कार मे बैठे मुझे नींद आने लगी थी, पीछे आदिल और माँ सब सो गए थे
माँ और आदिल ने तो मेहनत की थी लाजमी था,
वैसे भी जल्दी ही देहरादून आने वाला था. सब कुछ ऐसे शांत था जैसे कुछ हुआ ही ना हो.
या फिर किसी तूफ़ान के आने से पहले की शांति थी.
"कहा लेना है अमित भाई " अब्दुल ने मुझे हिलाते हुए बोला.
"अअअ... हाँ.. हाँ... पहुंच गए क्या?" मैं नींद से हड़बड़ा कर उठा,
"देहरादून मे आपका स्वागत है " सामने ही बोर्ड चमक रहा था.
"रुको बताता हूँ " मैंने फ़ोन निकाल मामा को कॉल किया
"हाँ मामा, मैं अमित हम पहुंच गए है, मतलब देहरादून मे इंटर हो गए है, कहा आना है?"
मैं काफ़ी समय पहले आया था, अब तो देहरादून काफ़ी रच बस गया है, मैंने आस पास नजर दौड़ाते हुए सोचा.
"तुम्हे शहर के अंदर से होते हुए चकराता रोड पर आना है, मैं लोकेशन भेज रहा हूँ " मामा ने दूसरी साइड से कहा.
मामा ने लोकेशन send की जिसे खोल के देखा अभी तो उनका घर दूर था, 1 घंटे कम से कम लगने ही थी, मैंने अब्दुल को लोकेशन समझा दी.
मामा ने ये नया घर 2 साल ही लिया था, पहले छोटा घर था शहर मे ही, अब थोड़ा आउटसाइड पर घर लिया है, खुले मे.
लगता है पैसा आ गया है मामा के पास, मैं सोचते हुए उघने लगा.
कोई डेढ़ घाटे बीत गए थे चलते हुए, सुबह का सूरज दिखने लगा था क्षितिज पर,
उठो माँ.... मम्मी....पहुंचने वाले है हम लोग." मेरी आवाज़ से सभी उठ गए थे, माँ का चेहरा तो उठते से ही खील उठा, अपने भाई भाभी रेश्तेदारों से मिलने की चमक साफ दिख रही थी.
"बड़ी जोर नींद आई यार, क्यों आंटी?" आदिल ने माँ की जाँघ को दबाते हुए कहा.
आदिल अभी भी अपनी हरकतो से बाज नहीं आ रहा था.
करीब 10 मिनट मे ही एक बड़ा सा घर नजर आने लगा, लाइट लगी हुई थी, घर के बाहर टैंट लगा था, शहनाई बज रही थी.
"लगता है यही तेरे मामा का घर है "माँ ने उत्साह से कहा.
पास पहुचे तो एक आदमी सफ़ेद कुर्ते पाजामे मे हाथ हिलता दिखा, अब्दुल ने इशारा समझ घर के बाहर गाड़ी रोक दी.
"मामामम्म्म्म..... मैं तुरंत कार से उतर मामा के गले जा लगा, माँ भी उत्साहित थी, मेरी माँ, मामा से 2साल बड़ी थी.
"भाभी भाभी.... की आवाज़ से हमारा ध्यान सामने गया, सामने से मामी भागी चली आ रही थी.
ये है मेरी मामी आरती,
मामी ने भी गजब का कातिलाना जिस्म पाया था, लाल साड़ी, काला ब्लाउज, जिसमे से उनके चुचे साफ झलक रहे थे, सिर्फ एक पतली सी पट्टी ने मामी के स्तनो का भार संभाला हुआ था.
ब्लाउज और साड़ी के बीच गद्दाराया पेट झलक रहा था, जिसमे की गहरी नाभि मामी के जिस्म की शोभा बड़ा रही थी.
लगभग 34 साइज के स्तन होंगे मामी के, 26 की कमर जान पडती थी, गांड तो जानलेवा ही थी, जिस तरह से हिल रही थी उसका वजन और साइज कहाँ बेमानी ही होंगी फिर भी 34 साइज तो होंगी ही.
तब तक सभी कार से नीचे उतर गए थे, सभी का ध्यान मेरी मामी पर चला गया.
कारण था मेरी मामी के भागने से उनके स्तन उछल उछल के बाहर आने को मर रहे थे.
मामी ने माँ को गले लगा लिया, कितनी सुन्दर लग रही हो भाभी आप " मामी ने माँ को बाहो मे कसते हुए कहा.
मैंने भी गौर किया मामी भी कोई कम नहीं थी, माँ और मामी के चुचे आपस मे दबे हुए थे, दबने से ब्लाउज के ऊपर से लगभग बाहर को ही आ गए थे.
मेरे दोस्तों का भी यही हाल था, माँ के बाद एक और खूबसूरत औरत उनकी आँखों के सामने थी.
मेरी मामी की उम्र कोई 40 साल रही होंगी, एक दम भरा हुआ जिस्म, गोरी रंगत लिए हुए, साड़ी और ब्लाउज मे भी मामी का एक एक काटव साफ दिख रहा था,
"कैसी है आरती तू " माँ ने पूछा..
मैंने भी मामी के पैर छुए, लेकिन मामी ने मुझे गले से लगा लिया.
"इउउउफ्फ्फ... इसस्स.... क्या कोमल अहसास था मामी के गोल स्तन मेरे सीने मे धसे जा रहे थे, उनके कदकपान का अंदाजा मुझे हो गया था"
नवीन कहा है? मैंने पूछा.
"सो रहा है " आओ अंदर.
"ये सब....?" मामी ने माँ से पूछा.
"अरे ये सब अमित के दोस्त है, देहरादून घूमने की इच्छा थी तो साथ ही आ गए "
माँ ने जवाब दिया.
मैंने सभी का परिचय करा दिया.
"चलो अंदर अब, सब मेल मिलाप यही कर लोगे " मामा ने मेरे दोस्तों को समान लाने का इशारा किया.
मामी मेरा और माँ का हाथ पकड़ती अंदर ले चली.
पीछे मेरे दोस्त जल मर रहे होंगे, मामी और माँ की मटकती गांड देख रहे होंगे.
"चलो अच्छा है तुम दोस्त भी साथ चले आये, शादी के घाट ने जितने लड़के हो उतना अच्छा " मामा मेरे दोस्तों से बटे करते चले आ रहे थे..
7.30 बज गए थे, मामा ने हम सभी लड़को को एक कमरा दिखा दिया जहाँ हम सब समान रख लेट गए.
माँ, मामी के साथ बिजी हो गई..
नवीन भी उठ के हमारे पास आ गया था, हम सब आपस मे बाते करने लगे, मैंने सभी का परिचय नवीन से कराया.
नवीन भी मेरी ही कद काठी का था, हालंकि वो दो साल बड़ा था मुझसे. अच्छा रिश्ता मिल गया था तो शादी तय हो गई थी.
"और नवीन भाई कुछ इंतेज़ाम रखा है क्या " मोहित ने हाथ से पीने का इशारा करते हुए कहा.
"सब है दोस्तों, शाम का इंतज़ार करो, दिन मे तो मार्किट का काम है थोड़ा.
"अभी छोटी बुआ भी आनी है, उन्हें लेने जाना है.
"क्या कामिनी मौसी भी आ रही है wow.. बहुत दिन हो गए उनसे मिले
"मौसी मेरी माँ और मामा से छोटी थी, ये दो बहन और एक भाई थे.
नाना पहले भी मर गए थे, नानी जिन्दा थी.
"हाँ 12 बजे उनकी ट्रैन आ जाएगी " अब्दुल भाई आप चलेंगे मेरे साथ?
"मियां मैं तो हूँ ही ड्राइवर क्यों नहीं चलेंगे " अब्दुल के बोलने का अंदाज़ ही ऐसा था की सभी हस पड़े.
"यार थोड़ा फ्रेश हो कर आता हूँ मैं " अब्दुल ने जर्दा ठोकते हुए कहा
नवीन ने इशारा कर दिया,
मामा का घर दो मंजिला था, मामा मामी का बैडरूम नीचे थी था, नवीन का कमरा भी नीचे ही था.
नीचे कुल 5 कमरे थे, बीच मे बड़ा सा हाल था, हाल के सामने ही किचन था, कमरों के पीछे जा कर एक गार्डन था, उसी से लगा कॉमन टॉयलेट भी था,
टॉयलेट एक कमरे जैसा था, जिसमे दो गुसालखाने एक नहाने का टब, शावर लगे थे, साथ ही पेशाब करने ले कामोड भी लगा था,
इस तरह से बना था की 2 से 3 लोग एक साथ इस्तेमाल कर सके. जो की कभी कभार ही उसे हुआ करता था,
नवीन मे वही जाने का इशारा किया,
अब्दुल निकल लिया, थोड़ी ही देर मे मुझे भी कुछ प्रेशर सा लगा,.
"मैं आता हूँ तुम लोग बात करो " मैं भी कोई 5 मिनट के अंतर मे अब्दुल के पीछे निकल गया.
गार्डन मे जा कर, टॉयलेट के दरवाजे को पुश किया, लेकिन अंदर से बंद था, मैंने दरवाजा खटखटने का सोचा ही की.
"इईईईई...... तुम " मुझे माँ की हलकी चीखने जैसी आवाज़ आई.
मैं सकते मे आ गया, भाग के बाथरूम के पीछे गया, ऊपर रोशनदान था, मैंने इधर उधर देखा एक टूटी फूटी टेबल दिखी मैंने उसे तुरंत उठा कर रोशनदान के नीचे लगाया और उस पर खड़ा हो कर अंदर झाकने लगा.
अंदर देखते ही मेरी सांसे उखड़ने लगी, पैर कंपने लगे.
मैंने देखा मेरी माँ बाथरूम मे मुँह पर हाथ रखे आंखे फाडे सामने देख रही है.
सामने अंब्दुल अपने लंड को हाथ मे लिए मूत रहा था.
"माफ करना भाभी जी मुझे पता नहीं था आप अंदर है " अब्दुल का मूतना जारी था.
अब्दुल का लंड किसी गधे के लंड की तरह लटका हुआ था, बिल्कुल काला, आगे से आलू की तरह गुलाबी सुपडे से मूत की धार निकली जा रही थी.
मेरी माँ हैरानी से वैसे ही खड़ी थी, शायद माँ ने ऐसा लंड कभी देखा ही नहीं था, माँ क्या मैंने भी कभी इतना बड़ा लंड नहीं देखा था, 9 इंच का तो होगा ही कम से कम.
मुझे दूर से भी बहुत बड़ा लग रहा था, माँ तो फिर भी पास से देख रही थी.
"क्या हुआ भाभी जी आजतक लंड नहीं देखा क्या?" अब्दुल ने अपने लंड को झटका देते हुए कहा .
"कककक.... ये... कैसी बात कर रहे हो तुम? " माँ ने कहा
"अब ज्यादा भोली भी मत बनो, वैसे तो मुझे सच मे नहीं पता था आप अंदर हो, बताओ ना कभी देखा है ऐसा लंड?" अब्दुल ने एक झटका और दिया अपने लंड को..
माँ तो जैसे लंड के झटके से काँप रही थी.
"न्नन्न... नहीं... नहीं..." माँ ने घुटी घुटी आवाज़ ने कहा.
"आओ तो पकड़ मे देखो "
"कक्क... क्या... शर्म नहीं आती तुन्हे, ऐसी बात करते हुए " माँ ने डांटने के अंदाज़ मे कहा
"आप से कैसी शर्म भाभी जी, आपकिमे कारनामें तो मैं कार मे ही देख चूका हूँ, बच्चों के लंड से खेलने मे मजा नहीं आया होगा आपको " अब्दुल के एक एक शब्द मेरे कानो मे धस रहे थे.
वाकई हम लोग तो उसके सामने बच्चे ही थे, अब मुझे समझ आया उसकी मुस्कुराहट का मतलब.
माँ भी अब ढीली पड़ गई थी, उसकी चोरी पकड़ी गई थी,
"पकड़ के देखो ना भाभीजी, आप जैसी औरतों के लिए ही ये लंड है " अब्दुल चलता हुआ माँ के पास आ गया.
उसने माँ का हाथ पकड़ अपने लंड पर रख दिया, जिसे माँ ने तुरंत हटा दिया
"कक्क.... कोई आ जायेगा " माँ के माथे पर पसीना था, शायद चुत मे भी आ गया था.
"कोई नहीं आएगा मैंने अंदर ज़े गेट लगा दिया है
मेरा खून खोल रहा था, मुझे लगा शायद ये सब खत्म हो जायेगा लेकिन नहीं वो तो सिर्फ शुरुआत थी.
अब्दुल ने वापस से माँ का हाथ अपने लंड पर रख दिया.
इस बार माँ ने हाथ नहीं हटाया, जैसे किसी जादू मे बँधी हो.
"बबबब... बड़ा है " माँ ने बुदबुदया
"आपकी बड़ी गांड के लिए ऐसे ही लंड चाहिए होते है "
माँ के हाथ अब्दुल के लंड को टटोल रहे थे हैसे उसकी लम्बाई चौड़ाई नाप रहे हो.
"तुमने कब देखी " माँ ने अब्दुल की आँखों मे आंख डाल पूछा.
"वैसे तो अन्दज़ा लग ही जाता है, फिर भी जब आप मूतने बैठे थी, रोड साइड तब देखी थी "
" हट बदमाश मैंने मना किया था ना देखने से " माँ के हाथ अब्दुल के लंड पर कस गए, लंड को दबाने लगी.
"अब ऐसी खूबसूरत औरत को कोई ना देखे वो नामर्द ही हो सकता है "
माँ को अपनी तारीफ अच्छी लग रही थी
"किसी को मालूम पड़ा तो?"
" आपकी इज़्ज़त मेरे पास सुरक्षित है" अब्दुल ने भरोसा दिया
और अपने हाथ आगे बड़ा कर माँ के स्तनो पर रख दिए ब्लाउज के ऊपर से ही.
"ईईस्स्स..... आआहहहह..... क्या कर रहे हो उउउफ्फ्फ....".
माँ कसमसा गई उसके हाथ अब्दुल के लंड को हिलाने लगे.
माँ का जिस्म गरम होने लगा था, अब्दुल ने अपने गन्धे, तम्बाकू से सने हुए होंठ माँ के लाल सुन्दर कोमल होंठो पर टिका दिए, माँ ने भी जवाब मे अपने होंठ खोल दिए, अब्दुल के तम्बाकू से सने होंठ मेरी माँ के मुँह के लार को चाट रहे थे, चूस रहे थे..
मैं ताज्जुब मे था माँ हवास मे इस कदर गिर गई थी की, जिस जात धर्म से वो नफ़रत सी करती थी उसकी के लंड को पकड़ के हिला रही है, उसके होंठो को चूस रही है.
मुझे तो घिन्न सी आने लगी थी.
माँ का पल्लू तो कबका फर्श चाट रहा था, माँ के स्तन ब्लाउज के बाहर ज़े चमक रहे थे, मरे जा रहे थे बाहर आने को.
शायद अब्दुल ने मेरी सुन ली, उसके हाथो ने हरकत की और माँ के ब्लाउज के एक एक बटन खुलते चके गए.. धड़ाम से माँ के गोरे सुडोल 34 साइज के स्तन बाहर को टपक पड़े.
अब्दुल सर उठा कर उन्हें घूरने लगा, माँ के हाथ लगातार अब्दुल के लंड को हिला रहे थे,.
"क्या हुआ ऐसी चूची कभी देखी नहीं क्या " माँ ने अब्दुल के लंड को दबाते हुए कहा.
साली मेरी माँ किस किस्म की औरत थी, इतनी हवास भरी हुई थी की वो एक गैर मर्द को अपने स्तन दिखा रही थी.
"नहीं ना भाभी जी आज तक नहीं देखे ऐसे " अब्दुल ने कस के माँ के स्तनों को भींच दिया
"आआहहहह.... अब्दुल जी धीरे... उफ्फ्फ.... माँ का रोम रोम कांप उठा .
माँ के हाथ और भी तेज़ी से अब्दुल के लंड पर चलने लगे, सुपडे से लेकर लंड की जड़ तक घिसने लगी.
माँ के चूडियो की आवाज़ पुरे बाथरूम मे गूंज रही थी,
"अब्दुल ने मुँह नीचे झुका माँ के एक स्तन को अपने गंदे मुँह मर भर लिया और दूसरे को कस कस के दबाने लगा.
"आअह्ह्ह.... मर गईं... Uffff.... माँ दोहरी मार से मरी जा रही थी, माँ के पैर कांप रहे थे..
"अब्दुल कस कस के भींच रहा था, माँ के स्तन को काट रहा था, माँ के निप्पलो को काट काट के चूस रहा था.
माँ भी अब्दुल के हमले का जवाब दे रही थी, उसके लंड को कस कस कर हिला रही थी. दबा रही थी, उसके टट्टो से खेल रही थी.
अब्दुल के हाथ माँ की कमर तक जाने लगे, माँ की नाभि को सहलाने लगा.
"आआहहहह.... उफ्फ्फ्फ़.... माँ तड़प रही थी.
अब्दुल माँ की चुत तक पहुंचना चाह रहा था, जो की माँ की साड़ी की वजह से संभव नहीं लग रहा था.
"अभी नहीं अब्दुल मियां, टाइम नहीं है " माँ ने अब्दुल की मनसा को समझते हुए कहा.
"फिर...." अब्दुल का चेहरा लटक गया.
जवाब मे माँ पंजो के बल बैठती चली गई, माँ के मुँह के सामने अब्दुल का काला भयानक लंड नाच रहा था.
माँ की हरकतों ने मेरे जिस्म को निचोड़ दिया था, लग रहा था अभी गिर ना जाऊ मैं, कहा से सीखा मेरी माँ ने ये सब.
मैं कितना नादान था, अनजान था अपनी माँ से.
माँ किसी रंडी की तरह अब्दुल के लंड को अपने मुह के सामने हिला रही थी, अब्दुल सांस रोके आने वाले पल का इंतज़ार कर रहा था, साले हरामी के हाथ खजाना लग गया था.
माँ ने नाक पास ले जा कर एक जोरदार सांस खींची.... सससन्नणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....... आआहहहह....
माँ के रोम रोम मे अब्दुल के लंड की गंदी स्मेल समा गई, माँ के रोंगटे खड़े हो गए . तभी माँ ने अपनी गीली जबान निकाल अब्दुल के सुपडे पर रख दी.
"ईईस्स्स..... उफ्फ्फ्फ़.... अब्दुल का जिस्म दहल उठा, उसने अपनी गांड सिकोड ली.
माँ की गरम गीली जबान अब्दुल के लंड पर रेंगने लगी, माँ ने बड़ी ही नज़ाकत से अपनी कला का प्रदर्शन किया था.
"वाह भाभीजी आप तो बहुत तेज़ है " अब्दुल ने भी माँ की सरहाना की.
माँ ने एक नजर अब्दुल को देखा और मुस्कुरा दिया.
गुलप.... गप.... से माँ ने एक दम से बड़ा मुँह खोला और अब्दुल के लंड को आधे से ज्यादा एक बार मे मुँह मे लिया.
मैं हैरान मरा जा रहा था अपनी माँ की अदाओ से, किसी रंडी को भी फ़ैल कर दे मेरी माँ तो.
माँ ने आंखे बंद कर ली और होंठो को पीछे खींच वापस आगे को धकेल दिया.
माँ का पूरा मुँह भरा हुआ था, गु... गु... वेक.. वेक... करती माँ अब्दुल के लंड को चूसने लगी.
उसके हाथ अब्दुल के टट्टो को सहला रहे थे,
मुह आगे पीछे हो रहा था.
अब्दुल तो जैसे जन्नत की सेर पे निकल गया था, माँ मुश्किल से अब्दुल का लंड ले पा रही थी, फिर भी पूरी कोशिश कर रही थू की पूरा मुँह ने समा जाये.
शायद ऐसा मौका वो छोड़ना नहीं चाहती थी.
अब्दुल ने भी माँ के सर पर हाथ रख उसे आगे को धकेलने लगा, और अंदर लेने के लिए उकसाने लगा.
हालंकि माँ को देख के लगता नहीं था उसे किसी फाॅर्स की जरुरत है वो तो खुद आगे और आगे अपने मुँह को अब्दुड के लंड पर घुस रही थी.
वेक... वेक... गो... गो.. गु... गु.... पच.. पच... फच... की आवाज़ ने साथ माँ के मुँह से थूक निकल के फर्श को भीगो रहा था
माँ सुबह का नाश्ता कर रही थी वो भी गैर धर्म के इंसान के लंड को चूस कर.
ये पल मेरे लिए मर जाने लायक था, मेरे सामने रह रह के पापा का चेहरा आ जा रहा था, उनकी पतली दुबली काया, खसना हुआ चेहरा.
सामने अब्दुल का लंड था, मैंने एक बार अब्दुल के लंड से पिताजी के लंड की तुलना करनी चाही तो समझ आ गया ना कितनी प्यासी है.
पापा के मरे हुए लंड से माँ को क्या सुख मिला होगा.
विचारों से निकल मैंने सामने देखा अब्दुल माँ के सर को पकड़ जोर जोर से अपनी कमर हिला रहा था, मैं देख के दंग रह गया माँ के हिंठ अब्दुल के लंड की जड़ से चिपक जा रहे थे,
लंड बाहर आता हो बिल्कुल थूक से साना हुआ होता, और सट से वापस अंदर समा जाता, जैसे ही अंदर जाता माँ का गला थोड़ा फूल जाता,
मतलब माँ के गले तक अब्दुल का लंड जा रहा, उफ्फ्फ्फ़..... मेरी घरेलु संस्कारी माँ ऐसा कारनामा कैसे कर ले रही थी.
मेरे लंड मे दर्द होने लगा था, लंड को छू भी देता तो पानी छोड़ देता ऐसी हालात थी मेरी.
वेक... वेक... गो... उकाच.... करती माँ पूरी सिद्दत से अब्दुल के लंड को चूस रही थी, माँ का मुँह और अब्दुल के टट्टे पूरी तरह थूक और लार ज़े सने हुए थे,
माँ हवास से बिल्कुल पागल हो गई थी, अब्दुल के टट्टे जो की उसी के थूक से भीगे हुए थे, उन्हें चाट रही थी,
छी... वेकम... इतने गंदे बालो से भरे टट्टे माँ चाव से चाट रही थी, मुँह मे भर के चुभला रही थी.
ना जाने क्या शहद लगा हुआ था अब्दुल के टट्टो मे.
अब्दुल की गोटिया माँ के थूक से सनी चमक रही थी.
माँ की आँखों से पानी बह रहा था फिर भी माँ रुकने का नाम नहीं ले रही थी.
किसी पागल की तरह अब्दुल के लंड को सटा सट घुसाए जा रही थी.
उउउउफ्फ्फ.... आअह्ह्ह..... भाभी जी.... आअह्ह्ह...... मर गया.
अब्दुल जैसे लंड का मालिक भी माँ के सामने पानी मांग रहा था . आअह्ह्ह... उउफ्फ्फ.... मैं गया
अब्दुल का शरीर कंपने लगा, रोंगटे खड़े होने लगे, गांड आपस मे कसती जा रही थी, जिस पर माँ के हाथ कसे हुए थे
"आआआह्हः... फच... फच... फाचक.... करता अब्दुल माँ के मुँह मे झड़ने लगा, उसके लंड ने वीर्य की बिछर कर दी थी.
अब्दुल ने माँ के सर को अपने लंड की जड़ मे दबा दिया था.
"उउउफ्फ्फ..... गुगुगु.... करती माँ अब्दुल की जांघो पर मरने लगी, अपने नाख़ून गाड़ा दिए.
फच... फच... फाचक.... की एक लहर के साथ अब्दुल माँ से अलग हुआ . हमफ़्फ़्फ़.... हमफ़्फ़्फ़.... उफ्फ्फ्फ़..... हाय... उफ्फ्फ....
अब्दुल दूर जा गिरा,. खो.... खो.... वेक... वेज..... हमफ़्फ़्फ़... हमफ़्फ़्फ़...
माँ के मुँह से ढेर सारा वीर्य निकल के फर्श पर गिरने लगा.
माँ हांफ रही थी अब्दुल भी.
दोनों की सांसे किसी राजधानी ट्रैन की तरह चल रही थी.
"हुम्म्मफ़्फ़्फ़... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... ये... क्या.... क्या कर रहे थे तुम?
माँ के चेहरे पे थोड़ी नाराज़गी थी
"स... Sorry वो मैं रुक नहीं पाया " अब्दुल ने सफाई दी.
"मर जाती मैं अभी.... हमफ़्फ़्फ़... खो... खो... खाऊ...."
माँ का चेहरा पूरी तरह थूक और अब्दुल के वीर्य से भरा हुआ था,
माँ के लाल होंठो से अब्दुल का वीर्य टपक रहा था.
"अरे आपको मरने थोड़ी ना देंगे अभी तो चुत बाकि है अभी से मर गई तो इस नाचीज़ का क्या होगा " अब्दुल ने पजामा बांध लिया
"हट बदमाश..... ये बहुत है जाओ अब " माँ भी ब्लाउज के बटन लगाने लगी.
"चुत नहीं मिलेगी क्या? अब्दुल ने सीधा सीधा पूछ लिया
"मुझे क्या पता, वो तो तुम्हे लेनी पड़ेगी " माँ ने हसते हुए कहा.
"कहा मिलेगी आपकी चुत "
"देखते है शायद आज रात इसी बाथरूम मे " माँ ने हसते हुए अपनी साड़ी सही की और बाथरूम का दरवाजा खोल बाहर निकल गई.
मैं और अब्दुल के हालात same थे, माँ ऑफर दे गई थी अब्दुल को आज रात का.
मुझे ये प्रोग्राम देखना ही था.
अब्दुल के जाने के बाद मैं भी जल्दी ज़े फ्रेश हुआ और बाहर चल दिया,
बाकि समय नाश्ते पानी मे चला गया, 11 बज गए थे.
मामा ने हमें मौसी को लेने भेज दिया था.
नविन तो बाहर जा नहीं सकता था तो मैं और अब्दुल मौसी को लेने स्टेशन चले गए.
साला जब से अब्दुल मिला है मेरी तो माँ ही चुद गई है मतलब, क्या क्या देखने को मिल रहा है.
अभी जो अब्दुल मेरी माँ को लंड चूसा रहा था, वो मेरे बगल मे बैठा था हरामी, और मैं नामर्द उसका कुछ बिगाड़ भी नहीं सकता था
कहीं ना कहीं मुझे मजा भी आ रहा था, मेरी माँ की हरकते मुझे मजबूर कर रही थी की मैं माँ के बारे मे और जानू.
वैसे भी माँ ने आज रात चुत देने का वादा किया था.
मुझे आज रात के लिए कुछ प्लान बनाना था.
खेर 12 बज गए थे, ट्रैन टाइम पर ही थी.
ट्रैन रुकी सामने से मेरी मौसी "कामिनी " चली आ रही थी.
एक पल को मैं मौसी को देखता ही रह गया, खिला हुआ जिस्म, साड़ी ब्लाउज मे कसा हुआ जिस्म.
मौसी की उम्र कोई 41 साल थी, मेरी ही माँ की तरह सुन्दर लेकिन hight मे थोड़ी छोटी, लेकिन मौसी का जिस्म उनकी लम्बाई के हिसाब से बिल्कुल परफेक्ट था.
गांड बाहर को बहुत ज्यादा निकली हुई थी, स्तन तो ऐसे बड़े बड़े थे जैसे कोई तरबूज़ ही बांध लिए हो.
आँखों पर चश्मा, लाल होंठ कुछ उभरे हुए, माथे पर बिंदी, शर्त लगा के कह सकता हूँ, ट्रैन मे कई मर्दो नेलंड हिलाया होगा मौसी को देख कर.
अब्दुल साला तो लंड मसलाने लगा, हरामी मेरी माँ को चोदने का प्लान बना कर मेरी मौसी को देख के लंड मसल रहा है.
मैं खुदको भी नहीं रोक पा रहा था मौसी को देखने से, उनके स्तन वाकई बहुत बड़े थे, लगता था ब्लाउज फट ही जायेगा.
साला मेरे घर मे इतने माल है मुझे पता ही नहीं था, या फिर मेरा ही देखने का नजरिया बदल गया था.
साला हो क्या रहा था मेरे साथ, ये शादी क्या क्या रंग दिखायेगी मुझे..
खेर मौसी से औपचारिकता के बाद हम वापस घर को चल दिए,
Contd....
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