अपडेट -7
क्या ?" ममता का मूँह हैरत से खुला का खुला रह गया, वह अचानक सिहर उठती है "नही नही! तू मेरा बेटा है और तू उसे! उसे नही देख सकता" उसने सॉफ इनकार करते हुवे कहा. कैसे संभव था कि एक मा खुद अपने जवान बेटे को उसकी असल जन्मस्थली, अपनी कामरस उगलती चूत का दर्शन करवाती. उस मा की अनियंत्रित सांसो के उतार-चढ़ाव से तंग ब्रा में क़ैद उसके गोल मटोल मम्मो का आकार आकस्मात ही इस कदर बढ़ जाता है कि उन पर शुशोभित चुचक तंन कर उसके ब्लाउस में छेद कर देने पर आमादा होने लगते हैं.
"बिना देखे उसका इलाज नही हो सकता मा और यह तुम्हे भी अच्छे से मालूम है. अभी कुच्छ देर पहले ही तुम्हारे बेटे ने एक ऐसी विवाहित औरत के छत-विक्षत गुदा-द्वार का सफलतापूर्वक निरीक्षण किया था, जिसका पति भी उस वक़्त इसी कॅबिन में मौजूद था, तुम्हे शायद झूठ लगे मगर उसने खुद अपनी पत्नी को नग्न होने की इजाज़त दी थी और क्लिनिक छोड़ने से पूर्व उन दोनो के चेहरे पर पूर्ण संतुष्टि के भाव थे" ऋषभ ने उसे समझाने का प्रयत्न किया. उसके दिल में कुच्छ अंश मा के प्रति प्रेम व संवेदना से भरपूर अवस्था मे थे मगर बाकी का संपूर्ण जिस्म गहेन उत्तेजना के प्रभाव से काँप रहा था.
"वो जो भी हो, मुझे खुशी है कि तेरे मरीज़ तुझ पर भरोसा करते है मगर मुझ में इतना साहस नही बेटे कि मैं तेरे सामने ..." ममता ने अपने कथन को अधूरा छोड़ अपना थूक निगला "तू मुझे कोई दवाई लिख दे रेशू! मैं ठीक हो जाउन्गि" वह विनती के स्वर में बोली. पहली बार सही परंतु उसे अपने पुत्र की ईमानदारी पर गर्व सा महसूस होता है, यक़ीनन उसके कथन को वह झुठला नही सकती थी. उसने भी प्रत्यक्षरूप से वो अचंभित कर देने वाला द्रश्य देखा था जिसमें एक पति खुद अपनी पत्नी के नितंभो की दरार खोले खड़ा था, उसकी गान्ड के फटे हुवे छेद को जाँचने में ऋषभ की सहयता कर रहा था. माना की उस पति ने चिकित्सक ही हैसियत से ऋषभ को अपनी स्वीकृति प्रदान की थी मगर था तो वो चिकित्सक कोई पर-पुरुष ही.
"ऐसे कैसे कोई भी दवाई लिख दूँ मा ? मैं कोई जादूगर नही! तुम फिकर मत करो, इलाज के बाद भी मेरे दिल में तुम्हारे लिए ज़रा सा भी अंतर नही आएगा. तुम मेरी मा थी हो और हमेशा रहोगी" ऋषभ ने शांत स्वर में कहा. वह भरकस प्रयास कर रहा था कि निरंतर बढ़ती ही जा रही उसकी कामोत्तेजना से समन्धित कोई भी संकेत ममता के मन में संदेह पैदा ना कर दे और जिसके प्रभाव से वह पहले से कहीं ज़्यादा टूट जाए.
"अंतर! कैसा अंतर रेशू ?" ममता ने अधीरतापूर्वक पुछा, आख़िर वह भी तो जानने की प्रबल इक्शुक थी कि इलाज के पश्चात उन दोनो के आपसी संबंधो में कितना और किस तरह से बदलाव आएगा मगर बदलाव आएगा ज़रूर, यह अटल सत्य था.
"तुम्हे मेरा सामना करने में शर्मिंदगी महसूस हो, या तुम खुद से ही घ्रणा करने लग जाओ. मैं इस बात से पूर्न सहमत हूँ कि अगले कुच्छ दिनो तक तुम्हारे दिल ओ दिमाग़ में अच्छे या बुरे ख़यालात आते रहेंगे मगर साथ ही यकीन भी है कि मेरी साहसी मा उन विषम परिस्थितियो से घबराएगी नही बल्कि डॅट कर उनका मुक़ाबला करेगी" ऋषभ अपनी मा के क्षीण होते मनोबल को बढ़ाते हुवे बोला.
"मैं इतनी साहसी नही रेशू कि उन हलातो से लड़ सकूँ" ममता ने बचाव किया.
ऋषभ: "तुम्हे बनना पड़ेगा मा, कोई और उपाय नही है"
ममता: "एक उपाय है"
ऋषभ: "क्या ?"
ममता: "मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे"
ऋषभ: "नही छोड़ सकता, मेरा मात्र-धर्म और पेशा मुझे इसकी स्वीकिर्ति नही देता"
ममता: "तू समझता क्यों नही रेशू! मैं तेरी मा हूँ, खुद कैसे तुझे अपनी योनि दिखा सकती हूँ ?"
ऋषभ: "तुम फिर से भूल रही हो मा कि मैं एक सेक्शोलॉजिस्ट हूँ, तुम्हारी जानकारी के लिए बताना ज़रूरी है कि दिन भर में मुझे कयि औरतो के गुप्ताँग देखने पड़ते है"
ममता: "मैं कोई आम औरत होती या तू मेरा बेटा ना होता तो अभी के अभी नग्न हो जाती"
ऋषभ: "मैने पहले भी कहा था कि इस कुर्सी पर बैठने के बाद मैं तुम्हारा बेटा नही सिर्फ़ और सिर्फ़ एक यौन चिकित्सक रह गया हूँ और तुम भी मेरी मा नही मेरी मरीज़ की हैसियत से मेरे सामने बैठी हुवी हो"
ममता: "होने और समझने में बहुत अंतर है रेशू! मान, अगर तेरे पापा को पता चला तो वे क्या सोचेंगे. मेरी क्या इज़्ज़त रह जाएगी ?"
"मान-मर्यादा, सम्मान, संकोच, शरम, लिहाज, पीड़ा! क्या यह सारे नियम सिर्फ़ तुम्हारे लिए ही हैं मा, पापा का कहीं कोई कर्तव्य नही ? बरसो तुम अपने शरीर के जिस अंग से उन्हें काम-सुख पहुँचाती रही हो, उन्हें पता भी है कि उनकी पत्नी का वो संवेदनशील अंग आज सड़ चूकने की कगार पर है ? पापा को तुम्हारी फिक़र होती या तुम्हारी असहनीय ताकीफ़ से उनका नाता होता तो अभी तुम इतनी शर्मिंदगी का एहसास नही कर रही होती. खेर यदि तुम नही चाहती तो मैं तुम्हे और अधिक विवश नही करूँगा" ऋषभ के शब्दो ने ममता का हृदय चीर कर रख दिया.
ममता: "क्लिनिक का मेन गेट खुला है ना ?"
"हां खुला है" ममता के घर लौटने के कयास में ऋषभ क्रोधित स्वर में बोला मगर उसकी मा के अगले थरथराते अल्फ़ाज़ मानो उसके कानो से हो कर सीधे उसके फड़फड़ाते हुवे लंड से टकरा जाते हैं.
"तो फिर कॅबिन का गेट बंद करना होगा रेशू! मैं! मैं किसी गैर के सामने अपने कपड़े नही उतार पाउन्गि
रेशू" ममता हौले से फुसफुसाई.
"क .. कहाँ ?" उसने सवालिया लहजे में पुछा, हलाकी वह पुच्छना तो कुच्छ और ही चाहती थी लेकिन अत्यंत लाज स्वरूप उसके गले से आवाज़ नही निकल पाती. उसके लिए यह जानना बहुत ज़रूरी था कि उसे अपना संपूर्ण निचला धड़ नंगा करना होगा या मात्र साड़ी उँची करने भर से काम चल जाता.
"यहीं मा और अपना ब्लाउस भी उतार देना" ऋषभ ने विस्फोट किया. बिना पुच्छे ही ममता को अपने प्रश्न का जवाब तो मिला मगर इतनी निर्लज्जता से परिपूर्ण की जिसे सुन कर आकस्मात ही उसकी रूह काँप उठती है.
"ब .. ब .. ब्लाउस! पर .... " ममता बुरी तरह हकला गयी और अपना कथन अधूरा छोड़ते हुवे ऋषभ की आँखों में झाँकने लगती है.
"हां मा! तुम्हे अपना ब्लाउस उतारना होगा. मैं तुम्हारे स्तनो की जाँच भी करूँगा" ऋषभ ने बिना किसी अतिरिक्त झिझक के कहा, उसके चेहरे के स्थिर भाव इस बात के सूचक थे कि वह बेहद गंभीरतापूर्वक वार्तालाप कर रहा था.
"मगर मेरे स्तनो को क्या हुवा रेशू ?" ममता ने शंकित स्वर में पुछा, उसकी आँखें जो पूर्व में उसके पुत्र की आखों से जुड़ी हुई थी अपने आप ही तंग ब्लाउस में क़ैद उसके दोनो मम्मो पर गौर फरमाने लगती हैं.
"तुम्हारी उमर की औरतें अक्सर मेरे क्लिनिक में स्तन कॅन्सर से संबंधित परामर्श लेने आती हैं" ऋषभ ने बताया.
"तो क्या मुझे भी स्तन कॅन्सर है रेशू ?" ममता अचानक से घबरा गयी, कोई भी औरत घबरा जाती. आख़िर ज़िंदगी से बढ़ कर किसी अन्य वस्तु का मोह मनुष्य को कभी हो सका है भला. नही! कभी नही.
"मैने यह तो नही कहा कि तुम्हे स्तन कॅन्सर है, मैं सिर्फ़ एक संभावना व्यक्त कर रहा हूँ मा" ऋषभ ने उसकी घबराहट को दूर करने का प्रयत्न करते हुए कहा.
"इसलिए तुम अपना ब्लाउस और ब्रा दोनो उतार देना मा" कह कर वह मेज़ पर जहाँ-तहाँ फैले पड़े काग़ज़ों को समेटने लगता है. ममता असमजस की स्थिति में फस गयी थी, एक तरफ उसे अपने जवान पुत्र के समक्ष अब पूर्ण रूप से नंगा होना पड़ता और दूसरी तरफ कॅन्सर जैसी ला-इलाज बीमारी का नाम सुनने के बाद उसके दिल ओ दिमाग़ में अंजाना भय भी व्याप्त हो चुका था.
ममता ने कुच्छ गहरी साँसे ले कर खुद को सयांत करने का असफल प्रयत्न किया और तत-पश्चात अपनी कुर्सी से उठने लगती है. उसे अपने घुटने शून्य में परिवर्तित होते जान पड़ते हैं जैसे उनमें रक्त का संचार आकस्मात ही रुक गया हो. जैसे-तैसे वह अपनी कुर्सी से चार कदम पिछे हट पाई और अपनी निगाहें अपने पुत्र के व्यस्त चेहरे पर टिका कर अपनी साड़ी का पल्लू संभालती पिन को खोलने के उद्देश्य से उस तक अपने दोनो हाथ ले जाती है लेकिन तभी ऋषभ उसे अपने कार्य से मुक्त हुवा नज़र आता है.
"मा! यह गहरे रंग की साड़ी तुम्हारी गोरी रंगत पर बहुत फॅब रही है" ऋषभ अपने हाथो को कैंची के आकार में ढाल कर अपनी कुर्सी पर पसरते हुए बोला. अपनी सग़ी मा को प्रत्यक्षरूप से नंगी होते देखना कितना रोमांचकारी पल हो सकता है, जब कि आप खुद एक जवान मर्द की श्रेणी में आते हों.
"थॅंक्स रेशू! तेरे पापा ने पिच्छली सालगिरह पर गिफ्ट की थी" ममता लजाते हुवे बोली. अपने पहले ही प्रयास में वह अपना पल्लू संभालते हुए पिन को खोल चुकी थी.
"वैसे मा! तुम्हारा शारीरिक अनुपात एक-दम पर्फेक्ट है. तुम्हारे मम्मे, कमर और चूतड़ पूरी तरह कपड़ो से ढके होने के बावजूद भी मैं दावे से कह सकता हूँ" ऋषभ अश्लीतापूर्वक बोला, वह स्वयं हैरान था कि कैसे उसके मूँह से इतनी शरम्नाक बात निकल गयी थी.
"धात्ट" ममता के गाल सुर्ख लाल हो उठे, उसका बेटा तो नंगी हुवे बगैर ही उसके छर्हरे बदन का ग्याता हो चला था और निर्लज्जतापूर्ण ढंग से उसे इस बात का स्पष्टीकरण भी कर रहा था. उसने फॉरन अपने पल्लू को नीचे गिराया और इसके बाद पेटिकोट के अंदर खुरसी अपनी साड़ी को भी तीव्रता से बाहर खींचने लगती है, पल-पल की घुटन व शरम से बहाल शायद वह एक ही बार में पूरी तरह से नंगी हो जाना चाहती थी.
"मा! जाने मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम अब भी किसी दबाव में हो" अपनी मा की अचानक से बढ़ती गति को देख ऋषभ ने उसे टोकते हुवे कहा.
"नही तो! मैने सर्टिफिकेट पर सिग्नेचर भी तो किए हैं" ममता ने अपनी अधिकांश खुल चुकी साड़ी अपने हाथो की पकड़ से छोड़ दी और तुरंत वो नीचे गिर कर उसके पैरो में इकट्ठी हो जाती है.
"हां किए तो हैं मगर इतनी जल्दबाज़ी में अपने कपड़े क्यों उतार रही हो ? ऐसा सोचो ना कि तुम ऑफीस से घर लौटने के बाद अपने बंद बेडरूम में चेंज कर रही हो, इससे तुम्हे बहुत राहत महसूस होगी मा" ऋषभ मुस्कुरा कर बोला. ममता की अनियंत्रित धड़कनो का तो कोई पारवार ही शेष ना था, जिसकी धकधकती ध्वनि को वह अपने दिल से कहीं ज़्यादा अपनी स्पन्दन्शील चूत के भीतर सुन पा रही थी, साड़ी से आज़ाद होते ही उसकी पलकें मुन्दने लगती हैं. उसने विचारने में थोड़ा वक़्त लिया कि पहले अपना ब्लाउस उतारे या फिर अपना पेटिकोट मगर निर्णय कर पाना उसकी सहेन-शक्ति से बाहर हो चला था.
"रेशू! तू पहले मेरे स्तनो की जाँच करेगा या मेरी योनि की ?" ममता ने हौले से पुछा मगर उसकी आवाज़ उसके पुत्र तक नही पहुँच पाती, ऋषभ को अंदाज़ा ज़रूर हुआ कि उसकी मा ने उससे कुच्छ कहना चाहा है और जिसे वह सुन नही पाया था.
तुम कुच्छ कह रही हो मा ?" आख़िर ऋषभ पुछ ही बैठा.
"म .. मैं कह रही थी रेशू कि पहले तू मेरे स्तनो की जाँच करेगा या मेरी योनि की ?" ममता ने दोबारा उसी धीमे लहजे में पुछा मगर इस बार उसका पुत्र उसकी बात सुनने में सफल हो जाता है.
"पहले तुम नंगी तो हो जाओ मा" ऋषभ ने फिर से अश्लीलतापूर्वक कहा, निश्चित ही उसकी ज़ुबान और मस्तिष्क पर अब उत्तेजना का ज्वर सवार हो चुका था.
अपने जवान पुत्र के अनैतिक कथन को सुन कर ममता उससे कुच्छ और पुच्छने का साहस नही जुटा पाती बस अपने हाथो को अपने ब्लाउस के ऊपरी हिस्से पर रख कर अपनी उंगलियों से उसके हुक खोलना शुरू कर देती है. ऋषभ की आँखें उसकी मा की उंगलियों पर जैसे जम जाती हैं, ज्यों-ज्यों उसके ब्लाउस के हुक खुलते जा रहे थे अत्यंत व्याकुलता से उसका गला सुख़्ता जा रहा था. ममता पूरा वक़्त ले रही थी ताकि कुच्छ समय तक और वह अपनी नग्नता का बचाव कर सके मगर होनी को टालना अब संभव कहाँ था, अंतिम हुक खुलते ही बेहद कसी ब्रा की क़ैद में होने के बावजूद उसके गोल मटोल मम्मे मानो उच्छलने लगते हैं और मजबूरन उसे अपना खुल चुका ब्लाउस अपनी अत्यधिक मांसल दोनो बाहों से बाहर निकाल कर फर्श पर फैंक देना पड़ता है.
"ओह्ह्ह मा! कितनी छोटी साइज़ की ब्रा पेहेन्ति हो तुम ? वो भी पूरी पारदर्शी" कहते हुवे ऋषभ को अपने जिस्म का सारा लहू अपने विशाल लंड की नसो की तरफ दौड़ता महसूस होने लगा और जिसे वह मेज़ की आड़ में अपनी मा की अधेड़ नजरो से छुप-च्छुपाकर अपने दाहिने हाथ से मसलना आरंभ कर देता है. ममता के साधारण स्वाभाव के मद्देनज़र वह यकीन नही कर पाता कि उसकी मा अपने शभ्य कपड़ो के भीतर इतने भद्काउ अंतर-वस्त्र पहेन सकती है. ब्रा वाकाई बहुत छोटी थी और जिसके भीतर जाने कैसे उसकी मा ने अपने बेहद सुडोल मम्मो को समाया होगा, निप्पलो से ऊपर का तो लगभग पूरा ही हिस्सा नंगा था.
"आज! आज ही पहनी है रेशू, मेरे सारे कपड़े गंदे पड़े थे" ममता ने अपने मम्मो के ऊपरी फुलाव पर अपने दोनो हाथो को कसते हुवे कहा मगर उसके ऐसा करने से पारदर्शी ब्रा के भीतर छुपे उसके निपल उजागर हो जाते हैं. ऋषभ की निरंतर बहकती जा रही हालत खुद उसकी हालत को बहकाने लगी थी. वह सोच रही थी कि अभी और इसी वक़्त अपने उतर चुके सभी कपड़ो को पुनः पहेन ले मगर उसकी कामग्नी में भी तीव्रता से व्रद्धि होना शुरू हो गयी थी, पिच्छले एक घंटे से किए सबर का बाँध अब टूटने सा लगा था. वासना में वह बुरी तरह से तप रही थी, उसे भली-भाँति एहसास हो रहा था कि जैसे पूर्ण नग्न होने से पूर्व अपने आप ही उसकी चूत स्खलित हो जाएगी.
"रेशू! पहले तू मेरे स्तनो की जाँच कर ले ना" इस बार ममता विनती के स्वर में बोली. उसने फ़ैसला किया था कि अपने मम्मो का निरीक्षण करवाने के उपरांत वह अपने ऊपरी तंन को वापस ढँक लेगी, तत-पश्चात ही अपने निच्छले धड़ से नंगी होगी. कम से कम ऋषभ उसे पूरी तरह से नंगी तो नही देख सकेगा.
"मा तुम फिकर क्यों करती हो, मैं एक साथ ही तुम्हारे मम्मो और चूत की जाँच कर लूँगा और इससे समय की भी बचत होगी" ऋषभ ने अपनी मा की विनती को अस्वीकार करते हुवे कहा, वह जान-बूझ कर बेशरामी नही दिखा रहा था बल्कि लाख अनुभवी होने के बावजूद उसकी ज़ुबान उसके नियंत्रण से बाहर हो चली थी.
"ट .. ठीक है" जवाब में बस इतना कह कर ममता अपने मम्मो के ऊपर रखे अपने दोनो हाथो को नीचे की ओर फिसलते हुए उसके द्वारा अपने पेटिकोट के नाडे तक का बेहद चिकना रास्ता तय करने लगती है, जिसमें उसका हल्का सा उभरा पेट व बेहद गहरी नाभि शामिल थे. कुच्छ पल बाद होने वाले कामुक कयास को सोचने मात्र से वह अपनी चूत के गीले मुहाने से ले कर उसकी संकीर्ण अन्द्रूनि गहराई में सिहरन की एक अजीब सी लंबी ल़हेर प्रज्वलित होती महसूस कर रही थी, इतनी अधिक कामोत्तजना से उसका सामना पहले कभी नही हुआ था. यक़ीनन ऋषभ से उसका मर्यादित रिश्ता होना ही उसे अत्यंत रोमांच से भरता जा रहा था, जल्द ही नीचे की दिशा में सरक्ति उसकी उंगलिओ ने उसके पेटिकोट का नाडा खोज लिया और नाडे की जिस डोर को खींचते ही उसके पेटिकोट को उसके शरीर से अलग हो जाना था, उस डोर को अपने बाएँ हाथ की प्रतम उंगली के दरमियाँ गोल गोल लपेटने के पश्चात वह अपनी नशीली आखों से अपने पुत्र की वासना-मयि आँखों में झाँकना शुरू कर देती है. ऋषभ की आँखों में उसे अधीरता और गहेन व्याकुलता के अंश भी स्पष्ट रूप से नज़र आते हैं मानो अपनी आँखों से इशारा कर रहा हो कि मा! अब देर करना उचित नही.
"रेशू! हम जो कर रहे हैं क्या वो ठीक है ? तू मेरा बेटा है और मैं तेरे ही सामने ....." ममता ने अपने पुत्र के चेहरे की भाव-भंगिमाओं को पढ़ने के उद्देश्य से पुछा, माना लज्जा के वशीभूत वह अपना कथन पूरा करने में नाकाम रही थी मगर उसका इतना संकेत भी ऋषभ को उसकी अधूरी बात समझने हेतु पर्याप्त था.
Contd....
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