डिब्बा D-3
"ऐ भिखारी तू अभी तक यही बैठा है चल भाग यहाँ से " रेखा के सामने रखा बैग सवारी ले के उतर गई थी जिस वजह से राजेश अपनी माँ को देख पा रहा जो सर पीछे किये सांसे भर रही थी, बदन पसीने से भीगा हुआ था.
"ऐ भिखारी हट यहाँ से क्या हुआ माँ क्या हुआ...." राजेश ने अपनी माँ रेखा के करीब आ के पूछा ट्रैन रुक गई थी मंगेश अनुश्री को लेने डब्बे से बाहर उतर गया था.
"कककक....कककक......कुछ नहीं बेटा बस गर्मी कि वजह से " बडी सफाई से वो अपने जिस्म कि बात दबा गई.
कैसे कह सकती थी की जिस भिखारी को तू भगा रहा है उसने मेरे जीवन को नयी राहा दिखाई है, स्त्री होने का अहसास दिलाया है जिसे वो जिम्मेदारियों के बोझ तले भूल गई थी.
रेखा की नजर भिखारी पे पड़ी जो उसे ही देख रहा था जाते हुए उसकी आँखों मे चमक थी, ख़ुशी थी जैसे मन कि मुराद पूरी हो गई हो, रेखा को उस भिखारी मे साक्षात् कामदेव नजर आ रहे थे
कउउउउउउउउउ.....ट्रैन चलने का संकेत हो गया था, भिखारी नजरों से ओझल हो चूका था.
ट्रैन झटके से चल पड़ी....
"राजेश मिलो अपनी भाभी से " मंगेश अनुश्री के साथ D3 डब्बे मे राजेश और रेखा के सामने खड़ा था.
"और ये राजेश कि माता जी है " मंगेश ने अनुश्री को नमस्ते करने का इशारा किया
"नमस्ते आंटी जी,नमस्ते भैया " अनुश्री ने दोनों का अभिवादन किया.
अनुश्री ने राजेश कि तरफ देखा तो पाया राजेश एक सुन्दर गोरा पतला दुबला किसी लड़की कि तरह लचीला किस्म का लड़का था.
"अरे वाह बेटा बड़ी सुन्दर पत्नी है तुम्हारी तो, आओ बेटी यहाँ बैठो " रेखा ने अनुश्री को अपने पास बैठा लिया.
अचानक माहौल पारिवारिक हो गया था
"राजेश के लिए भी तेरी जैसी ही खूबसूरत दुल्हन मिल जाये तो जिम्मेदारी से मुक्त हो जाऊ मै, इसके पापा के जाने के बाद बस यही एक जिम्मेदारी बची है मेरी " रेखा ने अनुश्री कि तारीफ और अपनी जिम्मेदारी एक साथ बता दी
राजेश :- क्या माँ आप भी जब देखो मेरी शादी
" तो क्या जिंदगी भर मेरे पल्लू से ही बंधा रहेगा क्या?" रेखा की इस बात पे सभी कि हसीं छूट गई, अनुश्री भी इस माहौल मे आ के पिछली घटना को भूल गई.
उसका दिल हल्का हो गया था.
रेखा अनुश्री आपस मे बाते कर रहे थे जहाँ मालूम हुआ कि शादी के 4 साल बाद भी अनुश्री गर्भवती नहीं हो पाई है
"कोई ना बेटा होता है, भगवान जगन्नाथ के दरबार मे जो मांगो मिलता है, मेरा आशीर्वाद है कि तू यहाँ से खाली पेट ना जाये" रेखा ने अनुश्री को आंख मार दी.
"क्या माँ जी आप भी ना बहुत शरारती है " अनुश्री ने शरमाते हुए कहा.
दोनों मे खूब जम गई थी जैसे कोई दोस्त हो रेखा कि बातो से लगता ही नहीं था कि वो इतने बड़े लड़के कि माँ है, इधर राजेश और मंगेश मे भी खूब छन रही थी.
बातो ही बातो मे रात के 8 बज गए पूरी स्टेशन आने ही वाला था, डब्बे मे गहमा गहमी शुरू हो गई थी.
" तो भई राजेश अब उतरते है कौनसा होटल बुक किया है तुमने?" मंगेश ने बैग सँभालते हुए पूछा
" अभी तो नहीं किया लेकिन पहुंच के देख लेंगे कोई छोटा मोटा होटल" राजेश भी सीट से उठ खड़ा हुआ,
"तो हमारे साथ ही चलो 5स्टार होटल बुक किया है मैंने.
राजेश इस बात पे थोड़ा झेप गया "क्या भैया मै यहाँ हनीमून थोड़ी ना मनाने आया हूँ जो आपके साथ चल दू, 2 दिन ही रुकना है हमें, मंदिर दर्शन कर निकल जायेंगे वापस"
"अरे भई अब भैया भी बोलते हो बात भी काटते हो 2 दिन तो 2 दिन सही साथ रहो हमें भी अच्छा लगेगा क्यों अनुश्री? " मंगेश ने अनुश्री का भी समर्थन चाहा
" तो और क्या माँ जी मंगेश ठीक ही तो कह रहे है" अनुश्री रेखा को आंटी से माँ जी बोल रही थी, उन दोनों मे खूब जम गई थी जैसे वाकई उसकी माँ हो बिलकुल दोस्त जैसी.
"अरे बेटा तुम लोग जवान हो कहाँ मुझ बुड्ढी पे टाइम वेस्ट कर रहे हो " रेखा ने दलील दी
" ख़बरदार जो खुद को बुड्ढी बोला तो अभी भी कोई आदमी देख ले तो तुरंत शादी को राजी हो जाये अनुश्री ने रेखा को छेड़ते हुए कहा.
लेकिन ये बात रेखा को बड़ी जोरदार लगी "क्या वो अभी भी इतनी जवान है,सुन्दर है?"
"धत पागल कुछ भी बोलती है " रेखा ने बात काटी
सभी हॅस पड़े.
ट्रैन रूक गई थी फाइनल हुआ कि चारो एक ही होटल मे रुकेंगे.
चारो उतरे और अपनी मंजिल कि और बढ़ चले "होटल सी टॉप व्यू "
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डिब्बा D1
"साले जल्दी उतर जल्दी होटल पहुंचना है वरना मालिक गुस्सा होगा " मिश्रा उतरते हुए अब्दुल को बोला
"तू बेवजह ही डरता है मालिक खा थोड़ी ना जायेगा,उस मैडम कि कच्छी चूसते हुए तो डर नहीं लगा तुझे?" अब्दुल चिढ़ते हुए बोला जैसे मिश्रा के कारनामें से जल रहा हो.
हेहेहेहेहेहे......दोनों हॅस पड़े.
" साला जल रहा है मेरे से, ऐसी कच्छी नसीब वालो को ही मिलती है" मिश्रा ने अब्दुल की खिंचाई करते हुए समान पीठ पर लाद लिया.
मिश्रा और अब्दुल पूरी के ही किसी होटल मे काम करते थे, जो कि आज ही छुट्टी से लौटे थे.
दोनों ने स्टेशन के बाहर से सवारी गाड़ी पकड़ी और चल पड़े अपने थर्ड क्लास "होटल मयूर " मे.
मिश्रा होटल मयूर का बावर्ची था और अब्दुल यहाँ का आलराउंडर मतलब कोई भी काम कर लेता था प्लम्बर, इलेक्ट्रिसिन, गार्डनर, चौकीदारी सब कुछ.
दोनों ही अव्वल दर्जे के बदमाश थे, होटल मे महिला गेस्ट पे चांस मार लिया करते थे, सफलता तो कभी मिली नहीं परन्तु एक दो बार शिकायत जरूर होटल मालिक तक पहुंच गई थी,
मालिक कि और से सख्त हिदायत थी कि आगे से ऐसा हुआ तो नौकरी से जाओगे.
इन्हे सिर्फ मालिक का ही डर होता था बाकि तो राजा थे होटल मयूर के.
खेर दोनों अपनी मंजिल कि और बढ़ गए.
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होटल सी टॉप व्यू

"कैसी बात कर रहे है आप? मैंने खुद बुकिंग कन्फर्म कि थी " यहाँ मंगेश होटल के मैनेजर पे बरस रहा था.
" आपकी बुकिंग कल को थी जो कि आप आये नहीं इसलिए रूम अलॉट नहीं हो सकता. और आज या कल के लिए कोई रूम खाली नहीं है बहुत भीड़ है भाईसाहब" होटल के मैनेजर ने मंगेश को उसकी गलती का अहसास कराया.
मंगेश जलभून के रह गया, क्या हो रहा है उसके साथ? ऐसी गलती कैसे कर सकता है वो, पहले टिकट कि तारीख गलत कर दी फिर होटल मे गलत बुकिंग का बोल दिया था
"जाने दीजिये भैया बहुत होटल है हम कही और देख लेंगे" राजेश ने मंगेश का गुस्सा शांत किया
अनुश्री ने भी मंगेश को समझाया, लेकिन उसका दिल किसी अनजान सी आहट से कांप रहा था ना जाने क्या बात थी, उसे कुछ ठीक नहीं लग रहा था.
चारो जाने लगे कि तभी पीछे से "रुकिए सर....एक होटल है "
पीछे से मैनेजर ने आवाज़ दी.
"मेरे जानने वाले का ही होटल है जो इस वक़्त खाली भी मिल जायेगा, लेकिन 5स्टार नहीं है, मतलब AC वगैरह कि सुविधा नहीं है"
सभी कि बांन्छे खिल गई लेकिन अनुश्री के चेहरे पे चिंता कि लकीर थी.
"सोचिये मत मैडम होटल आपको सस्ता भीं पड़ेगा और वैसे भी यहाँ कोई खास गर्मी पड़ती नहीं है, आपको कौनसा रूम मे रहना है दिन भर तो घूमते फिरते ही रहेंगे " मैनेजर ने अनुश्री को सोचता देख दलिले देना शुरू कर दिया.
मैनेजर कि बात सभी को जच गई.
मैनेजर ने होटल का कार्ड मंगेश को थमा दिया,
मंगेश ने कार्ड ले के देखा, बड़े अक्षर मे लिखा था
"होटल मयूर "
चारो चल पड़े होटल मयूर कि ओर.

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"ये देखो जी रूम तो 1500rs का होने का लेकिन तुम two फॅमिली होता तो मै तुम्हे डिस्काउंट देता एक रूम one थाउजेंड, बोलो बुकिंग करने का तो " होटल मयूर का मालिक "रामनिवास अन्ना " राजेश और मंगेश से भिड़ा हुआ था.
मंगेश जो कि पक्का गुजराती धंधेबाज था इतने कम मे रूम मिलने पे तो उसकी चांदी ही हो गई
"कर दीजिये बुकिंग सप्ताह भर के लिए "
" लेकिन हम यों सिर्फ 2 दिन ही रुकेंगे." राजेश चौंकते हुए बोला.
"अरे सस्ता रूम मिल रहा है रुको ना घूमो फिरो फिर कहाँ ऐसा मौका मिलता है, क्यों आंटी जी?" मंगेश ने रेखा माँ समर्थन चाहा.
"हाँ हान....जैसा तुम ठीक समझो बेटा." रेखा क्या कहती वो तो अभी भी ट्रैन मे उस उन्माद जे सफर से बहार नहीं आई थी.
राजेश भी बात मान गया आखिर माँ इतने सालो बाद घर से निकली है थोड़ा घूम लेगी नयी जगह देखेगी ऐसा सोच हान भर दी.
तो 2 रूम बुक हो गए.
"ये लो चाभी 102, और 103 तुम्हारा रूम होता, मजा करो सर अन्ना ने सभी को घूरते हुए बोला
"एडवास डिपोसिट होना पहले " अन्ना ने सीधी बात रखी
मंगेश ने 6000rs एडवांस मे दे दिए.
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अन्ना दक्षिण भारत का रहने वाला व्यक्ति था जो कि पिछले 10 सालो से पूरी मे होटल चला रहा था, एक दम साफ शरीफ आदमी ना पत्नी ना बच्चे होटल ही जिंदगी थी इसकी,
ऐसा कुरूप था कि कभी किसी लड़की ने पसंद ही नहीं किया, आज 45 साल का अधेड हो चूका था इस उम्र मे इसने शादी या किसी लड़की को पाने कि कोशिश ही छोड़ दी थी, पूरा ध्यान होटल चलाने मे ही रहता था.
दिखने मे बिलकुल काला, माथे पर चन्दन का टिका सफ़ेद शर्ट और सफ़ेद लुंगी हमेशा पहने ही रखता था.
सभी इसे अन्ना ही बुलाते थे, असली नाम क्या है किसी को नहीं पता था ना फ़िक्र थी,
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"टन...टन....टन....अन्ना ने मेज पे रखी घंटी बजाई..ऐ अब्दुल इधर आना सर और मैडम का सामान रूम मे रखना.
अन्ना के मुँह से अब्दुल नाम सुन के एक बार तो अनुश्री का दिन धक से बैठ ही गया था "ये कौन अब्दुल है?"
फिर उसने खुद को ही समझाया कि अब्दुल तो बहुत है दुनिया मे, उसे पिछली बाते भूल जानी थी जो हो गया सो हो गया.
"जी मालिक आया " बोल के एक लम्बा चौड़ा बंदा लुंगी शर्ट पहले बिना किसी कि तरफ देखे झुक के बैग उठाने लगा.
"रूम नंबर 102.103" अन्ना ने बिना सामने देखे रजिस्टर पर पैन रगड़ने लगा.
"जी मालिक " उसने बैग उठा लिए लेकिन जैसे ही सीधा खड़ा हुआ उसकी बांन्छे खिल गई, उसे अपनी आँखों पे विश्वास ही नहीं हो रहा था, उसे पल भर के लिए लगा शायद सपना है ये.
दूसरी तरफ अनुश्री कि नजर जैसे ही उस शख्स मे पड़ी उसके तो हाथ पाँव ही फूल गए, चेहरा एक दम सफ़ेद पड़ गया, खून जैसे जम गया हो.
"ये.....ये.....हे भगवान...ये तो वही ट्रैन वाला अब्दुल है " अनुश्री के जहन मे ये बात कोंध गई.
उसे कुछ सूझ नहीं रहा था, उसके सामने ट्रैन मे बीती हुई एक एक घटना सामने आ गई इसी अब्दुल के लंड पे उसने अपनी गांड घिसी थी, अपनी खुजली मिटाई थी
"चलिए मैडम...आपको छोड़ आते है " अब्दुल ने बड़े ही सुकून भरे लहजे मे कहाँ उसकी तो अल्लाह ने मुराद ही पूरी कर दी थी.
अनुश्री बस एक टक अब्दुल को देखे जा रही थी उसे अपनी किस्मत पे विश्वास ही नहीं हो रहा था.
"चले मोहतरमा अब " मंगेश ने अनुश्री का हाथ पकड़ के बोला
चारो लोग आगे कि तरफ चल दिए पीछे पीछे अब्दुल सामन उठाये,
उसकी नजर सिर्फ और सिर्फ अनुश्री कि साड़ी के अंदर से हिलती मतवाली गांड पे टिकी हुई थी,

वो उसकी लचक देखे जा रहा था क्यूंकि वो जनता था कि अनुश्री ने अंदर कच्छी नहीं पहनी है उसके नितम्भ आज़ाद थे खूब मटक रहे थे.
अब्दुल ने सभी का सामान उनके रूम मे रख दिया, 102 मे अनुश्री और मंगेश का, 103 मे रेखा और राजेश का.
मंगेश तो रूम मे घुसते ही सीधा टॉयलेट को भागा, अब्दुल ने उनका सामान कमरे मे रख बाहर को आ गया.
अनुश्री दरवाजा बंद करने को आई ही थी कि अब्दुल पलट के बोल पड़ा "अब आराम से मिटा लीजिये मैडम खुजली "
ये शब्द सुनते ही अनुश्री सकपका गई खुजली शब्द सुनते हि उसने अपनी जांघो को आपस मे भींच लिया उसे ये अहसास हो रहा था कि अब्दुल पीछे से लंड ना चुभा दे.
जाँघ भींचते ही उसने पाया कि उसने पैंटी नहीं पहनी है, उसके जहन मे एक दम से दृश्य दौड़ गया जब उसने अपनी पैंटी खुद अपने हाथ से निकाली थी.
"धड़ददाम्म्म्म....से अनुश्री ने अब्दुल के मुँह पे ही दरवाजा बंद कर दिया,और दरवाजे से पीठ लगा के खड़ी हो गई उसकी सांसे फूल रही थी,पसीने से बदन भीगा था.
"अरे क्या हुआ मेरी जान ऐसे क्यों खड़ी हो " टॉयलेट से निकलते हुए मंगेश ने पूछा.
"कककक.....कुछ नहीं वो जरा थकान है" अनुश्री ने अपनी घबराहट और बेबसी को फिर से दबा लिया था.
मंगेश :- तो फ्रेश हो लो नहा लो फिर खाना आर्डर करते है कल से फिर वही घूमना फिरना रहेगा.
अनुश्री बिना कुछ बोले ही सर झुकाये बाथरूम कि और चल दी उसके दिल पे बोझ था बड़ा सा बोझ.
मंगेश ने खाना आर्डर करने के लिए फ़ोन उठा लिया.
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इधर दरवाजा बंद होते ही अब्दुल तो जैसे हवा मे था उड़ता हुआ सीधा रसोईघर मे पंहुचा, जहाँ मिश्रा दाल मे चम्मच चला रहा था.
"मिश्रा अबे ओ मिश्रा....मजा आ गया यार " अब्दुल ने अंदर आते हुए बोला.
मिश्रा जो कि हाथ से कुछ पकड़ा मुँह पे घुमा रहा था उसका ध्यान ही नहीं था कि अब्दुल पीछे आ गया है
"साले बहरा है क्या " अब्दुल ने मिश्रा के कंधे पे हाथ रख उसे अपनी ओर पलटाया.
मिश्रा के हाथ मे वही काली कच्छी थी, अनुश्री कि उतारी हुई कच्छी जिसे एक हाथ से पकडे सूंघ रहा था और दूसरे हाथ से दाल बना रहा था.
"मदरचोद तू तो उसकी चुत मे ही घुस गया लगता है " अब्दुल ने बोला
मिश्रा :- क्या खुसबू है यार, क्या जवानी थी उसकी एक दम कड़क, पसीना भी खुसबू देता था, ना जाने कब मिलेगी ऐसी अप्सरा.
" अबे वो ट्रैन वाली मैडम अपने ही होटल मे रुकी है." अब्दुल ने जैसे हाइड्रोजन बम फोड़ दिया हो.
"छनननननननन......क्या.....ककककककक....क्या?" मिश्रा के हाथ से कच्छी और चम्मच एक साथ छूट गए, जैसे उसे कोई कर्रेंट लगा हो.
मिश्रा :- क्या...क्या....बक रहा है साले मै मज़ाक के मूड मे नहीं हूँ.
अब्दुल :- साले सच बोल रहा हूँ तेरी लुगाई कि कसम.
"मेरी लुगाई कि कसम है तो सच बोल रहा है इसका मतलब तू, मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा कि भगवान हम पे मेहरबान है" मिश्रा का लंड अनुश्री को याद कर झटके खाने लगा था.
अब्दुल :- हिम्मत-ए-मर्दा, मदद ए खुदा, अब तो सीधा चुत मे मुँह लगा के सूंघणा.
आज इन दोनों को भगवान पे यकीन हो चला था.
रूम नंबर 103
"कितने अच्छे लोग है ना माँ भैया भाभी " राजेश अपनी माँ से बोला.
"हाँ बेटा...अच्छा मै अभी आई " रेखा का मन राजेश कि बात मे नहीं था उसे काफ़ी देर से कुलबुलाहत हो रही थी
"ठिक है माँ मै खाना आर्डर करता हूँ" राजेश ने फ़ोन कि तरफ हाथ बड़ा दिया.
रेखा जल्दी से बाथरूम मे जा कार कमोड पे बैठ गई और जोरदार पेशाब कि धार के साथ एक सैलाब बह निकला, "आआहहहहह......उसे दिनभर से अभी कुछ सुकून मिला,
लेकिन जैसे ही उठने को हुई उसकी नजर अपने पैरो पे पड़ी, जहाँ एक सफ़ेद सी पपड़ी जम गई थी उसने झुक के उस पापड़ी को छुआ तो उसके मन मे झुरझुरी सी दौड़ गई उसे वो दृश्य याद आ गया जब उस भिखारी ने अपने मोटे काले लंड से बेतहाशा वीर्य कि पिचकारी उसके पैरो पे छोड़ दी थी.

रेखा के चेहरे पे मुस्कान तैर गई, उसकी जांघो के बीच फिर से चींटी चल पड़ी "हे भगवान कैसा भयानक था उसका"
उसकी आँखों के सामने भिखारी के खुलते बंद होते लंड कि तस्वीर नाच गई, उसने अपने पैर से वो सुखी पपड़ी को कुरेद कर अपने हाथो मे ले लिया और सांस अंदर खींच ली,
"उह्म्मम्म्म्मह्ह्हह्ह्ह्हह्म...इस्स्स...... एक कैसेली गंध से उसका जिस्म नहा गया, उसका दूसरा हाथ खुद ही अपनी जांघो के बीच पहुंच गया उसने पाया कि वहा चिपचिपा सा गिलापन है, उसकी दो ऊँगली चुत कि लकीर मे खुद-ब - खुद फिसल गई.
"आअह्ह्हह्ह्ह्हम......असीम आनंद कि अनुभूति हुई जैसे कि बदन से कोई बोझ हल्का हो गया हो, इसी अनुभूति को फिर से पाने के लिए उसने अपनी ऊँगली को फिर से ऊपर किया ऊँगली फिर से खुद-ब -खुद नीचे को चली गई परन्तु इस बार मटर के आकर का दाना भी उसकी दोनों ऊँगली के बीच आ गया.

"आआआहहहह......हे भगवान " ऐसा सुकून ऐसी राहत जीवन मे पहली बार महसूस कर रही थी रेखा, पुरे 15 साल बाद उसकी जांघो के बीच हलचल थी.
"ठक ठक ठक.....माँ...माँ....फ्रेश हो ली हो तो आ जाओ खाना आ गया है " बाहर से दरवाजे के ठोकने से जैसे रेखा एक दम चौंक गई, उसके जहन मे होती हलचल पलभर मे गायब होने लगी जैसे सातवे आसमान से सीधा जमीन पे आ गिरी हो.
"आआ.....हा...हनन.....बेटा आई " रेखा जल्दी से खड़ी हुई और जैसे ही कमोड का फ़्लैश चालू करने को हाथ बढ़ाया कि उसकी नजर कमोड मे सफ़ेद सफ़ेद किसी चीज पे पड़ी उसने अपनी ऊँगली पे भी चिपचिपा सा महसूस हुआ, उसने पाया कि उसकी उंगलि पे भी वही सफ़ेद पदार्थ लगा हुआ है ये वही ऊँगली थी जो उसके मादक चुत रुपी नदी मे गोते खा रही थी.
ये देख उसके तन बदन मे आग लग गई "तो...तो....क्या ये मेरे शरीर से निकला है? क्या है ये मेरा वीर्य? लेकिन इतना सारा?"
15 सालो मे वो ये बात भूल ही गई थी कि उसकी योनि भी उत्तेजना मे वीर्य छोड़ती है, और ये ऐसा होता है.
रेखा खुद हौरान थी आज तक जब भी वो स्सखालित हुई थी तो थोड़ा बहुत सफ़ेद सफ़ेद सा पदार्थ दिखता था लेकिन इतना कभी नहीं. आज उसका बदन उसे वासना कि नयी परिभाषा बता रहा था.
उसके बदन मे एक जोरदार झुरझुरहाट ली
उसने जल्दी से फ़्लैश चला दिया और खुद को साफ कर बाहर आ गई.
रेखा और अनुश्री दोनों ही अपने जिस्म कि पहेली मे उलझी हुई थी.
देखते है कौन पहले इस पहेली को सुलझा पाता है?
बने रहिये...कथा जारी है...

1 Comments
Bhai phirse wahi story kyu upload kar rahe hoo
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