मौसी के चले जाने के बाद मैं भी मौका देख नीचे आ गया, नीचे आँगन मे महिलाओ की मंडली जमीं हुई थी, काफ़ी मेहमान आ गए थे, मामा पुरुष मेहमानों के साथ लगे हुए थे, आदिल भी मामा का बराबर हाथ बंटा रहा था, मैंने गौर किया अब्दुल कहीं नहीं दिख रहा था, ना जाने कहाँ था हरामखोर,
लेकिन मेरी माँ तो सभी के बीच बैठी थी मामी के साथ, मेरे घर की औरते सजी सवरी मंगल गीत गा रही थी, लेकिन ना जाने क्यों मुझे कामुक औरते नजर आ रही थी, पिछली घटनाओ ने मेरे सोचने का नजरिया बदल दिया था.
"अरे कहाँ जा रहा है इधर आ " मैं बाहर टॉयलेट की तरफ जा रहा था तभी माँ ने मुझे टोंक दिया.
"क्या माँ?"
"अरे जा मौसी को देख कहाँ है, बुला ला, संगीत गाने है "
माँ ने कहाँ, जबकि मैं जानता था मौसी अभी अभी नीचे आई है शायद अपने कमरे मे गई होंगी.
मैं वापस ऊपर पहली मंजिल पर गया, जहाँ हमें रूम दिया गया था उसी के सामने औरतों के लिए बहुत कमरा था, मौसी भी वही रुकी थी, मैं ऊपर कमरे की और चल दिया.
सीढ़ी उतर रहा था की " अबे कहाँ जा रहा है " सामने से प्रवीण और मोहित लुटे पिटे आ रहे थे.
"मेरी छोडो तुम लोग कहाँ गायब थे, खाना खा लिया " मैंने पूछा.
"भूख नहीं है यार, थकान सी हो रही है, हम सोने जा रहे है "
"हाँ सालो.... ढीले कहीं के एक दो दो मिल के एक औरत को नहीं झेल सके " मैं मन ही मन बड़बड़ता आगे बढ़ गया.
मौसी के रूम के सामने खड़ा था, सोचा दरवाजा खटखटा दू, लेकिन जैसे ही दरवाजे को हाथ लगाया चरररर.... से खुल गया.
"आअह्ह्ह.... साले ये नये लड़के आग लगा के खुद मर गए, कमीने पच.. फच... फच.... पच... मैं अंदर से आती आवाज़ सुन के दंग रह गया, तुरंत दरवाजे की ओंट ले ली और अंदर झाँकने लगा.
सामने जो नजारा था उसे देख मेरी गांड फट के रह गई, लंड तुरंत खड़ा हो कर सलामी देने लगा.
सामने मेरी मौसी पूरी तरह नंगी, बिस्तर पर पड़ी हुई थी, टांगे ऊपर को उठी हुई थी, चुत पूरी तरह से खुली हुई थी.
मौसी अपनी चुत को रगड़ रही थी, अँधेरे मे जो चीज नहीं देख पाया था वो मेरे सामने बिल्कुल पास लाइट की रौशनी मे चमक रही थी, मौसी की चुत पर बाल का एक तिनका भी नहीं था, बिल्कुल साफाचट चुत थी मौसी की, पानी से भीगी हुई, सफ़ेद सफ़ेद सा कुछ टपक रहा था चुत से,
देखते ही देखते मौसी ने अपनी दो उंगलियां चुत नमे धकेल दी,
मौसी की दो उंगलियां चुत मे चलकादमी कर रही थी, फच... फच.... उफ्फ्फ.... हरामी साले....
मौसी अपनी चुत मे ऊँगली किये बड़बड़ा रही थी, मेरे दोस्तों को गलियां दे रही थी.
अपने दोनों उन्नत सुडोल दूध को मसल रही थी,
मैं जानता था मौसी की ये हालात क्यों हुई है, अधूरा सम्भोग मौसी को चैन से रहने नहीं दे रहा था.
"आअह्ह्ह... फच.... उफ्फ्फ्फ़..... आउच.... कितनी गरम है निगोड़ी
आअह्ह्ह.... सामने मौसी आंखे बंद किये बड़बड़ा रही थी, मेरा मन तो कर रहा था अभी जबकि धच से लंड पेल दू मौसी की चुत ने, लेकिन रिश्तो की डोर ने मुझे आगे बढ़ने से रोक दिया.
मैं सांस रोके उस हसीन नज़ारे को निहारने लगा, क्या मस्त जवानी की मालकिन थी मेरी मौसी, गद्दाराया भरा हुआ जिस्म, बड़े बड़े तरबूर के अकार के मम्मे, गांड एक दम सुडोल बाहर को निकली, जांघो के बीच एक छोटी सी गुफा जिसमे मौसी की दो उंगलियां अंदर बाहर हो रही ही.
आअह्ह्ह... आउच... फच... फच... फच... आउच....
मौसी बेचैनी से सर इधर उधर पटक रही थी, लगता था शायद कुछ ही पालो मे झड़ जाएगी,
तभी ना जाने क्यों मेरे दिमाग़ मे कीड़े चलने लगे..
ठाक ठाक.... ठाक.... मौसी जी आप अंदर है, आ जाऊ क्या?
मैंने जोर से दरवाजा खड़खड़ा दिया, क्या बताऊ मेरे मन को कितना सुकून मिला, ना जाने क्यों एक अलग ही मजा आ रहा था लोगो के काम बिगड़ने मे.
मैं ऐसा लड़का बन जाऊंगा मुझे खुद को नहीं पता था.
"नहीं... नहीं... रुको बेटा अंदर मत आना, मैं तैयार हो रही हूँ अभी आती हूँ,
"जल्दी आओ गीत शुरू होने वाले है खी खी... खी... मैंने दाँत निपोर के मन ही मन हस दिया
उफ्फ्फ्फ़.... क्या सुकून था, मौसी ने चुत के रस से डूबी उंगलियों को वही चद्दर मे पोंछ दिया और तुरंत उठ खड़ी हुई.
मजा आ गया.... मैं वहाँ से वापस नीचे निकल पड़ा, अब मेरा लक्ष्य माँ और अब्दुल की चुदाई देखने का था.
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12 बजने को ही थे, मैं बाहर बाथरूम के बाहर इंतेज़ाम कर कर आ गया था, रोशनदान के नीचे एक टेबल लगा दी थी, जिस पर मैं आसानी से खड़ा हो सकता था.
अंदर अभी भी सब गाने बजाने मे लगे थे, मौसी भी अब महिलाओ मंडली मे दिख रही थी, सजी सवरी साड़ी पहने, उन्हें देख के कौन कह पाता की अभी अभी वो चुत मे लंड डलवा के आती है.
साला अब्दुल अभी भी आस पास कहीं नहीं दिख रहा था, ना जाने कहाँ मर गया था हरामी.
हालांकि मेरी माँ वही बैठी थी मेरी नजर उनपे ही थी, वो बार बार इधर उधर देख ले रही थी, शायद मेरी माँ भी अब्दुल की ही तलाश मे थी, लेकिन हरामखोर कहीं दिख ही नहीं रहा था.
आदिल जरूर वहाँ मंडरा रहा था, साले की दाद देनी पड़ेगी कल रात से थका हरा अभी भी मेहमान नवाजी मे लगा हुआ था, सभी मेहमानों को चाय, कोल्ड्रिंक्स ड्रिंक सर्व कर रहा था.
खेर मेरा मुद्दा तो ये था ही नहीं, मैंने घड़ी पर नजरें घुमाई 11.55 हो गए थे, माँ अभी भी वही थी, मुझे लगने लगा था अब कुछ नहीं हो सकता, मैं अपने कमरे की ओर जाने लगा,
"अरे भाभी कहाँ जा रही हो " मामी की आवाज़ ने मेरा ध्यान खिंचा..
मेरे कान खड़े हो गए, साथ ही लंड मे भी खुजली सी होने लगी.
मैं वापस वही अपनी जगह पर जम गया, माँ, मौसी और मामी के पीछे कुर्सी थी वही मैंने आसान जमा रखा था, बाकि आँगन मे सब मेहमान बैठे थे.
"अरे आरती आ रही हूँ ना अभी " माँ ने छोटी ऊँगली दिखा पेशाब का इशारा किया,
बस फिर क्या था मैं समझ गया मेरी माँ कहाँ जा रही है, मैं भी चुपचाप खड़ा हो बिना माँ को देखे वहाँ से निकल लिया, मुझे अब इंतज़ार नहीं हो रहा था.
2मिनट के अंदर मैं बाथरूम के पीछे टेबल के ऊपर रोशनदान मे मुँह घुसाए खड़ा था.
"साला अब्दुल मादरचोद यहाँ है" अब्दुल पहले से ही बाथरूम मे मौजूद था, पता नहीं कब से चुत के इंतज़ार मे यहाँ बाथरूम मे ही बैठा था साला कमीना, तभी कहीं दिख नहीं रहा था.
लेकिन माँ नहीं दिख रही थी, मुझे 5 मिनट बीत गए थे अंदर झाँकते, अब्दुल ही चहल कादमी कर रहा था यहाँ से वहाँ.
लेकिन मेरी माँ अभी तक यही आई थी,.
"कहाँ रह गई मेरी माँ" मैं बड़ा बेचैन था मुंहे शर्म आनी चाहिए थी लेकिन ना जाने मया उत्साह जगा हुआ था मेरे दिल मे.
मेरा सोचना ही था की छह्ह्ह्हरररररर..... करता बाथरूम का दरवाजा खुल गया,
एक मीठी मनमोहक खुसबू सी पुरे बाथरूम मे फ़ैल गई, मैं भी सांस रोके उस साये को देखने लगा, हालांकि दरवाजा मेरी नजरों से थोड़ा परे था,
कोई औरत अंदर तो आई थी, मेरी माँ ही थी और कौन होगा, घुटनो से नीचे का हिस्सा दिख रहा था, जिस पर साड़ी लिपटी हुई थी,
साला मुझे अभी याद भी नहीं की माँ ने कौनसी साड़ी पहनी थी, गजब पगलाया हुआ था मैं, मेरे हाथ अपने लंड पर कस गए थे, मैं जानता था अब क्या होने वाला है.
लेकिन ये... ये क्या... जैसे ही दरवाजा खुला अब्दुल भाग के लेट्रिन के दरवाजे के पीछे जा छुपा, मतलब की बिल्कुल ठीक रोशनदान के नीचे जहाँ मैं ऊपर खड़ा था.
मेरे कुछ समझ नहीं आया, साले को तो माँ को दबोच लेने चाहिए था, ये हरामी अब कौनसा गेम खेलना चाहता है.
मेरे दिल और दिमाग़ मे हैरानी का तूफान मचा हुआ था.
"₹*%*&-₹-₹-₹--#//:':#&बला बला बला...*#" अब्दुल ना जाने क्या बड़बड़ा रहा था, कुछ तो फुसफुसा रहा था जो की मेरे समझ के बाहर था
बाथरूम का दरवाजा बंद हो गया, मेरी माँ की पीठ मेरी तरफ थी, माँ जिस काम के लिए आई थी वही किया शायद बहुत जोर से लगी थी, माँ ने तुरंत अपनी साड़ी को कमर के ऊपर तक उठा लिया, ब्लैक कलर की चड्डी चमकने लगी, देखते ही देखते वो भी घुटनो टक आ गई,.
माँ तुरंत ही वही वाशबैशीन के पास फर्श पर ही उकडू बैठ गई, उसने अंदर लेट्रिन तक आने का भी सब्र नहीं किया.
जैसे जैसे माँ झुकती गई उसकी कामुक गोल सफ़ेद गांड का हिस्सा खुलता चला गया, धममममम से बैठ गई..
.
ससससर्रर्रर्रम्म्म....... सससससईईक्क..... की आवाज़ के साथ पेशाब की धार माँ को चुत से निकल पड़ी एक कामुक मदहोश कर देने वाली सुगंध वहाँ फ़ैल गई, जिसे अब्दुल ने भी महसूस किया, उसका पजामा घुटनो तक आ गया था, हाथ मे विशालकाय 9इंच के लंड को लिए सहला रहा था.
क्या शानदार लंड था अब्दुल का नशो से भरा हुआ एक दम कड़क, मर्द हो के मैं तारीफ कर उठा.
ठीक रोशनदान के नीचे दिवार से पीठ टिकाये बेफिक्र अपने लंड को मसल रहा था जैसे सांत्वना दे रहा हो " सब्र कर यर गांड तेरी ही है "
मेरी माँ मस्ती से मुते जा रही थी, गांड को फैलाये, टांगे चौड़ी किये, अब्दुल के जिस्म ने हरकत की उसके कदम आगे बढ़ गए.
इतना की वो ठीक मेरी माँ की पीछे खड़ा था उसका लंड ठीक माँ के सर के ऊपर लटक रहा था, भारी भरकम टट्टे बस माँ के बालो को छूने ही वाले थे.
शायद मेरी माँ को भी उसका अहसास हो गया था, एक दम से माँ पीछे पलटी...
हे भगवान.... ये.... ये... ये.... क्या.. ये.. ये तो मेरी माँ नहीं है, कहाँ गई मेरी माँ
मेरी गांड सुख गई थी, सामने बाथरूम मे मेरी माँ नहीं थी,
सामने अब्दुल के लंड के नीचे मेरी मामी आरती थी, जिसे मैं अपनी माँ समझ रहा था वो मेरी मामी आरती थी.
मेरी ही जैसी हालात मेरी मामी की भी थी, जैसे ही वो पलटी सामने अब्दुल कमर के नीचे बिल्कुल नंगा खड़ा था, साथ ही उसका तूफानी 9इंच का लंड मामी के मुँह के सामने सीना ताने खड़ा था.
"त्तत्तत्तत्त...... तुम.... तू.. ममममम..... अब्दुल्लाह..अब्दुल... ड्राइवर?" मेरी मामी की आंखे हैरानी से फटी जा रही थी,
इस चककर मे मामी का बैलेंस बिगाड़ गया, धम्मद.... से फच करती हुए मामी की विशाल गांड वही फर्श पर अपने पेशाब पर जा गिरी.. मामी वही जमीन पर बैठ गई, टांगे वैसे ही फैली हुई थी, मामी की चुत मुझे साफ दिखाई पद रही थी, मामी के साथ साथ मेरा भी दिमाग़ चकरा रहा था.
ये क्या हुआ, मेरी माँ की जगह मेरी मामी कहाँ से आ गई, ये यहाँ है तो मेरी माँ कहाँ है.
"हाँ मामी जी वो मुझे भी पेशाब आया था " अब्दुल ने बिना झिझक साफ साफ कह दिया.
मामी को तो जैसे साफ सूंघ गया था, टांगे फैलाये वैसे ही फर्श पे पड़ी हुई थी, हाथ पीछे को फर्श पर टिके हुए थे, चुत से पेशाब अभी भी रह रह के निकल रहा था,
सामने ही अब्दुल का काला लंड, विशालकाय 9इंच का जवान मुस्तेदी के साथ ठीक मामी के चेहरे के सामने ही खड़ा था.
मामी अभी कुछ कहती की " आपकी खूबसूरत गांड देख के खुद को रोक ना पाया मैं "
मामी पर तो एक के बाद एक प्रहार हो रहे थे, मामी क्या मैं भी वैसे ही जड़ अवस्था मे खड़ा था.
"ललललल..... लेकिन...." मामी कुछ कहना चाह ही रही थी की
अब्दुल ने अपनी कमर को आगे की ओर सरका दिया.
अब्दुल का लंड ठीक मामी के होंठोबके सामने आ गया था, उसके लंड से निकली कैसेली मादक मर्दाना गंध मामी के जिस्म मे सामने लगी.
मामी ने एक पल को आंखे बंद कर वापस खोल दी, लेकिन इस बार मामी की आँखों मे लाल डोरे तैर रहे थे, एक वासना सी दिख रही थी,
उजेली रौशनी मे मुझे मामी के खड़े हुए रोंगटे साफ महसूस हो रहे थे.
"यहाँ मेरे और आपके अलावा कोई नहीं है मामी, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा " कहते हुए अब्दुल ने कमर को और अगर सरका दिया इतना की हक्की बक्की मौसी के लाल सुर्ख हिंठो को अब्दुल का गन्दा सूपड़ा छू गया.
लेकिन मजाल की मामी ने अपना सर इधर उधर किया हो, शायद मामी ने ऐसा लंड अपने जीवन मे कभी देखा ही नहीं था,
क्या हुआ, कैसे हुआ, अब्दुल यहाँ क्यों और कैसे आया इस बात की कोई फ़िक्र नहीं रह गई थी, मामी वैसे ही बूत बनी फर्श पे पड़ी हुई थी..
अब्दुल समझ गया था ये कहीं नहीं जाने वाली, साला कितना कॉन्फिडेंस मे था.
अब्दुल ने कमर को फिर से एक झटका और दिया इस बार अब्दुल का लंड मामी के होंठो को चुम ले वापस लौट आया.
मामी तस से मस ना हुई.." ऐसे अवसर बार बार नहीं आते मामी जी " अब्दुल ने अपनी बातो पर जोर दिया.
जबकि जवाब मे आंखे बंद कर खोल ली, जैसे कोई अमौखिक स्वीकृति दी हो .
मामी की दबी हुई कामवासना जगने लगी थी, ऊपर से अब्दुल के काहे शब्द मामी को वहाँ से हिलने नहीं दे रहे थे.
अब्दुल ने एक दो बार फिर वही किया अपने लंड को आगे धकेल मामी के होंठो से छुवता फिर खिंच लेता....
एक अजीब से काम वासना तैर रही थी उस बाथरूम मे, अब्दुल के लंड से एक मर्दाना गंध मामी की नाक ने जा रही थी, यही वो जादू था जिसने मामी को पकड़ के रखा था.
मैंने देखा अब्दुल ने इस बात फिर से कमर को आगे चलाया, लेकिन इस बात अब्दुल का लंड मामी के दांतो से टकरा गया, मामी ने अपने लाल होंठो को हल्का सा खोल दिया था.
इईईस्स्स्स....... उउउउफ्फफ्फ्फ़..... अब्दुल और मामी के गले से एक साथ एक आह फुट पड़ी,
ये रजामंदी की आहट थी.
अब्दुल मामी के इरादे भाँप चूका था, उसने एक बार फिर कमर को पीछे कर आगे किता इस बार फिर अब्दुल का लंड मामी के दाँत सर टकरा गया,
मामी एकटक आंखे फाडे अब्दुल को देखे जा रही थी, अब्दुल के चेहरे पे गंदी मुस्कान थी, गुटके से लाल दाँत चमक रहे थे, वही मामी के मोती जैसे सफ़ेद दाँत से अब्दुल का काला लंड टकरा रहा था.
मेरे सामने अब्दुल की गांड थी, और उसकी टांगो के बीच से झाँकता हुआ मामी का गद्दाराया जिस्म जो की साड़ी मे अभी भी ढका हुआ था, बस कमर कर नीचे का हिस्सा नंगा था, काली चड्डी घुटनो के बीच अटकी पड़ी थी.
अब्दुल ने इशारो मे कुछ कहाँ, जिसे मामी ने गार्डन हिला कर स्वीकार किया....
पऊऊऊकक्क्मीम्म्म..... पच.... आआहहहहहह..... अब्दुल ने वापस से कमर को आगे ठेला इस बार मामी ने अपने मुँह को खोल दिया, पकककक... पिचहह..करता अब्दुल के लंड का मोटा सूपड़ा मामी के मुँह मे समा गया.
असीम आनंद और कैसेले मर्दाना गंध से मामी की आंखे बंद हो गई,
अब्दुल ने लंड वापस खींचना चाहा लेकिन वो ऐसा करने मे कामयाब नहीं हुआ, मामी के होंठ अब्दुल के सुपडे के चारो ओर कस गए थे, ना जाने कब से मामी इस पल की प्रतीक्षा ने थी.
अब्दुल मानो जन्नत मे था, मामी सुपडे को अपने मुँह मे कैद मिए अंदर से अपनी जबान सुपडे पर चला रही थी.
आहहहह.... Uuuffff... अब्दुल की आह फुट पड़ी, उसके हाथ मामी के सर पर कसने लगे टांगे और दूर होने लगी,
कमर आगे को धकियाने लगा, मामी ने भी उसके प्रयासों का स्वागत किया, और मुँह को थोड़ा और खोल दिया.
पछह्ह्ह.... पुकंम्म्म.... करता अब्दुल का आधा लंड मामी के मुँह मे समा गया.
उउउफ्फ्फ्फ़.... मैं तो उस अहसास की कल्पनाओ कर के ही मरा जा रहा था,.इस दृश्य को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था मैं, मैंने तुरंत अपना पजामा नीचे किया और मुट्ठी मे लंड को कस लिया.
अंदर बाथरूम मे अब्दुल का लंड अपनी जगह बना चूका था, उसका लंड मामी के मुँह मे अंदर बाहर हो रहा था, बिना किसी रोक टोक के. मामी वैसे ही जमीन पर कूल्हे टिकाये, हाथ से खुद को सहारा दिए मुख मैथुन का आनंद ले रही थी.
पच... पच... वेक... वेक.... गु.. गुवुगु... करता अब्दुल का विशाल लंड मामी के मुँह मे आधे से ज्यादा समा कर वापस लौट आता,
अब्दुल का लंड थूक से सन गया था, एक लार सी चुति हुई मामी की गोद मे गिर जा रही थी, जैसे कोई चासनी का तार बना गया हो.
अब्दुल तो जन्नत मे था कहाँ मेरी मम्मी के आने की उम्मीद थी और कहाँ मेरी मामी मिल गई, मामी भी वासना से भरी औरत जान पड़ती थी जो की अब्दुल के लंड को देख पिघल सी गई.
मुँह खोले अब्दुल के लंड का स्वागत कर रही थी.
अब्दुल ने मामी के सर को पकड़ कर एक जोरदार झटका दिया, उसका मोटा लंड मामी के गले तक समा गया, मामी की आंखे बाहर को उबल आई, गो... गो... गुम.. फुम.. मामी की सांसे फूलने लगी थी, मामी के हाथ अब्दुल की जांघो पर कसने लगे, उसे पीछे धकेलने लगे.
मुझर डर लगने लगा था ये हरामी अब्दुल कर क्या रहा है, कहीं मेरी मामी को मार ही ना डाले.
5सेकंड बाद ही अब्दुल ने अपनी पकड़ ढीली की.
वेक.... गुऊऊ. खोम.. खो.. खाऊ...... वेक थू... थू.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़... हमफ़्फ़्फ़.... मामी के मुँह से अब्दुल का लंड बाहर निकल गया, साथ ही ढेर सारा थूक भी मामी के गले से होता ब्लाउज को भिगोने लगा,.
मामी का पल्लू तो कबका हट चूका था, लाइट की रौशनी मे ब्लाउज से बाहर निकलने स्तन थूक और पसीने से चमक रहे थे.
उफ्फफ्फ्फ़.... क्या खूबसूरत थे मेरी मामी कर दूध, एक दम गोरे, सुडोल गोल आकर के, पता नहीं मामा ने इन्हे कभी दबाया भी था की नहीं.
अब्दुल पीछे हाथ के अपने लंड को हिला रहा था, मामी की हालात पे मुस्कुरा रहा था.
"कभी लंड चूसा नहीं क्या मामी जी "
"खो... खोम्म्म... खाऊ... कमीने... ऐसे कोई करता है, और ये क्या मामी जी मामी जी लगा रखा है, मेरी उम्र के ही तो लगते हो " मामी वैसे ही टांगे खोली बैठी थी.
"तो क्या बोलू?" अब्दुल मामी की सफचाट चुत देख लंड हिला रहा था.
मामी की नजर भी उसी लंड पर थी, जो की उसी के थूक से जगमगा रहा था.
"आरती बोलो " मामी के हाथ अपनी जांघो पर चले गए, कामवासना मे डूबी गई थी मामी,
"अच्छा तो आरती तूने लंड नहीं चूसा क्या कभी?" अब्दुल वापस नजदीक आ गया जैसे मामी को पास से अपना लंड दिखा रहा हो.
"ऐसा नहीं चूसा... तुम्हारा बहुत बा... बड़ा है " मामी ने ये बात बोल अपने होंठो को हलके से काट लिया, उनमे कोई शर्म ही नहीं थी.
मामी के हाथ अपनी चुत पर रेंगने लगे थे,
जैसे कोई इशारा कर रही हो, वैसे भी जब वासना सर पर चढ़ती है तो शर्म का नामोनिशान खत्म हो जाता है.
मामी की चुत बिल्कुल पानी पानी हो रही थी, लाइट की रौशनी मे ठीक मेरे सामने चमक रही थी.
हवास के मारे मामी की चुत का दाना बिल्कुल तन के बाहर को निकल आया था.
अब्दुल ने इशारे को भाँप लिया, टाइम भी कम ही था, अब्दुल मामी कर घुटनो के बीच जा कर घुटनो के बल बैठ गया.
अब्दुल का भयंकर काला बड़ा लंड ठीक मामी की चुत को प्रणाम कर रहा था, जैसे इज़ाज़त मांग रहा हो युद्ध मे जाने से पहले.
मामी भी उस पल को समझ चुकी थी, आंखे बंद कर सांसे खिंच आंखे खोल दी.
मैं औरत के व्यवयहार से हैरान था, कैसे प्यार की कोई भाषा ही नहीं होती है बस सब अपने आप समझ जाये है.
लेकिन ये तो हवास की भाषा थी यहाँ तो इशारे की जरुरत भी नहीं पडती.
अब्दुल ने मामी को जांघो को पकड़ थोड़ा ऊपर को उठा अपनी जांघो पर चढ़ा लिया,
ऐसा करते ही अब्दुल का लंड मामी को गीली चुत की लकीर को छू गया.
इसससससस...... अब्दुल..... उउउफ्फ्फ्फ़... मामी सिहर उठी.
अब्दुल ने कमर को ऊपर नीचे कर अपने लंड को मामी की चुत की लकीर पर पूरा घुमा दिया, जैसे कोई मजदूर खुदाई से पहले जमीन का जायजा के रहा हो.
कठोर मोटे लंड की रगड़ से मामी का रोम रोम खड़ा हो गया, सिस्कारी फुट पड़ी.
मामी ने अपनी कमर को आगे धकेल उस लंड को ऐसा करने से रोकना चाहा और चुत को निशाने पर सेट करने लगी.
मामी खुद चुदना चाह रही थी,
मेरा भी बुरा हाल था, मैं अपने लंड को घिसे जा रहा था, मेरे पैर कांप रहे थे अगले पल का इंतज़ार था मुझे.
"अंदर डालो अब्दुल अब... इस्स्स.... आह्हः..." मामी आंखे बंद कर बुदबूदा रही थी.
अब्दुल समझ गया था लोहा गरम है, उसने अपनी कमर को आगे की ओर धकेल दिया.
आआआहहहहह..... उउउफ्फ्फ्फ़.... आउच... अब्दुल का मोटा सूपड़ा पच... से मामी की चुत मे समा गया.
मामी को शायद झटका तो लगा था, उनकी गांड हवा मे झूल गई थी, लेकिन तुरंत ही जमीन पर टिक गई, जाँघे विपरीत दिशा मे और ज्यादा फ़ैल गई.
आआहहब.... अब्दुल....
अब्दुल ने एक झटका और लिया लंड गीली चुत मे सरकता हुआ आधा समा गया.
इस्स्स.... उउउफ्फफ्फ्फ़... अब्दुल.. मामी ने आंखे खोल अब्दुल को देखा, मामी के चेहरे मे असीम सुख था,
"कितना गरम है... उउफ्फ्फ..." मामी ने अपनी जांघो के जोड़ के बीच देखा, एक मोटा काला लंड गोरी साफ सुथरी चुत मे अंदर धसा हुआ था.
अब्दुल ने लंड वापस बाहर को खिंचा, और धच से वॉयस अंदर दे मारा..
आआआह्हः..... उउउफ्फ्फ्फ़... आउच.. मामी फिर से कराह उठी, अबकी बार इस करहत मे हवास थी, आनंद था प्यास थी.
मामी की गांड हवा मे उठी फिर जमीन पर आ टिकी.
अब्दुल ने फिर से लंड बाहर खिंचा, फिर वापस उसी तेज़ी से अंदर ठेल दिया.
आअह्ह्.... उउउफ्फ्फ... मामी हर धक्के के साथ हवा मे उठ जाती थी,
अब्दुल हर धक्के के साथ मामी के अंदर और ज्यादा समता जा रहा था,
धच... धच.... पच... पच... की आवाज़ के साथ अब्दुल मामी को चोदने लगा कोई 1 मिनट मे ही अब्दुल के लंड ने इतनी जगह बना ली थी की इस बार जोर के धक्के के साथ अब्दुल क पूरा 9इंच का मोटा लंड मामी की चुत मे जड़ तक समा गया था.
मामी ये दृश्य देख खुद हैरान थी,
"आआहहब.... अब्दुल ये तो पूरा अंदर चला गया इउउफ्फ्फ... " मामी ने कमर को पीछे खिंचा.
"चुत बनी ही इसलिए होती है, उसके अंदर तो पूरा पहाड़ समा जाये " अब्दुल ने लंड खिंच के वॉयस जड़ तक ठेल दिया.
"आअह्ह्ह... उफ्फ्फ... हट बदमाश, कहाँ तुम्हारे मामा का लंड और कहाँ ये तुम्हारा ना जाने कैसे घुस गया आउच..."
मामी भी अब्दुल के धक्को का जवाब दे रही थी.
धच.... पच... प
फाचक.... फच... की आवाज़ गूंजने लगी थी,
"आआहहब्ब.... अब्दुल....जोर से करो इसससस.... ना जाने कब से लंड नहीं गया है इसमें " मामी अब्दुल को उकसा रही थी.
"आपकी जैसी औरतों की सेवा ही इस अब्दुल का फार है आरती जी " अब्दुल धचा धच. मामी की चुत मारे जा रहा था.
आआहहहह... आअह्ह्ह... उउउफ्फ्फ...आउच.. ऑफफ....
मामी सिसक रही थी कराह रही थी, अब्दुल के लंड का आनंद उठा रही थी.
"आअह्ह्ह.... अब्दुल तुम्हरे बड़े लंड ने मेरी चुत को भर दिया है, ऐसा मुझे कभी महसूस नहीं हुआ और अंदर मारो, चोदो मुझे आअह्ह्ह.... उउउफ्फ्फ.... आअह्ह्ह....
मामी बेतहाशा बड़बड़ा रही थी, अब्दुल को उकसा रही थी, मैं खुद हैरान था सती सावित्री दिखने वाली मेरी मामी इस कद्र बात कर सकती है, अनजान मर्द से चोदने को बोल रही थी.
"ले साली... और ले कब से प्यासी थी तू, ले मेरा लंड और अंदर ले पच फच फच फचकककम.. धच... अब्दुक दनादन मामी की चुत को पेले जा रहा था.
चूडियो और चुत से निकली आवाज़ बाथरूम मे गूंज रही थी.
मैं उल्लू का चरखा मामी को चुदते देख रहा था, और घर के अंदर मंगल गीत गए जा रहे थे.
शादी मामी के लड़के थी, लेकिन सुहागरात मामी मना रहु थी.
अंदर मामी अब तक पूरी तरह फर्श मे चित लेट गई थी, पूरी तरह से टांगे हवा मे फैली हुई थी.
अब्दुल उस गोरी चिकनी जांघो के बीच अपना मुसल धसाये मामी को जबरजस्त चोदे जा रहा था
"आअह्ह्ह.... उउउफ्फ्फ. मर गई रे... आउचम.. क्या चोदता है तू, रोज़ चोदा कर मुझे... आअह्ह्ह..... मैं तो रोज़ चुदवाओगी तुझसे.. उउउफ्फ्फ... आअह्ह्ह.... मार जोर से चोद मुझे... खुजली मिटा दे मेरी.
मेरी मामी आरती बड़बड़ा रही थी.
धच.. धच... फच.. फेवह...
फच.... अब्दुल लगतरा बिना रुके चोदे जा रहा था, मामी की चूर पूरी तरह भीग गई थी, अब्दुल का लंड जैसे ही बाहर आता बिल्कुल चमकता दिखता, वापस पलभर मे जड़ तक मामी की चुत मे समा जाता,
मामी की साड़ी कमर पे सिमट गई थी, काली चड्डी साइड मे फर्श पर गीली पड़ी थी.
बताओ मेरी मामी को कपडे खोलने का भी टाइम नहीं दिया हरामखोर ने.
ठाक... ठाक... ठाक.... अचानक दरवाजा बजने की आवाज़ आई.
अंदर मामी और अब्दुल वही के वही रुक गए, कौन आ गया इस परमानन्द के बीच.
"आरती.... आरती... अंदर हो क्या " बाहर मामा की आवाज़ थी.
"ईईस्स्स्स..... मामी ने अब्दुल को चुप रहने का इशारा किया.
"हहाँ जी हम्मफ़्फ़्फ़.... यही.. हूँ... क्या हुआ?"
अरे कितना टाइम लगेगा, संगीत ख़त्म होने वाला है जल्दी आओ.
"जज.... उउउफ्फ्फ... आउचम.. जी... आई "
अब्दुल ने एक झटका दे दिया.
"क्या हुआ आरती ठीक तो हो ना?" शायद मामी की करहने की आवाज़ बाहर पहुंच गई थी.
"कक्क... कुछ... नहीं पानी फैला हुआ है तो फिसलने से बची " मामी ने अब्दुल को घूरते हुए गार्डन घुमा कर धक्के लगाने ज़े मना किया.
"अच्छा जल्दी आओ, और अमित को कहीं देखा क्या?"
फच... फच... धच.... उउउउफ... इस्स्स.... रुको अभी प्लीज .. मामी ने अब्दुल की कमर को अपने पैरो से कसते हुए कहाँ.
मेरा नाम सुन कर मेरे कान खड़े हो गए.
"ननन... ननन... उउफ्फ्फ... नहीं तो नहीं देखा " अब्दुल धीरे धीरे अपनी कमर को चला रहा था लेकिन चुत इतनी गीली हो चुकी थी की पच पच... की आवाज़ अभी भी आ रही थी.
"अच्छा ठीक है मैं कहीं और देखता हूँ " मामा वहाँ से निकल गए थे.
मुझे भी अब जाना चाहिए था कहीं मामा इधर ही ना आ जाये.
मैंने एक नजर अंदर देखा.
"जल्दी करो अब जाना है मुझे, फिर कभी करेंगे " मामी ने अब्दुल को कहाँ.
"जो आज्ञा महारानी " धच.... धच.... पच.. पच.... करता अब्दुल पूरी रफ़्तार से मामी की चुत को रोंदने लगा.
मामी ने शायद ऐसी चुदाई कभी नहीं की थी,
मामी भलभला के झड़ने लगी, मामी का जिस्म काँपने लगा, लेकिन अब्दुल नहीं रुका, वो लगातार धचा धच मामी की चुत मारे जा रहा था.
5मिनट तक लगातार एक ही रफ़्तार मे मामी की चुत चोदता रहा.
मैं भी अब नीचे उतर गया था,. मुझे अंदर हाल मे पहुंचना था.
"आआआहहहह.... आरती मैं गया.... उउफ्फ्फ..."
ईईस्स्स.....
जाते जाते मुझे अब्दुल और मामी की सम्मलित कराहने की आवाज़ आई मैं समझ गया था मामी की चुत अब्दुल के वीर्य से भर गई गई.. अब रुकना बेमानी थी.
मैंने अपने लंड को तुरंत पाजामे मे सेट किया और अंदर हॉल मे आ गया.
मैंने टाइम देखा 1बज गए थे इसका मतलब मामी 1 घंटे से चुद रही थी.
उउउफ्फ्फ... साला ये अब्दुल गजब की चीज निकला.
मैंने आस पास नजर दौडाई मम्मी कहीं नहीं थी, एक्का दुक्का महिलाये गीत गा रही थी जो की समाप्ति पर ही था.
मेरी मौसी कामिनी वहाँ जरूर बैठी हुई थी,
"अरे कहाँ रह गया था कब से हम लोग तुझे ढूंढ़ रहे है " पीछे से मामा की आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा.
"कक्क... क्या हुआ मामा, मैं जरा बाहर टहलने चला गया था पेट गड़बड़ हो रहा था.
"और ये ड्राइवर अब्दुल कहाँ है?" मामा ने पूछा.
अब्दुल का नाम सुनते ही मेरा लंड वापस खड़ा होने लगा, मामी की चुदाई का दृश्य आँखों के सामने नाचने लगा.
"बोल ना "
"पप्प... पता नहीं मैंने भी नहीं देखा, कुछ काम था क्या?"
"हाँ तेरी बहन अनुश्री और जीजा जी मंगेश आ रहे है, उन्हें ही लेने जाना था " दीदी और जीजा जी के आने के नाम से मैं खुश हो गया
"तो चलो चलते है ना लेने " मैंने कहाँ.
"रहने दे अब, तेरी माँ और आदिल निकल गए है उन्हें लेने "
मामा के शब्दों ने मेरे ऊपर जैसे बिजली गिरा दी.
साला ये मौका मैं कैसे चूक गया, माँ के इंतज़ार मे मामी की चुद गई.
इधर साला मादरचोद आदिल माँ के साथ अकेले निकल गया.
मेरे सामने अलग अलग दृश्य दौड़ने लगे, साला जरूर फायदा उठाएगा हरामी मेरी माँ का, मुझे इस बात का अफ़सोस था की मैं वो सब नहीं देख पाउँगा.
लेकिन खुशी भी थी मैं अपनी दीदी और जीजा जी से मिलने वाला हूँ.
मुझे पुरे 2 साल हो गए थे अपनी दीदी अनुश्री से मिले.
हम दोनों की खुद पटती थी, लेकिन मेरी पढ़ाई नौकरी फिर दीदी की शादी के बात हमारी मुलाक़ात ही नहीं हो पाई.
मेरे जीजा मंगेश भी अच्छे इंसान थे, मेरा बहुत ध्यान रखते है, छोटे भाई जैसा ही समझते है.
"कब आनी है ट्रैन मामा जी "
"2बजे तक आ जाएगी " मामा ने कहाँ.
"उमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़...." मैंने चैन की सांस ली चलो उस हरामी आदिल को टाइम नहीं मिल पायेगा.
मैं खुश था.
"क्या हुआ जी क्यों दरवाजा पिट रहे थे " सामने से मामी चली आ रही थी,
चेहरे पे वही भोलापन, वही सादगी
साला कोई कह सकता था ये अभी अभी उछल उछल के गैर मर्द से चुद रही थी.
"हाय री औरत "
"इतना भी कोई टाइम लगता है भला, पूरा संगीत खत्म होने को है, रेशमा और कामिनी कब से तुम्हे ढूंढ़ रही थी "
"भाभी को बोल के तो गई थी की टॉयलेट जा रही हूँ "
ओह्ह्ह... अब समझ आया माँ की जगह मामी कहाँ से आ गई, संयोगवंश माँ से पहले मामी को पेशाब लग गई, इधर माँ को स्टेशन जाना पड़ा.
"और ये ऐसे क्यों चल रही हो " मामा ने मामी की चाल को देखते हुए कहाँ.
"वो... वो... अजी.. वो कितना पानी फैला हुआ है बाथरूम मे, फिसलते हुए बची हूँ मैं, अच्छा हुआ ज्यादा नहीं लगी, कितनी बार बोला है सुबह शाम साफ करने को बोला करो "
मामी बड़ी चतुराई से सारा ब्लेम मामा के ऊपर डाल चल दी.
मैं और मामा उल्लूओ की तरह मामी को जाते देखते रहे.
मामी की चाल थोड़ी अजीब तो थी, दोनों पैर थोड़े फैला के चल रही थी, कुल्हो मे लचक ज्यादा आ गई थी.
कारण मुझे पता ही था.
खेर मैं अपने कमरे की और चल दिया.
मुझे खुशी थी अपनी दीदी अनुश्री से मिलने वाला हूँ.
Contd....
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