सुबह की हल्की धूप कमरे में दाखिल हो रही थी। अरवा आईने के सामने खड़ी थी, अपने नंगे जिस्म को देख रही थी।
उस घटना को बीते चार महीने बीत चुके थे, जब वो भोला नाम के शख्श से मिली थी,
आज के ये हालात उसी मिलन का नतीजा थे, आज अरवा के लिए उसके पति और सांस का व्यवहार उसके लिए पूरी तरह बादल गया था, जहाँ पहले नफरत थी, वही उसकी सांस दिन रात उसकी फ़िक्र मे लगी रहती थी, पति का प्यार बढ़ गया था.
फिर भी एक कमी तो थी ही, चार महीने की गर्भावस्था ने उसके शरीर को एक कामुक मूर्ति में बदल दिया था। उसने अपने हाथों से अपने स्तनों को छुआ - वो अब भरे हुए, मोटे और इतने टाइट थे कि हर हल्के दबाव पर एक मीठा सा दर्द उभरता था। उसका ब्लाउज़ उनके भारीपन को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। निपल्स गहरे, सख्त और हमेशा तने हुए रहते थे, जैसे किसी के मर्दाना स्पर्श के मोहताज हों।
राघव फ़िक्र तो करता था, प्यार भी करता था लेकिन शारीरिक सुख अभी भी नहीं था, गर्भवस्था ने अरवा के जिस्म मे एक मादकता को भी जन्म दे दिया था, उसका जिस्म हमेशा जलता सा महसूस होता था, चुत मे एक जलन, गर्मी बरकरार रहती थी.
शीशे के सामने अरवा पूर्ण नग्न खड़ी थी, अभी अभी नहा के निकली थी, उसने अपने स्तनों को ध्यान से देखा पूर्णतया तने हुए, बेहद कसे हुए, कोतुहल वंश उसके हाथ खुद ही अपने स्तन पास जा कसे.
-"आह. उउउफ्फ्फ......" मीठे दर्द और अजीब से सुख से उसका जिस्म गदगद हो उठा, रोंगटे खड़े हो गए, उसका वजूद खुद के मात्र स्पर्श से ही कांप गया.
4 महीने मे उसका पेट हल्का उभर आया था, उसकी गोरी त्वचा पर महीन रेखाएँ उभर रही थीं। उसकी कमर भारी हो गई थी, और कूल्हे गोल, मुलायम और इतने भरे हुए थे कि हर कदम पर वो थिरकते थे।
अरवा ने महसूस किया की उसकी चूत में प्रेग्नेंसी के बाद से एक अजीब सी खुजलाहट बनी रहती थी, - एक गर्मी, एक प्यास, जो रातों को उसे बिस्तर पर करवटें बदलने को मजबूर करती थी।
कई बार रातो मे वो अपनी जाँघें आपस में रगड़ती, बेचैन सी रहती, उसकी चुत मे एक अजीब सा गिलापन हमेशा बरकरार रहता, उन रातो को जैसे ही अपनी चुत को स्पर्श करती तो वो कामुक गीलापन महसूस कर और ज्यादा उत्तेजित हो जाती।
वो अपने पति से कहना चाहती थी, बताना चाहती थी की उसका जिस्म बदल रहा है, पर उसकी शर्मिंदगी और प्यार ने उसे रोक रखा था। उसकी चमकती त्वचा और लचकती चाल उसे एक अनजानी कामुकता दे रही थी, जो उसे डरा भी रही थी और लुभा भी रही थी।
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आज उसका पहला चेकअप था। शीशे के सामने नहा धो कर चमकती दमकती बिल्कुल नग्न खड़ी रही, खुद के कामुक जिस्म को निहार रही थी, अरवा पहले से भी ज्यादा खूबसूरत हो चुकी थी,
अपनी भावनाओ को परे रखते हुए उसने ब्लाउज, पेटीकोट कस लिए थे अपने जिस्म पर, ब्लाउज मे तो उसके उन्नत स्तन समा ही नहीं रहे थे, आधे से ज्यादा बाहर झाँक रहे थे, निप्पल का उभार ब्लाउज से साफ झलक रहा था,
जैसे तैसे अपने बाहर को झाकते हुए स्तनों को उसने साड़ी के पल्लू से ढक तो लिया लेकिन वो कामुक पहाड़ जैसे उभार झीनी साड़ी से अभी भी मुँह बाये देख रहे थे,
"तैयार हो गई, चलो चलते है?" अचानक आवाज़ से अरवा का ध्यान अपने जिस्म से भंग हुआ .
पीछे उसका पति था, अरवा कुछ ना बोली.
"अरे क्या हुआ, चिंता क्यों कर रही हो, सब ठीक है " उसके पति ने उसे गले लगाकर कहा,
"डॉ. शालिनी अच्छी डॉक्टर हैं, अरवा। चिंता मत करो ।" उसकी आवाज़ में परवाह थी, लेकिन अभी भी एक स्त्री के मन को पढ़ पाने मे असफल था वो उल्लू का चरखा.
अरवा और उसका पति हॉस्पिटल के लिए निकल गए थे, कार मे लगने वाला हर झटका अरवा के स्तनों का दर्द और चूत की गर्मी, जांघो के बीच पैदा होती चिपचिपाहट को बढ़ावा दे रहा था.
करीब 15 मिनट मे वो लोग हॉस्पिटल पहुंच गए थे, समय दोपहर के 1 बज गए थे.
"Sorry अरवा मुझे थोड़ा ऑफिस का काम है, तुम चेकअप करवा लो मैं आता हूँ 1,2 घंटे मे "
"क्या रवि (अरवा राघव को रवि कह के बुलाती थी )हम पहले ही लेट हो गए है, और तुम..." अरवा बात पूरी ना कर सकी.
"चिंता क्यों करती हो, अपॉइंटमेंट फिक्स है, तुन्हे बस जा कर चेकअप करा के आ जाना है, लोड मत लो ज्यादा होता है ऐसा "
अरवा कार से उतर धीमी चाल के साथ हॉस्पिटल मे दाखिल हो गई, उसकी चाल मे एक मादकता झलक रही थी, उसकी भरी गांड कुछ ज्यादा ही लचक रही थी, देखने वाला कह सकता था अंदर अरवा ने पैंटी नहीं पहनी है.. ऐसी अवस्था मे कच्छी का काम भी क्या है,
उसके आज़ाद और उन्नत कूल्हे आपस मे लड़ झगड़ रहे थे.
हॉस्पिटल पहुँचकर उसने रिसेप्शन पर नाम बताया "जी मेरा अपॉइंटमेंट है आज का "
"नाम?" रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने पूछा.
"अरवा शर्मा"
"कितना लेट आई आप, डॉक्टर आपके ही इंतज़ार मे थे, जाइये जल्दी, केबिन नंबर 7 " रेस्पनिस्ट ने अंदर की तरफ इशारा कर दिया.
अरवा केबिन नंबर 7 की ओर बढ़ी। दरवाजा खटखटाने से पहले उसने एक गहरी साँस ली।. ठाक ठाक... ठक....
अरवा ने दरवाजे पर दस्तक दी,
लेकिन कोई जवाब नहीं आया..
अरवा ने वापस वही किया, लेकिन जवाब नहीं..
अरवा ने हैंडल को थोड़ा घुमा के अंदर धक्का दिया.
चररररररर.... करता दरवाजा खुल गया.
"अरे कौन है अब?" एक भारी, गहरी मर्दाना आवाज़ ने उसे चौंका दिया। वो ठिठकी।
"डॉ. शालिनी तो औरत हैं," उसने सोचा।
दरवाजा खोलते ही सामने एक सांवला, मजबूत कद काठी का शख्स कुर्सी पर बैठा था। जिसने सफ़ेद कोट पहना हुआ था.. अरवा को देखते ही तुरंत कुर्सी से खड़ा हो कर साइड मे जाने लगा,
"डॉ. शालिनी... कक्क...क्या.. है " अरवा ने पूछना चाहा.
"वो नहीं है " उस लड़के ने तुरंत जवाब दिया और नीचे से कुछ उठा कर जाने को हुआ ही की.
"आप डॉक्टर ही है ना?"
"कककक.... कौन... मैं " उस लड़के के चेहरे ले हवाइया उडी हुई थी.
"ओमम... हाँ.. हाँ.... मैं डॉक्टर हूँ, डॉक्टर भोलाराम "
भोलाराम ने धीमी, गहरी आवाज़ में कहाँ और वापस से कुर्सी पर बैठ गया,
लेकिन उसके जवाब से अरवा सहज़ नहीं हो पाई, सामने बैठे शख्श के बाल बिखरे हुए थे, जैसे बहुत दिन से नहाया ना हो, बाल लगभग आपस मे उलझें हुए थे.
"अअअ... आप... आप डॉक्टर है "
"जी... हाँ... मै.. डॉ. भोलाराम " उसने थोड़ा हिचकते हुए कहा.
"कक्क... क्या... भोला... भोलाराम?" अरवा के चेहरे पे हैरानी और परेशानी के भाव एक साथ आ गए,
भोला नाम सुनते ही, उसके जिस्म मे एक अजीब सी कुलबुलाहत मच गई, चुत से पानी की एक महीन पतली धार लार के रूप मे छूट गई, जो की पैंटी ना पहनने की वजह से जांघो तक रिसती चली गई, जिसे अरवा ने साफ महसूस किया,
" लल्ल... लेकिन... हाँ...हाँ, पर मुझे डॉ. शालिनी से मिलना था," अरवा ने काँपती आवाज़ में कहा। उसने पिछली यादो से निकाल खुद को संभाला.
"डॉ. शालिनी को कोई जरुरी काम आ गया, तो वो चली गई, हैं। मैं उनकी जगह हूँ। मेरा नाम भोलाराम है," कुर्सी पर बैठर शख्श ने कहा।
उसकी नज़रें अरवा के चेहरे से नीचे सरककर उसके टाइट स्तनों पर टिक गईं, जहाँ तने हुए निपल्स साड़ी के नीचे से उभर रहे थे।
अरवा ने पल्लू ठीक करने की कोशिश की, पर उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं। वो सोच रही थी, "ये कौन है? इसका नज़रों का ये तरीका..."
"लललल... लेकिन मुझे उन्हें ही दिखाना था?" अरवा ने दलील दी..
"कोई बात नहीं, मैं उनकी जगह ही कई बार मरीजों को देखता हूँ, आपका नाम ".
"जज... जी अरवा... अरवा शर्मा "
"ह... हाँ.. हाँ... हुम्म्म... ठीक है " डॉ. भोला राम ने सामने पढ़े पेपर मे ऊपर से नीचे कुछ देखा अरवा का नाम सबसे नीचे था, और पेन उठा उसके आगे राइट का निशान लगा दिया.
"आप बैठ जाइये " भोलाराम ने बिना सामने देखे कुर्सी की तरफ इशारा किया..
अरवा को कुछ समझ नहीं आ रहा था, बस परिस्थिति ही ऐसी थी, अरवा सामने कुर्सी पर जा बैठी, उसका जिस्म संभाले नहीं सम्भलता था, बैठे वक़्त फिर से साड़ी जमीन चाटने लगी, एक क्षण को भोलाराम की नजरों के सामने शानदार नजारा था, अरवा के भारी स्तन मुँह बाये उसके सामने थे, अरवा ने तुरंत पल्लू से उस हसीन नज़ारे को ढक लिया.
भोलाराम ने तुरंत कुछ सवाल दाग़ दिए - "कब से प्रेग्नेंट हैं? कोई तकलीफ तो नहीं? नींद अच्छे से आती है?" पर उसकी आवाज़ में एक गहरी कामुकता थी।
उसकी नजरें सामने बैठी अरवा के जिस्म पर घूम रही थी.
वो चुपचाप बैठी सामने भोलाराम को हि देखे जा रही थी.
"अरे आप शर्माइये मत, डॉक्टर से कैसा शर्माना, हमारे लिए तो रोज़ का काम है "
"वो... वो... नींद नहीं आती अच्छे से " अरवा अभी भी झिझक रही थी.
"क्या होता है, मतलब कैसा फील होता है, खुल के बताइये " सामने डॉ. भोलाराम थोड़ा आगे को सरक आया था, उसकी नजरें अरवा के स्तन पर ही टिकी थी, जो की साड़ी के अंदर से झाँक रहे थे.
अरवा को थोड़ा अजीब लग रहा था, क्या वाकई ये डॉक्टर है? सवाल वाजिब थे. भोला राम के हाव भाव डॉक्टर जैसे नहीं लग रहे थे,
"वो.. वो... वहाँ कुछ होता है "
"कहाँ क्या होता है "
"वो.. वहाँ नीचे " अरवा ने झेपते हुए कहाँ
"चुत मे खुजली होती है, सिकुड़ जाती है "
डॉ भोलापन की बात सुन अरवा के होश उड़ गए,
"ययय.. ये... ये.. क्या बोल रहे है आप?"
अरवा का दिल चुत जैसे शब्द सुन कर कांप गया था.
"मैं फॉर्मेलिटी नहीं करता मैडम, इंलिश शब्द बोल देने से समस्या थोड़ी ना बदल जाएगी?"
भोलाराम ने सीधा सटीक जवाब दिया.
अरवा का मन दुविधा मैं था, लेकिन उसकी समस्या और डॉ. के शब्दों ने उसके जिस्म को वही कुर्सी से बांध दिया था.
"अअअअअ... हाँ.. हाँ... ऐसा होता है कुछ कुछ "
"अरे आप रिलैक्स हो जाइये, मैं डॉक्टर हूँ जितना खुल के बताओगी उतना अच्छा इलाज मैं कर पाउँगा "
इस बार भोलाराम की बातो मे एक विश्वास था.
"हाँ डॉ ऐसा होता है, कई रात मे सो नहीं पाती, गिलापन बहुत हो जाता है "
"फिर आप क्या करती है " डॉ ने पूछा.
"मतलब?".
"मतलब गिलापन महसूस कर के क्या करती है आप?" डॉ के प्रश्न से अरवा सन्न रह गई.
"वो.. वो... मैं... मैं..."
"अरे कहाँ ना शर्माइये मत "
"वो... बस... मैं.... बस हाथ लगा लेती हूँ, दबा लेती हूँ "
"अच्छा और क्या समस्या होती है " डॉ ने आगे पूछा.
"वो.. वो... मेरे स्तन " अरवा का बोलना था की भोलाराम की आंखे उसके स्तनों पर गड़ गई, जिसकी परछाई साड़ी के पीछे से दिख रही थी.
अरवा को शुरू से ही कुछ अजीब लग रहा रहा, लेकिन उसके जिस्म की कुलबुलाहत उसे रोके रखी थी.
"क्या... क्या होता है आपकी चूचियों मे " भोलाराम ने फिर सीधे शब्द कह दिए
"वो.. वो.... दर्द होता है थोड़ा " इस बार अरवा ने गंदे शब्दों का कोई विरोध नहीं किया
"चलो तो एक बार चेकअप कर लेते है " उसने कहा और उसे बेड की ओर इशारा किया।
अरवा का मन चीख रहा था कि वो भाग जाए, पर उसकी चूत की गर्मी और जिस्म की प्यास उसे रोक रही थी। उसके जिस्म पर खड़े हुए रोंगटे इस बात का सबूत थे,
ना जाने क्यों अरवा खुद को डॉ.भोलाराम से बांधा हुआ महसूस कर रही थी, उसका नाम ही ऐसा था की उसकी याद, उसकी खुशी की शुरआत उसके जहन मे ताज़ा हो गई, एक पल जो भोला का चेहरा उसका लंड उसकी नजरों के सामने दौड़ गया.
जब वो उसके साथ उस टूटी फूटी झोपडी मे थी,
"क्या हुआ आइये कुछ चेकअप कर लेते है " डॉ. भोलाराम की आवाज़ ने अरवा को वास्तविकता मे वापस खिंच लिया.
अरवा कसमसती सी कभी हाँ कभी ना के बीच झूलती, चेकअप बेड के पास पहुंची और अपनी बड़ी मादक गांड को बिस्तर पर टिका दिया, उसकी साँसें भारी होने लगी थीं।
अरवा बेड पर लेट गई,

भोलाराम तुरंत ही अरवा के पास पंहुचा और स्टेथोस्कोप निकाल, उसकी छाती पर साड़ी के ऊपर से ही रख दिया.
इस्स्स........ अरवा की गहरी सांस छूट गई, भोलाराम का हाथ धीरे से अरवा के मोटे, टाइट स्तनों को छू रहा था।
"आपके स्तन बहुत टाइट हैं, प्रेग्नेंसी की वजह से ऐसा होता ही है, नार्मल है ," कहते हुए अपनी उंगलियों का हल्का दबाव अरवा के स्तनों पर डालने लगा.
चेक करने के बहाने उसका हाथ अरवा के स्तनों पर दबाव डाल रहा था, हर दबाव के साथ अरवा की सांसे चढ़ जा रही थी, साँसो के साथ साथ स्तन भी फूल के ऊपर को उठ जाया करते.
अरवा का शरीर सिहर उठा। "आह..." एक सिसकारी निकली, जिसमें दर्द और उत्तेजना दोनों थे।
"ये क्या कर रहे हैं?" उसने पूछा, पर उसकी आवाज़ में डर कम और चाहत ज्यादा थी।
"चेकअप ही तो है,अरवा जी । आपका शरीर बहुत संवेदनशील हो गया है," भोलाराम ने कहा, और उसकी आवाज़ में एक गहरी लालसा थी।
अरवा की साँसें भारी थीं, और उसका बदन उसकी इच्छाओं और शर्मिंदगी के बीच जूझ रहा था। भोलाराम की नजरें उसके टाइट स्तनों पर टिकी थीं, जो साड़ी के पतले पल्लू के नीचे से उभर रहे थे।
उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो अरवा को डराने के साथ-साथ उसकी चूत की गर्मी को और भड़का रही थी।
"अच्छा, ये साड़ी का पल्लू हटाओ जरा, अच्छे से चेक करते हैं," भोलाराम ने फिर से कहा, उसकी आवाज़ में एक गहरी, मर्दाना अहसास था.
"ककक... क्यों?" अरवा की आवाज़ काँप रही थी। उसके माथे पर पसीने की बूँदें चमक रही थीं, और उसकी जाँघें आपस में सिकुड़ रही थीं, जैसे वो अपनी चूत की चिपचिपी गर्मी को छुपाना चाह रही हो।
गर्भवस्था ने उसकी चूत को और संवेदनशील बना दिया था, और हर हल्की सी रगड़ उसमें एक गर्म लहर पैदा कर रही थी।
"देखना पड़ता है ना, असल में दर्द किस जगह है," भोलाराम ने बेझिझक कहा। उसने अपनी कुर्सी को और करीब खींच लिया, और अब उसका चेहरा अरवा के इतना पास था कि उसकी गर्म साँसें अरवा की गर्दन पर टकरा रही थीं। अरवा का मन चीख रहा था कि वो भाग जाए, लेकिन उसकी चूत की खुजलाहट, उसका गर्भवती जिस्म, और भोलाराम की वो बेपरवाह, कामुक नजरें उसे जकड़े हुए थीं।
अरवा ये करना तो नहीं चाहती थी लेकिन ना जाने क्यों उसने धीरे से अपने पल्लू को कंधे से सरकाया। साड़ी का पतला कपड़ा फिसलकर नीचे गिर गया, और उसके भरे हुए, टाइट स्तन ब्लाउज़ में कैद होकर और उभर आए।
गर्भवस्था ने उसके 36D के स्तनों को और भारी और कड़क बना दिया था। उसके निप्पल्स, जो अब गहरे और सख्त हो गए थे, ब्लाउज़ के ऊपर से साफ़ झलक रहे थे। अरवा की साँसें तेज हो गईं, और उसकी चूत में एक गर्म सनसनी दौड़ने लगी।भोलाराम की आँखें चमक उठीं।
"हम्म... बहुत टाइट हैं ये," उसने कहा, और स्टेथोस्कोप को एक तरफ रखते हुए अपनी उंगलियाँ अरवा के ब्लाउज़ पर रख दीं। "इसे थोड़ा ढीला करना पड़ेगा, चेकअप के लिए।" उसकी उंगलियाँ अब अरवा के ब्लाउज़ के बटनों पर थीं, और उसने धीरे-धीरे एक-एक बटन खोलना शुरू किया।
"ये... ये.... क्या कर रहे है आप " अरवा बुरी तरह चौंक उठी, उसने अपने हाथ से स्तनों को ढक लिया, डॉ. ने उसकी परमिशन भी नहीं ली थी ऐसा करने से पहले.
" आप चिंता ना करे मेरा रोज़ का काम है " भोलाराम ने अरवा के हाथ को वापस नीचे कर दिया.
भोलाराम ने वो कशिश थी, उसकी बातो ने ऐसा जादू था की अरवा कुछ ना बोल सकी बस उसकी हटकतो को देखती रही.
हर बटन के खुलने के साथ अरवा के गोरे, भरे हुए स्तन और उभरकर बाहर आने लगे। उसकी काली ब्रा में कैद स्तन इतने टाइट थे कि ब्रा की सिलाई तन रही थी।
"आआह....... इस्स्स्स.... अरवा के मुँह से एक सिसकारी निकल गई। भोलाराम की उंगलियाँ अब उसके स्तनों पर हल्के से दबाव डाल रही थीं, जैसे वो वाकई चेकअप कर रहा हो। लेकिन उसकी आँखों की भूख और उसकी उंगलियों की गर्मी बता रही थी कि ये चेकअप कुछ और ही था।
"दर्द यहीं होता है ना?" भोलाराम ने पूछा, और उसकी उंगलियाँ अरवा के निप्पल्स पर हल्के से रगड़ने लगीं।अरवा का बदन सिहर उठा।
"आआह... हाँ... यही... यही होता है ..." उसकी आवाज़ से अब घबराहट और शर्मिंदगी कम होती जा रही थी, बल्कि एक अनचाही चाहत का उदगम हो चूका था।
उसकी चूत में गर्मी और बढ़ गई, और क्योंकि उसने पैंटी नहीं पहनी थी, उसका रस उसकी जाँघों पर बहने लगा। गर्भवस्था ने उसकी चूत को और रसीला और मादक बना दिया था।
उसकी चूत की महक अब कमरे में फैलने लगी थी—एक नशीली, मादक गंध, जो भोलाराम के नथुनों में समा रही थी।
भोलाराम ने मौके का फायदा उठाया और एक झटके में अरवा की ब्रा का हुक खोल दिया। अरवा के भारी, गोरे स्तन आज़ाद हो गए, और उनके गहरे, तने हुए निप्पल्स हवा में थरथराने लगे।
"क्या मस्त चूचियाँ हैं तेरी, अरवा," भोलाराम की आवाज़ अब पूरी तरह जंगली हो गई थी। उसने अपने दोनों हाथों से अरवा के स्तनों को कस लिया और उन्हें जोर-जोर से दबाने लगा।
अरवा की सिसकारियाँ अब कमरे में गूँज रही थीं। "आआह... बाबा... धीरे..." उसकी आवाज़ में दर्द और सुख का मिश्रण था,
वो हैरान थी की उसके मुँह से ये क्या निकला "बाबा " वो डॉ. को बाबा क्यों बोल रही थी.
अरवा का जिस्म और दिमाग़ पिछली यादो मे चला गया था, अरवा उसी दिन वाला रोमांच अनुभव कर रही थू, वही मर्दाना पकड़, वही आँखों की चमक.
लेकिन अरवा को जैसे अपनी गलती का अहसास हुआ "आआहहहह.... उफ्फ्फ... आउच.. डॉ. भोलाराम ये क्या कर रहे है आप?"
जवाब मे डॉ. भोलराम ने अपने सफ़ेद कोट को उतार फेंका, अरवा देख के हैरान थी की इस सफ़ेद कोट के नीचे उसने कुछ नहीं पहना था, भोलाराम की सवाली, बालो से भरी, पसीने से चमकती छाती अरवा जे सामने थी..
एक मर्दाना कैसेली गंध ने अरवा को हवास की खाई ने धकेल दिया, उसकी हर नस-नाड़ी भोलाराम के स्पर्श के लिए बेताब हो उठी थी, उसकी साँसें अब भारी और अनियमित थीं, हर सांस के साथ उसके गर्भवती स्तन ऊपर-नीचे हिल रहे थे, जो ब्लाउज़ और ब्रा से आज़ाद होकर हवा में थरथरा रहे थे। उनकी गोरी त्वचा पर पसीने की बूँदें चमक रही थीं, जो उसके उभरे हुए पेट और स्तन पर एक चमकदार परत सी बना रही थीं, उसके जिस्म को और मादक बना रही थीं।
भोलाराम के गले मे बड़ी सी रुद्राक्ष की माला लटक रही थी, बालो के गुच्छो मे छुपी हुई सी,
उसकी जाँघें अपने आप फैल गई, उसकी चूत की गर्मी इतनी प्रबल थी कि उसका रस धीरे-धीरे उसकी जाँघों पर बहये हुए चादर को गीला कर रहा था, जिससे एक हल्की चटचटाहट की आवाज़ आ रही थी।
कमरे में उसकी मादक गंध फैल गई थी—एक नशीला, गर्म और मीठी सुगंध जो भोलाराम के नथुनों में समा रहा थी।
भोलाराम उसके सामने खड़ा था, उसकी साँवली, मज़बूत काया किसी जंगली जानवर की तरह दिख रही थी, छाती चौड़ी थी, और उसकी बाजुओं की मांसपेशियाँ तनी हुई थीं, जैसे वो किसी युद्ध के लिए तैयार हो।
उसकी आँखें अरवा के नंगे सुडोल गोरे स्तनों पर टिकी हुई थीं, जैसे वो उसे हर कोण से नाप रहा हो, उसकी हर वक्र को अपने दिमाग में अंकित कर रहा हो।
उसकी पैंट में एक विशाल उभार साफ़ दिख रहा था, जो हर पल बढ़ता जा रहा था,
जैसे उसका लंड आज़ादी की बाट जोह रहा हो, उसकी जंजीरों को तोड़ने को आतुर हो।
दोनों की आंखे एक दूसरे को घूरे जा रही थी, ना जाने क्या जादू था, क्या सहमति हुई इन आँखों ही आँखों मे
भोला ने अपने दोनों हाथों से अरवा के स्तनों को फिर से भींच लिया, जैसे अरवा भी यही चाहती थी "आअह्ह्हम्म... उउउफ्फ्फ.... आउच.... इस्स्स...."
भोला की उंगलियाँ, जो मजबूत और थोड़ी खुरदुरी थीं, अरवा के निप्पल्स के चारों ओर मंडरा रही थीं, जैसे वो उनके हर कोने को नाप रही हों, उनकी नमी और गर्मी को महसूस कर रही हों।
"ये चूचियाँ तो पके हुए पपीते जैसी हो गई है अरवा," उसने गहरी, गुर्राती आवाज़ में कहा, उसकी आवाज़ मे इज़्ज़त का कोई नामोनिशान नहीं था, वो उसे नाम से बुला रहा था,
उसने अपनी उंगलियों को अरवा के निप्पल्स पर जोर से दबाया।
"आआह... बाबा...... उउफ्फ्फ.... डॉक्टर.....धीरे..." अरवा की सिसकारी कमरे में गूँज उठी। उसका मुँह से निकला "बाबा" शब्द उसे हैरान कर गया, अरवा ने अपनी चूत की गर्मी को रोकते हुए अपने शब्दों को संभाला, उसका दिमाग भोला की पुरानी यादों में खो गया—उस झोपड़ी में हुई चुदाई, उसकी मर्दाना पकड़, और उसका लंबा, मोटा लंड जो उसकी चूत को चीर गया था।
डॉ. भोलाराम का नाम सुनते ही उसका जिस्म उस पुराने सुख को दोहराने के लिए तरस उठा था।
अरवा ने अपनी आँखें बंद कर लीं, और उसकी साँसें और भारी हो गईं, जैसे वो किसी सपने में खो गई हो। उसकी छाती का उभार हर सांस के साथ और साफ़ हो रहा था, और उसके निप्पल्स, जो गहरे और सख्त हो गए थे, भोलाराम के स्पर्श से और तने हुए थे।
भोलाराम ने अपने अंगूठे और उंगलियों से अरवा के निप्पल्स को और कसकर पकड़ा। "इस्स्स... आआह..." अरवा का बदन सिकुड़ गया।
उसके निप्पल्स, जो गर्भवस्था की वजह से पहले से ही संवेदनशील थे, भोलाराम के दबाव से और सख्त हो गए थे। हर दबाव से उसकी चूत में एक तेज झटका सा लग रहा था, चूत का रस उसकी जाँघों पर चमकने लगा था, उत्तेजना मे साड़ी कबकी ऊपर चढ़ के उसकी मखमली जांघो को दिखा रही थी, उसकी चुत से निकला पानी जांघो पर पतली धार बनाकर बहने लगा।
भोलाराम अपने चेहरे को अरवा के स्तनों के करीब ले आया उसकी गर्म साँसो ने अरवा के निप्पल्स को छू लिया, उसकी साँसें गर्म और भारी थीं, जैसे वो किसी जंगल के जानवर की तरह हाँफ रहा हो।
"क्या गर्म और नर्म हैं ये," उसने कहा, और फिर अपनी जीभ को बाहर निकालकर अरवा के बाएँ निप्पल पर हल्के से चाटा।
"आआह... उफ्फ..." अरवा की सिसकारी अब और तेज हो गई। भोलाराम की जीभ उसकी त्वचा पर धीरे-धीरे फिसल रही थी, जैसे वो उसका स्वाद चख रहा हो,
उसकी नमी को अपने मुँह में समेट रहा हो।
उसने अपने मुँह को अरवा के स्तन पर चिपका लिया और जोर-जोर से चूसने लगा। अरवा का दूध अभी तक नहीं आया था, लेकिन भोलाराम की चूसाई से उसके स्तनों में एक मीठा दबाव बन गया, जैसे कोई रस उसकी नसों मे बह रहा हो।
"आआह... बाबा... पीजिए..." अरवा का मुँह अब अनचाहे शब्द बोल रहा था, और उसका बदन भोलाराम के स्पर्श से काँप रहा था। उसकी चूत की गर्मी अब और बढ़ गई थी, और उसका रस बेड की चादर को भिगो रहा था, एक गीला धब्बा बनता जा रहा था, भोला ने अपने दाँतों को अरवा के निप्पल पर हल्के से काटा
।
"आउच... इस्स्स...आअह्ह्ह..." अरवा की चीख निकल पड़ी, उत्तेजना की एक नयी लहर ने उसकी चुत को सरोबर कर दिया, उसकी चुत से एक नई धार बह निकली, जैसे उसका शरीर उस दर्द को सुख में बदल रहा हो।
भोलाराम ने अपने दाँतों से निप्पल को हल्के से निचोड़ा, अरवा के बदन पर बिजली गिरने लगी, उसकी साँसें रुक-रुक कर चल रही थीं, और उसकी जाँघें अपने आप और फैल गईं, जैसे वो भोलाराम को और पास बुला रही हों।
"आआह... बाबा... और..." उसकी आवाज़ में अब सिर्फ सुख था, कोई शर्म या संकोच नहीं। भोलाराम ने दूसरा निप्पल भी अपने मुँह में लिया और उसे चूसते हुए दाँतों से काटने लगा। अरवा की सिसकारियाँ अब कमरे में गूँज रही थीं, और उसकी चूत का रस उसकी जाँघों पर चमक रहा था, एक चिपचिपी परत बनाकर।
उसका गर्भवती पेट हल्का उभरा हुआ था, और हर सिसकारी के साथ उसकी साँसें और भारी हो रही थीं, जैसे वो किसी चरम सुख की ओर बढ़ रही हो।
भोलाराम ने अपने हाथ को अरवा की कमर पर रखा और उसे बेड पर और नीचे सरका दिया। उसकी उंगलियाँ अरवा की नर्म त्वचा पर फिसल रही थीं, और हर स्पर्श से अरवा का बदन सिहर उठता था।
"आअह्ह्हम्म...... अरवा क्या दूध है तेरे, मै कब से इंतज़ार कर रहा था तेरे जिस्म का," उसने कहा, और अपनी पैंट की जिप खोल दी। उसका लंबा, मोटा लंड बाहर निकल आया—कम से कम 9 इंच लंबा, मोटा, और नसों से भरा हुआ।
उसका सुपाड़ा गुलाबी और चमकदार था, और उससे एक बूँद प्री-कम टपक रही थी, जो उसके लंड की नोक पर चमक रही थी। अरवा की नजरें उस लंड पर अटक गईं, और उसका गला सूख गया।
"ये... ये क्या है?" अरवा ने काँपती आवाज़ में पूछा, लेकिन उसकी आँखें उस लंड से हट नहीं रही थीं। उसका दिमाग भोला के लंड की यादों से भर गया, और उसकी चूत में एक नई लहर दौड़ गई, जैसे वो उस लंड को फिर से महसूस करना चाहती हो।
भोलाराम सिर्फ मुस्कुराया, उसकी आँखों में एक शैतानी चमक थी। उसने अपने लंड को हाथ में पकड़कर अरवा के मुँह के करीब ले आया.
"पसंद आया ना तुझे, मै जनता हूँ तेरी जैसी तबियत की औरते ऐसे लंड ओर मरती है, यही लंड तेरा इलाज है, इसी के आभाव ने तेरी चुत मे खुलजी हो रही थे,.. चट. ट. ट. ट.....चट... तेरे ये दूध दर्द कर रहे थे, चूस इसे अब, सारी तकलीफ दूर हो जाएगी " भोलाराम ने अरवा के दोनों स्तन पर जोरदार चांटे मारते हुए कहा और उसका सुपाड़ा अरवा के होंठों को छूने लगा।
अरवा का दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, और उसकी साँसें रुक-रुक कर चल रही थीं। अब पीछे हटने का कोई सवाल नहीं था, ना ही उसका जिस्म इस बात की गवाही देता, अब उसे ये लंड चाहिए था, उसे अपनी टपकती चुत का इलाज कराना ही था.
नतीजा उसने धीरे से अपनी जीभ बाहर निकाली और भोलाराम के सुपाड़े को हल्के से चाटा। एक नमकीन, गर्म स्वाद उसके मुँह में घुल गया, ये स्वाद ये अनुभव उसकी पुरानी यादों को ताजा कर गया।
"आआह...इस्स्स...." उसकी सिसकारी कमरे में गूँज उठी। उसका लंड का स्वाद उसकी चूत की गर्मी को और बढ़ा रहा था, अरवा की चुत अब किसका टूटे हुए बांध की तरह पानी छोड़ रही थी,
भोलाराम ने उसके सिर को और दबाया, और उसका लंड अरवा के मुँह में समा गया। "चूस इसे, अरवा, अच्छे से चूस," भोलाराम ने गुर्राया।
अरवा की जीभ उसके सुपाड़े को चाट रही थी, और उसका मुँह उसके लंड से भर गया था। उसका लंड इतना मोटा था कि अरवा के होंठ पूरी तरह खिंच गए, और उसकी ठुड्डी पर लार की एक पतली धार टपकने लगी।
गु.. गु... गु... वेक.. वेक... वेक... गुलुप...अरवा की सिसकारियाँ तेज हो रही थीं, उसके मुँह से थूक निकल के नीचे टपक रहा था, भोलाराम का लंड उसके मुँह को चोद रहा था, अरवा की चूत में रस की बाढ़ आ रही थी, जो उसकी जाँघों पर चमक रही थी।
भोलाराम इस बाढ़ को देख ना सका, उसने अपने हाथ को अरवा की जाँघों के बीच डाल दिया
"आअह्ह्ह..... इस्स्स... गु.. गु... गुलुओं... अरवा सिसक उठी, उसका जिस्म कांप गया,
भोलाराम उसकी चूत को सहलाने लगा। उसकी उंगलियाँ अरवा की गीली चूत की लकीर पर फिसल रही थीं, और हर स्पर्श से अरवा का बदन थरथरा उठता था। उसकी उंगलियाँ चूत के दाने को हल्के से रगड़ रही थीं, और अरवा की सिसकारियाँ और तेज हो गईं। आअह्ह्ह.... इसससस... गु.. गु.. गु... भोला का लंड अरवा के गले तक उतर के वापस आ जा रहा था, थूक और लार की एक लकीर सी बन गई थी लंड और मुँह के बीच.
"क्या रसीली चूत है तेरी," भोलाराम ने कहा, और अपनी एक उंगली को अरवा की चूत में डाल दिया।
"पच..." की आवाज़ कमरे में गूँज उठी। अरवा की चूत इतनी गीली थी कि उसकी उंगली आसानी से अंदर चली गई, और उसकी अंदरूनी दीवारें उस उंगली को कसकर पकड़ रही थीं।
"आआह... बाबा... और...उफ्फफ्फ्फ़.... डॉ... और अंदर...अरवा बड़बड़ा रही थी। भोलाराम ने अरवा की बेकरारी देख अपनी दूसरी उंगली भी उसकी चुत मे डाल दी, और अब वो अरवा की चूत को और खोल रहा था।
उसकी उंगलियाँ अंदर-बाहर हो रही थीं, और हर धक्के के साथ "पच... पच... फच..." की आवाज़ माहौल को और मादक बना रही थी। अरवा का बदन अब कंट्रोल से बाहर था। उसका दिमाग पिछली चुदाई को याद कर रहा था, वो भोलाराम की गुलाम बन चुकी थी। अपनी हवस, अपनी वासना के प्रति समर्पण कर चुकी थी,
उसने अपने मुँह को और खोला, और भोलाराम का लंड उसके गले तक उतर गया। "गू... गू..." अरवा की आँखें चौड़ी हो गईं, और उसके आँसू टपकने लगे, लेकिन वो रुक नहीं रही थी। उसकी जीभ उसके लंड के नीचे की नसों को चाट रही थी,उसके टट्टो पर फिसल रही थी, उसका मुँह लार से भरा चूका था,
भोलाराम भी इस चुसाई से उत्तेजित हुए जा रहा था, उसने अपनी उंगलियों की गति बढ़ा दी। उसकी दो उंगलियाँ अरवा की चूत में तेजी से अंदर-बाहर हो रही थीं, और उसकी हथेली उसकी चूत के दाने को रगड़ रही थी।
उसकी उंगलियाँ अरवा की चूत की गहराई में जा रही थीं, और हर धक्के से अरवा की साँसें रुक-रुक कर चल रही थीं। "आआह... बाबा... मैं गई...आअह्ह्हम... डॉक्टर... Plz... आअह्ह्ह... उउफ्फ्फ... मै मर जाउंगी.." अरवा की चूत से एक तेज धार छूट पड़ी फच... आअह्ह्ह.... फाचक... पच... पचक.. उसकी चुत से निकला रस भोलाराम की उंगलियों पर चमक उठा।
उसकी चूत की मादक गंध अब और तीव्र हो गई थी, हंफ... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़... हमफ़्फ़्फ़... अरवा भोला के लंड को मुँह मे लिए हांफ रही थू, उसकी नजरें भोला को ही देख रही थी, सांसे उखाड़ रही थी,
तभी भोलाराम ने अपनी उंगलियाँ चाट लिया "क्या स्वाद है तेरी चूत का," अरवा का चेहरा शर्म से लाल हो गया। उसका रस मीठा और गर्म था, भोलाराम ने अपनी जीभ से अपनी उंगलियों को चाट चाट कर साफ़ किया, जैसे वो किसी अमृत का स्वाद ले रहा हो।
"अब मेरी बारी है अरवा " भोलाराम ने गुर्राते हुए कहा और अरवा के मुँह से अपना लंड बाहर निकाला। और उसकी चौड़ी, फैली हुई जांघो के बीच जा बैठा,
उसने अपने लंड को हाथ में पकड़ा और उसे अरवा की चूत की लकीर पर रगड़ा। उसका लंड का सुपाड़ा अरवा की चूत की गीली सतह पर फिसल रहा था, और हर रगड़ से अरवा की सिसकारियाँ तेज हो रही थीं।
"आआह...उउउफ्फ्फ... हंफ.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..." अरवा की सिसकारी फिर से गूँज उठी, जैसे वो इसी के इंतज़ार मे थी। भोलाराम ने एक जोरदार धक्का मारा, और उसका लंड "पच..." की आवाज़ के साथ अरवा की चूत में समा गया।
"आआआहहहह..... आराम से.... उउउफ्फ्फ्फ़... आअह्ह्ह....अरवा की चीख कमरे में गूँज उठी। उसकी चूत, जो गर्भवस्था की वजह से थोड़ी खुली थी, फिर भी भोलाराम के मोटे लंड को मुश्किल से समा पा रही थी।
उसका लंड इतना गहरा गया कि अरवा को लगा जैसे वो उसकी बच्चेदानी तक पहुँच गया हो। उसकी चूत की दीवारें उस लंड को कसकर पकड़ रही थीं, और हर धक्के से उसकी साँसें रुक-रुक कर चल रही थीं।
भोलाराम ने अपनी कमर को तेजी से हिलाना शुरू कर दिया छप... छप... फच... फच... की आवाज़ कमरे में गूँज उठी।
भोलाराम के टट्टे अरवा की गांड से टकरा रहे थे, और हर टक्कर से एक हल्की थपथपाहट की आवाज़ आ रही थी।
उसकी चूत का रस उसके लंड पर चमक रहा था, एक चिपचिपी परत बनाकर जो हर धक्के के साथ और गहरी हो रही थी।
अरवा ने अपनी जांघो को और चौड़ा कर दिया, जैसे वो भोलाराम के लंड को और गहरा लेना चाह रही हो।
"आआह... बाबा... और जोर से... आआह..."इस्स्स... अरवा अब बेकाबू हो चुकी थी। उसका गर्भवती बदन थरथरा रहा था, और उसके स्तन हर धक्के के साथ उछल रहे थे, उसके सुडोल, पपीते जैसे स्तन हवा में लहरा रहे थे,
भोलाराम ने अपने हाथों से अरवा के स्तनों को फिर से पकड़ा और उन्हें जोर-जोर से दबाने लगा।
"आआह... बाबा... चूसो..." अरवा बड़बड़ा रही थी। उसकी सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं, और उसकी चूत से रस की धारें बह रही थीं।
पच... पच... फच... फच....भिलाराम बेतहाशा अरवा की चुत को रोढ़ता रहा, अरवा भी गांड उठा उठा कर उसका साथ दे रही थी..
कोई 10 मिनिट ताबड़तोड़ चोदने के बाद, भोलाराम ने अरवा को सहारा दे कर बिस्तर से उठाया, और उसे घुमा जर बिस्तर पर झुका दिया, अरवा के हाथ बिस्तर पर थे और गांड बहार को निकल आई थी, अरवा ने भी पूरा सहयोग करते हुए तुरंत पोजीसन ले ली,
अरवा की भारी गांड और गीली रस से भरी चुत उसके सामने थी। अरवा की गांड इतनी गोल और मुलायम थी कि भोलाराम का लंड उसे देखकर और तन गया।
उसकी गांड की त्वचा चमक रही थी, और उसकी दरार में एक हल्की नमी थी, जो भोलाराम को आकर्षित कर रही थी।
चुत की फंके फूल के कुप्पा हो चुकी थी,
ये दृश्य तो किसी सन्यासी को को भी पिघला देता, भोला से भी नहीं रहा गया, उसने अपनी जीभ को बाहर निकाला और अरवा की गांड की दरार पर जा लगाया, लप.. लप... चाट... चप.. चप..... करता अरवा कक गांड की लकीर को चाटने लगा
"आआह... बाबा... ये क्या..." अरवा की सिसकारी अब और तेज हो गई। भोलाराम ने अपनी जीभ को अरवा की गांड में धकेला और उसे चाटने लगा। उसकी जीभ गर्म और नम थी, और हर चाट से अरवा का बदन मचल उठता था।
अरवा की गांड की गर्मी और उसकी चूत की मादक गंध भोलाराम को और उत्तेजित कर रही थी। उसकी जीभ अरवा की गांड के अंदर तक गई, उसने गांड और चुत को चाट-चाटकर सारा रस साफ़ कर दिया, लगता था जैसे चाट चाट कर ही सारा पानी सूखा देगा,
अरवा की साँसें अब और तेज हो चली थी, वो कब से इसी की चाहत मे थी, कब से उसका जिस्म इस वासना मे जल रहा था, परन्तु ये वो वासना का दरिया था की इसका पानी कभी समाप्त नहीं हो सकता था, अरवा की चुत का पानी अभी सूखा ही था की आअह्ह्ह.... इस्स्स.... उउउफ्फ्फ्फ़....उसकी चूत से एक नई धार बह निकली।
भोला भी बड़ा जिद्दी था, उसने पूरी सिद्दत से अपनी जीभ को वापस अरवा की चूत मे सटा दिया।
अरवा की चूत से निकली मादक गंध भोलाराम को और भूखा बना रही थी। उसने अपनी जीभ को अरवा की चूत की लकीर पर फिसलाया और उसे चाटने लगा।
"आआह... बाबा... चाटो..उउउफ्फ्फ... और चाटो... पी जाओ मेरी चुत को ." अरवा बड़बड़ा रही थी।
भोलाराम की जीभ उसकी चूत के दाने को चाट रही थी, और हर चाट के साथ अरवा का बदन थरथरा उठता था। उसकी चूत का रस भोलाराम के होंठों पर चमक रहा था,
और वो उस चूतरस को ऐसे पी रहा था जैसे जन्मो से प्यासा हो। उसकी जीभ अरवा की चूत के अंदर तक जा रही थी,भोला उसकी चुत को अंदर से चाट-चाटकर साफ़ कर रहा था।
उसकी जीभ चुत की हर सिलवट, हर कोने को छू रही थी, अरवा की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं। ये अनुभव पहले से भी उन्मादकारी था,
"आआह... बाबा... मैं गई...आअह्ह्ह.... उफ्फ्फ्फ़... अरवा की चूत से एक तेज धार फिर से छूट पड़ी, धार इतनी तेज़ थी की चुत से निकला पानी भोलाराम के चेहरे से टपक रहा था,
"आअह्ह्ह.... इस्स्स... उफ्फ्फ. हंफ... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..."अरवा एक बार फिर झड़ गई थी, उसके चुत से निकले गाड़े सफ़ेद पानी ने एक मादक गंध कमरे मे फैला दि थी,
भोलाराम ने अपनी जीभ से अरवा के रस को पूरा चाट लिया, और अपने लंड को हाथ में पकड़ हिलता हुआ खड़ा हो गया, जैसे युद्ध के लिए तलवार पर धार लगा रह हो
अरवा अभी भी सर नीचे किये हांफ रही थी, उसका जिस्म ज्वालामुखी बन चूका था, जिसमे अभी भी गर्मी बाकि थी,
भोला अरवा की जाँघों के ठीक पीछे आ खड़ा हुआ, और उसकी जांघो को चौड़ा कर दिया, अरवा मे इतनी हिम्मत नहीं थी की वो मना कर सके, ना ही उसका मन था, वो उस लंड को अपनी चुत मे महसूस करना चाहती थी,
भोलाराम से भी अब रुका नहीं गया, उसने अपने लंड को अरवा की चुत की लकीर पर रख कमर को आगे धकेल दिया।
"पच...पूकककककक " की आवाज़ के साथ उसका लंड फिर से अरवा की चूत में समा गया। उसकी चूत की दीवारें फिर से उस लंड को कसकर पकड़ रही थीं, और हर धक्के से एक हल्की कंपन पैदा हो रही थी।भोलाराम ने अपनी कमर को और तेजी से हिलाना शुरू किया।
छप... छप... फच... फच... की आवाज़ अब और तेज हो गई। उसका लंड अरवा की चूत को चीर रहा था, और हर धक्के के साथ अरवा का बदन सुख की चरम सीमा पर था।
"आआह... बाबा... और... और..जोर से एयर अंदर डालो, फाड़ो मेरी चुत, खुजली मिटा दो मेरी ." अरवा बड़बड़ा रही थी।
भोलाराम ने अपने दाँतों से अरवा की पीठ को काटा, और उसकी चीख कमरे में गूँज उठी। उसका लंड अब और गहरा जा रहा था, और हर धक्के के साथ अरवा की चूत से रस की धारें बह रही थीं।
उसकी चूत की गहराई में हर धक्के से एक गर्म लहर पैदा हो रही थी, और उसका बदन पसीने से भीगा हुआ था।
"पच... पच... फच... फचम.. आअह्ह्ह... पुक.... पुररररर... फच... फच्छ...
समय के साथ भोलाराम ने अपनी गति और बढ़ा दिया, उसका लंड अब और तेजी से अंदर-बाहर हो रहा था, और हर धक्के के साथ अरवा की चूत की दीवारें काँप रही थीं।
"आआह... बाबा... मैं खत्म हो गई...मै गिर जाउंगी, बस... आअह्ह्ह.... एक बार बस अंदर तक " अरवा की चूत से फिर से एक तेज धार छूटी, और उसका रस भोलाराम के लंड को भिगो गया।
उसी पल भोलाराम भी गुर्राया, "आआह... अरवा... ले मेरा.. लंड .." और उसका गर्म, गाढ़ा वीर्य अरवा की चूत में बहने लगा। उसका वीर्य इतना गर्म और गाढ़ा था कि अरवा की चूत में एक जलन सी होने लगी, जैसे आग ही आग को बुझा रही हो, लेकिन इस जलन मे एक गहरा सुख भी था।
उसका वीर्य अरवा की चूत की गहराई में भर गया, और हर बूंद उसकी अंदरूनी दीवारों को गर्म कर रही थी।अरवा हाँफ रही थी, उसकी आँखें बंद थीं, और उसका बदन पसीने और रस से लथपथ था।
भोलाराम ने धीरे से अपने लंड को बाहर खींचा, और "पुक..." की आवाज़ के साथ उसका वीर्य और अरवा का रस मिलकर जमीन पर टपकने लगा।
अरवा की चूत अब पूरी तरह खुल चुकी थी, उसका बदन अभी भी थरथरा रहा था, और उसकी साँसें धीरे-धीरे सामान्य होने की कोशिश कर रही थीं। उसकी जाँघें अभी भी फैली हुई थीं, और उसकी चूत से एक हल्की धार अभी भी टपक रही थी।
उसे ऐसा सुख पहले कभी नहीं मिला था, ना राघव से, ना पिछले भोला से।
कोई 5मिनट बाद उसकी सांसे दुरुस्त हुई, उसका वजूद वापस कायम हुआ, उसने अपनी आंखे खोली आस पास देखा कमरा खाली था, भोलाराम वहाँ से जा चूका था, उसके होने का कोई सबूत वहाँ नहीं था, जैसे वो कभी था ही नहीं, भोलाराम गायब था। सफ़ेद कोट, उसकी पैंट, सब कुछ गायब। कमरे में सिर्फ़ अरवा थी, नंगी, रस से लथपथ, और हैरान।
"ये... ये क्या था?" अरवा ने काँपते हुए अपने कपड़े समेटे और जल्दी-जल्दी साड़ी लपेटी। उसका मन डर और उत्तेजना के बीच जूझ रहा था।
वो केबिन से बाहर निकली और रिसेप्शन की ओर दौड़ी।
"सुनिए... सुनिए... वो डॉ. भोलाराम कौन थे?" अरवा ने हाँफते हुए रिसेप्शनिस्ट से पूछा।
"डॉ. भोलाराम?" रिसेप्शनिस्ट ने हैरानी से उसकी ओर देखा। "मैडम, यहाँ कोई डॉ. भोलाराम नहीं है।
अरवा का सर चकराने लगा था, ऐसा कैसे हो सकता है, मैंने साफ महसूस किया, वहाँ अंदर कोई आदमी तो था, इसका सबूत उसकी चुत मे बहता वीर्य था, लेकिन ये सबूत ये बात वो कैसे किसी को बताती.
"अच्छा तो भोलाराम नाम का कोई स्टाफ है यहाँ " अरवा ने अपनी दुविधा को दूर करना चाहा..
"नहीं मैडम, क्या हुआ है आपको, यहाँ कोई भोलाराम नाम का स्टाफ नहीं है, आप ही ना जाने कब से डॉ. के रूम मे बैठी थी,
अरवा का दिमाग़ साय साय कर रहा रहा, क्या हुआ ये फिर से, ये कोई इत्तेफाक नहीं ही सकता, जरूर कुछ गड़बड़ है."
अरवा का दिल धड़क उठा। उसकी आँखें चौड़ी हो गईं, और उसका बदन काँपने लगा। "तो... तो वो कौन था?" उसने धीमी आवाज़ में खुद से पूछा।
"क्या हुआ मैडम कल का अपॉइंटमेंट दे दूँ? जल्दी आइयेगा कल, डॉ. शालिनी मिल जाएगी "
"वो... ना... नहीं... अब जरुरत नहीं, मै ठीक हूँ, "
वो बाहर निकली, उसकी साड़ी अभी भी ठीक नहीं थी, और उसकी जाँघें चिपचिपी थीं। उसका पति कार में उसका इंतज़ार कर रहा था।
"अरवा, सब ठीक है ना? चेकअप हो गया?" राघव ने पूछा।अरवा ने सिर्फ़ सिर हिलाया, " मै अब ठीक हूँ रवि "लेकिन उसका मन उसी सवाल में उलझा था—
"वो कौन था?"
समाप्त


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