हेलो दोस्तो मेरा नाम बबलू है, मै 18 साल का लड़का अभी पढ़ाई करता हूं... मेरे घर में मेरे पापा मेरी मां और मेरी बड़ी बहन है, जिसकी शादी हो चुकी है, बहन आपने ससुराल ही रहती है .... दोस्तो मेरे पापा एक सरकार नोकर है जिनकी इनकम टेक्स विभाग मे एक ठीक ठाक पोस्ट पर नोकरी है, माहिने के 45-50हजार रुपए सैलरी बाकी थोड़ा बहुत ऊपर से काम लेते हैं....
वही मेरे पापा 50 साल के बूढ़े थे और मेरी माँ 43 साल की जवान, ऐसा इसलिए क्युकी माँ अभी भी चुस्त दुरुस्त दिखती थी जबकि पापा हमेशा थके हारे नजर आते थे, सुबह ऑफिस, शाम घर खाना खा के सो जाना,
फिलहाल हम दिल्ली से सटे फ़रीदाबाद में रहते हैं लेकिन अभी एक हफ्ते पहले ही पापा का ट्रांसफर कर दिया गया है, हमग काफ़ी दुखी थे, ये शहर, यहाँ के दोस्त, स्कूल छोड़ के जाना था,
फरीदाबाद मे पापा को सरकार की तरफ से 1bhk का फ्लैट मिला हुआ था ..हम उसकी मे रहते थे...लेकिन इस बार पापा का ट्रांसफर एक देहात क्षेत्र में हुआ है...उत्तर प्रदेश का अलीगढ ...जिसमे एक क़स्बा है अतरोली... अतरोली आधा शहर आधा गाव है...वहां पर हमें 2कमरो का एक घर मिला है।
जिसे आम भाषा मे सरकारी क़्वाटर कहते है.
दोस्तो अगले हफ्ते मै मम्मी पापा हम तीनो एक नये शहर के लिये निकल पड़े... ... .एक ट्रक मे अपने घर का सारा सामान रखा और एक नया सफर के लिये निकल पड़े...... मै बहुत उदास था, मै नहीं जाना चाहता था अब खुद सोचे 18साल मैंने फरीदाबाद मे बिताया हो और फिर के दिन एकदुम से किसी अंजान शहर मे जाना पड़े जहा ना आपके कोई दोस्त हो ना कोई और फरीदाबाद एक शहर और अलीगढ एक गांव जहाँ सिर्फ खेत खलिहान हो .... आप खुद सोच सकते है एक नवयुवक के लिए ये कैसा अनुभव होगा.... मेरे दोस्त मुझसे बिछड़ रहे थे,
दोस्तो हम तीनो निकल चुके थे एक नए सफर की तरफ एक नयी जगह एक नया शहर मन मे उदासी थी...दोस्तों से बिछड़ने का दुख के साथ...करीब 6_7घंटों के सफर के बाद हम अपनी कार स्विफ्ट से अलीगढ पहुंच चुके थे.
दोस्तो जहाँ पापा को सरकार की तरफ से क्वाटर मिला था वो अलीगढ शहर से 15 किमी दूर था.... क्योंकि पापा का वर्किंग एरिया यहीं पर था...यही पापा को डेली ड्यूटी करनी होगी.... कुछ देर बाद पापा ने कार रोकी और बोला कि ये आ गया हमारा नया घर"
जेसे ही मेने बाहर देखा तो मै एकदम से चौंक गया,
चारो तरफ खेत ही खेत थे, खाली मैदान था, पेड़ पोधे थे, दोस्तो ये एक क़स्बा जैसा था, आधा गांव ही कह लीजिए,
मैंने देखा तो एक पुरानी 1 मंज़िला इमारत मेरे सामने थी, जिसपर पीला रंग की पुताई हो रही थी, एक छोटा सा गेट आगे कार पार्किंग करने की जगह, साइड मै फूल के गमले लगे हुए थे...जिस साइड हमारा घर था उसके साइड 10-12 और भी क्वार्टर बने हुए थे और घर के सामने की तरफ खाली एक दम खेत मैदान था,
मै सोच रहा था यहाँ मेरा मन केसे लगेगा यहा पर मै केसे रहूंगा, हे भगवान अन मै क्या करू.
मेरे घर से सामने 100 मीटर की दूरी पर जब मेरी नजर गई तो मै चोक गया, क्यूकी घर के सामने से थोड़ी दूर पर ही एक मीट की दुकान थी, एक बड़ी सी झोपड़ी के अंदर बनी हुई थी ये मीट की दुकान, और बाहर जलियो मे मुर्गिया बंद थी,
मेरी नजर वहां पड़ते ही मेरा मन उबकाई को हो गया,
ये कसाई की दुकान हमारे घर के बिल्कुल सामने ही मान लीजिए, हमारे घर मै तो कभी इस सब का नाम भी नहीं लिया जाता था, हम ऊँची जाती के शाकाहारी परिवार से बिलोंग करते हैं.. .प्याज़ लहसुन भी हमारे घर में नहीं बनता था.
मेरी मम्मी दोनों समय पूजा करती है आधे आधे घंटे तक और रोजाना सुबह-सुबह मंदिर भी जाती है.... और हमारे घर के सामने ये मीट की दुकान, अगर मम्मी देखेगी तो मम्मी तो पापा पर बहुत गुस्सा होगी, दोस्तो और तो और जब मेरी नजर उस कसाई की दुकान से थोड़ी और आगे पड़ी तब मैंने देखा वहां पर तो एक देसी शराब का ठेका है और एक अंग्रेजी शराब का ठेका गांव वाला ठेका,
हे भगवान पापा हमको कहां लेकर आ गए... .और ये दोनो दुकान घर से ज्यादा दूर नहीं थी, पर कर क्या सकते है पापा को ये सरकारी क्वार्टर मिला था, नौकरी तो करनी ही थी, वरना घर केसे चलता,
खेर मम्मी भी अब कार से उतरी और चारो तरफ देखने लगी...तभी मम्मी की नजर भी उसी कसाई की दुकान पर पड़ी वहा पर जाली मे बंद मुर्गिया फड़फड़ा रही थी, जेसे ही मम्मी ने देखा, मम्मी एकदुम से सहन नहीं कर पाये, और वेक वेक खो खो एकदम से मम्मी को उल्टी हो गई,
पापा को लगा कार मे बहुत देर बैठने की वजह से मम्मी को उलटिया हुई है, मम्मी ने बहुत बुरा सा मुंह बनाया और फिर पापा से कुछ कहने लगी....और उनसे पूछने लगी कि आपको और कोई जगह नहीं मिली थी क्या? पापा ने मम्मी को समझाया और घर के अंदर जाने को बोला.
मम्मी का दिमाग बहुत खराब हो गया था,क्योंकि मम्मी बहुत धार्मिक और संस्कारी किस्म की औरत थी... मम्मी ने कभी ऐसा कुछ नहीं देखा था... कुछ देर बाद मम्मी नॉर्मल हो गईं... और फिर हमारे सामान का ट्रक भी घर के बाहर आ गया... अब हम तीनों मिल कर सामान को उतारने लगें .... धीरे-धीरे सारा सामान हमने उतार लिया... लेकिन अलमीरा और बिस्तर उतारने में हमें काफी दिक्कत हो रही थी..
उधर सामने की और से जहाँ कसाई की दुकान थी वहा पर कुछ लोग खड़े होकर हमें देख रहे थे और आपस में कुछ बातें भी कर रहे थे किसी आम गाँव वालो की तरह हम उनके कोतुहाल का विषय थे,
तभी ट्रक ड्राइवर की आवाज़ आई "ये बिस्तर बहुत भारी है भाईसाहब किसी और को बुला लीजिए"
पापा बोले "मैं तो यहाँ पहली बार आया हूँ किसको बुलाऊ ".
तभी ट्रक ड्राइवर ने सामने खड़े लड़के को आवाज मारी "ओह्ह भाई जरा थोड़ी मदद करा दो हाथ लवगा दो"
वहा 2लड़के खड़े हुए थी कुर्ता पायजामा पहन कर.. ...अंखो मे काजल हल्की हल्की दाढ़ी, मुझसे करीब 2-3 साल बड़े होंगे,
असल में वो दोनो लड़के मूस****थे ..... कुछ देर बाद उनमें से कट्टा-कट्टा वाला लोंडा हमारे पास आया और दूसरा सामने कसाई की दुकान चला गया.... उधर मेरी मम्मी घर मे छोटा मोटा सामान अंदर जाकर रख रही थी,
मेरी मम्मी एक संस्कारी महिला है और घर हो या बाहर साड़ी ही पहनती है, लेकिन थोड़ा मॉडर्न तरीके की पहनती है, पहनती भी क्यों ना हम इतने साल दिल्ली से सटे इलाके मे रहते आये थे, जहाँ ये सब नार्मल था,
मतलब स्लेवलेस, ज्यादा तर लो कट ब्लाउज पहनती है, लेकिन इस गाँव के हिसाब से शायद ये नॉर्मल नहीं था,
मम्मी की हाइट 5.5 इंच रंग गोरा था, गोल मुंह पेनी नाक, मांग मे लम्बा सिन्दूर, हाथ मे लाल लाल चुड़िया, गाके मे पापा के नाम का मंगलसूत्र, नाक मे नोज पिन, पांव मे लाल महावर, माथे पर बिंदिया, आंखो मे काजल, गहरी लाल लिपस्टिक,
मेरी मम्मी को सजना सावरना बहुत ज्यादा पसंद था, मम्मी हाउसवाइफ थी लेकिन पूरा समय सज धज के रहती थी, लेकिन अगर घर में कोई बड़ा हो या कोई पराया मर्द हो तो मम्मी सर पर पल्लू रख लेती थी, क्योंकि संस्कारी बहुत थी मेरी मम्मी.
खैर ये तो थी मेरी संस्कारी पूजनीय माँ....दोस्तो कुछ देर बाद वो लड़का हमारे पास आया, मै उसे देखते ही पीछे हट गया, उसके कुर्ते पर खून की छिंटे लगे हुए थे, उसकी बॉडी से अजीब सी गंध आरही थी, मुझे समझते देर ना लगी की सामने मटन की दुकन इसकी ही है, जब मैंने उसकी दुकान का बोर्ड देखा तो लिखा था.
"असलम मीट की दुकान" और उसका एक फोटो भी लगा था जो इसी लड़के का था.
मतलब ये है असलम...
" क्या हुआ जी... नए आये धिक्खो हो... हां।" असलम ने.पापा को पूछा,
जवाब ट्रक ड्राइवर ने दिया "हाँ भाई थोड़ी मदद करवा दे ये बिस्तर उतारने में"
" बिल्कुल जी क्यों ना करेंगे तुम्हारी मदद आखिर तुम हमारे पड़ोसि जो हो" पापा उसे बड़ी गहरी नजर से देख रहे थे,
पापा को उसका यहां आना शायद पसंद नहीं अ रहा था, जैसे मुझे नहीं था, मुझे बहुत तेज गुस्सा आ रहा था, लेकिन बिस्तर भी उतरना था, आस पास और कोई मदद के लिए दिख भी नहीं रहा था, पापा ने उसकी बात का अच्छा अच्छा मे जवाब दिया, और फिर ड्राइवर ने उसको हाथ लगाने को बोला और बिस्तर को उतारने लगे, तय ये हुआ कि मैं और वो लड़का ट्रक के ऊपर रहेंगे ड्राइवर और पापा नीचे से बिस्तर को पकड़ेंगे.
एक कोने पर वो लड़का था और दूसरे पर मै,
तभी ड्राइवर का फ़ोन आया और बात करने लगा, इतने में मेरी नज़र उस लड़के पर गयी, वो बिस्तर के नीचे कुछ देख रहा था, बड़ी गौर से..
थोड़ी देर मे ड्राइवर आया और बिस्तर को ट्रक से खिसकाया तभी मैंने देखा वहां पर क्या था और वो लड़का बड़ी देर से क्या देख रहा था.
मुझे बहुत तेज गुस्सा आया परन्तु ध्यान बिस्तर उतरने मे लगाना पड़ा क्योंकि बेड काफी भारी था.
बिस्तर काफ़ी ज्यादा नीचे को खिसकाया जा चूका था, अब वो चुज साफ नजर आ रही ही, जो के बेड के नीचे पड़ी थी.
वहां पर बिस्तर के नीचे मेरी मम्मी की पैंटी यानी कच्छी पड़ी थी जो की शायद सामान रखने की गहमा गहमी मे मम्मी ने जल्दबाज़ी मे रख दी होंगी.
मम्मी की गुलाबी रंग की कच्ची थी जाली वाली और उसके बगल में दाग भी लगा हुआ था,
वो हरामजादा असलम बड़ी देर से मेरी संस्कारी मां की गुलाबी कच्छी को निहार रहा था...
मुझे बहुत तेज गुस्सा आया लेकिन जैसे तैसे मेने उस बात को इग्नोर किया और बिस्तर को उतारने मे मदद करने लगा.
वो बिस्तर उतार रहा था, उसने ट्रक में जगह बनते देख थूक दिया, थूक सीधा मेरी मम्मी की कच्छी के ऊपर जाकर गिरा.
उस हरामजादे कसाई ने मेरी माँ की कच्छी के ऊपर थूक दिया था हरामी कुत्ता साला, अब ये जानबूझ के किया या वाकई उसकी थूकने की चाहत थी, फिलहाल मै कुछ कह नहीं सकता.
बड़ी मुश्किल से बिस्तर हमने उतार दिया... और फिर बिस्तर को अंदर लेकर जाने लगे और रूम में बिस्तर को लेकर आ गये.
रूम मे मम्मी सामान को सेट कर रही थी...
मम्मी ने ब्लैक कलर की साड़ी लो कट ब्लाउज के साथ पहन रखी थी...
वो कसाई जेसे ही रूम मे घुसा और उसकी नजर मेरी मम्मी के ऊपर पड़ी....
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हम चार लोग बेड लेकर रूम में घुसे उधर मेरी मम्मीरूम मे झुक झुक के काम कर रही थी, मेरी माँ के स्तन ब्लाउज फाड़ बाहर आ जाने को तत्पर थे. तभी मेरी नज़र उस कसाईं लोंडे पर पड़ी, वो साला मादरचोद अपनी गंदी नज़र से मेरी मम्मी को ही देख रहा था, देख क्या रहा था खा जाने को लालाइयत दिख रहा था जैसे बकरी का कच्चा मांस हो उसके सामने.
और सच भी यही था मेरी माँ के बड़े स्तन ब्लाउज से लगभग आधे बाहर को मुँह बाये खड़े थे.
अभी तक मम्मी को पता नहीं था कि हम लोग रूम में आ गए हैं...
मैंने देखा असलम की नजर मेरी मम्मी के ब्लाउज पर थी, मम्मी का ब्लाउज थोड़ा मॉडर्न था,मतलब बैकलेस और डीप नैक, बाहे और कमर पीठ पूरी उजागर थी, पीछे से देखने पे पूरी नंगी ही थी बस एक काला धागा सा उस ब्लाउज को थामे हुए था,
मुझे लगा गलती से उसकी नजरवहा चली गयी होंगी, लेकिन वो अपनी नजर हटा ही नहीं रहा था,
तभी ड्राइवर ने उसे बोला "भाई कहाँ खो गया... इसको इधर रखवा दे"
तभी मम्मी ने हमारी तरफ देखा, और अपना पल्लू जल्दी से अपने सिर पर रख लिया, तुरंत तो मम्मी का ध्यान उस कसाई की तरफ नहीं गया, लेकिन कुछ देर बाद मम्मी की नजर उसके सफेद कुर्ते पर खून के छिटे और अजीब सी मुस्कान की वजह से उस पर गई और मम्मी का चेहरा एकदम से बदल गया.
मम्मी ने धीरे से छी बोला, और जल्दी से कमरे से बाहर चली गई,
कुछ देर बाद हमने बिस्तर को रूम में सेट कर दिया था, और फिर हम बाहर जाने लगे.
फिर वो कसाई पाप से पूछने लगा "बाबू जी कहाँ से आ रहे हो? क्या काम करते हो.?"
तो पापा ने उसको जल्दी जल्दी बिना मन के बता दिया कि "हम फ़रीदाबाद से हैं और मै एक सरकारी नोकर हू"
फ़िर पापा ने उसको मदद करने के लिए धन्यवाद बोला, और उसको शायद यहाँ से जल्दी जाने के लिए बोल रहे थे अपने मन में क्यूकी पापा को भी वोबंदा कुछ ठीक नहीं लग रहा था, असलम बार बार नजर घुमा कर इधरudhar देख लेता था,
"अच्छा बाबू जी चलता हूँ " असलम अचानक विदा ले के बाहर को निकल गया.
मुझे उसका व्यवहार कुछ अटपटा सा लगा, मै भी उसकेपीछे बाहर को निकला तो देखा वो सीधा ट्रक के पीछे जा ऊपर को चढ़ गया और पल भर मे ही नीचे को उतर अपनी दुकान की ओर बढ़ गया,
मैंने उसे जाते हुए अपनी कुर्ते की जेब मे कुछ डालते हुए देखा था, मै भी फ़ौरन ही उसके जाते ही ट्रक मे चढ़ गया, वहा कुछ भी खास नहीं था सब खाली था.
मै नीचे उतरने को ही था की नेरे दिमाग़ की बत्ती जल उठी, "वो पैंटी कहाँ है, गुलाबी जालीदार पैंटी? मेरी माँ की कच्छी?
वो गायब थी जिसे थोड़ी देर पहले मैंने बेड उतारते वक़्त देखा था.
मैंने उस पैंटी को याद करते हुए जाना की वो मेरी माँ की ही पैंटी थी,
आखिर क्यों वो कुत्ता मेरी मम्मी की पैंटी को लेकर गया था, मैंने सोचते हुए गौर किया की जो पैंटी वहां ट्रक के नीचे पड़ी हुई थी जिसकी असलम घुर घुर कर देख रहा था, उस पैंटी पर आगे की साइड एक बड़ा सा दाग लगा हुआ था, आगे से वो पैंटी बड़ी चिकनी टाइप थी, और पीछे से पूरी जाली वाली थी, मतलब मॉडर्न कच्छी थी, लेकिन उस कच्ची पर एक बड़ा सा दाग बना हुआ था। मुझे समझ नहीं आया कि वो दाग क्यू बना हुआ था?
क्यूकी पैंटी ज्यादा पूरानी नहीं लग रही थी, अच्छी कंपनी की पैंटी थी वो, मेरी मम्मी कपडे अच्छे खासे महंगे और ब्रांडेड ही पहनती थी.
ऐसा तो तब ही हो सकता है कि मम्मी ने वो पैंटी उतारी हो और उसको धोया नहीं हो, हो सकता है कि वो कच्छी मम्मी ने आज ही उतारी हो, पैकिंग की वजह से मम्मी ने शायद वो पैंटी धोई ही ना हो, क्यूकी आज हमरा सामान शिफ्ट हो रहा था, इसी वजह से मम्मी ने नहाते वक़्त उतार कर जल्दी जल्दी मे बिस्तर के नीचे डाल दि हो.
और वो बिस्तर मजदूरों ने ट्रक मे चढ़ा दिया था.
Contd.......
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