मेरी माँ रेशमा -19
" कैसा है अब कमर दर्द मौसी जी " अब्दुल ने कार चलाते हुए पूछा.
"ठीक है लेकिन थोड़ा थोड़ा हो रहा है "
" मैंने सीख ली है मालिश कैसे करनी है " अब्दुल ने मौसी के उभरे हुए स्तनों को घूरते हुए कहाँ.
"आज रात कर देना " मौसी की चुत तो वैसे ही कुलबुला रही थी, अब्दुल का ऑफर सुन जाँघे आपस मे भींच ली.
दोनों एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिए, यहाँ कुछ छुपाने लायक था भी नहीं, जो था सब clear था.
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दिन के 2 बज चुके थे मै उब गया था यहाँ अकेले अकेले, आदिल तो माँ और मामी के साथ लगा हुआ था, मै हैरान था की इतनी सिद्दत से कैसे काम कर रहा है वो.
हलवाई मिठाईया बना रहा था, वहाँ कोई जरुरत नहीं थी तो मै भी मन मार के इधर उधर ही घूम रहा था की इतने मे कार की आवाज़ आई .
मै बहार आंगन मे गया देखा मोहित प्रवीण मेहंदी के कट्टे उठाये चले आ रहे थे, पीछे मेरी दीदी अनुश्री अपने चिरपरिचित अंदाज़ मे बलखाती चली आ रही थी.
क्या मादक जिस्म था मेरी बहन का. अंग अंग हिलता था कपड़ो मे.
"अबे इधर आ हाथ दे जरा " मोहित ने मुझे देख आवाज़ दी.
मैंने भी काम मे हाथ बताया, सभी डब्बे आंगन मे रख दिए गए.
सजावट हो चुकी थी, घर अब पूरी तरह चमक दमक रहा था.
थोड़ी ही देर मे मौसी और अब्दुल भी आ चुके थे.
"क्या हुआ सुनीता अब कैसी हो?" मेरी माँ रेशमा ने मौसी से उतरते ही पूछा
"ठीक हूँ जीजी मामूली मोच थी, एक और मालिश से ठीक हो जाएगी "
"यहाँ कौन करेगा मालिश?" रेशमा ने पूछा.
"ये है ना अब्दुल मियां, इन्होने सीख की है " मौसी अब्दुल को एक नजर निहार मुस्कुरा के अन्दर चल दी.
साला ये कैसी स्माइल थी, कुछ गड़बड़ है क्या मेरे मन मे हज़ारो सवाल कोंधने लगे..
क्यों नहीं हो सकता मौसी तो साली जब से आई है प्यासी ही घूम रही है, मोहित और प्रवीण से चुद ही चुकी है, अब्दुल से भी टांका भीड़ गया हो तो क्या बड़ी बात है.
"उफ्फ्फ.... ये मेरी घर की औरते "
मै सकपाकते हुए वही बैठ गया मुझे सब पर नजर रखनी थी, मै जानना चाहता था की मेरी घर की औरते किस हद तक जा सकती है.
अनुश्री दीदी कमरे मे चली गई थी, प्रवीण और मोहित नहाने निकल लिए,
मै और मामा आंगन मे खड़े तैयारीयों का जायजा ले रहे थे.
अब्दुल कोने मे बैठा खाना चाँप रहा था.
मैंने नोटिस किया मामा बार बार मेरी माँ को ही देखे जा रहे है.
माँ जब जब झुकती तो उसके गुदाज स्तन की झलक दिख जाती,
जिसे मामा बड़े गोर से देख रहे थे, कभी माँ की गद्दाराई कमर तो कभी माँ के चलने को निहार रहे थे.
मेरी माँ का भाई उन्हें ऐसे क्यों देख रहा है, मेरी समझ के बारे था दिमाग़ भन्ना रहा था मेरा ये सब कुछ सोच कर देख कर.
"मामा मै आता हूँ थोड़ी देर मे " मैंने मामा को कहाँ और बाइक ले कर निकल लिया.
रास्ते से एक बियर और सिगरेट पकड़ ली और घर के पीछे के रास्ते पर चला आया, अमूमन ये रास्ता सुनसान ही रहता था, कहीं जाता नहीं था आगे खेत खलिहान थे,
मैंने अच्छी जगह देख बियर के घूंट लगाने लगा, सिगरेट के कस खिंच लिए.
अब जा कर दिमाग़ कुछ शांत हुआ,
लेकिन सवाल अभी भी वही थे, मैंने निश्चय किया आज रात मौसी पर नजर रखनी होंगी, दिन मे अब्दुल और मौसी कुछ ज्यादा ही हसीं ठिठोली कर रहे थे.
मामा का व्यवहार भी मुझे परेशान कर रहा था, लेकिन फिलहाल मैंने मौसी पर नजर रखने का फैसला किया.
मै अब धीरे धीरे औरतों की चाहत को समझ रहा था, औरत किसी भी उम्र की क्यों ना हो उसकी चुत की आग सदा जलती ही रहती है.. ये सब बाते किसी किताब मे नहीं लिखी होती, ये सब इंसान अपने अनुभव से सीखता है,
मै भी सीख ही रहा था गट... गट... गटक.... बियर का लास्ट घूंट मेरे हलक मे समा गया था, इस घुट के साथ ही मै दर्शानिक हो चला था, एक मानसिक मजबूती आ गई थी.
मै तैयार था आज रात के किये, सूरज ढलने लगा था, मैंने घड़ी की ओर देखा 5.30 हो गए थे, यहाँ सूरज जल्दी ही डूब जाता है.
मै वापस घर की ओर बढ़ गया.
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मेरे आते तक शाम के 6 बज गए थे, पंडाल सजा हुआ था, पूरा आंगन जगमगा रहा था, औरते गाने बजाने मे लगी थी, बूढ़े लोग ऊपर बालकनी मे बैठे हुक्का गुदगुडा रहे थे.
मेरी नजर चारो तरफ दौड़ गई, मै अपने दोस्तों और मेरे घर की औरतों को ढूंढ़ रहा था,
मेहंदी तो वैसे ही औरतों का ही रिवाज़ था, एक गोल सर्कल मे ढ़ोल बजती औरते गाने गा रही थी.
कुछ महिलाये एक दूसरे को मेहंदी लगा रही थी.
"अमित... ओहम्म्म्म... अमित.... कहाँ रह गया था तु " मुझे मेरी दीदी अनुश्री की आवाज़ ने खिंचा.
"क्या हुआ दी?"
"ये तेरे मोहित प्रवीण कहाँ है " दीदी लहंगा पहने चहक रही थी
उसके स्तन ब्लाउज से लगभग बहार थे, मै दीदी के उतावले पन पे हैरान था, मैंने आस पास नजर दौडाई मेरे जीजा ऊपर बालकनी मे बैठे थे कुछ रिश्तेदारो के साथ, मै समझ गया साला मेरा जीजा पिययकड़ है जुगाड़ मे लगा हुआ है.
"बोल ना " दीदी ने मुझे फिर से पूछा.
"क्यों आपको क्या काम है? "
"अरे उन्होने कहाँ था वो मेहंदी लगाना जानते है माँ और मुझे नयी डिजाइन की मेहंनदी लगा देंगे"
दीदी बात मुझ से कर रही थी लेकिंन उसकी नजरें यहाँ वहाँ मोहित प्रवीण को ही ढूंढ़ रही थी.
"क्या हुआ दीदी?," प्रवीण मोहित ऊपर से चले आ रहे थे.
"अबे तुम दोनों ने कभी बताया नहीं की तुम्हे मेहंदी लगानी आती है " मैंने तपाक से पूछा.
"इसमें बताने लायक क्या है, आर्ट के स्टूडेंट रहे है हम दोनों, तो आती ही है, काम पड़ने पर लगा देते है." मोहित ने बताया
ना जाने क्यों अनुश्री और मोहित प्रवीण के चेहरे पे स्माइल थी.
वैसे भी मुझे इन से मतलब नहीं था, मुझे ऊपर मौसी के कमरे तक पहुंचना था जल्द ही.
वैसे भी आंगन मे नाच गाने का प्रग्राम शुरू हो चूका था, 7बजने को थे.
माँ, मामी दीदी और काफ़ी औरते बैठी एक दूसरे को मेहंदी लगा रही थी.
मै मौका देख झट से सबकी नजर बचाता, ऊपर को निकल लिया.
और मौसी का कमरा जो की हमारे कमरे के सामने था, वहाँ स्टोर रूम के अहाते मे एक खिड़की थी, ये वही जगह थी जहाँ से मैंने मौसी को पिछली बार अपनी चुत को सहलाते देखा था.
मोहित ठीक अनुश्री के सामने बैठा था, अनुश्री का हाथ
मैंने अंदर झाँक कर देखा, और देखते ही लंड ने करवट लेना शुरू कर दिया.
मौसी बेड पर सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट मे पेट के बल लेती हुई थी.
काला ब्लाउज मौसी के गोरे चिकने जिस्म पर चार चाँद लगा रहा था, ब्लाउज से नीचे एक चिकनी सडक रुपी कमर थी जो की पहाड़ पर ख़त्म होती थी, मौसी की गांड जहाँ सफ़ेद पेटीकोट बांधा हुआ था.
मौसी की गांड का उभार साफ साफ दिख रहा था, उफ्फ्फ्फ़... क्या सुडोल, बड़ी और गोल गांड थी मौसी की.
वाकई मेरी घर की औरतों को भगवान ने अपने हाथो से बनाया था.
मै खुद मौसी की मादकता पर मन्त्रमुग्ध था.
मौसी की सारी वही बिस्तर पर किनारे पड़ी हुई थी.
"तो मौसी शुरू करे?" भारी आवाज़ बे मेरा ध्यान खिंचा.
बेड के किनारे ही अब्दुल हाथो मे तेल की शीशी लिए खड़ा था, मै मौसी के जिस्म के उतार चढ़ाव मे इस कद्र खोया था की मुझे अब्दुल की मौजूदगी का अहसास ही नहीं हुआ.
अब्दुल तो कबका यहाँ आ गया था, मै ही लेट आया था, मौसी तो साड़ी उतार के लेट चुकी थी मालिश के लिए.
उनकी चूड़ियाँ हर छोटी-सी हलचल के साथ खनक रही थीं, और उनकी साँसें इतनी भारी थीं कि कमरे का सन्नाटा उनकी गर्मी से तप रहा था।
अब्दुल उनके पास खड़ा था, उसकी साँसें भी भारी थीं। उसकी काली, चमकती आँखों में एक हवस भरी चमक थी, जैसे कोई शिकारी अपने शिकार को निहार रहा हो।
उसने मेज़ पर रखी तेल की छोटी-सी शीशी उठाई, और अपनी मजबूत, कड़क हथेलियों में तेल रगड़ा। तेल की चिकनी, नशीली खुशबू हवा में फैल गई, जैसे कोई जादू कमरे में घुल रहा हो। लैंप की रोशनी में अब्दुल की मांसपेशियाँ चमक रही थीं, और उसकी शर्ट की बाँहें चढ़ी हुई थीं, जिससे उसकी मजबूत बाहें और नसें साफ दिख रही थीं।
“मौसी जी… अब आराम से लेटिए… मालिश शुरू करता हूँ,” अब्दुल की आवाज़ गहरी थी, लेकिन उसमें एक हल्की-सी हड़बड़ाहट थी, जैसे वो अपनी हवस को छुपाने की कोशिश कर रहा हो।
उसका चेहरा पसीने से चमक रहा था, और उसकी नजरें सुनीता की कमर पर टिकी थीं।
“हम्म… ठीक है, अब्दुल… लेकिन धीरे… कमर अभी भी थोड़ी खींच रही है, हल्का दर्द अभी भी है मौसी ने धीमे, मादक लहजे में कहा। उनकी आवाज़ में दर्द और शरारत का मिश्रण था, और उनकी आँखें आधी बंद थीं, जैसे वो पहले से ही किसी और दुनिया में खो चुकी हों। उनकी भारी साँसें उनके ब्लाउज में कैद स्तनों को ऊपर-नीचे कर रही थीं, और उनके सख्त निप्पल कपड़े के ऊपर से उभर रहे थे।
अब्दुल ने अपने तेल से सने हाथ सुनीता की नंगी कमर पर रखे। उसकी उंगलियाँ उनकी चिकनी, गोरी त्वचा पर फिसलीं, जैसे कोई नदी चट्टानों पर बह रही हो।
अब्दुल के कड़क मर्दाना हाथ का लगना था की मौसी की सिसकारी कमरे में गूँज उठी—“स्स्स… आह…... उउउफ्फ्फ... अब्दुल ” उनकी कमर हल्के-से ऊपर उठी, जैसे वो अब्दुल के स्पर्श को अपने जिस्म में गहराई तक सोखना चाहती हों।
लैंप की रोशनी में उनकी त्वचा चमक रही थी, और तेल की चिकनाहट ने उनकी कमर को और मादक बना दिया था।अब्दुल के मजबूत हाथ उनकी कमर पर धीरे-धीरे गोल-गोल घूम रहे थे, जैसे कोई नर्तक मंच पर अपनी कला दिखा रहा हो।
उसकी उंगलियाँ उनकी कमर के ऊपरी हिस्से से नीचे की ओर सरक रही थीं, ब्लाउज के अंत से नीचे जहाँ उनकी गांड का उभार शुरू होता था।
मौसी आंखे बंद किये उस मर्दाने हाथ को महसूस कर रही थी, हर स्पर्श के साथ सुनीता की साँसें और तेज़ हो रही थीं, और उनकी जाँघें हल्के-से काँप रही थीं।
अब्दुल के हाथ जब भी नीचे आते, पेटीकोट को हल्का सा नीचे सरका देते, फिर वापस ऊपर को निकल जाते, उनका पेटीकोट अब इतना नीचे सरक गया था, की उनकी गुलाबी पैंटी की पतली सी लेस साफ़ झाँक रही थी।
“मौसी जी… यहाँ भी मालिश ज़रूरी है… डॉक्टर साहब ने कहा था,” अब्दुल ने धीमे से कहा, और हाथो को उस हिस्से पर रख दिया जहाँ गांड का उभार पूरी तरह से शुरू हो जाता है, जहाँ डिंपल पड़ते है,
मतलब की गांड और कमर का अंतिम जोड़, अब्दुल ने वहाँ दोनों हाथो के अंगूठे को रख के दबा दिया.
ईईस्स्स..... आअह्ह्ह.... अब्दुल " मौसी घनघना उठी.
अब्दुल कुछ ना बोला उसका ध्यान सिर्फ उस मादक गांड को हिलते हुए देखने मे था, उसके हाथ ऊपर जाते, फिर नीचे आते तो कस के गांड के ऊपरी हिस्से को दबा देते.
इस्स्स.... उउउफ्फ्फ.... मौसी आंख बंद किये इस मालिश का लुत्फ़ उठ रही थी.
उसे कोई शिकायत नहीं थी, ना कोई परहेज, उसका मादक जिस्म एक अनजान आदमी के सामने तेल से साना हुआ है और वो आंखे बंद किये लेती है.
मै मौसी के खुलेपन से हैरान था.
"मौसी ये पेटीकोट " अब्दुल ने अपने हाथो का दबाव गांड पर बना दिया .
"सरका दे ना नीचे दिक्कत है तो " मेरी मौसी तो वैसे ही गरम थी, उसने अब्दुल के सवाल को भी पूरा होने का मौका नहीं दिया.
अब ऐसा मौका भला कौन आदमी गवाता, जो गवाता वो नामर्द ही होता.
लेकिन ये साला अब्दुल तो था ही खिलाडी.
सससदर...... ससससररर..... की आवाज़ के साथ अब्दुल ने पेटीकोट को नीचे खिंच दिया.
उड़फ्फफ्फ्फ़..... क़यामत ही आ गई थी.
मौसी की मांसल मोटी, गोरी गांड पूरी तरह नज़र आने लगी। उनकी पैंटी अब सिर्फ़ एक पतली रेखा थी, जो उनकी गांड की दरार में पूरी तरह से फसी हुई थी।
तेल की चमक ने उनकी त्वचा को और आकर्षक बना दिया था, जैसे कोई मूर्तिकार ने अपनी कृति को तराशा हो। दोनों गांड के पल्ले अब खुली हवा ने सांस के रहे थे..
“उफ्फ… अब्दुल… धीरे…” सुनीता की सिसकारी अब और गहरी हो गई थी। उनकी कमर हल्के-से ऊपर-नीचे हो रही थी, जैसे वो अब्दुल के स्पर्श को अपने जिस्म में गहराई तक महसूस करना चाहती हों
उनकी पैंटी में एक गीला धब्बा साफ़ दिख रहा था, और उनकी चूत में एक जलन-सी थी, जो अब असहनीय हो रही थी। लैंप की रोशनी उनके चेहरे पर पड़ रही थी, और उनका चेहरा पसीने और उत्तेजना से चमक रहा था। उनकी आँखें आधी बंद थीं, और उनकी होंठ हल्के-से काँप रहे थे, जैसे वो कुछ कहना चाहती हों, लेकिन शब्द उनके गले में अटक गए हों।
मैं खिड़की के पास साँस रोके अंदर के मादक दृश्य को देख रहा था। मेरा दिल इतनी ज़ोर से धड़क रहा था कि मुझे लग रहा था कि अब्दुल और मौसी इसे सुन लेंगे। मेरा लंड मेरी जींस में तन गया था, और मेरा दिमाग एक तूफान में फँस गया था। ये क्या हो रहा था? मेरी मौसी… और अब्दुल… ये सब गलत था, लेकिन मेरी आँखें उस दृश्य से हट नहीं रही थीं। कमरे का माहौल इतना तप्त था कि मुझे लग रहा था जैसे मैं खुद उस आग में जल रहा हूँ।
अब्दुल के हाथ अब मौसी की जांघो तक सरक आये थे, अब्दुल की उंगलियाँ उनकी चिकनी, मोटी जाँघों पर फिसल रही थीं, जैसे कोई संगीतकार अपने वाद्य पर राग छेड़ रहा हो। हर स्पर्श के साथ सुनीता की सिसकारियाँ और तेज़ हो रही थीं—
“स्स्स… आह… अब्दुल…” उनकी आवाज़ अब टूट रही थी, और उनकी जाँघें काँप रही थीं। उनकी पैंटी का गीला धब्बा अब और बड़ा हो गया था, और कमरे में “पच… पच…” की हल्की आवाज़ गूँज रही थी, जैसे उनकी चूत से रस टपक रहा हो। अब्दुल जांघो के साथ चुत के हिस्से को भी रगड़ आगे निकल जाया करता था,
मेरी मौसी पूरी तरह से अब्दुल के चुंगल मे थी, उसका जिस्म अब्दुल की उंगलियों के अधीन हो गया था.
अब्दुल के हाथ अब कमर से होते हुए सीधा जांघो टक जा रहे थे, बीच मे गांड रुपी पहाड़ी को पार करतर हुए.
जहाँ अब्दुल थोड़ा रुकता, गांड को जोर से मसलाता फिर जांघो तक जाता, तेल से मौसी की गांड किसी चाँद की तरह चमक रही थी, आम आदमी ने सिर्फ एक चाँद देखा होगा, मै वो किस्मत वाला था जो दो चमकते सुडोल गुदाज़ चाँद देख रहा था.
शायद अब अब्दुल से भी ये सब नहीं देखा जा रहा था, मौसी बेचैनी से कभी अपनी गांड को सिकोड़ती तो कभी ढीला छोड़ देती, कभी कमर को उठ के नीचे पटक देती, लेकिन मजाल की उसने आंखे खोली हो, वो तो आनन्द के महासागर मे थी, दर्द तो कब का उड़न छू हो गया था.
मौका देख अब्दुल ने धीरे-से मौसी की कच्छी का किनारा नीचे खींचा।
मेरा मुँह खुला का खुला रह गया, उनकी चूत की गीली फाँकें अब साफ़ दिख रही थीं, और लैंप की रोशनी में उनकी गीली त्वचा चमक रही थी। बिल्कुल साफ चिकनी दरार देखी जा सकती थी. इस दरार मे शहद जैसा कुछ लगा हुआ था.
अब्दुल की उंगलियाँ उनकी गांड की दरार में फिसलीं, और उसने हल्के-से उनकी गांड के छेद को छुआ। सुनीता का जिस्म बिजली के झटके-सा काँप उठा। “आह… उफ्फ…” उनकी सिसकारी अब चीख में बदल गई थी। उनकी कमर ऊपर उठी, और उनकी चूड़ियाँ ज़ोर-ज़ोर से खनकने लगीं।अब्दुल ने अपनी एक उंगली धीरे-से उनकी चूत में सरकाई, और सुनीता का जिस्म थरथरा उठा।
“स्स्स… अब्दुल… ये… ये क्या…” मौसी की आंखे इस अचानक हमले से चौड़ी हो गई उसने पलट के अब्दुल को देखा, उनकी आवाज़ में तड़प थी, लेकिन उनकी आँखों में एक शरारती चमक थी, जैसे वो इस पल का इंतज़ार कर रही हों।
अब्दुल ने मुँह से कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि जवाब दिया उसकी ऊँगली ने, उसकी उंगली मौसी की चूत में धीरे-धीरे अंदर-बाहर हो रही थी, और उसका दूसरा हाथ उनकी गांड के छेद पर हल्के-से रगड़ रहा था। हर स्पर्श के साथ सुनीता की साँसें और तेज़ हो रही थीं, और उनकी जाँघें काँप रही थीं। उनकी चूत से रस की बूँदें बिस्तर पर टपक रही थीं, और कमरे में तेल की चिकनाहट और उनकी मादक खुशबू का मिश्रण हवा में तैर रहा था।
मैं खिड़की के पास पसीने से तर-ब-तर था। मेरा लंड जींस में दर्द करने लगा था, और मेरा दिमाग सुन्न हो गया था। मैं जानता था कि ये गलत था, लेकिन मेरी आँखें उस दृश्य से हट नहीं रही थीं। सुनीता की सिसकारियाँ, अब्दुल की भारी साँसें, और कमरे का तप्त माहौल मुझे किसी और दुनिया में ले जा रहा था।
अब्दुल ने पूरी तरह से मौसी की चुत पर कब्ज़ा जमा लिया था, उसकी दो ऊँगली चुत मे धसी हुई थी और अंगूठा गांड की दरार मे उस छेद को कुरेद रहा था जो की सबसे ज्यादा टाइट हिस्सा होता है एक औरत के जिस्म मे.
आखिर वो सफल भी हुआ "पुककककक.... पच.... तेल से सना अंगूठा मौसी की गांड मे जा धसा.
"आअह्ह्ह..... अब्दुल... " मौसी ने गांड को सिकोड लिया लेकिन तुरंत ही उसे ढीला भी छोड़ दिया.. अचानक हमला ऐसा ही होता है.
दो ऊँगली और अंगूठा मौसी की चुत और गांड को रोंद रहा था, तो दूसरे हाथ से अब्दुल मौसी की जांघो को सहला रहा था, जैसे आने वाले युद्ध के लिए तैयार कर रहा हो.
मौसी अतिउत्तेजना मे भरी अपने होंठ चबा रही थी, आंखे बंद थी, चेहरे पे दर्द, सुकून सारे भाव एक साथ थे.
पच... पच... फचम्म. फचम्म.. अब्दुल की तेल से सनी उंगलिया लगातार मौसी को उकसा रही थी.
आअह्ह्ह... ओयचं... उफ्फ्फ्फ़म.. अब्दुल...बस... आअह्ह्ह.... उउउफ्फ्फ.... मौसी सिसकर रही थी.
नीचे से आती ढोलक की आवाज़ मे उनकी सिस्कारिया घुल मिल गई थी वरना तो पूरा शहर जान जाता इस खेल के बारे मे.
आअह्ह्हम्म्म... आअह्ह्ह.... फच... फचम.. पच... पच.... अब्दुल ने अपनी गति बढ़ा दी थी, वो अब रुकना नहीं चाहत था, ना ही मौसी.
मौसी अपनी गांड को पीछे धकेल रही थी, उसकी कमर हवा मे नाच रही थी.
"आअह्ह्ह... अब्दुल जोर से अंदर... उफ्फ्फ... आअह्ह्ह... ससससस..... आअहह्म्मम्म्म्म.. फच. मम्मीफाचम.... मै गई...
हमफ़्फ़्फ़... हमफ़्फ़्फ़... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....
मौसी की सांसे चढ़ गई, वो बुरी तरफ हांफ थी, अब्दुल की उंगलियां चुत रस से सन चुकी थी, मेरी मौसी का दर्द उसकी चुत के रास्ते निकल गया था.
आहहम्म्म..... अब्दुल... ममम... मौसी ने आंखे बंद कर ली, वो हांफ रही थी, जिस्म शांत हो गया था.
अब्दुल भी इंसान ही था आखिर कब तक वो सहन करता, ससससररर.... की आवाज़ जे साथ अब्दुल ने अपने कपडे उतार फेंके.
मौसी ने एक झलक पीछे देखा, वो सिर्फ मुस्कुरा दी, जैसे वो इसी पल का इंतज़ार कर रही थी.
अब्दुल का 9 इंच का मोटा, काला लंड खुली हवा मे सांस ले रहा था, , सख्त और तना हुआ, जैसे किसी प्राचीन योद्धा ने जंग जितने के लिए आखिरी हथियार निकाल लिया हो।
लैंप की रोशनी में उसका लंड चमक रहा था, और उसकी नसें साफ़ उभर रही थीं। सुनीता ने आधी खुली आँखों से उसकी ओर देखा, और उनकी साँसें और तेज़ हो गईं।
“अब्दुल… ये…ये... ये क्या ” उनकी आवाज़ में बेकरारी थी, लेकिन उनके होंठों पर एक मादक मुस्कान थी, जैसे वो इस पल को जीना चाहती हों।अब्दुल ने तेल की शीशी से थोड़ा तेल लिया और अपने लंड पर अच्छे से मल दिया । उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे उसके लंड पर फिसलीं, और तेल की चमक ने उसे और खतरनाक बना दिया।
"अंदर से भी तो मालिश करनी पड़ेगी ना मौसी, तभी तो दर्द ख़त्म होगा ना " अब्दुल ने मौसी को पीठ के बल पलट दिया, और जाँघों को विपरीत दिशा मे फैला दिया, उसने क्या फैलाया, उसने तो सिर्फ दिशा दिखाई मौसी ने खुद अपनी जांघो को चौड़ा कर दिया,
मौसी की फूली हुई चिकनी चुत चमक उठी.. उफ्फ्फ्फ़.... क्या चुत थी मौसी की एक दम चिकनी, चुत रस और तेल से चमक रही थी,
भला कोई मर्द ये दृश्य देख खुद को कैसे रोकता, अब्दुल मौसी की जांघो के बीच आ बैठा और अपने लंड को उनकी चूत की गीली फाँकों पर हल्के-से रगड़ा।
“स्स्स… आह…” मौसी सिसकार उठी, वो तो कब से इस पल की प्रतीक्षा मे थी, मौसी ने अपनी कमर को ऊपर उठा दिया, जैसे खुद ही लील लेगी, जैसे वो अब्दुल को अपने जिस्म में समा लेना चाहती हों।
अब्दुल ने मौसी का उतावलापन समझ लिया और बिना देर किये धीरे-से अपने लंड को उनकी चूत में सरकाया।
सुनीता का जिस्म काँप उठा, और उनकी चूड़ियाँ ज़ोर-ज़ोर से खनकने लगीं।
“आह… उफ्फ… अब्दुल… धीरे…” उनकी आवाज़ टूट रही थी, लेकिन उनकी आँखें उत्तेजना से चमक रही थीं। मौसी को कतई अंदाजा नहीं था अब्दुल का लंड कितना मोटा और बढ़ा है, मै देख पा रहा था मौसी की चुत पूरी तरह से खुल गई थी, चुत के किनारे अब्दुल के लंड पर कसने लगे थे,
अब्दुल ने धीरे-धीरे अपने लंड को अंदर-बाहर करना शुरू किया, हर धक्के को धीमा और गहरा रखते हुए, जैसे कोई संगीतकार अपने राग को बुन रहा हो।
मौसी की चूत से “पच… पच…” की आवाज़ निकल कमरे में गूँज रही थी, और उनकी गीली फाँकें तेल और रस के मिश्रण से चमक रही थीं।
मौसी की भारी छातियाँ ब्लाउज में उछल रही थीं, और उनके निप्पल कपड़े के ऊपर से साफ़ उभर रहे थे। उनकी आँखें बंद थीं, और उनका चेहरा पसीने और आनंद से चमक रहा था। अब्दुल के मजबूत हाथ उनकी कमर को पकड़े हुए थे, और उसका लंड उनकी चूत में गहरे तक जा रहा था।
आअह्ह्ह.... आअह्ह्हम्म्म..... धच... धच... पावह... प... फच... फच.... अब्दुल बेतहाशा धक्के लगा रहा था, मौसी का जिस्म तो उसकी थिरकन मे नाच रहा था, स्तन ब्लाउज मे कसे हुए उछल रहे थे,
हर धक्के के साथ सुनीता की सिसकारियाँ और तेज़ हो रही थीं, और उनका जिस्म ताल-से-ताल मिला रहा था।
आअह्ह्ह.... तेज़.... उफ्फ्फ... और अंदर.... मौसी अब्दुल को जकड रही थी, उसकी चुत की कसावाट लंड पर बढ़ती जा रही थी,
ना जाने अब्दुल के मन मे क्या आया, अब्दुल ने अपने लंड को उनकी चूत से निकाला और उनकी गांड की दरार पर रगड़ा। सुनीता की सिसकारी और तेज़ हो गई।
“स्स्स… अब्दुल… वहाँ….. अभी नहीं.... यही करो ” उनकी आवाज़ में एक अजीब-सी तड़प थी, शायद मौसी झड़ने के नजदीक ही थी लेकिन अब्दुल ने पाला बदल लिया था, साला खिलाडी आदमी था अब्दुल, एक औरत के जिस्म के साथ कैसे खेलना है उसे अच्छे से पता था,
अब्दुल ने अपनी कमर को आगे धकेला लेकिन लंड फिसल के वापस चुत मे जा धसा.... आअह्ह्ह.... अब्दुल... मौसी सिहर उठी.
शायद मौसी ने गांड मे लेने का मन बना ही लिया था, एक पल उसने अब्दुल को देखा, जैसे इज़ाज़त दे रही हो, और जांघो को ओर ज्यादा फैला दिया, साथ ही कमर को और ऊपर कर दिया . अब्दुल के लंड स्वागत की तैयारी कर ली गई थी.
अब्दुल ने पास पड़ी तेल की शीशी उठाई और थोड़ा तेल लिया और मौसी की गांड के छेद पर मल दिया,
उसने धीरे-से अपने लंड को उनकी गांड पर टिकाया और हल्के-से दबाव डाला। सुनीता का जिस्म काँप उठा, और उनकी साँसें रुक गईं।
“आह… उफ्फ…... अब्दुल आराम से ” सुनीता की चीख कमरे में गूँज उठी। अब्दुल ने धीरे-धीरे अपने लंड को उनकी गांड में सरकाया, और सुनीता की सिसकारियाँ अब अनियंत्रित हो गई थीं। उनकी जाँघें काँप रही थीं, और उनकी चूत से रस की बूँदें बिस्तर पर टपक रही थीं, मौसी को अहसास हो गया था अब्दुल का लंड कोई आम लंड नहीं है ये कुछ ज्यादा ही मोटा और बड़ा है.
लैंप की रोशनी में मौसी की त्वचा चमक रही थी, और तेल की चिकनाहट ने उनके जिस्म को और मादक बना दिया था।
मैं खिड़की के पास साँस रोके देख रहा था। मेरा दिमाग सुन्न था, और मेरा जिस्म पसीने से तर-ब-तर था। मैं जानता था कि ये गलत था, लेकिन मेरी आँखें उस दृश्य से हट नहीं रही थीं। मौसी की सिसकारियाँ, अब्दुल के धक्कों की आवाज़, और कमरे का तप्त माहौल मेरे कानों और दिमाग में गूँज रहा था।
अब्दुल के धक्के अब और तेज़ हो गए थे।
मौसी की कमर ऊपर-नीचे हो रही थी, और उनका जिस्म अब्दुल के रिदम के साथ ताल मिला रहा था।
“स्स्स… आह… अब्दुल… जोर से और तेज़ मरो, और अंदर जाओ ” मौसी पागलो की तरह सिसकर रही थी, उनकी सिसकारी अब चीख में बदल गई थी। उनका जिस्म काँप रहा था, और उनकी चूत में एक ज्वालामुखी फूटने को तैयार था।अचानक, मौसी की कमर ज़ोर से ऊपर उठी, और उनकी सिसकारी एक लंबी, गहरी चीख में बदल गई।
“आह… उफ्फ… अब्दुल…मर गई मै... आअह्ह्ह.... उफ्फ्फ... हमफ़्फ़्फ़... Humfff....उनकी चूत से रस की धार बह निकली, और उनका जिस्म थरथराने लगा। वो चरम पर पहुँच चुकी थीं, और उनकी आँखें आनंद से बंद होती चली गई,
मौसी चूड़ियाँ खनक रही थीं, और उनका चेहरा पसीने और संतुष्टि से चमक रहा था। अब्दुल के धक्के और तेज़ हो गए, और कुछ ही पल में उसने भी एक गहरी सिसकारी के साथ अपनी उत्तेजना को छोड़ दिया।
मौसी की गांड अब्दुल के वीर्य से लबालब भरती चली गई,
कमरे में सन्नाटा छा गया। सिर्फ़ सुनीता की भारी साँसें और उनकी चूड़ियों की हल्की खनक सुनाई दे रही थी। अब्दुल ने धीरे-से अपने लंड को मौसी की गांड से निकाला,
पच... पुक... फचम... की आवाज़ के साथ अब्दुल का वीर्य मौसी की गांड से बहार छलक उठा, और बिस्तर पर जमा होने लगा,
मौसी की आँखें अभी भी बंद थीं, और उनके चेहरे पर एक शांत, मादक मुस्कान थी, जैसे कोई तूफान थम गया हो। जैसे वो इस लम्हे को महसूस कर रही ही, वीर्य का धीरे धीरे उसकी गांड से रिसता, चुत रस का उससे मेल मिलाप, ये अहसास हि अलग था, और इस अहसास का गवाह मे था.
औरत क्या चाहती है मै अब अच्छे से जान गया था,
औरत सिर्फ संतुष्टी चाहती है, मर्द कौन है इस से फर्क नहीं पड़ता, बस वो काम कला जानता हो, औरत की इच्छा और उसके जिस्म को समझता हो
धीमी रौशनी मौसी के जिस्म पर पड़ रही थी, और उनकी त्वचा अभी भी तेल और पसीने से चमक रही थी।
मैं खिड़की से हट गया। आज मै पहली बार व्यथित नहीं था, आज मैंने जो ज्ञान प्राप्त किया वो सभी को नहीं मिलता.
मै चुपचाप वहाँ से निकल गया, आंगन मे पंहुचा अभी भी महिलाये जमीं हुई थी, मैंने इधर उधर नजर दौडाई,
मेरी माँ, दीदी अनुश्री मोहित और प्रवीण कहीं नहीं थे.
कहाँ गए ये लोग?
मैंने घड़ी की ओर देखा 9बज गए थे.
कहीं खाने पीने तो नहीं चले गए, लेकिन... लेकिन सारे मेहमान तो यही बैठे है अभी.
कहाँ गए सब लोग?
मैंने ध्यान दिया तो पाया मामी भी नहीं थी, ना ही आदिल दिख रहा था..
साला चल क्या रहा है मेरे घर मे?
Contd.....
2 Comments
Waah ...badhiya update.
ReplyDeletenext update de do bhai..aur kitna intezaar
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