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पेशाब -3

 अपडेट -3



"वो... वो.... कक्क.... क्या?" साबी तो लूटी पीटी खड़ी थी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.


"पानी नहीं है पेशाब करना पड़ेगा " हरिया ने जरा ऊँची आवाज़ मे बोला जैसे साबी कम सुनती हो.


"लल्ल.... ललललल...... लेकिन.. लेकिन "

"क्या लेकिन अब कोई रास्ता भी नहीं है, सुनसान सड़क है, अँधेरी रात है कोई चोर लुटेरा या जानवर आ गया तो आपके साथ साथ हम भी गए"

कालिया ने सीधी बात कह दी.


मरती क्या ना करती "ठ... ठ....ठ..... ठीक है " साबी ने हामी भर दी.

"ठीक है तो करो "

"मै.... मै.... मै कैसे कर सकती हूँ?"


"वैसे ही जैसे अभी थोड़ी देर पहले हम लोगो पर मुता था "

साबी की अब घिघी बंध गई थी, हालांकि उसे पेशाब का प्रेशर महसूस हो रहा था.


पहली बार अनजाने मे हुआ लेकिन अभी वो दो अनजान लोगो के सामने कैसे कर सकती थी.


"वो... वो.... वो गलती से हुआ, मैंने देखा नहीं था, अब भला इतनी रात को झाड़ियों मे कौन क्या करता है?"

साबी ने गलती स्वीकार कर ली थी मन हल्का हो चला था, साबी उन दोनो की बात का जवाब दे रही थी.


"हम तो दारू पीने बैठे थे झाड़ियों मे, लेकिन ये हरामी पानी ही नहीं लाया, अभी पानी के बारे मे सोचते ही की आप ने पेशाब कर दिया हम लोगो पर " कालिया ने फिर बेचारा सा मुँह बना लिया.


"वो... वो... सॉरी मैंने देखा नहीं था " साबी झेम्प गई थी परन्तु सर नीचे किये एक बार मुस्कुरा दी.

बेचारे कालिया का चेहरा ही ऐसा बना हुआ था.


"तुझे मूत आ रहा है क्या कालिया?"

"नहीं यार दिन से एक बून्द पानी नहीं गया पेट मे मूत कहाँ से आएगा " कालिया ने जवाब दिया


दोनों ही पेशाब और मूत शब्द पर जोर दे रहे थे, नजरें साबी पे ही गड़ी हुई थी जैसे वो जज है फैसला उसके हाथ मे है.



"लललल.... लेकिन मै?"

साबी की आंखे बड़ी हो गई

"हमसे क्या शर्माना मैडम हमने तो देख ही लिया है झरना कहाँ से निकलता है.


"वो.. वो... वो.... अनजाने मे हुआ था " साबी सकपका गई एक अजीब सी गर्मी महसूस करने लगी थी इन दोनों की बातो से.


"हमें तो आई नहीं है पेशाब "

दो पल को सन्नाटा छा गया.

इन दोनों को आई नहीं थी, साबी शर्म के मारे कुछ कर नहीं सकती थी.

"एक तरीका है कालिया" हरिया ने कालिया को कुछ इशारा किया.

"क्या?" जवाब साबी ने दिया उसे उम्मीद की किरण नजर आई.

"मैडम वो... वो... हम थोड़ी दारू पी लेते है, पेट मे जाएगी तो पेशाब बन जायेगा "

"ददद.... दारू....?"

साबी चौंक गई, उसका पति वही पी के तो पड़ा था कार मे.

उसने खुद ने हलकी वोडका पी थी उसी का परिणाम था उसको तेज़ पेशाब का प्रेशर.

"हहह..... मममम....." साबी ने हामी भर दी.

साबी की हामी थी की अगले ही पल हरिया ने कुर्ता ऊपर कर देसी दारू की बोत्तल निकाल ली, और झट से प्लास्टिक ग्लास मे आधा भर दिया.

एक तीखी तेज़ दारू की स्मेल ने साबी के नाथूनो को भीगो दिया.

"ईई.... सससस.... ये क्या है?"

"दारू है मैडम देसी संतरा "

"जल्दी पियो अब " साबी अब काफ़ी घुल मिल गई थी उसे बस इस मुसीबत से छूटकारा चाहिए था.

"लेकिन पानी कहाँ है?" कालिया ने मुँह बना दिया

"अभी तुमने ही तो कहाँ दारू पी लोगे तो प्रेशर बन जायेगा "

"ये थोड़ी ना कहाँ था की सुखी पिएंगे मर नहीं जायेंगे ऐसे हम लोग "

" फिर पानी कहाँ से आएगा? " साबी ने मुँह बनाया

"आपकी चुत से थोड़ा पानी मिल जाता तो काम हो जाता " इस बार कालिया ने सीधा हमला कर दिया

"कककक..... ककककया?

"अरे आपकी चुत का पानी... मतलब पेशाब "


"छिईई.... ये क्या बदतमीजी है "साबी का हलक सुख गया, रोंगटे खड़े हो गए.

पहली बार कोई व्यक्ति उसके कोमल गुप्त अंगों को चुत बोल रहा था, बोल क्या रहा था उसका पानी मांग रहा था.

"अब यही तरीका है मैडम आपके हर बात मे नाटक है, हमें क्या गरज पड़ी है आपकी मदद की, चल कालिया पानी कही और देख लेंगे"

इस बार हरिया बहुत तेज़ बिगड़ा था.


साबी का गुस्स्सा फुर्ररर... हो गया ये समय नहीं था इन सब बातो का.

"ररर..... रुको...."

मूड कर जाते हरिया कालिया रुक गए.

दोनों ने अपने ग्लास आगे बढ़ा दिए.

साबी का मन मचल रहा था, ऐसे गंदे लोग वो पहली बार देख रही थी, कोई किसी का पेशाब कैसे पी सकता है याकककक.... "

"मैडम मज़बूरी मे सब करना पड़ता है " हरिया ने जैसे साबी का दिमाग़ पढ़ लिया हो.


"कार गरम है उसे पानी चाहिए और हमें दारू के लिए, आपका पेशाब शायद इतना ना निकले क्युकी अभी आप मूत के आई हो "

साबी सिर्फ सुने जा रही थी जैसे जैसे सुनती उसके रोंगटे खड़े हो जाते, ऐसा अतरंगी आईडिया उसने पहली बार सुना था.

साबी परेशान थी क्या करे क्या नहीं, मना करती है तो ये दोनों चले जायेंगे, वो क्या करेगी इस सुनसान सड़क पर.

"चलो कुछ नहीं से कुछ सही "

साबी को अब ये सब रोमांचित कर रहा था, उसके जांघो के बीच का हिस्सा कुलबुला रहा था.

ऐसा अनुभव उसने कभी नहीं लिया था.

ना जाने कैसे उसके हाथ आगे को बढ़ गए, कालिया हरिया के हाथो मे थामे ग्लास को जा पकड़ा, एक बार को हाथ जरूर काँपे थे परन्तु ये कहना मुश्किल था की वजह डर है या जिस्म मे उठता रोमांच.


"तुम दोनों उधर देखो " साबी ने ग्लास हाथ मे पकडे बोला.


"अब हमसे क्या छुपाना मैडम हम आपकी चुत देख ही चुके है हेहेहेहे..."दोनों एक साथ गन्दी हसीं हस दिए.


चुत देख लेने के अहसास से ही साबी का प्रेशर तेज़ हो गया, शादी के बाद ये पहली बार था जिनसे वो ऐसी बात सुन रही थी.

"ललललल... लेकिन "

"लेकिन क्या मैडम जी वैसे भी अंधेरा है कुछ नहीं दिखेगा "

कालिया ने बात काट दी.

साबी ने ग्लास कार की हेडलाइट के ऊपर रख दिए, और एक हाथ नीचे कर गाउन ऊपर करने लगी.


दिल धाड़ धाड़ कार बज रहा था जैसे सीना फट ही जायेगा, साबी ने गजब की हिम्मत दिखाई थी.

गाउन जांघो तक ऊपर चढ़ आया था, दो सुडोल मोटी चिकनी जाँघे रौशनी मे चमक उठी.

सामने कालिया हरिया दिदे फाड़े एकटक उस हसीन नज़ारे को देखे जा रहे थे.

साबी का हाथ आगे बढ़ा और ग्लास उठा गाउन के अंदर गायब हो गया.

"सससससससस...... इईईस्स्स्स..... एक सुरमई आवाज़ ने सुनसान माहौल को चिर के रख दिया.

पेशाब की मोटी धर ग्लास मे भरने लगी.

गरम गरम एक कामुक स्मेल लिया हुआ पेशाब.

साबी के चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे, जहा अभी कसमकास थी वो असीम शांति मे तब्दील होती जा रही थी.

सामने दोनों के चेहरे लाल थे, सीधा असर उनके पाजामे मे देखा जा सकता था, जहा एक बड़ा सा उभार आ गया था.


साबी ने झट से दूसरा ग्लास भी अंदर डाल लिया.

"ससससससस..... ईईस्स्स.....हुम्म्मफ़्फ़्फ़.... उफ्फफ्फ्फ़...." साबी ने एक राहत की सांस लेते हुए एक आखिरी बून्द भी टपका दी.

जिस्म ने एक झुरझुरी सी ली.

"ये लो....." साबी ने तुरंत हाथ आगे बढ़ा दिए.

दोनों ने तुरंत हाथ बढ़ा कर उन अमृत कलाश की थाम लिया.

वो अमृत कलाश ही तो था, जिसे साबी नामक अप्सरा उन काले दानवो को खुद अपने हाथ से दे रही थी.

"गट.... गट.... गटक.... गाटाक...." अभी साबी कुछ और सोच पाती की दोनों ने एक ही झटके मे साबी के गरम पेशाब से भरे दारू के पेग को एक सांस मे ख़त्म कर दिया.

"आआआहहहहह....."

"उफ्फ्फ्फ़....."

तीनो के मुँह से एक साथ एक आह निकल गई.

साबी तो जैसे आज दुनिया का आठवा अजूबा देख रही थी, उसने ऐसा कभी सपने मे भी नहीं सोचा था हालांकि कभी कभी किसी पब्लिक टॉयलेट मे जाती थी तो वहा की स्मेल उसे आकर्षित जरूर लगती थी परन्तु कोई उसके पेशाब को पी भी सकता है....


"आआआहहहहम..... मैडम क्या स्वाद है आपके पेशाब का, इतना गरम और नशीला उफ्फ्फ्फ़.... हुम्म्मफ़्फ़्फ़...."

एक गरम और अजीब सी गंध आ कर साबी के चेहरे से टकरा गई, इस स्मेल मे पेशाब और दारू का एक अजीब सा मिक्चर था.


ये गंध सीधी साबी के दिमाग़ मे चढ़ गई.

उसके जिस्म मे एक अजीब सी हलचल ने जन्म ले लिया था, उसके जांघो के बीच जैसे कुछ था जो बाहर निकलना चाहता था एक खुजली सी होने लगी थी.

चुपचाप दोनों को देखे जा रही थी.


"अब आएगा ना पेशाब "

दोनों ने ग्लास साइड रख अपने अपने पाजामे के अगले हिस्से को सहला दिया.

साबी की नजर उनपर ही टिकी थी, उनके हाथो का पीछा किया तो उसकी सांस जहा थी वही अटक गई "यययय.... ये क्या है...."

एक बढ़ा सा लंबा उभार बना हुआ था जिसे दोनों अपने काले हाथो से सहला रहे थे.


साबी का दिल धाड़ धाड़ कर बजने लगा "क्या... कककक... क्या ये वही है "

नहीं.... नहीं ऐसा तो नहीं होता.

अभी साबी किसी नतीजे ओए पहुंचती ही की.

"ससससससरररर...... करता दोनों का गन्दा पजामा नीचे की धूल चाटने लगा.

साबी की नजर पाजामे के साथ नीचे गई, और लगभग ही तुरंत ऊपर उठ गई,

पजामा नीचे है तो ऊपर क्या है....

अब लड़की कोई हो, कितनी शरीफ हो वो ये नजारा तो देखना ही चाहेगी, ये कोतुहल की बात है,

ऊपर से गरमाता जिस्म, मन मे उठती एक हलचल.

जैसे ही साबी की नजर सामने पड़ी, उसकी आंखे फ़ैलती चली गई, मुँह खुलाता चला गया जैसे अभी चीख पड़ेगी शायद चीख भी देती लेकिन सांस वही अटक गई.

सामने हरिया कालिया के भयानक काले लंड अपनी औकात मे खड़े थे.

साबी की जैसे सांस टंग गई थी. उसने ऐसा कुछ आज से पहले कभी देखा नहीं था.



"मैडम.... मैडम...."

साबी शून्य मे थी, कभी हरिया के लम्बे लंड को देखती तो कभी कालिया के हद से ज्यादा मोटे लंड को.

दोनों के लंड एकदम काले, बालो के घोसले से निकले हुए थे, लंड के नीचे दो बड़े बड़े टट्टे झूल रहे थे.

जैसे कोई आलू हो.

"मैडम.... मैडम.... थोड़ा पीछे हटो हम रेडिएटर मे पेशाब करते है.


Contd.....

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