शाम ढल चुकी थी, और शादी का घर चमक-दमक से सजा हुआ था। आंगन में लेडीज़ संगीत की धूम मची थी—ढोलक की थाप, औरतों की हँसी, और गीतों की मादकता ने माहौल को रंगीन कर रखा था।
भारतीय समाज मे शादी के वक़्त अश्लील गाने गए जाते है ये सामान्य बात है,
बच्चे इधर-उधर दौड़ रहे थे, और मेरी माँ रेशमा, मामी आरती, मौसी कामिनी और दीदी अनुश्री अपनी खूबसूरती से हर किसी का ध्यान खींच रही थीं।
मेरी घर की औरते गजब खूबसूरती की मालकिन थी, ये बात तो माननी पड़ेगी.
माँ की लाल साड़ी में उनका गोरा, चिकना जिस्म ऐसा चमक रहा था जैसे चाँदनी में कोई अप्सरा उतर आई हो। उनके भारी, सुडौल स्तन तंग स्लीवलेस ब्लाउज में कैद थे, और उनकी गहरी नाभि और मोटी जाँघें साड़ी के नीचे से हल्के-हल्के झाँक रही थीं। उनकी चूड़ियों की खनक, माथे की लाल बिंदी, और कानों में झूलती बालियाँ उनकी मादकता को और बढ़ा रही थीं।
अनुश्री भी कम नहीं थी—उसकी काली लहंगा-चोली में उसकी पतली कमर और गोरी, गोल गांड हर किसी को तड़पा रही थी।
ऊपर हमारे कमरे में दारू पार्टी की तैयारी पूरी हो चुकी थी। प्रवीण और मोहित दारू लेने निकल गए थे, और जीजा मंगेश और अनुश्री बरामदे में बैठे कुछ बातें कर रहे थे। लेकिन अनुश्री का ध्यान अपनी बातों में नहीं था। उसकी आँखें बार-बार किसी को ढूँढ रही थीं।
“अबे अमित, यहाँ क्या खड़ा है? चल, कोल्ड्रिंक्स और चखना लेने चलना है,” आदिल की आवाज़ ने मेरा ध्यान भंग किया। मैंने देखा, आदिल के आने से अनुश्री के चेहरे पर एक शरारती मुस्कान खिल उठी। दोनों के बीच स्माइल का आदान-प्रदान हुआ, और मेरे दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा। “साला, ये क्या चक्कर है? कहीं गड़बड़ तो नहीं?” मैंने मन ही मन सोचा।
अनुश्री का लहंगा-चोली इतना टाइट था कि उसके भारी स्तन बाहर को झाँक रहे थे। तभी वो कुछ उठाने के लिए झुकी, और उसके स्तन लगभग बाहर कूद आए। आदिल की नज़रें वहीं चिपक गईं। अनुश्री ने उठते हुए आदिल को देखकर एक मादक मुस्कान दी, और मेरे दिमाग ने चेतावनी देनी शुरू कर दी। “मामला गड़बड़ है,” मैंने सोचा।
तभी मामा की आवाज़ गूँजी, “रेशमा, ओ रेशमा! कहाँ हो तुम? इधर आओ!”
मैं और आदिल मामा की तरफ खिंचे चले गए। मामा अकेले नहीं थे—उनके साथ एक हट्टा-कट्टा, मोटा, काला-सा आदमी खड़ा था।
“जजी… भैया, आई!” माँ की मादक आवाज़ आई, और वो साड़ी संभालती, बलखाती हुई कमरे से निकली। क्या गजब ढा रही थी मेरी माँ! लाल साड़ी, स्लीवलेस ब्लाउज, माथे पर लाल बिंदी, और हाथों में चूड़ियों की खनक। उनके उन्नत, सुडौल स्तन ब्लाउज में कैद थे, लेकिन उनकी मादकता छुपाए नहीं छुप रही थी। उनका गोरा जिस्म लाल कपड़ों में ऐसा चमक रहा था जैसे कोई रेशम की मूर्ति हो। मैं, उनका सगा बेटा, भी उनकी खूबसूरती का कायल हो गया। आदिल की तो आँखें फटी की फटी रह गईं।
“हाँ, भैया, बोलिए…” माँ ने कानों में बाली पहनते हुए कहा।
लेकिन जैसे ही उनकी नज़र मामा के साथ खड़े आदमी पर पड़ी, उनकी साँसें थम गईं। उनके पैर वहीं जम गए, और उनके गोरे चेहरे पर पसीने की लकीरें उभर आईं।
“इनसे मिलो, ये मेरा खास दोस्त, अजीज मित्र पटनायक है। यहाँ का दरोगा नियुक्त है,” मामा ने परिचय कराया।
आदिल के चेहरे पर भी हवाइयाँ उड़ने लगीं। उसने कसकर मेरा हाथ पकड़ लिया। “अ… अमित… चल… च.. चल … चल यहाँ से, हम लोगों का यहाँ क्या काम?” उसने हड़बड़ाते हुए कहा।
मैंने उसका हाथ छुड़ाया, लेकिन मेरे दिमाग में तूफान उठ रहा था। “रुक तो, चलते हैं,” मैंने कहा, लेकिन मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
“नमस्ते, रेशमा जी,” पटनायक ने एक चालाक, और कामुक मुस्कान के साथ कहा। उसकी बीवी, जो साथ थी, उसने भी नमस्ते बोला।
“न… नमस्ते नमस्ते भाईसाब, ना...न... नमस्ते बहनजी ,” माँ के गले से टूटे-फूटे शब्द निकले। उनका चेहरा सफेद पड़ गया था, और ऐसा लग रहा था जैसे वो बेहोश हो जाएँगी।
पटनायक की आँखों में एक अलग ही चमक थी, जैसे कोई भूखा भेड़िया अपने सामने हिरणी के नाजुक मांस को देख रहा हो। “कैसी हैं आप?” उसने पूछा, और उसके चेहरे पर वही अजीब-सी स्माइल थी।
"कुछ तो गड़बड़ है, इस आदमी को कहीं तो देखा है " मैंने दिमाग पर जोर डाला, और अचानक सब कुछ साफ हो गया। “ओह गॉड… ये… ये वही पुलिस वाला है!” वो रात, जब माँ और आदिल अनुश्री को लेने स्टेशन गए थे। मैंने वो वीडियो देखा था—माँ कार में पटनायक का 10 इंच का मोटा, काला लंड चूस रही थी, और वो भी इतनी बखूबी और लालच से कि उसकी मादकता आज भी मेरे दिमाग में थी। मेरे जिस्म में झटका-सा लगा। मेरा कलेजा भी मुँह को आ गया था, मेरी माँ की बेइज़ती मतलब मेरी फाजिहत.
“क्या अब माँ का खेल खत्म?” मैंने सोचा। कहीं मामा को सब पता न चल जाए!
“चल ना, अमित…” आदिल ने फिर से मेरा हाथ खींचा, और इस बार मैंने आनाकानी नहीं की। मैं समझ गया था कि माँ और आदिल के होश क्यों उड़े हुए थे।.
हम दोनों वहाँ से निकल गए, मैं किसी बुजदिल की तरह माँ को उस दरिंदे के सामने अकेला छोड़ आया था,
वैसे भी पटनायक के हाव भाव से लग रहा था वो मामा को कुछ बताने वाला नहीं है.
लेडीज़ संगीत देर रात तक चला। माँ ने जैसे-तैसे खुद को संभाला, माँ जब भी महिलाओ से साथ नाचती, पटनायक की नजरें माँ के उछलते जिस्म को घूरने लगती.
पटनायक मामा जी के साथ दूर बालकनी मे बैठा था, जहाँ दो चार और बूढ़े बैठे थे.
लेकिन माँ की नजरें भी बार-बार पटनायक की ओर जा रही थीं।
मैं आंगन में खड़ा था, और मेरी नज़रें माँ पर टिकी थीं। उनकी लाल साड़ी में उनकी गोरी त्वचा चाँदनी में चमक रही थी। उनका हर हाव-भाव, उनकी बलखाती कमर, और उनके भारी स्तनों का उभार मुझे बेचैन कर रहा था। मैं उनका बेटा था, लेकिन उनकी मादकता मुझे बार-बार अपनी ओर खींच रही थी।
मेरी नजरें पटनायक पर भी थी, वो भी बार बार मेरी माँ को आहे भर के देख ले रहा था, मुझे ये माहौल कुछ ठीक नहीं लग रहा था, लग रहा था जैसे कुछ अनहोनी होने वाली है.
तभी मैंने देखा, माँ की उंगलियाँ साड़ी के पल्लू को बार-बार ठीक कर रही थीं, जैसे वो अपनी बेचैनी को छुपाने की कोशिश कर रही हों। उनकी साँसें तेज़ थीं, और उनकी आँखों में एक अजीब-सी तड़प थी—डर और वासना का मिश्रण।
मैंने देखा, माँ की जाँघें हल्के-हल्के रगड़ रही थीं, जैसे उनकी चूत में कोई गर्म लावा उबल रहा हो। उनकी साँसें इतनी भारी थीं कि उनका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था। वो बार-बार अपने होंठ चबा रही थीं, और उनकी आँखें पटनायक की ओर चोरी-छुपे जा रही थीं। मैं समझ गया—वो उस रात की यादों में खोई थीं, जब उन्होंने पटनायक का लंड चूसा था। किरोड़ी की नाकामी ने उनकी वासना को और भड़का दिया था। उनकी चूत की गर्मी उनके चेहरे पर साफ झलक रही थी।
खेर मैंने सभी बातो को इग्नोर किया, माँ को उसकी बेचैनी के साथ वही छोड़ मैं अपने रूम मे जा बैठा, जहाँ दारू की महफिल जम चुकी थी.
मेरे आने तक मेरे जीजा टुल भी हो चुके थे, आदिल, अब्दुल, प्रवीण और मोहित सब मस्त थे.
उनके बीच कुछ बात चल रही थी जो की मेरे आते ही ख़ामोशी मे बदल गई.
"हरामी जरूर मेरी माँ बहन के बारे मे ही बात कर रहे होंगे " मैं भी उनके बीच जा बैठा.
आदिल ने एक पैग मेरे लिए भी बना दिया.
एक के बाद एक पेग लगने शुरू हुए.
"अरे यार पेशाब आ रहा है मैं आता हूँ " आदिल ने पेशाब मा इशारा किया और बिना किसी की तरफ देखे बाहर निकल गया.
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अब तक रात के 12 बज चुके थे। बाहर से आने वाले गाने बजाने का शोर थम गया था, संगीत का कार्यक्रम शायद खत्म हो गया था, आंगन में सन्नाटा पसर गया था।
नीचे से रह रह कर कुछ महिलाओ के हसी ठिठोली की आवाज़ आ रही थी.
"थक गए भाभी आज तो, सोने चलते है अब " कुछ महिलाओ की चूडियो और पायल की आवाज़ ऊपर की तरफ आ रही थी, मेहमानों को कमरे इसी फ्लोर पर दिए गए थे,
मैं कमरे में जीजा, प्रवीण, मोहित, और अब्दुल के साथ दारू पी रहा था। दारू का नशा हल्का-हल्का चढ़ रहा था, लेकिन मेरा मन अभी भी माँ और पटनायक की मुलाकात में उलझा था।
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नीचे सभी महिलाये अपने अपने कमरे की ओर निकल गई थी,
"भाभी ये ढोलक वगैरह स्टोर मे रख आइये ना " आरती ने रेशमा को कहा.
"ठीक है भाभी रख देती हूँ "
रेशमा ने ढोलक, मंजिरे उठाये और घर के अहाते मे बने स्टोर रूम की ओर चल दी.
रात की चांदनी चारो तरफ फैली हुई थी, रेशमा का मादक जिस्म चाँद की रौशनी पा कर और चमक उठा था.
रेशमा ने स्टोर का दरवाजा खोला, और समान उठाने के लिए झुकी ही थी "क्या रेशमा जी कोई मदद कर दू "
पीछे से आई खार्खरती आवाज़ ने रेशमा के वजूद को हिला कर रख दिया, उसका कामुक चेहरा सफ़ेद पढ़ गया, शायद वो इस आवाज़ के मालिक को जानती थी.
वो झट से सीधी खड़ी हुई, पलटी.... उसका शक सही निकला.
"अअअ... आआप.... यहाँ म.. कक.... क्यों? माँ के हलक मे शब्द फसने लगे थे.
"हाँ मैं पटनायक, यहाँ का दरोगा, आपके भाई का दोस्त, आपको तो अच्छे से याद होगा मैं कौन हूँ?" पटनायक ने एक जाहिल वासना से भारी मुस्कान थी, उसकी नजरें रेशमा के जिस्म पर चल रही थी, एक एक काटव को नाप रही थी.
"अअअ... अअअ... याद है " रेशमा ने धीरे से फुसफुसाया..
"क्या याद है,. मैं या ये..." पटनायक ने बेशर्मी के साथ अपने खड़े लंड को पैंट के ऊपर से मसल दिया.
"इस्स्स.... रेशमा की नज़रे उसकी हरकत पे ही थी, उसकी हलक से एक ठंडी आह निकल गई,
उसके बदन ने एक जोरदार बिजली की लहर दौड़ पड़ी.
उसे वो पल याद आ गया जब वो किसी रंडी की तरह उसके लंड को चूस रही थी, उसके टट्टो को चाट रही थी.
"मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा तेरे से इतनी जल्दी मुलाक़ात जो जाएगी " पटनायक रेशमा की ओर बढ़ा.
"ररर... रुको...." रेशमा असहाय हालात मे थी उसका जिस्म मे आग सी लगी थी, पटनायक का पैंट मे बना मोटा उभार उसे मजबूर कर रहा था, लेकिन एक अनजाने डर ने उसके जिस्म को जकड रखा था.
पटनायक रेशमा के बिल्कुल करीब आ गया, इतना की उसकी गंदी सांसे माँ की खुसबूदार साँसो से टकराने लगी.
पटनायक माँ को धकेलता स्टोर रूम मे ले गया, ढ़ोल मंजिरें वही दरवाजे पर ओधे मुँह पड़े थे.
रेशमा को तो जैसे कोई होश ही नहीं था, सुबह से जलता उसका जिस्म अब कोई जवाब नहीं दे रहा था, लेकिन चुत का पानी लगातार रिस रहा था.
स्टोर रूम मे हलकी सी रौशनी थी, एक मरियल बल्ब पूरी ताकत के साथ जल रहा था.
"उस दिन तूने जो मजा मुझे दिया, वैसे मुझे आज तक कभी नहीं मिला " पटनायक ने रेशमा के लाल होंठो को अपने गंदे काले हाथो से छुवा.
"ईईस्स्स.... आअह्ह्ह.....hhhmmmm" माँ सिसकर उठी, जिस्म कांप उठा.
मर्दाने कड़क हाथ थे पटनायक के.
"वापस नहीं देगी ऐसा मजा "
"माँ के चेहरा ना मे हिल गया, आंखे पटनायक को देखने लगी, इस निगाह मे डर, वासना सब कुछ शामिल थी.
पटनायक मे अपने अंगूठे का दबाव माँ के लाल होंठो पर बढ़ाया, पुक्क... कककक... से होंठ खुल गए, उसका अंगूठा मोटी जैसे सफ़ेद दांतो से टकरा गया.
रेशमा का जिस्म पटनायक और दिवार के बीच दबा हुआ था,
न जाने क्यों रेशमा ने अपने मुँह को खोल दिया.
"आआहहहह..... इसससस..." पटनायक का गन्दा अंगूठा माँ के कामुक मुँह मे समा गया.
माँ ने उसे तुरंत अपने होंठो मे भींच लिया, जीभ अंदर ही अंदर चलने लगी.
पटनायक का अंगूठा थूक से गिला हो चूका था.
"वाह तु तो एकदम रंडी की तरह है रे, मुझे तो पता ही नहीं था मेरे दोस्त की बहन इतनी प्यासी है "
रेशमा कुछ न बोली बस उसके अंगूठे को चूसते हुए आंखे बंद कर ली.
अभी रेशमा और चूसती की पटनायक ने अंगूठे को बाहर निकाल दिया.
"असली चीज ये नहीं है रेशमा ये है " पटनायक रेशमा से दूर हटा और एक झटके मे पैंट को नीचे सरका दिया.
तूफानी भयानक लंड रेशमा के सामने नाचने लगा.
रेशमा की सांसे टंग गई, उसके जिस्म ने बगावत कर दी, मन मे आया की भाग के जाये और मुँह मे भर ले, ठूस ले अपनी चुत मे.
लेकिन स्त्री सुलभ मर्यादा ने उसे रोक लिया.
"इसे चूसते है, चूसेगी न, जैसे उस दिन चूसा था " पटनायक ने रेशमा के थूक से सने अपने अंगूठे को लंड पर रगड़ दिया.
जैसे ललचा रहा हो,
रेशमा का जिस्म वासना से कांप रहा था, जाँघे हिल रही थी, सारा जिस्म पसीने से भर गया था.
उसकी गर्दन हाँ मे हिल गई.
"तो फिर उतार साड़ी कपडे, तेरी जैसे औरत को पूरा नंगा देखने का मन है ".
रेशमा शर्मा गई, उसने सर नीचे झुका लिया, कभी उसके पति ने भी उसे नंगा होने को नहीं कहाँ था.
"जल्दी कर, रात भर यही रहेगी क्या " पटनायक ने फटकारा.
असर तुरंत हुआ, रेशमा ने पल्लू सरका दिया.
उसका कामुक जिस्म ब्लाउज और पेटीकोट मे कयामत लग रहा था, जैसे कोई अप्सरा आ कर खड़ी हो गई हो.
उधर हम लोगो की पार्टी पुरे शबाब पर थी, मुझे भी पेशाब की ज़ोरदार तलब लगी।,
" साला आदिल अभी तक मूत के आया नहीं वापस, तु भी जा रहा है " प्रवीण ने कहा
"भेज दूंगा दिखा तो वो " मैं उठा और घर के पीछे की ओर चला पड़ा, जहाँ बाथरूम था, आदिल मुझे कहीं नहीं दिखा.
मैं पेशाब कर के वापस जाने को हुआ ही था की, मेरी नजर स्टोर रूम के बाहर पड़े ढ़ोल नागाड़े पर पड़ी, दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था.
"इसे यहाँ कौन छोड़ गया, अंदर रख देता हूँ " मैं जैसे ही पास गया मुझे कुछ अजीब-सी आवाज़ें सुनाई दीं—किसी की साँसों की आवाज़, हल्की-सी फुसफुसाहट, और कपड़ों की सरसराहट। मैं वही दरवाजे पर ठिठक गया।
मुझे कुछ गड़बड़ की आशंका ने घेर लिया, मैंने दरवाजे की दरार से झाँका।
अंदर का नजारा देखते ही मेरी सांसे रुक गई, लग रहा था दिल फट पड़ेगा यही पर, सारा नाश एक बार मे ही उतर गया.
अंदर बल्ब की पिली रौशनी मे मेरी माँ रेशमा बिल्कुल नंगी दिवार के सहारे खड़ी थी, और उनके सामने पटनायक अपने मोटे काले लंड को सहला रहा था.
"वाह रंडी क्या जिस्म है तेरा एक एक काटव को तराशा हुआ है " पटनायक हवास मे गुर्रा रहा था.
मेरी माँ की साड़ी, ब्लाउज, और चड्डी फर्श पर बिखरी पड़ी थीं। उनका गोरा, चिकना जिस्म पिली रौशनी में चमक रहा था, उनकी मोटी जाँघें, गहरी नाभि, और भारी, गोल स्तन स्टोर रूम की हल्की रौशनी में रेशम-सी चमक रहे थे। उनकी साँसें इतनी भारी थीं कि उनका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था,
हर सांस के साथ स्तनों के बीच लटका मंगलसूत्र भी उछल रहा था, हाथो मे लाल चूड़ी, माथे पर लाल बिंदी माँ के गोरे जिस्म मे चार चाँद लगा रही थी.
उनकी आँखों में डर और वासना का एक अजीब-सा मिश्रण था।मेरे होश उड़ गए।
मेरी माँ… मेरी माँ रेशमा… वो पूरी तरह नंगी थी, और पटनायक के सामने अपनी मादक देह की नुमाइश कर रही थीं। उनकी चूत से अतिउत्तेजना में सफ़ेद रस निकल रहा था, जो उनकी जाँघों पर बहने लगा था। वो चाहकर भी इसे नहीं रोक पा रही थीं। उनकी उंगलियाँ काँप रही थीं, और उनका चेहरा पसीने से भीग गया था। उनकी साँसें इतनी तेज़ थीं कि स्टोर रूम में उनकी गूँज सुनाई दे रही थी।
“देखो, मेरे दोस्त की बहन ऐसी रंडी निकलेगी, मुझे यकीन नहीं हो रहा,” पटनायक ने क्रूरता से कहा, उसकी आवाज़ में एक तंज था।
माँ की आँखें शर्म और डर से भर गईं। “प्लीज़… प्लीज़… ऐसा मत बोलो,” माँ ने अपनी चूत और स्तनों को छुपाने की कोशिश करते हुए कहा, लेकिन उनकी आवाज़ काँप रही थी। उनकी उंगलियाँ उनकी चूत को ढकने की कोशिश कर रही थीं,
लेकिन उनकी चूत का रस उनकी जाँघों पर बह रहा था, और उनकी साँसें कराहों में बदल रही थीं—“उफ्फ…”
“हाथ हटा, और अच्छे से दिखा रंडी!” पटनायक ने हड़काया। “उस दिन तो मेरा लंड कुतिया जैसे चट रही थी। ऐसा जिस्म देखने का अधिकार है मेरा!” उसकी आवाज़ में एक मर्दाना रोब था,
माँ की साँसें और तेज़ हो गईं। पटनायक के इस क्रूर और मर्दाना बर्ताव से माँ की चूत बंद और खुलने लगी। “पच…”—उनकी चूत से एक सफ़ेद रस की धार निकलकर उनकी जाँघों पर तैर गई।
माँ का जिस्म हवस में जल रहा था, जैसे मोमबत्ती गर्मी से पिघलती है।
माँ की चूत पटनायक के लंड की लालच में पिघल रही थी।मैं दरवाजे के बाहर खड़ा था, और मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था।
मेरी माँ… उनकी नंगी देह… उनकी चूत का रस… उनकी साँसें… सब कुछ मेरे सामने था। मैं उनका बेटा था, लेकिन उनकी मादकता मुझे पागल कर रही थी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी माँ इस कदर हवस में पागल हो सकती हैं।
मेरा लंड पैंट में तन गया, लेकिन मेरा मन गुस्से, उलझन, और वासना के तूफान में डूब गया।
पटनायक का 10 इंच का मोटा, काला लंड माँ के सामने था। माँ की नजरें उसे ही घूर रही थी, जैसे नाप तोल रही हो, अंदर जायेगा भी या नहीं.
"क्या देख रही है रंडी " पटनायक ने लंड की चमड़ी को पीछे खिंचते हुए कहाँ.
माँ की साँसें और तेज़ हो गईं, जाँघें काँप उठी “पटनायक जी… ये… ये बहुत बड़ा है,” उन्होंने हकलाते हुए कहा, माँ की दुविधा ने शब्दों का रूप ले लिया था.
“हाँ, बिल्कुल बड़ा है, और ये तुम्हारी जैसी चुलबुली, प्यासी चूत के लिए ही बना है, चल अब पीछे को पलट जा।
माँ ने तुरंत आज्ञा का पालन किया और दिवार की तरफ मुँह कर के गांड को पीछे की ओर खोल दिया.
"आअह्ह्ह.... रेशमा क्या गांड है तेरी " पटनायक के कदम रेशमा के पास आ गए, इतने की उसकी गर्म सांसे माँ के कंधे पे महसूस होने लगी.
"इस्स्स......" माँ की बड़ी सुडोल गांड पर पटनायक का खड़ा लंड फिसलने लगा,
"आअह्ह्हम्म्म... पटनायक जी " माँ तड़प उठी.
उसने अपनी गांड को हिला कर लंड को सही दिशा देने की कोशिश की.
पटनायक ने अपने गंदे होंठो को माँ की गर्दन पर रख दिया, पसीने से तर गर्दन चूस डाली, जीभ निकाल के चाट ली.
"ईईस्स्स... आअह्ह्ह... पटनायक " माँ का पूरा वजूद कांप गया.
"डालो..." माँ धीरे से फुसफुसाई अब उसके सहन के बाहर की बात थी.
पटनायक ने भी देर न करते हुए माँ की गांड की दरार मे लंड का दबाव बनाना शुरू किया, लेकिन वहाँ चिकनाहट ज्यादा थी और जगह बहुत छोटी, लंड चुत से फिसलता हुआ गांड के छेद को छेड़ता हुआ कमर पर जा लगा.
"आअह्ह्ह..... माँ सिसक उठी.
"चुत तो बहुत तंग है रे तेरी " पटनायक ने अपने लंड को हाथ से लकड़ माँ की चुत पर टिका दिया
माँ भी अति उत्तेजना मे थी, उसने भी गांड को पीछे की एयर झटका दिया,
क्रिया की प्रतिक्रिया हुई. धचकककककक.....
"आआआआहहहह..... इस्स्स... उउउफ्फ्फ... मर गई " पटनायक का भीमकाय लंड माँ की चुत मे सरसराता आधा घुस गया.
माँ चीख उठी, “आह्ह… उफ्फ… प्लीज़… धीरे…” उनकी साँसें अब इतनी भारी थीं कि उनका पूरा जिस्म काँप रहा था। आज बहुत सालों बाद माँ की चूत में किसी का लंड घुसा था। हालांकि किरोड़ी के लंड ने भी ये शानदार अहसास पाया था, फिर भी पटनायक का लंड इस कदर बड़ा और मोटा था कि वो माँ की चूत की दीवारों को घिसता हुआ, उसे चौड़ा करता हुआ अंदर समा गया।
पटनायक रुका नहीं वापस कमर को पीछे किया और धचककककम्म्म्म..... से पूरा लंड मेरी माँ की चुत मे समा गया.
चुत इतनी गीली थी की, पटनायक का मोटा लंड माँ की चुत की दीवारों को चिरता हुआ पूरा का पूरा अंदर जा धसा, उसके मोटे भारी टट्टे चुत के दाने से जा टकराये.
माँ किसी कुंवारी की तरह हुंकार उठी—“आह्ह… हाय… पटनायक जी…” ऐसा लगा जैसे उनका पेट पटनायक के लंड से भर गया हो।
मैं, जहाँ से पैदा हुआ था, उस बच्चेदानी तक पटनायक का लंड दस्तक दे रहा था।पटनायक ने धीरे से अपनी कमर को आगे बढ़ाया, और उसका मोटा लंड माँ की तंग, गीली चूत में सरसराता हुआ पूरा अंदर चला गया। माँ की चीख निकल गई—“आह्ह… उफ्फ…” उनकी साँसें अब कराहों में बदल गई थीं।
धच... धवह... धच... धच... पच... पच.... अब सब्र की तो बात थी ही नहीं, पटनायक का लंड अंदर बाहर चलने लगा, टट्टे टप टप की आवाज़ के साथ टकराने लगे.
"आअह्ह्हम्म्म..... उफ्फ्फ... आउच के साथ माँ करहने लगी, पटनायक के धक्को ने माँ के पुरे जिस्म को हिला कर रख दिया था,
माँ का इन धक्को को संभाल पाना मुश्किल होता जा रहा था, पटनायक मे पीछे से माँ के उन्नत स्तनों को कस के भींच लिया.
और टप टप टप.... फच. फच... पच. पच... के साथ ते धक्के मारने लगा,
माँ किसी कुतिया की तरह गर्दन ऊपर किये हुंकार रही थी, सिसक रही थी.
10 मिनिट माँ इसी पोजीशन मे धचा धच चुदती रही, मैं पटनायक की ताकत को देख हैरान था, कोई बिना रुके एक ही गति से लगातार कैसे चोद सकता है.
न जाने मेरी माँ की चूत का क्या हाल हुआ होगा.
तभी पटनायक ने माँ के बाल पकड़ उसे जमीन पर नीचे लेता दिया, और बिना देर किये माँ की जांघो के बीच जा बैठा, मुझे माँ रेशमा की चुत की एक झलक दिखाई दी, माँ की चुत पूरी तरह से खुल गई थी, पूरी गीली थी, जाँघे तक चिपचिपी हो गई थी.
धचम्म्म्म.... फचम... से बिना देर किये पटनायक ने वापस अपने लंड को पूरा चुत मे ठूस दिया.
अतिउत्तेजना में माँ के हाथ पटनायक की पीठ पर कस गए। उनकी उंगलियाँ उसकी काली चमड़ी में धँस गईं, और उनके नाखूनों ने उसकी पीठ पर गहरी लकीरें बना दीं। इस चुभन ने पटनायक को और उग्र कर दिया। उसने एक बार में पूरा लंड बाहर खींचा और—“धचम…”—पूरा लंड वापस माँ की चूत में दे मारा।
माँ के नाखून पटनायक की पीठ पर एक लकीर बनाते हुए नीचे को चल पड़े। उनकी गर्दन पीछे को झुक गई, और वो किसी भेड़िया की तरह हुंकार उठी—“आह्ह… उफ्फ… पटनायक…”
मेरा जिस्म पसीने से भीग रहा था। मेरी माँ… उनकी नंगी देह… उनकी सिसकारियाँ… उनकी चूत का रस… सब कुछ मेरे सामने था। उनकी गोरी त्वचा चाँदनी में चमक रही थी, और उनकी मोटी गांड हर धक्के के साथ हवा में लहरा रही थी, जाँघे हर धक्के से कांप रही थी.

मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी माँ इस कदर हवस में पागल हो सकती हैं। उनकी हुंकार, उनकी चीखें, और उनकी चूत की गर्मी मेरे दिमाग में आग लगा रही थी। मेरा लंड पैंट में तन गया, और मेरा मन गुस्से, उलझन, और वासना के तूफान में डूब गया।
अंदर पटनायक ने अपनी रफ्तार बढ़ा दी, और हर धक्के के साथ माँ की चूत और गीली होती गई। उनकी मोटी जाँघें काँप रही थीं, और उनके भारी स्तन हवा में उछल रहे थे।
“रेशमा… तुम्हारी चूत… हाय, ये तो जन्नत है,” पटनायक ने कराहते हुए कहा। माँ के स्तन हर धक्के से उछल रहे थे, पटनायक से ये कामुक दृश्य देखा नहीं गया, उसने अपने मुँह को माँ के निपल्स पर रखा और उन्हें चूसने लगा।
माँ की सिसकारियाँ अब और तेज़ हो गईं—“उफ्फ… आह्ह… पटनायक जी… और… और चूसो…”
पटनायक के हौसले बढ़ते जा रहे थे। “रेशमा… तुम्हारी ये गांड… ये चूत… मैं इन्हें आज रात नहीं छोड़ूँगा,” उसने कहा और अपनी रफ्तार और बढ़ा दी।
माँ की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं—“आह्ह… पटनायक… उफ्फ… मेरी चूत… हाय…” उनकी चूत की गर्मी अब चरम पर थी, और उनका जिस्म पसीने से भीग चुका था। चाँदनी रौशनी में उनकी गोरी त्वचा चमक रही थी, और उनकी मोटी जाँघें और भारी स्तन हर धक्के के साथ उछल रहे थे।पटनायक ने अपने एक हाथ को माँ की चूत पर ले जाकर उनकी फूली हुई क्लिट को हल्के से रगड़ा, और माँ का पूरा जिस्म काँप उठा।
“आह्ह… पटनायक… ये… ये क्या कर रहे हो… उफ्फ…” उनकी सिसकारी अब इतनी तेज़ थी कि स्टोर रूम की दीवारें गूँज रही थीं।
मेरी साँसें भी तेज़ हो रही थीं। मेरी माँ की चीखें, उनकी नंगी देह, और उनकी वासना मेरे दिमाग में आग लगा रही थी। मैं उनका बेटा था, लेकिन उनकी मादकता ने मुझे बेकाबू कर दिया था।
पटनायक ने अब माँ को पलट दिया, माँ की गांड अब पटनायक के सामने थी, उसने माँ की जाँघें फैलाईं और अपने लंड को फिर से उनकी चूत में डाल दिया पीछे से
“रेशमा… तुम्हारी चूत की गर्मी… मैं इसे आज रात बुझा दूँगा,” उसने कहा और ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने लगा।
हर धक्के से माँ की गोल सुडोल गांड आपस मे टकरा रही थी,
माँ की सिसकारियाँ अब चीखों में बदल गई थीं—“आह्ह… पटनायक… हाय… मेरी चूत… फाड़ दो इसे…” उनका जिस्म पसीने और चूत के रस से सन चुका था, और उनकी चूत का रस ज़मीन पर टपक रहा था।
पटनायक का लंड माँ की चूत को बार-बार भेद रहा था, उसने माँ की गांड को अपनी सख्त हथेली मे दबोच के जोरदार धक्के लगाने शुरू कर दिए, उसकी ताकत माँ को पागल कर रही थी।
“पटनायक… तुम्हारा लंड… हाय, ये… ये मुझे मार डालेगा,” माँ ने कराहते हुए कहा। उनकी चूत अब चरम पर थी, और उनका जिस्म एक ज़ोरदार झटके के साथ काँप उठा।
उनकी चूत ने रस की बौछार छोड़ दी, हमफ़्फ़्फ़.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़... पटनायक मैं मर जाउंगी, अब नहीं "
माबके जिस्म की सारी गर्मी उसकी चुत के रास्ते जमीन पर बह गई थी.
माँ की हालात देख पटनायक ने भी अपनी रफ्तार बढ़ा दी, और कुछ ही पलों में उसका लंड माँ की चूत में झटके मारने लगा। उसका गर्म वीर्य माँ की चूत में भर गया,
और वो हाँफते हुए माँ के बगल में लेट गया। माँ की साँसें अभी भी भारी थीं, और उनका जिस्म पसीने और रस से चमक रहा था। उनकी आँखों में एक तृप्ति थी, लेकिन साथ ही एक अजीब-सा खालीपन भी। किरोड़ी की नाकामी के बाद पटनायक ने उनकी प्यास बुझा दी थी, लेकिन उनका मन अभी भी उलझन में था।
“रेशमा जी… तुम जैसी औरत… मैंने पहले नहीं देखी,” पटनायक ने हाँफते हुए कहा। माँ ने कुछ नहीं कहा।
वो फर्श से उठी और कपडे पहनने लगी,
"अगली बार तेरी गांड फाड़ूंगा " पटनायक ने जैसे धमकी दी हो.
माँ सिर्फ मुस्कुरा दी और ब्लाउज के बटन लगाने लगी.
मेरे लिए कुछ बचा नहीं था अब यहाँ, पूरा नशा ख़राब हो ही चूका था,
मैंने जेब टटोली सिगरेट रखी थी, मैंने बगीचे की तरह कदम बढ़ा दिए जहाँ पेड़ था, मेरे दिमाग़ मे उथल पुथल मची हुई थी.
लंड खड़ा था, लेकिन दिल बैठ गया था.
Contd.....
2 Comments
Waah ...kya update diya hain bhai...
ReplyDeletenext part bhi update karo bhai...
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