आज दिन भर पापा घर पर ही थे, मै भी इधर उधर घूम कर घर ही आ गया, मेरा कहीं मन नहीं लग रहा था.
बार बार दिल मे इच्छा आ रही थी की पापा को सब सच बता दू जो भी मैंने देखा.
लेकिन दूसरा मन कहता बबलू वो तेरी माँ है, जिसने तुझे जन्म दिया, क्या तू उसका हस्ता खेलता परिवार उजाड़ देगा,
वो माँ के साथ एक औरत भी है, उसे शारीरिक सुख कभी नहीं मिला है जीवन मै.
जी लेने दे.
"लेकिन नहीं ऐसे कैसे माँ है तो क्या पापा की इज़्ज़त उछाल देगी "
"कहा उछली इज़्ज़त, तेरे अलावा किसी को पता है ये बात? बस तू मुँह बंद रख, क्या तेरी माँ का व्यवहार तेरी तरफ से बदला नहीं, नहीं ना तो फिर जीने दे अपनी माँ को जवानी,
आखिर कितने दिन की बची है उसकी जवानी?"
बबलू अपनी अंतरात्मा के कथन से सहमत था, मेरी माँ एक औरत भी है जिसकी जरुरत भी है.
आखिर असलम और मेरे अलावा किसे पता है ये बात किसी को तो नहीं....
लल्ल.... लेकिन एक मिनिट, वो फारुख, उसे तो मै भूल ही गया उस मादरचोदो ने मेरी माँ के बारे मे फारुख को बताया था,
साला हरामी....
मुझे मौका देख कर पहले माँ से बात करनी पड़ेगी इस बारे मे.
शायद माँ को शर्म आये कुछ.
बबलू ने निर्णय ले लिया था वो ओर ज्यादा इज़्ज़त नहीं उछालने देगा किसी को अपने परिवार और अपनी संस्कारी माँ की.
आज पापा मम्मी बबलू दिन भर घर ही थे, माँ ने दहलीज के बाहर कदम भी नहीं रखा था ना ही बाहर झांका था.
जब मै बाहर गया था तो असलम भी कहीं दिखा नहीं था.
लगता रहा जैसे मैं कुछ दिन से सपना ही देख रहा हूँ, आज नींद से जगा हूँ सब कुछ तो सामान्य है,
मेरी संस्कारी हसीन माँ पापा की सेवा मे लगी है, मुझसे अच्छे से बात करती है कितना ध्यान रखती है हम सब का.
मुझे माँ को देख यकीन ही नहीं होता था की जब माँ कपडे उतरती है तो संस्कार, लाज शर्म, हया सब उतार देती है.
खेर दिन भाई सुकून से कटा,
रात को खाने के टाइम पापा का फ़ोन बज उठा.
ट्रिन... ट्रिम... ट्रिन....
पिक पापा ने मोबाइल उठाया.
"सुबुक.... सुबुक...... " उधर से किसी के सुबाकने कि आवाज़ आ रही थी,
"अरे क्या हुआ बेटा रो क्यों रही हो " पापा ने शायद आवाज़ पहचान ली थी.
खाने की टेबल पर हम भी पापा की बात सुन परेशान हो गए थे.
"क्या हुआ जी किसका फ़ोन है?"
"किसका फ़ोन है पापा?"
" मधु का फ़ोन है, पता नहीं क्यू रो रही है? " पापा ने फ़ोन स्पीकर पर कर दिया.
"क्या हुआ मधुश्री दीदी " ये मेरी बहन मधुश्री का था जिसे हम प्यार से मधु कहते थे.
दीदी की शादी को तीन साल हो गए थे, अच्छा रिश्ता मिल गया था तो पापा ने शादी कर दी थी.
दीदी को मायके आये 2 साल हो गए थे, पापा के ट्रांसफर की वजह से जल्दी से आना नहीं हो पता था, शादी के एक साल बाद घर आई थी तभी मैंने देखा था अपनी बहन को.
हम दोनों मे बड़ा ही लगाव था, मुझसे दीदी का रोना सुन का बेचैनी सी होने लगी.
"वो.... वो.... पापा सुबुक सुबुक...." दीदी रोये जा रही थी.
"क्या हुआ बेटा पहले चुप हो जाओ, बताओ क्या बात है, "
माँ ने थोड़ा हौसला दिया.
"वो... वो... माँ मुझे ये बहुत परेशान कर रहे है बहुत दिनों से, आज हाथ भी उठाया, मुझे नहीं रहना यहाँ सुबुक सुबुक....
दीदी की बात सुन हम सभी सकते मे आ गए,
"हे भगवान ये क्या मुसीबत आना पड़ी " मेरी माँ का तो दिल ही बैठा जा रहा था.
"तू... तू... चिंता मत कर बेटा मै कल सुबह ही निकलता हुआ, तू ध्यान रखना अपना "
पापा ने ज्यादा बात ना करते हुए फ़ोन काट दिया.
"ये क्या हुआ बबलू के पापा " माँ के माथे पर पसीना था, चिंता थी आखिर कौन माँ पाने बच्चों के लिए परेशान नहीं होती.
"उसकी सांस तो थी ही लड़ाकू, लेकिन दामाद जी भी ऐसा निकलेंगे सोचा नहीं था मैंने " पापा भी हताश थे.
"अब पापा "
"अभी तो साधन भी नहीं मिलेगा, कैसे जाऊ?"
"मै जाता हूँ ना पापा "
"तू अभी छोटा है, तू क्या करेगा वहाँ जा कर, जाता हूँ "
पापा उठे अपने कमरे मे गए और एक डायरी निकाल लाये, जिसमे कुछ नंबर लिखें हुए थे..
पापा ने एक एक कर सभी नंबर try किये लेकिन कहीं से किसी टैक्सी या कार का इंतेज़ाम नहीं हो पाया.
"अब क्या करे, हम इस जगह पर नये है किसी को जानते भी नहीं, कहा से इंतेज़ाम करे कार टैक्सी का "? पापा बिल्कुल हताश दिख रहे थे.
मै भी परेशान था.
मेरी बहन मधुश्री का ससुराल यहाँ से कोई 500km की दुरी पर था, ट्रैन से जाने का सवाल ही नहीं था, एक तो ट्रैन पकडेने ही इस कस्बे ज़े दूर जाना पड़ेगा, ऊपर से कोई ट्रैन मिलेगी भी या नहीं ये समस्या थी.
" सुनिए ना वो सामने वाला लड़का है ना वो यहाँ का लोकल है उस से बात कर के देखे " माँ ने अचानक असलम की बात कर दी..
मेरा तो कलेजा ही जलन और गुस्से ज़े जल उठा, आखिर ऐसे वक़्त भी माँ को असलम की याद आ गई.
"अरे हाँ... बदमाश लड़का है लेकिन ऐसे लड़के जुगाडू होते है, लेकिन वो मदद करेगा क्यों हमारी? उसे तो हमने जेल भिजवा दिया था "
पापा ने चिंतजानक मुद्रा मे कहा.
"खाक पापा माँ तो चुदवा चुकी है उस से वो क्यों मना करेगा "
मन मे तो आया अभी बक दू, लेकिन मन मामोस के रह गया..
"जरुरत पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है जी " माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, कितनी चतुर थू मेरी प्यारी संस्कारी माँ.
धीरे धीरे मै एक औरत के चरित्र को समझ रहा था.
"हमममम... जा बबलू जरा बुला तो ला उसे देखे बात बने तो "
"कक्क... क्या मै..?"
"हाँ तो क्या तेरी माँ जाएगी " पापा ने थोड़ा गुस्से से कहा.
"माँ तो जाती ही है पापा, आपको क्या पता " मै बड़बड़ता बाहर को चल दिया.
"असलम ओये असलम.... " मैंने झोपडी के दरवाजे को पिट दिया.
थोड़ी ही देर मे दरवाजा खुला, असलम लुंगी लपेटा चला आ रहा था, साले का लंड अभी भी तना हुआ था.
ऊपर से नंगा.
"अरे बबलू तू, क्या हुआ?"
"पापा ने बुलाया है चल " मैंने ऐसे ही मन मार के बोल दिया.
लेकिन पापा का नाम सुनते ही उसके तोते उड़ गए, हवा टाइट हो गई.
"पप्प्प... पापा.... कक्क... क्यों... क्या हुआ " असलम की जबान लड़खड़ा गई.
मुझे उसका चेहरा देख मजा आ गया, साला डर गया था.
चोर अपने डर की वजह से ही मारा जाता है, उसे लगा शायद पापा को सब पता पड़ गया है, मम्मी ने फसवा दिया उसे.
उसका चेहरा देखने लायक था.
असलम तुरंत अंदर गया और शर्ट पहन आ गया.
"कक्क... क्यों... बुलाया है "
"मुझे क्या पता चलो बस..." मैंने भी मजे लेने के लिए बात छुपा ली.
असलम के डर और पसीने ने मुझे काफ़ी राहत दी.
5मिनट मे ही मै और असलम पापा के सामने थे, मै डाइनिंग टेबल पर आ बैठा, असलम सामने मुँह झुकाये किसी चोर की तरह खड़ा था,
जैसे आज बकरा काटने वाला हो.
सामने मम्मी पापा की टैंशन भारी शक्ल उसका फ्यूज उडाने के लिए काफ़ी थी.
"बेटा उस दिन के लिए सॉरी, तुम्हारी आंटी ने बताया वो सब गलतफहमी मे हो गया था "
पापा की मीठी आवाज़ सुन असलम कर प्राण लौट आये, उसे जो लगा था ऐसा कुछ नहीं था, उसकी गर्दन वापस से सीधी हो गई, हलक गिला हो चला.
"कक्क... कोई बात नहीं अंकल... आप बड़े लोग है "
असलम ने बड़ी ही शराफत दिखाई.
"अच्छा बेटा एक मदद चाहिए थी "
"क्या अंकल... आप तो पड़ोसी है हमारे, बोलो क्या सेवा करे, असलम की नजर माँ तक जा पहुंची थी.
जो की साड़ी मे लिपटी अप्सरा की तरह संस्कारी बनी पापा के बाजु मे बैठी थी
"वो बेटा किसी कार या टैक्सी का इंतेज़ाम हो सकता है क्या अभी "
"लो बस इतनी सी बात, घर की ही टैक्सी है अपनी तो अब्बू चलाते है मेरे ".
असलम की बात सुन माँ पापा की बांन्छे खील गई, माँ के चेहरे पे तो जैसे विजयी मुस्कान थी, आखिर माँ की बात सच साबित हुई, और इधर मेरी छाती पर सांप लौट गया.
असलम ने तुरंत लुंगी के साइड मे फसे मोबाइल को निकाल नंबर दर्ज किया.
"हनन... अब्बू अर्जेंट टैक्सी चाहिए, चलना है "
"कहा? कब? " सामने से आवाज़ आई
जिसे पापा ने भी सुना कल सुबह 5 बजे, सहारनपुर " पापा ने धीरे से कहा.
"अब्बू कल सुबह 5बजे, सहारनपुर "
ठीक है टक....
लो अंकल हो गया काम, अब्बू कल सुबह 5 बजे यहाँ आ जायेंगे.
हमफ़्फ़्फ़.... पापा का चेहरा खील गया था, थैंक्स यूँ बेटा अहसान रहा तुम्हारा,
पापा ने सोचा भी नहीं था जिस काम के लिए वो परेशान थे वो चुटकीयों मे हो गया.
"पैसे क्या लगेंगे "
"आप से क्या.... बस जो सही लगे और तेल " असलम ने माँ को घूरते हुए कहा,
तेल के नाम से माँ भी सर नीचे किये मुस्कुरा दी.
पापा ये सब ना देख सके लेकिन, मेरी नजरों से नहीं बचा.
बबलू जा ऊपर से कपडे ले आ, पापा उठ के अंदर कमरे मे चले गए,
असलम और माँ अभी भी वही खड़े थे, असलम धीरे से माँ के पास आ खड़ा हुआ, उसका लौंडा माँ के कंधे से टकरा गया.
"क्या आंटी कल भी अकेले " असलम ने आंख मार दी.
शटअप पागल, अंकल यही है, कल का कल देखेंगे,
आउच.... बदमाश... असलम ने हाथ आगे बड़ा कर कस के माँ के स्तन को दबा दिया और बाहर को भाग लिया.
माँ मुस्कुरा कर रह गई, कुर्सी से उठ किचन मे चल दी.
मै सीढ़ी से खड़ा माँ का गिरता चरित्र देखता रह गया.
मुझे अब डर था पापा के जाने मे बाद मेरी माँ और असलम पक्का गुल खिलाएंगे.
खेर सभी इंतेज़ाम हो गए थे, पापा का समान पैक हो गया था.
***********************
पी.. पी.... पी.....
अंकल अंकल..... गाड़ी आ गई,
बाहर असलम दरवाजा पिट रहा था,
सुबह के फिक्स 5बज गए थे, मै भी उठ गया था, पापा रेडी थे.
माँ ने दरवाजा खोला, सामने ही असलम खड़ा था.
सुबह सुबह ही दोनों की नजरें मिल गई थी, मेरी माँ रात के गाउन मे ही थी, शायद उसने जानबूझकर बदला भी नहीं था.
झिने झीनी कपडे से माँ का मादक गद्दाराया जिस्म साफ नुमाया हो रहा था.
"ईईस्स्स..... आंटी जी सुबह सुबह " असलम ने अपने लंड को पकड़ रगड़ दिया.
"हट बदमाश बेशर्म " मेरी इज़्ज़त का ख्याल तो रखा करो" माँ दरवाजा खोल अंदर आ गई, पीछे पीछे किसी कुत्ते की तरह असलम भी.
"लाइए अंकल मे सामान रख दू " असलम ने तुरंत ही पापा का सामान उठाया और बाहर कार मे रख दिया.
"भला लड़का है, वरना अनजाने शहर मे कौन मदद करता है " पापा ने जूते पहनते हुए मम्मी से कहाँ
माँ सिर्फ मुस्कुरा कर रह गई.
मेरे सीने पर तो सांप लौट रहे थे, पापा उस लड़के की तारीफ कर रहे थे जिसने घर की इज़्ज़त लूटी है,
मेरी संस्कारी माँ को बाज़ारू औरत जैसा बना दिया है, माँ की चुत और गांड खोल के रख दी है.
"अच्छा बेटा चलता हूँ, माँ का ध्यान रखना, रात टक लौट आऊंगा "
पापा बाहर को चल दिए.
"क्या खाक ख्याल रखूगा " इतनी ही हिम्मत होती तो क्या मेरी माँ की चुत चुदती.
"सलाम साब " बाहर असलम के अब्बा ने पापा को सलाम ठोका.
मैंने पहली बार असलम के बाप को देखा था,
लम्बा चौड़ा कद काठी का इंसान, हलकी काली सफ़ेद दाढ़ी, जिस्म पर ढीला कुर्ता और पजामा डाला हुआ रहा.
उसे देखने से ही लगता था की बाप बाप होता है.
असलम से दुगना दिखाई पढ़ रहा था, एक बार को तो मै इसे देख डर गया.
उसने घूर के मुझे और माँ की तरफ देखा, माँ भी सकूँचा सी गई, क्यूंकि वो सिर्फ गाउन मे ही खड़ी थी.
खेर पापा की कार चल पड़ी, मुझे अभी भी नींद आ रही थी तो कमरे मे आ गया सोने.
जैसे ही कमरे मे पंहुचा एक ख़ुशफुसाहत सी आई.
"ससससस.... ये क्या है असलम सुबह सुबह आउच छोडो " मैंने तुरंत खिड़की से बाहर देखा, साइड से माँ दिख रही थी जिसके स्तन पर असलम के काले हाथ भींचे हुए थे
"माल लग रही हो जान तुम तो " असलम ने बिना डरे कहाँ.. "छोडो.... बबलू यही है, उजाला होने वाला है बहुत लोग घूमने निकलते है "
माँ ने असलम के हाथ को खुद ज़े दूर किया.
माँ और असलम दरवाजे के बाहर ही खड़े हो कर ये हरकत कर रहे थे, हालांकि अभी अंधेरा ही था.
"तो अंदर चले " असलम ने जोर दिया.
"नहीं.... अभी नहीं कल का ही दर्द गया नहीं अभी "
"चाट के दर्द दूर कर दूंगा "
इस्स्स..... आउच... असलम ने माँ के दोनों स्तनों को हाथो से भींच दिया..
"बदतमीज़... अभी नहीं, समझा करो "
"तो कब आज तो अंकल घर पर भी नहीं है "
"लेकिन बबलू है ना?" माँ अपने दूध मसलावा रही थी खुले मे, और इधर उधर देख भी लेती की कोई देख तो नहीं रहा.
कितनी बेशरम हो गई थी मेरी संस्कारी माँ.
"मै कुछ नहीं जानता, दर्द मिटाना है ना "
"हहह... इसस्स.... उउउफ्फ्फ...." माँ ने बस सिस्कारिया भरी.
असलम का एक हाथ माँ की जांघो के बीच जा कर चुत को मसलाने लगा था..
"इऊफ्फ.... आह्हः.... करती हूँ कुछ, अभी जाओ "
माँ ने जैसे तैसे खुद को छुड़ा लिया और अंदर को आ गई.
मै भी बिस्तर पर लेट गया, माँ को एक पल भी अकेला छोड़ने का मतलब था माँ का चुद जाना.
खेर आज मेरे पास भी कोई काम नहीं था, घर पे ही था पुरे दिन.
माओ नोटिस कर रहा था माँ आज कुछ बेचैन सी दिख रही है, एक जगह बैठ ही नहीं रही है.
"क्या हुआ माँ?"
"ववव... वो... कक्क.. कुछ नहीं बबलू, पता नहीं मधुश्री के साथ क्या हुआ होगा, वो ठीक हो बस " माँ की चिंता जायज थी.
लेकिन माँ हकलाई ऐसे जैसे वो सोच कुछ रही थी और बोली कुछ..
"पापा गए है ना, दीदी को ले आएंगे सब ठीक ही होगा "
"हहहमममम.... अच्छा बबलू मै सोच रही थी पार्लर चली जाती, थ्रेडिंग बनवा लेती हूँ, इतने दिनों मे टाइम ही नहीं मिला "
"लेकिन यहाँ कहाँ है पार्लर?"
"है ना गांव के बाहर.. बाजु वाली गुप्ता आंटी बता रही थी "
"ठीक.... है चलता हुआ साथ मे "
मेरे साथ चलने के नाम पर माँ के चेहरे पे हवाइया सी उड़ गई.
"त त त... तू क्या करेगा वहाँ, टाइम लग सकता है, तू मुझे छोड़ आना, जब फ्री हो जाउंगी तो फ़ोन कर दूंगी "
"माँ की बातो से मुझे कुछ गड़बड़ सी लगने लगी, सुबह का किस्सा याद आने लगा माँ ने असलम को कहाँ था करती हूँ कुछ"
मेरे मन मे भी चोर ने जगह ले ली थी, मेरा नजरिया भी माँ को एक औरत की तरह देख रह था, मेरी इच्छा होने लगी माँ को चुदता हुआ देखने की.
माँ की सिस्कारिया सुनने की.
माँ के साथ साथ मै भी गिर रहा था,.
"ठीक है माँ तैयार हो तो, मै जीन्स पहन कर आता हूँ "
माँ के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई,
12 बज चुके थे, इस बीच पापा का फ़ोन भी आया था की वो दीदी के घर पहुंच गए है, देर रात तक आ जायेंगे.
थोड़ी ही देर बाद माँ कमरे से बाहर आई.
उफ्फ्फ... मै तो माँ को सिर्फ देखता ही रह गया, क्या वाकई मेरी माँ इतनी सुन्दर है..
मस्त चटक कलर की साड़ी, स्लीवलेस ब्लाउज, उसमे से झाकते सुडोल स्तन, साड़ी के पार दिखती गहरी नाभि, माथे पर लाल बिंदी.उफ्फ्फ.... माँ शायद पापा के साथ इतनी सजी सवरी हो.
माँ ने मोबइल निकाल कुछ किया आउट तुरंत ही रख दिया.
"चले बबलू....?"
चलो माँ....
माँ मेरी बाइक पर पीछे बैठ गई, मैंने सामने देखा असलम की झोपडी पर ताला लगा हुआ था.
"ये कहाँ गया साला हरामी "
खेर थोड़ी ही देर मे पार्लर आ गया, माँ उत्तरी और सीधा पार्लर मे अंदर चली गई.
सब कुछ सामान्य ही था, तो माँ सच मे पार्लर हूँ आई थी,
मै खुद को कोषने लगा मेरा दिमाग़ भष्ट हो गया था, मै बेवजह खुवाबी पुलाव पका रहा था.
"मै फ़ोन कर दूंगी बबलू, सीधा घर ही जाना "
माँ ने कहाँ
"मै भी वापस घर की ओर चल दिया"
मतलब मेरी माँ असलम से मिलने नहीं आई थी,
रास्ते मे मुझे beer की शॉप दिखी.
सोचा एक पी ही लेता हूँ घर जा के भी क्या करूँगा, इतनी दूर ज़े वापस आना पड़ेगा.
मैंने एक beer ली और रास्ते पर आगे उसी खंडर की ओर सडक से उतार के चल दिया जहाँ अक्सर मै beer, शराब पिता था, गांव से बाहर जगह थी कोई आता जाता नहीं था.
मैंने बाइक पेड़ के पीछे झड़ी मे छुपा दी, और खुद खंडर के अंदर चला आया, बाहर धुप थी इसलिए सीधा अंदर ही आ गया..
खंडर मे कोई टूटे फूटे 2 कमरे थे, आगे आंगन था जिसमे झाड़िया पेड़ उग आगे थे, बाकि छोटी मोटी दिवार खड़ी थी, जो की जगह जगह से टूटी हुई थी.
कुल मिलाये ना यहाँ कोई आता था, ना सडक से या फिर खंडर के बाहर से आसानी से अंदर देखा जा सकता था.
मैंने बोतल खोल ली, और सुबह के बारे मे सोचने लगा, साला हरामी असलम आज गया कहाँ, सुबह तो माँ से मिलने का बोल रहा था, लेकिन मेरी माँ तो पार्लर गई है.
******************
मै अपनी संस्कारी माँ को पार्लर छोड़, beer ले कर खंडर मे आ बैठा था,
अभी 15मिनट ही हुए थे की, धड... धड... धड.... फाड़.. फट... की बाइक की आवाज़ आने लगी,
मेरी सांस टंग गई, साला कौन आ गया, कहीं पिछली बार की तरह असलम तो नहीं है,
हरामखोर ने मुझे यहाँ देख लिया तो माँ से शिकायत कर देगा.
मैंने तुरंत बोत्तल उठाई और खंडर के कमरे से बाहर आ, झाड़ी के पीछे जा छुपा.
मेरा अनुमान ठीक था एक बुलेट बाइक आ कर वहाँ रुक गई,
एक बंदा बाइक से उतरा,
"तुम्हे यही जगह मिली थी क्या, ये कैसी जगह है, मुझे डर लग रहा है वापस चलो "
मेरे कानो मे एक जानी पहचानी सी आवाज़ पड़ी..
मेरा दिल धाड़ धाड़ कर बजने लगा, क्या मेरा सोचना सही था,
ये... ये.... कहीं वही तो नहीं.
"अरे चलो ना डरती क्यों हो, यहाँ कोई नहीं आता, और वैसे भी गांव मे मुझसे सब डरते है, कुछ नहीं होगा.
"नहीं.नहीं असलम बेटा सच मे किसी ने देख लिया तो मेरी इज़्ज़त का क्या होगा,?
"तुम डरती बहुत हो ".
"औरत हूँ ना, तुम्हारा क्या है?"
"कुछ नहीं होगा, अभी जल्दी अंदर आओ बाहर कोई देख सकता है., असलम ने उस औरत का हाथ पकड़ा और अंदर की तरफ खिंचते हुए के आया,
असलम और वो औरत मेरे सामने से चले जा रहे थे,
मेरा कलेजा तो जैसे मुँह को आ गया था, जिस आवाज़ को मै पहचानने का दवा कर रहा था वो मेरी माँ ही थी.
मेरी संस्कारी माँ जिसे मै पार्लर छोड़ के आया था,
उफ्फ्फ्फ़.... माँ ये क.. क्या है.
मुझे यकीन नहीं हो रहा था, मै कैसे चुतियो की तरह हर बार धोखा खा जाता हूँ, सब कुछ पता होते हुए भी.
असलम माँ का हाथ पकडे, माँ को लिए चला जा रहा था, हाई हील और तेज़ चलने की वजह से माँ के चूतड आपस मे रगड़ खा रहे थे, उछाल उछाल के मुझे चिड़ा रहे थे.
मै बस किसी मुर्ख की तरह देखे जा रहा था,. मेरी संस्कारी माँ एक बार फिर से पापा और मुझे धोखा दे रही थी.
खेर मै कर भी क्या सकता था, मेरा एक मन ये भी तो था की अपनी माँ को नंगा चूदता हुआ देखु.
फिर क्या था मै भी झाड़ी से निकल कमरे के बाहर एक छेद पर जा टिका .
माँ और असलम अंदर पहुंच चुके थे.
"बहुत बदमाश हो असलम तुम "
"अच्छा मै बदमाश हूँ, मेसेज तुमने ही किया था ना की पार्लर जा रही हूँ,"
"पार्लर जाने को कहाँ था, ये थोड़ी ना कहाँ था की यहाँ इस खंडर मे ले आओ " माँ मुस्कुरा दी.
"अच्छा तो तुम्हारे घर चलते है ".
"न्नन्न... नहीं... नहीं अब यही ठीक है, घर ओर बबलू है " माँ ने शर्म से गर्दन नीचे कर ली
"माँ बबलू घर पर नहीं, तेरे पीछे है " मेरे मन ने चीख कर कहाँ लेकिन मुँह ने हिम्मत ना की.
बस अंदर देखता रहा .
"तो फिर साड़ी उतरो " असलम ने माँ के हाथ को पकड़ अपने पाजामे के ऊपर रख दिया.
"बदमाश.... यहाँ नहीं, ऐसी ही कर लो जो करना है जल्दी से " माँ ने असलम के लंड को ऊपर से ही सहलाते हुए कहाँ.
मेरी माँ पहले से ही गरम थी, अब तो वैसे भी कोई शर्म हया बाकि नहीं थी.
अब मुझे समझ आया माँ सुबह से बेचैन क्यों थी, असलम ने सुबह सुबह ही माँ के जिस्म को गरम. कर दिया था, बस कैसे भी उसे अपनी प्यास बुझानी थी.
"बड़ी जल्दी मे लग रही हो आंटी " असलम ने माँ के स्तन को ब्लाउज के ऊपर से रगड़ दिया.
"तुमने ही लगाई है ये बीमारी, माँ ने असलम के पाजामे का नाड़ा खिंच दिया.
ससससररर..... करता पजामा नीचे जमा हो गया, असलम मा काला मोटा लंड तैयार खड़ा था, जिसे माँ ने तुरंत अपने कोमल हाथो का सहारा देते हुए पकड़ लिया.
"आअह्ह्ह.... आंटी बहुत जल्दी सीख गई हो तुम तो "
"तुमसे ही सीखा है "
" तो आज कहाँ डालू, गांड या चुत मे "
"छी कैसी बात करते हो, किता गन्दा बोलते हो "
" अब यही तो बोलते है ना, बोलो कहाँ डालू? "
"आ... आ... आगे... गड़ब " माँ ने जैसे तैसे बोला, माँ की चुत रिस रही थी, सब्र नहीं हो रहा था, असलम के लंड को अच्छे ज़े सहला रही थी.
"आगे कहाँ....?
"यहाँ... माँ ने ऊँगली से अपनी चुत की तरग इशारा किया.
"क्या बोलते है इसे?"
"मै नहीं जानती, तुम बस यही करो "
"जब तक नाम नहीं बोलोगी नहीं करूंगा कुछ भी "
असलम ने माँ के स्तनों को छोड़ दिया.
माँ को जैसे सुनापन लगा हो..
"च... च... चुत मे इस्स्स्स...." माँ ने आखिर वो शब्द बिल दिया माँ बुरी तरह शर्मा गई.
मै खुद माँ के मुँह से ऐसा गन्दा शब्द सुन रहा था..
असलम मेरी संस्कारी माँ को पूरी तरह से बेशर्म बनाने मे लगा था..
"ये हुई ना बात, कितना अच्छा लगा आंटी तुम्हारे मुँह से चुत सुन कर,
माँ बस शर्मा कर रही गई, उसके जिस्म मे अजीब सी गुदगुदी हो रही थी.
"गांड मे भी डालने दो ना आंटी "
"ननन.. नहीं... वहाँ नहीं ".
"क्यों मजा नहीं आया था क्या "
"आ... आया था लेकिन दर्द है अभी" माँ ने मज़बूरी बताई.
"ऐसी बात तो अभी दर्द ठीक कर देते है.
असलम ने माँ को घुमा कर दिवार पर टिका दिया,
माँ ने तुरंत इशारा समझते अपनी साड़ी को कमर तक ऊपर चढ़ा लिया, टांगे फैला ली.
उउउफ्फ्फ्फ़..... क्या दृश्य था, माँ की गोरी गांड ने खंडर की सोभा बढ़ा दी थी.
मै ठीक दिवार के पीछे आंख लगाए खड़ा था, मुझे आगे से अपनी माँ की चुत का ऊपरी हिस्सा नजर आ रहा था, नाभि दिख रही थी.
क्यूंकि चुत की लकीर तो माँ के झुकने से असलम की आँखों के सामने थी.
"उउउफ्फ्फ्फ़... इसससस.... आंटी क्या चुत है, क्या गांड है तुम्हारी जब भी देखता हूँ रहा नहीं जाता.
माँ ने बस मुस्कुरा के पीछे देखा, जैसे असलम को निमंत्रण दे रही हो.
असलम ने भी देर ना करते हुए, माँ की चूतड़ों की दरार मे मुँह घुसेड़ दिया.
"आआहहहह.... असलम बेटा... उउउफ्फ्फ..."
गरम गरम गीली जीभ माँ के गुदा द्वार पर जा लगी, गर्माहट से एक शानदार राहत का अहसास हुआ.
माँ ने गांड के छेद को सिकोड लिया, आंखे उत्तेजना मे बंद हो गई.
असलम की जीभ माँ की गांड की दरार मे रेंगने लगी, गांड के छेद से ले कर चुत के दाने तक.
ऊपर से नीचे, नीचे से ऊपर.... लप... लाल.... लप...
उउफ्फ्फ... मा.... आअह्ह्ह.... असलम....
माँ ने अपने हाथ को पीछे ले जा कर असलम मे सर पर रख दिया, जैसे चुत गांड चाटने के लिए आशीर्वाद दिया हो.
असलम तो पागल हो गया था, माँ की चुत को चाटता तो कभी गांड पर थूक देता, फिर चाटने लगता.
गांड को दांतो से काटने लगता.
"आअह्ह्ह.... असलम.... चाटो... इससे... जोर... से उफ्फ्फ...
मेरी संस्कारी माँ असलम को चाटने के लिए उकसा रही थी.
लप... लप... लपड़.... लपड़.... चाट.... पुच.... करता असलम अपने अनुभव का प्रदर्शन कर रहा था.
माँ की गांड की दरार पूरी तरह से थूक और चुत रस स सन गई थी.
असलम के लिए अब ये उत्तेजना बर्दाश्त करने लायक नहीं थी, माँ का हाल भी यही था.
आअह्ह्हम्म.... असलम बेटा अब डाल दो.
"क्या डाल दू आंटी?"
"अअअ.... अपना लंड डाल दो, मेरी चुत मे " माँ बहक गई थी, आज पहली बार मै माँ को इतना बेशर्म देख रहा था.
असलम ने तुरंत आज्ञा का पालन किया,
और माँ की कमर को पकड़ लिया, असलम का मोटा लंड माँ की गांड की दरार मे रगड़ खाता हुआ चुत के मुहने पर आ लगा.
असलम अभी अंदर डालता ही की माँ ने अपनी गांड को पीछे की तरफ तेज़ धक्का दे दिया.
"आआआहहहह..... उउउफ्फ्फ..... पूरा लंड पच.. पचा कर चुत के दरवाजे खोलता एक बार मे अंदर जा धसा.
माँ सिस्कार उठी, माँ मे अब सब्र नहीं बचा था.
माँ अभी यही नहीं रुकी, खुद की गांड को आगे खिंच वापस पीछे धकेल दिया,
असलम खुद हैरान था की मेरी माँ इस कद्र उत्तेजित कैसे हो गई, इतनी हवस, इतनी गर्मी भरी पड़ी है उसे भी नहीं पता था.
टप... टप... टप... पच... पच... फच... फाचक... माँ लगातार अपनी चुत को असलम के लंड पर चढ़ाने लगी.
आह्हब... असलम... बेटा.... ऊफ्फफ्फ्फ़....
असलम भी माँ का साथ देने लगा, दोनों ताल से ताल मिला रहे थे.
की तभी बाहर से एक सरसरहत की आवाज़ से सभी का ध्यान भंग हुआ, कमरे के दरवाजे पर एक आकृति सी आ खड़ी हुई.
"मदरचोद साले, असलम तू यहाँ है, किसे चोद रहा है ये "
असलम और माँ डर के मारे सीधे खड़े हो गए, माँ का चेहरा पसीने से भीग गया था,
साड़ी नीचे आ गई थी, हवस की जगह डर ने जगह ले ली थी.
आँखों से आंसू छलकने को हि थे, मेरी माँ कलेजा उसे बात बार कोष रहा था वो यहाँ आई क्यों.
एक पल मे ही मेरी माँ को उसके पाप याद आ गए, क्या जवाब देगी मुझे, मेरे पापा को,
वो यहाँ खंडर मे एक गांव के गँवार लड़के से अपनी चुत मरवा रही थी.
उफ्फ्फ्फ़.... मेरा दिल बैठा जा रह था, ना जाने मेरी माँ पर क्या बीत रही होंगी.
मेरा भी यही हाल था, माँ और हमारी घर की इज़्ज़त आज सरे बाजार नीलम हो गई थी,
मेरी संस्कारी माँ का राज़ खुल गया रहा.
मुझे समझ नहीं आ रहा था की क्या करू, रुकू या जाऊ?
माँ की इज़्ज़त मे ही मेरी इज़्ज़त थी.
कौन आ गया था इस सुनसान खंडर मे?
किसने दा रंग मे भंग?
क्या होगा मेरी संस्कारी माँ का?
Contd....
0 Comments