सिर्फ एक औलाद का ही सुख नहीं था, शादी को 5 साल हो चले थे लेकिन खुशी ने उसके घर पे दस्तक ही ना दी कभी. यही वो दाग़ था जो उसके आलीशान महल मे धब्बे कि तरह था.
इन आठ सालो मे धीरे धीरे सभी का बर्ताव उसके लिए रुखा हो चला था. अरवा का पति उम्मीद छोड़ चूका था उसका ध्यान सिर्फ अपने बिज़नेस मे था. अरवा का हर दिन उसकी सास के तानों और पति की बेरुखी के बीच गुजरता था।
राघव, उसका पति, रात को बिस्तर पर आता, मगर उसकी हरकतें यांत्रिक थीं। वो अरवा को छूता, पर उस स्पर्श में न गर्माहट थी, न जुनून। बस एक ठंडा प्रयास था, जैसे वो सिर्फ अपनी जिम्मेदारी निभा रहा हो। अरवा का बदन, जो किसी कामदेवी की मूर्ति सा था, उसकी प्यास बुझाने वाला कोई नहीं था।
हालांकि आज भी अरवा 28 वर्ष की किसी कुवारी कि तरह ही थी, कसा हुआ कामुक बदन 36D -30-38 बहार को निकलती मादक गांड, उभान भरते स्तन, सुडोल लचकती कमर उसके स्तन इतने भरे और कड़क थे कि ब्लाउज में कैद होने के बावजूद हर नजर को अपनी ओर खींच लेते थे। उसकी कमर की लचक और गांड का मटकना किसी को भी दीवाना बना दे,
मगर राघव की नजरें उस हुस्न पर ठहरती ही नहीं थीं, जैसे औलाद ना होने के गम ने उसके पति से मर्दाना ताकत ही खिंच ली थी. अरवा का पति सिर्फ औलाद कि चाह मे सम्भोग करता, उसका काम सिर्फ अपने वीर्य को अरवा के गर्भ पहुंचाने भर तक था इसे ही दोनों मियाँ बीबी सम्भोग मान के चलते थे. अरवा को कभी नहीं पता था कि सम्भोग का असली आनंद क्या होता है। उसका बदन हर रात राघव के ठंडे स्पर्श के बाद और तड़प उठता था। वो चाहती थी कि कोई उसे भोगे, उसकी हर इंच को चूमे, उसकी चूत को रस से भर दे, मगर राघव का लंड सिर्फ एक औपचारिकता था, चुत की फाँको की सेर कर लौट आता था, उसका वीर्य अरवा की बच्चेदानी तक कभी पंहुचा ही नहीं, अरवा खुद उम्मीद छोड़ चुकी थी, शारीरिक सुख क्या होता है उसे पता ही नहीं था. पता होता तो क्या वो अपने भरे भारी जिस्म से अज्ञान रहती, 36 के बड़े कड़क एक दम तने हुए स्तन कि मालकिन थी अरवा. कमर एक दम पतली, पेट बिल्कुल सपाट मात्र 30 इंच कि कमर बाकि रही सही कसर उसकी बहार को निकली टाइट गांड पूरी कर देती थी. चलती तो 38 इंच कि गांड के पल्ले आपस मे झगड़ पड़ते. जब वो चलती, उसकी गांड का हर मटकना एक मादक नृत्य सा था। साड़ी के नीचे उसकी जांघें आपस में रगड़ खातीं, और उसकी चूत में एक हल्की सी गुदगुदी पैदा कर देती। मगर उस गुदगुदी को शांत करने वाला कोई नहीं था। उसका बदन एक जलता हुआ दीया था, जो बिना तेल के बस धीरे-धीरे बुझ रहा था।
लेकिन क्या मूल्य इन सब का, इस कामुक जिस्म का,वो कामदेवी रुपी पत्थर कि मूर्ति ही थी जिसके पास कमसिन जवान मादक बदन तो है लेकिन उसका कोई इस्तेमाल नहीं जानती वो अभागी.
अरवा कि खास बात ये है कि इन सब बदनसीबी के बाद भी उसका भगवान शिव पे अट्टु विश्वास है, शिव भगवान कि बहुत बड़ी भक्त है आज तक ऐसा कोई सोमवार ना हुआ जब वो शिव के दरबार ना गई हो. हर सोमवार वो मंदिर जाती, अपने दिल की पुकार भोलेनाथ के सामने रखती।
उसकी आंखें नम रहतीं, और वो शिवलिंग पर दूध चढ़ाते वक्त अपने सूने गर्भ की कल्पना करती। शिवलिंग को छूते वक्त उसके बदन में एक अजीब सी सिहरन दौड़ती, जैसे वो कोई पवित्र स्पर्श हो।
उस वजह से उसकी सांस अच्छी खासी नाराज ही रहती उससे, पति भी अब रुखाई से पेश आता था. सास की हर बात में एक ताना होता, "बांझ औरत को कितना भी सजा लो, कोख तो खाली ही रहेगी।"
राघव भी अब अरवा से बात कम करता। रात को बिस्तर पर वो उससे मुंह फेरकर सो जाता, जैसे अरवा का हुस्न अब उसकी नजरों में फीका पड़ गया हो।
**********
आज महाशिवरात्रि का दिन था महाशिवरात्रि थी ऊपर से सोमवार अरवा आज खूब अच्छे से तैयार हुई थी उसे आज भगवान शिव को ख़ुश करना ही था किसी पंडित कि सलाह से वो ऐसा कर रही थी. उसने लाल रेशमी साड़ी पहनी, जो उसके गोरे बदन पर चमक रही थी। टाइट ब्लाउज में उसके 36D के स्तन उभरकर बाहर झांक रहे थे। गहरी गले की डिजाइन ने उसकी गोरी घाटी को और आकर्षक बना दिया था। उसकी कमर की लचक और गांड का उभार साड़ी में ऐसा लग रहा था, जैसे कामदेवी की मादक मूर्ति जीवंत हो उठी हो। उसने अपने बालों को खुला छोड़ा, जो उसकी पीठ पर लहरा रहे थे।
"रामु रामु....उफ़ ये रामु कहाँ चला गया लेट हो रहा है मुझे " अरवा बड़बड़ाती हुई सीढ़ियों से नीचे उतरती हुई बोली, उसके कदमों की थपक हॉल में गूंज रही थी। हर कदम पर उसकी गांड मटक रही थी, और साड़ी के नीचे उसकी जांघों की रगड़ से एक हल्की सी गर्मी उसके बदन में फैल रही थी।
"कहाँ चल दी महारानी? रामु बहार गया है काम से " अरवा कि सांस जो हॉल मे ही बैठी थी उसकी नजर अरवा पे पड़ी तो पूछ बैठी.
सास की नजरें अरवा के मादक रूप पर ठहर गईं। उसकी आंखों में जलन थी, जैसे वो अरवा के हुस्न से चिढ़ती हो।
" माँ जी आज महाशिवरात्रि है आज भगवान मेरी इच्छा जरूर पूरी करेंगे" अरवा ने साड़ी को ठीक करतर हुए कहा.
"जब कोख ही बंजर है तो भगवान क्या कर लेंगे हुँह... सास का ताना अरवा के दिल में तीर की तरह उतरा। उसकी आंखें नम हो गईं, पर उसने खुद को संभाला।
वो जानती थी कि आज का दिन खास है, और शायद भोलेनाथ उसकी पुकार सुन लेंगे।
लेकिन अरवा कि सांस आज भी ताना मारने से बाज नहीं आई. अरवा कि आँखों से आँसू फुट पड़े, उसके दिल मे चुभी थी ये बात. उसके आंसुओं ने उसकी काजल को हल्का सा बहा दिया, जिससे उसका चेहरा और मासूम, मगर मादक लगने लगा। अरवा मुँह नीचे किये बहार को चल दी, अपनी कार ले वो मंदिर को चल पड़ी.
उसके दिमाग़ मे खलबली मची हुई थी "क्या मै बाँझ हूँ, एक बच्चा तक पैदा नहीं कर सकती, भगवान ने मेरे साथ ही क्यों किया ऐसा?" रास्ते में उसकी उंगलियां स्टीयरिंग पर कस रही थीं। उसका दिल धड़क रहा था, और हर सांस के साथ उसका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था।
वो अपनी साड़ी के पल्लू को बार-बार ठीक करती, मगर उसका ध्यान अपनी ही सोच में डूबा था। अपनी सोच मे डूबी अरवा ना जाने कब 20km का सफर तय कर गई उसे खुद पता नहीं चला.
सामने ही मंदिर था, भगवान शिव का प्राचीन मंदिर, चारो ओर से पहाड़ो और जंगल से घिरा सुन्दर पुराना मंदिर. मंदिर की सीढ़ियां चढ़ते वक्त अरवा की साड़ी हल्की सी ऊपर उठ गई, और उसकी गोरी चिकनी पिंडलिया झलक पड़ीं। हवा के झोंके ने उसके बालों को उड़ाया, जैसे कोई स्वर्ग की अप्सरा सीढिया चढ़ रही हो।

उसके जहन मे सिर्फ प्रार्थना थी अपनी कोख भरने कि प्रार्थना. उसने अपने हाथों में पूजा की थाली थामी, जिसमें फूल, बेलपत्र, और दूध का लोटा था। उसकी उंगलियां कांप रही थीं, जैसे वो अपनी पूरी जिंदगी की पुकार उस थाली में समेट रही हो।
आस पास बैठे भिखारियों कि नजर उस पे ही थी वो भिखारी उसी का इंतज़ार करते हो जैसे..उस क़यामत को देखने के लिए.
"साली आज सोमवार है देख आ गई विलायती मैडम " पास बैठे एक भिखारी ने कहा
"हाँ यार देख तो सही क्या गांड है एक दम कसी हुई बाहर को निकली हुई " दूसरे भिखारी ने जवाब दिया
पहला भिखारी :- सुना है इसको बच्चा पैदा नहीं होता इसलिए यहाँ आती है.
दूसरा भिखारी :- इसका पति ही नामर्द होगा वरना इस जैसी औरत को तो लंड दिखा भी दो तो पेट से हो जाये देख तो कैसा गदराया बदन है इसका. दूध देखे इसके?.
उसने अनजाने में अपनी साड़ी का पल्लू और कस लिया, मगर भिखारियों की हवस भरी नजरें उसके बदन को चीर रही थीं।
उसे एक अजीब सी सिहरन हुई। जैसे पहली बार उसे अपने हुस्न की ताकत का अहसास हुआ ही, ना जाने क्यों उन गंदे भिखारियों की बात सुन उसका बदन गर्म होने लगा।
"सालो तुम्हारे यही काम है बस सुन्दर औरतों को देख लार टपकाने का , कितनी अच्छी मैडम है वो हर सोमवार हमें 50-50 रुपए दे के जाती है उसके बारे मे गन्दा बोल रहे हो " तीसरे भिखारी ने टोकते हुए बोला
पहला भिखारी :- तो क्या हुआ है तो औरत ही ना वो भी ऐसी कामुक मदमस्त जिस्म कि मालकिन अब भला आंखे फोड़ ले क्या अपनी.
अरवा ने उनकी बातें अनसुनी कर दी, मगर उसके मन में एक हलचल मच गई। वो सोचने लगी कि क्या उसका बदन वाकई इतना मादक है कि लोग उसकी एक झलक के लिए तरसते हैं?
इन तीनो कि बातचीत मे अरवा उनके आगे से निकल गई तीनो सिर्फ आहे भरते ही रह गए अरवा के चलने से उसकी गांड के पल्ले आपस मे रगड़ खा के ऊपर नीचे हो रहे थे. उसकी हर चाल में एक मादक लय थी। साड़ी के नीचे उसकी जांघें रगड़ खा रही थीं, और उसकी चूत में एक हल्की सी गीली उत्तेजना जाग रही थी, ये गिलापन क्यों था ये उसे भी नहीं पता था,
इन भिखारियों की नजरें उसकी गांड पर जमी थीं, और अरवा को इसका अहसास था। इस एक दृश्य के लिए ही तीनो भिखारी तरसते थे बेचारे उनकी किस्मत मे तरसना ही लिखा था।
अरवा की चाल में एक अनजानी ताकत थी। वो जानती थी कि उसका बदन हर मर्द की नजरों को बांध लेता है, मगर उसकी कोख की प्यास उसे और बेचैन कर रही थी।
अरवा अपने विचारों से लड़ती मंदिर के अंदर पहुंच चुकी थी,
अंदर मंदिर मे"टन टन टन.......हे भगवान क्यों नहीं सुनते हो, 5साल से सुनी है कोख मेरी. अरवा के आँसू गिर रहे थे उसके हाथ मंदिर कि घंटी को बजाये जा रहे थे टन टन टन.... अरवा ने शिवलिंग पर दूध चढ़ाया। उसकी उंगलियां शिवलिंग को सहलाते वक्त कांप रही थीं।
वो कल्पना कर रही थी कि जैसे शिवलिंग कोई जीवंत पुरुष हो, जो उसकी कोख को भर दे। ना जाने क्यों आज उसकी सांसे तेज चल रही थी, उसका जिस्म गर्माहट और थकान से कंपने लगा था।
"बस करो बेटी भगवान सबकी सुनता है आज तेरी भी सुनेगा " पीछे से मंदिर के पुजारी ने अरवा का ध्यान भंग किया पुजारी की आवाज में एक गहराई थी। उसने अरवा को देखा, और उसकी आंखों में एक अजीब सा तेज़ था,
"बेटी, शिवलिंग सिर्फ प्रतीक नहीं, ये जीवन का स्रोत है। इसे पूजने का मतलब है प्रकृति के नियम को समझना। बच्चा सिर्फ प्रार्थना से नहीं, सही सम्भोग से मिलता है," पुजारी बहुत गहरी बात कह गया.
आज कुछ अलग तो था जब से वो यहाँ आई है उसे ऐसा ही कुछ सुनने, देखने को मिल रहा है. अरवा चौंकी, मगर कुछ बोली नहीं।
"तुम्हे पिछले कई सालो से देख रहा हूँ यहाँ आते हुए, सब मनोकामना पूर्ण होंगी तुम्हारी बेटी ये लो प्रसाद " पुजारी ने प्रसाद अरवा कि तरफ बड़ा दिया जिसे बड़े आदर के साथ अरवा ने ग्रहण किया उसकी आंखे नम थी, ना जाने कब उसकी सुनेगा भगवान.

अरवा ने प्रसाद को अपने होंठों से छुआ, और उसकी आंखों से एक आंसू टपक पड़ा। वो शिवलिंग को देख रही थी, और उसके मन में एक अजीब सी हलचल थी। उसे लग रहा था कि आज कुछ होने वाला है।
अरवा आँखों मे आँसू लिए हाथ मे छाले लिए मंदिर के बहार बढ़ चली बाहर बैठे भिखारियों को वो हमेशा 50 -50 rs दिया करती थी आज भी वही किया परन्तु आज ना जाने कैसे जैसे ही वो पैसे देने झुकी कही से एक ठंडा हवा का झोका आया और उसके साड़ी के पल्लू को गिराता चला गया.
तीनो भिखारियों के सामने उसके टाइट ब्लाउज मे कैद स्तन उजागर हो गए,
आधे से ज्यादा ब्लाउज से बहार निकले हुए थे एक दम गोरे कसे हुए, उनके बीच कि गहरी घाटी साफ झलक रही थी.

हवा के झोंके ने अरवा के पल्लू को पूरी तरह उड़ा दिया। उसके गोरे स्तन, जो टाइट ब्लाउज में कैद थे, अब और उभरकर बाहर झांक रहे थे। उसकी गहरी घाटी में एक छोटा सा तिल था, जो भिखारियों की नजरों को और भटका रहा था। अरवा का बदन सिहर उठा। उसे अहसास हुआ कि उसकी हर इंच को ये भिखारी निहार रहे हैं।

अरवा को ये सब देखकर एक अजीब सी उत्तेजना हुई। उसका बदन मे जैसे चीटिया सी रेंगने लगी, उसकी चूत में एक हल्की सी गीली सनसनी होने लगी।
अरवा को जैसे ही इस बात का अहसास हुआ वो तुरंत खड़ी हो गई, और पल्लू को सही कर लिया. परन्तु जैसे ही उसकी नजर उन तीनो भिखारियों पे गई अरवा के तन बदन मे एक अजीब सी हलचल ने जगह ले ली वो तीनो किसी मूर्ति कि तरह जड़ हो गए थे, मात्र अरवा के स्तन देखने भर से.
अरवा ने देखा कि भिखारियों की पैंट में उभार साफ दिख रहा था। उनकी हालत देखकर उसे अपने हुस्न की ताकत का अहसास हुआ। उसकी सांसे तेज हो गईं, और उसकी चूत में एक गर्म सनसनी दौड़ने लगी।
"आज एक आदमी कम है क्या " अरवा ने खुद को संभालते हुए पूछा
सामने से कोई जवाब नहीं था "तुम मे आज कोई कम है क्या? मै जितने पैसे लाती हूँ उनमे से 50rs बच रहे है." अरवा ने वापस से पूछा
"वो...वो.....मैडम....भोला नहीं आया है आज," पहले भिखारी के मुँह से शब्द बड़ी मुश्किल से निकल पाए थे.
भिखारी की हकलाहट सुनकर अरवा के होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान तैर गई।
उसे पता था कि उसकी एक झलक ने इनके होश उड़ा दिए हैं। अरवा ना जाने क्यों मुस्कुरा दी इतने समय बाद आज उसके चेहरे पे मुस्कान आई थी ना जाने क्यों उसे अहसास हो चला था कि भिखारी कि हक़लाहट कि वजह उसके स्तन ही थे.
उसकी मुस्कान में एक शरारत थी। वो जानबूझकर धीरे-धीरे पल्लू ठीक कर रही थी, जैसे वो भिखारियों को और तड़पाना चाह रही हो। उसे अजीब तो लगा लेकिन उन भिखारियों कि हालत देख खुद पे गर्व भी महसूस हुआ.
खेर पैसे और प्रसाद बाँट कर वो अपनी कार कि तरफ बढ़ चली और सड़क पे कार को दौड़ा दिया. कार में बैठते ही अरवा ने रियरव्यू मिरर में खुद को देखा। उसकी आंखों में एक नई चमक थी। उसने अपनी साड़ी को हल्का सा ऊपर खींचा, और अपनी गोरी जांघों को सहलाया। उसे अपनी कामुकता का अहसास हो रहा था, और ये अहसास उसे बेचैन कर रहा था।
परन्तु जैसे ही उसे घर जाने का ख्याल आया वैसे ही उसकी सांस के कहे शब्द वापस से उसके दिल को चुभने लगे, उसकी मुस्कान गायब हो गई. उसे फिर से दुख और चिंता ने जकड लिया.
उसके मन में एक तूफान सा उठ रहा था। वो अपनी कोख की प्यास, अपने बदन की आग, और अपने पति की बेरुखी के बीच फंस गई थी। उसका घर अभी दूर था करीबन 15km दूर, बीच मे एक छोटा सा जंगल भी पड़ता था. अरवा अपनी ही धुन मे कार चलाये जा रही थी, उसकी आंखे आँसू से धुंधली थी कि तभी "धममममममम.......कोई उसकी कार से टकरा गया "चकरररररररम.....अरवा ने कार को जोरदार ब्रेक मारा" कार सड़क पे फिसलती हुई रुक गई, अरवा ने सामने देखा तो एक आदमी ओंधे मुँह कच्चे रास्ते पे गिरा पड़ा था अरवा का दिल धड़क उठा। उसकी सांसे तेज हो गईं, और उसका बदन कांपने लगा। " हे भगवान ये मैंने क्या किया? "
वो कार से बाहर निकली, और उसकी साड़ी जंगल की हवा में लहराने लगी। "ओ माय गॉड....ये क्या हुआ " अरवा कार से निकल दौड़ के उस आदमी कि तरफ भागी जो कि औंधे मुँह जमीन पे पड़ा था
"आअह्ह्हम्म्म..उउउमम्मी..कि कराह उसके हलक से निकल रही थी. अरवा ने उसे पलटने की कोशिश की। उसकी उंगलियां कांप रही थीं, और उसकी साड़ी का पल्लू फिर से सरक गया। उसके गोरे स्तन हल्के से झांक रहे थे, और जंगल की ठंडी हवा, घबराहट और उत्तेजना ने उसके निप्पल्स को कड़क कर दिया। उसके निप्पल ब्लाउज मे साफ दिखने लगे थे, अरवा उस आदमी के पास पहुंच के झुक गई,
उसने आदमी को पलटा के देखा तो हैरान रह गई उसे कोई खास चोट नहीं थी सर पे हल्का सा किसी चोट का निशान था जैसे कोई आंख हो, बाल ऐसे बिखरे थे जैसे बरसो से नहाया ना हो बिल्कुल आपस मे गूथ गए थे किसी जटा कि तरह लम्बे एक दूसरे मे गूथे हुए. उसके चेहरे पर गंदगी थी, मगर उसकी आंखों में एक अजीब सी चमक थी।
वो जटाएं किसी साधु की तरह थीं, और उसका चेहरा रहस्यमय लग रहा था। शरीर पे कपडे का कोई निशान नहीं सिर्फ एक गमछा जैसा लपेटा हुआ था अपनी कमर से नीचे. उस गमछे के नीचे एक विशाल उभार साफ दिख रहा था, जैसे कोई सांप छुपा हो।
अरवा की नजर वहां ठहर गई, और उसका दिल तेजी से धड़कने लगा।
"अअअअअ..अअअअअ.....तुम तुम तो वही हो जो मंदिर के बहार बैठते हो " अरवा ने पूछा
"मैंने तुम्हे मंदिर के बहार कई बार देखा है, आज तुम वहा नहीं थे. यहा क्या कर रहे हो? घर कहाँ है तुम्हारा?" अरवा की आवाज में घबराहट थी, मगर उसकी नजरें बार-बार भोला के गमछे की ओर जा रही थीं। उसे अपनी ही बेचैनी पर हैरानी हो रही थी। अरवा एक ही सांस मे सारी बात कह गई.
"आअह्ह्ह.....मैडम जी " भोला थोड़ा सा कराहते हुए बोला, उसने हाथ से सड़क के उस पार इशारा कर दिया. उसके हाथ की हरकत से गमछा और खिसक गया।
अरवा की नजर अब उस विशाल लिंग पर टिक गई थी, जो गमछे के नीचे से आधा बाहर झांक रहा था। बिल्कुल काला सा सांप जैसा कुछ था,

अरवा ने उसे उठाना चाहा तो उसका पल्लू सरसराता सा नीचे गिर गया एक गोरे सुडोल स्तन कि लाइन उभर के भोला के सामने आ गई अरवा का पल्लू पूरी तरह गिर गया। उसके गोरे, भरे हुए स्तन अब ब्लाउज में कैद होकर भी बाहर को उभर रहे थे। उसकी गहरी घाटी में पसीने की बूंदें चमक रही थीं।
भोला की नजरें वहां टिक गईं, और उसकी सांसें तेज हो गईं।
जैसे ही भोला कि निगाह उसके स्तन पे पड़ी अरवा को ऐसे लगा जैसे कुछ चुभा हो उसके स्तन पे, उसके निप्पल्स और कड़क हो गए, जैसे भोला की नजरों ने उन्हें छू लिया हो। उसकी चूत में एक गर्म सनसनी दौड़ने लगी, और उसका बदन सिहर उठा। अरवा चाह कर भी अपना पल्लू नहीं उठा पा रही थी उसे अचानक अपने स्तन भारी होते लग रहे थे. उसके स्तन जैसे और भारी हो गए थे। ब्लाउज की सिलाई तन रही थी, और उसकी सांसे ऊपर-नीचे हो रही थीं। वो चाहकर भी अपनी नजरें भोला से हटा नहीं पा रही थी।
"उठिये बाबा उसने भोला को सहारा दे उठा दिया, भोला अरवा से जा चिपका. भोला का गर्म, पसीने से तर बदन अरवा से टकराया। उसकी जटाएं अरवा की गर्दन को छू रही थीं, और उसका गमछा और खिसक गया। अरवा को भोला का लंड अब और साफ दिख रहा था—काला, मोटा, और इतना लंबा कि वो हैरान थी। अरवा ने देखा कि भोला मजबूत कद काठी का व्यक्ति था इतनी तेज़ टक्कर लगने के बाद भी उसे कुछ नहीं हुआ था.
उसके कंधे चौड़े थे, और उसकी छाती पर घने बाल थे। उसका बदन एक जंगली मर्दानगी से भरा था, जो अरवा को अंदर तक हिला रहा था। अरवा ने जैसे तैसे भोला को खड़ा किया, उसका पल्लू अभी भी नीचे धूल चाट रहा था. उसके गोरे स्तन अब और उभरकर बाहर झांक रहे थे।
भोला की नजरें उन पर जमी थीं, और अरवा को लग रहा था जैसे उसकी हर सांस उसके स्तनों को और भारी कर रही हो।
भोला कि बाह अरवा के फुले हुए स्तन मे साइड से जा लगी, अरवा को ऐसे लग जैसे किसी ने उसके नंगे स्तन को छू दिया हो, ब्लाउज के ऊपर से हुए स्पर्श ने ही अरवा को झकझोर के रख दिया. भोला की बांह का स्पर्श इतना गर्म था कि अरवा के बदन में करंट सा दौड़ गया। उसकी चूत में गीली सनसनी और तेज हो गई, वो अपनी जांघें आपस में सिकुड़ने लगीं। ऐसा लगा जैसे असीम ऊर्जा भरी हो इस स्पर्श मे.
अरवा ने खुद को हल्का सा अलग करते हुए पल्लू वापस से सही जगह रख लिया, सफ़ेद गोरी गोलाईया छुप गई थी लेकिन अरवा कुछ भारिपन महसूस कर रही थी अपने स्तन मे. जैसे तैसे उसने पल्लू ठीक किया, मगर उसका मन अब भोला के उस विशाल लंड पर अटक गया था। वो चाहकर भी अपनी नजरें वहां से हटा नहीं पा रही थी। उसे अजीब से सीहरन महसूस हो रही थी, सांसे तेज़ हो गई थी अब कहना मुश्किल था कि भोला कि छुवन कि वजह से या एक्सीडेंट कि वजह से.
अरवा का दिल जोरो से धड़क रहा था। उसकी चूत अब पूरी तरह गीली हो चुकी थी, और उसकी पैंटी में एक गर्माहट फैल रही थी।
"आइये बाबा मै आपको आपके घर छोड़ देती हूँ " अरवा ने भोला का हाथ उठा अपने कंधे पे रख लिया और चल पड़ी भोला का हाथ उसके कंधे पर था, और उसकी उंगलियां हल्के से अरवा की गर्दन को सहला रही थीं।
अरवा को हर स्पर्श में एक अजीब सी गर्मी महसूस हो रही थी। सड़क से अंदर जाती एक पगडंडी पे अरवा उस भिखारी भोला को सहारा देती हुई चल पड़ी, आस पास झाड़ झंकार बढ़ती ही जा रही थी, अरवा ने पीछे मुड़ के देखा तो सड़क आँखों से ओझल हो चुकी थी.
जंगल की सघनता ने अरवा को और बेचैन कर दिया। हवा में एक अजीब सी गंध थी, जो उसके बदन को और गर्म कर रही थी। भोला का बदन उससे सट रहा था, और उसकी गर्म सांसे अरवा की गर्दन पर टकरा रही थीं। अरवा का दिल किसी अनजानी शंका से घिरता चला गया, परन्तु ये उसकी जिम्मेदारी थी भोला को उसने ही टक्कर मारी थी.
उसके मन में एक डर था, मगर साथ ही एक अनजानी उत्तेजना भी थी। भोला का बदन उसे किसी जंगली मर्द की तरह आकर्षित कर रहा था। जल्दी ही भोला का घर आ गया घर क्या था एक टूटी फूटी झोपडी सी थी. घने जंगल मे बनी घास फुस कि झोपडी, झोपड़ी के अंदर एक अंधेरा सा माहौल था। एक पुराना, फटा हुआ बिस्तर, और चारों ओर बिखरा हुआ सामान। हवा में एक मटमैली गंध थी, जो अरवा के नथुनों में समा रही थी।
भोला जाते ही अपने टूटे फूटे बिस्तर पे गिर पड़ा. उसके गिरते ही गमछा पूरी तरह खिसक गया। अरवा की नजरें उसके विशाल लंड पर जम गई,

भोला के गिरते ही अरवा ने देखा कि भोला का लंगोट हट गया है उसकी सांसे जहाँ थी वही अटक गई आंखे अपने कटोरे से बहार निकलने पे आतुर हो चली उसका लंड इतना मोटा और लंबा था कि अरवा को यकीन ही नहीं हो रहा था की ये किसी आदमी का अंग है.
भोला का लंड किसी काले नाग की तरह था, जिसके नीचे दो भारी टट्टे लटक रहे थे। उसकी जांघों के बीच घने काले बालों का गुच्छा था।
उसने ऐसा दृश्य कभी नहीं देखा था एक काला सांप कि तरह मोटा लम्बा सा लिंग उस आदमी के जांघो के बीच झूल रहा था उसके नीचे किसी टेनिस बोल कि तरह दो बड़े बड़े टट्टे लटक रहे थे. दोनों जांघो के बीच काले घने बालो का गुच्छा था, जैसे कोई घोंसला हो और एक काला नाग अपने दो अंडो के साथ उस घोसले मे बैठा हो.
अरवा की सांसे रुक गई थीं। उसका गला सूख गया, उसे लगा जैसे उसकी चुत से कोई चासनी सी टपकी हो, उसने कभी अपने पति का लंड भी इतने गौर से नहीं देखा था।

भोला का लंड जैसे उसे बुला रहा था। "पानी पियोगी बेटी " भोला ने पूछा उसकी आवाज में एक अजीब सी गहराई थी, जैसे वो अरवा के मन को पढ़ रहा हो।
अरवा बूत बनी खड़ी थी "मै मैममम..लेकिन बोल ना सकी उसका गला सुख गया था. उसकी नजरें भोला के लंड पर जमी थीं। उसका दिल धड़क रहा था, और उसकी चूत अब पूरी तरह गीली हो चुकी थी। उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई थी, दिल धाड़ धाड़ कर छाती तोड़ बहार आने को बैचैन था
"मेरा नाम भोला है " भोला ने कहा
"पप्पाप्पल.....पता है " अरवा ने थूक गटकते हुए कहा उसकी आवाज कांप रही थी। उसने अपनी जांघें और सिकोड़ लीं, जैसे अपनी चूत की गीली सनसनी को छुपाना चाह रही हो।
"तुझे कैसे पता " भोला मैडम से सीधा तू पे आ गया था. उसने खुद को सँभालने कि बिल्कुल भी कोशिश नहीं कि उसका लंगोट कमर तक उठा हुआ था भोला की बेपरवाही ने अरवा को और बेचैन कर दिया।
उसके लंड में कुछ कुछ हलचल हो रही थी, वो पहले से अब ज्यादा बड़ा और कड़क दिख रहा था, उसके लंड का सुपाड़ा गुलाबी चमक रहा था।

"वो....वो.... वहा के भिखारी ने बताया" अरवा जैसे तैसे बोल तो गई लेकिन उसकी नजरें वही जमीं हुई थी ना नजर हट रही थी ना ही उसके कदम. उसकी आंखें भोला के लंड पर अटक गई थीं। वो चाहकर भी अपनी नजरें हटा नहीं पा रही थी। उसकी चूत में अब एक गर्म लावा सा बह रहा था।
"मै तुझे हर सोमवार मंदिर मे देखता था, तू इतनी सुंदर है, ऐसा गदराया जिस्म है फिर भी बच्चा नहीं है तुझे?" भोला सीधा सा बोल गया आखिर था ही भोला उसकी बात में एक जंगली सच्चाई थी।
अरवा का दिल धड़क उठा। भोला कि ये बात सुन अरवा के पैर काँपने लगे, उसने आज पहली बार अपने बदन कि तारीफ सुनी थी वो भी किस से एक भिखारी से "अअअअअ....आपको कैसे पता?" उसकी आवाज में एक अजीब सी मासूमियत थी। वो भोला की आंखों में देख रही थी, और उसकी नजरें अब भी उस लंड पर बार-बार जा रही थीं।
"सब जानता हूँ मै तुझे देख के ही मालूम पड़ गया कि तुझे बच्चा नहीं है," भोला की आवाज में एक रहस्यमय आत्मविश्वास था।
"ऐसी मादक जिस्म की औरत, ऐसी कसी हुई चूत, और फिर भी कोख सूनी? ये तो प्रकृति का अपमान है, बेटी।"
यही तो दुख था अरवा का आज भोला के मुँह से ये बात सुन उसकी नजरें झुक गई उसकी आंखे नम हो गई. उसके आंसुओं ने उसकी काजल को फिर से बहा दिया। वो भोला की बातों से टूट रही थी, मगर उसकी चूत में गर्मी और बढ़ रही थी।
"अरे पागल रोती क्यों है, इसमें तेरी क्या गलती अब तेरे जैसे बदन को भोगने लायक शक्ति हर किसी के पास थोड़ी ना होती है, आ ले ले बच्चा " भोला ने अपने लंड को हाथ से पकड़ ऊपर कर अपने पेट से चिपका दिया. भोला ने अपने लंड को पकड़कर हिलाया, और उसका सुपाड़ा और चमक उठा। अरवा की सांसे और तेज हो गईं। उसका बदन अब पूरी तरह बेकाबू हो रहा था।
भोला कि ये हरकत और बाते सुन अरवा पसीने पसीने हो गई उसके सामने एक काला भयानक लंड भोला के पेट पे लेटा था,
"ककककम.....क्या बोल रहे हो तुम " अरवा ने आँसू पोछते हुए कहा उसकी आवाज कांप रही थी। उसकी चूत अब इतनी गीली थी कि उसकी पैंटी पूरी तरह भीग चुकी थी।
"वही जो तूने सुना आओ अपनी मनोकामना पूर्ण कर लो" भोला की आवाज में एक वशीकरण था। उसने अपने लंड को फिर से हिलाया, और एक बूंद प्री-कम उसकी टिप से टपकी।

अरवा की नजरें उस बूंद पर अटक गईं। भोला ने अपने लंड को पकड़ के एक झटका दिया वो किसी चाबुक कि तरह झटके से भोला के पेट से टाकराया, वो चटटटट....कि आवाज़ सीधा अरवा के जहन पे जा लगी उस आवाज ने अरवा के बदन में एक करंट सा दौड़ा दिया।
उसकी चूत में एक गर्म लहर उठी, और उसकी जांघें कांपने लगीं। उसके दिमाग़ मे पंडित के बोले गए शब्द गूंजने लगे
"आज भगवान तेरी सुन लेगा " पंडित की बातें अरवा के मन में गूंज रही थीं। उसे लग रहा था कि शायद भोला ही उसकी मनोकामना का जवाब है। अरवा को ये विचार आते ही ना जाने किस आवेश मे उसके कदम भोला को ओर बढ़ चले, वो ऐसी बदचलन स्त्री नहीं थी, ना जाने किस वशीकरण से बँधी थी उसके दिल मे एक हुक सी जग गई थी, उसका बदन उस मोटे काले लम्बे लंड को देख अपना नियंत्रण खो रहा था.
उसके कदम अपने आप भोला की ओर बढ़ रहे थे। उसकी चूत का पानी अब पैंटी से निकल जांघो पर तेरने लगा था,
उसका बदन एक जलता हुआ ज्वालामुखी सा बन गया था, जो अब फटने को तैयार था।
भोला ने आगे बढ़ अरवा का हाथ पकड़ लिया "आआआहहहहब......अरवा के मुँह से हलकी सी सिसकारी फुट गई " भोला के हाथ मे एक अजीब सी गर्माहट थी जो अरवा के बदन मे समाने लगी भोला की उंगलियों ने अरवा की कलाई को कस लिया। उसका स्पर्श इतना गर्म था कि अरवा का पूरा बदन सिहर उठा। अरवा का बदन गर्म होने लगा.
"ये तेरा ही है अरवा पकड़ इसे" भोला ने अरवा के हाथ को पकड़ अपने लंड पे रख दिया अरवा की उंगलियां भोला के लंड को छूते ही कांप उठीं। वो इतना गर्म और सख्त था कि उसका दिल धड़क उठा।
"आआआहहहहह.......इतना गरम " अरवा ने तुरंत हाथ पीछे खिंच लिया उसके हाथ में एक बिजली सी दौड़ गई, उसकी चूत में अब एक गर्म लावा सा बह रहा था। उसका दिल सीना फाड़ देने पे उतारू था, पूरा बदन पसीने से लथपथ हो चला था परन्तु भोला का हाथ नहीं छूटा,

" लिंग का अनादर नहीं करते अरवा बेटी ये तो पवित्र चीज है जीवन का संचार है इसमें, यही तो नवजीवन कि नीव रखता है " भोला की बातों में एक जादू था।
उसने अरवा का हाथ फिर से अपने लंड पर रखा। "ये वो बीज है जो तेरी कोख को भर देगा, बेटी। सिर्फ चूत में लंड डालने से बच्चा नहीं होता। वीर्य को बच्चेदानी तक पहुंचना पड़ता है।" उस भिखारी भोला कि बातो मे जादू था एक वशीकरण था, उसकी बातो का जादू अरवा पे होने लगा था अरवा का मन अब पूरी तरह भोला के वश में था।
उसकी चूत में एक गर्म सनसनी थी, और उसका बदन उसकी बातों को मानने को तैयार था। वो भूल रही थी कि वो कहाँ है किसके साथ है उसे सिर्फ लिंग दिख रहा था भोला का लिंग. उसकी आंखें अब सिर्फ उस काले, मोटे लंड को देख रही थीं। "इसकी पूजा कर, इसे प्यार कर, इसे अपने कोमल नाजुक हाथो का सहारा दे " भोला अरवा को उकसा रहा था.
वशीकरण मे बँधी अरवा ने अपने काँपते हाथो को आगे बड़ा दिया और धीरे से भोला के अर्धमुरछित लिंग पे रख दिया. उसकी उंगलियां उस गर्म, सख्त लंड पर फिसल रही थीं। वो इतना मोटा था कि उसकी मुठ्ठी में समा ही नहीं रहा था।
"आआआहहहहहब...उफ्फ़फ़फ़ग्ग..." दोनों के मुँह से एक साथ सिसकारी निकल गई. अरवा की सिसकारी में एक गहरी प्यास थी। भोला का लंड उसके हाथ में और सख्त होने लगा, जैसे वो जीवंत हो उठा हो।
" वाह बेटी क्या कोमल हाथ है तेरा, क्या मादक काया है तेरी " भोला ने तारीफ के पुल बाँध दिये. उसकी तारीफ ने अरवा के मन में एक नई आग जला दी। उसने भोला के लंड को और कसकर पकड़ा, और उसकी उंगलियां उसकी नसों पर फिसलने लगीं।
अरवा जो कि पहले ही गरम हो चुकी थी इस तारीफ ने उसका मनोबल कई गुना बड़ा दिया उसके हाथ भोला के लिंग के चारो तरफ कसते चले गए, लंड इतना मोटा था कि पूरी तरह से मुठी मे समा तक नहीं रहा था. उसकी उंगलियां अब भोला के सुपाड़े को सहला रही थीं। उसका सुपाड़ा गुलाबी और चमकदार था, और उससे एक बूंद प्री-कम टपक पड़ी,
भोला का हाथ अभी भी अरवा के हाथ पे ही था उसने अरवा के हाथ को पकड़ नीचे कि तरफ सरका दिया, फलसरुप भोला का लंड आगे से खुलता चला गया भोला ने अरवा के हाथ को अपने टट्टों की ओर खींचा। अरवा ने उन्हें छुआ, और वो इतने भारी और गर्म थे कि उसका बदन सिहर उठा। कमरे मे एक मादक कैसेली गंध फ़ैल गई उस गंध ने अरवा के नथुनों को भर दिया। ये एक नशीली खुशबू थी, जो उसके बदन में आग लगा रही थी। अरवा के तो होश ही उड़ गए थे उसके सामने एक गुलाबी रंग का मोटा सा सूपाड़ा उभर आया था, उसमे से निकलती अजीब सी गंध अरवा के नाथूनो मे समाने लगी.
उस सुपाड़े की चमक अरवा को बुला रही थी। वो इतना मोटा और गर्म था कि अरवा का मन उसे चूमने को कर रहा था।
"आआहहहहह..... अरवा अब बिल्कुल होश मे नहीं थी उसकी गवाह उसकी सिसकारी थी, ये अजीब गंध थी. उसकी सिसकारियां अब और तेज हो रही थीं। उसकी चूत में रस की बाढ़ आ रही थी, और उसकी पैंटी अब पूरी तरह भीग चुकी थी।
"पास आ के सूंघ ना " भोला जैसे उसके मन को पढ़ रहा था, भोला ने अरवा के सिर को हल्के से अपने लंड की ओर धकेला। उसकी नाक अब उस सुपाड़े के ठीक सामने थी।
"कककक....क्या?" अरवा जैसे होश मे आई उसकी आवाज में एक मासूम बेचैनी थी।
" बच्चे पैदा करने के लिए सबसे पहले काम कला का ज्ञान होना जरुरी है सम्भोग कला आनी चाहिए सम्भोग आनन्द के लिए हो तो फल जल्दी ही मिलता है."
"बेटी, सम्भोग सिर्फ जिस्म का मिलन नहीं, ये आत्मा का संनाद है। चूत और लंड का मिलन तब पूरा होता है, जब दोनों एक-दूसरे को पूरी तरह भोगते हैं।" बोलते हुए भोला ने अपना दूसरा हाथ अरवा के सर के पीछे रख उसे अपने लंड पे धकेल दिया उसकी उंगलियां अरवा की गर्दन को सहला रही थीं। उसने अरवा के सिर को और नीचे दबाया, और उसका सुपाड़ा अब अरवा के होंठों को छू रहा था।
अरवा कि नाक के पास भोला का लंड झूल रहा था उसकी गर्मी और गंध अरवा के होश उड़ा रही थी। वो चाहकर भी पीछे नहीं हट पा रही थी। अरवा ने आज तक ऐसा नहीं किया था उसे पता ही नहीं था इस चीज मे इतना आनन्द है उसके पति ने कभी उसे ऐसा करने को नहीं कहा था। मगर भोला का लंड जैसे उसे बुला रहा था।
उसने एक लम्बी सांस भर ली
"सससससनणणनईईफ्फ्फ्फफ्फ्फ़......आआहहहह..... उस गंध ने अरवा के बदन में एक तूफान सा जगा दिया। उसकी चूत में रस की लहरें उठ रही थीं। .अरवा का जिस्म एक पल मे कांप गया वो पूरी तरह से मदहोश हो चली थी उसका बदन अब पूरी तरह बेकाबू था।

उसकी सांसे तेज थीं, और उसकी चूत में एक गर्म लावा सा बह रहा था। उसे इस खुसबू ने इस कदर भावशून्य कर दिया था कि ना जाने कैसे उसकी जबान बहार आ गई और सीधा भोला के खुले सुपाडे पे टच हो गई उसकी जीभ ने सुपाड़े को हल्के से चाटा।

एक नमकीन, गर्म स्वाद उसके मुंह में घुल गया। अरवा की आंखें बंद हो गईं, और उसकी सिसकारी और तेज हो गई।
"आअह्ह्हभ....अरवा बेटी बड़ी जल्दी सिख गई " भोला कि बाते अरवा का हौसला बढ़ा रही थी
"बेटी, ये तो बस शुरुआत है। चूस इसे, पूजा कर इसकी, यही फल देगा तुझे " भोला की आवाज में एक जादू था। सम्भोग मे कोई किसी को कुछ सिखाता नहीं है बस हो जाता है अपने आप यही बात आज अरवा को समझ आ गई थी.
उसने अपने होंठों को और खोल लिया, और भोला का सुपाड़ा उसके मुंह में समा गया।
उसकी जीभ अब उस सुपाड़े को चाट रही थी, और उसका स्वाद अरवा को और मदहोश कर रहा था।

उसकी चूत अब इतनी गीली थी कि रस उसकी जांघों तक बह रहा था। लेकिन सर इंकार मे ही हिल रहा था क्युँकि उसने आज तक ऐसा कुछ नहीं किया था उसने कभी अपने पति कि लुल्ली भी नहीं चूसी थी. उसके मन में एक झिझक थी, मगर भोला की बातों और उस लंड की गर्मी ने उसकी सारी झिझक तोड़ दी थी।
"मना नहीं करते बेटी, ये तो प्रसाद है, हर सोमवार को मंदिर आ के मेरे सामने झुक झुक के अपने स्तन दिखाती थी आज शर्म आ रही है"
"तू हर सोमवार अपनी गांड मटकाती थी, और मेरे लंड को तड़पाती थी। अब इसे चूस, और अपनी कोख की प्यास बुझा," भोला ने कहा।
एक दम से भोला का व्यवहार बदलने लगा था, उसने अरवा के सर को पकड़ उसके होंठो को अपने लंड पे घिस दिया उसके होंठों पर भोला का सुपाड़ा रगड़ रहा था। उसकी जीभ अब उस सुपाड़े को चाट रही थी, और उसका स्वाद अरवा को और बेकाबू कर रहा था। "आआहहहहह......बाबा....बाबा.....क्या कर रहे है " अरवा भोला को बोल रही थी लेकिन रुक नहीं रही थी उसके होंठ भोला के लंड पे घिस रहे थे उसकी सिसकारियां अब और तेज हो रही थीं।
इसे चुसो बेटी " भोला ने अरवा के सर पे दबाव दे उसे पूरा अपने लंड पर झुका लिया भोला ने अरवा के सिर को और दबाया।
उसका लंड अब उसके गले तक उतर गया। अरवा की आंखें चौड़ी हो गईं, और उसका मुंह पूरी तरह भर गया। एक मनमोहक खूसबु से अरवा का बदन गरमानें लगा. उस गंध ने अरवा के होश उड़ा दिए।
उसका मुंह भोला के लंड से भरा था, और उसकी जीभ उसके टट्टों को छू रही थी।
उसे भोला का ये बदला हुआ मिजाज पसंद आ रहा था भोला का जंगलीपन अरवा को और उत्तेजित कर रहा था। वो चाहती थी कि भोला और आक्रामक हो।

"पूरा मुँह खोल के चूस इसे और अंदर ले " भोला जैसे ऑर्डर चला रहा था उसकी आवाज में एक मर्दाना ताकत थी।
उसने अरवा के सिर को और दबाया, और उसका लंड अब उसके गले में और गहरा उतर गया। भोला का लंड अरवा के होंठो कि छुवन से बिल्कुल तनतना गया था, एक दम सीधा खड़ा था उसका लंड अब पूरी तरह सख्त था, और उसकी नसें उभर आई थीं।
अरवा की जीभ अब उसकी हर नस को चाट रही थी। अरवा भोला के व्यवहर और लंड मे आये बदलाव को देख भोचक्की रह गई थी. उसकी आंखें भोला के लंड को देख रही थीं, और उसका मन उसे और गहराई से चूसने को कह रहा था।
कहाँ अभी उसे काम कला का ज्ञान मिल रहा था कहाँ अब वो बेबस नजर आ रही थी. अरवा अब पूरी तरह भोला के वश में थी। उसका बदन उसकी सुन नहीं रहा था।
अरवा ने जितना हो सकता था उतना मुँह खोल दिया "पकककककक....पच.. पच... करता भोला का लंड अरवा के मुँह मे पूरी तरह समा गया, अरवा खुद हैरान थी इतना बड़ा लंड उसके मुँह मे कैसे चला गया, ये लंड तो उसकी हथेली मे भी नहीं समा रहा था, मुँह मे कैसे समा गया.

अरवा के होंठ पूरी तरह से खिंच गए। लंड का स्वाद उसे और बेकाबू कर रहा था।
"तुझे हर सोमवार देखता था अपनी गांड मटका मटका के बच्चा मांगती थी ना तू, अरे पागल गांड मटकाने से बच्चा पैदा होता है क्या भला?"
"तू हर बार अपने स्तनों को उछालती थी, और मेरे लंड को तड़पाती थी। अब इसे चूस, और अपनी कोख को भर," भोला ने कहा।
"गू.गू...गऊऊऊ....अरवा ने वापस अपना मुँह ऊपर को खिंच लिया, सांस लरना मुश्किल हो रहा था, लेकिन अरवा ने पूरी तरह से भोला के लंड को आज़ाद नहीं किया अपितु सुपाडे तक आ कर रुक गया,
उसकी सिसकारियां अब गूंज रही थीं। उसका मुंह भोला के लंड से भरा था, भोला ने अपनी कमर को हल्का सा ऊपर उछाल दिया था लंड का थोड़ा सा हिस्सा और अंदर समा गया. उसके हर धक्के से अरवा का गला और भर रहा था। उसकी आंखें नम हो गई थीं, मगर वो रुक नहीं रही थी।
"तू मुझे भीख देती थी झुक झुक के अपने दूध दिखा के, स्तन दिखाने से उनमे दूध नहीं उतरता पागल औरत "चरररररररर......" भोला ने एक ही झटके मे अरवा के ब्लाउज को पकड़ के उसके बटन को तोड़ने हुए उसके स्तन को आगे से नँगा कर दिया उसके ब्लाउज के बटन टूटकर जमीन पर बिखर गए। उसकी काली ब्रा में कैद गोरे स्तन अब बाहर झांक रहे थे। ठंडी हवा ने उसके निप्पल्स को और कड़क कर दिया।
काले ब्रा मे कैद अरवा के स्तन पे बहार से आती ठंडी हवा ठोंकर मार रही थी. उसके निप्पल्स अब ब्रा के ऊपर से साफ दिख रहे थे। अरवा की सांसे धाड़ धाड़ कर चल रही थीं, और उसका बदन अब पूरी तरह बेकाबू था। परन्तु उसका मुँह भोला के लिंग से नहीं हटा, उसके निप्पल भोला के जाहिल पन से कड़क हो गए थे उसकी जीभ अब भोला के सुपाड़े को और तेजी से चाट रही थी। उसका मुंह उसके लंड से भरा था, और उसकी सिसकारियां गूंज रही थीं।
वो सालो से इस प्यास मे तड़प रही थी, भोला का जंगलीपन उसे कही ना कही पसंद आ रहा था भोला का जंगलीपन अरवा की दमित इच्छाओं को जगा रहा था।
अरवा का जिस्म इस लंड की चाहत करने लगा, वो चाहने लगी की भोला उसे खूब भोगे अपने लंड से,
"चूस इसे चूस मेरे लंड को....चूसेगी नहीं तो बच्चा कैसे लेगी " भोला ने वापस से एक जोरदार झटका मार दिया उसका लंड सीधा अरवा के गले तक समा गया. उसके लंड का सुपाड़ा अब अरवा के गले में था। उसकी जीभ उसके टट्टों को छू रही थी, और उसका मुंह पूरी तरह भरा था। "गुउउउउउउउउ......गऊऊऊऊ.....करती अरवा कि आंखे चौड़ी हो गई आंखे बहार आने को बेताब हो चली. जीभ बहार निकल के टट्टो को छू रही थी. अरवा की आंखों से आंसू टपक रहे थे, मगर वो रुक नहीं रही थी। उसकी सिसकारियां अब और तेज थीं। उसकी चूत में रस की बाढ़ आ रही थी। अरवा के लिए ये सब बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था वो भोला के जाँघ पे अपने हाथो को मारने लगी. उसकी उंगलियां भोला की जांघों पर कस रही थीं।
"जब तू सीढ़ी उतर के मंदिर जाती है तब सभी लोग तेरी इस मखमली मादक गांड को निहारते है chtttttttttt....से एक थप्पड़ साड़ी के ऊपर से ही अरवा कि गांड पे पड़ गया थप्पड़ की आवाज जंगल में गूंज गई। अरवा की गांड साड़ी के ऊपर से ही थरथरा उठी, और उसकी चूत से मोती चिपचिपी धार जांघो पर बहने लगी,
"गऊऊऊऊ......करती अरवा के गले मे अभी भी भोला का लंड फसा हुआ था उसकी आँखों से आँसू निकल के गिरने लगे थे. उसके आंसुओं ने उसकी काजल को और बहा दिया। उसका चेहरा अब और मादक लग रहा था। भोला को शायद दया आ गई थी उसने अपने हाथ को ढीला छोड़ दिया
"आआहहहह.....खो खो.....उफ्फ्फग्ग... खःह्ह्ह्हहोओओओ....अरवा ने अपना सर ऊपर उठा लिया उसके मुँह से ढेर सारा थूक निकल के भोला के लंड पे गिर पड़ा. उसका थूक भोला के लंड पर चमक रहा था, जैसे उसने उसका जल अभिषेक किया हो। उसका लंड अब और सख्त हो चूका था, सुपाड़ा गुलाबी चमक रहा था।
भोला ने अरवा को पलभर कि फुर्सत भी ना लेने दी और उसे पकड़ के उठा दिया वो अभी भी हांफ रही थी लम्बी लम्बी सांसे ले रही थी
"इसी गांड को मटकाती है ना तू चट...चट...करते दो थप्पड़ उसकी गांड पे पड़ गए. हर थप्पड़ के साथ अरवा की गांड हिल के आपस मे लड़ पडती,
उसकी साड़ी अब और खिसक गई थी, और उसकी गोरी जांघें साफ दिख रही थीं।
साड़ी खुल के नीचे पैरो पे एकाट्ठी हो गई थी. अरवा की साड़ी अब पूरी तरह जमीन पर थी। उसकी गोरी जांघें पेटीकोट के महीन कपडे से झलक रही थी, गीली पैंटी का निशान साफ देखा जा सकता था,
अरवा एक भिखारी के सामने सिर्फ पेटीकोट ब्रा मे हांफ रही थी विरोध करने का तो वक़्त ही नहीं था उसके पास, वक़्त नहीं था या वो चाहती ही नहीं थी.
उसका गिरा चिकना कामुक जिस्म अर्धनग्न अवस्था मे भोला के सामने था।

"सररररररम......करता हुआ पेटीकोट भी अरवा के पैरो मे जमा हो गया " अरवा अब सिर्फ काली ब्रा और पैंटी में थी। उसकी चूत की गर्मी अब पैंटी के ऊपर से साफ दिख रही थी। सामने का नजारा देख भोला के लंड ने बगावत ही कर दी, सामने अरवा जैसी कामुक मादक जिस्म कि मालकिन मात्र छोटी सी पैंटी और ब्रा मे खड़ी थी.

भोला की आंखें अरवा के बदन पर टिक गई थीं। उसकी गोरी जांघें, उसकी पैंटी में छुपी चूत, और उसके भरे हुए स्तन—सब कुछ उसे पागल कर रहा था।
ऐसा कामुक गदराया खिला हुआ बदन देख के तो इंद्र का सिंघाहासन भी डोल जाता ये तो भोला था.
भोला की नजरें अब अरवा की चूत पर थीं। उसकी पैंटी पूरी तरह गीली थी, और उसकी चूत की लकीर साफ दिख रही थी।भोला से रहा नहीं गया उसने अपने घुटने जमीन पे टिका दिये और अरवा कि दोनों जांघो के बीच अपना मुँह घुसा दिया भोला की गर्म सांसे अरवा की जांघों पर टकरा रही थीं।
उसने अपनी नाक अरवा की पैंटी पर रगड़ दी, और उसकी चूत की गंध को गहरी सांस में भरा।
अरवा तो अभी तक इन सब से बाहर भी नहीं आई थी कि ये कामुक हमला हो गया उसके पति ने भी आज तक ऐसी हरकत नहीं की थी,
भोला की गर्म सांसे अरवा की जांघों पर टकरा रही थीं। उसने अपनी नाक को अरवा की पैंटी पर और जोर से रगड़ा, जैसे वो उसकी चूत की गंध को अपने फेफड़ों में समेट लेना चाहता हो।
अरवा का बदन कांप उठा। उसकी चूत में उठती गर्म लहर और तेज हो गई, और उसकी पैंटी अब इतनी गीली थी कि रस उसकी जांघों से बहता हुआ घुटनो तक आ गया था,
"आआहहह... बाबा... ये क्या कर रहे हो?" अरवा की आवाज में एक मिश्रित सिसकारी थी, जिसमें डर और उत्तेजना दोनों थे। उसने अपने हाथ भोला के कंधों पर रखे, जैसे वो खुद को संभालना चाह रही हो, मगर उसका बदन अब पूरी तरह बेकाबू था।
भोला की जीभ अब उसकी पैंटी के ऊपर से उसकी चूत की लकीर को चाट रही थी। उसकी गर्म जीभ की हर चाट अरवा के बदन में बिजली सी दौड़ा रही थी।
भोला ने अपनी उंगलियों से अरवा की पैंटी को एक तरफ खींचा। उसकी चूत से लिसलिसी सफ़ेद सी चासनी उसकी पैंटी से जुडी हुई एक तार बना रही थी, गुलाबी चुत, गीली, और इतनी कसी हुई कि जैसे वो कभी किसी मर्द के स्पर्श से अछूती रही हो। भोला की आंखों में एक भूख थी।
उसने अपनी जीभ को अरवा की चूत की दरार पर रखा और धीरे से चाटा। अरवा की सिसकारी अब एक चीख में बदल गई।
"उफ्फ्फ... बाबा... आह्ह्ह!" अरवा का सिर पीछे की ओर झुक गया। उसकी उंगलियां भोला की जटाओं में उलझ गईं, और वो उसे और करीब खींचने लगी। भोला की जीभ अब उसकी चूत के दाने को चाट रही थी, और हर चाट के साथ अरवा का बदन मचल रहा था। उसकी चूत का रस भोला के होंठों पर चमक रहा था, भोला किसी भूखे कुत्ते की तरह उसकी चुत को चूस रहा था।

"तेरी चूत तो किसी कुँवारी की तरह है, बेटी," भोला ने अपनी जीभ को एक पल के लिए रोका और कहा। "इतनी तंग और रसीली... ये तो पाप है कि इसे आज तक किसी ने नहीं भोगा।" उसकी बातों में एक जंगली आक्रामकता थी, जो अरवा की प्यास को और बढ़ा रही थी।
तेरी शादी को इतने साल हो गए, तेरी चूत अभी तक खुली ही नहीं," भोला बेकाबू हो गया। तुरंत उसने अपने काले होंठों को सीधा उस पतली, रस से भीगी लकीर पर रख दिया।
भोला के होंठों का गर्म, गीला स्पर्श अरवा की चूत पर पड़ा, और उसका पूरा बदन बिजली के झटके सा कांप उठा। उसकी चूत की पतली लकीर, जो अब तक राघव के छोटे, कमजोर लंड से अछूती थी, भोला के होंठों की गर्मी से थरथरा रही थी। भोला की जीभ ने उसकी चूत के दाने को हल्के से चाटा, और अरवा की सिसकारी जंगल में गूंज उठी। उसकी चूत का रस भोला के होंठों पर चमक रहा था, जैसे कोई अमृत उसकी जीभ पर लिपट गया हो।"आआआहहहहह..." अरवा अब काबू में नहीं थी। उसने अपने दोनों हाथों को भोला के सर पर रख सहला दिया, जैसे वो कब से ये सब चाह रही थी। उसकी उंगलियां भोला की जटाओं में उलझ गईं, और वो उसे और करीब खींच रही थी, जैसे उसकी चूत भोला की जीभ को निगल लेना चाहती हो। उसका बदन एक जलता हुआ ज्वालामुखी था, और भोला की जीभ उस आग में तेल डाल रही थी।एक औरत की खास बात ही यही होती है—जब उसे अपने बदन की कामुकता का अहसास होता है, तो वो खुद ही उसका आनंद लेने के तरीके खोज लेती है। आज अरवा भी ऐसे ही आनंद को महसूस कर रही थी—सम्भोग कला का आनंद।भोला की जीभ अब अरवा की चूत की गहराइयों में घुस रही थी। वो उसकी चूत की पतली लकीर को चूस रहा था, जैसे कोई भूखा शिकारी अपने शिकार को चट कर रहा हो। उसकी जीभ हर चाट के साथ अरवा के दाने को और उत्तेजित कर रही थी। अरवा की जांघें कांप रही थीं, और उसका बदन पसीने से लथपथ हो चुका था। उसकी सांसे इतनी तेज थीं कि उसका 36D का सीना ऊपर-नीचे हो रहा था, और उसके निप्पल्स बिल्कुल तने हुए थे, अतिउत्तेजना मे अरवा अपने सर को पकड़ सर ऊँचा किये हुंकार रही थी,


"आआआहहहहह... बाबा... आआआहहहहह... चाटो इसे... आआहहहह..." अरवा बड़बड़ाने लगी थी। उसकी आवाज में एक मादक बेचैनी थी, जैसे वो भोला को और उकसाना चाह रही हो। भोला ने अपनी उंगलियों से अरवा की चूत को और खोला, और उसकी जीभ अब उसकी चूत की दीवारों को चाट रही थी। उसकी चूत का रस भोला के मुंह में घुल रहा था, और उसकी गंध ने भोला को और जंगली बना दिया था।
अरवा की चूत अब इतनी गीली थी कि उसका रस भोला के चेहरे पर टपक रहा था। भोला ने अपनी एक उंगली अरवा की चूत में डाली, और उसकी तंग दीवारें उसकी उंगली को कस रही थीं।
"आआहह... बाबा... धीरे..." अरवा की सिसकारी में दर्द और सुख दोनों थे। भोला ने अपनी दूसरी उंगली भी डाल दी, और अब वो अरवा की चूत को और खोल रहा था। उसकी उंगलियां अंदर-बाहर हो रही थीं, और हर धक्के के साथ अरवा की सिसकारियां तेज हो रही थीं।

"आआहहहह... बाबा, मैं गई..." बोलती अरवा की चूत से कामरस की एक तेज धार बह गई। चूत से पानी इस कदर निकला, जैसे कोई बांध टूट गया हो। भोला का पूरा चेहरा, उसकी जटाएं, और उसका चौड़ा सीना अरवा के चूत रस से भीग गया। उसका रस इतना गर्म और गाढ़ा था कि भोला की आंखें चमक उठीं। उसने अपनी जीभ से अरवा के रस को चाटा, जैसे वो कोई पवित्र अमृत पी रहा हो।
अरवा धड़ाम से जमीन पर बैठ गई, एकदम नंगी, पसीने से भीगी, हांफती हुई। वो भोला के भीगे बदन को देख रही थी, जो उसके चूत रस से सना हुआ था। उसे खुद पर ताज्जुब था कि इतना पानी कैसे निकला। आज तक ऐसा नहीं हुआ था।
इस कदर पहली बार झड़ी थी अरवा, जैसे उसकी आत्मा ही चूत के रास्ते निकल गई हो।
उसकी सांसे अभी भी तेज थीं, और उसका बदन थरथरा रहा था। उसकी चूत में अभी भी एक गर्म सनसनी थी, और उसकी जांघें रस से चिपचिपी हो चुकी थीं। भोला का चेहरा अब एक जंगली भूख से भरा था।
उसकी आंखें अरवा के नंगे बदन पर टिकी थीं—उसके भरे हुए स्तन, उसकी पतली कमर, और उसकी मटकती गांड, जो अब भी पसीने और रस से चमक रही थी।अभी अरवा की सांसे काबू में आई भी नहीं थी कि भोला उसकी ओर बढ़ चला।
अरवा की टांगें फैली हुई थीं, दोनों जांघों के बीच मात्र एक लकीर थी, जो कि बुरी तरह से चिपचिपे पानी से सराबोर थी।
भोला को अपनी तरफ बढ़ता देख, अरवा को समझ आ गया था कि अब क्या होने वाला है। इतनी भी अनाड़ी नहीं थी अरवा।

भोला ने उसकी दोनों जांघों के बीच अपने घुटने टेक दिए। उसका भयानक काला लंड अरवा की लकीर-रूपी चूत से जा लगा।
"आआहहहह..." मात्र इस छुवन से ही अरवा के हलक से कामुक सिसकारी फूट पड़ी। भोला का लंड इतना गर्म और सख्त था कि उसकी चूत में एक करंट सा दौड़ गया। उसका सुपाड़ा, जो अब गुलाबी और चमकदार था, अरवा की चूत की लकीर पर रगड़ रहा था। उसकी चूत का रस और भोला के लंड का प्री-कम मिलकर एक चिपचिपी गर्मी पैदा कर रहे थे।
भोला अरवा के बदन पर झुकता चला गया, साथ ही उसका लंड भी अरवा की चूत पर दबाव बनाने लगा।चूत और लंड इस कदर गीले थे कि "पच..." की आवाज के साथ भोला के लंड का सुपाड़ा अरवा की छोटी-सी, बालरहित चूत में समा गया।
"आआआहहहहह..." अरवा भीषण दर्द से कराह उठी, परन्तु भोला ने उसे इस कदर जकड़ लिया था कि वो एक इंच भी न हिल सकी।

भोला का लंड इतना मोटा और लंबा था कि अरवा की चूत की तंग दीवारें उसे मुश्किल से समा पा रही थीं। उसकी चूत में एक जलन सी थी, जैसे कोई गर्म लोहा उसके अंदर घुस रहा हो। भोला ने अपनी कमर को हल्का सा हिलाया, और उसका सुपाड़ा अरवा की चूत की गहराइयों में और समा गया।
"बस बेटी, हो गया," बोलते हुए भोला ने एक जबरदस्त धक्का दे मारा।"आआआहहहहह... आआआहहहहह..." अरवा को ऐसा लगा जैसे उसके पेट में किसी ने चाकू मार दिया हो। भीषण दर्द से पूरा जंगल गूंज उठा।उसकी चूत से एक हल्की सी खून की धार बही, जैसे उसकी कुँवारी चूत पहली बार खुल रही हो। राघव का छोटा, कमजोर लंड कभी उसकी चूत की गहराइयों तक नहीं पहुंचा था, मगर भोला का विशाल लंड उसकी चूत को चीर रहा था। अरवा की आंखों से आंसू टपक रहे थे, और उसका बदन दर्द से थरथरा रहा था।
"कुछ पाने के लिए थोड़ा सहना भी पड़ता है, अरवा बेटी," भोला ने गुर्राते हुए कहा।भोला बदस्तूर अपने लंड को पीछे खींच वापस से जड़ तक अंदर डाल देता।अरवा के मुंह से सिर्फ दर्द भरी
"आआहहहहह..." सिसकारी निकल पड़ती।परन्तु ना जाने ये दर्द भरी सिसकारी कब आनंद की सिसकारी में बदल गई, उसे खुद पता न चला।"आअह्ह्ह... आअह्ह्ह... बाबा, और जोर से... आअह्ह्ह... अंदर तक... आअह्ह्ह..." अरवा भोला को उकसा रही थी और अंदर डालने के लिए।अब तक जिस लंड से वो खौफ खा रही थी, उसी लंड को पूरा का पूरा अंदर निगल ले रही थी।


"आआहहहह... बाबा... जोर से... मेरा आने वाला है... और जोर से डालो," इस एक घंटे में ही कितना खुल गई थी अरवा।भोला, जो कि खुद भी पसीने से नहा गया था, "आआहह... आअह्ह्ह... अरवा बेटी, क्या कसी चूत है तेरी... आआहहहह... तेरी सारी मनोकामना पूर्ण हो..."आआहहहह... फच... फाचक... करता भोला अरवा की चूत में ही झड़ने लगा।
साथ ही अरवा की चूत ने भी एक बार फिर पानी फेंक दिया।भोला का गर्म, गाढ़ा वीर्य अरवा की चूत में एक लावा सा बह रहा था। उसका सुपाड़ा अरवा की बच्चेदानी के मुहाने पर था, और उसका वीर्य सीधे उसकी कोख में जा रहा था। अरवा की चूत में एक जलन थी, मगर साथ ही एक गहरा सुख भी था। उसकी सिसकारियां अब धीमी पड़ रही थीं, और उसका बदन थरथरा रहा था।
झोपड़ी में सन्नाटा छा गया था, सिर्फ दो जिस्मों की सांसों की आवाज गूंज रही थी।आज अरवा का जिस्म तृप्त हो गया था। उसे असीम शांति की अनुभूति हो रही थी।बाहर सूरज ढलने लगा था।भोला ने धीरे से अपने लंड को अरवा की चूत से बाहर खींच लिया। अरवा को ऐसा लगा जैसे साथ में उसकी चूत भी खींची चली आएगी।
"आआहहहह... बाबा, आराम से..."भोला का लंड "पुकककक..." से बाहर आ गया, साथ ही ढेर सारा वीर्य और चूत रस का मिला-जुला शरबत भी अरवा की चूत से बहता हुआ जमीन को भीगाने लगा।
अरवा की चूत अब पूरी तरह खुल चुकी थी, मगर उसकी तंगी अभी भी बरकरार थी।

उसका रस और भोला का वीर्य मिलकर एक चिपचिपा मिश्रण बना रहे थे, जो उसकी जांघों तक बह रहा था। अरवा का बदन पसीने और रस से लथपथ था, और उसकी सांसे अभी भी तेज थीं।
"जाओ बेटी, अब शाम हो चली है। तुम्हारे घरवाले तुम्हारी राह देखते होंगे," भोला ने अपने गमछे को वापस अपनी कमर पर लपेटते हुए कहा।
परन्तु ना जाने क्यों अरवा उठी नहीं।
उसकी आंखों में प्रश्न था कि एक आदमी कभी जंगली, तो कभी सभ्य कैसे हो सकता है। वो अभी भी भोला को देखे जा रही थी।

"तुम जैसी कामुक मादक बदन की स्त्री को भोगने के लिए इस जंगलीपन की ही आवश्यकता होती है, बेटी। अब जाओ, जल्दी रात होने वाली है," भोला जैसे अरवा की मन की बात समझ गया था।
अपनी लुंगी लपेटे झोपड़ी के बाहर चला गया, एक बार भी अरवा के नंगे जिस्म की ओर नहीं देखा।अरवा अपने प्रश्न का उत्तर पा जैसे होश में आई।
भोला को जाता देखती रही। फटाफट उसने अपने कपड़े संभाले और झोपड़ी से बाहर को दौड़ गई। भोला आसपास कहीं भी नहीं था।
सूरज ढल रहा था।उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो अपनी साड़ी और अधखुले ब्लाउज को संभालती हुई पगडंडी पर दौड़ पड़ी।
उसकी कार सामने ही थी। पल भर में कार सड़क पर दौड़ रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जो अभी हुआ, वो सच था?
क्या हुआ, कैसे हुआ, पता नहीं...
*********
इस घटना को 6 दिन बीत गए थे।
सोमवार की सुबह"आप मां बनने वाली हैं, मुबारक हो," अरवा अपने पति और सास के साथ क्लिनिक में बैठी थी। सामने डॉक्टर उसकी रिपोर्ट हाथ में थामे खड़ा था।पूरे परिवार का खुशी के मारे बुरा हाल था।
"मुझे मंदिर जाना है," अरवा ने अपने पति को क्लिनिक से बाहर आते हुए बोला।"
"मेरी जान, अब तो जो तुम बोलो, वो हाजिर है तुम्हारे लिए," पति ने जवाब दिया।
अरवा की कार मंदिर के रास्ते दौड़ चली। उसे भगवान का धन्यवाद कहना था, उससे भी ज्यादा भोला का, जिसकी वजह से उसे ये मान-सम्मान, उसकी इज्जत, प्यार वापस मिला था।
अरवा मंदिर पहुंच चुकी थी। दर्शन करने के बाद वो मंदिर के बाहर बैठे भिखारियों के पास पहुंची।सभी को 50-50 रुपये दान किए। आज फिर एक 50 का नोट बच गया था।
"वो भोला नहीं आया आज?" अरवा ने दूसरे भिखारी से पूछा।
"क्या मेमसाहब, वो तो ना जाने कहां मर गया, कब से नहीं आया," भिखारी ने जवाब दिया।
अरवा का दिल बैठने लगा। उसे बहुत इच्छा थी कि वो भोला को शुक्रिया कह पाती।
"आओ, चलते हैं, अरवा। अब तुम्हें अपना ध्यान रखना चाहिए," अरवा के पति ने उसका हाथ प्यार से थामते हुए कहा।
कार वापस से उसी कच्चे रास्ते पर दौड़ चली।
"रुको... रुको तो जरा," अरवा ने अपने पति को कार रोकने को कहा। उसे वही जगह दिखाई दी, जहां उसकी गाड़ी से भोला का एक्सीडेंट हुआ था।
"क्या हुआ, मेरी जान?"अरवा ने अपनी छोटी उंगली उठाकर पेशाब का इशारा किया।
"अच्छा, जल्दी करो।"अरवा कार से नीचे उतर गई और जंगल में अंदर उसी पगडंडी पर चल पड़ी, जहां से उसकी खुशियों की शुरुआत हुई थी।
वो उसी जगह पहुंच गई, लेकिन वहां कुछ नहीं था—ना झोपड़ी, ना भोला।
वो पलट चली, सर झुकाए। उसकी आंखों में आंसू थे, परन्तु खुशी के आंसू।कार में आके बैठ गई।
"बड़ी देर लगा दी तुमने।"परन्तु अरवा ने अपने पति के सवाल का जवाब नहीं दिया। उसके जहन में एक ही सवाल बार-बार गूंज रहा था—आखिर... आखिर...
"वो कौन था?"
समाप्त
0 Comments