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नागमणि -23

 चैप्टर -4 कामवती का पुनः जन्म अपडेट -23



इन सब घटना कर्म से दूर दिल्ली मे.

पुलिस मुख्यालय

वेलडन इंस्पेक्टर काम्या तुमने सफलता पूर्वक रामगढ मे फैले डाकुओ के आतंक को ख़त्म के दिया, मै तुम्हारे काम की आगे भी सिफारिश करूंगा.

तुम चाहो तो अब कुछ वक़्त के लिए छुट्टी ले सकती हो तुम्हे भी आराम की आवशयकता है.

इंस्पेक्टर काम्या :- धन्यवाद कमिश्नर साहेब ये तो आपका बड्डपन है और चोर डाकुओ का खात्मा करना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है.


ये है इंस्पेक्टर काम्या

चालक लोमड़ी को तरह शातिर बुद्धिमान,जैसे को तैसा हिसाब रखने वाली

आज तक कोई भी डाकू चोर इसकी गिरफ्त से नहीं बच सका है

साम दाम दंड भेद सारे तरीके आजमाने जानती है.

इसका बदन बिलकुल जानलेवा है छाती हमेशा तानी रहती है जो की अपनी आकर की खुद गवाह है

कमर बिलकुल पतली और गांड ऐसी भयंकर की जो देख ले एक बार मे झड़ जाये.

अच्छे अच्छे चोर डाकू इसके नाम से ही काँपते है.

इसकी सिर्फ एक ही कमजोरी है इसकी हवस,कामवासना इसे अपनी चुत पे जरा भी नियंत्रण नहीं है कभी भी बहने लगती है.

लेकिन अभी तक ये अपनी कमजोरी को ताकत ही बनाती आई है.

ना जाने कितने चोर उच्चकों के साथ सम्भोग किया है,अपने यौवन के जाल मे फसा के मौत के घाट उतार दिया इसकी तो गिनती ही नहीं है.

आज रामगढ से डाकुओ को खत्म कर मुख्यालय लोटी थी

कमिश्नर शाबाशी दे ही रहा था की.....

ठक ठक ठक.....

कमीशनर कौन है? आ जाओ

हवलदार बहादुर रिपोर्टिंग सर!

हवलदार बहादुर नया नया भर्ती हुआ है पुलिस मे नाम बहादुर और अव्वल दर्जे का डरपोक, दिखने मे जोकर जैसा,दुबला पतला सा हलकी पतली मुंछे रखता है,ना जाने कैसे पुलिस मे भर्ती हो गया.


अभी शादी नहीं की है...औरतों से डर लगता है जनाब को.

कमिश्नर :- क्या हुआ बहादुर?

बहादुर :- जनाब टेलीग्राम आया है थाना विष रूप से कुख्यात डाकू रंगा वहा की जेल से फरार हो गया है, और सुनने मे आया है की बिल्ला भी जिन्दा देखा गया है, ऊपर से चोर मंगूस अभी भी आज़ाद है.

कमिश्नर एक सतब इतनी सारी बुरी खबर सुन आग बबूला हो गया...

क्या बकते हो बहादुर....इतनी बड़ी नाकामी कालिख पोत दी पुलिस डिपार्टमेंट के मुँह पे.

बहादुर सर झुकाये खड़ा रहा....

कमिश्नर गहरी सोच मे डूबा हुआ था कमरे मे सन्नाटा पसर गया था.

कमिश्नर :- इंस्पेक्टर काम्या आप की छुट्टी ख़ारिज की जाती है,आपका ट्रांसफर विष रूप चौकी पे किया जा रहा है.

रंगा बिल्ला मुझे किसी भी कीमत पे चाहिए जिन्दा या मुर्दा.....

और बहादुर तुम साथ जाओगे मैडम के.

बहादुर की तो घिघी बंध गई....क्या...? मै...मै...मै..... कैसे.

कमिश्नर :- गुस्से मे क्या मै मै...लगा रखा है,नौकरी करनी है या नहीं?

बहादुर जो की ले दे के पुलिस मे लगा था अपनी माँ की सिफारिश पे उसकी माँ किसी दरोगा के यहाँ काम करती थी उसी दरोगा ने बहादुर को पुलिस मे भर्ती करवाया था.

जान ज़्यदा प्यारी थी उसे,परन्तु यदि नौकरी छोड़ता तो उसकी माँ उसकी जान के लेती.

मरता क्या ना करता...

बहादुर :- जी मालिक जाऊंगा

कमिश्नर :- काम्या तुम कल सुबह ही विष रूप के लिए निकल जाओ. तुम्हारे पास 1हफ्ते का वक़्त है ज्वाइन करने का.

काम्या :- जी सर.... सलूट करती हुई कमरे से बाहर निकल जाती है पीछे पीछे बहादुर भी चल देता है.

काम्या का दिल ख़ुश था... क्युकी उसका गांव भी विष रूप के पास वाले शहर मे ही था,

वो जल्दी से जल्दी पहुंचना चाहती थी उसे अपने माँ बाप से मिलने की खुशी थी.

"माँ पापा से मिल के विष रूप चली जाउंगी "

चल बहादुर.....

बहादुर मुँह लटकाये "जी मैडम "


अभी काम्या को विष रूप पहुंचने मे वक़्त था परन्तु चोर मंगूस के पास बिलकुल वक़्त नहीं था वो पल पल मौत के करीब जा रहा था लड़खड़ा हुआ वो सीढ़ी के पास पहुंच जाता है

"मिल गया आखिर....मंगूस जमीन पे पडा कोई कपड़ानुमा चीज उठा लेटा है

उस चीज को जैसे तैसे हाथ मे लपेट कर नागमणि की और चल देता है

"यही मौका है मंगूस...यही मौका है "

मंगूस ने जबरदस्त इच्छाशक्ति का परिचय दिया था

लेकिन कब तक संभालता अपने जर्ज़र साढ़े गले शरीर को नतीजा उसकी हिम्मत जवाब दे गई भरभरा के जमीन पे गिरता चला गया....

लेकिन ये क्या मंगूस की किस्मत उसके साथ थी वो गिरते गिरते भी नामगमणि के पास तक पहुंच ही गया था बस उसे नागमणि उठा लेनी थी,लेकिन प्राण कहाँ थे उस शरीर मे,खून का एक एक कतरा तो गिर चूका था जमीन पे

नहीं नहीं...मै हार नहीं मानुगा,नहीं मानुगा...धममममम...ना जाने कहाँ से मंगूस ताकत ले आया अपना हाथ उठा के नागमणि के ऊपर रख ही दिया.

आअह्ह्ह....उसके गले से आखिरी चीख निकल गई.साँसो ने उसका साथ छोड़ दिया था

दिल भी गलना शुरू हो गया था

आंखे सदा के लिए बंद हो गई. रहे सहे फेफड़े भी गल गए,आखिर कब तक सहन करता वो इस असहनीय पीड़ा को? आखिर कब तक सांस लेता अपने गलते फेफड़ों से

नागमणि उसकी मुट्ठी मे कैद थी लेकिन अब क्या फायदा महान कुख्यात चोर मंगूस मंजिल पे पहुंच के दम तोड़ चूका था..



हवेली मे ठाकुर और कालू रामु उस काले नाग को ढूंढ़ रहे थे परन्तु सफलता नहीं मिल रही थी.

लेकिन हवेली के अंदर डॉ.असलम सफलता के कगार पे खड़ा था या यु कहिये की मित्रघात और पाप करने जा रहा था उसकी दिनों दिन बढ़ती हवस आज उस से वो सब करवा लेना चाहती थी जो उसने कभी सोचा ही नहीं था.

तभी कामवती की नंगी गांड पे ठंडी हवा का झोका लगता है

कामवती कसमसा जाती है "असलम काका क्या कर रहे है? दिखा क्या की सांप ने कहाँ काटा है?

असलम होश मे आता हुआ "वो...वो...बबबबब...नहीं कामवती कही कोई नामोनिशान नहीं है सांप दंश का,कहाँ काटा था?

मतलब तुम्हे दर्द कहाँ है?

मासूम कामवती इलाज और सांप दंश के डर से पूरी तरह असलम के कब्जे मे थी वो एक हाथ पीछे ले जा के अपनी गोरी गांड के एक हिस्से को पकड़ के थोड़ा खिंचती है....यहाँ काटा है असलम काका.

गांड का एक पल्ला खुल गया था उसमे से लाल लाल छेद झाँक रहा था

असलम उस छेद को ऐसे देख रहा था जैसे कोई चोर तिजोरी खुलने पे हिरे जवाहरत को देखता है.

असलम का लंड फन फना उठा,उसने सोचा था सिर्फ देखेगा परन्तु इतने सुंदर हसीन मादक गुदा छिद्र को कोई देखे और छुए ना तो वो कैसा मर्द

ऐसा ही असलम के साथ हुआ पाप पूरी तरह घर कर गया था

"दिख तो रहा है लेकिन साफ से नहीं दिख रहा कामवती?

कामवती असमंजस मे पड़ गई की अब और कैसे दिखाए

असलम :- कामवती ऐसा करो घुटने के बल हो जाओ जिस से तुम्हारी गुदा मुझे अच्छे से दिख सके.

अब कामवती क्या करती उसके सामने डॉक्टर था बात माननी ही थी.

कामवती मजबूरन घुटने के बल उठ जाती है उसकी बड़ी सी गांड उभार के पूरी बाहर आ जाती है, दोनों पाट अलग अलग दिशा मे भागने लगते है.

सुर्ख लाल छेद नजर आने लगा था उसके निचे सिर्फ एक लकीर थी वही चुत थी कामवती की बाल का एक तिनका भी नहीं बिलकुल साफ चिकनी चुत और गांड.

असलम ने ऐसा अभूतपूर्व नजारा नहीं देखा था हालांकि उसने रतिवती और रुखसाना को चोदा था परन्तु कामवती बिलकुल कुंवारी थी दोनों छेद ऐसे चिपके हुए थे की हवा भी अंदर या बाहर ना आ जा सके.

असलम मन मे "या अल्लाह क्या कारीगरी है तेरी ऐसी काया के दर्शन मात्र से ही मेरा जीवन सफल हो गया,लेकिन ये क्या ठाकुर साहेब तो सुहागरात मना चुके है फिर कामवती की चुत इतनी चिपकी हुई कैसे है?

तभी उसकी नाक मे एक मादक ताज़ा गंध महसूस होती है इस गंध ने असलम का रोम रोम पुलकित कर दिया था.

शनिफ्फफ्फ्फ़....क्या खुसबू है ये खुसबू कामवती की चुत और गांड से निकल रही थी.

कामवती :- काका क्या देख रहे है,मुझे शर्म आ रही है जल्दी कीजिये

असलम खुद को संभालता है उसके पास वक़्त नहीं था...वो अपना सर कामवती की गांड के पास ले जाता है तो उसे गुदा छिद्र पे तो बिंदु दीखते है...ओह्ह्ह...तो यहाँ काटा है सांप ने?

कामवती :- दिखा काका..अब तो दिख गया ना जल्दी इलाज करो.

असलम का दिमाग़ दौड़ने लगा "यही मौका है असलम"

अब भला कोई मर्द ऐसी गांड को देखे और स्वाद ना ले ऐसा भला हो सकता है

वही असलम के साथ था उसके विचार उसके वादे जो खुद से ही थे की "देखेगा और कुछ नहीं करेगा " सब धाराशयी हो गए.

वो अपना एक हाथ कामवती की गांड पे रख के एक तरफ खिंचता है.

आअह्ह्ह....काका क्या कर रहे है?

असलम :- कामवती सांप ने काटा है तो जहर भी होगा,जहर चूसना पड़ेगा.

कामवती ने गांव मे सुना तो था की सांप काट ले तो जहर चूस के निकाला जाता है परन्तु कही ओर से चूसना और गुदा छिद्र से चूसने मे अंतर है.

"लेकिन काका वहा से कैसे चूस सकते है? गन्दी जगह है वो!

असलम तो अंदर ही अंदर कामवासना मे मरा जा रहा था उसे तो वो कामुक कुंवारा छेद दिख रहा था

मज़बूरी दिखाते हुए "कोई बात नहीं कामवती मै डॉक्टर हूँ मेरा फर्ज़ है लोगो की जान बचाना उसके लिए मुझे कुछ भी करना पड़े.

हवस मे डूबा इंसान क्या नहीं करता कल तक भोला भला डॉ,असलम जो औरतों के साये से भी घबराता था आज स्त्री सुख के लिए प्रपंच कर रहा था साफ साफ मित्र घात कर रहा था.

कामवती की आंखे कर्तघ्यता से भर आई थी उसके दिल मे असलम के द्वारा किये जाने वे अहसास ने जगह बना ली.

कामवती आंखे बंद कर अपनी गांड को और ज्यादा उभार देती है.

डॉ.असलम अपने दोनों हाथ कपकपाते हुए कामवती के दोनों पहाड़ो पे रख देता है और उन्हें एक दूसरे के विपरीत दिशा मे खिंच देता है...

आअह्ह्ह....क्या कोमल अहसास था एक दम चिकनी मुलायम चमड़ी उस पे से कामुक कुंवारी मादक गंध.

"अब सब्र नहीं कर सकता " सोच के अपनी नाक गांड के छेद पे रख तेज़ सांस खींचता है.

शनिफ्फफ्फ्फ़...असलम के बदन मे आग लग गई थी उसकी जबान अपने कटोरे से बाहर निकल गुदा छिद्र पे रगड़ खां जाती है...

आअह्ह्ह....असलम काका गिला लग रहा है गुदगुदी हो रही है.

कामवती जो की ये अहसास पहली बार ले रही थी उसकी घिघी बंध गई थी इस गीलेपन और जीभ के खुर्दरे पन से.

उसे एक अलग ही आनंद की अनुभूति होती है अब ये आनंद क्या था...इस से अनजान थी कामवती.

तभी असलम अपने काले होंठो को गोल कर के कामवती के लाल गुदा छिद्र पे टिका देता है और जोर से खींचता है जैसे वाकई जहर चूस रहा हो...कामवती आंखे बंद किये कसमसाने लगती है.


यहाँ कसमसाहट जारी थी

और वही हवेली के नीचे तहखाने मे भी कुछ कसमसा रहा था.

कुछ तो था जो उस सुनसान अंधकार से भरे तहखाने मे कुलबुला रहा था.

धड़...धड़...धाड़....धाड़....जैसे कोई दिल धड़क रहा हो.

धीरे धीरे ये आवाज़ बढ़ने लगी थी....इसी आवाज़ मे सररररर....सररररऱ....की आवाज़ भी शामिल हो चली जैसे कोई जोर जोर से सांस ले रहा हो.

आआहहहह....तभी तहखाने की शांति एक हलकी से आह के साथ पूरी तरह भंग हो जाती है.

तेज़ प्रकाश से तहखाना चमकने लगता है,ये प्रकाश मंगूस की खुलती बंद होती उंगलियों के बीच से आ रहा था

मंगूस की उंगलियां हिल रही थी.

उसका दिल वापस बन चूका था, फेफड़े वापस सांस फेंक रहे थे.मंगूस ने एक दम से आंखे खोल दी जैसे कोई सपना देखा हो ऐसे हड़बड़ाया.

वाह्ह्ह.....मै कामयाब रहा,मंगूस कामयाब रहा मेरी आखरी योजना ने बचा लिया मुझे.

मंगूस उठ बैठा..उसका शरीर वापस बनने लगा था उसकी चमड़ी उसके कंकाल पे चढ़ती जा रही थी उसकी ताकत वापस आ रही थी,रगो मे खून दौड़ता महसूस हो रहा था.

नागमणि उसकी मुट्ठी मे बंद उसी सोखी गई सभी चीज वापस लौटा रही थी.

मंगूस उठा खड़ा हुआ"मेरा सोचना सही था नागेंद्र एक सांप है एक सांप ही नागमणि को उठा सकता है अच्छा हुआ की मैंने नीचे आते वक़्त नागेंद्र की केंचूली देख ली थी वही हाथ मे लपेट नागमणि उठा ली मैंने "

मंगूस यु ही शातिर नहीं था कामखा ही कुख्यात नहीं था पक्का चोर था.

खुशी के मारे मंगूस होने दोनों हाथ ऊपर उठाये ठहाका लगा देता है.

हाहाहाहाहाहाहाहा.......कामयाबी....हाहाहाहाहा...

तभी

टननननन न.... कोई भरी चीज मंगूस की खोपड़ी से टकराती है उसकी हसीं थम जाती है और उसकी जगह एक दर्द की लहर उसके चेहरे पे दौड़ जाती है.

नागमणि हाथ से छूट के दूर गिर गई...मंगूस अपना सर पकड़े वापस धरती पे गिरता चला गया.

हाथ मे लिपटी केंचूली किसी शख्स ने उतार ली...और अपने हाथ मे लपेट नागमणि उठाये मंगूस के सामने खड़ा ही गया.

हाहाहाहाहाब........मान गए तुम्हे महान चोर मंगूस जिस तिलिस्म का तोड़ तांत्रिक उलजुलूल के पास भी नहीं था उस तिलिस्म को तुमने तोड़ नागमणि हथिया ली. मौत को भी मात दे गए.

वाह...वाह...लेकिन बदकिस्मती मुझसे ना बच सके.

मंगूस दर्द से करहाता उस साये देखता रहा जो किसी स्त्री का था भू...भू....भू....ईई...तुम और ना बोल सका बेहोशी के गर्त मे खो गया चोर मंगूस.


मांगूस बेहोशी के गर्त मे समाता चला जा रहा था.

और ऊपर हवेली मे असलम कामवती की मादक बड़ी गांड मे समाता जा रहा था.

गुदा छिद्र पे लगातार हमला कर रहा था,अपने होंठो से पकड़ पकड़ के चूस रहा था,बाहर को खिंच रहा था..

ऐसा स्वाद ऐसी महक कभी ना मिली थी असलम को,

कामवती भी ना जाने किस आनंद मे थी आंखे बंद किये दांतो तले होंठ दबाये लेती थी,गांड थूक से भर गई थी थूक रिसता हुआ नीचे जाता की तभी असलम जोर से सुर्रा मार के थूक वापस अपने मुँह मे खिंच लेता.

कामवती को ये अहसास ना जाने किस विचार मे डूबाता जा रहा था उसके मानस पटल पे दृश्य उभर रहे थे

एक मनमोहक जंगल मे एक वो पूर्ण नग्न चट्टान पे झुकी पडी है,पसीने से लथ पथ लम्बी लम्बी सांसे भर रही है,बदन मे एक उत्तेजना दौड़ रही है उसका कारण था पीछे कोई नौजवान उसकी बड़ी गांड मे अपना मुँह धसाये हुआ था उसकी जबान कामवती की चुत और गांड को कुरेद रही थी.

कामवती को लगता है जैसे उसके शरीर से कुछ निकलने वाला है,कोई गरम चीज चुत और गांड फाड़ के बाहर आ जाएगी.

सहना मुश्किल था...

आअह्ह्हभ........कामवती चिल्ला पड़ती है और आगे को गिर जाती है.

असलम जो उसकी गांड चूस रहा था एक दम बोखला जाता है.

"क्या हुआ...क्या हुआ....कामवती "?

कामवती जो बदहवास थी...आंखे खोले आसपास देखने लगी."ये कैसे दृश्य था,वो जंगल कैसा था?मै वहा क्या कर रही थी? वो युवक मेरी गन्दी जगह को क्यों चाट रहा था?कैसा मजा था वो?"

असलम :- क्या हुआ कामवती कुछ बोलो...पसीने पसीने क्यों हो गई. असलम बुरी तरह डर गया था क्युकी उसके मन मे पाप था.

कामवती खुद को संभालती है और लहंगा नीचे कर लेती है, "कुछ नहीं काका...लगता है बुरा सपना देखा मैंने "

असलम की जान मे जान आती है "कोई बात नहीं कामवती अब जहर निकल गया है डरने की कोई बात नहीं "

कामवती जो कही गुम थी....अच्छा काका अब उसके चेहरे पे डर का कोई नामोनिशान नहीं था.

"जो भी देखा वो सपना तो नहीं था"

तभी बाहर कदमो की आवाज़ आती है,असलम संभल के बिस्तर के पास खड़ा हो जाता है कामवती अभी भी लेटी हुई थी.

ठाकुर :- असलम मेरे दोस्त सांप तो मिला नहीं अब क्या होगा?

असलम :- डरिये मत ठाकुर साहेब सांप ज्यादा जहरीला नहीं था मैंने जहर निकाल दिया है. आज आराम करेगी तो कल तक ठीक हो जाएगी मै कुछ दवाई दे देता हूँ.

ठाकुर नाम से ही ज़ालिम था बाकि एक नंबर का बेवकूफ ये पूछने की जहमत भी नहीं उठाई की कैसे निकाला जहर? कहाँ काटा था सांप ने?

बेवकूफ था या असलम की दोस्ती पे विश्वास रखता था परन्तु इसी विश्वास की हत्या कर चूका था डॉ.असलम.

ठाकुर :- कैसे सुक्रिया अदा करू मेरे दोस्त तुम्हारा तुम ना होते तो ना जाने क्या होता मेरा.

असलम :- इसमें शुक्रिया की कैसी बात अपने मित्र कहा है मुझे ये तो मेरा फर्ज़ है.

वैसे इतना कुछ हो गया भूरी काकी नहीं दिखी? कहाँ है?

ठाकुर :- यही तो मुसीबत है जब जरुरत है तो भूरी काकी गायब है.

कालू रामु तुम दोनों जाओ और आस पास के गांव मे काकी की खबर लो कही कोई मुसीबत मे तो नहीं.?

"जी मालिक "

बिल्लू भी ठकुराइन की माँ को लेने गया है शाम तक रतिवती जी आ जाएगी फिर कोउ चिंता नहीं.

ठाकुर और असलम बात करते करते बाहर को निकाल जाते है.

अंदर कामवती उस दृश्य को भूल नहीं पा रही थी,उसके बदन मे एक अजीब सा संचार हो रहा था,एक उन्माद उठ रहा था.


सूरज सर पे चढ़ आया था

काली पहाड़ी मे स्थति एक गुफा नुमा कमरे मे.

"मेरे भाई बिल्ला देख मै आ गया हूँ " रंगा कमरे मे रुखसाना के साथ आ पंहुचा था.

बिल्ला अब काफ़ी स्वस्थ हो चूका था रंगा को देखते है उस से गले मिल बैठा,लगता था जैसे दो बिछड़े भई सालो बाद मिले है,

रंगा बिल्ला दो शख्स एक जान थे और उन्हें नया जीवन दिया था रुखसाना ने.

रंगा बिल्ला बहुत कुरुर थे,ज़ालिम थे ना जाने कितनी हत्या की थी

परन्तु आज वो दोनों ही रुखसाना के अहसान मंद थे.

रंगा :- कैसा है बिल्ला मेरे भाई? वो इंस्पेक्टर बोलता था की तू मरने की कगार पे है.

बिल्ला :- मै तो मर ही गया था लेकिन रुखसाना ने बचा लिया.

रंगा :- उस साले हरामजादे इस्पेक्टर को तो खून के आंसू रुलायेंगे बिल्ला उसकी सातों पुस्ते उसकी मौत याद रखेगी.

बिल्ला रुखसाना की और देखते हुए "रुखसाना आज तक कभी किसी ने मेरे लिए इतना नहीं किया जीतना तुमने किया, तुमने हमें नया जीवन दिया है.

बोलो क्या मांगती हो?

रुखसाना जो की ना जाने कब से इसी क्षण की प्रतीक्षा मे थी, यही वो समय था जिसके लिए उसने इतना कुछ किया.

रुखसाना :- मुझे अपने पति परवेज के हत्यारे का नाम और पता चाहिए रंगा बिल्ला?

रुखसाना की आँखों मे अँगारे थे

रंगा :- ये..ये...क्या कह रही हो रुखसाना तुम?

बिल्ला :- तुम्हे तो अपने पति से कोई प्यार नहीं था?

रुखसाना :- मानती हूँ की मुझे जो शारीरिक सुख तुम दोनों से मिला वो कभी मेरे पति से नहीं मिला,लेकिन मै परवेज से बहुत प्यार करती थी वो भी दिलो जान से चाहता था मुझे, मेरी मजबूरी या मेरे बदन की जरुरत ही कह लीजिये की मै आप दोनों के पास चली आई.

रंगा बिल्ला उसकी बाते सुन दंग रह गए एक स्त्री क्या नहीं कर सकती उन्हें इस बात का अहसास हो चला था.

बिल्ला :- ठीक भी रुखसाना बता देंगे परन्तु उसके बाद तुम्हारा हमसे खोज रिश्ता नहीं रहेगा,क्युकी उसके बाद तुम जिन्दा ही नहीं बचोगी....हाहाहाहाबा....

"मुझे अपना अंजाम मंजूर है "

रंगा :- तो सुनो काली पहाड़ी और विष रूप के जंगलो मे एक काली गुफा है जहाँ हमारे देवता सर्पटा विराजमान है हमने सुना है की उन्होंने ही तुम्हारे पति की बली ली है. जा बिगाड़ ले उसका.

रुखसाना ये बात सुनते ही आगबबूला हो गई...

रुखसाना आँखों मे आंसू लिए बाहर निकल गई इसकी आँखों मे अँगारे थे, बदला लेने का इरादा था..ये आँसू प्रतिशोध के आँसू थे.


सर्पटा के दुश्मनो मे एक और शख्स शामिल हो गया था.


गांव कामगंज

बिल्लू कामगंज पहुंच चूका था

रामनिवास का घर की छटा ही बदल गई थी,घर चमचमा रहा था किसी हवेली को तरह शोभा बिखेर रहा था बिखेरता भी क्यों ना.

आखिर ठाकुर खानदान के समधी जो थे, हमेशा की तरह रामनिवास दारू के अड्डे पे बैठा था,और रतिवती गुसालखाने मे नहाने को गई हुई थी,

जाते जाते रामनिवास को बोला था की बाहर से दरवाज़ा बंद कर के जाये.लेकिन रामनिवास को कहाँ सुध थी वो तो दरवाज़ा खुला छोड़े ही चला गया था.

बिल्लू रामनिवास के दरवाजे पे पहुंच गया था, ठक ठक ठक..।अंदर कोई है?

कोई उत्तर नहीं मिला

वापस ठक ठक ठक....ठाकुर साहेब के यहाँ से सन्देश आया है,कोई है?

कोई जवाब नहीं

बिल्लू :- क्या माजरा है,दरवाजा तो खुला हुआ है अंदर ही चल के आवाज़ देता हूँ.

अंदर रतिवती नहा चुकी थी, अंगवस्त्र पहन लिए थे उसकी साड़ी कमरे मे ही थी

अब घर पे तो कोई था नहीं तो कमरे मे ही जा के पहन लुंगी ऐसा सोच रतिवती बेखबर गुसालखाने से बाहर निकल आई....

बिल्लू चलता हुआ आंगन तक आ गया था.... रतिवती ने गुसालखाने का दरवाजा खोल दिया और पहला कदम बाहर ही रखा था की उसकी नजर बिल्लू पे पड़ गई....

आआहहहह......इईईईई.....डर से उसके हाथ से तौलिया भी छूट गया.

रतिवती सिर्फ अंगवस्त्र पहने बिल्लू के सामने खड़ी थी किसी कामदेवी की तरह बिलकुल तरासा हुआ बदन,असलम और मंगूस से चुद के उसके बदन मे कामुक निखार आ गया था एक चमक निकल रही थी उसके बदन से.

इस चमक से... बिल्लू भी अछूता ना रह सका उसकी सांसे ही थमने लगी थी, ऐसी स्त्री,ऐसा भरा बदन गिला पानी की बून्द टपकता,लाल अंग वस्त्र मे भरपूर यौवन उसके सामने खड़ा था

चोर.....चोर...डाकू....चिल्लाती रतिवती अपने कमरे की और भागती है, भागने से उसकी गद्देदार गांड हिल हिल के भूकंप पैदा कर रही थी और ये भूकंप,थिरकन बिल्लू को साफ अपनी धोती मे महसूस हो रही थी.


अब क्या होगा दरोगा का?

रुखसाना,सर्पटा से बदला ले पायेगी?

बने रहिये....कथा जारी है...

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