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मेरी माँ रेशमा -22

 मेरी माँ रेशमा - 22 

मेहंदी की रात का नशा मेरे दिमाग में अब भी तूफान की तरह मचा हुआ था। वो चीखें, वो सिसकारियाँ, वो तेल और रस से भरा माहौल—सब कुछ मेरी आँखों के सामने नाच रहा था। माँ रेशमा की वो मादकता, जैसे कोई माया नगरी की रानी हो, अनुश्री दीदी की बेपरवाह हवस, और अब्दुल, मोहित, प्रवीण की वो भूखी, शिकारी नजरें—सब कुछ मेरे जिस्म में आग सी भड़का रहा था। 

मामी की चूत और गांड का वो रसीला स्वाद अभी भी मेरे मुँह में बाकी था, जैसे कोई नशा जो उतरने का नाम ही न ले। हर कोई अपनी-अपनी वासना की आग में जल रहा था, और मेरा घर अब कोई मंदिर नहीं, बल्कि हवस का अड्डा बन चुका था।आज नवीन की शादी थी। यही वो दिन था जिसने मेरे जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया था। बारात को 100 किलोमीटर दूर भोसारी नाम की किसी कस्बे में जाना था। साला, नाम ही इतना अजीब था कि सुनते ही हँसी छूट जाती थी, लेकिन मेरे दिमाग में हँसी नहीं, बल्कि वो रात का मंजर घूम रहा था। पूरा दिन शादी की व्यवस्था में बीत गया। मेरे दोस्त—मोहित, प्रवीण, आदिल—सब सिद्दत से काम में जुटे थे। 

माँ रेशमा, मामी, मौसी—सब अपनी-अपनी जिम्मेदारियों में व्यस्त थे। किसी के पास एक पल की फुर्सत नहीं थी, लेकिन मेरी नजरें बार-बार माँ और अनुश्री की ओर खिंच रही थीं।तय हुआ था कि बारात को 4 बजे तक निकल जाना है, वरना देर हो जाएगी। 

सभी औरतों ने अपने-अपने बैग तैयार कर लिए थे। चूंकि बारात दूर थी, सारी व्यवस्था—बैंड-बाजा, पार्लर, मेकअप—वहीं बुक कर लिया गया था। 3:45 बज चुके थे, और मैं, मामा, और मेरे दोस्त बदहवास व्यवस्था में लगे थे। बस आ चुकी थी, और कुछ खास औरतों के लिए कारें तैयार थीं। ज्यादातर बाराती बस में सवार होकर निकल चुके थे। अब सिर्फ कार में जाने वाले बचे थे।हम सब घर के बाहर खड़े थे, तभी मेरी नजर घर की औरतों पर पड़ी। 

उफ्फ... मेरी माँ रेशमा, मामी, और अनुश्री दीदी—एक से बढ़कर एक हुस्न की मल्लिका। लहंगों और साड़ियों में सजी-धजी, वो किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थीं।

 माँ की साड़ी उनकी गोरी कमर को बमुश्किल ढक रही थी, e19a4274278375727f72cd91b36f9585 मामी के स्तन ब्लाउज मे समाये नहीं समा रहे थे, 5b4cddebeb8b4b88b316e9bdbb32b866

और अनुश्री का लहंगा उनके सुडौल जिस्म को उभार रहा था। 835ca45266178e38de532522411f64e5 अब मैं उन्हें सिर्फ माँ और दीदी के रूप में नहीं, बल्कि औरतों के रूप में देख रहा था—उनकी हर अदा, हर हाव-भाव में हवस की आग थी। वो आपस में खिलखिलाती, बातें करती चली आ रही थीं।


“अरे भई, कितनी देर लगाती हो तुम औरतें!” मामा सकपकाते हुए बोले। “जल्दी बैठो, वरना बारात लेट हो जाएगी!” मेरे दोस्तों ने सारे बैग कारों में ठूंस दिए।

कार-1: 

माँ रेशमा और मामी एक कार में जा बैठीं, जिसे अब्दुल चला रहा था। मैं कुछ कहने वाला था कि आदिल भागता हुआ पीछे की सीट पर जा बैठा। “साला, ये क्या...” मैंने मन ही मन सोचा, लेकिन अब्दुल के साथ आगे की सीट पर बैठ गया।

कार-2: 

अनुश्री दीदी, जीजा मंगेश, मोहित, और प्रवीण दूसरी कार में सवार हुए। मंगेश ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठ गया, हाथ में कोल्ड्रिंक की बोतल लिए। मुझे समझते देर न लगी—साला, जीजा ने दारू मिलाकर मस्ती का प्लान बना रखा था। अनुश्री से उसे कोई मतलब ही नहीं था।

कार-3:

 मामा, नवीन, और मौसी इस कार में थे। इसमें सारा सामान—पैसे, ज़ेवर—रखा था। तय हुआ कि ये कार पटनायक की car के आगे चलेगी.

कार-4:

 मामा का खास दोस्त पटनायक और उसकी फैमिली इस कार में थी। पटनायक पुलिस वाला था, तो कोई डर की बात नहीं थी।

बाकी कारें: 

दो और कारें थीं, जिनमें नवीन के पुराने दोस्त और कुछ खास मेहमान थे, जो दारू और मस्ती के मूड में थे।मौसम सुहाना हो चला था। बाहर ठंडी हवा चल रही थी, और आसमान में काले बादल मंडरा रहे थे। मामा को चिंता थी कि कहीं बारिश न शुरू हो जाए।


 सबसे आगे अनुश्री वाली कार चल रही थी, और पीछे हमारी कार। हाईवे पर दौड़ रही थी। ड्राइवर अपनी दुनिया में मस्त था, और मंगेश आगे की सीट पर बैठा कोल्ड्रिंक की बोतल से घूँट ले रहा था। उसने चुपके से दारू मिला रखी थी, और कार में बज रहा गाना—“ये रातें, ये मौसम, नदी का किनारा...”—उसे अपनी ही दुनिया में ले जा रहा था। मंगेश का चेहरा शांत था, लेकिन उसकी आँखें धुंधली थीं, जैसे दारू और गाने ने उसे पूरी तरह जकड़ लिया हो। 

वो हल्के-से सिर हिला रहा था, कभी-कभी गाने की धुन में बुदबुदाता, “उफ्फ... ये गाना... मस्त है...”। शायद उसे भनक भी नहीं थी कि पीछे की सीट पर उसकी बीवी अनुश्री क्या गुल खिला रही थी। या फिर वो जानबूझकर अनजान बन रहा था? ये तो वही जाने।


पीछे की सीट पर अनुश्री, मोहित और प्रवीण के बीच सैंडविच बनी बैठी थी। उसका लहंगा लाल रंग का था, इतना टाइट कि उसका सुडौल जिस्म जैसे उसमें कैद हो। उसकी गोरी, मांसल जाँघें लहंगे की सिलवटों से झाँक रही थीं, और उसकी चोली उसके भारी, गोल स्तनों को बमुश्किल ढक रही थी। दुपट्टा तो कार में बैठते ही कब का उतर चुका था। मोहित और प्रवीण से अब उसे क्या शर्म? उसकी साँसें तेज थीं, जैसे कोई ज्वालामुखी उसके अंदर फटने को तैयार हो।


 पिछली रात का नजारा—माँ रेशमा की चुदाई, वो “पच... पच...” की आवाजें, मोहित और प्रवीण के लंड से भरी उसकी चूत और गांड—अनुश्री के जिस्म में आग बनकर सुलग रहा था। उसकी आँखों में एक भूख थी, एक बेचैनी, जो हर पल और बढ़ रही थी। और अपने पति मंगेश की मौजूदगी में ये जोखिम उसे पागल कर रहा था।

“क्या बात है, दीदी? आज तो तुम्हारा जिस्म कुछ ज्यादा ही गर्म लग रहा है,” मोहित ने धीमी, मादक आवाज़ में कहा। उसका हाथ अनुश्री की जाँघ पर सरक गया, और उसकी उंगलियाँ लहंगे की सिलवटों में उलझने लगीं। उसने धीरे-से लहंगे को ऊपर सरकाया, और अनुश्री की चिकनी, गोरी त्वचा हवा में चमक उठी। 


“स्स्स... मोहित... धीरे... वो आगे बैठा है,” अनुश्री ने फुसफुसाते हुए कहा, लेकिन उसकी आवाज़ में तड़प थी। उसने एक नजर मंगेश की ओर डाली, जो अभी भी अपनी बोतल से घूँट ले रहा था, गाने की धुन में खोया हुआ। अनुश्री के होंठों पर एक शरारती मुस्कान उभरी। अपने पति की बगल में ये खेल उसे और उकसा रहा था।

“जीजा जी को तो दारू और गाने से फुर्सत नहीं,” प्रवीण ने शरारत भरे लहजे में कहा। उसका हाथ अनुश्री की दूसरी जाँघ पर था, और उसकी उंगलियाँ धीरे-धीरे उसकी कच्छी की लेस की ओर बढ़ रही थीं। अनुश्री की चूत पहले से ही गीली थी, और उसकी कच्छी में एक गीला धब्बा साफ दिख रहा था।

 “उफ्फ... प्रवीण... तुम लोग... कितने बदमाश हो,” अनुश्री ने सिसकते हुए कहा, लेकिन उसने अपनी जाँघें और चौड़ा कर दीं, जैसे न्योता दे रही हो। उसका एक हाथ मोहित की जाँघ पर सरक गया, और उसकी उंगलियाँ उसकी जींस के उभार को टटोलने लगीं।

 मोहित का लंड पहले से ही तन चुका था, और उसकी जींस में उभर रहा था, जैसे कोई कैदी आज़ादी माँग रहा हो।“स्स्स... दीदी... तुम तो... आह...” मोहित की सिसकारी हल्की-सी गूँजी। अनुश्री की उंगलियाँ अब उसकी जींस की ज़िप पर थीं। उसने धीरे-से ज़िप खोली, और मोहित का तना हुआ लंड बाहर कूद पड़ा। उसका लंड काला, मोटा, और नसों से भरा था, जैसे कोई हथियार तैयार हो। अनुश्री ने एक बार फिर मंगेश की ओर देखा। वो अभी भी अपनी बोतल से घूँट ले रहा था, गाने में खोया हुआ। 

अनुश्री की आँखों में एक मादक चमक थी। अपने पति की मौजूदगी में ये जोखिम उसे पागल कर रहा था। उसने झट से अपना सिर नीचे किया और मोहित के लंड को अपने रसीले होंठों में ले लिया। gifcandy-amateurs-161 “लप... लप...” की आवाज़ हल्की-सी गूँजी, लेकिन कार के इंजन और गाने की आवाज़ ने उसे दबा दिया।“उफ्फ... दीदी... तुम तो... मार डालोगी...” मोहित की साँसें तेज़ हो गईं। अनुश्री की जीभ उसके लंड के सुपारे पर चक्कर काट रही थी, और उसकी लार उसके लंड पर चमक रही थी। 

वो हर चूसने के साथ और गहराई तक ले रही थी, जैसे उसका सारा रस निचोड़ लेना चाहती हो। प्रवीण ने मौका देखते ही अनुश्री की कच्छी को नीचे सरकाया। उसकी गीली, चिकनी चूत अब खुली हवा में थी, और उसकी फाँकों पर रस की बूँदें चमक रही थीं। “पच... पच...” की हल्की आवाज़ गूँजी, जब प्रवीण की उंगलियाँ उसकी चूत पर फिसलीं। “आह... प्रवीण... उफ्फ...” अनुश्री की सिसकारी मोहित के लंड पर दब गई।प्रवीण ने अपनी एक उंगली अनुश्री की चूत में सरकाई, और उसका जिस्म झटके से काँप उठा। images “स्स्स... प्रवीण... और...” उसकी आवाज़ टूट रही थी। प्रवीण ने अपनी दूसरी उंगली को थूक से गीला किया और धीरे-से उसकी गांड के छेद पर रगड़ा। “आह... ये... ये क्या...” अनुश्री की सिसकारी चीख में बदल गई, लेकिन उसने अपने होंठ मोहित के लंड पर कस लिए। प्रवीण ने धीरे-से अपनी उंगली उसकी गांड में डाल दी, और अनुश्री का जिस्म थरथरा उठा। उसकी चूत से रस की बूँदें टपकने लगीं, और उसकी साँसें रुक-रुक कर चल रही थीं।“उफ्फ... दीदी... तुम्हारी चूत... शहद सी गीली है...” प्रवीण ने हाँफते हुए कहा। उसकी उंगलियाँ अनुश्री की चूत और गांड में अंदर-बाहर हो रही थीं, और हर धक्के के साथ अनुश्री की सिसकारियाँ और तेज़ हो रही थीं। लेकिन अनुश्री रुकी नहीं। उसने मोहित के लंड को अपने मुँह से निकाला और तुरंत प्रवीण की ओर पलटी। उसने प्रवीण की जींस की ज़िप खोली, और उसका तना हुआ लंड बाहर आया। अनुश्री की आँखें चमक उठीं। वो एक साथ दोनों लंड अपने हाथों में लेना चाहती थी। उसने मोहित के लंड को अपने बाएँ हाथ में पकड़ा और प्रवीण के लंड को अपने दाएँ हाथ में। फिर, जैसे कोई जादूगरनी, उसने दोनों लंडों को बारी-बारी से अपने मुँह में लिया। “लप... लप... गुलप...” की आवाज़ें कमरे में गूँज रही थीं, लेकिन कार के इंजन और गाने की आवाज़ ने उन्हें दबा दिया।“आह... दीदी... कहाँ से सीखा ये सब...” मोहित और प्रवीण दोनों हाँफ रहे थे। अनुश्री की जीभ दोनों लंडों के सुपारों पर चक्कर काट रही थी, और उसकी लार दोनों लंडों पर चमक रही थी। वो कभी मोहित के लंड को गहराई तक चूसती, तो कभी प्रवीण के लंड को अपने होंठों में कस लेती। उसकी आँखें आधी बंद थीं, और उसका चेहरा पसीने और उत्तेजना से चमक रहा था। मंगेश अभी भी आगे बैठा था, अपनी कोल्ड्रिंक की बोतल से घूँट ले रहा था। गाना अब बदल गया था—“आज ना छोड़ेंगे, बस हम तुम...”। मंगेश हल्के-से सिर हिला रहा था, पूरी तरह अनजान कि उसकी बीवी पीछे दो लंडों का रसपान कर रही थी।अनुश्री की उत्तेजना चरम पर थी। अपने पति की मौजूदगी में ये जोखिम, ये हवस, ये बेपरवाही—उसके जिस्म में आग लगा रही थी। उसने मोहित के लंड को अपने मुँह से निकाला और प्रवीण के लंड को और गहराई तक लिया। “गुलप... गुलप...” की आवाज़ तेज़ हो गई, और प्रवीण की साँसें रुकने लगीं। “आह... दीदी... मैं... मैं...” प्रवीण की आवाज़ टूट रही थी। अनुश्री ने उसका लंड अपने मुँह में कस लिया, और कुछ ही पलों में प्रवीण का गर्म वीर्य उसके मुँह में फट गया। अनुश्री ने उसका सारा रस पी लिया, और उसकी जीभ ने लंड को चाट-चाटकर साफ कर दिया। “उफ्फ... प्रवीण... कितना गर्म है...” उसने सिसकते हुए कहा, और उसकी उंगलियाँ मोहित के लंड को और तेज़ी से सहलाने लगीं।मोहित अब बेकाबू हो रहा था। “दीदी... आह... तुम तो... रंडी हो...” उसने हाँफते हुए कहा।

 अनुश्री ने उसकी बात पर एक मादक मुस्कान दी और उसके लंड को फिर से अपने मुँह में लिया। “लप... लप...” की आवाज़ फिर से गूँजी, और मोहित की साँसें तेज़ हो गईं। कुछ ही पलों में उसका लंड भी अनुश्री के मुँह में फट गया, और उसका गर्म वीर्य उसके होंठों पर टपकने लगा। अनुश्री ने उसे भी चाट लिया, और उसकी आँखों में एक तृप्ति थी, जैसे उसने कोई जंग जीत ली हो।

प्रवीण ने अपनी उंगलियाँ अनुश्री की चूत से निकालीं और उन्हें अपने मुँह में डाल लिया। “उफ्फ... दीदी... तुम्हारा रस... शहद जैसा है...” उसने मादक अंदाज़ में कहा। अनुश्री की चूत से रस की धार बह रही थी, और उसका जिस्म थरथराने लगा। वो झड़ चुकी थी, और उसकी साँसें भारी थीं। उसने अपनी कच्छी ऊपर की और लहंगे को ठीक किया। 

उसकी आँखें अभी भी मंगेश की ओर थीं, जो अब अपनी बोतल खत्म कर चुका था और हल्के-से झूम रहा था। “स्स्स... ये बारात तो यादगार रहेगी,” अनुश्री ने फुसफुसाते हुए कहा, और मोहित और प्रवीण के चेहरों पर शरारती मुस्कान थी।

कार हाईवे पर दौड़ रही थी, और गाना अब “पिया तू अब तो आजा...” में बदल गया था। मंगेश ने एक और घूँट लिया, और उसका सिर अब हल्के-से लटक रहा था। शायद दारू ने उसे पूरी तरह अपने कब्जे में ले लिया था। अनुश्री ने मोहित और प्रवीण की ओर देखा, और उसकी आँखों में एक और चमक थी।

 “लगता है जीजा जी तो गए?,” उसने धीमी आवाज़ में कहा। 

“क्या कहती हो, दीदी... अपने भाइयो को दूध भी पीला दो ना? " मोहित ने शरारत भरे लहजे में पूछा। 

अनुश्री ने एक मादक हँसी हँसी और अपनी चोली के दो बटन को टक टक करते हुए खोल दिया, और जाँघे दोनों जे पैरो ओर चढ़ गई। “पच... पच... गुलप गप... गप.... गुलप... ाआहे... उउउफ्फ्फ... आराम से धीरे....की आवाज़ फिर से car मे बजते गानों को संगीत देने लगी, और कार का माहौल फिर से तपने लगा।

*******


इधर, हमारी कार में माहौल कुछ और ही था। अब्दुल ड्राइव कर रहा था, और मैं उसके बगल में बैठा बाहर की ठंडी हवा को महसूस कर रहा था। पीछे की सीट पर माँ रेशमा, मामी, और आदिल थे।

 माँ की साड़ी उनकी गोरी कमर को बमुश्किल ढक रही थी, और मामी का ब्लाउज़ उनके भारी स्तनों को उभार रहा था। आदिल, जो माँ के बगल में बैठा था, बार-बार उनकी ओर देख रहा था। उसकी नजरें माँ के ब्लाउज़ में झाँक रही थीं, जहाँ उनकी गोरी, मांसल छातियाँ साँसों के साथ ऊपर-नीचे हो रही थीं।


“क्या हुआ, जीजी? तकलीफ तो नहीं?” मामी ने माँ की ओर देखते हुए पूछा। माँ ने एक नजर आदिल को घूरकर देखा, जैसे कह रही हों, “भाभी के सामने ये क्या कर रहा है?” लेकिन आदिल के हाथ उनकी साड़ी के नीचे सरक रहे थे, उनकी नरम, गर्म जाँघों को हल्के-हल्के सहला रहे थे। 

“कुछ नहीं, भाभी... बस जगह थोड़ी कम है,” माँ ने सफाई देते हुए कहा, लेकिन उनकी आवाज़ में एक हल्की-सी कंपकंपी थी।

“मैं तो वैसे ही कोने में दबा बैठा हूँ, आप दोनों की वजह से,” आदिल ने शरारत भरे लहजे में कहा, और खिड़की की ओर और सट गया। 

“हट, बदमाश!” मामी ने हँसते हुए कहा, और कार में एक हल्का-सा खुशनुमा माहौल बन गया। लेकिन मैं जानता था—ये खुशनुमा माहौल बस सतह पर था। आदिल की नजरें माँ की छातियों पर टिकी थीं, और माँ की साँसें तेज़ हो रही थीं। मामी शायद कुछ भाँप रही थी, लेकिन वो चुप थी, अपनी साड़ी ठीक करने में व्यस्त।


तभी अचानक—फट्ट... फट्ट... चर्रर्र... स्स्सररर...—कार हाईवे पर लहराने लगी, जैसे कोई जंगली घोड़ा बेकाबू हो गया हो। माँ और मामी की चीखें हवा में गूँजीं, और उनकी साड़ियाँ उलझकर उनके गोरे, सुडौल जिस्मों को और उजागर कर गईं। अब्दुल ने स्टीयरिंग को पूरी ताकत से पकड़ा, और आखिरकार कार को सड़क के किनारे रोक लिया। 

“क्या हुआ, अब्दुल भाई?” मैंने हैरान और परेशान होकर पूछा।“लगता है आगे का टायर फट गया। किसी को चोट तो नहीं लगी?” अब्दुल ने पीछे देखते हुए पूछा। 

माँ और मामी के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं। उनकी साड़ियाँ अस्त-व्यस्त थीं, और उनके गोरे, सुडौल स्तन ब्लाउज़ से बाहर झाँक रहे थे। 

“हाय राम... ये अभी होना था?” मामी ने गहरी साँस लेते हुए कहा।हम सब जल्दी से कार से उतरे।

 “ये वही कार थी जो हम दिल्ली से लाए थे। पिछले महीने ही तो नए टायर डलवाए थे,” अब्दुल ने सफाई देते हुए कहा।

 “कोई स्टेपनी लगा लो, फटाफट!” मैंने कहा। लेकिन अब्दुल का मुँह लटक गया। “अमित भाई, स्टेपनी तो रखना भूल गया। सोचा था नए टायर हैं, क्या जरूरत...”“क्या यार, अब्दुल!” आदिल ने फटे हुए टायर को लात मारते हुए कहा।

 मैंने घड़ी की ओर देखा 5 बज गए थे, पहाड़ों में अंधेरा जल्दी छा जाता है, और आसमान में काले बादल और घने हो रहे थे। तभी पीछे से मामा और पटनायक की कार आ पहुँची। 

माँ ने एक नजर पटनायक को देखा, और पटनायक ने माँ को। दोनों ने एक फीकी-सी मुस्कान दी, जैसे कोई पुराना राज़ उनके बीच हो। पटनायक की बीवी साथ थी, तो वो चुप रहा।

“क्या हुआ, अमित? रेशमा?” मामा कार से उतरते हुए बोले। “मामा, टायर फट गया,” मैंने बताया। 

“किसी को चोट तो नहीं?” पटनायक ने पूछा।

 “नहीं, भाईसाब, सब ठीक है,” माँ ने जवाब दिया। 

मैंने स्टेपनी की बात मामा को बताई। “क्या करें अब, मामा?”

अब्दुल तब तक जैक लगाकर टायर खोल चुका था।

 मामा ने सोचा और बोले, “ऐसा करते हैं—पटनायक, तुम, नवीन, मौसी, और सारा सामान लेकर निकलो। दूल्हा लेट हो गया तो बारात कैसे चलेगी? मैंने पीछे कोई 10-12 km एक पंचर की दुकान देखी थी, मैं और अमित दुकान से पंचर बनवाकर लाते हैं।”

मुझे मामा के साथ जाना था। मन में खटका था—माँ, मामी, आदिल, और अब्दुल को अकेले छोड़ना? साला, ये भेड़ियों को भेड़ की रखवाली सौंपने जैसा था। लेकिन मामा का हुक्म था, तो मैं चुपचाप उनके साथ टायर लेकर निकल गया। 

पटनायक बाकी सबको लेकर आगे बढ़ गया। पीछे रह गए—मेरी माँ रेशमा, मामी, आदिल, और अब्दुल।

उफ्फ... हे भगवान, ये कैसी लीला लिख रहा है तू? घड़ी में 5:30 बज चुके थे, और सूरज डूबने लगा था। बारात में टाइम पर पहुँचना था, अब मामा के माथे पर भी सिकन थी। 

ना जाने अब क्या होगा? टाइम पर पहुँच पाएंगे या नहीं... 

बने रहिए, बारात में जाना है!

Contd.....

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1 Comments

  1. Aisi Baarat mein to har koi jana chahega ...kya anubhav hahin bhai...gajab.

    Bahut hi badhiya...

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