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नागमणि -8

 चैप्टर -1 ठाकुर कि शादी, अपडेट -8


डॉ. असलम और रतीवती कि बांन्छे खिल जाती है, रात कि खुमारी उतरी ही कहाँ थी के असलम के रुकने का इंतेज़ाम हो गया था. बिन बोले ही आँखों आँखों मे ही एक दूसरे के प्रीति जो हवस थी वो साफ झलक रही थी.

इधर उल्लू का चरखा रामनिवास ख़ुश था कि उसे कुछ नहीं करना पड़ेगा आराम से बैठ के  शराब पी के मौज करूंगा असलम तैयारी देख लेगा.

रामनिवास :- अरी भाग्यवन ये लो पैसा और डॉ. असलम के साथ मिल के सामान कि लिस्ट बना ले ना देखना कोई कमी ना रह जाये.

मै अभी आता हूँ.... ऐसा कह के वो घर से बाहर निकल जाता है और सीधा शराब कि दुकान पे ही रुकता है.

आज पहली बार रतीवती उसके दारू पिने कि आदत से ख़ुश थी वो अब तो यही चाहती थी कि वो पड़ा रहे दारू के नशे मे असलम है ना सब संभाल लेगें....

वो भी मंद मंद मुस्कुरा के नहाने कमरे मे चली जाती है. असलम बलखाती रतीवती को देखते ही रह जाता है उसे कल रात नंगी अपनी गांड मटकाती रतीवती का  नंगा गोरा कामुक बदन याद आ जाता है.

असलम अपना लंड मसलता कमरे मे चला जाता है,

तभी कमरे मे किसी के आने कि आहट होती है असलम चौक के ऊपर देखता है तो कामवती थी क्या सुंदर थी बला कि खूबसूरत.... उसकी माँ का जवानी वाला रूप थी कामवती.

कामवती :- काका नाश्ता कर लीजिये आगे बहुत काम है.

डॉ. असलम :- अरे कामवती तुम मेरी होने वाली भाभी हो इस हिसाब से तो मै तुम्हारा देवर हुआ ना. असलम मजाकिया लहजे मे बोलते है.

कामवती :- काका आप तो मेरे पिता के उम्र के है, आप को मै काका ही बोलूंगी.

और मुस्कुरा देती है.आप भी मुझे कामवती या कम्मो ही बुलाइये अच्छा लगेगा मुझे.

कितनी भोली मासूम मुस्कुराहट थी कामवती कि.


डॉ. असलम :- hahahaha.... ठीक है भाभी ज़ी... म.. मम... मेरेमतलब कामवती.

असलम के मन मे कामवती के लिए रत्तीभार भी कोई गलत भावना नहीं थी, थी ही इतनी मासूम कामवती

मै मस्जिद हो के आता हूँ फिर नाश्ता करता हूँ.

डॉ. असलम अपनी मुसलमानी टोपी पहने मस्जिद कि और निकल जाते है.

जहाँ रास्ते मे असलम मौलवी साहब से टकरा जाते है.

मौलवी :-अरे बरखुरदार देख के जरा, इस गांव मे नये लगते हो कभी देखा नहीं आपको?

डॉ. असलम :- ज़ी मौलवी साहेब मै कल ही ठाकुर साहेब के साथ रामनिवास के घर आया था, तैयारी के लिए 2  दिन रुक गया. सोचा अल्लाह का शुक्रिया अदा कर दू मेरी मुराद पूरी करने के लिए.

और अपने बारे मे बताते है.

मौलवी :- अच्छा अच्छा तो आप ही है डॉ. असलम भई काफ़ी नाम सुना है आपका और ठाकुर ज़ालिम सिंह ज़ी का.

आप आस पास के गांव मे एकलौते डॉक्टर है.

डॉ. असलम :- अरे मौलवी साहेब अब इतनी भी तारीफ के काबिल नहीं है हम. झेम्प जाते है थोड़ा तारीफ सुन के.

मौलवी और डॉ. असलम बात करते करते गांव कि और लौट रहे थे.

बातचीत करते हुए असलम को मालूम पड़ता है कि उनकी एक विधवा बेटी है जिसकी पति को डाकुओ ने मार डाला था.

असलम ये जान के दुखी होते है...

बात करते करते गांव आ जाता है.

असलम रामनिवास के घर आ जाते है और नाश्ते केिये कामवती को आवाज़ देते है..

कामवती कामवती....लाओ नाश्ता ले आओ भूख लगी है.

इधर मौलवी साहेब भी अपने घर पहुंचते है जहाँ रुखसाना खाना बना रही थी.

अपने बापू को आता देख उनके लिए नाश्ता निकलती है....

मौलवी :- अरी ये नाश्ता छोड़ और मेरी बात सुन, अपने गांव कि कामवती का रिश्ता पक्का हो गया है. अगले मंगलवार को उसकी शादी है. यहाँ पे ठाकुर ज़ालिम सिंह कादोस्त दो दिन के लिए रुझान हुआ है.

डॉ. असलम ज्ञानी पुरुष है हमें इसका भी वीर्य चाहिए होगा काम पूरा करने के लिए.

रुखसाना :- बापू पिछली बार ही तो मै रंगा बिल्ला का ताज़ा वीर्य लाइ थी.

मौलवी :- हाँ बेटा लेकिन जो हमें करना है उसके लिए ताकत के साथ अक्ल भी चाहिए, ताकत तो रंगा बिल्ला और अन्य पुरुषो से मिल जाएगी परन्तु दिमाग़ डॉ. असलम के पास से ही मिलेगा.

पिछला मंगलवार....

रुखसाना रंगा बिल्ला से चुद कर वापस घर आई थी तो उसकी गांड मे दोनों का ढेर सारा वीर्य भरा था, वोअपने बापू के  कमरे मे घुसते ही जल्दी से एक कटोरा ढूंढती है और अपनी सलवार तुरंत नीचे खिसका के कटोरे पे बैठ जाती है.

वो अपनी गांड के छेद को थोड़ा ढीला छोड़ती है उतने मे ही पुररर.... पुररर.... फस फस... कर के वीर्य कि धार निकल पड़ती है. कटोरे मे वीर्य जमा होने लगता है.

मौलवी :- वाह बेटी आज तो बहुत सारा वीर्य लाइ है.

रुखसाना :- हाँ बापू आज दोनों का खेल सुबह तक चला. ऐसा कह मुस्कुरा देती है.

वीर्य ख़त्म हो चूका था बचाखुचा वीर्य वो अपनी गांड मे एक ऊँगली डाल के बाहर निकलती है और कटोरे के किनारे पे ऊँगली रगड़ के एक एक बून्द कटोरे मे गिरा देती है

रुखसाना :- लीजिये बापू भर दिया है कटोरा मैंने, अपना सलवार ऊपर कर नाड़ा बांधती हुई बोलती है.

मौलवी तुरंत उस कटोरे को उठा उसमे कुछ मन्त्र पढ़ने लगता है, और कटोरे पे फूंकता है

ऐसा दो तीन बार करता है और कटोरा रुखसाना कि तरफ बड़ा देता है ले बेटी इसे एक सांस मे पूरा पी जा.

इस से तुझे वो ताकत मिलेगी जो तुझे चाहिए....तुझे तेरे मकसद मे सफल होने के लिए ताकत कि जरुरत है.

रुखसाना बिना कुछ कहे कटोरा उठा अपने होंठो से लगा लेती है और गाटागट एक ही सांस मे हलक के नीचे उतार लेती है.

आअह्ह्ह.... मजा  आगया बापू मुझे शक्ति ताकत का संचार होता लग रहा है. वैसे भी रुखसाना को वीर्य पसंद था.


वर्तमान मे आज के दिन

मौलवी :- समझी मेरी बच्ची हमें ताकत के साथ अक्ल भी चाहिए जो कि असलम से मिलेगा.

रुखसाना :- ठीक है बापू मै उसका वीर्य भी हासिल कर लुंगी....

ये किस ताकत, किस मकसद कि बात हो रही थी?

रुखसाना को अलग अलग मर्दो का वीर्य क्यों चाहिए था?

सब वक़्त ही जनता था...


रामनिवास के घर पे असलम कि आवाज़ का कोई उत्तर नहीं आता तो वो रसोई घर कि और चल पड़ता है.

रसोई घर मे भी कोई नहीं था.

डॉ. असलम :- कहाँ गई ये कामवती? वो रतीवती को आवाज़ देने का सोचता है.. रतीवती का ख्याल आते ही उसे क रात कि घटना याद आ जाती है... जो हुआ कैसे हुआ? कुछ नहीं पता.

लेकिन सुबह रतीवती के चेहरे पे कोई शिकायत नहीं थी. लगता है जिस आग मे मै तड़प रहा हूँ रतीवती भी उसी मे तड़प रही है.

असलम का सोचना ठीक ही था.

रतीवती अपनेबाथरूम मे पुरे कपडे उतार पूर्ण रूप से नंगी बैठी कल रात कि घटना याद कर रही थी, फचा फच अपनी चुत मे ऊँगली मार रही थी..... क्या लंड है असलम ज़ी का.

चूसने मे इतना मजा आया था, चुत मे कैसा मजा आएगा. फच फच... ऊँगली लगातार चुत चोदे जा रही थी.... रतीवती गांड उठा उठा के कल्पना मे खोई हुई थी..

इधर असलम रतीवती के कमरे कि और चल पड़ता है, दरवाजे के बाहर आ के आवाज़ देता है लेकिन कोई उत्तर नहीं मिलता वो दरवाजा खटखटाने का सोच के जैसे ही दरवाजे को हाथ लगाता है वो चरररर.... कि आवाज़ के साथ खुल जाता है.

अंदर बाथरूम मे रतीवती काम उत्तेजना, हवस मे इस कदर  खोई थी कि उसे कोई आहट सुनाई नहीं देती.

कमरे से लगे बाथरूम मे दरवाजे कि जगह सिर्फ पर्दा था, वैसे भी दरवाजे कि जरुरत ही क्या थी कमरा रतीवती का था चाहे जैसे रहे कौन देखने वाला है..

असलम को बाथरूम से फच फच.... सिसकारी कि आवाज़ आ रही थी... आअह्ह्ह..... फच फच.... असलम

डॉ. असलम :- ये तो रतीवती को आवाज़ है और ये मेरा नाम क्यों ले रही है? कही कुछ तकलीफ तो नहीं?

अब असलम क्या जाने गरम और कामुक औरत कि आवाज़.

असलम उत्सुकता वंश बाथरूम कि ओर बढ़ चलता है.

तभी कही से हवा का झोका आता है ओर पर्दा हल्का सा नीचे से हट जाता है.

अंदर का नजारा देख असलम के तोते उड़ जाते है, एक झटके मे ही लंड फनफना जाता है, असलम का लंड इतनी तेज़ झटका देता है कि वो गिरतर गिरते बचते है..

अंदर का नजारा ही ऐसा था... काम रस मे भीगी गोरी चिकनी चुत... जिस पे बालो का एक भी कटरा नहीं था...

या.... अल्लाह चुत ऐसी भी होती है.

असलम को दिल का दौरा पड़ जाना तय था जीवन मे वो पहली बार चुत देख रहे थे.

कल रात सिर्फ मुख चोदन हुआ था परन्तु अँधेरे मे कुछ दिखा नहीं था... लेकिन आज असलम ने वो देख लिया था जो शायद उसकी किस्मत मे ही नहीं था.

अंदर रतीवती फचा फच चुत मे ऊँगली मार रही थी.


ऐसा कामुक ऐसा मादक नजारा देख असलम के मुँह से जोरदार चीख रुपी हवस कि चिंगारी निकल जाती है... उनका लंड फटने पे आतुर था.... वो लुंगी उतार फेंकते है

अंदर रतीवती भी मर्दना सिसकारी सुन के चौक जाती है

तभी पर्दा उड़ता है.... ओर दोनों एक दूसरे के सामने पेपर्दा हो जाते है.


रतीवती पर्दा हटने से चौक जाती है लेकिन जैसे ही सामने असलम को खड़ा देखती है उसका डर उत्तेजना मे तब्दील हो जाता है, उठने को हो चुकी रतीवती धम से वापस बैठ जाती है.... छापक कर के गांड पानी मे पड़ती है.

वापस से ऊँगली अन्दर बाहर होने लगती है. रतीवती मुस्कुराती असलम के तन तानाये लंड को घूरति रहती है जो उसकी कल्पना मे था वो सामने आ चूका था नियति पूरी तरह मेहरबान थी दोनों पर.

डॉ. असलम तो ये नजारा, ये कामुक दृश्य देख के दंग रह गये थे उनके सामने एक जवानी के चरम पे पहुंची औरत धकाधक अपनी चुत मे ऊँगली मारे जा रही थी....

औरत का ये रूप ये यौवन ऐसी कामुकता देख के असलम हैराम थे. हाथो मे चूड़ी, गले मे मंगलसूत्र, माथे पे बिंदी... ओर नीचे पानी बाहती चिकनी गोरी चुत... जिसमे खुद वो स्त्री खुद ऊँगली डाले कुछ ढूंढ रही थी... रातीवति अपनी चुत मे सुख ढूंढ रही थी, आनन्द ढूंढ़ रही थी जो बरसो से नहीं मिला था, उसे चरम सुख कि तलाश थी जो ऊँगली से ढूंढे नहीं मिल रहा था..... इस चरम सुख को तलाश करने का एक ही सहारा था जो परदे के पार मुस्लिम टोपी, गंजी पहने... नीचे से नंगा हैरान खड़ा था.

असलम ये सब कुछ पहली बार देख रहा था.... उसके कदम बाथरूम कि ओर बढ़ चलते है, सुध बुध खो चूका था.

उसे कल रात वाला सुख चाहिए था... उस से कम मे कोई समझौता नहीं.

रतीवती तो इस कदर उत्तेजना से घिरी थी कि उसे ये भी भान नहीं था कि वो किस अवस्था मे है वो जिस चीज को अपनी चुत मे ऊँगली डाले तलाश कर रही थी वो बाहर खड़ा था... असलम के रूप मे.

असलम अब अंदर बिल्कुल नीचे बैठी रतीवती के सामने खड़ा हो चूका था... उसका लंड सीधा रतीवती के लाल होंठो के सामने हिल रहा था.

उस से निकलती गंध रतीवती को ओर ज्यादा मदहोश कर देती है.

वो अपने घुटने के बल बैठ जाती है ओर एक बार मे ही पूरा लंड निगल लेती है.... आअह्ह्ह..... इस अहसास से असलम अपने पंजो पे खड़ा हो जाता है.

कल रात जैसा ही था या उस से भी बढकर.

असलम हैरान परेशान रतीवती कि कला का प्रदर्शन देखे जा रहा था... आज रतीवती को कोई रोकने वाला नहीं था.

लप लप... धचा धच.... मुँह चलाती रतीवती लंड को निगले जा रही थी...

ऐसी चटाई ऐसे मुख मैथुन से  असलम घन घना गये थे... उन्हें आज कुछ ओर चाहिए था इस से भी ज्यादा.

उन्हें भी औरत कि चुत का रस पीना था...

असलम एक झटके से रतीवती को पीछे धक्का दे देते है... रतीवती चिहुक के पीछे कि ओर पीठ के बल गिर पड़ती है जिसकारण उसकी टांगे हवा मेउठ जाती है, टांगे दोनों दिशाओ मे फ़ैल जाती है.... अब असलम के सामने फूली हुई रस टपकाती चिकनी गोरी चुत थी जो उसे बुला रही थी... आओ असलम आओ.... आपके लिए ही है.

मदहोशी मे होश खोया असलम तुरंत चुत पे टूट पड़ता है ओर एक बार मे ही पूरी चुत को मुँह मे भर के चूस लेता है.

असलम अनाड़ी था उसे कामक्रीड़ा के बारे मे कुछ नहीं पता था, बस उसे आज चुत खानी थी अंदर का रस पी जाना था..

असलम चुत को मुँह मे भरे चूस रहा था अपने होंठो के साथ खिंचता हुआ अंदर से कुछ निकाल लेना चाहता था.... खींच खींच के चुत चूस रहा था.

रतीवती इस चुसाई से सातवे आसमान मे थी.... ऐसी चुसाई तो कभी रामनिवास ने भी नहीं कि थी.

वैसे रामनिवास चुत चाटता भी नहीं था वो तो कभी रतीवती बेकाबू होती तो नशे कि हालत मे सोये रामनिवास के मुँह पे अपनी नंगी चुत ले के चढ़ जाती थी..

अपनी चुत पे वो शराब गिरा लेती जिस वजह से रामनिवास खूब चाटाचट चुत चाट लेता था.. बस यही सुख ले पति थी रतीवती अपने नामर्द शराबी पति से.

लेकिन आज जैसे असलम चाट रहा था जैसे बरसो का भूखा हो, खा ही जायेगा चुत....

इतने मे असलम को चुत का दाना मिल जाता है वो उसे ही मुँह मे ले के चुबलाने लगता है.... रतीवती इस हमले से मर ही जाती है अपनी गांड उठा उठा के पटकने लगती है गीली जमीन पे, असलम बरसो कि प्यास बुझा रहा था उसे चुत का पानी चाहिए था... फिर कभी मिले या ना मिले आज ही पी लेना था.

रतीवती कि हालत ख़राब थी उसे ऐसा उन्माद कभी नहीं चढ़ा था. उसकी हालत बिगड़ती ही जा रही थी.

वोअसलम के सीने पे पैर रख जोर से धक्का दे के जमीन पे गिरा देती है ओर तुरंत असलम का लंड पकड़ के वापस अपने हलक मे डाल लेती है.

ये कुश्ती का खेल जैसा था बस यहाँ नियम थोड़े अलग थे, हारता कोई भी लेकिन जीत का जश्न दोनों मनाते.

यहाँ हार जीत मायने नहीं रखती थी ये खेल था ही कुछ ऐसा, हवस से भरा खेल....

डॉ. असलम ऐसा कामुक बदन, कामुक मुँह पा के पागल हो चूका था वो जानवरो कि तरह रतीवती का सर पकडे धका धक... गले तक़ पेले जा रहा था.

गु गुह.. गुह्म.... कि आवाज़ गूंज रही थी, टट्टे जोर जोर से आ के रतीवती के होंठ पे लग रहे थे.

रतीवती एकदम से खड़ी हो जाती है उसे सहन नहीं हो  रहा था वो तुरंत बाथरूम के गीली जमीन पे लेट जाती है बिल्कुल नंगी टांग फैलाये टप टपाती चुत खोले जमीन पे पड़ी थी...

असलम रतीवती के इस कृत्य से हैरान था कि उसे क्या हुआ एकदम,  परन्तु जैसे ही उसकी नजर रतीवती कि फूली चुत पे पड़ती है उसका तो दिल ही मुँह को आ जाता है. बिल्कुल कसी चुत टांग फैलाये भी सिर्फ लकीर दिख रही थी.

इसी पगडंडी पे असलम को खुदाई करनी थी, यही पे उसे चौड़ा रास्ता बनाना था

थूक से स्तन सने हुए थे, हाथो मे चूड़ी मांग मे सिंदूर पहने.... एक कामुक औरत पानी से भीगी जमीन पे टांग फैलाये अपना सर इधर उधर पटक रही थी.

रतीवती :- असलम ज़ी अब सहन नहीं होता प्यास बुझाइये मेरी, पहली बार रतीवती मुँह से कुछ बोल पाई थी, उत्तेजना चरम पे थी.

असलम अपनी शर्ट उतार देता है रतीवती टांगे फैलाये स्वागत के लिए तैयार थी

असलम रतीवती कि दोनों जांघो के बीच बैठ जाता है ओर अपना लंड उस पतली लकीर पे चलाने लगता है, यही वो पतला महीन रास्ता था तो आज तक कभी असलम को मिल ही नहीं पाया.

असलम लंड चुत पे टिकाये आगे को झुकता है लेकिन चुत इतनी गीली थी कि लंड फिसल के दाने को रगड़ता ऊपर को निकल जाता है. ऊपर से असलम ठहरा अनाड़ी इसके लिए तो ये सुख ही स्वर्ग से कम नहीं था... परन्तु रतीवती स्वर्ग कि अप्सरा थी वो तो इस सुख का आनंद जानती थी.

वो अपना हाथ नीचे ले जा के असलम का भारी मोटा लंड पकड़ लेती है, लंड पकड़ते ही एक बिजली दोनों के शरीर मे कोंध जाती है..

रतीवती लंड पकड़ के अपने चुत के मुहने पे रख देती है ओर पीछे से अपनी टांग से असलम कि गांड पे दबाव डालती है कि.... है वीर भेद तो लक्ष्य तुम्हरे सामने है.

असलम ठहरा अनाड़ी जोर से अपनी गांड नीचे को कर देता है.... आअह्ह्ह....... लंड चुत को चिरता हुआ पूरा जड़ तक समा जाता है. असली योद्धा एक बार मे ही लक्ष्य को भेद देते है असलम भी असली लड़ाका निकला.

रतीवती दर्द से बिलबिला जाती है, उसकी बरसो से सुखी चुत मे अजगर समा गया था. उसे क्या पता था कि असलम एक बार मे ही गच गचा देगा.

रतीवती कि चीख अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि असलम लंड हल्का सा बाहर निकाल के वापस जड़ तक ठोंक देता है.

रतीवती कि तो सांस ही अटक गई थी... ऐसा मुसल लंड एक बार मे ही अंदर जा के बच्चेदानी को भेद गया था.

आअह्ह्ह.... असलम... असलममम... बस यही निकला मुँह से.

असलम तो जानवर बन गया था उसे ये सब पहली बार मिला था उसे कुछ नहीं कहना था ना सुनना था.... बस धचा धच... धचा धच..... चुत मारे जा रहा था, उसे इस सम्भोग का आनंद उठा लेना था.

रतीवती पहली बार ऐसी चुदाई झेल रही थी उसकी चुत ने असलम के लंड को पूरी तरह जकड लिया था, जैसे ही असलम लंड को बाहर निकलता चुत उसी के साथ खींची चली जाती, जैसे ही अंदर डालता चुत पूरी कि पूरी अंदर को चली जाती ...

आअह्ह्ह..... क्या मजा था रतिवती उस मजे मे खोने लगी थी. आह्हः.... असलम ओर जोर से असलम ओर जोर से.... ओर अंदर ओर अंदर...

रतीवती कि ये विनती ये चितकार असलम का हौसला बढ़ा रही थी असलन एक पैर घुटने तक मोड के रतीवती के स्तन पे रख देता है ओर दे धचा धच .... लंड मारे जाता है.

रतीवती तो मरने के कगार पे थी.... उसे अब ये उत्तेजना ये गर्मी सहन नहीं हो पा रही थी... वो अपनी गांड उछल उछाल के असलम के लंड पे पटकने लगती है.

नतीजा 5 मिनट बाद ही सामने  आता है असलम चुत कि गर्मी पा के भलभला के चुत मे ही झड़ने लगता है अनाड़ी जो ठहरा.... रतीवती भी वीर्य कि गर्मी पा के पिघलने लगी ओर एक के बाद एक झटके के साथ उसकी चुत असलम के वीर्य को पीने लगी....

दोनों हांफ रहे थे, सांसे दुरुस्त कर रहे थे.... दोनों एक साथ जीते थे, ये जीत हवस पे थी. सालो बाद कि हवस बरसो पुराना अकाल खत्म हो चूका था, वीर्य कि बारिश से चुत रुपी जमीन लहरा गई थी, चमन मे नई बहार आ गई थी.

इतने मे ही कमरे केबाहर से कामवती कि आवाज़ अति है.आवाज़ सुन के असलम जल्दी से खड़ा होता है पोक कि आवाज़ का साथ असलम का लंड रतीवती कि चुत खिंचता हुआ बाहर निकल जाता है परन्तु ये क्या वीर्य का कोई नामोनिशान नहीं.... सारा वीर्य रतीवती कि चुत ने सोख लिया था,

गजब औरत थी.... असलम को तो दिन पर दिन आश्चर्य घेरे जा रहा था, औरत नाम का अध्याय उसे हैरान कर रहा था.

कमवती : - माँ माँ... कहाँ है आप? अभी तक नहाई नहीं क्या?

रतीवती असलम को पीछे के दरवाजे से बाहर निकाल देती है, असलम गली से होता हुआ अपने कमरे मे पहुंच जाता है.

उसे तो कुछ कहने सुनने का मौका ही नहीं मिला था.... वो अभी अभी हुए सम्भोग पे यकीन ही नहीं कर पा रहा था.

इधर रतीवती तुरंत अपना हुलिया सुधारती है ओर दरवाज़ा खोल देती है.

कामवती :-माँ खरीदारी पे नहीं चलना क्या?

रतीवती :- हाँ बेटा चलते है पहले डॉ. असलम को खाना तो खा लेने दे, तू जा तब तक तैयार हो जा...

कामवती चली जाती है तैयार होने.

रतीवती भी खूब अच्छे से लाल सारी, लाल चूड़ी, लाल सिदुर पहने तैयार हो जाती है,  शादी इसकी बेटी कि है लेकिन लगता है जैसे रतीवती कि ही शादी है, अब भले शादी ना हो परन्तु सुहागरात तो मन ही रही थी.

रतीवती को देख के कोई माई का लाल ये नहीं बता सकता था कि ये अभी अभी चीख चीख के चुद रही थी ओर अभी भी असलम का वीर्य अपनी चुत मे समेटे गांड मटकाती जा रही है.

रतीवती असलम को खाना देने चल पड़ती है....

असलम अपनी ही दुनिया मे खोया अपने साथ हुए घटना को सोच रहा था.... तभी उसके नाथूनो मे वही जानी पहचानी कामुक गंध पहुँचती है, वो अपने विचारों से बाहर आता है.... दरवाजे पे रतीवती खड़ी थी...

लगता था इन दो दिनों मे असलम को मार के ही छोड़ेगी, लाल ब्लाउज, लाल साड़ी मे क्या गजब कामुक लग रही थी, ब्लाउज से झाकते गोरे मोटे स्तन वापस से असलम के होश उड़ा रहे थे

वो अभी अभी इस कामुक औरत के चोद के हटा था फिर भी ऐसा लग रहा था जैसे पहली बार देख रह हो .... ये अहसास पक्का असलम कि जान ले लेगा  ..... जिन्दा नहीं जाने का असलम.

रतीवती :- ये लीजिये असलम ज़ी खाना खा लीजिये, भूख लगी होंगी मैंने आपसे खमाखां सुबह सुबह मेहनत करा ली....

अब असलम को औरत कि संगत का अनुभव तो था नहीं

असलम :-...मै.. मै....क्या.....मेहनत    कौनसी मेहनत?

रतीवती :- आप तो ऐसे हकला रहे है जैसे पहली बार किसी औरत के साथ सम्भोग किया हो.

रतीवती पूरी तरह खुल चुकी थी वो अब शब्दों से भी सुख पाना चाहती थी परन्तु अपने असलम मियां इन मामलो मे अनाड़ी ही थे..

डॉ. असलम:- ज़ी ज़ी ज़ी.... मेरा पहली बार ही है...

रतीवती :- हाहाहाहा..... क्या असलम मियां आप भी.

चलिए खाना खा के तैयार हो जाइये खरीदी पे चलना है. उसके बाद फिर रात मे खड्डा खोदना है

ऐसा बोल के रतीवती अपनी बड़ी सी गांड मटकाती कमरे से बाहर निकल जाती है.


असलम ठगा सा देखता ही रह जाता है, क्या औरत है किसी ने सही कहाँ है औरत हवस पे आ जाये तो मर्द के छक्के छुड़ा दे...


कथा जारी रहेगी, बने रहिये....

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