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मेरी माँ रेशमा -20

मेरी माँ रेशमा -19

मेहंदी की रात  IMG-20250822-135558

 मेहंदी की रात अपने पूरे रंग में थी। आंगन में ढोलक की थाप गूँज रही थी, कोई पुराना बॉलीवुड गाना हवा में तैर रहा था, —“कजरा मोहब्बत वाला, अँखियों में ऐसा डाला…” औरतों की खनकती चूड़ियाँ और ठहाके माहौल को और मादक बना रहे थे।

मौसम शर्दी का था लेकिन भीड़भाड़ ने हॉल में गर्मी इतनी ककर डी थी कि पंखे की हवा भी ठंडक नहीं दे रही थी,

 रात के 8 बज गए थे, सभी महिलाये गाने बजाने मे लगी थी, कुछ मेहंदी बनवा रही थी.

वही किसी कोने मे प्रवीण और मोहित मेरी माँ का हाँथ पकडे मेहंदी लगा रहे थे.

"अरे वाह मोहित तुम तो बहुत अच्छी मेहंदी लगाते हो, कितनी सुन्दर लग रही है माँ के हाथो मे " अनुश्री माँ के पास ही बैठी थी

माँ के हाथ प्रवीण और मोहित की जांघो पर टिके हुए थे कहाँ, इस वजह से माँ थोड़ी झुकी हुई थी, माँ के सीने का पल्लू तो कबका गिर चूका था, माँ के भारी स्तन ब्लाउज से कूदने को आतुर थे,

मोहित और प्रवीण का ज्यादा ध्यान माँ के सुडोल गोरे स्तनों ओर ही था, जिसे मेरी बहन अनुश्री भी बड़े ध्यान से देख रही थी, माँ ने भी कोई आपत्ति नहीं जताई थी, पल्लू को नीचे लटके रहने ही दिया, माँ को कोई गुरेज नहीं था की दो नौजवान उसके बेटे की उम्र के लड़के उसके चढ़ते यौवन का रसपान कर रहे है..

जबकि वो माँ के हिलने से और भी ज्यादा हिल डुल रहे थे, लगता था जैसे पानी भरे गुब्बारे माँ ने ब्लाउज मे कस किये हो, 

रेशमा एक कोने में बैठी थी, उसका चेहरा पसीने से चमक रहा था। उसकी हरी साड़ी उसकी गोरी कमर से चिपक गई थी, जैसे कोई मूर्तिकार ने उसे रेशम में ढाल दिया हो। 

उसका पल्लू कब का नीचे लटक चुका था, और उसके भारी, सुडौल स्तन ब्लाउज में उछल रहे थे, जैसे किसी भी पल बाहर आने को बेताब हों। मोहित और प्रवीण उसकी कलाइयों को पकड़े मेहंदी लगा रहे थे, लेकिन उनकी आँखें रेशमा की गहरी नाभि और चमकती उस दरार पर टिकी थी, जो ब्लाउज मे कैद थे, जहाँ पसीने की चमकती बुँदे समा जा रही थी, 49650041308e0a9a39c4b76d0c9a9ac7  

उन दोनों की उंगलियाँ मेहंदी की पुड़िया के साथ-साथ रेशमा की नरम त्वचा पर फिसल रही थीं, और हर स्पर्श में एक कामुकता छुपी हुई थी।

उन दोनों का होले होले स्पर्श करना रेशमा के जिस्म मे एक सरसरहाट पैदा कर रहा था.

वैसे भी माँ इनके इरादों से वाकिफ थी, और ये दोनों भी जानते थे रेशमा किस किस्म की महिला है.

दिल्ली से यहाँ तक के सफर मे इतना तो हो ही चूका था की ये मादकता अब अनकही नहीं थी.

माँ बार बार बैचैन हो रही थी, उसके हाथ कभी उनकी जांघो पर टिक जाते तो कभी वापस उठ जाते, लाजमी था अंतर्मन तो कह रहा था नौजवान लड़को की जांघो को सहलाये लेकिन आस पास बैठी औरते, यहाँ का माहौल इन सब की इज़ाज़त नहीं दे रहा था..

परन्तु अनुश्री जो पास ही बैठी थी, उसकी नज़रें अपनी माँ के जिस्म पर थीं। उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी, वो अपनी माँ के जिस्म उसकी हरकतों के हर उतार चढ़ाव को बखूबी देख रही थी, देखती भी क्यों ना आखिर वो अपनी माँ रेशमा का  राज़ जानती थी, ।

 “अरे वाह, मोहित, तुम तो बहुत अच्छी मेहंदी लगाते हो,” उसने मासूमियत भरे लहजे में कहा, लेकिन उसकी मुस्कान में एक अर्थ था। 

“माँ के हाथों में कितनी सुंदर लग रही है, है ना?” उसकी नज़रें मोहित और प्रवीण की हरकतों पर थीं, और उसकी साँसें हल्के-से तेज़ हो रही थीं। रेशमा ने बस एक हल्की-सी मुस्कान दी, उसकी आँखें आधी बंद थीं, जैसे वो इस पल को जी रही हो। 

“हम्म… बहुत अच्छा लग रहा है,” उसने धीमी, मादक आवाज़ में कहा, और उसकी जाँघें हल्के-से हिलीं, जैसे वो जानबूझकर अपनी साड़ी को और सरकने दे रही हो।

उसके जिस्म की गर्मी अब उसे जला रही थी। उसका चेहरा पसीने से तर था, और उसकी साड़ी उसकी कमर और जाँघों से चिपककर उसकी मादकता को और उभार रही थी। अनुश्री ने माँ की बेचैनी भाँप ली। 

“माँ, ये गर्मी तो जान ले रही है,” उसने शरारती लहजे में कहा, अपनी उंगलियों को अपने लेहंगे की सिलवटों में उलझाते हुए। 

“चलो, ऊपर कमरे में चलते हैं। मोहित और प्रवीण वहाँ आराम से मेहंदी लगा देंगे।” उसकी आँखों में एक चमक थी, अनुश्री अपने प्लान पर खरी उतर रही थी।

रेशमा ने एक गहरी साँस ली, उसकी छाती ऊपर-नीचे हुई। “हम्म… ठीक है, बेटी। ये गर्मी तो सच में… उफ्फ…” उसने अपने पसीने से भीगे माथे को साड़ी के पल्लू से पोंछा, लेकिन पल्लू को फिर से नीचे लटकने दिया। उसकी हरकत में एक बेपरवाह मादकता थी, जैसे उसे पता हो कि उसका जिस्म कितना कहर ढा रहा है। मोहित और प्रवीण ने एक-दूसरे की ओर देखटर हुए गले मे फसे थूक को गटकते हुए अनुश्री की तरफ देखा, वो जानते थे अनुश्री का क्या प्लान है, लेकिन इस भीड़ भाड़ मे किसी के आ जाने का डर उनकी सारी हिम्मत पर पानी फैर दे रहा था, 

“चलो, आंटी,” मोहित ने धीमी, गहरी आवाज़ में कहा, मोहित ने खुद को दिलाशा दिया और अनुश्री की ओर देख मुस्कुरा दिया 

 “कमरे में तो मेहंदी और भी अच्छे से लगेगी।, आपको भी लगा देंगे दीदी ” प्रवीण ने भी समर्थन दिया, 

"अभी तो माँ को ही लगाओ तुम, अच्छी लगी तो फिर मै भी सोचूंगी तुम दोनों से लगवाने के बारे मे " अनुश्री मटकती हुई आगे को चल पढ़ी, उसकी गांड कुछ ज्यादा ही उछल रही थी, उछलती भी क्यों ना, वो अपने प्लान ओर खरी उतर रही थू.

चारों ऊपर कमरे की ओर बढ़े। कमरे में एक पुराना धीमी लाइट का सफ़ेद बल्ब जगमगा रहा था, मद्धम रोशनी मे दीवारों पर हल्की-हल्की छायाएँ बन रही थी। 

मेहंदी की तीखी खुशबू हवा में घुल रही थी, और खिड़की से आती ठंडी हवा कमरे को और मादक बना रही थी।

 रेशमा आते ही पलंग पर बैठ गई," उफ्फ्फ... यहाँ थोड़ा आराम है, क्यों बेटा? " रेशमा के पलंग पर बैठते ही साड़ी घुटनो तक उठ गई, 7e8841a439f68dfcfb02f948031581c1 साड़ी का पल्लू अब पूरी तरह नीचे था, और उसकी गोरी, मांसल चिकनी पिंडलिया साड़ी के नीचे से झाँक रही थीं। 

मोहित पलंग पर माँ के हाथ पकड़ कर बैठ गया, और प्रवीण नीचे जमीन पर,

"अरे तु क्यों नीचे बैठ गया?" रेशमा ने आश्चर्य से पूछा.

जवाब मे प्रवीण ने रेशमा की पिंडलियो को अपने मजबूत हाथो मे पकड़ लिया "इस्स्स........ ससससस..." माँ सिसकर उठी.

"आंटी यहाँ भी तो मेहंदी लगा दे बहुत खूबसूरत लगती है " प्रवीण ने मेहंदी की नौक माँ की पिंडलियो पर रख दि.

रेशमा तो पहले से ही प्यासी थी, उत्तेजित थी, कैसे मना करती, हुआ भी वही. उसका जिस्म तो कब से कामवासना की आग मे जल रहा था ऊपर से दो नौजवन लड़के उसकी त्वचा को सहला रहे थे. 

ऊपर से पटनायक ने जो उसकी चुदाई की थी उसकी टिस अभी भी बची ही थी, रेशमा का मना करने का सवाल था ही नहीं, बस आंखे बंद कर सिसकर उठी.

 अनुश्री ने अचानक कहा, “माँ, मैं ज़रा पानी ले के आती हूँ,” जैसे उसने अपनी माँ की प्यास को भाँप लिया हो, और एक शरारती मुस्कान के साथ दरवाज़े की ओर बढ़ गई, 

लेकिन वो बाहर नहीं गई, गेट से निकलते ही बाजु से होते हुए पीछे की बालकनी मे चली गई, जहाँ पे एक खिड़की थी, हवा के आने जाने के लिए छोडी गई थी, अनुश्री ने खिड़की के अंदर आंखे जमा दि.

उसने खिलाड़ियों को मैदान सेट कर के दे दिया था, बस अब उसे दर्शक बन कर खेल देखना था, यही तो प्लान था उसका.

उसने बालकनी की खिड़की के पीछे छुपकर अपनी आँखें गड़ा दीं, उसका दिल धक-धक कर रहा था। उसकी साँसें तेज़ थीं, और उसकी उंगलियाँ उसके लेहंगे की सिलवटों में फँस गई थीं।

“आंटी, मेहंदी तो आपके हाथों पर खूब जमेगी, मोहित ने रेशमा के नंगे कंधो तक हाथ बढ़ा दिया नतीजा रेशमा की हथेली मोहित की जांघो के बीच पहुंच गई.

"इस्स्स..... आंटी ये क्या कर रही है आप मेहंदी बिगड़ जाएगी " रेशमा ने मोहित के लंड को पैंट के ऊपर से ही टटोल लिया था.

"अच्छा जैसे मै जानती नहीं तुम दोनों की चालाकी, बहुत शरारती हो तुम दोनों " रेशमा ने मोहित के लंड उभार को हाथो मे भींच लिया.

बहार अनुश्री माँ का उतावलापन देख हैरान थी, इतनी जल्दी तो कोई रंडी भी तैयार ना हो, माँ ने तो अकेलापन देख तुरंत हमला कर दिया.

ये दृश्य देख अनुश्री के जिस्म मे भी गर्मी दौड़ गई.

वही कमरे मे प्रवीण रेशमा की टांगो के बीच बैठा था, उसके हाथ खूबसूरत सुडोल पिंडलियो को टटोल रहे थे.

"इस्स्स.... आअह्ह्ह.... प्रवीण मेहंदी भी लगाएगा या बस खेलता ही रहेगा " रेशमा ने मादक अंदाज़ मे पूछा, उसके होंठ दांतो तले दबे हुए थे.

"आंटी आपको देख के मन बहक जाता है "

"अच्छा... देखु तो क्या कह रहा है तेरा मन " रेशमा ने अपने पंजे प्रवीण की जांघो कर बीच रख दिए जैसे कुछ टटोल रही हो.

"आअह्ह्हम्मीस्स्स.... आंटी "

"धीरे धीरे बढ़ा हो रहा है तेरा मन " रेशमा ने अपने पंजो से प्रवीण के लंड को सहलाना जारी रखा, और हाथो से मोहित के लंड को सहलाने लगी.

अनुश्री अपनी माँ के इस रूप को देख हैरान थी, खिड़की के बहार उसके हाथ जांघो के बीच गुदगुदी करने लगे थे, आखिर वो भी प्यासी औरत थी, उसकी फैंतासी उसकी आँखों के सामने सच होने जा रही थी,  उसकी चुत मे नमी का पहला दौर आ गया था.

सांसे तेज़ ही चली थी अंदर भी यही हाल था, मोहित और प्रवीण के लिए मेहंदी लगाना मुश्किल होता जा रहा था, उनके लंड उनके हाथो को रोक रहे थे, 

रेशमा जैसे परीक्षा ले रही हो, उसके हाथ और पैर लगातार उनके लंडो को उकसा रहे थे.

"अच्छे से लगाना, बिगड़ मत देना " रेशमा ने चुटकी लेते हुए कहाँ.

"इसस्स... आंटी... मेहंदी तो लगा ही देंगे हम "

मोहित रेशमा के बिल्कुल करीब था, मेहनती बाहो के ऊपरी हिस्से पर चल रही थी, और सांसे रेशमा के सुडोल स्तनों पर टकरा रही थी.

रेशमा के स्तन साफ उजागर थे, मोहित को बुलावा दे रहे थे, टूट पड़, छोड़ मेहंदी का चक्कर " भारी, सुडौल स्तन ब्लाउज़ में कैद थे, लेकिन उनके सख्त निप्पल कपड़े के ऊपर से उभर कर अपनी मादकता बिखेर रहे थे, जैसे बाहर कूदने को बेताब हों। 

नीचे प्रवीण भी पिंडलियो को सहलाते जांघो तक पहुंच गया था, इतना की बस रेशमा की चड्डी का दिखना ही बाकि रह गया था, रौशनी मे सुडोल, चिकनी जाँघे चमकने लगी थी, जिस पर प्रवीण की मेहंदी की कौन नाचने लगी.

"ईईस्स्स... प्रवीण बेटा...." रेशमा सिसकर उठी, मेहंदी की ठंडक और प्रवीण का मर्दाना स्पर्श जो दूसरी जाँघ ओर साफ महसूस हो रहा था.

बहार अनुश्री की हालात भी खस्ता हुए जा रही थी, उसने जो सोचा था उस से ज्यादा कामुक निकली थी उसकी माँ.

प्रवीण के हाथ रेशमा की जांघो को रंगे जा रहे थे, उसकी सांसे रेशमा की चुत से टकरा रही थी, बिल्कुल नजदीक.

"इस्स्स.... बेटा " रेशमा ने जांघो को और ज्यादा फैला दिया, साड़ी ऊपर को सरक गई.

इतना की एक मादक कैसेली भीनी भीनी खुसबू प्रवीण की नाक से टकरा गई, उसका लंड टनटना उठा.

ये गीली चुत की मादक खुसबू थी, जो रेशमा की उत्तेजित होने की निशानी थी..

"आअह्ह्ह... आंटी "

"क्या बेटा इसस्स...." रेशमा ने लगभग आंखे बंद करते हुए पूछा उसे पास इंतज़ार था किसी चीज का, उसके पाव प्रवीण के लंड को मसल रहे थे, 

जाँघे और ज्यादा फ़ैल गई इतनी की रेशमा की चुत की लकीर साफ नजर आने लगी, चिपचिपे पानी से सनी चुत की लकीर. 123

प्रवीण सामने का दृश्य देख आश्चर्य से भार उठा, उसके मुँह मे पानी आ गया, हैरान था की रेशमा ने चड्डी ही नहीं पहनी थी, अभी अँधेरे की वजह से रहस्य था की कच्छी की बांधा है या नहीं, जो की अब स्पष्ट हो चूका था.

अब रुकना मुश्किल था, हुआ भी वही.

"आआहहहह..... बेटा..... इस्स्स... प्रवीण ने रेशमा की जांघो के बीच मुँह घुसेड़ दिया, लप.. लापम... चैट... चटक.... पुच... करती उसकी जीभ रेशमा की चुत की दरार को कुरेदने लगी. 20230411-110733 1553567530321

जाँघे मेहंदी से रंगी हुई थी, जांघो के बीच प्रवीण का सर घुसा हुआ था, उसकी जाँघे और ज्यादा फ़ैल गई, एक कामुक गंध, मेहंदी की खुसबू मे समा गई.

रेशमा के हाथ प्रवीण के सर पर कस गए, यही सही अवसर था.

मोहित के होंठ रेशमा के लाल कामुक रसीले होंठो पर जम गए.. शर्म की सारी दिवार गिर गई थी.

मोहित लापलाप रेशमा के ऊपरी होंठो को चाट रहा था, वही प्रवीण उसके निचले होंठो का रसपान कर रहा था.

जिसमे रेशमा पूरी जिम्मेदारी से भागीदार थी.

उसके स्तन बहार को उभार आये थे, जैसे वो और भी कुछ चाहती हो, तुरंत ही इच्छा पूरी हुई मोहित ने एक स्तन को अपने काबू मे कर लिया, वही नीचे से प्रवीण ने भी हाथ बढ़ा कर दूसरे स्तन को संभाल लिया.

"उउउफ्फ्फ.... आअह्म... दबाओ... चाटो.. मेरी चुत को... उउफ्फ्फ... आह्हः.... पी जा बेटा पूरा पानी, पच, पच.... चाप.. चप... की आवाज़ कमरे मे मादकता घोलने लगी.

बहार अनुश्री के हाथ अपनी चुत को टटोल रहे थे, उस से ये कामुक दृश्य सहन नहीं हो रहा था.

लहंगा कमर तक चढ़ गया था, कच्छी जमीन चाट रही थी, और जांघो के बीच उसकी उंगकिया कामुक दरार को कुरेद रही थी, सफलता भी मिली उसकी चुत से काम रस की चिपचिपी धार बह निकली.

इस्स्स... इसका सबूत उसके मुख से निकली ये सिस्कारी थी, रखा बेटी अपनी माँ के यौवन को देख उत्तेजित हो रही थी.

अंदर कमरे मे अब खेल और खिलाडी पूरी तरह काम खेल मे उतर चुके थे.

 मेहंदी और काम रस की तीखी खुशबू हवा में घुल चुकी थी, और खिड़की से आती सर्द हवा कमरे को एक मादक ठंडक दे रही थी।

 दिल्ली से यहाँ तक के सफ़र में जो कुछ हुआ था, उसने रेशमा की हवस को और भड़का दिया था। उनके मन में लाज-शर्म की दीवारें ढह चुकी थीं, और उनकी जवानी का ज्वालामुखी फटने को तैयार था।

 “उफ्फ… बेटा…क्या कर रहे हो तुम दोनों, मेहंदी ख़राब हो जाएगी " 

रेशमा कसमसा रही थी.

"झटपट मेहंदी है आंटी तुरंत सुख जाती है, प्रवीण के हाथ जांघो पर चल रहे थे, और जीभ चुत चाट रही थी लप.. लप... पच... पच.... उत्तेजना के मारे रेशमा का बुरा हाल था, वो भूल चुकी थी की अनुश्री अंदर आ सकती है.

“चाट… बेटा… मेरी चूत को… सारा रस पी जा…” उनकी आवाज़ टूट रही थी, जैसे वो किसी और दुनिया में खो गई हों।

मोहित ने रेशमा के ब्लाउज़ के बटन खोल दिए, और उनके भारी, सुडौल स्तन बाहर कूद पड़े। उनके सख्त निप्पल गुलाबी रंग में चमक रहे थे, जैसे दो रसीले अंगूर।

 “आंटी… आप… उफ्फ… कितनी मादक हैं…” मोहित ने हाँफते हुए कहा और उनके एक निप्पल को अपने मुँह में ले लिया। “स्स्स… मोहित… चूस… आह…” रेशमा की सिसकारी और गहरी हो गई। मोहित की जीभ उनके निप्पल पर चक्कर काट रही थी, उसने रेशमा के स्तन को ज़ोर जोर से भींचना शुरू कर दिया, 

 रेशमा का जिस्म झटके से काँप उठा, और उनकी चूत से रस की बूँदें टपकने लगीं।प्रवीण ने उनकी चूत को चाटना बंद किया और उनकी जाँघों को और चौड़ा किया। 

“आंटी… अब आपकी गांड की बारी है,” प्रवीण ने रेशमा को जांघो को पकड़ ऊँचा कर दिया, रेशमा पीठ के बल बिस्तर पर जा टिकी, उसके हाथ अभी भी मोहित के लंड पर चल रहे थे, और मोहित उसके सुडोल स्तनों को बारी बारी चूसे जा रहा था, चाट... पच......

प्रवीण ने अपनी जीभ उनकी गांड की दरार में डाल दी। “आह… प्रवीण… उफ्फ…” रेशमा की सिसकारी चीख में बदल गई। प्रवीण की जीभ उनकी गांड के छेद पर चक्कर काट रही थी, और उसने धीरे-धीरे अपनी उंगली उनकी गांड में डाल दी। “स्स्स… बेटा… धीरे…” रेशमा ने सिसकते हुए कहा, लेकिन उनकी कमर ऊपर-नीचे हो रही थी, जैसे वो और गहराई तक चाहती हों।

 उनकी गांड में एक अजीब-सी जलन थी, जो उनकी हवस को और भड़का रही थी। “आह… चाट… मेरी गांड को… उफ्फ…” उनकी आवाज़ में तड़प थी, और उनकी आँखें आधी बंद थीं।

मोहित अब और ना रुक सका, उसने अपनी जींस की ज़िप खोली, और अपना तना हुआ लंड बाहर निकाल रेशमा के हाथो मे थमा दिया । “आंटी… इसे चूसो…” उसने हाँफते हुए कहा।


"इसससस.... मोहित... आह्हः... प्रवीण " रेशमा ने बिना देर किए उसके लंड को अपने रसीले होंठों में ले लिया। “लप… लप…” उनकी जीभ लंड के सुपारे पर चक्कर काट रही थी, और उनकी लार उसके लंड पर टपक रही थी। 20240514-142140

बहार अनुश्री अपनी माँ का उतवालापन देख हौरान थी, उसे लगता था अमित के दोस्त फेंक रहे है, माँ गांव की सीधी सदी महिला ऐसे कैसे कर सकती है, लंड चूसना, चाटवाना ये सब कहाँ आता होगा, लेकिन वो गलत साबित हुई.

सम्भोग सिखाया नहीं जाता, हवस, उत्तेजना का गांव शहर से कोई लेना देना नहीं है.

अनुश्री की दो उंगलियां उसकी चुत मे नाच रही थी... आअह्ह्ह....उफ़फ़फ़फ़.... माँ.... क्या चीज ही तुम आअह्ह्ह... "

 अंदर “आह… आंटी… उफ्फ…” मोहित की साँसें तेज़ थीं, और उसका लंड रेशमा के मुँह में अंदर-बाहर हो रहा था।

 रेशमा की जीभ उसके लंड के हर इंच को चाट रही थी, जैसे वो उसका सारा रस निचोड़ लेना चाहती हों। उनकी सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं, और उनकी चूत में जलन अब असहनीय हो रही थी।

प्रवीण ने भी अपनी जींस उतारी और अपना लंड रेशमा के सामने लहराया। “आंटी… मेरा भी…” उसने हाँफते हुए कहा। रेशमा ने झट से मोहित के लंड को छोड़ा और प्रवीण के लंड को अपने मुँह में लिया। गुलप.... पच... कितनी बेताब थी रेशमा.

उनकी जीभ उसके सुपारे पर रेंग रही थी, और उनकी लार उसके लंड पर चमक रही थी। “उफ्फ… आंटी…कोई लंड चूसना तो आप से सीखे …” प्रवीण ने कराहते हुए कहा।

रेशमा अपनी तारीफ सुन और जोश मे भर गई, उसके लाल मादक होंठ एक-एक करके दोनों के लंड को चूस रहे थे, और उनकी साँसें भारी थीं। उनकी चूत और गांड में आग लगी थी, और वो उस आग को बुझाने के लिए तड़प रही थीं।

 “पच… पच…” की आवाज़ उनकी चूत से आ रही थी, जैसे रस की धार बह रही हो।

प्रवीण शायद रेशमा की बेचैनी को समझ गया, तुरंत रेशमा की जांघो के बीच आ बैठा, रेशमा की गीली चिकनी चुत चमक उठी 

उफ्फ्फ्फ़.... आंटी क्या चुत है आपकी, और ये मेहदी आपकी जांघो पर कितनी सुन्दर लग रही है, मेहंदी के बीच ये फूली हुई चुत... हम कितने नसीब वाले है.

प्रवीण ने तारीफों के पुल बांधते हुए  उनकी जाँघों को और चौड़ा कर दिया, जिसमे रेशमा ने भरपूर साथ दिया ।

 “आंटी… अब आपकी चूत की बारी है,” उसने मादक अंदाज़ में कहा और अपना लंड उनकी चूत पर रखा। 

“स्स्स… प्रवीण… धीरे… आह…” रेशमा की सिसकारी गूँज उठी। प्रवीण ने धीरे-धीरे अपना लंड उनकी चूत में डाला, और “पच… पच…” की आवाज़ कमरे में तैरने लगी। 17871950  

उनकी चूत पूरी तरह गीली थी, और उनका जिस्म हर धक्के के साथ काँप रहा था। “आह… बेटा… और… और गहरा…” रेशमा की आवाज़ टूट रही थी, और उनकी कमर ऊपर-नीचे हो रही थी। उनकी चूत में प्रवीण का लंड अंदर-बाहर हो रहा था, और हर धक्के के साथ उनकी सिसकारियाँ और तेज़ हो रही थीं।

मोहित से रहा नहीं गया वो पलंग से उठ कर रेशमा के पीछे गया, जहाँ धाकधक प्रवीण का लंड रेशमा की चुत मे समा रहा था, आअह्ह्ह... आअह्ह्ह


 मोहित ने अपनी एक ऊँगली पर थूक लगायाऔर अपनी उंगलियों को रेशमा की गांड पर रगड़ा। 

अति उत्तेजना मे रेशमा ने अपनी गांड का छेद सिकोड लिया, इरादा भाँप गई थी. 

पुक से मोहित ने अपनी गीली ऊँगली को रेशमा की गांड मे सरका दिया,. आआहहहह.... रेशमा सिसकर उठी. 20220404-202647

दो तरफ़ा हमले ने उसे और ज्यादा उकसा दिया था.

प्रवीण ने भी मौके की नजाकत को समझ, बिस्तर पर पलटी मार दि, अब प्रवीण नीचे था और रेशमा उसके लंड की सवारी कर रही थी.

मोहित के लिए रास्ता साफ था 

“आंटी… आपकी गांड… उफ्फ…” उसने हाँफते हुए कहा और अपना लंड उनकी गांड के छेद पर टिका दिया, 19978792 । 

“आह… मोहित… धीरे… उफ्फ…” रेशमा ने सिसकते हुए कहा। मोहित ने धीरे-धीरे अपना लंड उनकी गांड में डाला, और उनकी सिसकारी चीख में बदल गई। “आह… उफ्फ… बस…” उनकी कमर ऊपर-नीचे हो रही थी, और उनका जिस्म पसीने से तर था। उनकी गांड में एक अजीब-सी जलन थी, जो उनकी हवस को और भड़का रही थी। 

“आह… चोद… मेरी गांड को… उफ्फ…” उनकी आवाज़ में तड़प थी, आँखें आधी बंद होती चली गई, दो लंड माँ ऐसा मजा है उसे आज अनुभव हुआ था.

बहार खड़ी अनुश्री मुँह बाये अपनी माँ के कारनामें देख रही थी, आजतक जो फिल्मो मे ही देखा था वो उसकी आँखों के सामने सच हो रहा था..


 रेशमा की चूत और गांड दोनों एक साथ चुद रही थीं। प्रवीण उनकी चूत में धक्के मार रहा था, और मोहित उनकी गांड में। original “पच… पच… फच… फच…” की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी, और रेशमा की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल चुकी थीं। “आह… उफ्फ… प्रवीण… मोहित… बस… आह…” उनकी आँखें आधी बंद थीं, और उनका चेहरा पसीने और तृप्ति से चमक रहा था। उनकी चूत और गांड में जलन चरम पर थी, और वो झड़ने के करीब थीं।

“आंटी… आप… उफ्फ… कितनी टाइट हैं…” प्रवीण ने हाँफते हुए कहा। उसका लंड उनकी चूत में और गहराई तक जा रहा था, और उनकी चूत से रस की धार बह रही थी। 

“आह… बेटा… चोद… और ज़ोर से…” रेशमा की आवाज़ में एक बेकरारी थी, जैसे वो हर धक्के में और डूबना चाहती हों। मोहित भी पीछे नहीं था। “आंटी… आपकी गांड… आह…” उसने कराहते हुए कहा। उसका लंड उनकी गांड में अंदर-बाहर हो रहा था,

चुत रस और थूक की चिकनाहट ने माहौल को और मादक बना दिया था। पच पच फच उउउफ्फ्फ... आअह्ह्ह...

इस वक़्त अनुश्री अंदर भी आ जाती तो रेशमा ना रूकती.

रेशमा का जिस्म काँप रहा था। उनकी साँसें रुक-रुक कर चल रही थीं, और उनकी भारी छातियाँ ब्लाउज़ से बाहर स्वतंत्र उछल रही थीं।

 उनके सख्त निप्पल मोहित के हाथों में मसले जा रहे थे, और उनकी चूत और गांड में जलन अब असहनीय थी। 

“आह… उफ्फ… बस… मैं… मैं…” उनकी चीख कमरे में गूँज उठी, और उनकी चूत से रस की धार बह निकली। वो झड़ चुकी थीं, और उनका जिस्म झटके से काँप रहा था।

 उनकी साँसें भारी थीं, और उनका चेहरा तृप्ति से चमक रहा था।

प्रवीण और मोहित भी चरम पर थे। “आंटी… मैं… आह…” प्रवीण ने कराहते हुए कहा, और उसका लंड उनकी चूत में फट गया। 

मोहित भी पीछे नहीं रहा। “आह… आंटी…” उसने चीखते हुए कहा, और उसका लंड उनकी गांड में झड़ गया। double-creampie-001

 रेशमा पलंग पर पड़ी हाँफ रही थीं। उनकी साड़ी उनकी जाँघों पर लटक रही थी, और उनकी चूत और गांड से रस टपक रहा था।

 “उफ्फ… तुम लोग… ये… ये क्या कर दिया…” उन्होंने सिसकते हुए कहा, लेकिन उनकी आँखों में एक मादक तृप्ति थी। उनकी साँसें अभी भी भारी थीं, और उनका जिस्म हर धक्के की याद में काँप रहा था.

बहार बालकनी में अनुश्री की हालत खराब थी। उसकी उंगलियाँ उसकी चूत में अंदर-बाहर हो रही थीं, और उसकी कच्छी ज़मीन पर पड़ी थी। उसका लहंगा कमर तक चढ़ गया था, और उसकी चूत पूरी तरह गीली थी। उसकी उंगलियां चुत को कुचल रही थी मन कर रहा था माँ को हटा कर खुद लेट जाये दोनों के बीच.

अपनी माँ की चुदाई ने उसके जिस्म मे एक अलग सी आग मचा दि थी, पच... ओच... पच... करती उसकी उंगकिया चुत मे धाएं धाय धसी जा रही थी.

उफ्फ्फ.... मा... आअह्ह्हम्म्म.... मेरी भोली भली रंडी माँ रेशमा और चुत, सालों मेरी माँ की गांड और चुत फाड़ डालो.

अनुश्री बहक रही थी, बड़बड़ा रही थी.

“उफ्फ… माँ… तुम… कितनी रंडी हो…” उसने सिसकते हुए कहा। उसकी साँसें तेज़ थीं, और वो झड़ने के करीब थी। उसकी आँखें खिड़की से अंदर के मादक नज़ारे पर टिकी थीं, जहाँ रेशमा की चूत और गांड एक साथ चुद रही थीं। अनुश्री की चूत में जलन चरम पर थी, और उसकी उंगलियाँ उसकी फाँकों को और ज़ोर से कुरेद रही थीं।

 “आह… माँ… उफ्फ…” उसकी सिसकारी हवा में गूँज रही थी।तभी अचानक किसी का हाथ उसके कंधे पर पड़ा। 

“यहाँ क्या कर रही हो, ऐसे अंदर क्या देख रही हो छुपके?” एक गहरी, गुस्से भरी आवाज़ गूँजी। अनुश्री बुरी तरह डर गई। उसने जल्दी से अपना लहंगा नीचे किया और पलटकर देखा। 

उसकी सिट्टी पिट्टी घूम हो गई, मममम... मामा... आ... अआप... अनुश्री का चेहरा सफ़ेद पड़ गया, सांसे रुक गई.

वो यहाँ क्या कर रही क्या देख रही है इसका जवाब नहीं था उसके पास, 

 “म… मामा… मैं… बस…” उसने हकलाते हुए कहा, लेकिन उसकी आँखें डर और उत्तेजना से चमक रही थीं। उसकी चूत अभी भी गीली थी, और उसकी साँसें तेज़ थीं।रमेश ने खिड़की से अंदर झाँका, और उसके होश उड़ गए। 

अंदर उसकी बहन रेशमा अमित के दोस्तों—मोहित और प्रवीण—से चुद रही थी। मोहित उसकी चूत मार रहा था, और प्रवीण उसकी गांड।

 “ये… ये क्या हो रहा है?” रमेश ने गुस्से में चीखा, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी, वो पहले भी रेशमा को स्टोर रूम से निकलते देख चूका था, और आज तो सीधा चुदते हुए ही देख लिया, उसका लंड उसके पजामे में तन गया, और उसका चेहरा पसीने से चमक रहा था। आज तक उसके अंदर ऐसा तूफान नहीं उठा था। उसकी बहन रेशमा को चुदते देख उसका लंड इतना कड़क हो गया था, जितना पहले कभी नहीं हुआ था। 

उसका मन गुस्से और हवस के मिश्रण से भरा था, और उसकी साँसें रुक-रुक कर चल रही थीं।

अनुश्री ने रमेश की आँखों में हवस देख ली। उसकी चूत में अभी भी आग लगी थी, और वो अपनी उत्तेजना को काबू नहीं कर पा रही थी।

 “मामा… आप… आप भी देखो ना…माँ कैसे चुद रही है ” उसने मादक अंदाज़ में कहते हुए जबरजस्त हिम्मत दिखाई, या फिर अपने मामा की नियत को भाँप गई थी, क्यूंकि उसके चेहरे से गुस्सा धीरे धीरे गायब हो रहा था, रमेश की नजरें अपनी बहन के नंगे गद्दाराये सुडोल जिस्म पर टिक गई थी.

अनुश्री की आवाज़ में एक बेकरारी थी, और उसकी आँखें रमेश के पजामे के उभार पर टिक गई थीं। रमेश का गुस्सा पिघल गया, और उसकी हवस ने उसे जकड़ लिया।

 “अनुश्री… तू… तू भी अपनी माँ को ऐसे देख रही है …” उसने हाँफते हुए कहा,

"क्यों मामा अपने भी देखा है पहले " अनुश्री ने पलट के सवाल किया.

वैसे भी आज सुबह से ही रमेश की नजरें अपनी बहन को कुछ अलग तरीके से देख रही थी.

"आज पहली बार देख रहा हूँ नंगा, क्या जिस्म दिया है ऊपर वाले ने मेरी बहन को " मामा ने लंड को पाजामे के ऊपर से मसलते हुए कहाँ.

"क्यों मुझे नहीं दिया क्या माँ जैसा जिस्म?" अनुश्री ने जानबूझ कर अपने सुडोल स्तन को मामा जे मुँह के सामने आगे बढ़ाते हुए कहाँ, हाथ ऊपर कर सर के पीछे रख किये, जिस से स्तन और उभार कर सामने आ गए, साफ सुथरी पसीने से भीगी कंखो से मादक महक निकल मामा के नाथूनो से टकरा गई.

"इसससस..... जैसी माँ वैसी बेटी " मामा ने अनुश्री को अपनी बाहों में खींच लिया। रमेश अब कुछ भी सोचने समझने मे मूड मे नहीं था, उसका दिमाग़ काम नहीं कर रहा था लेकिन लंड युद्ध मे कूदने को तैयार था, ये ताज़गी, ये बयार, ये उत्वलापन उसे सालों बाद महसूस हुआ था.

अपनी बहन और भांजी के बदौलत.

रमेश ने अनुश्री को दीवार के सहारे धकेला और उसका लहंगा कमर तक उठा दिया। 

“उफ्फ… अनुश्री… तू… क्या गांड है तेरी बिल्कुल रेशमा जैसी …” उसने कराहते हुए कहा और अपना पजामा नीचे सरकाया। उसका लंड तना हुआ था, इतना कड़क कि उसकी नसें उभर रही थीं। उसने अपना लंड अनुश्री की चूत पर रखा।

अनुश्री के तो ना करने का सवाल ही नहीं था.

 “आह… मामा… धीरे…” अनुश्री की सिसकारी गूँज उठी। रमेश ने धीरे-धीरे अपना लंड उसकी चूत में डाला, और “पच… पच…” की आवाज़ हवा में तैरने लगी। 20220520-203546

 अनुश्री की चूत तो पहले से ही गीली थी, लंड का स्पर्श मिलते ही बहने लगी,और उसका जिस्म हर धक्के के साथ काँप रहा था।

 “आह… मामा… उफ्फ…” उसकी सिसकारी तेज़ हो गई, और उसकी जाँघें काँप रही थीं।रमेश की हवस चरम पर थी।

 उसने अनुश्री की चूत में धक्के मारते हुए अपनी उंगली को थूक से गिला कर उसकी गांड के छेद पर रगड़ा। 

“स्स्स… मामा… ये… ये क्या…” अनुश्री ने सिसकते हुए कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में एक मादक तड़प थी। शायद अनुश्री भी यही चाहती थी, क्यूंकि उसकी माँ रेशमा, अंदर दो लंडो से चुद रही थी, 

रमेश ने धीरे-धीरे अपनी उंगली उसकी गांड में डाल दी, और अनुश्री का जिस्म झटके से काँप उठा। 

“आह… मामा… उफ्फ…” उसकी सिसकारी चीख में बदल गई। रमेश का लंड उसकी चूत में अंदर-बाहर हो रहा था, और उसकी उंगली उसकी गांड में। 

“अनुश्री… तू… तू भी अपनी माँ की तरह रंडी है…” रमेश ने गुस्से और हवस के मिश्रण में कहा। उसकी साँसें तेज़ थीं, और उसका लंड इतना कड़क था कि वो हर धक्के में और गहराई तक जाना चाहता था।अनुश्री की आँखें खिड़की से अंदर के नज़ारे पर टिकी थीं। रेशमा अभी भी पलंग पर पड़ी थीं, और मोहित और प्रवीण उनके जिस्म को सहला रहे थे। रेशमा की सिसकारियाँ अभी भी गूँज रही थीं, और उनकी चूत और गांड से रस टपक रहा था। 

“उफ्फ… माँ… तुम… कितनी बड़ी चुद्दाकड़ हो…” अनुश्री ने सिसकते हुए कहा। उसकी चूत में रमेश का लंड और उसकी गांड में उसकी उंगली उसे पागल कर रही थी। 

“आह… मामा… और… और…” उसकी सिसकारी तेज़ हो गई, और उसकी चूत से रस टपकने लगा।रमेश का मन गुस्से और हवस के तूफान में डूबा था। उसकी बहन रेशमा को चुदते देख और अपनी भांजी की चूत मारते हुए उसका लंड आज तक इतना कड़क नहीं हुआ था।

 “अनुश्री… तू… तू भी… आह…” उसने कराहते हुए कहा, और उसका लंड उसकी चूत में फट गया। रमेश चुत की गर्मी को सहन ना कर सका, 

अनुश्री की चूत से भी रस की धार बह निकली, और उसका जिस्म झटके से काँप उठा। “आह… मामा… ये… ये क्या कर दिया…” उसने हाँफते हुए कहा। उसकी गांड में रमेश की उंगली अभी भी थी, और उसकी चूत से रस टपक रहा था.

मामा और अनुश्री हांफ रहे थे, मामा का वीर्य अनुश्री की चुत से टपक रहा था, 

वीर्य का निकलना था की रमेश का गुस्सा और हवस शांत हो गया, 

उसका मुँह लटक गया, वो अनुश्री से नजर नहीं मिला पा रहा था जैसे कोई अपराध कर दिया हो.

"क्या हुआ मामा, मजा नहीं आया?"

"ये गलत हो गया बेटा " रमेश का दिल भारी हो गया था.

"मामा... हवस का कोई रिश्ता नहीं होता, चुत लंड मे कोई दिवार नहीं होती, अनुश्री अपने मामा के गले जा लगी.

अनुश्री का गले लगना था की मामा का सारा पछताप समाप्त हो गया, औरत का प्रेम होता ही ऐसा है.

"आप मेरे प्यारे मामा ही रहेंगे हमेशा, अब तो और ज्यादा प्यारे " अनुश्री अलग हुई और बालकनी से होते निकल गई.

रमेश मुँह बाये खड़ा था, कुछ तो सोच रहा था, शायद औरत के मन को टटोलना चाह रहा था.

लेकिन औरत समझ आये तब ना, रमेश मामा ने पजामा ऊपर चढ़ा लिया, अंदर झाँक कर देखा, तूफान शांत हो चूका था, 

उसकी बहन रेशमा साड़ी मे वापस से दमक रही थी, मेहंदी उसके जिस्म पर खील रही थी.

रेशमा, प्रवीण और मोहित कमरे से जा चुके थे.

मामा बिस्तर पर पड़ी सलवाटो को देखता रहा, कुछ सोचता रहा.

ग्लानि नहीं थी मन मे अपितु एक नया उत्साह था, इस शादी ने उसके नीरस जीवन मे रंग भर दिया था.

उसके कदम अपने कमरे की ओर बढ़ चले.

Contd....

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3 Comments

  1. Waah bhai waah ...intezaar ka fal kitna meetha hain. Ye wahi samjh sakta hain jisne us intezaar ko jiya hain.

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  2. थैंक यू दोस्त, मेरी कोशिश हमेशा रहती है, अपनी कहानी को आगे बढ़ाता रहु.
    लेकिन कभी कभी देर हो जाती है.
    इंसान हूँ उलझ ही जाता हूँ इधर उधर.
    बाकि आप जैसे पाठक ही मेरा होशला है.
    आप कमेंट करते है तो मेरी लिखने की इच्छा जाग जाती है.
    धन्यवाद फिर से

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    1. Shukriya dost in kahaniyon ke liye ...Updates aane do

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