मेरी माँ रेशमा -24
बारात चढ़ चुकी थी, नवीन घोड़ी चढ़ गया था, मैरिज हॉल से बारात दुल्हन के घर तक जानी थी.
कोई 1km का ही रास्ता था.
ढ़ोल नागाड़े dj बज रहे थे, सभी लोग तैयार थे, मै मेरे दोस्त सब ने थोड़ी थोड़ी दारू टिका ली थी, आखिर बारात का समय था डांस करने के लिए इतना तो बनता ही है.
मेरी घर की औरते थोड़ी देर पहले ही बारात के लिए पहुंची थी, पार्लर से तैयार हो कर अब्दुल के car से जो उतरी सब की नजर उनपे ही टिकी रह गई.
मेरी माँ रेशमा गुलाबी लहंगे मे क्या लग रही थी, मैंने कभी अपनी माँ को इस रूप मे देखने की कल्पना भी नहीं की थी, मै नहीं जनता यहां की मेरी माँ इतनी सुन्दर है.
मेरी माँ गुलाबी लहंगे मे किसी अप्सरा सी लग रही थी.
छोटी सी चोली मे उनके मादक सुडोल स्तन झाँक रहे थे जिसे महीन चुन्नी ने अनचाहे रूप से ढका हुआ था, चोली और कमर के बीच इतना गेप था की देखने वाले वही ठहर जाये, माँ का लेहंगा नाभि के 3इंच नीचे बांधा हुआ था, लगभग जहाँ से एक कामुक रास्ता चुत की ओर जाता है, बस वही से बांधा हुआ था,
उउउफ्फ्फ्फ़.... मै वाकई माँ के रूप के देख सिहर उठा, बाराती, घराती और मेरे दोस्तों के क्या हालात थे वो तो वही होने, मै खुद उनका सगा बेटा हो कर माँ की सुंदरता पर मर मिटा था.
माँ का पेट बिलजुल सपात चमक रहा था, नाभि जैसे कोई गहरी गुफा सी बन है थी, इस गुफा मे छुपे खजाने को हर कोई टटोलना चाहता था.
मेरी मामी, मौसी दीदी अनुश्री सब जे यही हाल दे सब एक से बढ़ कर एक हुस्न परी लग रही थी.
रात गहरा रही थी, और सितारों भरा आकाश बारात के जोश को और बढ़ा रहा था। बारात चल पड़ी थी, सड़कें ढोल-नगाड़ों की गूंज, डीजे की तेज़ धुनों, और बारातियों की हँसी-ठिठोली से थरथरा रही थीं।
हवा में ठंडक थी, लेकिन बारात का उत्साह इतना गर्म था कि हर कोई इस रात की मस्ती में खोया हुआ था। नवीन, दूल्हा, घोड़ी पर सजा-धजा बैठा था, उसकी सुनहरी शेरवानी रात की रोशनी में चमक रही थी। उसकी मुस्कान में एक राजसी ठाठ था, जैसे वह इस रात का बादशाह हो। हर मर्द सिर्फ इसी एक रात बादशाह होता है, वही फीलिंग शायद नवीन के मन मे भी हो, बादशाह चल रहे है उसके दरबारी नाच गा रहे है.
भारतीय परम्परा मे ये भी खास है, एक वक़्त आदमी राजा होता है, बाकि जिंदगी पूछो मत फिर.... Hehehehe...
बारात मैरिज हॉल से निकलकर दुल्हन के घर की ओर बढ़ रही थी, जो सिर्फ एक किलोमीटर की दूरी पर था। सड़क के दोनों ओर लोग जमा थे—कुछ तालियाँ बजा रहे थे, कुछ मोबाइल में इस रंगीन नज़ारे को कैद कर रहे थे, और कुछ बस इस उत्सव को निहार रहे थे।
बारात में हर कोई अपने रंग में रंगा था। मेरे दोस्त—मोहित, प्रवीण, और बाकी लड़के—थोड़ी-थोड़ी दारू के नशे में झूम रहे थे। आखिर, बारात थी, और बिना नशे और नाच के बारात अधूरी-सी लगती है।
ढोल की थाप पर उनके कदम थिरक रहे थे, और हर कोई अपनी मस्ती में डूबा था। मोहित, जो ग्रुप का सबसे बिंदास लड़का था, बीच सड़क पर भांगड़ा डाल रहा था। उसकी कमीज की बाँहें चढ़ी हुई थीं, और पसीने से चमकता उसका चेहरा उत्साह से भरा था। उसकी हरकतें देखकर बाराती हँस रहे थे, और कुछ लड़के उसके साथ भांगड़ा में शामिल हो गए।
दारू का नशा इंसान के टैलेंट को निखार देता है, मेरी बहन अनुश्री जो की जीजा के साथ थिरक रही थी उसकी नजरें मोहित के अजीब डांस पर ही थी, जिसे देख वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी, मोहित ने शायद उसका दिल मोह लिया था, बारात मे ये सब आम बात है,
प्रवीण उसका जोड़ीदार कैसे दूर रहता, आम तौर पर वो शर्मीला था, लेकिन नशे के जोश में बेफिक्र होकर नाच रहा था। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वह इस रात को पूरी तरह जी लेना चाहता हो.
लेकिन इस रंगीन माहौल में मेरी नजरें सबसे ज्यादा मेरी माँ रेशमा पर टिकी हुई थी,
गुलाबी लहंगे में वह किसी अप्सरा सी लग रही थीं, मानो स्वर्ग से उतरकर इस बारात में शामिल हो गई हों। उनका लहंगा इतना नाज़ुक और चमकीला था कि हर कदम पर वह हवा में लहराता, और उनकी कमर की नाज़ुक रेखाएँ और स्पष्ट हो जातीं।
लहंगे की बारीक कारीगरी उनकी गोरी त्वचा के साथ ऐसी मेल खा रही थी जैसे चाँदनी रात में कमल का फूल खिल उठे।
हरामखोर किरोड़ीमल ने वाकई शानदार काम किया था, माँ की जवानी को निखार दिया था इस लहंगे ने,
उनकी चोली, जो उनके जिस्म को पूरी तरह से गले लगाए हुए थी, उनके सुडौल और आकर्षक उभारों को हल्के से उजागर कर रही थी। चोली इतनी छोटी थी कि उनके सपाट पेट और गहरी नाभि का हर कोना नज़र आ रहा था।
उनके जिस्म पर एक महीन से चुन्नी थी, ये महीन चुन्नी बार-बार सरक रही थी, एक तो ये चुन्नी ढकने के लिए होती है या दिखाने के किये ये मेरे लिए रहस्य था अभी तक,
खेर ये चुन्नी सरक सरक कर माँ के सौंदर्य को और रहस्यमयी बना रही थी। छुप कम रहा था, दिख ज्यादा रहा था. आ का कामुक जिस्म.
मै हैरान था की मेरी माँ इतनी खूबसूरत भी हो सकती है, माँ की नाभि मानो कोई गहरी गुफा थी, जिसमें हर कोई खो जाना चाहता था। उनका लहंगा नाभि के तीन इंच नीचे बंधा था, ठीक उस जगह जहाँ से एक कामुक रास्ता गहरी खाई उतरता है, ऐसी खाई जो एक बार उतर गया वो वापस ऊपर नहीं आ सकता, माँ की नाभि के नीचे वो सपाट रास्ता साफ दिख रहा था,
रेशमा ने लहंगे के नीचे कुछ नहीं पहना था—उनकी कच्छी तो शाम की चुदाई के दौरान झाड़ियों में ही छूट गई थी। इस वजह से उनका लहंगा उनके जिस्म के साथ और भी चिपक रहा था, और हर बार जब वह नाचतीं, उसकी गांड की गोलाई, गोरी चिकनी पिंडलियों की हल्की-हल्की झलक हर किसी को मंत्रमुग्ध कर रही थी।
रेशमा का नाच किसी जादू से कम नहीं था। उनकी कमर की लचक, उनके कूल्हों की मटक, और उनके उभारों की हल्की-हल्की हिलोरें—सब कुछ इतना कामुक था कि बारात में मौजूद हर मर्द की नजरें उन पर ठहर सी गई थीं। उनकी आँखें, जो काजल से सजी थीं, एक गहरी और बोलती हुई चमक लिए थीं। उनके होंठों पर हल्की सी गुलाबी लिपस्टिक थी, जो उनकी मुस्कान को और आकर्षक बना रही थी।
उनके खुले हुए बाल हवा में लहरा रहे थे, और हर बार जब वह नाचते हुए पलटतीं, उनके बाल उनके चेहरे पर आकर एक रहस्यमयी पर्दा सा बना देते, जिसमे से एक कामुक पसीने से भीगा चेहरा बहार झाँक रहा होता,
रेशमा का जिस्म पहले से ही वासना की आग में जल रहा था। शाम की चुदाई ने उनके शरीर में एक अजीब सी बेचैनी भर दी थी, और बारात का यह जोश भरा माहौल उनकी उत्तेजना को और बढ़ा रहा था।
वह नाचते हुए बार-बार अपनी चुन्नी को ठीक करतीं, लेकिन उनकी हर हरकत में एक अजीब सी शरारत थी, जैसे वह जानबूझकर अपनी सुंदरता को और उभारना चाह रही हों।
बारात के बीच एक बूढ़ा-सा, मैला-कुचैला बैंड वाला था, जो ढोल बजा रहा था। उसका चेहरा झुर्रियों से भरा था, और उसकी दाढ़ी में सफेदी साफ दिख रही थी। लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वह इस बारात में सिर्फ ढोल बजाने नहीं, बल्कि कुछ और ही मज़ा लेने आया हो। लगता था कि उसने भी थोड़ी सी दारू पी रखी थी, क्योंकि उसका जोश और ढोल की थाप बाकी बैंड वालों से कहीं ज्यादा तेज़ थी।
वह मेरी माँ रेशमा के आसपास ही मंडरा रहा था, जैसे उसकी सारी दुनिया रेशमा के इर्द-गिर्द घूम रही हो।
जहाँ-जहाँ माँ नाच रही थीं, वह उनके पीछे-पीछे ढकड़-ढकड़ ढोल बजा रहा था। उसकी ड्रम स्टिक कई बार माँ की कमर और कूल्हों को छू जाती थी, और कुछ मौकों पर तो वह जानबूझकर स्टिक को माँ रेशमा के लहंगे के ऊपर से उनकी गांड की दरार में डाल देता था। यह हरकत इतनी सटीक थी कि रेशमा को इसका पूरा अहसास हो रहा था।
वह समझ रही थीं कि यह बूढ़ा बैंड वाला जानबूझकर ऐसा कर रहा था, लेकिन वह नाच में इतनी मगन थीं कि उन्होंने इसे अनदेखा करने का फैसला किया। आखिर सालों बाद माँ को अपना जीवन जीने का मौका मिला था, नाचने का अवसर मिला था, वहाँ गांव मे कहा इस तरह की आजादी मिलती है, मेरे पापा वो डाकियानुसी समाज वहाँ ये सब कहा संभव हो पाता..
माँ आज एक अलग ही दुनिया मे थी, उसे कोई फ़िक्र नहीं थी कौन क्या सोच रहा है? कौन क्या देख रहा है?
आज ये dj था, उस पर बजते गाने थे और माँ का यौवन था.
लेकिन जो भी सब कुछ मन्त्रमुग्ध कर देने वाला था, मै उनका सगा बेटा होते हुए एकटक उनको देखे जा रहा था, उस बेपरवाह खूबसूरत यौवन का गवाह बन रहा था जिस से आज तक मै अछूता था.
या फिर मेरा ही नजरिया बादल गया था किसी स्त्री को देखने का? मुझे नहीं पता, जो था अच्छा था.
नाचते नाचते माँ की नजर उस बूढ़े से मिलती तो वह एक शरारती मुस्कान के साथ अनजान बन जाता, जैसे कुछ हुआ ही न हो।
रेशमा भी हल्के से मुस्कुरा दे देतीं, माँ की मुस्कान में एक अजीब सी बेपरवाह कामुकता थी। उनकी आँखों में एक शरारत थी, जैसे वह इस खेल का मज़ा ले रही हों।
बूढ़े की हरकतें रेशमा के जिस्म में एक सिहरन पैदा कर रही थीं। उनके लहंगे के नीचे कुछ न होने की वजह से हर बार जब ड्रम स्टिक उनकी गांड को छूती, उनके जिस्म में एक अजीब सी उत्तेजना दौड़ जाती।
मेरी माँ रेशमा की साँसें तेज़ हो रही थीं, और उनकी कमर की लचक अब और लयबद्ध हो गई थी।
इसी बीच एक बार तो बूढ़े ने अपनी ड्रम स्टिक को माँ की गांड की दरार में इतनी गहराई तक डाला कि माँ के हलक से एक हल्की सी सिसकारी फुट पड़ी, वो बुरी तरह चौंक उठी, माँ ने पलटकर उसकी ओर देखीं, और उनकी आँखों में एक मिश्रित भाव था—थोड़ा गुस्सा, थोड़ी शरारत, और बहुत सारी उत्तेजना।
बूढ़े ने अपनी झुर्रियों भरी मुस्कान के साथ सिर झुका लिया, लेकिन उसकी आँखें रेशमा के जिस्म को टटोल रही थीं। रेशमा ने कुछ नहीं कहा, बस अपनी कमर को और मटकाया और नाच में मगन हो गईं।
यह कामुक दृश्य बारात के शोर-शराबे में गुम हो गया, लेकिन रेशमा और बूढ़े के बीच का यह अनकहा खेल हर किसी की नजरों से छिपा नहीं था। मै इस किस्से का गवाह था,
******
दूसरी तरफ पटनायक, जो बारात में अपना चुलबुला दबंग अंदाज़ लिए घूम रहा था, साला वो भी दारू पी कर मस्त हुए जा रहा था और मेरी मौसी के साथ डांस में मगन था। मौसी, जो अपनी उम्र के हिसाब से बेहद आकर्षक लग रही थी,
आज नीले रंग की साड़ी में किसी जवान हसीना सी लग रही थी। उनका जिस्म खुलकर थिरक रहा था, और हर अंग नाचते वक्त लय में हिल रहा था। उनकी कमर की लचक और कूल्हों की गोलाई हर किसी का ध्यान खींच रही थी। मौसी के स्तन इतने बड़े और सुडोल थे की ब्लाउज के बहार झाकने से परहेज नहीं कर रहे थे, ऊपर से नाच गाने के साथ अपनी खूबसूरती को सबके सामने बिखरे जा रहे थे,
मौसी ने भी, शायद माँ की तरह, अपनी साड़ी के नीचे कुछ नहीं पहना था, जिसका अंदाज़ा उनके उछलने से लग रहा था।
साड़ी मे उनकी बड़ी गांड बुरी तरह थिरक रही थी,
पटनायक इस मौके को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था। वह मौसी के साथ नाचते हुए बार-बार उनकी कमर को छू रहा था, और कभी-कभी जानबूझकर उनके कूल्हों पर हाथ मार देता था।
मौसी, जो पूरी तरह मस्ती के मूड मे थी, इस छेड़खानी का मज़ा ले रही थी। वह हँसते हुए पटनायक को और उकसा रही थी, उनकी आँखों में शरारत साफ झलक रही थी।
पटनायक की हरकतें देखकर बारात में मौजूद कुछ लोग हँस रहे थे, बारात मे ये हसीं ठिठोली आम बात हुआ करती है, वही कुछ बूढ़े बुजुर्ग मौसी की इस बेशर्मी पर आँखें तरेर रहे थे।
लेकिन बारात का माहौल इतना जोशीला था कि किसी ने इसकी परवाह नहीं की।
*******
मेरी मामी जो की अपनी बोल्ड और बिंदास पर्सनैलिटी के लिए जानी जाती थीं, अब्दुल और आदिल के साथ डांस में व्यस्त थी। उनका हरा लहंगा उनके जिस्म की हर वक्र रेखा को उभार रहा था। मामी की कमर पर लहंगा पूरी तरह से फिट बैठा था, मामी की नाभि और खूबसूरत गद्दाराया पेट अपनी खूबसूरती के पुरे चरम पर था, उनकी चोली उनके उभारों को और आकर्षक बना रही थी।
अब्दुल और आदिल, मामी को घेरे हुए थे, जैसे इस माल पर सिर्फ उनका ही हक़ हो, मामी के साथ खुलकर मस्ती कर रहे थे। कभी वे उनकी कमर से कमर मिलाकर नाच रहे थे, तो कभी उनके कूल्हों पर हल्के से हाथ मार देते,
मामी को इस सब का कोई ऐतराज़ नहीं था। वह हँसते हुए अब्दुल और आदिल को और उकसा रही थी। उनकी हँसी और उनकी चाल में एक अजीब सी कामुकता थी। उनका लहंगा भी, शायद जानबूझकर, इतना नीचे बंधा था कि उनकी नाभि और उससे नीचे का हिस्सा साफ दिख रहा था।
अब्दुल और आदिल की आँखें बार-बार मामी की कमर और कूल्हों पर टिक रही थीं, और उनकी हरकतें बता रही थीं कि वे इस मौके का पूरा लुत्फ़ उठा रहे थे।
*******
मेरी दीदी अनुश्री जो की अपनी शादी के बाद से और भी निखर गई थी, लाल लहंगे में किसी रानी की तरह लग रही थी। उसकी आँखों में शरारत और उसकी मुस्कान में एक अजीब सा नशा था।
मोहित और प्रवीण तो जैसे उसके गुलाम ही बन गए थे, बारात में भी उसके आसपास ही मंडरा रहे थे, उसकी हर अदा पर फिदा थे।
दीदी अनुश्री का नाच इतना कामुक था कि हर कोई उसकी ओर देखने को मजबूर हो रहा था। उसकी कमर की लचक, उसके कूल्हों की गोलाई, और उसकी चोली के नीचे झाँकती नाभि—सब कुछ मानो किसी जादू की तरह था।
मोहित और प्रवीण ने अनुश्री को बीच में घेर लिया था। दोनों उसके साथ नाच रहे थे, और उनकी हरकतें बता रही थीं कि वे अनुश्री के करीब आने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते। मोहित ने एक बार अनुश्री की कमर को हल्के से छुआ, और अनुश्री ने हँसते हुए उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में एक अजीब सी स्वीकृति थी, जैसे वह इस छेड़खानी का मज़ा ले रही हो। प्रवीण भी खुलकर अनुश्री के साथ नाच रहा था। उसने अनुश्री की चुन्नी को हल्के से खींचा, और अनुश्री ने हँसते हुए उसे रोकने की नाकाम कोशिश की।
गाना भी तो सालों ने ऐसा लगा दिया था, चोली के पीछे क्या है, चोली के पीछे... "
डांस का ये दौर तो जायज ही था.मै
मै, अमित, इस सब को देख रहा था। सभी अपनी मस्ती मे मस्त थे, मेरी माँ रेशमा, मौसी, मामी, और अनुश्री—सब अपने रंग में रंगी थीं। बारात का माहौल इतना जोशीला था कि मैं भी इस उत्साह में खो सा गया था।
मेरी नजरें बार-बार माँ की ओर जा रही थीं, जिनका सौंदर्य और कामुकता आज किसी को भी मंत्रमुग्ध कर सकती थी। बूढ़ा बैंड वाला, पटनायक, अब्दुल-आदिल, और मोहित-प्रवीण—सब अपने-अपने तरीके से इस रात को यादगार बना रहे थे।
मेरे मामा रमेश, जो बारात के इंतज़ाम में व्यस्त थे, कभी ट्रैफिक को कंट्रोल करने में लगे थे, तो कभी बारात को जल्दी दुल्हन के घर पहुँचाने की जुगत में।
उनकी हरकतें देखकर हँसी भी आ रही थी, क्योंकि वह पूरी तरह से चूतिया-सा बर्ताव कर रहे थे। कभी वह डीजे वाले को गालियाँ दे रहे थे कि धुन तेज़ करो, तो कभी बारातियों को चिल्लाकर आगे बढ़ने को कह रहे थे। लेकिन उनकी इस भागदौड़ में भी एक अजीब सा मज़ा था।
घर का आदमी जिम्मेदारी मे मरा जा रहा था, वही घर की औरते अपनी हसरतो को जी रही थी, एक एक पल का लुत्फ़ उठा रही थी,
असल मे मर्दो के लिए शादी मतलब काम काम और जिम्मेदारी ही होता है, असली मजा घर की औरते ही करती है नाच गाना, हसीं मज़ाक सब उनके ही हिस्से का खेल है.
**********
खेर लगभग डेढ़ घंटे के नाच-गाने और ढोल-नगाड़ों के बाद, बारात दुल्हन के घर पहुँच गई।
दुल्हन का परिवार दरवाजे पर स्वागत के लिए खड़ा था। फूलों की मालाएँ, आरती की थाल, और मिठाइयों का आदान-प्रदान हुआ।
नवीन को घोड़ी से उतारा गया, और उसका स्वागत बड़े धूमधाम से हुआ। बारातियों का जोश अब भी बरकरार था, लेकिन अब बैंड वालों का काम खत्म हो चुका था।
ढोल-नगाड़ों की आवाज़ धीमी पड़ गई, और बैंड वाले वापस मैरिज हॉल की ओर रवाना हो गए, जहाँ खाने-पीने और रुकने का इंतज़ाम था।
दुल्हन के घर स्वागत का रिवाज़ किया जा रहा था, हम परिवार वाले इसी मे व्यस्त थे, घोड़ी उतराई सगुन वगैरह मे.
वही मंगेश, मेरे जीजा मतलब अनुश्री का पति, अब तक पूरी तरह से नशे में धुत हो चुका था। वह बारात में झूलता हुआ नाच रहा था, लेकिन अब उसकी हालत ऐसी थी कि वह किसी भी पल गिर सकता था।
अनुश्री, जो पहले तो हँसते-मुस्कुराते हुए नाच रही थी, अब थोड़ी चिंतित दिख रही थी। उसने मंगेश को सहारा देने की कोशिश की, लेकिन मंगेश का भारी शरीर उसकी पकड़ से बार-बार छूट रहा था।
मोहित और प्रवीण जो की अनुश्री के साथ ही बने हुए थे, "दीदी, जीजा जी तो गए लगता है! अब इन्हें सम्भालना पड़ेगा।" मोहित और प्रवीण ने मंगेश को थाम लिया.
अनुश्री ने एक हल्की सी मुस्कान दी, लेकिन उसकी आँखों में कुछ और ही बात थी।
"इनका ऐसा ही है, पता नहीं जब झीलती नहीं है तो पी क्यों लेते है, चलो इन्हें कमरे में लेटा आते है, वरना माहौल ख़राब करेंगे, बेइज़्ज़ती और होंगी यहाँ "
मोहित और प्रवीण ने मंगेश को जैसे तैसे सहारा देकर वापस मरमैरिज हॉल तक आ गए, जहाँ बारतियों के रुके और खाने की व्यवस्था की गई थी..
रिसेप्शन का प्रोग्राम भी यही था,
तीनो लोग मंगेश को ले कर दूसरी मजिल पर आ गए जहाँ, जहाँ सभी ने अपना अपना रूम सेलेक्ट कर लिया था.
अनुश्री के कमरे मे लड़खड़ाते हुए पहुंच गए आखिर " हमफ़्फ़्फ़... उउउफ्फ्फ.... दीदी.... ये क्या है? कैसे झेलती हो आप इन्हे " मोहित ने दरवाजा खोलते हुए कहा.
अनुश्री कुछ ना बोली, जैसे मोहित ने उसकी उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया हो, उसका चेहरा कुछ उतर सा गया.
मंगेश अब पूरी तरह से बेहोश-सा था। उसका शरीर लुड़क रहा था, और जैसे ही उसे बिस्तर पर लिटाया गया, वह ढेर हो गया। उसकी साँसें भारी थीं, और वह गहरी नींद में चला गया था। बीच-बीच में वह कुछ बड़बड़ा रहा था, लेकिन उसकी आवाज़ इतनी धीमी थी कि वह इस माहौल को भंग नहीं कर सकी।
कमरे में हल्की सी रोशनी थी, जो दीवारों पर लगे पीले बल्बों से आ रही थी।
खिड़की के बाहर से बारात और कुछ गानों की की हल्की-हल्की आवाज़ें अभी भी सुनाई दे रही थीं, लेकिन कमरे में एक अजीब सा सन्नाटा था।
अनुश्री चुप थी, जैसे किसी ने उसके जीवन मे कमी को उजागत कर दिया है.
"अबे तु चुतिया है ना एकदम " प्रवीण बर मोहित को डांटते हुए कहा.
"कोई बात नहीं दीदी हम है ना, " प्रवीण ने आगे बढ़ अनुश्री के कंधो पर हाँथ रख दिया.
अनुश्री, जो अब तक मंगेश की चिंता में थी, कमरे में खड़ी थी। उसका लाल लहंगा अब भी उतना ही आकर्षक लग रहा था, जितना बारात में था।
उसकी चोली के नीचे उसकी कमर की नाज़ुक रेखाएँ और गहरी नाभि साफ दिख रही थी। उसकी साँसें थोड़ी तेज़ थीं, शायद मंगेश की हालत की वजह से, या शायद बारात के उस उत्तेजक माहौल ने उसके जिस्म में पहले से ही आग लगा रखी थी।
मोहित और प्रवीण, जो मंगेश को लिटाने के बाद कमरे में ही खड़े थे, अब अनुश्री की ओर देख रहे थे। उनकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, और कमरे का माहौल अचानक गर्म होने लगा था।
अनुश्री ने एक गहरी साँस ली और अपनी चुन्नी को कंधे से हल्के से सरका दिया । उसकी आँखें अब मोहित और प्रवीण पर टिकी थीं।
"क्या देख रहे हो?" उसने शरारती अंदाज़ में पूछा, और उसकी मुस्कान में एक अजीब सा नशा था।
मोहित, ने हँसते हुए कहा, "दीदी, आपने तो डरा ही दिया th हमें "
"बेवकुफो, ये ऐसे है तभी तो मै वैसी हूँ " अनुश्री ने हसते हुए अपनी चुन्नी को फर्श की धूल चाटा दि, उसके उन्नत स्तन साफ उजागर हो गए.
"इउउउफ्फ्फ... वाह... दीदी.आज आप इतनी खूबसूरत लग रही हैं कि नजरें हट ही नहीं रही।" प्रवीण, जो थोड़ा हिचक रहा था, ने भी हल्के से सिर हिलाया, जैसे वह मोहित की बात से सहमत हो।
अनुश्री ने एक कदम आगे बढ़ाया, और उसकी चाल में वही लचक थी जो बारात में सबको दीवाना बना रही थी। उसने अपनी कमर को हल्के से मटकाया, और उसकी नाभि की गहराई कमरे की हल्की रोशनी में और चमक उठी।
"तो फिर रुक क्यों गए? बारात तो खत्म हो गई, और तुम्हारे जीजा भी,"अनुश्री की आवाज़ में एक मादकता थी, जैसे वो इसी ही पल के इंतज़ार मे थी।
मंगेश की मौजूदगी, जो बिस्तर पर बेहोश पड़ा था, इस पल को और भी उत्तेजक बना रही थी। अनुश्री की आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वह इस जोखिम भरे पल का पूरा लुत्फ़ उठाना चाहती हो।
"जो तुमने मेरा काम किया था उसका ईनाम देने का वक़्त आ गया है " अनुश्री ने बड़ी मादकता के साथ अपने बालो को सर के पीछे बांधते हुए कहा,
उसकी गोरी त्वचा कमरे की रोशनी में चमक रही थी। मोहित ने एक कदम आगे बढ़ाया और अनुश्री की कमर को हल्के से छुआ। उसकी उंगलियाँ अनुश्री की नाभि के आसपास घूमीं, और अनुश्री की साँसें और तेज़ हो गईं।
"मोहित, ये गलत है देखो तुम्हारे जीजा यही सो रहे है " उसने धीमी आवाज़ में कहा, लेकिन उसकी आँखों में विरोध की जगह एक अजीब सी मादकता थी।जैसे उकसा रही हो ऐसा करने को, मंगेश की मौजूदगी, जो बिल्कुल पास ही बेहोश पड़ा था, अनुश्री के लिए इस पल को और भी रोमांचक बना रही थी।
उसका जिस्म पहले से ही उत्तेजना की आग में जल रहा था, और अब यह आग और भड़क उठी थी।
प्रवीण, जो अब तक चुप था, अब और नहीं रुक सका। वह अनुश्री के पीछे खड़ा हो गया और उसकी कमर को धीरे से सहलाने लगा। अनुश्री के जिस्म में एक सिहरन दौड़ गई, और उसने अपनी आँखें बंद कर लीं।
कमरे में अब केवल उनकी साँसों की आवाज़ और बाहर से आने वाली हल्की-हल्की ढोल की थाप सुनाई दे रही थी। मोहित ने अनुश्री के चेहरे को अपने हाथों में लिया और धीरे से उसके होंठों को चूमा।
अनुश्री ने कोई विरोध नहीं किया; बल्कि, उसने मोहित को और करीब खींच लिया। उसकी गर्म सांसे मोहित के जिस्म मे घुलने लगी, अनुश्री का जिस्म पूरी तरह से उत्तेजना मे कांप रहा था।
अनुश्री ने धीरे से मोहित की कमीज को खींचा और उसे उतार दिया। उसकी उंगलियाँ मोहित की छाती पर चलने लगी, उसने एक शरारती मुस्कान के साथ मोहित की ओर देखा।
वह धीरे से नीचे झुकी और मोहित के पैंट के बटन को खोलने लगी। मोहित की साँसें तेज़ हो गईं, आँखों में एक अजीब सी उत्तेजना लिए अनुश्री ने मोहित के लंड को अपने हाथ में ले लिया और उसे धीरे-धीरे सहलाने लगी।
अनुश्री रुकने के मूड मे नहीं थी, ना ही इतना समय था, जो था यही पल था,
उसकी उंगलियाँ इतनी नाज़ुक थीं कि मोहित के जिस्म में सिहरन दौड़ गई। अनुश्री ने धीरे से अपने होंठों को मोहित के लंड पर टिका दिया, उसे चूम लिया।
उसकी गर्म साँसें मोहित को और उत्तेजित कर रही थीं।अनुश्री ने मोहित के लंड को अपने मुँह में पुकककम.. से भर लिया और धीरे -धीरे चूसना शुरू किया।
उसकी जीभ मोहित के लंड के चारों ओर घूम रही थी, और हर बार जब वह उसे और गहराई तक लेती, मोहित की सिसकारियाँ कमरे में गूंजने लगती।
अनुश्री की आँखें मंगेश की ओर थीं, जो बिल्कुल पास ही बेहोश पड़ा था। यह अहसास कि उसका पति बिल्कुल पास है, और वह मोहित के साथ इस तरह का अंतरंग पल जी रही है, अनुश्री को और भी उत्तेजित कर रहा था।
उसकी साँसें तेज़ थीं, और उसका जिस्म अब पूरी तरह से वासना की आग में जल रहा था।
प्रवीण से रुका नहीं गया वो अनुश्री की गांड को सहलाने लगा। उसने अनुश्री के लहंगे को पूरी तरह से उतार दिया, और उसकी नंगी जाँघें अब कमरे की हल्की रोशनी में चमक रही थीं।
प्रवीण ने अनुश्री की गांड को सहलाया, और उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे उसकी गांड की दरार में घूमने लगीं। अनुश्री ने एक हल्की सी सिसकारी भरी, और उसकी आँखें बंद हो गईं।
देर करना व्यर्थ था, मोहित ने अनुश्री को बिस्तर पर धीरे से लिटाया और अनुश्री की जाँघों को पूरी तरह फैला दिया, गोरी गीली चिकनी चुत चमक उठी, अब ऐसा दृश्य देख भला कोई मर्द रुक सकता है, नहीं ना? तो मोहित कैसे रुकता वो धीरे-धीरे अपनी उंगलियों से अनुश्री की चूत को सहलाने लगा। अनुश्री की चूत पहले से ही गीली थी, और उसकी साँसें अब और तेज़ हो गई,
मोहित ने अपनी उंगलियों को अनुश्री की चूत में डाला, और उसकी हरकतें इतनी नाज़ुक थीं कि अनुश्री की सिसकारियाँ और तेज़ हो गईं। मंगेश की मौजूदगी, जो बिल्कुल पास ही था, इस पल को और भी रोमांचक बना रही थी।
अनुश्री की आँखें बार-बार मंगेश की ओर जा रही थीं, और यह जोखिम भरा अहसास उसे और उत्तेजित कर रहा था।मोहित ने अब अपने लंड को अनुश्री की चूत के पास ले गया और धीरे-धीरे उसे अंदर डालने लगा।
अनुश्री ने एक गहरी सिसकारी भरी, और उसका जिस्म सिहर उठा। मोहित की हर धक्के के साथ अनुश्री की साँसें और तेज़ होती जा रही थीं। उसकी चूत की गर्मी और गीलापन मोहित को और जोश दिला रहा था। अनुश्री ने अपने पैरों को मोहित की कमर के चारों ओर लपेट लिया, और उसकी हर सिसकारी कमरे में गूंज रही थी।
मंगेश की बड़बड़ाहट बीच-बीच में सुनाई दे रही थी, लेकिन वह इतना बेहोश था कि इस सब से पूरी तरह अनजान था।
प्रवीण, जो अब तक अनुश्री की गांड को सहला रहा था, अब और नहीं रुक सका। उसने अनुश्री को हल्के से उठाया और उसे अपनी ओर खींच लिया। अनुश्री अब मोहित के सामने थी, और उसकी चूत में मोहित का लंड अभी भी अंदर-बाहर हो रहा था। प्रवीण ने अनुश्री की गांड को सहलाया और धीरे-धीरे अपने लंड को उसकी गांड की दरार में धकेलने लगा।
अनुश्री ने एक गहरी साँस ली, और उसकी आँखें बंद हो गईं।प्रवीण ने धीरे-धीरे अपने लंड को अनुश्री की गांड में डाला, और अनुश्री की सिसकारी अब और तेज़ हो गई। एक साथ चूत और गांड में लंड का अहसास अनुश्री के लिए एक नया और उत्तेजक अनुभव था। उसका जिस्म अब पूरी तरह से उत्तेजना की चरम सीमा पर था। मोहित और प्रवीण की हरकतें एक लय में थीं, और अनुश्री की साँसें, सिसकारियाँ, और कमरे का गर्म माहौल सब कुछ मिलकर एक ऐसी तस्वीर बना रहा था जो उत्तेजना और कामुकता से भरी थी।अनुश्री की आँखें बार-बार मंगेश की ओर जा रही थीं, और यह अहसास कि उसका पति बिल्कुल पास है, उसे और भी उत्तेजित कर रहा था। मोहित और प्रवीण अब पूरी तरह से इस पल में खो चुके थे। उनकी हर धक्के के साथ अनुश्री की सिसकारियाँ और तेज़ होती जा रही थीं। अनुश्री का जिस्म अब उनके लिए एक खजाना था, और वे दोनों इस खजाने को लूट रहे थे।
लगभग एक घंटे तक यह सिलसिला चलता रहा। अनुश्री, मोहित, और प्रवीण ने उस रात को एक ऐसे अनुभव में बदल दिया जो शायद वे कभी नहीं भूल पाएंगे। मंगेश, जो अब भी बेहोश था, इस सब से अनजान रहा। बारात का शोर अब धीमा पड़ चुका था, और मैरिज हॉल में लोग खाने-पीने और हँसी-मजाक में व्यस्त थे।
ऊपर अनुश्री, मोहित प्रवीण मंगेश के पास बैठे हांफ रहे थे, अनुश्री पूरी तरह नंगी अपने बेहोश पति के सामने दो जवान लड़को के सामने नंगी हांफ रहु थू, उसकी चुत और गांड से वीर्य की धार बह रही थी.
पिक.... पिक.... पिक...... Hello हाँ भाई... बोलो... हुनफ़्फ़्फ़....
अनुश्री का फ़ोन बज उठा, सामने अमित था.
"कहा गायब हो गई, सब खाने पीने के लिए वेट कर रहे है, फैरो का मुहरत भी होने वाला है "
"हम्मफ़्फ़्फ़.... आई... भाई... हमफ़्फ़्फ़... अब्बी आई " अनुश्री हांफ रही थी.
"क्या हुआ दीदी, आप हांफ क्यों रही है? सब ठीक है ना "
"हाँ भाई, वो... वो... हंफ... तुम्हारे जीजा ज्यादा पी गए थे, मोहित और प्रवीण की हेल्प से इन्हे कमरे तक लाइ तो थक गई, मै आती हूँ अभी,पिक....
कहते हुए अनुश्री ने फ़ोन कट कर दिया.
"अनुश्री की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहाँ जाये "
मेरा दिमाग़ साय साय कर चलने लगा, साला ये मेरे दोस्त अकेले मेरी बहन के साथ, पक्का कुछ कांड कर गए होंगे....मेरा दिमाग़ दौड़ ही रहा रहा की.
"चले बेटा अमित खाना खा ले?" मामी की आवाज़ ने मेरा ध्यान भंग कर दिया.
मामी को देखते है दिल मे उठता गुस्सा शांत हो गया.
हम लोगो ने एक एक प्लेट उठा ली खाने के लिए.
लेकिन मेरी माँ नहीं दिख रही थी " वो कहाँ है? "
Contd....
2 Comments
Anushree pe to ek poora alag se episode banta hain..uski garmi theek se bahar nahi aa rehi hain.
ReplyDeleteKuch jyade hi jaldi mein sab nipat gaya.
भाई अनुश्री पर तो पूरी कहानी लिखी हुई है.
Deleteये तो बस उसका रेफ़्रेन्स है, ये बताने मे के लिए की वो किस परिवार से है.
अनुश्री की कहानी यहाँ पढ़े
https://kamukwine.blogspot.com/2023/03/blog-post.html?m=1