मैं कार मैं बैठा सोच रहा था मेरे घर मे एक से बढ़ कर रखा माल है, लेकिन मैंने कभी इस नजरिये से उन्हें देखा ही नहीं.
जबकि बाहर वाले खुद मेरे दोस्त इनके पीछे पागल थे.
और आज सुबह सुबह ही अब्दुल और माँ का हवस भरा खेल देखने के बाद मेरा दिमाग़ ज्यादा कुछ सोच समझ नहीं पा रहा था.
मेरा लंड तो मौसी को देख के ही खड़ा हुआ जा रहा था.
मेरी मौसी की शादी कालकत्ता मे हुई थी, अच्छे खासे घर मे रिश्ता हुआ था, इनके भी एक लड़का गोलू और लड़की काया थे. काया की शादी हो चुकी थी, गोलू मेरी ही तरह पढ़ाई कर रहा था.
"मौसी काया और गोलू नहीं आये " मैंने पूछा.
"कहा अमित गोलू के एग्जाम चल रहे है, और तेरे जीजा का ट्रांसफर up मे किसी देहात मे हो गया है तो काया का वहाँ से यहाँ आना मुश्किल ही है, तेरे मौसा को तो वैसे ही फुर्सत नहीं है मौसी ने बेबसी बताई.
मेरे मामा मौसी शहर मे ही रहते है, ना जाने कैसे मेरी ही माँ की शादी गांव मे कर थी मेरे नाना नानी ने.
ये मेरे लिए कोतुहाल का विषय था.
कोई आधे घंटे मे हम लोग घर आ गए थे.
माँ और मौसी आपस मे मिल के ख़ुश थी,.
"चलो खाना खा लो सब, बहुत काम है "
हम सभी दोस्त हाथ मुँह धो कर वही बरामदे मे बैठ गए, वही दरी बिछाई गई थी.
माँ और मौसी सामने ही कुर्सी पर बैठे थे.
माँ मौसी से बात करती करती आदिल और अब्दुल को देख लेती, जवाब मे दोनों मुस्कुरा देते.
आँखों ही आँखों मे बाते ही रही थी जैसे.
मामी सामने उकडू बैठी खाना निकाल रही थी, उकडू बैठे होने से मामी की जांघो और गांड पे साड़ी कस गई थी.
उफ्फ्फ्फ़.... इतनी मोटी जाँघ मैं हैरान था,
यही हाल मेरे दोस्तों का भी था प्रवीण और मोहित चोर नजरों से मामी की जांघो को टटोल रहे थे.
"जल्दी खा लो, बहुत काम है आज" मामी बिल्कुल हमारे सामने उकडू बैठ कर थाली मे खाना परोस रही थी.
सामने हम सब की सांसे रुकी हुई थी, मामी का पल्लू सरका हुआ था, सीना घुटनो की वजह से दबा था, मामी के मोटे सफ़ेद चुचे पुरे बाहर को निकले हुए हमें दर्शन दे रहे थे.
मामी को तो जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था, मामी वैसे ही खाना परोसती रही,
"मस्त है पुड़िया " मोहित ने मामी को देखते हुए कहा
"खाओ भी तो देखने से ही कैसे मालूम पड़ गई " मामी ठीक मोहित के सामने थी.
"देख के ही मालूम पड़ रहा है मामी जी, इतनी फूली हुई है, स्वाद तो होगा ही ना " मोहित ने दाँत निकाल दिए.
साला मोहित मेरी मामी को लाइन मार रहा था.
पता नहीं मामी कुछ समझी भी या नहीं, " पहले चख तो लो "
इस बार मामी पूरी तरह मोहित के सामने झुक गई, "लो और खा लो फूली हुई पुड़िया "
"चखना क्या है दबा के खाएंगे हम लोग तो," मोहित ने मामी के चुचो को घूरते हुए कहा..
मामी ने भी मोहित की नजर को साफ पहचाना था, लेकिन मजाल की पल्लू डाल ले.
सिर्फ मुस्कुरा कर आगे बढ़ गई " बहुत शैतान है भाभी अमित के दोस्त "
मामी ने उठते हुए, माँ के पास बैठ कहा.
"हाँ आरती बदमाश तो है, जवान लड़के है अभी बदमाशी नहीं करेंगे तो कब करेंगे "
माँ ने समर्थन किया..
मैं इतना भी बुद्धू नहीं था की यहाँ क्या बात हो रही है समझ ना आये.
"वैसे भी शादी ब्याह मे तो हसीं मज़ाक करना ही चाहिए, ऐसे मौके फिर थोड़ी ना मिलते है "
मेरी मौसी भी इनकी बात मे शामिल हो गई.
हाय रे मेरा परिवार... ना जाने किस दिशा मे जा रहा था.
मेरी तो जैसे भूख ही मर गई थी, जबकि मेरे दोस्त जम के खा रहे थे.
पूड़ी सब्जी, रायता सब डकार गए.
"अच्छा अमित 4बजे मार्किट चलना है " माँ ने कहा
"ठीक है माँ... लेकिन मुझे कार चलानी कहा आती है" मैंने बोला
"तुझे कौन बोला रहा है चलाने को, तुम लोग साथ मे ड्राइवर लाये हो ना, क्यों अब्दुल मियां " माँ ने अब्दुल को पूछा.
"अजी भाभी जी यही तो मेरा काम है " अब्दुल ने डकार लेते हुए कहा..
मेरी माँ कोई ना कोई बहन ढूंढ़ ही ले रही थी, अब्दुल के साथ टाइम बिताने का.
"मैं तो अभी थोड़ा आराम करूंगी, दीदी आप ही हो आओ मार्किट.
मौसी ने कहा..
तय हुआ मैं मामी और माँ अब्दुल के साथ मार्किट जायेंगे..
बाकि यही मामा और नवीन के साथ छोटा मोटा काम करेंगे.
कल हल्दी का प्रोग्राम था, आज शाम तक और भी मेहमान आने वाले थे.
4 बज गए थे, हम लोग निकलने को थे, तभी टैंट वाले भी aa गए, मेरे दोस्त उस काम मे लग गए.
हम लोग चल पड़े, शाम के टाइम भीड़ थी थोड़ी.
कोई 45 मिनट मे हम मार्किट पहुंच गए थे, car पार्किंग के लिए जगह भी नहीं दिख रही थी, शादी ब्याह का सीजन चल रहा था इस वजह से अच्छी खासी भीड़ थी.
थोड़ा इधर उधर देखने के बाद अब्दुल ने मार्किट से थोड़ा दूर पब्लिसिटी टॉयलेट के पास कार लगा दी. अब्दुल कार मे ही बैठा रहा, हम लोग मार्किट के लियर निकल गए.
कपड़ो साड़ी, लहंगो का मार्किट था, लेन देंन के कपडे लेने थे हमें.
"भाभी आप क्या पहनेगी शादी मे"?
"क्या पहनना है आरती, साड़ी ही पहनेंगे " माँ ने कहा.
"क्या भाभी साड़ी तो old फैशन हो गया है, लहंगा चोली पहनो ना मस्त लगोगी "
"हट पागल अब इस उम्र मे लहंगा चोली कौन पहनेगा " माँ ने मुस्कुरा मे जवाब दिया.
मैं पीछे पीछे चल रहा था.
"क्यों क्या हुआ है आपकी उम्र को, अभी भी किसी जवान लड़की को फ़ैल कर दोगी आप तो, " मामी ने माँ को चिकोटी काटते हुए कहा
"हट बेशर्म धीरे बोल पीछे अमित भी है "
माँ धीरे से बोली, लेकिन मैंने साफ सुना था.
"वैसे वो ड्राइवर आप को बहुत घूर रहा था, क्या बात है " मामी ने धीरे से आंख मारते हुए कहा.
"कक्क.. कहा.... क्या कोई बात नहीं," माँ थोड़ा सकपका गई.
"आप जैसी औरत को कौन नहीं देखेगा "
"तू ना बहुत बदमाश हो गई है, खुद को नहीं देखती, गद्दाराई घोड़ी की तरह हो गई है " माँ ने भी मामी की टांग खींचते हूर कहा.
"क्या फायदा ऐसी घोड़ी होने का जब कोई चढ़ने वाला ही ना हो "
मामी की आवाज़ मे उदासी थी.
"तभी झुक झुक कर अपने दूध दिखा रही थी अमित कर दोस्तों को " माँ ने खिचाई करते हुए कहा
"ममम... मैं.. मैं कब?" मामी सकपका गई.
"अब ज्यादा बन मत, खाना परोसते वक़्त अपने पुरे दूध निकाल के बैठी थी, और किस पूड़ी की बात कर रही थू तू " माँ ने मामी की कमर पर एक थपकी दी.
"शादी ब्याह मे तो थोड़ी मस्ती चलती है ना भाभी "हाहाहाहाहा.... दोनों हस पड़े.
साला मेरे परिवार की औरते एक से बढ़ कर एक थी.सामने दुकान आ चुकी थी.
"किरोड़ीलाल लहंगे वाले, उचित मूल्यों की दुकान
हम लोग अंदर घुस गए
"भाईसाहब कोई अच्छा लहंगा दिखाना इनके लिए" मामी मे माँ की ओर इशारा करते हुए कहा
सामने कोई 55,60 साल का अधेड बैठा था, चश्मा लगाए, सर उठा के एक नजर माँ को देखा फिर मामी को.
"आइये ऊपर मेरे साथ... Hehehehe.... किरोड़ीलाला के पास सभी तरह के लहंगे है आइये " किरोड़ीलाल उठ के सीढ़ी चढ़ता ऊपर चल दिया पीछे पीछे हम तीनो भी.
बूढ़े किरोड़ीलाल ने तरह तरह के लहंगे दिखाने शुरू कर दिए.
कुछ old फैशन थे.
"भाईसाब ये सब नहीं कुछ डीपनेक, स्लीवलेस दिखाइए, क्या पुराने ज़माने मा आइटम दिखा रहे है " मामी ने सभी लहंगो को हटाते हुए कहा.
"आरती यही ठीक थे ना " माँ जैसे शर्मा रही हो.
"अरे भाभी आप इतनी सुन्दर है, सुंदरता दिखनी भी तो चाहिए ना, फिर कहा मौका मिलता है ये सब पहनने का, गांव मे वापस जा कर वही घिसी पीती साड़ी पहननी है " मामी के तर्क मे दम था.
ऐसा मौका फिर नहीं मिलना था
"हाँ माँ... आजकल तो चलता है, फिर ऐसे कपडे पहनने को कहा मिलेंगे "
मैंने भी माँ का होशला बढ़ाया.
"ठीक है दिखाओ "
माँ की हामी सुननी थी की बूढ़े किरोड़ीलाल की बांन्छे खील गई, फटाफट एक दो नये स्टाइल के लहंगे दिखा दिए.
एक पिंक कलर का लहंगा सभी को पसंद आया,
"और कुछ मैडम " किरोड़ीलाल ने पूछा
"हाँ कुछ लेन देन के कपडे भी चाहिए " मामी ने कहा.
रमेश ओ रमेश " बूढ़े ने किसी को आवाज़ लगाई.
"जी सेठ जी "
मैडम जी को शादी मे लेन देन वाले कपड़े दिखा.
"मैडम आप इस के साथ अगली दुकान पर चलिए, वो भी हमारी ही दुकान है, मैं तब तक लहंगा फिटिंग के लिए नाप ले लेता हूँ." किरोड़ीलाल ने माँ को ऊपर ज़े नीचे घूरते हुए कहा.
"कक्क.... आप... आप लेंगे " माँ थोड़ा सकपका गई
मामी तब तक रमेश के साथ नीचे उतर गई थी,
"बूढ़े आदमी से क्या शर्म मैडम, वैसे भी बरसो से दुकान चला रहा हूँ किसी को शिकायत का मौका नहीं दिया, ऐसी फिटिंग करूंगा की आप याद रखेंगे, मेरे साथ आइये आप "
माँ थोड़ा सकपाकई लेकिन कुछ सोच के उठ के किरोड़ीलाल के पीछे चल दी.
मैं उल्लू के चरखे की तरह वही बैठा रहा, मुझे तो जैसे माँ अभी भी बच्चा ही समझती थी.
दुकान के एक हिस्से मे कपडे का पर्दा था, माँ को वही जाने का इशारा किया.
और खुद हाथ मे फीता ले कर किरोड़ीलाल भी अंदर को चल दिया.
मेरे दिमाग़ मे फिर से कीड़ा दौड़ने लगा, साला खुले मे भी तो ले सकता था, माँ ने भी कुछ नहीं बोला.
मुझे कुछ गड़बड़ की आशंका ने घेर लिया.
मैं अपनी जगह से उठ के थोड़ा पर्दे के पास जा बैठा, ताकि कुछ सुना जा सके.
"देखना पर ये लहंगा खूब जचेगा, ऐसी फिटिंग करूंगा की सभी मर्द आपको ही देखेंगे " शायद बूढ़ा मेरी माँ को घूर रहा था.
"पीछे घूम जाइये आप " अंदर से बूढ़े की आवाज़ आई
माँ कुछ बोल नहीं रही थी.
"इस्स्स.... तभी मुझे माँ की हलकी से सिस्कारी सुनाई दी.
"अरे मैडम ऐसे तो नाप बिगाड़ देंगी आप "
मुझे अंदर देखने की तलब सी मच उठी, मैंने आस पास नजर दौडाई पर्दे मे सांसे अंत मे एक छेद था, मैं दबे पाव वहाँ तक पंहुचा और अंदर झाँकने की कौशिश करने लगा.
मुझे कुछ कुछ दिख रहा था माँ की पीठ मेरी तरफ थी, बूढ़े का हाथ माँ के कंधो पर था, शायद बूढ़े के कुरदरे हाथ से माँ ने कंधो को भींच लिया था.
"आराम से मैडम जी, थोड़ा रिलैक्स हो जाइये, " किरोड़ी के हाथ माँ के कंधो पर फिसल रहे थे.
माँ ने बात मानते हुए अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया,
"इस्स्स.... आउच..." माँ के हलक से एक आहट सी निकली.
किरोड़ी ने माँ की कमर मे हाथ डाल फीता नाभि के नीचे से गोल घुमा के कस दिया था.
कितना नीचे रखना है मैडम जी "
इतना नीचे ठीक रहेगा " किरोड़ी ने माँ की नाभि के नीचे 4उंगल रख अपनी हथेली को माँ के पेट से चिपका दिया.
मैंने नोटिस किया माँ की सांसे तेज़ चलने लगी थी.
"हहह....... थी... ठीक रहेगा " माँ ने कहा.
"मेरी सलाह तो है आपका बदन गोरा है, पेट सपात है थोड़ा सा और नीचे पहनिये बहुत सुन्दर लगोगी " किरोड़ी की उंगली माँ की साड़ी के अंदर जा धसी.
शायद माँ की चुत की लकीर थोड़ी सी ही बाकि रह गई होंगी.
"ईईड्सस्स्स.... माँ की आंखे बंद थी, लगता था जैसे कोई मर्द छू भर दे तो बह जाती थी मेरी माँ
आप जैसी बदन की औरतों पर ये लहंगा जितना टाइट हो उतना अच्छा लगता है.
किरोड़ी ने माँ के पेट को थोड़ा सा अंदर को दबाया .
30 इंच कमर, किरोड़ी ने डायरी मे नोट कर लिया
"आअह्ह्ह... आप जैसा ठीक समझें " माँ सिर्फ इतना ही बोल सकी.
किरोड़ी ने फीता माँ के पेट से बाहर निकाल माँ की गांड पर हाथ घुमा के जमा दिया, मैंने साफ देखा इस बहाने से किरोड़ी मे माँ की गांड पर हाथ फेरते हुए आगे किया था.
माँ जोर जोर से सांसे ले रही थी, जैसे किसी जादू मे बंध गई हो.
"36 इंच... बोलते हुए करोड़ी मे डायरी मे नोट कर दिया.
" अब जरा सीना नाप ले " किरोड़ी ने माँ को पकड़ आगे की ओर घुमा दिया.
माँ का चेहरा पसीने से भीगा हुआ था आंखे बंद थी.
"ये बाल जरा हटा लीजिये, फीता उलझ जा रहा है "
माँ ने आज्ञा का पालन किया हाथ ऊपर कर बालो को पीछे बांध लिया, ऐसा करने से माँ के स्तन सम्पूर्ण उफान पर आ गए थे, गोल आकर साफ झलक रहा था.
किरोड़ी बूढ़े की आंखे और मुँह खुला रह गया था,
"ये साड़ी भी यहाँ से हटा लेगी तो नाप जरा अच्छा आएगा " किरोड़ी ने माँ के स्तनों की ओर इशारा करते हुए कहा.
माँ की आँखों मे वासना साफ दिख रही थी, जिसे किरोड़ी जैसा अनुभवी आदमी खूब पहचानता था,
ना जाने बूढ़े ने कितनी औरतों का सीना नापा होगा.
"कककक.... क्या..."
"ये पल्लू हटाइये नाप ले लू, सबसे जरुरी यही नाप है, इसका फिट होनाबहुत जरुरी है वरना लहंगा पहनना ही बेकार है."
माँ ने किरोड़ी की बात मानते हुए धीरे से पल्लू हटा दिया.
"उउउफड़.... क्या दूध थे मेरी माँ के बिल्कुल गोल, सुडोल ब्लाउज से बाहर को झाकते हुए.
"वाह मैडम जी क्या जिस्म पाया है आपने, किरोड़ी के लहंगो की शोभा आप जैसे औरते ही बढ़ाती है, वरना एक कपडे का क्या मूल्य "
किरोड़ी माँ की ताबड़तोड तारीफ कर रहा था.
जिसे माँ बखूबी enjoy कर रही थी, आखिर तारीफ किस औरत को बुरी लगती है.
किरोड़ी ने माँ की बगल मे हाथ डाल फिते को आगे की तरफ खींचा और जोर से माँ के स्तनों पर कस दिया
किरोड़ी की उंगलियां माँ के निप्पलो को छू रही थी, मुझे माँ के उभरे हुए निप्पल ब्लाउज के ऊपर से साफ दिख रहे थे.
"36 इंच, किरोड़ी ने डायरी मे नोट किया.
माँ के गोरे स्तनो पर पसीने की बून्द साफ दिख रही थी,
किरोड़ी ने एक बार फिर से फीता ढीला कर, कस दिया और ऊपर नीचे कर अच्छे से नाप लिया,
"हहहहमममम.... ठीक है.
"आप ब्रा नहीं पहनती अंदर "
"कक्क... क्या...?" किरोड़ी के सवाल से माँ को जैसे झटका सा लगा..
"न्नन्न.... नहीं... नहीं पहनती" माँ ने सीधा और सच्चा जवाब दिया.
किरोड़ी कुछ सोचने लगा और फिते के एक हिस्से को गर्दन से लगा लम्बाई मे एक स्तन के ऊपर टिकाते हुए स्तन की जड़ तक आ पंहुचा.
कप साइज चेक कर रहा था मैडम जी hehehehe.... "
किरोड़ी ने ऐसा ही दूसरे स्तन के साथ भी किया.
"देखिये मैडम जी आपके स्तन चोली मे इतना दिखेंगे " किरोड़ी ने माँ के निप्पल के ऊपर दो ऊँगली को रखते हुए बताया.
"ठ... ठ... ठीक है " माँ जा जिस्म तो जैसे कांप रहा था.
किरोड़ी के बूढ़े झूरियो वाले हाथ माँ के स्तन को रगड़ के आगे बढ़ जा रहे थे
"लेकिन एक समस्या है मैडम "
"कक्क.. क्या?"
"आप ब्रा नहीं पहनती, तो चोली मे कहीं लटक ना जाये इसलिए अंदर से नाप लेना पड़ेगा.
हरामी बूढ़ा किरोड़ी, माँ को बरगला रहा था.
"आप को जैसे नाप लेना है ले लीजिये, " माँ तो हवास मे डूबी मालूम पड़ती थी.
"ब्लाउज खोल दीजिये फिर "
"कककक... क्या.... पूरा "
"हाँ तभी अच्छे से हो पायेगा मैडम जी " किरोड़ी ने दाँत निपोर दिए.
माँ ने पूरी बेशर्मी के साथ बिना हिचक के अपने ब्लाउज के एक एक बटन खोलती चली गई.
सामने किरोड़ी मुँह खोले माँ की हिम्मत और उसके जिस्म को सिर्फ देखता रहा..
दो बड़े बड़े सुडोल आकर के चुचे किरोड़ी के सामने मुँह बाये खड़े थे.
पसीने से भीगे एक तम तने हुए निप्पल.
एक बार को किरोड़ी का हलक भी सुख गया,
"उउउफ्फ्फ.... मैडम जी इनमे तो जरा भी लचक नहीं है " किरोड़ी के हाथ आगे बड़े जैसे पकड़ ही लेंगे लेकिन आधे रास्ते me काँपने लगे.
"हाथ से ही नाप लेंगे क्या भाईसाहब " माँ ने चुटकीले अंदाज़ मे कहा.. मैं खुद माँ की बेशर्मी पर दंग रह गया था.
"नाप तो मैंने आँखों से ही लिया था जब आप दुकान पे आई थी, अभी तो परफेक्ट नाप मिलेगा " कहते हुए किरोड़ी मे माँ की बगल मे हाथ डलते हुए फिते को पीठ से घुमा स्तन पर जकड लिया.
जकड क्या लिया माँ के स्तन को दबोच सा लिया.
"आआआहहहह..... इस्स्स.... किरोड़ी जी ऐसे ही नाप लेते है क्या सभी का? माँ ने आह भरते हुए पूछा.
"ऐसी किस्मत कहा मैडम जी बरसो बाद आप जैसी तबियत की औरत का नाप ले रहा हूँ " किरोड़ी ने नाप लेने के बहाने माँ के स्तनों को अच्छे से दबोच लिया था.. साला हरामी हथेली मे भर भर के देख रहा था.
माँ के दूध उसकी हथेली मे समा ही कहा रहे थे, उसके हाथो का खुर्दर्पन माँ को गरम कर रहा था.
जरा हाथ ऊपर कर सर के पीछे रख लीजिये ना, तो लम्बाई भी अच्छे से नाप लू.
माँ ने बिल्कुल बात मानते हुए हाथ ऊपर उठा सर के पीछे रख लिए..
उफ्फ्फ्फ़...... मैं क्या बताऊ अब
मेरी रंडी माँ एक बूढ़े के सामने अपनी साफ पसीने से भीगी कांख दिखा रही थी..
हाथ ऊपर उठा लेने से माँ के स्तन ऊपर को उठ गए, पसीने की मादक गंध उस कमरे मे फैलती चली गई जिसकी गंध मुझ तक भी आ रही थी, जो की मेरा लंड खड़ा करने के लिए काफ़ी थी.
"ससससन्नन्नणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़...... उम्म्म्म.... आअह्ह्ह...." किरोड़ी ने एक जोरदार सांस खिंच ली.
माँ की कांख बिल्कुल साफ थी, पसीने से भीगी चमक रही थी.
बूढ़े किरोड़ी की हालात ख़राब सी लग रही थी मुझे, उसके हाथ कांप रहे थे, फीता छूट के जमीन पर गिर गया था.
"मममम... मैडम आप जैसी तबियत की मालकिन मैंने पहली बार देखी है "
माँ जवाब मे सिर्फ मुस्कुरा दी " नाप नहीं लेंगे " माँ ने किरोड़ी को उकसा दिया.
"जरूर लेंगे ऐसा नाप लेंगे ऐसी फिटिंग करेंगे की याद रखेगी आप किरोड़ी को "
माँ के कील की तरह तने हुए निप्पल किरोड़ी की दो ऊँगली मे कैद हो गए
"आअह्ह्ह.. उफ्फ्फ्फ़..... इसस्स... ये क्या तरीका है नाप लेने का?"
"ऐसे अच्छे से नाप ले पाते है " किरोड़ी का दूसरा हाथ भी माँ के स्तन पर जम गया.
मजाल की माँ ने हाथ नीचे किये हो, माँ ने आंख बंद कर गर्दन ऊपर कर ली.
किरडी के हाथ माँ के स्तनों का जायजा लेने लगे, धीरे से दबा कर चेक कर रहा था.
"काफ़ी वजन है मैडम इनमे तो " किरोड़ी ने माँ के चुचो को उठा कर एक दम से छोड़ दिया.
धच करते हुए, माँ के स्तन थाल्थला गए, जैसे कोई पानी भरा गुब्बारा था.
दो तीन बार किरोड़ी ने यही किया, जी भर के माँ के उछलते स्तन देख किरोड़ी के मुँह मे पानी आने लगा.
किरोड़ी का हाथ माँ के स्तन नहीं हमारे घर की इज़्ज़त को उछाल रहा था हरामखोर साला बूढा.
किरोड़ी के हाथो का दबाव माँ के स्तन पर बढ़ता गया,
आअह्ह्ह..... इस्स्स...... आ सिसक रही थी उसे फ़िक्र ही नहीं थी की बाहर उसका बेटा भी बैठा है, वो बस हवस के सागर मे उतर गई थी.
किरोड़ी से रहा नहीं गया, उसकी गीली जबान लपलापति माँ के कांख मे घुस गई
"आउच.... उउउफ.... माँ एक दम से सिहर उठी " माँ के साथ साथ मेरा भी बुरा हाल था.
किरोड़ी की जीभ लापलापने लगी, पसीने से भरी माँ की कांख को चाटने लगा लप लप लपात....
माँ बस उसे देखे जा रहु थी, तड़प रही थी.
किरोड़ी के हाथ माँ के स्तन को भींच रहे थे कस कस के जैसे ढीला ही कर देगा..
किरोड़ी ने बारी बारी माँ की दोनों कांख को चाट के चमका दिया था.
अब बारी माँ के स्तन की थी, जिसके निप्पल किरोड़ी रगड़ रहा था.
"ऊऊऊ...... आअह्ह्हह्म्म्मम्मनाही....." किरोड़ी ने माँ के खड़े निप्पल को मुँह मे भर चूस लिया.
माँ के पैर कांप रहे थे, पीछे टेबल पर जा टिकी, टेबल ना होती तो पक्का गिर पडती.
लप लप... लप.. केता किरोड़ी माँ कर निप्पल को चुभला रहा था, कभी चाट रहा था.
"इस्स्स.... माँ सिर्फ उसे देख रही थी, कैसे वो माँ के स्तनों के साथ खेल रहा है.
माँ से भी अब बर्दाश्त नहीं हो रहा था, उसने हाथ नीचे कर होने दोनों चुचो को आपस मे भींच लिया, दोनों निप्पल पास आ गए थे.
किरोड़ी ने इशारा समझ एक साथ दोनों निप्पलो को मुँह मे भर लिया, गुलप... चाट... चाट.... की आवाज़ से माँ के निप्पल को मुँह मे भर बाहर को खिंचता फिर छोड़ देता.
मेरा बुरा हाल था बाहर, मैं अपने लंड को मसलने से नहीं रोक पाया.
अंदर माँ अपने दोनों स्तनों के बीच किरोड़ी के मुँह को फ़साये अपने चुचो को हिला रही थी, थूक और पसीने से किरोड़ी बूढ़े का मुँह सन गया था.
किसी कुत्ते की तरह जीभ निकाल निकाल माँ के स्तनों के बीच चाट रहा रहा.
माँ तो बस पागल हुए जा रही थी, पूरी ताकत से अपने चुचो के बीच किरोड़ी को दबा रखा था.
"आअह्ह्हम.... मैडम... जी... उफ्फ्फ.... मैं गया " किरोड़ी हांफ रहा था,
बूढ़ा कब तक गर्मी झेल पाता, उसके बस का नहीं था ये सब, उसने गलत औरत को छेड़ दिया था.
"आअह्ह्ह.... इस्स्स... करता किरोड़ी का बदन काँपने लगा, उसके घुटने मुड़ते चले गए, उसकी जीभ माँ के स्तनों से सरकती नाभि तक आई फिर अलग हो गई.
सामने किरोड़ी बूढ़ा घुटनो के बल बैठा हांफ रहा था, मैंने उसकी जांघो के बीच देखा गिला हुआ पड़ा था, मतलब साला हरामी ने पानी छोड़ दिया था.
माँ के चेहरे पे गुस्सा साफ दिख रहा था.
"भाभी.... भाभी.....ठक... ठक... की आवाज़ ऊपर की ओर आने लगी.
मामी ऊपर आ रही थी मैं भाग के अपनी कुर्सी पर जा बैठा.
"भाभी कहा गई अमित " मामी पीछे आ चुकी थी उनके हाथ मे एक थैला था.
"यहाँ हूँ आरती वो नाप दे रही थी किरोड़ी जी को " मैंने देखा माँ का मूड उखड़ा हुआ था.. होता भी क्यों ना साला बूढ़ा आग लगा कर फरार हो गया था.
"खो... खो.... हम्मफ़्फ़्फ़.... हुम्म्मफ़्फ़्फ़..." तभी किरोड़ी भी खासता हांफता बाहर आ गया.
"परसो सुबह आप लेहंगा ले जाइएगा मैडम " किरोड़ी ने माँ की ओर देखते हुए कहा.
लेकिन माँ के चेहरे पे अभी भी गुस्सा था.
"भाभी आप ने ले लिए कपडे " माँ ने किरोड़ी को कोई जवाब नहीं दिया.
बस एक नजर गुस्से से देख लिया,
उसके बाद हमने पैमेंट की और बाहर को चल दिए.
अब्दुल अपनी जगह ही खड़ा था, हम सब बैठ गए.
मैं माँ के चेहरे पे अधूरापन साफ देख सकता था, उसकी आखिरी उम्मीद सिर्फ अब्दुल ही था, जिस से वो आज रात मिलने वाली थी.
मुझे अब आज रात का कार्यक्रम देखने का इंतेज़ाम करना था.
"अमित भाई यहाँ गाड़ी चलाने का पैसा मैं अलग से लूंगा, धंधे मे दोस्ती नहीं करता मैं " अब्दुल ने मुझसे कहा.
"हाँ मादरचोद मेरी माँ भी चोद और पैसा भी मुझ से ही ले " मैं मन ही मन बड़बड़या.
"अरे अब्दुल जी आप क्यों चिंता करते है मैं दे दूंगी ना आपको " मैं कुछ कहता की माँ ने पीछे से जवाब दिया.
माँ और अब्दुल की निगाहेँ आपस मे मिल गई थी, और एक मुस्कान पास हुई.
इस मुस्कान का मतलब मैं बहुत अच्छे से समझता था.
अंधेरा हो गया था, मैं खिड़की से बाहर देखने लगा और आज रात की योजना बनाने लगा.
क्या अमित की माँ रेशमा आज अपनी प्यास बुझा लेगी,?
देखते है.
Contd....
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