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मेरी माँ रेशमा -25

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शादी की रात 


मैरिज हॉल रिसेप्शन की रौनक से जगमगा रहा था। नवीन और मेघा, दूल्हा-दुल्हन, स्टेज पर बैठे थे, और उनकी खूबसूरती हर किसी को मंत्रमुग्ध कर रही थी। मेघा का लाल और सुनहरा लहंगा उसके सुडौल जिस्म को इस तरह लपेटे हुए था जैसे कोई शिल्पकार ने उसे तराशा हो।

  0f0ed0b1322453b1cd5bbba75563af19 उसकी चोली इतनी नाज़ुक थी कि उसके उन्नत स्तन साफ उजागर हो रहे थे, और हर बार जब वह हल्का सा हिलती, उसकी कमर की लचक और गहरी नाभि हर किसी की नजरों को अपनी ओर खींच लेती,

 उसकी आँखों में नवविवाहिता की शरम थी, ec4f751a31b8288c70f97149a93df81d लेकिन उसकी मुस्कान में एक आत्मविश्वास था, जैसे वह जानती हो कि यह रात उसकी है। वो आज किसी और की होने वाली है, उसका जीवन अब नया मोड़ ले रहा है.

नवीन, सुनहरी शेरवानी में, मेघा के बगल में बैठा मुस्कुरा रहा था। उसका चेहरा बारात के जोश और रिसेप्शन की रौनक से चमक रहा था।

 स्टेज के चारों ओर लोग जमा थे—कुछ फोटो खींच रहे थे, कुछ गिफ्ट दे रहे थे, और कुछ बस इस खूबसूरत जोड़े को निहार रहे थे।

 हॉल में रौशनी की झालरें, फूलों की सजावट, और डीजे की हल्की-हल्की धुनें माहौल को और रंगीन बना रही थीं।

खाने का इंतज़ाम एक तरफ चल रहा था। बारातियों और घरातियों की भीड़ खाने की टेबल के आसपास जमा थी। मेरी मामी, मौसी, अनुश्री, मोहित, प्रवीण, अब्दुल, और आदिल—सब यहीं थे। मामा आने वाले मेहमानों का हाथ जोडे अभिवादन कर रहे थे, मामी और मौसी स्टेज पर नवीन के साथ खड़ी थीं,

उनकी साड़ियाँ और लहंगे अभी भी उतने ही आकर्षक लग रहे थे। उनका कामुक जिस्म बारात मे नाच कर और खुल गया ऐसा प्रतीत होता था, 

अनुश्री, मोहित, और प्रवीण एक कोने में खड़े थे, और उनकी हँसी-मजाक में एक गुप्त रस था, जो शायद उनके हाल के अंतरंग पल की गर्मी को दर्शा रहा था।

मैं, अमित, इस सब को देख रहा था, लेकिन मेरी नजरें अपनी माँ रेशमा को ढूंढ रही थीं। वह कहीं दिख नहीं रही थीं। मेरे मन में एक अजीब सी बेचैनी थी, जो अनुश्री और मेरे दोस्तों के कांड से और बढ़ गई थी।

मै इधर उधर देख ही रहा था की की अचानक मेरी नजर उस बूढ़े ड्रम वाले पर पड़ी, जो बारात में माँ  के आसपास मंडरा रहा था। उसका मैला-कुचैला चेहरा, झुर्रियों से भरा, और दाढ़ी में सफेदी अभी भी वैसी ही थी।

 वह नजरें चुराते हुए, एक पानी की बोतल हाथ में लिए, टेंट के पीछे की ओर बढ़ रहा था। उसकी चाल में एक जल्दबाजी थी, जैसे वह किसी से छिपकर कहीं जा रहा हो।

मेरे मन में कुछ खटका। यह बूढ़ा यहाँ क्या कर रहा है? बैंड वाले तो बारात खत्म होने के बाद जा चुके थे। मैंने चुपके से उसका पीछा करने का फैसला किया। हॉल की भीड़ को चीरते हुए, मैं धीरे-धीरे टेंट के पीछे की ओर बढ़ा। 

टैंट के पीछे अंधेरा था, आस पास कुछ झाड़ियाँ थीं, जो मैरिज हॉल के पिछले हिस्से को ढक रही थीं। हवा में ठंडक थी, और दूर से रिसेप्शन की हल्की-हल्की आवाज़ें आ रही थीं।


मैं धीमे कदमो से अभी थोड़ा और आगे बढ़ा ही था कि दूसरी तरफ से एक कामुक साया सा झाड़ियों की ओर बढ़ता दिखाई दिया।

 उसकी चाल, उसका गुलाबी लहंगा, और उसकी कमर की लचक—सब कुछ इतना परिचित था कि मेरी साँसें रुक सी गईं। 1757064285885  

मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। नहीं, यह नहीं हो सकता। लेकिन मेरी आँखें मुझे धोखा नहीं दे रही थीं। मैंने कोई दारू नहीं पी थी, मै बिल्कुल होश मे था, इसका मतलब जो मै देख रहा हूँ वो सच है, वह मेरी माँ रेशमा ही थीं जो की अपना लहंगा उठाये जल्दी जल्दी चलती हुई उस झाडी की तरफ बढ़ रही थी जहाँ वो बूढ़ा ड्रम वाला अभी अभी जा घुसा था, 


उनका लहंगा अंधेरे में भी चमक रहा था, और उनकी हर हरकत में एक बेपरवाह उत्तेजना थी। वो जल्दबाज़ी मे थी जैसे कोई देख ना ले, 

मैं स्तब्ध रह गया। मेरी माँ, जिन्हें मैंने हमेशा गाँव की सादगी में लिपटी देखा था, अपने दोस्तों के साथ देखा था, पटनायक के साथ देखा था  लेकिन अब यहाँ इस तरह?

 मेरा मन गुस्से, आश्चर्य, और एक अजीब सी उलझन से भर गया। मेरी माँ यहाँ क्यों आएगी, शायद पेशाब करने आई हो, मेरे मन ने मुझे समझाया,

मैं चुपके से झाड़ियों के पास और करीब गया, ताकि यह समझ सकूँ कि आखिर हो क्या रहा है।

माँ जल्दी जल्दी भागती सी आ कर झाड़ियों के बीच, अंधेरे में, रुक गई ठीक उस  बूढ़े ड्रम वाले के सामने.

मै हैरान था, माँ इस बूढ़े के लिए यहाँ आई है, छी शर्म की बात है, माँ के आस पास इतने अच्छे मर्द है और ये इस बूढ़े के लिए यहाँ आई है...

मै अभी भी अपनी माँ को समझने मे नाकामयाब था.

वो बूढ़ा जो देसी दारू का पव्वा खोलने ही जा रहा था, की माँ को सामने देख सकपका उठा, उसकी बांन्छे खील सी गई, लेकिन घबराहट मे उसके हाथ कंपने भी लगे.

"अअअ... अअअ.. अआप.... यहाँ " वो बुरी तरह चौंक गया,  पानी की बोतल और पव्वा एक तरफ फेंककर रेशमा के सामने खड़ा हो गया,

 उसकी आँखों में वही चमक थी, जो बारात में रेशमा को टटोल रही थी, लेकिन अब उसमें एक डर और लालच का मिश्रण भी था। 

मेरी माँ रेशमा ने एक कदम आगे बढ़ाया, उनकी आँखों में एक गुस्सा और कुछ अजीब सा खुमार चमक रहा था, साँसें भारी और तेज़ थीं, जैसे कोई जंग लड़ने की तैयारी कर रही हो, चेहरा पसीने से चमक रहा था।

"क्यों रे,बूढ़े तुझे ज्यादा जवानी चढ़ी हुई है क्यों?" रेशमा ने तीखी लेकिन मादक आवाज़ में कहा। उनकी आवाज़ में एक तंज था, लेकिन उसमें एक ऐसी कामुकता थी जो बूढ़े को और बेबस कर रही थी। 1410c1c828a77fdf4c2994beb26be425

 "क्या कर रहा था बारात में, साले? मेरी गांड पर डंडा मार रहा था, हाँ? तुझे कब से ढूंढ़ रही थी मै, यहाँ बैठ के दारू पीने बैठा है " रेशमा ने अपनी कमर को हल्के से मटकाते हुए कमर पर हाथ रखते हुए गुस्से से चिल्ला पड़ी.

मै फालतू ही माँ को गलत समझ रहा था, माँ तो इस बूढ़े की खबर लेने आई थी,

"वो... वो.. मै.. मै....।बूढ़ा हकबकाया माँ का ये रूप देख मीमयाने लगा। उसकी झुर्रियों भरी मुस्कान अब डर में बदल गई थी, लेकिन उसकी आँखें अभी भी रेशमा के जिस्म को टटोल रही थीं।

 "न… नहीं, मैडम… मैं… मैं तो बस…" वह बड़बड़ाने लगा, उसकी आवाज़ में लाचारी थी।

"चुप, साले! तुझे क्या लगा मै कोई आम औरत हूँ जिसे तु जब चाहे छेड़ देगा और कोई कुछ नहीं बोलेगा " रेशमा ने उसे बीच में ही टोक दिया। 

माँ की आवाज़ में गुस्सा था, लेकिन ना जाने क्यों उसकी आवाज़ भारी भी होती जा रही थी, जैसे वह इस बूढ़े को पूरी तरह अपने काबू में करना चाहती थीं। 

"वहाँ चिल्ला देती तो मार-मार के भूत बना देते तेरा बाराती " इस बार माँ थोड़ा सा मुस्कुरा भी दि गुस्से के साथ साथ, उनकी आँखों में एक शरारती चमक थी।

 फिर, एकाएक, रेशमा ने अपना लहंगा ऊपर तक उठा लिया। उनकी चिकनी, गोरी जाँघें और गीली चूत अंधेरे में चमक उठी।

"ययय... ये क्या मै माँ को देख हक्का बक्का रह गया, मेरे पेरो के तले जमीन खिसक गई, माँ तो अभी इसे डांट रही थी और अभी ये, मै माँ को समझ नहीं पा रहा था, वो चाहती क्या है.

 माँ के हाथ अपनी कोमल फूली हुई चुत को सहला रहे थे, वो बूढ़ा जिसे अभी दिल का दौरा पढ़ने हि वाला था वो माँ की चुत उसकी हरकत को एकटक देखता ही रह गया, उसका मुँह खुला का खुला रह गया, जैसे सांस अटक गई हो.

दूर टेंट से आती रौशनी मे माँ की गीली चुत चमक रही थी, इस गीली चमक को माँ अपने हाथो से अपनी चुत पर घुमा रही थी, 

आअह्ह्ह.... इस्स्स.... माँ के मुँह से गुस्से की जगह सिसकारी फुट पड़ी..

मै तो सकपाकाया खड़ा ही की तभी माँ ने अपनी एक उंगली अपनी चूत पर फेरी, और फिर धीरे से उसे अंदर डाल दिया। "आह्ह… इस्स…" रेशमा की सिसकारी अंधेरे में गूंजी। उनकी उंगली चूत के रस से भीग गई ।

"यही देखना था ना तुझे? यही चाहिए था ना? इसलिए मेरे पीछे पीछे घूम रहा था?" रेशमा की आवाज़ मे मादकता थी, उत्तेजना थी, कामुकता थी, 

माँ ने अपनी भीगी उंगली को बूढ़े की ओर बढ़ाया। "इधर आ, साले!" उनकी आवाज़ में एक ऐसी आज्ञा थी कि बूढ़ा डरते-डरते उनके पास आ गया। रेशमा ने अपनी उंगली बूढ़े के मुँह में घुसेड़ दी, और बूढ़ा, अपनी अनचाही हसरतों के बोझ तले दबा, उसे चाटने लगा। 

मै माँ का ये रूप देख हैरान था, ऐसा लग रहा था ये औरत मेरी माँ है ही नहीं कोई और है,

माँ का ये व्यवहार मुझे अचंभित कर रहा था, "हे नारी तेरे कितने रूप है?" मेरे जीवन का सबसे बड़ा सवाल यही बन गया था.

माँ ने चुत रस से भीगी ऊँगली बूढ़े की तरफ बड़ा दि,  जिसे उसने अपनी जीभ से तुरंत लापक लिया, जैसे इसी के के लिए तड़प रहा हो, 

 उसकी आँखों में एक अजीब सा लालच था, एक अहसान सा था, कर्तघ्य हो गया हो जैसे इस अमृत को चख कर....

लप.. लप... सुडप सुडप कर माँ की उंगलियों को अपने गंदे मुँह से चाटने लगा, 

"और चाहिए?" माँ ने पूछा

जवाब मे किसी आज्ञाकारी कुत्ते की तरह उस बूढ़े ने बस सर हाँ मे हिला दिया 

माँ ने उस बूढ़े के सफ़ेद काले बालो को पकड़ अपनी जांघो के बीच खिंच लिया, उसके मुँह को अपनी चूत में घुसेड़ दिया। "चाट, हरामी! यही चाहिए था ना तुझे आअह्ह्ह.... चाट अन्दर तक चाट.... खा जा मेरी चुत " 

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उफ्फ्फ्फ़.... मेरी माँ पागल सी हो गई थी, उसकी चुत की आग भड़क गई थी,

 बूढ़ा घुटनों के बल बैठ गया और अपनी जीभ को माँ की चूत पर फेरने लगा। लप… लप… लप… की आवाज़ें अंधेरे में गूंजने लगी जैसे कोई कुत्ता पानी पी रहा हो,.

ये बूढ़ा कुत्ता ही तो बना हुआ था, माँ का कुत्ता जो माँ की चुत से निकलते गर्म गाड़े सफ़ेद पानी को पी रहा था, 

 रेशमा की चूत पहले से ही गीली थी, और बूढ़े की जीभ हर बार उनके रस को चाट कर और उत्तेजित कर रही थी। रेशमा की सिसकारियाँ तेज़ हो रही थीं— "आह्ह… और जोर से, साले… चाट!" उनकी कमर अब लय में हिल रही थी, और वह बूढ़े के मुँह पर अपनी चूत को रगड़ रही थीं।

बूढ़े की साँसें उखड़ रही थीं, लेकिन उसकी जीभ रेशमा की चूत और गांड के बीच बारी-बारी से घूम रही थी। उसका चेहरा रेशमा के रस से चिपचिपा हो चुका था, और उसकी आँखों में भिखारियों जैसी चमक थी जैसे कितने सालों बाद कोई स्वादिष्ट खाना मिला हो,

वह मेरी माँ रेशमा की हवस का गुलाम बन चुका था, लेकिन उसकी अनचाही हसरतें उसे और गहराई में खींच रही थीं।

"अच्छा तो तु मुझे उकसा कर, मुझे छेड़ कर यहाँ दारू पीने बैठा था " माँ की नजर वहाँ नीचे घास पर पड़े देसी पव्वे पर पड़ी, 

माँ एक पल के लिए रुकी और पास पड़े देसी पावे को उठाया। 

"शराब पियेगा ना ले पी.... इस्स्स..... आअह्ह्ह..... बोलते हुए माँ ने शराब को अपनी चूत पर धीरे-धीरे उड़ेलना शुरू किया।

शारब की गर्मी से माँ की चुत जल उठी, माँ आसमान की तरफ मुँह कर सिसकार उठी.. आअह्ह्ह..... चाट साले, पी अपनी दारू, ऐसी शराब तूने कभी नहीं पी होंगी उउउफ्फ्फ.... इससससस... आअह्ह्ह....

शराब की बूँदें माँ की चूत पर गिर रही थीं, और बूढ़ा उन्हें कुत्ते की तरह चाटने लगा। पच… पच… पच… की आवाज़ें हवा में गूंज रही थीं।

"आह्ह… हरामी… पी ले… पूरा पी ले," रेशमा ने उत्तेजना में चिल्लाते हुए कहा। 7cbdeeed364359038e62af82e678da6b उनकी साँसें तेज़ चल रही थी पसीने से ब्लाउज भीग गया था, स्तन पर पसीना किसी मोतियों की तरह चमकने लगा था,  जिस्म काँप रहा था। 

बूढ़े का मुँह अब पूरी तरह से रेशमा के रस और शराब से भर चुका था। उसकी जीभ रेशमा की चूत की गहराई में जा रही थी, और हर बार जब वह उनकी गांड को चाटता, रेशमा की सिसकारी और तेज़ हो जाती। "आह्ह… वहाँ… वहाँ चाट, साले… और गहरा!"  20334889

माँ की  कमर अब और तेज़ी से हिलने लगी। मेरी माँ रेशमा आज कुछ और ही बन गई थी, लग रह था जैसे बेचारा बूढ़ा मर ना जाये माँ के अत्याचारों से, माँ उस पर पूरी तरह हावी हुई जा रही रही, उसके सर को पकड़ पकड़ के अपनी चुत और गांड के नीचे दबा रही थी,

रेशमा अब पूरी तरह से बूढ़े पर हावी हो चुकी थीं। एकाएक माँ ने बूढ़े को धक्का दिया, और वह जमीन पर गिर पड़ा। उसकी मैली धोती खुल गई, और उसका गंदा, बदबूदार लंड बाहर निकल आया। मै भी उस बूढ़े का लंड देख कर दंग रह गया, सूपड़ा पहले से ही गिला था, उस पर सफ़ेद सफ़ेद सा कुछ जमा हुआ था, एक अजीब सी गंदी स्मेल आ रही थी, लेकिन शायद वो स्मेल माँ को और उत्तेजित कर गई थी, रेशमा ने उसकी ओर देखा और एक शरारती मुस्कान दी। 

"बहुत शौक है तुझे गांड कुरेदने का, चूत चाटने का, हाँ?" उन्होंने तंज कसते हुए कहा। उनकी आवाज़ में एक जंगलीपन था, जैसे वह बूढ़े को पूरी तरह अपने काबू में कर लेना चाहती थीं। 

"ले, अब शौक पूरा कर!" कहते हुए रेशमा ने अपना लहंगा और ऊपर उठाया और बूढ़े के मुँह पर बैठ गईं।उनकी चूत और गांड अब बूढ़े के चेहरे पर थीं, और वह अपनी कमर को तेज़ी से हिला रही थीं। माँ के सामने ही बूढ़े का गन्दा लंड खड़ा हो कर तांडव कर रहा था,

 थप… थप… थप… की आवाज़ें गूंज रही थीं। रेशमा की चूत बूढ़े के मुँह पर रगड़ रही थी, और उनकी गांड उसकी नाक पर दब रही थी। बूढ़े की साँसें उखड़ रही थीं, लेकिन रेशमा को यह और मज़ा दे रहा था।

 "आह्ह… साले… चाट… और जोर से!" रेशमा की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल रही थीं। उनकी चूत किसी झरने की तरह बह रही थी, और बूढ़े का चेहरा उनके रस से पूरी तरह भीग चुका था।

रेशमा ने बूढ़े के बाल पकड़े और उसके मुँह को अपनी चूत में और गहराई तक दबाया। 15761394  

"कहाँ गई तेरी जवानी, हरामी?" माँ ने हसते हुए खीज के साथ कहा। उनकी आवाज़ में एक मादक तंज था, जो बूढ़े को और बेबस कर रहा था। 

बूढ़े की जीभ अब रेशमा की चूत की गहराई में थी, और उसकी उंगलियाँ उनकी गांड में घूम रही थीं। रेशमा की सिसकारियाँ अब और तेज़ हो गई थीं— "आह्ह… इस्स… और गहरा, साले… चाट!" उनकी कमर अब बेकाबू हो चुकी थी, और वह बूढ़े के मुँह पर अपनी चूत और गांड को रगड़ रही थीं, घिसे जा रही थी, 


बूढ़े की हालत दयनीय थी। उसकी साँसें उखड़ रही थीं, और उसका चेहरा रेशमा के रस, शराब, और पसीने से चिपचिपा हो चुका था। लेकिन उसकी आँखों में एक अनचाही हसरत थी। वह रेशमा की हवस का गुलाम बन चुका था, और उसकी जीभ उनकी चूत और गांड के बीच बारी-बारी से घूम रही थी। 22152962

 रेशमा की हर सिसकारी, हर गाली, और हर हरकत उसे और उत्तेजित कर रही थी, लेकिन उसकी बेबसी साफ दिख रही थी। वह रेशमा के सामने एक तुच्छ प्राणी था, जो उनकी हवस के आगे पूरी तरह झुक चुका था।

रेशमा की उत्तेजना अब चरम पर थी। उनकी साँसें तेज़ थीं, और उनका जिस्म काँप रहा था। माँ ने बूढ़े के मुँह पर अपनी चूत को और जोर जोर से रगड़ा शुरू कर दिया, सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई। "आह्ह… साले… पी ले… पूरा पी ले!" माँ चिल्ला रही थी, जैसे उसे इस बात की परवाह ही नहीं थी की वो कहाँ है। ,

बूढ़ा भी हार मानने के मुड़ मे नहीं लग रहा था, आखिर ऐसे अमृत को कैसे छोड़ देता, कस कस के चाटे जा रहा था, कभी चुत पर जीभ रगड़ता तो कभी गांड के छेद को सूंघ सूंघ कर चाटता, 

एक पल ऐसा आया जब मेरी माँ रेशमा की चूत से पेशाब की धार छूट पड़ी। वह धार सीधे बूढ़े के मुँह पर गिरी, और उसका हलक उस रस से भर गया। m-ldpwiqacxt-E-Ai-mh-BRxw-Qas70c-XNxh-Ww-45680501b बूढ़े की साँसें और उखड़ने लगीं, उसकी आँखें तृप्ती और उत्तेजना से चमक उठी, 

रेशमा को यह और मज़ा दे रहा था। उन्होंने अपनी गांड को बूढ़े की नाक पर और जोर से दबाया, और उनकी सिसकारियाँ अब और तेज़ हो गई थीं। 

"आह्ह… हरामी… चाट… और चाट!" माँ की चुत से लगातार पेशाब और काम रस बहे जा रहा रहा, पच... पचम्म. थप... थप.... थक.... तहक... करती माँ अपनी गांड उस बूढ़े के मुँह पर मारे जा रही थी, जैसे वह इस पल में पूरी तरह खो चुकी थीं। 

बूढ़े का चेहरा अब पूरी तरह से रेशमा के रस और पेशाब से भीग चुका था, और उसकी साँसें इतनी उखड़ रही थीं कि लग रहा था वह बेहोश हो जाएगा। लेकिन रेशमा की हवस ने उसे जकड़ रखा था।

रेशमा से रहा नहीं गया उसने बूढ़े के लंड को अपने हाथ में जकड लिया और उसे जोर-जोर से मसलने लगीं। 

"ये क्या है, साले? इतना गंदा लंड?" कब से नहीं नहाया, गंदे लोग, बस अच्छी औरत देखी नहीं की लार टपकाने लगते है आअह्ह्ह..... शनिफम... संन्नीफ्फगम.... माँ ने उसके लंड पर झुक कर उसकी स्मेल को अपने जहन मे भरते हुए कहाँ, माँ उसे बेइज़्ज़त किये जा रही थी, लेकिन इस बेइज़्ज़ती मे जो मजा था शायद उसे माँ ही महसूस कर सकती थी,

माँ की उंगलियाँ उसके लंड को इस तरह निचोड़ रही थीं जैसे वह उसे उखाड़ देना चाहती हों। बूढ़े की सिसकारियाँ दबे स्वर में निकल रही थीं, और उसकी हालत अब और खराब हो चुकी थी। "आह्ह… मैडम… रुक जाइये... आअहम्म्म्म... दर्द  ममुउफ्फ्फ.... उउफ्फ्फ... आह्ह... चप... चप... लप... लप..…" बूढ़ा बड़बड़ाने लगा, शायद उसे दर्द हो रहा था लेकिन फिर भी उसने माँ की चुत को चाटना जारी रखा, 63c1543ee1f9f4e294ea76bec69024d0  

 रेशमा ने भी उसकी बात अनसुनी कर दी। जैसे वो कुछ है ही नहीं..."रुक जाऊ? क्यों अब नहीं चाटेगा मेरी गांड, नहीं डालेगा डंडा मेरी गांड मे ?" रेशमा ने तंज कसते हुए कहा।

 "बारात में मेरी गांड पर डंडा मार रहा था, तब कहाँ गया था तेरा रहम?" माँ ने बूढ़े के लंड को और जोर से मसला, और बूढ़े की सिसकारी अब और तेज़ हो गई।

 माँ ने अपनी गांड को ऊपर उठा धाम ठप.... पचम्मम... से बूढ़े के मुँह पर पटक दिया, वो बूढ़ा जितना रहम की भीख मांग रहा था माँ उतनी ही तेज़ी से उसके मुँह पर अपनी गांड को पटक देती... आअह्ह्ह.... इस्स्स.... माँ जन्नत मे थी, उसे इस बूढ़े को तड़पाने मे मजा आ रहा था.

लेकिन मेरी सांस बंध गई थी, मुझे चिंता होने लगी थी कहीं माँ उत्तेजना, हवस मे इस बूढ़े को मार ना डाले, मन कह रहा था की जा कर माँ को रोक दूँ....

लेकिन जो रूप माँ का मेरे सामने था उस से लगता नहीं था माँ रुकेगी, अब तो माँ तब ही रुक सकती थी जब उसकी उत्तेजना उसके चुत के रास्ते निकल जाये.

 माँ अपनी कमर को तेज़ी से हिला रही थीं। थप… थप… थप… फच… फच… की आवाज़ें अंधेरे में गूंज रही थीं।

माँ उसके मुँह पर अपनी चिपचिपी गांड को उछालती रही, 

बूढ़े की हालत अब पूरी तरह से दयनीय लग रही थी । उसका चेहरा रेशमा के रस, शराब, और पेशाब से चिपचिपा हो चुका था, उसकी साँसें उखड़ रही थीं। सांस लेने जाता जी माँ उसके मुँह पर अपनी भारी गांड पटक देती, लेकिन बूढ़े का लंड अभी भी इतने जुल्म के बाद खड़ा माँ जे हाथो मे मचक रहा था, 

बेचारा बूढ़ा मेरी माँ रेशमा की हवस का शिकार बन चुका था, उसका जिस्म माँ की उत्तेजना को झेलने लायक नहीं था,  उसकी जीभ अब भी रेशमा की चूत और गांड के बीच घूम रही थी, उसकी उंगलियाँ माँ की गांड में गहरे तक जा रही थीं।


  "क्या हुआ, साले? थक गया?" रेशमा ने हँसते हुए कहा। उनकी आवाज़ में एक मादक तंज था, जो बूढ़े को और बेबस कर रहा था। 

"अभी तो शुरूआत है!" उन्होंने अपनी कमर को और तेज़ी से हिलाया, और उनकी चूत बूढ़े के मुँह पर रगड़ रही थी। उनकी सिसकारियाँ अब और तेज़ हो गई थीं— "आह्ह… इस्स… और गहरा, हरामी… चाट!" रेशमा की चूत किसी झरने की तरह बह रही थी, और बूढ़े का चेहरा उनके रस से पूरी तरह भीग चुका था।

रेशमा ने फिर से देसी पावे को उठाया और उसे अपनी चूत पर उड़ेल दिया। शराब की बूँदें उनकी चूत पर गिर रही थीं, और बूढ़ा उन्हें लालच से चाटने लगा।

 पच… पच… पच… की आवाज़ें हवा में गूंज रही थीं। शराब की बूंदो ने बूढ़े मे नया जोश भर दिया, बूढ़ा जो की ढीला पढ़ रहा था अचानक से उसकी उंगलियां माँ की गांड मे गहराई तक घुस गई... आअह्ह्ह...... चाट बूढ़े.... और चाट.... माँ ने शराब की एक किस्त और अपनी चुत पर उडेल दि.

माँ की साँसें अब और तेज़ हो गई थीं, और उनका जिस्म काँप रहा था। 38744431 "आह्ह… साले… पी ले… पूरा पी ले!" उन्होंने चिल्लाते हुए कहा।

मेरी माँ की चूत से फिर से पेशाब की धार छूटी, और वह धार बूढ़े के मुँह पर गिरी। बूढ़े की साँसें और उखड़ने लगीं, लेकिन रेशमा को यह और मज़ा दे रहा था।


रेशमा की उत्तेजना अब अपनी चरम सीमा पर थी। उनकी साँसें तेज़ थीं, और उनका जिस्म काँप रहा था। उन्होंने बूढ़े के मुँह पर अपनी चूत को और जोर से रगड़ा, और उनकी सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं।

 "आह्ह… साले… चाट… और चाट!" उनकी आवाज़ में एक जंगलीपना साफ झलक रहा था जैसे कोई शेरनी अपना शिकार कर रही हो,  बूढ़े की साँसें इतनी उखड़ रही थीं कि लग रहा था वह बेहोश हो जाएगा। लेकिन रेशमा की हवस ने उसे जकड़ रखा था।

माँ ने इस बात की कोई परवाह नहीं की, उसकी कमर बुरी तरह से बूढ़े ड्रम वाले के मुँह पर चल रही थी, पुरे मुँह पर उसकी चुत और गांड की लकीर आगे पीछे हो रही थी... 1993ad1a022fe9ef377cadd34968d701

आअह्ह्ह.... आअह्ह्ह.... इस्स्स.... ने गई.... उउउफ्फ्फ्फ़... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... आअह्ह्ह..... माँ झड़ने लगी थी, माँ के हाथ मे कसा हुआ बूढ़े का लंड तो कबका उल्टी कर चूका था माँ की मादकता से.

माँ भी झड़ने लगी उसका सारा रस बूढ़े के मुँह, छाती पुरे जिस्म को भीगो गया. m-ldpwiqacxt-E-Ai-mh-MBI-2e-4-Uzz2cr84-46521951b 190869-riley-reid-splashes-on-lucky-dudes-face

हम्मफ़्फ़्फ़... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़... माँ हांफ रही थी,

लेकिन बूढ़ा तो ऐसे चित पड़ा था जैसे मर ही गया हो, मैंने ध्यान से देखा सांसे चल रही थी उसकी.

साला चलो बच तो गया . 1757064571883

"आगे से किसी घरेलु औरत को छेड़ना तो ध्यान रखना हरामी थू.. थूउउउउउउउ.... " माँ ने हिकारात भरी नजरों से उसकी और देख वही थूक दिया..

माँ वहाँ से गांड मटकाती चल थी, बेचारा बूढ़ा ड्रम वाला बेसुध माँ को जाता देखता रह गया.

मै माँ का ये व्यवहार देख के हौरान था, आखिर माँ चाहती क्या थी? इसे सबक सीखना या अपनी हवास मिटाना.

मेरा भेजा तो चकरघिन्नी जैसा घूम रहा था,

 "आखिर एक औरत चाहती क्या है? "

माँ ने पास पड़ी बोत्तल से पानी के कर खुद को साफ किया, और झाडी से निकल टेंट की ओर चल पड़ी.

मै उल्लू का चरखा वही बैठा सोचता रहा, "औरत क्या चीज है? क्या उसे सिर्फ सम्भोग ही चाहिए? लेकिन कोई छेड़ दे तो बुरा भी लगता है, शायद पसंद की बात है, औरत जिसे पसंद करती है, सिर्फ उसी से सम्भोग कर सकती है, वरना तो इस बूढ़े जैसा हाल कर के छोड़ती है!

"हाय रे औरत "


मै भी जल्दी से अंदर पहुंचा, मैंने टाइम देखा आधा घंटा ही बिता था, 

"जीजी कहाँ रह गई थी?" मामी ने पूछा 

"कुछ नहीं भाभी, थोड़ी हवा खाने गई थी, मेरी माँ मुस्कुरा दि, साथ ही मै भी, जो स्टेज पर माँ और मामी के पीछे ही खड़ा फोटो खिचवा रहा था,

और स्टेज के पीछे लिखा था.

नवीन वेड्स मेघा.

अच्छी जोड़ी है दोनों की.

आप भी आशीर्वाद दीजियेगा नये जोड़े को...

Contd......

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मेरी बीवी अनुश्री

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1 Comments

  1. Waah Reshma...kya baat hain bhai ...aisi gaarmi to kahin dekhi hi nahi ...kya karke maanegi ye.. kaash ki ye raat kabhi khatam na ho.

    Maami ki bhi aag theek se bahar nahi aa payi hain.

    is raat mein sab shant hone do bhai ..

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