मै बाहर रोशनदान पर बैठा अपनी संस्कारी माँ के पतन को देख रहा रहा,
देख रहा था की कैसे एक घरेलु औरत ऐसी हरकते कर सकती है.
अंदर मेरी माँ और असलम एक दूसरे के जिस्म को रगड़ रहे थे, नोच रहे थे.
दोनों के सब्र का पैमाना छलक रहा था.
माँ असलम के लंड से खेल रही थी, असलम माँ के जिस्म को चाट रहा था.
"घोड़ी बन जा चल" असलम ने जैसे आदेश दिया हो.
आदेश का पालन तुरंत हुआ.
मेरी माँ पापा के बिस्तर पर तुरंत घोड़ी बन गई, गांड पूरी ऊपर उठाते हुए उसे खोल फिया और सीना मखमली गड्डे पर धस गया.
उफ्फ्फ... अदा थी मेरी माँ की.
असलम पीछे जा खड़ा हुआ, जन्नत का दरवाजा साफ दिख रहा था.
असलम ने देर ना करते हुए अपने अंगूठे को माँ की गांड की दरार मे दबा कर नीचे तक पोंछ दिया.
आउच... क्या करते हो असलम बेटा "
जवाब मे असलम ने माँ की गुदा द्वार पर अपने होंठ टिका दिया....
उउउफ्फ्फ्फ़..... इसससस..... बेटा वहाँ नहीं... आउच..
माँ उस हमले से घनघना उठी.
असलम को कोई फर्क नहीं पढ़ना था वो लप लप करता माँ की गांड को चाटे जा रह था, कभी जीभ अंदर घुसाने की कोशिश करता तो कभी दांतो से काट लेता.
माँ आनंद के सागर मे उतर गई थी,
उसे अब ये सब गन्दा नहीं लग रहा था, कभी उसे ऐसी बातो से भी घिन्न आती थी, लेकिन आज खुद गांड उठा उठा के चटवा रही है.
उत्तेजना मे माँ अपने गुदा द्वार को खोलती फिर कस के सिकोड ललेती.
माँ बेचैनी से चद्दर पकडे गांड ऊपर को उछालती की असलम का मुँह उसकी चुत तक आ जाये, वो चिंता मे थी असलम चुत क्यों नहीं चाट रहा है.
माँ की सारी कौशिसे नाकाम होती जा रही थी, जैसे ही गांड ऊपर करती असलम भी अपने होंठो को गांड के छेद से चिपकाये ऊपर कर देता.
आअह्ह्ह..... असलम.... उउफ्फ्फ.... क्या कर रहे हो.प्लीज नीचे....
आखिर माँ ने दिल की बात कहा ही दी.
"गांड मे ही असली मजा है आंटी "
लप... लप... लप... करता असलम चाटे जा रहा थाथूक रिता हुआ चुत की लकीर से होता नीचे गिर रहा था.
तभी.... ट्रिन.... त्रिन्न... ट्रिन...
माँ का मोबाइल बज उठा,
मोबाइल का बजना था की माँ का दिल धाड़ धाड़ कर बज उठा.
ओह गॉड किसका फ़ोन है?
माँ ने झट से मोबाइल देखा,
"बबलू के पापा है, असलम रुको जरा, पिक... से माँ ने फ़ोन उठा लिया.
जबकि असलम होंठ लगाए बैठा था,
हहहह... है.... हैल्लो.... हाँ जी... कैसे है " माँ ने जैसे तैसे खुद की भावना को काबू करते हुए कहा.
इसससस.... क्या हुआ कामिनी? " माँ की सिस्कारी सुन पापा ने पूछा.
मेरी संस्कारी माँ पापा से बात करते हुए अपनी गांड चटवा रही थी, उन्ही के घर मे उन्ही के बिस्तर पर.
"कक्क.... कुछ नहीं वो पैरो मे दर्द था थोड़ा "माँ ने साफ झूठ बोला था, अब मेरी माँ पापा को धोखा दे रही थी.
माँ ने असलम के सर को हाथो से पीछे धकेलना चाहा, माँ की चुडिया खनक उठी.
और असलम ने कस के माँ की जा जांघो को पकड़ अपने मुँह से सटा लिया..
असलम पापा के फ़ोन से और ज्यादा उत्तेजित हो गया था.
"अच्छा सुनो कल सुबह तक आ जाऊंगा मै, ट्रैन पकड़ ली है मैंने "
"ठी... ठीक है.... आराम से आना आह्हः.... " माँ ने फ़ोन काट दिया.
"असलम क्या कर रहे हो थोड़ी देर रुक नहीं सकते थे क्या?" माँ ने बनावटी गुस्सा दिखाते हुए कहा.
"आंटी आपकी गांड चूसने मे जो मजा आ रहा है रुका नहीं गया "
अभी माँ कुछ कहती की पुककक...... से असलम ने एक ऊँगली माँ की गांड मे डाल दी.
"आआहहब्ब.... आउच..... माँ की हलकी चीख निकाल गई.
आउच... निकालो बदतमीज़....ये क्या हरकत है.
जवाब मे असलम मे अपने होंठ माँ की चुत पर लगा दिया.
आअह्ह्हब्ब...... उउउफ्फ्फ्फ़..... दोहरे हमले से माँ का जिस्म सुलग उठा.
असलम की जीभ माँ की चुत को कुरेद रही थी और ऊँगली थूक से सनी गीली गांड मे घुस के कोहराम मचा रही थी.
"छी.... असलम बेटा वहाँ से ऊँगली निकालो गंदी जगह है " माँ ने बेचैन हो कर कहा.
"चुदाई मे कुछ गन्दा नहीं होता आंटी, मजा आ रहा है ना आपको?"
"हम्म्म्म.... माँ कुछ ना बोल सकी क्यूंकि मजा तो ऐसा आ रहा था की कभी नहीं आया था.
"लल्ल.... लेकिन... वहाँ?"
"गांड मे भी तो डाला जाता है आंटी "
"क्या... कक... क्या " माँ जबरजस्त तरह से चोंकि.
"लंड को गांड मे भी डाला जाता है "
"न्नन्न... नहीं.... माँ तो कल्पना कर के ही चीख उठी, आगे भागने को हुई लेकिन असलम ने कस के पकड़ रखा था..
ऊपर से असलम की जीभ और ऊँगली अपना कारनामा कर दे रही थी.
"उउउफ्फ्फ.... असलम बेटा नहीं ना... आउच..."
माँ को गांड के रास्ते शरीर के अंदर एक अजीब से गुदगुदी हो रही थी.
"आज तेरी गांड ही मरूंगा आंटी " आखिर असलम ने घोषणा कर ही दी.
"नहीं.... नहीं.... असलम बेटा छी वहाँ कौन करता है, तुम पागल हो क्या " माँ अभी तक इस सुख से अनजान थी.
"कुछ गन्दा नहीं होता आंटी, पहले आपको लंड चूसना बहुत गन्दा लग रहा था, लेकिन एक बार मुँह मे गया तो छोड़ा ही नहीं तुमने "
असलम को बातो से माँ झेप गई, वाकई ऐसा ही हुआ था.
"लल्ल... लेकिन... तुम्हारा कितना बड़ा है ये अंदर जायेगा कैसे " मेरी माँ की असली चिंता असलम का लंड था
"वैसे ही जैसे ये ऊँगली घुसी है..... पुकककक.... से असलम ने दूसरी ऊँगली भी माँ की गांड मे डाल दी.
"आअह्ह्ह.... असलम.... अचानक हमले से माँ की गांड का छेद असलम की उंगलियों पर कस गया.
उउउफ्फ्फ..... बेटा निकालो इसे.
लेकिन असलम ऊँगली को अंदर चलाने लगा, माँ की गांड से एक सुरसूरी नाभि तक होने लगी.
"कैसा लग रहा है आंटी " असलम ने चुत के दाने पर जीभ रख चाटने लगा.
"आउच.... असलम.... आअह्ह्ह..... उउफ्फ्फ.... माँ तो बिखर ही गई थी, गांड उठा उठा के पटक दे रही थी.
शानदार लज्जात का अहसास था ये एक साथ दोनों छेदो पर हमला.
मेरी संस्कारी माँ समझ चुकी थी की गांड मे चुत से कहीं ज्यादा मजा है, अलग तरह का मजा है.
बताओ 42 साल होने को आये वो ये सब जान ही ना सकी, जाना भी कब जब जवानी ढलान उतर रही है.
मेरी संस्कारी माँ बेशर्म ही कर गांड को असलम के मुँह और उंगलियों पर धकेल रही थी.. माँ से ये गर्मी सहन नहीं हो रही थी.
"घर मे सरसो का तेल है " असलम ने अचानक मुँह और उंगलियां दोनों निकाल ली.
माँ का जिस्म खाली ही गया था, एक लाचारी तपकने लगी, सुनापन आ गया था माँ के चेहरे पर.
"कक्क.. क्या... घोड़ी बने माँ ने पीछे देख कर पूछा?"
"सरसो का तेल है?"
"हाँ है तो... लेकिन अभी क्या करना है " माँ के साथ साथ मे भी चौंक गया था की असलम तेल क्यों मांग रहा है.
"लाओ तो...."
"ठीक है..." माँ नंगी ही बेड से उठ खड़ी हुई, दरवाजा खोल कर बाहर देखा आंगन मे अंधेरा ही था, धीमी रौशनी थी बस, शुक्र है सीढ़ी पर अंधेरा ही था.
माँ नंगी ही कमरे से निकल आंगन से होती रसोई मे चली गई.
ये नजारा देख मेरी सांसे टंग गई, साक्षात् मे अपनी संस्कारी माँ को नंगा सामने से जाता देख रहा था.
वाकई माँ का जिस्म तराशा हुआ था, एक एक काटव बिल्कुल वाजिब था, स्तन मे झुकाव बिल्कुल भी नहीं था.
मै मन ही मन माँ की खूबसूरती का गुणगान कर ही था की माँ सामने से हाथ मे कटोरी किये हुए कमरे मे समा गई,.
मैंने वापस से नजरें अंदर जमा ली.
अब ये सब कोई नयी बात नहीं थी मेरे किये, मै चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा था, ना जाने क्यों मुझे ये सब होने देने मे आनंद सा मिल रहा था.
"लाओ मुझे दो, और वॉयस कुतिया बन जाओ....
मेरी माँ तो जैसे असलम की गुलाम ही ही गई थी, तुरंत कुतिया बन गई पहले की तरह, गांड चौड़ी कर ऊपर को उठा दी.
"उउउफ्फ्फ.... आंटी क्या गांड है तेरी "
सससससम्म....... असलम ने कटोरी का तेल की गांड पर गिरना शुरू कर दिया, माँ का जिस्म कांप उठा.
अब मुझे भी कुछ कुछ समझ आ रहा की असलम क्या करने वाला है.
पुककक..... पिच..... से असलम की दो ऊँगली माँ की गांड मे समा गई, आस पास से पोछ पोंछ के असलम माँ की गांड के छेद को मुलायम करने लगा, तेल से चिकना करने लगा.
असलम साला हरामी काफ़ी अनुभवी था.
मेरी माँ भी हैरान थी इतनी सी उम्र मे उसने कहा से सीखा ये सब.
"आआहहहह...आउच.... असलम बेटा कहा से सीखा ये सब?"
माँ तो जन्नत के मजे मे थी.
"अब्बू को करते देखा है, जब भी वो नयी गांड मारते है तो सरसो का तेल लगा के ही मारते है, इससे कोई जख्म, बीमारी भी नहीं होती और लंड आसानी से अंदर जाता है "
मतलब असलम खानदानी चोदू था.
"आअह्ह्ह..... धीरे असलम बेटा " माँ तो मजे मे थी उसने असलम की बात सुनी भी या नहीं पता नहीं.
अब बाकि बचा तेल असलम ने अपने लंड पर लगा अच्छे से मल लिया, रौशनी मे असलम का लंड तेल से चमक उठा, और आंखे हवस से.
असलम ने अपने मोटे भारी लंड को माँ की गांड की दरार पर रख दिया, एक दो घिसे दरार मे चलाने लगा.
आअह्ह्ह.... उउफ्फ्फ.... असलम.... का लंड माँ की गुदा द्वार से रगड़ खाता आगे निकल जाता तो कभी पीछे.
माँ गुदा द्वार को खोल के सिकोड लेती जैसे असलम के लंड को पकड़ ही लेगी.
अब दोनों से ही नहीं रहा जा रहा था, हवस का कर्रेंट दोनों के जिस्म मे दौड़ रहा था.
असलम ने माँ की गुदा द्वार पर लंड की नौक को रख दिया.
मै सांसे रोके आने वाले पल की प्रतीक्षा करने लगा, माँ का भी यही हाल था माँ ने आंखे बंद कर सांस रोक ली थी, चददर को हाथो से जकड लिया था.
आआआआआहहहहह...... फ्फ्फ्फऊऊऊररररर..... पुच.. फच..... असलम का लंड माँ की गांड मे धसने लगा, माँ की गांड से हवा के साथ आवाज़ निकलती चली गई,.
माँ का जिस्म तनने लगा, आंखे चौड़ी हो गई, गला सुख गया था.
मेरा भी यही हाल था, माँ ने इतना मोटा लंड कैसे ले लिया गांड मे.
"आआहहहह..... असलम.... हमफ.... उफ्फ्फ.... आउच.... निकालो बाहर...
असलम मा आधा लंड माँ की गांड मे चला गया था, माँ का गुदा द्वार पूरी तरह से असलम के लंड पर चिपक गया था.
माँ आगे भागने को हुई की असलम ने कस के पकड़ लिया
और लंड बाहर को खींचने लगा, मेरी संस्कारी माँ के तो जैसे प्राण ही खिंच रहे हो.
माँ की गांड असलम के लंड से चिपकी बाहर को आने लगी, असलम ने वापस कमर को आगे धकेली दिया.
आअह्ह्ह.... उउफ्फ्फ.... माँ के जबडे आपस मे कस गए थे, एक तेज़ दर्द की लहर ने माँ के जिस्म को ठंडा कर दिया था.
लेकिन ना जाने क्यों मुझे ये सब देख के रोमांच लग रहा था,
मेरी संस्कारी माँ को दर्द मे देख मुझे अच्छा लग रह था..
असलम धीरे धीरे अपने लंड को ऐसे ही थोड़ा थोड़ा अंदर बाहर करता रहा, लगभग 5मिनट बाद ही माँ के मुँह से सिस्कारिया निकलने लगी, दर्द छू मंतर हो गया था.
असलम ने पास पड़ी कटोरी उठाई और पूरा तेल लंड और गांड के गठबंधन पर गिरा दिया.
और... धह्ह्ह्ह...... धच.... से पूरा लंड जड़ तक माँ की गांड मे उतार दिया.
एक मजे और दर्द की लकीर माँ के चेहरे पे साफ दिखी,
ऐसा लगा जैसे असलम का लंड गले टक आ गया ही.
फिर क्या था असलम लंड बाहर खिंचता फिर वापस घुसेड़ देता....
आअह्ह्ह.... आंटी आज से पहले ऐसी कसी हुई गांड कभी नहीं मारी मैंने. उउउफ्फ्फ.... क्या गांड है.
"उउउफ्फ्फ.... असलम.... बेटा मेरा पहली बार है, तेरी आंटी आज तक इस सुख से वंचित थी, देख बुढ़ापा आ गया अब तो आअह्ह्ह उउफ्फ्फ....
"ऐसी गांड तो जवान औरत की होती है धच.... पच....."
फेक... फक... पच... पच... फुर्ररररर.... असलम अब आसानी ज़े धक्के मार रहा था गांड लंड तेल से चमक रहे थे, चिकनाहट ने बहुत आसान बना दिया था इस रास्ते को.
उउफ्फ्फ.... बेटा.... माँ अपनी गांड को असलम के लंड पर कस रही थी.
आअह्ह्ह.... उउउफ्फ्फ.... तेज़ असलम.. तेज़.... मेरी संस्कारी माँ असलम को गांड मारने के लिए उकसा रही थी.
देखा कहा था ना मैंने गांड मे भी मजा है " असलम ने अपनी बात को सच साबित होता पाया.
"हम्म्म्म.... सच... आअह्ह्ह...... अंदर... और अंदर..." माँ तो बधावस सी गांड को पीछे धकेल रही थी.
पच... पच... पुच.... फाचक... फाचक... थाड... थाड... कर दोनों की जाँघे आपस मे टकरा रही थी.
असलम की उंगलियां नीचे जा कर माँ की चुत को कुरेद रही थी, उसके दाने को छेड़ रही थी.
ऐसा आनंद ऐसा सुकून उउउफ्फ्फ्फ़.... क्या कहने.
मुझे समझ आने लगा था की मेरी संस्कारी माँ ने ऐसा क्यों किया, क्यूंकि ये मजा पापा कभी नहीं दे सकते थे.
उउउफ्फ्फ.... असलम... आअह्ह्ह.... मेरी माँ दोहरे हमले से मरी जा रही थी.
पीछे असलम दनादन धक्के मारे ज रहा था पट.. पट . फच.... फच....
आअह्ह्ह...
पप्पापिस्स्स्स..... पप्पीस्स्स..... माँ की चुत ने ढेर सारा पेशाब उगल दिया, पूरा बिस्तर गिला हो गया, माँ गांड चुदाई सहन नहीं मर पाई, उसका बांध टूट गया. पेशाब छलक उठा.
आअह्ह्ह.... हमफ़्फ़्फ़.... असलम बेटा कस के, कस के अंदर टक मार.... हाय... रे इसमें भी मजा है आता नहीं था.
असलम को यही तो चाहिए था, मेरी माँ खुद से मरवा रही थी.
असलम ने माँ के दोनों चूतड़ों को पकड़ फैला दिया, और धड... धड.... फच... फच... तेज़ तेज़ कस कस के गांड मे लंड पेलने लगा, असलम के बड़े टट्टे माँ की चुत से टकरा कर एक अलग ही हवस पैदा कर रहे थे.
माँ दोहरे सुख मे थी, गांड की गुदगुदी चुत तक जा रही थू, और चुत के दरवाजे पर पड़ते टट्टो की टक्कर माँ को चैन नहीं लेने दे रही थी...
आअहब्ब... उउउफ्फ्फ.... आंटी... मेरा आने वाला है...
उउउफ्फ्फ..... आउच... असलम... आअह्ह्ह.... तेज़ तेज़ और तेज़ शायद माँ भी झड़ने की कगार पर थी.
असलम ने कस कस कर धक्के लगाने शुरू कर दिया, धक्को की आवाज़ इतनी तेज़ थी की बाहर तक आवाज़ सुनाई दे रही थी, मेरी माँ भूल चुकी थी मै घर पर ही हूँ.
मै जग गया तो क्या होगा, मेरी माँ सारे संस्कार सारी हया लाज शर्म सब त्याग चुकी थी.
उसे बस चुदना था, इस वक़्त तो पापा भी सामने आ जाते तो मेरी माँ नहीं रूकती.
आअह्ह्ह... आंटी... उउफ्फ्फ.... मे आया पच... ओचक... फाचक.... फच.... करता असलम के लंड ने वीर्य त्याग दिया.
गरम गारा. गड़े वीर्य की धार से माँ की गांड नहा गई.
गर्मी का अहसास मिलना था की माँ की चुत खुलती चली गई... पप्पीस्स्स..... आअह्ह्ह.... असलम बेटा.
माँ ने एक बार फिर मूत दिया, मूतने मे साथ साथ माँ बुरी तरह झड़ गई.
आह्हब.... हमफ़्फ़्फ़... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....
असलम सिदर मे गिर पड़ा माँ ओधे मुँह सामने ढेर हो गई.
आअह्ह्ह... हम्मफ़्फ़्फ़... उउउफ्फ्फ..... माँ की गांड वैसे की वैसे चौड़ी थी, उसमे से असलम का गन्दा वीर्य रिस रहा था, चुत के रास्ते बिस्तर मे समा जा रहा था.
मैंने सामने देखा सुबह के 3 बज गए थे.
असलम उठा लुंगी पहनी, और बाहर दरवाजा खोल चल दिया, माँ ऐसे ही बिस्तर पर आंख बंद किये हमफ़्ती रही...
अब मेरे लिए भी कुछ बचा नहीं था, मेरे छोटे लंड ने भी जवाब दे दिया था.
मै भी अपने कमारे मे आ सो गया.
*************
सुबह मेरी आंख खुली 8 बज गए थे.
मै बाहर कमरे से आया तो पाप सामने डाइनिंग टेबल पर ही बैठे थे,
"पापा... पापा.. कब आये आप?" मैंने पापा को गले लगा लिया.
"अभी थोड़ी देर पहले ही आया " मै भी पापा के बाजु बैठ गया.
"अरे कामिनी चाय तो लाओ, नहा धो लू फिर "
माँ रसोई से चाय नाश्ते की try लिए चली आ रही थी, मैंने गौर किया माँ थोड़ा अकड़ के चल रही थी, टांगे फैला कर.
"क्या हुआ कामिनी पैरो मे दर्द है क्या " शायद पापा ने भी माँ की चाल पर गौर किया रहा.
"हह... हाँ... कल रात से ही दर्द है " माँ ने बिना झिझक साफ जवाब दिया मै खुद हैरान था मेरी संस्कारी मांकीस कद्र झूठ बोल रही थी..
सजी सवरी लाल सारी मे, हाथो मे चुदी, माथे पर सिंदूर, गाके मे मंगलसूत्र पहनी मेरी माँ यही संस्कारी माँ कल रात पापा के बिस्तर लार असलम से गांड मरवा रही थी, उसी का नतीजा है ये.
मन मे तो आया सब कुछ सच बता दू पापा को की उनकी पत्नी पीठ पीछे उछल उछल के गैर मर्द से गांड मरवाती है.
मेरा मन घृणा से भर उठा, लेकिन बसा बसाया घर नहीं उजाड़ना चाहता था मै.
चुपचाप बैठा अख़बार पढ़ने लगा.
"चलो डॉक्टर को दिखाते है "
"अजी रहने दो... काम ज्यादा कर लिया था, आराम करूंगी तो सही हो जायेगा," मेरी माँ ने मुस्कुरा के जवाब दिया.
कौन कहा सकता है इस मुस्कुराहट के पीछे क्या छुपा है.
"चलो मै नहा लेता हूँ पहले " पापा उठने को हुए.
"ननन... नहीं... अभी नहीं " मम्मी को जैसे किसी चींटी ने कटा हो.
"रुकिए अभी बाथरूम मे गंदे कपडे है पहले मे साफ कर लू "
"अरे अभी तो कहा तुमने की दर्द है पैरो मे, आराम करो कपडे बाद मे धूल जायेंगे " पापा ने माँ को समझाया.
"हम औरतों की जिन्दगी मे आराम कहा " माँ ने बड़ी खूबसूरती से अपनी बेचारागी, अपने औरत होने की मज़बूरी को सामने रख दिया.
पापा भी मया बोलते,
माँ सीधा बाथरूम मे चल दी.
पापा और मै उल्लू की तरह माँ को देखते रह गए.
Contd.....
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