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मेरी माँ रेशमा -7

 मेरी माँ रेशमा, अपडेट -7  Picsart-25-02-14-17-49-16-228


कोई एक घंटे मे हम लोग घर पहुंच गए थे, माँ आते ही बाथरूम चली गई थी, कारण मैं जानता ही था.

मैंने देखा बहुत से मेहमान आ गए थे, कुछ को मैन जानता था तो कुछ को नहीं.

जिन्हे जानता था उनसे बैठबके हाल चाल जानने लगा. काफ़ी गहमा गहमी हो गई थी घर मैं.

माँ, मौसी मामी और नवीन व्यवस्था मे लगे थे, साथ ही मेरे दोस्त आदिल, प्रवीण और मोहित भी उनका हाथ बटा रहे थे.

चलो साले चुदाई के अलावा भी कोई काम करते है.

मैं अपने दूर के काका बाबा के पास बैठा बतिया रहा था, दिन भर से आराम का मौका नहीं मिला था तो सिगरेट की तलब सी लगने लगी.

मैं भी कभी कभी सिगरेट पी लिया करता था,

रात के 8 बज गए थे, सभी लोग इधर उधर लगे थे, हलवाई खाना बना रहा था,

मुझे आज रात के लिए प्लान भी करना था, अब्दुल पे बाजार रखनी थी.

साला कहीं दिख तो नहीं रहा था अभी तक, शायद जा कर सो गया होगा हरामी.

खेर मैंने इधर उधर नजर दौड़ा कर ऊपर छत की ओर निकल लिया.

अंधेरा हो गया था, कोई छत पर नहीं था, मेरे लिए बिल्कुल सही वक़्त था, मैंने सिगरेट निकाल ली और माँ के बारे मे सोचने लगा.

अभी एक दो कस लिए ही थे की मुझे कुछ फुसफुसाहत की आवाज़ सी आई.

मेरे कान एक दम खड़े हो गए, मैंने गौर किया आवाज़ पानी की टंकी के पीछे से आ रही थी.

मैं दबे पाव टंकी के पास गया, हल्का सा आगे को झाँक कर देखा, प्रवीण और मोहित थे.

मैंने सोचा साले यहाँ मजे कर रहे है, ज्वाइन कर लेता हूँ, मैंने जैसे ही कदम आगे बढ़ाये

"साले तूने तो मौसी के मजे ले  लिए " प्रवीण ने मोहित के सर पर मारते हुए कहा.

" मैंने अकेले लिए क्या तूने भी तो मौसी के दूध दबाये थे "मोहित ने कहा.

मेरे तो पाव वही जाम हो गए, साला ये माजरा क्या है, इन लोगो ने मेरी मौसी के दूध कब दबा दिए?

"यार अमित के घर मे एक से बढ़ कर एक माल है, साली इसकी माँ चुत मरवाने के लिए तैयार है, इसकी मामी सुबह अपने चुचे दिखा रही थी, और अभी शाम को इसकी मौसी हम दोनों से अपने चुचे मसलावा गई "

इन दोनों की बात सुन मेरे तो होश ही उड़ गए, ये हो क्या रहा है मेरे साथ.

मैं सांस रोक के वही दुबक गया, उनकी बाते सुनने लगा, सिगरेट मैंने बुझा दी थी.

मैंने ध्यान दिया हरामी मेरे दोस्त दारू का अद्धा ले कर बैठे थे, जरूर नवीन ने इंतेज़ाम किया होगा.

साले मेरे दोनों दोस्त प्रवीण और मोहित को एक दूसरे का किस्सा सुना रहे थे.

शाम 4बजे के बाद, जब हम निकल गए थे.

टैंट वाला आ गया था जिसे मामा, नवीन और मेरे दोस्तों ने उतरवा दिया था.

नवीन और आदिल बाइक से मार्किट चके गए थे.

"यार ये आंगन मे पानी मार देते है, धूल हट जाएगी, प्रवीण बेटा वो पंप वाला स्विच तो बड़ा जरा पानी मार दू " मामा ने पास खड़े प्रवीण से कहा.

प्रवीण ने स्विच दबाया जो आंगन मे ही मौजूद था

"चालू नहीं किया क्या " मामा बाहर से ही चिल्लाये.

"कर दिया मामा " प्रवीण बोला.

"ये पानी क्यों नहीं आ रहा कोई गड़बड़ हो गई क्या?" मामा ने चिंता जताई.

और खुद जा कर एक दो बार स्विच दबाया, कोई फायदा नहीं हुआ, फिर आस पास जे स्विच दबाये.

खट पिट... खट... पिट...

"मामा रहने दो कोई फायदा नहीं, लाइट हूँ नहीं है " मोहित ने मीटर को देख के कहा 

"अरे यार शाम तक ओर भी मेहमान आ जायेंगे फिर टाइम नहीं मिलेगा, ये धूल मिट्टी सब अंदर आ जाएगी.

मामा की चिंता जायज थी

"कहीं और पानी नहीं है क्या, हम लोग के आते है "

"रहने दो यार तुम लोग फालतू मेहनत करोगे थक जाओगे " मामा ने कहा.

"क्या मामा अमित और हम कोई अलग थोड़ी है, बोलो कहा से लाना है," मोहित प्रवीण ने एक साथ कहा.

"वो छत पर रिज़र्व टंकी है उसमे से बाल्टी भर भर के लाना पड़ेगा "

"कककक... क्या... ऊपर छत से बाल्टी भर भर के " मोहित और प्रवीण की हवा निकल गई थी

"कह रहा था ना मेहनत लगेगी " मामा ने गहरी सांस लेते हुए कहा.

"क्या मामा बच्चा समझा है, क्या हमने गांव का खूब दूध दही पिया है अभी 15 मिनिट मे पानी ला कर पटक देंगे सारा."

"चल प्रवीण"

"चल मोहित "

"अबे साले ये तो फेकामफेंक मे फस गए आज, क्या जरूरत थू तुझे हिशियारी दिखाने की "

परवीण मोहित को कोष रहा था, दोनों पहली मंजिल पर पहुंच गए थे, दोनों के हाथ मे एक एक बाल्टी थी.

दोनों के चेहरे पे घोर निराशा, मज़बूरी दिख रही थी.

मरते क्या ना करते दोनों चल पड़े ऊपर छत पर, छत का दरवाजा खुला हुआ था.

दोनों बेधड़क छत पर आ गए थे, वही सामने कोने मे एक 1000ltr की काली टंकी थी.

दोनों मायूस से जैसे ही टंकी के पास पहुचे दोनों के होश फकता हो गए.

सामने मेरी मौसी सिर्फ ब्रा पेटीकोट मे नीचे झुकी टंकी से बाल्टी मे पानी भर रही थी.

दोनों की परछाई मौसी पर पड़ी, मौसी ने सर उठा के सामने देखा.

"तततत..... तुम लोग " मौसी थोड़ा सकपका गई, लेकिन खुद को ढकने की कोई कोशिश नहीं की..

लेकिन मोहित और प्रवीण की हालात ख़राब थी, मुँह खुले हुए थे, कारण था मौसी के स्तन ब्लैक ब्रा से साफ साफ बाहर को झलक रहे थे,

झलक क्या रहे थे सम्पूर्ण नंगे ही थे. तरबूझ की तरह बड़े, सुडोल, एक दम गोल कसे हुए.

मंगलसूत्र दोनों स्तनों के बीच झूल रहा था, माथे पर लाल सुर्ख बिंदी मौसी के कामुक चेहरे की शोभा बड़ा रही थी.. हाथ मे खनाकती लाल चूडियो ने प्रवीण और मोहित पे जादू सा कर दिया था. Picsart-25-02-15-11-51-03-420

ऐसा दृश्य भगवान किस्मत वालो के भाग्य मे ही लिखता है.

"वो... वो... वो मौसी, पपानी... पानी लेने आये थे " मोहित ने जैसे तैसे कहा.

"तो ले लो ना पानी या ऐसे ही घूरते रहोगे " मौसी बिल्कुल सहज़ हो गई थी

वैसे ही उकडू बैठी अपनी साड़ी को साबुन लगा रही थी.

"वो नीचे पानी खत्म हो गया था, मैं नहा तो ली थी लेकिन ये साड़ी और ये सब कपडे बच गए थे,

दोनों की नजर साड़ी के पास पड़ी चड्डी पर पड़ी, 

काली कलर की छोटी सी चड्डी थी, उसे देख के लगता नहीं था वो मौसी की बड़ी गांड को ढक पाती होंगी.

प्रवीण और मोहित की तो सांसे अभी तक टंगी हुई थी,

"पानी भी भरोगे या, ऐसे ही लार टपका कर बाल्टी भर लोगे "

मौसी के मज़ाक से दोनों होश मे आये.

मौसी के बिल्कुल सहज़ पन से थोड़ा आराम था, मोहित ने झुक कर मौसी के हाथ से पाइप ले लिए और बाल्टी भरने लगा.

मौसी साड़ी मे साबुन लगा रही थी, जिस वजह से उनके मोटे चुचे हिल हिल के आपस मे टकरा रहे थे.

इस टकराहत का असर दोनों की पैंट मे साफ दिख रहा था.

"वो... वो मौसी जी एक दम से आपको ऐसे देखा तो घबरा गए थे " प्रवीण ने कहा.

"क्यों कभी कोई औरत नहीं देखी क्या कभी " मौसी ने वैसे ही नीचे मुँह कर बोला.

स्तन हिले जा रहे थे, आपस मे टकरा रहे थे, चूडियो की आवाज़ एक संगीत पैदा कर रही थी.

"आप जैसी नहीं देखी " मोहित ने दाँत निपोर के कहा

"क्यों क्या है मुझमे ऐसा "

मौसी ने इस बार सर उठाया, उनकी नजर मोहित और प्रवीण के पैंट पर पड़ी नहा उभार सा बन गया था.

क्या बोलते क्या है मौसी मे " ये... ये... आपके " प्रवीण ने हिम्मत जुटाई

"क्या मेरे क्या?"

"ये.... मोहित ने ऊँगली से मौसी के चुचो की तरफ इशारा कर कहा

"हट बदमाश ये तो मेरे चुचे है, कहा मुझ बूढ़ी का मज़ाक उड़ा रहे हो.

बाल्टी भर चुकी थी.

"मैं बाल्टी का पानी नीचे डाल के आता हूँ , तू तब तक दूसरी भर " मोहित ने जल्दी से बाल्टी उठाई और ऐसे भागा जैसे पर लगे हो, आखिर जल्दी भी तो आना था.

"नहीं मौसी कोई नासमझ ही होगा जो आपको बूढ़ी कहेगा, मैंने तो आज तक ऐसे नहीं देखे " प्रवीण ने मौसी के चुचो को घूरते हुए कहा.

मौसी की नजर भी प्रवीण के तम्बू बने पैंट पर थी.

"क्या नहीं देखे?" मौसी ने अपने लाला होंठो को दबाते हुए कहा.

"च... च... चुचे " प्रवीण का हलक सुख गया था मौसी की बेबाकी से.

"क्यों दिन मे तो मामी के देख रहे थे, तब नही मन भरा था"

"वो तो... वो... तो... " प्रवीण के पास जवाब नहीं था.

"खूब जानती हूँ तुम जैसे लड़को को, बस चने की झाड़ पर चढ़ाना आता है " मौसी ने अपनी पैंटी हाथ ले ले कर उसे बाल्टी ने डाल के धो दिया.

"आप मौका तो दो चढ़ गई तो फिर उतरने का नाम नहीं लोगी "

प्रवीन ने हिम्मत दिखाते हुए मौसी के सामने अपने लंड को मसल दिया.

"हट बदमाश.... पता नहीं कहा चढ़ायेगा, ये ले सूखा दे इसे वहाँ " मौसी ने अपनी काली कच्छी प्रवीण की तरफ बड़ा दी

प्रवीण ने काँपते हाथो से पैंटी पकड़ ली, और उसे दोनों हाथो से खोल दिया.

"इतती छोटी मे कैसे आ जाती होगी "

प्रवीण ने मौसी की गांड पर नजर फिराते हुए कहा जो की उकडू बैठने की वजह से पूरी बाहर को निकली अपनी कामुकता दिखा रही थी.

"हम्मफ़्फ़्फ़... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... डाल आया " तभी मोहित भागता हुआ सा पंहुचा साला 2 मिनट मे ही आ गया था वापस.

"जा अब ये बाल्टी तू ले के जा " मोहित ने प्रवीण को कहा.

"प्रवीण ने मौसी की कच्छी मोहित के थमा दी, ले इसे सूखा दे " प्रवीण मारे हुए मन से पानी की बाल्टी ले कर चल पड़ा.

"अरे वाह मौसी इतनी छोटी चड्डी, आपकी है"? मोहित ने भी वही सवाल दागा

"क्यों क्या खराबी है इसमें मेरी ही तो है " मौसी एक दम सीधी बैठ गई और कमर ले हाथ रख दिया.

मैसी के स्तन सम्पूर्ण उजागर थे, ब्रा भीग गई थी, जिसमे से उनके कड़क निप्पल ब्रा फाड़ के आने को आतुर हो रहे थे.

पेट पूरा भीगा हुआ था, पेटीकोट भी लगभग भीगा सा ही था.

"गड़ब..... मतलब आपकी गगग.... गा.... गांड . तो बहुत बड़ी है कैसे आती होगी "

"छि... ये कैसी बात कर रहे हो " मौसी ने वैसे ही कमर पर हाथ टिकाये कहा.

"अब और क्या कहते है उसे, गांड को गांड ही कहते है ना "

"हट बदमाश बड़ा आया, सिर्फ बाते करा लो आजकल के लड़को से, जा जा कर सूखा दे इसे "

मोहित ने छत पे बंधे तार पर मौसी की चड्डी को सूखा दिया.


"क्या कह रहा था तू, क्या बड़ा है मेरा " मौसी अपनी जगह से थोड़ा उठ के आगे सरक आई

"वो... आपकी गांड इतनी बड़ी है, वो चड्डी कैसे आ जाती होंगी " मोहित ने भी बेशर्मो के तरह बोल दिया

"कभी पहनुंगी तो तुझे बुला लुंगी देख लेना कैसे आ जाती है" मौसी मुस्कुरा दी और साड़ी को पानी से भरी बाल्टी मे डाल दिया.

तभी प्रवीण भी आ चूका था," जा अब तेरी बारी."

मोहित मन मार के भागता सा गया, वापस भी आना था ना जल्दी.

दोनों की भाग दौड़ चालू थी, ऐसा मौका कोई छोड़ना भी नहीं चाहता था, नीचे मामा भी थे जो काम कर रहे थे.

"थक गए होंगे " प्रवीण को हंफ्ता देख मौसी ने पूछा.

"अभी कहा मौसी अभी तो खूब पानी निकाल सकता हूँ मैं " 

"अच्छा बड़ा दम है, बताओ तुम दोनों मुस्तडो के रहते मुझे खुद से पानी निकलना पड़ रहा है " मौसी शायद गरम हो गई थी उनकी बातो से साफ मालूम पड़ रहा था,

मौसी जगह से उठी और बाल्टी उठा के टंकी मे डालने लगी,

मौसी का गद्दाराया लगभग नंगा बदन प्रवीण के सामने था, पेटीकोट पूरी तरह से गिला हो चूका था, इतना की जांघो से चिपक कर गांड और चुत का तुकोना हिस्सा बयान जर रहा था.

प्रवीण की हालात ख़राब थी ऐसा दृश्य देख कर, भरे जिस्म की मालिकन बिल्कुल भीगी सिर्फ एक छोटी सी काली ब्रा और पेटीकोट के उसके सामने खड़ी थी.

"आप रुकिए ना मेरे होते हुए आप खुद से पानी निकालेंगी तो दिक्कार है हमारी जवानी पर " प्रवीण ने मौसी के हाथ से बाल्टी ले ली और टंकी से पानी निकाल उनके सामने रख दिया.

मौसी ने अपनी साड़ी बाल्टी मे डुबो दी, इस उपक्रम मे पूरी झुक गई थी,

प्रवीण का लंड तो जैसे फटा जा रहा था, सामने मौसी के बड़े दूध बिल्कुल बाहर को आ पड़े थे.

ब्रा का होने का अब कोई मतलब नहीं था साड़ी को डुबो के निकालने से मौसी का पूरा जिस्म हिल रहा था.

थोड़ी ही देर मे मौसी सीधी हुई, और साड़ी प्रवीण की ओर बड़ा दी.

जा इसे सूखा दे.

प्रवीण की नजरें तो मौसी के जिस्म को घूर रही थी.

"अरे पकड़ भी खा जायेगा क्या "

"वो... वक.. हाँ... हाँ... नहीं.. नहीं तो." प्रवीण हड़बड़ा गया.

मौसी मंद मंद मुस्कुरा रही थी.

प्रवीण ने झट से साड़ी ली और तार पर टांग दी.

"और कुछ मौसी?" मौसी वापस उकडू जगह पाए बैठ गई थी.

"हाँ जर इसे खोल, गीली हो गई है इसे भी धो दू " मौसी ने अपनी ब्रा की ओर इशारा करते हुए कहा.

प्रवीण का तो कलेजा ही बैठ गया था, दिल धाड़ धाड़ जर बजने लगा.

कोई औरत खुद उसकी ब्रा खोलने को बोल रही थी.

"यही वक़्त है बेटा प्रवीण, समय हर इंसान को मर्द बनने का मौका देता है, ये वक़्त वही है " प्रवीण दौड़ता हूँ मौसी के पीछे गया.. उफ्फ्फफ्फ्फ़..... क्या गजब का जिस्म था मौसी का, एक दम गोरा बेदाग, पुरे पीठ पर सिर्फ काली ब्रा की एक पतली सी पट्टी.

प्रवीण ने काँपते हाथो से मौसी की पीठ को छू लिया.

"इस्स्स्स...... मौसी के हलक से एक कामुक सिस्कारी छूट पड़ी

मौसी गरम हो गई थी, हवास ने डूबी मालूम होती थी, ऐसे जवान लड़के का स्पर्श किसी भी प्यासी औरत को हवास की आग मे झोंक ही देता.

"टक... टक.... की आवाज़ के साथ प्रवीण ने मौसी की ब्रा के हुक खोल दिए.

मौसी ने ब्रा को आगे से पकड़ अपने जिस्म से अलग कर दिया, जैसे कोई कबूतर आज़ाद हो गया हो.

ब्रा मे अभी तक दबे हुए स्तन अपने पुरे सबाब पर थे,

प्रवीन आगे पंहुचा ही था की मौसी ने अपने स्तनों को घुटनो के पूछे छुपा लिया था. Picsart-25-02-15-13-24-14-434

स्तन उभर के बाहर आ गए थे, एक दम भीगे हुए गोल, सुडोल

पेटीकोट जाँघ तक चढ़ चूका था, दोनों जांघो के बीच सिर्फ एक बाल्टी थी वरना आज स्वर्ग के दर्शन भी हो जाने थे .

सामने मा दृश्य देख प्रवीण का लंड फटने को आ गया था, उसका हलक सुख गया था.

तभी भागता हुआ मोहित भी छत पर आ गया था.

"भाई लाइट आ गई अब आराम से....... मोहित के शब्द वही अटक गए, मुँह खुला रह गया था.

सामने मेरी मौसी, प्यासी हवास मे भरी मौसी झुकी हुई अपनी ब्रा धूल रही थी,घुटने स्तन से हट गए थे.

तभी मौसी ने साबुन से सने हाथो से अपने स्तनों को पकड़ के उठा दिया, साबुन से नहा गए थे दोनों तरबूझ. 35946081

दोनों लड़को के सामने मेरी मौसी के शानदार, सुडोल स्तन झूल रहे थे. मौसी अपने स्तनों से खेल रही थी, जवान लड़को को उकसा रही थी.

जैसे कोई निमंत्रण दे रही हो, मौसी ने अपने दोनों स्तनों को मसलते हुए एक नजर मोहित प्रवीण को देखा फिर नजरें झुका ली. 42002351

मोहित और प्रवीण के लंड बाहर निकलने को मचल रहे थे.

आखिर जवान लड़के कब तक रुकते, आव देखा ना ताव

दोनों ने मौसी के चुचो को जा पकड़ा, दोनों के एक एक हाथ, मौसी के तरबूज जैसे चुचो पर जा टिके.

आअह्ह्हह्म...... इस्स्स.... ये क्या कर रहे हो तुम दोनों... उफ्फ्फ.... छोडो ये क्या बदतमीज़ी है.

दोनों होश मे नहीं थे, मौसी के चुचो को मसले जा रहे थे, रगड़ रहे थे

"वही मौसी जो आप चाहती हो " प्रवीण नर इतना बोल मौसी के निप्पल को मुह  मे भर लिया.

निप्पल क्या थे तरबूज पर एक छोटा सा अंगूर रखा हुआ था, प्रवीण मौसी के अंगूर रुपी निप्पल को मुँह मे ले कर चुभलाने लगा..

"मैंने ऐसा कब कहा था " मौसी ने प्रवीण के सर पर हाथ रख उसे अपने स्तनों पर भींच लिया.

"कुछ बाते कहीं नहीं जाती मौसी जी " मोहित भी अपनी इच्छा को रोक ना सका उसने भी मौसी के स्तन पर कब्ज़ा जमा लिया

लप लप करता मौसी के विशाल चूची को चाटने लगा,

"आअह्ह्ह..... उउउउफ्फ्फ्फ़...... धीरे नाशपिटो" मौसी के हाथ दोनों के सर पर घूम रहे थे.

मेरे दोनों दोस्त मौसी के चुचो को चाट रहे थे खा रहे थे, निप्पल को निचोड़ रहे थे. m-ldpwiqacxt-E-Ai-mh-8-HAj-l73c-F9-Xi6v-8174471b

मेरी मौसी आनंद के परम सागर मे डुबकी लगा रही थी.

प्रवीण और मोहित तो जैसे जन्मो के प्यासे थे " मौसी जी ऐसे दूध तो मैंने आजतक नहीं देखे, क्या मिठास है इसमें "

मोहित ने बड़ा सा मुँह खोल मौसी के स्तन को मुँह मे भरने की कौशिश की, जितना हो सकता था उतना मुँह मे भर लिया.

"आआआहहहहह.... मौसी छटपटा रही थी, दो दो जवान लफके मौसी के स्तन का मर्दन कर रहे थे, उसे भींच रहे थे.

मौसी जमीन पर पसर गई थी, दोनों के हाथ मौसी की भीगी जांघो पर फिसलने लगे थे.

मौसी के भीगे पेटीकोट से चुत का तिकोना हिस्सा साफ झलक रहा था.

बस मोहित और प्रवीण की मजिल वही थी. दोनों के हाथो ने एक साथ उस मुकाम को पाया.

"आआआबबबब..... नाहीईईक..... उउउफ्फ्फ्फ़..... करती मौसी ने दोनों के सर को पकड़ अपने चुचो पर भींच लिया, बिल्कुल दबा के रख दिया

शायद दोनों को सांस लेने मे भी परेशानी हो रही हो, लेकिन मजाल की सर हटा ले.

दोनों की जबान लप लप करती मौसी के चुचो को कस कस के चाट रही थी, चुभला रहु थी.

दोनों के हाथ मौसी की जांघो के भींच उस तुकोने हिस्से को रगड़ रहे थे जिसे आम तौर लार चुत कहते है.

"उउउफ्फ्फ.... मौसी... क्या गरम चुत है आपकी " प्रवीण आखिर तारीफ कर उठा.

मौसी के स्तन इतने बड़े थे की दोनों की एक हथेली मे समा ही नहीं रहे थे.

"आअह्ह्ह.... उफ्फ्फ.... पुच पूछम्म. लप... लापक...." मौसी कराह रही थी, छत पे एक अजीब सी आवाज़ गूंज रहु थी जिसमे चूड़ी की खनक शामिल थी.

"सारा आज ही चूस जाओगे क्या आआहहहह......" मौसी ने हवास भरी आवाज़ मे कहा

"अभी चूसा ही क्या है मौसी जी " मोहित ने निप्पल को दांतो से काट खाया.

"आअह्ह्हम्म्मउचम... आउचम्मम्बादमाश " और क्या चूसेगा अब?

" अभी तो बहुत कुछ है मौसी, " मोहित ने अपनी एक ऊँगली मौसी की जांघो के बीच गदा दी.

मौसी उत्तेजना मे गांड को उठा के वापस जमीन पर आ गई "आउच.... आराम से नाशपिटो कहीं भागी नहीं जा रही हूँ. उउउफ्फ्फ... आअह्ह्ह...

मौसी के स्तन थूक और लार से भीगे चमक रहे थे.

"मोहित प्रवीण कहा रह गए तुम लोग, पानी लाओ जल्दी लाइट चली गई वापस "

नीचे से मामा की जोरदार आवाज़ ने हमें चौंका दिया, मामा के कदम ऊपर की ओर ही बढ़ रहे थे.

"आया मामा.... " मोहित चिल्लाते हुए दरवाजे की ओर भागा, कहीं मामा ऊपर ना आ जाये.

मौसी के चेहरे पर भी साफ घबराहट दिख रही थी.

प्रवीण भी अलग हो चूका था.

"जाओ तुम लोग बाद मे मिलते है " मौसी ने पास पड़े ब्लाउज को उठा लिया.

"कब मौसी " प्रवीण ने पूछा.

"यही आज रात, जाओ अब तुम्हारे मामा ऊपर ना आ जाये.

उफ्फफ्फ्फ़.... यार अमित की मौसी ने तो कमाल कर दिया, क्या दूध थे उसके, सोच गांड कितनी बड़ी होंगी मौसी की.

मैं टंकी के पीछे से उनकी बात सुन रहा था, साले ेरी गैरहाज़िरी मे मौसी के मजे ले गए थे, अब दारू पीते हुए याद कर रहे थे..

उउउफ्फ्फ.... ये कैसा परिवार है मेरा.

8.30 बज चुके थे.

इनकी दारू भी खत्म होने को आई थी, मैंने सोचा दबे पाव नीचे निकल लेता हूँ, मैं चल पड़ा की तभी मुझे सीढ़ी से ऊपर आते हुए किसी की आहाट सुनाई दी , मैं तुरंत भाग कर दरवाजे के पीछे जा छुपा.

इस वक़्त कौन हो सकता है, कौन आ रहा है ऊपर?

कदमो की आहट के साथ साथ चूड़ी ख़नकने की आवाज़ भी नजदीक ऊपर की ओर आ रही थी.

कौन था ये मेरी माँ, मेरी मामी या मेरी मौसी....

मैं इंतज़ार मैं था,. मुझे जानना ही था मेरा परिवार किस हद तक हवस मे पागल है. हमें आये पूरा एक दिन भी नहीं हुआ था, और इतना कुछ हो गया था, ना जाने अभी कितना कुछ देखना बाकि था मुझे.

Contd.....




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