मेरी माँ रेशमा -27
रात के चार बज चुके थे। शादी का हॉल, जो कुछ घंटे पहले रंग-बिरंगी रोशनी, मेहमानों की हंसी-मजाक, और डीजे की धुनों से गूंज रहा था, अब सन्नाटे की चादर में लिपट गया था। मंडप की लाल और सुनहरी सजावट अब मद्धम दीयों की रोशनी में हल्की-हल्की चमक रही थी।
मारिगोल्ड की मालाएँ, जो रात में हवा में लहरा रही थीं, अब थककर लटक रही थीं, जैसे वो भी इस लंबी रात की थकान महसूस कर रही हों।
हवा में अगरबत्ती की हल्की खुशबू और मंत्रोच्चार की धीमी गूँज अभी भी बाकी थी, लेकिन मेहमानों की भीड़ छट चुकी थी। कुछ बुजुर्ग कुर्सियों पर ऊंघ रहे थे, कुछ बच्चे माताओं की गोद में सो रहे थे, और बाकी लोग अपने कमरों में नींद की आगोश में चले गए थे।
सुबह कुछ रस्में बाकी थीं, फिर विदाई का वक्त आना था, लेकिन अभी की रात सिर्फ सन्नाटे और अंधेरे की थी।
मैं, अमित, हॉल के एक कोने में बनी बालकनी में खड़ा था। ठंडी हवा मेरे चेहरे को छू रही थी, लेकिन मेरे जिस्म में एक आग सुलग रही थी। हाथ में सिगरेट थी, जिसका धुआँ हवा में उड़ रहा था, लेकिन वो मेरी बेचैनी को शांत नहीं कर पा रही थी।
सामने वो झाड़ियाँ दिख रही थीं, जहाँ कुछ घंटे पहले मेरी माँ, रेशमा, और पटनायक की वो हवस भरी मुलाकात हुई थी। मेरे दिमाग में वो सीन बार-बार घूम रहा था—माँ की गोरी, चमकती गांड, उसकी चूत से बहता चासनी जैसा रस, पटनायक का मोटा, काला लंड, और वो सिसकारियाँ जो हवा में गूंज रही थीं। "आह्ह… और जोर से… चोद मुझे!"—माँ की वो चीखें मेरे कानों में अब भी गूंज रही थीं, जैसे कोई रिकॉर्ड बार-बार बज रहा हो,
मामी के ज्ञान के बाद मै समझ गया था की औरत की इच्छा होती है, कामना होती है, लेकिन इस कद्र हवस होती है ये नहीं पता था, माँ अपनी हवस मे उस बूढ़े ड्रम वाले की जान लेने पे उतारू थी, और तो और पटनायक जैसे मजबूत आदमी के कस बल भी माँ ने ढीले कर दिए थे, माँ का ये रूप मेरे लिए अनदेखा था, डरावना था, ककी स्त्री इस कद्र कैसे खतरनाक हो सकती है।
और फिर मौसी का वो सीन, ड्रेसिंग टेबल से चिपकी हुई मौसी, अब्दुल और आदिल के बीच उसका नंगा जिस्म, उसकी चूत और गांड से टपकता रस, और वो बेशर्म सिसकारियाँ—आह्ह… और गहरा डाल… फाड़ दो मुझे!।
मेरे घर की औरतें, जिन्हें मैं साधारण औरत समझता था, लगता था की सिर्फ थोड़ी मौज मस्ती ही कर रही है, लेकिन आज रात तो इनका एकदम अलग रूप ही मेरे सामने आ गया था,
माँ और मौसी, दोनों ने अपनी हवस को इस शादी की रात में खुलकर जिया था, और मैं, उनका बेटा और भतीजा, इन सबका गवाह बना यहाँ खड़ा लंड लिए सिगरेट पी रहा था,
मेरा लंड पैंट में तंबू बनाए हुए था, सख्त और बेकाबू, जैसे वो भी इस रात की आग में जल रहा हो। सिगरेट का हर कश मेरी बेचैनी को और बढ़ा रहा था।
मैंने सिगरेट का एक लंबा कश लिया और धुआँ हवा में छोड़ा। सामने की झाड़ियों को देखते हुए मेरे दिमाग में माँ की चूत से बहता रस, मौसी की चीखें, और उनकी नंगी देह की तस्वीरें नाच रही थीं।
मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, जैसे कोई जंग मेरे अंदर चल रही हो। क्या मैं गलत था जो ये सब देख रहा था? क्या ये औरतें, जिन्हें मैं प्यार और सम्मान देता था, ऐसी थीं? या ये उनकी आजादी थी, उनकी हवस, जो इस रात में खुलकर बाहर आई थी? मेरे सवालों का कोई जवाब नहीं था, लेकिन मेरे जिस्म में एक आग थी, जो शांत होने का नाम नहीं ले रही थी।
********
"क्या हुआ, अमित? नींद नहीं आ रही?" अचानक एक नरम, मादक आवाज ने मेरी तंद्रा तोड़ दी। मैं चौंककर पलटा, और मेरी सिगरेट मेरे हाथ से छूटकर बालकनी के फर्श पर गिर गई।
मेरे सामने मेरी मामी, खड़ी थी। उनकी उम्र करीब 42 साल थी, लेकिन उनका जिस्म किसी जवान औरत को टक्कर दे सकता था। उनका गहरा हरा लहंगा रात की रोशनी में चमक रहा था, और उसका स्लीवलेस ब्लाउज उनके भरे हुए स्तनों को कसकर पकड़े हुए था। उनकी क्लीवेज इतनी गहरी थी कि उसमें डूब जाने का मन करता था, और पसीने की बूँदें उनकी त्वचा पर मोतियों की तरह चमक रही थीं।
उनका लहंगा उनकी नाभि के काफी नीचे बंधा था, जो उनकी सुडौल कमर और भारी नितंबों को उभार रहा था। उनकी गोरी, चिकनी जाँघें हल्के-हल्के दिख रही थीं, और उनके जिस्म से उठती गुलाब और चंदन की मिश्रित खुशबू मेरे होश उड़ा रही थी।
उनके लंबे, घने बाल कंधों पर बिखरे हुए थे, और उनकी आँखों में एक शरारती चमक थी, जैसे वो मेरी बेचैनी को पढ़ चुकी हों।"
"ममम… मामी, आप?" मेरे मुँह से सिगरेट का धुआँ निकल रहा था, और मेरी आवाज में हड़बड़ी साफ झलक रही थी। मेरी पैंट में बना तंबू अब और साफ दिख रहा था, और मैं उसे छिपाने की कोशिश में नाकाम रहा।
मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था, और मेरे चेहरे पर पसीना छलकने लगा, लेकिन मामी कुछ नहीं बोलीं। वो धीरे-धीरे मेरे पास आईं, और उनके कदमों की हल्की आहट बालकनी के सन्नाटे में गूंज रही थी।
उनके जिस्म से वो मादक खुशबू और तेज हो गई, और मेरे दिमाग में जैसे एक नशा सा छाने लगा। वो मेरे इतने करीब आ गईं कि मैं उनकी साँसों की गर्मी महसूस कर सकता था। अचानक, उन्होंने अपने नाजुक, मुलायम होंठ मेरे होंठों से चिपका दिए।
"आह्ह…इस्स्स..." मेरे मुँह से एक हल्की सी सिसकारी निकल गई। मामी ने मेरे होंठों को चूमा, और सिगरेट का धुआँ, जो अभी मेरे मुँह में था, वो जैसे उनके होंठों में समा गया।
उनकी जीभ मेरे होंठों पर हल्के-हल्के घूम रही थी, जैसे वो मेरे मुँह में बचे हुए धुएं को पी रही हों। उनकी साँसों की गर्मी मेरे चेहरे को छू रही थी, और मेरा लंड अब और सख्त हो गया, जैसे वो मेरी पैंट फाड़कर बाहर आने को बेताब हो।
मैं हैरान था, मेरे दिमाग में सवालों का तूफान था—ये क्या हो रहा है? मेरी मामी, एक दम से कहाँ आ गई? क्यों आ गई? क्या कोई बात है? मै मामी का ये रूप पहले भी देखा था लेकिन उस बार पहल मैंने की थी, मै गुस्से मे था, मैंने गुस्से मे अपनी मामी को चोदा था,
लेकिन मामी का ये रूप ये जज्बा देख मै जम सा गया था,
मामी ने मेरे होंठों से अपने होंठ हटाए और मेरी आँखों में देखा। उनकी आँखों में एक शरारती चमक थी, और उनकी मुस्कान में एक अजीब सी मादकता थी।
"इसी लिए बेचैन हो रहा है ना तू?" उन्होंने धीरे से कहा, उनकी आवाज इतनी नरम थी कि वो मेरे कानों में रस घोल रही थी। उनका हाथ धीरे-धीरे मेरी छाती से नीचे सरकने लगा, और फिर मेरी पैंट के ऊपर बने तंबू पर रुक गया।
उनकी उंगलियाँ मेरे लंड को पैंट के ऊपर से सहलाने लगीं, और हर स्पर्श के साथ मेरे जिस्म में बिजली सी दौड़ रही थी।
"मामी… मममम... मामी...ये… ये क्या…" मेरी आवाज काँप रही थी, लेकिन मेरे जिस्म ने मेरे शब्दों को धोखा दे दिया। मेरा लंड उनकी उंगलियों के स्पर्श से और सख्त हो गया।
मामी ने मेरी पैंट की जिप खोली, और उनका नाजुक हाथ मेरे लंड को बाहर निकालने लगा। उनकी मुलायम उंगलियाँ मेरे लंड को सहलाने लगीं,
जैसे वो उसकी हर नस को महसूस करना चाहती हों।
"श्श्श… चुप," मामी ने अपनी उंगली मेरे होंठों पर रखते हुए कहा। "बस इसे मेरे हवाले कर दे, तेरी सारी बेचैनी दूर हो जाएगी।"
वो धीरे से नीचे झुकीं और मेरे लंड को अपने मुलायम होंठों के बीच ले लिया। "आह्ह… मामी…" मेरे मुँह से एक सिसकारी निकल पड़ी। उनकी जीभ मेरे लंड के सुपाड़े पर गोल-गोल घूम रही थी, धीरे-धीरे, जैसे वो हर पल का स्वाद ले रही हों।
लप… लप… चप… चप… की आवाजें बालकनी के सन्नाटे में गूंजने लगीं।
उनका मुँह मेरे लंड को पूरी तरह निगल रहा था, और उनकी जीभ मेरे लंड की नसों को छू रही थी। उनकी चूसने की रिदम इतनी धीमी और कामुक थी कि मैं अपने होश खोने लगा था। कभी वो मेरे सुपाड़े को हल्के से चूसतीं, तो कभी अपनी जीभ को मेरे टट्टों तक ले जातीं। उनके होंठ मेरे लंड को इतनी गहराई तक ले जा रहे थे कि मैं सिसकारियाँ लेने लगा।
"आह्ह… मामी… उउउफ्… और जोर से…" मैंने अनजाने में कहा, मेरी आवाज में एक जंगलीपन था, जो मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया था। मेरे हाथ मामी के सर को आपने लंड पर दबा रहे थे,
मामी बिना कुछ कहे मेरे लंड को चूसती रही, गले तक धकेलती रही, जी भर के मेरे लंड को चूसने के बाद मामी ने मेरे लंड को अपने मुँह से निकाला और धीरे से पीछे हटीं।
मेरा लंड मामी के थूक से पूरी तरह सना हुआ था, इतना की थूक की बुँदे मेरे लंड से चु रही थी,
उनकी आँखें मेरी आँखों से मिलीं, और उनकी मुस्कान में एक मादक आत्मविश्वास था। वो धीरे-धीरे खड़ी हुईं और अपने ब्लाउज के हुक खोलने लगीं।
फट… फट… की हल्की आवाज के साथ उनका स्लीवलेस ब्लाउज खुल गया, और उनके गोरे, भरे हुए स्तन मेरे सामने थे। उनके निप्पल गुलाबी और तने हुए थे, जैसे वो मेरे स्पर्श का इंतज़ार कर रहे हों।
उनके स्तन इतने सुडौल और मुलायम थे कि उनमें खो जाने का मन करता था। पसीने की बूँदें उनकी क्लीवेज में चमक रही थीं, और रात की हल्की रोशनी में उनका जिस्म किसी मूर्ति की तरह चमक रहा था।
मामी यही नहीं रुकी उन्होंने आपने हाथ नीचे ले जाते हुए अपने लहंगे का नाड़ा खींच दिया। धीरे-धीरे, उनका हरा लहंगा नीचे सरकने लगा, और मेरी आँखें उनके जिस्म पर टिक गईं।
मेरा मुँह खुला का खुला रह गया, लंड झटके खाने लगा,
मामी ने अंदर कुछ नहीं पहना था—न कच्छी, न पेटीकोट। उनका नंगा, सुडौल जिस्म अब पूरी तरह मेरे सामने था।
उनकी गोरी, चिकनी जाँघें रात की रोशनी में मोतियों की तरह चमक रही थीं।
उनकी चूत, जो पहले से ही गीली थी, चमक रही थी, और उसकी भगनासा तनी हुई थी, जो की चुत की महीन दरार से बहार झाँक रही थी, जैसे वो मेरे मुँह का इंतज़ार कर रही हो।
उनकी कमर इतनी सुडौल थी कि हर कर्व में एक मादकता थी, और उनकी गहरी नाभि पसीने की बूँदों से भरी थी। उनका चेहरा, जो पसीने से चमक रहा था, एक शरारती मुस्कान से सजा था।
"आजा, अपनी मामी को प्यार नहीं करेगा? आज अपनी उत्तेजना नहीं निकलेगा, कितना कुछ सहता है तु, आ जा मेरे लाल " मामी ने धीरे से कहा, उनकी आवाज में एक ऐसी मादकता थी कि मेरा लंड और सख्त हो गया, फटने को आतुर हो गया, मै हैरत से उनका जिस्म देखे जा रहा था, जैसे कोई ख्वाब मेरे सामने सच हो गया हो।
उनका जिस्म—उनके भरे हुए स्तन, उनकी सुडौल कमर, उनकी चमकती जाँघें—सब कुछ रात की रोशनी में चमक रहा था, जैसे वो कोई अप्सरा हों।
मै अब और रुक नहीं सका। मैं उनके पास गया और उनके सुडौल स्तनों पर टूट पड़ा।
मेरे हाथ उनके स्तनों को मसलने लगे, और मेरे होंठ उनके निप्पल पर टिक गए। लप… लप… की आवाज के साथ मैं उनके निप्पल को चूसने लगा।
मामी की सिसकारी निकल पड़ी—"आह्ह… अमित… धीरे… उउउफ्…" उनकी आवाज में सुख और दर्द का मिश्रण था। उनका एक हाथ मेरे लंड पर था, और वो उसे धीरे-धीरे सहला रही थीं, जैसे वो मेरी उत्तेजना को और भड़का रही हों।
मैंने उनके स्तनों को चूसना जारी रखा, और मेरी जीभ उनके निप्पल पर गोल-गोल घूम रही थी। हर बार जब मैं उनके निप्पल को हल्का सा काटता, उनकी कमर उछल पड़ती। "आह्ह… अमित… और जोर से…" वो हाँफ रही थीं, और उनका जिस्म मेरे स्पर्श से सिहर रहा था।
मैंने अपना एक हाथ उनकी चूत पर ले गया, और उनकी गीली भगनासा को सहलाने लगा। उनकी चूत से रस टपक रहा था, और मेरी उंगलियाँ उसमें डूब रही थीं।
"नीचे… अमित… वहाँ चाट…" मामी ने हाँफते हुए कहा। मैं नीचे झुका और उनकी चूत के सामने बैठ गया। उनकी चूत की मादक गंध ने मेरे होश उड़ा दिए। मै अब और नहीं रुक सकता था, मैंने अपनी जीभ उनकी चूत पर रखी और उसे चाटना शुरू किया। लप… लप… पच… पच… की आवाजें बालकनी में गूंजने लगीं।
उनकी चूत का रस मेरे मुँह में घुल रहा था, और मैं हर बूँद को भूखे कुत्ते की तरह चाट रहा था। उनकी भगनासा तनी हुई थी, और मैंने उसे अपनी जीभ से चूसा।
"आह्ह… अमित… और गहरा… चाट!" मामी चिल्ला रही थीं, और वो मेरे सिर को अपनी चूत पर दबा रही थीं।मैंने अपनी जीभ उनकी चूत की गहराइयों में डाली, और उनकी सिसकारियाँ और तेज हो गईं। उनकी कमर लय में हिल रही थी, और उनका रस मेरे चेहरे को भिगो रहा था।
मैंने उनकी भगनासा को हल्का सा काटा, और उनकी एक जोरदार सिसकारी निकल पड़ी—"आह्ह… उउउफ्… अमित!" मैंने चाटना जारी रखा, और उनकी चूत से निकलता रस मेरे मुँह में बह रहा था।
मामी अब बेकाबू हो चुकी थीं। उन्होंने मुझे खींचकर खड़ा किया और मेरे लंड को अपनी चूत पर टिकाया।
"अंदर डाल, अमित… चोद मुझे!" उनकी आवाज में एक जंगलीपना था, बेताबी थी, जैसे वो भी कबसे तड़प रही हो लंड के लिए, शायद जो मेरा हाल था वही मामी का था,
मैंने अपना लंड उनकी चूत में धीरे-धीरे डाला, और पच… पच… की आवाज के साथ वो उनकी चूत की गहराइयों में समा गया। मैंने धीरे-धीरे धक्के मारने शुरू किए, और मामी की सिसकारियाँ हवा में गूंजने लगीं—"आह्ह… और जोर से… अमित!" मै कुछ देर तक खड़े खड़े ही उनकी चुत मे लंड को पेलता रहा, लेकिन मेरा लंड उतना बड़ा नहीं था की मामी की चुत की गहराई को नाप पाता,
मैंने उन्हें फर्श पर लिटा दिया और उनके पैर फैलाकर उनकी चूत में धक्के मारने शुरू किए।
थप… थप… फच… फच… की आवाजें तेज हो गईं। उनकी चूत मेरे लंड को निगल रही थी, और हर धक्के के साथ उनका जिस्म सिहर रहा था।
मैंने उनके स्तनों को फिर से मसला, और उनके निप्पल को चूसते हुए उन्हें चोदने लगा। उनकी साँसें उखड़ रही थीं, और उनका चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया था।
पच... पच... फचम.. फच.... कर मै मामी की चुत मे लंड पेले जा रहा था, मामी सिसकार रही थी, मामी की चुत इतनी गीली थी की लगता था मै झड़ जाऊंगा,
लेकिन मैंने खुद पर कंट्रोल कर उन्हें खड़ा किया और बालकनी की रेलिंग पर झुका दिया। उनकी गोरी, सुडौल गांड मेरे सामने थी, और उनकी चूत रात की रोशनी में चमक रही थी। मैंने अपना लंड उनकी चूत में पीछे से डाला, और थप… थप… की आवाज के साथ जोर-जोर से धक्के मारने शुरू किए।
मेरा एक हाथ उनकी गांड को मसल रहा था, और मैंने अपनी दो उंगलियाँ उनकी गांड में डाल दीं।
"आह्ह… अमित… वहाँ… नहीं... आअह्ह्ह....उउउफ्…" मामी चीख रही थीं, और उनकी गांड मेरी उंगलियों को निगल रही थी।जैसे ही मैं उनकी चूत मार रहा था, मेरे दिमाग में माँ और पटनायक का सीन घूमने लगा। माँ की चूत से बहता रस, उनकी सिसकारियाँ, और पटनायक का मोटा लंड—सब कुछ मेरे सामने था।
मैंने अपनी रफ्तार और तेज कर दी, और मामी की चूत को कस-कस कर मारा।
"आह्ह… अमित… और जोर से… फाड़ दे!" मामी चिल्ला रही थीं। उनकी चूत मेरे लंड को चिकना कर रही थी, और उनकी गांड मेरी उंगलियों को निगल रही थी।कुछ ही पलों में मामी की चूत ने रस छोड़ दिया।
पच… पच… हमफ.... उफ्फ्फ... आअह्ह्ह... हमफ़्फ़्फ़... आअह्ह्ह... अमित मै गई " की आवाज के साथ उनका रस मेरे लंड को भिगो रहा था, और मैं भी अपने चरम पर था। मैंने एक आखिरी धक्का मारा, और मेरा गर्म वीर्य उनकी चूत में भर गया। "आह्ह…" हम दोनों की सिसकारियाँ एक साथ निकलीं।
मै वही ढेर हो कर बालकनी का सहारा ले बैठ गया,
मामी भी वही ढेर हो कर मेरे सीने से चिपक गईं, और हमारी साँसें एक दूसरे से टकरा कर हवा में मिल रही थीं। बालकनी का सन्नाटा अब हमारी सिसकारियों, साँसो की हाफ़ने कि आवाज़ से भर गया था, और रात की ठंडी हवा हमारे गर्म जिस्मों को सहला रही थी।
हम दोनों हाँफ रहे थे। मामी ने अपने कपड़े ठीक किए और मेरे बगल में बैठ गईं। उनकी साँसें अभी भी तेज थीं, लेकिन उनके चेहरे पर एक सुकून था। मैंने उनकी ओर देखा, मेरे दिमाग में सवालों का तूफान था। मैं अब और चुप नहीं रह सका।
"मामी… मैंने… मैंने आज वो देखा जिस पर यकीन करना मुश्किल है, मेरी माँ.... और वो... वो...., मेरी आवाज में एक अजीब सा कम्पन था,
मामी ने मेरी ओर देखा, उनकी आँखों में एक हल्की मुस्कान थी। "क्या देख लिया, अमित?" उनकी आवाज में कोई हैरानी नहीं थी, जैसे वो पहले से जानती हों।
"माँ… माँ और पटनायक को… झाड़ियों में। और मौसी… अब्दुल और आदिल के साथ। मैंने जो देखा था सब बता दिया।
"आपने कहाँ था औरतों की इच्छा होती है, लेकिन ऐसी की जंगलीपन पर उतर आये," मेरे जहन मे सवालों का तूफान मचा हुआ था, मेरे शब्द भारी थे, और मेरे चेहरे पर उलझन साफ दिख रही थी।
"ये सब… ये सब क्या है? थोड़ी मौज मस्ती तक ठीक था लेकिन इस कद्र वहशीपाना … ये सब गलत नहीं है?" मैंने सारे सवाल एक बार मे दाग दिए
मामी ने एक गहरी साँस ली और मेरे कंधे पर हाथ रखा। "अमित, तुम अभी जवान हो। तुमने जो देखा, वो तुम्हें गलत लग रहा है क्योंकि तुम औरतों को सिर्फ माँ, बहन, या मामी के रूप में देखते हो। लेकिन हम औरतें भी इंसान हैं। हमारी भी इच्छाएँ हैं, हमारी भी आग है, और जब ये आग भड़कती है ना तो सब कुछ जाला देती है यदि इस आग को बुझाने के लिए सही टाइम पर पानी ना मिले तो, तुम्हारी माँ की उस बेकाबू आग को पटनायक ने बुझाया, मौसी की आग को अब्दुल और आदिल ने,
उनकी आवाज शांत लेकिन गहरी थी।
"स्त्री होना सिर्फ घर संभालना या रस्में निभाना नहीं है। हमारी देह में भी वही आग जलती है, जो तुममें जल रही थी। रेशमा, कामिनी, और मैं—हम सबने इस रात में अपनी उस आग को जिया। ना वो गलत थी, ना मैं। ये हमारी आजादी है, हमारी इच्छाएँ हैं। समाज हमें ढककर रखना चाहता है, लेकिन हमारी देह, हमारी हवस, वो हमारी अपनी है।"मामी की बातें मेरे दिमाग में गूंज रही थीं।
"पर… माँ… वो तो…" मैंने कहना चाहा, लेकिन मेरे शब्द अधूरे रह गए।
यही ना की अभी शाम को तो तेरी माँ और मै चुदे ही थे " मामी मुस्कुरा दि.
मै हैरान था ..
"अमित बेटा औरत की चुत ऐसा कुआँ है जिसमे बेतहाशा पानी है, खोदने वाला थक जायेगा, पीने वाले का पेट भर जायेगा लेकिन कुवे का पानी कभी खत्म नहीं होगा, ये वो कुआँ है, जितना खोदो उतना पानी निकलेगा, तेरा माँ, मै, मौसी अभी उसी अवस्था मे है बेटा, हमारे कुवे का पानी पूरी तरहबसे उफान पर है, अब ये बात तुझे समझनी है, हम लोह घुट घुट कर मरते रहे या फिर इस उम्र को खुल कर जिए,
तुम्हारी माँ को पटनायक ने वो सुख दिया, जो वो चाहती थी। कामिनी ने भी अपनी देह की भूख मिटाई। और मैं… मैंने तुम्हें चुना, क्योंकि मैंने तुम्हारी आँखों में वही आग देखी, जो शाम से मेरे जिस्म मे लगी थी, " मामी ने मुस्कुराते हुए कहा।
"ये गलत नहीं है, अमित, क्या तुमने मुझे चोदा ये गलत है, मै भी तुम्हारी तरह पूरी रात जल रही थी।"
मैं चुप रहा। मेरे मन से सारी दुविधाएं वापस से समाप्त हो गई थी, मेरी मामी के मादक जिस्म की महक मेरी साँसो मे घुल गई थी, शायद वो सही थीं। शायद ये रात सिर्फ शादी की रस्मों की नहीं थी—ये हम सबके अंदर की आग को जलाने की रात थी।
मैंने एक सिगरेट जाला की, और मामी ने मेरे कंधे पर सर रख दिया, मेरे दिल और जिस्म मे अजीब सी शांति छा गई थी.
*************
सूरज की पहली किरणें हॉल की खिड़कियों से झाँक रही थीं। विदाई की रस्में शुरू होने वाली थीं, और हॉल में फिर से चहल-पहल शुरू हो गई थी।
मेहमान अपनी नींद से जाग चुके थे, और मंडप को फिर से सजाया जा रहा था। माँ, रेशमा, अब एक सादा नीली साड़ी में थी, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी वो चमक थी, जैसे रात की तृप्ति अभी भी उनके जिस्म में बसी हो। मौसी, कामिनी, लाल साड़ी में थी, और उनकी चाल में एक नया आत्मविश्वास था। मामी, एक क्रीम रंग की साड़ी में थीं, और उनका चेहरा शांत लेकिन चमकदार था।
जब उनकी नजर मुझ पर पड़ी, उन्होंने एक हल्की मुस्कान दी, जैसे रात का वो पल सिर्फ हम दोनों का राज़ था।
विदाई की रस्में शुरू हो चुकी थीं। मेघा, नई दुल्हन, अपने मायके को अलविदा कह रही थी, और आँसुओं के बीच मुस्कान बिखेर रही थी।
माँ, मौसी, और मामी सभी वहाँ थीं, आशीर्वाद दे रही थीं, जैसे कुछ हुआ ही न हो। लेकिन मेरे दिमाग में सवालों का तूफान शांत हो चुका था। मामी की बातों ने मुझे एक नया नजरिया दिया था।
मैंने एक गहरी साँस ली और हॉल के कोने में खड़ा हो गया। ये रात मेरे लिए एक ऐसा अनुभव थी, जिसे मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा। माँ, मौसी, और मामी—तीनों ने अपनी हवस को खुलकर जिया था, और मैंने उनकी आजादी को देखा था। शायद यही औरत का सच था, और शायद यही जिंदगी का सबक था।
बारात वापस आपने घर को निकल पड़ी थी,
साथ एक परिवार का एक नया सदस्य साथ था मेरी भाभी मेघा यानि की नवीन की पत्नी.
पीछे रह गए थे आंसू बहाते, मेघा के माँ बाप और उसके रिश्तेदार, उनका घर सुना हो गया था, और हमारा घर खुशियों से भरने जा रहा था.
Contd......
1 Comments
Kya sahi baat kahin hain maami ne ..hum sb dekhte hi reh gaye. Intezaar rahega aage ka.
ReplyDelete