अपडेट -34
सूरज सर ले चढ़ आया था.
गांव कामकंज
रामनिवास और रतिवती अपने घर पहुंच चुके थे.
रास्ते मे रामनिवास सारी बाते समझा चूका था,रतिवती ने शुरू मे ना नुकुर किया परन्तु पैसो के लालाच ने उस से हामी भरवा ही ली.
लेकिन जुआ रामनिवास अपने घर पे ही खेले उसकी मौजूदगी मे ऐसा उसने मनवा लिया था
अब भला राम निवास को क्या समस्या थी उसे तो जुए का लालच दिख रहा था सिर्फ.
रामनिवास रतिवती को घर पंहुचा के सत्तू कि खोज मे निकल पडा, सत्तू और उसके दोस्त उसे वही दारू के अड्डे पे ही मिले
रामनिवास :- और भाई सत्तू क्या हाल है? कुछ पैसा है या उधारी ही पी रहा है
रामनिवास घमंड मे आ के बोला
सत्तू :- क्या रामनिवास भाई मज़ाक बनाते हो हमारा एक तो पुरे पैसे लूट लिए हम सब के
उस्ताद और करतार ने भी दुखी मुँह बना के रामनिवास कि तरफ देखा.
रामनिवास :- अरे ये ले पैसे मेरी तरफ से पी दारू आज कि.
उस्ताद :- काफ़ी चाहक रहे हो राम निवास क्या बात है?
रामनिवास :- कुछ नहीं सोच रहा था कि आज कहाँ जुआ खेलु? रामनिवास उन तीनो को जुए के लिए उकसा रहा था परन्तु उसे क्या पता था कि उल्टा वो ही फस रहा है इन तीनो के साथ
उस्ताद :- ढूँढना क्या है मेरे साथ खेल लेना बहुत पैसा है मेरे पास.
रामनिवास :- देखना संभल के कही हार गए तो सत्तू जैसे हालात हो जायेंगे हाहाहाबाबहम.....
उस्ताद :- अब जो किस्मत मे होगा सो होगा.
सत्तू :- तो उस्ताद आप ही खेल लो ना रामनिवास के साथ जुआ किसी अजनबी के साथ खेलेगा तो लूटने का डर रहेगा आप तो अपने ही आदमी हो.
रामनिवास तो यही करने आया था अपने मन कि बात पूरी होता देख उसने झट से हामी भर दी.
उस्ताद :- अच्छा तो रामनिवास आज रात आ हाना हमारी झोपडी पर.
रामनिवास :- नहीं नहीं...वहा नहीं...ऐसा करो तुम तीनो आज रात मेरे ही घर आ जाना दारू मेरी तरफ से और खाना मेरी बीवी बना देगी क्या कहते हो?
तीनो ही एक दूसरे कि तरफ देख रहे थे कि क्या करे.
सत्तू :- आ तो जायेंगे लेकिन ऐसा ना हो कि तुम्हारी बूढी बीवी ना नुकुर करे बाद मे, सत्तू को लगा कि उसकी बीवी भी रामनिवास जैसे ही मरियल बूढी लटकी हुई होंगी इसलिए ऐसा बोल गया.
अब बेचारा सत्तू क्या जाने कि रतिवती क्या बला है.
रामनिवास :- ऐसा कुछ नहीं होगा दोस्त मेरी बीवी बिलकुल गाय है, संस्कारी है कुछ नहीं कहेगी.
इस बात पे तीनो राजी हो गए और रात का कार्यक्रम निश्चित हो गया.
रामनिवास दारू कि कुछ बोत्तल ले के वहा से निकल गया
उस्ताद :- बकरा तो खुद ही हलाल होना चाहता है,हाहाहाहाहा...
करतार :- तो देर कैसे आज रात पूरा लूट लेते है.
सत्तू :- आज रात के नाम ले लगाओ फिर जाम.
वही काली पहाड़ी पर
"स्वामी मुझे माफ़ कर दे,ये क्या किया आपने? अपनी पत्नी को ऐसा शाप दे दिया " कामरूपा लगभग बिलखती हुई तांत्रिक उलजुलूल के पैरो मे गिर पड़ी.
चोर मंगूस और कामरूपा तांत्रिक कि गुफा पहुंच चुके थे.
मंगूस गुफा के द्वार ले ही खड़ा सब देख रहा था
तांत्रिक :- आओ कामरूपा आओ.... देख लिया अपनी काम वासना और सदा जवान बने रहने का अंजाम? उलजुलूल जो कि ध्यान मुद्रा मे बैठा था उसने आंखे खोलते हुए बोला.
कामरूपा :- हाँ स्वामी मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई परन्तु अपने ऐसा क्या कर दिया मै तो आपको अतिप्रिय थी, आप मेरे लिए कुछ भी कर सकने को तैयार थे फिर भी आपने मुझे ऐसा घिनोना श्राप दे दिया कैसे पति है आप?
मै बहक गई थी परन्तु आप तो मुझसे प्यार करते थे प्यार तो देने का नाम है लेकिन आप ने मुझसे छीन लिया मुझे हवस कि जीती जगती मूर्ति बना दिया.
कामरूपा को याचना और प्यार भरी बाते सुन उलजुलूल का दिल भर आया उसे आपने पुराने दिन याद आने लगे जब वो कामरूपा पर मोहित हो गया था, कोई भी मर्द होता तो कामरूपा जैसी औरत पे मोहित हो जाता.
तांत्रिक :- हमें माफ़ कर दो कामरूपा परन्तु तुम्हारे व्यवहार से मै गुस्से से भर गया था,तुम्हारी हालात कि जिम्मेदार तुम खुद हो तुमने अपनी शक्ति का दुरूपयोग किया,तुमने अपनी हवस को मिटाने के लिए शैतान सर्पटा को जिन्दा कर दिया.
और एक मासूम असहाय नाग नागेंद्र कि मणि चुरा ली सिर्फ आपने स्वार्थ के लिए.
कामरूपा :- मै जानती हूँ स्वामी और अपनी गलती भी स्वीकार करती हूँ लेकिन अब मेरी कोई इच्छा नहीं है मुझे इस शाप से मुक्ति दिलाओ.
तांत्रिक :- मेरा शाप झूठा नहीं हो सकता कामरूपा लेकिन तुम्हारी याचना को देखते हुए एक उपाय जरूर बता सकता हूँ, आगे कि राह बहुत कठिन है समझ लो जो पाप तुमने आज तक किया है उसका प्रयाचित करना है तुम्हे.
ध्यान से सुनो "आज रात मुर्दाबाड़ा काबिले वाले तुम्हारी मूर्ति बना तुम्हारा मंदिर बनाने जा रहे है,कामरूपा देवी के नाम से जानी जाओगी तुम.
क्यूंकि मुर्दाबाड़ा काबिले को जो वरदान प्राप्त था वो तुमने तोड़ दिया है वो तुम्हे सख्तलित नहीं करा पाए,तुमसे हार गए, तुम्हे वो लोग देवी मान रहे है जो उन्हें जंगल मे मिली और अचानक गायब हो गई.
जाओ उस मूर्ति मे समाहित हो जाओ,जब भी कभी तुम्हारे सामने कोई अभागी स्त्री अपनी इज़्ज़त बचाने कि गुहार करेगी तुम्हारा ये शाप उस स्त्री मे चला जायेगा और तुम मुक्त हो जाओगी.
अब ये कब और कैसे होगा इसका इंतज़ार तुम्हे मूर्ति रूप मे ही करना होगा,मूर्ति रूप मे रहने से तुम्हरी कामवासना नहीं भड़केगी.
जाओ तथास्तु....
कामरूपा अपनी आँखों मे पश्चात्याप के आँसू लिए मुर्दाबड़ा काबिले कि ओर चल पड़ी.
आज कामरूपा का अंत हो गया था.
तांत्रिक :- महान चोर मंगूस तुम वहा क्यों खड़े हो नजदीक आओ.
मंगूस थोड़ा सहमते हुए तांत्रिक के नजदीक पंहुचा.
मंगूस :- प्रणाम स्वीकार करे तांत्रिक, ऐसा बोल हाथ झुका के तांत्रिक के सामने बैठ गया.
तांत्रिक :- हम स्वीकार करते है मंगूस तुमसे भेंट हो पाना मेरा भी सौभाग्य है.
मंगूस कुछ समझ नहीं पाया क्या वाकई उसकी महारत इतनी प्रसिद्ध है.
तांत्रिक :- इतना मत सोचो मंगूस मेरा मतलब कुंवर विचित्र सिंह हम सब जानते है.
तुम एक नेक काम के लिए निकले हो तुम्हे वो मणि नागेंद्र को वापस लौटानी है. तुम भले ही चोर हो लेकिन एक नेक दिल के लड़के हो.
मंगूस :- आप तो सब जानते है महात्मा फिर....
तांत्रिक :- जाओ तुम्हारी नाग मणि गांव कामगंज मे रतिवती के पास है वहा से हासिल कर लो.
मंगूस पूरी तरह हौरान था...कि इतनी आसानी से कैसे उसका काम बन गया ऐसा क्या था उसमे कि इतना महान तांत्रिक भी उसकी तारीफ कर उठा.
तांत्रिक :- इतना मत सोचो मंगूस ये तो नियति है और इस नियति के सूत्रधार भी तुम ही हो जाओ अब....
मंगूस अपनी ही सोच मे सर झुकाये द्वार कि और बढ़ चला
तभी पीछे से आवाज़ आई " ध्यान रहे महान चोर मंगूस ये नागमणि कभी तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ेगी "
मंगूस चौक के पीछे पलटता है तब तक तांत्रिक उलजुलूल ध्यान मे जा चूका था.
तांत्रिक कि बात का क्या मतलब था लाख सोचने पर भी उसे समझ नहीं आया.
वो चल पडा गांव कामगंज कि और जहाँ जुआ खेला जाना था.
ऐसा जुआ जहाँ सब कुछ दाँव पे लगना था.
क्या नागमणि भी दाँव पे लगेगी?
****************
ठाकुर ज़ालिम सिंह अपनी नवविवाहित पत्नी के साथ निकल चुके थे,जंगल पार स्थित पहाड़ी पर बने कुलदेवी मंदिर के दर्शन करने.
ठाकुर :- तुम्हे अच्छा तो लग रहा है ना कामवती?
कामवती जो बाहर के नज़ारे ही देख रही थी "हाँ ठाकुर साहेब हम बहुत दिन बाद घर से निकले है,माँ भी होती तो ज्यादा मजा आता "
ठाकुर :- कोई बात नहीं उन्हें फिर कभी ले आएंगे,तुम्हारे पिता का मन नहीं लग रहा होगा उनके बिना " ऐसा बोल ठाकुर एक कामुक मुस्कान दे देता है कामवती को.
कामवती को ये बात सुन वो दृश्य याद आ गया जब डॉ.असलम उसकी माँ कि गांड चाट रहा था.
ठकुट ने कामवती के हाथ को पकड़ दबा दिया.
कामवती झटके से सिहर उठी जैसे किसी सपने से जागी हो.
"हाँ हाँ....वो पिताजी को माँ के बिना खाने पिने को दिक्कत होने लगती है "
ठाकुर सिर्फ मुस्कुरा के रह गए उन्हें कामवती का दिल जीतना था.
सूरज सर पे चढ़ आया था, ठाकुर और कामवती कुलदेवी के दर्शन कर चुके थे और तांगे कि ओर चले आ रहे थे.
बिल्लू और रामु जो को तांगे पे ही बैठे थे.
बिल्लू :- बुड्ढे ठाकुर कि किस्मत तो देख क्या लड़की हाथ लगी है,
नयी ठकुराइन का बदन तो इसकी माँ रतिवती से भी जानलेवा है.
कालू :- हाँ यार बात तो सच कही देख कैसे उसके बड़े स्तन ब्लाउज मे समा ही नहीं रहे है,ऐसा लग रहा है कि बाहर को आ के गिर जायेंगे.
बिल्लू :- शशशशश..... धीरे बोल मरवाएगा किसी ने सुन लिया तो
कालू :- यहाँ जंगल मे कौन सुनेगा.
लेकिन कालू गलत था नीचे बैठा नागेंद्र सब सुन रहा था.
नागेंद्र :- साले नासमझ इन्हे तो पता ही नहीं है कि कामवती क्या चीज है अपने पे आ जाये तो इन जैसे 5,6 मर्दो को खड़े खड़े ही निपटा दे.
नागेंद्र तांगे के ही नीचे आराम से सुस्ता रहा था कि तभी उसके सल खड़े होने लगे " ये क्या..... कोई खतरा है,मुसीबत आने वाली है,कही कामवती पे तो कोई आपत्ति नहीं?
अभी नागेंद्र सोच ही रहा था कि एक सरसराता हुआ जाल ठाकुर पे आ के गिरा, कामवती को एक तेज़ झटका लगा वो नीचे खाई कि और लुढ़कती चली गई.
किसी को कुछ समझ ही नहीं आया एकदम से क्या हुआ ये.
कि तभी धाय.....धाय.....कोई नहीं हिलेगा अपनी जगह से.
बिल्लू:- रऱ......रऱ.....रंगा बिल्ला तुम?
बिल्ला :- हाँ हम तुम्हारे ठाकुर को ले जा रहे है, कोई पीछे आने का प्रयास ना करे वरना मारे जाओगे.
हवेली जाओ और ठाकुर के मित्र डॉ.असलम को खबर करो.
ठाकुर अगवा हो गया है.
हाहाहाःहाहा.....भयानक हसीं के साथ ठाकुर को घोड़े पे लाद ले गए.
बिल्लू कालू किसी नामुराद मूर्खो कि तरह देखते ही रह गए.
उन्हें ये भी ध्यान नहीं आया कि कामवती को ठोंकर लगी थी वो कहाँ गई?
दोनों के होश गुम गए थे.
परन्तु नागेंद्र मुसीबत का पहले ही आभास पा चूका था इसलिए वो ठोंकर लगने के साथ ही कामवती कि तरफ लपक लिया था,परन्तु होनी को कौन टाल सकता था,
कामवती नीचे खाई मे लुढ़कती चली गई,नागेंद्र भी उस के पीछे सरसराता जा रहा था.
बिल्लू :- क..कक्क....कालू हे क्या हुआ, ठकुराइन कहाँ है.?
कालू :- जो अभी भी जड़ अवस्था मे था "मममम.....ममम...
.मुझे नहीं पता "
बिल्लू :- साले होश मे आ, चल जल्दी चल ठकुराइन वहा मंदिर क पास ही गिरी थी.
कालू बिल्लू उस दिशा कि और दौड़ पड़े लेकिन वहा तो कुछ नहीं था.
कालू :- हे भगवान ये क्या अनर्थ हो गया सब लूट गया
बिल्लू :- रोना बंद कर अब जल्दी हवेली चल डॉ.असलम ही कुछ बताएगा.मुझे खुद को कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करे.
बिल्लू कालू ने दुर्त वेग से तांगा हवेली कि और दौड़ा दिया.
दोनों क चेहरे सफ़ेद पड़ चुके थे.
शाम ढलने को थी
गांव कामगंज
उस्ताद,सत्तू और करतार अपने शिकार को हलाल करने का पूरा षड़यंत्र रच चुके थे
वही दूसरी ओर रतिवती और रामनिवास भी आने वाले हसीन पलो क सपने देख रहे थे
लालच उन्हें पैसा ही पैसा दिखा रहा था.
ऊपर से रतिवती के पल्लू से इच्छामणी बँधी हुई थी इच्छामणि का काम ही यही होता है कि जो भी इंसान कि इच्छा है उसे प्रबल कर देती है,रतिवती क साथ भी यही हो रहा था लालची तो थी ही नागमणि के प्रभाव से और ज्यादा लालची हो उठी तभी तो वो रामनिवास के जरा सा मनाने मे ही मान गई थी क्यूंकि उसे सिर्फ पैसा अमीरी राजसी ठाट बाँट चाहिए था अब जैसे आये
रामनिवास :- अरे कितना तैयार होंगी? वो लोग जुआ खेलने आ रहे है तुम्हे देखने नहीं
रामनिवास ने चुटकी लेते हुए कहा.
रतिवती :- आज काफ़ी ख़ुश थी "तो क्या हुआ मुझे भी देख लेंगे तो?" वैसे ही मजाकिया अंसाज मे कहते हुए कान मे बाली पहनते हुए बोला.
रामनिवास :- वैसे पहले से ज्यादा खूबसूरत हो गई हो तुम?
रतिवती :- धत...बुढ़ापा आ गया फिर भी ऐसी बात करते हो,जानबूझ के ना नुकुर करती रतिवती इठलाती हुई कांच मे खुद को निहारती हुई बोली.
रामनिवास :- हेहेहेहे....अच्छा चलो कुछ खाने मे भी बला लो उन लोगो को यही खाने के लिए बोल दिया था मैंने.
कि तभी ठक ठक ठक......
रामनिवास :- लगता है वो लोग आ गए.
दोनों को आँखों मे चमक थी उन्हें ऐसा लग रहा था कि बकरे आ गए हलाल होने. पति पत्नी एक दूसरे को देख मुस्कुरा दिए
हाय रे लालच
रामनिवास ने जा के दरवाजा खोला "आओ आओ सत्तू उस्ताद करतार आओ तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था मै "
तीनो रामनिवास से इस कद्र मिले जैसे बरसो के जिगरी यार हो वैसे भी जुआरी और शराबीयों मे दोस्ती जल्दी होती है.
सत्तू :- यार रामनिवास तुम्हारा घर तो शानदार है काफ़ी बड़ा भी है.
रामनिवास :- हेहेहेहे....अरे ये सब तो पुशतेनी है आओ अंदर आओ
सभी लोग एक कमरे मे जा बैठे.
उस्ताद :- ये देखो भाई रामनिवास तुम्हारे लिए क्या लाये है विशेष शहर से मंगाई है ऐसा बोल उस्ताद थैले से महँगी अंग्रेजी दारू कि बोत्तल निकालता है.
"अब अंधे को क्या चाहिए दो आंख ही ना" रामनिवास कि आंखे फ़ैल गई वो पक्का शराबी था ऊपर से आज उस्ताद ने उसे महँगी दारू दे के दिल जीत लिया था.
रामनिवास :- उस्ताद इसकी क्या जरुरत थी देशी ही चलती अपने को तो.
उस्ताद :- ऐसे कैसे पहली बार तुम्हारे घर आये है भई. और तुमसे तो भाईचारे का रिश्ता हो गया है तो फिर क्या सस्ता क्या महंगा मौज करो तुम.
उस्ताद ने कमजोर नस पकड़ ली थी रामनिवास कि.
तभी छन छन करती पायल कि आवाज़ सभी के कान मे पड़ी.सभी ने दरवाजे पे नजर उठा के देखा तो दंग रह गए.
सामने रतिवती हाथ मे गुड़ और पानी के साथ खड़ी थी.
तीनो के मुँह खुले के खुले रह गए.
रामनिवास :- आओ भाग्यवन ये है वो तीनो मेरे दोस्त
रतिवती नजदीक आई और झुक के थाली रखी तीनो के आँखों के सामने ही एक सुन्दर सी सुडोल लकीर प्रकट हो गई
जो कि रतिवती के झुकने से उसके ब्लाउज मे बनी थी
तीनो इस कदर हक्के बक्के थे कि कभी रामनिवास कि तरफ देखते तो कभी रतिवती को
रामनिवास :- ये मेरी धर्मपत्नी रतिवती
तीनो को कतई उम्मीद नहीं थी कि काले कलूटे मरियल रामनिवास कि पत्नी इस कदर भरे गद्दाराये और कामुक जवान बदन कि मालकिन होगी.
उन्हें तो लगा था कोई काली पिली बुड्ढी ही होंगी.
उस्ताद :- ननणणन....नमस्ते भाभी जी
सत्तू और करतार ने भी काठ के उल्लू कि तरह अभिवादन किया
रतिवती थाली रख वापस चली गई तीनो उस खाली दरवाजे को ही मुँह बाये देखते रह गए
ये जुआ और लालच क्या गुल खिलता है?
कामवती और ठाकुर कि हालात के पीछे कौन है वो अनजान शख्स?
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शाम ढल चुकी थी अंधेरा पसरने को था
"मालिक मालिक....मालिक....असलम मालिक ह्म्म्मफ्फ्फ्फफ्फ्फ़ ह्म्म्मफ़्फ़्फ़...." बिल्लू दौड़ता हँफ्ता डॉ.असलम के घर मे दाखिल हुआ.
डॉ.असलम :- क्या हुआ बिल्लू क्या हुआ....ऐसे घबराये हुए क्यों हो? आ गए मंदिर दर्शन के के ठाकुर साहेब?
बिल्लू :- मालिक वो.... मालिक वो.... ठाकुर साहेब ठाकुर साहेब
"जल्दी बोलो भाई क्या बात है " डॉ.असल ने घबराहट भरे लहजे मे बोला.
बिल्लू :- मालिक ठलुर साहेब को रंगा बिल्ला अगवा कर ले गए.
"क्या....क्या....कैसे..कब और और और...कामवती मेरा मतलब ठकुराइन कहा है? "
बिल्लू :- ठकुराइन को बिल्ला ने धक्का दे के गिरा दिया था उसके बाद ना जाने खा गई ठकुराइन,हमने खूब ढूंढा लेकिन मिली ही नहीं.
असलम :- क्या बकते हो ऐसा कैसे हो सकता है " असलम इतने आत्मविश्वास से बोला कि बिल्लू भी चकित रह गया.
बिल्लू :- ऐसा नहीं हो सकता मतलब
असलम :- म...ममम...मतलब कुछ नहीं मै जा रहा हूँ ठकुराइन हो ढूंढ़ने एक काम ठीक से नहीं कर सकते तुम निक्कमे.
डॉ.असलम को यूँ जाता देख बिल्लू कि खोपड़ी घूम गई "डॉ.असलम ठाकुर साहेब के बचपन के दोस्त है लेकिन उन्होने ठाकुर के अगवा होने का कोई खास असर नहीं पड़ा उल्टा कल कि आई नयी नवेली ठकुराइन को ढूंढने चल पड़े"
बिल्लू के मन मे शक का बीच पनप रहा था लाख अक्ल का दुश्मन सही लेकिन था तो ठाकुर का वफादार ही उसे असलम का रेवाइयां कुछ पसंद नहीं आया.
बिल्लू असलम के घर से बाहर निकला
कालू :- क्या करे बिल्लू भाई?
बिल्लू :- पुलिस कि मदद लेनी होंगी
रामु भी आ चूका था तब तक
तीनो वफादर अपने ठाकुर कि हिफाज़त के लिए निकल पड़े विष रूप पुलिस चौकी जहाँ आज ही इंस्पेक्टर काम्या ने चौकी इंचार्ज जोइन किया था.
वही गांव कामगंज मे जुए कि पहली बाजी लग चुकी थी
रामनिवास :- संभल के खेलना उस्ताद आज
उस्ताद :- देखते है किसकी किस्मत आज भारी है.
सत्तू और करतार खेल का हिस्सा नहीं थे उनके मुताबिक उनके पास पैसे ख़त्म हो चुके थे,मोटा माल सिर्फ उस्ताद के पास ही था.
कुछ ही मिनट बाद रामनिवास ये बाजी जीत गया.
रामनिवास :- हाहाहाहा.... कहा था ना संभल के खेलना
उस्ताद ने रामनिवास को उसकी जीत कि दाद दी "कोई बात नहीं भाई हार जीत होती रहती है लेकिन खेल मे कुछ मजा नहीं आ रहा कुछ शराब कबाब हो जाते तो मजा दुगना हों जाता.
अब रामनिवास पहली बाजी तो जीत ही गया था उसे ये बात सामान्य लगी.
लेकिन वो एक पल बहिनीस कमरे से हिलना नहीं चाहता था.
क्यूंकि जुए मे टोटका चलता है कि जो जहाँ बैठा जीत रहा वही बैठा रहे "अरे सत्तू जा अपनी भाभी से 4ग्लास मांग ला " लगभग रामनिवास ने सत्तू को आदेश दिया
अब उसे तो पैसा का गुरुर जो होने लगा था
उन तीनो कि आँखो मे तो वैसे ही रतिवती बस गई थी सत्तू तुरंत कमरे से बाहर निकल रसोई घर कि और चल पड़ा.
अंदर रतिवती चूल्हे पे झुकी हुई उकडू बैठ खाना बना रही थी जिस वजह से उसकी बड़ी गांड उभर के बाहर को निकली हुई थी,जो को अपनी बनावट को साफ झलका रही थी,जिसे देख सत्तू का ईमान डगमगाने लगा वो सिर्फ पैसे ही लूटने आया था परंटी इस कदर जवानी से भरपूर कामुक बदन को सामने देख उसके इरादे बदलने लगे थे. उसने खूब औरतों कि गांड मारी थी परन्तु ऐसी कामुक थार्थरती जवानी नहीं देखि थी. रतिवती कि गोरी पीठ अपनी सुंदरता बिखेर रही थी
सत्तू बिना आवाज़ किये धीरे से पीछे जा खड़ा हुआ,इत्मीनान से रतिवती कि हिलती बड़ी सी गांड को देखे जा रहा था.
तभी रतिवती पीछे पड़े बर्तन को हुई कि उसका हाथ सत्तू के पैर को छू गया रतिवती एकदम चौंक के खड़ी हो गई.
बिलकुल सत्तू के सामने "अअअअअ...आप यहाँ "
सत्तू :- वो वो....रामनिवास जी ने चार ग्लास मंगाए है.
रतिवती सत्तू कि घर घराहट सुन थोड़ा हॅस दी क्या हसीं थी एक दम गुलाब खिल गया हो जैसे.
रतिवती :- तो सीधा बोलिये ना डर क्यों रहे है रतिवती को वैसे ही हवस सवार रहती थी ऊपर से तीन तीन मुस्तडे घर मे पा के उसका दिल पहले से ही उमंग से भरा हुआ था.
रतिवती ने ग्लास पकड़ाते हुए अपना हॉट्ज सत्तू को छुआ दिया.
सत्तू तो मानो धन्य हो गया हो पहली बार इतना कोमल स्पर्श पाया होगा उसने
सत्तू :- भाईसाहब के पास इतने पैसे है किसी को खाना बनाने के लिए रख क्यों नहीं लेते आपकी सुंदरता मे दाग़ ना लग जाये
सत्तू कि तारीफ भरी बात सुन रतिवती का कामवासना से भरा दिल डोल गया, उसने एक प्यार भरी नजर से सत्तू को देखा और नजरें नीचे कर ली. जैसे तारीफ का शुक्रिया अदा कर रही हो.
रतिवती :- क्या करे हम औरतों कि जिंदिगी मे यही रसोई झाड़ू ही लिखा है.
सत्तू :- वैसे रामनिवास भाई पहली बाजी जीत गए है
ये सुन तो रतिवती का दिल रोमांच से भर उठा.
उसके दिमाग़ मे पैसा और हवस एक साथ दौड़ गए, उसने होने निचले होंठो को दांतो से दबा एक मुस्कान बिखेर दी. और अपना पल्लू ठीक करने को अपनी साड़ी ऊपर को चढाई तो,सामने पेट से साड़ी हट गई और सत्तू कि आंखे बड़ी होती चली गई
सामने रतिवती का होरा सुडोल पेट दिख रहा था जिसमे कामुक गहरी नाभि अपनी सुदरता खुद बयान कर रही थी.
सत्तू तो पहले ही घायल था उसे क्या पता था जुए के साथ साथ ऐसी हसीना के दर्शन भी होंगे
"सत्तू यार जल्दी ला ग्लास " अंदर से रामनिवास कि आवाज़ ने उसका ध्यान भंग कर दिया
"आया " बोल के सत्तू चल पड़ा परन्तु दरवाजे पे पहुंच के पीछे को पलटा "आप जैसे खूबसूरत स्त्री का यहाँ क्या काम " और चल दिया.
रतिवती ठगी सी रह गई उसे इस बात कि बिलकुल भीं उम्मीद नहीं थी परन्तु अपनी सुंदरता कि तारीफ से गदगड हो गइ इतनी कि उसकी जाँघ के बीच झुरझुरी सी दौड़ गई,रतिवती को आदत लग गई थी बाहर मुँह मरने कि और लगे भी क्यों ना ऐसा मादक बदन ले के जाना कहा है.
रामनिवास :- बड़ी देर लगाई भाई ग्लास लाने मे?
सत्तू :- यार मिल ही नहीं रहा था भाभीजी को.
उस्ताद :- अच्छा अब अगली बाजी से पहले एक एक हो जाये रामनिवास तो था ही पक्का शराबी उसे कोई ऐतराज़ नहीं था
सभी के गिलास मे दारू भर दी गई और यहाँ से शुरू हो गया था उन तीनो का प्लान,रामनिवास को इस कदर नशे और दौलत मे अंधा कर देना था कि सत्तू अपने पत्ते बाटने कि कलाकारी को अंजाम दे सके.
दो तीन दारू के दौर चले सभी कि आँखों मे नशा साफ दिख यह था.
"अजी सुनते हो कामवती के बापू " बाहर से रतिवती कि मोहनी आवाज़ ने सभी का ध्यान भंग किया
"हाँ बोलो भाग्यवन " रामनिवास ने अंदर बैठे ही बोला उसकी इच्छा नहीं थी उठ के जाने कि
रतिवती रामनिवास को बाहर ना आता पा के अंदर को चली आई,सभी कि नजर मे नशा था अब इस नशे मे शबाब भी मिल गया था तीनो ही रतिवती को आंखे फाड़ देख रहे थे.
तीनो ने ऐसी सुंदरता कहाँ देखि थी कभी कभी शहर या गांव कि घिसीपीती रंडियो को चोद लिया करते थे.
रतिवती भी उन तीनो कि हालात से वाकिफ हो गई,उसकी नजर रामनिवास के बाजु मे पड़े नोटों के बंडल पे पड़ी तो मारे खुशी के उसका दिल झूम उठा.
उसे पैसो का लालच वैसे ही था इसी लालच वंश उसकी नजर तीनो कि और चली गई जिसमे कि उस्ताद ने अपना लंड पजामे के ऊपर से ही सहला दिया,खुद को कैसे काबू करता कोई मर्द.
रतिवती इस हरकत से तनिक भी विचलित नहीं हुई बल्कि मुस्कुरा के रह गई.
उसके दिमाग़ मे कुछ तो चल रहा था लेकिन कैसे करे ये समझ नहीं आ रहा था उसे पैसो के साथ साथ तीन तीन मुस्तडे भी दिखाई पड़ रहे थे.
"खाना बन गया है " रतिवती ने अपना ध्यान रामनिवास कि तरफ किया
रामनिवास :- अभी तो एक ही बाजी हुई है भाग्यवान,खाना बाद मे
आओ तुम भी बैठ के खेल देखो अकेले क्या करोगी बाहर
लो रामनिवास ने तो सबकी मन कि हसरत ही पूरी कर दी, रतिवती और उस्ताद और बाकि लोग भी यही चाहते थे.
रतिवती :- मै...मैम...यहाँ कैसे? जानबूझ के हकला रही थी जैसे बता रही हो कि कितनी सती सावित्री है.
उस्ताद :: अरे भाभीजी आपका ही घर है हम तो मेहमान है सिर्फ आज रात के
"आज रात " पे ज्यादा जी जोर था. ऐसा बोला एक बार फिर अपने पाजामे के उभार को सहला दिया.
रतिवती :- ठीक है आप कहते है तो बोल वो रामनिवास को रही थी परन्तु तिरछी नजर से उस्ताद के पाजामे के उभार को देख हिसाब भी लगा लिया कि कैसा हथियार होगा.
मुस्कान के साथ छेल छबिली रतिवती अपने मरियल शराबी पति के बाजु मे बैठ गई.एक कामुक मुस्कान के साथ पतीव्रता संस्कारी नारी
पत्ते फिर सामने रखी मेज पर गिर पड़े.
वही दूसरी और कालू रामु बिल्लू दौड़े दौड़े विष रूप चौकी पहुचे.
हवलदार बाबू हवलदार बाबू...गजब हो गया
सामने बैठे रामलखान कि मेज पर सीधा आ धमके तीनो.
रामलखन :- क्या हुआ क्यों मरे जा रहे हो?
बिल्लू :- चल हमारे साथ अभी
रामलखान :- बोलो तो भाई क्या हुआ?
कालू :- साले जनता नहीं हम ठाकुर के आदमी है,बोला ना जल्दी चल साथ मे दो चार हवलदार और ले ले.
रामलखान सकपका गया,पास खड़ा बहादुर जब से तीनो के देख रहा था.
बहादुर :- अरे भाई पुलिस ऐसे काम नहीं करती कोई नियम होता है पहले FIR लिखनी होती है फिर कर्यवाही होती है.
बिल्लू :- तू कौन है बे? नया आया है क्या हमें नहीं जनता ठाकुर ज़ालिम सिंह के आदमी है हम
मुँह बंद रख और साथ चलो हमारे
कि तभी धड़ाक...एक जोरदार लात बिल्लू कि पिछवाड़े पे पड़ी,बिल्लू वही धाराशाई हो गया.
"ये मेरा थाना है यहाँ मेरी मर्ज़ी चलती है " पीछे इंस्पेक्टर काम्या गुस्से से तिलमिलाये खड़ी थी
काम्या :- बहादुर सही कह रहा है पहले FIR दर्ज होंगी
कालू :- साली तू है कौन तेरी इतनी हिम्मत,कालू ने आज तक ऐसा बर्ताव सहन नहीं किया था उसने काम्या का गिरेबान पकड़ दिया.
"आअह्ह्ह......करता कालू जमीन पे धाराशाई हो गया " मदरचोद हरामखोर मेरा गिरेबान पकड़ता है मेरा इंस्पेक्टर काम्या का.
एक लात दोनों जांघो के बीच पड़ गई
कालू के टट्टे मुँह को आ गए.
हरामखोरो सुना नहीं मैंने क्या कहाँ ये थाना मेरा है यहाँ मेरी मर्ज़ी चलेगी.
रामु जो दूर खड़ा था वो अब तक समझ चूका था "वो...वो...दरोगा साहेब हमें पता नहीं था कि आप कौन है?
काम्या :- तो पुलिस को अपने बाप कि जागीर समझ रखा है क्या?
रामु :- माफ़ करना दरोगा मैडम हमारे ठाकुर साहेब को रंगा बिल्ला उठा ले गए है इसलिए ये दोनों आपे से बाहर हो गए.
काम्या :- रंगा बिल्ला ये नाम सुनते ही उसकी आँखों मे ज्वाला उठने लगी.
बहादुर काम्या के इस रोन्द्र रूप को दिल्ली चूका था परन्तु बाकि के लोगो कि ऐसी हालात थी कि पैंट मे मूत देते
काम्या :- वहा बहादुर के पास FIR दर्ज करवा दो और फुट लो यहाँ से कल आना देखते है क्या जो सकता है.
तीनो को सारी होशियारी निकल गई थी.
सभी लोग काम्या को जाते देखते रह गए
कालू :- साली क्या चीज थी ये?
रामलखन :- लंड तुड़वा के भी होश नहीं आया तुझे दरोगा वीरप्रताप कि बेटी है ये आज ही जोइन किया है.
काम्या का चेहरा गुस्से से लाल था उसके जहन मे सिर्फ और सिर्फ रंगा बिल्ला ही चल रहे थे,
उसे जल्द से जल्द रंगा बिल्ला तक पहुंचना था.
काम्या को उन दोनों तक पहुंचने मे वक़्त था
परन्तु कोई और शख्स रंगा बिल्ला तक पहुंच चूका था.
"रंगा बिल्ला हुरामखोरो ये क्या किया तुमने " वो अजनबी आते ही बरस पड़ उन दोनों पे
रंगा :- क्या हुआ मालिक जैसा अपने कहाँ था वैसा ही तो किया है ठाकुर ज़ालिम को उठा लिया.
"अबे उल्लू के चरखो "कामवती कहाँ है?
बिल्ला :- वो तो ठाकुर के आदमियों के साथ हवेली पहुंच चुकी होंगी
" सालो मुँह बंद रखो अपना, कामवती को बिल्ला ने ठोकर मेरी वो कही खाई मे गिर गई उसके बाद मिली नहीं, मैंने सख्त हिदायत दी थी कि कामवती को कुछ नहीं होना चाहिए "
रंगा :-.माफ़ करना डॉ.असलम वो...ध्यान ही नहीं रहा हमारा सारा ध्यान ठाकुर और उसके आदमियों पे था
डॉ.असलम :- मैंने ये पूरी योजना कामवती को पाने के लिए ही बनाई थी और तुमने उस पे पानी फेर दिया.
बिल्ला :- आप चिंता ना करे कल सुबह होते है हूँ. खोज लाएंगे आपकी कामवती को
डॉ.असलम :- ऐसा ही हो तो ठीक है वरना तुम्हारी खेर नहीं.
ऐसा बोल असलम वहा से वापस हवेली कि और निकल गया उसे कामवती कि चिंता सता रही थी.
क्या नहीं किया उसने कामवती को पाने के लिए मित्रघात तक कर दिया
तो क्या असलम अपने इरादे मे कामयाब होगा?
रतिवती के दिमाग मे क्या है?
काम्या क्या अपना बदला ले पायेगी?
बने रहिये कथा जारी है...
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