अपडेट -9
"अब जब तेरे पापा का साथ नही मिल पाता तो मैं क्या कर सकती हूँ ?" ममता अत्यंत दुखी लहजे में बोली. स्वयं उसका दिल ही जानता था कि यदि राजेश उसकी काम-पीपासा को शांत करने में सक्षम होता तो इस वक़्त उसे अपने सगे जवान बेटे के समक्ष यूँ नग्न हो कर नही बैठना पड़ता, मर्यादाओ का उल्लंघन नही करना पड़ता, पति-पत्नी के गुप्त क्रिया-कलापो का इतनी बेशरामी से खुलासा नही करना पड़ता.
"मा! औरत हो या मर्द, एक निश्चित सीमा तक अपनी शारीरिक ज़रूरतो को नज़र-अंदाज़ करना उचित है परंतु उससे ज़्यादा नही. मैने कयि ऐसी औरतो को परामर्श दिया है जिनके पति उनकी संतुष्टि नही कर पाते या कयि ऐसी जिनके पति का लंड खड़ा होना बंद हो गया हो या खड़ा तो होता हो मगर वे जल्द ही स्खलित हो जाते हों" ऋषभ ने कोई प्रवाह नही की, उसकी मा उसके बारे में क्या विचार कर रही होगी. उसे तो बस ममता के टूटने का इंतज़ार था.
"हट बेशरम! खुद तो कितने गंदे-गंदे लफ्ज़ बोल रहा है और अपनी मा से भी बुलवाने के लिए उसे विवश कर रहा था" अचानक ममता का दुखी चेहरा सुर्ख लाल हो गया, आँखें थी जो गहेन उत्तेजना से पल प्रति पल मूंडने को तैयार थी और उसे स्वयं मालूम नही चल पाया कि कब उसके दाएँ हाथ की उंगलियाँ उसकी चूत के सूजे और कामरस से चिपचिपाते हुवे होंठो को सहलाना शुरू कर चुकी थीं.
"इस में बेशर्मी की क्या बात! मैं उन औरतो को वाकाई सलाह देता हूँ कि वे अपनी चूत को अपनी उंगली से शांत कर सकती हैं" ऋषभ मुस्कुराया, अपनी मा के निरंतर हिलते हुवे हाथ से वह काफ़ी पहले जान गया था कि उसने अपनी चूत से खेलना आरंभ कर दिया है और तभी उसने इस विषय पर चर्चा भी छेड़ी थी.
"मैं खुद मूठ मारता हूँ मा! अब दिन में दस बार औरतो के गुप्तांगो की जाँच करूँगा तो मूठ तो मारना ही पड़ेगा ना" बोलते हुए आकस्मात ही वह अपना दायां हाथ अपने पॅंट में बने विशाल तंबू पर रख देता है. अपने पुत्र के निर्लज्जतापूर्ण कथन को सुन कर भी ममता ने अपनी चूत को सहलाना नही छोड़ा बल्कि ऋषभ के अपने तंबू पर हाथ लगाते ही वह तीव्रता से अपनी दो उंगलियों को अपनी चूत की अनंत गहराई के भीतर बलपूवक ठुस लेती है.
"तो शादी कर ले रेशू! बता अगर कोई अच्छी सी लड़की हो मन में तो मैं तेरे पापा से बात करूँ" ममता अपनी नशीली आँखों से अपने पुत्र की वासनमयी आँखों में झाँकते हुवे बोली, ऋषभ की मूठ मारने वाली बात सुन कर तो वह जैसे कामोत्तजना के शिखर पर ही पहुँच गयी थी.
"मुझे जैसी लड़की पसंद है मा अगर वैसी नही मिली तो मैं कभी शादी नही करूँगा" ऋषभ ने दोबारा मायूसी का नाटक किया.
"बता मुझे तुझे कैसी लड़की पसंद है ? मैं कहीं से भी ढूँढ कर लाउन्गि मगर मेरे बच्चे की ख्वाहिश को ज़रूर पूरा करूँगी" ममता उसका ढाढ़स बढ़ाते हुवे बोली, वह जानने को अत्यंत व्याकुल थी कि आख़िर किस तरह की लड़की उसके पुत्र को पसंद हो सकती है.
"तुम्हारे जैसी मा! हूबहू तुम्हारे जैसी" ऋषभ ने अपनी आँखें को अपनी मा के मम्मो से जोड़ते हुवे कहा, फॉरन ममता का दूसरा हाथ भी उसकी चूत के भांगूर को मसल्ने के लिए उस तक की दूरी को तय करना शुरू कर देता है.
"क्यों मुझ में ऐसा क्या ख़ास है रेशू ? मैं तो अब बूढ़ी हो चुकी हूँ" हर औरत की तरह ममता भी अपनी तारीफ़ सुनने को बेक़रार थी, उसे कुच्छ हद्द तक अंदाज़ा भी लग चुका था कि उसका पुत्र क्यों अपनी मा समान बीवी होने की कल्पना कर रहा है.
"किस अंधे ने कहा कि तुम बूढ़ी हो चुकी हो ? तुम्हारा चेहरा बेहद खूबसूरत है, तुम्हारे गाल इतने तरो-ताज़ा, तुम्हारे मम्मो का तो मैं आशिक़ बन गया हूँ और सब से बढ़ कर मा! तुम्हारे चूतड़. अगर आज मैने तुम्हे नग्न नही देखा होता तो मैं जान ही नही पाता कि मेरी मा दुनिया की सबसे कामुक स्त्री है" ऋषभ ने अपना अंतिम और अचूक अस्त्र छोड़ते हुवे कहा. वह कतयि झूट नही बोला था, आज तक उसकी देखी अनगिनत नग्न सुंदरियों में उसकी मा रति सम्तुल्य थी.
"बस कर रेशू! अब और कुच्छ ना तो मैं सुन सकूँगी और ना ही सुनना चाहती हूँ. तू अब मेरी जाँच शुरू कर दे बेटे, मुझे घर भी जाना है" ममता की चूत में अब उसकी उंगलियों का कोई काम नही बचा था, उसने अत्यंत तुरंत उन्हे अपनी चूत के भीतर से बाहर खींचते हुवे कहा और उंगलियों पर चिपका गाढ़ा कामरस अपनी घनी झांतो के ऊपर चुपाड़ने लगती है.
"अभी नही मा! अभी तो कुच्छ सॉफ ही नही हुवा, हमारी बात-चीत अभी अधूरी है" ऋषभ ने उसकी विनती को ठुकराया और अपना चेहरा आगे बढ़ा कर अचानक अपनी मा के मुलायम बाएँ गाल का हल्का मगर बेहद गीला चुंबन ले लेता है.
"उफ़फ्फ़! रेशू" ममता अपने चूतड़ो को कुर्सी पर रगड़ते हुवे सीत्कार उठी, जहाँ उसकी चूत रिसना बंद नही हो पा रही थी वहीं उसकी गांद का छेद अत्यधिक पसीने की वजह से अब खुजलाने लगा था.
"बोलो ना मा! क्या तुम सच में अपने समान लड़की को ढूंड सकती हो ?" ऋषभ उसी बात पर मानो आड़ चुका था.
"मगर मैं लड़की कहाँ हूँ रेशू! देख ना तेरी मा अब वाकाई बूढ़ी हो चली है" ममता ने अपनी बाहों को हवा में लहराते हुवे कहा, उसके चेहरे की भाव-भंगिमाएँ यह चिल्ला-चिल्ला कर कह रही थी.
"ऋषभ! उसका सगा पुत्र उसके बदन का चक्षु-चोदन करते हुवे उसकी नंगी जवानी की जम कर तारीफ़ करना शुरू कर दे"
"ऋषभ! उसका सगा पुत्र उसके बदन का चक्षु-चोदन करते हुवे उसकी नंगी जवानी की जम कर तारीफ़ करना शुरू कर दे" ममता के आकस्मात ही अपनी बाहों को फैला देने से उसका ऊपरी बदन बेहद तन जाता है. उसके मम्मो की स्वाभाविक बनावट तो पूर्व से ही कसावट से भरपूर थी, अब वे इस कदर उभर चुके थे मानो फूले हुवे गोल-गोल गुब्बारे हों.
"मैं भला तुम से झूट क्यों कहूँगा ? मैने कुँवारी लड़कियों के नंगे बदन भी देखे हैं मा मगर इतने कसे हुवे मम्मे उन में से किसी के नही थे" ऋषभ ने बताया, अपनी बेशरम आँखों को मंत्रमुग्ध कर देने वाले अपनी सग़ी मा के सुडोल मम्मो के ऊपर से हटा पाना उसके लिए असंभव था, वह जितना अधिक उन्हें घूरता जाता उतने ही वे उसे अपनी ओर आकर्षित करते जाते. यदि हक़ीक़त में उसके समक्ष बैठी हुवी उस नंगी, अत्यधिक रमणीय औरत से उसका मा नामक अत्यंत पवित्र रिश्ता ना होता तो कब का वह उसके प्रभावशाली मम्मो को निचोड़ना शुरू कर चुका होता.
"सिर्फ़ मम्मो के आंकलन मात्र से यह साबित नही हो सकता कि किसी बूढ़ी औरत को एक जवान लड़की की सन्ग्या दे दी जाए" ममता ने मुस्कुराते हुवे कहा और बिना किसी अतिरिक्त झिझक के अपने सुडोल मम्मे अपने दोनो हाथो के पंजो से तोलने लगती है मानो उनका वज़न पता करने की इक्शुक हो, साथ ही साथ उन्हे हौले-हौले सहला भी रही थी.
"बिल्कुल हो सकता है मा! तुम्हारी उमर की औरतों के मम्मे अत्यधिक चर्बी बढ़ जाने की वजह से अक्सर बेदोल हो कर नीचे को झूलने लगते हैं मगर मैं दावे से कह सकता हूँ कि तुम्हारे मम्मो को ब्रा की भी आवश्यता नही" जवाब में ऋषभ भी मुस्कुरा उठा. उसकी मा उसके समक्ष ही स्वयं अपने हाथो से अपने नंगे मम्मो को गूँथ रही थी, इतने कामुक द्रश्य से तो वह आज तक महरूम रहा था. कुच्छ ही लम्हो में बात इतनी तीव्रता से आगे बढ़ जाएगी शायद दोनो ही इससे पूर्णतया अंजान थे. पहले ममता का निर्लज्जतापूर्वक अपनी चूत से खेलना और अब अपने मम्मो से, उसकी असल कामोत्तजना को प्रदर्शित कर रहा था.
"तो तेरा कहना है कि अब मुझे ब्रा पहनानी छोड़ देनी चाहिए ?" ममता ने अत्यंत गर्व से कहा, हर स्त्री की तरह उसे भी अपने विशाल मम्मो की कठोरता पर शुरूवात से ही गुमान था. तत-पश्चात अपनी उंगलियों को वह गहरे भूरे रंगत के अपने तने हुवे निप्पलो की विकसित मोटाई पर गोल आक्रति में घुमाना आरंभ कर देती है.
"ह .. हां वाकाई मा! तुम कम से कम घर में रहते हुवे तो इन्हे राहत की साँसें लेने दे ही सकती हो" ऋषभ काँपते स्वर में बोला, चुस्त फ्रेंची की जकड़न में क़ैद उसका लंड भी उसके अल्फाज़ो की तरह ही फड़फडाए जा रहा था.
"मैं वादा तो नही करती रेशू! फिर भी कोशिश ज़रूर करूँगी" ममता अपने निप्पलो को अपने अंगूठे और प्रथम उंगली के दरमियाँ ताक़त से मसल्ते हुवे बोली, उसका आशय तो खुद उसकी समझ से परे था कि भविश्य में आख़िर किस को लुभाने के उद्देश्य से वह घर पर अपने उच्छल-कूद करते मम्मो को ब्रा की क़ैद से मुक्त रखने वाली थी.
"खेर और मुझ में ऐसा क्या है जो मुझे किसी जवान लड़की के सम्तुल्य दर्शाता है ?" उसने अत्यंत व्याकुल स्वर में पुछा, अपने पति या किसी पर पुरुष की तुलना में अपने सगे बेटे से अपनी नंगी काया की अश्लील प्रशन्षा सुनना उसे एक ऐसे अधभूत रोमांच से भरता जा रहा था मानो इस वक़्त अपने पुत्र के समक्ष उसका नग्न विचरण करना ही उसके जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि बन गयी हो. ऐसा भी कतयि नही था कि अब उसकी शरम का पूर्णरूप से अंत हो चुका था. अक्सर ममता समान संकोची स्त्रियाँ जिन्होने कभी अपनी सीमाओ का उल्लघन नही किया हो, जब पथ्भ्रस्ट होने की कगार पर पहुँचती हैं तब उन्हे पूर्व में रही अपनी सभी मर्यादाओ और अतम्सम्मान का कोई विशेष ख़याल नही रहता. वे महसूस तो अवस्य करती हैं कि उन्हे अपने डगमगाते हुवे कदम अत्यंत तुरंत वापस पीछे खींच लेने चाहिए मगर तब-तक परिस्थित उनके अनुकूल नही रह पाती और वे निरंतर गर्त में धँसती ही जाती हैं. अपनी जवानी से ले कर अब तक अनगीनती उसने अपने हुस्न की तारीफ़ सुनी थी मगर अपने सगे बेटे का नीचतापूर्णा हर संवाद उसे आनंदित ही नही वरण बेहद उत्तेजना भी महसूस करवा रहा था.
"वैसे तो तुम्हारे अंग-अंग में कामुकता व्याप्त है मा मगर तुम्हारे मांसल चूतड़! अगर में कवि होता तब भी तुम्हारे इन सुंदर चूतड़ो की तारीफ़ कर पाना मेरे लिए संभव नही हो पाता" अपने अमर्यादित कथन को पूरा करने के उपरांत ही ऋषभ पुनः अपनी मा के बाएँ गाल को चूम लेता है, इस एहसास के तेहेत की वह उसके मुलायम गाल को नही बल्कि उसके गद्देदार चूतड़ के पाटों को चूम रहा है.
"अब तो वाकयि मुझे लग रहा है रेशू कि तू अपनी मा का दिल रखने के लिए उससे झूट पर झूट बोले जा रहा है" ममता ने बेहद नखरीले अंदाज़ में कहा और फॉरन अपने बाएँ गाल पर चुपड़ी हुवी अपने पुत्र की लार को पोंच्छने लगती है.
"मैं झूट नही कह रहा! मा सच में तुम्हारे नंगे चूतड़ तो किसी नमार्द का भी लंड खड़ा कर देने में सक्षम हैं, मेरा तुम्हारा बेटा होना कोई अपवाद थोड़ी ना है" बोलते हुवे ऋषभ अपना चेहरा नीचे झुका कर अपनी पॅंट के तंबू को देखने लगता है ताकि उसकी मा भी उसके लंड के खड़े होने के विषय में जान सके और साथ ही उसके कथन की सत्यता की भी पुष्टि हो जाए.
"उफफफ्फ़" अपने पुत्र के विशाल तंबू को देखते ही ममता सिसकते हुवे अपने निप्पलो को बलपूर्वक उमेठ देती है, निश्चित ही वह अपनी सोच में अपने पति और पुत्र के लंड की आपस में तुलना करने लगी थी.
"ये पाप है रेशू! एक मा और उसके बेटे के दरमियाँ ऐसा रिश्ता कैसे हो सकता है ? मुझे तो यकीन ही नही हो रहा कि तेरी मा हो कर भी मैं तेरे सामने नंगी बैठी हुवी हूँ और इतनी नीचे गिर गयी कि अब तेरे गुप्ताँग को भी घूर्ने से खुद को रोक नही पा रही. देख! कितना तन चुका है अपनी सग़ी मा की निर्लज्ज हरक़तो की वजह से, ये सरासर ग़लत है बेटे" कहने के उपरांत ममता ने अपनी पलकें मूंद ली. अचानक से महसूस हुई शर्मिदगि के एहसास ने अपने आप उसके मूँह से ऐसे विध्वंशक अल्फ़ाज़ बाहर निकलवा दिए थे, जिन्हे सुन कर पल भर को ऋषभ भी सकते में आ जाता है.
"कैसा पाप मा ? हम कहाँ कुच्छ ग़लत कर रहे हैं ? मा-बेटे के रिश्ते से पहले तुम एक औरत और मैं एक मर्द हूँ. तुम जान-बूझ कर हर बार मेरा दिल दुखाने की चेष्टा करती हो जब कि थोड़ी देर पहले तुमने ही कहा था कि मैं तुम्हारे कारण उत्तेजित हो गया हूँ और अब अपनी उसी बात पर शोक भी मना रही हो" बोलते हुवे ऋषभ ने अपनी मा के माथे का गहरा चुंबन लिया और प्यार से उसके बालो पर अपना हाथ फेरने लगता है.
"मैं अपनी दोस्त ड्र. माया को कॉल कर देता हूँ, अब वे ही तुम्हारा बाकी का इलाज करेंगी" उसने अपने दूसरे हाथ को अपने पॅंट की जेब में डाल कर अपना सेल बाहर निकालते हुवे कहा, ममता की बंद पलकें फॉरन खुल जाती हैं जब वह ऋषभ की बात पर गौर फरमाती है.
"मैने यह भी तो कहा था कि मैं किसी गैर के सामने अपने कपड़े नही उतारुँगी और फिर भी तू अपनी मा को बदनाम करने से बाज़ नही आ रहा! नलायक" ममता ने अपने पुत्र की आँखों में झाँका और उसके हाथ से उसका सेल छुड़ा कर मेज़ पर रख देती है.
अब तो तुम अपने कपड़े उतार ही चुकी हो और मेरे रहते तुम्हे अपनी बदनामी का भी डर नही. तो फिर और क्या दिक्कत है मा ?" ऋषभ ने पुछा.
"यही तो सबसे बड़ी दिक्कत है रेशू कि तेरी मा होने के बावजूब भी मैने तेरे सामने अपने कपड़े उतार दिए, माना मैं दुनिया की नज़रो में बदनाम नही होउंगी मगर मेरी अपनी नज़रों का क्या ?" ममता ने अपने जवाब के अंत में एक नया सवाल जोड़ते हुवे कहा.
"तुम्हारे इलाज के खातिर तुम्हे इतना तो सहेन करना ही होगा मा" ऋषभ मुस्कुराया.
"मगर इलाज शुरू भी तो हो! तुझे बेशार्मो की तरह अपनी मा के मम्मो और चूतड़ो की झूठी तारीफ़ करने से फ़ुर्सत मिले तब ना" प्रत्युत्तर में ममता शिक़ायती लहजे में बोली.
"अभी लो! चलो खड़ी हो जाओ" ऋषभ ने खुद उसके कंधे पकड़ कर उसे कुर्सी से उठने में मदद की और तत-पश्चात उसके हल्के से उभरे हुवे पेट का ऊपरी तौर पर निरीक्षण करने लगता है, वह आशंकित हो चुका था कि कहीं उसकी मा उसकी गंदी बातों से बिदक ना पड़े और तभी फ़ैसला करता है कि अब वह अपने खुद के शारीरिक स्पर्श और अपनी कामुक हरक़तो के ज़रिए उसका मनोबल तोड़ने का प्रयास करेगा और बीच-बीच में अपने अश्लील अल्फाज़ो की भी सहायता लेता रहेगा.
"तुमने बताया था कि तुम्हे भूख नही लगती! क्या तुम्हे अपच या शौच करने में भी तकलीफ़ होती है मा ?" उसने पुछा और अपने दोनो हाथो की उंगलियों से अपनी मा के गुदाज़ पेट को कयि जगहो से दबाना शुरू कर देता है. उसका मन तो बहुत हुवा कि अपनी इस मन्घडन्त जाँच का फ़ायदा उठा कर वह अपनी जन्मस्थली, अपनी मा की चूत को भी एक नज़र देख ले मगर उसने खुद पर सैयम बनाए रखा ताकि कुच्छ वक़्त पश्चात अपने उसी सैयम को तरल सैलाब में परिवर्तित कर सीधे उसे अपनी मा की चूत की अनंत गहराई के भीतर खाली कर सके.
"न .. नही! अपच जैसा तो कुच्छ महसूस नही होता रेशू" ममता के कप्कपाते बदन के समान ही उसके लफ्ज़ भी काँपते हुवे से प्रतीत होते हैं. अपने बेटे के हाथो का चिर-परिचित स्पर्श पहले भी ना जाने कितनी बार वह अपने बदन पर महसूस कर चुकी थी परंतु तब उसका बेटा स्वयं उसी के आश्रित था, हर वक़्त अपनी मा के आँचल की ठंडी छाँव में छुपा रहता था. आज उसका वही बेटा एक जवान, बलिष्ठ और सक्षम युवक में तब्दील हो चला था, इतने विशाल लंड का स्वामी जो इस वक़्त उसकी सग़ी मा के नग्न बदन के प्रभाव से किसी सर उठाए नाग की भाँति फुफ्कार रहा था जैसे अपनी विकरालता से ही उसे अपनी मा के रोग का निदान करना हो.
"ह्म्म्म! और क्या शौच करने में दर्द महसूस होता है ?" ऋषभ ने पुछा.
"मतलब ?" अपने पुत्र के प्रश्न को ना समझ पाने से ममता ने सवालिया स्वर में कहा.
"देखो मा! अब तुम खुद मुझे मजबूर कर रही हो कि मैं तुमसे कोई बे-धन्गा सवाल करूँ ताकि तुम्हे फिर से मुझ पर बरसने का मौका मिल सके" ऋषभ ने चिढ़ने का नाटक किया.
"ओह्ह्ह्ह! तो तू फ्रेश होने के बारे में पुच्छ रहा था, नही कोई दर्द महसूस नही होता मगर ...." अपने कथन को अधूरा छोड़ते हुवे अचानक ही ममता के चेहरे पर शर्मीली सी मुस्कान व्याप्त हो जाती है.
"मगर क्या मा ?" ऋषभ ने अत्यंत तुरंत पुछा.
"मुझे! मुझे पेशाब करना है" ममता ने अत्यधिक लाज से परिपूर्ण अपने चेहरे को नीचे झुका कर कहा, यह कुच्छ वक़्त पिछे अपने सूखे गले की प्यास बुझाने के खातिर दो बॉटल पानी गाटा-गत पी जाने का ही नतीजा था.
"थोड़ी देर बाद कर लेना क्यों कि पहले मुझे तुम्हारे मम्मो की जाँच पूरी करनी है" ऋषभ गंभीरतापूर्वक बोला मानो उसे ममता की पेशाब करने वाली बात से कोई ख़ासा फ़र्क़ नही पड़ा हो बल्कि हक़ीक़त में अपनी मा के पेशाब करने के लिए पैर फैला कर बैठने और उसकी झांतो से भरी चूत की खुली व अत्यंत सूजी फांकों के बीच से निकलती हुवी पेशाब की धार की कल्पना मात्र से ही उसका लंड फॅट पड़ने की कगार पर पहुँच चुका था.
"मैं! मैं रोक नही पाउन्गि" अनायास ही ममता के मूँह से निकल गया, अब तो उसका अपने पुत्र से आँखें भी मिला पाना मुश्क़िल था.
"तुम्हे रोकने की कोशिश करनी होगी मा! तुमने बताया था कि तुम्हे पेशाब करने में जलन महसूस होती है, मुझे खुशी है कि अब उसका भी निरीक्षण मैं कर सकूँगा" अपना कथन पूरा करते ही ऋषभ ने अपने हाथो को अपनी मा के पेट से ऊपर की ओर सरकाना शुरू कर दिया, उसके दोनो हाथ उसकी मा के बदन की अत्यंत कोमल चॅम्डी से बेहद चिपक कर उसके मम्मो तक की दूरी को नाप रहे थे. ममता की कामोत्तजना में इतनी तीव्रता व्रध्हि होने लगी थी कि वा चाह कर भी अपने पुत्र के खुरदुरे पंजो और लंबी उंगलियों के घर्षण को अपने रूई समान मुलायम बदन से हटा नही पाती.
"मैं तेरे सामने पेशाब नही कर सकती रेशू, तू मुझे बाथरूम का रास्ता बता दे" एक अरसा बीत गया ममता को अपना शर्मसार संवाद कहने में, उसने खुद को कोसा कि क्यों उसने पेशाब करने की अपनी निर्लज्ज इक्छा का खुलासा किया, शारीरिक जाँच के समाप्त होने के उपरांत भी तो वा पेशाब कर सकती थी.
"क्यों ? अब पेशाब करने में क्या दिक्कत है ?" ऋषभ के हाथ उसकी मा के मम्मो की निचली सतह को छु रहे थे.
आह्ह्ह्ह्ह्ह रेशू" बिना उत्तर दिए ममता कसमासाई और कहीं उसकी सिसकारी पुनः ना फूट पड़े अपने निचले होंठ को अपने नुकीले दांतो के मध्य बलपूर्वक भीच लेती है.
"वैसे भी कॅबिन में बाथरूम नही है और क्लिनिक का मेन गेट भी खुला हुवा है" ऋषभ ने आकस्मात ही अपनी मा के कसावट से भरपूर दोनो मम्मो को अपने विशाल पंजो के भीतर कस लिया और कुच्छ लम्हे उनकी अन्द्रूनि कठोरता का लुफ्त उठाने के पश्चात अपने पंजो को मुट्ठी के आकार में सिकोड़ने लगता था.
"उफफफफ्फ़" ममता की आँखें मूंद गयी, अपने मम्मो पर अपने पुत्र की हथेलियों की रगड़ और दबाव झेल पाना उसकी सेहेन्शक्ति से बाहर था. उसकी चूत संकुचित हो कर गहराई में छुपे कामरस को अचानक से बाहर उगल देने को विवश हो उठती है और उसके निपल किसी नोक-दार अस्त्र के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं.
"क्या हुआ मा ? क्या तुम्हे अपने मम्मो में दर्द हो रहा है ?" ऋषभ ने चिकित्सक की भाँति पुछा जब कि वह अच्छे से जानता था कि उसकी मा की सीत्कार उसकी उत्तेजना को परिभाषित कर रही थी ना कि उसकी पीड़ा को.
"न .. नही" ममता ने अपने जबड़े भींचते हुवे कहा और अपने दाएँ हाथ की उंगलियों को तेज़ी से अपने सुडोल चूतड़ो की गहरी दरार के भीतर घुमाने लगती है, तत-पश्चात उसके बाये हाथ का अंगूठा और प्रथम उंगली भी उसकी चूत के भग्नासे को उमेठ देने के उद्देश्य से कुलबुलाने लगते हैं.
ऋषभ ने उस स्वर्णिम मौके का पूरा लाभ लिया, कभी अपने पंजो से वह ममता के मम्मो को बेदर्दी से गूँथने लगता तो कभी उंगलियों से हौले-हौले उन्हे सहलाना शुरू कर देता.
"मा! बचपन में मैने तुम्हारे इन्ही निप्प्लो को चूस कर तुम्हारा दूध पिया था ना ?" उसने अपनी उंगली का हल्का सा स्पर्श अपनी मा के तने हुवे दोनो निप्पलो पर देते हुवे पुछा.
"हां रेशू" ममता अब अपने पुत्र के पूर्ण नियन्त्र में आ चुकी थी, बिना झिझके वह अपनी गान्ड का छेद खुज़ला रही थी और तो और उसकी तीन उंगलियाँ बेहद तीव्रता से उसकी गीली चूत के संकरे मार्ग पर फिसलते हुवे चूत के अंदर-बाहर होने लगी थी.
"मैं तुम्हारे ऋण से कभी मुक्त नही हो सकूँगा मा! किस्मत की मेहेरबानी है जो आज जवानी में पुनः मैं अपनी मा के इन सुंदर निप्पलो को देख पा रहा हूँ" अपनी मा के निप्पलो को अपनी उंगलियों के दरमिया फसा कर ऋषभ उन से खेलना आरंभ कर देता है. आज उसका अपनी मा को देखने का नज़रिया पूरी तरह से बदल चुका था, वह उसे एक ऐसी प्यासी स्त्री जान पड़ रही थी जिसकी संतुष्टि को पूर्ण करना ही अब उसका प्रमुख लक्ष्य बन चला था.
"ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह रेशू! ऐसा मत कर बेटे! मैं तेरी सग़ी मा हूँ" ममता ने अपने पुत्र की वासनमयी सुर्ख आँखों में झाँकते हुवे कहा मगर खुद की नीच हरक़त को कतयि नही रोक पाती. वैसे तो औरतों को मर्द के इरादों का बहुत जल्दी पता लग जाता है, फिर भी इस पूरे अमर्यादित घटना-क्रम के दरमिया वह अक्सर अपनी सोच को अपने ममता तुल्य हृदय के आगे केवल वहाँ का नाम देती रही थी.
"मा! मुझे तुम्हारे मम्मो में कोई गाँठ नज़र नही आ रही" ऋषभ ने उसे बताया मगर उसके मम्मो और उन पर शुशोभित तने हुवे निप्पलो को मसलना नही छोड़ा और पहली बार ममता के मन में हुक उठी कि मा होने के बावजूद उसका बेटा उसकी नंगी काया पर बुरी तरह से मोहित हो चुका था.
"यह क्या है मा ?" अचानक ऋषभ ने पुछा और ममता की निगाहें भी अपने पुत्र की आँखों का पिछा करती हुवी अपनी कुर्सी, जिस पर वह काफ़ी देर से बैठी हुवी थी, उससे जुड़ गयी. कुर्सी की रेगजीन सतह उसकी चूत के कामरस से तर-बतर थी और जिसे देखते ही ममता पुनः उस पर विराजमान हो जाती है.
Contd.....
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