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नागमणि -21

 चैप्टर :-3 नागमणि की खोज अपडेट -21


मंगूस और तांत्रिक के हलक सूखे हुए रहे परन्तु वही पुलिस चौकी मे दरोगा वीरप्रताप का हलक बिलकुल तर था रुखसाना के पेशाब और वीर्य से.

रुखसाना खूब झड़ी थी और आधे से ज्यादा कामरस दरोगा के गले मे समा गया था.

दरोगा ज़मीन से उठ जाता है उसका लंड पूरा पेंट के बाहर आ चूका था,लगता था जैसे कोई योद्धा रणभूमि मे गिर के उठा हो.

दरोगा भी तलवार रुपी लंड ले के वापस खड़ा था उसे अभी और युद्ध करना था.

लंड झूलाये वो रुखसाना की और बढ़ चलता है रुखसाना एकटक दरोगा को देखती कभी उसके फन फनाते लंड को देखती.

दरोगा अब जानवर बन चूका था उसके मुँह चुत रस लग चूका था आगे बढ़ रुखसाना को कंधे से पकड़ के उठा देता है रुखसाना जो अभी अभी झड़ी थी बेजान सी उठ जाती है और पेट के बल सामने रखी टेबल पे झुकती चली जाती है.लुंगी पूरी तरह बदन का साथ छोड़ चुकी थी,रुखसाना के स्तन टेबल पे दब गए थे,गांड पूरी तरह उभर के बाहर को आ गई.

दरोगा की नजर जैसे ही रुखसाना की गांड पे जाती है उसकी सोचने समझने की रही सही शक्ति भी चली जाती है.

बिलकुल गोरी गांड सामने प्रस्तुत थी दोनो पाट अलग अलग थरथरा रहे थे,बीच मे एक लकीर थी जिसमे से गांड का लाल छेद खुल बंद हो रहा था और उसके निचे चुत रुपी खजाना चमक रहा था.

पूरी लकीर मादक पानी से भारी हुई थी रस टपक टपक कर जाँघ तक जा रहा था.

ये नजारा देख दरोगा का रुकना मुश्किल था वो इस पतली दरार मे समा जाना चाहता था,

उसका मुँह खुला रह गया था इतनी शानदार गांड देख के,

वो पीछे चिपकता चला गया उसका लंड रुखसाना की दरार मे कही हलचल करने लगा दरोगा की हालत किसी कुत्ते की तरह थी कुत्ते का लंड खुद ही चुत ढूंढ लेता है ठीक वैसे ही दरोगा की एक दो बार की नाकामयाब कोशिश के बाद लंड धच से रुखसाना की गीली चुत मे समाता चला गया.


आअह्ह्ह.....उम्म्म्म...दरोगा जी

एक घुटी हुई मादक सिसकारी रुखसाना के गले से फुट पडी.

दरोगा बरसो से प्यासा था उसे जैसे ही अहसास हुआ की उसका लंड चुत मे जा चूका है वो धपा धप धपा धप एक के बाद एक धक्के मरने लगा...रुखसाना बस मीठी सिसकारी लेती रही,छोटे लंड का भी अपना ही मजा है उसे आज मालूम पडा था.

दरोगा पे जैसे खून सवार था वो पूरी ताकत के साथ चुत मे लंड पेले जा रहा था फच फच फच....की आवाज़ के साथ ही चुत से पानी निकल निकल के दरोगा के टट्टो को भीगा रहा था.

चुत की रगड़ से लंड की गर्मी बढ़ती ही जा रही थी, अब ये गर्मी सहन से बाहर थी दरोगा एक पैर उठा के टेबल पे रख देता है और पूरा लंड का दबाव रुखसाना की चुत पे बना देता है अभी एक दो झटके ही पड़े थे की दरोगा रुखसाना के ऊपर ही गिर पडा...आआहहहह.....रुखसाना

उसके मुँह से एक जोरदार आह निकल पडी जैसे कोई अंतिम समय मे चिल्लाया हो, दरोगा रुखसाना जैसी कामुक स्त्री का संसर्ग बर्दास्त नहीं कर पाया और चुत मे ही झड़ गया.

ऐसे झाड़ा था जैसे की उसकी आत्मा लंड के रास्ते बाहर निकल गई हो.दरोगा टेबल के निचे ही लुढ़क पडा उसकी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी शरीर मे कोई जान  नहीं बची थी जोश ठंडा हुआ तो शराब का नशा हावी होने लगा उसकी आंखे नशे से बंद होने लगी..पानी पानी....पानी दो मुझे दरोगा बस इतना ही बोल पा रहा था.

रुखसाना के चेहरे पे विजयी मुस्कान तैर गई वो खड़ी होती हुई और दरोगा के दोनों तरफ पाँव रख के मुँह के सामने बैठती चली गई.

रुखसाना :- बेचारा दरोगा ले पी पानी...ऐसा बोल उसने अपनी चुत खोल दी भलभला के पेशाब की धार दरोगा के चेहरे पे गिरने लगी जिसे दरोगा जीभ निकाल निकाल के पिने लगा,

उसको इतनी प्यास लगी थी की किसी कुत्ते की तरह सब पेशाब चाट लेना चाहता था.

रुखसाना ने हाथ पीछे कर दरोगा की पेंट से हवालत की चाभी निकाल ली और अपने उतारे कपड़े कंधे पे डाले बाहर को चल दी, दरवाजे पे पहुंच पीछे मूड के देखा तो दरोगा वैसे ही बेजान सा बेहोश पडा था.

रुखसाना :- बेचारा वीर्य प्रताप सिंह....हाहाहाहा...

दरोगा,रुखसाना के बुने कामजाल मे फस के हार चूका था


वही...दूसरी और कामरूपा अपने काम का जाल पूरी तरह फैला चुकी थी,

तांत्रिक के रोम रोम मे उत्तेजना की लहर दौड़ गई थी उसे आज फिर से सम्भोग की इच्छा ने घेर लिया था.

कामरूपा,तांत्रिक की कमजोरी अच्छे से जानती थी वो तांत्रिक के बिलकुल करीब पहुंच के अपनी गांड को एक झटका देती है बड़ी गांड थालथला जाती है ये गांड की थल थलहट तांत्रिक के लंड पे भारी पड़ती है.

चोर मंगूस जो की ये नजारा बड़े सब्र से देख रहा था उसे लगने लगता है की तांत्रिक कभी भी टूट सकता है और नागमणि के बारे मे बता सकता है उसे तांत्रिक के पीछे एक छोटा सा झरोखा दीखता है "वहा जा के तांत्रिक की बात भी सुन सकूंगा और इस कामरूपा का चेहरा भी देख सकूंगा आखिर पता तो चले की कौन है ये जो ठाकुर की हवेली से निकल के यहाँ तक आई है "

चोर मंगूस पीछे की ओर चुप चाप बिना आहट के चल पड़ता है..

अंदर कामरूपा एकदम पलट जाती है उसकी बड़ी गद्देदार गांड तांत्रिक के सामने थी


कामरूपा गांड पीछे निकाले आगे को झुकती चली गई,गांड की बीच की दरार खुलती गई,खुलती दरार मे से दो कामुक छेद झाँक रहे रहे,कामरूपा पूरी झुक गई, गांड ओर चुत से एक तीखी मादक गंध निकल के कमरे मे फैलने लगी...

तभी पीछे झरोखे पे मांगूस भी पहुंच चूका था अंदर झंका तो एक बड़ी खूबसूरत गांड की मालकिन अपनी गांड खोले झुकी हुई थी उसमे से निकलती मादक गंध दोनों को निचोड़ने मे लगी रही.

तांत्रिक तो जैसे किसी सम्मोहन मे बंध गया था उसकी आंखे पथरा गई थी उसकी नाक उस खुसबू को पास से महसूस करना चाहती थी तांत्रिक अपना सर कामरूपा की गांड की तरफ बड़ा देता है जैसे ही वो पास आता है कामरूपा आगे को सरक जाती है और पीछे मूड के बड़ी हसरत से उलजुलूल की तरफ देखती हुई एक हाथ को पीछे ले जा के गांड के छेद को कुरेद देती है और दूसरा हाथ चुत सहला देता है

उलजुलूल की आँखों ने विनती थी "और मत तड़पाओ पिने दो मुझे ये रस "

कामरुप वापस अपनी गांड तांत्रिक के मुँह के करीब ले अति है जैसे ही तांत्रिक अपनी जीभ बाहर निकलता है कामरूपा आगे सड़क जाती है.तांत्रिक का लंड झटके पे झटके खां रहा था

तांत्रिक :- कामरूपा ये क्या कर रही हो? मै हार मानता हूँ,मुझे चख लेने दे अपनी गांड,चुत का रस पीला दे एक बार...

आज पंहुचा हुआ टतांत्रिक भी कामवासना मे लिप्त अपने मार्ग से भटक गया था.

कामरूपा :- ऐसे नहीं मेरे पतिदेव आज भोग लोगे परन्तु कल को मै बूढ़ी हो चली तो ये जवानी नहीं रहेगी ना ये जिस्म रहेगा.

तांत्रिक सोच मे पड़ गया,सोचना क्या था दिमाग़ मे जब हवस घर कर जाये तो क्या खाक समझ आता है वही तांत्रिक के साथ हुआ,सबकी अक्ल पे पत्थर पड़ता है उलजुलूल की अक्ल पे गांड पड़ गई थी

तांत्रिक :- तो सुनो कामरूपा..... पीछे चोर मंगूस के कान भी खड़े हो गए थे.

हवेली के पिछवाड़े मे एक कमरा है जहा ठाकुर ज़ालिम सिंह के परदादा जलन सिंह की याद मे उनका समान आज भी रखा हुआ है उसी सामान मे हवेली का नक्शा भी है जो हवेली मे ही मौजूद गुप्त तहखाने की राह बतलाता है.

उसे ढूंढो नागमणि भी मिल जाएगी और हाँ...

इतना सुनना था की वोर मंगूस की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा वो तो उड़ चला हवेली की ओर मंगूस कामरूपा का चेहरा नहीं देख पाया था परन्तु अब उसे इस बात से मतलब भी नहीं था उसे तो बस कामरूपा से पहले हवेली पहुंच के वो नक्शा ढूंढ लेना था,और नागमणि हासिल कर गायब हो जाना था.

आसमान मे सुबह होने के संकेत हो चुके थे,हलकी रौशनी फैलने लगी थी.

चोर मंगूस अपनी कामयाबी की तरफ बढ़ रहा था वही रंगा जेल के बाहर था,रुखसाना कामयाब हो गई थी.दोनों काली पहाड़ी मे स्थित अपने ठिकाने की और चले जा रहे थे.

काश मंगूस पूरी बात सुन लेता... जल्दी का काम शैतान का काम.

तो क्या मंगूस मुसीबत मे फस जायेगा?

नागमणि किसे मिलेगी मंगूस को या कामरूपा को?

सवाल कई है जवाब यही है

*********


काली पहाड़ी स्थित गुफा मे

तांत्रिक :- नक्शा ढूंढो नागमणि भी मिल जाएगी,और एक बात नागमणि किसी तिलिस्म मे कैद है उसे निकलने की कैशिश की गई तो शरीर के प्राण खींचते चले जायेंगे तिलिस्म मे.

तो मेरी प्यारी कामरूपा नागमणि हासिल करने की जिद छोड़ दो, मेरे पास लौट आओ संसर्ग का आनंद लो तांत्रिक अभी भी कामरूपा की गांड को ललचाई नजरों से देख रहा था.

कामरूपा तांत्रिक की बात सुन आगबबूला हो जाती है,

दूर हट मुझसे नीच आदमी.. मुझे हमेशा जवान रहना है.

धिक्कार है ऐसे तपस्वी पे जिसे अपने अंगों पे जरा भी नियंत्रण नहीं है,मुझे नंगा देख लार टपकाने लगा.... लानत है तुझपे

कामरूपा गुस्से मे भरी तांत्रिक के अहम् पे चोट कर रही थी.

तांत्रिक को ये शब्द किसी नाश्तार की तरह चुभते महसूस होते है उसका सारा जोश सारी कामवासना ठंडी पड़ जाती है.

उसका मन आत्मगीलानी से भर जाता है उसे पछतावा होने लगता है की वो क्यों अपने अंगों अपनी भावना को नियंत्रण नहीं कर सका.

कामरूपा :- मै वो नागमणि हासिल कर ही मानुँगी.

तांत्रिक अपनी दुर्बलता का जिम्मेदार कामरूपा को मानता है उसने ही इतने सालो बाद आ के उसकी कामइच्छा को जाग्रत किया और अब बिना सम्भोग सुख दिए ही जाने को तैयार थी.

तांत्रिक :- ठहर जा दुष्ट औरत आज तूने जिस तरह मुझे काम अग्नि मे जलता छोड़ दिया है उसी प्रकार तू भी जिंदगी भर काम अग्नि मे जलती रहेगी तेरी हवस कभी शांत नहीं होंगी.

जीतना सम्भोग करेगी उतनी ही इच्छा बढ़ती रहेगी ये मेरा श्राप है.

गुस्से से भुंभूनाया तांत्रिक कामरूपा को श्राप दे देता है.

कामरूपा पे उसके बोल का कोई फर्क नहीं पड़ता वो अपनी गांड मटकाती गुफा से बाहर कूच कर जाती है.

"साला उलजुलूल जिसे खुद पे नियंत्रण नहीं उसका श्राप मेरा क्या बिगाड़ेगा "

मुझे जल्द से जल्द हवेली पहुंचना होगा.



सुबह की पहली किरण फुट पड़ी थी.

दूर शहर मे सुलेमान ने रात भर कालावती की गांड चुत जम के पेली थी. ऐसे चोदा था जैसे उसकी चुदाई की आखरी रात हो.

कभी चुत मरता तो कभी गांड रात भर चली चुदाई से कलावती की गांड पूरी खुल गई थी.

ना जाने कितनी बार झड़ी थी इस रात मे, उसकी गांड और चुत सुलेमान के वीर्य से पूरी भरी हुई थी,

सुलेमान अभी भी अपने लंड से चुत को थप्पड़ मार रहा था,कालावती फिर से भलभला के झड़ने लगी उसकी चुत से पानी का फववारा निकाल के उसके कामुक पसीने से तरबतर बदन को भीगाने लगा.

कालावती के कहे अनुसार सुलेमान उसकी गांड इतनी चौड़ी कर चूका था की दरोगा पूरा उसमे घुस जाता.

पूरी तरह थकी निचूड़ी,निढाल कालावती नींद की आगोश मे सामाती चली गई.


अब पूरी तरह सुबह हो चुकी थी लाल सूरज क्षितिज पे नजर आने लगा.

सर....सर...सर.... उठिये सर क्या हुआ है आपको

पानी लाओ कोई

पुलिस चौकी मे एक हवलदार दरोगा वीरप्रताप को उठाने की कोशिश कर रहा था.

तभी कोई पानी ले आया,हवलदार ने दरोगा के मुँह पे पानी के छींटे मारे

दरोगा अपनी आंखे टीमटीमाने लगा..आअह्ह्ह... रामलखन लगता है कल रात ज्यादा ही पी ली.

आअह्ह्ह....करता दरोगा सर पे हाथ रखे उठने की कोशिश करता है उसका माथा भन्ना रहा था.

रामलखन :- दरोगा साहेब जल्दी उठिये गजब हो गया है.

दरोगा :- क्या गजब हो गया है? जा पहके निम्बू पानी बना ला सर भन्ना रहा है.

रामलखन:- मालिक रंगा फरार हो गया है, अब हम सब की मौत निश्चित है सर.

रामलखान के चेहरे पे दहाशत साफ नजर आ रही थी...

क्या...बक रहे हो रामलखन दरोगा भागता हुआ कमरे से बाहर निकाल जाता है बाहर हवालत खाली था,तले मे चाभी लगी हुई थी.

ये..ये...चाभी यहाँ कैसे आई ये तो मेरी जेब मे रहती है.

तभी कल रात का सारा दृश्य उसकी आँखों के सामने नाच जाता है,उसके होश उड़ते चले जाते है.

हे...भगवान इतनी बड़ी साजिश, दरोगा खुद को थप्पड़ मरने लगता है छत्तताक्क्क...चटाक...सब मेरी गलती है

चटाक....मै हवस मे डूब गया था.

सर...सर....क्या कर रहे है आप होश मे आइये रामलखन दरोगा के हाथ पकड़ लेता है.

और उसे सहारा देता अंदर कुर्सी पे बैठा देता है,दरोगा उसी कुर्सी पे बैठा तबै जहा रुखसाना बैठी थी

दरोगा दुख और पछतावे से अपना सर टेबल पे झुका देता है उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करे तभी उसकी नजर टेबल के निचे रखे गमले पे पड़ती है उसकी मिट्टी गीली थी.

दरोगा मिट्टी को हाथ लगता है और उसे सूंघता है उस मिट्टी से शराब की तेज़ गंध आ रही थी.

"ओह इसका मतलब कल रात उस औरत ने मुझे पूरी तरह मुर्ख बना दिया,उसने शराब पी ही नहीं यहाँ गमले मे गिरा दी और मै बेवकूफ समझता रहा की शिकार फस गया है जबकि मै खुद शिकार हो गया.लानत है मुझपे लानत है."

दरोगा पूरी तरह टूट गया था उसकी आँखों मे पछताप के आंसू थे आंखे नशे और दुख से लाल थी सर फटा जा रहा था.

"रामलखन मुख्यालय मे खबर भिजवा दो की हम नाकामयाब रहे रंगा फरार हो गया है"


उधर चोर मंगूस उड़ता हुआ हवेली पहुंच गया था उसे जलन सिंह का कमरा ढूंढने मे जरा भी वक़्त नहीं लगा उसने वो नक्शा हासिल कर लिया..उसके चेहरे की रौनक बता रही थी की वो मंजिल के करीब है. लेकिन मंजिल पे मौत खड़ी है उसे पता नहीं था,काश वो तांत्रिक की पूरी बात सुन लेता.


मंगूस कामयाब होगा?

या कामरूपा रोक देगी मंगूस को?

तांत्रिक का श्राप सच साबित होगा?

बने रहिये कथा जारी है...

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