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मेरी बवी अनुश्री -6

मेरी बीवी अनुश्री

भाग-6


सुबह का सूरज निकल गया था, बाहर चिडियो कि चहचाहने कि आवाज़ ने मंगेश कि नींद खोल दी.

मंगेश अंगड़ाई लेता हुआ उठ बैठा,अनुश्री कि तरफ देखा तो वो मुस्कान लिए सो रही थी बिल्कुल बेफिक्र,मंगेश को कल रात का वाक्य याद आ गया जब वो थका होने के बावजूद वासना मे अपनी प्यारी बीवी के साथ डुबकी लगा रहा था


"उठो जान...सुबह हो गई कितना सोओगी?" मंगेश ने अनुश्री को झकझोड़ के उठाया और खुद बाथरूम कि और चला गया.

अनुश्री किसी हिरणी कि तरह अपनी बड़ी आंखे खोल दी और दोनों हाथ ऊपर के एक लम्बी सी अंगड़ाई ली,

उसे अपना बदन काफ़ी हल्का लग रहा था,शरीर मे एक ताज़गी सी दौड़ रही थी.

अनुश्री पलग से उठ खिड़की के पास गई एयर पर्दा हटा दिया "वाओ......क्या नजारा है सामने ही समुद्र कि लहरे जमीन से टकरा रही थी,एक ताजी हवा के झोंके ने अनुश्री के तन बदन को भिगो दिया.

ऐसा आनंद उसjने कभी भी महसूस नहीं किया था, उसे अपना बदन किसी फूल कि तरह लग रहा था बिल्कुल हल्का.

"अरे उठ गई तुम....क्या देख रही हो बाहर " मंगेश ने बाथरूम से बाहर आते हुए कहा.

अनुश्री जो कि काफ़ी ख़ुश दिख रही थी मंगेश के गले जा लगी "कितनी अच्छी जगह है ना मंगेश?"

"हाँ जान जगह तो अच्छी है, अच्छा चलो जल्दी से तैयार हो लो पहले मंदिर ही दर्शन कर आते है, मै राजेश को फ़ोन कर देता हूँ वो और माँ जी भी साथ ही चल चलेंगे "

अनुश्री :- ओके मंगेश अभी आई

अनुश्री बाथरूम मे चली गई लेकिन जैसे ही खुद को सामने शीशे मे देखा तो हैरान रह गई उसका चेहरा चमक रहा था, माथे को कोई सिकन नहीं थी.

उसने अपनी साड़ी को उतार दिया, खुद के कामुक बदन को देख बुरी तरह से शर्मा गई, बड़े बड़े स्तन किस कदर छोटी सी स्लिवलेस ब्लाउज मे कैद थे,नीचे सपाट पेट जिसमे अंदर कि ओर धसी हुई नाभि चार चाँद लगा रही थी.ब्लाउज के ऊपर के दो बटन खोल चुकी थी.

नाभि से नीचे बंधा पेटीकोट,हल्का सा भी नीचे हो जाता तो सुरमाई दरार दिख जाती.

अनुश्री ने पेटीकोट का नाड़ा पकड़ लिया लेकिन जैसे ही उसे खोलने लगी उसके शीशे मे दृश्य बदलने लगा,सामने मिश्रा अपने पाजामे का नाड़ा पकड़े खड़ा था.

"नहीं....नहीं......वापस नहीं....".चेहरे कि मुस्कान गायब होने लगी,सांसे वापस से भारी होने लगी.

उसके सामने मिश्रा धीरे धीरे खुद के पाजामे का नाड़ा खिंच रहा था..... अनुश्री के हाथ भी अपने पेटीकोट के नाड़े पे बुरी तरह जम गए थे,धीरे धीरे नाड़ा बाहर को ओर खींच रहा था

"सररररर.........करता मिश्रा का पजामा पैरो मे इक्क्ठा हो गया सामने वही भयानक काला मगर सुन्दर सुडोल लूंगा एकदम खड़ा था

"नाहीईईईई......अनुश्री ने अपनी आंखे बंद कर ली"


ये नहीं ही सकता अनुश्री ने वापस धीरे से आंखे खोली बाथरूम मे कोई नहीं था सामने शीशे मे सिर्फ वही थी कमर से नीचे एकदम नंगी,उसका पेटीकोट पैरो मे जमा हो गया था.

अनुश्री ने इस बार खुद से ही नजर फेर ली, "क्या हो गया है मुझे,मै पतीव्रता हूँ,मुझे पहले ही भाग जाना चाहिए था"

"सररररररर.....करता हुआ ऊपर फववारे से पानी उसके अर्धनग्न बदन को भीगाने लगा " अनुश्री ने शावर चालू कर दिया था


पानी कि गर्माहट मे उसके बदन के साथ साथ उसका दिमाग़ भी धुलने लगा.

जब वो बाथरूम से बाहर निकली तो एक दम फ्रेश थी चमक रही थी,उसने फैसला कर लिया था.

वो सिर्फ मंगेश कि है "रात गई बात गई "

 मंगेश रूम मे नहीं था शायद राजेश के पास गया हो अनुश्री तैयार होने लगी सफऱ के पहले दिन के लिए


रूम नंबर 103

यहाँ राजवंती सुबह सुबह ही तैयार हो गई थी हलके कलर कि साड़ी और स्लिवलेस ब्लाउज पहने खुद को शीशे मे निहार रही थी.

"इतनी भी बूढ़ी नहीं हुई हूँ मै " बोल के खुद ही हॅस पड़ी

"क्या माँ किस से बात कर रही हो " राजेश ने कमरे मे दाखिल होते हुआ कहा.

राजवंती आवाज़ कि दिशा मे पलट गई राजेश तो अपनी माँ को देखता ही रह गया एक गोरी काया बिना किसी लाली लिपस्टिक के उसके सामने खड़ी थी "वाओ माँ आप कितनी सुन्दर दिख रही है" आज पहली बार राजेश ने अपनी माँ कि सुंदरता को जाना था


"धत...पागल कही का कहाँ सुंदर हूँ,बूढ़ी हो गई हूँ घोड़े जैसा बच्चा है मेरा " राजवंती ने झेपते हुए कहा परन्तु कही ना कही वो खुद कि तारीफ सुन अंदर ही अंदर गद गद हो गई थी


"अरे भई कौन बूढ़ा हो गया है " मंगेश कमरे के दरवाजे पे खड़ा हुआ ही बोला

राजवंती :- अरे बेटा आओ अंदर देखो ये तुम्हारा दोस्त मुझे सुन्दर बोल रहा है राजवंती ने बड़ी ही अदा के साथ ये बात कही

उसे ये माहौल ये खुशनुमा सुबह अपने रंग ने रंग रही थी


"हाँ तो गलत कहाँ कह रहा है,आप वाकई इस साड़ी मे सुन्दर लग रही है,और कौन कहता के कि आप बूढ़ी हो गई है" मंगेश कमरे मे आ चूका था.

राजवंती लगातर अपनी सुंदरता कि तारीफ सुनी जा रही थी उसे यकीन हो चला था कि वो वाकई आज भी सुंदर है उसके दिल ने इस नयी जगह पे जवानी कि अंगड़ाई ली थी.

"चलो भाई राजेश जल्दी दर्शन कर आते है "

हाँ भैया बस मै 2मिनट मे तैयार हो के आया " राजेश बाथरूम कि और चल दिया.

"अनुश्री बेटी कहाँ है?" राजवंती ने अपने बालो को सावरते हुए पूछा.

"बस तैयार ही हो रही है आइये " राजवंती और मंगेश दोनों 102 रूम कि तरफ आ गए.

"ठक ठक ठक....अरे और कितना टाइम लगेगा जल्दी आओ " मंगेश ले दरवाजे को पीटते हुए बोला


"आई बाबा....2मिनट " अनुश्री अंदर से ही चिल्लाई जो कि अपने लाल होंठो पे लाल सुर्ख लिपस्टिक लगा रही थी.

उसने नारंगी कलर का कुर्ता, ब्लैक लेगी पहन ली थी जो कि उसके बदन को बिल्कुल ही कसी हुई थी स्तन तो ऐसे उभार लिए हुए थे कि कोई देख भर लेता तो शहीद हो जाता,ऊपर से बाहर को निकले हुए बड़े नितम्भ अपनी जवानी का भरपूर सबूत पेश कर रहे थे.

2मिनट बाद जैसे ही दरवाजा खुला मंगेश और राजवंती दोनों ही अनुश्री कि खूबसूरती से प्रभावित हो गए.

"क्या बात है बेटी बहुत सुन्दर लग रही हो,मंगेश बेटा बहुत खुशकिस्मत है " राजवंती ने अपनी आँखों का काजल अनुश्री कि गर्दन पे लगाते हुए बोला.

अनुश्री :- क्या माँ जी,  आप भी कोई काम नहीं लग रही हो,क्यों मंगेश?

"हाँ हन...दोनों ही अच्छी लग रही हो " मंगेश तो झेम्प ही गया था दो खूबसूरत औरतों का साथ पा के.

खुद के पति का ये हाल था तो ना जाने बाकियो का क्या होना था.

राजेश भी तब तक आ पहुंचा था,चारो साथ ही नीचे उतरे.

"अजी तुम फॅमिली कही जाता क्या " अन्ना ने टोका जो कि रिसेप्शन के बाहर ही खड़ा था.

मंगेश :- अन्ना वो मंदिर दर्शन को जा रहे है.

पहले अन्ना ने सभी को देखा लेकिन जैसे ही उसकी नजर राजवंती पे पड़ी वो वही ठहर गया,उसका दिल धक से एक ही जगह जम गया आज तक लाखो लोग उसके होटल मे आये थे उसने कभी इस तरह किसी को नहीं देखा परन्तु राजवंती....इसमें कोई बात थी,अन्ना एक टक उसे ही देखे जा रहा था उसके सूखे जीवन मे बारिश कि पहली बून्द पड़ती महसूस हो रही थी


राजेश :- अन्ना आप कुछ बोल रहे थे

"मै....मै.....हनन....मै बोल रहा था कि होटल कि गाड़ी से जाइये हमारा ड्राइवर तुमको दर्शन करा लाता " अन्ना खुद को सँभालते हुए बोला

राजेश और मंगेश एक दूसरे को देख रहे थे, इतने कम किराये मे कार कि सर्विस भी है?.

अन्ना उन दोनों कि मनोदशा समझ गया था "अजी फ़िक्र नहीं करने का ये सर्विस होटल कि तरफ से मुफ्त होने का " अन्ना साफ झूठ बोल गया था,अन्ना free मे एक पानी कि बोत्तल भी नहीं देता था.

"अब्दुल..अय्यो अब्दुल " अन्ना ने जोर से अब्दुल को आवाज़ लगाई परन्तु उसकी नजरें अभी भी राजवंती पे ही टिकी हुई थी जो कि उसके पुरे बदन को टटोल चुकी थी.

राजवंती भी अन्ना कि नजर अपने बदन पे पा के झेम्प गई,शर्म से सर नीचे झुका लिया

परन्तु अब्दुल नाम सुनते ही अनुश्री सकते मे आ गई उसे पता था कि अब्दुल कौन है " क्या जरुरत है कार कि हम ऑटो से चल लेंगे ना " अनुश्री ने मंगेश के कान मे धीरे से कहा.

अब मांगेस तो ठहरा पक्का गुजराती "अरे कुछ पैसे बच ही रहे है तो अच्छा है ना,ऑटो के धक्के खाने से अच्छा है कार मे चले "

अब क्या कहती अनुश्री,कैसे समझाती "ठीक है " दिल पे पत्थर रख अनुश्री ने हामी भर दी.


"जी मालिक....बुलाया आपने " अब्दुल पहुंच चूका था उसकी नजरें तो अनुश्री पे ही जम गई थी

लगता था आज क़यामत के दिन है अब्दुल से कोई उसका सर भी मांगता तब भी उसके बदले वो अनुश्री को जी भर के देखने कि ही इच्छा मांगता.

"ये फॅमिली होना इनको जगनाथ टेम्पले दर्शन करा के आने का " अन्ना ने ऑर्डर दे मारा और अपनी बत्तीसी राजवंती कि तरफ चमका दी जैसे उसकी खिदमत मे किया हो ये सब.

" अभी लो मालिक..." अब्दुल कि तो मन मुराद पूरी हो गई मानो.

"आइये साहेब आइये मैडम...कार बाहर ही खड़ी है "  सब आगे को चल पड़े सबसे पीछे अनुश्री भारी कदमो से चल रही थी उसका एक मन कह रहा था कि सफर यही ख़तम कर दे

"लगता है मैडम ब्लैक आपका फेवरेट कलर है "अब्दुल ने पीछे से उसकी बड़ी सी गांड को ब्लैक लेगी मे घूरते हुए कहा जो कि अनुश्री के कदम ताल से थिरक रही थी.

अनुश्री कुछ नहीं बोली बस हल्का सा मुस्कुरा दी ना जाने क्यों उसे अब्दुल कि बात अच्छी लगी थी,वाकई उसका फेवरेट कलर ब्लैक ही था.

सभी कार के पास पहुंच चुके थे आगे मंगेश बैठ गया पीछे राजेश,राजवंती और अनुश्री बैठ गए.

"चले मैडम..." अब्दुल ने कार के मीरर को एडजस्ट करते हुए पूछा जिसमे अनुश्री का सुन्दर चेहरा दिख रहा था.

"चलो भाई अब देर कैसी " जवाब मंगेश ने दिया.

रास्ते भर अनुश्री के दिमाग़ मे तरह तरह के सवाल कोंध रहे रहे जिसका जवाब भी वो खुद ही देती "तारीफ ही तो कर रहा था "

फिर कभी सामने मिरर मे अब्दुल और अनुश्री कि नजर मिल जाती,अनुश्री लाख चाहती थी कि वो वहा ना देखे परन्तु ना जाने क्यों नजरें वहा चली ही जाती.

अनुश्री के मन मे तूफान जारी था वही राजवंती के दिल मे भी तूफ़ान उठने लगा था अन्ना कि नजरें उसे अभी भी चुभ रही थी, "क्या अन्ना ने सिर्फ मेरी वजह से कार दी या वाकई मे होटल के सर्विस है ये " राजवंती दुविधा मे थी लेकिन अन्ना कि नजरें तो ऐसी नहीं थी "क्या मै वाकई मे अभी भी जवान हूँ, शायद हूँ तभी तो मेरा बेटा तक तारीफ कर रहा था"

राजवंती को जवाब मिल गया था वो जवान है 100% जवान है.


"लो जी साहेब आ गया मंदिर " अब्दुल ने गाड़ी रोकते हुए कहा

अनुश्री और राजवंती जैसे किसी सपने से जागे हो "इतनी जल्दी " दोनों के मुँह से एक साथ निकल गया

मंगेश :- 10km का सफर था आंटी जी

दोनों को ऐसे लगा जैसे पल भर मे सफऱ ख़त्म हो गया हो.

पांचो मंदिर के नजदीक पहुंच गए लम्बी लाइन लगी हुई थी.

राजवंती :- अरे बाप रे ये तो बहुत लम्बी लाइन है पूरा दिन दर्शन मे ही निकल जायेगा.

"क्यों चिंता करते हो आंटी जी ये अब्दुल किस चिड़िया का नाम है आइये मेरे साथ " अब्दुल ने राजवंती को कहाँ परन्तु नजर अनुश्री पे ही थी जैसे कोई अहसान जता रहा हो.

अब्दुल एक पुलिस वाले के पास गया जो कि लाइन को मैनेज करने कि ड्यूटी पे था और पल भर मे ही वापस आ गया.

अब्दुल ना जाने किस जुगाड़ से उन्हें एक छोटी लाइन मे ले आया " जल्दी घुसीए साहेब भीड़ है किसी को कुछ पता नहीं चलेगा " अब्दुल ने जल्दबाजी दिखाते हुए ऐसा इंतेज़ाम कर दिया कि राजवंती लाइन मे सबसे आगे,पीछे राजेश फिर मंगेश उसके पीछे अनुश्री और उसके भी पीछे अब्दुल.

अनुश्री अब्दुल को अपने पीछे पा के बुरी तरह चौंक गई "तत्तत...तुम भी दर्शन करोगे? लेकिन तुम तो...."

अब्दुल ने अनुश्री को आगे बोलने भी नहीं दिया "यही ना कि मै मुसलमान हूँ भगवान तो सबका है आप जागनाथ बोलती हो मै अल्लाह बोलता हूँ बाकि कोई अंतर नहीं है " अब्दुल ने साफ और स्पष्ट नजरिया रख दिया था.

अनुश्री अब्दुल कि बात सुन गदगद हो गई, अनुश्री ने कभी भी जाती धर्म को के के भेदभाव नहीं किया था आज अब्दुल के कथन उसके दिल को छू गए थे "भगवान तो सबका है "

"ये आदमी ऐसा विचार रखता है मै कितना गलत सोच बैठी थी "

अनुश्री हलका सा पीछे मुड़ मुस्कुरा दी जैसे अब्दुल का सुक्रिया अदा किया हो.


लाइन आगे बढ़ चली,आगे चलते चलते लाइन और ज्यादा कंजेस्ट होती जा रही थी लोग बाग़ आपस मे चिपके जा रहे थे,

अब्दुल भी जा लगा अनुश्री के पीछे "आआउउउच.....ये क्या कर रहे हो " अनुश्री ने अब्दुल को कहा

अब्दुल :- मैडम वही धक्का भीड़, वैसे आपको ब्लैक इतना क्यों पसंद है?

अब्दुल ने वार्तालाप शुरू करने के उद्देश्य से कहा.

अनुश्री :- क्यों नहीं हो सकता क्या? अनुश्री अब अब्दुल से झिझक नहीं रही थी वो अब्दुल के विचार से प्रभावित थी.

अब्दुल :- हो सकता है ना मै तो इसलिए पूछा क्यूंकि आप कच्छी भी काली पहनती है और पजामी भी काली.

आपकि काली कच्छी ने तो बेचारे मिश्रा का जीवन ही हराम कर दिया है.

अब्दुल के मुँह से काली कच्छी कि बात सुनते ही उसका दिल धक से मुँह को आ गया. उसे कल रात कि घटना याद आ गई जब वो अपनी पैंटी को देख रही थी उसपे कुछ लगा था सफ़ेद सफ़ेद सा,जो कि मिश्रा के कहे अनुसार उसका वीर्य था.

वो पल याद आते ही उसके जहन मे चीटिया सी रेंगने लगी,गला सूखने लगा वो भूल गई कि मंदिर कि लाइन मे खड़ी है

अब्दुल :- क्या हुआ मैडम कहाँ खो गई अब्दुल ने पीछे से अपनी कमर को उसके नितम्भ पे सटा दिया एक दम कस के


"आआउउचच्चाह्म..."अनुश्री जैसे वास्तविकता मे आ गई,"ये...ये....क्या कर रहे हो "

"आप बहुत खूबसूरत है मैडम जी " अब्दुल ने ऐसा बोलते हुए एक हल्का सा धक्का अनुश्री के नितम्भ मे मार दिया.

एक सख्त सी मोटी गुदगुदी चीज का अहसास अनुश्री को अपनी गांड पे साफ महसूस हुआ.

"आअह्ह्ह....पीछे हटो " अनुश्री के मुँह से हलकी सी सिसकरी फुट गई परन्तु उसने आगे होने कि कोशिश नहीं कि

"भीड़ बहुत है मैडम जी " बोलते हुए अब्दुल ने अपनी कमर को और आगे को दबा दिया.

अनुश्री को अपनी टाइट लेगी मे कसे हुए नित्मभो मे वो बेलनाकार चीज साफ महसूस होने लगी,अनजानी सी कसमकास ने उसे फिर से घेर लिया बदन ना चाहते हुए भी गरम होने लग उत्तेजना वंश अनुश्री ने आंखे बंद कर अपने हाथ आगे मंगेश के कंधे पे रख दिए जिस वजह से उसके नितम्भ और पीछे को हो गए.

"मैडम मुझे भी कोई गिफ्ट दे दीजिये ना अपनी काली कच्छी तो आपने मिश्रा को दे दी मेरा क्या?" बोलते हुए मिश्रा ने एक हलके से धक्के से अपने लिंग को अनुश्री के निताम्बो के बीच दबा दिया.

हालंकि कपडे होने कि वज़ह से कुछ हो नहीं सकता था लेकिन उस बेलनाकार बड़ी सी चीज का अहसास साफ महसूस हो सकता था.

बार बार अनुश्री कि पैंटी का जिक्र हो रहा था बार बार अनुश्री के सामने कल रात कि घटना दौड़ जाती, अनुश्री आंख बंद किये मगेश के कंधे पे हाथ रखे खुद कि साँसो को दुरुस्त करने कि नाकाम कोशिश कर रही थी.

"बोलिये ना मैडम दोगी ना गिफ्ट " अब्दुल ने एक घिस्सा और मार दिया.

"आआहहहहह......हान दे दूंगी " अनुश्री इस बार वासना भरी आवाज़ मे ज़्यदा तेज बोल गई.

"क्या दे दोगी जान " मंगेश ने पीछे मुड़ के अनुश्री से पूछा.

"मममम....कुछ नहीं " अनुश्री ने आस पास देखा लाइन खत्म हो गई थी सामने जगन्नाथ जी कि मूर्ति थी,

उसे पता ही नहीं चला उसने कब ये भीड़ भरा सफऱ पूरा कर लिया था.

पल भर मे ही उसका नशा वासना काफूर हो गए,"हे भगवान ये क्या हो रहा है मेरे साथ " अनुश्री ने एक बार पीछे मुड़ के देखा अब्दुल पीछे ही परन्तु दूर खड़ा था.

"मांग लीजिये मैडम जो मांगना है यहाँ से खाली हाथ कोई नहीं जाता " अब्दुल बोल के मुस्कुरा दिया


अनुश्री भी मुस्कुरा दी अब्दुल उसकी समझ से परे था

अनुश्री ने भगवान जगन्नाथ के सामने हाथ जोड़ दिए,अपनी मन कि मुराद मांग ली,अपनी कोख मे बच्चा मांग लिया.

"भगवान मेरी कोख भर दीजिये "


तो क्या भगवान जगन्नाथ अनुश्री कि सुन लेंगे?

अनुश्री यहाँ से खाली हाथ मतलब खाली कोख नहीं जाएगी.

****************


अनुश्री ने दिल से मन्नत मांगी "भगवान मेरी कोख भर देना "

और आंखे खोल दी जैसे जी आंखे खोली सामने ही अब्दुल खड़ा मुस्कुरा रहा था,कैसे उसने अनुश्री कि मुराद सुन ली हो.

"हटो सामने से " अनुश्री ने चौकते हुए बोली अनुश्री ने वापस आंख बंद कर सर झुका दिया.

दर्शन हो चुके थे.

"वाह अब्दुल मियां तुम तो बड़े काम के आदमी हो चुटकी मे काम करा दिया " मंगेश ने अब्दुल के गले मे हाथ डाल कहा.

सभी लोग मंदिर से बाहर के रास्ते पे थे.

"साहब मै वो हर काम कर सकता हूँ जो आपके बस का नहीं है " अब्दुल ने जवाब मंगेश को दिया परन्तु देख अनुश्री कि तरफ ही था.

ना जाने क्या भेद था उसकी बातो मे.

सूरज सर पे चढ़ आया था दोपहर हो चुकी थी

चारो होटल पहुचे तो पाया कि होटल को सजाया जा रहा है,गुब्बारे फ्लावर इत्यादि से.

मंगेश :- अरे आज क्या बात है ये रौनक कैसी होटल मे?

"अय्यो आज हमारा बर्थडे होना" पीछे से अन्ना ने जवाब दिया को को रिसप्शन से निकल के आया था.

मंगेश :- अरे वाह अन्ना मुबारक हो, मंगेश के बाद सभी ने अन्ना को विश किया

अन्ना :- आप लोग भी शाम कि पार्टी मे आना.

चारो ही अन्ना कि बात पे एक दूसरे को देखने लगे जैसे संकोच कर रहे हो अनजान आदमी कि पार्टी मे?

"मेरा कोई परिवार तो है नहीं,होटल है लोग ही मेरे अपने है " अन्ना ने जैसे उनके मन कि बात समझ ली हो

अन्ना ने ये बात रेखा कि तरफ देख के कही थी.

रेखा जो अन्ना कि नजरों को भाम्प रही थी उसे पहली बार अन्ना कि नजरों मे अपने लिए इज़्ज़त दिखी.

राजेश :- ठीक ही तो कह रह है अन्ना जी,क्यों मंगेश भैया


मंगेश :- हाँ भाई बात तो ठीक है वैसे भी पार्टी तो होटल मे ही है ना.पार्टी मे क्या हर्ज़ है वैसे भी हम लोग मौज मस्ती के लिए ही आये है.

चारो अपने आने कमरे मे चले गए.

रूम नंबर 102

"क्या जरुरत थी पार्टी मे जाने का बोलने कि " अनुश्री मंगेश पे भुंभूनाती हुई बोली

मंगेश :- अरे मेरी जान हम मौज मस्ती के लिए ही तो आये है

"लेकिन मुझे आपके साथ टाइम स्पेंट करना था,ना कि किसी पार्टी मे "

मंगेश :- तो क्या हुआ हम साथ ही तो है

अनुश्री बुरी तरह पैर पटकती हुई बाथरूम कि ओर चल दी,

"कैसा ना समझ है मंगेश,मै यहाँ गर्भवती होने कि कामना ले के आई हूँ इसे पार्टी कि पड़ी है"

बोलते हुए अनुश्री ने अपने बालो को खोल पीछे को कर दिया,बाथरूम मे एक खूबसूरती सी फ़ैल गई.

"मुझे बीच जाना था,समुन्द्र देखा ही कहाँ है मैंने पास से " अनुश्री ने चेहरे पे ठन्डे पानी के छींटे मारे.

ठंडा पानी मुँह ले पड़ते ही अनुश्री का गुस्सा कम होने लगा,

'"कोई बात नहीं मेरा पति नासमझ है तो क्या हुआ, कोई स्त्री अपने पे आ जाये तो अच्छे अच्छे ऋषियों कि तापसाया भंग हो जाती है " तौलिये से अपने चेहरे को पोछ लिया,

चेहरा वापस से दमक पड़ा एक दम गोरा उजला खूबसूरत

शीशे मे खुद के अक्स को देख अनुश्री को एक पल को गर्व महसूस हुआ "मेनका बनना होगा अनुश्री तुझे भी अपने पति के लिए "

मुस्कुराती अनुश्री बाथरूम से बाहर आ गई, वो निश्चित कर चुकी थी कि वो यहाँ मौजमस्ती के लिए ही तो आई है.

"पार्टी शाम कि है रात तो अपनी है" अनुश्री के चेहरे पे कामुक मुस्कान थी.


रूम नंबर 103

"कैसा लगा माँ मंदिर जा के " राजेश ने अपनी माँ से पूछा जो कि आते ही बिस्तर पे लेट गई थी.

रेखा :- बहुत अच्छा बेटा मेरी तो दिल कि मुराद पूरी कर दी तूने बस अब मुझे कोई बढ़िया सुशील बहु मिल जाये तो गंगा नहा लू.

"क्या माँ आप भी " राजेश पिनक गया.

रेखा :- अच्छा बेटा सुनो शाम को पार्टी मे तुम चले जाना मेरा मन नहीं है, और मेरा क्या काम उस शोर शरबे मे?

राजेश :- क्या माँ आप भी एन्जॉय करो ना

रेखा :- बेटा थक गई हूँ मंदिर कि लाइन मे खडे खड़े पाँव दर्द कर गए है तुम चले जाओ और कोई अच्छी लड़की भी देख लेना

रेखा ने अपने बेटे को छेड़ दिया.

"क्या माँ....आप नहीं मानेगी " पैर पटकता राजेश कमरे से बाहर को चला गया.

पीछे रेखा सोचती रह गई "कितना भोला है मेरा बेटा,इतना भी नहीं समझता अरे यही तो वक़्त है मेरे जैसा बूढ़ा हो जायेगा तब इस शरीर के क्या फायदा?"


सामने ही शीशे मे रेखा को अपना वजूद देख रही थी,"क्या फायदा इस शरीर का?"

ये विचार आते ही उसे ट्रैन कि घटना ने घेर लिया "उस भिखारी को तो ऐसा नहीं लगा,और ये होटल का अन्ना सुबह से मुझे ही देख रहा था,पार्टी के लिए भी ऐसे बोल रहा था जैसे कोई मुझसे ही विशेष आग्रह कर रहा हो "

रेखा के विचार उसे झकझोड़ रहे थे,वो शीशे मे दीखते अपने अक्स को निहार रही थी "मेरा शरीर इतना भी तो बूढ़ा नहीं हुआ है,मैंने भी तो जीवन के 15 साल बेकार कर दिए,

लेकिन कर भी क्या सकती थी"

विचारों मे खोई रेखा के बदन से एक ठंडी समुन्दरी हवा ने थपेड़ा मार दिया जो कि खिड़की खुली होने से अंदर को आई थी, हवा से अस्त व्यस्त पल्लू निकल के कमर मे आ गिरा, बिस्तर के सिरहाने पे पीठ टिकाये बैठे रेखा के बड़े भारी स्तन उजागर हो गए जिसे वो साफ शीशे मे देख सकती थी.

बिल्कुल टाइट दो सुडोल गोल आकृति कैद थी जिनके बीच गहरी सी लकीर साफ दिखाई पड़ती थी.

रेखा खुद पे ही मोहित होने लगी थी"क्या मै वाकई जवान हूँ " उसका एक हाथ अपने ब्लाउज के बटन पे खुद ही आ गया.

"टक...टक...कि आवाज़ के साथ ब्लाउज के दो बटन खुल गए

ये आवाज़ उसके दिल मस्तिक पे एक जोरदार चोट कि तरह लगी,वो ऐसी हरकत आज पहली बार कर रही थी

यहाँ कि हवा मे कुछ अलग ही रोमानीयत थी,जिसमे रेखा खुद को बेबस सा महसूस कर रही थी.

वो अपने बदन मे बदलाव महसूस कर रही थी.

"टक....टक..." दो बटन और खुल गए

धमममम.....से करते तो सुडोल आकृति सामने आ धमकी काली ब्रा मे कैद एक दम गोरी.

उसके स्तन भी आज उसका धन्यवाद दे रहे थे कि उन्हें आजादी तो मिली.

"ये आज़ भी इतने टाइट क्यों है " खुद को निहारती रेखा ने सवाल पूछा

जवाब कौन देगा,कोई नहीं....

"अन्ना प्यार से बुला रहा था " रेखा ने अपने पुरे ब्लाउज को उतार फेंका

और पलंग से उठ खड़ी हुई ना जाने किस आवेश मे थी वो.

वो अपने कपड़ो कि अलमारी कि ओर बढ़ चली,पल्लू नीचे फर्श पर घिसता जा रहा था,

देखते ही देखते रेखा ने एक लाल कलर का ब्लाउज निकाल लिया, उसे लहराती वापस शीशे के सामने आ ठहरी, एक पल खुद को जी भर निहारा उसके बाद उस लाल ब्लाउज को अपने स्तन पे ब्लैक ब्रा के ऊपर कस लिया.

ब्लाउज थोड़ा टाइट था जिस वजह से स्तन बाहर को निकल आये परन्तु आज उसे इस बात पे कोई ऐतराज़ नहीं था वो बेसुध थी खुद कि खूबसूरती मे मदहोश.

शीशे मे निहारती रेखा ने अपनी साड़ी को भी खोल दिया,वो सिर्फ लाल ब्लाउज और पेटीकोट मे खड़ी थी, उसका सुन्दर सुडोल बदन आईने मे चमक रहा था,

उसकी नजर अपने पेट कि तरफ गई जगा नाभि से नीचे पेटीकोट के डोर बँधी थी.

बिल्कुल सपाट पेट,उसमे चार चाँद लगाती गहरी नाभि.

"इससससस....... रेखा ख़ुश से शर्मा गई वो तैयार हो रही थी,लेकिन किस लिए?

पास मे पड़ी लाल साड़ी से उसने अपना बदन तुरंत धक लिया,उस से अपना ही अर्धनग्न बदन नहीं देखा जा रहा था.

जैसे ही उसने पल्लू अपने सीने पे डाला "चररररर...कि आवाज़ के साथ रूम का दरवाजा खुलता चला गया "

"अरे माँ कहाँ जाने को तैयार हो रही हो " राजेश ने अंदर आते ही पूछा

रेखा भी आवाज़ कि दिशा मे पलट गई उसकी साड़ी का पल्लू उसके स्तन को ढक चूका था " क्यों पार्टी मे नहीं जाना क्या?"

राजेश :- आप तो मना कर रही थी.

रेखा :- तो क्या हुआ अब मूड बन गया, अब इतनी दूर आये है तो एन्जॉय तो कर ले ना

राजेश एक पल को अपनी माँ को देखता ही रह गया,"कितनी सुंदर है मेरी माँ "

राजेश :- कितनी सुन्दर लग रही हो आप माँ ऐसे ही रहा करो ना.

रेखा :- ओ....मेरा बेटा हाँ अब से ऐसे ही रहूंगी,रेखा ने अपने बालो को पीछे करते हुए कहा.

रेखा धीरे धीरे अपनी घिसी पीती जिंदगी के बंधन तोड़ रही थी


"अच्छा माँ मै भी तैयार हो के आता हूँ " राजेश बाथरूम कि ओर चल दिया


रेखा अपने होंठो को लाल लिपस्टिक से रंगने लगी,ना जाने आज कितने सालो बाद उसने सुर्ख लाल लिपस्टिक को छुआ था.

लेकिन किस के लिए? नहीं पता था उसे भी

बस उसे अच्छा दिखना था खुद के लिए,उसे अब खुद का जीवन जीना था.



रूम नंबर 102

"और कितना टाइम लगेगा जान तैयार होने मे देखो पर्यंत शुरू होने का वक़्त हो गया है " मंगेश ने अपनी घड़ी मे नजर मारते हुए बोला.

अनुश्री जो कि आधे घंटे से बाथरूम मे थी खुद को सवार रही थी सिर्फ सिर्फ अपने पति के लिए.

ब्लैक स्लिवेलेस ब्लाउज मे कैद उसके स्तन आज जरुरत से ज्यादा उफान मार रहे थे उस पर गहरी लाल मेहरून कलर कि साड़ी उसके बदन कि शोभा बड़ा रहे थे.

"आई मेरे प्यारे पतिदेव " बोलती अनुश्री बाथरूम से बाहर आ गई.

मंगेश कि तो आंखे ही फटी राह गई खुद कि बीवी को देख के,

"आज तो क़यामत लग रही हो किस को मरना है?" मंगेश लगभग बिस्तर से उछल ही बैठा

"सब आपके लिए ही है मेरी जान " अनुश्री ने पास आते हुए कहा

चले अब.


अनुश्री मंगेश कमरे से बाहर निकाल नीचे उतरने लगे थे,वही राजेश और उसकी माँ रेखा भी नीचे आ चुके थे.

"क्या बात है माँ जी आज तो बिजलिया गिरा रही है आप " अनुश्री ने रेखा को छेड़ते हुए कहा

"धत पागल ऐसे भी कोई बोलता है खुद को देख बिजली तो तू हिरा रही है " रेखा ने सीधा हमला किया

रेखा और अनुश्री दोनों ही एक दूसरे कि बाय सुन झेम्प गई थी


"आइये आइये साहेब..... " अन्ना कि आवाज़ ने सभी का स्वागत किया.

अनुश्री और रेखा ने चारो ओर देखा वाकई सजावट शानदार थी होटल के काफ़ी गेस्ट पार्टी मे शामिल थे परन्तु सभी कि नजर नयी नवेली अनुश्री और पुराने मीठे चावल कि तरह रेखा पे टिकी हुई थी.

सभी ने उन दोनों कि सुंदरता को अंदर ही अंदर सराहा था

अन्ना ने सभी का स्वागत किया " आइये मंगेश राजेश बाबू आपका ही इंतज़ार होना इधर, आप बहुत सुन्दर दिखता मैडम " अन्ना ने रेखा कि और देखते हुए कहा.

अन्ना कि नजरें बराबर रेखा पे बनी हुई थी, जिसे रेखा ने भी भम्पा शायद उसे भी अहसास हो गया था कि वो कू और किस के लिए तैयार हो के आई है.

शाम ढल गई थी,चारो ओर रोशनी को सजावट कि चकाचोघ थी

खाने के काउंटर चारो ओर लगे थे जिसे मिश्रा संभाल रहा था, मिश्रा कि नजर अनुश्री पे ही टिकी हुई थी "मैडम का फेवरेट कलर ब्लैक ही है आज भी ब्लैक ब्लाउज ही पहना है " मिश्रा ने अपने पाजामे मे ही अपने लंड को सहला दिया

वही अब्दुल का भी यही हाल था वो भी आस पास ही पार्टी कि व्यवस्था देख रहा था उसकी नजरें भी अनुश्री पे ही बानी हुई थी, वो बस मौका देख रहा था अनुश्री कि नजदीकी का.

"कितनी अच्छी जगह है ना मंगेश?" अनुश्री ने मंगेश का हाथ पकडे हुए कहा.

मंगेश : हाँ जान तभी तो मै कह रहा था कि पार्टी मे चलते है मजा आएगा.

"सॉरी ना बाबा मुझे नहीं पता था इतना अच्छा लगेगा " अनुश्री ठन्डे रुमानी मौसम को साफ महसूस कर रही थी उसके दिल मे उमंग नाच रही थी.

थोड़ी ही देर मे अन्ना के बर्थडे का केक काटा गया सभी ने उसे बधाईया दी और खाने कि ओर बढ़ चले.

"तुम कहाँ जाता जी सर....तुम लोगो का खास इंतेज़ाम किया मैंने " अन्ना ने मांगेश और राजेश को बोला

मंगेश जो वैसे ही free कि पार्टी से ख़ुश था "क्या अन्ना पहले ही अपने इतनी सर्विस दे दी है हमें और क्या इंतेज़ाम है "

अन्ना :- आओ तो मेरे साथ स्पेशल है कुछ

राजेश और मंगेश मे एक दूसरे कि तरफ देख फिर दूसरी तरफ देखा जहाँ अनुश्री और रेखा आपस मे बातो मे बिजी थी.

राजेश :- क्या अन्ना क्या बात है?

अन्ना :- आओ तो सही

मंगेश " रुको जरा " बोल के मंगेश अनुश्री और रेखा के पास गया

"हम लोग अभी आते है जब तक आप लोग खाना खा लो.

पार्टी का माहौल था तो दोनों ने कोई ऑब्जेक्शन नहीं किया,ना पूछा कि कहाँ जा रहे है.

अनुश्री और रेखा मे पहले ही काफ़ी अच्छी दोस्ती हो चुकी थी वो अपने मे ही व्यस्त थी


अन्ना होने साथ राजेश और मंगेश को होटल के ही किसी कमरे मे ले गया "ये देखो स्पेशल पार्टी " अन्ना ने महँगी विदेशी दारू कि बोत्तल को उन दोनों कि आँखों के सामने लहरा दिया.


बाहर पार्टी मे

"ये लोग कहाँ चले गए माँ जी " अनुश्री ने कोतुहाल वंश पूछा

रेखा :- जाने दे बेटा लड़के है उनके अपने शौक है बोल के मुस्कुरा दी

अनुश्री भी कुछ कुछ समझ गई कि क्या करने गए है.

मंगेश कभी कभी दारू पी लेता था,शायद आज अन्ना ने फाॅर्स किया हो

काफ़ी समझदार थी अनुश्री

"मैडम और कुछ लाउ " अनुश्री अपने विचार से बाहर आई और आवाज़ कि दिशा मे पलटी

"अब्दुल तुम " अनुश्री ने चौकते हुए कहाँ

"मैडम आप तो हर बार ऐसे चौकती हो जैसे मुझे पहली बार देखा हो, अभी सुबह ही आपको लाइन मे लगाया था " अब्दुल ने आते ही तीर दाग दिया.

अनुश्री कुछ बोलती उस से पहले है "अरे नहीं अब्दुल जी आप तो पहले ही हमारी काफ़ी हेल्प कर चुके है " रेखा ने जवाब दिया

अनुश्री के जहन मे जैसे ही सुबह कि मंदिर कि लाइन कि बात आई उसके बदन ने झुरझुरी ले ली उसे याद आया कि अब्दुल पीछे से चिपका हुआ था और उसके उत्तेजना मे आ के मंगेश के कंधे को भींच लिया था.

" ना..ना....नहीं अब्दुल जी कुछ चाहिए होगा तो बोल दूंगी " अनुश्री ने खुद को जैसे तैसे संभाला

वो रेखा के सामने कुछ भी जाहिर नहीं करना चाहती थी

"वैसे मैडम मेरा गिफ्ट ना भूल जाना " अब्दुल ने जाते जाते कह दिया

अनुश्री उसकी बात सुन शर्मा गई उसने गुस्से से अब्दुल कि तरफ देखा अब्दुल जा चूका था बस उसके शब्द अनुश्री के जहन मे रह गए थे.

"चलिए माँ जी खाना खाते है " अनुश्री और रेखा दोनों खाने कि टेबल कि ओर चल दी


"आउच आअह्ह्ह.....बेटा " रेखा एक दम से करहते हुए जमीन पे बैठ गई,उसके पैर लड़खड़ा गए थे


"क्या हुआ माँ जी क्या हुआ " अनुश्री ने चौंक के रेखा को गिरने से बचाया

"आआहहहह.....बेटा लगता है पाँव मुड़ गया है" रेखा ने अपने पैर को एड़ी के पास से पकड़ लिया.

"ओह्ह्ह...माँ जी ये दोनों भी कहाँ गए? क्या मुसीबत है?" अनुश्री रेखा को संभाल रही थी

पार्टी मे भीड़ भाड़ ज्यादा थी किसी का ध्यान इस तरफ नहीं था.

कि तभी एक जोड़ी हाथो ने रेखा के दूसरे बाजु को पकड़ संभाल लिया," मेमसाहेब....मेमसाहब....कोई दिक्कत है "

अनुश्री रेखा ने सर उठा के देखा तो सामने चौकीदार कि ड्रेस मे एक नेपाली लड़का रेखा को थामे खड़ा था.

"आअह्ह्ह.....बेटा पैर मुड़ गया है " रेखा ने जवाब दिया


नेपाली लड़का :- आइये मेमसाहब मै आपको रूम टक छोड़ देता हूँ,कौनसा रूम है आपका?

बड़े ही स्नेह और प्यार के साथ उस मजबूत कद काठी के नेपाली लड़के ने रेखा जैसी गद्दाराई औरत को होने एक हाथ से ही पकड़ के सीधा खड़ा कर दिया.

"आइये मेमसाहेब " बोल के दोनों हाथो से रेखा को पकड़ धीरे धीरे गार्डन से बाहर कि ओर चल पड़ा.

रेखा ने बड़े ही हसरत भरी नजरों से उस लड़के कि तरफ देखा जो ना जाने कहाँ से फ़रिश्ते कि तरह आ कर उसको संभाल लिया था, दर्द सेआहात पसीने से पल भर मे भीग गई थी रेखा


"मै राजेश और मंगेश को बुला के लाती हूँ माँ जी,भैया इनका रूम 103 है " बोल के अनुश्री रिसप्शन कि ओर भाग खड़ी हुई.



"अरे ट्रैन वाली मैडम आप यहाँ " अब्दुल रिसप्शन पे बैठा था

अनुश्री हाफती हुई वहा पहुंची थी "अन्ना....अन्ना....कहाँ है? मंगेश कहाँ है?"

अब्दुल :- अन्ना का तो बर्थडे है यदि आपके पति उनके साथ गए है तो जल्दी नहीं आने के,मुझे बताइये क्या बात है सभी समस्या का हाल मेरे पास ही है अब्दुल ने अपनी बत्तीसी दिखाते हुए कहा.

"वो...वो.....राजेश कि माता जी का पैर मुड़ गया है, i mean मोच आ गई है "

अनुश्री ने एक ही बार मे कह दिया.

"घबराइए नहीं मामूली बात है उन्हें रूम मे ले जाइये कोई बाम लगाइये ठीक हो जाएगी इसमें घबराने कि क्या बात है?"अब्दुल बड़े ही इत्मीनान से बोला

"बात तो सही ही है मै इतना पेनिक क्यों हो रही हूँ पैर ही तो मुड़ा है " अनुश्री ने खुद को संभाला उसे अब्दुल कि बात वाजिब लगी.

"फिर भी उन्हें तो ढूंढना ही पड़ेगा ना"अनुश्री को ये भी ध्यान नहीं रहा कि वो फ़ोन भी कर सकती है,करती भी कैसे खुद का फ़ोन तो रूम मे ही रख आ आई थी.

"आइये मेरे साथ, अभी देख के आते है " अब्दुल कुर्सी से उठ के चल दिया होटल के पिछले दरवाजे कि ओर

अनुश्री बिना कुछ सोचे समझें ही अब्दुल के पीछे पीछे चल दी.

अब्दुल होटल के पीछे के दरवाजे से होटल के पीछे आ गया जहाँ दूर दूर तक हलकी रौशनी पासरी हुई थी,समुद्र कि लहरे किनारे से टकरा रही थी.

अनुश्री ने जैसे ही ये मनमोहक नजारा देखा उसके दिल से घबराहट चिंता सब काफूर हो गई.

"वाओ....क्या सीन है " अनुश्री के मुँह से अनायास ही निकल गया

"आपको अच्छा लगा ना मैडम " अब्दुल ने पूछा?

"हम....हाँ हाँ....बहुत शानदार है " अनुश्री ने जवाब दिया

"लेकिन यहाँ तो आपके पति नहीं है चलिए वापस चलते है" अब्दुल वापस गेट कि तरफ मुड़ गया

परन्तु अनुश्री वही खड़ी रही समुद्र कि लहरों को देखती रही जैसे उस दृश्य ने उसे अपने मे बांध लिया था.

"क्या हुआ मैडम जी  चलिए "

अनुश्री ने जैसे सुना ही नहीं वो आगे बढ़ चली उसे वो दृश्य अपने पास बुला रहा रहा

उसने कभी भी समुद्र नहीं देखा था उसकी बहुत इच्छा थी कि वो यहाँ अठखेलिया करती मंगेश के साथ,परन्तु जब ये दृश्य सामने आया तो वो खुद को रोक ना सकी आगे बढ़ गई

"मैडम मैडम....कहाँ जा रही है आप " अब्दुल अनुश्री को पुकारता उसके पीछे चल पड़ा.

अनुश्री चलते चलते किनारे तक आ गई थी.

"मैडम अच्छा लगा आपको" अब्दुल ने अनुश्री के कंधे पे हाथ रख दिया.

"उममम्म....बहुत शानदार " अनुश्री ने पीछे पलट के देखा टक नहीं वो इस मनमोहक दृश्य का शिकार हो गई थी.


अनुश्री ने अपनी दोनों हाथो को फैला लिया जैसे उस ठंडी हवा को महसूस कर रही हो अपने वजूद मे,उसकी आंखे बंद हो गई.

उसे ये पल किसी स्वर्ग से कम नहीं लग रहा था.


तो कौन है ये नेपाली लड़का? क्या रेखा को उसके रूम तक पंहुचा देगा?

अनुश्री क्या करेगी इस मनमोहक दृश्य मे?

बने रहिये कथा जारी है.....

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