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नागमणि -22

 चैप्टर -2 नागमणि की खोज अपडेट -22


सुबह की किरण आलीशान कमरे मे सोती कामवती पे पड़ रही थी आंखे मीचमीचाती स्वर्ग की अप्सरा अंगड़ाई लेते उठ बैठती है कल की रात भी उसकी बिना सम्भोग के ही निकली ठाकुर फिर से नाकामयाब रहा था,

कमरे मे एक कोने मे सिमटा हुआ नागेंद्र अपनी हुस्न परी को निहार रहा था "कितनी सुन्दर है कामवती आह्हः..."

कामवती बिस्तर से उठ खड़ी होती है और कमरे से बाहर निकाल भूरी काकी को आवाज़ देने लगती है काकी... भूरी काकी...

लेकिन कोई जवाब मिला.

"लगता जी कही बाहर गई है मुझे अकेले ही जाना होगा गुसालखाने "

ऐसा विचार कर कामवती घर के पिछवाड़े चल पड़ती है. नागेंद्र ये मौका कैसे गवा सकता रहा वो भी धीरे से कामवती के पीछे सारसरा जाता है.

गुसालखाने मे पहुंच के कामवती धीरे से अपना लहंगा उठा देती है,गोरी गांड की चमक फ़ैल जाती है जो की नागेंद्र की आँखों को चकाचोघ कर रही थी.

क्या खूबसूरत और मुलायम अंग थे कामवती के कही कोई दाग़ नहीं कही कोई बाल नहीं.

कामवती धीरे से पैरो के बल बैठ जाती है तभी पिस्स्स्स..... सुरररररर....करती एक तेज़ सिटी बज जाती है.

कामवती की चुत से तेज़ पेशाब की धार फुट पड़ती है.

कामवती सुकून से आंखे बंद कर लेती है आअह्ह्ह.....उसके चेहरे पे सुकून का भाव था.

कामवती की चिकनी पानी छोड़ती चुत नागेंद्र के सामने थी "यही मौका है मुझे कामवती की चुत का चुम्बन लेना होगा "

ऐसा सोच वो कामवती की तरफ बढ़ जाता है परन्तु जैसे ही वो अपना फन उठाता है कामवती भी थोड़ा सा उठ जाती है उसका पेशाब हो चूका था...नतीजा नागेंद्र का फन कामवती की गांड के छेद पे पड़ता है.

कामवती एक तीखे दर्द से मचल जाती है.....और जैसे ही निचे देखती है एक काला भयानक सांप उसके दोनों पैरो के बीच फन फैलाये फुफकार रहा था....आआहहहहह....

बचाओ...बचाओ करती कामवती डर से वही बेहोश हो जाती है.

कामवती की ये चीख हवेली मे हर किसी ने सुनी...एक साथ कई सारे कदमो की आहट गुसालखाने की और आने लगी.

नागेंद्र :- साला दिन ही ख़राब है बोलता वही कही छुप जाता है.

ठाकुर ज़ालिम सिंह चीखता हुआ अंदर प्रवेश करता है

"क्या हुआ...क्या हुआ...कामवती तुम चिखी क्यों परन्तु जैसे ही उसकी नजर कामवती पे पड़ती है उसके होश फकता हो जाते है कामवती निढाल बेजान जमीन पे पडी थी.

अरे हरामखोरो कहाँ मर गए सब के सब....ठाकुर गुस्से से चिल्ला पड़ता है.

तभी रामु कालू बिल्लू तीनो गुसालखाने मे घुसे चले आतेहै....

ठाकुर :- सालो हरामजादो..कहाँ मर गए थे ये देखो तुम्हारी ठकुराइन को क्या हो गया है?

कोई इसे उठाओ कमरे मे ले चलो...कोई डॉ.असलम को भुलाओ.....भूरी कहाँ है उसे बुलाओ.

ठाकुर बदहवस चिल्लाये जा रहा था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था.

रामु तुरंत बाहर को डॉ.असलम के घर की और दौड़ पड़ता है.

कालू बिल्लू कामवती को हाथ और पैर से पकड़ के उठाने की कोशिश करते है परन्तु कालू पैर की तरफ था जहा कामवती का लहंगा जाँघ तक ऊपर चढ़ा हुआ था...कालू ने इनती चिकनी और गोरी जाँघे कभी नहीं देखि थी वो उस जाँघ को छूने के लिए तरस उठा...जैसे ही उसने हाथ बढ़ाया

सालो हराम खोरो सोच क्या रहे हो जल्दी उठाओ ठकुराइन को वरना मार मार के भूसा भर दूंगा खाल मे.

कालू को तुरंत होश आया दोनों ने संभाल के कामवती को उठाया और ठाकुर के कमरे मे बिस्तर पे लेटा दिया.

ठाकुर :- डॉ.असलम आये या नहीं....निक्कमो बुलाओ उन्हें

और भूरी काकी कहाँ है ढूंढो उसे.

कालू :- मालिक रामु गया है डॉ.साहेब के पास आता ही होगा. हम भूरी काकी को ढूंढ़ लाते है सुबह से ही नहीं दिखी...

कालू बिल्लू कमरे से बाहर निकल जाते है.

वही चोर मंगूस इन सब बातो से बेखबर नक़्शे मे दिखाए अनुसार तहखाने की ओर बढ़ चलता है,तहखाने का रास्ता हवेली के पीछे स्थित एक खंडर से जाता था,खंडर गंदगी और घाँस फुस से भरा हुआ था,मंगूस पसीने पसीने हो चूका था की तभी उसे जमीन मे बना एक छोटा सा झरोखा दीखता है,वहा की घाँस हटाने लगता है अब झरोखा एक दरवाजे की शक्ल मे प्रकट हो गया था उसपे एक जंग लगा ताला पडा हुआ था जो मंगूस के एक ही प्रहार से शहीद हो गया...

मंगूस दरवाजा खोल देता है अंदर से एक तेज़ बदबूदार सीलन की महक उसके नाथूनो मे घुस जाती है तहखाना बरसो से बंद था,उसकी बदबू नाकाबिले बर्दास्त थी अंदर सम्पूर्ण अंधकार छाया हुआ था,

कोई आम आदमी होता तो उसकी रूह फना हो जाती इस मंजर को देख के परन्तु ये मंगूस था महान कुख्यात चोर मंगूस जिसने एक बार चोरी की ठान ली मतलब चोरी हो कर रहेगी.

मंगूस मुँह पे कपड़ा बाँधे एक लकड़ी पे ढेर सारी घाँस और अपनी कमीज खोल के बाँध लेटा है और उस लकड़ी को मसाल की तरह जाला लेता है.

और गीली लिसलिसी काई से भरी सीढ़ी उतरता जाता है अंदर इतना अंधेरा था की हाथ को हाथ सुझाई ना दे...जैसे कोई पाताल हो.

ना जाने मंगूस कितनी सीढिया उतर चूका था,हद

डर और उन्माद से उसकी धड़कने तेज़ तेज़ चल रही थी की तभी उसका पैर किसी समतल धरातल पे पड़ता है मंगूस तहखाने के तल तक पहुंच गया था.


अब नागमणि दूर नहीं है,लेकिन क्या इस नागमणि की कीमत चोर मंगूस की मौत होंगी?


*********


हवेली मे कोहराम मचा हुआ था,ठाकुर ज़ालिम सिंह बदहवास इधर उधर टहल रहा था.

क्या हुआ ठाकुर साहेब...क्या हुआ...इतनी जल्दी मे क्यों बुलवा भेजा? डॉ.असलम कमरे मे दाखिल जोते हुए बोला.

ठाकुर :- असलम..असलम मेरे भाई ये देखो कामवती को क्या हो या है? आज सुबह गुसालखाने गई थी वहा से चीखने की आवाज़ आई हम लोग पहुचे तो ये बेहोश पडी थी.

असलम तुरंत कामवती के बगल मे बैठ जाता है उसका हाथ पकड़ नब्ज़ टटोलने लगता है सब कुछ ठीक था सांसे और नब्ज़ दोनों बराबर थी

"सब कुछ ठीक है फिर कामवती को हुआ क्या है?" असलम मन ही मन सोचने लगा.

वही कमरे मे छुपा बैठा नागेंद्र भी चिंतित था उसे समझ नहीं आ रहा था की कामवती बेहोश क्यों हो गई जबकि उसके पास तो जहर ही नहीं बचा है ऊपर से योनि पे चुम्बन करना था और हो गया गुदा छिद्र पे.

मुझे अगला मौका ढूंढना होगा.

डॉ.असलम पानी के कुछ छींटे कामवती के मुँह पे मारता है,

कामवती कस मसाती आंखे खोल देती है,उसकी गुदा छिद्र पे अभी भी दर्द था भले ही नागेंद्र मे जहर नहीं था परन्तु उसके दाँत बराबर चुभे थे.

कामवती दरी सहमी चारो और देखती है.... और चिल्ला पड़ती है सांप....सांप....सांप... काला भयानक सांप...

सभी लोगो को सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है.

ठाकुर दौड़ के कामवती के पास आता है उसे संभालता है.

ठाकुर :- कहाँ है सांप कामवती....सांप ने क्या किया? कही काटा तो नहीं.

कामवती बदहवस बिलखने लगती है "ठाकुर साहेब मै मरना नहीं चाहती...वो वो...वो.... काला भयानक सांप था उसने मुझे काट लिया है.

ये सुन ना था की ठाकुर की गांड ही फट गई उसके हाथ पैर ढीले पड़ने लगे.

ठाकुर :- कहाँ काटा है सांप ने तुम्हे बताओ हमें....बताओ.

कामवती बिलकुल चुप थी....अब कैसे कहे की गांड पे काटा है "भूरी काकी कहाँ है उन्ह्र बुलाओ "

ठाकुर और असलम को समझ ही नहीं आता की कामवती,भूरी काकी को क्यों बुलवाना चाहती है

स्त्री सुलभ संकोच था कामवती मे वो ऐसी बात किसी पुरुष को कैसे बताती,स्त्री को ही बताया जा सकता था.

तभी कमरे मे कालू बिल्लू भी पहुंच जाते है

कालू :- मालिक भूरी काकी कही नहीं है,पूरी हवेली छान मारी आस पास भी देख लिया लोगो से पूछा भी परन्तु भूरी काकी कही नहीं है..

ठाकुर:- गुस्से मे लाल पीला हो रहा था ऐसे कैसे कहाँ चली गई? काकी आजतक बिन बोले कही नहीं गई.

ये हो क्या रहा है हवेली मे....

असलम जो अभी तक चुप बैठा था उसने बारीकी से कामवती का परीक्षण कर लिया था...कही से भी कोई सांप कटे का नमो निशान नहीं था, ना कोई जहर फैलने का निशान.

सांप जहरीला होता तो कामवती अब तक बेहोश ही हो जाती.

फिर भी उसे कुछ शंका थी...

डॉ.असलम :- ठाकुर साहेब शांत हो जाइये आप चिंता ना करे इलाज है मेरे पास.

हमें उसी सांप को ढूंढना होगा जिसने कामवती को काटा है उसके ही जहर से दवाई बनेगी.

जब तक मै अपनी तरफ से जहर उतरने की कोशिश करता हूँ.....ना जाने असलम को क्या विचार आ रहा था.

कुछ तो अलग था उसके दिमाग़ मे...

कामवती :- ठाकुर साहेब मेरी माँ को बुलावा भेजिए...मै मरते वक़्त उन्हें देखना चाहती हूँ.

कामवती अति डर से पगला गई थी उसे लग रहा था की वो मर रही है.

जबकि असलम को पता था की ऐसा कुछ नहीं है.

ठाकुर :- हरामखोरो अभी तक यही खड़े हो सुना नहीं ठकुराइन क्या बोली....

बिल्लू तू कामगंज जा और ठकुराइन के माँ बाप को लिवा आ.

और कालू रामु मेरे साथ चलो आज सके उस सांप की खेर नहीं....मिल गया तो मौत के घाट उतार दूंगा.

मेरी कामवती को काटता है... ठाकुर आज रोन्द्र रूप मे था कालू रामु चुप चाप उसके पीछे कमरे से बाहर निकल जाते है.

कोने मे बैठा नागेंद्र की भी घिघी बंध गई थी..

"अबे ये तो दाँव ही उल्टा पड़ गया..इन हरामियों के हाथ लग गया तो मार मार के कचूमर बना देंगे, तहखाने ने जाने मे ही भलाई है"

नागेंद्र सबकी नजर बचा के निकल जाता है तहखाने की ओर....

वही तहखाना जहा मंगूस आपने कदम रख चूका था, घोर अंधेरा छाया हुआ था मसाल की रौशनी भी नाकाफी थी..

मंगूस नागमणि को ढूंढने लगा उसके दिमाग़ मे लगातार विचार चल रहे थे. उसे तहखाने के एक कोने मे कुछ हलचल सी महसूस होती है जैसे कोई रौशनी चालू बंद जो रही हो.

वो उस ओर बढ़ जाता है घास फुस का खूब ढेर था उसी के निचे से कभी रौशनी आती तो कभी गायब हो जाती..मंगूस के पास वक़्त नहीं था वो जल्दी जल्दी घाँस हटाने लगा..जैसे ही पूरी घाँस हटी पूरा तहखाना तेज़ रौशनी से जगमगा उठा, निचे एक चमकली सी चीज लकड़ी के पाटे पे रखी थी...

आआआहहहह....तो ये है वो नायब नागमणि अनमोल बेशकीमती नागमणि.

मंगूस ख़ुशी से उछल पडा उसके जीवन की सबसे नायब चोरी उसके सामने थी,उस नागमणि की चमक ने उसे अंधा बना दिया था आँख से भी और अक्ल से भी, नागमणि की चमक ऐसी थी की सिर्फ नागमणि ही दिख रही थी उसके आस पास क्या है इसका कोई अनुमान  नहीं था.

खुशी के मारे मंगूस हाथ आगे बढ़ा देता है....परन्तु जैसे ही वो नागमणि को पकड़ता है उसके गले से एक घुटी चीख निकल जाती है लगता था जैसे उसके प्राण खींचते चले जा रहे हो,शरीर का सारा खून मणि मे समाता चला जा रहा था.

मांगूस की मौत निश्चित थी..यही वो तीलीस्म था जो नागमणि की रक्षा करता था.

तभी उसे एक भयानक झटका लगता है वो मणि से दूर फिंक जाता है,उसका बेजान शरीर कठोर जमीन से टकरा जाता है,

उसमे तो चीखने की ताकत भी नहीं थी, खून का एक कतरा नहीं बचा था, गाल और आंखे अंदर को धंस गई थी, पासलियो की हड्डी बाहर दिखने लगी थी, बदन की चमड़ी धीरे धीरे गल रही थी.

धीरे धीरे उसका शरीर किसी कंकाल मे तब्दील हो रहा था.

बिलकुल चित्त जमीन पे पडा था महान चोर मंगूस...बिलकुल लाचार अपनी मौत का इंतज़ार करता हुआ, आंखे धीरे धीरे बंद होती चली गई.


तो क्या यही है चोर मंगूस का अंत?

डॉ.असलम के दिमाग़ मे क्या है?

***********


बिल्लू कामगंज के लिए निकल गया था उसे जल्दी से जल्दी कामगंज पहुंच के रतिवती को ले आना था.

उधर हवेली मे असलम के चेहरे पे मुस्कुराहट थी,बिल्लू रतिवती को लेने गया था वो रतिवती जिसने कामसुःख से असलम का परिचय करवाया था...तभी कामवती की आवाज़ से उसकी तंन्द्रा भंग होती है.

कामवती :- असलम काका क्या सोच रहे है....मै बच तो जाउंगी ना? मुझे अभी मरना नहीं है.

असलम :- हाँ कामवती मै हूँ ना पहले तो शांत हो जाओ बिलकुल,जीतना हड़बड़ाओगी जहर उतना ही चढ़ेगा.

और पूरी बात बताओ मुझे.

कामवती सब्र लेती है शांत हो जाती है.....काका...वो..काका....सांप मे मेरे वहा काटा था.हाथो से इशारा करती है.

असलम :- कहाँ कामवती पैर मे?

कामवती :-नहीं काका पैर पे नहीं...इससससस....अब कैसे बताऊ कामवती थोड़ा झुंझुला जाती है.

असलम :- शर्माओ मत मै डॉक्टर हूँ उसके बाद ठाकुर का दोस्त और तुम्हारा काका.

कामवती :- काका मै सुबह पेशाब करने बैठी थी तो वहा काटा

असलम :- वहा कहाँ योनि पे?

कामवती :- नहीं काका गांड पे इससससस.... बोल के दर्द मे भी शर्मा जाती है उसने पहली बार गांड शब्द कहाँ था.

असलम तो ये सुन के ही बेहोश होने को होता है उसके होश उड़ जाते है...काटो तो खून नहीं.

उसके दिल मे पाप नहीं था ना हिम्मत थी क्युकी वो ठकुराइन थी उसके दोस्त ठाकुर ज़ालिम सिंह की बीवी.

कामवती :- असलम काका कुछ कीजिये मै मर जाउंगी मुझे चक्कर आ रहे है.

असलम एक बार को सोचता है की सच कह दे की कोई जहर है ही नहीं...परन्तु ना जाने क्यों उसके दिल मे पाप जन्म ले रहा था.

रतिवती और रुखसाना की चुत लेने के बाद उसे सम्भोग की लत सी लग गई थी,उसने अपना आधा जीवन बिना सम्भोग के ही निकल दिया था.अब सौंदर्य दर्शन या सम्भोग का कोई भी मौका वो छोड़ना नहीं चाहता था.

असलम खुद को ही समझा रहा था " मुझे सम्भोग थोड़ी ना करना है,बस देखूंगा की कही कोई जख्म तो नहीं है ना ऐसा सोचते ही उसके दिमाग़ मे रुखसाना के साथ हुई चुदाई के दृश्य छा जाते है उसे भी इसी बहाने से चोदा था असलम ने "

कामवती :- किस सोच मे खो गए काका,मै मरी जा रही हूँ और आप पता नहीं कहाँ खोये हुए है.

असलम :- वो...वो....मै...मै कुछ नहीं..मुझे देखना होगा की कहाँ काटा है? जख्म कितना है?

असलम हकलाता हुआ बोल गया उसके सीने मे पाप का बीज उग आया था.

वो मित्रघात करने पे उतारू था.

आखिर कामवती थी ही इतनी सुन्दर सुडोल को कोई कैसे रोकता खुद को.

वैसे भी असलम का मनना था की सिर्फ देख लेने से कुछ नहीं होता वो आगे नहीं बढ़ेगा.

असलम :- कामवती पेट के बल लेट जाओ

कामवती सकूँचा रही थी की कैसे किसी पराये मर्द के सामने वो अपना अनमोल खजाना रख दे.

असलम उसकी दुविधा को समझ गया "शर्माओ मत कामवती इस वक़्त मे सिर्फ डॉक्टर हूँ,जब जान पे बनी हो तो ये सब करना पड़ता है.

कामवती सहमति मे सर हिला देती है और करवट बदल के पेट के बल लेट जाती है.

उभरी हुई गांड लहंगे के ऊपर से ही छटा बिखेर रही थी

असलम मन मे "क्या गद्देदार गांड है अपनी माँ से भी बढकर है ये"

असलम अपने हाँथ से लहंगा पकड़ के उठाने लगता है गोरे चिकने पैर चमक रहे थे,असलम की सांसे तेज़ हो रही थी

जैसे जैसे वो लहंगा उठता आश्चर्य से मुँह खुला रहा जाता कोमल नाजुक त्वचा असलम के काटजोर हाथ पे महसूस हो रही थी, कठोर हाथ का स्पर्श कामवती को भी हो रहा था परन्तु उसे कुछ कुछ गुदगुदी जैसा लग रहा था.

कामवाती का लहंगा गांड की जड़ तक पहुंच गया था बस आखरी पायदान था गोरी चिकनी मोटी जाँघ असलम.के सामने उजागर थी,अब सब्र करना मुश्किल था वो एक दम से कहना कमर तक उठा देता है...

या अल्लाह.....उसका मुँह खुला का खुला रह जाता है.

एक दम चिकनी बड़ी से बिलकुल गोल कसी हुई गांड उसके सामने थे दोनों पाट आपस मे चिपके हुए थे.

लगता था जैसे असलम की धड़कन ही रुक गई है,वो वही जम गया था आंखे पथरा गई थी उसकी आँखों मे चमकती गांड ने सम्मोहन कर दिया था,प्राण निकलने को थे.


प्राण तो निचे तहखाने मे मंगूस के भी निकल रहे थे,शरीर गल रहा था आंखे बंद थी...सिर्फ दिमाग़ जिन्दा था मंगूस लगातार सोच रहा था हार मानने को अभी भी तैयार नहीं था.

"मै मर नहीं सकता,बिना चोरी के कैसे मर जाऊ दुनिया थूकेगी मुझ पे,

आखिर ये तीलीस्म कैसा था? वो नागेंद्र भी तो अपनी मणि छूता होगा उसको तो कुछ नहीं होता आखिर क्यों?

मरते मरते भी मंगूस चोरी का ही सोच रहा था सच्चा चोर था मंगूस आखिरकार.

समझ गया इस तिलिस्म का तोड़ जब मरना ही है बिना लड़े नहीं मरूंगा एक आखिरी कोशिश करनी होंगी मुझे..मुझे उठना होगा.....उठना ही होगा

चोर मंगूस अपनी सारी इच्छाशक्ति जूटा के उठ खड़ा होता है.

ये भयानक मंजर कोई देख लेता तो प्राण त्याग देता.

उसके बदन से मांस टूट टूट के गिर रहा था,शरीर की हड्डिया दिख रही थी...वो हिम्मत जूटा के अपने कदम बढ़ा देता है.

उसका विक्रत सड़ा गला शरीर नागमणि के प्रकाश मे नहा रहा था.

परन्तु ये क्या....मंगूस नागमणि की तरफ नहीं बढ़ रहा था अपितु दूसरी दिशा मे जा रहा था जहा बाहर जाने का रास्ता था.

तो क्या मंगूस ने मौत स्वीकार कर ली थी?

वो भाग जाना चाहता था?

असलम की उत्तेजना क्या अंजाम लाएगी?

बने रहिये कथा जारी है...


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