मेरी माँ रेशमा -2
5मिनट मे ही अब्दुल ने सुनसान जगह देख कार रोक दी, आस पास बिल्कुल सन्नाटा था, एक्का दुक्का गाड़िया निकल जा रही थी, सभी लोग कार से उतार गए.
"यार कमर ही टेढी हो गई मेरी तो " मोहित ने उतर के अपने बदन को खिंचते हुए कहा.
"हाँ यार मेरा भी बदन अकड़ गया " मैंने डिग्गी से माँ का बेग निकाल दिया.
"लो माँ आप चेंज कर लो, जब तक हम आते है " मैंने अपनी छोटी ऊँगली से माँ को पेशाब का इशारा कर दिया.
माँ ने गार्डन हिला के इशारा कर दिया सिर्फ.
हम चारो आगे झाड़ी मे निकल लिए, अब्दुल वही कार के बोनट के पास सिगरेट पीने लगा,
मैंने जाते जाते पीछे देखा माँ बेग से कुछ निकाल रही थी लेकिन तभी कार से हट के आगे की तरफ आ गई,
और अब्दुल से कुछ बात करने लगी, एक नजर माँ ने हमारी और भी देखा लेकिन हम अंघेरे मे थे जबकि माँ पर कार की हेड लाइट की डिम रौशनी पढ़ रही थी, माँ का गोरा जिस्म चमक रहा था.
ना जाने क्या बात ही रही थी, माँ ने छोटी ऊँगली उठा अब्दुल को दिखाई, अब्दुल ने सामने इशारा कर दिया, जहाँ हम मूतने गए थे उस से थोड़ा साइड मे.
अब माँ भी इंसान ही है, मैं भी फालतू सोचने लगा था, कोई पेशाब की बात करे तो आपको भी पेशाब आ ही जाती है.
मैंने अपने दिमाग़ को झटका दिया, और पैंट की चेन खोलने ही लगा थी की मेरे दिमाग़ ने झान्नाटा सा लिया, हलकी सरसराहत की आवाज़ ने मेरा ध्यान खिंचा, मैंने पीछे मुड़ कर देखा, अब्दुल वहाँ नहीं था.
कहा गया साला?
मेरे दिमाग़ मे हज़ार सवाल उमड़ पड़े, मुझे शक होने लगा.
मैं चुप चाप अँधेरे मे सबकी नजर बचा कर, साइड मे चलने लगा,
थोड़ी सी आगे जा कर रही झाड़ी मे माँ की परछाई सी दिखी.
माँ इधर उधर देख रही थी, फिर साड़ी को उठाने लगी,
छी मैं कैसा बेटा हूँ अपनी माँ को ऐसे देखने का पाप मैं कैसे कर सकता हूँ,
मैंने माँ पर से नजरें हटा ली, लेकिन तभी मेरी नजर माँ के पीछे खड़े अब्दुल पर जा पड़ी, मेरा खून खोल उठा,
साला मादर्चोद मेरी माँ को मूतते देखने पीछे पीछे चला आया हरामी. मेरा शक सही निकला,
मेरा मन किया अभी जा कर साले का सर फोड़ दू, लेकिन ना जाने क्यों मैं वही जमा रह गया मुझे कुछ कोतुहाल सा हो रहा था, दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था.
ना जाने क्यों मेरे जिस्म मे एक अजीब सी हलचल मच रही थी की कोई मेरी माँ को मूतते देखे, उसकी नंगी गांड देखे, मेरे मन मे पाप ने जगह बना ली थी.
मैंने माँ की और देखा माँ ने अपनी साड़ी घुटने तक उठा ली थी, कार की हलकी रौशनी यहाँ तक आ रही थी, गोरी चिकनी टांगे चमक उठी, साथ ही पीछे खड़े अब्दुल का हाथ हरकत करने लगा, उसके हाथ अपनी पैंट के आगे के भाग को रगड़ने लगे, मैं और अब्दुल सांस रोके आने वाले पल के इंतज़ार मे बैठे थे
माँ ने साड़ी और ऊपर की माँ की मोटी मोटी गोरी सुडोल जाँघे उजागर हो गई, मैं हैरान था माँ की जाँघे देख,
मेरे पापा कितने लकी आदमी है,
अगले ही पल मेरी सांसे अटक गई, थूक गे मे ही अटक गया.
माँ ने साड़ी कमर तक उठा ली थी, और जल्दी से पैरो के बल उकडू बैठ गई.
माँ की बड़ी सुडोल गांड पुरे परवन पर अपनी चमक बिखेर रही थी, मैंने जनता तो था की माँ बड़ी गांड की मालकिन है लेकिन इतनी बड़ी और सुन्दर होंगी ये नहीं पता था, मैं तो साइड से ये नजारा देख के मरे जा रहा था.
मेरा ध्यान अब्दुल पे गया जो ठीक माँ के पीछे खड़ा था उसका क्या हाल हुआ होगा, अब्दुल का हाथ अपने लंड के उभार पर बुरी तरह कसा हुआ था.
वो जड़ हो गया था, उसके सामने माँ अपनी खूबसूरत गोल सुडोल गांड खोल के बैठी थी.
वो पक्का माँ की चुत और खूबसूरत गांड के दर्शन कर रहा था
ससससससस...... ससससस... ररररर... एक सिटी की आवाज़ ने सन्नाटे को चिर दिया..
इस आवाज़ ने मेरा धयान वापस माँ की एयर खिंच दिया, आधे मिनट तक मैं कभी अब्दुल को देखता तो कभी माँ को.
थोड़ी ही देर मे माँ ने थोड़ा सा उठ के गांड को झटका दिया, माँ की गांड थरथरा गई, इसके साथ ही मेरा दिल भी थरथरा गया.
माँ ने पेशाब की लास्ट बून्द को झाड़ दिया था वो तुरंत उठी और साड़ी नीचे कर ली, पलटी तो अब्दुल इधर उधर देखने लगा
"शुक्रिया अब्दुल जी, आप साथ आये अँधेरे मे डर लग रहा था "
"शुक्रिया कैसा भाभीजी आप हमारी मेहमान है "
मेरा दिमाग़ ठनक गया मतलब माँ ने खुद अब्दुल को साथ चलने के लिए कहा था,
मुझे भी तो कह सकती थी, शायद अपने बेटे से शर्मा रही हो.
मैं अपनी सोच मे डूबा था, माँ और अब्दुल कबके जा चुके थे.
मैंने भी जल्दी से पेशाब किया, और कार की ओर चल दिया.
"अबे कहा मर गया था " मुझे आता देख आदिल ने कहा.
"अरे जोर की लगी थी इसलिए टाइम लग गया "
सभी कार से दूर खड़े थे, माँ नहीं थी मतलब माँ अंदर चेंज कर रही थी,
आदिल की नजर बार बार कार की तरफ ही जा रही थी, मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था, फिर भी मैं चुप रहा कहीं कोई बखेड़ा ना खड़ा हो जाये, माँ भी बोलेगी कैसे दोस्त बनाये है तूने.
थोड़ी ही देर मे कार का दरवाजा खुला " अमित बेटा ले बेग वापस रख दे " माँ बाहर आ के खड़ी हो गई.
जैसे ही माँ उतरी सब माँ को ही देखते रह गए, माँ के गाउन का कपड़ा बहुत हल्का था, माँ का जिस्म उसमे साफ झलक रहा था,
मुझे आश्चर्य हो रहा था की गॉव की मेरी घरेलू माँ बेहिचक ऐसे कपडे पहन सकती है, हालांकि गॉव मे भी कभी कभी पहनती थी, लेकिन तब मैं छोटा था, लेकिन यहां तो मेरे दोस्त मौजूद थे,
शायद माँ थोड़ा सकूँचा भी रही थी बाहर सब के सामने आ कर, शायद माँ के पास यही एक गाउन था.
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मैं दौड़ के गया और बेग को डिग्गी मे डाल दिया,.
माँ ने गुलाबी कलर का गाउन पहन लिया था,
"अब कैसा लग रहा है आंटी " मोहित ने पूछा.
"बहुत बढ़िया, राहत महसूस हुई " माँ के गाउन का कपड़ा काफ़ी हल्का था, माँ के जिस्म का काटव साफ महसूस हो रह था.
मैं खुद माँ की खूबसूरती का दीवाना हुआ जा था था मेरे दोस्तों के तो कहने ही क्या वो तो बस माँ को देखे जा रहे थे,
हालांकि मैंने नोटिस किया माँ ने ब्रा भी नहीं पहनी है, माँ के स्तन चलने से ज्यादा हिल रहे थे, जबकि पैंटी तो माँ ने पहले से ही नहीं पहनी थी, माँ को पेशाब करते वक़्त देख ये बात समझ आ गई थी.
ना जाने क्यों माँ को देखने का मेरा नजरिया बदल था था, माँ की जगह मुझे सुडोल जवान खूबसूरत स्त्री नजर आ रही थी.
"अब तुम लोग चलोगे भी या यही रहने का इरादा है " माँ ने कहा
सभी कार मैं अपनी पुरानी पोजीशन मे बैठने लगे तभी प्रवीण भागता हुआ आया " यार मैं आगे नहीं बैठूंगा थोड़ी लग रही है मुझे "
तब तक पीछे की सीट पर माँ के बाजु आदिल बैठ गया था, और उसके बाजु मोहित बैठ चुका था, माँ खिड़की के पास आराम से बैठी थी, अब बचा मैं मरता क्या ना करता.
"ठीक है भोसड़ीके मैं बैठ जाता हूँ, तू पीछे बैठ " मैंने बुरा सा मुँह बना कर कहा
"हेहेहेहेहे...." प्रवीण हसता हुआ पीछे मोहित के पास जा बैठा.
कार चल पड़ी, मैं अब्दुल ड्राइवर के बाजु बैठा था.
साला बहुत खुश नजर आ रहा था, नॉएडा से निकले थे तो मुँह बिगाड़ रखा था साला अब देखो कितना ख़ुश है हरामखोर. साला अभी भी मिरर मे माँ को देख ले रहा था.
उसकी खुशी का कारण मैं जनता ही था.
खेर मैंने दिमाग़ को झटका दिया और उघने लगा.
1घंटे ही बीते होंगे की मुझे ठण्ड सी लगने लगी, मैंने कम्बल लेने के लिए सर पीछे घुमा कर देखा तो तो मैं हैरान रह गया,
माँ और आदिल ने एक ही कम्बल औड़ा हुआ था, और प्रवीण मोहित ने एक.
मैंने कुछ आवाज़ नहीं की और माँ को देखने लगा उनकी आंखे बंद थी, सर पीछे सीट पर लगा हुआ था, शायद माँ सो गई थी.
की तभी मेरी नजर आदिल के साइड वाली कम्बल पर पड़ी, उसके जाँघ के पास कम्बल कुछ उठी हुई थी और हिल भी रही थी.
मेरे सर पे एकदम से गुस्सा सावर हो गया, साला हरामी अपनी हरकतो से बाज नहीं आएगा, माँ के साइड मे ही लंड हिला रहा है अपना.
मेरे हलक से एक जोर की आवाज़ निकल गई आदिल.... साले...
मेरी आवाज़ से माँ और आदिल दोनों हड़बड़ा गए, मैंने दिखा कम्बल के नीचे से माँ का हाथ सरसराता हुआ निकला.
"कक्क... कक्क... क्या हुआ अमित " आदिल हड़बड़या
"कक्क.. क्या हुआ बेटा " माँ और आदिल के तोते उड़े हुए थे, एक पल को चेहरे सफ़ेद पढ़ गए थे.
मैं हैरान था, मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था की जिसमे मैं आदिल का हाथ समझ रहा था असल मे वो मेरी माँ का हाथ था.. मतलब मेरी संस्कारी गॉव की घरेलु माँ मेरी मौजूदगी मे मेरे दोस्त का लंड हिला रही थी.
भरी शर्दी मे मुझे पसीना आ गया, यही हालात माँ और आदिल की भी थी.
"कक... कुछ नहीं माँ ठण्ड लग रही है, कम्बल चाहिए था " मेरे इस कथन से जैसे दोनों ने राहत की सांस ली हो लेकिन मेरे सीने मे अभी भी जवालामुखी फुट रहा था.
पहले वो पेशाब वाली घटना, और अब ये.
क्या वाकई मैं अभी तक अपनी माँ को नहीं जानता या ये सब मेरा वहम है एक गलतफहमी है.
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था.
लेकिन माँ और आदिल की बोखलाहट कुछ और ही कहानी बताला रही थी, मुझे कन्फर्म करना था मैं गलत हूँ या सही.
"बेटा और कम्बल तो नहीं है, यही थी सिर्फ दो इसलिए साथ मे ओढ़ना पड़ रहा है " माँ ने बड़ी खूबसूरती से खुद को बचा लिया था, या वाकई वो सही बोल रही थी.
अंधेरा और मेरे वहम की वजह से मुझे ऐसा लगा,
"तो ठीक है आदिल तू अब आगे आ जा मैं पीछे बैठ जाता हूँ माँ के साथ "
"अबे नहीं अच्छा खासा गरम हुआ हूँ अभी, ज्यादा सर्दी लगेगी मुझे " आदिल ने मना मर दिया.
"ये लो ना अमित भाई मेरे पास extra शाल है " अब्दुल ने बीच मे हमारी बात काटते हुए मेरी ओर शाल बढ़ा दी.
"अब क्या बोलता, मरे हुए मन से मैंने शाल ले ली और ओढ़ के सीट पर सर टिका लिया.
मेरे जहन मे अभी भी यही सब चल रहा था, मुझे कन्फर्म करना था, ये अब्दुल साला शुरू से गड़बड़ कर दे रहा है हरामी, मन ही मन मैंने अब्दुल को खूब गाली दी.
मैं अगकी सीट पर इस कद्र करवट ले के बैठा था की पीछे देख सकूँ, चेहरे तक़ मैंने शाल डाल ली थी, और एक हल्का सा गेप बना लिया था मेरी नजर आदिल और माँ पर ही थी.
लेकिन करीबन आधे घंटे बीत गए थे दोनों ने कोई हरकत नहीं की, मैं खुद को कोस रहा था, साला मैं ही गन्दा आदमी हूँ, अपनी माँ के लिए इतना गन्दा कैसे सोच सकता हुआ.
मैं वापस सीधे बैठे के लिए हिलने ही वाला था की
"आअह्ह्ह.... आउच.... एक बेहद धीमी आवाज़ नेरे कानो से टकरा गई..
मेरे जिस्म मे हलचल सी हो गई, आंखे पीछे को जा टिकी माँ का सर पीछे सीट पर टिका हुआ था, माँ ने अपने होंठो को दांतो तले दबा रखा था, माँ जोर जोर से सांसेे ले रही थी,
इसका मतलब कहीं आदिल.... कहीं आदिल माँ के साथ कुछ... मैं सोच भी नहीं पा रहा था की ऐसा कुछ मेरी माँ कर सकती है,.
लेकिन... लल... लेकिन जो मैं देख रहा था उसे झूटाला पाना मुश्किल था,
मेरी माँ हलके हलके सिसक रही थी, उसे चिंता ही नहीं थी की इस कार मे उसका बेटा भी बैठा है .
मैंने देखा माँ ने एक हाथ से कम्बल उठा कर अपने चेहरे को ढँक लिया है, माँ का जिस्म हल्का हल्का हिल रहा था. जैसे कांप रहा हो.
कम्बल मे माँ और आदिल साफ साफ एक दूसरे से चिपके हुए महसूस ही रहे थे,
मेरा शक यकीन मे बदलता जा रहा था.
"कहीं... कहीं... आदिल माँ की चुत मे ऊँगली... नहीं नहीं मेरी माँ कभी ऐसा नहीं करने देगी... छी मैं भी क्या सोच रहा हूँ " मैं सामने देखते हुए भी खुद की सोच को धिक्कार रहा था, नेरा मन गवाही नहीं दे रहा था की ऐसा भी ही सकता है, मेरा माँ ऐसा भी कर सकती है.
मैंने पीछे देखना जारी रखा, माँ की साइड से कम्बल खींचने की वजह से थोड़ा हट गया था, माँ की गोरी मांसल जाँघ चमक रही थी, मतलब माँ का गाउन जांघो से ऊपर ही था.
अब मुझे पक्का यकीन होने लगा था आदिल माँ की चुत मे अपनी ऊँगली डुबो रहा है.
मुझे साफ नहीं दिख रहा था लेकिन मेरे दिमाग़ मे आकृतिया बनती जा रही थी, ना जाने क्यों मेरा लंड खड़ा होने लगा था.
तभी आदिल ने कम्बल से बाहर मुँह निकाल कर अब्दुल के कान मे कुछ फुसफुसाया.
मैं हैरान था साला ये चक्कर क्या है, अब्दुल को क्या बोल रह है.
मुझे ज्यादा सोचने की जरुरत नहीं पड़ी, अब्दुल ने फ़ौरन अपनी सीट थोड़ी आगे कर ली.
अब्दुल के पीछे माँ और आगे की सीट मे अच्छा खासा गेप दिखने लगा था, आदिल तुरंत उस गेप मैं जैसे तैसे माँ की जांघो पे झुकता हुआ बैठ गया, आदिल की हरकतो से मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, लंड आगे की कल्पना से ही फटा जा रहा था.
मेरी संस्कारी माँ कोई आपत्ति नहीं थी वो तो बस मुँह तक़ कम्बल डाले पैर फैलाये बैठी थी,
इस उथल पुथल मे माँ की दोनों जाँघे कम्बल से बाहर आ गौ थी, जो की बाहर से आती रौशनी मे चमक उठती थी, मेरी माँ वाकई सुंदरता की मूरत थी, बेचारे आदिल जैसे जवान लड़के को बहक ही जाना था .
एक दम चिकिनी गोरी, सुडोल मोटी जांघो के बीच आदिल जा बैठा,
उसकी सांसे कम्बल के ऊपर से माँ की चुत से टकरा रही थी, माँ की सांसे तेज़ चल रही थी शायद वो भी मेरी ही तरह आने वाले पल का इंतज़ार कर रही थी.
आदिल ने कम्बल को थोड़ा सा उठाते हुए अपने को ढक लिया...
इस्स्स्स..... आअह्ह्ह..... उउफ्फ्फ..... माँ की हलकी सी सिस्कारी कार मे गूंज गई, मैं शर्त के साथ कह सकता हूँ, जो भी कार मे जग रहा था सबने ये सिस्कारी सुनी होंगी,
मोहित प्रवीण सो गए थे, अब्दुल ने सिस्कारी सुन मिरर मे देख मुस्कुरा दिया,
मैं एक हाथ से लंड पकड़े आगे का नजारा देखे जा रहा था, मेरा दोस्त मेरी मौजूदगी मे मेरी माँ की चुत चाट रहा था, उसका रस पी रहा था.
मुझे अपनी माँ का चरित्र कुछ समझ नहीं आ रहा था ऐसी भी क्या मज़बूरी थी माँ की.
माँ की जाँघे पूरी तरह कम्बल से बाहर फैली हुई थी, सिर्फ जांघो के बीच मे आदिल का सर वाला हिस्सा ढका हुआ था जो की इधर उधर ऊपर नीचे हिल रहा था,
अब मुझे कोई शक नहीं रह गया था, माँ की सिस्कारिया, उसके कमाल मे गिरते उठते स्तन इस बात के गवाह थे की माँ को अपनी चुत चाटवाने मे मजा आ रहा है,
.
शायद कम्बल के अंदर से माँ के हाथ आदिल के सर पर दबाव बना रहे थे, उसे उकसा रहे थे चाट सके और चाट अपने दोस्त की माँ की चुत को चाट, खा जा.
मैं खुद को कोष रहा था, समझ रहा था एक औरत का चरित्र.
आदिल को माँ की चुत चाटते 10 मिनट हो गए थे, लगता था साला माँ की चुत को पी पी कर सूखा ही देगा.
माँ की सिस्कारिया बढ़ती ही जा रही थी,
आआहहहहह..... आउच..... उउउफ्फ्फ..... नहीं...
अचानक माँ जोर से चींख उठी.
शायद आदिल ने जोश मे आ कर माँ की चुत को काट लिया था.
मा के चिल्लाने से पीछे बैठे मोहित और प्रवीण भी हड़बड़ा के उठ गए,
"कक्क... कक्क... क्या हुआ आंटी?" मोहित ने आंखे मसलते हुए कहा.
मैं अभी भी वैसे ही बैठा था जैसे कुछ हुआ ही ना हो.
सामने का नजारा देख प्रवीण और मोहित हैरान थे, माँ की जाँघे पूरी नंगी फैली हुई थी, आदिल जांघो के बीच बैठा था.
माँ ने स्थति को देखते हुए तुरंत ही खुद को ढकना चाहा लेकिन इस कसमकस मे मुझे वो दिखा जिसे शायद ही कोई बेटा अपने जीवन काल मे देख पाता हो.
दो पल को माँ ने कम्बल पूरा उठा जाँघे समेट ली, और फिर से ढँक लिया.
दो पल ही सही मुझे अपनी माँ की चुत के दर्शन जरूर हो गए, एकदम चिकनी गोरी, बाल का एक तिनका भी नहीं था.
आदिल ने चाट चाट के पूरा गिला कर दिया था.
मैं हैरान था माँ गॉव की हो कर भी अपने जिस्म का कितना ख्याल रखती है, या फिर शादी मे जा रही है इसलिए साफ किया हो.
"और तू नीचे क्या कर रहा है ने आदिल " प्रवीण ने पूछा.
मोहित और प्रवीण सिर्फ माँ की चिकनी जाँघे ही देख सके रहे, उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था ऊपर से अभी अभी नींद से उठे थे सपना है या हक़ीक़त उनके समझ नहीं आ रहा था.
"अरे वो मोबइल गिर गया था तो उठा रहा था, लेकिन अँधेरे मे आंटी का पैर दब गया " आदिल ने साफ साफ खुद को बचा लिया था.
माँ के चेहरे पे भी सुकून था, जैसे बाल बाल बची हो.
"तो मुझे बोल देते बेटा मैं, उठा देती " माँ ने बड़े ही भोले पन से कहा..
मैं हैरान था मेरी माँ का रंग देख कर कितनी सफाई से खुद को बचा लिया था.
चरररर..... चीईई..... तभी अब्दुल ने कार रोक दी.
"चाय पी लेते है दोस्तों नींद सी आ रही है थोड़ी "
मैंने भी उठने का नाटक किया, और ऐसे रियेक्ट किया जैसे कब से सो रहा था.
"मेरे लिए अंदर ही ले आना चाय " माँ ने मुस्कुराते हुए आदिल से कहा.
हम पांचो उतर गए थे, माँ कार मे ही बैठी थी.
मैं अपनी सोच मे डूबा था, जो अभी तक़ देखा उस पर हैरान था, कैसे मेरी संस्कारी घरेलु माँ इस कदर कदम उठा सकती है,
एक मन कर रहा था आदिल को यही पिट दू, तो दूसरा मन कह रहा था माँ को सीधा जा कर बोल दू.
लेकिन मैं जानना चाहता था की माँ ने ऐसा किया क्यों? ऐसा क्या हुआ? औरत का चरित्र होता क्या है?
मेरी माँ बहक कैसे गई?
अपने बहुमूल्य कमेंट जरूर दे, अपने विचार जरूर शेयर करे, क्या कहानी मे कुछ सुझाव चाहते है आप?
Contd....
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