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नागमणि -20

 चैप्टर -3 नागमणि की खोज अपडेट -20


रुखसाना लगातार मदहोशी मे घिरती चली जा रही थी,उसका बदन उसका साथ नहीं दे रहा था वही हालत दरोगा वीर प्रताप के भी थे

उसका हाँथ लगातार रुखसाना के नंगे कंधे पे चल रहा था,हाथ स्तन की गोलाई तक आता और वापस चला जाता,रुखसाना चाहती थी की दरोगा स्तन पकड़ के भींच दे परन्तु दरोगा को इसी छुवन और छीटाकसी मे मजा आ रहा था.

रुखसाना मदहोशी मे अपनी गर्दन पीछे कुर्सी पे टिका देती है उसकी नजरें दरोगा की नशे मे लाल आँखों से टकरा जाती है नजरों मे एक मौन स्वस्कृति थी रुखसाना के.जैसा कहना चाहती हो भोग लो मुझे तड़पा क्यों रहे हो.

दरोगा के हाथ चलते चलते स्तन और लुंगी की बिच आने लगे ऊँगली लुंगी की लाइन से छूने लगी, रुखसाना के निपल कड़क हो के लुंगी से साफ झलक रहे थे,

दरोगा का मकसद पूरा होता दिख रहा था.

दरोगा से रहा नहीं जाता उसकी उंगलियां स्तन मे घुसती चली जाती है और सीधा निप्पल पे आ के रूकती है निप्पल बिलकुल कड़क हो के तने हुए थे जो की दरोगा की दो उंगलियों के बिच पीस गए थे.

रुखसाना :- आअह्ह्ह.... दरोगा जी बस इतना ही बोल पाई की हवस से उसकी आंखे बंद हो चली, डाकुओ के साथ तो खूब सम्भोग किया था रुखसाना ने आज एक पुलिस वाले के हाथ अलग ही रोमच पैदा कर रहे थे,ऐसा रुखसाना ने नहीं सोचा था.

उसके बदन मे एक पुलिस वाले की छुवन से अलग ही सुरसूरी उत्तपन हो रही थी एक कामुक अहसास था दरोगा के स्पर्श मे.

दरोगा की ऊँगली के बिच रुखसाना के निप्पल अठखेलिया कर रहे थे,वीरप्रताप बहुत दिनों से प्यासा था उसे कोई होश नहीं था वो लगातार रुखसाना के निप्पल को रगड़े जा रहा था,स्तन पे बँधी लुंगी की गांठ ढीली होती चली जा रही थी.

आअह्ह्हम...दरोगा साहेब रुखसाना मदहोशी मे सिस्कारिया भर रही थी.

दरोगा को कुछ सुनाई नहीं दे रहा था उसे सिर्फ एक नायब जवान जिस्म दिख रहा था. तभी लुंगी की पूरी गांठ खुल जाती है लुंगी सरकती हुई कमर मे जमा होने लगती है,अचानक हुए इस अहसास से दोनों ही दोहरे हो गए थे,दरोगा की तो आंखे ही फट पड़ी थी ऐसे नायब तराशे हुए स्तन देख के,कमरे मे स्तन के गोरेपान से उजाला फ़ैल गया था

रुखसाना तुरंत खुद को संभालती है और होने स्तन पे हाथ रख एक नाकामयाब कोशिश करती है अपनी इज़्ज़त ढकने की.

परन्तु हुआ इसका उल्टा रुखसाना के हाथ दरोगा के हाथ को अपने स्तन पे भींचते चले गए..

आआहहहहहह.....उम्मम्मम....

दरोगा अपने हाथ पर रुखसाना के हाथ का दबाव पा के उन्माद मे झूम उठा उसने भी कामवासना मे भर के जोर से स्तन को भींच दिया इतनी ताकत से भींचा की रुखसाना मे हलक से चीख निकल गई.

स्तन ने लालिमा छोड़ना शुरू कर दिया.

अब ये खेल शुरू हो गया था जिसमे दोनों की सहमति थी.दरोगा पूरी ताकत से रुखसाना के स्तन का मर्दन कर रहा था वही रुखसाना की सांसे धोकनी की तरह फूल रही थी जिस वजह से उसके स्तन फूल के दुगने हो गए थे.

आअह्ह्ह.... दरोगा जी और मसलिये इन्हे

दरोगा ऐसी विनती सुन मुस्कुरा उठा उसका इरादा कामयाब हो चूका था रुखसाना पूरी तरह गरम हो गई थी.

दरोगा वीरप्रताप मौके को भाँप के कुर्सी के आगे आ जाता है बिलकुल रुखसाना से चिपक के खड़ा हो जाता है उसकी पेंट का उभार रुखसाना के गाल को छू रहा था,रुखसाना उत्तेजना वंश अपने चेहरे को उस उभार पे रगड़ रही थी.

दरोगा स्तन को जोर जोर से भींचे जा रहा था इस उन्माद से उसका लंड पेंट फाड़ के बाहर आने को आतुर था वो अपनी चैन को निचे सरका देता है एक होरा नस से भरा लंड बाहर को गिर जाता है जो को सीधा रुखसाना के होंठ पे गिरता है

नशे मे धुत रुखसाना दरोगा के लंड को मुँह मे भर लेती है,गरम गीले मुँह मे लंड का अहसास पाते ही दरोगा सिहर जाता है वो तो इस सुख को भूल ही चूका था सालो बाद उसके लंड को सुकून मिला था, रुखसाना आंख बंद किये लपा लाप लंड चाटे जा रही थी,

हालांकि दरोगा का लंड 6इंच का ही था परन्तु सालो बाद हवस और कामवासना के संचार ने उसके लंड मे फौलाद भर दिया था,लंड किसी लोहे की दहकती छड़ जैसा गरम और सख्त हो गया था ये गर्मी रुखसाना के मुँह मे पिघल रही थी रुखसाना ने रंगा बिल्ला के बड़े बड़े भयानक लंड गले तक लिए थे वो दोनों किसी जानवर की भांति उसका मुख चोदन करते थे

लेकिन आज दरोगा जैसा सभ्य व्यक्ति प्यार से रुखसाना का मुँह चोद रहा था.

ये प्यार का कोमल अहसास पा के रुखसाना दोहरी हुई जा रही थी उसकी कामवसाना चरम पे पहुँचती महसूस हो रही थी,

उसकी चुत से पानी रिसने लगा,सफ़ेद पानी की बुँदे कुर्सी को भीगाने लगी.

दरोगा के लिए भी ये गर्मी अब सहन के बाहर हो चली थी सामान्य दिन होता तो दरोगा कबका वीर्य फेंक चूका होता परन्तु आज शराब का शुरूर और सालो बाद की हवस उसके लंड को ताकत दे रही थी वो मैदान मे जम के टिका हुआ था.

दरोगा सर निचे किये अपने लंड को लाल होंठो के बिच आता जाता देख रहा था थूक और लार निकल निकल के स्तन को पूरी तरह भीगा चुकी थी.

दरोगा कभी भी झड़ सकता था परन्तु आज वो ऐसा सुनहरा मौका इतनी जल्दी नहीं गवाना चाहता था.

वो अपने लंड को रुखसाना के मुँह से बाहर खिंच लेता है,रुखसाना हैरानी से दरोगा की एयर देखती है उसकी सूरत ऐसी थी जैसे किसी लॉलीपॉप चूसते बच्चे से किसी ने लॉलीपॉप छीन ली हो.

उसकी नजरों मे सवाल था...."ये क्यों किया मुझे चूसना है और चूसना है "

उसे दरोगा के लंड का स्वाद पसंद आया था.

दरोगा बिना कुछ बोले घुटनो के बल कुर्सी पे बैठी रुखसाना मे सामने झुकता चला जाता है.

रुखसाना कुछ समझ पति उस से पहले ही दरोगा ने अपना मुँह लुंगी के अंदर रुखसाना की दोनों जांघो के बिच घुसा दिया.

आअह्ह्ह.....शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....क्या महक है इस साली की चुत की चुत की महक दरोगा के रोम रोम मे उतरती चली गई.

उसकी जीभ स्वतः ही दांतो की रक्षा दिवार को भेदती बाहर आ गई और रुखसाना को चुत मे घुसती चली गई.

आअह्ह्ह.....रुखसाना मजे और लज्जत से सिसकारी भरती कुर्सी के सिरहाने पे सर टिका देती है उसकी आंखे बंद थी उसे दरोगा का प्यार से चुत चाटना पसंद आ रहा था,चुत का रस रिसता हुआ सीधा दरोगा के मुँह मे समा रहा था,अमृत पिता चला गया दरोगा....इस अमृत ने हवस का ऐसा संचार किया की दरोगा पूरा मुँह खोले रुखसाना की चुत पे टूट पडा.

यहाँ दरोगा चुत चाट रहा था....

वही दूर उसके घर मे उसकी पत्नी कलावती सुलेमान से चुत चाटवा रही थी.

माथे पे बिंदी गले मे मंगलसूत्र डाले कलावती चुत चाटवा रही थी,हाथो की चुडिया छन छाना रही थी

आअह्ह्ह...सुलेमान चूस अपनी मालकिन की चुत,खां जा इसे फिर पता नहीं कब मौका मिलेगा

कलावती हवस मे ना जाने क्या बड़बड़ा रही थी...सुलेमान था की चुत खाये जा रहा था कभी चुत के दाने को दांतो तले दबा देता तो कभी पूरी जीभ को गांड के छेद से के के चुत के दाने तक चाट लेता..

कलावती बिस्तर पे पडी सर इधर उधर पटक रही थी...चाटअककककक....छत्तकककक...

तभी दो जोरदार थप्पड़ कलवाती की चुत पे पड़ते है.

आह्हःब...सुलेमान उम्म्म्म...

ले मेरी रंडी मालकिन और ले चाटककककक....

कलावती की चुत लाल लाल हो गई थी थप्पड़ पड़ने से उसकी फूली हुई गोरी चुत थरथरा जाती.

सुलेमान को ये देख हवस का उन्माद चढ़ रहा था,कलावती भी कहाँ काम थी वो अपनी टांगे फैलाये थप्पड़ खां रही थी.

दोनों पति पत्नी हवस मे डूबे थे..

ना जाने किसकी हवस क्या परिणाम लाएगी.



काली पहाड़ियों के बिच स्थित तांत्रिक उलजुलूल की गुफा मे माहौल गरमा गया था,कामरूपा के गोरे बड़े स्तन देख तांत्रिक का मुँह खुला रह गया था "मेरी दोखेबाज पत्नी आज भी कितनी सुन्दर है आअह्ह्ह....."

उलजुलूल के मुँह से हलकी काम उत्तेजक सिस्करी निकल पड़ती है जिसे कामरूपा बेहतरीन ढंग से सुन पाई थी ये सिसकरी उसकी जीत की गवाह थी एक स्त्री का बदन अच्छे अच्छे तापस्वीयो को भी मजबूर कर सकता था इसका ताज़ा उदाहरण चोर मंगूस खुद अपनी आँखों से देख रहा था.

उसकी नजरें बराबर कामरूपा पे टिकी हुई थी हालांकि उसे कामरूपा का चेहरा नहीं दिख रहा था फिर भी उसकी हालत उसकी पीठ कमर देख के ही ख़राब थी.

ना जाने तांत्रिक किस तरह खुद को संभाल रहा था उसके स्तन देख के.

कामरूपा अपने स्तन को पकड़ के दबा देती है,aàहहह..... मेरे पति देव देखो ये किस तरह मचल रहे है इन्हे दबाइये ना.

ऐसा बोल वो अपने कड़क निप्पल को पकड़ के उमेड देती है एक पत्नी दूध जैसी रस की धार छूट के तांत्रिक के सांप जैसे लम्बे परन्तु सोये हुए लंड पे हीर जाती है.

तांत्रिक :- ये क्या है कामरूपा? बंद करो ये नाटक मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है तुम मे ना इन सब क्रिया कलापो मे,

तांत्रिक मुँह से विरोध तो कर रहा था परन्तु वो सख़्ती नहीं थी उसके शब्दों मे कामरूपा का गरम दूध उसके लंड पे पड़ते है उसके लंड ने जैसे करवट ली हो.

जैसे किसी सोते जानवर के मुँह पे पानी का छिंटा मारा हो और उस जानवर ने अंगड़ाई ली हो ऐसा ही हाल तांत्रिक के लंड का था.

कामरूपा :- गौर से देखो उलजुलूल मेरे महबूब कैसे तुम्हारा लंड मेरी खुसबू को पहचान रहा है.

ऐसा बोल वो तांत्रिक के पास पहुंच घुटने के बल बैठ जाती है अब उसके भारी स्तन सीधा तांत्रिक के लंड के सामने थे.

अपने भारी स्तनों को उठा के तांत्रिक के घुटनो पे रख देती है,उन्हें मसलने लगती है उसके स्तन के ठीक निचे तांत्रिक का बड़ा मोटा काला लंड झूल रहा था.

उलजुलूल बेबस था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था वो खुद को जितना रोकता उसका लंड कामरूपा के यौवन को देख अंगड़ाई लेने लगता..

तभी कामरूपा अपने दोनों स्तन को पकड़ के आपस मे सत्ता देती है और तांत्रिक की आँखों मे एक कामुक नजर डाल के अपने मुँह को खोल ढेर सारा थूक अपने स्तनों की घाटी मे गिराने लगती है...उसके स्तन के बिच का मार्ग बिलकुल चिकना चिपचिपा हो चला था.

स्तन छोड़ते है धम से तांत्रिक के लंड पे गिरते है स्तन की मार से लंड फड़फड़ाने लगता है,कामरूपा अपनी नजरें तांत्रिक की आँखों मे गाड़ाए हुई थी इस नजर मे कामवासना विधमान थी हवस से भारी नजरें थी कामरूपा की.

वो वापस से अपने स्तन को पकड़ के ऊपर उठा देती है और वापस स्वागत ढेर सारा थूक स्तन के बिच डाल देती है,ये नजारा देख उलजुलूल फड़फड़ा जाता है उसका सब्र जवाब देने लगता है बरसो से सोइ काम इच्छा अपने फन फैलाने लगती है...देखते ही देखते उसकी वासना उसके लंड मे सामने लगती है विशालकाय लंड खड़ा होने लगा था

वो कामरूपा की इच्छा को समझ रहा था उसकी का पालन करते हुए उलजुलूल अपने बड़े लंड को पकड़ कामरूपा के स्तन के बिच निचे से ठूस देता है.

स्तन घाटी इतनी गीली और चिकनी थी की लंड स्तन के बिच सरसरा जाता है.

कामरूपा अपने स्तन पकड़े तांत्रिक के लंड को पनाह दे देती है तांत्रिक का लंड थूक से सरोबर हो आगे पीछे होने लगा था.

कामरूपा के हाथ उलजुलूल के लंड की जड़ को थाम चुके थे,तांत्रिक मदहोशी मे अपनी जाँघे खोल देता है अब लंड स्तन चोदन के लिए पूरी तरह तैयार था जिसका फायदा कामरूपा बखूबी उठा रही थी.

कामरूपा के चेहरे पे कामुक और कुटिल मुस्कान थी उसने दूसरी सीढ़ी पे पैर रख दिया था.



कामरूपा सफलता की सीढ़ी चढ़ रही थी

वही थाने मे दरोगा नाकामयाबी की गहराई मे गिरता जा रहा था,रुखसाना की जांघो के बिच मुँह फ़साये अमृत पान कर रहा था.

लाप लाप....लप चाटे जा रहा था चुतरस था की खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था,रुखसाना की चुत जीभ की खुदरन से अति उत्तेजित हो के खुल बंद हो रही थी उसकी चुत का दाना पूरी तरह उभार के बाहर निकाल आया था जिसे दरोगा मे अपने होंठो के बिच भर लिया और चुभलाने लगा, यही वो छड़ था जहा रुखसाना अपना सब्र खो देती है उसकी चुत एक तेज़ पिचकारी के साथ दरोगा को दूर फेंक देती है दरोगा पीछे को और लुढ़क जाता है रुखसाना लगातार कामरस और पेशाब को धार दरोगा की छाती पे छोड़ती चली जा रही थी...


थाने का कमरा चीख से गूंज उठा था...आआहहहहह....दरोगा साहेब....उम्मम्मम...

रुखसाना हाथ को चुत पे रख निकलते झरने को रोकने का भरसक प्रयास करती है किन्तु आज जैसे रुखसाना झड़ी थी वैसा कभी नहीं हुआ था हाथ से लग के पेशाब इधर उधर बिखरने लगा.

आअह्ह्ह....

आआहहहह..उम्मम्मम.....माँ आअह्ह्ह....

इस आखरी चीख के साथ सब शांत हो गया था अजीब सन्नाटा पसर गया चारो और सिर्फ गिलापन था मादक खुसबू फैली हुई

थी.

निचे गिरा दरोगा हैरानी से आंखे फाडे इस बला के कामुक खूबसूरत औरत को सख्तीलित होते देख रहा था ऐसा नजारा ऐसा दृश्य उसने कभी सपने मे भी नहीं देखा था,"भला कोई स्त्री ऐसे भी झड़ सकती है "

आज जीवन मे कुछ नया सीखा था दरोगा ने.

रुखसाना कुर्सी पे पूर्णनग्न अवस्था मे बैठी थी, बैठी क्या थी झूल गई थी हाथ पाव ढीले पड़ गए थे चुत से अभी भी बून्द बून्द अमृत टपक रहा था फूल के पाव रोटी बन गई थी चुत.


शहर मे

सुलेमान भी दरोगा की बीवी पे टुटा हुआ था सुलेमान जितना मजबूत और काम क्रिया मे माहिर था उतनी ही कलावती भी जटिल औरत थी आसानी से झड़ने का नाम ही नहीं लेती थी.

सुलेमान चुत और गांड को चाट चाट के बिलकुल गिला कर चूका था,चुत चाटता तो ऊँगली गांड मे धसा देता, गांड चाटता तो चुत मे ऊँगली फसा देता,

कलावती इस क्रिया से मरी जा रही थी उसकी उत्तेजना का कोई ठिकाना ही नहीं था दोनों हाथो से अपने स्तन को मसले जा रही थी.जितनी ताकत से भींच सकती थी भींच रही थी,अपनी गांड उठा उठा के सुलेमान के मुँह पे पटक रही थी.

उस से रहा नहीं जाता वो उठ बैठती है और सुलेमान को निचे गिरा उसके मुँह मे गांड रख के बैठ जाती है.

कलावती शेरनी थी जब सम्भोग पे अति थी ये बात सुलेमान भी अच्छे से जनता था इसलिए वो पहले ही तैयार था निचे गिरते ही वो अपना मुँह खोल चूका तो और एक लम्बी सांस ले ली थी क्युकी अब अगली सांस लेने का मौका कब मिलेगा वो कलावती की मर्ज़ी पे निर्भर था.

कलावती अपनी गांड सुलेमान के खुले मुँह पे रख देती है उसकी चुत सुलेमान की नाक पे दब गई थी और मुँह मे गांड का छेद भरा था.

सुलेमान को सांस लेने की कोई जगह नहीं थी.

अब सुलेमान को जिन्दा बचने का एक ही तरीका पता था वो था कलावती को जल्द से जल्द सख्तीलित करवाना.

सुलेमान अपना पूरा मुँह खोले कलावती की गांड के बड़े छेद को चूस रहा था चाट रहा था उसकी नाक चुत मे घुसी हुई थी चुत से निकलती मादक महक सीधा नाक मे घुसती चली जा रही थी इसका असर ये हुआ की सुलेमानी काला बड़ा लंड पूरी तरह फन फनाने लगा,

कलावती आंख बंद किये हुए अपने स्तन मसल रही थी उसको जितनी उत्तेजना बढ़ती इतना ही दबाव सुलेमान के मुँह पे बढ़ता चला जाता.

नाक से गर्म सांसे सीधा चुत मे प्रवेश कर रही थी, सुलेमान ने जीभ गोल कर सीधा गांड मे घुसा दी एक मादक कसैला स्वाद मुँह मे घुलता चला गया,इस स्वाद ने सिर्फ मदकता थी जो सुलेमान को और ज्यादा उकसा रही थी,

सुलेमान जितना हो सकता था उतनी जीभ गांड के अंदर डाल देता है उसके होंठ गांड के चारो ओर चिपक गए थे थूक रिसता हुआ बाहर आ रहा था,ऊपर से कळवती की चुत लगातर पानी छोड़ रही थी जो निचे रिसता नाक से होता हुआ सुलेमान के मुँह मे समता जा रहा था.

सांसे थमने ही वाली थी की सुलेमान अपने मुँह को पूरी ताकत से भींच लेता है.

गांड के छेद को दांतो तले दबा के बाहर को खिंचता है...

आआआआह्हः.....उम्मम्मम कलावती दर्द ओर काम उन्माद मे तड़प उठती है उसकी चुत से अमृत धारा छूट पड़ती है.

आअह्ह्हम....सुलेमान मै गई सुलेमान उम्म्म्म....

भलभला के झड़ने लगी ढेर सारे सफ़ेद पानी से सुलेमान का चेहरा भीगने लगा काली दाढ़ी पूरी चिपचिपी हो गई. उन्माद और दर्द से कालावती अपनी गांड सुलेमान के चेहरे पे रागड़ने लगती है.


परन्तु सुलेमान अभी भी गुदाछिद्र को मुँह मे दबोच रखा.

तभी गांड से एक तेज़ हवा निकली...पुररररररर.....फुससससस...इसी के साथ कालावती आज़ाद हो गई ओर धड़ाम से पेट के बल गिर पडी.

गांड के छेद के चारो ओर दांतो के निशान थे,सुलेमान का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था.

सुलेमान :- साली रांड मै मर जाता अभी तक तो...

कालावती सिर्फ मुस्कुरा दी उसकी तरफ देख के एक हसीन औरत गांड बाहर निकाले चूड़ी छानछनाती उसे देखे जा रही थी सांसे दुरुस्त कर रही थी.

उसकी इस मुस्कुराहट से सुलेमान का पारा सातवे आसमान पे चढ़ गया.

उसने आव देखा ना ताव पलट के कालावती के पीछे आ गया और एक ही बार मे बिना किसी चेतावनी के पूरा 9इंची मुसल लंड सीधा गांड मे पेल दिया उसके टट्टे बहती चुत से टकरा गए.

थाअप्प्प....की आवाज़ के साथ साथ ही एक जोरदार चीख भी गूंज उठी ये चीख कालावती के खूबसूरत हलक से निकली थी...

आअह्ह्हम......हरामखोर जानवर ऐसे कौन चोदता है,छोड़ मुझे छोड़ साले..

कालावती की चीख पुकार का कोई असर नहीं था सुलेमान पे.

वो पूरी ताकत से कालावती की कमर पकड़ लेता है और लंड बाहर खिंच लेता है...लंड के साथ साथ गांड का मांस भी बाहर आने लगता है की तभी धाप....थप्पप....से लंड वापस जड़ तक अंदर डाल देता है टट्टे फिर चुत ले चोट कर देते है.

आअह्ह्ह....सुलेमान....आअह्ह्ह....

इस बार सिर्फ सिसकारी थी.

गांड के चारो और दाँत से कटे गए निशान का घेरा रहा उस की बिच लाल  छेद मे एक काला मुसल फसा हुआ था

लगता था जैसे किसी ने चक्रवयूह की रचना की हो और किसी बलशाली योद्धा को बीच मे फसा लिया हो.

आज ये युद्ध जीतना है तो चक्रव्यूह तोडना होगा.

सुलेमान वो योद्धा था जो गुस्से मे पागल हो चूका था....धाड़ धाड़..धप धप घप....लगातार लंड बाहर आता और तुरंत अंदर तक घुस जाता.

चाटे जाने और कालावती के झड़ने से से गांड गीली थी इसलिए लंड घुस भी गया वरना मृत्यु पक्की थी कलावती की.

ऐसे ही बेदर्दी से लंड गांड की दिवार को तोड़ता रहा फाड़ता रहा....टट्टे लगातार चुत पे हमला कर रहे थे परिणाम स्वरूप चुत पानी छोड़ने लगी.

रस तपकने लगा सुलेमान के टट्टे होने उद्देश्य मे कामयाब हो गए थे.

आआहहब्ब.....सुलेमान फाड़ो मेरी गांड मारो और तेज़ और तेज़ मारो कस के चोदो मुझे.

इतनी बड़ी गांड कर दो की दरोगा इसी मे समा जाये.

आअह्ह्ह....उम्मम्मम...

काम पिपशु औरत क्या नहीं करती अभी दर्द मे चिल्ला रही थी अब उसी गांड को फाड़ देने की बात कर रही थी.

सुलेमान को ये शब्द ताकत दे रहे थे.

सुलेमान...फचा फच फचा फच....कालावती के बाल और गला पकड़े चोदे जा रहा था काला भयानक लड़का एक भरी हुई संस्कारी पूरी सजी धजी स्त्री की गांड की धज्जिया उड़ा रहा था.

सुलेमान,कालावती की हिम्मत और कामवासना देख के अचंभित था



हैरान अचंभित तो चोर मंगूस भी था

कामरूपा के कामुक अवतार को देख के,कामरूपा अपने यौवन और गद्दाराये बदन से सालो से सोये लंड को जगा चुकी थी, जगाया ही नहीं अपितु उस बड़े काले लंड को अपने स्तनों मे पनाह भी दे रखी थी वो लगातर तांत्रिक के लंड को घिसे जा रही रही जब भी लंड दोनों स्तन की घाटी से बाहर आता कामरूपा अपनी जीभ बाहर निकाल के लंड के टोपे को चाट लेती.

उलजुलूल लगातार घायल होता जा रहा था उसकी तपस्या,साधना पल पल टूटती जा रही थी.

कामरूपा :- कैसा लग रहा है उलजुलूल? सम्भोग ही असली सुख है

तांत्रिक :- हम्म.....आअह्ह्ह....सिसक रहा था.

कामरूपा :- बता कहाँ है वो नागमणि?

तांत्रिक झटके से पीछे हट जाता है नीच औरत तू मुझे फसा रही है ये सब कर तू मुझसे कुछ नहीं उगलवा सकती.

लेकिन कामरूपा एक स्त्री थी वो भी कामुक गदराई स्त्री मादकता कूट कूट के भरी थी

चिंगारी तो लगा ही दी थी अब आग लगाने का समय था.

कामरूपा तांत्रिक की आँखों मे देखती हु खड़ी हो जाती है.उसके चेहरे बहुत ही खौफनाक, रहस्यमयी और कुटिल मुस्कान थी

कामरूपा :- तुझे बताना ही होगा उलजुलूल..इसी के साथ उसके हाथ कमर मे बँधी लहंगे की डोरी पे आ जाते है और पल भर मे एक डोरी खिंच जाती है.

कामरूपा का लहंगा सरसरते हुए पैरो मे इकठा होता चला जाता है.

अब जो नजारा गुफा मे प्रस्तुत था वो किसी की भी जान ले सकता था.

बड़ी से गांड जिसपे कोई दाग़ नहीं था मांगूस उस गांड के दर्शन कर पा रहा था.

आगे तांत्रिक का रहा साहब विरोध धवस्त होता चला गया उसका लंड एक दम कड़क हो गया.

उसकी आंखे सपाट पेट गोल नाभि के निचे छोटी सी लकीर देख के फटी जा रही थी.

हलके बाल जो चुत का ताज बने हुए थे

तांत्रिक और चोर मंगूस के हलक सुख गए थे.


तो क्या तांत्रिक टूट जायेगा?

मांगूस और कामरूपा नागमणि खोज लेंगे?

बने रहिये..कथा जारी है....


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