रात क़रीब 11 बजे, बंसल की नींद खुली तो उसकी खिड़की से रौशनी आ रही थी। उसने सोचा शालु अभी भी पढ़ाई कर रही है। बिस्तर से उठ कर जब वो खिड़की के पास आया तो पाया की शालु वहीँ बिस्तर पे सो गई है। वो शायद रूम की लाइट बंद करना भूल गई थी। बंसल बिस्तर से उतर कर अँधेरे में ही खिड़की के पास आ खड़ा हुआ। अन्दर कमरे में जब उसने शालु को बिस्तर पे देखा तो उसके होश उड़ गये। शालु बिस्तर पे तकिये में अपना मुह घुसाये लेती थी। उसने अपना लेफ्ट पैर मोड रखा था जिससे उसकी कुर्ती ऊपर चढ़ गई थी। उसकी पूरी गांड का शेप सलवार में नज़र आ रही थी। उसकी मोटी मांसल जाँघे बंसल को पागल कर रही थी। उसने सपने में भी नहीं सोचा था की वो अपनी बेटी को कभी इस तरह देख पायेगा।
बंसल मन में - ओह बेटी। उर्मिला सच कह रही थी तुम्हारी जाँघ कितनी मांसल है। काश मैं तुम्हारी जाँघ बिना सलवार के देख पाता। शालु के वाइट कलर की पेंटी उसके ट्रांसपेरेंट सलवार में से नज़र आ रही थी।
बंसल मन में - बेटी, काश मैं तुम्हारी सल्वार खोल पाता तो तुम्हारी गोरी जाँघो को चाट कर गिला कर देता।
इतना सब सोचते हुए न जाने कब बंसल अपना लंड बाहर निकाल कर मुट्ठ मारने लगा।आज रात के अँधेरे में उसे कुछ भी गलत नहीं लग रहा था। अपनी बेटी की गांड देख कर वो मुट्ठ मार रहा था। बंसल के दिमाग में इस वक़्त मुट्ठ गिराने के अलावा और कुछ भी नहीं सूझ रहा था। सुबह तो शालु उसकी कल्पना में थी, लेकिन अभी तो बंसल उसे अपने सामने देख कर मुट्ठ मार रहा था। लंड हिलाते-हिलाते उसके लंड से सफ़ेद पानी खिड़की के नीचे दिवार पे निकल आया।
बंसल अब काफी संतुष्ट था, वो वापस बिस्तर पे जा कर सो गया।
उधर सुबह 7 बजे शालु की नींद खुली तो उसने सबसे पहले खिड़की से बाहर देखा। बगल के कमरे में उसके पापा गहरी नींद में थे। वो सोचने लगी की उसने अपने रूम की लाइट बंद नहीं की थी तो क्या पापा उसको रात में सोते हुए देखे होंगे? चलो अच्छा है ।मैंने आज अपना नाईट गाउन नहीं पहना था। उसने सोचा की वो सबको उठा दे, तो वो सबसे पहले अपने पापा के कमरे में गयी। उसके पापा सो रहे थे, और कमरे में खिड़की से धूप आ रही थी। वो कर्टेन लगाने खिड़की के पास गई तो उसने अपने पैरो में कुछ गीलापन महसूस किया।
जब उसने नीचे जमीन पे देखा तो, उसके तलवे में कुछ चिपचिपा सा था, उसने सामने देखा तो खिड़की की दिवार पे भी कुछ लगा था। वो आगे बढ़ कर अपनी उँगलियों से छूने लगी। उसे समझ में नहीं आ रहा था की ये क्या है। वो ऊँगली नाक के पास लगा कर सूंघी तो उसे ये अजीब सी महक कुछ जानी-पहचानी सी लगी। वो चुपके से बाथरूम में गई और पापा की सुबह वाली पेंट खोजने लगी। किस्मत से उसे पेंट मिल गई,पेंट में अभी भी ज़िप के पास दाग था।
लेकिन वो धब्बा काफी कड़ा हो गया था। शालु ने उसे नाक लगा कर सूँघा तो उसे ये समझते देर नहीं लगी की ऊँगली पे लगे पानी की महक और पापा के पेंट पे लगे दाग के महक एक है। शालु मन में सोचने लगी, तो क्या ये पापा के मुट्ठ की महक है? क्या पापा ईस उम्र में मुट्ठ मारते होंगे? क्या पापा ने रात में खिड़की के पास खड़े हो कर मुट्ठ मारा? और खिड़की के पास ही क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं की वो खिड़की से मुझे देखकर मुट्ठ मार रहे थे?
छी नहीं नहि।।हे भगवन ये मैं क्या सोच रही हू। वो भी पापा के बारे में।
नही नही, क्या ये सचमुच में मुट्ठ है। हाँ मुट्ठ ही है नहीं तो पेंट के ज़िप पे कैसे। इसका मतलब सुबह भी। और शायद वो कमरे को गन्दा नहीं करना चाहते होंगे तो सोचा होगा की खिड़की से बाहर निकाल दे। लेकिन फिर मुट्ठ अंदर कमरे में ही गिर गया होगा और अँधेरे में उन्हें ध्यान नहीं आया होगा।
शालु कन्फ्यूज्ड थी और अपने पापा की तरफ देख रही थी। क्या पापा इस उमर में ये सब करते होंगे?
शालु खिड़की के पास जाती है और कर्टेन हटा देती है। कमरे में अब धूप आने लगी। वो अपने पापा की तरफ बढ़ती है। बंसल गहरी नींद में सो रहे थे, उनकी बेटी बिस्तर पे उनके बगल में चढ़ गई और झुक कर उन्हें उठाने लगती है।
शालु - पापा।। पापा
बंसल - (नो साउंड)
शालु अपने पापा के और क़रीब जाती है और उनपे झुक के उन्हें उठाने की कोशिश करती है। बंसल की नींद खुल जाती है, वो मुड के अपनी बेटी को देखता है। उसकी बड़े-बड़े बूब्स सलवार सूट के अंदर लटक रहे थे।
बंसल- शालु तुम?
शालु - उठिये पापा दिन चढ़ गया है, सुबह के 8 बज रहे है। उठिये न।।
बंसल - क्या 8 बज गए? उठ गया बेटी। रात नींद कब आ गई मुझे ख्याल ही नही।
शालु - पापा आप उठ के फ्रेश हो जाइये, आज मंडे है मेरा व्रत का दिन तो मैं नहाने जा रही हूँ।
बंसल - ठीक है बेटी तुम नहा लो, मैं सोच रहा हूँ मैं भी नहा ही लू। कल सफ़र करने के बाद से अभी तक नहाया नही।
शालु - ओके पापा। मैं नहा कर आपकी लाई हुई साड़ी भी पहन लूंग़ी। देखूं तो कैसी लगती है मुझ पे साड़ी।
बंसल - तुमपे वो साड़ी बहुत अच्छी लगेगी बेटी। अच्छा मैं फ्रेश होने जा रहा हू।
शालु भी अपने कमरे से सटे बाथरूम के तरफ चली जाती है। उधर रीना किचन में नाश्ता बना रही होती है। और उसकी माँ, उर्मिला रीना की मदद कर रही थी।
उर्मिला - रीना बेटी से।। बेटी तेरे पापा सो रहे हैं क्या अभी तक।
रीना - नहीं माँ, पापा उठ गए होंगे वो तो हमेशा से सुबह उठ जाते है। मैं उठ कर सीधे किचन में आ गई। सोचा जब तक दीदी नहा कर तैयार होती है तबतक मैं ब्रेकफास्ट बना लू।
थोड़ी देर में बंसल नीचे आता है।।
रीना - गुड मॉर्निंग पापा, दीदी कहाँ हैं?
बंसल - गुड मॉर्निंग बेटी, दीदी तुम्हारी नहा रही है।
तभी, ऊपर से शालु साड़ी पहन कर आती है, उसके बदन पे पिंक साड़ी बहुत ही मादक लग रही थी। टाइट ब्लाउस, कसी हुई कमर और साड़ी में लिपटी उसके बडे बड़े कुल्हे मटकाती हुई वो पास आती है।
बंसल - बहुत अच्छी लग रही हो बेटी, अब तो तुम्हारी शादी करा देनी चाहिये।।
शालु - पापा, ऐसा मत बोलिये मुझे शादी नहीं करनी अभी तो मुझे जॉब करना है। आपकी तरह सक्सेस होना है लाइफ में।
बंसल - हाँ बेटी बिल्कूल, दिल लगा कर कोशिश करो भगवन तुम्हारी जरूर सुनिगा। अच्छा उर्मिला मैं आज ही रात दिल्ली के लिए निकल रहा हूँ कुछ इम्पोर्टेन्ट काम आ गया है।
उर्मिला - क्या ? आज़? अभी तो आये आपको 1 दिन ही हुआ है।
बंसल - क्या करूँ उर्मिला जॉब है करनी पड़ती है।
शालु - पापा, इतना जल्दी? मैंने सोचा मैं आपके साथ बैठ कर इंटरव्यू के लिए टिप्स सीखुंगी।
बंसल - बेटी इस बार जल्दी है, अगली बार आउंगा तो मैं तुम्हे जरूर मदद करुन्गा। लेकिन तुम अभी किस चीज़ के लिए इंटरव्यू दे रही हो?
शालु - कुछ छोटी कंपनी के लिये, मैंने कुछ इंटरव्यू दिए थे लेकिन यहाँ ओपनिंग काफी कम रहती है।
बंसल - छोटी कंपनी? मेरी बेटी होकर तुम छोटी कंपनी के लिए अप्लाय कर रही हो? तुम्हे बड़ी कंपनी में अप्लाय करना चाहिये। दिल्ली में तो बहुत सारी बड़ी-बड़ी कंपनी हैं जो नौजवानो को लेती हैं।
उर्मिला - अगर ऐसी बात है तो आप शालु को अपने साथ ही क्यों नहीं ले जाते? आपके साथ रहेगी तो आपसे सीखेगी भी और आपका ख्याल भी रखेगी।
बंसल - मेरे साथ दिल्ली?
उर्मिला - हाँ। और आप कंपनी में इतनी बड़ी पोजीशन पे है। आप अपने बॉस से बात करके शालु की नौकरी भी लगवा सकते हैं अपनी कंपनी में। बेटी भी आपकी कंपनी में रहेगी तो अच्छा होगा।
शालु - पापा क्या ऐसा सचमुच हो सकता है की मैं आपकी कंपनी में काम कर सकूँ?
बंसल - हाँ बेटी, मेरे बॉस बहुत अच्छे है। अगर मैं उनसे तुम्हारी सिफारीश करू तो उनको तुम्हे जॉब देने में कोई प्रॉब्लम नहीं होगी।
शालु - पापा मैं भी चलूँगी आपके साथ। मुझे अपनी कंपनी में जॉब दे दीजिये। मैं कुछ भी काम कर लूंग़ी।
बंसल - वो सब तो ठीक है लेकिन तुम वहां मेरे साथ। मुझे काम के सिलसिले में अक्सर जगह-जगह जाना पड़ता है। और मैं होटल में रुकता हू। फिर तुम कैसे मैनेज करोगी?
उर्मिला - हाँ जी ये ठीक रहेगा, आप शालु को अपने साथ ले जाइये। आपका ख्याल रखेगी, और कहीं जाना होगा तो इसे भी लेकर चले जाइयेगा।
बंसल - उर्मिला तुम समझ नहीं रही हो। मुझे और शालु को ट्रेवल करना पडेगा, कभी-कभी मैं लेट नाईट पार्टी में जाता हूँ बिज़नेस के लिये।
उर्मिला - तो क्या हुआ? शालु को भी कुछ सीखने को मिलेगा आपके साथ्। होटल में रह लेगी वो, है न शालु बेटी? (उर्मिला ने शालु से पूछा)
शालु - हाँ पापा मैं सब सँभाल लूंग़ी। मुझे ले चलिये न अपने साथ प्लीज पापा।
बंसल - ठीक है बेटी।
शालु - थैंक यू पापा।
ब्रेकफास्ट करने के बाद, शालु भी अपना सामान पैक करने अपने रूम में चली जाती है। लेकिन उसे सामान रखने के लिए कोई बैग नहीं मिलता। शालु पापा के कमरे में जाती है। रूम में बंसल भी अपने कपडे पैक कर रहे थे।
शालु - पापा, आपके पास कोई बड़ा सूटकेस या बैग है क्या?
बंसल - बेटी, मेरे पास तो ये सूटकेस है (बंसल ने अपनी सूटकेस की तरफ इशारा करते हुए कहा)
शालु - ओह पापा मेरे पास तो सूटकेस ही नहीं है। मैं कहाँ रखूँ अपने कपडे?
बंसल - बेटी तुम ऐसा करो, मेरे सूटकेस को ही यूज कर लो। इसमे अभी काफी जगह है।
शालु - लेकिन मेरे पास तो बहुत सारे कपडे हैं पैकिंग के लिये।
बंसल - चलो मुझे दिखाओ बेटी, मैं तुम्हारी मदद करता हू। तुम्हे सारे कपडे ले जाने की जरुरत नहीं है। कुछ कपडे ले लो, बाकी के मैं तुम्हारे लिए दिल्ली में खरीद लूंगा।
शालु - ओके पापा।
बंसल और शालु रूम में आते है, शालु के रूम में सारे कपडे बिखरे पड़े होते है। उसकी जिंस, टॉप, सलवार सुट, ब्रा, पैंटी सभी।।
बंसल - अरे बेटी इतने सारे कपडे इसमे कुछ कम करो तुम।
शालु - ओके पापा
बंसल और शालु कपडे अलग करने लगते है।
बंसल - बेटी क्या तुम साड़ी नहीं ले रही? तुम इस साड़ी में इतनी अच्छी लग रही हो।
शालु - नहीं पापा मेरे पास तो सिर्फ 2 साड़ी ही है। और मैंने काफी दिनों से ट्राई नहीं किया।
बंसल - तुम साड़ी भी ले लो अगर अच्छी नहीं होगी तो मैं तुम्हारे लिए नयी खरीद दूंगा।
शालु - ओके पापा।
शालु अपने सारे कपडे समेट कर उठा लेती है, कुछ कपडे बच जाते है।
शालु - पापा वो बचे हुए कपडे आप उठा लिजीये और आपके कमरे में चल कर पैक करते है।
बंसल बेड पे देखता है तो वहां पे उसे टोप, सलवार और 2,3 ब्रा पेंटी पड़ी हुई मिलति है। बंसल अपनी बेटी के ब्रा और पेंटी उठाने में हिचकिचाता है। फिर थोड़ा हिम्मत कर वो कपडे और ब्रा पेंटी उठा लेता है। पापा के हाथ में अपनी ब्रा देख शालु को शर्म आती है और वो अपनी ब्रा ले लेती है। दोनों एक दूसरे से नज़रें चुराये चुप-चाप कमरे में आ जाते है।
1 घंटे के पैकिंग के बाद दोनों रेडी हो जाते है।
शाम को उर्मिला और रीना स्टेशन तक आते है। ट्रैन अपने टाइम पर रवाना हो जाती है, बंसल और शालु पूरे सफ़र बातचीत करते हुए दिल्ली पहुच जाते है। दिल्ली स्टेशन पहुच कर बंसल टैक्सी बुलाता है और पास के किसी होटल में जाने के लिए टैक्सी वाले को बोलता है।
काफी खोजने के बाद उन्हें एक होटल मिलता है। होटल के रिसेप्शन पर -
होटल स्टाफ - गुड इवनिंग सर।
बंसल - गुड इवनिंग
बंसल - मुझे रूम चाहिए क़रीब 2 हफ्ते के लिये।
होटल स्टाफ - श्योर सर, सिंगल, डबल और हनीमून कपल रूम सर?
(बंसल की पर्सनालिटी से अक्सर लोग धोखा का जाते थे। यहाँ भी यही हुवा, होटल के स्टाफ को लगा की दोनों कपल है। बंसल और शालु दोनों होटल स्टाफ के बातों को इग्नोर कर देते हैं)
बंसल - डबल रूम प्लीज।
होटल स्टाफ - सॉरी सर, डबल रूम्स आर फुल। ओनली सिंगल एंड हनीमून रूम्स आर अवलेबल। इफ़ यू वांट डबल रूम यू हैव टू वेट टिल टूमोरो। फॉर टुडे ओनली दिस रूम्स आर अवैलेबल।
बंसल - ओके थैंक्स।
शालु - क्या पापा, इतनी देर से हमलोग होटल खोज रहे हैं कहीं भी तो नहीं मिल रहा। आप एक दिन के लिए सिंगल बैडरूम ही ले लिजीये जब खाली होगा तब चेंज कर लेंगे। मैं चलते-चलते थक गई हूँ।
बंसल - ठीक है बेटी। सिंगल रूम प्लीज।
होटल स्टाफ - योर की सर। किशोर टेक मैडम एंड सर टू द रूम।
होटल स्टाफ उन्हें थर्ड फ्लोर पे लास्ट के एक रूम में ले जाता है। रूम बहुत अच्छा था, सिंगल बैडरूम काफी अच्छा था। रूम में धीमी रौशनी थी, वाल पे टीवी और साइड में लंप। रूम के राइट साइड बाथरूम था।
होटल स्टाफ - ओके सर।
होटल स्टाफ के जाने के बाद शालु अंदर से रूम लॉक कर देती है और बिस्तर पे लेट जाती है।
शालु - ओह पापा मैं तो थक गई।
बंसल - तुम थोड़ी देर सो जाओ बेटी।
शालु - नहीं मैं तो बस ऐसे ही रेस्ट ले रही हू। पापा ये होटल के बेड कितने अच्छे होते है। इतने सॉफ्ट की उठने का मन ही नहीं करता।
बंसल - हाँ बेटी सही कहा। वैसे बेटी मैंने अपने बॉस को फ़ोन कर दिया था और तुम्हारी जॉब के बारे में भी। मैंने उन्हें होटल का पता दे दिया है, वो तुमसे आज ही मिलने आ रहे है। तुम अच्छे से उनके प्रश्नो का जवाब देना।
शालु - ओह पापा आज ही? मैं तो नर्वस हो रही हू।
बंसल - चिन्ता मत करो बेटी इश्वर ने चाहा तो सब अच्छा होगा। तुम फ्रेश होकर कपडे चेंज कर लो।
शालु - लेकिन मैं क्या पह्नु पापा?
बंसल - बेटा साड़ी ही पहन लो अच्छा रहेगा।
शालु - ठीकहै पापा।
शालु बाथरूम में आ जाती है, वो शीशे में अपने आप को देखती है और मन में सोचती है। ओह मेरे लिए ये जॉब बहुत इम्पोर्टेन्ट है मुझे किसी भी तरह पापा के बॉस को इम्प्रेस करना है। शालु फ्रेश होकर साड़ी पहनती है और शीशे में अपने आप को देखती है। उसकी साड़ी कमर के पास थोड़ी खुली थी। वो अपने कमर पे हाथ रख शीशे में देखती है और सोचती है की क्या मैं साड़ी और ऊपर पह्नु जिससे मेरी कमर ढ़क जाए। कुछ सोच कर वो साड़ी वैसे ही रहने देती है। आज़कल तो दिल्ली में लड़कियां साड़ी ऐसे ही पहनती है, और वैसे भी पापा के बॉस दिल्ली में हैं उन्हें ऐसे कोई फ़र्क़ नहीं पडना चहिये। वो बाहर आ जाती है, बाहर बंसल अपनी बेटी को ऊपर से नीचे तक देखता है। रूम में अकेले वो अपनी पत्नी के अलावा पहली बार किसी स्त्री को ऐसे देख रहा था, वो भी उसकी खुद की बेटी।
बंसल - बेटी तुम तो बहुत अच्छी लग रही हो। बॉस नीचे रिसेप्शन पे है। मैंने उन्हें ऊपर रूम में आने को बोल दिया है। वो आते ही होंगे।
शालु - ओके पापा।
तभी दरवाजे पे कॉल बेल बजति है। बंसल डोर खोलता है तो उसके बॉस गुप्ता जी थे। आइये सर।
गुप्ता जी - कैसे हो बंसल ?
बंसल - मैं अच्छा हूँ ।
(कमरे में अंदर आकर गुप्ता जी बंसल की जवान बेटी को देखते हैं)
गुप्त जी - ये शालु है आपकी बेटी?
बंसल - हाँ।
शालु - नमस्ते अंकल।
गुप्ता जी - नमस्ते बेटी।
बंसल - जी बॉस वो मैंने आपसे बात की थी, शालु जॉब ढून्ढ रही है।
गुप्ता जी - इसमे पूछने की क्या बात है बंसल? तुम मेरे सबसे अच्छे एम्प्लोयी हो, तुम्हे कह दिया मैंने हाँ कर दिया। कल से तुम्हारी बेटी ऑफिस ज्वाइन कर लेगी।
बंसल - थैंक्स बॉस, थैंक यू वैरी मच।
गुप्ता जी - आई अप्पोइंट हर अस माय पी ए। मेरी सेक्रेटरी इस महिने के एन्ड तक काम करेगी और फिर उसका ट्रासफर पुणे हो जाएगा। इसलिए तबतक तुम अपनी बेटी को अपनी पर्सनल सेक्रेटरी बना लो।
लेकिन हाँ याद रखना, ऑफिस में नो फ़ादर-डॉटर रिलेशन। जस्ट बॉस एंड सेक्रेटरी।
गुप्ता जी - शालु बेटी, तुम्हे कोई ऐतराज़ है अपने पापा के पर्सनल सेकेटरी बनने में इस मंथ के लिये। उसके बाद तुम मेरी पी ए के लिए आ सकती हो।
शालु - नो प्रॉब्लम सर। आई विल नॉट डिसअप्पोइंट यु। मैं ऑफिस में पी ए की तरह रहूँगी बेटी की तरह नही।
गुप्ता जी - वैरी गूड।
कुछ देर बाद गुप्ता जी चले जाते है, उनके जाते ही शालु खुशी से झूम उठती है और अपने पापा के गले लग जाती है।
शालु - ओह पापा यू आर ग्रेट। मेरी जॉब लग गई।।वाऊ।।
(शालू कस कर अपने पापा के गले लगी रही, उसके भारी बूब्स बंसल के सीने पे दब रहे थे। बंसल पहली बार अपनी जवान बेटी को इस तरह हग किया था, आज से पहले कभी भी उसने कभी अपनी बेटी के यौवन को अपने सीने पे महसूस नहीं किया था। उसने अपना हाथ आगे बढा कर अपनी बेटी की गोरी कमर में डाल दिया)
अपनी बेटी की सॉफ्ट कमर को छु कर बंसल को जैसे नशा सा छ गया। शालु ने जब अपने कमर पे पापा की उँगलियों को महसूस किया तो उसका ध्यान टूटा और वो अलग हो गई। शालु को अपने पापा के गले लगकर कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। उधर बंसल का लंड खड़ा हो चूका था, वो अपना इरेक्शन छुपाने के लिए बिस्तर पे बैठ गया।
शाम को बंसल और शालु साथ में डिनर करते है, शालु डिनर करने के बाद अपने कपडे चेंज कर लेती है। कपडे चेंज कर जब शालु पापा के सामने आती है तो, बंसल की हालत खराब हो जाती है। इतना पतला कपडा जिसमें उसकी बेटी की बूब्स और उसकी चूत की उभार साफ़ नज़र आ रही थी। शालु बिस्तर में अपने पापा के ब्लैंकेट में घुस जाती है।
शालु - गुड नाईट पापा।
बंसल - गुड नाईट बेटा।
बंसल, लगातार अपनी बेटी के जिस्म को घूर रहा था, आज वो पहली बार अपनी जवान बेटी के साथ एक ही बिस्तर में एक ही ब्लैंकेट के अंदर सो रहा था। उसका लंड अब पूरी तरह खड़ा हो चूका था। उससे अब इरेक्शन बर्दाश्त नहीं हो रहा था और उसने उसी ब्लैंकेट के अंदर मुट्ठ मार लिया। बंसल मुट्ठ मार कर सो गया। सुबह उसकी नींद खुली तो सामने उसकी बेटी बिस्तर पे बैठी टीवी देख रही थी।
शालु - गुड मॉर्निंग पापा।
बंसल - गुड मॉर्निंग बेटी।
शालु - क्या ऑफिस नहीं जाना पापा?
बंसल - जाना है बेटी? तुम नहा ली?
शालु - हाँ मैं नहा भी ली और तैयार भी हो गई।
बंसल - ठीक है मैं जल्दी से नहा कर आता हू।
बनसल बाथरूम में जाता है तो उसको वहां पे शालु के यूजड ब्रा और पेंटी पड़ी मिलति है जिसे शालू शायद कल रात पहनी थी। बंसल शालु की पेंटी हाथ में लेता है और उसे ध्यान से देखने लगता है। उसे ध्यान आता है की ये वही पेंटी है जो शायद 5 मिनट पहले शालु के चूत को ढकी रही थी। इतना सोचते ही बंसल की उंगलियाँ पेंटी के सामने वाली जगह में चली जाती है। बंसल को वहां कुछ गिला -गिला सा लगता है। शायद ये शालु की पेशाब थी या फिर उसकी चूत की रस। न जाने कब बंसल शालु के पेंटी को नाक से लगा कर सूँघने लगता है और अपने दुसरे हाथ से लंड बाहर निकाल कर मसलने लगता है। बंसल पगलों की तरह अपनी बेटी के पेंटी को चाटने लगता है और फिर उसका मुट्ठ निकल आता है। बंसल अपने आप को शांत कर बाथरूम से बाहर आ जाता है और फिर दोनों ऑफिस को निकल जाते है।
ओफिस में दोनों गुप्ता जी से मिलते है। गुप्ता जी शालु से बहुत प्रभावित होते हैं और उसको और बंसल को अपने चैम्बर में शिफ्ट करा लेते है। अब बॉस के चैम्बर में 3 लोग काम कर रहे थे गुप्ता जी, बंसल और शालु।
Contd....
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