मेरी बीवी अनुश्री -2
डिब्बा D3
" अरे ये ट्रैन क्यों रुक गई?" मंगेश बहार झाँकते हुए बड़बड़या
" भैया हमारे भारत का ऐसा ही है जब जो चाहे वो हो जाता है जरूर किसी ने चैन खिंच दी होंगी" राजेश ने देश के सिस्टम को कोसते हुए कहा.
मंगेश और राजेश के सामने रेखा बैठी हुई थी, अपने बदन को छुपाये हुए फिर भी ना चाहते हुए कुछ मर्दो कि नजर उसकी ओर चली जा रही थी.
इन नजरों को रेखा भली भांति पहचानती थी यही नजरें उसे कभी भीड़ मे तो कभी सब्जी मार्किट मे चुभती महसूस होती थी.
वो 15 साल से विधवा थी, अपने बदन पे पड़ती इन नजरों को खूब पहचानती थी,रेखा के पति ने उसे कभी सम्भोग सुख नहीं दिया था,फिर राजेश पैदा हो गया उसके बाद से तो सम्भोग ना के बराबर ही हो चला, उसका पति सिर्फ दुकान से घर घर से दुकान का रास्ता ही जानता था.
एक औरत के दिल का रास्ता कहाँ से जाता है इसकी कोई खबर नहीं थी उसे
वो तो चला गया पीछे रह गए रेखा और उसका बेटा राजेश.
रेखा अभी भी अनछुई महिला कि ही तरह नाजुक कोमल सुगठित सुडोल बदन कि मालकिन थी.
परन्तु उसे खुद को ज्ञान नहीं था कि वो किस तरह मादक है, उसका ध्यान कभी इन बातो पे गया ही नहीं.
आज भीड़ मे मर्दो कि नजरें उसे कुछ सोचने पे मजबूर कर रही थी, उसके दिमाग़ मे रह रह के यही सवाल उठ रहा था कि सारे मर्द उसे ही क्यों देख रहे है? ऐसी क्या बात है मुझमे? अब तो मै जवान भी नहीं रही?
"ऐ माई....देना,देना रे माई..." ना जाने कहाँ से एक मैला कुचला सा भिखारी रेंगता हुआ वहा चला आया.
" हे भगवान यहाँ इतनी भीड़ है फिर भी ये कैसे अंदर घुस आया" रेखा ने हिकारत भरी नजर से भिखारी को देखते हुए कहाँ.
" आंटी जी इन लोगो का ऐसा ही है मेहनत नहीं करनी है सिर्फ मौज काटनी है" मंगेश ने भी मुँह एठते हुए कहा
ये बात शायद भिखारी को चुभ गई.
"बाबू पैसा नहीं है तो मत दो लेकिन ज्ञान भी मत दो, वैसे भी मैंने आपसे नहीं माँगा है मैंने तो इस लड़की से माँगा है" भिखारी ने रेखा कि और इशारा कर बोला.
"हे भगवान ये मुझे लड़की कह रहा है, मुझ बूढ़ी औरत को लड़की " ये बात सोच रेखा के चेहरे पे हलकी से मुस्कान आ गई
अब भला तारीफ किस स्त्री को बुरी लगती है.
अब चाहे स्त्री जो हो और तारीफ करने वाला जो हो तारीफ सिर्फ तारीफ होती है.
वही मंगेश भिखारी से नाउम्मीद जवाब पा कर सकपका गया उसे लगा जैसे उसकी बेइज़्ज़ती हो गई हो इतने बड़े कपड़ो के व्यापारी कि कोई इज़्ज़त ही नहीं.
ठगा सा मंगेश "चल भाई चल आगे को मर अब नहीं है पैसा कोई "
लेकिन भिखारी वही रेंगता हुआ रेखा के पास फर्श पर जा बैठा,
"जाने दो बेटा बेचारा लाचार है पैसे ही तो मांग रहा है" बोल के रेखा ने अपना पर्स खोल पैसे निकालने चाहे परन्तु जैसे ही हाथ बाहर निकालने को हुई पर्स नीचे गिर गया भिखारी कि गोद मे.
"अरे ये क्या हुआ....बोलती रेखा पर्स उठाने को हुई कि उसका पल्लू सर सरा के सरक गया,रेखा के स्तन एक दम से भिखारी के मुँह पे ही उजागर हो गए,
जैसे एक बिजली सुन्दर चमकी हो जैसे भिखारी कि आंखे पथरा गई.
रेखा के स्तन के बीच कि गली साफ दिख रही थी बिलकुल अंदर तक गहराई ली हुई घाटी सफ़ेद बेदाग गोरे मोटे मोटे स्तन बस कुछ ही दूर थे, भिखारी ने जीभ भी निकाली होती तो शायद उन रस भरे तरबूजो को चख लेता.
लेकिन वो तो जैसे दुनिया ही छोड़ चूका था...रेखा अचानक हुई इस घटना से सकपका गई उसने अपने पर्स को झापट्टा मार के पकड़ना चाह कि पर्स के साथ लम्बी से गुदगुदी चीज भी हाथ आ गई.
"आआहहहहह......मेमसाहब" भिखारी के मुँह से दर्द भरी आह निकल गई.
रेखा सीधी हो चुकी थी पल्लू वापस से उन मादक घाटियों कि पहरेदारी मे लग गया था.
सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि किसी को कुछ पता ही नहीं पड़ा कि अभी अभी क्या घटना हो गई.
सामने राजेश मंगेश बतियाने मे व्यस्त थे, रेखा शर्म के मारे मुँह नहीं उठा पा रही थी, उसकी हिम्मत नहीं थी कि वो भिखारी कि तरफ देख भी सके क्यूंकि उसे अच्छे से पता था कि वो बेलनाकार चीज क्या थी आखिर वो शादी सुदा महिला थी.
रेखा कि धड़कने तेज़ हो चली थी पल्लू के ऊपर से ही कोई देख के बता सकता था कि अंदर किस तरह स्तन उछल कूद कर रहे है.
"आअह्ह्ह....मैमसाब " अपने तो नोच ही दिया मेरा दर्द हो रहा है पैसे नहीं देने थे तो ना देती इस तरह कौन नोचता है."
भिखारी अच्छी तरह समझ रहा था कि सब अचानक हुआ है इसमें रेखा कि कोई गलती नहीं है परन्तु जो उसने रेखा के झुकने पे नजारा देखा था बस उसी लालच ने उसे ये हिम्मत और विचार दे दिया था.
मर्द भी गजब होता है लंड कि ही सुनता है ना जगह ना औरत, ना हैसियत कुछ नहीं देखता.
भिखारी ने लगभग फुसफुसा के बोला था.
रेखा के हालात तो वैसे ही ख़राब थी उसने जीवन मे पहली बार किसी पराये मर्द का लंड छुआ था वो भी गलती से.
भले गलती ही थी परन्तु इस गलती का गर्मपन वो अपने हाथ मे महसूस कर चुकी थी.
सर झुकाये रेखा ने भिखारी कि फरियाद सुन आंखे खोली तो शर्म से दोहरी हो गई उसके ठीक नीचे भिखारी अपने लंड को लुंगी के ऊपर से सहला रहा था.
"आअह्ह्ह....मेमसाब " रेखा को अपनी और देखता पा के जोर जोर से अपने लंड को मसलने लगा.
रेखा सर झुकाये ही रही परन्तु इस बार आंखे बंद नहीं कि आश्चर्य से उसकी आंखे फटी कि फटी ही रही क्यूंकि जिस तरह भिखारी लम्बाई मे अपने लिंग को घिस रहा था उस जगह एक लम्बा सा उभार प्रकट हो गया था जैसे उसने अपने लुंगी मे कोई लकड़ी छुपा रखी हो.
रेखा ने ऐसा दृश्य कभी नहीं देखा था वो हैरान थी कि ये क्या है पहले तो नहीं था? क्या इसने कोई लकड़ी छुपा रखी है अपनी लुंगी मे.
रेखा को सोच मे डूबा देख भिखारी मे थोड़ी और हिम्मत आ गई.
"बताइये ना मेमसाब ये सजा किस बात कि मेरा ये उखाड़ देती तो मेरी बीवी का क्या होता "
रेखा सन्न रह गई उसका चेहरा शर्म, हैरानी से लाल हो गया उसके कान जलने लगे, लग रहा था जैसे उसका खून सुख गया है, उसके जिन्दा होने का सबूत सिर्फ उसकी तेज़ चलती धड़कन ही दे रही थी
"मै..मै....मैंने जान के नहीं.....नहीं किया" रेखा कि आवाज़ लड़खड़ा रही थी, अब भला सूखे गले से क्या आवाज़ निकलती.
भीड़ और शोर शरबे मे उनकी आवाज़ का कोई महत्व नहीं था रेखा सर झुकाये बैठी रही उसके ठीक नीचे साइड मे भिखारी खुसफुसा रहा था इनकी वार्तालाप सुनने वाला कोई नहीं था.
राजेश और मंगेश तो अपनी ही बातो मे मशगूल थे.
"जैसे भी किया हो मै तो मर जाता ना अभी, पूरा लाल हो गया है आपके नाख़ून भी लग गए है, मुझे तो लगता है कही खून ना निकल गया हो" भिखारी ज्यादा ही रियेक्ट कर रहा था, भले से एक झांट भी ना उखड़ी हो उसकी लेकिन दिखा ऐसे रहा था जैसे किसी ने टट्टे ही नोच लिए हो..
रेखा साफ साफ ये बात समझ रही थी, ऊपर से उसकी आँखों के सामने लगातार वो डंडे जैसा उभार नाच रहा था, उसे पूरा यकीन था कि ये वो नहीं है भिखारी नाटक कर रहा है ये जरूर कोई लकड़ी है जिसे इसने अपनी लुंगी मे छुपा रखा है.
हालांकि ऐसा सोचते हुए वो मर्द के लिंग कि ही कल्पना कर रही थी जो आज तक उसने अपने पति का ही देखा था, आज इतने सालो बाद उसके जहन मे लिंग का चित्र उभर के आया था.
उसके दिल मे कही एक हुक सी उठी थी, उसके बदन मे एक चिंगारी तो लगी ही गई थी, सालो से अनछुई थी आखिर.
"तुम झूठ बोल रहे हो " रेखा ने हिम्मत कर भिखारी के उभार को देखते हुए बोला,
" सच बोल रहा हूँ मेमसाब यकीन ना हो तो दिखता हूँ अभी " ऐसा बोल भिखारी लुंगी का एक सिरा पकड़ हटाने लगा.
" नहीं....नहीं....मेरा मतलब ये नहीं था मुझे नहीं देखना" रेखा आंखे बंद करते हुए बोली, बुरी तरह झेप गई थी.
भिखारी का हाथ वापस से अपने उभार को सहलाने लगा.
उसने रेखा जैसी कामुक संस्कारी औरत को अपनी बातो मे फसा लिया था.
लेकिन रेखा के दिल मे जिज्ञासा घर कर गई थी उसे यकीन था कि उसके लुंगी के अंदर डंडा ही निकलेगा ये भिखारी पैसे ऐठने के चक्कर मे बेवकूफ बना रहा है.
अब रेखा खुद को संभल चुकी थी आत्मविश्वास से भर गई थी, कि जो वो सोच रही है वैसा कुछ नहीं है मर्दो का लिंग इतना बड़ा होता ही नहीं है.
"आअह्ह्हम्म.....मेमसाब दर्द हो रहा है " भिखारी अपना काम बिगड़ता देख फिर से कराह उठा.
रेखा ने एक बार सर उठा के इधर उधर देखा किसी का ध्यान उधर नहीं था भिखारी कि तरफ तो वैसे भी किसी कि तावज्जो जानी ही नहीं थी भीड़ मे नीचे दबा पड़ा था. रेखा का ध्यान वापस से नीचे बैठे भिखारी पे गया.
इस बार वो अपनी लुंगी को इस तरह हटा चूका था कि काले बालो का गुच्छा सा लुंगी के ऊपरी हिस्से पे दिख रहा था.
"नाटक बंद करो वरना अपने बेटे को बोल के पिटवा दूंगी तुम्हे" इस बार रेखा ने गुस्सा दिखाया
" वाह मेमसाब वाह मै नपुंसक बन जाता और आप अपनी गलती मानने के बजाय मुझे पिटवाना चाहती है?"
" नाटक मत करो किसी आदमी का इतना बड़ा........आ...अ... ब.. ब... " रेखा यही रुक गई उसकी जबान अनर्थ करने ही वाली थी की वो शर्म से दोहरी हो गई.
" क्या बड़ा...मेमसाब? आपके नाख़ून के निशान लगे होंगे मेरे लौड़े पर" भिखारी इस बार सीधा सीधा ही बोल गया, लोड़ा शब्द जैसे ही रेखा के कानो मे पड़ा उसके तो होश ही फकता हो गए.
वो इस शब्द को गाली समझती थी कभी उसका पति भी बोलता तो नाराज हो जाती थी.
"छी गाली देते हो...औरत के सामने गाली देते हो" शर्म और गुस्से मे रेखा का चेहरा तामत्मा उठा.
"मेमसाब गाली कहाँ दी..अब लौड़े को लोड़ा ही तो बोलूंगा ना लकड़ी थोड़ी ना बोल दूंगा"
"ये लकड़ी ही है...किसी आदमी का इतना बड़ा नहीं होता" रेखा बहस बाजी मे खुद को हारती पा कर एक ही सांस मे बोल गई.
"हेहेहे.... खी खी.....अच्छा तो आपको ये शक है कि ये लोड़ा नहीं लकड़ी है?"
"मै...मैम...मेरा वो मतलब नहीं था" भिखारी कि बात सुन रेखा को अहसास हुआ कि वो क्या बोल गई है.
"हाँ तो ये मेरा लोड़ा ही है थोड़ी देर पहले तो आपने ही इसे उखाड़ने कि कोशिश कि थी" भिखारी बात को मुद्दे से भटकने नहीं दे रहा था सारी बाते उसके लंड के इर्द गिर्द ही बुनी जा रही थी.
ये बाते किसी जाल कि तरह रेखा को वासना मे फसा रही थी.
"मैंने जानबूझ के नहीं किया था " रेखा ने इस बार जवाब पुरे आत्मविश्वास से दिया.
"उखाड़ जाता तो?"
"वो तुम्हारा है ही नहीं....इतना नहीं होता आदमी का"
"क्यों आपने कितने मर्दो के देखे है जो बोल रही हो?"
रेखा को अपनी बहस मे जीतना ही था, उसे हार मंजूर नहीं थी वो भी एक भिखारी से, बातो बातो मे ये मुद्दा हार जीत का अहम्.का मुद्दा कब बन गया पता ही नहीं चला.
रेखा ये भी भूल गई कि मुद्दे का केंद्र एक लंड है, लंड कि लम्बाई पे बात हो रही है वो भी ट्रैन मे एक भिखारी से.
" किसी का नहीं देखा लेकिन मै इतनी भी बेवकूफ नहीं हूँ,शादी सुदा....." इतना बोलना ही था कि भिखारी ने झटके से अपनी लुंगी को साइड कर दिया, भिखारी ठीक रेखा के नीचे को बैठा था,वो सर झुकाये भिखारी से बहस कर रही थी.
लुंगी हटते ही भिखारी का काला मोटा 9इंच लम्बा गन्दा सा लंड सीधा रेखा के मुँह के नीचे सलामी देने लगा, उसके शब्द वही जम गए मुँह खुला का खुला ही रह गया, आंखे बाहर निकलने को आ गई,
रेखा का मुँह सीधा लंड के ऊपर ही था, उसे साफ और नजदीक से देख पा रही थी उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि आदमी का ऐसा लिंग भी होता है.
बिलकुल कड़क खड़ा हुआ मोटा, भयानक सा जिसकी जड़ पर बेतहाशा बाल, नीचे दो बड़ी सी बॉल दिखाई पड़ती थी. कडकपन इतना था कि बिना हाथ लगाए ही झटके खा रहा रहा, लंड के ठुमके रेखा की दिल कि धड़कन और जांघो के बीच कि सरसराहट को बढ़ा दे रहे थे.
रेखा अभी सदमे से बाहर निकली ही नहीं थी कि भिखारी ने अपने लंड को मुठी मे पकड़ उसकी चमड़ी को नीचे सरका दिया.
जैसे जैसे चमड़ी नीचे होती गई एक आलू के आकर का लाल गुलाबी सा हिस्सा बाहर को उजागर होने लगा, जिस से एक कैसेली गंध निकल के सीधा रेखा के नाथूनो मे प्रवेश कर गई.
ये गंध नाकाबिले बर्दाश्त थी, फिर भी ना जाने क्यों रेखा ने अपना चेहरा ऊपर नहीं किया उसकी नजरें अभी भी भिखारी के लंड को देख रही थी, जैसे उसने आज अपने जीवन का सबसे बड़ा अजूबा देखा हो.
15 साल बाद उसने लंड देख था वो भी ऐसा कि नजरें तक नहीं हटा पा रही थी, उसकी नाक मे पहुंची गंध पुरे जिस्म का सफर तय करती हुई जांघो के बीच जा के घंटी बजा रही थी.
उसके जांघो के बीच पसीना आने लगा, कुछ गीलेपन का अहसास हुआ उसे.
तभी भिखारी ने वापस अपनी लुंगी से उस भयंकर नज़ारे को ढक लिया.
ये दृश्य मात्र कुछ पल का ही था लेकिन इस एक पल मे ना जाने क्या क्या हो गया था.
रेखा की बरसो पुरानी सोइ हुई हसरत चिंगारी का रूप धारण कर चुकी थी. कही और जगह होती तो शायद ये चिंगारी आग का रूप भी ले सकती थी.
वो मुँह बाये आंखे फाडे नीचे की ओर देखी जा रही थी, माथे पर पसीना आ गया, सांसे तेज़ चल रही थी,
तभी हक्की...बक्की....रेखा को किसी के हिलाने से झटका लगा
चररररर.....चरररर......करती ट्रैन रुकने लगी ट्रैन के झटके से रेखा को जैसे होश आया.
उसकी सांसे अभी भी चढ़ी हुई थी उसके चेहरे को कोई देख लेता तो उसे लगता कि रेखा ने भूत देख लिया हो.
"लगता है स्टेशन आ गया है अनुश्री को फ़ोन कर उतरने के लिए बोलता हूँ." मंगेश मोबाइल मे नंबर दर्ज करने लगा....
डिब्बा D1
यहाँ अनुश्री गर्मी और पसीने से जूझ रही थी उसकी हालात बिन पानी कि मछली कि तरह हो गई थी.
साड़ी के अंदर पसीने से चिपकी पैंटी ज्यादा तकलीफ दे रही थी गुदा छिद्र मे इकठ्ठा हुआ पसीना खुजली उत्पन्न कर रहा था इसकी खुजली और गीलेपन को कम करने के लिए ही अनुश्री अपनी मादक बाहर को निकली गांड को इधर उधर हिला के थोड़ा सुकून लेने का प्रयास कर रही थी.
बिहड मे रुकी ट्रैन एक झटके से चल पड़ी, अनुश्री को तेज़ झटका लगा जिस कारण वो पीछे को गिरने को हुई परन्तु उसकी पीठ किसी मजबूत छाती पर जा टिकी, उसका कमर से निचला हिस्सा आगे को ही था परन्तु पीछे को निकली गांड पीछे किसी कठोर चीज से जा लगी , मोटी सी कोई चीज थी जो साड़ी के ऊपर से ही निताम्बो के बीच कि दरार मे घिस रही थी .
"मैडम संभल के जरा " अब्दुल ने पीछे से वापस जोर दे के अनुश्री को वापस उसी कि जगह पे खड़ा कर दिया.
ये छुवन पल भर कि ही थी परन्तु अनुश्री को अपने निताम्बो के बीच होती खुजली से थोड़ी राहत मिली, एक हलके से घिसाव ने काफ़ी आराम दिया.
यही राहत तो चाहिए थी उसे. ये राहत खुजली से निजात कि थी या फिर गांड कि दरार मे चुभती उस चीज कि कहा नहीं जा सकता था.
ट्रैन चर चराती रुकने लगी.....चरररर....चररर.....
"लगता है कोई स्टेशन आ गया" मिश्रा ने बहार की ओर झाँकते हुए कहा.
मिश्रा कि बात सुन अनुश्री को राहत का अनुभव हुआ,जैसे भगवान ने उसकी मुराद सुन ली हो.
तभी उसका फ़ोन बजने लगा.....
"हेलो हाँ.....मंगेश....हेलो... हाँ स्टेशन आ रहा है उतरती हूँ मै"
अनुश्री कि कही बात सुन मिश्रा और अब्दुल का चेहरा पल भर मे ही उतर गया कितना मजा आ रहा था,
ऐसे सौंदर्य को निहारने का मौका फिर कहाँ मिलेगा.
दोनों ने एक दूसरे कि और लाचारी भरी नजर से देखा.
जैसे कोई खजाना उनके हाथ से निकलने को था.
ट्रैन पूरी तरह रुक गई थी, अनुश्री ने अपना हैंड पर्स सँभालते हुए भीड़ को चीरने कि कोशिश करने लगी.
परन्तु हुआ इसके विपरीत बाहर से आते धक्को ने उसे एक इंच भी आगे नहीं बढ़ने दिया
"अरे भई हमें भी अंदर आने तो ट्रैन छूट जाएगी "
"हट मादरचोदो पीछे हट " बाहर से आती आवाज़ और धक्के अनुश्री का मनोबल तोड़ रहे थे.
छोटा स्टेशन था ट्रैन 1मिनट ही रूकती थी.
कूऊऊऊऊ.....ट्रैन ने चलने का संकेत भी दे दिया.
अनुश्री ने एक आखिरी कोशिश कि उतरने के लेकिन न्यूटन के नियम के मुताबिक जितना फाॅर्स उसने बहार निकलने के लिए लगाया उसी फाॅर्स के साथ वापस जहाँ थी वही आ गई.
2 लोग उतरे 12 चढ़ गए, अब तो बिलकुल ठसा ठस डब्बा भर गया था.
अनुश्री काफ़ी परेशान हो चली थी उसके बाल बिखर गए थे,पूरा जिस्म पसीने से नहा गया था.
"मैडम उतरना मुश्किल है,कोई बड़ा स्टेशन पे ही सवारी खाली होंगी" अब्दुल ने सहानुभूति प्रकट की.
अनुश्री का ध्यान अपने आगे बिल्कुल भी नहीं था, उसकी नजर दरवाजे को ही देखे जा रही थी, वही धक्का मुक्की की वजह से मिश्रा का मुँह अनुश्री के स्तनों के बीच धंसा हुआ था, वहा इतनी गहमा गहमी हो गई थी की हाथ को हाथ ना सूझे.
तभी किरररर....किररर......अनुश्री का मोबाइल बजने लगा.
अनुश्री ने अपना पर्स उठाना चाहा लेकिन भीड़ मे वो भी नहीं हो पा रहा था उसका पर्स पेट के आगे रखा था को कि मिश्रा कि तोंद से दबा हुआ था.
जैसे ही अनुश्री कि नजर आगे को हुई उसके होश ही उड़ गए उसके स्तन पुरे के पुरे मिश्रा के मुँह पे दबे हुए थे.
"ठीक से खड़े हो ना "अनुश्री ने सकपाकते हुए मिश्रा को झिडका और खुद थोड़ा पीछे होने कि कोशिश कि, लेकिन पीछे होते ही उसकी गांड के बीच फिर वही गोल लम्बी सी चीज आ लगी.
उसकी हालत पल प्रतिपल ख़राब होती जा रही थी जिसे अब्दुल और मिश्रा भलीभांति समझ रहे थे.
मिश्रा जो अभी तक स्तनों कि खुसबू अपने नथूनो मे भर चूका था बोला "अब कहा जाऊ मैडम दिवार से ही तो लगा हुआ हूँ आप पीछे होइए थोड़ा, मेरी हाईट वैसे ही छोटी है आप तो दबा के मार ही देती मुझे" लम्बी सांस लेते हुए बोला जैसे पता नहीं कब से दबा पड़ा हो.
अनुश्री को मिश्रा कि ये बात सुन थोड़ी हसीं आ गई क्यूंकि उसकी कदकाठी थी ही ऐसी, छोटा सा, तोंद निकाले खड़ा था.
तोंद इस कदर बाहर को निकली थी कि कभी ट्रैन झटका लेती तो अनुश्री कि नाभि को छू जाती.
अभी अनुश्री असंजस मे ही थी कि किरररर.....किरररर..... फिर से मोबाइल बजने लगा.
इस बार जैसे तैसे अनुश्री अपना मोबाइल निकालने मे कामयाब हो गई.
"हाँ हेलो मंगेश " तभी ट्रैन को एक झटका लगा, अनुश्री आगे को गिरने को हुई लेकिन इस बार खुद को मिश्रा के ऊपर ढहने से बचाने के लिए अपने दूसरे हाथ को ऊपर उठा मिश्रा के ऊपर दिवार पे टिका दिया क्यूंकि अनुश्री दूसरे हाथ से मोबइल पकड़े हुई थी,
उसको ध्यान ही नहीं रहा कि उसने स्लीवलेस ब्लाउज पहना है.
मिश्रा तो ये दृश्य देख हक्का बक्का रह गया भीड़भरी गर्मी मे भी उसका बदन ठंडा पड़ने लगा.
बिलकुल साफ गोरी पसीने से भीगी कांख उसके सर के ऊपर थी जिससे निकलती मदक पसीने और परफ्यूम कि गंध सीधा मिश्रा के नाम मे जा रही थी.
मिश्रा कि नियत जो हो लेकिन था तो आदमी ही उसके लंड ने पाजामे के अंदर ही पहली अंगड़ाई ले ली.
"हाँ मंगेश भीड़ बहुत है उतर नहीं पाई "
दूसरी तरफ मोबाइल पे " क्या यार तुम कितनी ढीली लड़की हो सिर्फ ट्रैन से उतर के ही तो आना था वो भी नहीं हुआ तुमसे अब अगका स्टेशन 3घंटे मे आएगा रहो अब वही "
मंगेश ने फ़ोन काट दिया.
अनुश्री का चेहरा मयूष हो गया एक तो यहाँ मर्दो कि भीड़ मे अकेली फांसी हुई है ऊपर से मंगेश उस पे ही चिल्ला रहा है.
उसकी आंखे नम हो गई.
वो अभी भी हाथ टिकाये ही खड़ी थी.
"मैडम आप डरिये मत यहाँ कोई कुछ नहीं करेगा,अगले स्टेशन पे उतर जाना शायद स्पीकर से आती मंगेश कि आवाज़ मिश्रा ने भी सुनी थी.
अनुश्री को ये दिलाशा अच्छा लग 3घंटे कि ही तो बात है काट लुंगी.
मिश्रा कि बातो ने उसे फिर से सकरात्मक कर दिया परन्तु ये पसीना
"उफ्फ्फ.....गर्मी "अनुश्री के मुँह से ना चाहते हुए भी निकल गया.
वो अपना हाथ नीचे करने ही वाली थी कि ट्रैन ने फिर झटका खाया, बचने के लिए अनुश्री ने अपना हाथ वापस वही जमा दिया.
अनुश्री ने अपना मोबाइल पर्स मे डालने के लिए नजरें नीचे कि तो पाया कि मिश्रा कि नजर उसकी कांख पे ही है जिसे वो एक टक हसरत भरी नजर से देखे जा रहा था.
अनुश्री शर्म से पानी पानी हो गई "भला कोई आदमी उसकी कांख को ऐसे घूर के क्यों देख रहा है"
पीछे अब्दुल "अबे मिश्रा तू कहा दब गया दिख ही नहीं रहा ला तम्बाकू बना थोड़ा.
"यही हूँ यार दबा नहीं हूँ मेरा मज़ाक मत उड़ाया कर छोटा हूँ तो क्या हुआ कारनामें बड़े है मेरे" मिश्रा ने खिसयाते हुए कहा
अब्दुल :- बढ़ा आया कारनामो वाला तम्बाकू बना के दे जल्दी कितनी गर्मी है
अनुश्री को बीड़ी जर्दा खाने पिने वालो से सख्त नफरत थी परन्तु यहां इन दोनों कि मजाकिया और मिश्रा कि टांग खिचाई कि बातो से उसे गुदगुदी हो रही थी, अब उसे शर्म नहीं आ रही थी
मिश्रा रह रह के कांख को देख लेता उसकी हरकत अनुश्री नोटिस कर रही थी.
"प्यास भी लगी है कुछ रस ही मिल जाता तो मजा आता" मिश्रा ये बात अनुश्री कि गोरी साफ सुथरी कांख को देखते हुए कहा.
अब्दुल :- साले यहाँ बदन का पानी निकल के चड्डी मे घुस गया है और तुझे रस कि पड़ी है.
जैसे ही अनुश्री के कान मे ये शब्द पड़े उसका ध्यान वापस से अपनी पसीने से भीगी पैंटी कि तरफ गया बस फिर क्या था जैसे ही ध्यान गया खुजली का अहसास होने लगा.
"उफ़...ये गर्मी और पसीना " मन मे ही बोलती अनुश्री ने गांड के छेद पे जोर दे के सिकुड़न कर वापस छोड़ दिया, हर इंसान ऐसे ही करता है.
हालांकि ऐसा करने से अनुश्री को हलकी राहत का अहसास हुआ.
अनुश्री के हाथ जो मिश्रा के सर के ऊपर पीछे दिवार पे रखा हुआ था वहा से पसीना रिसना शुरू हो गया जो कि कांख तक जा रहा था.
एक अजीब गुदगुदी का अनुभव हो रहा था अनुश्री को अमूमन इतना पसीना कभी उसे आया ही नहीं था.
इधर मिश्रा अपनी जेब से जर्दा निकाल हथेली पे रख चूका था.
"अरे भेनचोद ये चुना कहा रख दिया मैंने "मिश्रा अपने मे ही बड़बड़ाते हुए जेब टटोलेने लगा कि तभी उसकी हथेली पे टप टप टप....करती पानी कि कुछ बून्द गिर पड़ी.
जिसे मिश्रा और अनुश्री ने बखूभी देखा.
वो बून्द अनुश्री के कांख मे जमा हुए पसीने कि बून्द थी जो सीधा मिश्रा कि हथेली पे ही गिर पड़ी.
अनुश्री ये नजरा देख शर्म से पानी पानी हो गई उसे काटो तो खून नहीं इस से शर्मनाक उसके लिए क्या हो सकता था कि किसी अनजान व्यक्ति के हाथ मे उसका पसीना टपक रहा है.
" चलो चुना ना सही कुछ और ही सही" मिश्रा ने अनुश्री कि तरफ देख गंदे दाँत निपोर दिए.
फट फट फट.....करता जर्दा रगड़ के पिट दिया, वही जरदा जिसमे चुने कि जगह अनुश्री का पसीना मिला हुआ था.
ऐसी परिस्थिति मे अनुश्री को शर्म के साथ एक अलग ही रोमांच उत्पन्न हो रहा था..
"ले भई अब्दुल जर्दा " ऐसा बोल मिश्रा ने अपना हाथ अनुश्री के नंगी कमर के बगल से निकाल दिया.
अब्दुल ने थोड़ा जर्दा ले के मुँह मे डाल लिया "अरे मिश्रा आज तो जर्दे का स्वाद ही कुछ अलग है मजा आ गया अलग ही नशा दे रहा है"
अब्दुल कि ये बात सुन अनुश्री कांप ही गई "छी कोई पसीने से सनी चीज खा रहा है और उसे मजा भी आ रहा है "
अनुश्री सोच तो सही ही रही थू परन्तु ना चाहते हुए भी उसके बदन मे गुदगुदी सी ही रही थी क्यूंकि उसका पसीना पहली बार किसी मर्द ने चखा था ऊपर से उसके टेस्ट कि तारीफ भी कर रहा था" ये भावनाये अनुश्री के बदन को बार बार झटका दे रही थी.
" मुझे कोई खास चुना मिल गया है भई अब्दुल क्यों मैडम?" अनुश्री जब से चुपचाप खड़ी थी इसका फायदा उठा के सीधा सवाल दाग़ दिया मिश्रा ने.
अनुश्री :- वो....वो....मै..मैम...माफ़ करना मैंने जानबूझ के नहीं किया वो गर्मी ही इतनी है.
मिश्रा :- मैडम हम कब कब रहे है कि जानबूझ के हुआ वैसे भी जो होता है अच्छे के लिए ही होता है क्यों अब्दुल.
अब्दुल जो अभी तक जरदे का स्वाद लेने मे मग्न था "हाँ भाई हाँ"
"वैसे आपकी कांख कितनी सुन्दर है मन करता है कि....." अनुश्री को कुछ बोलता ना पा के मिश्रा कि हिम्मत बढ़ती ही जा रही थी उसने अनुश्री कि कांख कि तारीफ कर दी थी.
"आज पहली बार इतनी सुंदर और हसीन कांख देख रहा हूँ"
अनुश्री को तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या बोले क्या करे वो तो ऐसी बाते सुन किसी बूत कि तरह जम गई थी, उसने अपने हाथ नीचे करने को ही चाहे थे कि... "रहने दो ना मैडम कही मेरे ऊपर गिर गई तो मै सांस रुकने से मर जाऊंगा" मिश्रा बड़ी ही मासूमियत से बोला
इस बार अनुश्री ने ना जाने क्यों मिश्रा कि बात मान ली उसने अपने हाथ नीचे नहीं किये, उसे अपनी तारीफ पसंद आने लगी थी शायद, क्यूंकि उसकी सुंदरता कि तारीफ तो कभी उसके पति मंगेश ने भी नहीं कि थी.
और ये तारीफ थोड़े अलग किस्म कि थी लेकिन थी तो उसकी सुंदरता कि ही ना.
"तुझे पता है इसमें क्या मिलाया है मैंने?" मिश्रा ने अब्दुल से पूछा.
अब्दुल :- जहर भी मिलाया है तो चलेगा इस से स्वादिष्ट जर्दा आज तक नहीं खाया मैंने, क्या खुसबू आ रही है इस जर्दे मे से.
"क्या वाकई मेरे पसीने का स्वाद इतना अच्छा है,महक इतनी मोहक है कि ये आदमी कही खो गया है " अनुश्री खुद से ही सवाल कर रही थी, उसकी आंखे जैसे मिश्रा को इग्नोर कर रही थी लेकिन कान साफ उसकी पसीने कि तारीफ सुन रहे थे.
गर्मी और सकपाकाहट से उसका पसीना गले से उतर के ब्लाउज कि घाटी मे समाने लगा, जैसे हज़ारो चीटिया रेंग रही हो उसके स्तनों के बीच.
" मैडम कि कांख का पसीना है इसलिए स्वाद है" मिश्रा ने राज खोल दिया था एकदम से.
"कककक... क्या? " अब्दुल बुरी तरह चौंक गया.
"मैडम से पूछ ले, मै झूठ बोल रहा हूँ तो, क्यों मैडम जी " मिश्रा ने उसी मासूमियत से सब कुछ अनुश्री पे डाल दिया,
अनुश्री तो किसी मूर्ति कि तरह खड़ी थी दो अनजान आदमी उसके बारे मे बात कर रहे है उसके ही सामने, वो भी बिना उसकी इज़ाज़त के.
" क्यों मैडम जी ये मिश्रा का बच्चा सच कह रहा है क्या?" पीछे से अब्दुल तमतमाते हुए बोला
" वो...वो....मै....गलती से गिर गया" ना जाने किस जादू मे अनुश्री हाँ बोल गई उसे खुद समझ नहीं आया कि एक सभ्य संस्कारी लड़की दो अनजान आदमियों कि बातचीत का हिस्सा बन चुकी है.
" अनजाने मे ही सही लेकिन आपने अपना अमृत चखा दिया मैडम जी धन्य हुआ आज ये अब्दुल" अब्दुल ने जर्दे जी पिक को अंदर निगलते हुए कहा, आम तौर ले आदमी इस पिक को थूक देता है लेकिन अब्दुल इस रस को व्यर्थ नहीं करना चाहता था.
अनुश्री अपने पसीने कि तुलना अमृत से पा कर अचंभित हो उठी उसके बदन कि सुरसूरी उसकी नाभि के नीचे कि और दौड़ पड़ी. उसका बदन गर्मी छोड़ने लगा
उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि ये सब क्या है, बस कही ना कही अपनी ऐसी गन्दी तारीफ मन को भा रही थी.
" ऐसे अमृत को तो मुह लगा के पीना चाहिए क्यों मिश्रा?"
अनुश्री ये बात सुन काबू से बाहर हो गई "क्या मतलब है तुम्हारा "
" नाराज क्यों होती हो मैडम अब अच्छी स्वादिष्ट चीज कि तारीफ भी ना करे क्या? " अब्दुल ने जर्दे को मुँह मे चुभलाते हुए कहा.
" सही तो बोल रहा है हमारी किस्मत मे तो वही काली कलूटी बदबू दार पसीना छोड़ती औरते ही है" मिश्रा ने हसरत हवास भरी नजर से अनुश्री की नंगी कांख को देखते हुए कहा.
मिश्रा कि ये बात अनुश्री के दिल मे घर कर गई "क्या वाकई मेरा पसीना ऐसा है? पसीने का क्या स्वाद?" अनुश्री इस समय खुद को दुनिया कि सबसे खूबसूरत हसीन औरत समझ रही थी.
"ऐसे अमृत को तो सीधा मुँह लगा के पीना चाहिए " बोलते हुए मिश्रा अपने पंजो पे खड़ा हो गया और सर ऊपर कर जीभ निकाल के लप से अनुश्री कि पसीने से भीगी कांख को नीचे से ऊपर कि तरफ चाट गया.
गजब हिम्मत का प्रदर्शन किया मिश्रा ने.
आअह्ह्ह......अनुश्री के मुख से एक महीन सी सिसकारी छूट गई " उसे गर्मी मे राहत का अनुभव हुआ बदन एक कामुक चिंगारी से विचलित हो उठा.
मिश्रा :- क्या मीठा स्वाद है आअह्ह्ह....
अनुश्री ने जैसे ही आंखे खोली नीचे मिश्रा कि आँखों से नजरें जा टकराई.
दोनों कि आंखे सुर्ख लाल थी अनुश्री को थोड़ा गुस्सा भी था कि कोई आदमी ऐसा कैसे कर सकता है परन्तु गुस्से से ज्यादा एक अजीब सी हलचल उठ पड़ी थी उसके दिलो दिमाःग मे उसके सोचने समझने कि क्षमता मिश्रा कि इस हरकत से ख़त्म हो गई थी.
ऐसा शानदार अनुभव उसने कभी अपने जीवन मे नहीं किया था, अब भला कोई पुरुष किसी स्त्री कि गन्दी कांख को चाट सकता है.
"You idiot ये क्या हरकत है " अनुश्री आगबबूला हो उठी, आंखे दिखाते हुए मिश्रा पे चिल्ला पड़ी.
लेकिन मिश्रा भी कम खिलाडी नहीं था "अब आप जैसे मादक स्त्री कांख दिखाते हुए खड़ी है तो बेचारा मासूम आदमी क्या करेगा "
मिश्रा के सीधे और मासूम जवाब से अनुश्री का गुस्सा तुरंत काफूर हो गया, गुस्सा कम होते ही उसकी लज्जत और दबी हुई मादकता ने उसकी जगह ले ली क्यूंकि ऐसी हरकत उसके पति ने भी कभी नहीं कि थी.
उसे मिश्रा का मजाकिया लहजा पसंद आ रहा था.
" घर पे भी अपनी पत्नी के साथ ऐसी ही हरकत करते हो क्या? " अनुश्री अभी भी मोर्चे पे डटी हुई, खुद को गुस्से मे दिखा रही थी.
परन्तु ना जाने क्यों इस गुस्से मे विरोध नहीं था विरोध होता तो कबका अपना हाथ नीचे कर लेती.
" मेरी बीवी कि कांख इतनी सुन्दर होती तो रोज़ चाटता, लेकिन उसकी तो बालो से भरी बदबूदार कांख है" मिश्रा ने सच्चा जवाब दिया
"आप तो कोई अप्सरा है जिसकी कांख से शहद टपक रहा है."
ये बात सुन अनुश्री आनंदमयी हो चली इसका मतलब वो वाकई मे दुनिया कि सर्वश्रेष्ठ स्त्री है, अनुश्री मन ही मन अपनी तुलना किसी मजदूर वर्ग कि स्त्री से कर के खुद को अतिसुंदरी मानने लगी थी,
"मैडम आप बुरा ना माने तो मै एक बार और चख लू, अब आप तो अगले स्टेशन पे उतर ही जाएगी फिर भला मुझ गरीब को ये सौभाग्य कहा मिलेगा" मिश्रा ने ये बात बड़ी ही मासूमियत और दिल से कहीं थी, उसकी आँखों मे सच्चाई थी, जैसे उसने कभी इतनी सुन्दर औरत देखी ही ना हो.
अनुश्री मिश्रा कि बात सुन एक दम से हॅस पड़ी उसकी बातो मे इतनी मासूमियत जो थी कि वो भूल ही गई थी कि वो शादी सुदा एक संस्कारी परिवार कि बहु है.
अनुश्री बस मिश्रा कि आँखों मे देखती रही परन्तु हाथ नीचे नहीं किया.
शायद अनुश्री के अंदर सोती हुई स्त्री जागना चाह रही थी.
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ट्रैन पूरी रफ़्तार से अपनी मंजिल कि ओर बढ़ रही थी.
परन्तु अनुश्री की मंजिल बदल गई थी, उसका मुकाम कुछ और ही होने वाला था, वो एक अनजाने रोमांच से भरे रास्ते पे निकल गई थी, जिसका सबूत ये था कि मिश्रा ने अभी अभी उसकी नजरो के सामने ही उसकी पसीने से भीगी कांख को अपनी जीभ से चाटा था
अनुश्री ना चाहते हुए भी आहहहहम...कर के रह गई, वो बराबर मिश्रा कि आँखों मे देख रही थी ना जाने क्या ढूंढ़ रही थी.
मिश्रा का थूक अनुश्री कि कांख मे लग गया था जो की हवा लगने से ठंडा सुखद अहसास दे रहा था.
" कैसा लगा मैडम? आपका पसीना वाकई कितना स्वादिष्ट है मेरा जन्म लेना सफल हो गया." मिश्रा ने अपने होंठो पर जीभ घुमाते हुए पूछा,
अनुश्री जो कि जीवन मे पहली बार ऐसा कुछ महसूस कर रही थी उसके लिए ये सब बिलकुल नया था शादी के इतने सालो बाद भी ऐसी उमंग और तरंग उसके बदन मे नहीं उठी थी,
उसका दिमाग़ कह रहा था कि "हाथ नीचे कर ले ये गलत है, लेकिन बदन पूरा विरोध मे उतर आया था ऐसा अनुभव फिर कहाँ मिलेगा, कोई तुझे खा थोड़ी ना जाने वाला है."
आखिर बदन जीता अनुश्री ने हाथ नीचे नहीं किया मिश्रा कि बात सुन झेप जरूर गई, मुँह दूसरी तरफ फेर लिया.
मिश्रा के लिए ये हाँ ही थी "अब्दुल तूने सही कहाँ था मुँह लगा के पिने मे तो मजा ही आ गया "
अब्दुल, मिश्रा की हिम्मत देख अपने अंदर के मर्द को जगाने लगा उसे भी यकीन हो चला था कि थोड़ी कोशिश से काम बन सकता है, वो जान बुझ के थोड़ा आगे को हो गया और बिलकुल अनुश्री कि कमर से जा चिपका, इतना कि अनुश्री के बड़े भारी कूल्हे अब्दुल कि जांघो पे जा लगे.
" ऐ.. ऐ.....ठीक से खड़े हो ना धक्का क्यों मारा? " इस धक्के से अनुश्री अपनी भावनाओं से बाहर आई.
"मैडम भीड़ बहुत है क्या करे धक्का पीछे से ही आ रहा है" अब्दुल ने अपने जिस्म के निचले हिस्से को अनुश्री की गांड से चिपकाये रखा.
अनुश्री इस बार कुछ नहीं बोली क्या बोलती बात तो सही ही थी, अब्दुल के चिपकने से पसीने के कारण होती खुजली से उसे कुछ राहत का अनुभव भी हुआ ही था, क्यूंकि ट्रैन चलने से लगने वाले झटको के कारण अब्दुल पीछे से खुद को अनुश्री कि कमर और गांड पे घिस रहा था.
"मैडम कि का रस इतना मीठा है क्या? " अब्दुल ने पसीना ना बोल के रस कहाँ जिसे अनुश्री ने साफ सुना क्यूंकि उसके इर्दगिर्द ही तो बात हो रही थी.
" बिलकुल भाई शहद जैसा है मैडम ने खुद चखाया. क्यों मैडम जी?" अनुश्री ना चाहते हुए भी इनकी बातो का हिस्सा बनती ही जा रही थी,
अनुश्री ने आंखे बड़ी कर के मिश्रा को देखा जैसे कहना चाह रही हो कि अब्दुल को क्यों बताया?
" काश मुझे भी मिल पता ये रस" अब्दुल ने पीछे से दबाव देते हुए कहा.
"तो इसमें काश वाली क्या बात है तू भी पी ले मैडम थोड़ी ना मना करेगी."
इस बार अनुश्री बुरी तरह से चौकी क्यूंकि मिश्रा किसी और मर्द को निमंत्रण दे रहा था उसका पसीना चखने को, वो भी बिना उसकी इज़ाज़त के.
अभी अनुश्री सोच मे ही डूबी थीं कि पीछे से अब्दुल ने अपने गंदे काले होंठ अनुश्री कि पीठ पे चिपका दिए.
"सससससस.......इस्स्स. स.....करती अनुश्री ने अपनी आंखे बंद कर ली.
उसे विरोध करना चाहिए था परन्तु ना जाने क्या हुआ कि सिर्फ आंखे बंद कर के रह गई गर्मी से पसीना छोड़ती पीठ पे ठंडाई के अहसास ने उसके बदन को झकझोर दिया.
अभी आंख खोलने को ही थी अब्दुल ने अपनी जीभ निकल के पीठ चाट ली लगभग पसीने को लप लप करता चाट गया, आगे से मिश्रा ने भी मौके कि नजाकत को समझते हुए अनुश्री कि कांख मे मुँह घुसेड़ दिया, और पूरी जीभ निकाल के कभी नीचे से ऊपर तो कभी ऊपर से नीचे कि तरफ अनुश्री की पसीने से भिड़ी कांख को चाटने लगा.
जैसे तो भवरे किसी फूल का रस पी रहे हो.
अनुश्री कि तो हालात ही ख़राब हो गई उसे पता नहीं था कि उसका चुप रहना इस कदर भारी पढ़ने वाला है
इस हमले से उसकी सांसे भारी होने लगी, वो जैसे ही विरोध करने का सोचती दोनों कि जीभ ऐसा कमाल दिखाती कि विरोध धरा का धरा रह जाता.
"ससससस......नहीं.....नहीं...." बस यही निकल पा रहा था उसके मुँह से आंखे बंद थी उसे कोई फ़िक्र नहीं थी कि वो ट्रैन मे है अनजान दो मजदूर वर्ग के मर्द उसके पसीने को चाट रहे है.
"आअह्ह्हह्ह्ह्ह.....उसे सहन करना मुश्किल था "इस बार उसके हलक से थोड़ी जोरदार आह निकली.
उसकी आह सुनते ही मिश्रा और अब्दुक ने अपनी जीभ हटा ली, उन्हें डर था कि कही इसकी आवाज़ से भीड़ का ध्यान उनकी तरफ ना चला जाये.
दोनों कि जीभ जैसे ही हटी अनुश्री ने आंखे खोल दी उसकी आंखे बिलकुल लाल थी, सांसे किसी धोकनी कि तरह चल रही थी बड़े बड़े स्तन उठ उठ के गिर रहे थे. उसका बदन अंदर से गर्म हो गया था गाल बिलकुल टमाटर कि तरह लाल थे.
उसकी आँखों मे सवाल था "क्यों रुक गए?"
तभी उसे अपनी जांघो के बीच एक दम गिला गिला महसूस हुआ जैसे कोई पानी उसकी जांघो के बीच रिसता हुआ नीचे को जा रहा हो.
" हे भगवान ये क्या हो रहा है मुझे? ये सवाल अनुश्री का खुद से था.
सवाल मन मे था और जाँघ आपस मे रागडकर जवाब उसका बदन दे रहा था.
अब्दुल :- ऐसे मत चिल्लाओ मैडम काम बिगड जायेगा
"क्या मै जोर से चिखी?लेकिन क्यों? ये कैसा अहसास है? अनुश्री का मन प्रश्नों से भर गया था.
जिसके जवाब उसे मिलने थे यही पे इसी ट्रैन मे.
एक तो गर्मी ऊपर से दोनों कि हरकत ने आग लगा दि थी अनुश्री के जिस्म मे, उसके जिस्म से पसीना फिर से बहने लगा.
"- वाह मैडम जितनी खूबसूरत है आप इतना ही रसीला और खूबसूरत है आपका जिस्म " मिश्रा ने अनुश्री की दिल से तारीफ की
"हाँ यार देख मैडम का पसीना फिर निकल गया, कितना ही चाटो मन ही नहीं भरता" अब्दुल ने मिश्रा की बात का समर्थन किया.
दो अनजान लोग उसके पसीने कि तरीफ कर रहे थे और वो इस तारीफ से कही ना कही मदहोशी का अनुभव कर रही थी.
इस गहमा गहमी मे फिर से कुछ बुँदे रिस्ती हुई कमर के रास्ते पैंटी मे समाने लगी, गीलेपन और खुजली के अहसास से अनुश्री ने अपनी गांड को थोड़ा मरोड़ना चाहा, अपने पैरो को इस तरह चलाया कि गांड के दोनों पाट आपस मे रगड़ खा जाये ताकि खुजली मे थोडा आराम मिले, और हुआ भी ऐसा ही परन्तु इस बार इस राहत मे कुछ और भी था.
उसकी गांड किसी सख्त चीज से रगड़ खा गई.
"आअहह्म्ममुऊफ्फर..... उउफ्फ्फ......मैडम आज आप मार ही डालेगी क्या " अब्दुल जान्नाते हुए बोला,
"मममम...मममम.....मैंने क्या किया?" अनुश्री चौंक गई,
" आपकी खुजली कि वजह से मुझे चोट लग रही है."
" ककककक....क्या...क्या? " अनुश्री शर्म से पानी पानी हो गई एक अनजान मर्द उसके गांड मे होती खुजली को भाँप गया था.
"इसमें शर्माने वाली क्या बात है मैडम जी गर्मी है पसीना है तो खुजली होना स्वाभिक है" अब्दुल ने अनुश्री को झेपते हुए देख कहा.
अनुश्री तो शर्म से गढ़ी जा रही थी, उसके लिए क्या किसी भी स्त्री के लिए ये घटना इस सभ्य समाज मे अपमाजनक होती.
परन्तु अब्दुल उसकी झेप और शर्महाट को भली भांति समझ रहा था.
अब्दुल :- डरिये शर्माइये मत अपनी टांगे थोड़ी फैला लीजिये थोड़ा खुलापन होगा हवा वहा जाएगी तो राहत मिलेगी
अनुश्री हालांकि समझ रही थी कि किस जगह खुजली हो रही है और अब्दुल भी वही कि बात कर रहा है
अनुश्री तो पहले ही उनकी बातो मे आ चुकी थी इस तरह तो उसका पति भी उसे नहीं समझता था
अनुश्री ने शरमाते हुए अपनी टांग थोड़ी सी फैला ली.
अब्दुल का कहना ठीक था उसे तुरंत राहत मिली परन्तु दोनों गांड के हिस्सों के बीच मौजूद छोटा सा छेद अभी भी तकलीफ दे रहा था.
अभी उसका ऐसा सोचना ही था कि ट्रैन ने झटका खाया अब्दुल पीछे से दबता चला गया साथ ही उसकी जाँघ भी पूरी तरह अनुश्री कि जाँघ से सट गई.
नतीजा उसका लंड साड़ी के ऊपर से ही सीधा अनुश्री कि फैलाई हुई गांड मे जा धसा.
"हम्म्म्म.....ये ट्रैन " बोल के अनुश्री थोड़ा पीछे को हुई ताकि अपनी जगह वापस खड़ी हो सके परन्तु उसके पीछे चुभती चीज और ज्यादा चुभने लगी.
हालांकि अब्दुल का लंड पूरी तरह सख्त नहीं था फिर भी लुंगी मे लटका हुआ ही चुभने लगा.
अनुश्री को इस चुभन से काफ़ी राहत महसूस हुई, उसे लगा पीछे अब्दुल का कोई सामान रखा है,
इसी अहसास को लेने के लिए अनुश्री ने वापस से अपनी गांड को पीछे धकेला.
अब्दुल :- कैसा लग रहा है मैडम जी?
अनुश्री :- कककक.कक्क...कैसा मतलब?
अब्दुल :- अरे खुजली मिटी या नहीं?
" वो...वो...थोड़ी थोड़ी " ऐसा बोल अनुश्री बुरी तरह झेप गई क्यकि यहाँ उसकी गांड कि खुजली कि बात हो रही थी.
"पूरी मिटा देंगे " ऐसा बोल अब्दुल ने अपने लंड को अनुश्री की गांड के बीच अच्छे से रगड़ दिया.
मिश्रा:-क्या मिटा रहा है भाई?
अब्दुल :- अरे यार मैडम कि गांड मे पसीना आ रहा है तो खुजली हो गई है वही मिटा रहा हूँ
अनुश्री को ऐसे वार्तालाप कि कतई उम्मीद नहीं थी उसका बदन गुस्से और अजीब सी सीहरन से नहा गया.
उसने दिमाग़ मे गांड शब्द हलचल मचा गया उसने कभी अपने पति के मुँह से भी ऐसा शब्द नहीं सुना था.
अनुश्री ने सर पीछे कर अब्दुल को देखा और आंखे दिखा गुस्सा जाहिर किया जैसे बोलना चाहती हो "क्या जरुरत थी बताने कि?"
इन गंदे शब्दों का अलग ही मजा था आज अनुश्री ऐसा महसूस कर पा रही थी. उसके जहन मे गुस्सा था लेकिन विरोध कतई नहीं था, उसके हाथ अभी भी ऊपर दिवार पर ही टिके हुए थे,
मिश्रा :- मिटा दे भाई आखिर हम लोग हमसफ़र है एक दूसरे कि मदद करना ही हमारा फ़र्ज़ है.
मिश्रा कि बाते बड़ी आदर्शवादी थी, लेकिन जिस लहजे मे कही गई थी ये मिश्रा ही जनता था.
अब्दुल :- मैडम टांगे चौड़ी तो करे तभी तो हवा लगेगी वहा.
दोनों मर्द अनुश्री के अंगों कि बात कर रहे थे उसके ही सामने, टांगे चौड़ी करना सुन उसका कलेजा मुँह को आने लगा सांसे वापस तेज़ चलने लगी, पसीने से भीगी पैंटी मे कुछ बुँदे टपक ही गई.
ये अभी हुआ हि था कि अब्दुल ने अपनी कमर को आगे कि तरफ चला दिया.
"आमममममम....इस्स्स.....अनुश्री कि कराह निकल गई जो उसके मुँह मे ही घुल के रह गई, उसे उन्माद महसूस हो रहा था.
वो जानती थी ये गलत है लेकिन उसका बदन क्या करे जो ये सब स्वीकार कर चूका था उसकी सबसे बड़ी दुश्मन उसकी चुप्पी थी वो कुछ बोलती नहीं थी बस चेहरे से ही अपनी भावना बतला देती थी.
उसके जहन मे गांड, टांगे चौड़ी करना जैसे शब्द बार बार दस्तक दे रहे थे ये शब्द रोमांच भरे थे.
अनुश्री को चुप चाप खड़ा पा कर अब्दुल कि हिम्मत बढ़ने लगी थी. और साथ ही उसका लंड भी जो लगातार अनुश्री कि गांड के संपर्क मे था,
अब ऐसे कामुक पसीने से तर गांड किसी लंड को छू जाये और वो खड़ा भी ना हो तो वो लंड नपुंसक का ही होगा.
अब्दुल का लंड धीरे धीरे सख़्त होने लगा, आलम ये था कि सीधा तन के खड़ा हो गया था और बराबर अनुश्री कि गांड कि दरारा मे चुभने लगा
"आउच...ये क्या है? " अनुश्री के मुँह से निकल गया.
साथ ही उस चीज का नरम स्पर्श भी उसे गुदगुदाने लगा.
अब्दुल का लंड अभी सिर्फ गांड के ऊपर ही ठोंकर मार रहा था.
अनुश्री को कोई अहसास नहीं था कि ये क्या चीज है, उसे अब्दुल का लंड चुभ तो रहा था परन्तु सही जगह नहीं चुभ रहा था.
इसलिए वो कभी अपनी गांड को इधर हिलाती तो कभी उधर, उसे तो अभी तक यही लग रहा था कि ये कोई बैग वगैरह का पट्टा है जो कि अब्दुल ने उसके और अपने बीच रखा हुआ है.
कितनी भोली थी अनुश्री.
"खुजली मिटी क्या मैडम जी?" मिश्रा कि आवाज़ से अनुश्री का ध्यान भंग हुआ
"क्या...क्या.....ना...ना...नहीं "अनुश्री हकला रही थी जैसे किसी ने उसकी चोरी पकड़ ली हो.
"शर्माइये नहीं मैडम यहाँ आपकी खुजली के बारे मे सिर्फ हम दोनों को ही पता है और हम किसी को नहीं बताएंगे, लगता है आपके पति आपकी खुजली अच्छे से नहीं मिटा पाते,हेहेहेहे.." मिश्रस ने अपने गंदे दाँत निपोर दिए.
अनुश्री समझ नहीं पाई कि किस खुजली कि बात हो रही है, उसका पूरा ध्यान अपनी गांड पे चुभती चीज मे ही था.
"क्या यार अब्दुल तू एक मामूली खुजली नहीं मिटा पा रहा फालतू फेंकता रहता है कि तेरा बड़ा है" मिश्रा ने ये बात साफ अनुश्री को सुनाने के लिए बोली थी.
"क्या बड़ा है किस चीज कि बात हो रही है " अनुश्री के मन मे कोतुहल सा मच गया परन्तु इस चुभन को काफ़ी हद तक महसूस कर उसका बदन रोमांच से भर उठा था बस ये चीज सही जगह नहीं लग रही है.
अब्दुल अपनी बेइज़्ज़ती सुन जोश मे आ गया, उसे मिश्रा कि बात ने चोट पंहुचा दी थी, उसकी मर्दानगी पे चोट थी ये बात, और देखते ही देखते अब्दुल ने अपनी लुंगी का एक हिस्सा साइड कर अपना लंड बिलकुल नंगा कर लिया.
और एक धक्का लगा दिया इस बार लंड सीधा सही जगह पे वार किया बिलकुल दोनों निताम्बो कि दरार को भेदता हुआ साड़ी के ऊपर से ही गांड के छेद पे छू गया.
आअह्ह्ह.....अनुश्री को राहत कि असीम कृपा प्राप्त हुई उसने भी ना जाने कैसे अपनी टांगे और चौड़ी कर अपनी गांड पीछे को कर दी.
अब्दुल के लिए ग्रीन सिग्नल था, ट्रैन के झटको के साथ ही उसने अपने लंड को आगे पीछे करना शुरू कर दिया लंड साड़ी के ऊपर से ही लगातार गांड के दोनों पाटो के बीच घिसने लगा जो गांड के छेद पे धक्का दे के वापस चला आता.
अनुश्री को राहत कि वो अनुभूति हुई कि पूछो ही मत उसे कोई मतलब नहीं था कि वो क्या चीज है उसने तो बस अपने हाथ मिश्रा कि ऊपर टिका रखे थे और आंख बंद किये इस राहत का मजा ले रही थी.
इस राहत ने खुजली पे काबू तो किया लेकिन उसका बदन जलने लगा, उसे ये घिसाव अपनी चुत तक महसूस होने लगा, इस घिसाव से जो चिंगारी उत्पन्न हो रही थी वो सीधा उसके स्तन और चुत पे हमला कर रही थी.
हम्म्म्म...इस्स्स....ना चाहते हुए भी उसके मुख से सुख कि ध्वनि फुट पड़ी.
अनुश्री ने दूसरा हाथ भी मिश्रा के पीछे दिवार पे रख दिया इस वजह से अनुश्री कि गांड और पीछे हो हो गई टांग तो फैली ही हुई थी, अब्दुल के लंड को अब खुला रास्ता मिल गया था.
अब्दुल :- अच्छा लग रहा है ना मैडम जी
अनुश्री कुछ बोली नहीं बस आंख बंद किये हाँ मे सर हिला दिया.
अभी ये हो ही रहा था कि मिश्रा से रहा नहीं गया उसने अपने पंजो पे ऊँचा हो अनुश्री कि दूसरी पसीने से भरी कांख को चाट लिया.
मिश्रा :- क्या स्वाद है मैडम अपना मन करता है कि....
" क्या मन करता है....इस्स्स... आअह्ह्ह... ".अनुश्री आंख बंद किये ही बोल गई मिश्रा और अब्दुल कि हरकतों से वो मदहोशी कि दुनिया मे समा गई थी उसे खुद नहीं पता कब कैसे लेकिन उसका बदन उन दोनों कि मनमानी का साथ दे रहा था.
मिश्रा :- यही कि जिंदगी भर आपकी सुन्दर कांख चाटता रहु.
अनुश्री जो कि अपनी मान मर्यादा संस्कार सब भूल चुकी थी "चाट लो आअह्ह्हम......उसकी चुत से रस टपकने लगा था, आंखे लज्जत से बंद थी.
दोनों ये दृश्य भलीभांति देख रहे थे.
दोनों ने एक दूसरे को देख एक मुस्कुराहट का आदान प्रदान किया.
अब्दुल :- मैडम आपको पता है आपकी गांड कि खुजली कौन मिटा रहा है?
अनुश्री बिलकुल सहज़ थी इस बार " कौन मिटा रहा है? " वैसे ही मदहोशी मे अपना सर को पीछे किये हुए बोली.
अब्दुल :- मेरा लंड इस बार अब्दुल ने सीधा लंड का नाम ही ले लिया
अनुश्री :-कककम्म......कककम....क्या?
अब्दुल :-.मेरा लंड जिसपे आप अपनी गांड घिस रही है.
कक्क....क्या अनुश्री बुरी तरह चौंक गई वो झट से सीधी खड़ी हो गई दोनों हाथ नीचे कर लिए.
लंड नाम सुनते ही जैसे उसे उसकी अंतरआत्मा ने भींच दिया हो.
उसका जलता हुआ बदन, जिस्म मे उठता रोमांच खत्म होने लगा उसे याद आया कि वो शादीशुदा है.
सारी भावना पल भर मे धवस्त हो गई, उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसकी गांड के बीच किसी पराये मर्द का लंड था
वो पतीव्रता है, संस्कारी है, अच्छी फॅमिली से है.
अनुश्री के सीधा खड़े हो जाने से अब्दुल और मिश्रा कि घिघी बांध गई उनके चेहरे पे हवाइया उड़ने लगी.
"you बास्टर्ड," बोलती हुई अनुश्री खुद को धिक्कारने लगी.
कहानी जारी है.
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