अपडेट -35
शराब का नशा सभी के सर चढ़ के बोल रहा था, रामनिवास तो जीत कि खुशी मे ज्यादा ही धुत्त हो चला.
सत्तू :- रामनिवास भाई ऐसा क्या जादू है आपके पास कि जीतते ही जा रहे हो. सत्तू कि निगाह रतिवती पे ही टिकी हुई थी
"जादू" शब्द बोल के उसका धयान रतिवती के बहार झाँकते स्तन पे ही था.
रतिवती खुद जानबूझ के इस तरह बैठी थी कि उसकी चुचुईया आधे से ज्यादा बहार झाँक रही थी.
पैसे और वासना कि गर्मी से रतिवती का बदन भी जलने लगा.
उस्ताद :- दिखता नहीं क्या सत्तू तुझे कितने बड़े बड़े दो जादू है रामनिवास के पास, उस्ताद ने भी रतिवती कि गहरी खाई मे गोता लगाते हुए कहा. वो रतिवती कि निगाह को पहचान रहा था.
रतिवती उन सब कि बातो को भलीभांति समझ रही थी आखिर थी तो वो मझी हुई खिलाडी ही.
उसकी नजर भी उस्ताद और सत्तू के पाजामे से होती हुई झुक गई उसके होंठो पे एक अजीब सी मुस्कान तैर गई थी.
एक बाजी और हुई.....उस्ताद ये दाँव भी हार गया तीनो के चेहरे बुरी तरह उतर गए.
इधर रामनिवास और रतिवती के ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था.
"हाहाहाहाहा......देखा भाग्यवन कहा था ना मैंने किस्मत अपने साथ है देखो हम सब जीत गए " रामनिवास दारू के नशे मे झूम उठा,
उठने को हुआ ही था कि नशे कि अधिकता से वापस पलंग पे गिर पड़ा.
बस यही वो मौका था जिसकी योजना सत्तू ने बनाई थी समय आ गया था योजना को अमलीजमा पहनाने का.
सत्तू रुआसा सा मुँह बना के " क्या रामनिवास तुमने तो हमें नंगा ही कर दिया "
रामनिवास :- क्या करे भाई खेल ही ऐसा है कोई जीतता है तो कोई हारता है.
रामनिवास का कोई ध्यान नहीं था उनकी तरफ वो सिर्फ नोटों के बंडल को देख रहा था.
रतिवती तो इस कदर खुश थी कि उसे अपने कपड़ो का भी ध्यान नहीं था,वो इतने सारे पैसे देख बावरी हो गई थी उसके बदन से साड़ी का पल्लू सरक के जमीन चाट रहा था
तीनो कि निगाह रतिवती के बड़े और उन्नत स्तनों पे ही टिकी हुई थी जिसकी गहरी खाई तीनो को ललचा रही थी.
कि तभी "एक दाँव और हो जाये रामनिवास " उस्ताद ने रतिवती और रामनिवास कि ख़ुशी मे बांधा डालते हुए कहा
रामनिवास :- हाहाहाहा....उस्ताद अब क्या लगाईगे दाँव पे अपनी लंगोट? रामनिवास घमंड और नशे मे चूर बोल रहा था
उसे आज ऐसा अनुभव हो रहा था कि साक्षात् भगवान भी उसके साथ जुआ खेल ले तो हार जाये.
उस्ताद :- रामनिवास सब तो तुम जीत चुके हो हमारा, दाँव पर इस बार हम अपनी गुलामी लगाते है.
ये दाँव तुम जीते तो हम तीनो ताउम्र तुम्हारे गुलाम रहेंगे और यदि हम जीते तो सारे पैसे हमारे होंगे जो भी तुम जीते हो बोलो मंजूर?
उस्ताद,करतार और सत्तू अपने जीवन का आखिरी दाँव खेल रहे थे.
रामनिवास ने एक बार रतिवती कि तरफ देखा,रतिवती कि लालची आँखों मे हाँ थी.
रतिवती को तो सोने पे सुहागा नजर आ रहा था पैसो के साथ उसे तीन तीन मुस्तडे गुलाम भी मील रहे थे जिनके साथ वो अपनी प्यास बुझा सकती थी. उसे अब रामनिवास की कोई जरूरत नहीं थी, वो सिर्फ ये आखरी दाँव जीत लेना चाहती थी.
रामनिवास :- अरे भाई नेकी और पूछ पूछ, मुझे मंजूर है तुम एक बार फिर सोच लो
उस्ताद:- सोचना क्या रामनिवास या तो जीत या फिर गुलामी
उस्ताद और सत्तू खुद को लाचार दिखा रहे थे जिससे कि वह अपने जीवन ही हार गए हो.
इस बार सत्तू ने पत्ते पिसे और उस्ताद और रामनिवास के बीच बट गए.
रामनिवास और रतिवती बेफिक्र थे उन्हें पता था आज किस्मत उनके साथ है वही जीतेंगे.
रामनिवास :- अभी भी सोच लो उस्ताद आखिरी वक़्त है पत्ते एक बार उठा लिए तो फिर खेल नहीं रुकेगा.
उस्ताद :- सोचना क्या है मित्र आज से तुम्हारी गुलामी भी मंजूर है,बोलते हुए उस्ताद ने पत्ते पलट दिये 3-3-3.
"हाहाहाहाहा......रामनिवास जोरो से हॅस पड़ा,क्या उस्ताद ये भी गया तुम्हारा तो.
रामनिवास इतना ज्यादा आत्मविश्वस मे था कि खुद के पत्ते देखे बिना ही अपनी जीत मान बैठा था.
उस्ताद :- अपने पत्ते तो दिखा दो रामनिवास अभी हारा नहीं हू मै.
रामनिवास ने पहला पत्ता पलटा "एक्का..." रतिवती तो खुशी से उछल ही पड़ी,जीत कि खुशी और तीन मुस्तडे गुलामो कि ललक ने उसकी चुत से पानी टपका दिया था.
उसकी खुशी का अंदाजा लगाना मुश्किल था.
भगवान जब देता है छप्पर फाड़ के ही देता है.
सामने बैठे करतार,उस्ताद पसीने पसीने हो चले थे.
दोनों ने सत्तू कि तरफ देखा जैसे पूछना चाह रहे हो "ये क्या कर दिया तूने? यही प्लान था तेरा?
सत्तू सिर्फ मुस्कुरा दिया " रामनिवास अगला पत्ता तो दिखाओ?"
रामनिवास :- देखना क्या है, मै ही जीत...जी...जी.....बोलते हुए रामनिवास ने पत्ता उलट दिया...साथ ही उसके हलक मे जबान अटक गई.
दूसरा पत्ता दुक्की था, रामनिवास के हाथ कंपने लगे,आखिरी पत्ते पलटने मे उसे जोर आ रहा था जैसे पहाड़ से भी भारी हो वो पत्ता.
अब तो खेल से भागा भी नहीं जा सकता था,
रतिवती कि हसीं भी गायब हो गई थी.
सत्तू :- क्या हुआ रामनिवास पलटो पत्ता?
रामनिवास ने कंपते हाथो से पत्ता धीरे से पलटा,उससे पत्ते का बोझ तक नहीं उठाया जा रहा था.
आखिर रामनिवास ने पत्ता पलट ही दिया...जैसे ही पत्ता पलटा कि रामनिवास और रतिवती कि किस्मत भी पलट गई.
"हाहाहाःहाहा.......रामनिवास मै जीता " उस्ताद खुशी के मारे उछल पड़ा सामने एक्का,दुक्की और पंजा था.
रामनिवास तो जैसे मर ही गया उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वो अपना सारा पैसा एक बार मे ही हार गया.
चंद लम्हे पहले कि बाते उसे याद आने लगी "ये तो खेल है कोई जीतता है तो कोई हारता है "
वो इतना लालची कैसे हो गया था.
उस्ताद :- सो सुनार कि एक लुहार कि क्यों भाभी जी?
उस्ताद ने रतिवती कि तरफ देखते हुए कहा,
कहाँ रतिवती खुशी से फूली नहीं समा रही थी कहा अब उसकी आँखों मे आँसू थे.
मात्र थोड़े से लालच ने उनके सारे पैसे छीन लिए थे.
"अरे भाभीजी आप रोती क्यों है? एक मौका ओर देते है हम आपको " सत्तू लगभग रतिवती के पास जा बैठा.
रतिवती जो कि अभी तक सुन्दर काम वासनामयी स्वप्न मे डूबी हुई थी,एक पल मे ही उसके सारे सपने चकनाचूर हो चुके थे.
उसके चालक दिमाग़ ने काम.करना ही बंद कर दिया था.
"सब कुछ तो ले चुके हो तुम,अब कुछ नहीं है दाँव लगाने को सुबुक सुबुक....." रतिवती सुबूकते हुए सत्तू कि ओर देखते हुए बोली.
उस्ताद :- अभी तो बहुत कुछ है,क्यों रामनिवास? बात रामनिवास से कर रहा था लेकिन नजरें रतिवती के जिस्म पे ही टिकी हुई थी.
सत्तू :- जैसे हमने खुद को दाँव पे लगाया था,वैसे ही तुम दोनों खुद को दाँव पे लगा सकते हो.
उस्ताद कि बात सुन दोनों के पैरो तले जमीन खिसक गई.
"ये...ये....क्या बोल रहे हो तुम?हमें नहीं खेलना " रामनिवास हार से बिलबिलाया हुआ था
सत्तू :- सोच लो भाभीजी पूरा पैसा और हमारी गुलामी दाँव पे रहेगी
रामनिवास :- नहीं....नहीं....हमें.....
"क्या नहीं नहीं......सब तुम्हारी गलती है जब जीत रहे थे तब ही मान जाते, बिना पैसे के जीने से अच्छा है इनके गुलाम ही बन जाये.
रतिवती तुनक कर खड़ी हो गई और एकाएक रामनिवास पे बरस पड़ी.
" क्या जरुरत थी मुझे विषरूप से लाने कि, लालची हो तुम भुगतो अब, हम तैयार है लेकिन ये आखिरी दाँव होगा "
रतिवती ने गुस्से और बेबसी मे हाँ तो भर दि थी.
लेकिन वो नहीं जानती थी इसका अंजाम बहुत बुरा होने वाला है.,इन सब मे वो ये बात तक भूल गई थी कि इस दौलत से कीमती भी एक चीज अभी भी उसके पास ही है
"नागमणि "
पत्ते वापस से बाटे जाने लगे एक आखिरी दाँव के लिए...
इधर रात के सन्नाटे को चिरता चोर मंगूस भी अपनी मंजिल कि और बढ़ा जा रहा था,उसे हर हालात मे नागमणि चाहिए थी.
तो क्या रतिवती खुद को गुलामी से बचा पायेगी?
समय रहते मंगूस रतिवती के घर पहुंच पाएगा?
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विषरूप पुलिस चौकी मे
"बहदुर ओ बहादुर इधर आ" इंस्पेक्टर काम्या अपने केबिन मे बैठी दाँत पीस रही थी चेहरा गुस्से से लाल था
बहादुर :- जी मैडम
काम्या :- मैडम के बच्चे,ठाकुर को अगवा हुए 3 घंटे बीत गए अभी तक क्या झक मार रहा है? कोई खबर?
बहादुर :- मममममम....मैडम...मैडम...वो...वो......
काम्या :- क्या बकरी कि तरह मिमिया रहा है किसी काम का नहीं है तू
कि तभी "चरररर.......करता केबिन का दरवाजा खुलता चला गया "
"मैडम....मैडम....काम्या "
काम्या :- क्यों गला फाड़ रहा है रामलखन अब क्या आफत आ गई.
हवलदार रामलखन हैरान बोखलाया हुआ अंदर दाखिल हो चूका था.
रामलखान :- मैडम....वो..वो....रंगा बिल्ला का पता चल गया है
काम्या :- क्या...क्या....अरे वाह....ये तो तूने लाख रूपए कि बात कही
काम्या अपनी कुर्सी से उछल पड़ी परन्तु उसके चेहरे पे अभी भी गुस्से के ही भाव थे,जैसे कि किसी शेरनी के सामने शिकार रखा हो."कहाँ है वो दोनों हरामखोर?"
रामलखन :- लललल....लेकिन मैडम...
"क्या लेकिन,और ये तेरे चेहरे पे हवाइया क्यों उडी हुई है?" काम्या ने पूछा
रामलखन :- मैडम वो काली पहाड़ी के अपने पुराने अड्डे कि ओर गए है
काम्या :- तो चलो हम भी चलते है,इसमें क्या बात है?
रामलखन :- मैडम वो इलाका बहुत खतरनाक है ऊपर से रात मे वहाँ जाना मौत को दावत देने के बराबर है
वो उनका इलाका है,उनकी इज़ाज़त के बिना वहाँ पंछी भी पर नहीं मारते.
बहादुर कि तो घिघी ही बंध गई थी रामलखन के मुँह से काली पहाड़ी का नाम सुन के
काम्या :- हाहाहाहा.....बस इतनी सी बात,उनकी मौत तो मै साबित होउंगी आज
थाने मे जो भी आदमी है,हथियार है सब ले लो,हम अभी चलेंगे,
बहदुर :- मममम....मैडम सुबह चलते है ना,बहादुर लगभग कंपता हुआ बोला लगता था जैसे अभी पैंट मे ही मूत देगा
रामलखन :- बहादुर सही कह रहा है मैडम
काम्या :- कैसे मर्द हो तुम लोग मै औरत हो के नहीं डर रही तुम लोगो का मूत निकले जा रहा है.
बदुके ले लो जो दिखे सीधा दाग़ देना.
और तू....काम्या बहादुर कि तरफ घूमी "तू सच मे मर्द ही है या कुछ और " बस नाम बहादुर रख लिया है हिजड़ा कही का
काम्या ने बहादुर को दुत्कार दिया "तू यही बैठ थाने ताली पीट हम लोग हो के आते है,चल रामलखन
"आज उन दो डाकुओ का आतंक ही ख़त्म कर दूंगी "
काम्या रामलखन और 3और हवलदारों के साथ जीप मे बैठ काली पहाड़ी कि ओर चल पड़ी.
पीछे रह गया बहादुर डरा सहमा सा लेकिन आज उसके दिन मे एक तूफान सा मचा हुआ था,जैसे किसी ने जोरदार तमाचा मारा हो,उसए हिजड़े कि संज्ञा दे गई थी काम्या
बहादुर वही कुर्सी पे धाराशयी हो के हाफने लगा,वाकई डरपोक था बहादुर.
सभी अपनी अपनी मंजिल को निकल तो चुके थर लेकिन कामयाबी से दूर थे.
काम्या और मंगूस अपनी अपनी मंजिल के करीब ही थे
परन्तु
गांव कामगंज मे तीनो ठगों ने अपनी मंजिल पा ली थी.
आखरी दाँव के लिए पत्ते बट चुके थे.
पत्ते पलटते ही रामनिवास ने माथा पीट लिया "हे भगवान....ये क्या हुआ?"
हाहाहाहाहाबा......रामनिवास आज से तू और तेरी सुन्दर बीवी हमारी हुई हाहाहाहा
तीनो हॅस रहे थे
सामने बेबस और लाचार रतिवती और रामनिवास मुँह लटकाये बैठे थे,किस्मत ने क्या करवट बदली थी एक लालच उनका सब कुछ ले डूबा था.
उस्ताद :- चल बे छिनाल आ जा हमारी सेवा मे
उस्ताद के मुँह से ये शब्द सुनते है रतिवती हक्की बक्की सी उन तीनो कि ओर देखने लगी,हालांकि उसे इस बात कि पूरी उम्मीद थी कि यही होना है.
सत्तू :- सुना नहीं तूने उस्ताद ने क्या कहाँ?
सत्तू एकाएक चिल्लाया, अभी कुछ समय पहके तीनो किसी सज्जन से कम नहीं लग रहे थे ये अचानक क्या हुआ
रतिवती सोच मे ही थी कि
"सालो ठगों....तुमने बेईमानी कि हमारे साथ " रामनिवास गुस्सै से उस्ताद कि ओर दौड़ पड़ा
कि तभी....तड़ाकककककक......एक जोरदार झापड़ उसके गाल पे पड़ा.
करतार :- साले मालिक का गिरेबान पकड़ने कि कोशिश करता है
करतार के मजबूत हाथो का एक चाटा पड़ते ही रामनिवास रतिवती के बाजु मे ओंधे मुँह जा गिरा.
इस एक झापड़ से ही सभी को सबकुछ समझ आ गया था..
रतिवती का दिल धाड़.धाड़ कर धड़क रहा था,उसे भी सम्भोग सुख चाहिए था लेकिन ऐसे नहीं, ख़ुशी से इत्मीनान से.
लेकिन उसका पैसा,घर,जमीन तो सब जुए मे हार गई थी बचा था तो उसका यौवन,उसका कसा हुआ कामुक बदन जो कि किसी भी वक़्त लूट सकता था.
"मालिक....मालिक....मेरे पति को बक्श तो सब कुछ तो ले ही चुके आप लोग " रतिवती उस्ताद के पैरो मे लौट गई
उसकी ये आखरी कोशिश थी.
करतार :- साली अभी कहाँ सब कुछ लूटा है अभी तो तू बाकि है हेहेहेहे....
करतार ने गन्दी हसीं हसते हुए अपने इरादे उजागर कर दिये.
रतिवती के नीचे झुकने से उसके साड़ी का पल्लू कबका धूल चाट रहा था,उन तीनो बदमाशो के सामने एक दिलकश नजारा था,ये वही नजारा था जिसे वो कुछ देर पहले छुप छुप के देख रहे थे परन्तु अब उनका हक़ था इसपे.
रतिवती क स्तन पसीने कि बूंदो से भीगे हुए थे
रतिवती को
जैसे ही इस बात का आभास हुआ उनकी नजरों का उसने तुरंत से अपने पल्लू को सीधा करना चाहा,
परन्तु रास्ते मे उसके हाथो को सत्तू ने थम लिया " अरे भाभाजी अब क्या फायदा अभी थोड़ी देर पहले तो खुद ही उछल उछल के दिखा रही थी हमें,अब तो ये हमारे है "
सत्तू कि बात सुन रतिवती ने धीरे से गर्दन घुमा के पीछे रामनिवास कि तरफ देखा, वही तो एक हया थी,वही तो शर्म थी कि पति के सामने कैसे,आज तक जो भी किया रामनिवास के पीठ पीछे किया.
रामनिवास भी आश्चर्य कि निगाहो से कभी रतिवती को देखता तो कभी उन तीन ठगों को
उस्ताद :- देख क्या रहा है भड़वे ऐसी कामुक औरत तेरे बस कि बात नहीं,आज तक तू कुछ कर भी पाया है?
उस्ताद लगातर काटक्ष कर रहा था.
"इसकी भरी जवानी संभालना तेरे बस का नहीं है बेटा रामनिवास " उस्ताद ने बोलते हुए अपने पाजामे का नाड़ा खोल दिया
पजामा सरसराता पैरो मे इक्क्ठा हो चला और सामने एक कल भुजंग 10" लम्बा और रामनिवास कि कलाई जीतना लंड उजागर हो गया..
सामने फर्श पे बैठे रतिवती और रामनिवास कि आंखे चौड़ी होती चली गई.
रामनिवास ने आज तक ऐसे दृश्य कि कल्पना भी नहीं कि थी परन्तु रतिवती तो पहले से ही काम अग्नि मे जल रही थी उसकी तो कमजोरी ही यही थी,अपने मुँह के सामने ऐसे भयानक लंड को देख उसके पुरे बदन पे सेकड़ो चीटिया रेंगने लगी.
जांघो के बीच कुछ लसलसा सा चुने लगा,
फिर भी रतिवती कुछ डरी सहमी सी बैठी थी,या फिर रामनिवास के सामने नाटक कर रही थी.उसकी निगाहेँ नीची हो गई
उस्ताद :- साली अब शर्माने का नाटक कर रही है, अभी तो घूर घूर के हमारे लोडो को देख रही थी क्यों?
सत्तू :- उस्ताद बहुत पहुंची हुई चीज है,ऐसे ही थोड़ी ना ये बदन निखरा हुआ है.
"ये....ये.....कैसी बात कर रहे है आप लोग " बीच मे रामनिवास बोल पड़ा.
कि तभी चटतककककक....करता एक जोरदार झापड़ रामनिवास के गालो से जा टकराया "साले गुलाम हो के मालिक से बहस करता है "
उस एक थप्पड़ से रामनिवास के रहे सहे कस बल भी ढीले पड़ते चले गए,उसे दुख हो रहा था कि उसकी संस्कारी पतीव्रता बीवी इन गीदड़ो के चूंगाल मे फस गई है
बेचारा रामनिवास कौन बताये कि उसकी बीवी के क्या संस्कार है
"सुना नहीं तूने साड़ी खोल " उस्ताद एक बार फिर से गरज उठा.
रतिवती ने एक बार फिर तिरछी निगाहो से रामनिवास कि तरफ देखा,
"मममम....मालिक....मालिक...ऐसा ना करे मै पतीव्रता नारी हूँ,मै...मै...मेरे पति सामने..."
उस्ताद साफ साफ उसके नाटक को ताड़ रहा था
"हाहाहाहा....डर मत तेरा पति वैसे ही नामर्द है आज तके वो तेरे इस कामुक बदन को संतुष्टि भी क्या पहुंचाया होगा?"
उस्ताद खड़ा हो ठीक रतिवती के सामने जा पंहुचा,उसका मोटा काला लिंग उसके माथे पे टच हो रहा था,
रतिवती ने हैरानी से जैसे ही सर ऊपर किया,उसके होंठ उस्ताद के लंड से जा टकराये.
एक भीनी भीनी कैसेली गंध से रतिवती के नाथूने भर गए, सांसे गर्म होने लगी, आँखों मे हवस साफ दिखने लगी आखिर कब तक खुद को रोकती रतिवती,उसका दुख दर्द इस वासना के आहे दम तोड़ता लग रहा था.
जमीन पे बैठी रतिवती के ब्लाउज से उसके स्तन के कमूक दरार दिख रही थी,उस्ताद का लिंग इस दृश्य को देख झटका खाने लगा
.
इतने मे अचानक सत्तू आगे बढ़ा और चररररर.......फररररर......करता हुआ रतिवती का ब्लाउज उसके तन से जुदा हो गया.
दो गोल गोल तने हुए दूध के सामन सफ़ेद स्तन सभी मर्दो के सामने उजागर हो गए.
रतिवती जैसे इस हमले के लिए ही तैयार बैठी थी उसने जरा भी अपने स्तन को ढकने के कोशिश ना कि.
रामनिवास का आश्चर्य के मारे बुरा हाल था,रतिवती एक टक उस्ताद के लंड को ही निहारे जा रही थी.
आज रमिनिवास को दिख रहा था कि इसकी लुगाई किस कद्र सुन्दर और कामुक है.
"चल मालिक कि सेवा कर " उस्ताद ने अपने लंड कि ओर इशारा कर कहा.
रतिवती भी किसी आज्ञाकारी नौकर कि तरह अपने होंठो को हल्का सा खोल दिया,उस्ताद के लंड का गुलाबी टोपा उसके दांतो से जा लगा
हाय......इससससस......बड़ा गरम है रे तेरा मुँह.
रतिवती ने जैसे ही अपनी तारीफ सुनी उसका मुँह खुद से खुलता चला गया,और एक बार मे ही लंड का आगे का गुलाबी हिस्सा रतिवती के मुँह मे गायब हो गया.
"आआहहहहह.......हाय....मर गया, देख रहा है रामनिवास शहर कि रंडिया भी ऐसा नहीं कर पाती" उस्ताद जैसे रामनिवास को चिढ़ा रहा था उसकी मर्दानगी को धिक्कार रहा था.
अपनी तारीफ सुन रतिवती दुगने जोश से भर गई, लंड का कसैला स्वाद उसके मुँह मे घुलने लगा, जिसे रतिवती खूब पसंद किया करती थी,उसके मुँह मे कैद लंड पे अंदर से ही रतिवती जीभ से कुरेदने लगी.
"आआहहहह........क्या करती है रे " उस्ताद कि तो जैसे जान ही निकल गई हो.
"क्या हुआ उस्ताद " सत्तू को जैसे चिंता हुई
"खुद आ के देख लो साली क्या चूसती है " उस्ताद ने अखिर निमंत्रण दे ही दिया
फिर क्या था करतार और सत्तू के पाजामे भी जमीन चाटने लगे.
कुछ ही पल मे रतिवती के दोनों हाथो मे करतार और सत्तू के लंड थे और मुँह मे आगे पीछे होता हुआ उस्ताद का लंड.
साइड मे बैठा रामनिवास हैरान परेशान सबकुछ देखे जा रहा था,उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपनी पत्नी कि काबिलियत कि तारीफ करे ये उस पे रोये.
"कोई स्त्री ऐसा कैंसर कर सकती है " रामनिवास का सारा नशा फुर्र हो चूका था.
रतिवती के मुँह से थूक निकल निकल के उस्ताद के टट्टो को भिगो रहा था,माध्यम रौशनी मे उसके टट्टे किसी कोयले कि तरह चमक रहे थे.
अब रतिवती से भी नहीं रहा जा रहा था,उसकी चुत से एक शहद जैसी धार निकल के उसकी जाँघ भिगो रही थी.
गुगुगुगम......आआहहहहह.....आक....आक्क्क.....गऊऊऊ....पट....पट....कि आवाज़ से घर गूंज रहा था
अब हालत ये थे कि रतिवती के मुँह मे लिंग बदल बदल के आने लगे,कभी एक साथ दो भी आ जाते..तीनो बदमाश मौके के फायदा उठाने से चूक नहीं रहे थे.
धचा धच पैले ही जा रहे थे.
इधर रतिवती कामवासना मे डूबती चली जा रही थी,जिस्म मे हवस कि आग दहक रही थी
वही दूसरी तरफ इंस्पेक्टर काम्या का जिस्म भी जल रहा था लेकिन उसमे बदले कि आग थी,आंखे लाल थी लेकिन उसमे गुस्सा था.
काम्या गुस्से और बदले कि भावना से बिना तैयारी के ही मात्र 2 हवलदारों के साथ ही निकल पड़ी थी.
काली अँधेरी रात मे काली पहाड़ी का रास्ता बहुत ही भयानक लग रहा था,रौशनी का एक मात्र सहारा उनकी जीप से निकलती पिली रौशनी ही थी
"ममममम....मैडम वापस चलते है कही लेने के देने ना पड़ जाये " रामलखन भय कि अधिकता से खुद को रोक ना पाया.
"चुप साले हरामी,इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा उन दोनों को पकड़ने का, इतना ही डर है तो यहीं उतर जाओ मै अकेली ठाकुर को छुड़ा लाऊंगी " काम्या जैसे दहाड़ी हो.
एक बार फिर से चुपी छा गई.
कुछ ही देर मे दूर पहाड़ी पे एक गुफानुमा आकृति दिखने लगी जहाँ से हल्की हल्की रौशनी फुट रही थी.
"ससससह्ह्ह्ह....जीप बंद कर...गाड़ी रोक " उनका अड्डा सामने ही है हमें पैदल जाना होगा.
तुम यहीं जीप मे बैठो ड्राइवर, कुछ गड़बड़ हुई तो भागने मे सुविधा रहेगी,तुम मेरे साथ चलो राम लखन.
काम्या और रामलखन दबे पाँव उस पहाड़ीनुमा जगह पे चढ़ने लगे,
रामलखन कि स्थति सांप के मुँह मे छछूनर जैसी थी,ना भाग सकता था ना अंदर जा सकता था.
दोनों ही चढ़ते हुए काफ़ी ऊपर आ गए थे "शश्शाश्शस.....रामलखन सामने दो आदमी है तुम यहीं रुकना मै इशारा करू तो आना " काम्या फुसफुसाते हुए बोली
कुछ ही देर मे गुफा के मुहाने खड़े दोनों डकैत जमीन चाट रहे थे.
काम्या का इशारा पाकर रामलखन भी वहाँ पहुंच चूका था.
पहली क़ामयाबी से रामलखान का डर भी दूर होता चला गया,
"चलो अंदर चलते है जरा संभाल कर "काम्या ने आगे आदेश दिया अब उसके हाथ मे एक पिस्तौल चमक रही थी,इरादे नेक नहीं लग रहे थे काम्या के.
अंदर गुफा मे
"वाह....बिल्ला वाह क्या मटन बना है आज तो मजा आ गया " रंगा बिल्ला चपर चपर मटन तोड़ने मे लगे थे
बिल्ला ::- ये ठाकुर का क्या करना है अब?
रंगा :- करना क्या है अपने को मोटा माल चाहिए,और मालिक को ठकुराइन
कल इसके आदमी मोटा माल ले के आएंगे ना,आज कि रात तो खूब खा पी कल से अपनी गुफा दौलत से भरी होगी हाहाहाःहाहा......
एक भयानक अट्ठाहास से गुफा गूंज उठी.
सामने ठाकुर एक खम्बे से बांधा हुआ था,उसके ठीक पीछे एक चट्टान कि ओट लिए काम्या और उसके पीछे रामलखन खड़े थे.
"मैडम.....यहीं से गोली दाग दीजिये सुनहरा अवसर है " रामलखन ने चिरोरी कि उसे ये काम ख़त्म कर जल्द से जल्द निकलना था..
काम्या :- नहीं रामलखम इन्होने मेरे माँ बाप को मारा है इतनी आसन मौत मिल गई तो यमराज भी नाराज हो जायेंगे.
काम्या का चेहरा गुस्से और बदले कि भावना से तमतमा रहा था,
इंसान गुस्से और बदले कि भावना मे कुछ गलत कदम उठा लेता है वही काम्या भी करने जा रही थी.
अच्छा मौका था एक गोली और काम खत्म लेकिन काम्या को उन्हें तड़पाना था जलील कर कर के मारना था.
धायययययय.......अचानक एक फायर हुआ "कोई अपनी जगह से नहीं हिलेगा,दोनों वही बैठे रहो " काम्या एकाएक दहाड़ उठी और पिस्तौल लहराती हुई किसी यामदूत कि तरह रंगा बिल्ला के सामने प्रस्तुत हो गई.
गोली चलने कि आवाज़ से रंगा बुल्ला हक्के बक्के रह गए,उनकी नजरें जैसे ही ऊपर को उठी सामने काम्या मौत बन के खड़ी थी
"रामलखन ठाकुर साहेब को खोलो,और निकल जाओ यहाँ से " काम्या ने तुरंत आदेश दिया
"लललल...लेकिन...मैडम..आप?" रामलखन ठाकुर साहब को खोल चूका था.
"तुम जाओ मेरा कुछ पुराना हिसाब है " काम्या के चेहरे पे एक वहशी मुस्कान तैर गई.
"आज कि रात तुम्हारी आखरी रात है सालो " काम्या फिर दहाड़ी.
लेकिन इस धमकी का शायद उन दोनों पे कोई असर नहीं हुआ,एक सिकन तक ना आई चेहरे पे.
"तू तो वही है ना दरोगा कि लड़की "रंगा बड़े ही अपेक्षित भाव से बोला
उसे फर्क ही ना पड़ता हो जैसे जबकि पिस्तौल उसी कि तरफ तनी हुई थी.
इतने मे रामलखन ठाकुर को ले के जा चूका था.
बिल्ला :- गलती कर रही है इंस्पेक्टर, अभी भी वक़्त है हमारा शिकार हमें वापस कर दे तुझे जाने देंगे वरना अपने माँ कि तरह ही तेरा भी हश्र होगा.
"साले.....कुत्ते....." काम्या एकाएक चीख पड़ी.
उसकी ऊँगली ट्रिगर ोे दबने ही वाली थी कि "नहीं.....कुत्तो इतनी आसन मौत नहीं दूंगी तुम्हे तड़पा तड़पा के मरूंगी "
रंगा :- जैसे हमने तेरी माँ को तड़पाया था, वैसे क्या चुदवाती थी तेरी माँ
रंगा ऐसे बोला जैसे वो पल याद कर रहा हो उसका हाथ लुंगी के ऊपर से ही अपने लंड को खुजाने लगा.
काम्या का चेहरा नफरत और गुस्से मे लाल हुआ जा रहा था हाथ गोली चलाने के लिए काँप रहे थे
बिल्ला :- इसको देख के तो लगता है ये इसकी माँ से भी बड़ी चुदक्कड़ होंगी.
रंगा बिल्ला लगातर काम्या कि भावनाओं से खेल रहे थे,उसे भड़का रहे थे,
अनुभवी थे दोनों शैतान, जानते थे इंसान गुस्से मे गलती करता ही है.
बिल्ला :- वैसे हमें तेरे माँ बाप को खुद नहीं मारा था हालांकि वजह हम थे वो अलग बात है.
काम्या के नेत्र आश्चर्य से फ़ैलते चले गए,भौहे सिकुड़ गई.
रंगा :- तेरी माँ तेरे नपुंसक बाप के सामने हमसे चुदवा रही थी, हमारे लंड चूस रही थी
ये बात तेरा बाप बर्दाश्त ना कर सका उसने खुद अपनी बीवी को गोली मारी और खुद भी शर्म से जा मरा
हाहाहाहाहा......दोनों शैतान राक्षस कि हसीं हॅस पड़े.
काम्या ये ना सुन पाई...उसका बदन कांप गया,वो दोनों कि तरफ उन्हें मारने दौड़ पड़ी.
कि तभी रंगा ने हाथ मे पकड़ा गिलास,बाजु कि दिवार पे टंगी मशाल पे फेंक दिया.
एक.घुप अंधेरा गुफा मे छा गया.
चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था,हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था,
कि तभी....धापप्पाकककक.....कि आवाज़ से गुफा गूंज उठी....आआआआहहहहहह.......कमीनो एक घुटी सी आवाज़ उत्पन्न हुई और ऐसा लगा जैसे कोई जमीन पे ओंधे मुँह गिरा हो.
चारों ओर अंधेरा था कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यहाँ हुआ क्या है?
वही काली पहाड़ी के किसी हिस्से मे नागेंद्र जैसे तैसे कामवती को घसीटता हुआ एक पत्थर कि ओट मे ले आया था.
"हे नागदेव ये कैसी परीक्षा के रहे है आप इस निपट अंधरे मे बिना मानव शरीर के कैसे मै कामवती कि रक्षा करूंगा, मेरी नागमणि भी ना जाने कहाँ है उसके बिना कितनाा अहसाय हूँ मै." नागेंद्र बिल्कुल बेबस था उसके जीवन मे अंधरे के अलावा कुछ नहीं दिखाई पड़ता था,ना कुछ सूझ रहा था.
बेहोश कामवती के बाजु मे फैन फैलाये बस इधर उधर भटक रहा था.
तभी उसका ध्यान कामवती कि तरफ गया जिसके कपडे अस्त व्यस्त थे, सारी जाँघ टक ऊपर उठी हुई थी,सुन्दर चिकनी मशल जाँघे अपनी छटा बिखेर रही थी.
एक पल को नागेंद्र कि सभी समस्याओ का हल उसे दिखने लगा.
"इस भागदौड़ मे तो मैंने ये सोचा ही नहीं " नागेंद्र प्रसन्नता से भर उठा
उसे अपने पुराने दिन याद आ गए जब वो इन्ही मोती चिकनी जांघो को चाटा करता था.
"मेरी प्रियतमा कामवती वक़्त आ गया है कि तुम्हे सब कुछ याद दिलाया जाये " नागेंद्र सरसराता बेहोश कामवती कि जांघो के बीच सरकता चला गया उसका मुकाम वही कामुक सुगंध भरा छेद था,कामवती कि खूबसूरत चुत.
जो कि अभी भी एक दम फूली हुई थी,बहार को निकली हुई एकदम साफ चिकनी.
नागेंद्र से रहा नहीं गया,उसका मुँह उस महीन लकीर मे समाता चला गया.
उसकी पतली सी जीभ लपलपा उठी.
बस यहीं तो उस श्राप कि काट थी जो तांत्रिक उलजुलूल के द्वारा दिया गया था.
कामवती का शरीर बेचैनी से हिलने लगा..उसके जहन मे एक के बाद एक कई दृश्य घूमने लगे एक जाते तो दूसरे आते,उसके जीवन कि वो गाथा दोहराई जाने लगी जिससे आज तक वो अनजान थी.
नागेंद्र और वीरा का प्यार उसे भिगो रहा था, सम्भोग सुख का आनंद भोग रही थी कामवती.
जहाँ नागेंद्र का प्यार कोमल था वही वीरा का प्यार वहशी दर्दभार होता,लेकिन दोनी का मजा अलग था.
कामवती निर्णय ही नहीं कर पा रही थी कि वो किसकी है? किस से प्यार करती है?
कि अचानक से उसके सामने दृश्य बदलने लगे....
उसका अचेत जिस्म कंपने लगा,पस बैठा नागेंद्र कामवती के जिस्म कि हलचल को भाँप रहा था.
यह कामवती किसी अँधेरी गुफा मे पूर्णनग्न रस्सीयो से जकड़ी हुई थी.
"तू चरित्र हिन् औरत निकली आखिर,मुझसे शादी कर के भी तूने अपने यारों से मिलना नहीं छोड़ा " उसके समने ठाकुर जलन सिंह गुस्से से लाल पीला हाथ मे तलवार थामे उसकी तरफ ही बढ़ा चला आ रहा था.
कामवती भय से थर थर कांप रही थी.
उसकी दोनों टांगे विपरीत दिशा मे खाम्बो से बँधी थी,जिस वजह से उसकी चुत और गांड का छेद पूरी तरह से ठाकुर जलन सिंह के सामने उजागर था.
"साली रंडी इसी छेद मे अपने आशिको का लंड लेती है ना तू,आज देख कैसे चिर फाड़ के रख देता हूँ मै " ठाकुर जलन सिंह ने तलावार उठा ली और खच्चह्ह्हह्ह्ह्हब्ब..........आआआआहहहहह......एक प्रलयकारी चीख गूंज उठी,
ये चीख विषरूप के बच्चे बच्चे ने सुनी थी ऐसी भयानक चीख जो थी.
ठाकुर जलन सिंह कि तलवार कामवती कि चुत मे समाहित हो चुकी थी,उसके मुँह बे खून कि उल्टी कर दि.
"और ये तेरी मटकती गांड यहाँ भी लेती है ना तू साली रंडी " ठाकुर जलन सिंह ने वापस से तलवार खिंच के इस बार गांड के छेद मे पेवास्त करा दि.
"आआआआह्हःभब्बभ......नाहीईईई.........." कामवती कि सांसे उखड़ चली.
यहाँ पत्थर कि ओट मे कामवती एक जोरदार चीख के साथ उठ बैठी.
"नाहहीईईईई..........लेकिन सामने तो दृश्य बिल्कुल बदल गया था, अचरज भारी निगाहो से वो कभी इधर देखती तो कभी उधर.
"ये....ये... ये....मै कहाँ हूँ " कामवती का प्रश्न सहज़ ही था जैसे वो बरसो के बाद उठी हो.
"तुम सुरक्षित हो कामवती " नागेंद्र कि आवाज़ से उसे जैसे सबकुछ याद आ गया वो ठाकुर ज़ालिम सिंह के साथ मंदिर आई थी.
"मुझे सब यदा आ गया है नागेंद्र सब याद आ गया है,वीरा कहाँ है?"
कामविती ने उठते ही जो प्रश्न किया शायद वो नागेंद्र को मंजूर नहीं था.
"तुम उठते ही मेरे दुश्मन का नाम ले रही हो,शर्म नहीं आयी तुम्हे, जिसने तुम्हारी हत्या कि मेरा प्यार मुझसे छीन लिया उसकी बात मर रही हो तुम " नागेंद्र का गुस्सा जायज था
"नहीं नहीं...नागेंद्र मै तुमसे बहुत प्यार करती हूँ " जैसा तुम सोचते हो वैसा नहीं है
मेरी हत्या वीरा ने नहीं कि थी.
"क्याआआआआआ......." अब चौकने कि बारी नागेंद्र कि थी.
उसके लिए ये बात किसी सदमे से कम नहीं थी.
"क्या हुआ था कामवती "
"अभी वक़्त नहीं है जल्दी घुड़पुर चलाना होगा वीरा के पास कही देर ना हो जाये "
कामवती और नागेंद्र घुड़पुर कि ओर दौड़ चले.
चोर मांगूस भी दौड़ रहा था गांव कामगंज कि और उसकी मंजिल रतिवती का घर थी.
परन्तु रतिवती तो यहाँ कामवासना मे चूर हवस कि आहे भर रही थी.
"आआहहहहह....आहहहह....उफ्फ्फ....जोर से और अंदर आअह्ह्ह......उगफ्फग...." रतिवती घोड़ी बनी हुई थी नीचे से करतार अपना लंड उसकी चुत मे घुसाए था तो पीछे से उस्ताद उसकी गांड मे अपना भयानक लंड घुसाए धचा धच पेले जा रहा था.
सत्तू कबका वीर्य त्याग कर हांफ रहा था.
रामनिवास को आज औरत के असली रूप का ज्ञान हुआ था जो वो अपनी आँखों से आपने सामने देख रहा था.
"आआहहहहह.......और अंदर.....आअह्ह्ह...."
पच पच पच......उफ्फ्फ्फ़.....कि आवाज़ से घर का आंगन गूंज रहा था.
रतिवती कि चुत और गांड बेहिसाब पानी बहा रहे थे लेकिन मजाल कि वो कामदेवी हार मान जाये.
जबकि वो तो और अंदर लेना चाहा रही थी.
"साली छिनाल क्या चीज है तू,आज तक ऐसी गांड नहीं मारी " उस्ताद भी हाफने लगा था.
रतिवती भी अपने चरम पे थी,खुद ही अपनी गांड को पीछे धकेल देती, दोनों लंड बहार को आते ही थे कि रतिवती वापस से उन्हें अपनी काम छेद मे पनाह दे देती.
जैसे लंड बहार जाये उसे मंजूर ही नहीं था.
आखिर मे वो मुकाम आ ही गया जिसके लिए ये खेल खेल गया था.
दोनों ने एक एक जोरदार धक्का मारा....और भलभला के रतिवती कि गांड और चुत मे शहीद हो गए.
आआआहहहहह.......आअह्ह्हह्ह्ह्ह......क्या लुगाई है रे तेरी रामनिवास.सब तरफ सन्नाटा छा गया था,
सिर्फ साँसो कि आवाज़ ही आ रही थी.
रतिवती बेसुध वही जमीन पे पड़ी थी, चुत गांड से वीर्य किसी नदी जैसे बह रहा था.
कि तभी सत्तू के हाथ कुछ चमकती सी चीज लगी " उस्ताद ये क्या है ऐसी चीज तो कभी नहीं देखी "
सभी कि नजरें उस ओर चली गई,सत्तू के हाथ मे एक चमचामाता हिरा था.
"नहीं.....नहीं....वो मेरा है मुझे दो " एकाएक रतिवती चीख उठी.
"जो तुम्हे चाहिए था वो सब तो ले लिया तुम लोगो ने " रतिवती ने एक मरी हुई सी गुहार लगाई.
उस्ताद :- अच्छा तो सारी सम्पति मे ये भी तो आया ना ये भी हमारा हुआ, उस्ताद रतिवती के चीखने से समझ गया था कि ये कोई कीमती चीज है.
रतिवती नग्न ही सत्तू कि ओर दौड़ पड़ी जैसे उस नागमणि को छीन लेना चाहती हो.
रामनिवास किसी मुर्ख कि तरह बैठा सब देख रहा था उसकी तो समझ से ही परे था जो कुछ यहाँ हो रहा था.
सत्तू :- उस्ताद लगता है कोई कीमती चीज है देखो कैसे चमक रही है,इसके तो बहुत पैसे मिल जायेंगे.
"नहीं...नहीं...ये मेरा है हम लोग जुए मे सिर्फ पैसा ये घर और हमारी गुलामी हारे है इसकी कोई बात नहीं हुई थी " रतिवती ने उस नागमणि को छीनन्ने कि बेहिसाब कोशिश कि लेकिन कामयाबी हाथ ना लगी
उस्ताद :- अच्छा तो ठीक है मै तुम्हे गुलामी से मुक्त करता हूँ,ये घर भी वापस ले लो लेकिन ये हिरा तो अब हमारा ही है
रतिवती कि शक्ल रुआसी हो चली,उस से ये गुम सहन के बहार था.
"अरी क्यों उस पत्थर के लिए मरी जा रही है,जो हुए मे हरे थे मिल तो रहा है वापस "इस बार रामनिवास उखड़ गया और रतिवती के पास जा उसे समझने लगा.
कुछ ही समय मे उस घर मे एक ख़ालिस सन्नाटा छा गया,किसी के लिए यकीन करना भी मुश्किल था कि ये वही जगह है जहाँ जुआ और कामक्रीड़ा का खेल खेला गया था.
कि तभी भड़ाक से....रामनिवास के घर का दरवाजा खुल गया.
अचानक आवाज़ से दोनों पति पत्नी का ध्यान उधर गया अभी रतिवती सम्भली भी नहीं थी,वी जमीन पे ही पर्ण नग्न अपने भाग्य को कोष रही थी.
"कहाँ है कहाँ है वो नागमणि बोल साली " चोर मंगूस एकाएक रतिवती के सर पे आ धमका
"ममममम....ममम....मै....कौनसी नागमणि " रतिवती अचानक मंगूस के आ जाने से बोखला गई
"साली भोली मत बन वही मणि जो तूने जंगल से उठाई थी,कहाँ है वो " मंगूस बदहवास था उसकी गिरफत मे रतिवती कि गार्डन थी.
"वो...वो....वो...तो....रतिवती ने घटी सारी घटना मंगूस को सुना दि "
मंगूस ने माथा पकड़ लिया " साली छिनाल औरत तेरी वजह से क्या क्या हो गया तेरा लालच भारी पड़ गया "
"मममम....मुझे माफ़ कर दो मुझे पता नहीं था कि वो क्या चीज है " रतिवती ने गुहार लगाई
"कहाँ मिलेंगे वो तीनो अभी " मंगूस दहाड़ा
"वो अभी अभी यहाँ से निकले है,हो सकता है दारू के ठेके पे मिले " जवाब रामनिवास मे दिया
चोर मांगूस आगे बिना कुछ सुने घर के बहार दौड़ चला.
पीछे रतिवती और रामनिवास एक दूसरे को देखते रह गये.
मंगूस जीतना नागमणि के करीब पहुँचता था,नागमणि उस से उतना ही दूर भाग जाती थी.
मंगूस हासिल कर पायेगा नागमणि को?
रंगा बिल्ला के अड्डे पे क्या हुआ?
इंस्पेक्टर काम्या अकेली ही शेरो कि मांद मे उनका शिकार करने चली गई थी क्या वो खुद शिकार हो जाएगी?
बने रहिये कथा जारी हैँ....
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