Ad Code

नाई की दुकान

नाई की दुकान (The barber shop)


 मेरा नाम नवीन है, मै राजस्थान की मारवाड़ी फैमली से बिलोंग करता हूँ, और यही एक कस्बे मे हम लोग रहते है, ना पूरी तरह शहर है ना ही गांव, मैं अभी 12th में पढ़ रहा हूँ, 18, 19 की ऐज हो गई है मेरी,
मेरे घर में पापा मम्मी और एक बहन है जिसकी शादी हो चुकी है और गुजरात मे रहती है.
हम मारवाड़ी लोगो मे शादियां जल्दी ही हो जाती है.
माँ की शादी भी 18 की ऐज मे हो गई थी, मेरी बहन मुझ से दो साल बड़ी है.
मेरे पापा किरोड़ीलाल 46 के पड़ाव मे है, आम तौर पर जैसे मारवाड़ी होते है पापा भी वैसे ही दीखते है, छोटी hight, मोटा पेट, दिमाग़ मे हमेशा पैसा कमाने की धुन ही सवार रहती है.
वही मेरी माँ कामिनी की उम्र अभी 40 साल ही है, हर मारवाड़ी की बीवी लम्बी, हट्टी कट्टी खूबसूरत ही होती है मेरी माँ भी ऐसी ही थी काफ़ी खूबसूरत, आज भी चेहरे पे रौनक बरकरार थी.
घर पे आम तौर पर घाघरा चोली ही पहनती थी, चोली से माँ के बड़े स्तन हमेशा बहार झाँकते ही रहते थे, शायद माँ कर स्तन थे ही इतने सुडोल और कसे हुए की ब्लाउज मे समाये नहीं समा पाते होंगे.
माँ का पेट गद्दाराया हुआ, लेकिन कसा हुआ था, सपाट पेट पर गहरी नाभि माँ की खूबसूरती मे चार चाँद लगा देती थी, माँ की गांड अक्सर घाघरर मे मटकती रहती,
मैंने कभी अपनी माँ को बुरी नजर से नहीं देखा.
लेकिन एक घर मे रहते है तो ये आम बात है नजर पड़ ही जाती है.
जब माँ झुक कर पोछा लगाती तो उसके स्तन लगभग बहार ही उमड़ पड़ते,पीछे से माँ की गांड पूरी तरह फ़ैल के चौड़ी हो जाती.

 माँ हमेशा ही सजी धजी ही रहती थी, बड़ा सा मंगलसूत्र उसके स्तनों की घाटी मे झूलता रहता, माँ घर मे चुन्नी नहीं डालती थी, आखिर घर ने रहता हूँ कौन था, पापा तो सुबह के निकलते रात को आते, मै भी आधा दिन कभी इधर तो कभी उधर, और मुझ से क्या शर्माना, मैंने तो इन्ही स्तनों से दूध पिया है, तो मुझ से छुपा के क्या ही फायदा.
माँ पैरो मे मोटी सी चाँदी की पायल, और कमर मे सोने की कमरबंध पहना करती थी, जो की नाभि के नीचे तक लटकती रहती, घाघरा नाभि के काफ़ी नीचे बंघा होता, इतना की शायद हल्का सा सरक जाये तो वो उस कामुक दरार की शुरुआत दिख जाये जहाँ से मै पैदा हुआ था.
मेरे पापा बहुत किस्मत वाले थे जो माँ जैसी संस्कारी, सुन्दर बीवी मिली थी उन्हें.
हालांकि अब मै भी बड़ा हो गया था, 19 साल का इस उम्र मे औरतों के प्रति, उसके जिस्म को देखने की चाहत हो ही जाती है, 
मै भी अपने दोस्तों की मेहरबानी से अब औरतों के जिस्म, उनकी बनावट को पहचानता था.
अक्सर हम लोग स्कूल मे porn मूवी या फिर ऐसे किस्से कहानी सुनते देखते रहते थे.
लेकिन माँ तो माँ ही होती है, उसे गलत नजरों से नहीं देखा जा सकता.
मेरा भी यही हाल था मेरी माँ कितनी ही कामुक हो, कितनी ही खूबसूरत हो मेरे लिए तो माँ ही थी.

पापा की परचून की दुकान है, पास के ही बड़े बाजार मे, जो की काफ़ी अच्छी चलती है, पैसो की कहीं से कोई कमी नहीं है संपन्न परिवार है हमारा,
 हमारा घर बाजार मे ही मैन रोड पर है, आस पास काफी दुकानें हैं, ऐसा कहे की मैन बाजार मे घर दुकान है हम लोगो की.
मकान भी आलीशान है 2 मंजिला, ऊपर के हिस्से मे हम लोग रहते है, और घर के नीचे दो दुकान और एक दो कमरे है, 
एक दुकान में पापा गोदाम की तरह इस्तेमाल करते है, जिसमे अतिरिक्त समान भरा पड़ा है, पापा का मानना है की ग्राहक खाली हाथ नहीं जाना चाहिए दुकान से.

वही दूसरी दुकान एक नाई को दे रखी है किराये से, हमारे गांव के ही अंकल है अनिल सेन, ये दुकान बहुत सालो से वही चला रहे है, 

लेकिन कुछ टाइम से अंकल की तबियत कुछ ठीक नहीं रहती थी, दुकान उनसे नहीं चल पा रही थी, अंकल इस दुकान को बंद करके अपने गाँव चले जाना चाहते थे.
"अरे अनिल दुकान बंद करने से क्या होगा, इसे किसी को चलाने के लिए दे दो, इनकम आती रहनी चाहिए " पापा ने अनिल अंकल को सुझाव दिया.
जो की उन्हें पसंद भी आया, 
एक दो दिन की खोज के बाद एक लड़का मिल गया जो दुकान चलाने को राजी था,  लेकिन 70% हिस्सा चाहता था.
 खेर मज़बूरी थी, अनिल उनके डील के लिए मान गए,
लेकिन एक समस्या थी, लड़का दूसरे धर्म का था, जिसका नाम आलम था, .. 
अगले दिन आलम दुकान देखने आया, मै भी अनिल अंकल के साथ ही था.
आलम कोई 22 साल जवान लड़का, लम्बे बाल, जिसे उसने रेड कलर से हाईलाइट कर रखा था, पैरो मे चिपकी जीन्स जो की कूल्हे पर फिसलती जान पडती थी, शर्ट बिल्कुल बदन से चिपकी हुई, ऊपर के 3बटन खुले हुए, जिसमे से उसकी छतु के बाल बहार झाँक रहे थे, मुँह में गुटखा भरा हुआ, जिसकी लार होंठो के साइड से चु रही थी,
मुझे बड़ा ही अजीब लगा इसे देख कर, साला छापरी लड़का ये होने वाला था इस सेलून का मलिक,
आलम कल से आने का बोल गया, और शाम को एडवांस भी देने का वादा कर गया.
 अंकल दुविधा मे थे की इसे दुकान दे या नहीं, सभ्य लोगो का आना जाना रहता है यहाँ, अंकल ने अपनी झिझक पापा को बताई,
"भाईसाब क्या करे, मै किसी ऐसे को दुकान देना तो नहीं चाहता लेकिन मज़बूरी भी है "
 ". हह्म्म्मम्म... होते तो साले लुच्चे लफंगे ही है, लेकिन फिर दुकान खाली रहेगी, हम दोनों का ही नुकसान होगा " मेरे पापा पक्के मारवाड़ी थे 1रुपया भी गवाना मंजूर नहीं था.
तो तय हुआ दुकान आलम को ही दे दि जाये, कुछ पैसे बड़ा कर भी मिल रहे थे, 
************

अगले दिन से आलम हमारी दुकान पर आ कर जम गया, उसने 1,2 दिन मे ही दुकान का नक्शा बदल कर रख दिया.
कहा पहले निरश पुराने ज़माने की दुकान लगती थी, वही इन दो दिनों मे वो दुकान खूबसूरय चमक रही थी, साफ सुथरी, नये नये पोस्टर, बहार जलती बुझती लाइट.
आलम ने वाकई दुकान जमा दि थी, ऊपर से जब भी वो आस पास पापा को या मुझे देखता सलाम जरूर करता.
शायद जैसा मैंने सोचा था आलम वैसा नहीं था.
इन दो दिनों मे मुझे आलम अच्छा लगा, पापा को भी कोई शिकायत नजर नहीं आई.

लेकिन जब ये बात माँ को पता चली कि अनिल अंकल चले गयें है और कोई आलम नाम का लड़का उनकी दुकान संभाल रहा है, माँ आग बबूला हो उठी.
मेरी माँ इतनी भी मॉर्डन नहीं थी, गांव की रहने वाली थी, सामान्य जीवन था, पूजा पाठ वाली घरेलु संस्कारी औरत थू मेरी माँ.
हालांकि उन्हें इस बात से समस्या नहीं थी कि वो गैर धर्म का लड़का है.
"अरे मांस मच्छी खाने वाले को क्यों दुकान दे दि आपने, अच्छे लोग नहीं होते, मांसाहारी होते है. " 
माँ ने पापा से शिकायत करते हुए कहा.
"किस ज़माने मे जी रही ही तुम कामिनी " पापा ने सोफे पर पसर कहा.
"क्या कैसी बात?" कल को ये लड़का दुकान मे मांस मच्छी खायेगा, दुकान भी तो अपना घर का ही हिस्सा है ना? " माँ ने दलील दि.
मै वही पास बैठा खाना खाते हुए उनकी बहस सुन रहा था.
"किस ज़माने मे जी रही हो तुम, वो लड़का अच्छा ही है, पुरे 500rs extra दे रहा है अनिल से, और हमें क्या मतलब वो क्या खाता है "
"अच्छा जी तो 500rs के किये आप किसी को भी दुकान दे दोगे " इस बार माँ भड़क गई.
"तुम्हे पता भी है 500rs कैसे कमाए जाते है?" पापा इस बार थोड़ा गुस्सा ही उठे.
"तुम्हे क्या करना है, बहार दुकान है, उसे अंदर नहीं आना है जो तुम इतनी बहस कर रही हो "
आखिर घर मे पापा की ही चलती थी, और यदि मुद्दा पैसा का हो तो पापा किसी की सुनते ही नहीं थे.
"जो मर्ज़ी पढ़े करो, मै होती कौन हूँ " माँ पैर पटकती गांड मटकाती किचन मे चल दि.
"क्या यार " पापा मेरी तरफ देख मुस्कुरा दिए.
**************

खैर 3, 4 दिनों मे आलम ने सेलून को अपने रंग मे रंग दिया था, नये ज़माने का सेलून जान पड़ता था अब,
लेकिन साला आशिक़ टाइप का आदमी था, ऊँची आवाज़ मे प्यार भरे, धोखे वाले 90 के ज़माने के गाने सुबह से चला कर बैठ जाता था, 
मैंने गौर किया उसकी दुकान खूब अच्छे से चल पड़ी थू, आस पास के लड़के उसके पास ही जमे रहते, मुझे भी वहाँ जाना अच्छा लगता, नये नये लड़के काफ़ी अतरंगी बाते करते, सुख दुख बाटते, मेरे खुद जे कई दोस्त यहाँ बाल कटाने आने लगे थे,. मै स्कूल, बाजार से आते जाते जब भी उसे देखता उसके मुँह मे हमेशा गुटखा भरा ही रहता, हाथो मे कैंची खच.. खच... करती ही रहती, और उफ़...... ये प्यार भरे नगमे ये तो इस सेलून की जान बंद गए थे, 
शाम के टाइम तो दिलजले आशिको का जमावड़ा लग जाता उसकी दुकान पर, ना जाने क्या जादू था उसके पास.
उसकी दुकान से किसी को कोई दिक्कत नहीं थी, होती भी क्यों होना कमा खा रहा है किसी को क्या लेना देना.

लेकिन मेरी मम्मी को ये सब बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रहा था, हर वक़्त ऊँची आवाज़ मे गाना, घर के बहार जवान, अजीब से बाल वालो लड़को की भीड़ उसे नहीं भा रही थी, जब भी बालकनी ने आती नीचे से आती तेज़ आवाज़ उसे परेशान करती, इतना की दिन ने सोना भी मुहाल होने लगा था.
माँ उसे मन ही मन गलियां देती, कभी पापा पर गुस्सा करती, लेकिन क्या करे, कुछ कर नहीं सकती थी.

एक दिन रात के वक़्त पापा और मै दुकान से लौट रहे थे.
"अंकल... अंकल..." आलम ने दुकान का सटर नीचे करते हुए पापा को आवाज़ दि.
"क्या बात है आलम आज बड़ी देर तक दुकान चलाई?" 
"सलाम अंकल.... वो बस ग्राहक पीछा ही नहीं छोड़ते "
"बोलो क्या बात है?" पापा ने उसके चेहरे को पढ़ते हुए पूछा.
"वो... वो... अंकल दुकान मे ग्राहकी ज्यादा रही है तो टॉयलेट जाने का टाइम नहीं मिल पाता, यहाँ से टॉयलेट दूर भी है, यदि आपके घर का इस्तेमाल कर सकता तो...? " आलम ने झिझकते हुए कहा.
"अरे ये कोई पूछने की बात है? तुम्हरे दुकान के जस्ट पीछे ही है टॉयलेट चले जाया करो, अरे भई किसी की ग्राहकी नहीं पिटनी चाहिए " पापा शुद्ध धंधेबाज आदमी थे, किसी का 1रुपया भी नुकसान हो ये मंजूर नहीं था.
पापा ने उसे घर का बाथरूम इस्तेमाल करने की इज़ाज़त दे दि.

बस फिर क्या था उस दिन के बाद से तो मेरी माँ का एक अलग ही रूप देखने को मिल रहा था हम लोगो को.
माँ गुस्से मे ही रहती, बात बात पर पापा को ताने मार देती.
"पैसे के आगे कुछ दिखता नहीं है, किसी को भी घर मे घुसा लिया ब्ला.. ब्ला... ब्ला....."


मेरी माँ आलम को मन ही मन कोसती रहती, सबसे ज्यादा तो मम्मी को तब गुस्सा आता जब वो पेशाब करने के लिए घर का टॉयलेट यूज करता, क्यूंकि माँ जब भी बाथरूम जाती एक अजीब सी कैसेली गंध बाथरूम मे फैली होती,  टॉयलेट सीट पर आलम के पेशाब के छींटे फैले होते, माँ तो जल भून के ही रह जाती, 
साला आलम मूतने के बाद पानी भी नहीं डालता था, ऊपर से  गुटखा टॉयलेट की सीट पर थूक कर चला जाता.
माँ ने पापा को शिकायत की तो आलम बेहया की तरह बोल देता " अंकल जल्दी मे रहता हूँ, ग्राहकी बहुत होती है, अगली बार से ध्यान रखूँगा " 
लेकिन फिर से उसके यही काम होते, पापा के सामने मीठी बाते करता, शरीफ ही रहता, लेकिन माँ कुछ कहती तो बिना जवाब दिए माँ को घूरता निकल लेता अपनी दुकान मे.
अजीब लड़का था आलम, खेर इसी कसमकस 2 हफ्ते गुजर गए मम्मी उस लड़के की हरकतों से खुश नहीं थी, उसने अब पापा से शिकायत करना ही छोड़ दिया था, उन्हें तो सिर्फ पैसे ही दिखते थे, घर मे क्या परेशानी है इस से मतलब नहीं था,
***********
ऐसे ही कभी कहासूनी, कभी माँ की नाराजगी तो कभी आलम की सफाई मे देखते देखते आलम को दुकान लिये हुए एक महीना बीत गया,  आलम की ग्राहकी इतनी हो गई थी की मंगलवार, शनिवार छोड़ कर वो दुकान में ही सो जाया करता, देखा जाये तो वो काफ़ी मेहनत करता था, उसने किसी को हेल्प के लिए भी नहीं रखा था, अकेला ही पूरा दिन लगा रहता.


ऐसे ही एक दिन रात कामिनी करवटे बदल रही थी, पीरियड ख़त्म हुए कुछ दिन बीते थे, उसका जिस्म कुछ मचल रहा था, नींद आँखों से ओझल थी, करवट बदलते 12 बज गए, मेरे पापा को क्या ही कहती वो तो दिन भर दुकान मे बैठते और रात मे घर आ कर छक कर खाते और खर्राटे भरते, माँ क्या चाहती है इसकी परवाह नहीं थी.
कामिनी का जिस्म आज थोड़ा गर्म था, जांघो के बीच रह रह के टिस सी उठ रही थी, एक भारिपन सा महसूस हो रहा था, 
"थोड़ा पेशाब कर आती हूँ... उउफ्फ्फ..."  कामिनी अपने ख़यालात लिए बाथरूम की ओर चल दि, हमारा टॉयलेट ठीक आलम की दुकान के पीछे ही था, कामिनी ने जैसे ही बाथरूम का दरवाजा खोला, उसे आलम की दुकान से कुछ अजीब सी आवाजें सुनने को मिली, माँ ने उस ओर देखा तो झिरी से लाइट की रौशनी भी बहार आ रही थी, 
कामिनी ने इस दृश्य को इग्नोर किया, क्यूंकि पेशाब का दबाव उसे कुछ सींचने का अवसर नहीं दे रहा था,  कामिनी अपना घाघरा उठा कार टॉयलेट सीट पर बैठ गई 58a6159d21-4 , उसकी कामुक गांड पूरी तरह फ़ैल के हवा मे झूल गई "आअह्ह्ह.... ठंडी हवा का झोंक गांड से टकराते ही मुबसे सिस्कारी के साथ चुत से पेशाब की पिली धार फुट पड़ी..... इस्स्स..... ससससससस......."
एक सिटी की आवाज़ हॉल मे गूंज उठी,

कामिनी की चुत से जैसे जैसे पेशाब निकलता गया, दबाव कम होने लगा तो साथ ही कान तेज़ हो गए, बाथरूम आलम की दुकान से सटा हुआ था, एक अजूबा सी आवाज़ अंदर तक आ रही थी,
मूतने के बाद माँ ने घाघरा नीचे किया और चलने को हुई ही थी की "आअह्ह्ह..... धीरे आउच...." किसी लड़की की तेज़ आवाज़ उसके कानो मे पड़ी...
कामिनी के पैर वही जम गए, जिस्म मे एक झुरझुरी सी दौड़  गई, 
माँ के मन मे कोतुहाल सा मच गया, दुकान से लगा हुआ एक दरवाजा भी था, जो अक्सर बंद ही रहता था, उसकी झिरी से ही ये रौशनी और आवाज़ आ रही थी, 
ना जाने क्यों कामिनी के पैर वापस उस दिवार की तरफ मुड़ गए, उसके जिस्म मे एक करंट सा लगा, वो शादीशुदा थी वो ऐसी आवाजो को पहचानती थी.
उसके मन मे कोतुहाल था, "ये हरामी, लड़का किसी लड़की के साथ... नहीं... नहीं... इसे कौन मुँह लगाएगी " कामिनी sure थी की कुछ गड़बड़ है क्यूंकि उसकी नजर मे आलम जैसे लड़के पर तो कोई औरत थूके भी ना.
कामिनी ने कदम आगे बड़ा दिए, आंखे उस पतली झिरी मे लगा दि, थोड़ी कोशिश के बाद वो अंदर देखने मे कामयाब हो गई.
लेकिन जैसे ही दरवाजे की दरार से माँ ने अंदर देखा तो मेरी संस्कारी माँ साकपका गई, उसका शरीर काँप उठा, उसके पैरो तले जमीन खिसक गई, आंखे चौड़ी हो गई a7f6471b71677069e58f5f8ba7b03e19 जैसे जो देख रही हो उस पर यकीन करना मुश्किल था, 

कामिनी ने देखा एक जवान कसी हुई औरत आलम की दुकान में एकदम नंगी अवस्था में घोड़ी बनी हुई है और आलम उसके पूछे किसी कुत्ते की तरह धचा.. धच... धचा.. धच... अपना लंड उसकी चुत मे मारे जा रहा है., आलम पूरी तरह नंगा उस औरत के पीछे से उसकी गांड को भींचता हुआ अपना लंड पूरी ताकत से दनादन पेले जा रहा था, Romi-Rain-SEX-Prime-MILF  

आलम रात की 12 बजे एक भरी औरत को चोद रहा था, आअह्ह्हम... उउउफ्फ्फ... उफ्फ्फ्फ़... करती वो औरत सिसक रही थी,
कामिनी ये नजारा देख सकपका गई, उसका जहन गुस्से से भर उठा, उसके मन मे आया अभी जा कर पापा को सब बता डर, दिखा दे इस हरामी की करतूत,...
उसने गुस्से मे पलटना चाहा ही था की....
"हे भगवान.... ये... ये.. क्या है?... इतना बड़ा  " कामिनी को असली झटका अब लगा था.
अंदर आलम ने अपना लंड उस औरत की चुत से निकाल उसकी गांड पर थाड थाड कर मारने लगा... 1dc33e483dee98d0ef02cfb95ba4e430
आलम का लंड नसो से भरा, मोटा, कोई 9 इंच लम्बा था.
मेरी माँ कामिनी ऐसा नजारा अपने जीवन ने पहली बार देख रही थी, उसके तो हिसाब ही फकता हो गए.
ऐसा लंड भी होता है उसने कामना नहीं की थी, यहाँ तक की ऐसा तो सपना भी नहीं देखा था.
आलम का लंड का सूपड़ा दूधिया रौशनी मे चमक रहा था, बिल्कुल गुलाबी चुत रस से भीगा हुआ.
कामिनी का दिल बैठा जा रहा था आलम के लंड के हर झटके से.. उसकी जाँघे कंपने लगी थी, 
तभी अंदर आलम ने धचम्म.. से अपना लंड वापस से उस औरत की चुत मे एक बार मे पेल दिया.
"आआआआहहहह...... आउच.... धीरे..... इसस्स...." वो औरत जिस का मुँह अभी तक नीचे था वो सर ऊपर कर किसी कुतिया की तरह हुंकार उठी.

.ये नजारा देख माँ गिरने को आ गई, उसके पैरो ने जवाब दे दिया था, माँ उस औरत का चेहरा देख दंग रह गई, 
 ये औरत और कोई नहीं पंजाब से आए हुए हमारे पड़ोसी जसवंत अंकल की वाइफ हरमन कौर थी.
इन्हे यहाँ आये अभी 2 महीना ही हुआ था और यहाँ हमारे सामने वाले घर में रेंट पर रहते थे, इनकी शादी को 2 साल हुए थे और उसका पति अभी ड्यूटी पर था जो 6,7  महीने में घर आता था.....ये औरत 30-35 साल की होगी, बिल्कुल जवान कसा हुआ माल थी, आस पास जे लड़के इसे घुर्टर थे, जब बाजार जाती तो इसे देखने के लिए झुण्ड बना लेते थे, हरमन आंटी ने कभी किसी को नजर उठा कर नहीं देखा था, 
 लेकिन अभी आलम के लंड के नीचे थी... आलम धचा धच पच.... पचमढ़ी... करता तेज़ी से हरमन की चुत मारे जा रहा था,
माँ का जहन गुस्से और शर्म से भर उठा, इसका पति वहाँ देश सेवा कर रहा है और ये यहाँ अपनी चुत एक गैरधर्म के आवारा लड़के मरवा रही है छी... "


कामिनी का जिस्म अंदर का दृश्य देख पसीना पसीना हो गया, उसे समझ नहीं आ रहा था की ये क्या हो रहा है? वो क्या करे? बस उसकी जांघो के बीच एक गुदगुदी सी होने लगी थी, उसकी नजरें बार बार आलम के लंड को टटोल रही थी, जो की हरमन कौर की चुत मे पच.. पच.. पच.... करता घुसे जा रहा था, हरमन अपना सर पटक रही थी, लग रहा था जैसे वो आनंद के सातवे आसमान पर है,
मेरी संस्कारी माँ कामिनी ने आज तक ऐसा नजारा अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखा था, उसका जिस्म जल रहा था, लेकिन दिमाग़ अभी भी आलम और हरमन को गलियां दे रहा था,
" हे भगवान कैसी औरत है ये नीच औरत शादी सुदा होते हुए भी एक पराये मर्द के साथ ऐसा कर रही है छी कैसी दुनिया है ये कितना बड़ा पाप कर रही है ये कुतिया.... हरमजादी... और ये हरमजदा मुझे तो पहले से ही पसंद नहीं था, मैंने पहले ही नवीन के पापा को बोला था कि दुकान इसे मत दो ये गंदे होते हैं, लेकिन पैसे के लालच में नहीं माने अब देखो मेरे घर में ये क्या पाप हो रहा है" कामिनी की जाँघे आपस मे सिकुड़ी हुई थी जैसे कुछ निकलने से रोक रही हो लेकिन होंठ अंदर का नजारा देख बुदबूदा रहे थे, गलियां दे रहे थे.


मेरी माँ को वहाँ से चला जाना चाहिए था, लेकिन वो ना जाने क्यों वहाँ जमीं रही, जैसे किसी फ़िल्म का अंजाम जानना चाहती ही, 
अंदर हरमन, आलम के नीचे कुतिया बनी हुई चिल्ला रही थी... ाआहे....आह्ह आह्ह आह्ह आह्ह्ह ओघ्ह ओह्ह उउफ्फ्फ....चोद मुझे आलम... कस के चोद... और अंदर डाल.... फाड़ दे मेरी चुत.... 24257008
मेरी माँ हरमन की बेशर्मी पर हैरान थी, वो आलम को उकसा रही थी चोदने के लिए, उसे गंदे गंदे शब्द बोल रही थी, खुद से अपनी गांड को उसके लंड पर मार रही थी, परन्तु माँ के हैरानी का विषय कुछ और था, हरमन इतनी आसानी से कैसे इतने मोटे लुम्बे लंड को एक बार मे अंदर ले रही है, मुझे तो नवीन के पापा करते है तो दर्द हो जाता है, 
कामिनी अपनी ही सोच मे उलझी थी, गुस्से और वासना मे कहीं उलझ गई थी.

हरमन की सिसकारियों उसकी हवास की गवाह थी, माँ ने तो ऐसी औरत होने की कभी कल्पना भी नहीं की थी...
इतना गुस्सा और गलियों के बाद भी ना जाने क्यों माँ वहाँ से हट नहीं रही थक, दिमाग़ कह रहा था अभी जा कर पापा को बुलाकर ले आये, मोहल्ले में शोर मचा दे, इस आलम का किस्सा आज ही खत्म कर दे, उसे इस कद्र चिढ़ थी इस मुल्ले नाई आलम से,
लेकिन ना जाने क्यों माँ वहाँ से तस की मस ना हुई, उसकी नजरें अंदर के नज़ारे से हट ही नहीं रही थी, उसका दिमाग़ लाख मना करे लेकिन इस से हसीन नजारा शायद ही दुनिया मे कुछ नहीं होता.

"बताओ ऐसी भी औरत होती है क्या?  इतनी भी क्या आग लग रही थी जो इस आवारा लड़के से चुदवा रही है" कामिनी बड़बड़ा रही थी, जैसे हरमन से जल रही हो.

"मोहल्ले में तो बड़ी सती सावित्री बनती है और यहाँ देखो रंडी को,  कैसे मजा ले रही है मेरे घर में..... हे भगवान ये आदमी है या हैवान कितनी देर से धक्के मार रहा है और कितनी तेज कर रहा है ये इस कुतिया के साथ फिर भी इसका नहीं हो रहा छी....."
कामिनी की सोच हरमन से होती आलम के लंड पर आ टिकी, उसकी रफ़्तार उसके करतब पर जा लगी, उसे आश्चर्य था की कोई इतनी देर तक, इतनी तेज़ कैसे कर सकता है, उसके साथ तो आज तक ऐसा नहीं हुआ,

"आअह्ह्ह.... आअह्ह्ह.... उउउफ्फफ्फ्फ़... आउच..." हरमन आलम के तेज़ धक्के सहन ना कर सकी उसकी चुत से पेशाब की धार फुट पड़ी, जो की सीधा आलम की जांघिया से टकरा गई.
आलम ने अपना लंड फिर से एक बार बहार निकाल हरमन की गांड पर रख दिया, जैसे अपने लंड को धार लगा रहा हो. images-2
माँ की नजर वापस से आलम मे लंड पर जा टिकी, कामिनी का दिल बैठने लगा, उसकी चुत से पानी की धार रिसने लगी, इस बार आलम का लंड पहले से ज्यादा फुला हुआ था, नशे उभरी हुई थी, बिल्कुल कड़क किसी लोहे की रोड की तरह चूतरस से साना चमक रहा था.
माँ इस बार इस दृश्य को सहन ना कर सकी, वो अपने कमरे की तरफ भाग चली... और.. धड़ाम... से बिस्तर पर जा गिरी उसकी सांसे फुकी हुई थी, स्तन ब्लाउज से बहार झाँकते हुए उठ उठ के गिर रहे थे. कामिनी का गला सुख गया था.

उसके जहन मे वही चल रहा था जो उसने अभी देखा क्या वो सच है?
क्या करेगी अब मेरी संस्कारी माँ कामिनी?

बने रहिये....
कहानी जारी है...


Post a Comment

0 Comments