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नागमणि -33

  अपडेट -33


आअह्ह्ह.....आअह्ह्ह....और तेज़ मारो हरामियों नामर्द हो क्या सब के सब.

मुर्दाबाड़ा काबिले मे रात के सन्नाटे को चिरती कामरूपा की आवाज़ गूंज रही थी,कामरूपा किसी घायल शेरनी की तरह खूंखार वहांशी हो उठी थी.

सेवक के लंड पे अपनी गांड पटकते पटकते उसे काफ़ी समय बीत चूका था परन्तु वो अपने चरम पे नहीं पहुंच पा रही थी यही खीज और बदन की गर्माहट उसे चैन नहीं लेने दे रही थी गुस्से और हवस मे वो जो मन मे आता बके जा रही थी.

नीचे लेता सेवक अपने प्राण की खेर मना रहा था उस से अब रुका नहीं जा रहा था.

पास बैठा सरदार भुजंग ये कामुक नजारा देख बेकाबू होता जा रहा था उसका लंड वापस अकड़ने लगा था.

"साली बहुत बड़ी छिनाल है " भुजंग अपनी जगह से उठ खड़ा होता है उसका हाहाँकारी लंड जांघो के बीच झूल रहा था.

कामरूपा उस देत्य को अपनी और बढ़ता देख ख़ुश हुई की शायद अब उसकी प्यास बुझ जाये.

कामरूपा ने उन्माद मे भर अपने स्तनों को भींच लिया जैसे भुजंग का हौसला बढ़ा रही हो.

भुजंग कामरूपा की बड़ी गांड को ही घूर रहा था सेवक के लंड पे अपनी गांड पटक पटक के लाल कर ली थी.

भुजंग चलता हुआ कामरूपा के पीछे आ चूका था जहाँ उसकी गांड का लाल चिद्र चुत रस और थूक से सना हुआ चमक रहा था गुहा छिद्र की चमक भुजंग की आँखों मे साफ देखि जा सकती थी.

भुजंग घुटने के बल बैठता चला गया उसका काला भयानक लंड कामरूपा की गरम सुलगती गांड मे पडा तो कामरूपा के मुँह  से एक सुखद आनंदमयी आअह्ह्हम्मम..निकल गई.

भुजंग का लंड किसी काले सांप की भांति कामरूपा की गोरी मखमली बड़ी गांड पे लौट रहा था,

कामरूपा को कुछ कुछ अंदाजा हो चला था की क्या होने वाला है परन्तु वो इस कदर काम अग्नि मे जल रही थी की उसे अंजाम को परवाह नहीं थी उसे सिर्फ हवस मिटानी थी अपनी चुत की गर्मी को बाहर निकालना था अब चाहे गांड के रास्ते निकले या फिर चुत के रास्ते.

भुजंग अपने लिंग को पकड़ कामरूपा की गांड की दरार मे चलाने लगा,कमरे मे सन्नाटा छा गया था नीचे से चुत मे लंड घुसए सेवक भू शांत था सिर्फ कामरूपा की मदहोशी से भरी सांसे चल रही थी नाथूने फूल पिचक रहे थे.

की तभी आआआ.....अअअअअ....हहहहहह....की आवाज़ ने सन्नाटा को चिर दिया पास खड़े दर्शक गण खुशी से झूम उठे इस चीख मे हवस का जायका था.

भुजंग का लंड कामरूपा की बड़ी गांड के छोटे छेद मे आधा घुस चूका था.

पिच...करती एक खून की पतली धार ने भुजंग के लंड का तिलक अभिषेक कर दिया.

कामरूपा की गांड फैलती चली गई....आआहहहह.....आअह्ह्ह..... दर्द इतना भीषण था की कामरूपा की चुत से फर फ्रा के पेशाब छूट गया.

पेशाब इस कद्र दबाव से निकला की चुत मे घुसा सेवक का लंड बाहर को फिक गया.

"आअह्ह्ह....सरदार आअह्ह्ह....रुकना नहीं और अंदर " कामरूपा मदहोशी मे चीख उठी.

ये क्या....जिस सरदार भुजंग के लंड से औरते मर जाया करती थी,पानी मांगने लगती थी आज वो ही लंड ये कामरूपा और अंदर डालने की बात कर रही है.

वहा मौजूद सभी आदमी आश्चर्य चकित रह गए किस तरह की औरत है ये.

कामरूपा जो कामवासना से घिरी हुई थी उसे क्या लेना देना था उनके आश्चर्य से उसे सिर्फ अपने शरीर की गर्मी निकालनी थी.

कामरूपा के ये शब्द भुजंग के अभिमान पे चोट की तरह था,उसकी मर्दानगी पे सवाल था.

भुजंग :- साली छिनाल.....ये ले बोलते हुए भुजंग ने एक ही झटके मे अपना पूरा राक्षसी लंड कामरूपा की गांड मे घुसेड़ दिया.

फिर क्या था.....धचा धच धचा धच..... गांड मे लंड जाने लगा.

सुपडे तक बाहर आता फिर टट्टो तक अंदर चला जाता.

कामरूपा :- आअह्ह्ह....आअह्ह्ह.... सरदार और जोर से आअह्ह्ह..... फाड़ मेरी गांड...आअह्ह्ह... और अंदर और अंदर

कामरूपा पागल हो चुकी थी उस से उसका बदन नहीं संभाल रहा था

पास खड़े मरखप और बाकि सेवक भी कामरूपा पे टूट पड़े

सामूहिक हमला हो चूका था कभी किसी का लंड मुँह मे तो कभी चुत मे तो कभी गांड मे....

कामरूपा अकेले ही 7 मर्दो से मुकाबला कर रही थी.

मारे लज्जात हवस के आंखे बंद होती तो कभी खुलती.


इधर रामनिवास सत्तू के पीछे पीछे चलता जा रहा था.

नजदीक ही झपड़ी दिखाई देती है

सत्तू :- आओ रामनिवास

उस्ताद :- अरे सत्तू ये किसे ले आया?

सत्तू :- उस्ताद ये अपना पुराना यार है आज दारू खाने पे मिल गया था सोच साथ ले आउ खेल लेगा ये भी.

जैसा उन्होने प्लान किया था रामनिवास के सामने वैसे ही बात चल रही थी.

रामनिवास झोपडी मे अंदर आ गया सभी का आपस मे परिचय हुआ.

और जिस काम के लिए रंगमंच सेट हुआ था वो काम भी शुरू हो गया.

चारो के पत्ते बट चुके थे,पहला दवा रामनिवास आसानी से जीत गया.

उस्ताद :- अरे वाह कमाल खेलते हो तुम तो

सब मुझे उस्ताद बोलते है लेकिन असली उस्ताद तो तुम निकले.

रामनिवास अपनज तारीफ और जीते हुए पैसे देख गदगद हो गया.

उसे लगने लगा वो वाकई मे जुए का उस्ताद है.

जबकि ये सब उन तीनो ठगों की योजना का हिस्सा था.

दूसरा दाँव खेला गया ये भी राम निवास जीत गया,तीसरा खेला गया ये भी रामनिवास जीत गया.

ऐसे ही और कुछ दाँव खेले गए और सभु रामनिवास जीतता गया.

तीनो के मुँह लटक गए, रामनिवास तो खुशी के मारे हवा मे उड़ रहा था.

सत्तू :- यार रामनिवास तूने तो हम सबको एक बार मे नंगा कर दिया, सत्तू लगभग रोते हुए बोला.

रामनिवास :- दिल छोटा मत कर सत्तू ये तो खेल का हिस्सा है हार जीत होती रहती है.

ये ले कुछ पैसे दारू प लेना, रामनिवास ने सत्तू की और पैसे फेंक दिए.

रामनिवास को अपनी किस्मत पैसे का घमंड हो चूका था

उसे लगता था की लक्ष्मी माँ उस पे मेहरबान है इसी गुरुर मे छाती चौड़ी किये वो झपड़ी से बाहर निकल चला


पीछे....

उस्ताद :- हाहाहाहा....बकरे ने चारा खा लिया है.

सत्तू :- हाँ उस्ताद देखि आपने उसकी आँखों की चमक साला लगता था की जैसे कोई पक्का जुआरी हो.हाहाहाहाबा....

करतार :- कल आएगा अब बकरा खुद हलाल होने.

उस्ताद :- हाहाहाहा.... ला भाई दारू पीला.


सुबह होने मे अभी वक़्त था

रामनिवास को आज रात भर नींद ही नहीं आई थी उसकी आँखों के सामने पैसे नाच रहे थे बेशुमार दौलत जो वो जुआ खेल के कमा सकता था.

लेकिन जुए मे ज्यादा पैसे कमाने के लिया पैसे भी ज्यादा चाहिए और सभी पैसो पे तो रतिवती कब्ज़ा कर के बैठी थी.

"रतिवती को कैसे मनाऊंगा?" ऐसे तो पैसा रखे रखे खत्म भी ही जायेगा.

रामनिवास अपनी किस्मत पर गुरुर करता हुआ काफ़ी कुछ सोचे जा रहा था आखिर कार निर्णय ले ही लिया उसने.

"भौर होने वाली है विषरूप जा के रतिवती को ले आता हूँ मना लूंगा जैसे तैसे आखिर मुफ्त मे मिले पैसे किसे अच्छे नहीं लगते"

रामनिवास लालच मे सुध बुध गवा चूका था उसे सिर्फ ढेर सारी दौलत दिख रही थी.

इसी उद्देश्य से वो रतिवती को लेने निकल पडा.

क्या वाकई रामनिवास की किस्मत तेज़ है या फिर लालच मे अंधा हो गया है.

*********



सुबह कि हलकी रौशनी क्षितिज पे दिखने लगी थी. कामरूपा किसी वहसी पागलो कि तरह गुर्रा रही थी, उठो सालो प्यास बुझाओ मेरी नामर्दो...

आस पास सातों काले रक्षस जैसे मुर्दाबाड़ा काबिले के लोग थके हारे हांफ रहे थे,किसी मे भी उठने का साहस नहीं बचा था,

कामरूपा पूरी तरह वीर्य और पसीने से भीगी गुर्रा रही थी कभी सरदार का मुरझाया लंड टटोलती तो कभी बाकि सेवको का.

परन्तु मजाल कि किसी का लंड हरकत कर जाये, अपने लंड से जान ले लेने वाले आज खुद जमीन पे धाराशाई पड़े थे जैसे उनके शरीर मे जान ही ना बची हो.

लगभग मुरछित अवस्था मे थे सारे के सारे.

कामरूपा भी बुरी तरह थक चुकी थी उसकी हालात भी नहीं थी कि अपने पैरो ले खड़ी हो सके फिर भी वो अपनी जान देने पे उतारू थी उसकी चुत से पानी लगातार रिस रहा था साथ मे वीर्य कि धार भी रह रह के निकल पड़ रही थी जो कि रात भर चली चुदाई मे काबिले वालो ने उसकी चुत मे उड़ेला था.

कामरूपा अपनी काम अग्नि मे जल रही थी जार जार करती तांत्रिक उलजुलूल को गालिया दे रही थी कभी अपनी गलती पे पछताती.

काम अग्नि हवस और आत्मगीलानी से भरी हुई थी.

उसे अब कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था....पास रखी चट्टान पे नजर पड़ी तो उसकी बांन्छे खिल गई उसे रास्ता नजर आ गया था इस हवस भरी जिंदगी से मुक्त होने का रस्ता.

वो पागलो कि तरह उस चट्टान पे सर पटकने को ही थी कि... छापपाक....छपाक...एक ठन्डे पानी को बौछार ने उसके तन बदन को भिगो दिया.

"आआहहहहह........छप्पआकककक......आअह्ह्ह...." कामरूपा को ठन्डे पानी को बौछार से कुछ राहत मिली.

आंखे पोछती हुई जैसे ही उसने सर ऊपर उठा के देखा "त्तत्त.....तुम....म....ममम....मंगूस....चोर मंगूस ?"

मंगूस :- हां  मै भूरी काकी मेरे दुश्मन इतनी आसानी से मर जाये ये मुझे गवारा नहीं, तू तो आम स्त्री है यदि खुद यमराज भी मेरे चोरी का माल छीन के भागता तो उस तक भी पहुंच जाता मै,

चोर मंगूस कभी कोई चोरी अधूरी नहीं छोड़ता ना मरता है.

ये ले कपडे पहन इसे और चल मेरे साथ "

मंगूस ने कपडे कामरूपा कि तरफ उछाल दिए.

कामरूपा जो कि अभी काम अग्नि से बेबस हो जान देने पे उतारू थी अचानक से मगूस को सामने पा के ठंडी होने लगी. क्यूंकि वो मंगूस को मरणासन्न हालात मे छोड़ के आई थी,उसके मुताबिल तो चोर मंगूस मर जाना चाहिए था.

घोर आश्चर्य से उसकी हवस उतरने लगी रही सही हवस ठन्डे पानी ने उतार दी.

मंगूस :- जल्दी निकल भूरी काकी यहाँ से वरना इन काबिलो वालो मे किसी एक का भी लंड जागने लगा तो तेरे बदन कि आग फिर भड़क जाएगी, इनको ऐसा ही वरदान मिला हुआ है.

भल्रे मौत आ जाये परन्तु सम्भोग करना ही है.

देखते है देखते दोनों काबिले से दूर बहुत दूर निकल चुके थे.


सूरज कि पहली किरण फुट पड़ी थी.

गांव विष रूप मे

अरे समधी जी आओ...आओ....इतनी सुबह सुबह कैसे आना हुआ.

रामनिवास :- ठाकुर साहेब वो कामवती कि माँ को लिवाने आये है.

कैसे है कामवती बिटिया? अंदर आते हुए रामनिवास ने अभिवादन किया.

ठाकुर ज़ालिम :- सब ठीक है समधी जी.

कुछ और दिन रहने देते समधिन जी को आज तो पहाड़ी वाले मंदिर पे घूमने जाने का प्लान भी था.

अपने पति कि आवाज़ सुन रतिवती और कामवती भी बाहर आ गई.

"बापू......बापू....बोलती हुई कामवती रामनिवास के गले लग गई "

रामनिवास ने भी अपनी बेटी को खूब स्नेह किया, रामनिवास भले ही निक्क्मा शराबी था परन्तु अपनी बेटी से खूब प्यार करता था.

वही रतिवती जरा भी ख़ुश नजर नहीं आ रही थी उसके लिए तो रामनिवास कबाब मे हड्डी सामान था,यहाँ वो खूब राजसी लुत्फ़ उठा रही थी,जम के सम्भोग सुख भोग रही थी.

"ये कहाँ से आ टपका" मन मे कुनमूनाते हुए रतिवती बोली.

"क्यों जी मेरे बिना मन नहीं लगा क्या?"

रतिवती कि बात सुन सभी हस पड़े.

ठाकुर :- बिल्लू ओह.... बिल्लू...कुछ खाने पिने का इंतेज़ाम कर और डॉ.असलम को बुला ला

सभी लोग मेहमान खाने मे बैठ गए.

कामवती कुछ नाश्ते पानी के इंतज़ाम मे जुट गई.

बिल्लू:-.मालिक...मालिक...डॉ.असलम तो घर पे नहीं है.

मैंने आस पास पता किया किसी को बोल के भी नहीं गए.

ठाकुर :- कोई बात नहु आस पास किसी गांव मे गए होंगे.

ठाकुर बोल तो रहा था परन्तु उसे चिंता भी थी क्यूंकि डॉ.असलम किसी मरीज को देखने भी जाता था तो किसी ना किसी को बोल के ही जाता था "

खेर उसने इस बात पे ध्यान नहीं दिया.

कुछ देर बाद

"अरे समझा करो भाग्यवान आज ही चलना जरुरी है " रामनिवास रतिवती को घर चलने के लिए समझा रहा था परन्तु रतिवती ये ऐशो आराम छोड़ने को तैयार ही नहीं थी.

रतिवती :- तुम समझते क्यों नहीं कामवती के बापू आज तो मंदिर घूमने जा रहे थे हम लोग,ऐसा करो तुम भी साथ चलो फिर कल कामगंज चल देंगे.

रामनिवास को अपनी डाल गलती ना देख अपने कुर्ते मे हाथ डाल नोटों का बंडल निकल रतिवती के सामने पटक दिया.

"हे भगवान ये क्या " रतिवती कि आंखे ख़ुशी और आश्चर्य से चौड़ी हो गई.

रतिवती :- "इतने पैसे कहाँ से लाये तुम? कही चोरी तो नहीं कि ना?

रामनिवास :- कैसी बात करती हो मुझमे चोरी कि हिम्मत कहाँ? ये तो मैंने कमाए है वो भी एक ही रात मे.

अब तो और ज्यादा हैरान थी रतिवती,जिस इंसान ने आज तक एक ढेला भी नहीं कमाया वो आज इतने पैसे कमा लाया वो भी एक ही रात मे रतिवती ने सोचते हुए तुरंत नोटों का बंडल अपनी साड़ी मे बांधते हुए रामनिवास कि तरफ प्यार से देखा.

रतिवती :- अच्छा जी एक रात कमा लिए? मै भी तो जानू कैसे कमा लिए.

रामनिवास :- बताता हूँ भग्यावान सब बताता हूँ बस तुम तो ये बताओ कि और पैसे कमाने का मौका है अपने पास.

लेकिन उस के किये और पैसे चाहिए,जो कि तुम्हारे पास है,वो मुझे चाहिए.

बाकि बात रास्ते मे बताता हूँ समय नहीं है जल्दी से जल्दी वापस भी जाना है.

रतिवती तो वैसे ही लालची औरत थी ऊपर से इतने पैसे एक बार मे देख उसकी अक्ल पे पत्थर पड़ गया था.उसे अब घूमने जाने कि कोई फ़िक्र नहीं थी.

लालच है ही ऐसी चीज.


दोनों मियाँ बीवी ठाकुर साहेब से इज़ाज़त ले के चल पड़े अपने गांव कि ओर.

पीछे ठाकुर साहेब होने वादे के मुताबिक कामवती को मंदिर घूमनेबले जाने के लिए तैयार थे.

ठाकुर :- बिल्लू रामु कालू तांगा तैयार करो समय हो रहा है, आज ठकुराइन को घुमा लाते है.

बोल के ठाकुर ने प्यार से कामवती कि और देखा,कामवती मारे शर्म के घनघना गई.


विष रूप पुलिस चौकी मे

रामलखन :- अरे काम्या बेटी आप यहाँ? कोई काम था तो हुने बुलावा भेज देती आप खुद क्यों चली आई.

काम्या :- रामलखन अब से ये थाना ही मेरा घर है.

रामलखन :- मै कुछ समझा नहीं बिटिया?

बहादुर जो पीछे से सामान ले के चला आ रहा था " अबे ढक्कन ये ही है यहाँ कि नयी थाना इंचार्ज "इंस्पेक्टर काम्या "

इनकी जोइनिंग है आज.

रामलखन:- वो...वो....मै...मै....क्या....क्या....आप इंस्पेक्टर है,

रामलखन को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि दरोगा विरप्रताप कि बेटी ही थाने कि नयी इंचार्ज है

काम्या :- हौरान ना हो रामलखान काका मेरे बारे मे पिताजी ने कभी किसी को नहीं बताया था क्यूंकि वो होने परिवार को इन सब मुसीबतों से दूर ही रखना चाहते थे, किन्तु किस्मत देखो मुझे पिताजी कि ड्यूटी के लिए ही भेजा गया.

उनकी नाकामी को भुगतने के लिए भेजा गया, जानते हो क्यों?

काम्या ने अपनी कुर्सी संभाले हुए कहा.

रामलखन :- नहीं....नहीं...मैडम...क्यों?

काम्या :- क्यूंकि किस्मत भी चाहती है कि मै अपने बाप के सर पे लगा कलंक धो सकूँ.

अब मुझे सच सच और पूरी बात बताओ हुआ क्या था? पिताजी ने किस तरह पकड़ा था रंगा बिल्ला को?

काम्या अब " इंक्पेक्टर काम्या" के रूप मे आ चुकी थी उसके चेहरे पे वही रोब, वही दहाशत दिख रही थी जो आम तौर पे होती है.

उसे सिर्फ रंगा बिल्ला चाहिए थे वो भी जिन्दा.

रामलखन :- तो सुनिए मैडम....हुआ यूँ कि.... रामलखन ठाकुर कि शादी से अभी तक कि सभी बात सुनाता चला गया.



जंगल मे चोर मंगूस और कामरूपा काफ़ी दूर आ चुके थे.

मंगूस :- अब बता भूरी काकी कि वो नागमणि कहाँ है?

कामरूपा :- मुझे नहीं पता वो कही गिर गई थी मुझसे.

मंगूस :- चटटक.....साली झूठ बोलती है,मंगूस ने एक थप्पड़ रसीद कर दिया और बालो को पकड़ के खिंच दिया.

सच बोल वरना वापस मुर्दाबाड़ा काबिले मे फेंक आऊंगा तुझे.

कामरूपा :- नहीं नहीं.....वहा नहीं मै सब बताती हूँ मेरा यकीन करो सब सच बोल रही हूँ

और सारी कहानी कह सुनाई कि कैसे वो बेहोश हो गई थी और काबिले वालो के हाथ लग गई थी.

मंगूस :- गहरी सोच मे डूब गया

सोच मे डूबे हुए मंगूस का दुखी चेहरा देख कामरूपा का दिल पिघला क्यूंकि अब उसके मन मे कोई पाप नहीं थी वो अपने कर्मो को भुगत रही थी.

कामरूपा :- लेकिन एक शख्स बता सकता है कि वो नागमणि कहाँ है?

मंगूस चहक उठा "कौन कहाँ? कौन है वो?

कामरूपा :- तांत्रिक उलजुलूल, वो अन्तर्यामी है वो मदद कर सकता है

उलजुलूल का नाम.लेते हुए कामरूपा के चेहरे पे गुस्सा पछतावा दोनों एक साथ था.

दोनों ही अपनी अगली मंजिल कि और बढ़ चले,काली पहाड़ी पे स्थित तांत्रिक उलजुलूल कि गुफा.


मंगूस और कामरूपा अभी कोसो दूर थे परन्तु कोई शख्स कम्बल मे लिपटा हुआ काली पहाड़ी मे स्थित रंगा बिल्ला के अड्डे पे पहुंच चूका था.

रंगा :-आओ सरकार आओ....आप आये है तो जरूर कोई महत्वपूर्ण बात होंगी

अजनबी :- हाँ मेरे दोस्तों बात हम तीनो के लिए ही फायदेमंद है.

बिल्ला :- जल्दी बताओ क्या बात है?

अजनबी :- ठाकुर ज़ालिम सिंह अपनी नयी बीवी कामवती के साथ पहाड़ी पे स्थित मंदिर भर्मण पे निकलने वाला है.

बस ठाकुर को उठा लेना है मोटा माल पीटना है उस से

रंगा बिल्ला का चेहरा ख़ुशी से झूम उठा क्यूंकि ठाकुर ज़ालिम से बदला लेने कि फिराक मे वो कब से थे.जो भी हुआ सब ठाकुर ज़ालिम सिंह कि वजह से ही हुआ था.

अजनबी :- लेकिन ध्यान रहे ठकुराइन कामवती को एक भी खरोच नहीं आनी चाहिए. वो अब मेरी बीवी बनेगी.

वादे कि मुताबिक हवेली मेरी और आधा धन तुम्हारा.

तीनो एक साथ हस पड़े काली पहाड़ी अठाहसो से गूंज उठी.


सूरज पूरी तरह निकल चूका था


ठाकुर ज़ालिम सिंह और कामवती तांगे मे बैठे मंदिर कि और निकल चुके थे.

कालू और बिल्लू तांगा चला रहे थे.

साथ मे एक जीव और सवार हो गया था "इच्छाधारी सांप नागेंद्र " उसे भी अपने मौके कि तलाश थी.


यहाँ सब अपनी अपनी बिसात बिछा चुके थे,

कौन है ये अजनबी जो ठाकुर को मरवाना चाहता है और कामवती को पाना चाहता है?

रतिवती और रामनिवास का लालच उन्हें कहाँ ले जायेगा?

क्या मंगूस वापस नागमणि ले पायेगा?

बने रहिये कथा जारी है.....


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