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नागमणि -32

  अपडेट -32


शाम हो चली थी,

असलम और ठाकुर साहेब हवेली के आंगन मे बैठे बतिया रहे थे,

असलम बता चूका था की वो चमेली को उसके गांव छोड़ आया है

वही ठाकुर साहेब भी बहुत ख़ुश थे आज से पहले इस तरह की कामक्रीड़ा उन्होंने कभी नहीं की थी.

अब उनके दिल मे कसक उठने लगी की कामवती भी उन्हें यही सुख दे


परन्तु कामवती तो ना जाने किस उलझन मे थी जब से सो के उठी है उसके मन मे हज़ारो सवाल उठ रहे है.

कौन है वो दोनों पुरुष? क्यों सब कुछ हक़ीक़त लगता है?

रह रह के उसका बदन झुरझुरी पैदा कर रहा था.

उसने खुद अपनी आँखों से अपनी माँ रतिवती को यौन सुख लेते देखा था एक बार को तो उसकी योनि भी पसिज गई थी.

वो अपनी ही सोच मे डूबी हुई थी की दरवाजे पे दस्तक होती है.

"किस सोच मे डूबी हो ठकुराइन?"

ठाकुर ज़ालिम सिंह कामवती के प्रति असक्त उसे देखने चले आये थे

"ठाकुर साहेब आप? आइये आइये " बोलती कामवती बिस्तर से उठ गई

ठाकुर :- हम देख रहे है तुम ख़ुश नहीं हो हमसे?

कामवती :-ना...ना....ऐसा नहीं है ठाकुर साहेब वो तो बस तबियत दुरुस्त नहीं है.

लो ठाकुर तो सोच के आया था की कामवती से कुछ प्यार भरी बाते करेगा ताकि रात मे उसके साथ कामक्रीड़ा कर सके परन्तु यहाँ तो कामवती ने तबियत का हवाला दे दिया था.

ठाकुर :- अब तो तुम्हारी माँ भी आ गई है फिर क्यों मन नहीं लग रहा.

माँ का नाम सुनते ही कामवती की आँखों मे वही दृश्य दौड़ गया जब असलम अपना मुँह रतिवती की गांड मे घुसाए चाट रहा था.

कामवती के बदन मे झुरझुरी सी हुई.

"क्या हुआ कामवती?" ठाकुर ने अपना हाथ कामवती के हाथ पे रख के पूछा.

कामवती की तरफ से कोई जवाब नहीं था.

ठाकुर के जहन मे आने लगा की स्त्री का तन पाने के लिए पहले मन जीतना होता है.

"अच्छा चलो कल सेर पे चलते है "

कामवती चहक उठी "कहाँ कहाँ...चलेंगे हम "

जब से कामवती हवेली आई थी उसका तो बचपना ही छीन गया था ना कही घूमना ना किसी से मिलना

आज घूमने की बात आई तो वो किसी बच्ची की तरह उछाल पडी.

ठाकुर साहेब उसे ख़ुश देख के प्रफुल्लित हो गए "कल सुबह ही चलेंगे वो पहाड़ी पे मंदिर है ना वही, अपनी माँ को भी बोल देना वो भी घूम लेंगी "

ठाकुर साहेब एक मुस्कान देते हुए कामवती की हथेली दबा बाहर की ओर निकल जाते है.


मुर्दाबाड़ा काबिले मे

कामरूपा की जीभ ना चाहते हुए भी किसी सांप की तरह बाहर को लप लपा रही थी उसे काबिले के जंगली लोगों के लंड से आती महक उकसा रही थी वो चाहती थी की एक बार इस कामुक महक छोड़ते अंग को चख ले हालांकि उसका दिमाग़ उसे ऐसा करने से रोक रहा था परन्तु हवस कहाँ दिमाग़ की सुनती है वो तो बस नदी का प्रवाह है जो सिर्फ बहना जानती है चाहे मार्ग मे कोई भी रूकावट आ जाये सब कुछ तोड़ के हवस अपने उन्माद पे निकल पड़ती है कामरूपा भी अपने उन्माद रुपी घोड़े पे सवार हो दौड़ चली थी की तभी सरदार भुजंग का गर्म मोटा लंड उसकी जबान से छू गया

आआहहहह....क्या अहसास था एक दम कसैला गन्दा स्वाद परन्तु ये क्या इस एक छुवन से कामरूपा का बदन कांप गया आंखे बंद हो गई ऐसा कामुक स्वाद उसने अपने इतने लम्बे जीवनकाल मे नहीं चखा था.

भुजंग :- हे सुंदरी ये ही है हमारा जादू कोई भी स्त्री हमारे लंड को देखने के बाद खुद को रोक नहीं पाती जैसे तू नहीं रोक पा रही खुद को.

कामरूपा को ये बात अब समझ आने लगी थी की भुजंग सच बोल रहा है, लाख कोशिश करने के बाद भी वो अपना मुख बंद नहीं कर पा रही थी उसके बदन मे हज़ारो बिजलिया कोंध रही थी वो अब अपने हवस के अंजाम को भी भूलती जा रही थी.

की उसकी हवस ही उसकी मौत है.

जीभ बाहर निकाले किसी कुतिया की तरह लार टपकाती कामरूपा एक टक अपने चारो तरफ घूमते लम्बे काले मोटे लोड़ो को घूरति जा रही थी.कभी एक लंड की तरफ मुँह बढ़ाती तो वो शख्स पीछे हट जाता तो दूसरी तरफ मुँह चलाती परन्तु एक भी लंड मुँह को नहीं आ रहा था बस लंड उसके गाल सर और स्तन पे चोट कर के हट जाते,कामरूपा सिर्फ तड़प के रह जाती

उसे ये तड़प उन्माद सहन नहीं हो रहा था उसके स्तन फूल के गुब्बारा हो गए थे, निप्पल किसी कील की तरह तीखे हो के तन गए थे चुत लगातार पानी बहाये जा रही थी..

कामरूपा :- सरदार भुजंग और ना तड़पाओ, आआहहहह...... कामरूपा के गले से हवस की चिंगारीया फुट रही थी उसके हाथ उसके बस मे नहीं थे कभी अपने स्तन रगड़ती तो कभी अपनी कोमल मखमली गद्दाराई चुत को कुरेदती.

भुजंग :- देवता प्रसन्न हुए अब भोगने का वक़्त आ गया है.

ऐसा बोल भुजंग अपना भयंकर हाहाकारी लंड कामरूपा के खुले लार टपकाते मुँह मे ठूस देता है


लंड इतना मोटा था की कामरूपा का मुँह लगभग फट ही गया था होंठों के किनारे से पतली खून की लकीर चल पड़ी थी परन्तु कामरूपा ने उफ़ तक नहीं की जाने क्या उन्माद सवार था उसके सर पे दर्द तकलीफ के आगे हवस वासना निकाल गई थी.

आअह्ह्हम.....गलप गुलप करती कामरूपा हाहाँकारी लंड को निगलने लगी दर्द की टिस को कम करने के लिए उसके हाथ लगातर अपनी रस बहती चुत को कुरेद रहे थे.

आस पास खड़े काबिले के लोग गुफा मे इस भयंकर मंजर को देख अपने अपने लंडो पे ताव दे रहे थे उनका नम्बर भी आना ही था शिकार शुरू हो चूका था.

सरदार भुजंग का लंड जड़ तक कामरूपा के मुँह मे समा गया था बड़े भारी भरकम टट्टे उसके होंठ से चिपक के लार मे भीग रहे थे,लंड की जड़ मे मौजूद घने बालो के गुछे कामरूपा की नाक मे घुस गए.

सांस लेना भी दुभर था,कामरूपा गु गू करती छटपटाने लगी उसके हाथ भुजंग की जांघो पे कस गए उस से रहा ना गया जोर से सांस अंदर खींची को एक तेज़ कैसेली गन्दी मादक महक उसकी नसीका से होती हुई दिमाग़ मे चढ़ गई जैसे चिलम का नशा खिंचा हो उसने,आंखे सुर्ख लाल,स्तन किसी पर्वत की तरह तन गए निप्पल किसी कील की भांति भुजंग की जांघो मे पेवस्त हो गए.

कामरूपा ने ऐसा अनोखा आनन्द ऐसा उन्माद कभी महसूस नहीं किया था उसका बदन जैसे जल रहा था जल क्या रहा था ज्वालामुखी को तरह फटने को आतुर था,

वो जानती थी की उसकी चुत से ज्वालामुखी फूटा इधर उसके प्राण गए परन्तु इस आग मे तड़पने से अच्छा था की मृत्यु ही आ जाये,हवस है ही ऐसी चीज.

कामरूपा भुजंग के लंड को अंदर ही अंदर जीभ से चुबलाने लगी.

"आअह्ह्ह.....तू तो बड़ी खिलाडी मालूम होती है " भुजंग इस प्रहार से सिसकता हुआ बोला.

कामरूपा अपनी तारीफ सुन आंखे ऊपर कर भुजंग को देखती है एक काला दानव उसके मुँह मे लंड डाले खड़ा था ना जाने क्यों उसे ये सब पसंद आ रहा था वो अपना सर आगे को बड़ा देती है जैसे तो लंड के साथ उन बड़े टट्टो को भी निगल जाएगी.


भुजंग और बाकि के सेवक भी ये दृश्य देख हैरान थे आज तक कोई स्त्री ऐसा नहीं कर पाई थी मुँह मे ही मुश्किल से जाता था भुजंग का लंड यहाँ तो कामरूपा और अंदर लेने का प्रयास कर रही थी.

कामरूपा के होंठ लंड की जड़ पे कस गए और आगे पीछे होने लगे,जैसे ही कामरूपा के होंठ बाहर खींचते हुए लंड के सुपडे तक आते कामरूपा वापस गुलप कर अपने होंठ जड़ तक दे मारती,

भुजंग के टट्टे कामरूपा के होंठ से टकरा के मधुर कामुक संगीत पैदा करते.

मादक दृश्य मादक संगीत सुन सभी के लंड कामरूपा की वाह वही कर उठे.

चप..चप....आअह्ह्ह....आअह्ह्ह.....फच फच...की आवाज़ के साथ भुजंग का लंड कामरूपा के गले तक गोते लगा के वापस आ जाता,

थूक से सना लंड चमक पैदा कर रहा था.

कामरूपा अपनी मस्ती मे मस्त लंड को खाये जा रही थी उसके बदन की गर्मी इस कदर बढ़ गई थी की उसकी उंगलियां चुत की दिवार को कुरेद रही थी उसे इस गर्मी को निकलना था.

मुँह से निकलता थूक गले से होता हुआ स्तन को भीगा चूका था, लपा लाप जबान और होंठ भुजंग के काले लंड पे दौड़ रहे थे.

जैसे कामरूपा पूरा ही निगल जाएगी वहा मौजूद सभी मर्द इस रंडीपने पे हैरान थे की कोई औरत इस कदर भी कामुक और मदहोश हो सकती है.

"आअह्ह्ह....आअह्ह्ह..... कामरूपा " बस बस कर

भुजंग का सब्र जवाब देने लगा था आजतक इतनी जल्दी झड़ने की कगार पे नहीं आया था मुर्दाबाड़ा काबिले का सरदार भुजंग.

परन्तु आज उसे ये फिसलन ये गर्माहट बर्दाश्त नहीं हो रही थी उसका पाला आज बला की कामुक औरत से जो पडा था.

इधर कामरूपा को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था वो सिर्फ लंड का स्वाद ले रही थी उसे इस से ज्यादा स्वादिष्ट व्यंजन कभी नहीं मिलना था उसके हाथ लगातार अपनी योनि की गहराइयों को खांघाल रही थी.

जैसे वो अपनी योनि की गहराई मे कुछ ढूंढ रही हो ढूंढ के बाहर निकाल देना चाहती हो परन्तु आज वो इतनी गर्म होने के बावजूद भी नहीं झड़ रही थी कभी लगता था की कामरस का ज्वालामुखी फटने को ही है परन्तु जैसे ही चुत मे ऊँगली डाल के वो उस कामरस को बाहर निकलने की कोशिश करती वो ज्वालामुखी ना जाने कहाँ गायब हो जाता.

कामरूपा तड़प रही थी उसे स्सखालन चाहिए था उसे अपनी आग ठंडी करनी थी इस झुनझूलाहट मे कामरूपा भुजंग के लंड को पूरा जड़ तक निगल लेती है थूक से उसका मुँह और लंड इतना चिकना और बड़ा हो गया था की भुजंग के भरी भरकम टट्टो को भी मुँह मे भर लेती है उसके होंठ भुजंग के पेट से चिपक गए थे.

आह्हः...आह्हः...बस कर भुजंग झड़ने लगा था उसके लंड से निकला ढेर सारा वीर्य सीधा गले मे निकलने लगा और सीधा जा के पेट मे एकत्रित होने लगा.

वीर्य निकलते ही भुजंग धाराशाई हो गया इतनी जल्दी और इतनी बुरी तरह वो कभी नहीं झड़ा था जैसे उसके प्राण लंड के रास्ते निकाल कामरूपा के शरीर मे समा गए हो.

परन्तु ये क्या कामरूपा अभी तक किसी वहशी की तरह लंड को मुँह मे घुसाते चूसती जा रही थी.

भुजंग के लिए अब बर्दाश्त करना मुश्किल था "पीछे हट साली रंडी " बोल के भुजंग लात मर के दूर फेंक देता है.

कामरूपा :- साला नामर्द कही के इतनी जल्दी झड़ गया कोई मर्द है यहाँ पे या सब सरदार की तरह ही नपुंशक है.

आअह्ह्ह...आआहह..... कामरूपा जमीन पे गिरी पैर फैलाये अपनी चुत की धज्जिया उडाने मे लगी थी लगभग उसकी पांचो उंगलियां उसकी चुत मे समा गई थी

 परन्तु उसकी गर्मी कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी.

सारे काबिले के मर्द औरत का ये रूप देख के हैरान थे ऐसा यौवन ऐसा कामुक नजारा कभी किसी ने नहीं देखा था. टांगे फैलाये अपने स्तन दबाती कामरूपा सभी मर्दो के बीच तड़प रही थी हवस की प्रचंड आग मे

कामरूपा सभी मर्दो की तरफ उम्मीद की नजर से देख रही थी की कोई तो उसकी हवस मिटाये उसकी चुत की खुजली शांत करे की तभी कामरूपा के कानो मे आवाज़ गूंजती है

"जा ये मेरा श्राप है जैसे तूने मुझे सम्भोग के लिए तरसाया है तू भी वैसे ही तरसेगी,तेरी हवस कभी शांत नहीं होंगी "

कामरूपा के मस्तिष्क मे उलजुलूल के द्वारा दिया गया श्राप गूंजने लगा उसे अहसास होने लगा था की तांत्रिक का श्राप सच हो गया है.

***************



रात का अंधेरा पसरने लगा था,सुनसान जंगल मे चोर मंगूस अपनी असफलता को मिटाने के लिए भटक रहा था,उसे कैसे भी कर के कामरूपा को ढूंढ निकालना था.

"उफ्फ्फ्फ़...ये भूरी काकी कहाँ मर गई पूरा जंगल छान मारा, हरामी छिनाल मेरे नाम पे धब्बा लगा गई,आज तक कोई भी चोरी का माल मेरे हाथ से नहीं निकला है.

खुद मे ही बड़बड़ता चोर मंगूस एकाएक ठिठक जाता है "ये इतनी सारी माशाले क्यों जल रही है? ये उस पहाड़ी पे रौशनी दिख रही है.

मुझे देखना होगा.. मंगूस को आशा की किरण नजर आ चुकी थी वो उस रौशनी की और बढ़ चला था जो की पहाड़ी मे स्थित गुफा से फुट रही थी

वही गुफा के अंदर कामरूपा अपने ज्वालामुखी मे हाथ डाले फुटना चाहती थी परन्तु उसकी लाख कोशिश के बाद भी वो कामयाब नहीं हो पा रही थी.

सरदार भुजंग अब तक अपनी सांसे दुरुस्त कर चूका था,

"हमफ्फ..हमफ़्फ़्फ़....देख क्या रहे हो कमीनो टूट पढ़ो इस छिनाल पे साली मे बहुत आग है एक एक बोटी नोच लो इसकी "

सरदार का आदेश पाते ही सेनापति मरखप और उसके आदमी टांग फैलाये कामरूपा की और बढ़ चले सभी के काले मोटे भयानक लंड हुंकार भर रहे थे.

कामरूपा को भी अपनी कामअग्नि बुझाने की उम्मीद दिख पड़ी थी.उसे कतई डर नहीं था की 6 मर्द वो भी भयानक लंड के मालिक उसका क्या हाल करेंगे,उसे तो मरना भी मंजूर था अपनी हवस मिटाने के लिए.

सभी मर्दो ने कामरूपा के चारो तरफ घेरा डाल लिया,कामरूपा इतनी ज्यादा गरम थी की लपक के अपने हाथो से दो आदमियों के मोटे लोड़ो पे कब्ज़ा जमा लिया और उन्हें अपने हाथो से मसलने लगी.

आअह्ह्ह....अह्ह्ह....इस कदर रंडीपने से सभी मर्दो की आह निकल गई.

मरखप इस उत्तेजना से भरे दृश्य को देख ना सका कामरूपा को फैली हुई टांगो के बीच अपने घुटने टिका दिए उसके भरी भरकम लंड ने कामरूपा की चुत पर दस्तक दे दी.

मरखप को तो ऐसे लगा जैसे उसने अपना लंड किसी गरम तवे पे रख दिया हो.

"आअह्ह्ह....कितनी गरम छिनाल है रे तू आज तो मजा आ जायेगा "

ऐसा बोल मरखप अपने लंड को कामरूपा की रस बहाती चुत के मुहने पे रख देता है, लंड इतना मोटा था की पूरी चुत ही ढक ली थी.

सभी की निगाहेँ उसी गठजोड़ पे ठीक गई थी एक पल को कामरूपा भी दहशत मे आ गई थी उसने अपने हाथो मे थामे लंड को बुरी तरह भींच लिया था.

चुत पूरी तरह गीली हो रस टपका रही थी कामरूपा की चुत को कोई मतलब नहीं था वो स्वागत के लिए मुँह बाये लार टपका रही थी.

आअह्ह्ह.....फुर्ररररररर.....आअह्ह्ह....कामरूपा की आंखे उलट गई उसकी चुत मे एक जोरदार धमाका हुआ फच कर के अंदर का पानी बाहर को आ गया.

मरखप का हाहाकारी लंड कामरूपा की गरम रस उगलती चुत मे पेवास्त हो गया था.

लंड था की समाता जी जा रहा था कामरूपा के हाथ दोनों सेवको के लंड पे भींच गए थे जैसे तो वो उखाड़ ही देगी.

"आअह्ह्ह....मै मर जाउंगी बाहर निकालो इसे "

खेली खाई कामरूपा भी चित्कार उठी.

"क्यों बे छिनाल बड़ी रांड बन रही थी क्या हुआ अब?" पास बैठा सरदार खुशी से चहक उठा उसे ऐसा लगा जैसे उसका बदला मरखप ने ले लिया हो.

सरदार :- इसकी चुत फाड़ दे रे मरखप इसका मक्खन तो चखा सबको देखे कितनी ताकत है इस गद्दाराये बदन मे.

मरखप को ये आदेश ना मिलता तब भी वो नहीं रुकने का था.

वो बिना किसी परवाह है जानवर की तरह अपना लंड बाहर खींचता है और वापस एक झटके मे वापस ठेल देता है पूरा जड़ तक उसके टट्टे कामरूपा की गांड से जा टकराये जो इस बात का सबूत था की कामरूपा को बच्चेदानी को भेद के लंड अंदर जा चूका है.

आअह्ह्ह....आअह्ह्ह....मर गई " कामरूपा मारे दर्द के होने बाल नोच रही थी दर्स और तड़प से उसकी चुत सुख गई थी.

लंड इतना टाइट घुसा था थी अंदर और कोई जगह ही नहीं थी पानी की भी नहीं.

मरखप अपनी जीत पे मुस्कुरा उठा जिस औरत ने उसके सरदार भुजंग को भी तारे दिखा दिए थे उस कामुक औरत की चुत फाड़ दी थी सेनापति मरखप ने.

"वाह मरखप वाह....तेरे लंड मे वाकई दम है " सरदार ने उसकी तारीफ करते हुए ताली बजा दी.

मरखप अपनी प्रशंसा सुन जोश मे भर गया इसी जोश मे फिर से लंड को सुपडे तक बाहर निकाला और वापस एक झटके मे बच्चेदानी के अंदर समा गया.

अब ये सिलसिला चल पडा ठप ठप ठप...तड़ तड़ तड़...की आवाज़ केसाथ मरखप के टट्टे कामरूपा की गांड से टकरा रहे थे..

कामरूपा दर्द से बिलबिलाती अपने बाल नोच रही थी.

तभी पास बैठे आदमियों ने भी अपना मोर्चा संभाल लिया किसी ने स्तन पकड़ लिए तो किसी ने अपना लोडा कामरूपा के मुँह मे ठूस दिया.

चारो तरफ से हमला शुरू हो गया था धीरे धीरे दर्द वासना मे बदलने लगा चुत फिर से पानी छोड़ने लगी

पच पच को आवाज़ के साथ मरखप का लंड कामरूपा की गहरी चुत मे ना जाने कहाँ खोता जा रहा था.

"आअह्ह्ह.....ममममम.....और जोर से और अंदर डाल साले ताकत नहीं है क्या " कामरूपा वासना के घोड़े पे चढ़ी मरखप को ललकार रही थी.

मुँह मे एक के बाद एक लंड घुसते जा रहे थे,थूक और पसीने से पूरा बदन चमक रहा था.

सरदार भुजंग कामरूपा को उत्तेजन देख ख़ुश हो रहा था उसे लग रहा था की कामरूपा जल्दी ही स्सखालित होने वाली है "शाबास मरखप मेरे शेर निकाल दे पानी इस छिनाल का, फिर इसका भोग देवता को लगा के पेट पूजा करंगे,देख कितना मांस चढ़ा है इसके बदन पे"

समय ज्यादा नहीं बिता था कामरूपा का बदन ज्वालामुखी जैसे तपने लगा था,लगता था जैसे की उसका शरीर ही फट जायेगा.

इधर मरखप की हालात लगातार ख़राब हो रही थी उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसका लंड जल रहा है उसने किसी दहकती भट्टी मे लंड ठूस दिया हो.

"आअह्ह्ह......सरदार मे गया "बोल के मरखप कामरूपा के ऊपर ही ढेर होता चला गया.मरखप बुरी तरह हंफ रहा था उसके प्राण निकलते प्रतीत हुए थे उसे.

नीचे दबी कामरूपा अपनी गांड को ऊपर की और उछाल रही थी उसे कोई मतलब नहीं था मरखप के झड़ने से उसे तो और अंदर लंड चाहिए था.

इसी आवेश उत्तेजना मे और अंदर लेने की जिद्द मे कामरूपा अपनी कामुक बड़ी गांड ऊपर को उछाल रही थी. उसका जवालामुखी फटते फटते रह गया था.

मरखप :- नहीं नहीं....और नहीं

कामरूपा अपनी हवस से तिलमिला उठी उसके गुस्से का कोई ठिकाना नहीं था ना जाने कैसे उसने मरखप के सीने पे लात मार दी "नामर्द साले इतना ही दम है तुम सब के लोड़ो मे "

सब साले हिजड़े हो.

ना जाने कामरूपा को क्या हो गया था वो कामअग्नि मे जल रही थी पागल हो गई थी.

उसे अपनी चुत मे लंड चाहिए था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करे.

तभी एक सेवक को पकड़ नीचे गिरा देती है और फटाक से अपनी चुत को उसके खड़े लंड पे रख एक दम अपना पूरा वजन डाल बैठ जाती है.

उसकी बड़ी गांड के नीचे सेवक के टट्टे मसल गए थे "चोद साले तू चोद मुझे बहुत शौक है ना तुम्हे चुदाई का चोद साले मिटा मेरी प्यास "

ना जाने क्या क्या बड़बड़ाती कामरूपा किसी वहांशी पागलो की तरह चिल्ला रही थी अपनी गांड जोर जोर से पाटक रही थी.

कभी अपने बड़े भाटी स्तन को मसलती तो कभी अपने चुत के दाने को,बाकि सेवक स्त्री का ये रूप देख अतिउन्माद मे लंड मसल रहे थे.

सरदार भुजंग और सेनापति मरखप ये दृश्य देख हैरान थे,कामरूपा के रोन्द्र रूप से डर रहे थे,

आज तक वो खुद को ही सुरमा समझते थे लेकिन यहाँ दाँव उल्टा पड़ गया था.

"जा कामरूपा तू भी हवस मे जलेगी,तेरी हवस कभी शांत नहीं होंगी " कामरूपा के कान मे तांत्रिक उलजुलूल के शब्द गूंज उठे.

*************


रात का अंधेरा छा गया था, विषरूप ठाकुर की हवेली मे सभी लोग खा पी के सोने को तैयारी मे थे.

आज शाम से ही कामवती चहक रही थी क्यूंकि ठाकुर साहेब ने उसे अगले दिन घुमाने ले जाने का वादा जो किया था.

रतिवती अपने कमरे मे ख़ुश थी, उसने जब से ठाकुर ज़ालिम सिंह से नातेदारी की है तभी से उसके दिन फिर गए थे राज जीवन का आनंद ले रही थी.

ऊपर से कल रात की ताबड़तोड़ चुदाई से उसका अंग अंग महक रहा था, उसका बदन खिल के पूरी तरह गुलाब जैसा महक रहा था.बिल्लू रामु कालू को सांसर्ग उसे पसंद आया था इतना की वो डॉ.असलम को भी भूल गई थी.

अपने कमरे मे आदम कद शीशे के सामने लगभग अर्धनग्न अवस्था मे खड़ी वो हाथ मे थामे उस हिरे को घूर रही थी जो की उसे जंगल मे मिला था.

"मै कितनी भाग्यशाली हूँ मेरी बेटी का ब्याह एक ऊँचे ठाकुर खानदान मे हो गया ऊपर से मुझे ये बेशकीमती हिरा भी मिल गया"

नागमणि को हाथ मे लिए रतिवती इतरा रही थी, नागमणि की चमक से रतिवती का कामुक बदन चमक रहा था रतिवती सिर्फ साड़ी लपेटे खड़ी थी उसकी चूचियाँ एक तंग ब्लाउज मे कैद बाहर निकलने को आतुर थी.

परन्तु नागमणि से ज्यादा चमक उसकी आँखों मे थी लालच की चमक और ज्यादा पाने की चमक,लेकिन कहते है ना लालच बुरी बला है..

रतिवती खुली आँखों से हसीन सपने देखते हुए नागमणि को वापस से साड़ी के पल्लू मे बांध लेती है और वही बिस्तर पे धाराशाई हो जाती है.

सुखद सपने उसे अपने आगोश मे ले लेते है.



वही दूर गांव कामगंज मे रतिवती का पति रामनिवास दारू के अड्डे पे एक के बाद एक जाम गटकाये जा रहा था अब उसके पास खूब पैसा था.


"देख साले रामनिवास को इसके तो दिन ही फिर गए खूब माल पिटा है इसने अपनी बेटी की शादी कर के "

दारू के अड्डे पे किसी कोने मे बैठे 3आदमी आपस मे फुसफुसा रहे थे.

ये तीनो अव्वल दर्जे के जुआरी है,जुए के महान खिलाडी, कामगंज के ही रहने वाले थे.

जेल मे आना जाना लगा रहता था,आज 2 महीने बाद जेल से रिहा हो के दारू चूसक रहे थे.

इन तीनो के मात्र तीन शौक है जुआ,औरत और दारू


एक असरफ

ऊँचे कद का, बालो से भरी चौड़ी छाती, मुँह मे तम्बाकू, किसी औरत को चोदने मे आ जाये तो चुत का सत्यानाश कर देता है.

हमेशा मुस्लिम टोपी पहने रहता है इसे सब उस्ताद कहते है

बातो से किसी को भी फसा लेने मे माहिर



दूसरा सत्यनारायण मिश्रा

जन्म से जनेऊधारी ब्राह्मण,दिमाग़ से चतुर बनिया, शरीर से सादहरण

परन्तु ना जाने कैसे जुए और ठगी के धंधे मे आ गया.

दिखने मे गिरा चिट्टा साफ सुथरा कोई कह ही नहीं सकता की ये ठग है. पत्ते बाटने और फेटने मे इसकी कलाकारी है.

दिमाग़ ऐसा की खड़े खड़े किसी को ठग ले.

इसे इसके असली नाम से कोई नहीं जनता सब इसे सत्तू ही कहते है.


तीसरा करतार सिंह

पगड़ीधारी सरदार इसे सिर्फ एक ही काम आता है मार पिटाई का इतना तगड़ा की एक हाथ रख भी दे तो आदमी ढेर हो जाये.

इसका काम वसूली का है जुए मे हारा हुआ खिलाडी पैसे देने से मना तो कर के देखे उसकी खाल खिंच लेता है.

 सत्तू : उस्ताद ये रामनिवास के जलवे देख रहे हो,बहुत माल पीटा है इसने ठाकुर से.

करतार :- हाँ यार सत्तू बोलता तू सही है पहले उधारी दारू पीता था आजकल अंग्रेज़ों वाली पीता है ऊपर से पिलाता भी है.

उस्ताद :- तो फिर सोचना कैसा इसे ही बना लेते है बकरा बेचारा बुढ़ापे मे इतने पैसो का करेगा क्या.

हाहाहाहा....तीनो हस पड़ते है.

करतार :- लेकिन क्या वो हमारे साथ जुआ खेलेगा?

सत्तू :- क्यों नहीं खेलेगा? पैसा है उसके पास और मै किस खेत की मूली हूँ.

मै अभी आया....इशारा करू तो तुम लोग आना.

बोल के सत्तू रामनिवास की टेबल की और बढ़ जाता है.

रामनिवास एक बोत्तल दारू गटका चूका था और उसकी गन्दी आदत थी की पिने के बाद उसे सब दोस्त ही नजर आते थे.

सत्तू :- अरे रामनिवास बहुत दिन बाद दिखा, सत्तू कुर्सी पे बैठता हुआ बोला.

रामनिवास :- कौन भाई? मैंने पहचाना नहीं?

नशे मे चूर आंखे मीचमीछाते हुए रामनिवास बोला.

सत्तू :- साले तू दारू पीने के बाद हमेशा भूल जाता है तेरा बचपन का दोस्त सत्तू.

रामनिवास :- अरे सत्तू तुम आओ आओ बैठो, ये लो तुम भी पियो.

दारू से भरी गिलास सत्तू की और बड़ा दी.

सत्तू :- अरे राम निवास इस कदर कब तक पियेगा? आगे कुछ सोचा भी है या नहीं?

रामनिवास :- मतलब मै समझा नहीं?

सत्तू :- देख मै तेरा बचपन का दोस्त हूँ इसलिए समझा रहा हूँ.

नशे मे चूर रामनिवास को सत्तू के अंदर अपना हितेषी नजर आने लगा.

"ऐसे ही पीता रहा तो पैसा एक ना एक दिन ख़त्म हो जायेगा फिर क्या करेगा?"

रामनिवास इस बार वाकई गहरी सोच मे डूब गया.

रामनिवास :- बात तो तेरी सही है मेरी बीवी भी यही बोलती है

सत्तू :- तो तूने कुछ सोचा

रामनिवास :- मुझे तो खेतो मे काम करने के अलावा कुछ नहीं आता दोस्त

सत्तू :- तू गधा ही रहेगा, मजदूर ही रहेगा कुछ बड़ा मत सोचना

रामनिवास :- तो तू ही बता क्या करू मै?

सत्तू :- देख तेरे पास पैसा है और मेरे पास दिमाग़

हम जल्दी से जल्दी ज्यादा पैसे कमा सकते है ताश खेल के.

रामनिवास ने पहले भी खाली टाइम पे जुआ खेला था छोटी मोटी रकम का यूँ ही समय काटने के लिए.

गांव की चौपाल पे कुछ दोस्त जुआ खेल लिया करते थे दारू पिलाने की शर्त पे जिसमे रामनिवास लगभग हमेशा जीत ता था.

रामनिवास :- चेहक के...अरे वाह ताश का जुआ खेलने मे तो मै उस्ताद हूँ इस से पहले ये विचार मेरे दिमाग़ मे क्यों नहीं आया पैसा कमाने का.

सत्तू :- तेरे मुँह से ये दारू की बोतल निकले तब ना कुछ सोचेगा, चल मेरे साथ आज पैसे पीटते है.

रामनिवास को अपने ऊपर खूब भरोसा था ऊपर से दारू और पैसे की गर्मी वो जल्द ही सत्तू के जाल मे फस गया.

और सत्तू के साथ दारू के अड्डे के बाहर निकाल लिया

सत्तू ने इशारे से उस्ताद और करतार को भी बता दिया की बकरे ने चारा खा लिया है

रामनिवास :- हम कहाँ जा रहे है?

सत्तू :- मेरी नजर मे दो आदमी है जिनके पास मोटा माल है उनसे ही जुआ खेलेंगे.

गांव के बाहर झोपडी मर ही रहते है.

रामनिवास लालच के नशे मे चूर सत्तू के पीछे पीछे चल पडा. मन ही मन पैसो के ख्याब देख रहा था "रतिवती मुझे हमेशा गाली देती रहती है अब उसे भी पैसे कमा के दिखा दूंगा मै "


गांव घुड़पुर

टप टप टप...तिगाड़ तिगाड़

घोड़े की कदम ताल सुन के ठकुराइन रूपवती अपनी भीमकाय काया के साथ कमरे से बाहर आई.

वीरा...वीरा....आ गए तुम?कैसा है हमारा भाई?

लेकिन जैसे ही वो वीरा को देखती है हैरानी से उसकी आंखे फटी रह जाती है.

"ये....ये...कौन है वीरा?"

वीरा रुखसाना को अपनी पीठ से नीचे उतरता है और खुद मानव रूप मे आ जाता है.

रुखसाना जो अभी अभी सर्पटा के खौफ से बाहर भी नहीं आई थी की ये नजारा देख उसका दिल मुँह को आ जाता है उसके आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी.

रुखसाना :- ये सब क्या हो रहा है? कौन हो तुम लोग?

रूपवती :- ये लड़कियों कौन है वीरा? मेरा भाई कहाँ है?

वीरा :- रुखसाना डरो मत अब तुम सुरक्षित हो मेरी बहन.

मालकिन मै सब बताता हूँ अंदर चलिए.

अंदर पहुंच वीरा रूपवती को सर्पटा से मुड़भेड़ का सारा किस्सा कह सुनाता है.

रुखसाना जो अब तक बैचैन थी वो आश भरी निगाहो से कभी रूपवती को देखती कभी वीरा को.

वीरा रुखसाना को पिछले जन्म की कहानी सुना देता है की कैसे उसकी मौत हुई थी,सर्पटा ने घुड़वती का बलात्कार कर मार डाला था..


रुखसाना :- इसलिए वो मेरे पीछे पडा है, सर्पटा से बदला लेने ही निकली थी मै

रुखसाना की आँखों मे अंगार थे परन्तु वीरा के लिए आदर भी था उसे बरसो बाद कोई अपना मिल गया था.


पति पत्नी दोनों ही लालच के आगोश मे समा रहे थे देखना होगा की लालच कहाँ जाता है

क्या रामनिवास जीतेगा या फिर युधिष्ठिर की तरह सब कुछ हार बैठेगा?

बने रहिये कथा जारी है...



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