मैं सांसे रोके सीढ़ी के दरवाजे के पीछे छुप गया, कदमो की आहट और चूडियो की खनख़ानहट नजदीक आ रही थी.
मेरे दिल धाड़ धाड़ कर बज रहा था, परछाई छत पर पड़ने लगी थी, मैं थोड़ा पीछे खिसक कर दिवार की ओट मे हो गया.
वो साया छत पर आ चूका था, उसने पलट के सीढ़ी का दरवाजा वापस लगा दिया, सीढ़ी से आती रौशनी पूरी तरह बंद हो गई थी, मुझे एक औरत की आकृति सी दिझ रही थी.
मदमस्त, हट्टी कट्टी काया, उसने silk का गाउन पहना हुआ था,
वो साया टंकी के पास तक पहुंच गया था.
"अच्छा तो यहाँ मौज कर रहे हो तुम दोनों "
मैं उस औरत की आवाज़ से चौंक गया जानी पहचानी आवाज़ थी.
"ममम... मौसी आप यहाँ?" प्रवीण और मोहित भी चौंक गए
सामने मेरी मौसी खड़ी थी.
मेरी भी आंखे अँधेरे मे देखने की थोड़ी आदि हो गई.
सामने वाकई मेरी मौसी थी, मस्त silk गाउन पहने हुए, हाथो मे लाल चूड़ी, गोरी चमकती त्वचा.
"हाँ वो कपडे लेने आई थी अपने, जो शाम को तुम लोगो ने सुखाए थे " मौसी ने कमर पर हाथ रखते हुए कहा.
"अच्छा वो... मोहित भाग कर मौसी की कच्छी ले आया जो तसरीफ पर सुख रही थी.
"ये लो मौसी.... लल्ल.... लेकिन " मोहित ने मौसी की छोटी सी कच्छी सामने लहरा दी
"क्या लेकिन?"
"इतनी छोटी कच्छी मे आपकी गांड आ जाती है " मोहित ने हिम्मत दिखाई.
"हट बदमाशों अभी तक तुम्हारी सुई वही अटकी है "
"आप हमारी सुई वहाँ से निकाल दो तो आगे बढ़े ना मौसी " इस बार प्रवीन ने कहाँ.
"हाँ आ जाती है बुद्दू " मौसी ने हसते हुए मोहित के हाथ से अपनी कच्छी ले ली.
"हमें तो नहीं लगता "
"क्या नहीं लगता?"
"यही की आपकी आ पाती होंगी, आपकी तो बहुत बड़ी है गांड " प्रवीण ने गांड शब्द पर जोर दिया.
"हट पागल..." मौसी ने झिड़कते हुए कहाँ
"बताओ ना मौसी " मेरे दोनों दोस्त जिद्द पर अड़ गए थे
जवाब मे मौसी ने जो किया उसके बाद मेरा और मेरे दोस्तों का मुँह खुला का खुला रह गया.
मौसी ने अपने गाउन की गांठ को खोल दिया, मौसी का गद्दाराया कामुक जिस्म मेरे दोस्तों के सामने था, सिर्फ ब्रा पैंटी मे.

"लो देख लो ऐसे आती है " मौसी ने बेहिचक अपने जिस्म की नुमाइश कर दी थी.
मेरे दोनों दोस्तों की आंखे फटी की फटी रह गई, मेरी तो गांड ही फट गई सामने का नजारा देख कर.
मौसी ने बेशर्मी से गाउन को खोल दिया था, चिकने हिस्म से silk का गाउन साइसराता जमीन चाटने लगा.
ब्लू ब्रा पैंटी मे मेरी मौसी का गोरा गद्दाराया जिस्म अँधेरे मे भी चमक रहा था.
ये अभी कम ही था की मौसी घूम गई, उनकी गांड मेरे दोस्तों के मुँह के सामने थी. पैंटी गांड की दरार मे घुसी हुई थी, बड़े तरबूज के आकर की सुडोल गांड पूरी तरह आज़ाद चमक रही थी.
"ममममम... मौसी पैंटी मे तो नहीं आती आपकी गांड " मोहित ने सूखे गले से बोला.
"मैंने कब कहाँ की पैंटी मेरी गांड को ढक लेती है " मौसी ने अपनी कमर को हल्का सा हिलाया
दोनों गांड के हिस्से आपस मे टकारा के अलग हो गए.
ये टकराहत हम तीनो के लंड खड़े कर देने के किये काफ़ी थे.
"फ़फ़फ़.. फिर मौसी इस कच्छी का क्या काम?"
प्रवीण ने कहाँ.
"ये काम है आगे का हिस्सा ढकने का " मौसी वापस सीधी घूम गई.
दोनों दोस्तों की नजर मौसी की जांघो के बीच गई जहाँ पैंटी ने तिकोना हिस्सा बनाया हुआ था और इस कद्र टाइट थी की चुत की लकीर साफ देखी जा सकती थी.
चुत के मोटे मोटे होंठो के बीच पैंटी ने एक लकीर खिंच दी थी.
एक भीनी भीनी से खुसबू छत पर फ़ैल गई थी.
"उफ्फफ्फ्फ़.. मौसी जी बहुत टाइट लगती है आपकी " प्रवीण ने होंठो पर जीभ फेरते हुए कहाँ.
"क्या टाइट है?" मौसी नखरे करती हुई बोली.
"च.... चु... चुत आपकी" मोहित ने बोल ही दिया
"इस्स्स.... हट बदमाश, कैसी बात करते हो, अब तो बूढ़ी हो गई हूँ मैं " मौसी ने अपने स्तन को टटोलते हुए कहाँ,
"देख के तो नहीं लगता आप बूढ़ी है" मोहित ने कहाँ
"चेक कर लेते है ना, सस्नेन्नणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़...... उउउफ्फ्फ.... प्रवीण ने मौसी की जांघो के बीच नाक घुसा के एक लम्बी सांस खिंच ली.
"आअह्ह्ह... इसससस....ये क्या कर रहे हो?" मौसी को ये उम्मीद नहीं थी उनके हलक से सिस्कारी फुट पड़ी.
"चेक कर रहा हूँ आप बूढ़ी हो या जवान?" प्रवीण ने अपनी नाक मौसी की पैंटी पर रख रगड़ दी.
"आअह्ह्ह.... उफ्फ्फ.... मौसी की जाँघे आपस मे सिकुड़ गई
"ये कौनसा तरीका है चेक करने का?"
"यही तो एक मात्र तरीका है मौसी जी " मोहित ने भी मौका देख मौसी के पीछे जा गांड की दरारो के बीच नाक घुसेड़ दी.
"ईईस्स्स.... मौसी बस सिसक के रह गई, उसके हाथ अपने उन्नत स्तनों पर कस गए, टांगे थोड़ी सी फ़ैल गई.
मेरे दोनों दोस्तों को वो मौका मिल ही गया, प्रवीण ने अपनी जबान निकाल पैंटी पे बनी लाइन पर चला दी.
पीछे मोहित मौसी की गांड की दरार मे जीभ से कुछ ढूंढ रहा था.
अति उत्तेजना मे मौसी ने गांड को आपस मे भींच लिया था.
दो तरफ़ा हमला अचानक से हुआ था, मौसी को कुछ कहने सुनने का टाइम ही नहीं मिला.
सामने का नजारा देख मैंने भी पजामा सरका लिया था, लंड मेरे हाथो मे खेल रहा था.
मेरे देखते ही देखते मौसी की चड्डी घुटनो टक सरक गई थी, मोहित और प्रवीण की जबान मौसी के आगे पीछे अपने काम पर लग गई थी.
प्रवीण चुत की दरार टटोल रहा था तो मोहित गांड को तराश रहा था.
मौसी अपने स्तनों को भींचे आहे भर रही ही.
मौसी का गद्दाराया जिस्म पूरी तरह मेरे दोनों दोस्तों पर हावी हो चूका था.
लप... लप.. लापक.. करती दोनों की जबान चले जा रही थी.
"आउच.... उफ्फ्फ्फ़.... तुम दोनों बहुत बदमाश हो आअह्ह्हम....
"यम.... यम्मी... लप... मौसी आपकी चुत बहुत मोटी है, कितनी रसीली है" प्रवीण जो चुत चाट रहा था तारीफ किये बिना रह नहीं सका.
"आअह्ह्ह.... हम्म्म्म चाटो इसे खा जाओ.उफ्फ्फ्फ़...." मौसी के हाथ मेरे दोनों दोस्तों के सर पर थे, वो दोनों के बालो को सहला रही थी, उनके चेहरों को अपनी जांघो के बीच धंसा रही थी.
मेरी मौसी किसी रंडी की तरह उन्हें उकसा रही थी, जैसे जन्मो की प्यासी हो.
"उउउफ्फ्फ.... मौसी आपकी गांड " मोहित का कहना ही था की मौसी ने अपनी एक टांग को उठा टंकी पर रख दिया.
मौसी के दोनों छेद चमक उठे.
चुत से निकली दरार गांड तक जा रही थी, जिस रास्ते पर मोहित और प्रवीण की जीभ लप लपा रही थी.
बहुत ही कामुक दृश्य बन गया था, मेरी अधेड उम्र की गद्दाराये जिस्म की मालकिन मौसी अपनी टांग उठा दो जवान लड़को से अपनी चुत और गांड चटवा रही थी.
"आअह्ह्ह... ऐसे ही चाटो... कहाँ जाओ मेरी गांड को. उउउफ्फ्फ..... कितना अच्छा लग रहा है.
मौसी बड़बड़ा रही थी, उसके गले से निकली सिसकी मेरे दोस्तों को उकसा रही थी.
दोनों पूरी सिद्दत से मौसी की गांड और चुत चाटने मे लगे थे.
पच.. पच... उफ्फ्फ... आह.... आउच... पचा.. पचक.... प्रवीण कभी दांतो से मौसी की चुत के दाने को मसल दे रहा था वही,मोहित मौसी के गांड के छेद को अपनी जीभ से फैलाने मे लगा हुआ था.
मौसी का खड़ा रहना अब मुश्किल सा लग रहा था, उनके पैर कांप रहे थे, शरीर जवाब दे रहा था बार बसर उनका भारी गद्दाराया जिस्म नीचे को झुक जाता जिस से उनकी दरारे और ज्यादा खुल जाती.
मेरे दोस्तों को और अंदर तक चाटने का मौका मिल जा था था.
लप लप करती दोनों की जबान चल रही थी, चुत से निकला रस दोनों के गले तक जा रहा था, थूक छत के फर्श पर चु रहा था.
"आअह्ह्ह...... फैम्म्म फाचक.... फच... फच... मुफ़्फ़्फ़... मर गई मैं आह्हःम्म्म म.. आह्ह... आउच... उफ्फ्फ्फ़.... तभी मौसी जोर की दहाड़ मरती आगे मोहित पर जा गिरी, उनकी चुत से ढेर सारा पानी निकल छत पर फ़ैल गया,
ऐसा लग रहा था जैसे मेरी मौसी मूत रही हो,
हम्मफ़्फ़्फ़... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... करती मौसी सांसे भर रही थी.
मौसी की चुत ठीक प्रवीण के लंड के ऊपर टिकी हुई थी.
मौसी असीम आनंद मे आंखे बंद किये हांफ रही थी. वो झड़ चुकी थी.
"उफ्फ्फ.... उम्म्मफ़्फ़्फ़.... क्या करते हो तुम लोग, थोड़ा आराम से मैं भाग के जा रही हूँ क्या... आउचम...
तभी प्रवीण का लंड मौसी की चुत पर दस्तक देने लगा, जिसका अहसास मौसी को हो गया था.
मौसी अभी भी गरम थी, मैं हैरान था मौसी झड़ने के बाद भी मचल रही थी, उनकी चुत का छेद सिकुड़ के बंद हो जा रहा था. जिसे मेरे अलावा मोहित भी देख रहा था.
उफ्फ्फ्फ़... मौसी क्या चुत है आपकी, जैसे कोई 18साल की लड़की हो " मोहित ने कहाँ.
"इस्तेमाल ही कहाँ होता है इसका " मौसी ने शर्मा के प्रवीण के सीने पर सर रख दिया.
मौसी के बड़े सुडोल स्तन प्रवीण के सीने मे धसे जा रहे थे, उसके जिस्म मे आग लगी थी नतीजा उसकी कमर ऊपर को उठ गई, और उसका खड़ा लंड मौसी की चुत से टकरा आगे को निकल गया.
मौसी ने भी गांड को आगे कर उस लंड को फिसलने से रोकना चाहा लेकिन हुआ नहीं.
प्रवीण वापस नीचे हुआ और फिर कमर को ऊपर धकेल दिया.
आउच... उफ्फ्फ.... इस बार निशाना सटीक था प्रवीण के लंड का टोपा मौसी की चुत पर जम गया.
दोनों के मुँह से एक असीम आनंद और राहत की सिस्कारी फुर पड़ी.
"आअह्ह्ह.... प्रवीण मेरे बेटे " मौसी ने अपनी चुत की लम्बी लकीर को प्रवीण के लंड पर घिस दिया.
वो लंड लेने के लिए मचल रही थी.
वही मोहित पीछे से मौसी की गांड को हॉजे हलके सहला रहा था जैसा उकसा रहा हो.
तीनो लोग कम वासना मे कैद थे,
तभी मौसी ने अपनी गांड को ऊपर उठाया और पच... से प्रवीण के लंड पर पटक दिया...
आआहहहहह..... उउउफ्फफ्फ्फ़..... मौसी गार्डन ऊपर कर सिहर उठी, प्रवीण का भी यही हाल था उसका लंड मौसी की भीगी गरम चुत मे एक बार मे जड़ तक समा गया था मौसी के मुँह से उफ्फ्फ... तक ना निकली.
लंड का घुसना था की मौसी ने वापस कमर को ऊपर उठाया और लंड पे कूद पड़ी..
.
उफ्फ्फ्फ़... आअह्ह्ह.... प्रवीण का बुरा हाल था, अधेड चुत की गर्मी सहने लायक लंड नहीं था शायद उसका.
फिर भी जैसे तैसे कण्ट्रोल कर वो लेता रहा, उसके हाथ मौसी के उन्नत स्तन पर रेंगने लगे.
पीछे खड़े मोहित से अब ये दृश्य बर्दाश्त करने लायक नहीं था, जल्दी से आगे जा कर मौसी के मुँह के सामने उसने अपने लंड को लहरा दिया.
मौसी खेली खाई औरत थी तुरंत इशारा समझ गुलप से मोहित के लंड को अपने मुँह मे समा लिया
.
वहाँ क्या नजारा था..
नीचे से मंगल गीतों की आवाज़ आ रही थी, इधर छत पर पच... पच.. आअह्ह्ह.... फाचक... फच की शानदार कामुक संगीत बज रहा था.
मौसी अपनी गांड को प्रवीण के लंड पर पटक रही थीधड... धड... ढा... पच... फचम... मौसी की चुत से ढेर सारा काम रस बह कर प्रवीण की जाँघ को भीगो रहा था.
मौसी तड़प रही थी, खुद के स्तन को मसल रही थी, मोहित के लंड को ऐसे चूस रही थी जैसे खा जाएगी, एक दम जड़ तक लील लिया था मौसी ने मोहित के लंड को, थूक से साना हुआ मोहित का लंड मुँह से बाहर आते ही चमक पड़ता.
शायद ऐसी औरत से पहली बार सामना हुआ था मेरे दोस्तों का.
आअह्ह्ह... मौसी.. धीरे... उफ्फ्फ... मैं मर जाऊंगा.
प्रवीण आखिर चिल्ला उठा, उसे सहन नहीं हो रहा था, झड़ने के कगार पर आ गया था.
"ऐसे ही मर्द बने फिरते हो, अभी तो मेरा कुछ हुआ ही नहीं उफ्फ्फ... आअह्ह्ह... आह्हः.... उफ्फफ्फ्फ़.... चोदो मुझे कस के मारो चुत मेरी.
मौसी पागलो की तरह चिल्ला रही थी, अपनी कमर को प्रवीण के ऊपर घुमा रही थी, प्रवीण का लंड तो मानो कहीं खो ही गया था मौसी की बड़ी गांड के बीच.
आअह्ह्ह.... मौसी... हम तो गए फच.. फच.... फाचक... करते हुए प्रवीण और मोहित एक साथ झड़ गए,
प्रवीण मौसी की चुत की गर्मी झेल ना सका, वही मोहित मौसी के मुँह मे ही पिघल गया.
मौसी अभी भी नहीं रुकी थी, पागलो की तरह कमर को पटके जा रही थी, लेकिन अब क्या फायदा था, सांप मर चूका था लाठी पीटने से सिर्फ आवाज़ ही हो रही ही.
हुम्म्मफ़्फ़्फ़... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़... मौसी... बस अभी...
मेरे दोनों दोस्त वही ढेर हो गए थे, निढाल बेबस हांफ रहे थे, मानो शरीर मे जान ही ना बची हो.
"तुम शहर के लड़के, बातो के ही मर्द हो बस," मौसी के चेहरे पे जबरजस्त गुस्सा था, अधूरी प्यास के साथ मौसी उठ खड़ी हुई,
थूऊ..... थू... करके मौसी ने मोहित का सारा वीर्य वही छत पर थूक दिया.
"जब मेरी जैसी औरत को चोदने की औकात हो तब ही आना अब " मौसी गुस्से मे अपना गाउन पहने दनदानती छत से निकल गई.
एक दम से माहौल चेंज हो गया था, मेरे दोस्तों के चेहरे पे अपमान था और मेरे चेहरे पे खुशी.
"साले बड़े मर्द बने फिरते थे हाहाहाहाहा..." मैं तो मन ही मन हस रहा था.
मौसी चली गई थी.
"अबे ये क्या औरत थी बे, ऐसा भी कहीं होता है क्या " मोहित ने बोला
"हाँ यार लग रहा था साली पूरा ही चुत मे डाल लेगी " प्रवीण ने भी समर्थन किया.
"अच्छा खासा मौका गवा दिया यार हम लोगो ने, साला चुतिया है हम लोग.
मैं उनकी बातो पर हसता हुआ मौका देख नीचे निकल लिया.
मेरे दिल ने एक अलग ही उमंग जागी हुई थी, खुशी हो रही थी मेरे दोस्तों की हार लार, ऐसा लग रहा था मैं जीत गया.
नीचे पंहुचा तो 11 बज गए थे, सभी लोग गाने बजाने मे लगे थे.
मेरी माँ रेशमा भी वही मण्डली मे बैठी थी, अब्दुल ने आज रात 12 बजे का वक़्त दिया था, शायद माँ जाये घर के पीछे टॉयलेट मे, इसी उम्मीद मे मैं चल पड़ा उस कार्यक्रम को देखने के जुगाड़ मे.
मैंने बाथरूम के रोशदान के नीचे एक टेबल लगा ली थी, ये इलाका अंघेरे मे था, अब बस मुझे इंतज़ार था माँ और अब्दुल के आने का.
साला बुरा भी लग रहा तो और दिल मे एक तूफान भी मचा हुआ था, बेचैनी थी अपनी माँ को चुदते हुए देखने की.
बस 12 बजे का इंतज़ार था मुझे.
क्या रेशमा आएगी अपने वादे के मुताबिक.?
Contd....
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