अपडेट -2
उसकी गर्म साँसें और परफ्यूम से महकता हुआ बदन मेरे भीतर आग भरने लगा था, मेरी कनपटियाँ तपने लगीं और मेरा बदन भी जैसे विद्रोह करने पर उतारू हो गया।
उधर अदिति अभी भी मेरा हाथ पकड़े हुए अपनी योनि पर फिरा रही थी और मेरी उंगलियाँ योनि रस से भीगी हुईं केशों को ऊपर तक गीला किये दे रहीं थीं।
मैंने अपने मन को फिर पक्का किया और अपना हाथ उससे छुड़ाते हुए अलग कर लिया।
लेकिन बहूरानी तो बुरी तरह से जैसे कामाग्नि में जल रही थी, उसने मेरा हाथ पुनः पकड़ लिया और अपने बाएं नग्न स्तन पर रख दिया।
मेरी हथेली में उसकी कड़क घुंडी और मुलायम रुई के फाहे जैसे मृदु कोमल उरोज का मादक स्पर्श हुआ। एक बार तो मन किया कि दबोच लूं उसे और चूस लूं।
लेकिन पुत्रवधू के रिश्ते का ख्याल आते ही मैं रुक गया।
मेरा हाथ अभी भी बहू के स्तन पर रखा था और उसकी सांसों, धड़कन का स्पंदन मैं अपनी हथेली पर महसूस कर रहा था।
मैंने एक बार फिर अपने जी कड़ा करके सम्बन्धों की मर्यादा तार तार होने से बचाने की कोशिश कि और अदिति से खुद को छुडाया और दूसरी तरफ करवट ले ली।
लेकिन होनी तो प्रबल थी।
बहूरानी पर तो जैसे साक्षात् रति देवी सवार थी उस रात!
मेरे करवट लेते ही बहू मेरे ऊपर से लुढ़क कर मेरे सामने की तरफ आ गई।
‘आज क्या हो गया आपको? अब ऐसा भी क्या गुस्सा जी, ऐसे तो कभी भी नहीं किया आपने!’
मैं चुप रहा, बस इसी सोच में था कि जैसे तैसे इस पाप के कुएं से बाहर निकल पाऊं बस!
‘अच्छा ये लो, आज मुंह में लेकर चूसती चूमती हूँ इसे। आप हमेशा कहते थे न कि एक बार मुंह में ले के प्यार कर दो इसे। लेकिन मैंने कभी नहीं मानी आपकी बात…’ बहू बोली और मेरा लंड पकड़ कर उस पर झुक गई और अपनी जीभ की नोक से उसे छुआ, फिर फोरस्किन को नीचे खिसका के सुपारा अपने मुंह में ले लिया।
उस अँधेरी कोठरी में मैं विवश था पर लंड नहीं, वह तो बहू के मुंह में प्रवेश करते ही फूल के कुप्पा हो गया।
बहू ने पूरा सुपारा अपने मुंह में भर लिया और एक बार चूसा जैसे पाइप से कोल्ड ड्रिंक चूसते हैं। एक बार चूस के उसने तुरन्त मुंह हटा लिया, शायद पहली बार होने की वजह से।
बहू ने फिर मेरे लंड की चमड़ी को चार छः बार ऊपर नीचे किया जैसे मुठ मारते हैं और फिर लंड को फिर से अपने मुंह में भर लिया, इस बार उसने पूरा सुपारा मुंह में ले लिया, मुंह को ऊपर नीचे करने लगी जिससे लगभग एक तिहाई लंड उसके मुंह में आने जाने लगा।
कुछ देर ऐसे ही करने में बाद अदिति बहूरानी मेरे ऊपर आ गई और लंड को मेरे पेट पर लिटा दिया और अपनी चूत से लंड को दबा दबा के रगड़ा मारने लगी।
बहू के इस तरह रगड़ने से उसकी चूत के होंठ स्वतः ही खुल गये और मेरा लंड उसकी चूत के खांचे में फिट सा हो गया।
अदिति जल्दी जल्दी अपनी चूत को मेरे लंड पे घिसने लगी, उसकी बुर से रस बहता हुआ मेरे पेट तक को भिगो रहा था।
अचानक उसकी रगड़ने की स्पीड बहुत तेज हो गई और उसके मुंह से सिसकारियाँ निकलने लगीं ‘आह, जानू, कितना अच्छा लग रहा है इस तरह! आपके लल्लू पर अपनी पिंकी ऐसे रगड़ने का मज़ा आज पहली बार मिल रहा है… आह ओह… उई माँ… बस मैं आने ही वाली हूँ मेरे राजा… जानू। इसे एक बार घुसा दो न प्लीज, उम्म्ह… अहह… हय… याह… फिर मैं अच्छे से आ जाऊँगी!
ऐसा कहते हुए अदिति अपनी चूत को कुछ ऐसे एंगल से लंड पर रगड़ने लगी कि वो उसकी चूत में चला जाए।
लेकिन मैंने वैसा होने नहीं दिया इस पर अदिति खिसिया कर पागलों की तरह अपनी चूत को मेरे लंड पर पटक पटक कर रगड़ते हुए मज़ा लेने लगी। इधर मेरा हाल भी बुरा था और मैं जैसे किसी अग्नि परीक्षा से गुजर रहा था, मैं मन को बार बार आ रहे मज़े से भटकाने की कोशिश कर रहा था पर लंड पर मेरा कोई वश नहीं था, वो तो जवान कसी हुई नर्म गर्म चूत के लगातार हो रहे वार से आनन्दित होता हुआ मस्त था.
मैंने इस बार अपना ध्यान पूरी ताकत से हटाया और इधर उधर की बातें सोचने लगा.
उधर अदिति की चूत मेरे लंड पे रगड़ती हुई संघर्षरत थी और झड़ जाने की भरपूर कोशिश कर रही थी.
यहाँ वहाँ की बातें सोचते सोचते मुझे याद आने लगा जब मैं अपने बेटे की शादी से पहले अदिति को देखने गया था… उसका वो भोला सा मासूम चेहरा मेरी आँखों के सामने घूम गया. मैंने तो पहली नज़र में ही अदिति को पसंद कर लिया था, अच्छे घर की पढ़ी लिखी कुलीन कन्या थी, उसे भला कौन नापसन्द कर सकता था.
जब वो पहली बार मेरे सामने आई तो डरी हुई सी, घबराई हुई सी मेरे सामने सोफे पर बैठ गई थी, रानी मेरे साथ थी, उसने भी मुझे आँख के इशारे से कह दिया था कि उसे लड़की पसन्द है.
फिर बेटे की शादी भी हो गई और अदिति मेरी बहू बन कर घर आ गई.
कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस बहू को मैंने हमेशा अपनी सगी बेटी की तरह ही प्यार दिया उसकी चूत में कभी मेरा लंड जाएगा.
वो सब सोचते सोचते मेरा ध्यान भंग हुआ क्योंकि अदिति के नाखून मेरे कन्धों में गड़ रहे थे और वो लगातार अपनी चूत मेरे बिछे हुए लंड पर रगड़ती हुई अपनी मंजिल की तरफ पहुँच रही थी.
मेरा बदन भी किसी रिफ्लेक्स एक्शन की तरह अनचाहे ही अदिति का साथ देने लगा था और मैं अपनी कमर उठा उठा कर बहू रानी को सहयोग दे रहा था.
मेरा दिमाग जैसे कुंद हो गया था, कुछ भी सोचने समझने की हालत में नहीं था और शरीर तो जैसे विद्रोह पर उतारू हो गया था.
अचानक अनचाहे ही मैंने अदिति को अपनी बाहों में जोर से भींच लिया, उसके सुकोमल स्तन मेरे कठोर सीने से पिस गये. फिर मैंने पलटी मारी, अगले ही क्षण अदिति मेरे नीचे थी, मैंने झुक कर उसके फूल से गालों को चूमा और उसका निचला होंठ अपने होंठों में कैद करके चूसने लगा.
अदिति ने भी अपनी बाहें मेरे गले में लपेट दीं और मुझे चुम्बन देने लगी.
सब कुछ जैसे अनायास ही हो रहा था, पता नहीं कब मेरी जीभ बहू के मुंह में चली गई और वो उसे चूसने लगी. फिर अपनी जीभ निकाल के मेरे मुख में धकेल दी.
नवयौवना के चुम्बन का आनन्द ही अलग होता है, मुझे अपनी शादी की शुरुआत के दिन याद हो आये.
अब मैं अदिति की गर्दन चूम रहा था, कभी कान की लौ यूं ही चुभला देता और वो मेरे नीचे मचल रही थी चुदने के लिये… बार बार अपनी कमर उठा उठा कर मुझे जैसे उलाहना दे रही थी कि अब जल्दी से पेल दो लंड को!
लेकिन मैं अपने अनुभव से जानता था कि खुद पर काबू कैसे रखना है और अपनी संगिनी को कैसे चुदाई का स्वर्गिक आनन्द देना है.
मैं बहूरानी को चूमता हुआ नीचे की तरफ उतर चला और उसका दायां मम्मा अपने मुंह में भर के पीने लगा, साथ ही बाएं मम्मे को मुट्ठी में ले के धीरे धीरे खेलने लगा उससे!
मेरी हरकतें बहूरानी को कामोन्माद से भर रहीं थीं और अब वो मुझे अपने से लिपटाने लगी थी.
मैं भी अत्यंत उत्तेजित हो चुका था, बढ़ती उत्तेजना में मैंने बहूरानी के दोनों स्तन मुट्ठियों में जकड़ कर उसके गाल काटना शुरू कर दिया.
‘राजा जानू, गाल मत काटो ना जोर से! निशान पड़ जायेंगे तो सवेरे मैं पापा मम्मी को कैसे मुंह दिखा पाऊँगी?’ बहूरानी बहुत भोलेपन से बोली.
मुझे उसकी बात सुन मन ही मन हंसी आई कि तेरे पापा ही तो तेरे गाल काट रहे हैं और अब तेरी चूत भी मारेंगे!
फिर मैंने बहूरानी के गाल काटना छोड़ के उसके स्तनों को ताकत से गूंथते हुए पीना शुरू कर दिया.
जानू, अब सब्र नहीं होता… समा जाओ मुझमें! अब और मत सताओ राजा!’ बहूरानी की शहद सी मीठी कामुक थरथराती हुई आवाज मेरे कानों में गूंजी.
पर मैं तो अपनी ही धुन में मग्न था, मैं उसे पेट पर से चूमते हुए उसकी नाभि में जीभ से हलचल मचाते हुए उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में ले लिया.
बहू की पाव रोटी सी फूली गुदाज, नर्म चूत पर हल्की हल्की झांटें थीं और चूत से जैसे रस का झरना सा धीरे धीरे बह रहा था.
मुझसे भी सब्र नहीं हुआ और मैं चोदने की मुद्रा में उसकी टांगों के बीच बैठ गया.
अदिति ने तुरन्त अपनी टाँगें उठा कर अपने हाथों में पकड़ लीं, कोठरी के उस अँधेरे में दिख तो कुछ रहा नहीं था, मैंने अंदाज से अपने लंड को उसकी चूत से भिड़ाया और उसकी रसीली दरार में ऊपर से नीचे तक रगड़ने लगा.
‘अब घुसा भी दो जल्दी से… क्यों पागल बना रहे हो मुझे?’ बहू मिसमिसाती हुई सी बोली.
मैंने उस अँधेरे में बहूरानी की चूत का छेद अपनी उंगली से तलाशा और फिर सुपाड़े को की चूत के छेद पर टिकाया और फिर धकेल दिया आगे की तरफ!
चूत की चिकनाई की वजह से सुपारा गप्प से समा गया उसकी चूत में!
‘उई माँ… धीरे से डालो, कितना मोटा लग रहा है यह आपका आज!’ बहूरानी थोड़े दर्द भरे स्वर में विचलित होकर बोली.
लेकिन मैंने उसके दर्द की परवाह किये बगैर लंड को थोड़ा और आगे हांक दिया.
‘उफ्फ जानू, आपका यह लल्लू कितना मोटा लग रहा है आज! मेरी पिंकी की नसें खिंच गईं पूरी!’ बहूरानी बोली और फिर अपने हाथ चूत पे ले जाकर टटोलने लगी.
अभी मेरा सिर्फ सुपारा और जरा सा और ही घुसा था उसकी चूत में, अभी भी कोई सात आठ अंगुल बाहर था चूत से!
मैं इसी स्थिति में कुछ देर रुका रहा, फिर जब बहूरानी की चूत ने मेरा लंड ठीक से एडजस्ट कर लिया तो मैंने लंड को जरा सा पीछे खींच कर एक करार शॉट लगा दिया.
पूरा लंड फचाक से उसकी चूत में समा गया और मेरी झांटें बहूरानी की झांटों से जा मिलीं.
‘हाय राम… लगता है फट गई! उफ्फ.. आज पहली बार इतनी चौड़ी कर दी आपने! भीतर की नसें टूट सी गईं हैं.’ बहू कराहते हुए बोली.
मैं चुपचाप रहा और शांत लेटा रहा उसके ऊपर!
मेरा लंड बहूरानी की चूत में फंस सा गया था, जैसे किसी ने ताकत से मुट्ठी में जकड़ रखा हो.
मैंने एक बार लंड को पीछे खींचना चाहा तो लंड के साथ चूत भी खिंचती सी लगी मुझे!
मैं रुक गया, फिर मुझे लगा कि बहूरानी अपनी चूत को ढीला और शिथिल करने का प्रयास कर रही थी.
उस रात कोई पच्चीस छब्बीस साल बाद मेरे लंड को कसी हुई जवान चूत नसीब हुई थी. मुझे ठीक वैसा ही अनुभव हो रहा था जैसा कि मेरी शादी की शुरू के दिनों में मेरी पत्नी रानी की चूत देती थी.
कुछ ही देर बाद बहूरानी ने गहरी सुख की सांस ली और मेरी पीठ को सहलाते हुए अपनी कमर को हल्के से उचकाया जैसे उलाहना दे रही थी कि अब चोदो भी या ऐसे ही पड़े रहोगे?
बहूरानी का संकेत पाकर मैंने लंड को पीछे लिया और फिर से धकेल दिया गहराई तक!
बदले में बहूरानी के नाखून मेरी पीठ में गड़ गये और उसने अपनी चूत को उछाल कर जवाबी कार्यवाही की.
फिर तो यह सिलसिला चल पड़ा.. तेज और तेज! मैं लंड को खींच खींच कर फिर फिर उसकी चूत में पेलता और बहूरानी पूरी लय ताल के साथ साथ निभाती हुई अपनी कमर उठा उठा के अपनी चूत देती जाती!
जब मैंने अपनी झांटों से बहूरानी के भागंकुर को रगड़ना शुरू किया तो जैसे वो उत्तेजना के मारे पगला सी गई और किलकारी मार कर मेरे कंधे में अपने दांत जोर से गड़ा दिए और मेरे बाल अपनी मुट्ठियों में कस लिए और किसी हिस्टीरिया के मरीज की तरह पगला के अपनी चूत उछाल उछाल के मेरा लंड सटासट लीलने लगी अपनी चूत में… और उसकी चूत से रस का झरना सा बहते हुए मेरी झांटों को भिगोने लगा.
मैंने भी अपने धक्कों की स्पीड और बढ़ा दी, अब उस अँधेरी कोठरी में चुदाई की फचफच और बहूरानी की कामुक कराहें और किलकारियां गूँज रही थी-‘राजा, बहुत मज़ा आ रहा आज तो और जोर से करो न …फाड़ डालो इसे आज!
बहूरानी सटासट चलते लंड का मज़ा लेती हुई मुग्ध स्वर में बोली.
मेरी उत्तेजना भी अब चरम पर थी, मैं झड़ने की कगार पर था, मैंने बहूरानी के दोनों मम्मे कस के अपनी मुट्ठियों में जकड़ लिए और पूरी बेरहमी से उसकी चूत चुदाई करने लगा.
बहूरानी भी तरह तरह की सेक्सी आवाजें निकालती हुई अपनी चूत मुझे परोसने लगी.
मेरी भोली भाली सौम्य सी लगने वाली बहू अदिति कितनी कामुक और चुदाई में सिद्धहस्त थी मुझे उस रात साक्षात अनुभव हुआ.अपनी चूत को सिकोड़ सिकोड़ के कैसे लंड लेना है उसे बहुत अच्छे से पता था, वो मज़ा लेना जानती थी और मज़ा देना भी जानती थी.
मेरा बेटा सच में भाग्यशाली था जो उसे ऐसी प्यारी बीवी मिली थी.
इसके पहले तो मैं सिर्फ यही जानता था की अदिति पढ़ाई में इंटेलिजेंट और खाना बनाने में ही कुशल है बस!
‘जानू, निहाल हो गई आज मैं… ऐसा मज़ा पहले क्यों नहीं दिया आपने? बस चार छः करारे करारे शॉट और लगा दो, मैं आने ही वाली हूँ.’ बहूरानी मेरा गाल चूमते हुए बोली.
मैं भी झड़ जाने को बेचैन था, मैंने कुछ आखिरी धक्के बहूरानी के मनमाफिक लगा कर उसे अपने सीने से लिपटा लिया और मेरे लंड से वीर्य की पिचकारियाँ निकल निकल के चूत में भरने लगीं.
मेरे झड़ते ही बहूरानी ने मुझे कस के पूरी ताकत से भींच लिया और अपनी टाँगें मेरी कमर में लॉक कर दीं. वो भी झड रही थी लगातार और उसका बदन धीरे धीरे कंप कंपा रहा था.
जब बहू की चूत से स्पंदन आने शुरू हुए तो उस जैसा अलौकिक सुख मुझे शायद ही कभी रानी की चूत ने दिया हो.
बहू रानी की चूत सिकुड़ सिकुड़ कर मेरे लंड को जकड़ती छोड़ती हुई सी वीर्य की एक एक बूँद निचोड़ रही थी.
बहुत देर तक हम दोनों इसी स्थिति में पड़े रहे, फिर बहूरानी ने अपनी टाँगें फैला दीं, मेरा लंड भी झड़ कर ढीला हो सिकुड़ गया फिर चूत ने उसे बाहर धकेल दिया.
उधर बहूरानी गहरी गहरी साँसें भरती हुई खुद को संभाल रही थी, वो मुझसे एक बार फिर से लिपटी और मुझे होंठों पर चूम लिया. मैंने उसके मुंह से अपने वीर्य की गंध महसूस की जो संभोग के उपरान्त कुछ ही स्त्रियों के मुंह से आती है.
ऐसा कहीं पढ़ा था मैंने पहले… उस रात यह खुद अनुभव किया.
जल्दी ही बहूरानी का बाहुपाश शिथिल होने लगा और वो जम्हाई लेने लगी.
रात के तीन पहर लगभग बीत चुके थे, शायद तीन तो बज ही गये होंगे!
‘जानू, मैं तो सोऊँगी अब… आप भी सो जाओ, सुबह जल्दी उठ कर मेहमानों की चाय बनवाना मेरे जिम्मे है न!’ वो बोली और जल्दी से उसने अपने पूरे कपड़े पहन लिए और मुझसे लिपट कर सोने लगी.
वासना का तूफ़ान निकल जाने के बाद मुझे आत्मग्लानि होने लगी कि ये सब कैसे क्या हो गया!
मन को सांत्वना इस बात की जरूर रही कि मैंने अपनी बहूरानी का नग्न शरीर नहीं देखा, उसके स्तन, योनि इत्यादि अंग जिन्हें स्त्रियां हमेशा जतन से छुपा के रखती हैं, उन पर मेरी नज़र नहीं पड़ी.
कोठरी के उस अँधेरे में काम वासना का एक तूफ़ान उठा और चुपचाप से गुजर गया.
बहूरानी मुझसे लिपटी हुई किसी अबोध बालिका की तरह मीठी नींद सोने लगी थी. कुछ ही देर में उसकी साँसों के उतार चढ़ाव से मुझे स्पष्ट अनुभव हुआ कि वह थक कर चूर हुई गहरी नींद में सो चुकी थी.
अब मैं क्या करूं?
यह यक्ष प्रश्न भी मुझे बार बार कचोट रहा था और मुझे अदिति पर आश्चर्य भी हो रहा था कि कोई स्त्री ऐसी कैसे हो सकती है कि चुद जाए और यह भी न पहचान सके कि चोदने वाला उसका पति ही है या कोई और!!
बहरहाल जो भी हो, जो होना था, वो चुका था.
अदिति के गहरी नींद में सो जाने के बाद मैंने उसे धीरे से अपने से छुड़ाया और अपने कपड़े पहन दबे पांव कोठरी से निकल कर नीचे चला गया.
पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था, हर कोई गहरी नींद में था. घड़ी में देखा तो साढ़े तीन हो चुके थे.
बाहर पंडाल लगा था, मैंने गद्दों के ढेर में से दो गद्दे निकाले और सोये मेहमानों के बगल में बिछा ओढ़ के सो गया.
Contd....
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