मेरी बीवी अनुश्री -3
डिब्बा D3
"माँ....माँ.....कहाँ खो गई माँ " राजेश ने अपनी माँ को आवाज़ दी.
उसकी माँ रेखा जो अभी अभी भिखारी का काला भयानक लंड देख के हटी थी उसकी सांसे फूल गई दिल धाड़ धाड़ कर सीने मे बज रहा था, चेहरा बिलकुल लाल हो गया था
"वो...वो....बेटा गर्मी कितनी है " रेखा जैसे तैसे बोल गई उसका गला वाकई सुख गया था.
भिखारी से नजर चुराती रेखा "पानी..पानी...देना बेटा " ने पानी की गुहार लगाई.
कि तभी ट्रैन रुकने लगी, चररररर..... करती रुक गई, बाहर से शोर गुल की आवाज़ आने लगी,
"हट मादरचोद चढ़ने दे, साले तेरे बाप कि ट्रैन है क्या?"
"चल पीछे हट... गाली गलौज, बदतमीज़ी के साथ भीड़ का एक हुजूम डब्बे मे घुस पड़ा.
रेखा और राजेश के बीच जो थोड़ी सी जगह थी वहा भी लोग बाग ठसा ठस भर गए, गहमा गहमी मे रेखा के आगे किसी ने अपना बड़ा सा बेग रख दिया था.
"लो माँ पानी.." राजेश ने पानी कि बोत्तल अपनी माँ कि और बढ़ा दी, बैग कि वजह से राजेश को अपनी माँ का सिर्फ चेहरा ही दिख पा रहा था,
रेखा ने पानी कि बोत्तल गटा गट खाली कर दी जैसे किसी रेगिस्तान मे पानी का तालाब मिला हो.
ऊँची गर्दन किये रेखा के मुँह से होती हुई पानी कि बुँदे गर्दन से फिसलती सीधा पसीने से भीगे बड़े से स्तन कि दरार मे समाने लगी.
इस नज़ारे को नीचे बैठा भिखारी मन लगा के देख रहा था,उसके लिए तो रेखा जैसे कोई अप्सरा थी.
कि तभी ट्रैन झटके से चल पड़ी, पानी की बोत्तल झटके से रेखा के हाथ से हिल गई और पानी निकल ब्लाउज पे गिर गया और थोड़ा पानी भिखारी कि लुंगी पर जहाँ उसका उभार छुपा हुआ था
ठंडा पानी पड़ते ही दोनों के मुँह से एक साथ सिसकारी फुट पड़ी आअह्ह्हह्म....इस्स्स....दोनों ने एक दूसरे कि आह को भलभांति सुना, इसी क्रम मे दोनों की नजरें मिल गई.
राजेश बार बार दरवाजे कि तरफ ही देख रहा था, "लगता है भाभीजी उतर नहीं पाई!"
"क्या यार उस से इतना भी नहीं हो सका" मंगेश के चेहरे पे थोड़ा गुस्सा था, मोबाइल निकाल अनुश्री का नंबर पंच करने लगा
"हाँ हेलो....क्या? इतना भी नहीं कर सकती तुम, उतरना ही तो था " मंगेश ने सामने से बिना कुछ सुने गुस्से मे फोन काट दिया,
ये वही वक़्त था जब अनुश्री एक हाथ मे फ़ोन थामे दूसरे हाथ को मिश्रा के पीछे दिवार पे टिका दी थी.
" गुस्सा क्यों होते है भाईसाहब अगले स्टेशन पे उतर जाएगी भाभी जी" राजेश ने सांत्वना दि.
ट्रैन रफ़्तार पकड़ चुकी थी
"क्या करती हो मेमसाहब आप, कभी मेरा लंड उखाड़ने पे उतारू होती हो तो कभी ठंडा पानी डाल देती हो" भिखारी बड़े ही दयनीय तरीके से बोला
" क्या बकवास करते हो और ये क्या भाषा है?" रेखा जो संभल चुकी थी
ना जाने क्यों रेखा उसकी बातो का जवाब दे रही थी.
उसके दिल मे रह रह के हुक उठ रही थी उसकी आँखों ने जो अभी दृश्य देखा था वो उसके 15साल के सूखे पड़े जीवन मे बहार जैसा था उसका दिल तो चाहता था कि वो इस दृश्य को फिर से देखे लेकिन कैसे कहे हाय रे संस्कार.
लेकिन भिखारी मझा हुआ खिलाडी जान पड़ता था.
"अच्छा खासा मेरा लंड गर्म हो गया था आपने ठंडा पानी डाल दिया" भिखारी लुंगी को थोड़ा सा उठा के झाड़ने लगा जैसे उसका पानी सूखा रहा हो
इस प्रक्रिया मे भिखारी का खड़ा भयानक लंड का थोड़ा सा हिस्सा दिखता तो कभी छुप जाता.
रेखा ने वापस से सर झुका लिया उसके सामने रंगमंच का कार्यक्रम चल रहा था कभी पर्दा गिरता तो कभी उठता, उसकी आँखों मे उमंग तैरने लगी
वो उस चीज को देख लेना चाहती थी जी भर के, रेखा की आँखों मे एक व्याकुलता चमक रही थी, चाहत दिख रही थू, जिसे भिखारी भलीभांति समझ रहा था.
" ऐसे क्या देख रही है मेमसाहेब? खा जाइएगा क्या? "
"ये....ये....क्या बोल रहा है, छी छी मै क्यों खाउंगी भला " रेखा पता नहीं किस मोहपाश मे बँधी ये शब्द बोल गई.
" तो देख क्यों रही हो फिर? "भिखारी के मुँहफट जवाब ने रेखा के वजूद को जबरजस्त चोट दि.
"हाँ तो देख क्यों रही हूँ मै? मुँह फैर लू सीधी बैठ जाऊ!" रेखा खुद से सवाल कर रही थी परन्तु इस सवाल का जवाब उसका पसीना छोड़ता जिस्म दे रहा था
15साल से अनछुवा गद्दाराया परन्तु सूखा जिस्म, इस जिस्म ने अपने यौवन अपनी हसरत को ना जाने किस कोने मे दबा लिया था,
रेखा कुछ ना बोली बस एक टक देखती रही उस गिरते उठते पर्दे को, लुंगी के हर झटके के साथ उसका दिल भी झटका कहा जाता, एक करंट सा लगता जो नाभि मे कहीं गुदगुदी सा अहसास दे कर चला जाता.
भिखारी समझ चूका था कि उसे अब क्या करना है.
उसने लुंगी को एक तरफ से हटा दिया उसका अर्धखड़ा लंड वापस से रेखा के सामने उजागर हो गया.
गड़ब.... रेखा ने तुरंत अपना थूक गटक लिया उसे इन सब मे मजा आ रहा था उसका बदन इस बात का गवाह था.
"कितना भयानक है,कैसा गन्दा है छी "ल,लेकिन...लेकिन....इतना बड़ा और मोटा " ये सोच आते ही उसकी नाभि मे उठती लहर जांघो के बीच दस्तक देने लगी, उसकी जाँघे आपस मे चिपक गई,
परन्तु रेखा कुछ बोल नहीं रही थी, बस इसी बात को हां समझ भिखारी ने अपना गन्दा हाथ राजवंती के खूबसूरत मुलायम गोरे पैरो पर रख दिया, ठीक पिंडली के नीचे.
"सससससईई.....इस्स्स.. इस मादक दृश्य को देख रेखा की आंखे गोल हो गई, भिखारी के हाथ का खुर्दर्पन उसे साफ महसूस हुआ,वो बस यही नहीं रुकने वाला था.
एक हाथ से लंड को पकड़ उसकी चमड़ी नीचे को सरका दी और दूसरे हाथ को रेखा के पैरो पे ऊपर चढ़ा दिया ठीक पिंडली के गुदाज मांस मे और जबरदस्त तरीके से पिंडली को भींच दिया.
"आअह्ह्ह.....उम्म्म्म....कि एक आनंदमयी सिसकारी फुट पड़ी रेखा के सुन्दर मुख से "
उसे यही आनंद तो चाहिए था ना जाने किस मोहपाश मे बँधी रेखा थोड़ा और नीचे को झुक गई जिस वजह से उसका पल्लू हल्का सा सरक गया.

भिखारी कि तो मनोकामना जैसे पूरी हो गई हो कामदेव आज उस से बेहद प्रसन्न थे.
"वाह मेमसाहेब आपके दूध तो बहुत गोरे है " भिखारी के ऐसा बोलते ही रेखा का ध्यान तुरंत अपने ब्लाउज पे गया जहाँ उसके झुकने से दोनों स्तन बहार को आने पे उतारू थे, पानी से ब्लाउज का ऊपरी हिस्सा गिला था जिस वजह से स्तन का पूरा आकर साफ झलक रहा था.
"ये क्या.....ये क्या बोल रहे हो " रेखा प्रश्न कर रही थी परन्तु विरोध नहीं था ना सम्भलने कि कोशिश कि उल्टा अपने ब्लाउज से दीखते स्तन को देख भिखारी कि आँखों मे देखा जैसे देखना चाह रही हो कि क्या होता है.
आज उसे अपना खजाना एक भिखारी को दिखाने मे सुकून मिल रहा था.
आखिर रेखा को वही वही दिखा जो देखना चाहती थी भिखारी कि आँखों मे खा जाने वाली चमक थी.
" वही जो सच है... " भिखारी ने रेखा के पैर को पकड़ उठा दिया और सीधा अपनी लुंगी के ऊपर रख दिया, उसका लंड सीधा रेखा के कोमल चिकने तलवो से दब गया
"आअहम.....उम्मम्मम्म....एक गरम और मुलायम आनंद कि अनुभूति पैर के तलवे से होती हुई सीधा रेखा कि चुत से जा टकराई.वही चुत जो पिछले 15 साल से सुखी थी.
आज वहा बाढ़ आने को थी रेखा को पहली झलक साफ महुसूस हुई थी, एक पानी कि पतली सी बून्द उस चुत रुपी लकीर से निकल के पैंटी पे चू गई, रेखा की कच्छी मे नमी जमा होने लगी.
आज इतने सालो बाढ़ रेखा को अपनी जांघो के बीच हलचल महसूस हुई थी वो भी एक भिखारी के लंड को अपने पैर से छू के,.अब लंड तो लंड ही होता है जिसका भी हो.
कामवासना ऊंच नीच जात पात कहाँ देखती है.
"ये...ये....क्या कर रहे हो छोडो मेरा पैर "रेखा ने खुद से लड़ते हुए भिखारी को घुरा.
भिखारी :- मेमसाहब अपने पानी डाला है तो आप ही गरम करेंगी ना वापस.
आपको अच्छा नहीं लगा क्या हमारा लंड, ये अच्छे से देख के बताइये बोलते हुए उसने अपने लंड कि स्किन को वापस से पीछे किया एक गुलाबी रंग का बड़ी सी बाल का आकर का शिश्नमुंड बहार को उजागर हो गया जिसके चारो और सफ़ेद सफ़ेद सी पापड़ी जमीं हुई थी जो गीलेपन से लस्लासा रही थी,
चमड़ी के नीचे होते ही एक अजीब सी गंध ऊपर कि तरफ झुकी हुई रेखा कि नाक मे पहुंच गई जो कि बर्दाश्त के लायक नहीं थी,.
"याक्क्क....ये कैसी दुगन्ध है " रेखा के मुँह से निकल गया.
भिखारी :- हमारे लंड कि खुसबू है मेमसाहब पसंद ना हो तो वापस अंदर कर ले
इस बार रेखा का कोई जवाब नहीं था उसे हरगिज़ मंजूर नहीं था कि वो अपना लंड अन्दर कर ले हालांकि वो बराबर उस गंध कि खुसबू ले रही थी जो कि इतनी बुरी भी नहीं थी, बस ये गंध उसके दिमाग़ मे चढ़ रही थी और सीधा नाभि के नीचे उतर जा रही थी.
"बताइये ना मेमसाहेब अंदर कर ले का " भिखारी ने रेखा के पैर को अपने लंड पे घिसते हुए कहा.
"ना...ना......मेरा मतलब हाँ...." रेखा सकपका गई थी बुरी तरह, दिमाग़ और बदन अलग अलग बयान दे रहा था.
" क्या हाँ, ना...? अच्छे से बोलिये अंदर कर ले या फिर ऐसे ही घिस दे? " भिखारी ने अपने लंड को रेखा के पैर के ऊपर ही घिस दिया जिस वजह से उसके लंड पे लगा सफ़ेद गन्दा चिपचिपा सा कुछ उसके पैर पे जा लगा.
"छी ये क्या किया तुमने " उसे घिन्न आ रही थी परन्तु बराबर बहस कर रही थी उस से, चाहती तो पैर हटा लेती शोर मचा देती.
"साफ ही कर रहा हूँ ना आपके पति का नहीं देखा क्या कभी लंड" .भिखारी बार बार लंड शब्द पे जोर दे रहा था, जिसे सुन सुन के रेखा मदहोशी के सागर मे गोते लगाने को मजबूर हुए जा रही थी.
भिखारी के कथन से उसे याद आया कि आज तक उसने लंड को कभी अच्छे से देखा ही नहीं था, आधा जीवन उसने ऐसे ही बिता दिया, पति के साथ सम्भोग मे भी उसने कभी अपने पति के लंड को नहीं छुवा था, बस चुत मे डालता दो पांच धक्को मे काम हो जाता,
उसे इस तरह कि गर्मी इस तरह कि मदहोशी कभी महसूस ही नहीं हुई थी.
आज ये भिखारी इस बात का अहसास करा रहा था
"बताइये ना मेमसाहब कभी लंड नहीं देखा क्या?"
भिखारी के सवाल से जैसे रेखा होश मे आई "ना...ना....नहीं."
भिखारी बुरी तरह चौका "क्या....इतने बड़े लड़के कि माँ हो और आज तक लंड ही नहीं देखा "
भिखारी के ये शब्द उसके वजूद पे धिक्कार थे उसके स्त्री होने को कोष रहे थे,
रेखा को जो सुकून मिल रहा था जो ठंडक दिल को पहुंच रही थी उसे बयान करना मुश्किल था.
"चलिए कोई बात नहीं कामदेव ने इसलिए ही मुझे भेजा है "भिखारी ने दिल जीत लिया था रेखा का अपने शब्दों से
रेखा जो कि सिर्फ एकटक अपने पैर को भिखारी के लंड पे घिसता देख रही थी उसे भिखारी मे अचानक कामदेव ही नजर आने लगा.
उसने दबाव डाल के उसके लंड को भींच दिया.
"आअह्ह्ह.....क्या करती ही मेमसाहब मार ही दोगी क्या, ऐसे नहीं आराम से करते है " भिखारी ने आज एक शादी सुदा जवान लड़के कि माँ को अनाड़ी साबित कर दिया था.
"लाइए अपना दूसरा पैर " भिखारी ने रेखा के दूसरे पैर को भी अपनी जाँघ पे रख लिया और अपने काले लंड को दोनों पैरो के बीच फसा दिया.
रेखा कि तो पैंटी ही गीली हो गई भिखारी कि इस हरकत से, उसने सपने मे भी नहीं सोचा था कि एक गंदे भिखारी का गन्दा लंड वो छुवेगी.
लेकिन यहाँ छूना तो छोडो रेखा ने उसका लंड अपने दोनों पैरो के तलवो के बीच दबोच रखा था.
"आप जैसी सुन्दर कामुक काया को ऐसे ही लंड कि जरुरत होती है मेमसाहब " भिखारी लगातार रेखा कि बखिया उधेड़ रहा था उसे स्त्री होने का अहसास करवा रहा था,
"आप जैसी कामुक स्त्री को तो ऐसे बड़े लंड ही शांत कर सकते है क्यों मेमसाब? कैसा लगा मेरा लंड "
"आआ.....अअअअअ.....अच्छा है" रेखा बस इतना ही बोल पाई
उसकी लाख कोशिश थी कि वो अपनी जांघो के बीच हाथ डाल दे, कैसी अजीब सी खुजली हो रही है वहा का गिलापन उसे लगातार इस बात के लिए उकसा रहा था.
आज जीवन मे उसे पहली बार काम ज्ञान मिल रहा था वो भी एक भिखारी से.
"आपके दूध मेमसाहब, मन करता है कि चूस लू पकड़ के " भिखारी के एक एक शब्द किसी तीर कि तरह चल रहे थे और ये तीर उसकी चुत मे धसते जा रहे थे.
अब भिखारी ने रेखा के पैरो को पकड़ के सहलाना शुरू कर दिया कभी अपने लंड के ऊपर करता तो कभी नीचे.
रेखा लगातार उसकी ये हरकत देखे जा रही थी दोनों पैरो के बीच कैद उसका भारी मोटे लंड कि चमड़ी कभी खुलती तो कभी बंद होती उसके लिए आज ये दुनिया का सबसे खूबसूरत नजारा था इस नज़ारे को देखने के लिए उसने अपने जीवन के 45 साल बर्बाद कर दिए.
"आअह्ह्ह..... मेमसाहब अच्छा लग रहा है थोड़ा कस के चलाइये अपने पाँव "
भिखारी कि बात सुन उसे ध्यान आया कि उसका पैर तो खुद बा खुद उसके लंड पे चल रहे है भिखारी तो कबका अपना हाथ वाह से हटा चूका है.

इस लज्जत मे रेखा कि चुत ने एक लम्बी धार छोड़ दी जिसे सिर्फ और सिर्फ उसी ने महसूस किया, इस धार का असर ये हुआ कि उसके पैर मजबूती से भिखारी के लंड पे कस गए और ऊपर नीचे होने लगे.
वो अपने पैर से एक गंदे अनजान भिखारी का लंड हिला रही थी, उसे उस आनंद कि अनुभूति हो रही थी जिसे वो ना जाने कब से पाना चाहती थी, शादी के बाद उसे अधूरापन तो लगता था लेकिन क्या अधूरा है समझ नहीं आता था, परन्तु आज उस बात का जवाब उसे मिल गया.
उसका पैर अब तेज़ तेज़ भिखारी के लंड पे चलने लगा, या यूँ कहिये की कस गया था उसके लंड के चारो तरफ, रेखा उत्तेजना मे सर झुकाये लंड कि खुलती बंद होती चमड़ी को देखे जा रही थी.
"आआहहहह....क़ाह्ह्ह्हह...उम्मम्मम्म....मेमसाहब धीरे धीरे " भिखारी अपनी गांड उठा के नीचे पटकता हुआ बोला
उसे कतई अंदाजा नहीं था कि उसके द्वारा लगाई गई चिंगारी इस कदर आग का रूप ले लेगी.
उसने बरसो से सोइ हुई कामुक स्त्री को जगा दिया था अब भुगतना तो पड़ेगा ना.
ट्रैन कि रफ़्तार धीमी होने लगी थी, परन्तु रेखा के पैरो कि रफ्तार रुकने का नाम ही नहीं के रही थी.
रेखा का पूरा बदन पसीने से सरोबर हो गया था.
"फच फच फच.....कि आवाज़ ट्रैन कि आवाज़ से मेल खा रही थी.
भिखारी भी आम आदमी था कब तक सहता, फचक फच... कि आवाज़ के साथ उसके लंड ने वीर्य कि पहली किश्त छोड़ दी.
"आआहहहह.....मेमसाहब रुक जाइये आअह्ह्हह्म......" भिखारी चित्कार उठा
लेकिन नहीं रेखा नहीं रुकी उसे रुकना भी नहीं था....फच फच करते उसके पैर चले जा रहे थे.
तभी दूसरी तीसरी चौथी वीर्य कि धार भी भिखारी के लंड ने छोड़ दी उसका सारा वीर्य राजवंती के तालवो और उसके ऊपरी हिस्से को भिगोने लगा,

"आआहहहहम्म.......उम्मम्मम्म....." रेखा का शरीर कांप रहा था उसके चेहरा और आंखे सुर्ख लाल हो गई.
उसकी चुत ने भी जवाब दे दिया था इतने समय से तपता हुआ बदन शांत पड़ने लगा.
भिखारी के गरम वीर्य ने उसे ठंडक पहुंचाई थी,
उसके बदन कि गर्माहट चुत के रास्ते निकलने लगी
सरसरा के चुत ने आज 15 साल बाद पानी छोड़ा था आज सुखी नदी मे बाढ़ आई थी, जिसका जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ ये भिखारी था.
जिसे बड़ी हसरत और प्यार भारी निगाह से देखते हुए रेखा ने अपना पैर उसके लंड पे दबा दिया.
उसका चेहरा पसीने से भीगा था होंठो पे शैतानी मुस्कान तैर रही थी

"आआहहहह.....मेमसाहब " भिखारी ऐसे डकारा जैसे उसकी आखिरी आवाज़ हो.
रेखा आज हवा मे थी ट्रैन लगभग रुक गई, उसकी सांसे भारी हो गई, लेकिन इसमें सुकून था बरसो के बाद ऐसा सुकून मिला था.
रेखा अपने सर को उठा सीट के पीछे झुका लम्बी लम्बी सांसे लेने लगी, उसे अपने नीरस जीवन कि नयी राह दिख गई थी.
उसका चेहरा पसीने से भीगा हुआ था वो हांफ रही थी लेकिन वो दम भर रही थी एक नयी रेस के लिए, आनन्द कि रेस के लिए.

उसे यकीन हो चला था " वो अभी जवान है एकदम जवान "
"लगता है कोई स्टेशन आ गया है" मंगेश बहार देखते हुए बड़बड़या.
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ट्रैन जिस रफ़्तार से चल रही थी उसकी दुगनी गति से अनुश्री कि दिल कि धड़कन दौड़ रही थी.
धाड़ धाड़....करती जैसे ट्रैन से कॉम्पीटिशन चल रहा हो, इस दौड़ते दिल कि वजह अब्दुल द्वारा कहे गए शब्द थे "मैडम आप अपनी गांड मेरे लंड पे घिस रही है "
सीधे सीधे बोले गए ये शब्द अनुश्री को पाताल तक घसीट लाये, उसने ऐसी हरकत आज तक नहीं कि थी उसका बदन शर्म लज्जा हया से बिलकुल भीग गया, झुरझुरी सी आ गई थी.
उसे याद आया कि जब वो मंगेश के साथ सम्भोग करती थी तो सिर्फ लंड को अंदर डाल के धक्के मार दिया करता था, लेकिन ये...ये...क्या ऐसा लिंग जो पूरा का पूरा पीछे से आगे कि तरफ चुभ रहा था, नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता....अब्दुल झूठ बोल रहा है.
अनुश्री मन ही मन खुद से ही संघर्ष कर रही थी ये संघर्ष कब लंड कि लम्बाई तक आ गया उसे पता ही नहीं चला.
वो पराये मर्द के लंड पे अपनी गांड घिस रही थी ये मुद्दा नहीं था, मुद्दा तो ये था कि इतना बढ़ा कैसे?, पल भर के लिए उसकी अंतरात्मा ने उसे झकझोड़ा जरूर था.
"क्या हुआ मैडम डर गई क्या?" पीछे से अब्दुल फुसफुसाया
"कक्क... क... क.......क्या?" अनुश्री अभी भी सदमे ने थी
" अरे अब्दुल ऐसा क्या कर दिया तूने देख मैडम कितनी डर गईं है कितना पसीना आ रहा है उनको" मिश्रा कि नजर साड़ी के अंदर बन रही स्तन के लकीर पे थी
" देख पूरा ब्लाउज भीग गया है मैडम का "

अनुश्री ने मिश्रा कि बात सुन नीचे को देखा और वही पाया जो सच था उसका पूरा ब्लाउज पसीने से तर बतर था इतना कि उसके स्तन के उभार साफ देखे जा सकते थे, निप्पल का आकर साफ जान पड़ता था और वो भाग्यशाली मिश्रा ही था जो ना जाने कुछ ढूंढ़ रहा था उस ब्लाउज मे, जैसे पता लगा रहा हो कि वो कामुक बिंदु कहाँ है स्तन का?
अनुश्री ने नजर उठा मिश्रा की तरफ देखा तो वो उसके स्तन को ही घूर रहा था.
अनुश्री जो पहले से ही काफ़ी सदमे मे थी उसकी हालात और ख़राब होने लगी "हे भगवान कहाँ फस गई मै " उसके मुँह से फुसफुसाहट निकली.
"मैडम क्या करे गर्मी ही इतनी है हो जाता है अब देखो ना मुझे भी कितना पसीना आ रहा है" मिश्रा ने अपनी बालो से भरी छाती की तरफ ऊँगली दिखाई.
ना चाहते हुए भी अनुश्री कि नजर पड़ गई जहाँ मिश्रा के सीने पे पसीने से घने बाल आपस मे चिपके हुए थे.
मर्दाना छाती थी मिश्रा कि जिसमे से उठती पसीने कि मर्दना गंध अनुश्री ने साफ महसूसू कि.
" हम तो फिर भी शर्ट खोल लिए है मैडम लेकिन आप लेडीज लोगो कि समस्या है, आप खोल नहीं सकती ना" मिश्रा ने बड़ी ही हसरत भरी निगाह से भीगे हुए स्तन कि और इशारा किया.
"ये.. ये... क्या बोल रहे हो...शर्म नहीं आती" अनुश्री सकपका गई
"शर्म कैसी मैडम अब गर्मी का यही तो इलाज है ना, गर्मी लगे तो कपडे खोल दो हवा लगने दो" मिश्रा बार बार उसके स्तन कि ओर इशारा कर रहा था.
अनुश्री सब समझ रही थी कि तभी पीछे से अब्दुल कि आवाज़ ने ध्यान भंग किया
" मैडम बुरा ना मानो तो एक आईडिया दू आपको? जिस से आपकी पसीने से होती खुजली भी मिट जयेगी और आपको अपनी गांड मेरे लंड पे रगडनी भी नहीं पड़ेगी" अब्दुल थोड़ा आगे को हो फिर से अपने लंड को उसकी गांड पे चिपका दिया.
फिर वही शब्द गांड लंड अनुश्री बार बार वहा से ध्यान हटा रही थी और अब्दुल बार बार उसे वही खिंच लाता.
"उम्मम्मम्म...इससससस....गांड पे वापस से मुलयाम लम्बी चीज चिपकने से अनुश्री को वापस से वही राहत का अनुभव हुआ, परन्तु उसे इस बार पता था कि ये लम्बी सी चीज क्या है, अनुश्री धक्के से थोड़ा आगे को हुई तो मिश्रा पे गिरने लगी, अब इस गिरने से बचने का एक ही तरीका था अनुश्री ने वापस से अपना हाथ उठा मिश्रा के पीछे दिवार पे लगा दिया.
मिश्रा के पाजामे मे तो बाहर ही आ गई वापस से ये दृश्य देख के परन्तु इस बार कांख पहले से ज्यादा भीगी हुई थी, मिश्रा उस भीगी कांख से मदहोश हो रहा था.

"एक तो तुम ठीक से खड़े हो, बार बार वजन मत डालो मुझ पे " अनुश्री ने गर्दन घुमा के अब्दुल को घूरते हुए कहा.
"अब क्या करू मैडम भीड़ और ट्रैन कि धक्को कि वजह से ऐसा हो जा रहा है" इस बार अब्दुल नीचे से ऊपर कि तरफ अपने लंड को अनुश्री की गांड पर घिस कर अलग हो गया.
"आअह्ह्ह....उउउफ्फ्फ्फ़...अनुश्री को आनंद कि अनुभूति हुई एक खास आनंद कि परन्तु होता है ना जब खुजली होती है तो उसे खुजने का ही मन करता है अच्छे से, खुजली भी अच्छी लगती है खुजलाने मे.
लेकिन ये क्या अब्दुल तो पीछे हट गया, अनुश्री के गुदा द्वारा मे पसीना अपना करतब बराबर दिखा रहा था.
उसे इस घिसाव से पल भर कि ही राहत मिली
"- बोलो ना मैडम आईडिया दू क्या?" अब्दुल अभी भी अपने मुद्दे पर कायम था.
अनुश्री जो कि उनके खेल का हिस्सा बन चुकी थी लेकिन वो खिलाडी नहीं थी वो तो बॉल थी कभी इस पाले कभी उस पाले.
"बबबब.....बोलिये?"
"- जैसे मिश्रा ने अपनी शर्ट के बटन खोल दिए है वैसे आप भी अपनी पसीने से भीगी कच्छी को उतार दीजिये हवा लगेगी तो राहत मिलेगी." अब्दुल ने सीधा और सरल आईडिया बता दिया.
अनुश्री को काटो तो खून नहीं उसे एक अजनबी आदमी पैंटी उतारने को बोल रहा था वो भी ट्रैन मे, भीड़ मे सबके सामने "तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा बोलने कि " इस बार वाकई उस कि आँखों मे गुस्सा था..
"अअअ.. अरे ..अरे...मैडम बात तो पूरी सुना करो आप बात बात पे गुस्सा करती है जब कि हम आप का भला चाह रहे है, अब हम हमसफर है." अब्दुल ने अनुश्री को गुस्सा करता देख बात को संभालना चाहा.
"अब हम हमसफ़र है " अब्दुल कि ये बात ना जाने क्यों अनुश्री के दिल मे उतर गई.
" लेकिन....लेकिन....नहीं नहीं...ऐसा कैसे?" बदहवास कंफ्यूज अनुश्री खुद से बड़बड़ा रही थी.
अब्दुल ने अनुश्री के कंधे पे हाथ रख दिया और हल्का सा सहला दिया जैसे कुछ समझाना चाह रहा हो जैसे हमदर्दी जता रहा हो
"मै समझ सकता हूँ मैडम आप औरतों कि हज़ारो समस्या होती है हम मर्दो कि तरह थोड़ी ना कि कही भी कपडे खोल दिये, अब देखिये ना आपकी कच्छी पूरी तरह आपकी गांड से चिपक गई है आपके छेद मे खुजली हो रही है इसलिए आप बात बात पे झुंझला भी रही है "
अब्दुल कि एक एक बात उसके कान से होती दिल मे धस्ती जा रही थी, "कैसे कोई अनजान व्यक्ति उसकी समस्या को इतने अच्छे से समझ रहा है?" बाकि का काम उसके खुर्दरे हाथ कर रहे थे जो कि लगातार अनुश्री के कंधे पे चल रहे थे.
अनुश्री को ये स्पर्श और उसकी बाते अच्छी लग रही थी जैसे कोई दिव्य ज्ञान हो, आज तक इतने प्यार से किसी ने नहीं सहलाया था उसे.
" सही तो कह रहा है मैडम अब्दुल कच्छी उतार देंगी तो हवा लगेगी वहा, वरना गर्मी से आप बीमार पड़ जाएंगी" मिश्रा ने अब्दुल का समर्थन किया.
गजब के हमदर्द लोग मिले थे अनुश्री को
"पप्प...पर...पर.....यहाँ?" अनुश्री वो करना चाहती थी, उसे हमदर्द, हमसफर मिल गए थे, वो क्या है कौन है? अब इस बातवका महत्व नहीं रह गया था.
उसके जिस्म की गर्मी, उसका पसीना इसे सोचने ही नहीं दे रहा था.
अब्दुल और मिश्रा के चेहरे पे एक कातिल मुस्कान आ गई अनुश्री ने विरोध नहीं किया था सिर्फ भीड़ कि वजह से डर रही थी.
"मैडम यहाँ भीड़ मे कौन देख रहा है वैसे भी आप मेरे आगे है किसी को कुछ नहीं दिख रहा है,हम सबसे कोने मे खड़े है" अब्दुल ने खुद को थोड़ा एडजस्ट कर पूरी तरह से अनुश्री को अपने लम्बे चौड़े शरीर से ढँक लिया.
अनुश्री ने अब्दुल कि बात मान आस पास का जायजा लिया तो अब्दुल को ठीक ही पाया किसी का ध्यान इधर नहीं था अपितु भीड़ ऐसी थी कि अनुश्री लम्बे चोड़े अब्दुल के आगे दिख ही नहीं रही थी
उसके जहन मे ये बात वाजिब लगी थी क्यूंकि आज उसकी सबसे बड़ी दुश्मन उसकी पैंटी ही बन गई थी वो उसकी चुत और गांड कि दरार मे एक दम घुस चुकी थी.
लेकिन क्या करे कि उसके संस्कार, दिल तो इस बात को मान गया था परन्तु उसका दिमाग़ अभी भी लड़ रहा था.
" सोचिये मत मैडम अभी अगला स्टेशन आने मे बहुत टाइम है तब तक तो ना जाने क्या हाल होगा आपका खुजली से" मिश्रा भी अब्दुल के विचार पर जोर दे रहा था.
खुजली शब्द सुनते ही अनुश्री का ध्यान वापस से अपनी जांघो के बीच चला गया, जहाँ अब बर्दाश्त करना मुश्किल था अब्दुल भी अब पीछे हट चूका था.
खुजली कि याद आते हूँ उसे मिटाने कि चाहत मे उसने अपनी गांड को हल्का सा पीछे किया परन्तु इस बार अब्दुल भी तैयार था जैसे ही अनुश्री को पीछे होता देखा खुद भी पीछे हो गया, अनुश्री को नाकामी ही हाथ लगी
अब्दुल और मिश्रा उसके मनोस्थिति से खूब खेल रहे थे.
मिश्रा :- सोचिये मत मैडम हाथ अंदर डाल के नीचे कर के निकाल लीजिये कौन देख रहा है यहाँ.
अनुश्री का दिल धाड़ धाड़ चल रहा था वो एक ऐसा कदम उठाने का मन बना चुकी थी जो की उसे नहीं करना चाहिए था, लेकिन क्या करे कि उसका बदन और कामवासना कि हलकी सी चिंगारी ने उसे मजबूर कर दिया था.
उसे इन दोनों को सलाह एक दम उपयुक्त लग रही थी, अनुश्री ने एक जोर कि सांस अंदर खींची और बाहर छोड़ दी हवा का गुब्बारा मिश्रा के चेहरे से जा टकराया.
मिश्रा तो वैसे ही मदहोश था वो तो कब से अनुश्री के मस्त पसीने से भीगी कांख के दर्शन कर रहा था.
" ये पर्स पकड़ना तो" अनुश्री ने अपना पर्स सामने मिश्रा को थमा दिया.
उसे ये पल मजबूर नहीं अपितु रोमांचित कर रहा था, जो वो करने जा रही थी ऐसा करने का माद्दा हर किसी मे नहीं होता लेकिन जो रोमांच होता है उसे अनुभव करना था, वो पूरी भीड़ के सामने अपनी पैंटी उतारने जा रही थी पसीने से भीगी पैंटी.
अनुश्री हल्का सा झुक गई, अब्दुल और मिश्रा कि सांसे थम गई थी जैसे कि क्रिकेट मैच मे लास्ट बोल पे छक्का लगाना हो.
अनुश्री ने अपनी साड़ी को पकड़ हल्का सा ऊपर उठा दिया घुटने तक, जिसे सिर्फ मिश्रा ही देख पाया,
"क्या गोरी अप्सरा है घुटने ही ऐसे गोरे है तो चुत कैसी होंगी?" मिश्रा का मन बावला हो गया था क्यूंकि उसके ऊपर आज कामदेव मेहरबान था.
अनुश्री पल भर के लिए रुकी परन्तु उसके दिल मे जो रोमांच उठा था उसके आगे अनुश्री ने हथियार डाल दिए, साड़ी हलकी से और ऊपर हुई, थोड़ी सी और ऊपर....कि अनुश्री के हाथ मे पैंटी का निचला भाग आ गया,
इस क्रिया मे अनुश्री अनजाने ही ज्यादा झुक गई जिस वजह से उसकी बड़ी सुडोल, कसी हुई गांड पूरी तरह बाहर को उभर आई,
अब्दुल ये नजारा देख के बर्दाश्त ना कर सका,उसने अपना कमर का हिस्सा थोड़ा आगे कर अनुश्री कि नितम्भो मे घुसा दिया.
ये टकराव सीधा अनुश्री के गुदाछिद्र पर हुआ था.
"आआकहहहहहह....आउच....ये क्या कर रहे हो " अनुश्री वापस से सीधी खड़ी हो गई. उसने अनजानी सी चाह मे अपने गुदा द्वारा को अंदर कि तरफ भींच लिया.
मिश्रा कि आँखों मे तो जैसे खून ही उतर आया हो.
उसने खा जाने वाली नजरों से अब्दुल कि ओर देखा.
"- माफ़ करना मैडम आप कि सुंदरता देख मै खुद को रोक नहीं पाया" अब्दुल ने इस बार साफ अपनी गलती स्वीकार कर ली थी,
अब्दुल के मुँह से अपनी सुंदरता कि तारीफ सुन अनुश्री का दिल झूम उठा उसे अब इस खेल मे आनंद मिल रहा था, उसने आज तक अपने पति के मुँह से भी ऐसी बाते नहीं सुनी थी.
अनुश्री थोड़ा रिलैक्स हुई और अपने गुदा द्वारा को वापस छोड़ दिया, परन्तु उस खिचाव मे जो मजा वो महसूस कर रही थी वो अलग था, इस दुनिया से परे कि बात थी.
उसे साफ पता था कि जो अभी चुभा वो क्या था परन्तु इस कदर मोटा कि पुरे नितम्भ पे ही उसका दबाव महसूस हुआ.
अब उसके दिल मे जिज्ञासा उठने लगी थी कि ये चीज वाकई वही है जो वो सोच रही है
"मैडम आपकी कसी बड़ी गांड देख के आपकी खुजली मिटाने को आतुर हो गया था मेरा लंड" अनुश्री जो कि अभी सोच मे ही थी उसे अब्दुल कि बात ने गहरा धक्का दिया, अब्दुल एक के बाद एक प्रहार कर रहा था.
"क्या मै वाकई इतनी सुन्दर हूँ? मेरा बदन इतना कसा हुआ है कि एक मर्द खुद को रोक ही नहीं पाया " सोचते हुए अनुश्री बोली "तुम सीधे खड़े रहो वैसे ही गर्मी बहुत है और झूठ कम बोला करो इतनी भी सुन्दर नहीं हूँ मै, ये बात बोल के पीछे कि तरफ देख इस बार हलकी सी मुस्करा दी अनुश्री.
अब्दुल तो घायल ही हो गया इस मुश्कुराहट मे "सच कह रहे है मैडम "
" लेकिन ये कैसी गन्दी भाषा बोलते हो तुम लोग" अनुश्री के चेहरे पे शर्माहत की लालिमा छा गई थी,
"अब आपका बदन कसा हुआ है तो का करे मैडम "इस बार मिश्रा ने जवाब दिया जिसके चेहरे पे गुस्सा दिख रहा था क्यूंकि इसे वो अनमोल खजाना दिखने वाला था जो कभी सपने मे भी नहीं सोचा था, परन्तु अब्दुल ने जल्दबाज़ी मे काम ख़राब कर दिया.
" आपकी खुजली मिटी क्या मैडम? कच्छी उतार दीजिये ना" मिश्रा कि आवाज़ मे एक याचना थी, जैसे कि अनुश्री ने बात नहीं मानी तो रो पड़ेगा अभी.
अनुश्री को मिश्रा कि मासूम बाते और चेहरा काफ़ी पसंद आया था, बोलता ही इतने प्यार से था
उसे याद ही नहीं था कि शादी के बाद उससे इतने प्यार से किसी ने बात कि हो, कोई विनती कि हो.
अनुश्री अब दोनों के साथ सहज़ हो गई थी "हाँ....हान...गर्मी तो लग रही है खुजली भी है "
इस बार बिना अटके बिना शर्म के अपनी गुदा द्वारा कि खुजली के बारे मे उसने बोला था, वाह क्या आनंद था क्या रोमांच था जिसे अनुश्री खूब महसूस कर रही थी.
इस रोमांच मे उसकी पैंटी और भी ज्यादा गीली हो गई, उसकी छोटी सी चुत से एक दो बून्द कामरस जो टपक गया था.
" तो उतार दीजिये ना मैडम" अब्दुल कि आवाज़ मे मदहोशी थी जो कि अनुश्री के कान मे किसी शहद कि तरह घुल गई.
अब अनुश्री भी सारी लाज हया छोड़ इन दोनो के रंग मे रंग गई थी उसे अपने नीरस वैवाहिक जीवन मे रोमांच दिख रहा था.
अनुश्री हल्का सा झुक गई, साड़ी पहले कि भांति घुटनो तक ऊपर कि और अंदर हाथ डाल के उस मुसीबत को पकड़ लिया जो इन सब कि जिम्मेदार थी, अपनी पैंटी का निचला हिस्सा पकड़ उसने नीचे को सरका दिया, पैंटी का कसाव हटना था कि पैंटी खुद-ब-खुद पैरो के पास सैंडल पे आ गिरी.
"आआहहहह......उफ्फ्फफ्फ्फ़..... अनुश्री सीधी खड़ी हो गई " उसके चेहरे पे जो सुकून था जो राहत थी वो शब्दों मे बयान नहीं कि जा सकती थी,
इस कृत्य मे ऐसा सूखा था जैसे आज उसने अपने जिस्म पर पहनी सबसे भारी चीज को अलग कर दिया हो.
मिश्रा के पीछे हाथ रखे अनुश्री ने आंख बंद कर एक राहत कि सांस छोडी.
" मैडम एक पैर उठाइये ना" राहत की सांस लेती अनुश्री को कोई आभास नहीं था कि मिश्रा क्या बोल रहा है बस उसने जो सुना वो कर दिया.
लेकिन जैसे ही अनुश्री ने आंखे खोली भोचक्की रह गई सामने मिश्रा के हाथो मे उसकी छोटी सी काली पैंटी थी जो पसीने और चुत रस से पूरी तरह भीगी हुई थी.

"ये.....ये.....क्या कर रहे हो तुम, मुझे दो वापस " अनुश्री जैसे धरातल पे वापस आई हो.
मिश्रा अनुश्री कि पैंटी को अपनी नाक से लगाए सूंघ रहा था वो भी उसी के सामने "क्या खुसबू है मैडम आपकी कच्छी कि, आपकी कांख से ज्यादा मोहक है "
अनुश्री कि हालात बिन पानी मछली कि तरह हो गई थी पूरा बदन जलने लगा था आंखे लाल थी, कैसे कोई आदमी उसकी पैंटी को सूंघ सकता है.
" इतनी छोटी कच्छी कैसे पहन लेती हो मैडम आप, देखिये ना किस कदर भीग गई है. अब ऐसी छोटी कच्छी पहनेगी तो गांड मे घुसेगी ही ना" मिश्रा ने अनुश्री कि पैंटी को उसके सामने उजागर कर दिया.
अनुश्री कामवासना और लज्जत से मरी जा रही थी.
अभी ये कम ही था कि मिश्रा ने अनुश्री कि पैंटी को मुँह मे भर के जबरजस्त तरीके से चूस लिया.
मिश्रा का चूसना इस कदर हैवानियत भरा था कि अनुश्री को वो चूसन साफ अपनी चुत पे महसूस हुई, उसके पति ने एक दो बार उसकी चुत को अपनी जीभ से सहलाया था परन्तु यहाँ तो मिश्रा पूरी पैंटी का निचला हिस्सा ही मुँह मे घुसाए चूसने मे लगा था.
"छी ये क्या कर रहे हो गन्दा......मेरी पैंटी मुझे दो" अनुश्री साफ देख रही थी कि उसकि पैंटी मे सफ़ेद सफ़ेद कुछ लगा है जिसे मिश्रा बड़े मजे से चूस रहा था.
अनुश्री इस दृश्य को देख एक दम काम विभोर हो गई इस तरह के दृश्य क्या रोमांच पैदा करते है, उससे आज परिचित हुई थी, एक तरफ उसका मन इस दृश्य को देख हिकारात भर रहा था वही दूसरी तरफ उसकी चुत को फिर से भिगोये जा रहा था.
"- मैडम क्या स्वाद है आपकी चुत का आआहहहह....... ऐसी चुत चखने के लिए मरना भी पड़े तो मंजूर है." मिश्रा अनुश्री की कच्छी मे लगी सफेदी को चाट रहा था.
अब बात सीधी अनुश्री कि चुत पे आ गई थी
अभी अनुश्री इस सदमे से बाहर भी नहीं आई थी कि "टांग फैलाइये ना मैडम" अब्दुल पीछे से फुसफुसाया
अनुश्री हक्की बक्की "का...का...क्या?"
" टांग चौड़ी कीजिये मैडम हवा लगने दीजिये तभी तो आपकी गांड कि खुजली मिटेगी." अब्दुल ने अपनी बात पूरी की.
अनुश्री दो तरफ़ा हमला झेल रही थी सामने एक आदमी उसकी पैंटी चाट रहा था और पीछे से एक आदमी उसे टांग चौड़ी करने को बोल रहा था.
अनुश्री किसी मोहपाश मे फस गई थी जिस से चाह के भी आज़ाद नहीं हो सकती थी, ना चाहते हुए भी अपनी दोनों टांगे अलग अलग फैला ली, एक ठंडी हवा का झोका साड़ी के अंदर प्रवेश कर गया.
"आआहहहह.....उम्म्म्म.....एक असीम शांति के अहसास ने अनुश्री के बदन को घेर लिया.
अब्दुल जो कि इसी मौके कि तलाश मे था उसने झट से अपनी कमर को आगे कर दिया, उसका लंड लुंगी के ऊपर से ही सीधा उसकी साड़ी के बीच गुदा द्वारा तक जा धसा.
"अअअअअ.....आउच...." अनुश्री के मुख से हलकी सी आह फुट पड़ी.
अंदुल लगातार अपने लंड को अनुश्री कि गांड मे आगे पीछे कर रहा था हर प्रहार उसके गुदा द्वारा तक जता फिर वापस लौट आता, पैंटी का अवरोध ख़त्म हो चूका था.
अब्दुल के लंड कि घिसावट उसकी गांड मे होती खुजली को मिटा रही थी, सामने मिश्रा उसकी पैंटी को ऐसे चाट रहा था जैसे उसकी चुत ही हो.
अनुश्री को अपनी नाभि के नीचे कुछ फटता सा महसूस हो रहा था, जैसे कुछ बाहर निकलना चाहता हो.
नाभि का दबाव सीधा चुत पे पड़ रहा था यही वो रास्ता था जहाँ से उसे निकलना था,
आअह्ह्हह्म.....उम्मम्मम......करती अनुश्री मिश्रा के ऊपर हाथ टिकाये उसे एक टक देखे जा रही थी पीछे अब्दुल साड़ी के ऊपर से ही अपने लंड को उसकी गांड पे घिस रहा था.
उसे ऐसा मजा ऐसा सुकून पहली बार मिल रहा था, इसी जद्दोजहद मे उसने अपनी गांड को कब पीछे कर दिया और खुद से अब्दुल के लंड पे घिसने लगी उसे खुद को पता नहीं पड़ा.
"आआहहहहहह......उम्मम्मम.... नहीं नहीं.....मुँह मे "नहीं" था लेकिन उसका बदन हाँ कि तरफ ही था उसका पूरा बदन पसीने से सरोबर हो चूका था.
एक पल को उसने सर घुमा के अब्दुल कि तरफ देखा जैसे उसका धन्यवाद करना चाह रही हो

ट्रैन ने एक झटका खाया....चूरररररर.....चररररररर....करती रुकने लगी.
!आआआहहहहहहह.....कि एक लम्बी सिसकारी अनुश्री के मुँह से निकल गई जो कि ट्रैन के ब्रेक कि आवाज़ मे कही दब गई"
उसकी कांख और चेहरे से पसीना टपक रहा था सांसे फूल रही थी, उसकी चुत से फचफच करता पानी निकलने लगा था, उसे आज बिना सम्भोग के ही स्सखालन हुआ था.
"आअह्ह्हह्म....हम्म्म्मफ़्फ़्फ़.....हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....." अनुश्री सांसे भर थी
ट्रैन रुक चुकी थी.....ट्रिन....त्रिईई.....ट्रिन......करती उसकी मोबाइल कि घंटी बजने लगी.
उतरो भाई उतरो.... स्टेशन आ गया है बाहर से होती धक्का मुक्की और आवाज़ से अनुश्री होश मे आ गई,
उसकी जाँघ बुरी तरह भीगी हुई लसलसा रही थी.
"हेलो....हाँ....उम्म्मफ्फ्फ्फफ्फ्फ़......हाँ मंगेश उतर रही हूँ मै "
स्टेशन आ गया था, अनुश्री संभल गई थी.
ट्रैन पूरी तरह रुक चुकी थी
कोई बड़ा स्टेशन आया था, काफि लोग उतर गए थे अनुश्री भी अपना पर्स थामे उतरने को थी कि तभी पीछे से आवाज़ आई.
"धन्यवाद मैडम जी आपने हमारा जीवन धन्य कर दिया आपका ये गिफ्ट हमेशा हमारे पास रहेगा " पीछे से मिश्रा ने बोला. मिश्रा के हाथ मे अभी भी अनुश्री के पैंटी थी जो पसीने और मिश्रा के थूक से सनी हुई थी.
परन्तु इस बार अनुश्री के चेहरे पे गंभीर गुस्सा था आँखों मे लाल शोला था,
उसने मिश्रा कि आवाज़ तो सुनी लेकिन बिना उसकी तरफ देखे ही ट्रैन से सर झुकाये उतर गई.
उसके बदन कि गर्मी शांत हो गई थीं, उसका रोमांच ख़त्म हों गया था,उसकी आँखों मे आँसू थे पश्चियाताप के आँसू.
ट्रैन से उतर के वो D3 डब्बे कि ओर बढ़ चली जहाँ उसका पति मंगेश उसका इंतज़ार कर रहा था.
जल्दी जल्दी चलने से उसकी जाँघे आपस मे रगड़ खा रही थी जो कि उसकी चुत से बहते पानी का नतीजा था, पैंटी ना होने से चाप चाप कि आवाज़ आ रही थी चलने से.पल भर मे ही उसे वो सारा दृश्य याद आ गया कि कैसे वो अपनी गांड को अब्दुल के लंड पे घिस रही थी सामने खड़ा मिश्रा उसकी पैंटी को चूस चाट रहा था और उसे इस बात मे कोई शर्म नहीं दिखाई दे रही थी बल्कि उसका दिल मारे उत्तेजना और रोमांच के ऐसा करने के लिए उकसा रहा था.
कैसे वो दो अजनबियों के जाल मे फस गई थी. उसे अपने आप पर घिन्न आ रही थी वो दो अजनबी आदमियों से स्सखालित हो के आ रही थी वो भी उनके बिना छुए ही.
कि तभी सामने मंगेश D3 डब्बे के बाहर खड़ा मंगेश उसे दिखा गया.
अनुश्री किसी पागल कि तरह दौड़ती हुई मंगेश के गले जा लगी.
"मुझे माफ़ कर दो मंगेश मुझे पहले ही उतर जाना चाहिए था,मै उतर नहीं पाई सॉरी....सोरी.... मंगेश" अनुश्री सुबुक रही थी.
मंगेश हक्का बक्का खड़ा था कि इसे क्या हुआ "क्या हुआ मेरी जान अनुश्री? रो क्यों रही हो किसी ने कुछ बोला क्या?"
मंगेश का सवाल सुनते ही उसके जहन को धक्का लगा कि क्या बोले वो कि क्या हुआ है? कैसे कह दे कि उसे अभी अभी दो मर्दो ने बिना हाथ लगाए ही चरम सुख दिया है, कैसे कहे कि उसने अपनी पैंटी अपने हाथ से उतार के अनजान शख्स के हाथ मे दी है, कैसे कहे कि अपनी कामुक गांड को एक अनजान शख्स के लंड पे रगड़ रही थी.
मंगेश :- क्या हुआ अनुश्री रो क्यों रही हो?
अनुश्री ने खुद को संभाला " वो....वो....मै डर गई थी कि इस बार उतर पाऊँगी या नहीं "
बड़ी सफाई से अनुश्री ने अपने दिल के जज़्बात पे काबू पा लिया था.
ना बता पाने से ऐसा नहीं था कि वो कुछ हुआ ही नहीं था, हुआ तो था वो बहक गई थी, मदहोश हो गई थी उसकी काम इच्छा जाग गई थी उसने धोखा दिया था अपने पति को.
"Sorry मंगेश... सुबुक सुबुक.....अनुश्री की आवाज़ अभी भी रूआसी थी,
मंगेश :- तुम तो जबरजस्ती राई का पहाड़ बना रही हो इतनी सी बात के लिए आँसू बहा रही हो,अरे भई सफर है ऐसे ही होता है.
अनुश्री मन मे ही "तुम्हे क्या पता मंगेश तुमने अकेला छोड़ के क्या गलती कि, सफर है होता है तुम्हारे लिए आसान होगा हम लड़कियों के लिए नहीं तुम कब समझोगे?"
अनुश्री मुँह से कुछ नहीं बोली लेकिन उसकी आँखों मे सवाल था जिसे मुर्ख मंगेश ना पढ़ सका.
" अच्छा चलो चुप हो जाओ बच्ची नहीं हो तुम...आओ किसी से मिलवाता हूँ अपने नये दोस्त और उसकी माँ से" मंगेश अपनी बीवी को ले कर आगे बढ़ गया.
कूऊऊऊऊ.......करती ट्रैन ने जाने का सिग्नल दे दिया था
" जल्दी चलो कही फिर अलग अलग ना बैठना पड़े, हेहेहे.... "मंगेश के इस मज़ाक पे अनुश्री बुरी तरह चिड़ी थी, उसे ही पता था कि कैसे उसने ये पल काटे.
अनुश्री और मंगेश D3 डब्बे मे चढ़ ही गए.
अनुश्री अब काफ़ी हल्का महसूस कर रही थी दिल से भी और अपने नाभि के निचले हिस्से से भी उसकी पैंटी अब नहीं थी उसे हवा का ठंडा झोका साफ महसूस हो रहा था
कउउउउउम......छुक...छुक छुक छूककककककक..... करती ट्रैन रफ़्तार से दौड़ चली अपनी जगनाथ पूरी यात्रा के लिए.
अनुश्री को आत्मगीलानी हो रही थी, पछतावा भी था परन्तु ये आजादी ये हवा ये पहला स्सखलन पसंद भी आ रहा था.
उसके मन मे ढेरो सवाल थे,ढेरो दुविधा थी.
लेकिन क्या होगा इस दुविधा का सवाल का?
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बने रहिये कथा जारी है....

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