनी तांग ऊपर उठाती है. लंड का टोपा चुत के होंठो के एकदम बिच में दस्तक देता है.

"उनहहहहहहहहः" अंजलि के मुंह से इस बार आवाज़ नहीं सिसकि निकलि थी.
"पिताजी के हाथ तुम्हारे सीने को मसल रहे थे?" विशाल का हाथ पेट् पर घुमता हुआ अंजलि की नाभि से लेकर मम्मे के निचे तक् पहुँचने लगा था.
"उनह" अंजलि धीरे धीरे अपनी कमर हिलती है जिससे लंड अब चुत के होंठो को रगडने लगता है.
"तुम अपनी कमर ऊपर निचे कर रही थी?" विशल अपना लंड चुत पर दबाता है तोह चुत के होंठ थोड़े से खुल जाते है.
" हूहूहू.......ऊफ्फफ" कामोत्तेजित माँ खुद को रोकने में असफ़ल रेहती है और बुरी तरह सिसकने लगती है.
"पिताजी भी निचे से कमर उछाल रहे थे?" विशाल अपने पांव से अंजलि की तांग को दबाता है और उसका हाथ माँ के पेट् पर बलपूर्वक चिपक जाता है. फिर वो कठोरता से अपने कुल्हे आगे को दबाता है. लंड का तोपा चुत के होंठो को फैला कर हल्का सा अंदर की और घुश जाता है.
"वुफ...........यः.....यः" अंजलि भी ज़ोर से अपनी चुत बेटे के लंड पर दबाती है और अपनी उपरी तांग को निचे की और दबाती है. लंड का टोपा अंजलि के गाउन और कच्ची के अवरोध के बावजूद उसकी चुत को फैला देता है. अगर उस समय अंजलि के गाउन और कच्ची का अवरोध बिच में न होता तोह यकीनन माँ बेटे के दवाब के कारन लंड का तोपा चुत के अंदर घुस चुका होता.
"अब में समज गया तुम दोनों क्या कर रहे थे!" विशाल का हाथ गाउन की पत्तियों की गाँठ से उलझने लगता है.
"क्या.....क्या कर रहे थे हम?" अंजलि का हाथ विशाल की कलाई को सहलाने लगता है जब वो गाउन की गाँठ खोल रहा होता है.
" एहि के पिताजी ने तुम्हे अपने घोड़े पर चढ़ाया हुआ था और तुम उनके घोड़े पर फुदक फुदक कर सवारी कर रही थी........है न?"

विशाल के हाथ सही सिरा लगते ही वो पट्टी को खिंचता है और गाउन की गाँठ खुल जाती है.
गाउन की गाँठ ख़ुलते ही विशाल धीरे से अपना हाथ गाउन के अंदर सरकाने लगता है नग्न पेट् पर हाथ पढते ही

अंजलि धीरे से करवट बदलने लगती है. विशाल का लंड उसके नितम्बो को रगडता अब उसके बाएं नितम्ब के बाहरी सिरे पर चुभ रहा था. विशाल ने करवट नहीं बदलि थी और वो अब भी अपनी माँ की बगल में अधलेटा सा उसके ऊपर झुका हुआ था. बेटे का हाथ अब पूरा गाउन के अंदर घुस चुका था और माँ के मम्मो के बिलकुल करीब घूम रहा था. माँ अपने बेटे की कलाई को बड़े ही प्यार से सहलाती उसकी आँखों में देख रही थी.
"क्या कर रहे हो बेटा" अंजलि कोमल मगर स्पषट आवाज़ में पूछती है.
"मुझे अपना गिफ्ट देखना है......तुमने वादा किया था रात को दिखाने के लिये...........तुमने पहना तोह हैं न?" विशाल अपनी माँ के कमनीय चेहरे को देखते हुए कहता है.
"अपने वायदे को कैसे भूलति........इसी के चक्कर में तोह इतनी लेट हो गयी थी......" अंजलि बेटे को अस्वासन देती है के वो आगे बढ़ सकता है.
"लेट...ईसकी वजह से....वो कैसे?" विशाल माँ के पेट् से दोनों पल्लुओं को थोड़ा सा विपरीत दिशा में हटाता है. अंजलि का दूध सा गोरा बदन बल्ब की रौशनी में चमक उठता है. जिस चीज़ पर विशाल की सबसे पहले नज़र पढ़ी वो उसकी नाभि थी-----छोटी मगर गहरी. ऊपर से पल्ले अभी भी जुड़े हुए थे मगर निचे से विशाल को अंजलि की काली कच्छी की इलास्टिक नज़र आ रही थी.
"वो तुम्हारे पापा की.......च.......व.........व......तुमहारे पिता के घोड़े की स्वारी के बाद गन्दी हो गयी थी.........इसीलिये नहाने जाना पडा.......अब अपने बेटे के इतने कीमती और प्यारे तोहफे को गन्दा तोह नहीं कर सकती थी....." अंजलि उन अल्फ़ाज़ों को बोलते हुए शर्मायी नहीं थी बल्कि उसके कामोत्तेजित लाल सुर्ख चेहरे पर वासना और भी गहरा गयी थी. उसकी ऑंखे वासना की उस ख़ुमारी से चमक रही थी. उसके चेहर, उसकी आँखों के भाव और उसके मुख से निकलने वाले सिसकते अलफ़ाज़ उसके जवान बेटे की सासों में दौड़ाते लहू में आग लगा रहे थे
"ओ माँ तुम कितनी अच्छी हो..........." विशाल अंजलि की नाभि को अपनी ऊँगली से कुरेदते कुछ पलों के लिए चुप कर जाता है. ]

"तो माँ में.....में.....देख लू......" विशल की ऊँगली अब नाभि से लेकर अंजलि की गर्दन तक्क ऊपर निचे होने लगी थी. अंजलि अपनी ऑंखे मूंद लेती है. उसकी गहरी सांसो से उसका सिना तेज़ी से ऊपर निचे हो रहा था.
" देख ले.......तुझे दिखाने के लिए ही तोह पहन कर आई हु......" आंखे बंद किये अंजलि के कांपते होंठो से वो मदभरे लफ़ज़ फूटते है. बेटे के द्वारा नंगी किये जाने की कल्पना मात्र से उसके रोंगटे खड़े हो गए थे. चुत से रिस रिस कर निकालता रस्स उसकी कच्ची को भिगोता जा रहा था.

अंजलि धीरे से करवट बदलने लगती है. विशाल का लंड उसके नितम्बो को रगडता अब उसके बाएं नितम्ब के बाहरी सिरे पर चुभ रहा था. विशाल ने करवट नहीं बदलि थी और वो अब भी अपनी माँ की बगल में अधलेटा सा उसके ऊपर झुका हुआ था. बेटे का हाथ अब पूरा गाउन के अंदर घुस चुका था और माँ के मम्मो के बिलकुल करीब घूम रहा था. माँ अपने बेटे की कलाई को बड़े ही प्यार से सहलाती उसकी आँखों में देख रही थी.
"क्या कर रहे हो बेटा" अंजलि कोमल मगर स्पषट आवाज़ में पूछती है.
"मुझे अपना गिफ्ट देखना है......तुमने वादा किया था रात को दिखाने के लिये...........तुमने पहना तोह हैं न?" विशाल अपनी माँ के कमनीय चेहरे को देखते हुए कहता है.
"अपने वायदे को कैसे भूलति........इसी के चक्कर में तोह इतनी लेट हो गयी थी......" अंजलि बेटे को अस्वासन देती है के वो आगे बढ़ सकता है.
"लेट...ईसकी वजह से....वो कैसे?" विशाल माँ के पेट् से दोनों पल्लुओं को थोड़ा सा विपरीत दिशा में हटाता है. अंजलि का दूध सा गोरा बदन बल्ब की रौशनी में चमक उठता है. जिस चीज़ पर विशाल की सबसे पहले नज़र पढ़ी वो उसकी नाभि थी-----छोटी मगर गहरी. ऊपर से पल्ले अभी भी जुड़े हुए थे मगर निचे से विशाल को अंजलि की काली कच्छी की इलास्टिक नज़र आ रही थी.
"वो तुम्हारे पापा की.......च.......व.........व......तुमहारे पिता के घोड़े की स्वारी के बाद गन्दी हो गयी थी.........इसीलिये नहाने जाना पडा.......अब अपने बेटे के इतने कीमती और प्यारे तोहफे को गन्दा तोह नहीं कर सकती थी....." अंजलि उन अल्फ़ाज़ों को बोलते हुए शर्मायी नहीं थी बल्कि उसके कामोत्तेजित लाल सुर्ख चेहरे पर वासना और भी गहरा गयी थी. उसकी ऑंखे वासना की उस ख़ुमारी से चमक रही थी. उसके चेहर, उसकी आँखों के भाव और उसके मुख से निकलने वाले सिसकते अलफ़ाज़ उसके जवान बेटे की सासों में दौड़ाते लहू में आग लगा रहे थे
"ओ माँ तुम कितनी अच्छी हो..........." विशाल अंजलि की नाभि को अपनी ऊँगली से कुरेदते कुछ पलों के लिए चुप कर जाता है. ]

"तो माँ में.....में.....देख लू......" विशल की ऊँगली अब नाभि से लेकर अंजलि की गर्दन तक्क ऊपर निचे होने लगी थी. अंजलि अपनी ऑंखे मूंद लेती है. उसकी गहरी सांसो से उसका सिना तेज़ी से ऊपर निचे हो रहा था.
" देख ले.......तुझे दिखाने के लिए ही तोह पहन कर आई हु......" आंखे बंद किये अंजलि के कांपते होंठो से वो मदभरे लफ़ज़ फूटते है. बेटे के द्वारा नंगी किये जाने की कल्पना मात्र से उसके रोंगटे खड़े हो गए थे. चुत से रिस रिस कर निकालता रस्स उसकी कच्ची को भिगोता जा रहा था.
विशाल के हाथ उसकी माँ के सीने पर दोनों मम्मो के बिच थे.

उसके हाथ बुरी तरह से कांप रहे थे.
वो धीरे धीरे गाउन के पल्लू खोलने लगता है.
कमोत्तेजना के तीव्र आवेश से दोनों माँ बेटे की साँसे इतनी गहरी हो गयी थी
के पूरे कमरे में उनकी सांसो की आवाज़ गूँजने लगी थी.
विशाल के अंजलि के ऊपर झुके होने के कारन उसकी गरम साँसे सीधे अपनी माँ के चेहरे पर पढ़ रही थी
जिससे अंजलि और भी उत्तेजित होने लगी थी.
धीरे धीरे गाउन का उपरी हिस्सा खुलने लगा था.
दोनों मम्मो के बिच काली ब्रा नज़र आने लगी थी.
माँ बेटे की साँसे और भी तेज़ होने लगी.
विशाल के अंडरवियर में उसका लंड फट पढ़ने की हालत तक फूल चुका था.
धीरे धीरे मम्मो का अंदरूनी हिस्सा और नज़र आने लगा.
विशाल गाउन को खोलते हुए अपना चेहरा माँ के चेहरे से निचे की और
लाने लगा ताकि वो मम्मो को करीब से देख सके.
गाउन के पल्लू अब दोनों निप्पलों के करीब तक खुल चुके थे.
विशाल का चेहरा माँ के मम्मे के ऊपर झुकने लगा. लंड की कठोरता अब दर्द करने लगी थी. अपनी ऑंखे कस कर भींचे हुए अंजलि दाँतो से अपना नीचला होंठ काट रही थी. विशाल के बुरी तरह कँपकँपाते हाथ आखिरकार गाउन को किसी तरह ऊपर से फैला देते हैं और अंजलि के गोल मटोल, मोठे-मोठे मम्मे नज़र आने लगते है. दुध सी सफ़ेद रंगत के दोनों मम्मे पर लायके की काली ब्रा चार चाँद लगा रही थी. अंजलि के भारी मम्मे को अपने अंदर समेटे रखने के लिए ब्रा को ख़ासी मेहनत करनी पड़ रही थी. बुरी तरह से आकड़े निप्पल इस कदर नुकिले बन चुके थे और ब्रा के ऊपर से यूँ झाँक रहे थे

जैसे किसी भी पल ब्रा को छेद कर बाहर निकल आएंगे. विशाल निप्पलों को गौर से देखता उन पर अपना चेहरा झुका लेता है. उसकी गरम साँसे , निप्पलों पर महसूस करते ही अंजलि की साँसे धोंकनी की तरह तेज़ हो जाती हैं जैसे वो कई मीलों की दूरी दौड़कर आई हो. बेटे का चेहरा अपने मम्मे के इतने नजदीक महसूस करते ही उसका सिना और भी ऊपर निचे होने लगा था. माँ के निप्पल अपने होंठो के यूँ करीब आते देखकर विशाल अपने सूखे होंठो पर जीभ फेरता है. माँ के उन उन लम्बे नुकिले निप्पलों को होंठो में दबा लेने की तीव्र इच्छा को दबाने के लिए विशाल को ख़ासी जद्दोजेहद करनी पढ़ रही थी.

उसके हाथ बुरी तरह से कांप रहे थे.
वो धीरे धीरे गाउन के पल्लू खोलने लगता है.
कमोत्तेजना के तीव्र आवेश से दोनों माँ बेटे की साँसे इतनी गहरी हो गयी थी
के पूरे कमरे में उनकी सांसो की आवाज़ गूँजने लगी थी.
विशाल के अंजलि के ऊपर झुके होने के कारन उसकी गरम साँसे सीधे अपनी माँ के चेहरे पर पढ़ रही थी
जिससे अंजलि और भी उत्तेजित होने लगी थी.
धीरे धीरे गाउन का उपरी हिस्सा खुलने लगा था.
दोनों मम्मो के बिच काली ब्रा नज़र आने लगी थी.
माँ बेटे की साँसे और भी तेज़ होने लगी.
विशाल के अंडरवियर में उसका लंड फट पढ़ने की हालत तक फूल चुका था.
धीरे धीरे मम्मो का अंदरूनी हिस्सा और नज़र आने लगा.
विशाल गाउन को खोलते हुए अपना चेहरा माँ के चेहरे से निचे की और
लाने लगा ताकि वो मम्मो को करीब से देख सके.
गाउन के पल्लू अब दोनों निप्पलों के करीब तक खुल चुके थे.
विशाल का चेहरा माँ के मम्मे के ऊपर झुकने लगा. लंड की कठोरता अब दर्द करने लगी थी. अपनी ऑंखे कस कर भींचे हुए अंजलि दाँतो से अपना नीचला होंठ काट रही थी. विशाल के बुरी तरह कँपकँपाते हाथ आखिरकार गाउन को किसी तरह ऊपर से फैला देते हैं और अंजलि के गोल मटोल, मोठे-मोठे मम्मे नज़र आने लगते है. दुध सी सफ़ेद रंगत के दोनों मम्मे पर लायके की काली ब्रा चार चाँद लगा रही थी. अंजलि के भारी मम्मे को अपने अंदर समेटे रखने के लिए ब्रा को ख़ासी मेहनत करनी पड़ रही थी. बुरी तरह से आकड़े निप्पल इस कदर नुकिले बन चुके थे और ब्रा के ऊपर से यूँ झाँक रहे थे
जैसे किसी भी पल ब्रा को छेद कर बाहर निकल आएंगे. विशाल निप्पलों को गौर से देखता उन पर अपना चेहरा झुका लेता है. उसकी गरम साँसे , निप्पलों पर महसूस करते ही अंजलि की साँसे धोंकनी की तरह तेज़ हो जाती हैं जैसे वो कई मीलों की दूरी दौड़कर आई हो. बेटे का चेहरा अपने मम्मे के इतने नजदीक महसूस करते ही उसका सिना और भी ऊपर निचे होने लगा था. माँ के निप्पल अपने होंठो के यूँ करीब आते देखकर विशाल अपने सूखे होंठो पर जीभ फेरता है. माँ के उन उन लम्बे नुकिले निप्पलों को होंठो में दबा लेने की तीव्र इच्छा को दबाने के लिए विशाल को ख़ासी जद्दोजेहद करनी पढ़ रही थी.
कुछ पल यूँ ही मम्मे को घुरने के पश्चात
अंत-तह विशाल अपनी नज़र किसी तरह उनसे हटाकर अपनी माँ के पेट् पर डालता है
जिसका हिस्सा खुले हुए गाउन से नज़र आ रहा था.
विशाल आगे को झुकता हुआ गाउन को निचे से भी खोलना शुरू कर देता है.
अंजलि का सपाट दूधिया पेट् बल्ब की रौशनी से नहा उठता है
. गाउन को अंजलि की कच्छी तक खोल कर विशाल एक क्षण के लिए रुक जाता है.
अब अगर वो थोड़ा सा भी गाउन को खोलता तो उसकी माँ के जिस्म का वो हिस्सा उसकी नज़र के सामने होता
जिस पर एक बेटे की नज़र पढना वर्जित होता है.
मगर यहाँ खुद माँ चाहती थी
के उसका बेटा उस वर्जित स्थान को देखे बल्कि माँ तडफ रही
हैबेटे को दिखाने के लिये. विशाल का हाथ गाउन को खोलने के लिए हरकत में आता है.
इस समय दोनों माँ बेटे के जिस्म काम के आवेश से कांप रहे थे.
आगे जो होने वाला था उसकी कल्पना मात्र से दोनों के दिल दुगनी रफ़्तार से दौडने लगे थे.
आखिरकर जिस पल का दोनों को बेसब्री से इंतज़ार था वो पल आ चुका था.
वो वर्जित स्थान बेपरदा होने लगा था.
दोनों की साँसे रुकि हुयी थी.
गाउन के पल्लू ख़ुलते जा रहे थे.
और काली कच्छी में ढंका वो बेशकीमती स्थान दिखाई देणे लगा था.
विशाल माँ की टांगो पर झुकते हुए गाउन को खोलता चला जाता है
और तभी रुकता है जब गाउन घुटनो तक खुल जाता है.
अंजलि सर से लेकर घुटनो तक्क अब सिर्फ लायके की ब्रा कच्छी पहने बेटे के सामने अधनंगी अवस्था में थी.


विशाल का चेहरा माँ की चुत से अब कुछ इंच की दूरी पर था.
अंत-तह विशाल अपनी नज़र किसी तरह उनसे हटाकर अपनी माँ के पेट् पर डालता है
जिसका हिस्सा खुले हुए गाउन से नज़र आ रहा था.
विशाल आगे को झुकता हुआ गाउन को निचे से भी खोलना शुरू कर देता है.
अंजलि का सपाट दूधिया पेट् बल्ब की रौशनी से नहा उठता है
. गाउन को अंजलि की कच्छी तक खोल कर विशाल एक क्षण के लिए रुक जाता है.
अब अगर वो थोड़ा सा भी गाउन को खोलता तो उसकी माँ के जिस्म का वो हिस्सा उसकी नज़र के सामने होता
जिस पर एक बेटे की नज़र पढना वर्जित होता है.
मगर यहाँ खुद माँ चाहती थी
के उसका बेटा उस वर्जित स्थान को देखे बल्कि माँ तडफ रही
हैबेटे को दिखाने के लिये. विशाल का हाथ गाउन को खोलने के लिए हरकत में आता है.
इस समय दोनों माँ बेटे के जिस्म काम के आवेश से कांप रहे थे.
आगे जो होने वाला था उसकी कल्पना मात्र से दोनों के दिल दुगनी रफ़्तार से दौडने लगे थे.
आखिरकर जिस पल का दोनों को बेसब्री से इंतज़ार था वो पल आ चुका था.
वो वर्जित स्थान बेपरदा होने लगा था.
दोनों की साँसे रुकि हुयी थी.
गाउन के पल्लू ख़ुलते जा रहे थे.
और काली कच्छी में ढंका वो बेशकीमती स्थान दिखाई देणे लगा था.
विशाल माँ की टांगो पर झुकते हुए गाउन को खोलता चला जाता है
और तभी रुकता है जब गाउन घुटनो तक खुल जाता है.
अंजलि सर से लेकर घुटनो तक्क अब सिर्फ लायके की ब्रा कच्छी पहने बेटे के सामने अधनंगी अवस्था में थी.


विशाल का चेहरा माँ की चुत से अब कुछ इंच की दूरी पर था.
Contd.....
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