रात गहरा गई थी। शादी का घर सन्नाटे में डूबा था, सिवाय आंगन से आती ढोलक की हल्की थाप और औरतों की ठिठोली के। चाँदनी आसमान में फैली थी, लेकिन हल्की-सी धुंध ने माहौल को रहस्यमय बना दिया। आंगन में कुछ औरतें सोई थीं, कुछ आपस में हँस-हँसकर अश्लील बातें कर रही थीं—“सइयाँ ने लंड मोटा डाला, चूत में आग लगी रे…” उनकी बेशर्म हँसी और गंदे शब्द हवा में तैर रहे थे। शादी-ब्याह में ऐसी बातें आम थीं, लेकिन आज वो मेरे कानों में आग की तरह लग रही थीं। जैसे पूरा घर वासना के रंग में रंगा हो।मेरा मन उलझा था, जैसे कोई बोझ मेरे सीने पर रखा हो। मैं बगीचे की ओर बढ़ रहा था। सिगरेट की तलब ने मुझे घर की भीड़ से दूर खींच लिया। स्टोर रूम का वो सीन मेरे दिमाग में चक्कर काट रहा था। मेरी माँ… मेरी माँ रेशमा… वो पटनायक के नीचे नंगी थीं। उनकी सिसकारियाँ, उनकी चूत से बहता सफ़ेद रस, और वो कुतिया-सी हुंकार मेरे कानों में गूँज रही थी। मैं उनका बेटा था, लेकिन उनकी मादकता ने मेरे जिस्म में आग लगा दी थी। मेरा लंड पैंट में तन गया था, लेकिन मेरा दिल शर्म और गुस्से से भारी था। “माँ… आपने ऐसा क्यों किया?” मैंने धुंध भरी हवा में फुसफुसाया। सिगरेट जला ली, लेकिन धुआँ मेरे दिमाग की आग को ठंडा नहीं कर पा रहा था।सिगरेट का कश लेते हुए मैं उस जगह पहुँचा जहाँ हलवाई का टेंट लगा था। टेंट खाली था। बर्तन इधर-उधर बिखरे थे, और हलवाई और उसका नौकर घर जा चुके थे। एक चारपाई पड़ी थी, जिस पर मैं बैठने ही वाला था कि टेंट के पीछे से कुछ आवाज़ें आईं—हल्की सिसकारियाँ, कपड़ों की सरसराहट, और किसी की भारी साँसें। मेरा दिल धड़कने लगा। “कौन है वहाँ?” मैंने सोचा। मैं धीरे-धीरे उस तरफ बढ़ा, टेंट के किनारे और पेड़ों की आड़ में छुपते हुए। मेरे कदमों तले सूखी पत्तियाँ चरमराईं।टेंट के पीछे एक घना पेड़ था, और उसके पास हमारे घर की दीवार। मैं टेंट के आखिरी छोर पर रुका और झाँका। मेरी साँसें रुक गईं। मेरा दिमाग सुन्न हो गया, और मेरा जिस्म पसीने से भीग गया। “हे भगवान, अब और क्या देखना बाकी है मेरे लिए?” मैं मन में बिलबिलाया।पेड़ के नीचे, चाँदनी की फीकी रौशनी में, मेरी बहन अनुश्री थी। उसका काला लहँगा ज़मीन पर पड़ा था, जैसे किसी ने उसे फेंक दिया हो। उसकी चोली आधी खुली थी, और उसकी गोरी त्वचा चाँदनी में चमक रही थी। वो घुटनों के बल बैठी थी, और उसके सामने मेरा दोस्त आदिल खड़ा था। उसका पैंट घुटनों तक सरका था, और उसका मोटा, काला लंड अनुश्री के मुँह में था। अनुश्री किसी सस्ती रंडी की तरह उसका लंड चूस रही थी। उसके लाल होंठ लंड के चारों ओर कस गए थे, और उसकी जीभ लंड की नसों पर लपलपाते हुए चमक रही थी। “इस्स्स… अनु… आह्ह… क्या चूसती है तू…” आदिल की सिसकारी निकल रही थी। उसने अनुश्री के काले, घने बाल पकड़ रखे थे, और उसका लंड उसके मुँह में अंदर-बाहर हो रहा था।
अनुश्री का गोरा, चिकना जिस्म चाँदनी में मोती की तरह दमक रहा था। उसकी गोल, भारी गांड ज़मीन पर हल्के-हल्के हिल रही थी, जैसे वो हवस में तड़प रही हो। उसकी चूत से रस की बूँदें उसकी मोटी जाँघों पर टपक रही थीं, और उसकी चोली से उसके भारी, उन्नत स्तन बाहर झाँक रहे थे। हर बार जब वो आदिल के लंड को गहराई तक लेती, उसके स्तन हवा में उछलते, और उसकी सिसकारी माहौल में गूँजती—“आह्ह… आदिल… तेरा लंड… कितना मोटा है…” उसने लंड को मुँह से निकालकर कराहते हुए कहा। उसने अपनी जीभ से लंड के सुपारे को चाटा, जैसे कोई भूखी शेरनी अपनी मिठाई चाट रही हो, और फिर उसे फिर से मुँह में ले लिया।
आदिल का चेहरा हवस से लाल था। “अनु दीदी… चूस… इसे रंडी की तरह… पूरा गले तक ले…” उसने गुर्राते हुए कहा। आदिल ने आगे झुकते हुए एक उंगली अनुश्री की गांड की गहरी दरार में डाली, और अनुश्री का जिस्म झटके से काँप उठा।
“उफ्फ… आदिल… वहाँ… आह्ह…” उसने सिसकते हुए कहा, लेकिन उसकी आँखें बंद थीं, जैसे वो हवस की गहराई में डूब चुकी हो। आदिल ने अपनी उंगली को उसकी तंग, गर्म गांड में अंदर-बाहर करना शुरू किया, और अनुश्री की चूत से रस की धार बहने लगी। उसकी जाँघें चिपचिपी हो गई थीं, और उसकी सिसकारियाँ अब चीखों में बदल रही थीं। “हाय… आदिल… मेरी गांड… उफ्फ… तू मुझे मार डालेगा…”अनुश्री की गांड मेरे सामने थी, पसीने और चूत के रस से भीगी, मादक और भारी। आदिल की उंगली उसकी गांड की गहराई में नाच रही थी। कभी वो उंगली को चूत पर ले जाता, वहाँ से रस समेटता, और फिर “पुक” की आवाज़ के साथ आधी उंगली उसकी गांड में धँस जाती।
“आह्ह… आउचम्म… बहुत शैतान हो तुम…” अनुश्री ने भोला-सा मुँह बनाकर कहा, लेकिन उसकी आँखों में हवस की चमक थी।
“साला, ये कब और कैसे शुरू हुआ?” मैं सदमे में था। अभी तक मेरी माँ ही गुल खिला रही थी, और अब मेरी बहन भी प्यासी निकली। मेरे दोस्त का लंड चूस रही थी, जैसे कोई रंडी। मैं पेड़ और टेंट की आड़ में खड़ा था, और मेरा दिल फटने को था। मेरा गुस्सा आसमान पर था। मैं आदिल का गला पकड़ना चाहता था, उसे वहीं मार डालना चाहता था। लेकिन मेरा जिस्म जड़ हो गया था। मेरा लंड पैंट में तन गया, और मेरी साँसें तेज़ हो गईं।
“ये क्या हो रहा है? पहले माँ… अब दीदी?” मैंने मन में चीखा। अनुश्री की सिसकारियाँ और आदिल की कराहें मेरे दिमाग में आग लगा रही थीं। मैं उनका भाई था, लेकिन उनकी मादकता मुझे बेकाबू कर रही थी। मेरा लंड इतना तना था कि पैंट फटने को थी, और मेरा मन शर्म, गुस्सा, और हवस के तूफान में डूबा था।आदिल ने अनुश्री को खड़ा किया और उसे दीवार के सहारे उल्टा झुका दिया। अनुश्री की गोल, गोरी गांड हवा में उठ गई, और उसकी चूत चाँदनी में चमक रही थी। उसकी चूत की फाँकें खुली थीं, गीली और लाल, जैसे कोई प्यासा फूल बारिश का इंतज़ार कर रहा हो। आदिल ने अपने लंड को उसकी चूत पर रगड़ा, और अनुश्री की सिसकारी निकल गई—
“आह्ह… आदिल… डाल दे… अब और मत तड़पा…” उसकी आवाज़ में हवस थी, बेकरारी थी। आदिल ने देर न की। उसने एक ज़ोरदार धक्का मारा—“धचक…”—और उसका मोटा, 7 इंच का लंड अनुश्री की चूत में पूरा घुस गया।
“आह्ह… उफ्फ… आदिल… हाय… मार डाला…” अनुश्री चीख उठी। उसकी जाँघें काँप रही थीं, और उसकी चूत का रस ज़मीन पर टपकने लगा। आदिल ने उसकी पतली कमर पकड़ी और ताबड़तोड़ धक्के मारने लगा—“धच… धच… पच… पच…” हर धक्के के साथ अनुश्री की मोटी, गोरी गांड हवा में लहरा रही थी, और उसके भारी स्तन चोली से बाहर निकलकर उछल रहे थे। “अनु… तेरी चूत… हाय, कितनी तंग… कितनी गर्म है…” आदिल कराह रहा था। अनुश्री की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं—“आह्ह… आदिल… और तेज़… फाड़ दे मेरी चूत… हाय…”आदिल ने अपनी दो उंगलियाँ अनुश्री की गांड में ठूँस दीं,
और इस प्रहार से अनुश्री का जिस्म झटके से काँप उठा। “उफ्फ… आदिल… गांड में… नहीं… उफ्फ… आह्ह…” उसकी चीखें बगीचे में गूँज रही थीं—“आह्ह… मैं मर जाऊँगी… मेरी चूत… मेरी गांड…” उसकी चूत का रस उसकी जाँघों पर बह रहा था, और उसकी चीखें टेंट के आसपास की सन्नाटी रात में तैर रही थीं।तभी आदिल के मुँह से हवस के नशे में कुछ निकल गया—
“हाय… अनु… जैसी माँ वैसी बेटी… तेरी माँ तो चुदते-चुदते रह गई, लेकिन बेटी को चोदना मेरे नसीब में आ गया!” अनुश्री का जिस्म अचानक ठिठक गया। उसकी आँखें फटी-फटी रह गईं। उसने आदिल के धक्के रोक दिए और हाँफते हुए पूछा, “क्या बोला? मेरी माँ? ये क्या बकवास कर रहा है?” आदिल ने उसकी मोटी गांड पर एक ज़ोरदार चपत मारी—“थप!”—जिससे आवाज़ गूँजी, और हँसते हुए कहा, “अरे, अनु… तेरी माँ रेशमा… तुझसे भी ज़्यादा गर्म औरत है।”मेरे कान खड़े हो गए। “माँ? ये हरामी क्या कह रहा है?” मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। मेरी सिगरेट मेरे हाथ से ज़मीन पर गिर गई, लेकिन मैंने उसे उठाने की कोशिश भी नहीं की। अनुश्री ने आदिल की छाती पर धक्का देकर उसे रोका और सिसकते हुए बोली, “साफ़-साफ़ बता, आदिल… मेरी माँ का क्या मतलब?” अनुश्री दीवार के सहारे सीधी खड़ी हो गई। आदिल ने उसकी एक मोटी जाँघ को पकड़ा, अपने कंधे पर चढ़ाया,
और “धच्छ…” की आवाज़ के साथ अपने लंड को उसकी चूत में रगड़ते हुए कहा, “तुझे तेरी माँ की कहानी सुनाता हूँ… धच… धच… पच… पच…”आदिल बोलता गया, और हर धक्के के साथ अनुश्री की चूत में उसका लंड अंदर-बाहर होता गया।
आदिल जैसे जैसे बोलता गया वैसे वैसे अनुश्री की आँखें फटती चली गई, साथ ही उसकी चूत से रस की धार बहने लगी।
“आह्ह… मेरी माँ… इतनी… उफ…” उसकी सिसकारी निकल गई। उसकी जाँघें काँप रही थीं, और उसकी चूत ने रस की बौछार छोड़ दी—“हम्फ़… उफ…” वो झड़ रही थी, और उसका जिस्म दीवार का सहारा छोड़कर लडख़ड़ा गया।
“हम्फफ्फ़…” उसकी साँसें तेज़ थीं। आदिल नहीं रुका। उसने अनुश्री को घास पर पीठ के बल लिटा दिया, उसकी टाँगें फैलाया, और “धच… फचम्म…” की आवाज़ के साथ अपना लंड उसकी गीली चूत में दे मारा। “आह्ह… और बताओ… मेरी माँ की चूत किसने मारी?”
अनुश्री पागल हो रही थी, जैसे उसकी माँ की कहानी ने उसकी हवस को और भड़का दिया हो।आदिल ने हँसकर कहा—“यही तो संकट है, मेरी जान… अभी तक तेरी माँ की चूत में लंड गया ही नहीं किसी का!”
लेकिन मैं जानता था, मैंने देखा था—मेरी माँ रेशमा आज रात पटनायक से चुद चुकी थी।
आदिल ने बात बढ़ाई—“हाँ, एक बात और… जब मैं और रेशमा तुझे लेने स्टेशन आए थे… बता… बता… फच… पच…” आदिल ने पटनायक वाला किस्सा शुरू किया।
“उस रात उसने पटनायक का 10 इंच का लंड चूसा। वो मोटा, काला लंड… तेरी माँ ने उसे पूरा गले में लिया, और उसका गर्म वीर्य निगल गया।”अनुश्री अपने चरम पर थी। “10 इंच… हाय… उफ… मेरी माँ…” उसकी चूत ने फिर रस छोड़ा—“आह्ह… 10 इंच का लंड मेरी माँ के मुँह में… उफ…” वो दोबारा झड़ रही थी। उसने आदिल की पीठ को अपने नाखूनों से नोचा और चीखी—“आह्ह… आदिल… चोद मुझे… मैं भी… मेरी माँ की तरह…” आदिल ने ज़ोरदार धक्का मारा—“धखम्म…”—और बोला, “हाँ, अनु… तू भी वैसी ही है!” अनुश्री का जिस्म अकड़ रहा था, उसकी गर्दन पीछे झुकी, और वो चीख पड़ी—“आह्ह… ज़ोर से… फाड़ मेरी चूत… माँ की तरह भोसड़ा बना दे इस चूत का…” इसी चीख के साथ अनुश्री की चूत ने रस की बौछार छोड़ी, और आदिल का गर्म वीर्य उसकी चूत में भर गया।
आदिल हाँफते हुए उसके ऊपर ढह गया।मैं टेंट की आड़ में खड़ा था, और मेरा दिल टूट चुका था।
“माँ… दीदी… दोनों?” मेरा दिमाग सुन्न था। मेरा लंड तना था, लेकिन मेरा मन गुस्से, शर्म, और दुख से भरा था। मेरी माँ का राज़ अब अनुश्री के सामने खुल चुका था, और मेरे सामने भी। अनुश्री अपनी माँ की कामुकता सुनकर और उत्तेजित हो रही थी, जैसे वो उनकी छाया हो। मेरी बहन… मेरी माँ… दोनों हवस के इस दलदल में डूब चुकी थीं। लेकिन अनुश्री की वो चीख—“मैं भी… मेरी माँ की तरह…”—मेरे दिल में चुभ गई। वो अपनी माँ की तरह बनना चाहती थी। और मैं? मैं क्या करूँ? मैंने सिगरेट का आखिरी कश लिया और उसे ज़मीन पर फेंक दिया। यहाँ रुकना बेकार था। मैं तुरंत वहाँ से खिसक लिया।
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उधर, रेशमा स्टोर रूम से बाहर निकलीं। उनका जिस्म पसीने और चूत के रस से सना था। उनकी लाल साड़ी गीली होकर उनके जिस्म से चिपक रही थी। उनकी गहरी नाभी और भारी, उन्नत स्तन साड़ी के पार झाँक रहे थे। उनकी चाल में एक मादकता थी, जैसे वो अभी भी पटनायक की गर्मी में खोई हों। उनकी चूड़ियाँ खनक रही थीं, और मंगलसूत्र उनके स्तनों के बीच लटक रहा था। उनकी आँखों में एक कसक थी—वासना की तृप्ति के साथ-साथ कुछ अधूरापन।पटनायक उनके पीछे-पीछे निकला, उसकी चाल में चालाकी थी। उसने रेशमा की मोटी, गोल गांड पर एक ज़ोरदार चपत मारी—“थप!”—और हँसते हुए कहा, “रेशमा, अगली बार तेरी गांड फाड़ूँगा।” रेशमा ने एक मादक मुस्कान दी, उनकी आँखें नीची थीं, लेकिन होंठों पर एक शरारती चमक थी। वो साड़ी ठीक करते हुए आगे बढ़ गईं। लेकिन उनकी किस्मत खराब थी। मेरा मामा—रेशमा का भाई रमेश—बालकनी में बैठा दारू पी रहा था। उसकी नज़र रेशमा और पटनायक पर पड़ी।“भेनचोद, ये क्या चल रहा है मेरे घर में?” रमेश का चेहरा गुस्से से तिलमिला गया। रेशमा का पसीने से नहाया जिस्म, उनकी गीली साड़ी, और पटनायक की चालाक मुस्कान ने उसके दिल में शक का बीज बो दिया। लेकिन दारू की गर्मी ने उसके लंड को तनाव दे दिया। रेशमा की मादकता—उनकी बलखाती कमर, उनकी गहरी नाभी, और उनके भारी स्तन—उसके दिमाग में आग लगा रही थी। चाँदनी में रेशमा का जिस्म और चमक रहा था, जैसे कोई अप्सरा ज़मीन पर उतर आई हो। उनके बाहर झाँकते सुडौल स्तन, भरी हुई कमर, और मटकती गांड रमेश के गुस्से पर हावी होने लगी थी।
“रेशमा… इतनी मादक…” उसने फुसफुसाया। उसका लंड पजामे में तन गया।रमेश को याद भी नहीं था कि उसने आखिरी बार अपनी बीवी आरती के साथ कब सेक्स किया था। काम की थकान, आरती का मना करना, और गृहस्थी की भागदौड़ ने उसे बोर कर दिया था। “एक ही चूत को कब तक मारता रहूँ?” उसने सोचा। रेशमा की खूबसूरती और दारू के सुरूर ने उसके मन में पाप जगा दिया। वो बालकनी से नीचे उतरा और रेशमा के पीछे-पीछे चल दिया। रेशमा बाथरूम की ओर जा रही थी। रमेश को पता था कि बाथरूम के पीछे एक रोशनदान है, जहाँ कोई आता-जाता नहीं। उसने रोशनदान की ओर कदम बढ़ा दिए।
रमेश ने जैसे-तैसे रोशनदान के पास पहुँचकर झाँकने का जुगाड़ किया। उसने एक टूटी ईंट को पैरों तले रखा और बाथरूम की खिड़की की सलाखों को पकड़कर ऊपर झाँका। चाँदनी की फीकी रौशनी और बाथरूम की मद्धम बल्ब की रोशनी में जो नज़ारा दिखा, उसने उसके होश उड़ा दिए। उसका लंड पजामे में बगावत करने लगा, जैसे बाहर निकलने को तड़प रहा हो। रेशमा बाथरूम में बिल्कुल नंगी खड़ी थी। उनका गोरा, चिकना जिस्म चमक रहा था, जैसे कोई मोती पानी में नहा रहा हो। वो बाथरूम के आईने के सामने खड़ी थीं, अपने जिस्म को निहार रही थीं। उनकी मोटी, गोल जाँघें, गहरी नाभी, और भारी, उन्नत स्तन पसीने और चूत के रस से भीगे थे।
चुत फूल के कुप्पा हो गई थी,
उनकी चूत गीली थी, और जाँघों पर पटनायक का सफ़ेद, चिपचिपा वीर्य की लकीरें साफ़ दिख रही थीं।
रेशमा के होंठों पर एक मंद-मंद मुस्कान थी, जैसे वो अपनी मादकता पर इतरा रही हों।
रेशमा ने धीरे-धीरे अपनी जाँघों पर उंगलियाँ फिराईं। उनकी उंगलियाँ उनकी चूत के पास रुकीं, जहाँ पटनायक का वीर्य बह रहा था। उसने दो उंगलियों से उस चिपचिपे रस को इकट्ठा किया। उनकी उंगलियाँ वीर्य और चूत के रस से चमक रही थीं।
रेशमा ने अपनी उंगलियों को अपने लाल, रसीले होंठों के पास लाया। उनकी आँखें आधी बंद थीं, जैसे वो किसी गहरे नशे में डूबी हों। धीरे-धीरे, रेशमा ने अपनी उंगलियों को चाटा—
“उफ्फ…आअह्ह्ह.... ये स्वाद…” उनकी सिसकारी बाथरूम में गूँज उठी, उसकी जीभ ने उंगलियों को चाट-चाटकर साफ़ किया, और उनके होंठों पर एक शरारती मुस्कान तैर गई। रमेश की साँसें तेज़ हो गईं। उसका लंड पजामे में इतना तना था कि दर्द होने लगा।
“हाय… रेशमा… ये तू क्या कर रही है?” उसने मन में सोचा, लेकिन उसकी आँखें रेशमा के जिस्म से हट नहीं रही थीं।रेशमा ने शावर खोला।

ठंडा पानी उनके जिस्म पर गिरने लगा, और उनकी चूड़ियाँ खनक उठीं। पानी की बूँदें उसके गोरे जिस्म पर मोतियों की तरह चमक रही थीं। उनके भारी स्तन पानी से भीगकर और उभर आए थे। उसके गहरे भूरे निप्पल सख्त हो गए थे,
जैसे कोई पके अंगूर,
पानी उसकी गहरी नाभि में जमा हो कर चिकनी जाँघों की ओर बह रहा था। रेशमा ने अपने बाल खोल दिए। उनके काले, घने बाल उनकी पीठ पर लहराने लगे, और पानी की बूँदें उनके बालों से टपककर उनकी मोटी, गोल गांड पर गिर रही थीं। उनकी गांड इतनी मादक थी कि रमेश की आँखें वहाँ ठहर गईं। हर बार जब रेशमा अपने जिस्म को रगड़ती, उनकी गांड हल्के-हल्के हिलती, जैसे कोई मखमली तकिया हवा में लहरा रहा हो।रेशमा ने साबुन उठाया और अपने जिस्म पर मलना शुरू किया। उनके हाथ धीरे-धीरे उनके स्तनों पर गए। उन्होंने अपने भारी, गोल मम्मों को साबुन से रगड़ा, और उनके निप्पल साबुन के झाग से ढक गए।
“आह्ह…” रेशमा की हल्की-सी सिसकारी निकल पड़ी। उसके हाथ नीचे की ओर बढ़े, उनकी चिकनी पेट और गहरी नाभि पर रुके, और फिर उनकी चूत की ओर गए। रेशमा ने अपनी चूत को धीरे-धीरे रगड़ा,
जैसे वो उसकी जलन को शांत करना चाहती हों। उनकी उंगलियाँ उनकी चूत की फाँकों में घूम रही थीं, और उनकी सिसकारियाँ तेज़ हो गईं—“आह्ह… पटनायक जी… उफ्फ…”
रेशमा की आँखें बंद होती चली गई, उसका चेहरा हवस और तृप्ति के मिश्रण से लाल था।
रमेश का लंड अब बेकाबू हो चुका था। उसकी नजर अपने लंड पर गई। उसका लंड नसों से फूला हुआ था, और सुपारा लाल होकर चमक रहा था। लोहे की तरह बिल्कुल सख्त हो चूका था, ऐसा हाल आज से पहले उसके लंड का कभी नहीं हुआ था,
उसने अपने लंड को ज़ोर-ज़ोर से मसलना शुरू किया।
“हाय… रेशमा… तेरी चूत… तेरी गांड…” उसकी साँसें भारी थीं। रेशमा की हर हरकत—उनकी चूत पर उंगलियाँ, उनके उछलते मम्मे, और उनकी सिसकारियाँ—रमेश की हवस को और भड़का रही थीं। उसने अपनी आँखें बंद कीं, लेकिन रेशमा का नंगा जिस्म उसकी आँखों के सामने तैर रहा था।
“ये गलत है… वो मेरी बहन है…” उसने मन में सोचा, लेकिन उसका लंड उसकी बात नहीं मान रहा था।रेशमा ने अपनी चूत को और ज़ोर से रगड़ा। उनकी दो उंगलियाँ उनकी चूत के अंदर-बाहर हो रही थीं, और उनकी सिसकारियाँ अब चीखों में बदल रही थीं—“आह्ह… हाय… मेरी चूत… उफ्फ… पटनायक जी… आपका लंड…” उनकी जाँघें काँप रही थीं,उसकी चूत से रस की धार बहने लगी, जो शावर के पानी के साथ मिलकर ज़मीन पर टपक रही थी। रेशमा का जिस्म अकड़ गया, और वो एक ज़ोरदार सिसकारी के साथ झड़ गईं—“हम्फफ्फ़… आह्ह…उउउफ्फ्फ.. आउच...” उसकी साँसें तेज़ थीं, और उनका चेहरा तृप्ति से चमक रहा था। लेकिन उनकी आँखों में एक कसक थी, जैसे उनकी हवस अभी पूरी तरह शांत न हुई हो।
रमेश अब और बर्दाश्त नहीं कर सका। उसने अपने लंड को और तेज़ी से हिलाया—“हाय… रेशमा… तेरी चूत… मैं… उफ्फ…” उसकी साँसें रुक रही थीं। उसका लंड फटने को था। तभी उसका गर्म, सफ़ेद वीर्य की पिचकारी छूटी—“आह्ह…” वीर्य की बूँदें रोशनदान की दीवार पर और ज़मीन पर बिखर गईं। रमेश का जिस्म काँप रहा था। उसने सलाखों को ज़ोर से पकड़ रखा था, वरना वो गिर पड़ता। उसकी साँसें तेज़ थीं, और उसका लंड अभी भी हल्का-हल्का तना था।रेशमा ने शावर बंद किया। उन्होंने अपने जिस्म को तौलिये से पोंछा। तौलिया उनके भारी स्तनों, उनकी चिकनी जाँघों, और उनकी गीली चूत पर फिरा।
उनकी चूड़ियाँ फिर से खनकीं, और उनकी मादकता हर हरकत में झलक रही थी। रेशमा ने अपनी साड़ी और ब्लाउज़ पहना। उनकी गीली साड़ी उनके जिस्म से फिर चिपक गई, और उनकी नाभी और स्तन और उभर आए। रेशमा ने आखिरी बार आईने में खुद को देखा, अपनी चोटी बाँधी, और बाथरूम से बाहर निकल गईं। उनकी चप्पलों की खटखट गलियारे में गूँजती रही।
रमेश रोशनदान से नीचे उतरा और बाथरूम के पीछे की दीवार के सहारे बैठ गया। उसका पजामा अभी भी घुटनों तक सरका था, और उसका लंड हल्का-हल्का तना था। उसका चेहरा पसीने से भीगा था, और उसकी आँखें सुन्न थीं।
“मैंने क्या किया?” उसने फुसफुसाया। उसका दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। उसने अपनी सगी बहन को नंगा देखा था। उसकी चूत, उसकी गांड, और उसकी मादक सिसकारियाँ देखकर उसने लंड हिलाया था।
“ये पाप है… मैं उसका भाई हूँ…” उसने अपने सिर को दीवार से टकराया। लेकिन रेशमा का जिस्म उसकी आँखों के सामने बार-बार आ रहा था। उनकी चूत से बहता वीर्य, उनकी उंगलियों का चाटना, और उनकी सिसकारियाँ—“आह्ह… पटनायक जी…”—उसके दिमाग में गूँज रही थीं। उसका लंड फिर से तनने लगा।
“नहीं… ये गलत है…” उसने खुद को कोसा, लेकिन उसका जिस्म उसकी बात नहीं मान रहा था।रमेश को पटनायक पर गुस्सा भी आ रहा था।
“साला हरामी… मेरी बहन के साथ… उसने रेशमा को चोदा… मेरे घर में ये सब चला?” उसने मुट्ठी भींची। लेकिन गुस्से के साथ-साथ एक अजीब-सी जलन थी।
“पटनाय ने उसकी चूत ली… और मैं बस देखता रहा?” उसने सोचा। रेशमा का जिस्म उसे परेशान कर रहा था। उसकी मादकता ने ऐसा जादू किया था, जैसा पहले कभी नहीं हुआ। उसने अपनी बीवी आरती के साथ जो भी किया था, वो इसके सामने फीका था।
“रेशमा… मेरी बहन तू ऐसी क्यों है?” उसने धुंध भरी रात में फुसफुसाया। उसका लंड अभी भी रेशमा के जिस्म को याद कर खड़ा था।रमेश का मन भूचाल में डूबा था। वो शर्म, गुस्सा, और हवस के त्रिशूल में फँसा हुआ था।
“मैं क्या करूँ? रेशमा को पकड़ लूँ? नहीं, वो मेरी बहन है… लेकिन उसकी चूत… हाय…” उसने अपने बाल नोचे। वो उठा, अपने पजामे का नाड़ा बाँधा, और बाथरूम के पीछे से निकल गया। लेकिन रेशमा का जिस्म और पटनायक का नाम उसके दिमाग में बार-बार चक्कर काट रहा था।
शादी के घर मे मादकता बढ़ती ही जा रही है.
अनुश्री अपनी माँ का राज़ जान गई है, और रमेश भी अपनी बहन की हरकतो से अनजान नहीं है.
क्या होगा अब?
ये शादी क्या गुल खिलाएगी?
बने रहिये.
7 Comments
great going ..next wala post karo bhai
ReplyDeletePlz post the next part. Amazing story.
ReplyDeleteAb to updates de do bhai...jaldi karo
ReplyDeleteKamal ki lekhni hai aapki bas regular nahi ho rahe ho isliye bura lag raha hai
ReplyDeleteIncest ke alawa koi adultery, affair ki kahani bhi lekar aao aur jaldi jaldi update diya karo
ReplyDeleteBilkul bro apki demand bhi jaldi hi puri hogi
DeleteBura mat lagao bas kabhi kabhi busy ho jata hu
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