मेरी माँ अंजलि -12
मा की चुत पर नज़र गड़ाये विशाल उसे घूरे जा रहा था.
लायके के महीन कपडे से बनी उस कच्छी को देखकर कहना मुहाल था
के ढकने के लिए बनी थी या दिखाने के लिये.
अंजलि की चुत से वो कुछ इस तेरह चिपकी हुयी थी
के पूरी चुत उभरि हुयी साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी.
और ऊपर से क़यामत यह के चुत से निकले रस ने उसे होंठो के ऊपर से बुरी तरह भिगोया हुआ था.
अंजलि की उभरि हुयी चुत, उसके वो फूले मोठे होंठ और
दोनों होंठो के बिच की लाइन जिसमे कच्छी का कपडा हल्का सा धँसा हुआ था
सब कुछ साफ़ साफ़ नज़र आ रहा था.
वो नज़ारा देख विशाल की नसों में दौडता खून जैसे लावा बन चुका था.
चुत से उठती महक उसे पागल बना रही थी.
वो अपने खुसक होंठो पर बार बार जीभ फेर रहा था

. चुत के होंठो के बिच की लाइन जिसमे कच्छी का कपडा धँसा हुआ था,
विशाल का दिल कर रहा था के वो उस लाइन में अपनी जीव्हा घुसेड कर अपनी माँ के उस अमृत को चाट ले.
चुत के ऊपर बेटे की गरम साँसे महसूस कर अंजलि का पूरा बदन कसमसा रहा था. उसके पूरे जिस्म में तनाव छाता जा रहा था.
विशाल बड़ी ही कोमलता से माँ की कोमल जांघो को सहलता है
और धीरे से अपना चेहरा झुककर चुत की खुसबू सूंघता है
और फिर अपना चेहरा घुमाकर अपने जलते हुए होंठ माँ के पेट् से सता देता है.

लायके के महीन कपडे से बनी उस कच्छी को देखकर कहना मुहाल था
के ढकने के लिए बनी थी या दिखाने के लिये.
अंजलि की चुत से वो कुछ इस तेरह चिपकी हुयी थी
के पूरी चुत उभरि हुयी साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी.
और ऊपर से क़यामत यह के चुत से निकले रस ने उसे होंठो के ऊपर से बुरी तरह भिगोया हुआ था.

अंजलि की उभरि हुयी चुत, उसके वो फूले मोठे होंठ और
दोनों होंठो के बिच की लाइन जिसमे कच्छी का कपडा हल्का सा धँसा हुआ था
सब कुछ साफ़ साफ़ नज़र आ रहा था.
वो नज़ारा देख विशाल की नसों में दौडता खून जैसे लावा बन चुका था.
चुत से उठती महक उसे पागल बना रही थी.
वो अपने खुसक होंठो पर बार बार जीभ फेर रहा था

. चुत के होंठो के बिच की लाइन जिसमे कच्छी का कपडा धँसा हुआ था,
विशाल का दिल कर रहा था के वो उस लाइन में अपनी जीव्हा घुसेड कर अपनी माँ के उस अमृत को चाट ले.
चुत के ऊपर बेटे की गरम साँसे महसूस कर अंजलि का पूरा बदन कसमसा रहा था. उसके पूरे जिस्म में तनाव छाता जा रहा था.
विशाल बड़ी ही कोमलता से माँ की कोमल जांघो को सहलता है
और धीरे से अपना चेहरा झुककर चुत की खुसबू सूंघता है
और फिर अपना चेहरा घुमाकर अपने जलते हुए होंठ माँ के पेट् से सता देता है.
उन्हहहः.........विशाल .......बेटा......." अंजलि के मुख से मदभरी सिसकारी निकलती है.
विशाल एक पल के लिए अपनी माँ के चेहरे को देखता है और
फिर अपने होंठ अंजलि की छोटी सी मगर गहरी नाभि के ऊपर रख देता है.

नाभि को चूमता वो अपनी जीभ उसमे घुसेड कर उसे छेडता है.
अंजलि की गहरी साँसे सिस्कियों का रूप लेने लगती है.
विशाल माँ की जांघो पर हाथ फेरता हुए महसूस कर सकता था
कैसे उसके माँ का जिसम कांप रहा था, कैसे उसके अंगो अंगो में तनाव भरता जा रहा था.
विशाल उठकर पहले की तरह लेटता हुआ अपना चेहरा माँ के चेहरे पर झुकाकर धीरे से उसके काण में फुसफुसाता है.
"मा तुम्हारे सामने तोह स्वर्ग की अप्सराय भी फीकी है"
अंजलि धीरे से ऑंखे खोलती है. अपने ऊपर झुके बेटे की आँखों में देखते हुए बड़े ही प्यार से कहती है "दुनिया के हर बेटे को अपनी माँ सुन्दर लगती है"
"नही माँ, तुम्हारा बेटा पूरी दुनिया घूम चुका है........"
विशाल माँ के चेहर से ऑंखे हटाकर उसके ऊपर निचे हो रहे मम्मे को गौर से देखता है. "तुम्हारे जैसी पूरी दुनिया में कोई नहीं है"
विशाल एक पल के लिए अपनी माँ के चेहरे को देखता है और
फिर अपने होंठ अंजलि की छोटी सी मगर गहरी नाभि के ऊपर रख देता है.

नाभि को चूमता वो अपनी जीभ उसमे घुसेड कर उसे छेडता है.
अंजलि की गहरी साँसे सिस्कियों का रूप लेने लगती है.
विशाल माँ की जांघो पर हाथ फेरता हुए महसूस कर सकता था
कैसे उसके माँ का जिसम कांप रहा था, कैसे उसके अंगो अंगो में तनाव भरता जा रहा था.
विशाल उठकर पहले की तरह लेटता हुआ अपना चेहरा माँ के चेहरे पर झुकाकर धीरे से उसके काण में फुसफुसाता है.
"मा तुम्हारे सामने तोह स्वर्ग की अप्सराय भी फीकी है"
अंजलि धीरे से ऑंखे खोलती है. अपने ऊपर झुके बेटे की आँखों में देखते हुए बड़े ही प्यार से कहती है "दुनिया के हर बेटे को अपनी माँ सुन्दर लगती है"
"नही माँ, तुम्हारा बेटा पूरी दुनिया घूम चुका है........"
विशाल माँ के चेहर से ऑंखे हटाकर उसके ऊपर निचे हो रहे मम्मे को गौर से देखता है. "तुम्हारे जैसी पूरी दुनिया में कोई नहीं है"

अंजली की नज़र बेटे की नज़र का पीछा करती अपने सिने पर जाती है. " मुझ में भला ऐसा क्या है जो........."
विशाल अपनी माँ को जवाब देणे की वजाये अपना हाथ उठकर उसके सिने पर दोनों मम्मो के बिच रख देता है
. उसकी उँगलियाँ बड़ी ही कोमलता से मम्मो की घाटी के बिच घुमता है
और फिर धीरे धीरे उसकी उँगलियाँ दाएँ मुम्म की और बढ्ने लगती है.
अंजलि बड़े ही गौर से देख रही थी किस तरह उसके बेटे की उँगलियाँ उसके मम्मे की गोलाई छुने लगी थी
और बहुत धीरे धीरे वो ऊपर की तरफ जा रही थी. अंजलि के निप्पल और भी तन जाते है.
उसका बेटा जवान होने के बाद पहली बार उसके मम्मो को छु रहा था,
वो भी एक बेटे की तरह नहीं बल्कि एक मर्द की तरह.
रेंगते रेंगते विशाल की उँगलियाँ निप्पल के एकदम करीब पहुँच जाती है.
विशाल अपनी तर्जनी ऊँगली को निप्पल के चारो और घुमाता है.
अंजलि का दिल इतने ज़ोर से धडक रहा था
के उसके कानो में धक् धक् की आवाज़ गुंज रही थी.
अपनी पूरी ज़िन्दगी में ऐसी जबरदस्त कमोत्तेजना उसने पहले कभी महसुस नहीं की थी.
अखिरकार विशाल बड़े ही प्यार से निप्पल को छुता है, धीरे से उसे छेडता है.
"उननननननहहहहहः.........." अंजलि सीत्कार कर उठती है.
विशाल की उंगली बार बार कड़े निप्पल के उपर, दाएँ बाएं फ़िसल रही थी. वो लम्बे कठोर निप्पल को बड़े ही प्यार से अपने अँगूठे और उंगली के बिच दबाता है. अंजलि फिर से सीत्कार कर उठती है.
"तुम्हेँ क्या बताउ माँ.......कैसे समझायुं तुम्हे.........मेरे पास अलफ़ाज़ नहीं है बयां करने के लिये..........उफफ तुम्हारे इस हुस्न की कैसे तारीफ करूँ माँ.
अंजलि बेटे के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर इतनी उत्तेजित होने के बावजूद शर्मा सी जाती है.
विशाल अपना हाथ उठकर दूसरे निप्पल को छेडने लगता है.

वो अपने निप्पलों से खेलती बेटे की उँगलियाँ बड़े ही गौर से देख रही थी.
उसके दिल में कैसे कैसे ख्याल आ रहे थे.
उसकी इच्छायें, उसकी हसरतें सब जवान बेटे पर केन्द्रीत थी.
इस समय उसने बेटे के सामने खुले तोर पर समर्पण कर दिया था,
वो उसके साथ जैसा चाहा कर सकता था.
वो उसे उस समय रोकने की स्थिति में नहीं थी
और शायद वो उसे रोकना भी नहीं चाहती थी. वो तोह खुद चाहती थी
उसका बेटा आगे बढे और उन दोनों के बिच समाज कि, मर्यादा की हर दीवार तोड़ डाले.
विशाल का हाथ अब अंजलि के मम्मो से आगे उसके पेट् की और बढ़ रहा था.
उसका हाथ एकदम सीधा निचे की और जा रहा था,
उसकी चुत की और साथ ही साथ उसका चेहरा भी थोड़ा सा आगे को हो गया था.
विशाल की उँगलियाँ जब अपनी माँ की कच्छी की इलास्टिक से टकराई तोह उसका चेहरा
एकदम उसके मम्मो के ऊपर था. उसके निप्पलों से बिलकुल हल्का सा उपर.
अंजलि की आँखों के सामने उसके मोठे मोठे मुम्मे थे
जिनके ऊपर निचे होने के कारन वो बेटे का हाथ नहीं देख पा रही थी.
अंजलि धीरे से कुहनियों के बल ऊँची उठ जाती है और
अब वो अपने मम्मो और उनके थोड़ा सा ऊपर अपने बेटे के चेहरे के ऐन बिच से अपनी चुत को देख रही थी
जिस पर उसकी भीगी हुयी कच्छी बुरी तरह से चिपक गयी थी.
विशाल का हाथ आगे बढ़ता है-उसकी चुत की और-उसका बेटा उसकी चुत को छूने जा रहा था.
अंजलि के पूरे बदन में सिहरन सी दौड जाती है.
उसकी कमोत्तेजना अपने चरम पर पहुँच चुकी थी.
चुत के होंठ जैसे फडक रहे थे बेटे के स्पर्श के लिये.
विशाल अपना हाथ उठकर दूसरे निप्पल को छेडने लगता है.

वो अपने निप्पलों से खेलती बेटे की उँगलियाँ बड़े ही गौर से देख रही थी.
उसके दिल में कैसे कैसे ख्याल आ रहे थे.
उसकी इच्छायें, उसकी हसरतें सब जवान बेटे पर केन्द्रीत थी.
इस समय उसने बेटे के सामने खुले तोर पर समर्पण कर दिया था,
वो उसके साथ जैसा चाहा कर सकता था.
वो उसे उस समय रोकने की स्थिति में नहीं थी
और शायद वो उसे रोकना भी नहीं चाहती थी. वो तोह खुद चाहती थी
उसका बेटा आगे बढे और उन दोनों के बिच समाज कि, मर्यादा की हर दीवार तोड़ डाले.
विशाल का हाथ अब अंजलि के मम्मो से आगे उसके पेट् की और बढ़ रहा था.
उसका हाथ एकदम सीधा निचे की और जा रहा था,
उसकी चुत की और साथ ही साथ उसका चेहरा भी थोड़ा सा आगे को हो गया था.
विशाल की उँगलियाँ जब अपनी माँ की कच्छी की इलास्टिक से टकराई तोह उसका चेहरा
एकदम उसके मम्मो के ऊपर था. उसके निप्पलों से बिलकुल हल्का सा उपर.
अंजलि की आँखों के सामने उसके मोठे मोठे मुम्मे थे
जिनके ऊपर निचे होने के कारन वो बेटे का हाथ नहीं देख पा रही थी.
अंजलि धीरे से कुहनियों के बल ऊँची उठ जाती है और
अब वो अपने मम्मो और उनके थोड़ा सा ऊपर अपने बेटे के चेहरे के ऐन बिच से अपनी चुत को देख रही थी
जिस पर उसकी भीगी हुयी कच्छी बुरी तरह से चिपक गयी थी.
विशाल का हाथ आगे बढ़ता है-उसकी चुत की और-उसका बेटा उसकी चुत को छूने जा रहा था.
अंजलि के पूरे बदन में सिहरन सी दौड जाती है.
उसकी कमोत्तेजना अपने चरम पर पहुँच चुकी थी.
चुत के होंठ जैसे फडक रहे थे बेटे के स्पर्श के लिये.
विशाल गहरी साँसे लेता धीरे बहुत धीरे बड़ी ही कोमलता से माँ की चुत को छूता है.

"वूहःहःहःहः............उउउउफ..." अंजलि के मुख से एक लम्बी सिसकि फूट पड़ती है.
पूरा बदन सनसना उठता है. चुत के मोठे होंठो की दरार के ऊपर विशाल हल्का सा दवाब देता है.
अंजलि धम्म से बेड पर गिर जाती है.
विशाल के छूते ही चुत से निकलिउत्तेजना की तरंग उसके पूरे जिसम में फैलने लगती है.
वो चादर को मुट्ठियों में भींच अपना सर एक तरफ को पटकती है.
विशाल तोह जैसे उत्तेजना में सुध बुध खो चुका था.
माँ की भीगी चुत और उसकी सुगंध को महसूस करते ही जैसे उसका पूरी दुनिया से नाता टूट गया था.
बेखयाली में वो अपना अँगूठा धीरे से चुत की दरार में दबाकर ऊपर निचे करता है.
अंजलि उत्तेजना सह नहीं पाती.
वो उत्तेजना में अपना सिना कुछ ज्यादा ही उछाल देती है

और उसके मम्मे का कड़क लम्बा निप्पल सीधे बेटे के होंठो के बिच चला जाता है और
उसका बेटा तरुंत अपने होंठो को दबाकर माँ के निप्पल को कैद कर लेता है.
"आह आह ओह ओह हुन........"
अंजलि के मुंह से लम्बी सी सिसकारी निकलती है.
कामोन्माद में माँ बेटा मर्यादा की सारी सीमाएँ पार करने को आतुर हो जाते है.
एक तरफ विशाल माँ के निप्पल को जवान होने के बाद पहली बार स्पर्श कर रहा था
और उसका हाथ माँ की कच्छी की इलास्टिक में घुस कर आगे की और बढ़ रहा था,
माँ की चुत की और. उधऱ अंजलि भी अपना हाथ बेटे के लंड की और बढाती है
मगर इससे पहले के बेटे का हाथ कच्छी में माँ की चुत को छू पाता
या माँ अपने बेटे के लंड को अपने हाथ में पकड़ पाति निचे
किचन में किसी बर्तन के गिरने की ज़ोरदार आवाज़ आती है.
माँ बेटा दोनों होश में आते है. अंजलि तूरुंत बेटे के लंड की तरफ बढ़ते हाथ को पीछे खींच लेती है और विशाल भी माँ के निप्पल से जल्दी से मुंह हटाता है और उसकी कच्छी के अंदर से हाथ बाहर निकाल लेता है. विशाल हतप्रभ सा अपनी माँ की और देखता है.
"डेड अभी तक जाग रहे हैं?"
"वो सोये ही कब थे?" अंजलि बेटे की आँखों में देखते हुए कहती है. उत्तेजना के तूफ़ान का असर अभी भी दोनों पर था.
"क्या मतलब?" विशाल समज नहीं पाता. अंजलि कुछ पलों के लिए चुप्प हो जाती है. फिर वो धीरे से अपने पेट पर से विशाल का हाथ हटाती है जो कुछ पल पहले उसकी कच्छी के अंदर घुस चुका था. अंजलि उठ कर बैठ जाती है. विशाल भी उठकर माँ के सामने बैठ जाता है.
"तुम्हारे पिताजी का दिल नहीं भरा था. आज वो कुछ ज्यादा ही एक्ससिटेड थे. तुम्हारी क़ामयाबी और लोगों की तारीफ से उन्हें बहुत जोश चढ़ गया है. इसिलिये कहने लगे के वो एक बार और......फिर से...... मैंने मना किया मगर वो कहाँ मानाने वाले थे........मुझे कहने लगे के जलद से जलद तुम्हे दूध देकर निचे चलि आउ......" अंजलि विशाल का गाल सहलाती बड़े ही प्यार भरी नज़र से उसे देखति है. "मगर मैंने उन्हें कह दिया था के में अपने बेटे से खूब बातें करुँगी........वो इसीलिए निचे शोर कर रहे है. लगता है बहुत बेताब हो रहे है......." अंजलि धीरे से फीकी हँसी होंठो पर लिए बेटे को समजाति है.
"और मैं?..........डैड को दो दो बार और मुझे?......." विशाल के चेहरे से मायूसी झलकने लगी थी.
"मैं उनकी पत्नी हु.......मुझ पर उनका हक़्क़ है......में उन्हें इंकार नहीं कर सकती." अंजलि बेटे का हाथ अपने हाथों में लेकर सहलाती है जैसे उसे दिलासा दे रही हो.
"और मैं?.......में कुछ भी नहीं?........" विशाल रुआँसा सा होने लगा.
"तु तोह सब कुछ है मेरे लाल...........मैने तुझे रोका था?........आज तक हर खवाहिश पूरी की है न.......आगे भी करूंग़ी.....बस आज की रात है...........कल से तेरे पिताजी काम पर जाने लगेंगे.......फिर में पूरा दिन तेरे पास रहूंग़ी..........तु अपने दिल की हर हसरत पूरी कर लेना" अंजलि की आँखों में ममता का, प्यार का वास्ता था और साथ ही साथ बेटे के लिए अस्वासन भी था के वो उसकी हर मनोकामना पूरी करेगि.
विशाल ने बड़े भारी मन से धीरे से सर हिलाया. अंजलि गाउन को गाँठ लगाती उठ खड़ी हुयी और विशाल भी साथ में उठ जाता है. दोनों बेड से निचे उतरते है.
"अब यूँ देवदास की तरह मुंह न लटकाओ. और हा......एक बात तोह में भूल ही गयी थी...कल १४ जुलाई है, तुम्हारा वो नग्न दिवस भी कल है........." अंजलि धीरे से पहले की तरह शरारती सी मुस्कान से कहती है.
"यह अचानक न्यूड़ डे बिच में कहाँ से आ गया......" विशाल तोह न्यूड डे के बारे में लगभग भूल ही चुका था. बहरहाल माँ के याद दिलाने पर उसे याद भी आया. उसके चेहरे पर भी हलकी सी मुस्कराहट आ गयी. माँ के साथ इस अनोखे रिश्ते की शुरुवात आखिर इसी न्यूड डे के कारन ही तो हुई थी.
"डेड अभी तक जाग रहे हैं?"
"वो सोये ही कब थे?" अंजलि बेटे की आँखों में देखते हुए कहती है. उत्तेजना के तूफ़ान का असर अभी भी दोनों पर था.
"क्या मतलब?" विशाल समज नहीं पाता. अंजलि कुछ पलों के लिए चुप्प हो जाती है. फिर वो धीरे से अपने पेट पर से विशाल का हाथ हटाती है जो कुछ पल पहले उसकी कच्छी के अंदर घुस चुका था. अंजलि उठ कर बैठ जाती है. विशाल भी उठकर माँ के सामने बैठ जाता है.
"तुम्हारे पिताजी का दिल नहीं भरा था. आज वो कुछ ज्यादा ही एक्ससिटेड थे. तुम्हारी क़ामयाबी और लोगों की तारीफ से उन्हें बहुत जोश चढ़ गया है. इसिलिये कहने लगे के वो एक बार और......फिर से...... मैंने मना किया मगर वो कहाँ मानाने वाले थे........मुझे कहने लगे के जलद से जलद तुम्हे दूध देकर निचे चलि आउ......" अंजलि विशाल का गाल सहलाती बड़े ही प्यार भरी नज़र से उसे देखति है. "मगर मैंने उन्हें कह दिया था के में अपने बेटे से खूब बातें करुँगी........वो इसीलिए निचे शोर कर रहे है. लगता है बहुत बेताब हो रहे है......." अंजलि धीरे से फीकी हँसी होंठो पर लिए बेटे को समजाति है.
"और मैं?..........डैड को दो दो बार और मुझे?......." विशाल के चेहरे से मायूसी झलकने लगी थी.
"मैं उनकी पत्नी हु.......मुझ पर उनका हक़्क़ है......में उन्हें इंकार नहीं कर सकती." अंजलि बेटे का हाथ अपने हाथों में लेकर सहलाती है जैसे उसे दिलासा दे रही हो.
"और मैं?.......में कुछ भी नहीं?........" विशाल रुआँसा सा होने लगा.
"तु तोह सब कुछ है मेरे लाल...........मैने तुझे रोका था?........आज तक हर खवाहिश पूरी की है न.......आगे भी करूंग़ी.....बस आज की रात है...........कल से तेरे पिताजी काम पर जाने लगेंगे.......फिर में पूरा दिन तेरे पास रहूंग़ी..........तु अपने दिल की हर हसरत पूरी कर लेना" अंजलि की आँखों में ममता का, प्यार का वास्ता था और साथ ही साथ बेटे के लिए अस्वासन भी था के वो उसकी हर मनोकामना पूरी करेगि.
विशाल ने बड़े भारी मन से धीरे से सर हिलाया. अंजलि गाउन को गाँठ लगाती उठ खड़ी हुयी और विशाल भी साथ में उठ जाता है. दोनों बेड से निचे उतरते है.
"अब यूँ देवदास की तरह मुंह न लटकाओ. और हा......एक बात तोह में भूल ही गयी थी...कल १४ जुलाई है, तुम्हारा वो नग्न दिवस भी कल है........." अंजलि धीरे से पहले की तरह शरारती सी मुस्कान से कहती है.
"यह अचानक न्यूड़ डे बिच में कहाँ से आ गया......" विशाल तोह न्यूड डे के बारे में लगभग भूल ही चुका था. बहरहाल माँ के याद दिलाने पर उसे याद भी आया. उसके चेहरे पर भी हलकी सी मुस्कराहट आ गयी. माँ के साथ इस अनोखे रिश्ते की शुरुवात आखिर इसी न्यूड डे के कारन ही तो हुई थी.
"कहा से आ गया........लगता है तुम भूल रहे हो.....चलो में याद दिला देती हु की अपने इसी नग्नता दिवस को मानाने के लिए तुम एक हफ्ता लेट आना चाहते थे....याद आया बरखुरदार..." अंजलि के होंठो की शरारती हँसी और भी गहरी हो गयी थी.
"हूँह्.........लकिन अब में कोनसा उसे मनाने वाला हु" विशाल मायुस स्वर में कहता है.
"क्यों तेरी क्या एक ही गर्लफ्रेंड थी............और भी तो कोई होगी जो तेरे साथ न्यूड डे मनाना चाहेगी?" अंजलि बेटे को आँख मारकर छेड़ती है.

"पहली बात तोह कोई है नहि, एक थी वो शादी करके चलि गयी और अगर दूसरी कोई होती भी तोह काया चार साल बाद मेरे बुलाने पर आ जाएगी?" विशाल ठण्डी आह भरता है. माँ जाने वाली है यह जानकर उसके अंदर कोई उमंग ही बाकि नहीं बचि थी.
"हूममममम...........चलो तोह फिर इस साल ऐसे ही गुज़ारा कर लेना.......वैसे अगर तुम्हे लगता है के में कबाब में हड्डी बन्ने वाली हु तो मेरी तरफ से खुली छुट्टी है........मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है........चाहो तोह यह हड्डी कल कहीं घुमने के लिए चलि जाएगी........." अंजलि मुस्कराती फिर से बेटे को आँख मारकर कहती है.
"तुम्हेँ कहीं जाने की जरूरत नहीं है माँ.......... अभी यह साल तोह न्यूड डे का कोई चांस नहीं है........." विशाल अपनी माँ के हाथ चूमता है. मगर तभी अचानक उसके दिमाग में एक विचार कौंध जाता है;
"मा कबाब में हड्डी बनने की बजाय तुम्ही कबाब क्यों नहीं बन जाती!"
"क्या मतलब?" अंजलि को जैसे बेटे की बात समज में नहीं आई थी या फिर वो नासमझी का दिखावा कर रही थी.
"मतलब तुम समझ चुकी हो माँ......लकिन अगर मेरे मुंह से सुनना चाहती हो तोह.........तुम खुद मेरे साथ न्यूड डे क्यों नहीं मना लेति" विशाल ने अब बॉल माँ के पाले में दाल दी थी
"हूँह्.........लकिन अब में कोनसा उसे मनाने वाला हु" विशाल मायुस स्वर में कहता है.
"क्यों तेरी क्या एक ही गर्लफ्रेंड थी............और भी तो कोई होगी जो तेरे साथ न्यूड डे मनाना चाहेगी?" अंजलि बेटे को आँख मारकर छेड़ती है.

"पहली बात तोह कोई है नहि, एक थी वो शादी करके चलि गयी और अगर दूसरी कोई होती भी तोह काया चार साल बाद मेरे बुलाने पर आ जाएगी?" विशाल ठण्डी आह भरता है. माँ जाने वाली है यह जानकर उसके अंदर कोई उमंग ही बाकि नहीं बचि थी.
"हूममममम...........चलो तोह फिर इस साल ऐसे ही गुज़ारा कर लेना.......वैसे अगर तुम्हे लगता है के में कबाब में हड्डी बन्ने वाली हु तो मेरी तरफ से खुली छुट्टी है........मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है........चाहो तोह यह हड्डी कल कहीं घुमने के लिए चलि जाएगी........." अंजलि मुस्कराती फिर से बेटे को आँख मारकर कहती है.
"तुम्हेँ कहीं जाने की जरूरत नहीं है माँ.......... अभी यह साल तोह न्यूड डे का कोई चांस नहीं है........." विशाल अपनी माँ के हाथ चूमता है. मगर तभी अचानक उसके दिमाग में एक विचार कौंध जाता है;
"मा कबाब में हड्डी बनने की बजाय तुम्ही कबाब क्यों नहीं बन जाती!"
"क्या मतलब?" अंजलि को जैसे बेटे की बात समज में नहीं आई थी या फिर वो नासमझी का दिखावा कर रही थी.
"मतलब तुम समझ चुकी हो माँ......लकिन अगर मेरे मुंह से सुनना चाहती हो तोह.........तुम खुद मेरे साथ न्यूड डे क्यों नहीं मना लेति" विशाल ने अब बॉल माँ के पाले में दाल दी थी
"मैं...... तुम्हारे साथ्........ न्यूड डै.....नही बाबा नही....मेरे से यह नहीं होगा......तुम और कोई ढूँढो" अंजलि एकदम से घबरा सी जाती है.
"क्यों नहीं माँ.......यहा कोनसा कोई होगा......पिताजी तोह कल शाम को ही आएंगे.........घर में सिर्फ हम दोनों होंगे.........मान जाओ माँ ........सच में देखना तुम्हे बहुत मज़ा आएगा......" विशाल मुस्कराता है. इस नयी सम्भावना से वो फिर से ख़ुशी से झूम उठा था.
"लेकिन तुम्हे कोई लड़की या औरत चाहिए ही क्यों! तुम अकेले भी तोह मना सकते हो?" अंजलि बेटे के प्रस्ताव से थोड़ा सा घबरा सी गयी थी.
"मैं अकेले मनाऊंगा? तुम कपडे पहने रहोगी और में सारा दिन घर में नंगा घूमूंगा........और तुम मुझे देख देख कर खूब हँसोगी.......अच्छी तरक़ीब है माँ"
"मैं भला क्यों हंसूंगी............और तुझे मेरे सामने नंगा होने में दिक्कत क्या है......मैने तोह तुझे नजाने कितनी बार नंगा देखा है.......तुझे नंगे को नहालाया है......और नजाने क्या......."
"मा तब में छोटा था.....बच्चा था में........"
"मेरे लिए तोह तू अब भी बच्चा ही है......सच में तुझे मुझसे शरमाने की जरूरत नहीं है" अंजलि हँसति हुयी विशाल को कहती है.
"मैं शर्मा नहीं रहा हुन माँ.........."
"नही तुम शरमा रहे हो मेरे सामने नंगे होने से........."अंजली और भी ज़ोर से हँसति है.
"अच्छा....में शर्मा रहा हुन?......तुम नहीं शर्मा रही?" विशाल पलटवार करता है.
"मैं?.....में भला क्यों शरमाने लगी"

"अच्छा तोह फिर तुम मेरे साथ न्यूड डे मनाने के लिए राजी क्यों नहीं हो रही?"
" में तोह बास ऐसे ही.............." अंजलि सच में शर्मा जाती है.
"देखा!!!!!..........मेरा मज़ाक़ उड़ा रही थी.......अब क्या हुआ?"
"बुद्धु....वो बात नहि.......भला एक माँ कैसे.....कैसे में तुम्हारे सामने नंगी......" अंजलि बात पूरी नहीं कर पाती.
"बहानेबाजी छोडो माँ.....खुद मेरे सामने नंगे होने में इतनी शर्म और मुझे यूँ कह रही थी जैसे मामूली सी बात हो"
"मैं शर्मा नहीं रही हु"
"शर्मा भी रही हो और घबरा भी रही हो" विशाल जैसे अंजलि को उकसा रहा था.
"मैं भला क्यों घबरायूंगी?" अंजलि भी हार मानने को तैयार नहीं थी.
"क्यों नहीं माँ.......यहा कोनसा कोई होगा......पिताजी तोह कल शाम को ही आएंगे.........घर में सिर्फ हम दोनों होंगे.........मान जाओ माँ ........सच में देखना तुम्हे बहुत मज़ा आएगा......" विशाल मुस्कराता है. इस नयी सम्भावना से वो फिर से ख़ुशी से झूम उठा था.
"लेकिन तुम्हे कोई लड़की या औरत चाहिए ही क्यों! तुम अकेले भी तोह मना सकते हो?" अंजलि बेटे के प्रस्ताव से थोड़ा सा घबरा सी गयी थी.
"मैं अकेले मनाऊंगा? तुम कपडे पहने रहोगी और में सारा दिन घर में नंगा घूमूंगा........और तुम मुझे देख देख कर खूब हँसोगी.......अच्छी तरक़ीब है माँ"
"मैं भला क्यों हंसूंगी............और तुझे मेरे सामने नंगा होने में दिक्कत क्या है......मैने तोह तुझे नजाने कितनी बार नंगा देखा है.......तुझे नंगे को नहालाया है......और नजाने क्या......."
"मा तब में छोटा था.....बच्चा था में........"
"मेरे लिए तोह तू अब भी बच्चा ही है......सच में तुझे मुझसे शरमाने की जरूरत नहीं है" अंजलि हँसति हुयी विशाल को कहती है.
"मैं शर्मा नहीं रहा हुन माँ.........."
"नही तुम शरमा रहे हो मेरे सामने नंगे होने से........."अंजली और भी ज़ोर से हँसति है.
"अच्छा....में शर्मा रहा हुन?......तुम नहीं शर्मा रही?" विशाल पलटवार करता है.
"मैं?.....में भला क्यों शरमाने लगी"

"अच्छा तोह फिर तुम मेरे साथ न्यूड डे मनाने के लिए राजी क्यों नहीं हो रही?"
" में तोह बास ऐसे ही.............." अंजलि सच में शर्मा जाती है.
"देखा!!!!!..........मेरा मज़ाक़ उड़ा रही थी.......अब क्या हुआ?"
"बुद्धु....वो बात नहि.......भला एक माँ कैसे.....कैसे में तुम्हारे सामने नंगी......" अंजलि बात पूरी नहीं कर पाती.
"बहानेबाजी छोडो माँ.....खुद मेरे सामने नंगे होने में इतनी शर्म और मुझे यूँ कह रही थी जैसे मामूली सी बात हो"
"मैं शर्मा नहीं रही हु"
"शर्मा भी रही हो और घबरा भी रही हो" विशाल जैसे अंजलि को उकसा रहा था.
"मैं भला क्यों घबरायूंगी?" अंजलि भी हार मानने को तैयार नहीं थी.
"तुम डर रही होगी के मेरे साथ नंगी होने पर शायद...... शायद....तुमसे कण्ट्रोल नहीं होगा" विशाल अपनी माँ की आँखों में ऑंखे डाल कहता है.
"हनणह्हह्ह्.........सच में तुम्हे ऐसा लगता है .......मुझे तोह लगता है बात इसके बिलकुल उलट है......शायद यह घबराहट तुम्हे हो रही होगी के तुमसे कण्ट्रोल नहीं होगा" इस बार अंजलि मुस्कराती बेटे की आँखों में झाँकती उसे चैलेंज कर रही थी.
"मा तुम बात पलट रही हो.....भला में क्यों घबराने लगा"
दोनो माँ बेटे एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे. अचानक अंजलि अपने गाउन की गाँठ खोल देती है. बेटे की आँखों में देखति वो अगले ही पल अपना गाउन बाँहों से निकल देती है. गाउन उसके कदमो के पास फर्श पर पड़ा था. उसका दूध सा गोरा बदन बल्ब की रौशनी में नहा उठता है. अंजलि एक टांग आगे को निकाल अपने बालों को झटकती है और फिर अपनी कमर पर हाथ रख बदन के उपरी हिस्से को हल्का सा पीछे को झुकाती है बिलकुल किसी प्रोफेशनल मॉडल की तरह.

"अब बोलो....क्या कहते हो!" अंजलि के होंठो पर वो मधुर मुस्कान जैसे चिपक कर रह गयी थी
. विशाल भोचक्का सा ऑंखे फाडे अपनी माँ को देख रहा था.
यूँ वो कुछ देर पहले अपनी माँ को सिर्फ ब्रा और कच्छी में देख चुका था मगर तब वो लेटी थी और गाउन पहने थी.
अब गाउन उसके बदन से निकल चुका था और वो खड़ी थी
मात्र एक ब्रा और कच्छी मैं- अपने बेटे के सामने. उसके मम्मे कितने मोठे थे,
अब विशाल को अंदाज़ा हो रहा था. हैरानी की बात थी के इतने बड़े होने के बावजूद भी वो तने हुए थे,
सीधे खड़े थे-जैसे युद्ध भूमि में कोई योद्धा अभिमान से सर उठाये खड़ा हो.
उनके आकार का, उनके रूप को अंजलि की पतली सी कमर चार चाँद लगा रही थी.
मोठे-मोठे मम्मो के निचे उसकी पतली कमर का कटाव और फिर उसकी जांघो का घुमाव.
किस तरह उसकी गिली कच्छी चिपकी हुयी थी और विशाल को चुत के होंठो की हलकी उपरी झलक देखने को मिल रही थी.
उसके लम्बे स्याह बाल उसकी पीठ पर किसी बादल की तरह लहरा रहे थे.
सर से लेकर उसकी जांघो तक्क के हर्र कटाव हर गोलाई को विशाल गौर से देखता
अपने दिमाग में उसकी वो तस्वीर कैद कर रहा था जैसे यह मौका दोबारा उसके हाथ नहीं आने वाला था.
कभी उसके मम्मो को, कभी उसकी पतली कमर को, कभी उसकी चुत तो कभी उसकी मख़मली जांघो को देखता विशाल जैसे मंत्रमुग्ध सा हो गया था. अं
जलि की कंचन सी काया सोने की तरह चमक रही थी.

बदन के हर अंग अंग से हुस्न और यौवन छलक रहा था, पूरा जिस्म कामरस में नहाया लगता था.
उसके बदन से उठती सुगंध से पूरा महक रहा था. मगर सबसे बढ़कर उसके चेहरे का भाव था
.हाँ वो मुस्करा रही थी मगर अब वो शर्मा नहीं रही थी.
उसके चेहरे पर शर्म का कोई वजूद ही नहीं था.
"हनणह्हह्ह्.........सच में तुम्हे ऐसा लगता है .......मुझे तोह लगता है बात इसके बिलकुल उलट है......शायद यह घबराहट तुम्हे हो रही होगी के तुमसे कण्ट्रोल नहीं होगा" इस बार अंजलि मुस्कराती बेटे की आँखों में झाँकती उसे चैलेंज कर रही थी.
"मा तुम बात पलट रही हो.....भला में क्यों घबराने लगा"
दोनो माँ बेटे एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे. अचानक अंजलि अपने गाउन की गाँठ खोल देती है. बेटे की आँखों में देखति वो अगले ही पल अपना गाउन बाँहों से निकल देती है. गाउन उसके कदमो के पास फर्श पर पड़ा था. उसका दूध सा गोरा बदन बल्ब की रौशनी में नहा उठता है. अंजलि एक टांग आगे को निकाल अपने बालों को झटकती है और फिर अपनी कमर पर हाथ रख बदन के उपरी हिस्से को हल्का सा पीछे को झुकाती है बिलकुल किसी प्रोफेशनल मॉडल की तरह.

"अब बोलो....क्या कहते हो!" अंजलि के होंठो पर वो मधुर मुस्कान जैसे चिपक कर रह गयी थी
. विशाल भोचक्का सा ऑंखे फाडे अपनी माँ को देख रहा था.
यूँ वो कुछ देर पहले अपनी माँ को सिर्फ ब्रा और कच्छी में देख चुका था मगर तब वो लेटी थी और गाउन पहने थी.
अब गाउन उसके बदन से निकल चुका था और वो खड़ी थी
मात्र एक ब्रा और कच्छी मैं- अपने बेटे के सामने. उसके मम्मे कितने मोठे थे,
अब विशाल को अंदाज़ा हो रहा था. हैरानी की बात थी के इतने बड़े होने के बावजूद भी वो तने हुए थे,
सीधे खड़े थे-जैसे युद्ध भूमि में कोई योद्धा अभिमान से सर उठाये खड़ा हो.
उनके आकार का, उनके रूप को अंजलि की पतली सी कमर चार चाँद लगा रही थी.
मोठे-मोठे मम्मो के निचे उसकी पतली कमर का कटाव और फिर उसकी जांघो का घुमाव.
किस तरह उसकी गिली कच्छी चिपकी हुयी थी और विशाल को चुत के होंठो की हलकी उपरी झलक देखने को मिल रही थी.
उसके लम्बे स्याह बाल उसकी पीठ पर किसी बादल की तरह लहरा रहे थे.
सर से लेकर उसकी जांघो तक्क के हर्र कटाव हर गोलाई को विशाल गौर से देखता
अपने दिमाग में उसकी वो तस्वीर कैद कर रहा था जैसे यह मौका दोबारा उसके हाथ नहीं आने वाला था.
कभी उसके मम्मो को, कभी उसकी पतली कमर को, कभी उसकी चुत तो कभी उसकी मख़मली जांघो को देखता विशाल जैसे मंत्रमुग्ध सा हो गया था. अं
जलि की कंचन सी काया सोने की तरह चमक रही थी.
बदन के हर अंग अंग से हुस्न और यौवन छलक रहा था, पूरा जिस्म कामरस में नहाया लगता था.
उसके बदन से उठती सुगंध से पूरा महक रहा था. मगर सबसे बढ़कर उसके चेहरे का भाव था
.हाँ वो मुस्करा रही थी मगर अब वो शर्मा नहीं रही थी.
उसके चेहरे पर शर्म का कोई वजूद ही नहीं था.
उसके होंठो पर हँसी थी-
अभिमान की हंसी. उसकी आँखों में चमक थी-गर्व की चमक.
उसका पूरा चेहरा आत्मविस्वास से खिला हुआ था. हा उसे अभिमान था
अपने छलकते हुस्न पर. उसे गुमान था कामुकता से लबरेज़ अपने जिस्म पर. उसे घमण्ड था
अपनी मदमस्त काया पर. और होता भी क्यों न उसका वो हुस्न,
जिसके आगे बड़े से बड़ा वीर पुरुष जो आज तक्क कभी युद्ध में हरा न हो, वो
भी घुटने टेक देता. उसका वो मादक जिस्म बड़े से बड़े तपसवी का भी तप भंग कर देता.
उसकी मख़मली काया को पाने के लिए कोई राजा अपना पूरा खजाना लुटा देता.
बेटे की आँखों में देखति
वो जैसे उसे नहीं बल्कि पूरी मर्दजात को चुनौती दे रही थी
-हाँ में माँ हू, बहन भी और एक बेटी भी मगर उससे पहले में एक औरत हुन,
एक नारी हुण. एक ऐसी नारी जो मर्द को वो सुख दे सकती है जिसकी वो कल्पना तक नहीं कर सकता.
एक ऐसी नारी जो चाहे तो मर्द के आनंद को उस परिसीमा से आगे ले जा सकती
है जिसको पाने की लालसा देवता भी करते हैं.
"तोः........बताओ जरा किसे कण्ट्रोल नहीं होगा" अंजलि दम्भ से भरी आवाज़ में कहती है.
अंजलि की आवाज़ सुन कर विशाल की तन्द्रा भंग होती है. वो अपनी माँ को जवाब देणे की बजाय कदम बढाकर उसके सामने खड़ा हो जाता है. दोनों के जिस्मो में अब बस हलकी सी दूरी थी. माँ के मम्मे लगभग बेटे की छाती को छू रहे थे. विशाल अपनी माँ की कमर पर हाथ रख देता है तोह अंजलि अपने हाथ हटाकर बेटे के गले में डाल देती है.
"माँ......मत जाओ माँ ............प्लीज् मत जाओ......" विशाल तोह जैसे याचना कर रहा था.
"नही मुझे जाना होगा......तुमारे पिताजी बहुत देर से मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे......
देखो पहले ही कितना समय हो गया है" अंजलि बोलते हुए आगे बढ़ बेटे से सट जाती है.
उसकी आवाज से अब दंभ अभिमान ग़ायब हो चुका था.
बेटे की याचना सुन कर वो अभिमानि नारी एक ही पल में फिर से एक माँ का रूप धारण कर लेती है.
"अच्छा अगर जाना ही है तोह कुछ देर तोह और ठहरो माँ.......
बस थोड़ा सा समय और रुक जायो माँ फिर चली जाना..
प्लीज् माँ" विशाल तोह मिन्नत कर रहा था, भीख मांग रहा था. और
उसकी आवाज़ से उसकी बिनती से और उसके चेहरे की उदासी देखकर माँ का दिल दुखी हो जाता है.
"प्लीज् बेटा.....समझने का प्रयास करो.......जब में तुम्हारे पास आई थी तभी तुम्हारे पिता जी बहुत उतावले हो रहे थे.......यह जो किचन से तुमने बर्तन गिरने की आवाज़ सुनि थी न वो उन्होनो जान बूझकर गिराया था.....वो मुझे बुलाने का संकेत था.......मुझे जाना ही होगा......कहिं वो ऊपर न आ जाये......" अंजलि बेटे को समझाती है मगर बेटा समझने को तैयार नहीं था. वो गुस्स्से से एक तरफ को मुंह फेर लेता है.
"बेटा सिर्फ आज की रात है.........कीसी तरह निकाल लो.......कल सारा दिन में तुम्हारे साथ रहूंग़ी..........जी भरकर प्यार करना......" अंजलि बेटे के गले में बाहे डालकर उसके होंठो को चूमती है.

"पिताजी को नहीं मुझे तोह लगता है के तुमसे रहा नहीं जा रहा........
.कैसे उनके घोड़े पर चढ़ने के लिए बेताब हो रही हो"
विशाल थोड़ा ग़ुस्से से कहता मुंह फेर लेता है.
असल में वो अपनी माँ को जताना चाहता था
के वो उसके जाने की बात से कितना नाराज था.
अंजलि बेटे की बात सुनकर जरा भी बिचलित नहीं होती
बल्कि मुसकरा कर उसका मुंह वापस अपनी तरफ कर लेती है
और उसके होंठो पर अपने होंठ रख देती है.

"वो कोनसा मुझे सारि रात अपने घोड़े पर सवारी करवाने वाले है.
उनका मरियल सा घोडा तोह अब बिचारा बूढ़ा हो चुका है.......
उसमे किधर दम है के तुम्हारी माँ को खूब सैर करा सके.........
बस चंद मिन्टो में उसका दम निकल जाएगा" अंजलि हँसति बेटे को चूमती जा रही थी.
वो प्रयास कर रहा थी किसी तरह बेटे के चेहरे से उदासी के बादल हट जायें
और ख़ुशी की चमकती धुप खील जाये . "मुझे तोह अपने बेटे के घोड़े पर सवारी करनी है"
अंजलि अपनी चुत बेटे के खड़े लौडे पर दबाती है. "
अंजलि के उन चंद शब्दों ने जैसे विशाल के खून में फिरसे आग लगा दी थी.
"माँ......मत जाओ माँ ............प्लीज् मत जाओ......" विशाल तोह जैसे याचना कर रहा था.
"नही मुझे जाना होगा......तुमारे पिताजी बहुत देर से मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे......
देखो पहले ही कितना समय हो गया है" अंजलि बोलते हुए आगे बढ़ बेटे से सट जाती है.
उसकी आवाज से अब दंभ अभिमान ग़ायब हो चुका था.
बेटे की याचना सुन कर वो अभिमानि नारी एक ही पल में फिर से एक माँ का रूप धारण कर लेती है.
"अच्छा अगर जाना ही है तोह कुछ देर तोह और ठहरो माँ.......
बस थोड़ा सा समय और रुक जायो माँ फिर चली जाना..
प्लीज् माँ" विशाल तोह मिन्नत कर रहा था, भीख मांग रहा था. और
उसकी आवाज़ से उसकी बिनती से और उसके चेहरे की उदासी देखकर माँ का दिल दुखी हो जाता है.
"प्लीज् बेटा.....समझने का प्रयास करो.......जब में तुम्हारे पास आई थी तभी तुम्हारे पिता जी बहुत उतावले हो रहे थे.......यह जो किचन से तुमने बर्तन गिरने की आवाज़ सुनि थी न वो उन्होनो जान बूझकर गिराया था.....वो मुझे बुलाने का संकेत था.......मुझे जाना ही होगा......कहिं वो ऊपर न आ जाये......" अंजलि बेटे को समझाती है मगर बेटा समझने को तैयार नहीं था. वो गुस्स्से से एक तरफ को मुंह फेर लेता है.
"बेटा सिर्फ आज की रात है.........कीसी तरह निकाल लो.......कल सारा दिन में तुम्हारे साथ रहूंग़ी..........जी भरकर प्यार करना......" अंजलि बेटे के गले में बाहे डालकर उसके होंठो को चूमती है.

"पिताजी को नहीं मुझे तोह लगता है के तुमसे रहा नहीं जा रहा........
.कैसे उनके घोड़े पर चढ़ने के लिए बेताब हो रही हो"
विशाल थोड़ा ग़ुस्से से कहता मुंह फेर लेता है.
असल में वो अपनी माँ को जताना चाहता था
के वो उसके जाने की बात से कितना नाराज था.
अंजलि बेटे की बात सुनकर जरा भी बिचलित नहीं होती
बल्कि मुसकरा कर उसका मुंह वापस अपनी तरफ कर लेती है
और उसके होंठो पर अपने होंठ रख देती है.
"वो कोनसा मुझे सारि रात अपने घोड़े पर सवारी करवाने वाले है.
उनका मरियल सा घोडा तोह अब बिचारा बूढ़ा हो चुका है.......
उसमे किधर दम है के तुम्हारी माँ को खूब सैर करा सके.........
बस चंद मिन्टो में उसका दम निकल जाएगा" अंजलि हँसति बेटे को चूमती जा रही थी.
वो प्रयास कर रहा थी किसी तरह बेटे के चेहरे से उदासी के बादल हट जायें
और ख़ुशी की चमकती धुप खील जाये . "मुझे तोह अपने बेटे के घोड़े पर सवारी करनी है"
अंजलि अपनी चुत बेटे के खड़े लौडे पर दबाती है. "
बोलो बेटा चढ़ाओगे मुझे अपने घोड़े पर..........
अपनी माँ को सवारी कराओगे न अपने घोड़े पर......"अंजलि के उन चंद शब्दों ने जैसे विशाल के खून में फिरसे आग लगा दी थी.
"में तोह कब से तैयार हु माँ......" विशाल अंजलि की कमर से हाथ हटाकर पीछे उसके नितम्बो पर रख देता है और अपने हाथ फ़ैलाकर अपनी माँ के नितम्बो को मुट्ठियाँ में भर लेता है. अपना लंड पूरे ज़ोर से अपनी माँ की चुत पर दबाता है जैसे खड़े खड़े ही उसे वहीँ चोद देना चाहता हो. "देख लो माँ..........महसूस हो रहा है मेरा घोड़ा..............तेरे लिए कब से तैयार खड़ा है....मगर तू है के चढती ही नही"
एक तरफ विशाल अपना लंड माँ की चुत पर दबा रहा था और साथ साथ उसके नितम्बो को खींच उसकी चुत को लंड पर दबा रहा था. दूसरी तरफ अंजलि बेटे के गले में बाहें और भी कस देती है और एक टांग उठाकर अपने बेटे की जांघो पर लपेट देती है.
"चुदूँगी बेटा........हाय.......जरूर चुदूँगी........जब तक तेरा घोड़ा थकेगा नहीं में उससे नहीं उतरूंग़ी" अंजलि बेल की भाँति बेटे से लिपटती जा रही थी. उसकी चुत से फिर से रस की नदिया बहने लगी थी.
"मेरा घोड़ा नहीं थकेगा मा.......यह पिताजी का घोडा नहीं है....दिन रात सवारी कर लेना.......जितना चाहे दौड़ा लेना........मगर यह थकेगा नहि.......तु चढ़ो तो सही माँ......एक बार चढ़ो तोह साहि" विशाल माँ के दोनों नितम्बो को थाम उसे ऊपर को उठता है ताकि उसका लंड माँ की चुत पर एकदम सही जगह दवाब दाल सके. अंजलि का पांव ज़मीन से थोड़ा सा ऊपर उठ जाता है. अंजलि जिसने एक टांग पहले ही ऊपर उठायी थी दूसरी तांग भी उठा लेती है और दोनों टाँगे बेटे के पीछे उसकी जांघो पर बांध लेती है.

अब हालत यह थी के अंजलि बेटे के गले में बाहे डाले झुल रही थी. विशाल ने अपनी माँ को उसके नितम्बो से पकड़ सम्भाला हुआ था.
"चढ़ोगी माँ.....बोल माँ चढेगी बेटे के घोड़े पर" अंजलि की टाँगे खुली होने के कारन अब लंड अब चुत के छेद पर था.
एक तरफ विशाल अपना लंड माँ की चुत पर दबा रहा था और साथ साथ उसके नितम्बो को खींच उसकी चुत को लंड पर दबा रहा था. दूसरी तरफ अंजलि बेटे के गले में बाहें और भी कस देती है और एक टांग उठाकर अपने बेटे की जांघो पर लपेट देती है.
"चुदूँगी बेटा........हाय.......जरूर चुदूँगी........जब तक तेरा घोड़ा थकेगा नहीं में उससे नहीं उतरूंग़ी" अंजलि बेल की भाँति बेटे से लिपटती जा रही थी. उसकी चुत से फिर से रस की नदिया बहने लगी थी.
"मेरा घोड़ा नहीं थकेगा मा.......यह पिताजी का घोडा नहीं है....दिन रात सवारी कर लेना.......जितना चाहे दौड़ा लेना........मगर यह थकेगा नहि.......तु चढ़ो तो सही माँ......एक बार चढ़ो तोह साहि" विशाल माँ के दोनों नितम्बो को थाम उसे ऊपर को उठता है ताकि उसका लंड माँ की चुत पर एकदम सही जगह दवाब दाल सके. अंजलि का पांव ज़मीन से थोड़ा सा ऊपर उठ जाता है. अंजलि जिसने एक टांग पहले ही ऊपर उठायी थी दूसरी तांग भी उठा लेती है और दोनों टाँगे बेटे के पीछे उसकी जांघो पर बांध लेती है.
अब हालत यह थी के अंजलि बेटे के गले में बाहे डाले झुल रही थी. विशाल ने अपनी माँ को उसके नितम्बो से पकड़ सम्भाला हुआ था.
"चढ़ोगी माँ.....बोल माँ चढेगी बेटे के घोड़े पर" अंजलि की टाँगे खुली होने के कारन अब लंड अब चुत के छेद पर था.
"चुदूँगी बेटा.......जरूर चुदूँगी......हाय कल....कल तेरे घोड़े की सवारी करेगी तेरी माँ.....कल पूरा दिन......." विशाल अंजलि की कमर थाम उसे अपने लंड पर दबाता है. विशाल का मोटा कठोर लंड कच्छी के कपडे को अंदर की और दबाता चुत के होंठो को फैला देता है.
"उऊउउउफफ्फ्फफ्फ्फ़ ..............हैय्यीइए मममममा" लंड और चुत के बिच विशाल के अंडरवियर
और अंजलि की कच्छी का अवरोध था मगर फिर भी
अंजलि चुत के होंठो में बेटे के लंड की हलकी सी रगढ से सिसक उठि.
उसका पूरा वजूद कांप उठता है.
"मेरे लाआलललललल.........उउउनंनंग्घहहः"
इस बार जैसे ही अंजलि के होंठ खुले विशाल ने अपनी जीव्हा माँ के होंठो में घूसा दि.

अंजलि ने तुरंत बेटे की जीभा को मुंह में लेकर चुसना सुरु कर दिया. माँ बेटे के बिच यह पहला असल चुम्बन था. दोनों एक दूसरे के मुखरस को चुसते निचे चुत और लंड पर दवाब बढा रहे थे. विशाल जहां अपनी माँ को अपने लंड पर भींच रहा था वहीँ अंजलि अपना पूरा वजन बेटे के लंड पर दाल देती है. नतीजतन लंड का टोपा कच्छी के कपडे को बुरी तरह से खींचता चुत के होंठो के अंदर घुस जाता है. कच्ची का कपडा जितना खिंच सकता था खिंच चुका था अब अंजलि की कच्छी लंड को इसके आगे बढ्ने नहीं दे सकती थी. मगर माँ बेटा ज़ोर लगाते जा रहे थे अखिरकार सांस लेने के लिए दोनों के मुंह अलग होते है.
"ऊऊफफफफ्फ्फ्फफ्.,..बस कर.....बस कर बेटा......बस कर..........मेरी फट जाएगी" अंजलि उखड़ी साँसों के बिच कहती है. कमरे में साँसों का तूफ़ान सा आ गया था
"फट जाने देमाँ....आज इसको फट जाने दे.......ईसकी किस्मत में फ़टना ही लिखा है" विशाल अब भी ज़ोर लगाता जा रहा था. वो तोह किसी भी तरह अपना लंड माँ की चुत में घुसेड देना चाहता था.
"अभी नहि.....आज नहीं बेटा....."
"उऊउउउफफ्फ्फफ्फ्फ़ ..............हैय्यीइए मममममा" लंड और चुत के बिच विशाल के अंडरवियर
और अंजलि की कच्छी का अवरोध था मगर फिर भी
अंजलि चुत के होंठो में बेटे के लंड की हलकी सी रगढ से सिसक उठि.
उसका पूरा वजूद कांप उठता है.
"मेरे लाआलललललल.........उउउनंनंग्घहहः"
इस बार जैसे ही अंजलि के होंठ खुले विशाल ने अपनी जीव्हा माँ के होंठो में घूसा दि.

अंजलि ने तुरंत बेटे की जीभा को मुंह में लेकर चुसना सुरु कर दिया. माँ बेटे के बिच यह पहला असल चुम्बन था. दोनों एक दूसरे के मुखरस को चुसते निचे चुत और लंड पर दवाब बढा रहे थे. विशाल जहां अपनी माँ को अपने लंड पर भींच रहा था वहीँ अंजलि अपना पूरा वजन बेटे के लंड पर दाल देती है. नतीजतन लंड का टोपा कच्छी के कपडे को बुरी तरह से खींचता चुत के होंठो के अंदर घुस जाता है. कच्ची का कपडा जितना खिंच सकता था खिंच चुका था अब अंजलि की कच्छी लंड को इसके आगे बढ्ने नहीं दे सकती थी. मगर माँ बेटा ज़ोर लगाते जा रहे थे अखिरकार सांस लेने के लिए दोनों के मुंह अलग होते है.
"ऊऊफफफफ्फ्फ्फफ्.,..बस कर.....बस कर बेटा......बस कर..........मेरी फट जाएगी" अंजलि उखड़ी साँसों के बिच कहती है. कमरे में साँसों का तूफ़ान सा आ गया था
"फट जाने देमाँ....आज इसको फट जाने दे.......ईसकी किस्मत में फ़टना ही लिखा है" विशाल अब भी ज़ोर लगाता जा रहा था. वो तोह किसी भी तरह अपना लंड माँ की चुत में घुसेड देना चाहता था.
"अभी नहि.....आज नहीं बेटा....."
"फिर कब माँ.....कब फड़वायेगी अपनी...कब...कब...
.मुझसे इंतज़ार नहीं होता..माँ .....नही होता" विशाल के लिए एक पल भी काटना गंवारा नहीं था.
उसका बस चलता तोह अपनी माँ के जिसम से ब्रा-कच्छी नोंच कर उसे वहीँ चोद देता.
"कल....कल फड़वाऊंगी बेटा.......वादा.. ..... वादा रहा........ कल फाड़ देना मेरी......"
माँ बेटे के होंठ फिर से जुड़ जाते है.
फिर से दोनों की जीभे एक दूसरे के मुंह में समां जाती है.

मगर इस बार अंजलि खुद को पहले की तरह आवेशित नहीं होने देती. उसे एहसास हो चुका था
के विशाल की उत्तेजना किस हद तक बढ़ चुकी थी.
अब अगर वो अपने बेटे को और उकसाती तोह वो उसकी न सुनते हुए उसे चोद देणे वाला था
चाहे उसका पिता भी आ जाता वो रुकने वाला नहीं था. एक लम्बे चुम्बन के बाद जब दोनों के होंठ अलग होते हैं
तोह अंजलि बेटे के नितम्बो से अपनी टाँगे खोल देती है. विशाल नचाहते हुए भी
अपनी माँ को वापस ज़मीन पर खड़ा कर देता है.
"बस आज की रात है बेटा सिर्फ आज की रात" कहकर अंजलि पीछे को घुमति है
और झुककर अपना गाउन उठाती है.
उसके झुकते ही विशाल को अपनी माँ की गोल मटोल गांड नज़र आती है

जो उसके झुक्ने के कारन हवा में लहरा रही थी और जैसे उसे बुला रही थी- आओ मेरे ऊपर चढ़ जायो और चोद डालो मुझे. विशाल आगे बढ़कर माँ की गांड से अपना लंड टच करने ही वाला था की किसी तरह खुद को रोक लेता है.
.मुझसे इंतज़ार नहीं होता..माँ .....नही होता" विशाल के लिए एक पल भी काटना गंवारा नहीं था.
उसका बस चलता तोह अपनी माँ के जिसम से ब्रा-कच्छी नोंच कर उसे वहीँ चोद देता.
"कल....कल फड़वाऊंगी बेटा.......वादा.. ..... वादा रहा........ कल फाड़ देना मेरी......"
माँ बेटे के होंठ फिर से जुड़ जाते है.
फिर से दोनों की जीभे एक दूसरे के मुंह में समां जाती है.

मगर इस बार अंजलि खुद को पहले की तरह आवेशित नहीं होने देती. उसे एहसास हो चुका था
के विशाल की उत्तेजना किस हद तक बढ़ चुकी थी.
अब अगर वो अपने बेटे को और उकसाती तोह वो उसकी न सुनते हुए उसे चोद देणे वाला था
चाहे उसका पिता भी आ जाता वो रुकने वाला नहीं था. एक लम्बे चुम्बन के बाद जब दोनों के होंठ अलग होते हैं
तोह अंजलि बेटे के नितम्बो से अपनी टाँगे खोल देती है. विशाल नचाहते हुए भी
अपनी माँ को वापस ज़मीन पर खड़ा कर देता है.
"बस आज की रात है बेटा सिर्फ आज की रात" कहकर अंजलि पीछे को घुमति है
और झुककर अपना गाउन उठाती है.
उसके झुकते ही विशाल को अपनी माँ की गोल मटोल गांड नज़र आती है

जो उसके झुक्ने के कारन हवा में लहरा रही थी और जैसे उसे बुला रही थी- आओ मेरे ऊपर चढ़ जायो और चोद डालो मुझे. विशाल आगे बढ़कर माँ की गांड से अपना लंड टच करने ही वाला था की किसी तरह खुद को रोक लेता है.
अंजलि भी जल्दी से उठकर अपना गाउन पहनती हुयी दरवाजे की और बढ़ती है. दरवाजे के पास पहुंचकर अचानक वो ठिठक जाती है. विशाल देख सकता था के वो अपनी बाहे गाउन के अंदर दाल अपनी पीठ पर ब्रा के हुक के साथ कुछ कर रही थी मगर क्या कर रही थी वो गाउन का पर्दा होने के कारन देख नहीं सकता था. अंजलि अपने हाथ पीठ से हटाकर अपनी कमर पर रखती और फिर झुकने लगती है. जब वो एक एक कर अपना पांव उठाती है तब विशाल समज जाता है के वो ब्रा और कच्छी निकाल रही थी. अंजलि वापस बेते की तरफ घुमति है. उसने एक हाथ से अपने गाउन को कस्स कर पकड़ा था के कहीं खुल न जाये और दूसरे हाथ में अपनी कच्छी ब्रा थामे हुए थी. वो बेटे के हाथ में अपनी कच्छी और ब्रा थमा देती है.
"येह लो.....इसे रखो......अगर नींद न आये तोह इनका इस्तेमाल कर लेना" इसके बाद अंजलि घूम कर तेज़ी से कमरे से बाहर निकल जाती है. विशाल अपने हाथ में थामी कच्छी अपनी नाक से लगाकर सूंघता है, उसे माँ को चुत की महक ने जैसे बेहोश कर दिया था, विशाल नींद के आगोश मे समता चला गया.
"येह लो.....इसे रखो......अगर नींद न आये तोह इनका इस्तेमाल कर लेना" इसके बाद अंजलि घूम कर तेज़ी से कमरे से बाहर निकल जाती है. विशाल अपने हाथ में थामी कच्छी अपनी नाक से लगाकर सूंघता है, उसे माँ को चुत की महक ने जैसे बेहोश कर दिया था, विशाल नींद के आगोश मे समता चला गया.
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