रेशमा की ट्रेन सफर - 1
शाम के 4 बज चुके थे। ट्रेन अपनी रफ्तार पकड़ चुकी थी। हमारा रिजर्वेशन S2 में था, दो सीटें बुक थीं – एक लोअर, एक अपर। मेरी माँ रेशमा मेरे सामने बैठी थी, उसकी सिल्क की साड़ी उसके जिस्म से इस कदर लिपटी थी कि मानो उसका हर कटाव, हर उभार चीख-चीखकर अपनी कहानी सुना रहा हो। ज्यादा भीड़ नहीं थी, डब्बा खाली-खाली सा था, बस कुछ इक्का-दुक्का लोग अपनी दुनिया में खोए हुए थे।
रेशम के बारे मे जाने के लिए यहाँ क्लीक करे.
मै माँ को चुपके से देख रहा था, पर उस रात जो हुआ था, उसके बारे में कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। रेशमा, मेरी माँ, एक बार फिर बदल गई थी। वही शांत, सौम्य चेहरा, वही सादगी, जैसे कोई चाहत बाकी न रही हो – एक पूरी तरह संतुष्ट औरत। माँ के चेहर्र पे ऐसे भाव थे जैसे शादी मे कुछ हुआ ही ना हो! एक औरत कितनी जल्दी रूप बदल लेती है।
चेहरे की वो हवस, जो कुछ घंटों पहले आँखों में चमक रही थी, अब ममता में डूब चुकी थी। फिर भी, उसकी आँखों में एक ऐसी चमक थी, जो किसी मर्द के लंड को पल में खड़ा कर दे। उसकी सिल्क की साड़ी, गहरे नीले रंग की, उसके गोरे जिस्म पर इतनी टाइट थी कि उसकी चिकनी कमर, गोल-मटोल गांड, और भारी-भरकम चूचियां मानो साड़ी फाड़कर बाहर आने को बेताब थीं।
ब्लाउज की गहरी क्लीवेज में पसीने की बूंदें मोती की तरह चमक रही थीं, जैसे किसी मर्द को सीधा अपनी चूत की गहराई में खींच लेने का न्योता दे रही हों। रेशमा की नाभि, गहरी और गोल, साड़ी के नीचे से झांक रही थी, मानो कोई अनमोल रत्न हो।
शादी का दौर खत्म हो चुका था। माँ वापस अपनी जिम्मेदारी की दुनिया में लौट आई थी, लेकिन एक बदलाव साफ दिख रहा था। उसका जिस्म पहले से ज्यादा खिल गया था, जैसे फूल में और रंग आ गया हो। चेहरा तेज से चमक रहा था, होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान, और आँखों में कामुकता साफ झलक रही थी, उसकी चाल में एक अजीब सी लचक थी, जैसे वो हर कदम पर मर्दों को ललकार रही हो। मैं हैरान था, क्या मैं वाकई औरत को समझ चुका हूँ या अभी भी कुछ बाकी है?
“क्या हुआ बेटा, क्या सोच रहा है?” माँ ने मुझे घूरते हुए पूछा, उसकी आवाज में एक मादक सी खनक थी, जैसे जानबूझकर छेड़ रही हो। उसने अपने पल्लू को हल्का सा सरकाया, और उसकी चिकनी कमर, पसीने से चमकती हुई, और साफ दिखने लगी।
“कक... कक... कुछ नहीं माँ, बस ऐसे ही,” मैंने हिचकते हुए कहा, नजरें चुराते हुए। मेरी आँखें उसकी चूचियों की गहरी दरार पर अटक गई थीं, जहाँ हर सांस के साथ उसकी चूचियां ऊपर-नीचे हो रही थीं, जैसे मुझे उकसा रही हों।
“मुझसे कैसा शर्माना? बता, क्या सोच रहा है?” माँ ने मेरी आँखों में सीधे देखा। “ अपनी माँ को ऐसे ही घूरता रहेगा तो लोग क्या सोचेंगे?” उसने शरारत भरी मुस्कान के साथ कहा, जैसे वो जानबूझकर मेरे मन को भटका रही हो।
“आप बहुत सुंदर हो गई हो माँ,” मैंने झेंपते हुए कहा, मेरी नजर उसकी चूचियों की दरार पर अटक गई थी।
“हट पागल... माँ से मस्ती करेगा अब?” माँ ने हल्का सा हँसते हुए कहा, रेशमा की मुस्कान में एक शरारत थी, जैसे वो मेरे मन की हलचल को भांप चुकी थी।
"घर चल वही तेरे लिए कोई अच्छी सी लड़की देख के शादी कराती हूँ तेरी "
माँ की बाते सुन मै झेम्प गया,
अभी ट्रेन को चले दो घंटे ही हुए थे कि अचानक चरररर... ची... की आवाज के साथ ट्रेन धीमी होने लगी। पाँच मिनट में ही ट्रेन एक छोटे से गाँव के स्टेशन पर रुक गई। स्टेशन ऐसा था कि मानो समय यहाँ थम सा गया हो। कुछ टूटी-फूटी दुकानें, इक्का-दुक्का लोग, और चारों तरफ सन्नाटा। गर्मी इतनी थी कि ट्रेन रुकते ही हालत खराब हो गई।
“ये ट्रेन क्यों रोक दी?” मैंने पसीने से तरबतर होकर, हवा झलते हुए कहा।
माँ ने भी अपने पल्लू से हवा करते हुए गर्मी की शिकायत की। “उफ्फ, ये कितनी गर्मी है!” माँ भी पल्लू से खुद को हवा करने लगी, उसकी चिकनी कमर, गहरी नाभि, और पसीने से चमकती चूचियां साफ दिखने लगीं। पसीने की बूंदें कमर से लुढ़ककर नाभि में ठहर गईं, जैसे कोई मोती माँ की नाभि मे चमक रहा हो,
मैं ट्रेन से बाहर निकला। “अरे भाईसाब, क्या हो गया? ट्रेन क्यों रुक गई?” मैंने सामने से गुजरते कांस्टेबल से पूछा।
“टाइम लगेगा, आगे लाइन पर एक्सीडेंट हुआ है,” वो इतना कहकर आगे बढ़ गया।
माँ भी गर्मी से तंग आकर बाहर आ चुकी थी। जैसे ही वो ट्रेन से उतरी, साला, स्टेशन पर मौजूद हर मर्द की नजरें उस पर टिक गईं।
रेशमा की सिल्क साड़ी उसके जिस्म से चिपकी हुई थी, पसीने से भीगी उसकी कमर चमक रही थी। उसकी गांड का उभार, साड़ी में कसकर, ऐसा लग रहा था जैसे कोई रसभरा तरबूज हो, ब्लाउज में कैद उसकी चूचियां, मानो बाहर निकलने को तड़प रही थीं, और उसकी गहरी क्लीवेज हर मर्द के लंड को सलामी दे रही थी।
माँ ने असहज महसूस किया। “अमित, वहाँ सामने चेयर पर बैठते हैं,” उसने हल्के से सकपकाते हुए कहा, परन्तु चेहरे पे एक मादक मुस्कान थी, जैसे उसे पता हो कि वो हर मर्द की नजरों का केंद्र है।
एक औरत अपने जिस्म पर पडती भूखी नजरों के अच्छे से महसूस कर सकती है, भगवान ने ये तोहफा जन्मजात दिया है औरतों को.
हम S2 के सामने रखी चेयर पर जा बैठे। पास ही जमीन पर एक दरी बिछाए एक बूढ़ा भिखारी पड़ा था। मैला, गंदा, कुचला हुआ, जैसे सालों से नहाया न हो।
साला बूढ़ा भिखारी माँ को घूरे जा रहा था, आँखें रेशमा की गोरी कमर पर टिकी थीं, जैसे वो उसे नजरों से नोच रहा हो। उसकी धोती के नीचे हलचल साफ दिख रही थी, साला, हरामी का लंड खड़ा हो चुका था।
मक्खियाँ उसके बदन पर भिनभिना रही थीं, लेकिन वो बस रेशमा को घूरे जा रहा था, जैसे उसकी गांड और चूचियां उसकी जिंदगी का आखिरी सपना हों।
मेरे मन में हलचल होने लगी। वो पुरानी यादें, जब मैं माँ को छुप-छुपकर चुदते देखता था, फिर से दिमाग में घूमने लगीं। उस बूढ़े बैंड वाले की घटना, जिसकी माँ ने अपनी हवस में हालत ख़राब कर दी थी, लगभग उसे मौत की कगार पर पहुंचा दिया था। लेकिन ये... ये गंदा भिखारी? छी... माँ इसके साथ? नहीं, कतई नहीं! मैंने अपने दिमाग को झटका दिया, सारे खयाल बाहर निकाल फेंके।
एक अनजानी कल्पना ने मेरे लंड मे तनाव की लहर फैला दि.
माँ ने भी उस भिखारी को एक नजर देखा, हिकारत भरी नजरों से। “पानी ले आ अमित, कितनी गर्मी है यहाँ,”
मैं पानी लेने काउंटर की तरफ बढ़ा, लेकिन मेरी नजरें माँ पर ही टिकी थीं। शायद मैं चाहकर भी उस पर भरोसा नहीं कर पा रहा था। औरत के गिरने की लिमिट माँ ने ही मुझे दिखाई थी। मैं दुकान के पास थोड़ा साइड में खड़ा होकर माँ की ओर देखने लगा, इसी मे तो मजा आता था मुझे.
मेरे हटते ही वो बूढ़ा भिखारी अपनी धोती के आगे वाले हिस्से को मसलने लगा। उसकी जीभ किसी आवारा कुत्ते की तरह बाहर निकल आई, जैसे वो माँ की चूत चाटने की कल्पना कर रहा हो। कहाँ ये हरामी गन्दा , बदबूदार भिखारी, और कहाँ मेरी माँ कामदेवी की मूरत। लेकिन साला, माँ का जिस्म था ही ऐसा कि अच्छे-अच्छे मर्दों का लंड तन जाये, ये तो फिर भी एक खुला आवारा भिखारी था।
माँ ने फिर से उस भिखारी को देखा, इस बार गौर से। उसकी हरकतों को परखा। चेहरे पर वो हिकारत नहीं थी अब, बल्कि एक हल्की सी मुस्कान थी, जैसे उसे अपनी खूबसूरती पर गर्व हो रहा हो।
जवान क्या बूढ़े भी उसे देख लंड हिला रहा है
ना जाने क्यों माँ थोड़ी सी आगे झुकी, झुकते ही उसका पल्लू सरक गया, मादक स्तन ब्लाउज के ऊपर से बहार झाँकने लगे,
बूढ़े भिखारी का तो दिमाग़ ही हिल गया इस नज़ारे को देख कर, उसके हाथ अपनी धोती मे तेज़ी से चलने लगे.
माँ मुस्कुरा का उठ खड़ी हुई, और वही पास टहलने लगी,
भिखारी के पास से आगे जाती फिर चेयर तक लौट आती, रेशमा अपनी गांड को और ज्यादा मटका रही थी, जैसे उस बेचारे बूढ़े पर कहर ढा रही हो,
माँ को मजा आ रहा था बेचारे बूढ़े को तरसाने मे.
शाम ढल चुकी थी, 6:30 बज गए थे। हवाओं में ठंडक दस्तक दे रही थी, माहौल एकदम मस्त हो गया था।
भिखारी की नजरें माँ की गांड पर ही टिकी हुई थीं, वो अपनी धोती में उभार को सहलाए जा रहा था। उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं, जैसे वो माँ की चूत को नजरों से ही चोद रहा हो।
माँ को पता था कि वो उसे घूर रहा है। उसकी चाल में वो थिरकन थी, जो मर्दों की आँखें फाड़ दे। साला, रेशमा मर्दों को उकसाने का तरीका बखूबी सीख चुकी थी। भिखारी का लंड अब चादर के नीचे साफ ऊपर-नीचे हो रहा था। बच्चा भी समझ जाए कि वो हरामी क्या कर रहा था।
मेरे जिस्म में उत्तेजना की लहर दौड़ गई। मेरा लंड तनने लगा। मैं सोच रहा था कि माँ के साथ ये सब अब खत्म हो जाएगा, लेकिन यहाँ तो नया खेल शुरू हो गया। एक 75 साल का गंदा भिखारी मेरी माँ को देखकर लंड हिला रहा था।
माँ बार-बार मेरी तरफ देखती, फिर भिखारी की तरफ। मै नजरें चुरा लेटा जैसे मुझे कुछ पता ही ना हो, उसकी सांसें तेज हो रही थीं। ना जाने क्यों, वो धीरे-धीरे भिखारी के करीब जाने लगी, जैसे कन्फर्म करना चाह रही हो कि वो क्या कर रहा है। अंधेरा भी गहराने लगा था।
माँ के करीब आते ही भिखारी के हाथ की स्पीड और तेज हो गई। साला, उसकी धोती में तंबू बन चुका था। माँ थोड़ा और पास पहुंची, और जैसे ही उसने साफ देखा कि वो हरामी उसकी गांड को देखकर लंड हिला रहा है,
उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया। “वेकम... छी...” माँ के मुँह से निकला, उसका चेहरा घिन से भर गया, लेकिन उसकी सांसें तेज हो गईं, चूत में एक अजीब सी गुदगुदी शुरू हो गई.
मुझे एक पल के लिए खुशी हुई। जैसा मैं सोच रहा था, वैसा नहीं था। माँ किसी गंदे भिखारी को... नहीं, छी! मैंने ये सोचा भी कैसे?
मैंने पानी की बोतल खरीदी और माँ की तरफ बढ़ा। लेकिन माँ अभी भी भिखारी के पास खड़ी थी, जैसे उसकी हरकतों को बारीकी से देख रही हो। गंदा चादर, मैले कपड़े, बदबू, और मक्खियाँ... उफ्फ, माँ को देखकर ऐसा लगा जैसे उसे उल्टी ही हो जाएगी।
लेकिन अगले ही पल मेरे कदम थम गए। रेशमा के चेहरे पर एक्सप्रेशन बदलने लगे। उसने शर्म से चेहरा साइड किया, लेकिन उसकी आँखों में एक चमक थी। “क्या मैं वाकई इतनी सुंदर हूँ?” माँ ने सोचा,
“बेचारा बूढ़ा... कितना जिएगा, कर ले इच्छा पूरी।” उसने एक चोर नजर भिखारी की तरफ डाली, और उसकी होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान तैर गई।
माँ वापस वही चेयर पर बैठ गई, ठीक भिखारी के सामने। उसने अपनी गांड को हल्के से झटका देकर चेयर के बाहर की तरफ निकाल दिया। साड़ी में कसी उसकी सुडोल गांड और नंगी पीठ अब भिखारी के ठीक सामने थी।
उफ्फ, साला, वो हरामी उसकी चिकनी कमर मोटी सुडोल गांड को साफ देख पा रहा था।
माँ ने जानबूझकर अपनी साड़ी को कमर के ऊपर सरका दिया। उसकी गोरी, पसीने से चमकती नाभि अब पूरी तरह उजागर थी। उसकी चिकनी कमर, गहरी नाभि, और वो मादक उभार – भिखारी की आँखें फट गईं। वो अपनी धोती में लंड को और जोर से मसलने लगा,
रेशमा उसे छेड़ रही थी, उकसा रही थी। उसकी आँखों में वही चमक थी, जो मैंने पटनायक और अपने दोस्तों के साथ देखी थी। वो जानती थी कि ये बूढ़ा कुछ कर नहीं सकता, और शायद यही उसे मजा दे रहा था। औरतों को ऐसे मर्दों को छेड़ने में क्या सुख मिलता है, ये तो कोई औरत ही जाने।
मैं दूर खड़ा ये सब देख रहा था। मेरा लंड अब पैंट में तन चुका था। माँ ने अचानक पलटकर भिखारी की आँखों में देखा। दोनों की नजरें टकराईं, जैसे हवस का तूफान एक-दूसरे को भांप रहा हो। माँ ने अपनी जांघें आपस में दबा लीं, लगता था मेरी माँ की चूत रिसने लगी है,
तभी... क्यू... कउउउउउउउउउउ... ट्रेन ने सीटी बजा दी।
“माँ, ट्रेन चलने वाली है, चलो जल्दी!” मैं भागता हुआ माँ के पास पहुंचा।
माँ आगे-आगे चली, मैं पीछे। मैंने पलटकर भिखारी को देखा। साले का चेहरा उतर गया था, लंड हिलना रुक गया था। मैं लगभग हँस पड़ा। साला, लोग क्या-क्या सोचते हैं! इतनी सुंदर औरत की कल्पना भी कैसे कर लेते हैं? खैर, दो पल की खुशी तो उस बूढ़े को मिली।
माँ और मैं ट्रेन में चढ़ गए। माँ ने अपनी सीट पर बैठते हुए खिड़की से बाहर देखा, शायद उस भिखारी के रुआंसे चेहरे को ही देख रही थी। उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जैसे वो अभी भी उस भिखारी की हवस को अपने जिस्म पर महसूस कर रही हो। “क्या मैंने इसे ज्यादा ही उकसा दिया?” रेशमा ने मन में सोचा, और उसकी जांघें फिर से रगड़ने लगीं।
साला, ये बूढ़ा भिखारी... प्लेटफॉर्म पर बैठकर हर रोज मस्त-मस्त माल को घूरता होगा। लेकिन मेरी माँ रेशमा में कुछ अलग ही बात थी। ना जाने कितने सालों बाद उसका लंड माँ की वजह से खड़ा हुआ होगा। ऐसे लोग मैंने कई बार देखे थे – कोई पॉकेटमार, कोई भिखारी। ना जाने ये बूढ़ा कितने सालों से यहाँ भीख मांग रहा होगा, कितने कड़क माल देखे होंगे। कभी मौका मिलता होगा, तो कभी पिटाई भी होती होगी। “शायद ये बूढ़ा पहले भी किसी औरत की चूत की खुशबू सूंघ चुका हो,” मैंने मन में सोचा, और मेरा लंड फिर से तन गया।
मैं उस भिखारी को देखते हुए सोच रहा था। ट्रेन धीरे-धीरे चलने लगी। अचानक मैंने देखा, वो बूढ़ा अपना सामान समेटने लगा। हमारा डब्बा आगे निकल गया था। मैंने खिड़की पर सर टिका दिया। जैसे-तैसे सामान समेटकर वो बूढ़ा चलती ट्रेन की तरफ बढ़ने लगा, जैसे उसका कीमती खजाना ट्रेन में छूट रहा हो।
मेरा दिमाग साय-साय करने लगा। साला, वो चढ़ पाया या नहीं? वो ट्रेन क्यों पकड़ रहा था? कहीं... कहीं... नहीं, ये मैं क्या सोच रहा हूँ? स्टेशन पर तो ये आम बात है। ऐसा भी कहीं होता है? इतना पागल कोई नहीं हो सकता।
मैंने माँ की तरफ देखा। वो खिड़की के बाहर देख रही थी, लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सी बेचैनी थी, जैसे वो उस भिखारी की हवसी नजरों को अभी भी अपने जिस्म पर महसूस कर रही हो।
अंधेरा घिर आया था। माँ नीचे की सीट पर बैठी, बाहर धूमिल होते नजारों को देख रही थी। मैं टॉयलेट के लिए उठा, गैलरी में बढ़ा ही था कि मेरे कदम थम गए। दिल धाड़-धाड़ करने लगा।
साला, वो बूढ़ा भिखारी S2 के डब्बे के दरवाजे पर, टॉयलेट के पास बैठा था। वही गंदी चादर, मैली पोटली लिए। मेरा दिमाग साय-साय कर रहा था। कुछ गड़बड़ थी। पुरानी यादें फिर से दिमाग में दौड़ने लगीं। मैं टॉयलेट में घुसा, सिगरेट जलाई, और सोचने लगा। मेरा लंड तन रहा था, जिस्म में गुदगुदी हो रही थी। “साला, ये हरामी यहाँ क्या कर रहा है? माँ की चूत की खुशबू इसे यहाँ खींच लाई?” मैंने मन में सोचा, और मेरा लंड पैंट में फटने को हो गया।
वापस आकर मैं माँ के साइड सीट पर बैठ गया। सामने एक बुजुर्ग औरत आ बैठी थी। बाकी डब्बा खाली था। साइड लोअर और अपर पर एक फैमिली थी, छोटे बच्चे सो रहे थे।
“अब मौसम ठीक है ना माँ, ठंडी हवा चल रही है,” मैंने कहा।
“अ... हाँ... अच्छा लग रहा है अब,” माँ सकपकाती बोली, जैसे कुछ और सोच रही हो। उसकी सांसें तेज थीं, जैसे वो किसी तूफान का इंतजार कर रही हो।
“हाँ बेटा, अब ठंडी और बढ़ेगी। जैसे-जैसे रात होगी, कम्बल निकाल लेना,” माँ ने कहा, लेकिन उसकी आँखें कहीं और थीं। उसकी उंगलियां साड़ी के पल्लू को मसल रही थीं, जैसे उसकी चूत में कोई हलचल मच रही हो।
पूरी तरह अंधेरा छा गया था। ट्रेन की आवाज कानों में गूंज रही थी। गुलाबी ठंड हवा में तैर रही थी। मैं बार-बार उस भिखारी को देख रहा था, जो गेट के पास बैठा था।
अचानक वो उठा और हर डब्बे में झांकता आगे बढ़ने लगा। वो भीख नहीं मांग रहा था, बस डब्बों में देखकर आगे बढ़ रहा था। जैसे ही वो हमारी गैलरी की तरफ आया, माँ की नजर उस पर पड़ी। “हे भगवान...” माँ की आँखें चौड़ी हो गईं, सांसें तेज हो गईं, माथे पर पसीने की लकीर चमकने लगी।
“ये... ये बूढ़ा तो स्टेशन पर था, ट्रेन में क्या कर रहा है?” माँ के मुँह से अनायास निकल गया, लेकिन उसकी आवाज में डर कम, उत्तेजना ज्यादा थी।
“भिखारियों का काम ही यही है माँ,” मैंने हल्के से कहा, लेकिन मेरा दिल धक-धक कर रहा था। जो मै सोच रहा हूँ कहीं वो सच ना हो.
वो भिखारी हमारे पास आकर रुक गया। उसने माँ को देख लिया था। एक राहत की सांस छोड़ी, जैसे माँ को ही ढूंढ रहा हो। मेरा शक सही था। वो भीख मांगने नहीं, माँ की हवस में खिंचा चला आया था।
हमारी सीट 4 और 6 थी, दरवाजे के पास। वो भिखारी एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे पर आकर बैठ गया, ठीक हमारे सामने। माँ और उसकी नजरें टकराईं। भिखारी की आँखों में हवस थी, प्यास थी। माँ सिहर उठी, लेकिन उसकी आँखों में भी एक अजीब सी आग थी।
शायद माँ ने उसे उकसाकर गलत कर दिया था। उसे उम्मीद नहीं थी कि वो पीछे आ जाएगा। भिखारी माँ को घूरे जा रहा था, उसका हाथ फिर से धोती में लंड टटोलने लगा। रेशमा की सांसें तेज हो गईं। उसकी चूचियों की दरार ब्लाउज से झांक रही थी, और भिखारी की नजरें उसी पर टिकी थीं। उसकी चूचियां हर सांस के साथ ऊपर-नीचे हो रही थीं, जैसे भिखारी को और ललचा रही हों।
माँ ने उसे इग्नोर करने की कोशिश की, लेकिन चोर नजरों से उसे देख लेती थी। हमने खाने का टिफिन खोला।
“रुक अमित, वो बेचारा कब से देख रहा है, शायद भूखा होगा,” माँ ने कहा। उसने दो रोटी लीं, सब्जी रखी, और भिखारी के सामने झुक गई। नतीजा – उसकी चूचियां ब्लाउज से बाहर झांकने लगीं, गहरी दरार भिखारी के सामने नंगी हो गई। उसकी चूचियां इतनी भारी थीं कि ब्लाउज के बटन टूटने को थे।
“खा ले, बूढ़े, ये रोटी भी और मेरे जिस्म को भी,” शायद माँ यही सोच रही होंगी,
साला हरामी रोटी नहीं, माँ की चूत का भूखा था। उसने एक हाथ से रोटी पकड़ी, दूसरे से अपने लंड को सहलाया। माँ ये सब जानबूझकर कर रही थी, उसे बूढ़े को उकसाने में मजा आ रहा था।
पीछे से मैं माँ की मटकती गांड को देख रहा था। उसकी साड़ी में कसी गांड इतनी मादक थी कि मेरा लंड फटने को हो रहा था।
तुरंत ही माँ ने पल्लू ठीक किया और वापस आ गई। हमने खाना खाया। गपशप में 11 बज गए।
“सोते हैं माँ,” मैंने कहा और एक चादर माँ को दी, एक खुद लिया। मैं सीट नंबर 3 पर लेट गया, हालाँकि मेरी सीट 6 थी, लेकिन 3 खाली थी।
माँ सीट नंबर 4 पर लेटी थी। मैं उसे ऊपर से साफ देख सकता था। सामने की बुजुर्ग औरत खर्राटे मार रही थी। ज्यादातर लाइट्स ऑफ थीं, सिर्फ टॉयलेट के पास एक नीली लाइट जल रही थी।
माँ चुपचाप लेटी थी। मैं ऊपर से उसे और भिखारी को देख रहा था। बूढ़ा ठंड में चादर लिए कोने में बैठा था, लेकिन उसकी नजरें माँ के जिस्म पर टिकी थीं। रेशमा भी बार-बार उसे देख रही थी, बूढ़े की हवसी नजरें उसके जिस्म पर चुभ रही हों।
तभी माँ करवट लेकर पेट के बल लेट गई। उसकी सुडोल गांड थरथराती हुई स्थिर हो गई। साड़ी में कसी उसकी गांड का उभार ऐसा था कि भिखारी का मुँह लार से भर गया। वो जोर-जोर से अपना लंड मसलने लगा।
माँ ने मुस्कुरा दिया, जैसे उस बेचारे पर तरस खा रही हो। “ना जाने इस बूढ़े में जान भी है या नहीं,” माँ ने सोचा,
“उस बूढ़े बैंड वाले की तरह मरने की हालत में तो नहीं जाएगा?” माँ ने बैंड वाले की घटना याद कर हल्का सा हँसा। उसकी चूत में चींटियाँ रेंगने लगीं।
रेशमा ने थोड़ी सी जाँघे खोल वापस सिकोड़ लिया, जैसे अपनी चूत का जायजा ले रही हो। उसकी चूत तो पहले से ही गीली थी।
रेशमा ने उस बूढ़े की दयनीय हालत पर तरस खा आँखें बंद कर ली। वो समझ गई थी कि ये भी उसी बैंड वाले की तरह है, बस देखके लंड ही हिला सकते है, कुछ करने लायक ना जान है ना हिम्मत।
रेशमा वैसे ही पेट के बल लेटी रही और आँखें बंद कर ली।
कोई 10 मिनट ही बीते थे कि वो भिखारी इधर-उधर देख धीरे-धीरे सरकता रेशमा के पैरों के पास आ पहुंचा। बोगी में सन्नाटा था, सब ठंडी में चादर लिए सो रहे थे।
मैं ऊपर लेटा उस बूढ़े की हरकत को देख रहा था। उत्तेजना से मेरा लंड खड़ा हो चुका था। मैं माँ को उस गंदे, मैले-कुचले भिखारी के साथ कल्पना करके उत्तेजित हुआ जा रहा था।
रेशमा इस तरह लेटी थी कि उसकी गोरी कमर, चिकनी पीठ, गांड का मादक उभार, और गोरा पेट साफ दिख रहा था। उसके स्तन साइड से झाँक रहे थे, जैसे ब्लाउज से बाहर आने को बेताब हों।
उसकी चूत की मादक खुशबू हवा में तैर रही थी,
वो बूढ़ा अब बिल्कुल नजदीक आ गया था। गजब हिम्मत थी साले में। उसकी बदबूदार, गंदी, लेकिन गर्म सांसें रेशमा के खूबसूरत पैरों पर गिर रही थीं। रेशमा अभी पूरी तरह सोई नहीं थी, शायद उसे महसूस हुआ होगा। उसने अपने पैरों को थोड़ा सा ऊपर की तरफ सरका लिया। उसकी चिकनी एड़ियाँ नीली लाइट में चमक रही थीं,
बूढ़े का लंड लुंगी में पूरी तरह से खड़ा हो चुका था। उस भिखारी की हिम्मत की दाद देनी होगी। शायद उसे ऐसी हरकतों का अनुभव जरूर होगा। कभी पिटता होगा, तो कभी काम भी बना होगा उसका। “ये बूढ़ा जरूर पहले भी किसी औरत की चूत की खुशबू सूंघ चुका होगा,”
मैं उस पर बराबर नजर जमाए हुए था।
तभी उस बूढ़े ने हिम्मत का जबरदस्त परिचय देते हुए रेशमा के पैरों को अपने गंदे, खुरदरे हाथों से टच कर लिया।
“इस्स्स्स...” मेरी माँ के मुँह से हल्की सी सिसकारी फूट पड़ी, जैसे ये गंदा, खुरदरा स्पर्श उसे एक अलग अहसास करा रहा था। उसकी सांसें तेज हो गईं, और उसकी जांघें आपस में रगड़ने लगीं, इस छुवन ने रेशमा की चुत मे चिंगारी लगा दि थी,
रेशमा की तरफ से कोई जवाब ना पाकर बूढ़े की हिम्मत बढ़ गई। उसकी उंगलियां माँ की एड़ियों से होती पिंडलियों तक जा पहुंची। गंदे, काले हाथ रेशमा के खूबसूरत, गोरे, चिकने पैरों पर रेंग रहे थे। उसकी खुरदरी उंगलियां धीरे-धीरे माँ की चिकनी त्वचा को सहला रही थीं, जैसे वो हर इंच को नाप रहा हो।
बूढ़े ने एक बार पास आकर माँ की खुशबू ली, और अपने हाथ को घुटनों के पास तक ले गया। उसकी उंगलियां माँ की चिकनी जांघों के किनारे पर रेंगने लगीं, धीरे-धीरे, जैसे वो हर पल का मजा ले रहा हो। “उफ्फ्फ...” मेरा लंड इन हरकतों से फटने को हो रहा था। मैं जानता था माँ सोई नहीं है। उसके चेहरे के भाव बदल रहे थे, लेकिन वो अनजान बनी सब महसूस कर रही थी। उसकी सांसें तेज हो रही थीं,
बूढ़े ने अपनी हरकतों को अंजाम देते हुए रेशमा की साड़ी को उसकी जांघों तक पहुंचा दिया। उसने साड़ी को धीरे-धीरे ऊपर सरकाया, जैसे किसी अनमोल खजाने को खोल रहा हो। रेशमा की गोरी, चिकनी जांघें चमक उठीं, नीली लाइट में उनकी चमक ऐसी थी कि मानो कोई चाँद की किरण जमीन पर उतर आई हो। बूढ़ा किसी कुत्ते की तरह लार टपकाता उस हसीन नजारे को देखे जा रहा था, अपनी उंगलियों को माँ की जांघों पर धीरे-धीरे फेरते हुए।
“इस्स्स...” रेशमा की सांसें तेज होने लगीं, लेकिन उसने अभी भी आँखें नहीं खोली थीं। रेशमा उत्तेजित हो रही थी। उसकी चूत पहले से ही गीली थी, और उसकी जांघें आपस में रगड़ने लगीं,
हालांकि एक बदबूदार स्मेल भी डब्बे में फ़ैल गई थी, लेकिन माँ की चूत की मादक खुशबू उस गंध को दबा रही थी। उसकी चूत की खुशबू ऐसी थी,
तभी बूढ़े ने रेशमा की मादक, मांसल जांघों को अपनी गंदी हथेली में भींच लिया। उसने अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे माँ की जांघों पर दबाया, जैसे वो उनकी मुलायमियत को अपनी हथेलियों में समेटना चाहता हो। “आअह्ह्ह... इस्स्स...” माँ के मुँह से सिसकारी फूट पड़ी। उसकी सांसें अब इतनी तेज थीं कि उसकी चूचियां ब्लाउज में उछलने लगी थीं।
बूढ़ा भी जानता था, रेशमा सोई नहीं है, लेकिन फिर भी उसके मन में कुछ डर तो था। पर आज उसे ये दांव खेलना ही था।
बूढ़ा धीरे से अपनी काली, कड़क उंगली पूरी जांघ पर घुमा देता है। उसने अपनी उंगलियों को माँ की जांघों के अंदरूनी हिस्से पर फेरा, धीरे-धीरे, जैसे वो हर पल का मजा ले रहा हो। “ईईस्स्स... आअह्ह्ह...” रेशमा की सांसें अब बेकाबू हो रही थीं। उसकी चूत में आग लग चुकी थी, और उसकी जांघें आपस में रगड़ने लगीं, अपनी उत्तेजना को दबा रही थी,
बूढ़ा रेशमा की नंगी जांघों को सहलाए जा रहा था, अप्सरा जैसी मेरी माँ रेशमा के कामुक अंगों के मजे ले रहा था। मेरी माँ वाकई कामदेवी ही थी, उस आदमी को भी सुख दे रही थी जिसने अपने पूरे जीवनकाल में ऐसा सपना भी नहीं देखा होगा। उसकी उंगलियां माँ की जांघों पर धीरे-धीरे रेंग रही थीं, जैसे वो हर इंच को चख रहा हो।
बूढ़े की छुअन में जैसे जादू था। रेशमा सिसक रही थी, उसका जिस्म कंपने लगा था। चूत से बहता रस जांघें भिगोने लगा था। उसकी चूत का रस इतना गाढ़ा था मानो शहद हो.
रेशमा अब और ना रुक सकी, उसने आँखें खोल एक बार उस भिखारी को देखा, और नीचे हाथ बढ़ाकर अपनी साड़ी को और ऊपर की ओर खींच लिया। उसने साड़ी को धीरे-धीरे अपनी कमर तक सरकाया, जैसे वो भिखारी को अपनी चूत का पूरा नजारा देना चाहती हो।
उस बूढ़े को जैसे अपनी किस्मत पर यकीन ही नहीं हुआ।
रेशमा की गोरी, सुडोल, मांसल गांड उस गंदे भिखारी के सामने उजागर थी। बूढ़े की तो जैसे सांसें ही रुक गईं। वो थोड़ा और आगे सरक आया। माँ ने अंदर चड्डी नहीं पहनी हुई थी।
ये ताज्जुब नहीं था, बल्कि मैं हैरान था कि मेरी माँ रेशमा एक सड़क के मैले-कुचले भिखारी से भी उत्तेजित हो गई थी, उसे अपना अनमोल जिस्म दिखा रही थी।
आज भिखारी की किस्मत चमक चुकी थी। “इस्स्स...” माँ के मुँह से सिसकारी फूट रही थी। रेशमा ने अपनी जांघों को थोड़ा फैला दिया, धीरे-धीरे, जैसे वो भिखारी को अपनी चूत की गहराई दिखाना चाहती हो।
माँ की चूत की लकीर साफ दिखने लगी थी, गीली और चमकती हुई, जैसे कोई गुलाबी फूल पानी से भीग गया हो।
ऐसा मौका कौन गंवाता। बूढ़े ने बिना देर किए उस कामुक, मादक लकीर में अपनी गंदी उंगली घुसेड़ दी।
उसने अपनी उंगली को धीरे-धीरे माँ की चूत की लकीर पर फेरा, जैसे वो उस लकीर की लम्बाई को नाप रहा हो।
“इस्स्स... आअह्ह्ह... साले...” रेशमा सिसक उठी। उसकी चूत में इतनी गर्मी थी कि बूढ़े की उंगली जैसे जल गई हो।
“आह, बीबी जी.... बूढ़ा भी सिसक उठा.
रेशमा की गीली चूत में एक अजीब सी सुरसुरी दौड़ गई। बाहर से आती ठंडी हवा ने बाहरी ठंडक तो दी, लेकिन अंदर की गर्मी का क्या, वो तो ज्वालामुखी का रूप ले चुकी थी।
बूढ़े की उंगली माँ की चूत की लकीर पर धीरे-धीरे फिसल रही थी। “पच... पच...” की आवाज हवा में तैरने लगी, और माँ की चूत का रस उसकी जांघों पर रिसने लगा.
बूढ़े की दो उंगलियां जांघों की गहराई में रेशमा की चूत को घिस रही थीं, रगड़ रही थीं। उसने अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे माँ की चूत की लकीर पर फेरा, जैसे वो उसकी गहराई को चख रहा हो।
पानी की आवाज... “पच... पच...” मेरे कानों तक भी पहुंची। एक मादक, कसैली गंध हवा में तैरने लगी। उस भिखारी की बदबू इस खुशबू में कम हो गई थी।
बूढ़े भिखारी की आज निकल पड़ी थी। रेशमा की चूत इतनी गीली थी कि बूढ़े की सूखी, फटी उंगलियां बिना रोक-टोक चूत की लकीर पर फिसल रही थीं। उसने अपनी उंगलियों को माँ की चूत के होंठों पर धीरे-धीरे फेरा।
“आअह्ह्ह... इस्स्स...” माँ ने अपनी जांघों को और ज्यादा खोल दिया, रेशमा भिखारी को अपनी चूत की पूरी गहराई दिखा देना चाहती थी,
बूढ़े की उंगलियां रेशमा के भगनासे तक पहुंच गई थीं, जो अतिउत्तेजना में बाहर को आकर किसी कील की तरह तनी हुई थी। उसने अपनी दोनों उंगलियों के बीच भगनासे को दबोचकर मसल दिया।
“आआआहहहह... आउचम... उउउफ्फ्फ...” रेशमा एक पल को उछल पड़ी। उसकी नजरें लगातार भिखारी को देखे जा रही थीं। वो भूखा कुत्ता लग रहा था एकदम।
रेशमा अभी उन्माद में ही थी कि बूढ़ा “पच... पाचकककक...” से उसकी चूत में अपनी एक उंगली घुसा देता है। उसने अपनी उंगली को धीरे-धीरे माँ की चूत में डाला, जैसे वो उसकी गहराई को नाप रहा हो। चूत गीली थी, खुली हुई थी, क्या दिक्कत होती।
“आअह्ह्ह...” उंगली ऐसे महसूस हुई जैसे चूत से सीधा कलेजे पर लगी हो। माँ की सांसें अब बेकाबू हो रही थीं, और उसकी चूचियां ब्लाउज में उछलने लगी थीं।
“आह्ह्ह... पच... पच...” बूढ़ा बिना देर किए दूसरी उंगली भी रेशमा की चूत में पेल देता है।
उसने अपनी दूसरी उंगली को धीरे-धीरे माँ की चूत में डाला, “उउउफ्फ्फ... आउच...” रेशमा थोड़ी मचली, अपनी गांड को उठाकर वापस नीचे पटक दिया। उसकी गांड हवा में उछल रही थी, बूढ़े की उंगलियों को और अंदर खींच लेना चाहती थी,
रेशमा उत्तेजना में चीखना चाहती थी, लेकिन पास पड़ी चादर को अपने मुँह में दबा लिया। ऐसा अनुभव उसने कभी महसूस नहीं किया था। ये गंदा आदमी, ये गंदापन उसे एक अलग ही आनंद दे रहा था।
“पच... ओच... पचक...” बूढ़ा रेशमा की चूत में उंगलियां आगे-पीछे किए जा रहा था। उसने अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे माँ की चूत में अंदर-बाहर किया, जैसे वो उसकी गहराई को नाप रहा हो। मादक खुशबू बूढ़े की नाक तक जा रही थी। साला, माँ की गांड पर ही नाक जमाए बैठा था। उसकी उंगलियां और गहराई में जाने लगीं।
ऊपर से ये नजारे देख मेरा लंड फटने को हो रहा था, मेरे जिस्म में एक अजीब सी गुदगुदी होने लगी। अभी तक जो भी देखा था ये उस से कहीं ज्यादा गन्दा भद्दा था, लेकिन मै पागल हुए जा रहा था माँ को एक गंदे मैले भिखारी से उत्तेजित होता देख.
रेशमा की चूत की खुशबू बूढ़े भिखारी को पागल कर रही थी। बूढ़ा उस खुशबू से और भी ज्यादा उत्तेजित होकर जोर-जोर से रेशमा की चूत में अपनी उंगली जड़ तक घुसा दे रहा था।
उसने अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे माँ की चूत में अंदर-बाहर किया। “आअह्ह्ह... गु... गु... इस्स्स... आउच... ओछ...” रेशमा मुँह में चादर दबाए सिसकी जा रही थी। उसकी सांसें अब बेकाबू हो रही थीं, चूचियां ब्लाउज में उछलने लगी थीं।
ट्रेन की स्पीड के साथ-साथ बूढ़े की उंगलियों की रफ्तार भी बढ़ती जा रही थी। अजीब सी स्मेल डब्बे में फैल गई थी। भिखारी के हाथों की गंदगी, मेल, रेशमा के चूत से निकले अमृत से धुलती जा रही थी।
“आअह्ह्हम... आअह्ह्ह... उउफ्फ्फ... साले हरामी... आउच... उउउफ्फ्फ...” रेशमा की सिसकारी बढ़ती जा रही थी। उसकी आवाज में उत्तेजना और तेजी झलक रही थी, लेकिन सब ट्रेन की आवाज में दब गया था।
बूढ़ा ट्रेन की तरह अपना जोर पकड़ चुका था। “आह्हहह... उउफ्फ्फ... मममम...” उसने अपनी तीसरी उंगली भी रेशमा की चूत में घुसा दी।
उसने अपनी तीसरी उंगली को धीरे-धीरे माँ की चूत में डाला, “पच.. पच.... पचक...आअह्ह्ह... आउच...” माँ चीखी, लेकिन तुरंत ही अपने मुँह को चादर से दबा लिया।
जांघें, गांड, सब पानी से भीगकर “पच... पच... पचक...” कर रही थी। भिखारी पूरा जोर लगाकर चूत में अपनी तीनों उंगलियों को घुसा रहा था।
“आह्ह्ह... हरामी... बूढ़े... आउच... धीरे... आह्ह...” माँ बड़बड़ा रही थी। उसकी गांड उछल रही थी। बूढ़े की उंगलियों के खुरदरेपन से माँ की चूत लाल हो गई थी। “आह्ह्ह... औछ्ह्ह... आह्ह्ह...”
मेरी माँ रेशमा से अब ये उत्तेजना, ये गर्मी झेली नहीं जा रही थी। उसने अपने दोनों स्तनों को जोर-जोर से भींचना शुरू कर दिया।
उसने अपने ब्लाउज के ऊपर से अपनी चूचियों को मसला, जैसे वो अपनी आग को शांत करना चाहती हो। लेकिन नीचे की भट्टी को बूढ़ा भड़काए जा रहा था, कुरेदे जा रहा था।
जितनी तेजी से बूढ़ा चूत सहलाता, उतनी ही तेजी से रेशमा अपने स्तनों को भींचती। ऐसा मजा, ऐसा अनुभव तो उसे ना मेरे दोस्तों से मिला था, ना ही पटनायक से। ये अलग ही अहसास था माँ और मेरे लिए।
गंदगी का एक अलग मजा है, मैं समझ रहा था। मेरा लंड पैंट में फटने को हो गया।
रेशमा के निप्पल ब्लाउज में तन चुके थे, बाहर आने को बेताब थे। उसने अपने ब्लाउज के बटन को हल्का सा ढीला किया, और उसकी चूचियां और साफ दिखने लगीं।
“पच... फक... फक... पच...” बूढ़े की उंगलियां इतनी तेज चल रही थीं कि कहना मुश्किल था कि रेशमा का जिस्म ट्रेन की वजह से हिल रहा है या भिखारी की उंगलियों से।
“आअह्ह्ह... पच... पचक... फाचक...” ना जाने इस बूढ़े में इतनी ताकत, इतना जोर कैसे था। उसकी स्पीड और बेताबी देख लगता था जैसे वो पूरा हाथ ही मेरी माँ की चूत में घुसा देगा। “आह्ह्ह आह्ह्ह आह्ह्ह्ह्ह औछ्ह्ह... आह्ह्ह्ह...”
रेशमा इस कदर पागल हो गई थी कि अपनी कमर, अपनी गांड उठा-उठाकर बूढ़े की उंगलियों को अंदर ले रही थी।
“इस्स्स... अंदर डाल... उउउफ्फ्फ... आअह्ह्ह... और अंदर...” उसकी सांसें अब बेकाबू हो रही थीं, चित रस से पूरी गांड की दरार, जांघो का अंदरूनी हिस्सा चमक रहा था,
माँ को डर भी नहीं था कि कोई देख लेगा। खैर, हवस में डूबा इंसान इतना सोचता ही कहाँ है। सोचता तो शायद कभी जीवन ही नहीं जी पाता।
उफ्फ्फ... बूढ़ा शायद थक चुका था। उसे ठंडी में भी पसीना आ रहा था, लेकिन उसने जो मेहनत की थी, उसका फल मिला उसे।
भिखारी को अपनी उंगलियों पर गरम-गरम सा अहसास होने लगा, जैसे रेशमा की चूत पिघलकर उसकी उंगलियों पर लिपट गई हो।
“आअह्ह्ह... आउच... फच... फाचक...” माँ ने अपनी गांड को उठाकर बूढ़े की उंगलियों पर दे मारा। उसकी चूत के होंठ, भीख मांगने वाली उंगलियों को अपने अंदर कसने लगे। रेशमा की सांसें चढ़ने लगीं।
वो हांफ रही थी... “हमफ़्फ़्फ़... हमफ्फफ्फ्फ़... उउउफ्फ्फ... आअह्ह्ह... मैं गई... आअह्ह्ह...”
रेशमा की चूत से निकला काम अमृत बूढ़े की उंगलियों को भिगो गया। उसकी चूत का रस इतना गाढ़ा था कि बूढ़े की उंगलियां उसमें डूब गई थीं। “आआह... बीबी जी... गरम है...” बूढ़ा पहली बार कुछ फुसफुसाया।
और “चाट... चाट... लप... लप... सुडप...” करके मेरी माँ की चूत का पानी सुड़कने लगा। उसने अपनी उंगलियों को धीरे-धीरे चाटाने लगा, जैसे कोई बेहद मीठा शहद हो।
बूढ़े की उंगलियां जैसे किसी घी से सनी हों, और वो उसे आँखें बंद करके चाटे जा रहा था। उंगलियां तो रेशमा की चूत में ही साफ कर ली थीं हरामी ने। अब तो सिर्फ साफ-सुथरा शहद सा चमक रहा था उसकी उंगली पर, जिसे वो पूरी सिद्दत से चाटे जा रहा था।
माँ की नजरें उस पर ही थीं। उस बूढ़े भिखारी की हरकतों ने रेशमा को शांत करने की जगह और ज्यादा उत्तेजित कर दिया था।
“हमददद... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़... ऊफ्फफ्फ्फ़...” रेशमा की सांसें सामान्य हो रही थीं, लेकिन नजरें बूढ़े भिखारी पर ही टिकी हुई थीं। बाहर से आती ठंडी हवा रेशमा की गांड और चूत में ठंडक पहुंचा रही थी, लेकिन अंदर की आग अभी भी सुलग रही थी।
Contd......
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1 Comments
Ye safar to kuch jyade hi kamuk hone wala hain..Reshma kya kar daalegi ye samjhna mushkil hain.
ReplyDeletechalne do is safar ko